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सूरत में 24 घंटे में ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध जीत गए
25-Apr-2024 9:32 AM
सूरत में 24 घंटे में ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध जीत गए

SHEETAL PATEL/BBC

गुजरात की सूरत लोकसभा सीट से बीजेपी के मुकेश दलाल चुनाव होने से पहले ही जीत गए हैं.

उनके ख़िलाफ़ कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा रद्द हो चुका था और बाकी निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिए थे. इसलिए उन्हें निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया.

मुकेश दलाल का इस तरह से निर्विरोध निर्वाचित होने का मामला पूरे देश के मीडिया में छाया हुआ है.

सूरत लोकसभा सीट के सात दशक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है.

इस प्रकरण में बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं.

कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी ने लोकतंत्र की हत्या की है. जबकि बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थकों ने हलफनामा देकर कहा है कि पर्चे में उनके उम्मीदवार का नाम गलत है. ऐसे में उनका पर्चा रद्द हो गया. इसमें बीजेपी की क्या गलती है.

इस पूरे मामले में अब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े का मानना है कि उनकी पार्टी ने निर्दलीय उम्मीदवारों से अपने पर्चे वापस लेने का अनुरोध किया था.

सूरत शहर के बीजेपी अध्यक्ष निरंजन ज़ांज़मेरा ने बीबीसी गुजराती को बताया है कि जब पता चला कि कांग्रेस उम्मीदवार के फॉर्म में गड़बड़ी है तो उनकी पार्टी के नेता सक्रिय हो गए.

सूरत में कुल 15 नामांकन पत्र भरे गए. इनमें कांग्रेस के नीलेश कुंभानी समेत 6 फॉर्म रद्द हो गए.

इस तरह बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल को छोड़कर आठ उम्मीदवारों के फॉर्म बचे थे. लेकिन इन आठ उम्मीदवारों ने भी अपने फॉर्म वापस ले लिए. लिहाज़ा मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया.

कांग्रेस का आरोप है कि पूरी घटना बीजेपी के इशारे पर हुई है, जबकि बीजेपी ने इससे इनकार किया है.

कांग्रेस नेता और नवसारी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार नैशाद देसाई ने बीबीसी गुजराती से बातचीत में कहा, ''बीजेपी सूरत के मेरिडियन होटल में फॉर्म लेकर गई और सभी सातों निर्दलीय उम्मीदवारों से इन्हें वापस लेने के लिए कहा. बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार प्यारेलाल भारती उनके संपर्क से बाहर थे."

"इसलिए भाजपा ने सत्ता का दुरुपयोग किया और क्राइम ब्रांच पुलिस को उनके पीछे लगा दिया. पुलिस ने उन्हें मध्य प्रदेश से बाहर कर दिया और फिर उनका फॉर्म भी वापस ले लिया गया.''

हालांकि बीजेपी ने सभी आरोपों से इनकार किया है. बीजेपी का कहना है कि मुकेश दलाल की जीत नियमों के मुताबिक हुई है और पार्टी पर जिस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं उनमें कोई सच्चाई नहीं है.

कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभानी, जिनका फॉर्म रद्द कर दिया गया था, गायब बताए जा रहे हैं. सूरत के सूत्रों का कहना है कि उनका कोई पता नहीं चल रहा है. उनके घर में ताला लगा हुआ है.

कांग्रेस नेताओं को भी नहीं पता कुंभानी कहां हैं? उधर, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कुंभानी के घर के बाहर प्रदर्शन किया और उनके घर के बाहर गद्दार का पोस्टर लगा दिया. पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया.

आख़िरकार 21 तारीख की सुबह नीलेश कुंभानी सुनवाई के लिए कलेक्टर कार्यालय आए जहां उनके साथ कुछ कांग्रेस नेता भी पहुंचे.

कुंभानी कुछ देर बाद ही वहां से चले गए जिसके बाद उनका कोई पता नहीं चल पाया है. कांग्रेस नेता भी कह रहे हैं कि उनसे संपर्क नहीं हो सका.

बीबीसी गुजराती से बातचीत में कांग्रेस नेता असलम सैकलवाला ने कहा, ''21 तारीख को दोपहर 12:30 बजे नीलेश कुंभानी से मेरी फोन पर बातचीत हुई. कुंभानी ने मुझसे कहा कि मुझ पर बहुत दबाव है और मैं इसमें शामिल नहीं हूं. कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूं. इसके बाद से उनसे मेरी बात नहीं हुई.''

असलम सैकलवाला ने कहा, "पार्टी को कुंभानी के तीन समर्थकों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उनके पर्चे का समर्थन करने वाले कौन होंगे इसका फैसला कुंभानी ने खुद किया था. हालांकि पार्टी को उनके नाम पता चल गए."

