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भोपाल, 30 सितंबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश विधानसभा में किसान कर्जमाफी और 'अतिथि विद्वानों' को लेकर दिया गया जवाब अब भाजपा के लिए मुसीबत बन रहे हैं। कांग्रेस इन्हीं दोनों मसलों को चुनावी मुद्दा बनाए हुई है तो दूसरी ओर भाजपा को रक्षात्मक रुख अपनाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
राज्य में आगामी समय में विधानसभा के 28 क्षेत्रों में उपचुनाव होने वाले हैं। इन उपचुनावों में कांग्रेस कर्जमाफी और अतिथि विद्वानों के मसले को बड़ा मुद्दा बनाए हुए हैं। कग्रेस के दावों को भाजपा लगातार झूठ बताती रही मगर विधानसभा में दिए गए जवाब कुछ और ही कहानी कह गए हैं।
विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की ओर से पूछे गए सवाल के जवाबों में सरकार ने माना था कि लगभग 27 लाख किसानों के कर्जमाफी की स्वीकृति दी गई है, तो दूसरी ओर अतिथि विद्वानों को लाभ देने की प्रक्रिया चल रही थी। इन्हीं दोनों मामलों को लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर हमला बोला है और कहा है कि अब तो सरकार भी यह बात मान रही है कि किसानों की कर्जमाफी हुई है और सरकार ने अतिथि विद्वानों के हित में फैसले लिए जिस पर प्रक्रिया अब भी जारी है।
सरकार की ओर से दिए गए जवाबों पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि कर्जमाफी के बाद जीतू पटवारी के प्रश्न से एक और राज खुला। यदि भाजपा कांग्रेस की सरकार नहीं गिराती तो कर्जमाफी के साथ अतिथि विद्वान शिक्षकों की समस्या का निदान भी हो जाता।
वहीं भाजपा लगातार यही कहती आ रही है कि किसानों का कर्जमाफी नहीं हुई है, सिर्फ प्रमाणपत्र ही दिए गए हैं। सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह कह चुके हैं कि कर्जमाफी को लेकर अधिकारियों ने विधानसभा में गलत जानकारी दी थी।
राजनीतिक विश्लेषकों को मानना है कि विधानसभा में जानकारी कई स्तरों से गुजरते हुए जाती है, यह अधिकारियों के अलावा मंत्री तक पहले भेजी जाती है, मंत्री के हस्ताक्षर होने के बाद ही ब्यौरा सदन में पहुंचता है। इसलिए भाजपा को जनता के बीच यह साबित कर पाना कि विधानसभा में पेश की गई जानकारी झूठी है, आसान नहीं होगा। अगर वास्तव में अधिकारियों ने जानकारी गलत दी है तो यह बड़ा मामला है और सरकार को ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई करनी होगी, तभी यह साबित हो पाएगा कि अधिकारियों ने गलत जानकारी दी थी। कुल मिलाकर ये दोनों मामले चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकते हैं।
--आईएएनएस
लखनऊ, 30 सितंबर (आईएएनएस)| अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को ढहाए जाने के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 28 साल बाद बुधवार को अपना फैसला सुनाया। इससे संत समाज पूरी तरह खुश नजर आ रहा है। वहीं दूसरी ओर, इस फैसले से मुस्लिम धर्मगुरु मायूस नजर आए।
अयोध्या के संतों ने खुशी जताते हुए एक स्वर में कहा कि मामले में न्याय हुआ है। सत्य की जीत हुई है। अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है और अब सभी को बरी कर दिया गया है। यह सब राम की पा से ही संभव हो सका है।
अदालत के फैसले का अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने स्वागत किया है। परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा, "राम के कार्य में कोई अपराध नहीं होता है। छह दिसंबर 1992 को जो घटना हुई थी वो पूर्व नियोजित नहीं थी। मामले को लेकर न्यायालय ने आज अपना फैसला सुना दिया है।"
महंत गिरि ने आम जनमानस से अपील की है कि वे कोर्ट के आदेश को मानें। उन्होंने कहा कि न्याय के मंदिर में हमेशा सत्य की जीत होती है। न्यायालय में सबका विश्वास है। जो न्याय में विश्वास नहीं करते वह राष्ट्रद्रोही होते हैं।
संत समिति अध्यक्ष महंत कन्हैया दास ने कहा कि अदालत के आए इस निर्णय ने 'दूध का दूध पानी का पानी' कर दिया यह सत्य की जीत है। जितने लोगों का मुकदमा में नाम था उनमें से काई भी व्यक्ति ढांचा तोड़े जाने में शामिल नहीं था। यह कार्य उत्तेजित भीड़ का है, क्योंकि मैंने यह अपनी आंखों से देखा है। न्याय में आज भी भगवान बैठते है। यह निर्णय ने साबित कर दिया।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के उत्तराधिकारी महंत कमल नयन दास ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे लिए राष्ट्र सवरेपरि है और लोगों में देश के प्रति समान रूप से प्रेम हो इसके लिए हम सरकार से अपेक्षा करते हैं। जिन लोगों को बरी किया गया है यह वास्तव में ढांचा बचाने का प्रयास कर रहे थे।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने ढांचा विध्वंस मामले सीबीआई के फैसले पर टिप्पणी करने मना कर दिया है। कहा कि अब मुस्लिम संगठन मिल-बैठकर तय करेंगे कि इसके खिलाफ आगे अपील करनी है या नहीं। उन्होंने कहा कि अदालत के फैसले के बारे में हमें कुछ नहीं कहना है। यह सभी लोग जानते हैं कि 6 दिसंबर, 1992 को किस तरीके से अयोध्या में सरेआम बाबरी मस्जिद को शहीद किया गया और कानून की धज्जियां उड़ाई गईं।
उन्होंने कहा, सुप्रीमकोर्ट ने भी रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद वाद में पिछले साल 9 नवंबर को सुनाए गए फैसले में कहा था कि मुसलमानों को गलत तरीके से उनकी मस्जिद से वंचित किया गया। बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक गैरकानूनी कृत्य था।
रशीद ने कहा, कोई मुजरिम है या नहीं, यह तो अदालतों को ही तय करना होता है। अब मुस्लिम संगठन मिल-बैठकर तय करेंगे कि आगे अपील करनी है या नहीं। अपील करने का कोई फायदा होगा भी या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद ने अदालत के फैसले पर कहा, "अगर गुंजाइश तो इस सिलसिले में हमें इससे ऊपर अपील करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी बाबरी मस्जिद के फैसले में यह माना था कि मस्जिद गिराया जाना जुर्म और कानून के खिालाफ था। तब यह बताया जाए कि बाबरी गिराने वाले मुजरिम कहां हैं?"
