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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : फिलीस्तीन का साथ देने वाले योरप के तीन, और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश
24-May-2024 3:43 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : फिलीस्तीन का साथ देने वाले योरप के तीन, और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश

पश्चिम के तीन देशों ने अभी फिलीस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दी है। इजराइल फिलीस्तीन पर जैसे भयानक हमले कर रहा है, और अब तक शायद उसने 35 हजार लोगों को मार डाला है, और दसियों लाख लोगों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है, उसके खिलाफ दुनिया में जगह-जगह पर जनमत उठ खड़ा हो रहा है। दक्षिण अफ्रीका इसके खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस पहुंचा है, और उसने फिलीस्तीनियों को इस तरह से मार डालने को एक नस्ल का जनसंहार करार दिया है। इस तर्क के आधार पर इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की गिरफ्तारी के लिए वारंट की मांग भी की है। अभी यह मामला साफ नहीं है कि इस अदालत का आदेश इजराइल पर किस तरह से लागू होगा, लेकिन इस बीच स्पेन, आयरलैंड, और नॉर्वे, योरप के इन तीन देशों ने फिलीस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता दी है जो कि मोटेतौर पर एक प्रतीकात्मक कार्रवाई है। और जैसी कि उम्मीद की जा सकती थी, इजराइल ने इन तीनों देशों को कहा है कि उन्हें इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। उसने इन देशों से अपनी राजदूत भी बुला लिए हैं। इजराइल का तर्क है कि फिलीस्तीन पर काबिज आतंकी संगठन हमास ने जिस तरह इजराइल पर हमला किया था, बेकसूर नागरिकों को मारा, और महिलाओं सहित सैकड़ों नागरिकों का अपहरण किया, उसे देखते हुए फिलीस्तीन को मान्यता देने का मतलब आतंक का हौसला बुलंद करना है। जो भी हो, एक-एक करके दुनिया के बहुत से देश अमरीकी दादागिरी के खिलाफ खड़े हो रहे हैं, और फिलीस्तीन का साथ दे रहे हैं, इजराइल के खिलाफ अलग-अलग मंचों पर आवाज उठा रहे हैं। खबर बताती है कि कोलंबिया ने फिलीस्तीन में दूतावास खोलने का ऐलान किया है, और कई देश फिलीस्तीनियों की मानवीय मदद रोकने के लिए इजराइल के खिलाफ कई तरह की कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। सबसे बेईमान देश अमरीका साबित हो रहा है जो इजराइल को बीच-बीच में जुबानी नसीहत देता है, और फिर उसे हथियारों की खेप और भेज देता है ताकि वह बेकसूर फिलीस्तीनियों को थोक में मार सके। 

दुनिया की व्यवस्था में संयुक्त राष्ट्र संघ की जैसी भूमिका रखी गई थी, वह फिलीस्तीनियों पर जुर्म के मामले में पूरी तरह से बेअसर और बोगस साबित हुई है क्योंकि अवैध कब्जा करने वाला हमलावर और हत्यारा देश इजराइल जब कभी संयुक्त राष्ट्र में परेशानी में पडऩे वाला रहता है, अमरीका उसे बचाने के लिए वीटो नाम के विशेषाधिकार का इस्तेमाल करता है। अमरीकी शह पर ही इजराइल लगातार फिलीस्तीनी जमीन पर काबिज होते चल रहा है, और इस बार उसने हमास के आतंकी हमले का जवाब देते हुए फिलीस्तीन के गाजा शहर को दुनिया का सबसे बड़ा मलबे का ढेर बना दिया है, और फिलीस्तीनियों को बेघर, फिलीस्तीन को दुनिया का एक सबसे बड़ा कब्रिस्तान बना दिया है। हिटलर ने अपने वक्त जर्मनी में यहूदियों के साथ जो कुछ किया था, ठीक वही इजराइल फिलीस्तीनियों के साथ कर रहा है। जो नस्लवादी जनसंहार हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ किया था, वही का वही इजराइल ने गाजा में कर दिखाया है, और अब वहां की बाकी जगह पर कैसे इजराइलियों को बसाया जा सकता है, कैसे फिलीस्तीनियों को उनके देश से बेदखल किया जा सकता है, यह गुंडागर्दी चल रही है। इसमें अमरीका एक तरफ फिलीस्तीनियों के लिए राहत की शक्ल में खाना भेजने का नाटक कर रहा है, और फिलीस्तीनियों पर बरसाने के लिए इजराइल को बमों का जखीरा भी भेज रहा है। अमरीका के इस पाखंड के खिलाफ खुद अमरीकी विश्वविद्यालयों में छात्रों का एक बड़ा आंदोलन चला है, और ऐसा माना जा रहा है कि नवंबर में होने वाले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में फिलीस्तीन का मुद्दा नौजवान वोटरों को प्रभावित कर सकता है। 

