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रायपुर, 22 अगस्त। ‘‘योग विशुद्ध रूप से जीवन जीने की कला है। स्वस्थ जीवन जीने की कला का नाम योग है। भगवान महावीर, भगवान बुद्ध ने जो कुछ भी उपलब्ध किया वह ध्यान और योग के द्वारा ही उपलब्ध किया। ध्यान के द्वारा ही उन्होंने आत्मबोधि को उपलब्ध किया।
एक ध्यान और योग ही ऐसी विधा है जो हमारी रुग्णता को जड़ों से ठीक कर देता है। योग-ध्यान हमें अपने अन्तरमन को निर्मल और परिमार्जित करने का कार्य करता है। अगर हम मानसिक-शारीरिक शांति-स्वस्थता और अध्यात्मिक शक्ति को पाना चाहते हैं तो योग-साधना इसकी रामबाण औषधि है।
इतना ही नहीं यदि परमात्मा की कृपा पानी है, ईश्वर से अपनी आत्मा के तार जोडऩे हैं तो योग की ओर आइए। ’’ आज धर्मसभा में डॉ. मुनिश्री द्वारा श्रद्धालुओं को मूवमेंटल, पॉवर और स्ट्रेचिंग योगा के आसान अभ्यास कराए गए।
ये प्रेरक उद्गार डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म सप्ताह के तीसरे दिन बुधवार को ‘ध्यान: कब, क्यों और कैसे करें’ विषय पर व्यक्त किए।
राष्ट:संत चंद्रप्रभ सागरजी महाराज रचित गीत ‘योगमय जीवन जिएं, हम योगमय जीवन जिएं, कर्म हमारी प्रार्थना हो, कर्म हमारा लक्ष्य हो...’ से धर्मसभा का शुभारंभ करते हुए उन्होंने कहा कि जिंदगी कभी उफ तो कभी आह होती है, और जिंदगी कभी आह तो कभी वाह होती है, जिंदगी में कभी योग को मत भूलना, योग से हर बीमारी से निजात होती है।
स्वस्थ रहना हमारी प्रकृति है और बीमार पड़ जाना यह हमारी विकृति है। लेकिन योग-ध्यान साधना के द्वारा कभी बीमार ही नहीं पडऩा यह हमारी उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य ही हमारे जीवन का सबसे बड़ा सोना है, जिसके पास स्वास्थ्य नहीं उसे तो जीवनभर रोना है।
स्वस्थ शरीर से ही स्वस्थ आत्मा का निर्माण होता है। अगर हम स्वस्थ ऊर्जावान आत्मा के मालिक बनना चाहते हैं तो पहले हमें अपना शरीर स्वस्थ बनाना होगा।
सदा जवान रहना चाहते हैं तो रोज ध्यान और योग करें
डॉ. मुनिश्री ने आगे कहा कि यदि आपको शरीर व मन से जुड़ी कोई भी बीमारी हो तो आप योग-ध्यान की शरण में आइए, इससे आपको शत-प्रतिशत परिणाम प्राप्त होगा। अगर आप सदा जवान रहना चाहते हैं तो रोज ध्यान और योग का अभ्यास कीजिए। दवाओं के भरोसे रहेंगे तो हम अपनी उम्र से दस साल ज्यादा बूढ़े नजर आएंगे। इस बात का हमेशा विवेक रखें कि जीवन में हम नित्यप्रति योग करें। जिसका जीवन जीते-जी स्वर्ग हुआ करता है, उसे ही मरकर स्वर्ग मिला करता है। ध्यान और योग अमृत औषधि की तरह है। आज का युग स्वर्णिम युग है, पहले योग गुफाओं तक ही सीमित था, आज वह घर-घर पहुंच गया है।
मुनिश्री ने आगे बताया कि योग का शाब्दिक अर्थ है- जुडऩा। जब हम अपने-आपसे जुड़ते हैं तो उसे योग कहते हैं। जब हम दूसरों से जुड़ते हैं तो उसे सहयोग कहते हैं और जब हम परमात्मा से जुड़ते हैं तो उसे परम योग कहते हैं। योगी बनो, उपयोगी बनो, सहयोगी बनो पर जीवन में कभी भूलकर भी भोगी मत बनो। यदि भोगी बने तो रोगी बन जाएंगे। जो योग-ध्यान का निरंतर अभ्यास किया करता है, उसके जीवन में रोगी की स्थिति बनती नहीं और अगर बन भी जाए तो योग-ध्यान के माध्यम से वह फिर से आनंद की जिंदगी जीने लग जाता है। हजारों-लाखों खर्च करके अपने रोग में लगाने के बाद अपनी