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| कोरोना महामारी के इस दौर में दिल्ली के नागरिकों को राहत देने के लिए दिल्ली जल बोर्ड ने पानी के बिल पर मिलने वाली छूट की स्कीम को 31 दिसंबर 2020 तक बढ़ाने का फैसला किया है। इस स्कीम से अब तक 4.30 लाख उपभोक्ताओं को फायदा मिला है। दिल्ली जल बोर्ड के माननीय उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने कहा, "हम लोग ये समझते हैं कि इस महामारी ने दिल्ली के लोगों पर काफी असर डाला है। इसलिए अरविंद केजरीवाल सरकार ने छूट की स्कीम को 31 दिसंबर 2020 तक बढ़ाने का फैसला किया है। दिल्ली जल बोर्ड हमेशा सतर्क रहता है और इस फैसले से उन नागरिकों को बिल चुकाने का मौका मिलेगा, जिन्होंने किसी भी कारण से बिल नहीं चुकाया है। हमें उम्मीद है कि वो सभी उपभोक्ता इस स्कीम को बढ़ाने का फायदा उठा पाएंगे। इस स्कीम में उन सभी उपभोक्ताओं को फायदा मिलेगा जिनके बिल 31 मार्च 2019 तक बकाया हैं। इस स्कीम के तहत सभी घरेलू और कमर्शियल ग्राहकों को लेट पेमेंट सरचार्ज पर 100 फीसदी की छूट मिलेगी। वहीं बिल की मूल राशि पर छूट हाउस टैक्स के लिए म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की बनाई गई कॉलोनी की श्रेणी पर निर्भर करेगा।"
ई, एफ, जी और एच श्रेणी के क्षेत्रों को 31 मार्च 2019 तक के बिल में पूरी छूट दी जाएगी। डी श्रेणी में आने वाले उपभोक्ताओं को 75 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। जो उपभोक्ता सी श्रेणी में आते हैं उन्हें 50 प्रतिशत की छूट दी जाएगी, जबकि ए और बी श्रेणी के लोगों को पानी के बिल में 25 फीसदी की छूट दी जाएगी।
लेट पेमेंट सरचार्ज हर श्रेणी के उपभोक्ताओं के लिए 31 दिसंबर 2020 तक पूरी तरह माफ रहेगा। ऐसे उपभोक्ता जिन्होंने स्कीम की शुरूआत के बाद मीटर लगाया है, उन्हें जोनल रेवेन्यू ऑफिस में आवेदन देना होगा, जिसमें अपना नाम, पता, नंबर, मीटर का डॉक्युमेंट देना होगा। जिसमें लगाए गए मीटर का नंबर और सर्टिफिकेट होगा।
ये आवेदन जेड आर ओ ऑफिस में लगे मीटर इंस्टॉलेशन इंटिमेशन बॉक्स में भी डाल सकते हैं। ऐसे उपभोक्ता जिनके पास एक्टिव मीटर नहीं है, वो अपनी पसंद का मीटर दिल्ली जल बोर्ड की वेबसाइट पर मौजूद डीलर्स से लगवा सकते हैं।
यह तीसरा मौका है जब दिल्ली जल बोर्ड ने उपभोक्ताओं को इस छूट का फायदा उठाने के लिए मौका दिया है, ताकि वो दिल्ली जल बोर्ड के वैध उपभोक्ता बन सकें।
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नई दिल्ली, 30 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर यहां भाजपा की हुई लंबी मीटिंग में एनडीए सहयोगी दलों से सीटों के बंटवारे सहित विभिन्न मुद्दों पर दो दिनों के भीतर बातचीत की प्रक्रिया पूरी करने का निर्णय लिया गया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सहयोगी दलों जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के साथ बातचीत के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नामित किया है। बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव ने एनडीए में टकराव की खबरों को खारिज करते हुए कहा कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा, जदयू और लोजपा तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर हुई मीटिंग में बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव, नवनियुक्त बिहार चुनाव प्रभारी और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी शामिल हुए। मीटिंग खत्म होने के बाद बिहार के प्रभारी और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव ने कहा, "राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गठबंधन के सहयोगी दलों से बातचीत के लिए वरिष्ठ नेताओं को नामित किया है। आज और कल दो दिन में बातचीत की पूरी प्रक्रिया पूरा होगी। बिहार में भाजपा, जदयू और लोजपा तीनों दल चुनाव लडेंगे। इसके साथ ही जदयू के साथ जीतन राम मांझी की पार्टी भी आई है।"
भूपेंद्र यादव ने कहा कि बिहार में फिर से एक बार तीन चौथाई बहुमत के साथ एनडीए की सरकार बनेगी। उन्होंने सहयोगी दलों के सवाल पर कहा कि पार्टी से नामित नेता, जदयू और लोजपा से गठबंधन के सभी विषयों और सीटों के मुद्दे पर बातचीत करेंगे। भाजपा नेता भूपेंद्र यादव के इस बयान से संकेत मिल रहे हैं कि एनडीए बिहार चुनाव को लेकर एकजुट है। दरअसल, सीटों के मुद्दे पर लोजपा मुखिया चिराग पासवान की नाराजगी खुलकर सामने आ रही थी। ऐसे में भूपेंद्र यादव के बयान से पता चल रहा है कि पार्टी जदयू और लोजपा से सकारात्मक माहौल में दो दिनों के भीतर सीटों पर बातचीत सुलझाने की उम्मीद में है।
--आईएएनएस
हैदराबाद, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बुधवार को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई अदालत के फैसले को भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में काला दिन करार दिया। छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया है, जिसके बाद औवेसी ने न्यायपालिका के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की है।
फैसले को 'अप्रिय' करार देते हुए, हैदराबाद के सांसद ने कहा कि फैसले ने हिंदुत्व विचारधारा और उसके अनुयायियों की सामूहिक अंतरात्मा को संतुष्ट किया है।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "कानून का राज कहां तक चलेगा? आज एक भारतीय मुसलमान के रूप में, मुझे शर्म, असहायता और अपमान की वही भावना महसूस हो रही है, जो मैंने छह दिसंबर 1992 को महसूस की थी, जब बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था।"
उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने राम मंदिर का मुद्दा बनाया है, उन्होंने देश भर में तबाही मचाने के लिए रथ यात्रा निकाली और बाबरी मस्जिद के विध्वंस की अध्यक्षता की, जो आजाद हो गए हैं और उन्हें इस फैसले से पुरस्कृत किया गया है।
उन्होंने कहा, "भारतीय मुस्लिम होने के नाते, मुझे इस मुद्दे पर 1950 से न्याय नहीं मिला है।"
ओवैसी ने अदालत के फैसले से लोगों के बीच जाने वाले संदेश पर भी चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा, "यदि आप हिंसक बल का उपयोग करते हैं, यदि आप हिंसा का उपयोग करते हैं तो आपको पुरस्कृत किया जाएगा। कानून अब एक मजाक बन गया है। आप कानून को लात मार सकते हैं और आपको इसके लिए पुरस्कृत किया जाएगा।"
ओवैसी अदालत के इस अवलोकन से ²ढ़ता से असहमत दिखे, जिसमें कहा गया है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के पीछे पहले से कोई साजिश नहीं रची गई थी।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अपने आरोप पत्र में उल्लेख किया था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी और अन्य ने पांच दिसंबर को विनय कटियार के घर पर साजिश रची थी, जहां आडवाणी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद के ध्वस्त होने तक इस्तीफा नहीं देने की बात कही थी।
ओवैसी ने आरोप लगाया कि बाबरी विध्वंस से आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती प्रसिद्ध हो गए और उन्हें बाबरी मस्जिद गिराने के लिए राजनीतिक रूप से पुरस्कृत किया गया।
उन्होंने कहा, "पूरी दुनिया ने देखा कि किसने वहां लोगों को इकट्ठा किया और किसके इशारे पर और किसकी मौजूदगी में मस्जिद को गिराया गया।"
हैदराबाद के सांसद ने कहा कि सीबीआई को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इस फैसले के खिलाफ अपील करनी चाहिए। उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से भी फैसले को चुनौती देने की अपील की।
इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी ने तंज करते हुए एक शेर भी ट्वीट किया। उन्होंने ट्वीट किया, "वही कातिल, वही मुंसिफ, अदालत उसकी, वो शाहिद..बहुत से फैसलों में अब तरफदारी भी होती है।"
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 28 सितम्बर | देश में समलैंगिकों को अब अपने जेंडर को आधिकारिक तौर पर सार्वजनिक करने के लिए किसी तरह की मेडिकल जांच से नहीं गुजरना पड़ेगा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नए ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) नियम 2020 से इसका पता चला है.
आपत्ति और सुझावों को आमंत्रित करने के लिए ये नियम जुलाई में एक मसौदे के रूप में जारी किए गए थे, तब एलजीबीटीक्यू समुदाय द्वारा इसकी आलोचना की गई थी.
समुदाय का कहना था कि जिला मजिस्ट्रेट जैसे एक तीसरे व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति के लिंग का सत्यापन करना उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाना है.
अब 25 सितंबर को अधिसूचित नए नियमों में कहा गया है कि जिला मजिस्ट्रेट आवेदक के आवेदन की जांच करेगा और बिना किसी मेडिकल या शारीरिक जांच के किसी व्यक्ति द्वारा अपने जेंडर की पहचान को लेकर दायर किए गए हलफनामे के आधार पर आवेदन पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.
इसके बाद आवेदक को एक पहचान संख्या दी जाएगी, जो उसके आवेदन के प्रमाण के तौर पर चिह्नित होगी.
बता दें कि सिस्टम ऑनलाइन होने से पहले अपना जेंडर घोषित करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष खुद पेश होकर आवेदन करना होता था.
हालांकि, अब अभिभावक भी अपने बच्चे की ओर से आवेदन कर सकते हैं.
ऐसे समलैंगिक जिन्होंने इन नियमों के लागू होने से पहले ही पुरुष, महिला या ट्रांसजेंडर के रूप में अपना जेंडर आधिकारिक तौर पर दर्ज करा लिया है, उन्हें अपनी पहचान प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने की जरूरत नहीं होगी.
नए नियमों में राज्य सरकारों को समलैंगिकों के अधिकारों और उनके हितों की सुरक्षा के लिए वेलफेयर बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया है और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की गईं योजनाओं तक उनकी पहुंच बनने को कहा गया है.
इसके साथ ही सभी मौजूदा शैक्षणिक, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य योजनाओं, कल्याणकारी उपायों, व्यावसायिक प्रशिक्षण और स्वरोजगार योजनाओं में समलैंगिकों को शामिल करने के लिए इनकी समीक्षा करने को कहा है.
राज्य सरकारों को भी किसी भी सरकारी या निजी संगठन, निजी या सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानों में समलैंगिकों के साथ किसी तरह के भेदभाव को रोकने के लिए उचित कदम उठाने के साथ-साथ श्मशान स्थलों सहित सभी तरह के सामाजिक और सार्वजनिक स्थानों पर उनके लिए समान पहुंच सुनिश्चित करने को कहा गया है.
