बलौदा बाजार
कई छात्रों का नाम दर्ज नहीं, प्राचार्य भरेंगे 25 हजार फाइन
शिक्षक फेडरेशन ने आदेश का विरोध किया
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बलौदाबाजार, 6 अक्टूबर। 9वीं से 12वीं तक के कई बच्चों का ऑनलाइन पंजीयन नहीं करने के कारण स्कूलों के प्राचार्य अब परेशानी में पड़ गए हैं। जिले में करीब 43 ऐसे स्कूल हैं, जहां के कुछ बच्चों का आवेदन जमा नहीं किए गए हैं, ऐसे बच्चों की संख्या करीब 70 से ज्यादा बताई जा रही है, लेकिन प्रति छात्र विलंब शुल्क 25 हजार जमा करने के लिए कहा गया है। यह शुल्क प्राचार्य को देना है, माध्यमिक शिक्षा मंडल के इस आदेश से स्कूलों में हडक़ंप है।
इधर, इस बात को लेकर संशय है कि यह बच्चे 10 वीं-12वीं की परीक्षा दे पाएंगे या नहीं। छत्तीसगढ़ प्रदेश शिक्षक फेडरेशन ने इस आदेश को न केवल अव्यवहारिक बल्कि राज्य शासन की कल्याणकारी नीति के खिलाफ बताया है। फेडरेशन के प्रांत अध्यक्ष राजेश चटर्जी, तहसील अध्यक्ष बोनी राम साहू, विकासखंड अध्यक्ष अरुण साहू सहित अन्य पदाधिकारी का कहना है कि इस प्रकार का जुर्माना शासकीय स्कूलों के लिए अत्यधिक बोझ है और यह विद्यार्थियों और विद्यालयों के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
कक्षा 9 वीं से लेकर 12 वीं तक छात्र-छात्राओं का स्कूल में दाखिला लेने के बाद माध्यमिक शिक्षा मंडल के ऑनलाइन पोर्टल में एंट्री की जानी थी। पोर्टल एक से 31 जुलाई तक खोला गया था, इसके बाद फिर से 20 दिन के लिए पोर्टल खोला गया एक से 20 अगस्त तक के लिए। इसमें 770 रुपए एंट्री शुल्क रखा गया था। पोर्टल को 31 अगस्त के बाद बंद कर दिया गया। इसके बाद भी सैकड़ो बच्चों की जानकारी पोर्टल में दर्ज नहीं हो पाई।
माध्यमिक शिक्षा मंडल ने हाई एवं हाई सेकेंडरी स्कूल के छात्राओं की दर्ज संख्या की एंट्री करने विलंब शुल्क 25 हजार जमा करने के निर्देश दिए हैं। प्रदेश के कुल 1247 स्कूलों में बच्चों की एंट्री नहीं की है। माध्यमिक शिक्षा मंडल ने प्रदेश सहित जिले के सभी बीईओ को निर्देश दिए हैं कि सभी संस्था प्रमुखों से शुल्क सहित ऑनलाइन पोर्टल में छात्र-छात्राओं के नाम की एंट्री काराये बिना इसके छात्र-छात्राओं का परीक्षा आवेदन पत्र का प्रकाशन नहीं किया जाएगा। इसके लिए सभी संस्था के प्राचार्य जिम्मेदार होंगे।
एंट्री बंद होने के बाद ही भेजी गई सूची
बताया जाता है कि जिला शिक्षा अधिकारी ने ऑनलाइन एंट्री बंद होने के बाद एक सूची माध्यमिक शिक्षा मंडल को भेज दी। इसके बाद माध्यमिक शिक्षा मंडल ने 1 अक्टूबर को 3 से 6 अक्टूबर यानी 4 दिन के लिए पोर्टल खोलने की अनुमति देते हुए शर्त रखी है कि 25 सितंबर तक प्रतिदिन 1000 के हिसाब से 25 हजार प्रत्येक स्कूल के संस्था प्रमुख को देना होगा। इससे प्राचार्य की समस्या बढ़ गई है।
राशि वसूलने का यह तरीका अनुचित अध्यक्ष
इस मामले में जिला सर्व शिक्षा संघ के अध्यक्ष अविनाश तिवारी का कहना है कि जिन स्कूलों की एंट्री होनी है वे शासकीय या अनुदान प्राप्त स्कूल है। वहां के संस्था प्रमुख आखिर इतनी राशि कहां से लाकर देंगे। इस तरीके से राशि वसूलने का तरीका गलत है। शासन को इस पर ध्यान देना चाहिए।
ऑपरेटर नहीं, स्कूल में इंटरनेट की समस्या
फेडरेशन ने एक कारण यह भी रेखांकित किया है कि शासकीय विद्यालयों में तकनीकी संस्थानों की कमी है। स्कूलों में कंप्यूटर ऑपरेटर की नियुक्ति नहीं है जिससे ऑनलाइन कार्य प्रभावित होते हैं। साथ ही कई बार तकनीकी खराबी या इंटरनेट की समस्याएं भी प्रविष्टि में देरी का कारण बनती है।
इसके अलावा यूडाइस एंट्री स्कॉलरशिप बोर्ड कार्य एक साथ करने की वजह से विद्यार्थियों का कार्य भार बढ़ जाता है।
आर्थिक तंगी के कारण फीस नहीं दे पाते छात्र
शासकीय विद्यार्थियों में पढऩे वाले अधिकांश विद्यार्थी गरीब परिवार से आते हैं। जिसके माता-पिता मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं आर्थिक कठिनाइयों के कारण कई बार यह परिवार अपने बच्चों का प्रवेश शुल्क और बोर्ड परीक्षा शुल्क समय पर जमा नहीं कर पाते हैं। इसके बावजूद स्कूलों के प्राचार्य और शिक्षक विद्यार्थियों को शिक्षा की धारा से जोड़े रखने के लिए उन्हें प्रवेश दे देते हैं।