जीवन शैली को सुधारना इससे तो अच्छा है कि हम पूर्व से ही अपनी जीवन शैली को व्यवस्थित रखें ताकि रोगी होने की नौबत ही न आए। योग से हमारी अंदरूनी ताकत धीरे-धीरे बढ़ती चली जाती है। योगी को यदि मौसम और वातावरण की वजह से छोटी-मोटी बीमारी आ भी गई तो वह दो-तीन दिनों में ही वापस चली जाया करती है। अक्सर आदमी की बीमारियों की तीन ही वजह होती हैं- पेट, दिमाग और वातावरण। खाने-पीने में कंट्रोल न होने पर पेट के विकार पैदा होते हैं। ज्यादा तनाव या लोड लेने पर दिमाग रोगी होता है और वातावरण में प्रदूषण फैला हुआ हो तो रोग उत्पन्न होता है। वातावरण भले हमारे वश में न हो पर हम पेट और दिमाग की वजह से आने वाली बीमारियों को तो जरूर कंट्रोल कर सकते हैं।
स्वस्थ जीवन जीने के सात चरण
डॉ. मुनिश्री ने श्रद्धालुओं को स्वस्थ जीवन जीने के सात चरणों से अवगत कराया। वे हैं- प्रॉपर डाइट-संतुलित आहार, प्रॉपर एक्सरसाइज- अपने सामर्थ्य अनुसार प्रतिदिन शारीरिक श्रम, प्रॉपर ब्रेडिंग- नित्यप्रति शारीरिक व्यायाम, प्रॉपर मेडिटेशन- प्रतिदिन ध्यान साधना, प्रॉपर रिलेक्सेशन- प्रतिदिन यथोचित विश्राम, प्रॉपर थिंकिंग- सकारात्मक सोच और प्रॉपर लाइफ स्टाइल अर्थात् संतुलित जीवन शैली। यदि ये सात चरणों का आपके जीवन में नित्य प्रति पालन होगा तो आप तन-मन और आत्मा से सदा स्वस्थ रहेंगे। अगर आप स्वास्थ्य से प्रेम करते हैं तो योगासन करें। अगर आप श्वांसों से प्रेम करते हैं तो प्राणायाम करें। अगर आप आत्मा से प्रेम करते हैं तो ध्यान करें और आप परमात्मा से प्रेम करते हैं तो भक्ति करें। हमारी सोच यही हो कि परमात्मा ने मुझे प्रसन्न और स्वस्थ बनाकर भेजा था, मैं वापस उनके पास जाउं तो स्वस्थ-प्रसन्न और आनंद से भरा होकर जाउं। योग और ध्यान से हम अपने-आपको बनाएंगे फिट तो एक दिन हम हो जाएंगे सुपरहिट।
संतप्रवर ने बताया कि योगाभ्यास के मुख्य तीन प्रकार हैं- पहला मूवमेंटल योग यानि संधि शोधन योग। यह शरीर में एकत्र टॉक्सिन को बाहर निकालने के लिए किया जाता है। दूसरा- पॉवर योगा, जो शरीर के अंगों की हलचल के माध्यम से किया जाता है, यह योगाभ्यास ऊर्जा वृद्धि में सहायक होता है। तीसरा है- स्ट्रेचिंग योगा जिसके माध्यम से भीतर की शक्ति जागृत की जाती है। हमारी शरीर में दस जोड़ होते हैं, पैरों में चार, हाथों में चार, गर्दन में एक और कमर में एक। इन 10 संधि स्थलों में जमने वाले टॉक्सिन यानि गंदगी को हम मूवमेंटल योगा के द्वारा बाहर निकालते हैं। संतश्री द्वारा संधिस्थलों के योगाभ्यास के उपरांत श्रद्धालुओं को पॉवर योग के अंतर्गत क्लेपिंग थैरेपी, रबिंग थैरेपी व स्माइल थैरेपी के अभ्यास भी कराए गए। स्माइल थैरेपी का अभ्यास कराते हुए उन्होंने ‘के के एम’ अर्थात ‘खूब खुलकर मुस्कुराइए’ का मंत्र दिया। वहीं पॉवर योगा के अंतर्गत खड़े होकर अपने स्थान पर ही दोनों पैरों से सैनिक मार्च पॉस्ट की भांति पैरों से दौड़ का, रस्सी कूद की भांति उछलने का और जम्पिंग के अभ्यास भी कराए गए। छठवें चरण फिरकी के अंतर्गत कंधों, कमर की गोल घुमाई का और नृत्य माध्यम से पूरे शरीर की मूवमेंट का अभ्यास कराया गया। स्ट्रेचिंग योगा, प्राणायाम और ध्यान के अभ्यास कल गुरुवार के द्वितीय सत्र में कराए जाएंगे। इसके पूर्व गुरुदेव राष्ट:संत ललितप्रभ सागरजी का योग का प्रवचन होगा।