केंद्र सरकार ने नियमों के दो साल के भीतर अधिसूचित होने तक अस्पतालों में समलैंगिकों के लिए अलग वॉर्ड और अलग वॉशरूम जैसे बुनियादी ढांचों का निर्माण अनिवार्य कर दिया है.
समलैंगिकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की जांच के लिए हर राज्य सरकार को राज्य के डीजीपी और जिला मजिस्ट्रेट के तहत ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन सेल के गठन और समय पर आपराधिक मामलों को दर्ज करने, उनकी जांच करने से लेकर कार्रवाई तक को सुनिश्चित करने को कहा गया है.(THEWIRE)
नई दिल्ली, 30 सितंबर (आईएएनएस)| अगले महीने अक्टूबर में स्कूल खुलने के बाद भी 71 फीसदी अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे। यह बात लोकल सर्कल्स के सर्वे में सामने आई है। इसके अनुसार, कोविड-10 के बढ़ते मामलों के चलते एक महीने में ऐसे अभिभावकों का प्रतिशत 23 से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है, जो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं। केवल 28 प्रतिशत माता-पिता को ही लगता है कि कैलेंडर वर्ष 2020 में फिर से स्कूल खुलना चाहिए। 34 फीसदी अभिभावकों का मत है कि अब स्कूलों में पढ़ाई अगले साल अप्रैल 2021 से ही शुरू होनी चाहिए।
इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि उत्तर भारत में कई अभिभावाकों को लगता है कि अक्टूबर-नवंबर का मौसम कोविड-19 के साथ मिलकर बच्चों के लिए बेजा समस्याएं ला सकता है।
बता दें कि भारत में कोविड-19 मामलों की संख्या 60 लाख से अधिक हो गई है। रोजाना 80 हजार से अधिक नए मामले आ रहे हैं। मौतों की संख्या लगभग 1 लाख होने को है। लोग भ्रम में हैं कि वे घर पर ही रहें या बाजार, रेस्तरां, बार में जाएं या मेट्रो समेत अन्य परिवहन सेवाओं का उपयोग करें या न करें।
21 सितंबर को अभिभावकों की लिखित अनुमति के बाद स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति से पहले देश में स्कूल मार्च से ही बंद थे।
लोकल सर्कल्स ने स्कूलों को फिर से खुलने पर माता-पिता की नब्ज टटोलने के लिए एक सर्वेक्षण किया। इसमें देश के लगभग 217 जिलों के अभिभावकों से 14,500 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं। इनमें टियर 1 से टियर 4 तक और ग्रामीण जिलों के भी अभिभावक शामिल हैं।
केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा अक्टूबर में स्कूल खुलने पर क्या वे बच्चों को स्कूल भेजेंगे, इस पर 71 फीसदी अभिभावकों ने स्पष्ट तौर पर इनकार किया। केवल 20 फीसदी ने हामी भरी और 9 फीसदी इसे लेकर अनिश्चित थे।
इससे पहले लोकल सर्कल्स द्वारा अगस्त में किए गए ऐसे ही सर्वे में 23 फीसदी अभिभावकों ने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए हामी भरी थी।
दूसरे प्रश्न में अभिभावकों को मौजूदा हालात देखते हुए त्यौहारी सीजन में स्कूल भेजने की बात पूछी गई तो 32 फीसदी ने कहा कि 31 दिसंबर, 2020 तक स्कूल नहीं खुलने चाहिए, जबकि 34 फीसदी ने तो कहा कि सरकार को इस शैक्षणिक वर्ष में ही स्कूल नहीं खोलने चाहिए। यानी अब स्कूल अगले साल मार्च/अप्रैल में ही स्कूल खोले जाने चाहिए। इस मंशा के पीछे आने वाला ठंड का मौसम प्रमुख वजह है।
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नई दिल्ली, 30 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पत्रकार और एंकर अर्नब गोस्वामी की उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में उनकी सरकार की आलोचना के लिए महाराष्ट्र विधानसभा की ओर से उन्हें भेजे गए 16 सितंबर के शो-कॉज नोटिस को चुनौती दी गई थी। प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत मामले की गंभीरता को समझती है। पीठ ने कहा, "लेकिन यह केवल एक शो-कॉज नोटिस है और कोई विशेषाधिकार प्रस्ताव नहीं है।"
गोस्वामी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा, "मैं क्षेत्राधिकार पर हूं। विधानसभा का क्षेत्राधिकार सदन से आगे नहीं बढ़ सकता।"
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि विशेषाधिकार प्रस्ताव को आमतौर पर विशेषाधिकार समिति द्वारा निपटाया जाता है और समिति द्वारा आरोप लगाने की आवश्यकता होती है।
साल्वे ने जवाब दिया कि सचिव ने इसे भेजा है और यह कहता है कि पत्रकार मुख्यमंत्री का आलोचक है।
महाराष्ट्र विधानसभा के दोनों सदनों में शिवसेना द्वारा गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद उनके खिलाफ 60 पन्नों का नोटिस भेजा गया था।
प्रधान न्यायाधीश ने साल्वे को बताया कि अध्यक्ष को सचिव को ऐसा करने के लिए निर्देशित किया होगा। साथ ही उन्होंने उनसे पूछा, "विशेषाधिकार समिति इस मामले को कहां देख रही है?"
साल्वे ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने सदन की बहस को रिकॉर्ड पर रखा है और अदालत से पूछा है कि उनके मुवक्किल ने किसी को बदनाम किया हो, लेकिन इसमें सदन का अधिकार क्षेत्र कैसे होता है? प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आप कारण बताओ नोटिस का जवाब दे सकते हैं।
मामले पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद पीठ ने नोटिस जारी किया, जिस पर एक सप्ताह में जवाब आना है।
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नई दिल्ली, 30 सितंबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर को होने वाली सिविल सेवा (प्रारंभिक) परीक्षा 2020 को टालने का आदेश देने से बुधवार को इनकार कर दिया। न्ययाधीश एएम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि हालांकि, केंद्र अपने अंतिम अवसर का लाभ उठाने की चाह रखने वाले उन उम्मीदवारों के लिए एक अतिरिक्त मौका देने की संभावना पर विचार कर सकती है, जो कोविड-19 महामारी के कारण प्रतियोगी परीक्षा में बैठने में सक्षम नहीं हो सकते हैं और यह उम्र सीमा को बढ़ाए बिना करना चाहिए।
पीठ ने सुझाव दिया कि अंतिम प्रयास के मुद्दे पर एक औपचारिक निर्णय तेजी से लिया जाना चाहिए।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह इस सुझाव को संबंधित अधिकारियों के समक्ष रखेंगे।
पीठ ने कहा कि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग एसओपी हैं, जिसमें अन्य राज्यों से आने वाले व्यक्तियों को अनुमति देने से इनकार करना शामिल है।
अदालत ने कहा कि संघ लोक सेवा आयोग को टेस्ट के दौरान खांसी और सर्दी से पीड़ित उम्मीदवारों के लिए अलग बैठने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।
पीठ ने उल्लेख किया कि यह सुझाव दिया गया था कि 2020 प्रीलिम्स और 2021 प्रीलिम्स को मर्ज किया जाएगा। "हम इससे प्रभावित नहीं हैं। इस पर ध्यान केंद्रित करने से यूपीएससी हलफनामे के मुताबिक अन्य परीक्षाओं पर एक व्यापक प्रभाव पड़ेगा।"
कोविड-19 महामारी के कारण परीक्षाओं को स्थगित करने के लिए कई याचिकाएं दायर की गई थीं।
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तिरुवनंतपुरम, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| इंडियन यूनियन मुिस्लम लीग (आईयूएमएल) ने मांग की है कि सीबीआई बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करे। आईयूएमएल के वरिष्ठ नेता पी.के. कु न्हालकुट्टी ने कहा, आश्चर्य होता है। क्या इस केस में न्याय मिला है?
सुप्रीम कोर्ट भी कह चुकी है कि ये एक आपराधिक कृत्य था। फिर क्या हुआ?
