स्थायी स्तंभ
निराश ओपी फोन से बाहर
चर्चा है कि पूर्व कलेेक्टर ओपी चौधरी कोप भवन में चले गए हैं। उन्होंने पार्टी के प्रमुख नेताओं का फोन उठाना बंद कर दिया है। वैसे तो उनकी नाराजगी जायज है, क्योंकि वे युवा मोर्चा का अध्यक्ष अथवा प्रदेश भाजपा का महामंत्री बनना चाहते थे। मगर उन्हें मात्र प्रदेश मंत्री का पद दिया गया।
चौधरी के पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में अजीत जोगी इंदौर कलेक्टर रहते नौकरी छोडक़र कांग्रेस में आए थे। तब उन्हें हाथों-हाथ लिया था। कांग्रेस ने जोगी को तुरंत राज्यसभा में भेजा था। राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी। मगर चौधरी कलेक्टरी छोडक़र आए, तो भाजपा ने उन्हें खरसिया जैसी बेहद कठिन सीट पर झोंक दिया। जहां भाजपा कभी जीत नहीं पाई थी। यद्यपि भाजपा के कुछ लोग मानते हैं कि खरसिया में चौधरी को जिताने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी गई थी। कसडोल से ज्यादा खर्च खरसिया में हुआ था। सारे संसाधन झोंकने के बाद भी ओपी चौधरी बुरी तरह हार गए।
नौकरशाह से नेता बने चौधरी ने कांग्रेस नेताओं को खूब भला-बुरा कहा था, तो उनका भी काला-पीला निकलना था। दंतेवाड़ा कलेक्टर रहते जमीन घोटाले की फाइल खुल गई, जिसमें सीधे-सीधे चौधरी पर आक्षेप लगे हैं। यद्यपि चौधरी को हाईकोर्ट से जांच के खिलाफ स्थगन मिला हुआ है, लेकिन तकलीफ तो है ही। रायपुर में इन्होने डीएमएफ से लायब्रेरी बनवाई, जिसे लेकर कांग्रेस ने सवाल खड़े किये. अब पार्टी में भी उन्हें अपेक्षाकृत सम्मान नहीं मिल रहा है, तो बुरा लगना स्वाभाविक है।
सुनते हैं कि प्रदेश भाजपा के एक संगठन के बड़े नेता ने उन्हें फोन लगाया, तो उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। जबकि कार्यकारिणी की घोषणा से पहले प्रमुख नेताओं से उनकी बात होते रहती थी। सरगुजा और अन्य जगहों से पार्टी के लोग उन्हें मोबाइल लगा रहे हैं, तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिल रहा है। यह भी संभव है कि चौधरी किसी और कारण से फोन नहीं उठा पा रहे हैं। फिर भी पार्टी के भीतर चौधरी के बदले रूख पर चर्चा हो रही है।
मरवाही बाहरी नेताओं के भरोसे...
मरवाही उप-चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही स्थानीय नेताओं के भरोसे नहीं हैं। दोनों ही दलों ने बिलासपुर, कोरबा और रायपुर के नेताओं को जिम्मेदारी दे रखी है। स्थानीय सिर्फ जोगी कांग्रेस के नेताओं को कहा जा सकता है क्योंकि जो मरवाही का नेता है वही उनका राज्य स्तर का भी नेता है। जोगी के रहते दोनों ही दलों ने यहां से चुनाव लडऩे में इतनी गंभीरता नहीं दिखाई जितनी उनके जाने के बाद दिखाई जा रही है। कांग्रेस के पास विधानसभा में बहुत बड़ा बहुमत है पर सवाल जोगी की सीट और कांग्रेस सरकार की लोकप्रियता का है, इसलिये लगातार दौरे पार्टी नेता कर रहे हैं और अपनी 70वीं सीट हासिल करने के लिये मेहनत कर रहे हैं। भाजपा जरूर कई चुनावों में दूसरे स्थान पर रही लेकिन जीत-हार का फासला बहुत कम रहा। उसे लगता है कि जोगी के नहीं रहने पर उनके लिये भी संभावना बन सकती है। प्रतिष्ठा दोनों ही दलों की दांव में लगी है। चुनाव के पहले कांग्रेस के मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, सांसद और कई विधायक तो आते ही रहे अभी भी बिलासपुर और रायपुर के नेताओं को चुनाव प्रचार और संचालन की जिम्मेदारी दी गई है। यही हाल भाजपा का है। पूर्व मंत्री, सांसद, नेता प्रतिपक्ष सब वहां दौरे कर रहे हैं। जोगी के रहते दोनों ही दलों में कोई स्थानीय नेता अपनी बड़ी पहचान नहीं बना पाये। इस चुनाव के नतीजों से तय होगा कि मरवाही से कोई स्थानीय नेता उभरकर सामने आ पायेगा या नहीं। फिलहाल तो सब जिले के बाहर के नेताओं ने मोर्चा संभाल रखा है।
वैसे भी यह नया जिला बना है, जीपीएम, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही. नाम शायद देश में सबसे बड़ा, इसीलिए बोलचाल में छोटा, जीपीएम, कर लिया गया है. राज्य सरकार ने पिछले महीनों में लगातार यहां अफसर-कर्मचारियों की पोस्टिंग करके सरकारी काम पटरी पर लाने की कोशिश में कोई कसर भी नहीं रखी है. नए जिले का पहला चुनाव, अफसरों के जिम्मे सरकार को खुश रखना भी है।
छत्तीसगढ़ में सिर्फ 1 प्रतिशत मौत !
