ताजा खबर
-अमन द्विवेदी
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गणतंत्र दिवस पर एनसीसी छात्रों के 'अल्लाह-हू-अकबर' नारे लगाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
वायरल वीडियो में एनसीसी की यूनिफ़ॉर्म पहने हुए बहुत से कैडेट एक साथ नारेबाज़ी करते दिख रहे हैं. पहले एक छात्र 'एएमयू ज़िंदाबाद' का नारा लगाता है,सभी छात्र उसका साथ देते हुए नारा दोहराते हैं. इसके बाद वह छात्र नारा लगाता है- नारा-ए-तक़बीर जिसके साथ सारे कैडेट 'अल्लाह-हू-अकबर' कह कर इस नारे को पूरा करते हैं.
वीडियो वायरल होने पर कार्रवाई का निर्देश
अलीगढ़ के एसपी सीटी कुलदीप ने मीडिया से कहा है, “एएमयू का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें छात्र नारेबाज़ी करते नज़र आ रहे हैं. यह वीडियो यूनिवर्सिटी और उसमें पढ़ने वाले छात्रों से संबंधित है, इस मामले में यूनिवर्सिटी को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए संज्ञानित कर दिया गया है.”
यूनिवर्सिटी ने शुरू की मामले की जांच
एएमयू के प्रॉक्टर प्रोफ़ेसर वसीम अली ने बताया कि “हमारा कार्यक्रम पूरा ख़त्म हो चुका था. ये लड़के बाहर निकल रहे थे. मेन एग्ज़िट गेट के पास ये लड़के खड़े थे. उसमें से एक लड़के ने ये नारा लगाया है जिसका वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो के ऊपर लोगों की आपत्ति आ रही है. मामले की जांच प्रशासन की तरफ़ से की जा रही है. छात्र की पहचान होने पर उसके ख़िलाफ़ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.” (bbc.com/hindi)
-कनक तिवारी
बुद्धिपुत्रों को आत्मश्लाघा के दलदल में डालना एक कुत्सित सरकारी षड्यंत्र है। इस संबंध में भारत सरकार के गृह मंत्रालय की निर्देशावली भी पब्लिक ऑडिट मांगती है। संविधान के अनुच्छेद 18(1) में लिखा है" राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा"। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संविधान के मूल अंग्रेजी पाठ का हिंदी मानक पाठ विद्या संबंधी किया गया है जबकि वह अंग्रेजी में यह कहता है" No title not being a military or academic distinction shall be conferred by the State".। कोई बताए कि अंग्रेजी शब्द डिस्टिंक्शन का हिंदी अनुवाद विद्या संबंधी कैसे हो गया ? उसे तो प्रावीण्य होना चाहिए था। अर्थात अंग्रेजी में डिस्टिंक्शन और हिंदी में बिना प्रावीण्य पद्म पुरस्कार दिए जा सकते हैं।
पद्म पुरस्कारों का एक सरकारी तिलिस्म और है । इन्हें सरकारी नौकरी की तरह पदोन्नति की सीढ़ियां बना दिया गया है । आज पद्मश्री कल पद्मभूषण परसों पद्म विभूषण । अपने जीवन की बौद्धिक सामाजिक उपलब्धि के कारण यदि कोई पद्मश्री के ही काबिल है। तो वह कुछ वर्षों में पद्म भूषण या फिर पद्म विभूषण होने के लायक प्रोन्नत कैसे हो जाता है। क्या वह अचानक श्रेष्ठ होकर पांच 10 वर्षों में ज्यादा योग्य हो जाता है।
देश के सबसे बुजुर्ग और गांधीवाद के लगभग शीर्ष अध्येता डॉक्टर रामजी सिंह को 93 वर्ष की उम्र में पद्मश्री सम्मान दिया गया । 91 वर्ष के सच्चिदानंद सिन्हा जैसे श्रेष्ठ समाजवादी गांधीवादी ऋषि चिंतक को आज तक सरकार ने अन्य किसी सम्मान के लायक समझा ही नहीं। ऐसे कई समाज विचारक हैं। उनके नाम से सत्ता प्रतिष्ठान की घिग्गी क्यों बंध जाती है? संस्कृति के श्रेष्ठ विद्वान गोविंद चंद्र पांडेय को कुछ वर्ष पहले पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था। उसी वर्ष हिंदी के एक चुटकुलेबाज हंसोड़ कवि कहलाते व्यक्ति को यही सम्मान दिया गया था। देशद्रोह के आरोप से आरोपित व्यक्ति को भी पहले पद्मश्री सम्मान से नवाजा जाने की शिकायतें मिली हैं। सरकारी फाइलों में अपने नाम चुपके चुपके सरकारी अधिकारी या उनके मददगार चिपकाते रहते हैं। जैसे चूहे फाइलें चुपके-चुपके ही उतरते रहते हैं । इस संबंध में जनता के सामने पारदर्शी ढंग से सरकार कभी कोई विचार नहीं करती क्योंकि उसे खतरा होता है कि उसके गलत काम शायद पकड़ लिए जाएंगे । हालांकि सरकारें सब काम गलत नहीं करती हैं।
यदि पद्म सम्मान की प्राथमिक सूचियों को देखा जाए तो उनमें सबसे ज्यादा नाम सरकारी अधिकारियों या उनसे जुड़े हुए लोगों के ही होते हैं। सरकारी संपत्ति, सूचनाओं, संपर्कों, योजनाओं वगैरह के आधार पर जो रचनात्मक कार्य किए भी जाते हैं। उनके लिए समाजचेता सम्मानों की योग्यता या वांछनीयता कैसे बन सकती है? सुना है पद्म सम्मान के लिए आवेदन पत्र भी मंगाए जाते हैं । यदि ऐसा है तब तो उसके कई ठनगन भी होंगे । यह तो शायद अच्छा ही होगा कि आवेदन पत्रों के साथ शपथ पत्र नहीं मंगाए जाते होंगे ।अन्यथा झूठी सूचनाओं का दोषी पाकर फौजदारी मुकदमा भी चलाया जा सकता है। कोई नहीं जानता कि जूरी या निर्णायक मंडल में किसे रखा जाता है और किन आधारों पर । यह तो लोकतांत्रिक उत्कृष्टता का तकाजा है कि यह बात पारदर्शी ढंग से जनता को मालूम होनी चाहिए।
सरकारी सम्मानों का एक अर्थ यह भी है कि किसी की पीठ पर छुरे मारे जाते हैं और किसी की पीठ थपथपाई जाती है। अखबारों में वैवाहिक विज्ञापन प्रकाशित होते रहते हैं। उसमें विवाह के लिए युवक युवतियों के ऐसे फोटो और विवरण छपते हैं। जो सही नहीं होते। खुद का प्रतिष्ठित कारोबार के नाम से देशी दारू के गद्दीदार विज्ञापित होते हैं। सुगठित डीलडौल वाले मधुमेह उच्च रक्तचाप वगैरह के मरीज होते हैं। घर के सभी कार्यों में दक्ष सुलक्षणा चाय तक बनाने में रुचि नहीं रखती। क्या लेखकों कलाकारों बुद्धिजीवियों संस्कृति कर्मियों और समाज सेवकों से इसी तरह की जानकारी या आवेदन सरकार मांगना चाहती होगी? कई इलाकों में सम्मान देने की फूहड़ परंपराएं इस देश में हैं। खेल रत्न या अर्जुन पुरस्कार पाने के लिए अच्छे खिलाड़ियों को भी अपना बायोडाटा लेकर मंत्रियों के दरवाजों पर उनकी ड्यौढि़यों पर खड़े रहना पड़ता है।
कोई भी सरकार अपने विपक्षी नेताओं को विद्यार्थियों को और श्रमिकों की यूनियनों के नेताओं को पद्म सम्मान उसे नवाजना उचित नहीं समझती। पद्म सम्मान मिल जाने का खतरा उनके लिए भी बढ़ता जा रहा है जो कतई लेखक या संस्कृति कर्मी नहीं है लेकिन सरकारी फाइलों में इसी योनि में पैदा कर दिए जाते हैं। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक दो प्रकरणों में पद्मश्री को अपनी उपाधि की तरह लिखने वाले सज्जनों के खिलाफ आदेश दिया था कि यह बंद हो। नहीं तो उनकी पद्मश्री की सम्मान वाली उपाधि वापस ले ली जाए। कई है जिनके लेटर हेड पर विजिटिंग कार्ड पर पद सम्मान का ठसका अंकित रहता है। जिस तरह खलवाट में बाल ढूंढे जाते हैं वैसे ही सरकार कई नए साहित्य परिवार अन्वेषित करती रहती हैं। हर लेखक बड़ा नहीं हो सकता । बड़ा होना ही पुरस्कार पाने का पैमाना नहीं है। लेकिन बड़े पुरस्कार पाने का पैमाना जरूर बन गया है।
केंद्रीय सरकार के कार्यालय साहित्य संस्कृति कला विद्वता समाज सेवा के मीना बाजार कांजी हाउस या रोजगार कार्यालय नहीं है, जहां पंजीयन कराया जाए ।लाइसेंस लिया जाए या मनुष्य की प्रतिभा की फौती पैदाइश का प्रमाण पत्र जारी कराया जाए।
रायपुर, 27 जनवरी। सीएम भूपेश बघेल आज से, अपने पहले कार्यकाल के अंतिम बजट को लेकर विभागीय प्रस्ताव पर मंत्रियों से चर्चा शुरू कर रहे हैं। पहले दिन 4 मंत्रियों से चर्चा है। इनमें महिला बाल विकास मंत्री अनिला भेंड़िया और उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल से शुरूआत कर रहे। इस साल का बजट चुनावी और लोकलुभावन होगा। गणतंत्र दिवस पर सीएम बघेल की घोषणा के तहत बेरोज़गारी भत्ते पर आज फैसला हो जाएगा।
रायपुर, 27 जनवरी। आठ साल पहले रिश्वत लेकर भागते पकड़े गए रहे एफसीआई के क्वालिटी कंट्रोलर को चार साल की सजा सुनाई गई है।
15 हजार रुपए की रिश्वत के मामले में 8 वर्ष बाद 4 वर्ष की कैद और 10, हजार 000 रुपए के अर्थदंड भी दिया है। अर्थदंड की राशि नहीं देने पर 6 माह अतिरिक्त कारावास की सजा सुनाई गई है।
सीबीआई के वरिष्ठ लोक अभियोजक रजत श्रीवास्तव ने बताया कि भिलाई निवासी मोहम्मद सिराजुद्दीन (62) वर्ष 2015 में धमतरी स्थित एफसीआई कार्यालय में क्वालिटी कंट्रोलर के पद पर पदस्थ थे। इस दौरान धमतरी के राइस मिलर ने चावल और धान का इंस्पेक्शन मेमो (सर्टिफिकेट) के लिए संपर्क किया। जहां मोहम्मद सिराजुद्दीन ने उनसे 15, 000 रुपए की रिश्वत मांगी। राइस मिलर द्वारा शिकायत करने पर सीबीआई रायपुर की टीम ने मामले की विवेचना की। साथ ही राइस मिलर को 1 अप्रैल 2015 को रिश्वत की रकम के साथ भेजा था। इस दौरान आरोपी अधिकारी ने अपने सहयोगी कर्मचारी को रिश्वत देने कहा।
रिश्वत लेने के बाद उसका सहयोगी सीबीआई को देखकर वह भागने लगा। उसने रास्ते में रकम भी फेंक दी। टीम ने आधा किमी पीछा कर उसे पकड़ा। इस दौरान पूछताछ में पता चला कि उसने क्वालिटी कंट्रोलर के कहने पर रिश्वत ली थी। सीबीआई ने 29 सितंबर 2015 को चालान पेश किया। जिसके बाद सीबीआई की विशेष न्यायाधीश ममता पटेल ने 4 वर्ष के कारावास और 10 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है।
-निखिल ईनामदार और मोनिका मिलर
धोखाधड़ी के आरोपों के बाद अरबों रुपये का नुकसान झेलने पर भारतीय अरबपति गौतम अदानी ने रिसर्च कंपनी पर पलटवार किया है. वहीं, हिंडनबर्ग ने भी जवाब में कहा है कि वो अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह कायम है.
एशिया के सबसे अमीर आदमी ने उस रिपोर्ट पर पटलवार किया है जिसने उनके फ़र्म पर शेयरों में खुलेआम धांधली और अकाउंटिंग फ्रॉड करने के आरोप लगाए हैं.
गौतम अदानी की कंपनी अदानी ग्रुप ने अमेरिकी निवेश फ़र्म की रिपोर्ट को 'दुर्भावनापूर्ण' और 'चुनिंदा ग़लत जानकारी' पेश करने का आरोप लगाया है.
बुधवार को रिसर्च सार्वजनिक किए जाने के बाद अदानी ग्रुप को अपने शेयरों की क़ीमत में क़रीब 11 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा है.
अब अदानी ग्रुप न्यूयॉर्क की हिंडनबर्ग रिसर्च पर क़ानूनी कार्रवाई के बारे में विचार कर रहा है. उधर हिंडनबर्ग ने कहा है कि वे अपनी रिपोर्ट पर क़ायम हैं और क़ानूनी कार्रवाई का स्वागत करेंगे.
अदानी ग्रुप भारत की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है और उसका कारोबार कमोडिटी ट्रेडिंग, एयरपोर्ट, यूटिलिटी और रिन्यूबल एनर्जी समेत कई क्षेत्रों में फैला है.
फ़ोर्ब्स मैग्ज़ीन के मुताबिक़, इस ग्रुप के मालिक भारतीय अरबपति मिस्टर अदानी दुनिया के चौथे सबसे धनी व्यक्ति हैं.
