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मधुर व्यवहार से बनाएं दिलों में जगह, व्यक्ति दिलों में भी राज करता है-राष्ट्र-संत ललितप्रभ महाराज
17-Jul-2022 1:07 PM
मधुर व्यवहार से बनाएं दिलों में जगह, व्यक्ति दिलों में भी राज करता है-राष्ट्र-संत ललितप्रभ महाराज

रायपुर, 17 जुलाई। राष्ट्र-संत ललितप्रभ महाराज ने कहा है कि तलवार की कीमत उसकी धार से होती है पर आदमी की कीमत उसके सद्व्यवहार से होती है। मधुर व्यवहार का व्यक्ति दूसरों के दिलों में भी राज करता है, वहीं टेढ़े व्यवहार और स्वभाव का व्यक्ति अपनों के दिल से भी उतर जाता है।

करोड़पति और रोडपति में केवल क का ही फर्क है, जो अच्छे कर्म करे वही करोड़पति होता है। बड़ा आदमी बनना बड़ी बात नहीं है, पर अच्छा आदमी बनना जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। अगर कोई चाहता है कि वो जहाँ जाएँ वहाँ सब लोग उसे पसन्द करें तो उसके लिए जरूरी है कि वह उदार व्यवहार का मालिक बनें।

संत ललितप्रभ यहाँ आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में श्री ऋषभदेव जैन मंदिर ट्रस्ट द्वारा आयोजित प्रवचनमाला में विशाल जन समुदाय को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर कभी ऐसा मौका आ जाए जब सामने वाला आपके प्रति विपरीत व्यवहार कर रहा हो, तब भी हमें अपनी शालीनता नहीं खोनी चाहिए। उसका नेगेटिव व्यवहार हमेशा ओछा ही कहलाएगा पर आपका पॉजिटिव व्यवहार हमेशा दूसरों के दिलों सम्मान और प्रेम भरी जगह दिलाएगा।

उन्होंने कहा कि हमें घर में केवल बड़ा बनकर नहीं रहना चाहिए, अपितु वक्त आने पर बड़प्पन भी दिखाना चाहिए। घर में बड़ा वो नहीं होता जो उम्र में बड़ा होता है, घर में बड़ा वो होता है जो घर को एक रखने के लिए झुकने के लिए तैयार हो जाता है। श्रद्धालुओं से अनुरोध करते हुए संतश्री ने आगे कहा- मेरी एक बात जरूर नोट कर लेना, जिंदगी में रिश्तों को कभी मत तोडऩा, मानता हूं गंदा पानी पीने के काम तो नहीं आता पर आग लग जाए तो आग बुझाने के काम जरूर आता है। अपने ईगो को छोड़ कर थोड़ा झुक कर तो देखो, सामने वाला झुकने तैयार है। रोज-रोज कीमती उपहार तो दिए नहीं जा सकते पर रोज-रोज अच्छे व्यवहार का उपहार तो दिया ही जा सकता है।

संतप्रवर ने कहा- मैंने सुना है इस दुनिया में जो आता है वह एक दिन मरता जरूर है। अगर आप चाहते हैं कि मैं न मरूं, तो मैं आपको एक मंत्र देता हूं और वह है- जीवनभर इतने नेक काम करके जाओ कि आप लोगों के दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए धडक़ते रहो।

दुनिया में वो आदमी कभी नहीं मरता, जो लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहता है।

व्यवहार का सबसे बड़ा सद्गुण है विनम्रता

अपने बेटे और छोटे भाई के बेटे को प्यार-दुलार देने में किए गए जरा से अंतर के कारण दो सगे भाइयों के बीच मनमुटाव और दूरियां कैसे बढ़ जाती हैं, इसे समझाने संतप्रवर ने बैंगलोर की एक सच्ची कहानी सुनाते हुए कहा कि हमें परिवार के सदस्यों से छोटे-छोटे व्यवहारों के प्रति हमेशा सावधान रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यवहार का सबसे बड़ा सद्गुण विनम्रता है। उसका सर आपसे भी उुंचा होता है, जिसका सर आपके सामने झुका रहता है। अपने जीवन में ईगो पाल कर रखना, यह आदमी की सबसे बड़ी गलती है। संघ का पति वो नहीं होता जो अपने-आपको संघ से बड़ा मानने लग जाए, संघ का पति वह होता है जो संघ को बड़ा मानता है। विनम्रवान को सब लोग पसंद करते हैं, विनम्र व्यक्ति हमेशा दूसरों के दिलों में जगह पाता है। आज से अपने जीवन का यह नियम बना लें कि मैं हमेशा विनम्र रहूंगा।