कोरोना को लेकर दो ख़बरें आज सुबह-सुबह मिल गईं। देश में कोरोना से मौतों की संख्या एक लाख पहुंच गई तो छत्तीसगढ़ में भी यह संख्या एक हजार को पार कर गई। वैसे तो राष्ट्रीय औसत के आधार पर कहा जा सकता है कि मौतें सिर्फ एक प्रतिशत हैं। पर एक भी मौत क्यों होनी चाहिये। अप्रैल-मई में जब छत्तीसगढ़ में बहुत कम कोरोना केस थे तब हम अपनी पीठ थपथपा रहे थे कि हमने कोरोना से लडऩा सीख लिया है पर धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती गई और अब भी बढ़ ही रही है। बहुत से रिसर्चर तो बल्कि यह कह रहे हैं कि ठंड के दिनों में संक्रमण तेजी से फैलेगा। अब तक कोरोना का कोई वैक्सीन नहीं आया है, शर्त लगाकर कोई नहीं कह सकता कि आने वाले दिनों में प्रकोप घटेगा ही। हाल के लॉकडाउन से हमने देख लिया कि व्यापार, काम-धंधे बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। हो सकता है हमारी ही लापरवाही से फिर केस बढ़ें और हमें फिर लॉकडाउन की तरफ लौटने के अलावा कोई चारा दिखाई न दे। इसलिये सिर्फ एक प्रतिशत मौतें होने पर चैन की सांस लेने के बजाय नये केस घटाने और रिकवरी दर बढ़ाते रहने पर काम होना चाहिये।
- 1860-जर्मन वैज्ञानिकों ने सीजिय़म तत्व की खोज की घोषणा की।
- 1866- इटली और ऑस्ट्रिया साम्राज्य के प्रतिनिधियों के बीच वियना समझौते पर हस्ताक्षर हुए। जिसके आधार पर ऑस्ट्रिया ने वेंनसी राज्य को इटली के हवाले कर दिया।
- 1990 - पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एक होने की औपचारिक रुप से घोषणा की गई।
- 1932 - इराक़ ने ब्रिटेन से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की।
- 1994 - भारत ने सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए औपचारिक रूप से अपना दावा पेश किया।
- 1995 - चीन एवं इंग्लैंड के बीच हांगकांग के सुगम हस्तांतरण पर सहमति।
- 1996 - पाकिस्तान के 16 वर्षीय बल्लेबाज़ शहिद अफऱीदी ने एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच में 37 गेंदों में शतक बनाकर विश्व कीर्तिमान रचा।
- 1999 - आण्विक पदार्थों के आवागमन और आण्विक दुर्घटनाओं को रोकने हेतु सं.रा. अमेरिका तथा रूस ने संयुक्त संकट केन्द्र की स्थापना की।
- 2002 - नोबेल शान्ति पुरस्कार के लिए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर को संयुक्त रूप से देने की सिफ़ारिश की गई।
- 2004 - लश्कर-ए-तैयबा का राजनीतिक संगठन दो हिस्सों में बंटा।
- 2008- टाटा मोटर्स के चेयरमैन रतन टाटा ने सिंगूर से नैनो कार परियोजना अन्यत्र ले जाने की घोषणा की।
- 1949 -भारतीय फि़ल्म निर्देशक जे. पी. दत्ता का जन्म हुआ।
- 1830 - फ्रांसीसी रसायनशास्त्री फ्रैन्कॉइस मैरी रॉउल्ट का जन्म हुआ, जिन्होंने विलयन पर नियम दिए जिन्हें राउल्ट्स के नियम के नाम से जाना जाता है। इससे घुले हुए पदार्थ का आण्विक भार ज्ञात करना सम्भव हुआ। (निधन-1 अप्रैल 1901)
- 1901-आयरिश भौतिकशास्त्री और एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफर जॉन डेसमन्ड बर्नल का जन्म हुआ, जिन्होंने ठोस यौगिकों की परमाण्विक संरचनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने आण्विक जीवविज्ञान में भी अनुसंधान किए। (निधन-15 सितम्बर 1971)
- 1910-इटली के रसायनज्ञ स्टैनिस्लाओ कैनिज़ैरो का निधन हुआ, जिन्होंने आण्विक भार तथा परमाण्विक भार में अंतर बताया। सन् 1853 में इन्होंने कैनिज़ैरो अभिक्रिया की खोज की। (जन्म 13 जुलाई 1826)
- 1829- अंग्रेज़ चिकित्सक तथा भौतिकशास्त्री थॉमस यंग का निधन हुआ, जिन्होंने प्रकाश का तरंग सिद्धान्त दिया और प्रकाश के व्यतिकरण का अध्ययन किया। (जन्म-13 जून 1773)।
- महत्वपूर्ण दिवस
- विश्व प्राकृतिक दिवस
- जर्मनी एकीकरण दिवस
- विश्व आवास दिवस
अनुचित परीक्षा से थके हुए...
आखिरकार पॉवर कंपनी के सीनियर अफसर अजय दुबे ने रिटायरमेंट के चार साल पहले ही नौकरी छोड़ दी। उन्होंने कंपनी के चेयरमैन को विधिवत आवेदन दे दिया, जिसकी मंजूरी की प्रक्रिया चल रही है। दुबे पॉवर होल्डिंग कंपनी में डायरेक्टर रहे, और कुछ महीने पहले उन्हें पदावनत कर ईडी बना दिया गया था। जिस पर वे पहले तकरीबन 11 साल से अधिक समय तक थे। वे सभी कंपनियों में काम कर चुके हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि दुबे के साथ काम कर चुके पॉवर कंपनी के तकरीबन सभी पुराने चेयरमैन उन्हें ईमानदार और मेहनती अफसर मानते रहे हैं, मगर वे पिछले वर्षों में एमडी पद पर अजय दुबे की स्वाभाविक दावेदारी पर कुछ न कर सके। दुबे करीब ढाई साल तक होल्डिंग कंपनी के डायरेक्टर रहे।