हिंडनबर्ग 'शॉर्ट सेलिंग' की स्पेलिस्ट है यानी वो ऐसी कंपनियों के शेयर में सट्टा लगाती है जिनके भाव गिरने की अपेक्षा हो.
हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा है कि वो किसी भी तरह के क़ानूनी कार्रवाई के लिए तैयार हैं और अपनी रिपोर्ट पर कायम हैं.
उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, "हमारी रिपोर्ट आने के बाद पिछले 36 घंटों में अदानी ने एक भी गंभीर मुद्दे पर जवाब नहीं दिया है. हमने रिपोर्ट के निष्कर्ष में 88 सटीक सवाल पूछे थे जो कि हमारे मुताबिक कंपनी को अपने आप को निर्दोष साबित करने का मौका देता है."
"अभी तक अदानी ने एक भी जवाब नहीं दिया है. साथ ही जैसा कि हमें उम्मीद थी, अदानी ने धमकी का रास्ता चुना. मीडिया को एक बयान में अदानी ने हमारी 106 पन्नों की, 32 हज़ार शब्दों की और 720 से ज़्यादा उदाहरण के साथ दो सालों में तैयार की गई रिपोर्ट को "बिना रिसर्च का" बताया और कहा कि वो हमारे ख़िलाफ़, "दंडात्मक कार्रवाई के लिए अमेरिकी और भारतीय कानूनों के तहत प्रासंगिक प्रावधानों का मूल्यांकन कर रहे हैं."
"जहां तक कंपनी के द्वारा क़ानूनी कार्रवाई की धमकी की बात है, तो हम साफ़ करते हैं, हम उसका स्वागत करेंगे. हम अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह से कायम हैं, और हमारे ख़िलाफ़ उठाए गए क़ानूनी कदम आधारहीन होंगे."
"अगर अदानी गंभीर हैं, तो उन्हें अमेरिका में केस दायर करना चाहिए. दस्तावेज़ों की एक लंबी लिस्ट है जिसकी क़ानूनी प्रक्रिया के दौरान हम डिमांड करेंगे."
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट
अपनी रिपोर्ट में हिंडनबर्ग ने अदानी पर 'कारपोरेट दुनिया की सबसे बड़ी धोखाधड़ी' का आरोप लगाया है. ये आरोप ऐसे समय आया है जब अदानी ग्रुप के शेयरों की सार्वजनिक बिक्री लॉंच होने वाली है.
रिपोर्ट ने मॉरिसस और कैरिबियन जैसे विदेशी टैक्स हैवेन में मौजूद कंपनियों पर अदानी ग्रुप की मिल्कियत पर सवाल खड़ा किया है.
इस रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि अदानी की कंपनियों पर पर्याप्त क़र्ज़ है जो पूरे ग्रुप को 'वित्तीय तौर पर बहुत जोख़िम वाली स्थिति' में डालता है.
लेकिन गुरुवार को, अदानी ग्रुप ने कहा कि वो हिंडनबर्ग रिसर्च के ख़िलाफ़ भारत और अमेरिका में 'सुधारात्मक और दंडात्मक' कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है.
अदानी ने कहा है कि वो हमेशा से ही 'क़ानूनों का पालन' करते रहे थे.
अदानी की लीगल टीम के ग्रुप हेड जतिन जालुंधवाला ने कहा, "रिपोर्ट ने भारतीय शेयर बाज़ार में जो उतार चढ़ाव पैदा किया है, वो बहुत चिंताजनक है और भारतीय नागरिकों के लिए अनचाही पीड़ा का सबब बना है."
उन्होंने कहा, "साफ़ है कि ये रिपोर्ट और इसके अप्रमाणित तथ्य इस तरह पेश किए गए कि इसका अदानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों की क़ीमत पर बुरा असर पड़े क्योंकि हिंडनबर्ग रिसर्च ने खुद ये माना है कि अदानी के शेयरों के गिरने से उसको फ़ायदा पहुंचेगा."
ग्रुप की फ़्लैगशिप फ़र्म, अदानी एंटरप्राइज़ेज के शेयरों की बिक्री शुक्रवार से शुरू होनी है.
हिंडनबर्ग का जवाब
गुरुवार को अदानी समूह की ओर जारी बयान के बाद हिंडनबर्ग ने भी जवाब दिया है.
हिंडनबर्ग ने अपने बयान में कहा, "अदानी ने हमारे द्वारा उठाए गए एक भी मुद्दे को संबोधित नहीं किया है. हमने अपनी रिपोर्ट में 88 सवाल पूछे थे. अब तक अदानी ने एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया है."
अदानी ग्रुप द्वारा क़ानूनी कार्रवाई की बात के जवाब में हिंडनबर्ग ने कहा, "क़ानूनी कार्रवाई का हम स्वागत करेंगे. हम अपनी रिपोर्ट पर क़ायम हैं और हमारा मानना है कि हमारे ख़िलाफ़ उठाया गया कोई भी कानूनी कदम 'अयोग्य' साबित होगा."
"अगर अदानी गंभीर हैं तो उन्हें हमारे ख़िलाफ़ अमेरिका में केस फ़ाइल करना चाहिए जहां हमारे दफ़्तर हैं. हमारे पास उन दस्तावेज़ों की लंबी सूची है जिनकी मांग हम 'लीगल डिस्कवरी प्रोसेस' में करेंगे."
राजनीतिक प्रतिक्रिया
उन विपक्षी राजनेताओं ने इस रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देने में देरी नहीं की जो लंबे समय से ये आरोप लगाते रहे हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नज़दीकियों के कारण अदानी लाभान्वित होते रहे हैं.
शिव सेना की नेता और सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट किया है, "सार्वजनिक हो चुकी विस्तृत रिसर्च के मद्देनज़र, ये महत्वपूर्ण है कि भारत सरकार इन आरोपों का संज्ञान ले."
दक्षिण भारत के एक अन्य लोकप्रिय राजनेता केटी रामाराव ने भारत की जांच एजेंसियों और बाज़ार नियामक से अदानी ग्रुप की गतिविधियों की जांच शुरू करने की मांग की है.
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि नियामकों की ओर से कोई भी स्वतंत्र कार्रवाई शुरू करने की कम ही संभावना है.
गवर्नेंस मुद्दों पर निवेशकों को सलाह देने वाली कंसल्टेंसी 'इन-गवर्न रिसर्च' के संस्थापक और मैनेजिंग डायरेक्टर श्रीराम सुब्रमण्यम ने कहा, "सिक्युरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ़ इंडिया यानी सेबी (भारत में लिस्टेड कंपनियों का नियमन करने वाली संस्था) तभी कार्रवाई करेगी जब उसे विशेष शिकायत भेजी जाएगी. और इस मामले में ऐसा नहीं है."
उनके मुताबिक, "रिपोर्ट में कई आरोप लगाए गए हैं जो अतीत में रेगुलेटरी स्क्रूटनी का विषय रहे हैं."
बीबीसी ने बाज़ार नियामक से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
वित्तीय बाज़ार के विश्लेषक अम्बरीश बलिगा ने कहा कि, "ऐसा दिखता है कि शुक्रवार को 2.4 अरब डॉलर के पब्लिक शेयर की बिक्री के लिए अदानी ग्रुप के आगे बढ़ने का रास्ता साफ़ है लेकिन रिपोर्ट में लगाए गए आरोप निवेशकों पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं."
लेकिन इस रिपोर्ट से अदानी ग्रुप को भविष्य में ख़ासा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
न्यूज़ सर्विस ब्लूमबर्ग में लेख लिखने वाले एंडी मुखर्जी ने कहा, "अदानी से परे, यह घटना व्यापक भारतीय बाज़ार की ईमानदारी को लेकर कई सवाल खड़े करती है, जो वित्तीय वैश्विकरण और राजनीतिक राष्ट्रवाद के बीच दबाव में फंसी हुई है."
वो पूछते हैं, "क्या सिक्युरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया आगे बढ़ने और बाज़ार को साफ़ सुथरा करने के लिए जनता के असंतोष का इंतज़ार कर रही है?" (bbc.com/hindi)
आरपीएफ के जवान और प्रतिभावान खिलाड़ी सम्मानित
बिलासपुर, 27 जनवरी। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के मुख्यालय सहित सभी मंडलों पर 74वां गणतंत्र दिवस पूरी गरिमा व पारंपरिक रूप से मनाया गया । दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का मुख्य कार्यक्रम एन.ई.इंस्टीट्यूट मैदान पर आयोजित किया गया, जहां महाप्रबंधक आलोक कुमार ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
महाप्रबंधक ने रेल सुरक्षा बल के जवानों, सिविल डिफेंस के कार्यकर्ताओं, सेन्ट जॉन्स एम्बुलेंस, एन.सी.सी. एवं स्काउट एण्ड़ गाईड के ट्रुपों द्वारा आकर्षक मार्च- पास्ट की सलामी ली ।
मुख्य अतिथि आलोक कुमार ने कहा कि 169 वर्षो से भी अधिक समय से भारतीय रेलवे ने निरंतर देश की एकता, अखंडता तथा जन सेवाओं को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। देश की गति, प्रगति, उन्नति तथा समृद्धि में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे एक महत्वपूर्ण सहभागी रहा है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे सर्वाधिक माल लदान करने वाले जोनों में से एक है । वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक 170 मिलियन टन से अधिक की लोडिंग कर ली गई है । यह सब आप सभी रेलकर्मियों के सम्मिलित प्रयासों से ही संभव हो सका है। मध्य भारत की पहली और देश की 6वीं वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन का शुभारंभ बिलासपुर - नागपुर के बीच 11 दिसंबर 2022 को शुरू हो चुका है। उन्होंने एसईसीआर में विगत वर्ष हासिल हुई उपलब्धियों पर अपने उद्बोधन में जानकारी दी।
इस समारोह में बच्चों के लिए फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया था । इस अवसर पर आरपीएफ के जवानों द्वारा बाइक शो द्वारा हैरतअंगेज करतब के साथ ही स्कूली बच्चों द्वारा फ़ैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता एवं अन्य देशभक्तिपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। इस दौरान महाप्रबंधक ने रेलवे सुरक्षा बल के 8 बल सदस्यों अति उत्कृष्ट सेवा पदक तथा 3 स्कूली बच्चों को भी राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय खेलों में उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया ।
गणतन्त्र दिवस के शुभ अवसर पर रेलवे सेंट्रल हॉस्पिटल, बिलासपुर में मरीजों के परिजनों के विश्राम एवं ठहरने केलिए डोरमेट्री की शुरुआत की गई। सेंट्रल हॉस्पिटल बिलासपुर में रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया गया । इस अवसर पर मुख्यालय एव मण्डल के अधिकारी तथा बड़ी संख्या में कर्मचारी उपस्थित थे ।
बिलासपुर, 27 जनवरी। गणतंत्र दिवस पर छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, पुराना उच्च न्यायालय भवन के प्रांगण में मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी ने ध्वजारोहण किया।
इस अवसर पर न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल, पी. सैम कोशी, संजय अग्रवाल, अरविंद सिंह चंदेल, रजनी दुबे, नरेन्द्र कुमार व्यास, नरेश कुमार चन्द्रवंशी, दीपक कुमार तिवारी, सचिन सिंह राजपूत, राकेश मोहन पाण्डेय, राधाकृष्ण अग्रवाल तथा पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति धीरेन्द्र मिश्रा विशेष रूप से उपस्थित थे।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल अरविंद कुमार वर्मा एवं रजिस्ट्री के अन्य न्यायिक अधिकारी, छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक प्रशिक्षण एकेडेमी की डायरेक्टर सुषमा सावंत एवं अन्य अधिकारी, अशोक कुमार साहू, जिला न्यायाधीश रमाशंकर प्रसाद प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, उच्च न्यायालय एवं जिला न्यायालय बिलासपुर के न्यायिक अधिकारी, उच्च न्यायालय एवं जिला न्यायालय के अधिवक्ता, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव आनंद प्रकाश वारियाल, अवर सचिव कामिनी जायसवाल एवं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिकारी, कर्मचारी उपस्थित थे।
-फ़ैसल मोहम्मद अली
जजों की नियुक्ति और तबादले को लेकर सरकार और न्यायपालिका में तकरार इस हद तक बढ़ चुकी है कि केंद्रीय कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं जिनसे लगता है कि दरार भरने की जगह चौड़ी होती जा रही है.
सरकार की मानें तो कॉलेजियम जजों की नियुक्ति और तबादले के मामले में 'संविधान से परे' एक व्यवस्था है, जबकि न्यायपालिका का मानना है जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार का दख़ल 'संविधान की मूल भावना' के प्रतिकूल है.
इस मामले में दो तरह की विचारधाराएँ सामने आती हैं, पहला ये कि सरकार न्यायपालिका को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश कर रही है जो संविधान के अधिकारों के विकेंद्रीकरण के सिद्धांत के विरुद्ध है. दूसरी विचारधारा ये है कि न्यायपालिका में भाई-भतीजावाद और निरंकुश मनमानी है जिसे ख़त्म किया जाना ज़रूरी है.
ऐसे में यह समझना कठिन हो गया है कि आख़िर दोनों में से कौन सही है और ऐसे विवाद का समाधान क्या हो सकता है?
कॉलेजियम पर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने, क्या है मामला?
क्या सरकार वाक़ई लाचार है?
न्यायपालिका को समझने वाले कई लोगों का मानना है कि जजों को चुनने की जो प्रक्रिया जारी है उसमें सरकार लाचार नहीं है बल्कि उसने जिन नियुक्तियों या तबादलों को कॉलेजियम की सिफ़ारिशों के बाद भी रोकना चाहा है, उसे रोका है.
मसलन, अक़ील कुरैशी का ही मामला ले लें या फिर सौरभ कृपाल की नियुक्ति के मामले पर नज़र डालें.
