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गुरू हमारी शंकाओं का समाधान करते हैं इसीलिए वे शंकर हैं-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
15-Jul-2022 12:50 PM
 गुरू हमारी शंकाओं का समाधान करते हैं इसीलिए वे शंकर हैं-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

रायपुर, 15 जुलाई। आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में बुधवार को दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ विशेष प्रवचनमाला के तृतीय प्रभात में राष्टकृसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने ‘गुरु ही बचाएंगे, गुरु ही पार लगाएंगे’ विषय पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि गुरु पूर्णिमा का आज पावन पर्व है।

शब्द ही कितना प्यारा है- ‘गुरु पूर्णिमा’ यानि ‘गुरु पूर्ण माँ।’ गुरु पूर्णिमा का मतलब है जिंदगी में अगर किसी की पूर्ण माँ होती है, जिंदगी में अगर सबसे ज्यादा भरोसा किसी पर किया जा सकता है तो वह गुरु होता है। तभी तो कहा जाता है पूरी दुनिया में जिसके जीवन में गुरु नहीं होता, उसका जीवन कभी शुरू नहीं होता।

जीवन को शुरू करने के लिए गुरु की जरूरत होती है। सच्चाई तो ये है कि माँ के पेट से जिसका निर्माण होता है उसका नाम शरीर होता है, पर गुरु के द्वारा जिसका निर्माण किया जाता है, उसी का नाम एक महान जीवन होता है। दुनिया में चाहे जो कोई महापुरुष क्यों न रहे हों, उन महापुरुषों के निर्माण में कहीं न कहीं उसके गुरु का हाथ रहा है।

गुरु वो है जो जीवन के अंधकार को दूर करता है। गुरु वो है जो पत्थर में से प्रतिमा को पैदा करता है, गुरु वो है जो मिट्टी में से मंगल कलश को पैदा करता है, गुरु वो है जो हमारे जीवन को धन्य और पावन कर देता है।

हर किसी व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी किसी न किसी गुरु का सानिध्य रहा है। आदमी जब जन्मता है तो सबसे पहले उसकी माँ गुरु बनती है। जो अंगुली पकडक़र उसे जीवन में चलना सिखाती है।

माँ वो गुरु बनती है जो उसे जीना सिखाती है। और अगले चरण में उसका गुरु बनता है उसका अपना पिता, जो परम पिता परमेश्वर की भूमिका अदा करते हुए न केवल इंसान का संवाहक होता है अपितु उसके सुख-दुख का वाहक होकर उसे जीवन को ऊंचाइयों की ओर कैसे ले जाया जा सके, इसमें पिता गुरु की भूमिका अदा करता है।

और जिंदगी में तीसरे वे सद्गुरु होतें हैं, जो हमारे जीवन को सामान्य जीवन से ऊपर उठाकर ऊंचाइयों की ओर लेकर जाते हैं।

गुरु हमारे भ्रम को दूर करते हैं इसीलिए वे ब्रह्मा है

हर आदमी के जीवन में कहीं न कहीं गुरु की भूमिका जरूर होती है। गुरु हमारे जीवन का निर्माण करता है, गुरु हमारे जीवन को मूल्यवान बनाता है। गुरु हमारे भ्रम को दूर करता है, इसीलिए ब्रह्मा है। गुरू शंकाओं का समाधान करता है इसीलिए शंकर है।

गुरू हमारे जीवन के विभ्रम को खत्म करता है, इसीलिए गुरू विष्णु है। गुरू हमारे जीवन में लक्ष्य को प्रदान करता है, इसीलिए वह हमारे जीवन में लक्ष्मी है। गुरू हमें दुर्गति से दूर करता है इसीलिए गुरू दुर्गा है। गुरू से ही जीवन शुरू होता है, इसीलिए जीवन का मूल आधार हमारा गुरू है। आज हम गुरू पूर्णिमा के अवसर पर अपने-अपने सद्गुरू को वंदन कर रहे हैं, तो इस संकल्प के साथ गुरू चरणों में वंदन करेंगे कि हे गुरूदेव मैं पूरी कोशिश करूंगा, जिन सिद्धांतों को आपने जिया, उनका मैं पूर्ण अनुकरण करूंगा। जीवन का उद्धार केवल गुरू बनाने से ही नहीं अपितु गुरू के दिए हुए संदेशों को जीवन में उतारने से होता है। क्योंकि गुरू का जीवन ही पल-प्रतिपल बोलता हुआ जीवन है। गुरू का कार्य यही है मनुष्य की चेतना को जगाना और वक्त आने पर हथौड़ा मारना। इसलिए हम बचपन से दोहा बोलते आए हैं- गुरू गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरूदेव की गोविंद दियो बताए। यह तन विष की बेल है, गुरू अमृत की खान, शीश कटे और गुरू मिले, तब भी सस्ता जान। शिष्य सच्चे भाव से, सद्भाव से पैदा होता है। सच्चे शिष्य को गुरू का सानिध्य एक पल के लिए भी मिल जाए तो वह तर जाता है। जब अर्जुन जैसा शिष्य पैदा होता है तो गीता पैदा होती है, जब गुरू का सानिध्य मिले तो कोई सांप भी श्रावक बन जाता है।