अपने से जूनियर अफसरों को संविदा नियुक्ति देकर एमडी बनाने के फैसले से आहत होकर सरकार को वीआरएस का आवेदन दे दिया। उन्होंने फेसबुक पर अपना दर्द जाहिर किया, और लिखा कि एक लंबे अर्से से अनुचित परीक्षा देते-देते थक सा गया था...। वरिष्ठ होकर सर्वोत्तम कार्य-मूल्यांकन उपार्जित कर भी मुझे अपने से कनिष्ठ, वरिष्ठ पदों में मुझसे कम अनुभवी संविदा युक्त एमडी के अधीन कार्य करने बाध्य किया जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि व्यवस्था नाम की कोई चीज ही नहीं है। ऐसा जैसे अन्याय से अकेले ही लड़ता हूं...मैं लड़ा भी, लेकिन कब तक...उम्र, स्वास्थ्य और शांति पाने नमस्ते करना उचित समझा।
ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस अफसर को एमडी का दायित्व सौंपने पर विचार नहीं किया। जब भी एमडी के चयन के लिए समिति बैठती थी, अजय दुबे के नाम पर विचार होता था। पिछली सरकार में ट्रेडिंग कंपनी का एमडी का पद एक सीनियर आईएएस अफसर ने बरसों तक अपने पास सिर्फ इसलिए रखा कि वे कंपनी से मिलने वाली सुविधाओं को भोग सके। अफसर के लिए 16 लाख की गाड़ी किराए पर ली गई थी। जबकि सुविधाभोगी अफसर के पास मंत्रालय में एक से अधिक विभागों का प्रभार था। स्वाभाविक था कि दमदार आईएएस के रहते अजय दुबे जैसों को एमडी नहीं बनाया जा सकता था। कुछ इसी तरह होल्डिंग कंपनी में भी एके गर्ग को रिटायरमेंट के बाद दो बार संविदा नियुक्ति दे दी गई, जिस पर अजय दुबे की नियुक्ति होते-होते रह गई।
पिछली सरकार में तो एक बार एमडी पद के लिए अजय दुबे की दावेदारी को सिर्फ इसलिए खारिज की गई, कि पॉवर कंपनी की एक निजी कंपनी के साथ ज्वाइंट वेंचर कंपनी का एमडी बनाए जाने के बाद भी छुट्टी पर चले गए। हकीकत यह थी कि सरकार ने खुद उन्हें एमबीए करने के लिए विशेष अध्ययन अवकाश मंजूर किया था। मौजूदा सरकार का हाल यह रहा कि ट्रेडिंग कंपनी के जिस राजेश वर्मा को एमडी बनाया गया, वे चीफ इंजीनियर पद से रिटायर होने के बाद जनरेशन कंपनी के एमडी बनाए गए थे। बाद में उन्हें हटाया गया और फिर ट्रेडिंग कंपनी की जिम्मेदारी दे दी गई। यह भी संयोग है कि अजय दुबे, आईएफएस अफसर एसएस बजाज के इंजीनियरिंग कॉलेज के सहपाठी हैं। कुछ इसी तरह की परिस्थितियों से बजाज भी गुजर चुके हैं। सरकारें चाहे कोई भी हो, व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लडऩा आसान नहीं होता। अधिकारी संगठन भी अपना दायित्व नहीं निभा पाते हैं। दूसरे अफसर अपनी जगह बना लेते हैं, अजय दुबे जैसे लोग थक हारकर हाथ जोड़ लेते हैं।
निजी ख्वाहिशों को पूरा किया
राज्य सरकार ने दो आईपीएस केएल ध्रुव और शलभ सिन्हा को उनके मौजूदा जिले से एक-दूसरे की जगह पदस्थ कर निजी ख्वाहिशों को पूरा किया है। दोनों अफसर को हटाने की वजहों को लेकर पुलिस महकमे में फुसफुसाहट चल रही है। दरअसल कवर्धा पोस्टिंग से पहले केएल ध्रुव को सुकमा भेजने की सरकार की तैयारी थी। मार्च में डीआरजी के 17 जवानों की शहादत की घटना के चलते शलभ सिन्हा को वहां बनाए रखना सरकार की मजबूरी हो गई थी। वारदात के बीच एसपी को हटाए जाने से सरकार को अपनी छवि खराब होने का डर था। वैसे केएल ध्रुव भी व्यक्तिगत रूप से सुकमा में ही काम करने की इच्छा सरकार के करीबियों के समक्ष जाहिर कर चुके थे। प्रदेश सरकार के मंत्री कवासी लखमा भी अपने जिले में एक प्रमोटी आईपीएस की तैनाती की कोशिश में थे। लखमा का सीधी भर्ती के आईपीएस से कभी अच्छा रिश्ता नहीं रहा। सरकार भी अपने मंत्री की पंसद के खिलाफ जाना नहीं चाहती थी।
सुनते है कि नक्सल मामलों में केएल ध्रुव की समझ बेहतर मानी जाती है। बीजापुर जिले में वह सर्वाधिक तीन साल तक पदस्थ रहने वाले इकलौते एसपी हैं । बीजापुर और सुकमा में लगातार हो रही हिंसक वारदातों पर काबू पाने के लिए सरकार अनुभवी अफसर की तलाश में थी। सुकमा से सीधे कवर्धा पहुंचे शलभ सिन्हा को बाहर निकालने के लिए सरकार लंबे समय से विकल्प ढूंढ रही थी। एक दूसरी बात यह भी है कि बीजापुर के मौजूदा एसपी कमलोचन कश्यप को भी सरकार ने नक्सल अनुभव के चलते ही बस्तर वापस भेजा। ध्रुव भी थोड़े महीने मैदानी जिले में तैनाती के बाद वापस बस्तर भेजे गए।
दूसरे नशे के धंधे भी मिले...
मुंबई की तरह छत्तीसगढ़ में भी ड्रग्स के कारोबार का खुलासा हुआ है। दो युवक को पुलिस ने गिरफ्तार किया, तो कुछ जानकारी निकलकर आ भी गई। एक आरोपी युवक तो कांग्रेस के एक भूतपूर्व पदाधिकारी का बेटा है। मगर ड्रग्स रैकेट से जुड़े लोगों के पूरे नाम सामने आ पाएंगे, इसकी उम्मीद बेहद कम है।
सुनते हैं कि नव धनाढ्य युवक भी ड्रग्स रैकेट से जुड़ गए हैं। बकायदा इन लोगों का ग्रुप है, जिनमें से सिर्फ दो को ही पकड़ा गया है। ये न सिर्फ ड्रग्स बल्कि ऑनलाइन जुआ भी खिलाते रहे हैं। ड्रग्स रैकेट में एक पूर्व मंत्री के बेटे का नाम भी चर्चा में है। देखना है कि पुलिस पूरे ड्रग्स रैकेट का खुलासा कर पाती है, या नहीं। आम चर्चा यह रहती है कि पुलिस की आम तौर पर इन धंधों के चलते रहने में दिलचस्पी रहती है, वह तो भला हो दारू के कारोबारियों का जो अपने नशे के मुकाबले सर उठाने वाले किसी भी दूसरे नशे पर नजऱ रखते हैं ताकि अपनी बिक्री काम न हो. उन्हीं की खबर से दूसरे नशे पकड़ाते हैं।
और ये बलरामपुर, बेलगहना की बेटियां?