क़ानूनी मामलों के जानकार और लेखक मनोज मिट्टा से बीबीसी ने पूछा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच हाल के दिनों में जजों की नियुक्तियों और तबादलों को लेकर जिस तरह से तनाव बढ़ता जा रहा है उससे सुलझाने का रास्ता क्या है?
कॉलेजियम की सिफ़ारिश के बावजूद जज अकील क़ुरैशी को सुप्रीम कोर्ट में नहीं नियुक्त किया गया, बांबे हाई कोर्ट की जगह उन्हें त्रिपुरा भेजा गया. वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को हाई कोर्ट का न्यायधीश नियुक्त करने की फ़ाइल भी सरकार रोक कर बैठी है.
मनोज मिट्टा का कहते हैं, "सरकार जिस तरह का मैसेज देने की कोशिश कर रही है, वैसा बिल्कुल नहीं है, मौजूदा व्यवस्था में वो निहत्थी नहीं है. कॉलेजियम की एकतरफ़ा मनमानी चल रही है, और चीफ़ जस्टिस और चार जज मिलकर जो तय करते हैं वही अंतिम लकीर होती है, ऐसा भी नहीं है."
इस तरह के उदाहरणों का ज़िक्र सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने भी अपने लेख में किया है जिसमें उन्होंने जस्टिस कुरैशी और कई दूसरे उदाहरणों का हवाला देकर कहा है कि सरकार जिन नियुक्तियों के विरुद्ध रही है या तो वो चुपकर उस पर बैठ गई है, कई बार तो सरकार ने भेजे गए नामों में से एक या दो को नियुक्त कर दिया है और बाक़ी नाम वापस भेज दिए हैं.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार 21 नियुक्तियों की सिफ़ारिशों पर साल भर से अधिक से समय से फ़ाइलों को रोककर बैठी है.
भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को नियुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और चार सीनियर जजों का एक ग्रुप है जो बातचीत करके जजों की नियुक्ति, तबादले वग़ैरह के लिए क़ानून मंत्री को सिफ़ारिश भेजता है, जिसके माध्यम से ये प्रधानमंत्री के पास जाता है, और उनकी सलाह पर राष्ट्रपति फिर इन पर अपना निर्णय लेते हैं.
ये व्यवस्था 1993 से जारी है लेकिन पिछले साल से केंद्र सरकार ने कॉलेजियम में जारी कथित भाई-भतीजावाद, चंद लोगों की मनमानी जैसे मुद्दों पर सवाल उठाए हैं, जिस पर बहुत सारे लोग सहमत हैं, लेकिन वो सरकार की मंशा और वह भविष्य में अपनी जैसी भूमिका चाहती है, उस पर भी सवाल उठ रहे हैं.
कॉलेजियम सिस्टम को लेकर जो प्रश्न उठाए गए हैं वो पारदर्शिता को लेकर है, क्योंकि किसी जज को किस आधार पर नियुक्त किया जा रहा है ये लोगों को मालूम नहीं होता.
सरकार की मंशा पर सवाल इस बात को लेकर हैं कि पिछली सरकारों ने, मगर ख़ास तौर पर मोदी हूकूमत ने जिस प्रकार से चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई वग़ैरह को अपने हिसाब से इस्तेमाल किया है वो न्यायपालिका को लेकर भी वही करेगी.
मनोज मिट्टा बताते हैं कि रोहिंटन मिस्त्री कॉलेजियम के सदस्य थे, और मनोज मिट्टा के मुताबिक़ चाहते थे कि अकील कुरैशी जैसे अच्छे जज को सुप्रीम कोर्ट में भेजा जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
सरकार और न्यायपालिका के बीच जारी रस्साकशी में सौरभ कृपाल ने भी बयान दिया है, उन्होंने कहा है कि हर जज का अपना नज़रिया हो सकता है इसका ये मतलब नहीं कि वो फ़ैसला देते समय पक्षपाती हो जाएगा क्योंकि उसे अंत में निर्णय संविधान के आधार पर देना है.
सरकार की तरफ़ से न्यायपालिका पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं, जो लोग सवाल उठा रहे हैं उनमें उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी शामिल हैं जो पेशे से वकील रहे हैं.
ताज़ा सवाल केंद्रीय क़ानून मंत्री किरण रिजुजू ने उठाया है जिसमें उन्होंने एतराज़ जताया है कि सरकार जिन जजों के नामों पर आपत्ति जता रही है और उसकी वजह बता रही है उसे सुप्रीम कोर्ट ने जगज़ाहिर कर दिया है जो "बेहद ख़तरनाक और आपत्तिजनक है."
सरकार की आपत्ति हाई कोर्ट में तीन जजों की नियुक्ति को लेकर थी.
पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में किरण रिजुजू ने कहा कि रॉ और इंटेलिजेंस ब्यूरो की गोपनीय और संवेदनशील रिपोर्टों पर खुली चर्चा देशहित में नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जनवरी के तीसरे सप्ताह में पाँच व्यक्तियों के नाम हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए दोबारा सरकार को भेजे थे, तीन मामलों में सरकार को एतराज़ था, सरकार की इन आपत्तियों को कॉलेजियम ने गोपनीय नहीं रखा.
सरकार की तरफ़ से जो आपत्तियां थीं वो एक व्यक्ति के लैंगिक रुझान को लेकर थी, तो दूसरे के बारे में कहा गया था कि उनका पार्टनर विदेशी है, एक के सोशल मीडिया पोस्ट पर आपत्ति की गई थी जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की थी.
सरकार की नीयत पर भी सवाल
पंजाब से कांग्रेस लीडर पवन बंसल का कहना था कि सरकार 'न्यायालय को अपने टूल के तौर पर इस्तेमाल' करना चाहती है वरना उसकी बहुत सारी नियुक्ति की सिफ़ारिशों को वो रोककर बैठी है.
पूरी बात को अपनी व्यक्तिगत राय बताते हुए वो कहते हैं कि हमारे समय में भी सरकार और न्यायपालिका में तनाव हुए लेकिन उसमें इस तरह की खटास नहीं थी.
कांग्रेस पार्टी ने भी जजों की नियुक्ति और तबादले से संबंधित कानून--नेशनल जुडिशिएल अप्वाइंटमेंट्स कमीशन एक्ट--का समर्थन किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे असंवैधानिक बताते हुए ख़ारिज कर दिया था.
तब ये समझा गया था कि कॉलेजियम व्यवस्था में बदलाव के लिए विपक्षी दल भी उतने ही तैयार हैं जितना सरकार इसे चाहती है लेकिन देश की सबसे ऊंची अदालत के नकारने के बाद मामला कुछ सालों के लिए शांत-सा हो गया था.
मनोज मिट्टा कहते हैं कि सरकार जिस तरह से पूरे मामले तकऱीबन सात सालों के बाद फिर से गरमाने की कोशिश कर रही है और वो भी तब जब वर्तमान मुख्य न्यायधीश आज़ाद फ़ैसले लेते दिख रहे हैं, पूरे मामले पर संदेह खड़ा करता है.
वो कहते हैं कि मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल का होगा.
दूसरे लोगों की तरह मनोज मिट्टा भी इस बात से सहमत हैं कि जजों की नियुक्ति, तबादले वग़ैरह की व्यवस्था में बदलाव की ज़रूरत है लेकिन कहते हैं कि इसका जवाब कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल करना नहीं है, जैसी मांग क़ानून मंत्री ने उठाई है.
पवन बंसल का भी कहना है कि सरकार क़ानून लाए, जिस पर सरकार और विपक्ष में गंभीर चर्चा हो, इस पर संसदीय समीति में चर्चा, लॉ कमीशन इसे देखे और फिर क़ानून पारित हो.
कॉलेजियम विवाद पर क़ानून मंत्री और केजरीवाल भिड़े, क्या है मामला
फ़ाली नरीमन कहते हैं कि 2003 में जजों की नियुक्ति और तबादले वग़ैरह को लेकर संसद में लाए गए बिल के आधार पर कार्यपालिका और न्यायपालिका में जारी वर्तमान रस्साकशी का हल निकल सकेगा.
जाने माने न्यायविद् और मशहूर वकील फ़ाली नरीमन सरकार को सलाह देते हैं कि वो 2003 में इसी जजों की नियुक्ति और तबादले वग़ैरह को लेकर संसद में लाए गए बिल को पढ़ें और उसी के आधार पर कार्यपालिका और न्यायपालिका में जारी वर्तमान रस्साकशी का हल निकल सकेगा.
फ़ाली नरीमन का कहना था कि इस मसौदे को फिर से संसद में लाकर जल्द से जल्द इसे पारित किया जाए और कॉलेजियम की जगह समिति सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट से जुड़े मामलों पर फ़ैसला लेना शुरू करे.
अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने क़ानून के लिए जो मसौदा तैयार किया था उसमें सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर जजों को मिलाकर पांच सदस्यीय एक समिति हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से संबंधित निर्णय लेती. इसमें फ़ैसला बहुमत के आधार पर होना था.
समिति में दो अन्य व्यक्तियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता को मिलकर करनी थी.
इंडिया टुडे टीवी के लिए दिए गए एक इंटरव्यू में फ़ाली नरीमन ने कहा कि ये बिल इसलिए पारित नहीं हो सका क्योंकि चुनाव सिर पर आ गए जिसके कारण संसद को भंग करना पड़ा था.
इस विशेष साक्षात्कार में फ़ाली नरीमन ने ये भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन को असंवैधानिक बताते हुए ख़ारिज कर दिया था, उसमें इस तरह का प्रावधान था कि सरकार की ओर से नियुक्त दो लोगों को वीटो हासिल था, यानी वो अगर नियुक्ति, तबादले और दूसरे मामलों से सहमत नहीं होते तो उसे ख़ारिज कर सकते थे.
चर्चा के दौरान किरण रिजुजू का वो बयान भी आया जिसमें उन्होंने कहा था कि जजों को चुनाव नहीं लड़ना होता है, नरीमन का कहना था कि अमेरिका में फ़ेडरल जजों के चुनाव की व्यवस्था है मगर वो सिस्टम ठीक से काम नहीं कर पा रहा है इसलिए वहाँ इससे दूर हटने की बात उठ रही है.
नरीमन की सलाह है कि मुख्य न्यायाधीश और प्रधानमंत्री या क़ानून मंत्री के बीच लगातार संवाद होते रहना चाहिए.
फ़ाली नरीमन ने ये स्वीकार किया कि ये जजों का काम नहीं है कि वो जजों की नियुक्ति करें.