उन्होंने आगे कहा कि हम इस फैसले पर सवाल खड़े नहीं करेंगे। सीबीआई को खुद इस फैसले के खिलाफ अपील करनी चाहिए।
आईयूएमएल के सुप्रीमो पनाकड सैयद हैदराली शिहाब थंगल ने कहा कि यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया और जिन लोगों ने ऐसा किया था वो खुलेआम घूम रहे हैं और इसलिए सीबीआई को अपील के लिए जाना चाहिए।
थंगल ने कहा, इस वक्त जरूरत है तो इस बात की सभी शांति बनाए रखें। मैं सभी से इसके लिए अपील करता हूं।
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नई दिल्ली, 30 सितंबर (आईएएनएस)| आजादी के बाद पहली बार ऐसा होगा, जब केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के बाहर के निवासी से शादी करने वाली कश्मीरी महिलाओं के बच्चों को जल्द ही सभी लाभ मिलेंगे। इसमें सरकारी नौकरियां पाने से लेकर अचल संपत्ति में अपना हिस्सा पाना तक शामिल है। ये फायदा उन्हें यहां के निवास प्रमाणपत्र के नियमों में किए गए बदलावों के कारण मिलेगा।
अगस्त 2019 के पहले तक केवल तत्कालीन राज्य के स्थायी निवासी ही सरकारी नौकरी और छात्रवृत्ति पाने के हकदार थे। इसके अलावा स्थायी निवासियों को ही यहां भूमि अधिग्रहण करने की पात्रता थी।
विवादास्पद अनुच्छेद 35 ए तत्कालीन राज्य के 'स्थायी निवासियों' को ही विशेष अधिकार देता था। हालांकि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद कई कानूनों और नियमों को या तो निरस्त कर दिया गया था या उनमें यह सुनिश्चित करने के लिए संशोधन किए गए कि जम्मू और कश्मीर से बाहर शादी करने वाली महिलाओं को ये अधिकार समान रूप से मिलें।
पिछले एक साल में इन नियमों में परिवर्तन के चलते जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों के साथ-साथ किसी राज्य में 15 साल से रह रहे लोग, 10 साल तक यहां काम करने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारी और कक्षा 10वीं या 12वीं की परीक्षा पास करने वाले छात्रों को प्रदेश में सरकारी नौकरी करने का अधिकार मिला है। साथ ही उन्हें छात्रवृत्ति और अचल संपत्तियों के अधिग्रहण का भी अधिकार मिल गया है।
इसके अलावा जम्मू और कश्मीर के बाहर के निवासी से शादी करने वाली महिलाओं के बच्चों के लिए भी निवास प्रमाणपत्र पाना आसान हो गया है।
कानून और सामान्य प्रशासन विभाग के उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों के अनुसार, नियमों में हुए इन संशोधनों से ऐसी महिलाओं को भी लाभ होगा, जो जम्मू-कश्मीर की नहीं हैं लेकिन उनकी शादी यहां के पुरुषों से हुई है।
अधिकारियों ने कहा है कि ये सभी प्रस्तावित संशोधन अगले महीने में किए जाएंगे।
कठुआ-उधमपुर से भाजपा के लोकसभा सदस्य और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने सोमवार को ट्वीट कर कहा, "जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल श्री मनोज सिन्हा और प्रमुख सचिव श्री सुब्रमण्यम के साथ चर्चा के बाद यूटी सरकार ने निवासी प्रमाण पत्र के मामले में आसानी से नियमों में संशोधन करने के लिए सैद्धांतिक रूप से सहमति दे दी है। प्रदेश के बाहर शादी करने वाली महिलाओं या अभिभावकों के बच्चों के लिए प्रमाण पत्र जारी करने के औपचारिक आदेश जारी किए जा रहे हैं।"
--आईएएनएस
दिल्ली,28 सितम्बर | दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने सीजेआई को पत्र लिखकर यूपी के हाथरस जिले में 19 साल की दलित लड़की के साथ हुए निर्मम सामूहिक बलात्कार और हत्या का संज्ञान लेने का आग्रह किया है। "पीड़िता के हर संभव मौलिक और मानवीय अधिकारों का उल्लंघन किया गया है," ये कहते हुए मालीवाल ने अदालत से ये निर्देश पारित करने का आग्रह किया है,
• अपराध में शामिल अभियुक्तों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए उच्च न्यायालय की निगरानी में जांच और ट्रायल हो।
. • घटना को छिपाने की कोशिश करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों सहित सभी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ तत्काल निलंबन और दंडात्मक कार्रवाई हो। • यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस मैकेनिज्म हो कि किसी भी अन्य बेटी को इस तरह की घटना का सामना ना करना पड़े।
मालीवाल ने यह स्वीकार किया है कि इस मामले में पुलिस और पूरी यूपी सरकार की भूमिका "गंभीर चिंता का विषय" है। उन्होंने आरोप लगाया है कि 14 सितंबर को पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और चार आरोपियों द्वारा उसे घायल करने के बाद खेतों में छोड़ दिया गया। हालांकि, पीड़ित परिवार के बार-बार आग्रह के बावजूद, स्थानीय पुलिस सामूहिक-बलात्कार या यहां तक कि बलात्कार का मामला दर्ज करने में विफल रही और 5 दिनों तक आरोपी व्यक्ति बेफिक्र आजाद घूमते रहे।
उन्होंने दावा किया है कि 22 सितंबर को ही पीड़िता का बयान दर्ज किया गया था और मामले में गैंगरेप की संबंधित धाराओं को जोड़ा गया था और अन्य आरोपी व्यक्तियों की पहचान की गई थी। इस पृष्ठभूमि में उन्होंने कहा है कि कई दिनों तक , प्रशासन ने "मामले को गांववालों के बीच विवाद के रूप में दिखाने करने" की कोशिश की और घटना को "कवर-अप" करने की कोशिश की। उन्होंने आगे दावा किया है कि यूपी सरकार ने पीड़िता को दिल्ली भेजने में अत्यधिक देरी दिखाई, बावजूद इसके कि उसकी हालत गंभीर थी।
उन्होंने कहा, "अगर परिवार की दलीलों पर तत्काल कार्रवाई की जाती और पीड़ित को पहले दिल्ली स्थानांतरित कर दिया जाता, तो शायद हम अपनी बेटी को नहीं खोते।" उन्होंने आरोप लगाया है कि पीड़ित के परिवार को उसके शव का अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी गई, बल्कि उसके घर में ताला लगा दिया गया था। इसे "पीड़ित के मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का मामला" बताते हुए मालीवाल ने लिखा: "लाखों युवा और मासूम लड़कियों ने हमारे देश में अपने जीवन और गरिमा का बलिदान किया है और फिर भी क्षणिक नाराजगी को छोड़कर, हमारा देश कार्रवाई करने में विफल रहा है। भारत में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति में शायद ही कोई अनुकूल बदलाव आया है और हर दिन अनगिनत महिलाओं व लड़कियों को तबाह कर दिया जाता है और उनके जीवन को नष्ट कर दिया जाता है।"
इस मामले में 19 वर्षीय पीड़िता को 14 सितंबर को यूपी के हाथरस जिले में चार लोगों द्वारा कथित रूप से प्रताड़ित किया गया और सामूहिक बलात्कार किया गया। यह आरोप लगाया गया है कि अपराधियों ने पीड़िता की जीभ काट दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह पुलिस को कोई बयान न दे और कई दिनों तक उसके परिवार को बार-बार धमकी दी। उसे खेतों से गंभीर हालत में बरामद किया गया और इलाज के लिए अलीगढ़ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। 28 सितंबर को, उसे एम्स दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां अगले दिन उसने दम तोड़ दिया।(LIVELAW)
‘छत्तीसगढ़’ न्यूज डेस्क
रायपुर, 30 सितंबर। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी दोषियों को बरी करने का विशेष अदालत का निर्णय, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय व संविधान की परिपाटी से परे है। कांग्रेस पार्टी ने आज सीबीआई कोर्ट के फैसले पर खुलासे से अपनी सोच सामने रखी है।
पार्टी ने कहा- सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ के 9 नवंबर, 2019 के निर्णय के मुताबिक बाबरी मस्जिद को गिराया जाना एक गैरकानूनी अपराध था। पर विशेष अदालत ने सब दोषियों को बरी कर दिया। विशेष अदालत का निर्णय साफ तौर से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के भी प्रतिकूल है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव व मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा - पूरा देश जानता है कि भाजपा-आरएसएस व उनके नेताओं ने राजनैतिक फायदे के लिए देश व समाज के सांप्रदायिक सौहार्द्र को तोडऩे का एक घिनौना षडय़ंत्र किया था। उस समय की उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकार भी सांप्रदायिक सौहार्द्र भंग करने की इस साजिश में शामिल थी। यहां तक कि उस समय झूठा शपथ पत्र देकर सुप्रीम कोर्ट तक को बरगलाया गया। इन सब पहलुओं, तथ्यों व साक्ष्यों को परखने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद को गिराया जाना गैरकानूनी अपराध ठहराया था।
श्री सुरजेवाला ने कहा संविधान, सामाजिक सौहार्द्र व भाईचारे में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति उम्मीद व अपेक्षा करता है कि विशेष अदालत के इस तर्कविहीन निर्णय के विरुद्ध प्रांतीय व केंद्रीय सरकारें उच्च अदालत में अपील दायर करेंगी तथा बगैर किसी पक्षपात या पूर्वाग्रह के देश के संविधान और कानून की अनुपालना करेंगी। यही संविधान और कानून की सच्ची परिपाटी है।