उत्तरप्रदेश के हाथरस में जुल्म की शिकार हुई बेटी की बलात्कार और हत्या और उसके बाद संदिग्ध तरीके से पुलिस द्वारा आधी रात को शव जलाने के मामले ने पूरे देश को झकझोरा। इसी हफ्ते छत्तीसगढ़ में इसी तरह की दो घटनायें हुईं। एक घटना छत्तीसगढ़ के उत्तरी छोर के बलरामपुर जिले में जहां लड़की से मारपीट कर, नशा देकर, उसके साथ सामूहिक -बलात्कार किया गया। पीडि़ता और उसके मां-बाप लोक लाज के डर से मेडिकल परीक्षण कराने के लिये भी राजी नहीं थे। पुलिस ने बार-बार समझाया तब एमएलसी रिपोर्ट बनी और बलात्कार की पुष्टि हुई। बलरामपुर पुलिस की बात मानें तो आरोपी गिरफ्तार कर लिये गये हैं। इसी तरह की एक वारदात बेलगहना में हुई जहां रिश्ते का भाई एक मूक नाबालिग से रेप करता रहा। जब वह गर्भवती हुई तो आरोपी के मां-बाप ने गांव के प्रमुख, व स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जानकारी में, उसका अवैध गर्भपात कराया। बेलगहना के मामले में पुलिस का रवैया आरोपियों के प्रति झुकाव का रहा। उसने आरोपी, उसके मां-बाप और दादा को तो जेल भिजवाया पर गांव के प्रमुख लोग जो इस घटना को दबा रहे थे उन पर कोई कार्रवाई नहीं की। बलरामपुर और बेलगहना दोनों ही जगहों पर पीडि़ता की माताओं ने घटना को पुलिस तक ले जाने की हिम्मत जुटाई। उन्हें भी धमकाया गया पर उनकी हिम्मत नहीं टूटी। जहां सामाजिक संस्थायें नहीं पहुंची, कानूनी साक्षरता के कैम्प नहीं लग पाते, कानून और न्याय व्यवस्था क्या है इसे बताने वाले नहीं पहुंचते, वहां पीडि़त के माता-पिता हिम्मत दिखा पाये तो ठीक, वरना दबाव तो बहुत पड़ता है,क्योंकि ज्यादातर मामलों में प्रभावशाली लोग शामिल होते हैं। ऐसे में सरकार, मीडिया, जागरूकता, कानूनी सहायता वाली संस्थाओं का इन तक पहुंचना ज्यादा जरूरी है, जो ऐसी वारदातों को होने से पहले ही रोकें और हो जायें तो पीडि़त को हरसंभव न्याय मिले। महिला अत्याचार, रेप के मामलों में अपने प्रदेश का ग्राफ वैसे भी बहुत अच्छा नहीं है।
कोरोना की चुनावी गाइडलाइन
कोरोना काल में छत्तीसगढ़ में पहला चुनाव मरवाही में होने जा रहा है। बिहार विधानससभा चुनाव, मध्यप्रदेश का मिनी चुनाव भी साथ-साथ होने जा रहा है। कोविड के संक्रमण से बचाने के लिये कई दिलचस्प उपाय किये गये हैं। मसलन, 80 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को डाक मतदान की सुविधा दी गई है। दिव्यांग और कोरोना संक्रमित और आइसोलेशन में रह रहे मतदाता भी मतदान के लिये डाक का इस्तेमाल कर सकेंगे। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का बटन दबाने के लिये मतदाता को हैंड ग्लब्स दिया जायेगा। मतदाता पंजी में दस्तखत के लिये भी हैंड ग्लब्स का इस्तेमाल करना होगा। मगर नजर इस पर रखनी होगी कि प्रचार के लिये जो गाइडलाइन राजनैतिक दलों को दिया गया है, उसका कितना पालन हो पायेगा। मसलन, काफिले में पांच से ज्यादा गाडिय़ाँ नहीं होंगी, रोड शो भी निकालने की अनुमति होगी लेकिन उसमें भी सोशल डिस्टेंस का पालन करना होगा। घर-घर सम्पर्क में भी पांच से अधिक लोग एक साथ नहीं जा सकेंगे। मरवाही में चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी भले ही हुआ हो पर चुनाव का माहौल दो माह से बन चुका है। यहां सभी दलों के राजनैतिक कार्यक्रम हो रहे हैं। ऊपर बताये गये किसी भी नियम का इसमें पालन नहीं हो रहा है। क्या चुनाव अभियान के दौरान इन बंदिशों को नेता कार्यकर्ता लागू कर पायेंगे? और हां, कोरोना संक्रमितों को भी वोट डालने का अधिकार दिया गया है। उन्हें आखिरी एक घंटे में मौका मिलेगा।
- 1721-पहला ऊंट अफ्रीका से अमेरिका ले जाया गया।
- 1924 - राष्ट्रसंघ को शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य से लाया गया जेनेवा प्रस्ताव 1924 महासभा द्वारा स्वीकृत हुआ किंतु बाद में उसकी पुष्टि नहीं हुई।
- 1941 -नाज़ी जर्मनी के नेता एडोल्फ हिटलर ने पूर्व सोवियत संघ पर दोबारा सैनिक आक्रमण का आदेश दिया। जर्मनी ने 22 जून सन 1941 ईसवी को सोवियत संघ पर आक्रमण करके उसके भाग पर अधिकार कर लिया था।
- 1956 -अमेरिका की पहली परमाणु घड़ी एटामिक्रोन का अनावरण किया गया।
- 2000 - रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भारत की चार दिवसीय यात्रा दिल्ली पहुंचे।
- 2001 - 19 देशों के संगठन नाटो ने अफग़़ानिस्तान पर हमले के लिए हरी झंडी दी।
- 2003 - हंगरी के प्रधानमंत्री पीटर मैडगेसे भारत की यात्रा पर आए।
- 2004 - संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कांगों में 5 हजार 900 सैनिक भेजने का प्रस्ताव मंजूर किया।
- 2006 - दक्षिण अफ्रीका ने परमाणु ईधन आपूर्ति मामले पर भारत को समर्थन देने का फैसला किया।
- 2007 - उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच दूसरी शिखर बैठक सम्पन्न हुई।
- 1869 - मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म हुआ, जो महात्मा गांधी के रूप में मशहूर हुए और भारत के राष्ट्रपिता कहलाए।
- 1904 - भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का जन्म हुआ।
- 1942 - फिल्म अभिनेत्री आशा पारेख का जन्म हुआ।
- 1906 -विख्यात चित्रकार राजा रवि वर्मा का जन्म हुआ।
- 1975 - भारत रत्न सम्मानित से स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. कामराज का निधन हुआ।
- 1982 - ब्रिटिश शासन के अधीन आई.सी.एस. अधिकारी और स्वतंत्रता के बाद भारत के तीसरे वित्त मंत्री सी. डी. देशमुख का निधन हुआ।
- 1917-बेल्जियम के कोशिका विज्ञानी और जैव रसायनज्ञ क्रिश्चियन रेने डी ड्यूवे का जन्म हुआ, जिन्होंने लाइसोसोम (कोशिका के पाचन अंग) तथा परआक्सीसोम्स (अंग जो उपापचय की प्रक्रियाओं के स्थान होते हैं) की खोज की।
- 1852 - स्कॉटलैण्ड के रसायनज्ञ सर विलियम रैमसे का जन्म हुआ, जिन्होंने अक्रिय गैसों की खोज की जैसे नियॉन, क्रिप्टन और ज़ेनॉन, आर्गन तथा रैडॉन। उन्होंने कैल्शियम तथा बेरियम जैसे तत्वों के बारे में फिर से बताया। (निधन-23 जुलाई 1916)
- 1927 - स्वीडन के भौतिक रसायनज्ञ स्वान्ते आगस्ट आर हीनियस का निधन हुआ, जिन्हें 1903 में रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनके पृथक्करण के इलेक्ट्रोलाइटिक सिद्धान्त ने रसायन विज्ञान को एक नई दिशा दी। (जन्म-19 फरवरी 1859)
- 1853- फ्रांसीसी भौतिकशास्त्री डॉमिनिक फ्रांस्वा जीन ऐरेगो का निधन हुआ जिन्होंने क्रोमोस्फेयर पता लगाया, जो सूरज का बाहरी भाग होता है और जिसमें हाइड्रोजन गैस होती है। (जन्म 26 फरवरी 1786)
- महत्वपूर्ण दिवस
साय के करीबी उम्मीद से...