पलभर का गुरू सानिध्य कायाकल्प कर देता है

संतप्रवर ने आगे कहा कि शास्त्र भी वह कार्य नहीं कर पाते, जो गुरू का पलभर का सानिध्य कर लेता है। गुरू का सानिध्य आदमी के जीवन को रूपांतरित कर देता है। गुरू वह ज्ञान गंगा है जो खुद भी निर्मलता-पवित्रता से जीकर औरों को भी निर्मल-पवित्र कर देता है। गुरूजनों का सानिध्य सीप की तरह होता है, जिसके संसर्ग में आकर अज्ञानी शिष्य भी ज्ञानवान मोती बन जाता है। हम गुरूजनों की आज्ञाओं को हमेशा शिरोधार्य कर, अर्थात् जीवन में उतारने की कोशिश करें। गुरूजनों ने हमें ज्ञान दिया है, उसे बांटने की कोशिश करें, क्योंकि अच्छे विचार जितना बांटोगे, उतना ही कल्याण होगा।

जीवन में हर दिन तीन को करें घुटने टेक कर प्रणाम   

जीवन में हमेशा प्रतिदिन प्रात:काल अपने माता-पिता, गुरू और श्रीप्रभु को पंचांग प्रणाम अर्थात् घुटने टेक कर प्रणाम करना चाहिए। जो इन तत्वों के सामने घुटने टेकता है, उसे किसी के सामने घुटने टेकने की नौबत नहीं आती। व्यक्ति के जीवन में पहला कर्ज उसके माता-पिता का होता है, जिसे उतारा नहीं जा सकता। दुनिया में स्वर्ग और कहीं नहीं होता, अगर होता है तो वह माता-पिता के चरणों में होता है। माता-पिता भले इस दुनिया से चले गए हों तो भी उनकी तस्वीर के सामने जाकर शीष झुकाएं। प्रणाम करने से एक साथ तीन परिणाम मिलते हैं- पहला विनम्रता, दूसरा मुस्कान और तीसरा दुआ।

अपने साथ हमेशा यह 4जी नेटवर्क लेकर चलें

अपने साथ हमेशा 4जी नेटवर्क लेकर चलें, उस नेटवर्क का पहला जी है- माताजी, दूसरा पिताजी, तीसरा- गुरूजी और चैथा श्रीप्रभुजी। जिसके साथ यह 4जी का नेटवर्क है, दुनिया में कोई उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता। आज के दिव्य सत्संग की शुरुआत संतप्रवर ने प्रेरक गीत ‘कोई शिष्य गुरु चरणों में जब शीष झुकाता है, परमात्मा खुद आकर आशीष लुटाता है...’ से की।

सबसे नि:स्वार्थ रिश्ता है गुरू-शिष्य का: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी

धर्मसभा के प्रारंभ में डॉ. मुनि शांतिप्रिय सागरजी महाराज साहब ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में सबसे ज्यादा कृपा गुरूदेव की हुआ करती है। और सबसे नि:स्वार्थ रिश्ता यदि किसी का होता है तो वह है गुरू-शिष्य का, भक्त और भगवान का। लोग कहते हैं कि इंसान मरकर स्वर्ग या नर्क जाता है, लेकिन जिसके साथ गुरूवर हों, उसका जीवन जीते-जी स्वर्ग सा बन जाता है। उन्होंने जनमानस को सीख प्रदान करते कहा कि आदमी अपने जीवन में कितना भी उपर क्यों न उठ जाए, अपनी सहजता-सरलता को कभी नहीं छोडऩा चाहिए। गुरूदेव के जीवन से हमें उनके सदाचरण को गुणों को ग्रहण करना चाहिए। उनकी तरह हम आडम्बरमुक्त जीवन जीएं, हमारा जीवन भी उनकी तरह खुली किताब की तरह हो, जैसे हम भीतर होते हैं-वैसे ही बाहर भी हों, ज्ञान और ध्यान के प्रति हमारा लगाव हो, धर्म को जानें और जानकर उसे जिएं। अपनी सोच को सकारात्मक और विराट रखें। जिस व्यक्ति की सोच उंची और अच्छी होती है, वह खुद का भला तो करता ही है, दूसरों के लिए भी वह कल्याणकारी हो जाता है। आरंभ में संतजी ने मनभावन भजन ‘गुरुवर तुम्हारे प्यार ने जीना सिखा दिया, हमको तुम्हारे प्यार ने इंसा बना दिया...’ से गुरुभक्ति का अपूर्व भाव जगाया।

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