कांग्रेस ने यूपी सीएम से मांगा इस्तीफा
‘छत्तीसगढ़’ न्यूज डेस्क
रायपुर, 30 सितंबर। उत्तरप्रदेश में एक दलित लडक़ी के साथ गैंगरेप के बाद उसे मरणासन्न हद तक पीटने, हड्डियां तोड़ देने, और जीभ काट देने की खबरों से देश वैसे भी हिला हुआ था कि कल उसकी मौत और रातोंरात पुलिस द्वारा जबरिया अंतिम संस्कार ने लोगों को और हिला दिया है। इन दोनों वारदातों को लेकर कांग्रेस पार्टी ने आज यूपी के सीएम पर बड़ा हमला बोला है, और उनका इस्तीफा मांगा है।
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष और पार्टी प्रवक्ता सुष्मिता देव ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज सुबह आप लोगों ने देखा होगा कि उत्तरप्रदेश की प्रभारी और महासचिव प्रियंका गांधीजी ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अजय बिष्टजी के इस्तीफे की मांग की है। सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का इस्तीफा क्यों जरूरी है। कल रात को या आज सुबह-सुबह ढाई बजे, जिस तरह से उत्तरप्रदेश की सरकार ने हाथरस की बेटी के साथ अन्याय किया, अगर वहाँ उसी परिवार को और हाथरस की बेटी को न्याय देना है, उसका सिर्फ एक ही जवाब है कि अजय बिष्ट का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा प्रधानमंत्री को मांगना चाहिए, इससे कम या इसको प्रधानमंत्री नहीं करते हैं, हम आज इस मंच से कहना चाहते हैं कि किसी तरह का न्याय हाथरस की बेटी के साथ नहीं होगा।
सुष्मिता ने आगे कहा-मुख्यमंत्रीजी का ट्वीट आया, उन्होंने एसआईटी का गठन किया, मैं अजय बिष्ट जी से पूछना चाहती हूं कि क्या इस एसआईटी के पास वो पावर है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को बुलाया जाए उस एसआईटी में? आज अपराधियों का अरेस्ट हुआ, पर मुख्यमंत्री को एसआईटी के सामने जवाब देना चाहिए कि जिस बच्ची का इस तरह से बलात्कार हुआ, जिसकी रीढ़ की हड्डी टूटी, जिसकी जीभ को काट कर फेंक दिया गया, आपने उस बच्ची को पहले डिस्ट्रिक्ट अस्पताल में रखा, आपने उसको फिर अलीगढ़ के एक अस्पताल में रखा। 8 दिन एक नोर्मल वार्ड में रखा और सफदरजंग अस्पताल में आपने तब पहुंचाया जब शायद उसका अंतिम वक्त आ चुका था। इसका दायित्व कौन लेगा? इसका दायित्व, इसकी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को लेनी चाहिए। एसआईटी काफी नहीं है, फास्ट ट्रैक कोर्ट काफी नहीं है, सिर्फ अरेस्ट काफी नहीं है, अजय बिष्ट जी को जवाब देना चाहिए कि आपने 8 दिन तक एफआईआर दर्ज क्यों नहीं की? आप उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री हैं, आपको जवाब देना चाहिए कि आपने 6 दिन नोर्मल वार्ड में आपने उस बच्ची को क्यों रखा और सबसे बड़ा सवाल कि जब उस बच्ची ने अपनी आखिरी सांस ली, आप रात के अंधेरे में उस बच्ची को एंबुलेंस में डालकर उसके गांव लेकर गए और जो वीडियो आज आप लोगों ने फ्लैश किया है, मीडिया के दोस्तों ने फ्लैश किया है कि उस बच्ची की माता जी के आंसू हमें दिख रहे हैं कि रो कर, हाथ जोडक़र कह रही है, मांग कर रही है कि उसके अंतिम संस्कार का अधिकार उस परिवार को क्यों नहीं दिया जा रहा है, उन्हें अपनी बच्ची को अपने घर तक ले जाने की उत्तर प्रदेश की सरकार इजाज़त क्यों नहीं दे रही है? इसकी जांच कौन करेगा? बलात्कारियों की जांच एसआईटी करेगी, पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की इस निर्दयता और षडय़ंत्र की जांच कौन करेगा, प्रधानमंत्री जवाब दें?
उन्होंने आगे कहा-हमारी सोच से बाहर है, हम सोच तक नहीं सकते कि एक मुख्यमंत्री के रहते, जो सुशासन की बात करते हैं, आज एक बच्ची का क्रियाकर्म हुआ, किसी रीति रिवाज को नहीं माना गया, ढाई बजे रात को जिस तरह से किया गया। आप क्या छुपा रहे हैं अजय बिष्ट जी? आपकी नाकामी आज साबित नहीं हुई, जबसे आप मुख्यमंत्री के पद पर बैठे हैं, तब से आपकी नाकामी बार-बार साबित हुई है, पर जो कल या आज सुबह हाथरस की बेटी के साथ किया गया, आपने हर हद को पार किया, हर सीमा को पार किया।
सुष्मिता ने कहा कांग्रेस पार्टी की मांग है कि एक ही तरीका है इस मामले में न्याय करने का कि अजय बिष्टजी को अपनी गद्दी छोडऩी चाहिए। एसआईटी में भगवान स्वरुप बैठे हैं, जो एसआईटी चलाएंगे, पर भगवान स्वरुप जी से हमारा ये सवाल है कि जो यमराज का रुप धारण करके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, अपनी गद्दी पर बैठे हैं, उस यमराज के साथ क्या आप कोई जांच करेंगे? अगर प्रधानमंत्री इससे मुकर जाते हैं, तो मैं कहूंगी कि हमें शर्म आती है और हर महिला के लिए शर्म की बात है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी हैं, जो सिर्फ झूठे भाषण देते हैं और एक निकम्मेपन मुख्यमंत्री को उत्तर प्रदेश में बिठा रखा है।
उन्होंने कहा-अजय बिष्ट को गद्दी छोडऩी पड़ेगी, ये कांग्रेस पार्टी की मांग है और जब तक आप गद्दी नहीं छोड़ेंगे, हम सडक़ों पर उतरेंगे और हमारी नेता प्रियंका गांधी वाद्रा जी के नेतृत्व में हम अब अजय बिष्ट सरकार को चैन की नींद नहीं सोने देंगे।
कांग्रेस पार्टी के एक दलित नेता उदित राज ने कहा कि हमारी पार्टी की नेता, महिला कांग्रेस अध्यक्ष सुष्मिता देव जी ने बड़े विस्तार से आपके सामने इस बात को रखा है। मैं दूसरे पक्ष के बारे में बोलना चाहूंगा कि जब-जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार होती है, दलित उत्पीडऩ बढ़ते हैं, उनके सुरक्षा, शिक्षा, रोजगार पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। जौनपुर में, आजमगढ़ में, कानपुर देहात में, लखीमपुर खीरी में और अब हाथरस में कितने जघन्य अपराध दलितों के ऊपर हुए हैं। गुजरात के बाद में ये दूसरी प्रयोगशाला इनकी उत्तर भारत में शुरु हुई है। वहाँ अल्पसंख्यक के साथ किया, दलित के साथ किया, यहाँ दलितों के साथ कर रहे हैं, कितना इनको दबा दें, कितना इनको क्रश कर दो, इनका मनोबल खत्म हो जाए और जो इनकी कल्पना है, इनकी विचारधारा जो है कि ये पहले शुद्र थे, गुलाम थे, उसी स्थिति में इनको पहुंचा देना चाहिए, तो ये प्रयोगशाला है कि ये 70-75 साल पहले जहाँ खड़े थे, वहीं उनको पहुंचाना है, वरना दलितों के साथ ही क्यों होता है ये सब? अन्य कोई घटना तो याद आती नहीं है कि ऐसा विक्टिम हो और रात में ताबडतोड़ बॉडी को जला दिया हो, तो इससे भी लगता है कि और घटनाओं से दलित की घटना भिन्न है, नंबर वन।
उदित राज ने आगे कहा- नंबर टू, जब इतना जघन्य अपराध था, जीभ काट दी गई थी, रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई थी, बोल नहीं रही थी, तो उसका वहाँ लोकल अलीगढ़ में इलाज कराया गया, यह भी एक असाधारण बात है, वरना ऐसे मामले में इलाज वहाँ कराया जाता है, जहाँ सुपर स्पेशिलिटी होती है। तो मरने के लिए उसका कोई ध्यान नहीं दिया। ये प्रियंका जी के नेतृत्व में जब कांग्रेस एक्टिव हुई, डेमोस्ट्रेशन शुरु हुआ, तब मनीषा को परसों शाम को सफदरजंग अस्पताल में लेकर आए और जो बयान मैंने अखबार में पढ़ा कि एक तरह से मृत स्थिति में आई, ऑक्सीजन लेवल जिसका 50 पहुंच जाए, उसके जीने के कोई आसार नहीं रहते। तो उन्होंने कहा कि ऑलमोस्ट डेड बॉडी को लाए, अगर पहले लाए होते तो बचाया जा सकता था और जब इनकी सरकार केन्द्र में भी है और राज्य में भी, एम्स में क्या एक ऐसे असाधारण केस के लिए कोई जगह नहीं है? ये कहा गया कि एम्स में जगह नहीं है, सफदरजंग में इलाज किया जाए औऱ एम्स बेहतर, वन ऑफ द बेस्ट है, तो वहाँ पर ये हालत है।
उदित राज ने आगे कहा- ये जो अजय बिष्ट जी हैं, ये दलित विरोधी हैं, ये जितने लोगों ने आंदोलन किया, उनको दबाना, मारना, कुलदीप सेंगर को बचाना और चिन्मयानंद को बचा गए ये। चिन्मयानंद को जेल में होना चाहिए, जेल में पीडि़ता हुई, सजा उसको मिली, तो हम बहुत आशांवित नहीं हैं इनसे कि दलित लडक़ी को न्याय मिलेगा और हम फिर देखगें कि जल्दी फिर घटनाएं होंगी क्योंकि इनकी विचारधारा इस तरह की है। तो आरएसएस और भाजपा की विचारधारा इस तरह की है, जो सेकुलर ताकतें हैं, जो दलित हैं, आदिवासी हैं, पिछड़े हैं, महिलाएं हैं, उनको नीचे दर्जे का नागरिक के रुप में ट्रीट करना, उनका पूरा इतिहास, पूरा लिट्रेचर, पूरी सोच है। उस सोच के ऊपर आपत्ति है, जो इस लडक़ी के साथ में हुआ। 10 दिन तक कोई सुध नहीं ली गई और ये भी मैं बता दूं कि अजय बिष्ट की जाति के ही लोग हैं चारों। ये अक्सर देखा जा रहा है और मैं ये नहीं कह रहा हूं, आम आदमी पार्टी ने भी इस पर आरोप लगाया है कि 54 जिलों में से 39 जिलों में एक ही जाति के, अजय बिष्ट की जाति के लोग बैठे हैं शासन, प्रशासन में, तो ये सर्वविदित है। ये जानबूझकर कराया जा रहा है कि इनकी कमर तोड दो, इनकी सोच को क्रश कर दो, इनमें जागृति पैदा हो रही है, ये दलित पहले जैसे नहीं रह गए हैं, तो अत्याचार इस तरह से किया जा रहा है और इन्हीं के गुंडे हैं, इन्हीं के लठैत हैं और इन्हीं के द्वारा प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा- ये कहते हैं कि अपराधियों के फोटो चौराहे पर लगाए जाएंगे, तो अजय बिष्ट जी, खुद ही इनके खिलाफ में कितने मुकदमें रहे हैं, वो तो इनके ऊपर भी फिट बैठता है। कितने इनके ऊपर एफआईआर थे और कितने मुकदमें इनके ऊपर थे, तो इनसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है। हमारी मोदी जी से मांग है कि इनको डिसमिस करके दूसरा मुख्यमंत्री लाया जाए, अगर दूसरा मुख्यमंत्री नहीं ला सकते, तो राज्यपाल शासन लागू करना चाहिए, लेकिन अजय बिष्ट के बस का नहीं है उत्तर प्रदेश के जंगलराज को खत्म करना।