भाजपा के अंदरखाने में दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय को राज्यपाल बनाने की चर्चा चल रही है। साय कई बार सांसद और विधायक रह चुके हैं। वे अविभाजित मध्यप्रदेश के भाजपा अध्यक्ष रहे हैं। मोदी सरकार ने उन्हें केन्द्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष का दायित्व सौंपा था। कुछ महीने पहले उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद से साय प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं।
उन्हें प्रदेश कार्यसमिति में भी रखा गया है। मगर अब इस बार की चर्चा जोरों पर है कि झारखंड की राज्यपाल सुश्री द्रोपदी मुर्मू का कार्यकाल खत्म होने के बाद नंदकुमार साय उनकी जगह ले सकते हैं। सुश्री द्रोपदी मुर्मू का कार्यकाल जल्द ही खत्म होने वाला है। सुश्री द्रोपदी मुर्मू ओडिशा की रहवासी हैं, और उन्हीं की तरह ओडिशा या छत्तीसगढ़ के ही किसी आदिवासी नेता को झारखण्ड का राज्यपाल बनाया जा सकता है। पार्टी के लोगों का मानना है कि साय इस मामले में फिट बैठते हैं। साय के करीबी लोग फिलहाल उम्मीद से हैं।
जिले के चक्कर में
राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम से प्रदेश भाजपा के बड़े नेता नाराज बताए जा रहे हैं। नेताम ने जिस तरह प्रदेश अध्यक्ष की सहमति के बिना अपने गृह जिले बलरामपुर की कार्यकारिणी घोषित करवा दी थी, उसकी शिकायत पार्टी हाईकमान को भेजी गई है। चर्चा है कि नेताम को धीरे-धीरे किनारे किया जा रहा है।
नेताम अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी का हिस्सा नहीं रह गए हैं। वे अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। अब प्रदेश कार्यकारिणी में भी उनके धुर विरोधी पूर्व संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा की पत्नी उद्देश्वरी पैकरा को उपाध्यक्ष बनाया गया है। कार्यकारिणी को लेकर सिद्धनाथ ने रामविचार के खिलाफ सीधे मोर्चा खोल रखा है, और वे उन पर कार्रवाई तक की मांग कर रहे हैं। अब हाल यह है कि जिले में दबदबा कायम रखने के चक्कर में नेताम की राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर पार्टी के भीतर हैसियत कम हो रही है।
फर्जी संस्थाओं का मुखौटा...
देश में सरकारी या संवैधानिक संस्थाओं से मिलते-जुलते नाम वाले फर्जी संगठन बनाकर उसके लेटरहैड और आईडी कार्ड बेचने का कारोबार खूब चलता है। इसमें मानवाधिकार आयोग, प्रेस कौंसिल, एंटीकरप्शन ब्यूरो के नाम पर तरह-तरह की कागजी संस्थाएं गढ़ी जाती हैं, और देश भर में उसके पदाधिकारी होने के आई कार्ड बेचे जाते हैं। अभी रायपुर के क्वींस क्लब में भिलाई के जिस हितेश पटेल नाम के आदमी ने गोली चलाई, उसके बारे में भी ऐसी शिकायत राज्य के सीएम को भेजी गई है।
भिलाई के एक राजनीतिक कार्यकर्ता ने सीएम को भेजी शिकायत में कहा है कि हितेश पटेल अपने आपको इंडियन प्रेस कौंसिल नाम की एक कथित संस्था का उपाध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार बताता है। अब भारत में प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया नाम के एक संवैधानिक संस्था है जिसके अध्यक्ष अनिवार्य रूप से सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज होते हैं। केन्द्र सरकार इसके सदस्य मनोनीत करती है, लेकिन हमेशा से ही इससे मिलते-जुलते नाम की कागजी दुकानें बनाकर देश भर में पहचानपत्र बिकते रहे हैं। लोग कारों पर भी ऐसी संस्थाओं की तख्तियां लगा लेते हैं। केन्द्र सरकार कई बरस पहले से यह आदेश निकालते आ रही है कि संवैधानिक संस्थाओं के नाम से मिलती-जुलती, या अपने नाम में इंडियन या नैशनल शब्द इस्तेमाल करने वाली संस्थाओं की जांच की जानी चाहिए, लेकिन जब ऐसी संस्था, उसका कार्ड बंदूक की नोंक पर दिखाया जाए, तो गोलियों के बीच कौन जांच कर सकता है?
वैसे तो जिस क्वींस क्लब में गोली चलने के बाद यह बवाल खड़ा हुआ है, उसका नाम देखें तो वह भी अंग्रेजों के समय का सरकारी क्लब लगता है-क्वींस क्लब ऑफ इंडिया!
लुभावने चेहरों का झांसा...
फेसबुक पर बहुत से, या अधिकतर, लोगों को पहली नजर में फर्जी दिखने वाले लोगों की तरफ से फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट मिलती रहती है। किसी को कम, और किसी को ज्यादा। अगर ध्यान से देखें तो यह सारा फर्जी सिलसिला आसानी से पकड़ में आ जाता है, लेकिन हैरानी यह होती है कि बड़े काबिल और समझदार लोग भी चमचमाते चेहरों का न्यौता टाल नहीं पाते। आमतौर पर फेसबुक के आदमियों को जो न्यौते मिलते हैं, वे महिलाओं की तरफ से रहते हैं, उनमें बस दो-तीन तस्वीरें पोस्ट की हुई रहती हैं, और कोई भी जानकारी नहीं रहती, यह जरूर रहता है कि कभी-कभी आपके कुछ परिचित इसके दोस्तों की लिस्ट में निकल आएं। कुल मिलाकर धोखे से बचना चाहने वाले लोग आसानी से ऐसे फर्जी अकाऊंट पकड़ सकते हैं, लेकिन लुभावने चेहरों से धोखा खाना जिनकी नीयत में रहता है, उन्हें भला कौन बचा सकते हैं?