उन्होंने कुंभानी पर आरोप लगाते हुए कहा, "ऐसा लगता है कि सब कुछ पहले से तय था. ये एक साज़िश थी. कुंभानी जनता को अब अपना चेहरा नहीं दिखा पाएंगे."

कांग्रेस का आरोप है कि पूरी घटना बीजेपी के इशारे पर हुई है, जबकि बीजेपी ने इससे इनकार किया है.

21 अप्रैल को कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा रद्द होने के बाद 22 अप्रैल को मुकेश दलाल को विजेता घोषित कर दिया गया. ये सब पूरे 24 घंटों के अंदर हो गया.

नीलेश कुंभानी सूरत के सरथाना इलाके में स्वास्तिक टॉवर में रहते हैं. जब बीबीसी गुजराती टीम कुंभानी के घर पहुंची तो वहां ताला लगा हुआ था और पुलिस मौजूद थी. पुलिस ने बताया कि उनके घर पर कोई मौजूद नहीं है.

असलम सैकलवाला ने उनके ठिकाने के बारे में अनुमान लगाते हुए बीबीसी को बताया, "हमें जानकारी मिली है कि कुंभानी इस समय अपने परिवार के साथ गोवा में हैं. हम लगातार उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नहीं कर पा रहे हैं."

कांग्रेस नेता नैशाद देसाई ने बीबीसी गुजराती से कहा, ''कुंभानी का पर्चा रद्द करने को लेकर हम गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दायर करने जा रहे हैं लेकिन वे संपर्क में नहीं हैं. उन्होंने अभी तक हमें हलफनामे की कॉपी नहीं दी है. जिसके कारण हम ऐसा कर सकें.''

"कुंभानी ने जिस तरह से हलफनामा दायर किया है, उसकी कोई प्रति नहीं दी गई है, इसे देखते हुए उनकी भूमिका भी संदिग्ध लगती है.''

अटकलें लगाई जा रही हैं कि कुंभानी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, लेकिन जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो बीजेपी ने इन अटकलों पर चुप रहना ही मुनासिब समझा.

सूरत शहर बीजेपी के अध्यक्ष निरंजन ज़ांज़मेरा ने बीबीसी गुजराती को बताया, "जब बीजेपी को पता चला कि नीलेश कुंभानी के फॉर्म में गड़बड़ी है तो पार्टी नेता सक्रिय हो गए. हमने कलेक्टर को एक हलफनामा दिया कि कुंभानी के फॉर्म में समर्थकों के हस्ताक्षर फर्जी हैं. इसलिए उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी गई.''

हालांकि, कुंभानी के वकील ज़मीर शेख ने कहा, "19 तारीख को, जब फॉर्म का सत्यापन किया जा रहा था तो भाजपा चुनाव एजेंट ने आपत्ति जताई. इससे पहले अगर समर्थकों ने कलेक्टर को एक शपथ पत्र दिया था कि उनके हस्ताक्षर फर्जी थे तो भाजपा को इसके बारे में कैसे पता चला?"

कांग्रेस नेता की उम्मीदवारी रद्द होने के बाद बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल के खिलाफ निर्दलीय और बसपा उम्मीदवार मैदान में थे. हालांकि आखिरी दिन इन सभी ने भी पर्चा वापस ले लिया.

इस संबंध में 23 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने स्वीकार किया कि कांग्रेस उम्मीदवार का फॉर्म रद्द होने के बाद बीजेपी ने निर्दलीय और अन्य उम्मीदवारों से संपर्क किया था और उन्हें फॉर्म वापस लेने के लिए कहा था.

जब उनसे सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा रद्द होने को लेकर सवाल पूछा गया कि क्या बीजेपी 'निम्न स्तर' की राजनीति कर रही है? इस पर विनोद तावड़े ने कहा, "अगर कोई विपक्षी उम्मीदवार गलत तरीके से फॉर्म भरता है तो उस पर आपत्ति जताना निम्न स्तर की राजनीति नहीं है. अगर हम स्वतंत्र उम्मीदवारों से अनुरोध करते हैं और वे फॉर्म वापस ले लेते हैं तो यह निम्न स्तर की राजनीति नहीं है."

जब रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि क्या सभी प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों से फॉर्म वापस करने के लिए संपर्क किया गया था? विनोद तावड़े ने कहा, 'हां, हमने फॉर्म वापस करने के लिए सभी उम्मीदवारों से संपर्क किया और फॉर्म भरने से पहले ही उन्हें समझाने की कोशिश की थी. '

उन्होंने यह भी कहा, 'भाजपा चुनाव जीतने के लिए लड़ती है और वह भी चुनाव आयोग के नियमों के तहत.