अपने धन और रूप का अहंकार कदापि न करें

श्रद्धेय संतश्री ने कहा कि आदमी को अक्सर अपने धन और रूप सौंदर्य का अहंकार होता है। जीवन में आदमी को कभी भी धन का अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि वक्त को बदलते वक्त नहीं लगता। करोड़पति और रोड़पति में ज्यादा नहीं केवल एक अक्षर ‘क’ का ही फर्क है। वास्तविकता तो यही है कि जो अच्छा कर्म करता है वह अपने जीवन में किसी करोड़पति से कम नहीं। उन्होंने कहा- आप कितने ही महान और बड़े व्यक्ति क्यों न बन जाएं, अपनी जमीन से सदा जुड़े रहें। बड़ा बनना बड़ी बात नहीं है, बड़प्पन बनाए रखना बड़ी बात है। अच्छे फल की निशानी यह है कि वह नर्म भी हो और मीठा भी हो। इसी तरह आदमी के परिपक्व होने की पहचान यही है कि वह विनम्र भी हो और मधुर भी हो। धन ही नहीं अपने पद का भी अहंकार कदापि न करें, कभी यह मत बोलें कि अमुक कार्य मैंने किया है, हमेशा कहें- हमने मिलकर किया है। अपने समाज, गांव, नगर, राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले हर बड़े नेता को मैं यह संदेश देना चाहता हूं कि जिनके योगदान से आप पद पर बने हैं, उन सबको हमेशा साथ लेकर चलें। क्योंकि समाज को एक ही बड़ा हजम नहीं होता और वह है- ‘मैं बड़ा’। अपने छोटेपन का अहसास जिसे सदा बना रहता है, वह बड़ा होकर भी स्वयं को बड़ा नहीं मानता। बड़े-बुजुर्ग इसीलिए कहा करते थे कि जो चैकी पर बैठे वो चैकीदार और जो जमीन पर बैठे वो जमींदार होता है। अपने दिलोदिमाग को बी-पॉजीट्वि बना लें कि मैं बड़ा बनकर नहीं रहूंगा, सदा विनम्र बनकर रहूंगा।

गोरे रंग पे न इतना गुमान कर

संतप्रवर ने कहा कि आदमी को पहला अहंकार धन का और दूसरा अपने गोरे रंग का होता है। जब सबको एक दिन राख बनकर खाक होना है तो किस बात का अहंकार। आदमी को अपने सौंदर्य का अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि सुंदर रूप लोगों को दो क्षण के लिए याद रहता है और आपका सुंदर व्यवहार लोगों के दिलों में सदा राज करता है। हम सुंदर व्यवहार के मालिक बनें। आपसी संबंधोंं में, रिश्तों में कभी किसी बात से दुश्मनी हो गई है तो उसे दूर करने के लिए आपके निर्मल व्यवहार की जरूरत है।

सद्गुणों से होती है इंसान की मूल्यता

संतश्री ने कहा कि हम अपने दिल को, अपनी मानसिकता को हमेशा बड़ा रखें। इंसान की मूल्यता उसके सद्गुणों से होती है। हमारे हाथ की अंगुलियां भी एक-दूसरे से छोटी-बड़ी हैं, पर जब हम उन अंगुलियों को साथ-साथ मोड़ते हैं तो वे सब बराबर की हो जाती हैं। जिस प्रकार दूध, दही, मक्खन, घी, छाछ ये सब एक ही कुल के होते हैं, पर सबके गुण और मूल्य अलग-अलग होते हैं। कोई भी वस्तु अपने मूल्य से नहीं बल्कि अपने गुणों से मूल्यवान होती है। वैसे ही आदमी अपने मोल से नहीं बल्कि अपने गुणों से महान होता है। केवल बीस पैसे की एक बिंदिया अपनी गुणधर्मिता के कारण माथे पर सजती है। जिंदगी में एक बात हमेशा याद रखें, अहंकार के हथौड़े से ताला टूटता है और विनम्रता की चाबी से ताला खुलता है। टूटा हुआ ताला कभी उपयोग में नहीं आता पर खुला हुआ ताला हमेशा काम आता है।  

हमेशा मिलनसार बनकर रहें

संतप्रवर ने कहा कि हम सब यह संकल्प करें कि मैं जिंदगी में हमेशा मिलनसार बनकर रहूंगा। बच्चों को हमें विनम्रता के साथ-साथ मिलनसारिता का संस्कार भी देना चाहिए। और एक सद्गुण अपने जीवन में सदा के लिए जोड़ लेवें कि एक-दूसरे से जब भी भेंट हो हम हमेशा हाथ जोडक़र अभिवादन जरूर करेंगे। हाथ जोडक़र ही आदमी लाखों लोगों का दिल जीत सकता है, विनम्रवान हमेशा लोगों के दिलों में राज करता है। आज के सत्संग का समापन संतश्री ने सत्संग पांडाल में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं से चार संकल्प लेने का आह्वान कर किया। वे संकल्प थे- कभी किसी से रिश्ता मत तोडि़ए, कभी किसी का दिल मत तोडि़ए, कभी किसी का विश्वास मत तोडि़ए और कभी किसी को दिया हुआ वचन मत तोडि़ए। क्योंकि जब इन्हें तोड़ते हैं तो आवाज नहीं होती पर दिल बहुत दुखता है।

आज के अतिथिगण

शनिवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथिगण कीर्ति व्यास, रतनलाल जैन कुनकुरी, गजराज पगारिया, जयकुमार बैद, जयंत कांकरिया नागपुर, सीताराम अग्रवाल, डॉ. अजय चोपड़ा व चातुर्मास समिति से भरत बैद ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। अतिथि सत्कार दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा, पीआरओ कमेटी के मनोज कोठारी व स्वागत समिति के अध्यक्ष कमल भंसाली ने किया।

शनिवार का प्रवचन ‘बुरी आदतों को अच्छी आदतों में कैसे बदलें’ विषय पर

श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक, दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, अमित मुणोत ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि राष्ट्रसंत जीने की कला-विशेष प्रवचनमाला के अंतर्गत शनिवार को सुबह 8:45 बजे से ‘बुरी आदतों को अच्छी आदतों में कैसे बदलें’ विषय पर पे्ररक प्रवचन देंगे। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने छत्तीसगढ़ के समस्त श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।

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