ये सवाल सरकार भी उठाती रही है कि दुनिया भर में ऐसा कहीं नहीं होता कि न्यायधीश ख़ुद न्यायधीशों को नियुक्त कर रहे हों लेकिन लोकतंत्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता की अहमियत भी कम नहीं है, ऐसे में कोई समाधान दोनों बातों के सामंजस्य से ही निकल सकेगा. (bbc.com/hindi)
रायपुर, 26 जनवरी। गणतंत्र दिवस के मौके पर स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट माना को केसरिया,सफेद और हरे रंग की एल ई डी लाइट्स से रौशन किया गया। पूरा परिसर तिरंगे का सा आवरण लिए हुए है।
फतेहपुर (उप्र), 26 जनवरी। फतेहपुर जिले के हुसैनगंज थाना क्षेत्र के चितिसापुर गांव में बुधवार की रात एक व्यक्ति ने पत्नी से झगड़े के बाद कथित तौर पर फावड़े से अपने तीन साल के बेटे की हत्या कर उसका शव खेत में दफना दिया।
पुलिस ने आरोपी व्यक्ति को बृहस्पतिवार को गिरफ्तार कर लिया। यह जानकारी एक पुलिस अधिकारी ने बृहस्पतिवार को दी।
नगर क्षेत्र के पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) वीर सिंह ने बताया कि हुसैनगंज थाना के चितिसापुर गांव के सुहाई बाग में एक व्यक्ति ने शराब के नशे में अपनी पत्नी से झगड़ा करने के बाद अपने तीन साल के बेटे राज की कथित तौर पर फावड़े से हत्या कर दी और उसका शव खेत में दफना दिया।
पत्नी की शिकायत पर आरोपी चन्द्रकिशोर लोधी को बृहस्पतिवार को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ की जा रही है।
चन्द्रकिशोर की निशानदेही पर बच्चे के शव को खेत से निकालकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। (भाषा)
नयी दिल्ली, 26 जनवरी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था 24 सप्ताह से ज्यादा होने की परिस्थिति में उसकी मेडिकल जांच के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न की पीड़िता पर मातृत्व की जिम्मेदारी थोपना उसके सम्मानित जीवन जीने के मानवाधिकार के उल्लंघन के समान है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन शोषण करने वाले पुरुष के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को बाध्य करना अकथनीय दुखों का कारण बनेगा और बलात्कार/यौन शोषण के वे मामले जहां पीड़िता गर्भवती हो जाती है बहुत गहरा जख्म देते हैं क्योंकि ऐसे में स्त्री को हर पल अपने साथ हुए उस हादसे के साये में जीना पड़ता है।
उच्च न्यायालय यौन शोषण के कारण गर्भवती हुई 14 साल की बच्ची द्वारा अपने 25 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने का अनुमति मांगने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। सामान्य रूप से 24 सप्ताह तक के भ्रूण का गर्भपात कराया जा सकता है, उससे ज्यादा उम्र के भ्रूण का गर्भपात कराने के लिए अदालत की अनुमति आवश्यक है।
अदालत को बताया गया है बच्ची का परिवार निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करता है और मां के काम पर जाने के बाद बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने बच्ची की मां की स्वीकृति और बच्ची की जांच करने वाले मडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर नाबालिग के गर्भपात की अनुमति दे दी।
अदालत ने बच्ची को शुक्रवार को राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में सक्षम प्राधिकार के समक्ष पेश होने को कहा है ताकि उसका गर्भपात किया जा सके।
यह रेखांकित करते हुए कि 24 सप्ताह या उससे ज्यादा की गर्भावस्था के मामले में मेडिकल बोर्ड द्वारा यौन उत्पीड़न पीड़ित की मेडिकल जांच कराने का आदेश पारित करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण समय गुजर जाने से उसके जीवन को खतरा बढ़ गया है, उच्च न्यायालय ने जांच अधिकारियों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए।
ये दिशा-निर्देश पुलिस आयुक्त के माध्यम से यौन उत्पीड़न पीड़िता के मेडिकल परीक्षण में शामिल अधिकारियों सहित सभी जांच अधिकारियों को मुहैया कराए जाएंगे, इसमें गर्भावस्था का पता लगाने के लिए पेशाब की जांच करना अनिवार्य होगा, क्योंकि देखा गया है कि कई मामलों में यह जांच नहीं की जाती है।
अदालत ने कहा कि अगर यौन उत्पीड़न पीड़िता बालिग है और गर्भपात करना चाहती है तो, जांच एजेंसी को सुनिश्चित करना होगा कि महिला/युवती को उसी दिन मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश किया जाए।
अदालत ने कहा, ‘‘अगर नाबालिग यौन उत्पीड़न पीड़िता गर्भवती है, अगर उसके कानूनी अभिभावक की सहमति है और अभिभावक अगर गर्भपात कराना चाहते हैं तो पीड़िता को मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश किया जाए।’’
अदालत ने कहा, अगर गर्भपात के लिए अदालती अनुमति की जरूरत है तो ऐसी स्थिति में परीक्षण के बाद रिपोर्ट संबंधित अधिकारियों के समक्ष रखी जाए ताकि संबंधित अदालत के पास समय बर्बाद ना हो और वह जल्दी आदेश पारित करने की स्थिति में हो।
अदालत ने कहा कि एमटीपी कानून (चिकित्सकीय सहायता से गर्भपात) के प्रावधानों 3(2सी) और 3(2डी) में कहा गया है कि राज्य सरकार या संघ शासित प्रदेश को अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड का गठन सुनिश्चित करना होगा।
अदालत ने कहा, ‘‘अदालत को सूचित किया गया है कि प्रत्येक जिले के अस्पतालों में ऐसे बोर्ड गठित नहीं है, जिससे जांच अधिकारियों और गर्भपात कराने की इच्छुक या जांच को लेकर पीड़िता को भी परेशानी होती है।’’
अदालत ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा है एमपीटी कानून के प्रावधानों 3(2सी) और 3(2डी) में दिए गए निर्देशों का पालन हो, ऐसे सभी सरकारी अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड का गठन हो जहां एमटीपी केन्द्र हैं और पहले से ऐसे बोर्ड का गठन अनिवार्य होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि यह सोच कर ही रूह कांप जाती है कि ऐसे भ्रूण को अपने गर्भ में पाल रही पीड़िता पर क्या गुजरती होगी, जो हर पल उसे अपने साथ हुए बलात्कार का याद दिलाती है।
अदालत ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़िता को मातृत्व की जिम्मेदारी से बांधना उसे सम्मान से जीने के मानवाधिकार से वंचित करने के समान होगा क्योंकि उसे अपने शरीर के संबंध में फैसले लेने का अधिकार है जिसमें उसे मां बनने के लिए ‘‘हां या ना ’’ कहने का अधिकार भी शामिल है। (भाषा)
पटना/नालंदा, 26 जनवरी। सुपर30 कोचिंग सेंटर के संस्थापक और इस वर्ष बिहार के तीन पद्मश्री पुरस्कार विजेताओं में से एक आनंद कुमार ने लोगों को कठिन समय में समर्थन के लिए धन्यवाद दिया है।
कुमार को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। वहीं राज्य के दो अन्य - सुभद्रा देवी और कपिल देव प्रसाद - को कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए इस सम्मान के लिए चुना गया है।
सुपर 30 की स्थापना 2002 में गणित के शिक्षक कुमार ने की थी। यह कार्यक्रम हर वर्ष समाज के आर्थिक रूप से वंचित वर्ग से 30 प्रतिभाशाली उम्मीदवारों का चयन करता है और उन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा जेईई-मेन और जेईई-एडवांस्ड के लिए प्रशिक्षित करता है।
कुमार ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मैं इस सम्मान से अभिभूत हूं। मैं केंद्र और उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने कठिन समय में हमेशा मेरा साथ दिया।’’
उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार मिलने के बाद उनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है और उन्हें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से सुपर 30 का पूरे देश में विस्तार करना है।
नालंदा निवासी 69 वर्षीय कपिल देव प्रसाद को भी रेशम और सूती साड़ियों पर 52 छोटे फूलों को तराशने की सदियों पुरानी कला 'बावन बूटी' साड़ी परंपरा को लोकप्रिय बनाने के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है। उन्होंने प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए सरकार और अपने शुभचिंतकों को धन्यवाद दिया।
उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मेरे पास शब्द नहीं हैं..यह पुरस्कार 'बावन बूटी' साड़ी परंपरा से जुड़े सभी कारीगरों और नालंदा जिले के मेरे बसवां बीघा गांव के सभी निवासियों को समर्पित है।’’
प्रसाद ने कहा कि वह इस पारंपरिक कला के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। नेपुरा और बसवां बीघा के गांवों के 100 से अधिक परिवारों की महिलाएं आजीविका के लिए सदियों पुराने इस शिल्प पर निर्भर हैं। (भाषा)
नयी दिल्ली, 26 जनवरी। भारत ने बृहस्पतिवार को अपना 74 वां गणतंत्र दिवस मनाया। साथ ही, राजपथ का नाम बदले इसे कर्तव्य पथ किए जाने के बाद पहली बार यहां परेड़ आयोजित की गई।
पिछले साल राजपथ का नाम बदलने के साथ-साथ इसे संवारा भी गया है।
भारत 26 जनवरी, 1950 गणतंत्र बना था और 1951 से, इस ऐतिहासिक पथ पर गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित किए जा रहे हैं। इसे सितंबर 2022 की शुरुआत तक आधिकारिक तौर पर राजपथ के नाम से जाना जाता था।
केंद्र सरकार ने इसका नाम बदल दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 सितंबर को राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक के सड़क के इस हिस्से-कर्तव्य पथ- का उद्घाटन किया। इस साल की गणतंत्र दिवस परेड आयोजित होने के साथ ही दिल्ली के ऐतिहासिक क्षेत्र और उससे जुड़े इतिहास का भी एक पन्ना भी पलट गया।
भारत में स्वतंत्रता के बाद के युग में पले-बढ़े लोगों के लिए, राजपथ गणतंत्र दिवस समारोह का पर्याय बन गया था। ऐसा वार्षिक औपचारिक परेड के चलते था जो हर 26 जनवरी को आयोजित की जाती थी, जिसमें कई राष्ट्राध्यक्ष और अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां कार्यक्रम में प्रमुख मेहमान के रूप में शामिल होते थे। हालांकि 26 जनवरी, 2023 कई मायनों में भारत के लिए एक साधारण और असाधारण दोनों तरह का दिन था।
सामान्य रूप से यह एक और गणतंत्र दिवस समारोह था, लेकिन एक तरह से असाधारण भी था क्योंकि आयोजन स्थल को लिखित रूप में और कार्यक्रम के कमंटेटर एवं कई अन्य लोगों द्वारा मौखिक रूप से ‘कर्तव्य पथ’ के रूप में उल्लेखित किया गया।
पिछले साल सितंबर में केंद्र सरकार द्वारा राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किये जाने पर लोगों की ओर से मिली-जुली प्रतिक्रिया आई थी। विद्वानों और इतिहासकारों के एक वर्ग ने इसकी आलोचना की थी और आरोप लगाया था कि यह "इतिहास को मिटाने का एक प्रयास" है।
राजपथ के उद्घाटन के दिन, मोदी ने कहा था कि राजपथ भारत की "गुलामी" का प्रतीक है और इसे अब इतिहास के हवाले कर दिया गया है। उन्होंने पुनर्निर्मित मार्ग जनता को समर्पित किया था और इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक प्रतिमा का अनावरण भी किया था।
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने पहले कहा था कि नया खंड पैदल चलने वालों के अधिक अनुकूल होगा। मंत्रालय के अनुसार ऐसा इसलिए क्योंकि पथ के किनारे जो ‘बजरी’ रेत थी, उसकी जगह नया लाल ग्रेनाइट पत्थर बिछा दिया गया है। (भाषा)
भोपाल, 26 जनवरी। पिछले साल सितंबर के मध्य में नामीबिया से लाकर मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े गए आठ अफ्रीकी चीतों में से एक में हेपेटोरेनल (गुर्दे और यकृत से जुड़ा) संक्रमण पाया गया है। एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी है।
उन्होंने कहा कि यह अस्वस्थ चीता मादा है और इसे ‘साशा’ के नाम से जाना जाता है। वह चार साल से थोड़ी अधिक उम्र की है।
मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जे एस चौहान ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘साशा नाम के चीते की हालत में सुधार हुआ है। इसका इलाज तीन पशु चिकित्सकों द्वारा किया जा रहा है और वे नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के साथ लगातार संपर्क में हैं। इसे गुर्दे और यकृत की कुछ समस्याएं हैं।’’
उन्होंने कहा कि उसकी यह समस्या सोमवार को सामने आई। भोपाल स्थित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान के पशु चिकित्सक डॉ. अतुल गुप्ता को तुरंत कूनो राष्ट्रीय उद्यान भेजा गया।
उन्होंने कहा कि हेपेटोरेनल संक्रमण से पीड़ित इस चीता को पृथक रखा गया है और उसका इलाज किया जा रहा है। मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 1952 में भारत में विलुप्त हुए चीतों की आबादी को पुनर्जीवित करने की परियोजना के तहत इन आठ चीतों को 17 सितंबर को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एक मंच से लीवर घुमाकर लकड़ी के पिंजरे के दरवाजे खोलकर विशेष बाड़ों में छोड़ा था। इनमें से पांच मादा एवं तीन नर चीते हैं। (भाषा)
नयी दिल्ली, 26 जनवरी। दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने अरविंद केजरीवाल, उनके मंत्रियों और आम आदमी पार्टी (आप) के 10 विधायकों को यहां शुक्रवार शाम राज निवास में एक बैठक के लिए आमंत्रित किया है, लेकिन मुख्यमंत्री ने इसके लिए निर्धारित समय में बदलाव करने का अनुरोध किया क्योंकि वह पंजाब में होंगे।
उपराज्यपाल का यह न्योता इसलिए मायने रखता है कि उनके कार्यालय और आप सरकार के बीच कई मुद्दों को लेकर तकरार चल रही है, जिनमें दिल्ली सरकार द्वारा अपने शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने का प्रस्ताव भी शामिल है।
उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री शुक्रवार को अपनी साप्ताहिक बैठक करते हैं, लेकिन उपराज्यपाल कार्यालय और आप सरकार के बीच बढ़ते तनाव के कारण इन बैठकों के आयोजन में व्यवधान पड़ गया है।
राज निवास अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को कहा कि मुख्यमंत्री को अपने मंत्रिमंडल सहकर्मियों और आप के 10 विधायकों के साथ 27 जनवरी को शाम चार बजे बैठक के लिए आने को कहा गया है।
केजरीवाल ने एक बयान में न्योते के लिए उपराज्यपाल का शुक्रिया अदा किया, लेकिन कहा, ‘‘मैं कल पंजाब जा रहा हूं। हम माननीय उपराज्यपाल से कोई और समय निर्धारित करने का अनुरोध कर रहे हैं।’’
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, केजरीवाल शुक्रवार को पंजाब में 400 मोहल्ला क्लीनिक का उद्घाटन करेंगे।
केजरीवाल और उनकी पार्टी के विधायकों ने शिक्षकों के प्रशिक्षण के प्रस्ताव को लेकर सक्सेना से मिलने के लिए 16 जनवरी को विधानसभा से राज निवास मार्च किया था।
मुख्यमंत्री करीब एक घंटे तक इंतजार करने के बाद लौट गये थे। उन्होंने दावा किया था कि उपराज्यपाल ने उनसे, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप विधायकों से मिलने से इनकार कर दिया।
हालांकि, सक्सेना ने कुछ दिनों बाद केजरीवाल को लिखे पत्र में इस आरोप को खारिज कर दिया था। वहीं, केजरीवाल ने उपराज्यपाल के पत्र का जवाब देते हुए दोनों पक्षों के बीच बैठक के लिए एक नये प्रस्ताव का सुझाव दिया था।
बाद में आप नेताओं ने दावा किया था कि सक्सेना ने मुख्यमंत्री और आप विधायकों से मिलने से इनकार कर दिया। (भाषा)
ठाणे, 26 जनवरी। शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्घव ठाकरे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरु माने जाने वाले नेता दिवंगत आनंद दिघे की जयंती की पूर्व संध्या पर बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र के ठाणे जिले में एक चिकित्सा शिविर का उद्घाटन किया।
दिघे की लोकप्रियता ने ठाणे को अविभाजित शिवसेना के लिए सबसे सुरक्षित सीट बना दिया था, लेकिन पिछले साल जून में शिंदे की बगावत के बाद क्षेत्र में पार्टी के समर्थन का ज्यादातर हिस्सा उनके (शिंदे) बालासाहेबांची शिवसेना के खाते में चला गया।
ठाकरे के दौरे और शुक्रवार को मनाई जाने वाली दिघे की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित चिकित्सा शिविर को ठाणे जिले में शिवसेना (यूबीटी) को फिर से संगठित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
उन्होंने आनंद मठ में दिघे को पुष्पांजलि अर्पित की। आनंद मठ दशकों से ठाणे में शिवसेना की गतिविधियों का गढ़ रहा है।
इस अवसर पर पिछले साल जून में शिंदे और 39 विधायकों की शिवसेना से बगावत और महा विकास आघाड़ी सरकार के गिरने का हवाला देते हुए ठाकरे ने कहा कि ‘‘धोखे और दल-बदल’’ से शिवसेना और महाराष्ट्र बदनाम हुए हैं।
ठाकरे ने कहा कि बृहस्पतिवार का संक्षिप्त दौरा यहां के लोगों की सेहत का ख्याल रखने के लिए था। इसके साथ ही उन्होंने वादा किया कि वह ठाणे के लोगों के राजनीतिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए जल्द ही जनसभा को संबोधित करने के लिए लौटेंगे।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं संतुष्ट हूं कि मौजूदा बेकार परिस्थितियों के बावजूद, शिवसेना अपने लक्ष्य से नहीं डिगी है। शिवसेना सुप्रीमो (बाल ठाकरे) ने हमें सिखाया है कि 80 प्रतिशत सामाजिक कार्य है, सिर्फ 20 प्रतिशत ही राजनीतिक काम है। सच्चे सैनिक (शिवसैनिक) हमारे साथ हैं।’’
ठाकरे ने कहा कि जो लोग छोड़कर गए हैं उन्होंने खुद को बेचना पसंद किया। उन्होंने लोगों से पूछा कि आपको पता है कि कितने में बिके हैं, इस पर लोगों ने जवाब दिया, ‘‘50 करोड़ रुपये।’’
उन्होंने कहा कि 50 करोड़ रुपये का यह नारा जम्मू-कश्मीर में राहुल गांधी नीत ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान भी सुना जा सकता था और दावा किया कि इसका वीडियो उन्हें पार्टी के राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने दिखाया है।
ठाकरे ने कहा, ‘‘यह नारा पूरे देश में चल रहा है। लेकिन इस प्रक्रिया में महाराष्ट्र और शिवसेना दोनों बदनाम हुए हैं। जो लोग छोड़कर चले गए हैं, उन पर अफसोस जताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सच्चे (शिव) सैनिक मशाल (शिवसेना के ठाकरे गुट का चिह्न) जलाएंगे।’’ (भाषा)
बाराबंकी (उप्र), 26 जनवरी। गणतंत्र दिवस पर यहां एक मदरसा में तिरंगा के स्थान पर कथित तौर पर हरे रंग का ‘इस्लामिक झंडा’ फहराया गया।
पुलिस ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करके जांच शुरू की है। यह घटना सुबेहा थाना अंतर्गत एक गांव की है।
थाना प्रभारी संजीव कुमार सोनकर ने कहा, “हमें शिकायत मिली कि गणतंत्र दिवस पर हुसैनाबाद गांव में मदरसा अशरफुल उलूम इमा इमदादिया सकीन पर एक ‘इस्लामिक झंडा’ फहराया गया।”
उन्होंने बताया कि वह झंडा हरे रंग का था जिसमें झंडे के मध्य में मस्जिद के गुबंद की तस्वीर और झंडे के नीचे किनारे पर लाल रंग की पट्टी थी।
सोनकर ने कहा, “हमने झंडा फहराने वाले व्यक्ति आसिफ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। हमें बताया गया कि उस मदरसा के छात्र वहां गणतंत्र दिवस समारोह के लिए एकत्रित थे।” (भाषा)
गुरुग्राम (हरियाणा), 26 जनवरी। बिलासपुर इलाके के घोषगढ़ गांव में चार लोगों ने 3,000 रुपये के लिए 33 वर्षीय दलित को कथित तौर पर इतनी बुरी तरह पीटा कि अगले दिन उसकी मौत हो गई। पुलिस ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
पुलिस के मुताबिक, आरोपियों ने मंगलवार रात पीड़ित को लाठियों से पीटा और उसे घर के बाहर छोड़ दिया । इलाज के दौरान बुधवार रात उसकी मौत हो गई।
पुलिस ने बताया कि पीड़ित इंदर कुमार घोषगढ़ स्थित अपने घर से किराना दुकान चलाता था।
लगभग चार दिन पहले, इसी गांव के निवासी सागर यादव ने उसे बिजली बिल का भुगतान करने के लिए 19,000 रुपये दिए थे।
पुलिस ने कहा कि इंदर ने 19,000 रुपये में से 3,000 रुपये खर्च किए और बिल का भुगतान नहीं किया।
इंदर के पिता दीपचंद द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार, सागर सोमवार को उनके घर आया और 16,000 रुपये ले गया और इंदर को शेष राशि जल्द से जल्द वापस करने की चेतावनी दी।
पुलिस के मुताबिक, दीपचंद ने अपनी शिकायत में कहा, ‘‘मंगलवार शाम को सागर ने मेरे बेटे को गांव के मंदिर के पास बुलाया। शाम करीब साढ़े सात बजे सागर ने मुझे फोन किया और कहा कि इंदर ने रुपये कल तक वापस करने का वादा किया है, और अगर वह तब तक नहीं देता है, तो मुझे रुपये वापस देने होंगे।’’
दीपचंद ने कहा, ‘‘मैं मान गया, लेकिन एक घंटे बाद सागर और उसके साथ तीन अन्य साथियों ने मेरे बेटे को घायल अवस्था में घर के बाहर छोड़ दिया। मेरे बेटे ने मुझे बताया कि गांव के सागर, आजाद, मुकेश और हितेश ने उसे डंडों से पीटा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम उसे इलाज के लिए पटौदी के एक अस्पताल में ले गए, जहां से उसे गुरुग्राम के सिविल अस्पताल में रेफर कर दिया गया, जहां बुधवार देर रात उसकी मौत हो गई।’’
शिकायत के बाद बृहस्पतिवार सुबह चारों आरोपियों के खिलाफ बिलासपुर थाने में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।
बिलासपुर थाने के प्रभारी निरीक्षक राहुल देव ने कहा, ‘‘आरोपी फरार हैं, लेकिन हमारी टीम उन्हें पकड़ने के लिए छापेमारी कर रही है।’’ (भाषा)
शिकायत बाद डीईओ ने किया सस्पेंड, दुर्ग जिले की स्कूल का है मामला
भिलाई नगर, 26 जनवरी। गणतंत्र दिवस के मौके पर शराब पीकर नशे की शुमारी में मदहोश स्कूल पहुंचने वाले फुंडा शासकीय प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक शैलेष कुमार ठाकुर को निलंबित कर दिया गया है।
गौरतलब हो कि आज ध्वजारोहण कार्यक्रम में शराब पीकर स्कूल के प्रधान पाठक जब पहुंचे तो बच्चे भी समझ गए कि गुरूजी किस दुनिया में मदहोश हैं। इसकी खबर जब ग्रामीणों को लगी तो सभी लोग नाराज हुए और इस संबंध में शिकायत की। ग्रामीणों की शिकायत बाद विकास खंड शिक्षा अधिकारी धमधा को जिला शिक्षा अधिकारी ने जांच के निर्देश दिए। जांच रिपोर्ट के पश्चात प्रतिवेदन आने के उपरांत प्रधान पाठक को अभी अभी निलंबित करने की कार्रवाई की गई है।
रायपुर, 26 जनवरी। सीएम भूपेश बघेल चुनावी बजट के लिए कल शुक्रवार से मंत्री स्तरीय चर्चाएं शुरू कर रहे हैं। कल पहले ही दिन बेरोज़गारी भत्ता के प्रावधान को मंजूरी मिल जाएगी। अब देखने वाली बात यह रहेगी कि सरकार कितने बेरोज़गारों को इसके दायरे में लाती है।
2018 के जन घोषणा पत्र के मुताबिक यह भत्ता चार वर्षों से मिलना था। इसे लेकर तकनीकी शिक्षा और रोजगार विभाग ने 2019-20 के बजट से ही शुरू करने का प्रस्ताव दिया था। कैबिनेट के लिए तैयार संक्षेपिका के अनुसार 2019-20 में प्रदेश में 25 लाख बेरोज़गार बताए गए और हरेक को 2500 रूपए भत्ता देने पर 250 करोड़ का व्यय भार आंका गया था। वहीं पिछले चुनाव से पहले युकां, एनएसयूआई ने सर्वे कर 34 लाख बेरोजगार बताए थे। यदि इन सभी को भत्ता दिया जाएगा तो सरकार को 340 करोड़ रुपए लगेंगे।
इस बीच सरकार का यह भी दावा है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान बेरोज़गारी दर प्रदेश में 1% से भी कम रह गई है।और देश में 8%। इस दावे के साथ भत्ता देने में खेला कर सकती है। हो सकता है बेरोज़गारी भत्ता के लिए क्राइटेरिया ऐसे तय करे कि बेरोजगारों की संख्या 17--20 लाख के बीच सिमट जाए। ताकि इससे व्यय भार में कमी आए। यानी अपने ही दावे और उपलब्धि में सरकार फंस सकती है।
बहरहाल कल होने वाली बजट चर्चा में इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा। इसके लिए उच्च एवं तकनीकी शिक्षा और रोजगार मंत्री उमेश पटेल ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है। कल सबसे पहले उनके ही विभागों की बारी है। वैसे राजनीतिक तौर पर तो बघेल ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से एक और मुद्दा छीन लिया है। वैसे सीएम बघेल ने एक अप्रैल से बेरोज़गारी भत्ता देने की घोषणा की है। इसे लेकर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा पूरे चार वर्षों से बघेल सरकार को घेरे हुए थी। भाजपा ने भाजयुमो के अगस्त में युवा मोर्चा के बड़े आंदोलन के साथ अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। अब एक अप्रैल से बेरोज़गारी भत्ता वितरण करते ही भाजपा एक और मुद्दे से ठगा हुआ महसूस करेंगी।
-रजनीश कुमार
- बिहार में सुपर-30 के प्रमुख आनंद कुमार कोचिंग के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं.
- उनपर बॉलीवुड फ़िल्म तक बन चुकी है.
- अब भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री अवार्ड देने की घोषणा की है.
- पढ़िए अगस्त 2018 में बीबीसी हिंदी की आनंद कुमार पर ये विस्तृत रिपोर्ट
"यह बिहार है. कौन कैसा है और कितना प्रतिभाशाली है, ये उस व्यक्ति के काम की तुलना में उसकी जाति से समझना लोग ज़्यादा प्रामाणिक मानते हैं. जब व्यक्ति सवर्ण नहीं हो और उसकी प्रतिभा की चर्चा हो रही हो तो बिहार में उन्हीं सवर्णों के कान खड़े हो जाते हैं. लोग उसकी क़ाबिलियत पर सवाल खड़ा करने लगते हैं."
जब मैं सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार के गांव देवधा के लिए निकला तो पटना यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर शिवजतन ठाकुर की यह बात मेरे मन में कौंध रही थी. देवधा पटना से क़रीब 25 किलोमीटर दूर है. इस गांव को लोग जितना देवधा नाम से जानते हैं उससे ज़्यादा आनंद के गांव के रूप में.
गांव में पहुंचते ही एक घर दिखा. घर के बाहर एक रिटायर्ड शिक्षक मोहन प्रकाश (बदला हुआ नाम) बैठे थे. उनसे मैंने पूछा कि यह आनंद जी का गांव है तो उन्होंने ग़ुस्से में कहा, ''इस गांव में और लोग भी रहते हैं. आनंद तो रहता भी नहीं है. गांव का नाम देवधा है. केवल आनंद का गांव मत कहिए.''
मैंने कहा- आप तो नाराज़ हो गए?
उन्होंने कहा, ''पूरा उलट-पुलट के रख दिया है. पहले गांव में हम लोगों की इज़्ज़त थी, प्रतिष्ठा थी. कितना मेलजोल था. अब तो कहारों का मन आनंद ने इतना बढ़ा दिया है कि पूछिए मत. उसके पिताजी बहुत सज्जन आदमी थे. वो बहुत इज़्ज़त देते थे.'' उनके घर की दो महिलाएं भी उनकी बातों से सहमति जताते दिखीं.
मोहन प्रकाश को अफ़सोस है कि आनंद की शादी उनकी जाति की एक लड़की से हुई है.
वो कहते हैं, ''भूमिहार की बेटी से शादी कर लिया तो क्या हो गया? लड़की भी तो कहार ही बन गई. मुसलमान से शादी करके आप मुसलमान ही होइएगा न कि हिंदू हो जाइएगा? हमको पता है कि बड़े घर की बेटी से शादी किया है. आजकल के बच्चे मां-बाप के बस में हैं का? आप हैं अपने मां-बाप के बस में? चाहे जिससे शादी कर लीजिए आप जो थे वही रहिएगा. रस्सी जल जाती है, लेकिन ऐंठन नहीं जाती है. आपको ई बात पता है न?.''
देवधा में भूमिहार और कहार बहुसंख्यक जातियां हैं. गांव का ही एक दलित युवा देव पासवान (बदला हुआ नाम) मिला. वो आनंद कुमार के रामानुजम क्लासेस में पढ़ चुकें है.
आनंद पटना में सुपर 30 के अलावा एक रामानुजम क्लासेस भी चलाते हैं. यहां पैसे लेकर पढ़ाया जाता है. आनंद का कहना है कि वो इसी पैसे से सुपर 30 चलाते हैं.
देव पासवान से पूछा कि आनंद को लेकर मोहन इतने ग़ुस्से में क्यों हैं?