नीलेश कुंभानी का पर्चा रद्द होने के बाद अन्य प्रत्याशियों की भूमिका अहम हो गयी. आठ में से सात उम्मीदवारों ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली. लेकिन बसपा प्रत्याशी प्यारेलाल भारती की उम्मीदवारी वापस नहीं ली गई.

इस बारे में नवसारी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार नैशाद देसाई ने कहा, ''हमने बीएसपी के अश्विन बारोट, सुरेश सोनावने से फोन पर बातचीत की. कांग्रेस प्यारेलाल को समर्थन देने के लिए राज़ी हो गई. हमने उनसे उम्मीदवार को गुजरात से बाहर ले जाने के लिए कहा. लेकिन अचानक दोपहर 2 बजे सोमवार को नामांकन पत्र वापस ले लिया गया. सूरत में चुनाव होने की उम्मीद टूट गई.”

वहीं, बसपा के सूरत ज़िला अध्यक्ष सतीश सोनवणे ने कहा, ''पिछले दो दिनों से हमने सूरत में जिस तरह की घटनाएं देखी हैं, उससे हमें अंदाज़ा हो गया है. हमें पता था कि हमारे उम्मीदवार पर दबाव होगा. हमने प्यारेलाल को भूमिगत कर दिया.''

उन्होंने कहा, "वो हमारे संपर्क में थे. लेकिन सोमवार को उनसे संपर्क नहीं हो सका. हमने उनकी तलाश शुरू की लेकिन मीडिया के माध्यम से पता चला कि प्यारेलाल कलेक्टर कार्यालय पहुंचे थे और अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया था. हम वहां गए लेकिन वह वहां से जा चुके थे और अब वापस आ गए हैं." उसके बाद से संपर्क नहीं किया गया.''

बीबीसी गुजराती ने प्यारेलाल से बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका.

हमने एक और निर्दलीय उम्मीदवार रमेश बरैया से संपर्क किया. रमेश बरैया ने कहा, "मैंने कांग्रेस नेता से बात की और उनसे मेरा समर्थन करने को कहा. लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया."

"मैंने बीजेपी के खिलाफ नहीं लड़ने का फैसला किया. इसमें खर्चे भी हैं. मैंने कांग्रेस को इन खर्चों के बारे में बताया लेकिन उन्होंने मुझे कोई जवाब नहीं दिया. इसलिए मैंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली."

हालाँकि, जब हमने रमेश बरैया से पूछा कि क्या उन्होंने किसी लालच या दबाव के कारण अपनी उम्मीदवारी वापस ली है? अपने जवाब में उन्होंने कहा, "नहीं, मुझे कोई पैसे की पेशकश नहीं की गई और न ही मुझ पर कोई दबाव था. मैंने स्वेच्छा से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली."

समर्थकों की भूमिका पर भी संदेह?
रमेशभाई बलवंतभाई पोलारा, जगदीश नागजीभाई सावलिया और ध्रुविन धीरूभाई धमेलिया ने नीलेश कुंभानी के समर्थक के रूप में हस्ताक्षर किए थे. जगदीश सावलिया नीलेश कुम्भानी के जीजा हैं, वहीं ध्रुविन धमेलिया उनके भतीजे हैं और रमेश पोलारा उनके बिज़नेस पार्टनर रहे हैं.

चूंकि ये तीन लोग नीलेश कुंभानी के सबसे निजी व्यक्तियों में से हैं, इसलिए सवाल उठाए जा रहे हैं कि उन्होंने कलेक्टर कार्यालय में जाकर एक हलफनामा क्यों दायर किया कि कुंभानी के नामांकन पत्र में उनके हस्ताक्षर झूठे थे. इस घटना के बाद ये समर्थक भी संपर्क से बाहर हो गए हैं.

ज़मीर शेख का आरोप है, "समर्थकों की भूमिका के साथ कुंभानी की भूमिका भी संदिग्ध है. ऐसा लगता है कि सब कुछ हेरफेर किया गया है."

कुंभानी ने पहले उमरा पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत लिखाई कि उनके समर्थकों का अपहरण कर लिया गया है लेकिन फिर वे गायब हो गए.

समर्थकों के अपहरण के आरोप पर सूरत के पूर्व मेयर जगदीश पटेल ने कहा, "चाहे चुनाव हो या न हो, कांग्रेस नेताओं का काम बीजेपी पर आरोप लगाना है. सभी की मौजूदगी में फॉर्म भरे गए हैं." (bbc.com/hindi)

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