दुर्गा पंडाल में जाकर कोई संक्रमित हुआ तो?
दुर्गा पूजा पर्व के लिये आखिरकार गाइडलाइन आ ही गई। बहुत कड़े नियम-कायदे हैं। गणेश चतुर्थी से भी ज्यादा सख्ती होगी। प्रतिमा की ऊंचाई कम और पंडाल के आकार को बड़ा कर दिया गया है। एक पंडाल से दूसरे पंडाल की दूरी 250 मीटर से कम न हो। दर्शन के लिये आने वाले सभी व्यक्तियों का नाम, पता और मोबाइल फोन नंबर आयोजकों को एक रजिस्टर में दर्ज करना होगा। पंडाल में कम से कम 4 सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है या नहीं इस पर निगरानी रखी जा सके। पंडाल के प्रवेश द्वार पर सैनेटाइजर रखना होगा और मास्क पहने बिना कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकेगा। ऑक्सीमीटर और थर्मल स्क्रीनिंग का प्रबंध भी आयोजक को ही करना होगा। इन सब की व्यवस्था आयोजक कर भी लें तो एक और शर्त है जो उनके लिये बड़ी मुसीबत बन सकती है। इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति पंडाल जाने के कारण कोरोना से संक्रमित हो गया तो उसके इलाज का सारा खर्च मूर्ति की स्थापना करने वालों को उठाना पड़ेगा। अब सवाल यह है कि यह कैसे तय हो कि कोई पंडाल में ही जाकर ही संक्रमित हुआ। वहां से लौटने के बाद भी तो हो सकता है। अब तक तो लोग सिर्फ अनुमान लगाते हैं कि किसी कार्यक्रम में गये थे, कुछ लोगों से मिले थे, शायद इसलिये संक्रमित हो गये। अब यदि दो चार लोग दर्शन करने के बाद पूजा समिति पर खर्च का दावा कर दें तब तो आयोजन करने वालों को लेने के देने पड़ जायेंगे। इसलिए दुर्गापूजा के लिए अगले बरस का इंतजार बेहतर है..
फेल भले हो गये, पढऩे से नाता नहीं टूटा
रायपुर के सोनू गुप्ता ने केबीसी मं 12.50 लाख रुपये जीत लिये। इसके आगे के पायदान में सही जवाब देते तो 25 लाख रुपये जीत सकते थे, लेकिन समझदारी दिखाई। उत्तर मालूम नहीं था। अटकल लगाते वापस सीधे तीन लाख रुपये में रह जाते, जो जीती गई रकम की सिर्फ एक चौथाई होती। सोनू की दो बातें सीखने के लायक है। एक तो वह 12वीं फेल हो चुका है। इसके बावजूद उसने यह नहीं सोचा कि सामान्य ज्ञान, किताबों और अख़बारों से उसे नाता तोड़ लेना चाहिये। केबीसी में मौका मिले इसके लिये वह तमाम तरह की पत्र-पत्रिकायें पढ़ता रहा। दूसरी बात, इतनी कम पढ़ाई के बावजूद वह अपने पैरों पर खुद खड़ा है। 12वीं फेल को ठीक-ठाक नौकरी मिलने से तो रही। इसलिये उसने वाटर प्यूरीफायर सुधारने का तकनीकी काम सीख लिया। अब जीती गई रकम से वह अपने लिये घर खरीदेगा, क्योंकि अभी वह किराये के मकान में रहते हैं। सोनू की इस कामयाबी पर एक शाबाशी तो बनती है..।
- 1854 - भारत में डाक टिकट का प्रचलन आरंभ हुआ। टिकट पर महारानी विक्टोरिया का सिर और भारत बना होता था। इसकी कीमत आधा आना (1/32 रुपये) थी।
- 1880 - ऐडिसन ने अपनी पहली लैम्प फैक्ट्री खोली।ा
- 1957 - थैलिडोमाइड नामक ड्रग पहली बार पश्चिम जर्मनी में बेची गयी। इसे 1953 में आविष्कृत किया गया था। मगर इसके द्वारा गर्भ पर पडऩे वाले बुरे प्रभावों के कारण इसे बाद में प्रतिबंधित कर दिया गया।
- 1949 - जनरल माओ-त्से-तुंग द्वारा चीन जनवादी गणराज्य (पीपुल्स रिपब्लिक आफ़ चाइना) की घोषणा।
- 1967- भारतीय पर्यटन विकास निगम की स्थापना हुई।
- 1996 - अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन द्वारा पश्चिम एशिया शिखर सम्मेलन का उद्घाटन।
- 1998 - श्रीलंका में किलिनोच्ची एवं मानकुलम शहरों पर कब्ज़े के लिए सेना एवं लिट्टे उगवादियों के बीच हुए संघर्ष में 1300 लोगों की मृत्यु।
- 2000 - सिडनी में 27वें ओलम्पिक खेल सम्पन्न।
- 2002 - एशियाड खेलों में स्नूकर प्रतिस्पर्धा में भारत को पहला स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ।
- 2003 - नदियों को जोडऩे के सम्बन्ध में बांग्लादेश की आशंकाओं को भारत ने दूर किया।
- 2007 - जापान ने उत्तर कोरिया के खिलाफ प्रतिबंधों को अगले छह महीनों तक बढ़ाने की घोषणा की।
- 1919- हंटर समिति की स्थापना ब्रिटिश सरकार द्वारा 1 अक्टूबर, 1919 ई. को की गई थी।
- 1847 - प्रख्यात समाजसेवी, लेखिका और स्वतंत्रता सेनानी एनीबेसेंट का जन्म हुआ।
- 1919 -हिन्दी फि़ल्मों के प्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म हुआ।
- 1975 -बंगला और हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार तथा गायक सचिन देव बर्मन का निधन हुआ।
- 1951- बालायोगी, प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष जी.एम.सी का जन्म हुआ।
- 1927-प्रसिद्ध तमिल अभिनेता शिवाजी गणेशन का जन्म हुआ।
- 1904 - ब्रिटिश नाभिकीय भौतिकशास्त्री आटो रॉबर्ट फ्रिश का जन्म हुआ, जिन्होंने हल्के तत्वों में न्यूट्रॉन द्वारा बमबारी द्वारा यूरेनियम के भागों को बताया। (निधन- 22 सितम्बर 1979)
- 1939- अफ्रीकी-अमेरिकी भौतिकशास्त्री जॉर्ज आर. कैरुथर्स का जन्म हुआ, जो नए अंतरिक्ष कैमरे के अन्वेषक के रूप में जाने जाते हैं जो पराबैंगनी रोशनी की सहायता से तारे के बीच के परमाणुओं को मापने के लिए जाने जाते हैं।
- 1953 - अमेरिकी जैवरसायनज्ञ एड्विन जोजफ़ कॉह्न का निधन हुआ, जिन्होंने ठण्डे इथेनॉल रक्त प्रभाजन (प्लाज़्मा प्रोटीन का प्रभाजों में पृथक्करण) किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इन्होंने कई चिकित्सकों का दल बनाया और घायलों की मदद की। (जन्म-17 दिसम्बर 1892)
- 1945- अमेरिकी तंत्रिका विज्ञानी तथा शरीर क्रिया विज्ञानी वाल्टर ब्रैडफॉर्ड कैनन का निधन हुआ, जिन्होंने पहली बार एक्सरे का इस्तेमाल शरीर क्रिया विज्ञान के अध्ययन में किया। मैकेनिकल फैक्टर्स ऑफ डाइजेस्शन 1911 में उनके द्वारा प्रकाशित की गई थी। (जन्म 19 अक्तूबर 1871)
भाजपा कार्यकारिणी इस तरह समझें..