उन्होंने कहा, ''भैया, आनंद सर को लेकर गांव के भूमिहार ग़ुस्से में रहते हैं. जिस सड़क पर आप खड़े हैं, उसे कहारों की टोली में नहीं जाने दिया गया. कहारों की नाली भी इन्होंने नहीं बनने दी. इन्हें लगता है कि एक कहार का बेटा इतना आगे कैसे बढ़ गया.''
हालांकि देव पासवान को अफ़सोस है कि उनके गांव के किसी बच्चे का आज तक सुपर 30 में एडमिशन नहीं हुआ. देव की बात से सहमति जताते हुए एक महिला ने कहा, ''चलिए हमलोग तो भूमिहार हैं पर अपनी जाति के बच्चों का भी एडमिशन नहीं लिया.''
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आनंद कुमार के गांव का घर
हालांकि देव इस तर्क से संतुष्ट दिखते हैं कि उनके गांव का कोई स्टूडेंट सुपर 30 की प्रवेश परीक्षा में पास ही नहीं हुआ किया तो ऐडमिशन कहां से होगा.
देवधा में ग़ैर-सवर्णों के बीच आनंद किसी हीरो से कम नहीं हैं.
कुछ लोग तो आनंद की बात करके भावुक तक हो गए. हालांकि इन्हें भी इस बात का अफ़सोस है कि उनके गांव का एक भी स्टूडेंट सुपर 30 में नहीं पढ़ा. आनंद कुमार का कहना है कि वो अपने गांव के नाम पर बिना प्रवेश परीक्षा पास किए किसी का सुपर 30 में एडमिशन नहीं ले सकते.
उत्तम सेनगुप्ता पटना में 1991 में टाइम्स ऑफ इंडिया के स्थानीय संपादक थे.
उन्हें वो दिन आज भी याद है जब पटना साइंस कॉलेज में मैथ्स डिपार्टमेंट के एचओडी देवीप्रसाद वर्मा का फ़ोन आया. उत्तम सेनगुप्ता कहते हैं, ''देवी प्रसाद वर्मा ने कहा कि वशिष्ठ नारायण सिंह मेरे पहले जीनियस स्टूटेंड थे और अब मुझे आनंद भी ऐसा ही दिखता है. इसकी तुम मदद करो.''
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आनंद कुमार का गांव
सेनगुप्ता ने एक दिन आनंद कुमार को अपने ऑफ़िस बुलाया. उन्होंने आनंद से बात की तो लगा कि इस लड़के में दम है.
तब आनंद बीएन कॉलेज से ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे. सेनगुप्ता ने उन्हें टाइम्स ऑफ इंडिया के सप्लीमेंट करियर टाइम्स में मैथ्स का क्विज़ चलाने की ज़िम्मेदारी दी. वो क्विज दो सालों तक चला. आनंद ही क्विज का नतीजा निकालते थे और सही जवाब देते थे.
सेनगुप्ता का कहना है कि मैथ्स का वो क्विज बिहार में काफ़ी हिट रहा. उसी दौरान आनंद ने मैथ्स पढ़ाना शुरू कर दिया था. सुपर 30 के साथ एक और व्यक्ति का नाम आता है और वो हैं अभयानंद. तब अभयानंद बिहार के डीआईजी थे.
उत्तम सेनगुप्ता की पत्नी अभयानंद की क्लासमेट थीं इसलिए सेनगुप्ता अभयानंद को भी जानते थे. अभयानंद को अपनी बेटी और बेटे के लिए मैथ्स के अच्छे टीचर की तलाश थी. उत्तम सेनगुप्ता ने अभयानंद से कहा कि बिहार में अभी आनंद से अच्छा टीचर कोई नहीं है.
उनकी बेटी और बेटे को मैथ्स पढ़ाने की बात को लेकर ही आनंद कुमार और अभयानंद की पहली मुलाक़ात हुई.
अभयानंद भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि आनंद से उनकी पहली मुलाक़ात उत्तम सेनगुप्ता की वजह से ही हुई. उत्तम सेनगुप्ता का कहना है कि आनंद कुमार अभयानंद के घर पर ही पढ़ाने जाने लगे.
आनंद कुमार का भी कहना है कि उनकी बेटी और बेटे को उन्होंने मैथ्स अपने और उनके घर पर पढ़ाया. अभयानंद की बेटी और बेटे का चयन आईआईटी के लिए हुआ.
हालांकि अभयानंद इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं कि उनकी बेटी और बेटे को आनंद कुमार ने पढ़ाया है.
उत्तम सेनगुप्ता कहते हैं, ''1993 में आनंद को यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज से एडमिशन के लिए लेटर आया. उसे 6 लाख रुपए की तत्काल ज़रूरत थी. मैंने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से बात की और कहा कि बिहार का होनहार लड़का है, बहुत नाम करेगा, इसकी आप मदद कीजिए. लालू ने कहा कि आप कह रहे हैं तो ज़रूर मदद करूंगा, उसे मेरे पास भेज दीजिए. मैंने आनंद को कहा कि जाओ लालूजी से मिल लो. वो मिलने गए तो उसे शिक्षा मंत्री के पास भेज दिया गया. शिक्षा मंत्री ने अपने पीए से पांच हज़ार रुपए देने के लिए कहा.''
सेनगुप्ता कहते है, ''आनंद मेरे पास ग़ुस्से में आया और कहा कि सर, अब मुझे दोबारा किसी मंत्री के पास जाने के लिए नहीं कहिएगा. वो बहुत अपमानित महसूस कर रहा था. कैंब्रिज नहीं जा पाया. उसके बाद उसने मैथ्स पर मौलिक काम करना जारी रखा.
वो बच्चों को पढ़ा भी रहा था. उसकी पढ़ाई से बच्चे इतने ख़ुश थे कि पढ़नेवालों की संख्या लगातार बढ़ती गई. इसके साथ ही उसने विदेशी जर्नल में भी अपना काम भेजना शुरू किया. उसके पेपर मैथेमैटिकल स्पेक्ट्रम में प्रकाशित भी हुए.''
इसी महीने आनंद कुमार से मुलाक़ात के बाद बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने कहा था कि आनंद को अति पिछड़ी जाति के होने के कारण परेशान किया जा रहा है.
लेकिन आनंद उनके पिता के मुख्यमंत्री रहते ही पैसे के अभाव में कैंब्रिज नहीं जा पाए. ज़ाहिर है तब भी आनंद अति पिछड़ी जाति के ही थे.
प्रोफ़सेर शिवजतन ठाकुर का कहना है कि यह शक सवर्णों के बीच ज़्यादा है और ऐसा दुराग्रह के कारण है. हालांकि पटना यूनिवर्सिटी में ही अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं कि अगर आनंद की जाति को लेकर उसे निशाना बनाया जा रहा है तो यह बिल्कुल ग़लत है, लेकिन उससे पारदर्शिता की मांग की जा रही है तो इसमें जाति को लाना तार्किक नहीं है.
प्रोफ़ेसर चौधरी कहते हैं सत्य सवर्ण या अवर्ण नहीं होता है और सत्य की मांग हर किसी से की जानी चाहिए.
ज़्यादातर लोग इस बात पर भरोसा नहीं करते हैं कि आनंद को कैंब्रिज से बुलावा आया था.
इस बात पर भी भरोसा नहीं करते हैं कि उनका मौलिक काम विदेशी जर्नल में छपा है. इन सारे शकों को मैंने आनंद कुमार के सामने रखा तो उन्होंने कैंब्रिज का लेटर और विदेशी जर्नल में छपे अपने काम की प्रति बीबीसी को सौंप दी.
आनंद ने बीबीसी को कैंब्रिज का जो लेटर दिया है उस साल 1993 लिखा हुआ है जबकि बिजू मैथ्यु की किताब 'सुपर 30 चेंजिंग द वर्ल्ड 30 स्टूडेंट एट ए टाइम' में दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि 1994 में कैंब्रिज के लिए आवेदन किया था.
आख़िर कैंब्रिज के लेटर पर छपी तारीख़ से उन्होंने अलग तारीख़ क्यों बताई थी? आनंद का कहना है कि यह किताब में मिसप्रिंट का मामला है.
आनंद कुमार पर लोग इतना शक क्यों करते हैं?
उत्तम सेन गुप्ता का कहना है कि दरअसल, यह शक नहीं करना है बल्कि टारगेट करना है. सेनगुप्ता कहते हैं, ''लोग इस बात को पचा नहीं पाते हैं कि अति पिछड़ी जाति का यह लड़का इतना कैसे कर सकता है. ऐसा नहीं है कि आनंद की कोई स्क्रूटनी नहीं हुई है. मैं नहीं मानता कि वो पिछले 20 सालों से लोगों को बेवकूफ़ बना रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स और जापानी मीडिया ने इस पर एक महीने तक काम किया.''
उत्तम सेन गुप्ता कहते हैं कि आनंद को टारगेट किए जाने के पीछे एक कारण उनकी पत्नी का अपर कास्ट का होना है.
वो कहते हैं, ''जब उसकी शादी हुई तब भी काफ़ी हंगामा हुआ था. मैंने कई बार उसे सलाह दी कि बिहार छोड़ दो, क्योंकि यह उसके लिए सुरक्षित नहीं है. उस पर हमले भी हुए. बॉडीगार्ड रखना पड़ा.''
आनंद कुमार ने अपनी पत्नी को भी मैथ्स पढ़ाया है. ऋतु और आनंद की शादी 2008 में हई थी. ऋतु को आनंद का मैथ्स पढ़ाने का तरीक़ा बहुत पसंद था. ऋतु का कहना है कि जो आनंद से मैथ्स पढ़ा है वही जानता है कि कितना शानदार टीचर हैं.
ऋतु का चयन भी 2003 में बीएचयू आईटी के लिए हुआ.
ऋतु कहती हैं कि जो आनंद की प्रतिभा पर शक करते हैं उनके तर्क वो नहीं समझ पातीं, लेकिन वो इतना ज़रूर जानती हैं कि प्रतिभा से प्रभावित होकर ही उन्होंने अंतरजातीय विवाह करने का फ़ैसला किया था.
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ऋतु रश्मि आनंद को एक शानदार पति मानती हैं या शानदार टीचर? ऋतु खुलकर हंसते हुए कहती हैं- शानदार टीचर.
ऋतु रश्मि ये भी बताती हैं कि अभयानंद ने उनकी शादी में बहुत मदद की थी.
ऋतु रश्मि अपने बेटे, पति और देवर की जान को लेकर डरी हुई हैं.
उन्होंने कहा, ''कई बार मेरी कोशिश रही है कि हमलोग बिहार छोड़ दें. बच्चे होने के बाद तो हमलोग और डरे रहते हैं. ये बिहार छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं होते हैं. बिहार से जाति तो अभी ख़त्म होने से रही. केवल हमलोग की कोशिश से जाति नहीं ख़त्म हो जाएगी. शादी के पहले जातीय भेदभाव का अंदाज़ा इस स्तर का बिल्कुल नहीं था.''
ऋतु कहती हैं, ''शादी के पहले तो हमें किसी जातीय भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा था, इसलिए भी इसका अहसास नहीं था. जब तक इंसान ख़ुद नहीं झेलता है तब तक इसका अंदाज़ा भी नहीं होता. शादी होने के बाद पता चला कि जातीय भेदभाव कितना मजबूत है. जातिवाद बहुत गहरा है और इससे बहुत डर लगता है.''
ऋतु कहती हैं, ''आनंद की पूरी मेहनत को पिछले 10 सालों से हड़पने की कोशिश की गई और हम इससे जूझते रहे. अब जब नहीं हो पाया तो झूठ और मीडिया का इस्तेमाल किया जा रहा है. हमलोग बहुत डरे हुए हैं. मेरे पति और देवर की जान का भी ख़तरा है. जो बॉडीगार्ड हमें मिला है, उसे भी हटाने की कोशिश की गई है. कई बार हमें डर लगता है कि बेटे को कोई अगवा न कर ले.''
उत्तम सेन गुप्ता कहते हैं कि अगर आनंद के प्रति सवर्णों में पूर्वग्रह को देखना है तो इस उदाहरण से बख़ूबी समझा जा सकता है.
वो बताते हैं, ''वशिष्ठ नारायण सिंह की प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी प्रतिभा को मौक़ा मिला. मौक़ा इसलिए मिला क्योंकि वो अच्छी फैमिली से भी थे. उनकी शादी भी एक रसूख वाले परिवार में हुई. एक और बात उनके पक्ष में जाती है कि वो सवर्ण हैं. मानसिक स्थिति बिगड़ जाने के कारण वशिष्ठ नारायण सिंह समाज को बहुत दे नहीं पाए. आज भी वो अपनी दिमाग़ी हालत से जूझ रहे हैं.''
सेनगुप्ता कहते हैं, ''वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में बिहार में हर कोई इज़्ज़त से बात करता है जबकि आनंद पर लोग शक करते हैं. आनंद ने बिहार से दर्जनों वैसे बच्चों को आईआईटी तक पहुंचाया जो प्रतिभा होने के बावजूद ग़रीबी के कारण पढ़ नहीं पा रहे थे. आख़िर ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है कि आनंद पैसे कमाता है, उसने एकाधिकार को चुनौती दी है. ऐसा इसलिए भी कि वो सवर्ण नहीं है.''
आनंद कुमार और उनकी सुपर 30 पर फ़िल्मकार विकास बहल फ़िल्म बना रहे हैं. इस फ़िल्म में अभिनेता रितिक रोशन आनंद कुमार की भूमिका में हैं. एक तरफ़ इस फ़िल्म की शूटिंग चल रही है और दूसरी तरफ़ बिहार में आनंद कुमार की भूमिका को लेकर विवाद.
बिहार के कई कोचिंग संस्थानों, मीडिया और बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद के आनंद कुमार और सुपर 30 पर कई आरोप हैं.
