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रायपुर, 29 जुलाई। श्री लालगंगा पटवा भवन, टैगोर नगर में दिवाकर दरबार के अंतर्गत साध्वी मंगलप्रभा म.सा. ने कहा कि कई बार लोग असत्य को सत्य से बड़ा बनाने की कोशिश करते हैं। वे इसके लिए धन-दौलत का सहारा लेते हैं। कई बार लोग गलत होते हुए भी कोर्ट केस जीत जाते है क्योंकि उन्होंने वकील की जेब पैसों से भर दी है। इसकी क्या गारंटी है कि केस दोबारा नहीं खुल सकता या ऊपरी अदालत में जाने के बाद भी फैसला गलत व्यक्ति के पक्ष में आएगा। असत्य कभी जीत नहीं सकता। विजय हमेशा सत्य की होती है। जरूरत धैर्य की हैं क्योंकि सत्य के सामने आने का भी सही समय होता है। फिर असत्य और दुनियाभर की संपत्ति एक ओर हो जाएं तब भी पलड़ा सत्य का भारी रहेगा।
साध्वीवर्या ने मुनि दिवाकर जी महाराज साहब से जुड़ा प्रसंग सुनाते हुए बताया कि एक बार मुनिवर एक नगरी में पहुंचे। महाराणा प्रताप सिंह को उनके आने का समाचार मिला तो वे भी दर्शन को पहुंच गए। मुनिवर को वंदन-नमन किया। इसके बाद महाराणा प्रताप प्रतिदिन धर्मसभा में हिस्सा लेने लगे। गुरुवाणी वे इतने मुग्ध हुए कि मुनि के चरणों में पहुंच गए। उनसे कहा कि मैं आपको शॉल भेंट करना चाहता हूं।
मुनिवर बोले कि मुझे न शॉल चाहिए, न दुनिया की कोई अन्य वस्तु। मैं मान-सम्मान का त्यागी हूं। फिर मुनिवर ने महाराणा से पूछा, क्या दे सकते हो? महाराणा बोले, मैं आपको जो देना चाहता हूं वह आप स्वीकार नहीं कर रहे। सांसारिक वस्तुओं के आप त्यागी हैं। मैं आपको क्या दूं? मुनिवर ने उनसे वचन मांगा कि वे कभी भी शिकार नहीं करेंगे। महाराणा प्रताप ने कुछ क्षण चिंतन किया। उन्हें लगा कि मुनिवर सत्य कह रहे हैं और तब से उन्होंने शिकार का त्याग कर दिया। मुनिराज को भी संतोष हुआ कि मेरा धर्म उपदेश देना सार्थक रहा।