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रायपुर, 15 जून। प्राणीशास्त्र विभाग तथा आईक्यूएसी समिति, शासकीय नागार्जुन स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय, रायपुर के तत्वावधान में 14 जून को एनिमल डाइवर्सिटी-लोकल टू ग्लोबल विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार शुरू हुआ। स्वागत सत्र में विज्ञान महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. राधा पांडेय ने जैव विविधता के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा की जीव हमारे पारिस्थितिक तंत्र का प्रमुख भाग है जिन्हें हमें संरक्षित रखना चाहिए। डॉ. सीमा गुप्ता ने इस तीन दिवसीय वेबिनार की थीम पर प्रकाश डाला।
उद्घाटन सत्र के प्रमुख वक्ता डॉ. सुरेंद्र घासकडबी (पुणे) ने विकासवादी विकासात्मक जीव विज्ञान का अध्ययन करने के लिए एक मॉडल प्रणाली के रूप में हाइड्रा जीन, संकेत और स्टेम सेल विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि हाइड्रा में अपने खोए हुए शरीर के अंगों को पुन: उत्पन्न करने की उल्लेखनीय क्षमता होती है। यह एक वयस्क जीव में कुछ भ्रूण संबंधी घटनाओं का अध्ययन करने की अनुमति देता है। मानव सहित उच्च जीवों में विकास और पैटर्न निर्माण को नियंत्रित करने वाले कई सिग्नलिंग मार्ग हाइड्रा में संचालित होते पाए गए हैं। पुनर्जनन की अपनी असाधारण क्षमता, बहुत शक्तिशाली स्टेम कोशिकाओं की उपस्थिति और जीवों के पुराने पन की अनुपस्थिति के कारण, पैटर्न गठन के सेलुलर और आणविक विनियमन का अध्ययन करने के लिए हाइड्रा एक उपयोगी मॉडल है।
डॉ. अशोक सेनगुप्ता (बेंगलुरु) ने तितलियों के साथ एक मुलाक़ात विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि हम ज्यादातर बड़े स्तनधारियों, सरीसृपों और पक्षियों के संरक्षण के बारे में बात करते हैं। निचले अकशेरुकी जीवों की अक्सर अपेक्षा की जाती है और यही कारण है कि उनके बारे में हमारे अपर्याप्त ज्ञान है। अपने शोध में तितलियों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करते हुए उन्होंने तितली के वर्गीकरण, सांख्यिकी और वितरण, आकृति विज्ञान, प्रवासन, प्रारंभिक अवस्था, नागरिक विज्ञान की पहचान और उनके व्यवस्थित प्रलेखन में भूमिका के बारे में बताया।
डॉ. आशा पुनिया (हरियाणा) भारत में वन्यजीव व्यापार विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि वन्यजीवों को एक बहुत ही प्रभावी पैसा कमाने वाला व्यापार माना जाता है। इनमें से बहुत ही आकर्षक और महत्वपूर्ण पिंजरे के पक्षियों का व्यापार है। 2014 से 2019 तक पालतू पक्षियों की संख्या 143 हजार से बढ़कर 157 हजार हो गई है और भारत में ही 2023 तक 173.6 हजार तक पहुंच जाएगी। यह एक बहुत ही चिंताजनक आंकड़ा है और यह जानना और भी आवश्यक हो जाता है कि ये पालतू पक्षी भारत में कहां से आ रहे हैं क्योंकि भारत उनमें से कई के लिए देशी घर नहीं है, जिनमें कॉकटेल, पैराकेट्स, अफ्रीकी लव बर्ड्स, पाइनएप्पल कॉन्योर आदि शामिल हैं।वन्यजीव उत्पादों की वास्तविक समय पर निगरानी, संकटग्रस्त प्रजातियों पर व्यापार के प्रभाव को बताने के लिए ग्राहकों के लिए शिक्षा अभियान, शामिल सभी के काम में पारदर्शिता, हर क्षेत्र के लिए सूचित नीतियां इन खूबसूरत प्रजातियों के संरक्षण जोखिमों को कम करने के लिए आवश्यक उपकरण हैं।
हित नारायण टंडन (छत्तीसगढ़) ने शैक्षणिक परिसरों की जैव विविधता विषय पर व्याख्यान देते हुए बताया कि पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण के लिए जंगल के अलावा मानव बसाहट में भी जीवों का अध्ययन और संरक्षण पर जोर देना चाहिए। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों में जैव विविधता के अध्ययन और संरक्षण के प्रति जागरूकता और रूचि उत्पन्न करना था, जिससे विद्यार्थी समाज में जाकर अपने घर परिवार और गांवों में पर्यावरण के खतरे और संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दे सकें। उनके द्वारा लगभग 120 से अधिक जीवों का अध्ययन विभिन्न शैक्षणिक परिसरों में किया गया है।
प्रथम सत्र का संचालन डॉ. प्रीति मिश्रा ने किया।