प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी में नए-पुराने चेहरों का समावेश है। ज्यादातर नाम पहले से ही तय थे। हाईकमान के कुछ निर्देशों के बाद कई नाम बदले भी गए। मसलन, यह कहा गया कि युवा मोर्चा में 35 साल से अधिक उम्र के लोग नहीं रहेंगे। इस वजह से पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी युवा मोर्चा अध्यक्ष बनने से रह गए। इससे पहले 50 बरस के नेता भी युवा मोर्चा अध्यक्ष रहते आए हैं। निवर्तमान अध्यक्ष विजय शर्मा तो 50 पार कर चुके हैं। हमने इसी कालम में 27 सितंबर को अमित साहू के भाजयुमो अध्यक्ष बनने की प्रबल संभावना जताई थी। तब भाजपा के ज्यादातर लोगों के लिए अमित अपरिचित चेहरा थे।
अमित को अध्यक्ष बनवाने में पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह की भूमिका रही है, यद्यपि वे बृजमोहन अग्रवाल के समर्थक रहे हैं। विधानसभा चुनाव के समय बृजमोहन के एक-दो वार्ड में उन्हें जिम्मेदारी दी जाती रही है। अब वे एकाएक प्रदेश के नेता हो गए। चौधरी को महामंत्री बनाने की सिफारिश की गई थी, लेकिन उन्हें सिर्फ मंत्री बनाकर संतोष किया गया। एक बार फिर नलिनेश ठोकने को मीडिया विभाग की कमान सौंपी गई है। नलिनेश, सौदान सिंह के बेहद करीबी माने जाते हैं।
सच्चिदानंद उपासने तो खुले तौर पर नलिनेश की आलोचना करते रहे हैं। उनकी शिकायत रही कि प्रवक्ता होने के बावजूद नलिनेश उनकी विज्ञप्ति नहीं जारी करते हैं। श्रीचंद सुंदरानी के खिलाफ भी उपासने ने काफी कुछ कहा था। अब हाल यह है कि उपासने को ही उपाध्यक्ष और प्रवक्ता पद से बेदखल कर दिया गया। वे मात्र विशेष आमंत्रित सदस्य रह गए हैं। नलिनेश की धमक ऐसी है कि दुग्ध महासंघ के पूर्व चेयरमैन और मीडिया विभाग के लंबे समय तक अध्यक्ष रहे रसिक परमार का नाम सूची में नहीं है। पूरी सूची में सौदान सिंह और रमन सिंह की छाया देखी जा रही है।
समधियों के बीच..
यह भी संयोग है कि भाजपा और कांग्रेस का कोष संभालने वाले आपस में नजदीकी रिश्तेदार हैं। भाजपा ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल को कोषाध्यक्ष बनाया है। वैसे गौरीशंकर इस पद पर नहीं थे तब भी वे कोष का हिसाब किताब अप्रत्यक्ष रूप से उनके पास ही था। पार्टी में कोष नंदन जैन संभालते हैं। वे गौरीशंकर के अत्यंत भरोसेमंद हैं, पहली बार उन्हें सहकोषाध्यक्ष का पद दिया गया है। गौरीशंकर के समधी रामगोपाल अग्रवाल कांग्रेस का कोष संभालते हैं। रामगोपाल पिछले कई साल से यह काम देख रहे हैं। रामगोपाल की उपयोगिता का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें नागरिक आपूर्ति निगम का चेयरमैन बनाए जाने के बाद भी कोषाध्यक्ष पद से नहीं हटाया गया। दोनों ही समधी अपने विशिष्ट गुणों के कारण अपनी पार्टी में उपयोगी बने हुए हैं।
गजब का तालमेल
सुभाष राव को एक बार फिर प्रदेश कार्यालय प्रभारी बनाया गया है। सुभाष राव पिछले तीन दशक से कार्यालय का प्रभार देख रहे हैं। राज्य नहीं बना था, तब जिले का प्रभार देखते थे। कुछ दिनों के लिए उन्हें कार्यालय प्रभारी पद से हटाया गया था। तेज तर्रार नेता वीरेन्द्र पाण्डेय जब प्रदेश भाजपा के महामंत्री थे, तब उन्होंने सुभाष राव की जगह प्रदीप सराफ को कार्यालय प्रभारी बनाया था। थोड़े दिन बाद प्रदीप सराफ को हटा दिया गया। दिवंगत संगठन मंत्री गोविंद सारंग के करीबी रहे बालमुकुंद शर्मा याद करते हैं कि सारंगजी ने सुभाष राव की कार्यक्षमता को देखते हुए जगदलपुर से रायपुर बुलाया था और कार्यालय की जिम्मेदारी दी थी। उस समय जेब खर्च के लिए चार-पांच हजार रूपए ही मिलते थे। सुभाष राव मेहनती और ईमानदार व संगठन के प्रति निष्ठावान रहे। यही वजह है कि प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद लगातार 10 साल हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे।
सुभाष राव के साथ छगन मूंदड़ा को सहप्रभारी बनाया गया है। दोनों के बीच अच्छी ट्यूनिंग है। पार्टी के भीतर गौरीशंकर अग्रवाल, राजेश मूणत, लता उसेंडी, सुभाष राव और छगनलाल मूंदड़ा व राजीव अग्रवाल के बीच गजब का तालमेल है। इन सभी को एक ही परिवार का सदस्य माना जाता है। साल-दो साल में ये सभी नेता एक साथ सैर सपाटे के लिए प्रदेश से बाहर भी जाते हैं। खास बात यह है कि ये सभी सौदान सिंह और रमन सिंह के अत्यंत भरोसेमंद हैं।
रोजमर्रा के कामों में आसानी
खबर है कि प्रवक्ता बनने से वंचित नेता अब मीडिया पैनलिस्ट बनने की कोशिश में जुट गए हैं। मीडिया पैनलिस्ट को टीवी डिबेट में पार्टी का पक्ष रखने के लिए भेजा जाता है। टीवी पर चेहरा दिखने से आम लोगों के बीच चर्चा होते रहती है। इतना ही राजनीतिक दुकानदारी चलाने के लिए काफी है। चर्चा तो यह भी है कि एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को मीडिया पैनलिस्ट बनाने के लिए एक धर्मगुरू भी सिफारिश करने वाले हैं। पहले भी धर्मगुरू की सिफारिश पर उन्हें मीडिया पैनलिस्ट बनाया गया था। एक अन्य के खिलाफ तो ढेरों मामले हैं। कोरोना का इलाज करा रहे इस नेता से एम्स प्रबंधन इतना तंग आ गया था कि एम्स प्रबंधन ने थाने में रिपोर्ट कराने की धमकी दी थी। तब सांसद सुनील सोनी ने हस्तक्षेप कर मामले को सुलझाया था। ये नेता भी मीडिया पैनलिस्ट बनने की कोशिश में हैं। राजनीतिक दलों के मीडिया पैनलिस्ट होने से अफसरों के बीच नाम और चेहरे की पहचान हो जाती है, रोजमर्रा के कामों में आसानी हो जाती है।
कांग्रेस अपनों पर तय नहीं कर पा रही...
