बस्तर

राष्ट्रीय उद्यान से लगे ग्रामों में बस्तर पहाड़ी मैना की गूंज सुनाई दे रही
27-Apr-2023 3:03 PM
राष्ट्रीय उद्यान से लगे ग्रामों में बस्तर  पहाड़ी मैना की गूंज सुनाई दे रही

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 27 अप्रैल।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के मैना मित्र व फ्रंट लाइन स्टाफ के निरंतर प्रयास से अब बस्तर पहाड़ी मैना के संख्या में वृद्धि होने से आस पास के ग्रामों में भी देखने को मिल रही है। ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ के राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना का प्राकृतिक रहवास कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान ही है। यहां लगभग एक साल से स्थानीय समुदाय के युवाओं को प्रशिक्षण देकर मैना मित्र बनाया गया है। मैना मित्र पहाड़ी मैना के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए लगातार प्रयासरत है। और अब उनकी मेहनत रंग लाया रही है। 

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान  के निदेशक धम्मशील गणवीर ने बताया कि कैम्पा योजना अंतर्गत संचालित मैना सरंक्षण एवं संवर्धन प्रोजेक्ट  बस्तर  पहाड़ी मैना  के सरंक्षण के लिए कारगर साबित हुआ है। प्रोजेक्ट अंतर्गत मैना मित्रों द्वारा कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान से लगे 30 स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। प्रत्येक शनिवार और रविवार स्कूली बच्चों को पक्षी दर्शन के लिए ले जाया जा रहा है जिससे उनके व्यवहार में बदलाव भी देखा जा रहा है। एक समय में जिन बच्चों के हाथ में गुलेल थे अब उनके हाथ में दूरबीन देखा जा रहा है। 

उल्लेखनीय है की मैना  का रहवास साल के  सूखे पेड़ों में होता जहा कटफोड़वे घोंसले बनाते है। इसी कड़ी में बस्तर वन मंडल द्वारा साल के सुखे पेड़ों को काटने पर बस्तर प्रतिबंध लगाया गया है, जिससे मैना का रहवास कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के बाहर भी सुरक्षित हो सके।

साथ ही कांगेर घाटी से लगे ग्राम जैसे मांझीपाल , धूडमारास के  होमस्टे पर्यटन में पहाड़ी मैना को जोड़ा गया है, जहां पर्यटक पक्षी दर्शन गतिविधी में राजकीय पक्षी को भी  देख सकते है। धूड़मरास के मानसिंह बघेल जो धुरवा डेरा के संचालक है कहते है कि मुझे बहुत अच्छा लग रहा है कि पहाड़ी मैना हमारे घर के पास देखने को मिल रही है, और उन्हें हम होम स्टे पर्यटन के साथ जोडक़र उसका संरक्षण भी कर रहे है। 

अभी नेस्टिंग सीजन में पहाड़ी मैना के कई नए घोंसले देखने को मिले, जिसमें इस समय पहाड़ी मैना अपने बच्चों को फल और कीड़े खिलाते हुए देखी जा रही है, जिनकी निगरानी मैना मित्रों और फील्ड स्टाफ द्वारा की जा रही है। पहले जहां पहाड़ी मैना की संख्या कम थी अब वह कई झुंड में नजर आ रही है। यह स्थानीय समुदायों के योगदान एवं पार्क प्रबंधन के सतत प्रयास से ही मुमकिन हो पाया है।
 

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