आनंद कुमार का कहना है कि जब उनकी रामानुजम क्लासेस में पढ़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई तो पटना के दूसरे कोचिंग वालों ने हमला भी कराया.
आनंद कुमार इस बात को आज भी स्वीकार करते हैं कि अभयानंद ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की.
अभयानंद का कहना है कि उनकी मैथ्स में और पढ़ाने को लेकर दिलचस्पी थी इसलिए आनंद से मिलना जुलना बढ़ता गया. अभयानंद का कहना है कि 2002 में सुपर 30 का पहला बैच आया और वो उसी साल से वहां नियमित तौर पर जाने लगे.
अभयानंद कहते हैं, ''2002 से 2005 तक सब कुछ ठीक रहा. तब सुपर 30 और रामानुजम में कोई घालमेल नहीं था. एक आनंद के घर जक्कनपुर में चलता था और दूसरा कंकड़बाग के भूतनाथ रोड पर. 2003, 2004 और 2005 का रिजल्ट बिल्कुल फ़ेयर रहा. 2006 में मुझसे उन्होंने कहा कि अलग-अलग जगह होने के कारण बहुत दिक़्क़त होती है, क्यों न एक ही जगह पर दोनों कर लिया जाए. मैंने कहा कि ठीक है. पर 2006 और 2007 वाले रिजल्ट में लगा कि इसमें घालमेल है.''
अभयानंद कहते हैं, ''इसके बाद से कन्फ़्यूजन बढ़ने लगा. मैंने सुपर 30 के लिए 2002 से 2008 तक काम किया और फिर अलग हो गया. इसका एक कारण तो यह था कि पारदर्शिता कम होती गई और दूसरी वजह यह कि मुझे बहुत वक़्त भी नहीं मिलता था. 2007 के बाद मुझे लगा कि रामानुजम और सुपर 30 में घालमेल बढ़ गया है, क्योंकि दोनों को एक ही जगह शिफ्ट कर दिया गया था. मैंने इसे लेकर बात भी की थी, लेकिन उन्होंने कहा कि सर, इन्हें भी पढ़ा दीजिए सब ग़रीब बच्चे हैं.''
इसके जवाब में उन्होंने कहा, ''मैं अपने मुंह से इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता हूं. हालांकि मैं एक संदर्भ का ज़िक्र कर रहा हूं और उसी से आप समझ लीजिए. ये सज्जन 1994 से पढ़ा रहे हैं और उस वक़्त सुपर 30 नहीं थी. मैंने औपचारिक रूप से बच्चों को पढ़ाना 2002 में शुरू किया और 2002 में ही सुपर 30 का पहला बैच बना. मैं किसी व्यक्ति के बारे में बात नहीं करना चाहता. मुझे दुख बस इस बात का है कि सुपर 30 एक बिग आइडिया था जिसे निजी संपत्ति बना दिया गया.''
बिहार के पत्रकारों का भी कहना है कि आनंद कुमार सुपर 30 में पढ़ने वाले स्टूडेंट की सूची जारी नहीं करते हैं.
इन पत्रकारों की मांग है कि आनंद जब सुपर 30 में 30 स्टूडेंट का चयन करते हैं तो उसकी लिस्ट दें और जब आईआईटी का रिजल्ट आता है तब की लिस्ट दें. आख़िर आनंद ऐसा करने से क्यों बचते हैं? और आनंद से ऐसी मांग क्यों की जाती है?
यही सवाल आनंद कुमार से पूछा तो उन्होंने कहा, ''जब सुपर 30 शुरू हुआ तो बच्चों को पढ़ाने अभयानंद भी आते थे. वो फिजिक्स भी पढ़ाते थ, लेकिन ज़्यादातर मोटिवेशन क्लास लेते थे. बीएन कॉलेज में मैथ्स डिपार्टमेंट के एचओडी रहे बालगंगाधर प्रसाद भी आते थे. सुपर 30 के रिजल्ट अच्छे आने लगे. मीडिया में बहुत नाम हुआ. जापान और अमरीका से पत्रकार आने लगे. अचानक से अभयानंद ने अख़बारों से कहा कि वो आनंद और सुपर 30 से अलग हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि आनंद से अब पढ़ने-पढ़ाने का कोई रिश्ता नहीं रहा. हमलोग उनका बहुत सम्मान करते रहे हैं. वो हमारे लिए पिता तुल्य रहे हैं क्योंकि बहुत मदद की है.''
आनंद कहते हैं, ''एक बार हमलोग पर हमला हुआ था तो उस वक़्त भी अभयानंद जी ने मदद की. अचानक 2008 में अभयानंद जी ने नाराज़गी ज़ाहिर की. मैंने इस बात को सार्वजनिक नहीं किया, लेकिन उन्होंने मीडिया में ख़ूब बयान दिया. मैंने कई ऐसे इंटरव्यू अभयानंद जी के देखे जिनसे लगा कि वो कह रहे हों कि सुपर 30 को उन्होंने ही खड़ा किया है. हालांकि बाद में चीज़ें साफ़ हो गईं.''
अभयानंद के आरोप पर आनंद कुमार कहते हैं, ''जहां तक लिस्ट की बात है तो उसे हमने कई बार सार्वजनिक किया है. रिजल्ट के पहले भी और रिजल्ट के बाद भी ऐसा किया है. अगर मेरे काम के ऊपर किसी को शक है तो उन्हें मुझसे अच्छा काम करके मिसाल कायम करनी चाहिए. मैंने आज तक किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा और जिस तरह से मैंने पढ़ाई की है उसका दर्द मैं ही जान सकता हूं. मैंने अब तक का जीवन पटना के 10 किलोमीटर के रेडियस में जिया है और यहीं अमरीका, जापान और जर्मनी के पत्रकार मिलने आए. अब अभयानंद जी कई सुपर 30 चलाते हैं और मुझे अच्छा लगता है कि उनके यहां से भी बच्चों का भला हो रहा है.''
आनंद का कहना है कि जो इंसान हार जाता है वही शिकायत करता है और उन्हें कभी हार नहीं मिली इसलिए किसी की शिकायत करने का कोई मतलब नहीं है.
आनंद कहते हैं, ''मैं हर आरोप का जवाब दूं या बच्चों को पढ़ाऊं? कोई ग़रीब का बच्चा या जिसकी कोई पहचान नहीं है उसका बच्चा आगे बढ़ता है तो उसे परेशान किया जाता है. लोग विरोध कर रहे थे, लेकिन जब फ़िल्म बनने की बात आई तभी क्यों कैंपेन चलाया गया. क्यों लोग कहने लगे कि उन्हें भी फ़िल्म में लाया जाए. मेरे लोगों को फ़ेसबुक पर लिखने का आरोप लगाकर जेल में बंद कर दिया गया. मैं तब भी चुप हूं. वक़्त ही न्याय करेगा.''
आनंद कहते हैं, ''कई बार आरोप लगाया गया कि सुपर 30 में अपर कास्ट के बच्चे नहीं होते हैं. जो ऐसा कहते हैं वो पूरी तरह से झूठे हैं. मैंने तो जाति तोड़ी है. मैंने अंतरजातीय विवाह किया. मेरे भाई ने भी ऐसा ही किया. बिहार का दुर्भाग्य है कि यहां प्रतिभा की पहचान जाति के आधार पर होती है.''
उन्होंने कहा, ''मैं हर साल सूची जारी करता हूं और अख़बार वालों को देता हूं. इस साल फ़िल्म को लेकर इतना प्रेशर था कि कई चीज़ें नहीं हो पाईं. पटना में कोचिंग वाले बच्चों की ख़रीद फ़रोख्त शुरू कर देते हैं, इस वजह से भी गोपनीयता बरतनी पड़ती है.''
आनंद कुमार कहते हैं, ''पिछले दो महीने में मेरा बॉडीगार्ड वापस ले लिया गया. मैंने पुलिस में जाकर कहा कि मेरी हत्या हो सकती है तब फिर से बहाल किया गया. आख़िर वो कौन लोग हैं जो मेरा बॉडीगार्ड हटवा दे रहे हैं? उन्हें मेरे बॉडीगार्ड से क्या दिक़्क़त है? सुपर 30 में पढ़ने वालों बच्चों को डराया धमकाया जाता है ताकि मैं लिस्ट सार्वजनिक नहीं कर पाऊं. कोई तो इन सबके पीछे है? इन सबका एक ही जवाब है कि आनंद पर फ़िल्म बन रही है और उसे किसी तरह रोका जाए. मैं इस बार रिजल्ट आने से पहले बच्चों की लिस्ट दूंगा और उसमें बीबीसी को सबसे पहले दूंगा.''
अभयानंद की ये भी आपत्ति है कि मीडिया वाले आनंद कुमार को गणितज्ञ क्यों लिखते हैं.
उनका कहना है कि गणितज्ञ रामानुजम थे न कि आनंद कुमार.
आनंद कुमार का कहना है कि वो भी ख़ुद को गणितज्ञ नहीं मानते हैं. आनंद ने कहा कि उनकी गणित में दिलचस्पी है और बच्चों को पढ़ाते हैं.
आनंद कुमार की मां कहती हैं कि उन्हें याद है कि सुपर 30 को उनके बेटे ने किस तरह से खड़ा किया है.
वो कहती हैं जब अभयानंद पढ़ाने आते थे तो बच्चे उन्हें पसंद नहीं करते थे. बच्चे कहते थे, - 'आ गया माथा खाने.'
आनंद के भाई प्रणव कुमार से पूछा कि बच्चे ऐसा क्यों कहते थे तो उन्होंने कहा कि अभयानंद मोटिवेशनल क्लास लेने आते थे और बच्चों को ये क्लास बहुत पसंद नहीं आती थी.''
वो आनंद कुमार की सुपर 30 में 2014-15 बैच में थे.
इस पूरे विवाद पर उनका कहना है, ''सुपर 30 को लेकर लोग कुछ ज़्यादा ही बात करते हैं और इसलिए उनकी बातों में हक़ीक़त से ज़्यादा धारणा होती है. लोगों को यह पता होना चाहिए कि सुपर 30 में बिहार के 30 ब्रिलिएंट बच्चों का दाखिला होता है. ऐसे में 30 में से 25 या 27 या 30 का भी आईआईटी में एडमिशन होना कोई बड़ी बात नहीं है. बड़ी बात यह है कि इन बच्चों एक आदमी अपने खर्चे पर ख़ुद की निगरानी में रखता है.''
अभिषेक कहते हैं, ''मेरे टाइम में शायद 22 बच्चों का आईआईटी में एडमिशन हुआ था. रामानुजम और सुपर 30 को लेकर कई बार इसलिए भी कन्फ़्यूजन बढ़ता है क्योंकि बीच में भी रामानुजम से बच्चों को सुपर 30 में लाया जाता है. इसकी दो वजहें हैं. एक तो यह कि कई बार कुछ लोग सुपर 30 छोड़ जाते हैं तो उसे पूरा करने के लिए ऐसा किया जाता है. दूसरी वजह ये है कि रामानुजम क्लासेस में कोई बहुत ही मेधावी छात्र आ जाता है तो उसे यहां आने का ऑफर दिया जाता है. जो आरोप लगाते हैं कि रिजल्ट का घालमेल किया जाता है तो उन्हें पता होना चाहिए कि दोनों के रिजल्ट मिला देने के बाद 30 ही नहीं रहेगा, ये और ज़्यादा हो जाएगा.''
हन्ज़ाला शफ़ी सुपर 30 में 2012-13 के बैच में थे. शफ़ी का कहना है कि कई बार सुपर 30 में कुछ वैसे बच्चे भी आ जाते हैं जो उस लेवल के नहीं होते हैं. ऐसे में उन्हें रामानुजम क्लासेस भेज दिया जाता है और दूसरे बच्चे को सुपर 30 में लाया जाता है.
शफ़ी का भी कहना है कि उसके बैच से 28 लोगों का आईआईटी में एडमिशन हुआ था.
शफ़ी और अभिषेक दोनों का कहना है कि आनंद कुमार के मैथ्स पढ़ाने का तरीक़ा उन्हें बहुत पंसद है. अभिषेक का कहना है, ''मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि वो सबसे बेहतर टीचर हैं, लेकिन हमारी जो ज़रूरत होती है उसके लिए वो ज़रूर बेहतर हैं.''
हालांकि दोनों कहते हैं आनंद कुमार बच्चों को बहुत टाइम नहीं दे पाते हैं, क्योंकि वक़्त के साथ उनकी व्यस्तता और बढ़ी है.
पंकज कपाड़िया सुपर 30 के 2005-06 बैच में थे.
तब अभयानंद भी थे. पंकज को अभयानंद और आनंद दोनों से पढ़ने का मौक़ा मिला. पंकज का दिल्ली आईआईटी में एडमिशन हुआ था. अब पंकज ने ख़ुद ही पटना में आईआईटी तपस्या नाम से एक कोचिंग खोल लिया है.
पूरे विवाद पर वो कहते हैं, ''हमारे समय में सुपर 30 का आइडिया कुछ अलग था. 2006 में आठ अप्रैल को हमलोग की आईआईटी की प्रवेश परीक्षा थी और 2005 में एक नवंबर को सुपर 30 में गए थे. आख़िरी के पांच महीने में पढ़ाकर कोई आईआईटी तो नहीं भेज सकता है. सच कहिए तो शायद ही क्लास की तरह दो चार क्लास हुई हों. सच यह है कि 30 मेधावी बच्चों को एक प्लेटफॉर्म मिला. मेरा रहना खाना फ़्री था. उसका खर्च आनंद सर देते थे. मैं पहले रामानुजम का ही स्टूडेंट था और बाद में सुपर 30 आया.''