जब दुनिया में बड़ी-बड़ी ताकतें इस हद तक खेमेबाजी में रहती हैं, तब छोटे-छोटे देश अपनी मिसाल पेश करके एक नैतिक दबाव तो खड़ा करते ही हैं। जिस योरप में अमरीकी पिट्ठू ब्रिटेन इजराइल को बचाने अपनी फौज भेजता है, उसी योरप में तीन देशों ने ब्रिटेन को आईना दिखाया है। यह एक ऐतिहासिक मौका है, और ऐसे वक्त दुनिया के किन देशों ने किसका साथ दिया, किसने आंखें फेर लीं, और किसने जनसंहार में मदद की, इन सबका नाम इतिहास में अच्छी तरह दर्ज होगा। हिटलर का इतिहास दर्ज होना अब तक खत्म नहीं हुआ है, जबकि उसके जनसंहार की पौन सदी हो चुकी है। आज भी जगह-जगह हिटलरी नस्लवादी सामूहिक हत्याओं के गवाह या उनसे बच निकले लोग कहीं-कहीं सामने आते हैं, और मरने के पहले उनके बयानों की शक्ल में हिटलर का इतिहास दर्ज होते चलता है। दुनिया इस बात की भी गवाह है कि हिटलर का अपना देश जर्मनी उसके खून-खराबे को लेकर इस किस्म की ऐतिहासिक शर्मिंदगी से डूबे रहता है कि वहां आज हिटलर का नाम एक कलंक है, और लोग अपने कुत्तों का नाम भी हिटलर नहीं रखते। इजराइल ने अपने इतिहास की आज तक की सबसे कट्टर सरकार देखी है, और वह सरकार भ्रष्टाचार के मामले भुगत रहे प्रधानमंत्री नेतन्याहू की अगुवाई में सबसे अधिक नस्लवादी जनसंहार कर रही है। फिलीस्तीनियों की नस्ल को ही खत्म कर देना आज के इजराइल का मकसद है, वह हिटलर के ही अंदाज में एक नस्ल को खत्म कर रहा है, लेकिन उससे आगे बढक़र वह एक देश को भी खत्म कर रहा है, और उस पर पूरी तरह कब्जा करके अपने नागरिकों को वहां बसा रहा है। आज दुनिया में बहुत से प्रगतिशील और उदारवादी यहूदी-इजराइली ऐसे हैं जो कि नेतन्याहू-सरकार के फैसलों के खिलाफ खड़े हैं, और अमरीका में जगह-जगह होने वाले प्रदर्शनों में वे इजराइल के खिलाफ और फिलीस्तीन के साथ खड़े रहते हैं। 

किसी देश का अपने आपमें महान लोकतंत्र बनना उसकी अपनी आर्थिक और फौजी ताकत पर निर्भर नहीं करता। उस देश में भीतर और बाकी दुनिया में मानवाधिकारों के लिए, इंसाफ के लिए उस देश का क्या रूख है, इसी से उस देश की साख बनती है, और उसके मुखिया की इज्जत। आज दुनिया के जो देश फिलीस्तीन को एक मुस्लिम देश मानकर इस बात पर खुश हो रहे हैं कि मुस्लिम मारे जा रहे हैं, तो उन्हें याद रखना चाहिए कि दुनिया के एक हिस्से में इतिहास की सबसे बड़ी बेइंसाफी चलती रहे, तो दुनिया के बाकी हिस्सों में भी अमन-चैन कायम नहीं रह सकता। आज दुनिया के बड़े देश अपनी सरहदों से परे भी धरती के अलग-अलग हिस्सों में अपने फौजी ताकत के अड्डे बनाने में लगे रहते हैं, और आज तो आर्थिक साम्राज्य भी एक किस्म की फौजी ताकत ही है। ऐसे में इजराइली हत्यारी-सरकार का साथ देने के लिए चुप रहने वाले देशों का भी नाम दर्ज हो रहा है।   

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