रायपुर
होली की तैयारियों में जुटे कारोबारी
टिकेश यादव
रायपुर, 12 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। त्यौहारों पर खासकर होली पर बिकने वाले बताशे का अपना एक विशेष महत्व है। इसे एशिया महाद्वीप में सबसे खास मिठाई मानी जाती है। इस बताशे का इतिहास बहुत पुराना है। इसे शुगर ड्राप कैन्डी (क्वाईन) के नाम से भी जाना जाता है।
जानकारों के मुताबिक इसे देश का सबसे पुरानी मिठाई भी कहा जाता है। इसकी शुरूआत उत्तर भारत के राज्यों से हुई । जहां इसे पहले गन्ने के रस को पकाकर गुड़ की तरह ही बनाया जाता था। पारंपरिक तरीके से तैयार इस मिठाई को सादे कपड़े में गर्म गुड के रस के बूंदों को ठंडा कर तैयार किया जाता था।
देश में मुगल शासन काल में भी इसे काफी सराहा गया। गुलाब जल मिलाकर मुगलों ने इसका जायका बढ़ाया। इसके बाद यूनानियों के साथ व्यापार के साथ ही बताशे में सोडियम बाइकार्बोनेट का उपयोग कर इसके रंग में बदलाव हुआ। इसके बाद इसे शक्कर से बनाया जाने लगा। सभी धर्मो के लोगों द्वारा अपने आराध्य को भोग चढ़ावे और प्रसाद के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है।
हिन्दू धर्म में बताशा का उपयोग मिठाई के रूप में करते हैं। दीपावली और होली जैसे विषेश पर्व पर अपने आराध्य को मिठी माला चढ़ाने का रिवाज है। होली पर घर में बताशे के हार से मेहमानों का स्वागत किया जाता है।
गर्मियों में पेट के विकारों में फायदेमंद
जानकारों का कहना है कि सोडियम बाइकार्बोनेट पेट के एसिड को कम करता है। अपच और पेट की खऱाबी को दूर करने के लिए इसे एंटासिड के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
बताशा, पेट के विकारों के लिए फायदेमंद है। इसे पानी में भिगोकर खाने से इसकी तासिर ठंडा होता है। गर्मियों में इसका सेवन करने से कई फाएदे हैं।
ज्योतिष में भी बड़ा महत्व
सनातन धर्म में ज्योतिष में बताशे का महत्व बताया गया है। विद्वानों की माने तो बताशा शुक्र का सुचक है। घर में शुभ कार्य पूजापाठ में यह बताशा चढ़ाया जाता है। दीपावली और होली पर विषेश रूप से पूजन में शामिल कर भविष्य की शुख समृद्धि के लिए शुक्र को प्रसन्न करने इसकी मिठाई अपने आराघ्य को भेंट किया जाता है।
यह शुभ विवाह कार्यक्रमों और रोजमर्रा के घरेलू अनुष्ठानों में लाया जाता है। नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक बताशों को घी में डुबाकर समृद्धि की आशा में देवताओं को अर्पित किया जाता है। बंगाल में, हरिर लूट (जन्माष्टमी के दौरान आयोजित) के दौरान भक्तों के लिए मुट्ठी भर बताशे हवा में उछाले जाते हैं ताकि वे खेल-खेल में उन्हें पकड़ सकें और इकट्ठा कर सकें।
भ्रामक खबरों और पैकेट बंद मिठाईयों से बिक्री घटी
मिठाई विक्रेताओं का कहना है कि इसे लेकर कई भ्रामक खबरों और आज के दौर में डिब्बे बंद उत्पाद के चलते बताशा की खरीदारी कम हो गई है। पहले तो लोग घर में शुभ कार्यो पर इसकी खरीदारी करते थे। अब बाजार में दूसरी मिठाईयां आने से इसकी मांग कम को गई है। बताशा अब विशेष अवसरों में ही खरीदा जाता है। इसे बनाने वाले कारीगरों की भी कमी होने लगी है।