रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 22 अप्रैल। क्या चुनाव आयोग ने छत्तीसगढ़ कैडर के अफसरों से दूरी बना ली है? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि अगले माह हो रहे कर्नाटक विधानसभा के चुनावों के लिए पर्यवेक्षकों के रूप में केवल पांच अफसरों की ही आयोग ने ड्यूटी लगाई है।
बीते 20-22 वर्षों में देश के संसदीय हो या राज्य विधानसभाओं के चुनावमें छत्तीसगढ़ के दर्जन डेढ़ दर्जन आईएएस-आईपीएस अफसर तैनात किए जाते रहें हैं।पश्चिम बंगाल के चुनाव तक यह सिलसिला जारी है। त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर के भी चुनाव में कुछ कम अफसर भेजे गए ।अब अगले माह होनेवाले कर्नाटक विस के चुनाव के लिए स्थिति बदल गई है। आयोग की मांग पर छत्तीसगढ के केवल पांच अफसरों को ही पर्यवेक्षक बनाए गए हैं। इनमें जीआर. चुरेंद्र,राजेश सिंह राणा, नरेंद्र दुग्गे समेत दो अन्य अफसर शामिल हैं। इन नामों में आरआर यानी डायरेक्ट आईएएस के स्थान पर अवार्डेड प्रमोटी अफसर अधिक हैं।
सूत्रों ने बताया कि आयोग छत्तीसगढ़ के अफसरों की निष्पक्षता को लेकर संदेह की स्थिति में है। आयोग ने यहां ये अफसरों में राजनीतिक प्रतिबध्दता अधिक महसूस किया है। साप्रवि में आयोग के मामलों को डील करने वाले अफसरों का कहना है कि संभवत: इसी वजह से कर्नाटक चुनाव के लिए कम अफसर मांगे हो। प्रशासनिक दृष्टिकोण से यह भी बताया है कि राज्य प्रशासन में कार्यरत आईएएस अफसरों की कमी भी है। 18 अफसर जहाँ केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर हैं तो दर्जन भर लंबी छुट्टियों पर चल रहे हों। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने कम अफसरों को चुनाव के लिए रिजर्व किया हो। यदि आयोग को अफसरों में राजनीतिक प्रतिबद्धता घर कर जाने का निष्कर्ष निकाला है तो छत्तीसगढ़ कैडर के लिए सोचनीय विषय है।
इस संबंध में एसोसिएशन के पदाधिकारियों के संपर्क किया गया तो किसी ने भी कुछ कहने से इंकार किया । वैसे बीते 10-15 वर्षों में प्रदेश के अफसरों में दलीय झुकाव अधिक देखने में आ रहा है। भाजपा,कांग्रेस विचारधारा रखने वाले अफसरों के नाम प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में यूं ही गिने जाते हैं।