रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 24 मार्च। नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (नोटो) एवं स्वास्थ्य संचालनालय छ.ग. शासन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय प्रत्यारोपण समन्वयक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल के एनेस्थेटिस्ट एवं क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. ओ. पी. सुंदरानी ने संभावित मस्तिष्क स्टेम डोनर की पहचान और ट्रैकिंग के बारे में पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन देते हुए बताया कि किसी भी मनुष्य का मस्तिष्क जब पूर्णत: काम करना बंद कर दे या मस्तिष्क द्वारा संचालित की जा रही गतिविधियां पूर्णत: बंद हो जाएं, इस स्थिति को मस्तिष्क का मृत हो जाना या ‘ब्रेन डेड’ की अवस्था कहते हैं। मस्तिष्क मृत्यु (ब्रेन डेड) का पता प्रगाढ़ बेहोशी या कोमा, ब्रेन स्टेम प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति और एपनिया के जरिये लगाया जा सकता है। कार्डियोपल्मोनरी मापदंड भी ब्रेन डेथ को पता लगाने का एक तरीका है।
डॉ. सुंदरानी ने अंत में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 के अनुसार ब्रेन डेथ की प्रमाणीकरण के कानूनी तरीकों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि ब्रेन डेड या जिसे ब्रेन स्टेम डेथ के नाम से भी जाना जाता है, कानूनी या आधिकारिक तौर पर मृत्यु ही है। किसी भी व्यक्ति के मस्तिष्क की मृत्यु का अर्थ है उसके मस्तिष्क में किसी भी प्रकार की तंत्रिकीय (न्यूरोलॉजिकल) गतिविधि नहीं हो रही है एवं मस्तिष्क कोशिकाओं ने सिग्नल भेजना बंद कर दिया हैं। ब्रेन डेथ में ब्रेन स्टेम काम करना बंद कर देता है जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य का जीवन समाप्त हो जाता है।
डॉ. प्राची साठे ने ब्रेन डेड मनुष्य के अंगों के रखरखाव एवं इसके डोनेशन के प्रक्रियाओं के बारे में ऑनलाइन जानकारी दी। वहीं सुजाता अष्टेकर ने अंगदान के लिए मृतक के परिवार की काउंसलिंग एवं उनकी सहमति के बारे में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि ब्रेन डेड के कई मामले सामने आने पर भी परिवार वालों में जागरूकता की कमी के कारण अंगदान और इसके ट्रांसप्लांट के प्रति उदासीनता बनी रहती है। इसके लिए स्वयंसेवी संस्थाओं की भी मदद ली जा सकती है।