कांकेर में पत्रकारों को पीटने के वीडियो सामने आने के बाद भी प्रदेश के कांग्रेस नेता यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इससे कैसे निपटा जाए। कांग्रेस प्रवक्ता ने पहले दिन कहा कि हमलावर कांग्रेस से पहले ही निष्कासित है, और यह पत्रकारों की आपसी लड़ाई है। इसके बाद हमलावरों में से एक गफ्फार मेमन ने अपने आपको कांग्रेस पार्टी का और विधायक प्रतिनिधि बताने वाले लेटरहैड पर संसदीय सचिव और विधायक शिशुपाल सोरी को एक दिलचस्प इस्तीफा लिखकर भेजा। उसने लिखा- 26 सितंबर को आपसी विवाद से हुई घटना में कुछ लोगों के द्वारा सोशल मीडिया में अनावश्यक रूप से आपके और कांग्रेस पार्टी के साथ जोड़कर दुष्प्रचार किया जा रहा है। मैं नहीं चाहता कि उक्त घटना से आपकी प्रतिष्ठा पर आंच आए। मैं कांग्रेस का सच्चा सिपाही हूं, और हमेशा रहूंगा, और पार्टी का काम निष्ठापूर्वक करते रहूंगा। मेरे ऊपर लगे आरोप की जांच होने तक मैं विधायक प्रतिनिधि के पद से त्याग पत्र आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं।
अब इस इस्तीफे से जाहिर है कि जिसे कांग्रेस से निष्कासित कहा जा रहा था, वह तो कांग्रेस का सच्चा सिपाही था, है, और रहेगा, और वह विधायक प्रतिनिधि भी है। जो विधायक संसदीय सचिव भी है वह पार्टी से किसी निष्कासित को तो अपना प्रतिनिधि बनाएगा नहीं।
इसके बाद कल कांकेर जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुभद्रा सलाम ने इस घटना के बाद जिला कांग्रेस महामंत्री अब्दुल गफ्फार मेमन को पार्टी संगठन के पद और सदस्यता से निलंबित करते हुए जो बयान जारी किया है, उससे स्पष्ट है कि कांग्रेस ने हमले की इस घटना को मान लिया है।
सुभद्रा सलाम ने लिखा है कि कांग्रेस को प्राप्त वीडियो व अन्य जानकारी के आधार पर यह निलंबन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि उक्त घटना में इस व्यक्ति द्वारा बेहद आपत्तिजनक एवं अश्लील गालियां देते हुए पत्रकार के साथ मारपीट करना दिख रहा है जो कि अत्यंत आपत्तिजनक है तथा उक्त हरकत से पार्टी की छवि धूमिल हुई है। इसलिए अब्दुल गफ्फार मेमन, महामंत्री जिला कांग्रेस कमेटी को पार्टी से निलंबित करके प्रदेश स्तरीय जांच समिति बनाई गई है। इस कमेटी में केशकाल के विधायक संतराम नेताम, जगदलपुर विधायक रेखचंद जैन, गुंडरदेही विधायक कुंवर सिंह निषाद, रवि घोष महामंत्री प्रदेश कांग्रेस को रखा गया है, और यह दो दिन में प्रदेश कांग्रेस को रिपोर्ट देगी।
कांकेर जिला कांग्रेस कमेटी ने निर्विवाद रूप से इस हमलावर को अपना माना, निलंबित किया, (जिसके लिए अपना होना जरूरी होता है), और हमले को भी हकीकत माना, यह भी माना कि इससे पार्टी की बेइज्जती हुई है।
अब कल ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी से एक चि_ी जारी हुई जिसमें एक और जांच कमेटी बनाई गई जिसे संशोधित लिखा गया। इस कमेटी में जगदलपुर विधायक रेखचंद जैन रायपुर उत्तर विधायक विकास उपाध्याय, गुंडरदेही विधायक कुंवर सिंह निषाद, और प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री रवि घोष को रखा गया। जिला कांग्रेस द्वारा घोषित कमेटी में से केशकाल विधायक संतराम नेताम को हटाया गया, और रायपुर के एक विधायक विकास उपाध्याय को जोड़ा गया। जिस कमेटी को दो दिन में अपनी रिपोर्ट देनी थी, उसके काम शुरू करने के पहले ही उसमें फेरबदल हो गया। दिलचस्प बात यह भी है कि प्रदेश कांग्रेस ने जिला कांग्रेस के बताए गए पार्टी पदाधिकारियों को फिर से कथित कांग्रेस कार्यकर्ता लिखा, यानी प्रदेश कांग्रेस ने हमलावरों को कांग्रेसी न मानने की शुरूआत जांच के पहले ही कर दी। दो दिनों में सामने आई इन तीन चि_ियों से कांग्रेस की और फजीहत हो रही है। इस बीच सोशल मीडिया ऐसे विज्ञापनों की तस्वीरों से पटा हुआ है जिनमें हमलावर अपने को कांग्रेस नेता बता रहे हैं।