नई दिल्ली, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराने के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व उपप्रधानमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह सहित सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। इस फैसले को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने न्याय की जीत बताया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ की विशेष अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, लखनऊ की विशेष अदालत द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस केस में लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, डॉ मुरली मनोहर जोशी, उमाजी समेत 32 लोगों के किसी भी षड्यंत्र में शामिल न होने के निर्णय का मैं स्वागत करता हूं। इस निर्णय से यह साबित हुआ है कि देर से ही सही मगर न्याय की जीत हुई है।
बता दें कि छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा विध्वंस मामले की 28 वर्ष तक सुनवाई चली। जिसके बाद सीबीआई की विशेष अदालत ने इस आपराधिक मामले में बुधवार को फैसला सुनाया। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस.के. यादव ने लाकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि विवादित ढांचा विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। सिर्फ तस्वीरों से आरोपियों के घटना में शामिल होने का सबूत नहीं मिल जाता। यह कहते हुए कोर्ट ने सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया।
लखनऊ , 30 सितंबर (आईएएनएस)| 28 साल बाद अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में बुधवार को सीबीआई की विशेष अदालत का बहुप्रतीक्षित फैसला आने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने वोट बैंक की राजनीति के लिए लोगों को फंसाया है। मुख्यमंत्री योगी ने अपने जारी बयान में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सत्यमेव जयते के अनुरूप सत्य की जीत हुई है। उन्होंने कहा कि यह फैसला स्पष्ट करता है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर वोट बैंक की राजनीति के लिए देश के पूज्य संतों, भारतीय जनता पार्टी के नेताओं, विश्व हिंदू परिषद से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं समाज से जुड़े विभिन्न संगठनों के पदाधिकारियों को बदनाम करने की नीयत से उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाकर बदनाम किया गया। मुख्यमंत्री योगी ने कहा, इस षड्यंत्र के लिए जिम्मेदार देश की जनता से माफी मांगें।
ज्ञात हो कि 28 साल पुराने अयोध्या के विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले मे सीबीआई की विशेष अदालत ने भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत कुल 32 आरोपियों को बरी कर दिया है।
नई दिल्ली, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में सीबीआई की लखनऊ स्थित विशेष अदालत की ओर से सभी 32 आरोपियों को बरी करने के फैसले का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वागत किया है। इसके साथ ही आरएसएस ने लोगों से एक खास अपील भी की है। आरएसएस ने सभी को सौहार्द के साथ एकजुट होकर देश को आगे ले जाने की दिशा में काम करने की खास अपील की है। आरएसएस के सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी ने कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा विवादास्पद ढांचे के विध्वंस मामले में सभी आरोपियों को ससम्मान बरी करने के निर्णय का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वागत करता है। इस निर्णय के उपरांत समाज के सभी वर्गों ने परस्पर विश्वास और सौहार्द के साथ एकत्र आकर देश के सामने आने वाली चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए देश को प्रगति की दिशा में ले जाने के कार्य में जुट जाना चाहिए।
छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा विध्वंस मामले की 28 वर्षों तक चली सुनवाई के बाद बुधवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने इस आपराधिक मामले में फैसला सुनाया। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस.के. यादव ने लाकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि विवादित ढांचा विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी। सिर्फ तस्वीरों से आरोपियों के घटना में शामिल होने का सबूत नहीं मिल जाता। यह कहते हुए कोर्ट ने सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले को भाजपा नेताओं ने न्याय की जीत बताया है।
लखनऊ , 30 सितंबर (आईएएनएस)| 28 साल बाद अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में बुधवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत के इस निर्णय से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी नाखुश हैं। आईएएनएस से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह इस निर्णय से संतुष्ट नहीं है। वह हाईकोर्ट जाएंगे। जिलानी ने बातचीत में कहा कि यह निर्णय बिल्कुल न्याय विपरीत है। सबूतों की पूरी तरह अनदेखी की गयी है। यह कानून के खिलाफ है। इसके खिलाफ हम हाईकोर्ट जाएंगे। जिसको यह लोग सबूत नहीं मान रहे वह पूरी तरह से सबूत है। सभी के बयान हैं। इसके लिए दो लोगों के बयान काफी होते हैं। यहां तो दर्जनों बयान है। हमारे पास ऑप्शन है। राम मंदिर का फैसला हम देख चुके हैं और बाबरी केस का फैसला भी देख लिया। दोनों से हम संतुष्ट नहीं हैं। अभी तक हम फैसले का इंतजार कर रहे थे। जफ रयाब जिलानी कहते हैं कि जो भी पक्ष संतुष्ट नहीं है, वह हाईकोर्ट का रुख करेगा।
ज्ञात हो कि अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को ढहाए गए विवादित ढांचे के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने बुधवार को फैसला सुनाया। इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार समेत सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया गया है। 28 वर्ष तक चली सुनवाई के बाद ढांचा विध्वंस के आपराधिक मामले में फैसला सुनाने के लिए सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस.के. यादव ने सभी आरोपियों को कोर्ट में तलब किया था।
नई दिल्ली, 30 सितंबर (वार्ता)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं और बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के आरोपियों ने इस मामले पर बुधवार को आये फैसले पर खुशी व्यक्त की है।
इस मामले के आरोपी पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने अपने आवास पर संवाददाताओं से कहा, आज का निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हम सब के लिए खुशी का दिन है। लम्बे समय के बाद अच्छा समाचार आया है। हमने जय श्री राम कह कर इसका स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि वह हृदय से इस फैसले का स्वागत करते हैं। यह फैसला श्री रामजन्म भूमि आंदोलन को लेकर मेरे निजी और भाजपा के विश्वास एवं प्रतिबद्धता को प्रमाणित करता है।
इस मामले के एक अन्य मुख्य आरोपी डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने न्यायालय के फैसले को ऐतिहासिक बताया और कहा कि इससे प्रमाणित हुआ है कि छह दिसम्बर की अयोध्या की घटना में कोई षड्यंत्र नहीं था । हमारा कार्यक्रम और रैली षड्यंत्र का हिस्सा नहीं था। सभी लोग राम मंदिर के निर्माण को लेकर अब उत्साहित हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि लखनऊ की विशेष अदालत द्वारा बाबरी मस्जिउ विध्वंस मामले में लाल कृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, सुश्री उमा भारती समेत 32 लोगों के किसी भी षड्यंत्र में शामिल न होने के निर्णय का वह स्वागत करते हैं। इस निर्णय से यह साबित हुआ है कि देर से ही सही मगर न्याय की जीत हुयी है ।
लखनऊ, 30 सितम्बर (वार्ता)। छह दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी सभी आरोपियों के बरी होने से गदगद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट््वीट कर कहा ‘सत्यमेव जयते!’।