पंकज कहते हैं, ''हमारे टाइम में नियमित रूप से टेस्ट होते थे. अभयानंद सर टाइम टु टाइम विजिट करते थे. जो भी बच्चे वहां आते हैं उन्हें पहले से ही फिजिक्स, कमेस्ट्री और मैथ्स की बहुत अच्छी समझ होती है. ऐसा नहीं है कि सुपर 30 में लोगों को बुनियादी स्तर से सिखाया जाता है. नियमित तौर पर टेस्ट का होना बहुत अच्छा आइडिया था. ये आइडिया अभयानंद सर का ही था.''
पंकज कपाड़िया बतौर टीचर आनंद और अभयानंद को कैसे देखते हैं?
पंकज कहते हैं, ''आनंद सर ने मुझे पूरा मैथ्स पढ़ाया. उन्होंने मुझे बहुत अच्छा पढ़ाया और ये कहने में कोई परेशानी नहीं है. आज भी मैं जो मैथ्स जानता हूं उसमें आनंद सर की बड़ी भूमिका है. इसमें कोई शक नहीं है कि आनंद सर आईआईटी लेवल का मैथ्स बहुत बढ़िया पढ़ाते हैं. अभयानंद सर के साथ है कि वो फ़िजिक्स पढ़ाते हैं पर वहीं तक सीमित नहीं रहते हैं. वो फ़िजिक्स पर सोचना बताते हैं. सुपर 30 में पहुंचने वाले बच्चों के पास क्लास में सवाल बहुत कम होते हैं क्योंकि वो पहले से ही मेधावी होते हैं. सुपर 30 की सबसे बड़ी सफलता यही है कि 30 मेधावी बच्चों को एक प्लेटफॉर्म पर ला दिया जाता है.''
कपाड़िया का कहना है कि सुपर 30 को जो लोग रेग्युलर क्लासरूम टीचिंग की तरह देखते हैं वो ग़लत हैं. कपाड़िया रामानुजम और सुपर 30 में घालमेल के आरोप पर कहते हैं कि उन्हें इस बारे बहुत ठोस जानकारी नहीं है.
बालगंगाधर प्रसाद बीएन कॉलेज में आनंद कुमार के टीचर रहे हैं. उनका कहना है कि आनंद में जिज्ञासा थी और वो बहुत मेहनती स्टूडेंट थे.
प्रसाद कहते हैं, ''आनंद बहुत ही मेहनती स्टूडेंट था. उसने जो कुछ भी हासिल किया है, अपनी मेहनत और लगन के दम पर किया है. वो विषय पर मौलिक सोचता था. एक सवाल को कई तरह से बनाता था. कोई प्रॉब्लम होती थी तो वो घर तक पहुंच जाता था. उसकी ईमानदारी और मेहनत पर कोई शक नहीं है.''
अंजनी तिवारी और बिहार जाने-माने कार्टूनिस्ट पवन आनंद कुमार के शुरुआती दोस्त रहे हैं. ये याद करते हुए बताते हैं कि कैसे वो पूरी रात ग़ज़लें सुना करते थे और साथ में मैथ्स की क्लास के लिए पोस्टर बनाया करते थे.
पवन बताते हैं कि वो तीनों 1992-93 में सीढ़ी लगाकर रात में पोस्टर लगाया करते थे.
अंजनी तिवारी कहते हैं, ''आनंद का संघर्ष एक बेहद ही साधरण आदमी का असाधारण संघर्ष है. उसने प्रेम में तबला बजाना सीखा. मां का बनाया पापड़ बेचा. अंतर्जातीय विवाह किया. और आज तो पूरी दुनिया जानती है. हर इंसान का संघर्ष पवित्र होता है पर आनंद का संघर्ष पवित्र के साथ हिम्मतवाला भी था.'' (bbc.com/hindi)
हिंडनबर्ग रिसर्च के ख़िलाफ़ अदानी समूह के क़ानूनी कदम उठाने के बयान के बाद हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा है कि वो किसी भी तरह के क़ानूनी कार्रवाई के लिए तैयार हैं और अपनी रिपोर्ट पर कायम हैं.
उन्होंने एक बयान जारी कर कहा, "हमारी रिपोर्ट आने के बाद पिछले 36 घंटों में अदानी ने एक भी गंभीर मुद्दे पर जवाब नहीं दिया है. हमने रिपोर्ट के निष्कर्ष में 88 सटीक सवाल पूछे थे जो कि हमारे मुताबिक कंपनी को अपने आप को निर्दोष साबित करने का मौका देता है."
"अभी तक अदानी ने एक भी जवाब नहीं दिया है. साथ ही जैसा कि हमें उम्मीद थी, अदानी ने धमकी का रास्ता चुना. मीडिया को एक बयान में अदानी ने हमारी 106 पन्नों की, 32 हज़ार शब्दों की और 720 से ज़्यादा उदाहरण के साथ दो सालों में तैयार की गई रिपोर्ट को "बिना रिसर्च का" बताया और कहा कि वो हमारे ख़िलाफ़, "दंडात्मक कार्रवाई के लिए अमेरिकी और भारतीय कानूनों के तहत प्रासंगिक प्रावधानों का मूल्यांकन कर रहे हैं."
"जहां तक कंपनी के द्वारा क़ानूनी कार्रवाई की धमकी की बात है, तो हम साफ़ करते हैं, हम उसका स्वागत करेंगे. हम अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह से कायम हैं, और हमारे ख़िलाफ़ उठाए गए क़ानूनी कदम आधारहीन होंगे."
"अगर अदानी गंभीर हैं, तो उन्हें अमेरिका में केस दायर करना चाहिए. दस्तावेज़ों की एक लंबी लिस्ट है जिसकी क़ानूूनी प्रक्रिया के दौरान हम डिमांड करेंगे."
इससे पहले अदानी समूह ने कहा था कि वो हिंडनबर्ग रिसर्च के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई कर सकते हैं.
अदानी की तरफ़ से गुरुवार को जारी एक बयान में कहा गया, "24 जनवरी 2023 को हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा दुर्भावनापूर्ण और बिना शोध के प्रकाशित रिपोर्ट ने अदानी समूह, हमारे शेयरधारकों और निवेशकों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है."
"रिपोर्ट ने कारण भारतीय शेयर बाजारों में अस्थिरता बहुत चिंता का विषय है और इसने भारतीय नागरिकों को बिना वजह परेशान किया है."
"स्पष्ट रूप से, रिपोर्ट और इसकी निराधार सामग्री को अदानी समूह की कंपनियों के शेयर मूल्यों पर बुरा प्रभाव डालने के लिए डिज़ाइन किया गया था, क्योंकि हिंडनबर्ग रिसर्च ने खुद माना है कि अदानी के शेयरों में गिरावट से उसे फ़ायदा होगा.
"निवेशक और आम जनता को गुमराह करने, अदानी समूह और उसके अधिकारियों की प्रतिष्ठा को कम करने, और अदानी से एफ़पीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग) को नुकसान पहुंचाने के लिए एक विदेशी इकाई द्वारा जानबूझकर और लापरवाही से किए गए प्रयास से हम बहुत परेशान हैं."
"हम हिंडनबर्ग रिसर्च के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई के लिए अमेरिकी और भारतीय कानूनों के तहत प्रासंगिक प्रावधानों का मूल्यांकन कर रहे हैं."
अमेरिका की फ़ाइनैन्शियल फ़ोरेंसिक कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि अदानी समूह स्टॉक मार्केट के "बहुत बड़े हेरफेर" और "अकाउन्टिंग फ़्रॉड स्कीम" में शामिल है.
मंगलवार को छपी एक एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 218 बिलियन डॉलर वाला अदानी समूह "कारोबारी इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी" कर रहा है.(bbc.com/hindi)
पटना, 26 जनवरी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जद (यू) संसदीय बोर्ड के असंतुष्ट अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को सलाह दी कि वे अपनी शिकायतों को मीडिया के माध्यम से उल्लेखित करना बंद करके उसे पार्टी मंच पर उठाएं।
कुमार ने यह बात तब कही जब पत्रकारों ने उनसे एक दिन पहले कुशवाहा के एक ट्वीट के बारे में सवाल किया। कुशवाहा ने मंगलवार को ट्वीट किया था, ‘‘बड़ा अच्छा कहा भाई साहब आपने...! ऐसे बड़े भाई के कहने से छोटा भाई घर छोड़कर जाने लगे तब तो हर बड़का भाई अपने छोटका (छोटे भाई) को घर से भगाकर बाप-दादा की पूरी संपत्ति अकेले हड़प ले। ऐसे कैसे चले जाएं अपना हिस्सा छोड़कर....?’’
परोक्ष तौर पर अप्रसन्न प्रतीत हो रहे कुमार ने कहा, ‘‘उन्हें यह समझना चाहिए कि वह पार्टी से अलग होने के बाद तीसरी बार पार्टी में लौटे हैं, लेकिन उनके साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया गया। यदि उन्हें कोई शिकायत है तो उन्हें वह पार्टी के भीतर जाहिर करना चाहिए। आपको अपने विचार मीडिया या सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक नहीं करने चाहिए।’’
कुशवाहा 2021 में अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय करके जद (यू) में लौट आए थे और उन्हें तुरंत पार्टी का शीर्ष पद दिया गया और कुछ ही समय बाद विधान परिषद की सदस्यता दी गई थी।
राज्य की राजधानी में गणतंत्र दिवस समारोह के मौके पर कुमार द्वारा व्यक्त किए गए विचारों का समर्थन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने किया, जो उनके पक्ष में खड़े हैं।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता यादव ने कहा, ‘‘मैंने (कुशवाहा का) एक ट्वीट देखा और वह क्या कहना चाहते हैं, इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता। हालांकि मेरी भी राय है कि अगर वह अपनी पार्टी से संबंधित कोई भी मुद्दा उठाना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा नहीं लेना चाहिए।’’
कुशवाहा की नाराजगी तब से स्पष्ट हो गई है जब कुमार ने यादव के अलावा किसी अन्य को उप मुख्यमंत्री बनाये जाने की संभावना को खारिज कर दिया था। यादव को कुमार ने वस्तुतः सत्तारूढ़ 'महागठबंधन' का भावी चेहरा घोषित किया है।
यादव से यह भी पूछा गया कि क्या पार्टी विधायक सुधाकर सिंह के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, जिन्हें हाल ही में मुख्यमंत्री के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
यादव ने कहा, ‘‘राजद के संविधान के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को अनुशासनहीनता का दोषी पाए जाने पर कारण बताओ जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है। हम अवधि समाप्त होने की प्रतीक्षा करेंगे। पार्टी के हितों के खिलाफ काम करने वाला कोई भी व्यक्ति कार्रवाई का सामना करने के लिए बाध्य है।’’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महागठबंधन ‘‘सांप्रदायिक ताकतों’’ के खिलाफ अपनी लड़ाई में ‘‘एकजुट रहेगा’’ और भाजपा पर ‘‘यह आख्यान बनाने’’ की कोशिश करने का आरोप लगाया कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। (भाषा)
जयपुर, 26 जनवरी। भाजपा के प्रदेश मुख्यालय के बाहर लगे पोस्टर में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तस्वीर दिखने के बाद उनके समर्थकों में यह उम्मीद जगी है कि वह इस साल के अंत में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार होंगी।
भाजपा के पोस्टर को हाल ही में रविवार और सोमवार को एंटरटेनमेंट पैराडाइज में आयोजित पार्टी की दो दिवसीय कार्यसमिति की बैठक से पहले बदल दिया गया था।
रविवार को कार्यसमिति के समापन सत्र को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने संबोधित किया था।
इससे पूर्व प्रदेश भाजपा मुख्यालय के बाहर लगे पोस्टर के एक कोने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा की तस्वीर थी, जबकि दूसरे कोने पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया की तस्वीर नाम के साथ बीच में पार्टी का चिह्न था।
भाजपा मुख्यालय पर लगे पोस्टर में अब पूनिया और कटारिया के बीच राजे की तस्वीर को जगह मिल गई है।
उनके (राजे) समर्थकों का मानना है कि यह पार्टी आलाकमान का संदेश है कि चुनाव में राजे के मुख्यमंत्री उम्मीदवार होने की संभावना है। वहीं राजे विरोधी खेमे का दावा है कि यह चुनाव से पहले एक संतुलित कार्य है, जैसा कि अन्य सभी राज्यों में किया जाता है और मुख्यमंत्री पद की दौड़ से इसका कोई लेना-देना नहीं है।
उल्लेखनीय है कि राजे के समर्थकों को लगता है कि वर्ष 2018 में हार के बाद दो बार की मुख्यमंत्री को पार्टी ने दरकिनार कर दिया है। वहीं, राजे अलग-अलग मौकों पर शक्ति प्रदर्शन करती रहती हैं।
राजे के एक समर्थक ने कहा ‘‘ पोस्टर में वह (राजे) वापस आ गई हैं और संदेश स्पष्ट है कि पार्टी उन्हें महत्व दे रही है और यह आगामी चुनावों से जुड़ा है। वह एक कद्दावर नेता हैं और पार्टी उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकती है।'’
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया खेमे के एक नेता ने कहा कि यह असामान्य नहीं है कि पार्टी के पोस्टर में उनकी तस्वीर दिखाई दे रही है।
राजे वर्तमान में पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। सूत्रों ने बताया कि पार्टी की राज्य इकाई वर्चस्व की लड़ाई का सामना कर रही है जो विभिन्न अवसरों पर और पोस्टर के माध्यम से जगजाहिर हुई है।
पोस्टर विवाद इससे पहले भी छिड़ चुके हैं, जब जून 2021 में पार्टी मुख्यालय के बाहर लगाये गये पोस्टर में राजे की तस्वीर नहीं थी।
पोस्टर में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तस्वीर फिर से दिखने के बारे में पूछे जाने पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि यह भाजपा का आंतरिक मामला है। (भाषा)