श्री योगी ने ट््वीट किया ‘सीबीआई की विशेष अदालत के निर्णय का स्वागत है।
उन्होंने इस मामले में कांग्रेस पर संत धर्माचार्यो, नेताओं और विहिप के पदाधिकारियों को बदनाम करने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुये देश की जनता से माफी मांगने की अपील की।
मुख्यमंत्री ने लिखा ‘तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो पूज्य संतों, भाजपा नेताओं, विहिप पदाधिकारियों, समाजसेवियों को झूठे मुकदमों में फँसाकर बदनाम किया गया। इस षड्यंत्र के लिए इन्हें जनता से माफी मांगनी चाहिए।
गौरतलब है कि सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस के यादव ने बाबरी विध्वंस मामले का फैसला सुनाते हुये सभी आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी करने का आदेश दिया। उन्होने कहा कि विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना सुनियोजित साजिश नहीं प्रतीत होती। यह अचानक घटी घटना थी लिहाजा इसके लिये किसी भी आरोपी को दोषी नहीं माना जा सकता।
लखनऊ, 30 सितम्बर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने योगी आदित्यनाथ सरकार से महामारी के कारण दुर्गा पूजा पंडालों पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने की मांग की है। सपा के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी ने कहा कि दुर्गा पूजा पंडालों पर प्रतिबंध लगाना "लोगों के धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर सीधा हमला करना है।"
उन्होंने कहा, "दुगार्पूजा पंडालों को अनुमति नहीं देने का राज्य सरकार का निर्णय मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। सरकार को समारोह के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य सुरक्षा प्रोटोकॉल सुनिश्चित करना चाहिए। यदि राज्य सरकार लोगों की निर्धारित संख्या के साथ रामलीला आयोजित करने की अनुमति दे सकती है तो दुर्गा पूजा पंडालों को अनुमति क्यों नहीं दे सकते।"
कांग्रेस ने भी इस मसले पर उप्र सरकार को निशाना बनाया है। कांग्रेस द्वारा हाल ही में बंगाल प्रभारी नियुक्त किए गए जितिन प्रसाद ने कहा, "मध्य प्रदेश में बड़े पैमाने पर राजनीतिक रैलियां निकालने की अनुमति दी जा सकती है लेकिन उप्र में भाजपा सरकार बंगाली समुदाय को प्रतिबंधों के साथ दुर्गा पूजा मनाने की अनुमति नहीं दे रही है। यह साफ तौर पर दर्शाती है कि उनके लिए राजनीति ही जरूरी है।"
कांग्रेस नेता ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर भाजपा चयनात्मक नहीं हो सकती है, ना ही इसके लिए वो महामारी का उपयोग कर सकती है।
बता दें कि उप्र सरकार ने दुर्गा पूजा को लेकर निर्देश दिए हैं कि लोग घर पर ही पूजा करें। वहीं अधिकारियों को कोविड-19 प्रोटोकॉल सुनिश्चित करते हुए 100 लोगों के साथ रामलीला आयोजित करने की अनुमति दी है।
हैदराबाद, 30 सितंबर (हिन्दीसियासतडॉटकॉम)। मेरे माता-पिता का एनकाउंटर करो। ‘यह तीखी टिप्पणी हनुमान की पत्नी अवंती की हुई, जिसे ऑनर किलिंग के नाम पर उसके ही माता-पिता ने विधवा बना दिया था।
उन्होंने इस उद्देश्य के लिए गुंडों को काम पर रखा। यह घटना तीन दिन पहले की है, जब एक 28 वर्षीय इंटीरियर डिजाइनर को कथित तौर पर उसकी पत्नी के परिवार द्वारा अपहरण और हत्या कर दी गई थी क्योंकि वह दूसरी जाति का था। एक तेलुगु चैनल से बात करते हुए, अवंती ने मुख्यमंत्रियों के चंद्रशेखर राव और वाईएस जगनमोहन रेड्डी से न्याय करने का आग्रह किया। उसने बताया कि उसका परिवार शुरू से ही शादी के खिलाफ था और उन्होंने उसके पति को भी धमकी दी थी।
साइबराबाद पुलिस ने अपराध के सिलसिले में महिला के माता-पिता सहित 14 लोगों को गिरफ्तार किया और चार और की तलाश में हैं। साइबराबाद पुलिस के अनुसार, सी अवंती रेड्डी के रिश्तेदारों ने उसे और उसके पति वाई हेमंत कुमार को जबरन पकड़ लिया, जिन्होंने अपने परिवार की इच्छाओं के खिलाफ शादी कर ली (लगभग तीन महीने पहले), और उसी रात उसका गला घोंट कर इंटीरियर डिजाइनर की हत्या कर दी। हालांकि, महिला भागने में सफल रही और पुलिस को सूचना दी।
परिवार की मर्जी के खिलाफ शादी करने के लिए दोनों को मारने के लिए लडक़ी के परिवार द्वारा युगल को लिया गया था और जब कार ने अलग दिशा ली तो दोनों को संदेह हुआ और वे वाहन से उतरने में सफल रहे। हालांकि, एक अन्य वाहन में इंटीरियर डिजाइनर को ले जाया गया और पड़ोसी संगारेड्डी जिले के किस्तागुडेम गांव के बाहरी इलाके में मार दिया गया, पुलिस ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा।
नई दिल्ली, 30 सितंबर। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हो चुकी है। लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, नृत्यगोपाल दास, सतीश प्रधान के अलावा सभी आरोपी कोर्ट में, जल्द ही मामले पर फैसला सुनाया जाएगा। इस केस की चार्जशीट में बीजेपी के एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह समेत कुल 49 लोगों का नाम शामिल है। जिनमें से 17 लोगों का निधन हो चुका है, बाकि 32 आरोपियों को कोर्ट ने मौजूद रहने के लिए कहा गया था लेकिन 26 आरोपी ही कोर्ट पहुंचे हैं। बता दें कि कोरोना महामारी और स्वास्थ्य कारणों से कुछ आरोपियों ने ऐसा कर पाने में असमर्थता जताई थी। 92 वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी और 86 वर्षीय मुरली मनोहर जोशी ने कथित रूप से पेशी से छूट मांगी थी। उमा भारती कोरोना से पीडि़त हैं और अस्पताल में हैं जबकि कल्याण सिंह का भी कोरोना का इलाज जारी है।
बाबरी मामले में सुनवाई शुरू
जज अपने रजिस्टरार से पूछ रहे हैं कि कौन-कौन उपस्थित नहीं और उनकी तरफ से क्या एप्लीकेशन लगाई गई है
28 साल बाद फैसला
बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, नृत्यगोपाल दास, सतीश प्रधान के अलावा सभी आरोपी कोर्ट में मौजूद हैं। फैसला जल्द आने वाला है। इस मामले में कुल 49 आरोपी थे। 17 की मृत्यु हो चुकी है। शेष 32 में से 6 पेश नहीं हुए हैं और 26 हाजिर हैं।
कोर्ट के बाहर कड़ी सुरक्षा
न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार, लखनऊ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत आज बाबरी मामले में फैसला सुनाने वाली है। एहतियातन कोर्ट परिसर के बाहर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए हैं।
अदालत पहुंचे कई आरोपी
न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार, बाबरी विध्वंस केस में अब से कुछ देर में फैसला आने वाला है। मामले में आरोपी साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार, चंपत राय और पवन पांडे अदालत पहुंच गए हैं।
विशेष न्यायाधीश एसके यादव पहुंचे अदालत
बाबरी मामले में 28 साल बाद अब से कुछ देर में फैसला आने वाला है। सीबीआई के स्पेशल जज एसके यादव फैसला सुनाएंगे। विशेष न्यायाधीश एसके यादव अदालत पहुंच चुके हैं। वह आज ही रिटायर हो रहे हैं। उन्हें सेवानिवृत्ति से पहले विस्तार दिया गया है।
साक्षी महाराज के वकील प्रशांत अटल से बातचीत
बाबरी मामले में एक आरोपी बीजेपी सांसद साक्षी महाराज के वकील प्रशांत अटल ने कहा, साक्षी महराज व अन्य आरोपी बरी होंगे। सीबीआई ने तत्कालीन सरकारों के दबाव में आरोपी बनाया। सीबीआई ने जान-बूझकर फंसाया। किसी ने वहां कार सेवकों को बाबरी ढहाने के लिए नहीं उकसाया था। जय श्री राम का नारा लगाना भडक़ाना नहीं होता। अगर तीन साल से ज्यादा सजा हुई तो बेल हाईकोर्ट से होगी। अगर पांच साल से ज्यादा सजा हुई तो फिर वह चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
17 आरोपियों की सुनवाई के दौरान हो चुकी है मौत
केंद्रीय एजेंसी सीबीआई ने इस मामले में 351 गवाह और करीब 600 दस्तावेजी सुबूत अदालत में पेश किए। इस मामले में कुल 48 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था जिनमें से 17 की मामले की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो चुकी है।
मामले का निपटारा 30 सितंबर तक करने के आदेश
उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई अदालत को मामले का निपटारा 31 अगस्त तक करने के निर्देश दिए थे लेकिन गत 22 अगस्त को यह अवधि एक महीने के लिए और बढ़ा कर 30 सितंबर कर दी गई थी। सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले की रोजाना सुनवाई की थी ।
आज सुनाया जाएगा फैसला
सीबीआई की स्पेशल कोर्ट 1992 में मुगलकालीन बाबरी मस्ज्दि ढहाए जाने के मामले पर बहुप्रतिक्षित फैसला आज सुनाएगी।
- वुसअतुल्लाह ख़ान
नए ज़माने के सरकार की तारीफ़ ये है कि एक ऐसी सरकार जो जनता की समस्याओं को भले हल न कर सके, अंदर और बाहर के हालात उसके क़ाबू में न हों, मगर उसको एक साथ पाँच गेंदें हवा में उछालने की कला का माहिर ज़रूर होना चाहिए.
ताकि लोग अपने पैरों की बजाय हवा में उछलती रंग-बिरंगी गेंदों को देखते रहें और उनकी गर्दन कभी पूरब की ओर तो कभी पश्चिम की ओर मुड़ती रहे. और जब आँखें थक जाएं तो वो सो जाएं और अगले दिन फिर यही तमाशा देखने के लिए हँसी ख़ुशी उठ जाएं.
मसलन एक गेंद किसी भी फ़र्ज़ी दुश्मन के नाम की उछाल दो, एक गेंद सुनहरे इतिहास की उछाल दो, एक देश के अंदरूनी ग़द्दारों के नाम की उछाल दो, एक रंगीन भविष्य की गेंद उछाल दो और एक गेंद डर और भय की उछालते रहो कि हम न रहे तो तुम भी नहीं रहोगे.
मतलब ये कि जनता का दिमाग़ किसी एक मसले पर ज़्यादा देर टिकने न पाए और राजनीति की कथा टीवी सीरियल की तरह हर क़िस्त में एक नया सवाल छोड़ जाए - अब क्या होगा? अगले एपिसोड में सीमा विजय को छोड़ेगी या फिर विजय अजय के हाथों मारा जाएगा?
एक एपिसोड में काला धन लाएंगे, अगले एपिसोड में सबका साथ-सबका विकास, फिर नोटबंदी, फिर पाकिस्तान की शरारतें, फिर आर्टिकल 370 की छुट्टी, फिर किसको नागरिकता मिलेगी किसको नहीं, फिर दिल्ली के दंगे, फिर चाइना आक्रमण, फिर रफ़ाल विमान, फिर राम मंदिर के निर्माण का उद्घाटन, फिर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या और अगली खोज दीपिका समेत कितने अभिनेता या अभिनेत्रियाँ नशा करते हैं या नहीं करते.
मतलब ये कि जनता को साँस मत लेने दो, कहीं वो असली मुद्दों पर सोचना न शुरू कर दे.
हमारे यहाँ भी यही कहानी है
अगर मैं सिर्फ़ पिछले चार साल की बात करूं तो एक के बाद एक ड्रामा. इमरान ख़ान का धरना, फिर पनामा लीक्स, फिर नवाज़ शरीफ़ जा रहा है तो कौन आ रहा है, फिर तौहीने-रिसालत की तहरीक, फिर इमरान ख़ान का नया पाकिस्तान, फिर पतली होती आर्थिक स्थिति से तवज्जो हटाने के लिए करप्शन के नाम पर विरोधियों की पकड़-धकड़ और मुक़दमे, फिर मीडिया पर व्हाट्सऐप और फ़ोन के ज़रिए कंट्रोल, फिर देशद्रोह नेताओं और पत्रकारों की ट्रोलिंग, फिर कौन सेनापति से रात के अंधेरे में मिलता है कौन नहीं मिलता का ड्रामा, फिर कराची सूबा बनेगा नहीं बनेगा की बहस और फिर अब ये बहस कि गिलगित-बल्तिस्तान को चुनाव से पहले नया राज्य बनाया जाए या चुनाव के बाद.
किसी चैनल पर नहीं आ रहा कि दवाओं की क़ीमत में अचानक से ढाई सौ फ़ीसद़ तक इज़ाफ़ा कैसे हो गया? बिजली जब ज़रूरत से ज़्यादा बन रही है तो उसकी क़ीमत छत से क्यों लग गई है और छह-छह घंटे क्यों नहीं आ रही?
बारिशों में देश का सबसे बड़ा शहर कराची क्यों डूब गया और आइंदा उसे झील बनने से बचाने के लिए क्या इंतेज़ामात किए जा रहे हैं? लॉ एंड ऑर्डर बेहतर बनाने की बजाय हर दूसरे महीने ये पुलिस अफ़सर ही क्यों बदल जाते हैं?
कोविड-19 की वजह से जो लाखों बच्चे घर पर बैठे हैं उनकी फ़ीसें तो बराबर जा रही हैं पर शिक्षा का क्या होगा? इन सब पर कोई बात ही नहीं.
बस जनता को नक़ली मसलों के ट्रक की बत्ती के पीछे लगा कर रखो.
इसी तरह चंद साल और गुज़र जाएंगे. फिर एक नया ड्रामा और फिर वही पुराना डायरेक्टर. जीना इसी का नाम है.
पहले शक था पर अब मुझे यक़ीन होता जा रहा है कि इस पृथ्वी पर मीडिया से बड़ी डुगडुगी और सरकार से बड़ा मदारी शायद कोई नहीं.(bbc)
अयोध्या, 30 सितंबर (आईएएनएस)| अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को ढहाए गए विवादित ढांचे के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत बुधवार को फैसला सुनाने जा रही है। बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे मो़ इकबाल अंसारी का कहना है कि 28 वर्ष तक चले इस मामले को अब खत्म कर देना चाहिए। इकबाल अंसारी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवाद में गत वर्ष नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद गड़े मुर्दे नहीं उखाड़े जाने चाहिए और विवाद भूलकर मुल्क की तरक्की में लगना चाहिए। जो साक्ष्य है वह सीबीआई के पास है। हम चाहते हैं कि 28 साल हो गये यह मसला खत्म कर देना चाहिए। इस मामले में कुछ लोग इस दुनिया में नहीं है। कुछ लोग बुजुर्ग हो गये हैं। ऐसे में इस मसले को खत्म कर देना चाहिए। जो होना था वह हो चुका है। राममंदिर और बाबरी का फैसला आ चुका है। हिन्दू-मुस्लिम को बराबर सम्मान भी मिला है। हमें संविधान और कानून पर पूरा भरोसा है।
उन्होंने मथुरा और काशी के विवाद पर कहा यह वही लोग हैं जो हिंदू मुस्लिम को लड़ाना चाहते हैं। सरकार ने पहले ही तय किया है कि अब नया विवाद मंदिर मस्जिद का नहीं किया जाएगा तो अब इस तरीके का विवाद क्यों शुरू किया जा रहा है। उनका कहना है कि देश को ऐसे विवाद से कहीं अधिक रोजगार, आर्थिक मजबूती, राष्ट्रीय एवं सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर बनाने की जरूरत है।
ज्ञात हो कि अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को ढहाए गए विवादित ढांचे के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत बुधवार को फैसला सुनाने जा रही है। इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ भाजपा नेता लालष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार समेत 32 आरोपी हैं। 28 वर्ष तक चली सुनवाई के बाद ढांचा विध्वंस के आपराधिक मामले में फैसला सुनाने के लिए सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस.के. यादव ने सभी आरोपियों को तलब किया है। हालांकि कई आरोपी कोर्ट में पेश नहीं होंगे। वही, फैसले को लेकर रामनगरी की सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।