अंतरराष्ट्रीय
दक्षिण कोरिया, 20 जनवरी । दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल की एक झुग्गी बस्ती में आग लगने के बाद सैंकड़ों लोगों को वहां से निकाला गया है.
शुक्रवार की सुबह गुरयोंग गांव में लगी आग में 60 से ज़यादा घर तबाह हो गए. अभी तक किसी के घायल होने या मरने की ख़बर नहीं है.
दक्षिण कोरिया मीडिया के मुताबिक इस इलाके के घर एक दूसरे से सटे हुए हैं. ये झुग्गी बस्ती राजधानी के आखिरी छोर पर हैं.
आग बुझाने में 900 दमकल कर्मियों और सात हेलिकॉप्टरों की मदद ली गई.
प्रभावित इलाके में रहने वाले 72 साल के एक बुज़ुर्ग ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, मैंने देखा कि आग की लपटें उठ रही थीं."
"मुझे लगा कि ये एक गंभीर हादसा है और मुझे अकेले नहीं भागना चाहिए. इसलिए मैंने लोगों के दरवाज़े खटखटाए और चिल्लाना शुरू किया. लोग बाहर आए और चिल्लाने लगे. वहां अफ़रातफ़री थी."
आग के कारणों का अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन ये इलाका आग और बाढ़ के लिहाज़ से ख़तरे की जद में माना जाता है.
यहां घर कार्ड बोर्ड और लकड़ी के बने हैं. कोरिया टाइम्स के मुताबिक गुरयोंग गांव में 2009 से 16 बार आग लग चुकी है.
1980 के दशक में एक पुनर्विकास योजना के कारण विस्थापित लोगों को यहां बसाया गया था. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन, 20 जनवरी । अमेरिका और ब्रिटेन समेत यूरोप के कई देशों की ओर से यूक्रेन को हथियार देने के वादे के बाद अब जर्मनी पर भी दबाव बढ़ रहा है कि वो यूक्रेन की मदद करे.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने जर्मनी से टैंक मांगे हैं. ये मांग जर्मनी की पश्चिमी देशों से बातचीत के पहले की गई है.
ज़ेलेंस्की ने कहा, "अगर आपके पास लेपर्ड (टैंक) हैं, तो हमें दें."
अमेरिका और यूरोप के कई देश पहले ही यूक्रेन को नए हथियार देने का वादा किया कर चुके हैं .
अमेरिका ने यूक्रेन को 25 करोड़ डॉलर का पैकेज देने का एलान किया है. इसमें बख्तरबंद गाड़ियां, एयर डिफेंस सिस्टम और रूस को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दूसरी तरह की मदद शामिल है.
कल की मीटिंग में नौ देश शामिल हुए थे. ये हैं ब्रिटेन, पोलैंड, लातविया, लिथुआनिया, डेनमार्क, चेक रिपब्लिक, एस्टोनिया , नीदरलैंड और स्लोवाकिया.
अब जर्मनी पर भी हथियार देने का दबाव बढ़ रहा है. फिनलैंड और पोलैंड यूक्रेन को जर्मनी में बने लेपर्ड-2 टैंक देना चाह रहे हैं लेकिन इसके लिए उन्हें जर्मनी की इजाज़त लेनी होगी. (bbc.com/hindi)
कोलंबो, 20 जनवरी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कर्ज में डूबे श्रीलंका के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए शुक्रवार को कहा कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से ऊर्जा, पर्यटन और बुनियादी ढांचा के क्षेत्रों में भारत अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेगा।
उन्होंने शुक्रवार सुबह श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे से मुलाकात की।
जयशंकर ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘‘कोलंबो आने का मेरा पहला मकसद इन कठिन पलों में श्रीलंका के साथ भारत की एकजुटता व्यक्त करना है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे समकक्ष और अन्य श्रीलंकाई मंत्रियों के साथ कल (बृहस्पतिवार) शाम हुई बैठकों में अच्छी चर्चा हुई।’’
श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारने में मदद करने के लिए भारत ने ‘क्रेडिट’ और ‘रोलओवर’ के रूप में लगभग चार अरब डॉलर दिए हैं।
उन्होंने कहा कि भारत ने दृढ़ता से महसूस किया कि श्रीलंका के ऋणदाताओं को श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
इससे पहले, श्रीलंका ने पिछले वर्ष 3.9 अरब अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता दिए जाने और गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे द्वीपीय देश को कर्ज के पुनर्गठन का आश्वासन देने जैसे कदमों के लिए भारत का आभार व्यक्त किया है।
इससे वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से ऋण प्राप्त कर सकेगा।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर श्रीलंका की यात्रा पर हैं और उन्होंने कर्ज के बोझ तले दबे इस देश में तेजी से आर्थिक सुधार के लिए निवेश की गति बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है। (भाषा)
कोलंबो, 20 जनवरी | भारत दौरे पर आए विदेश मंत्री (ईएएम) एस. जयशंकर ने अपने श्रीलंकाई समकक्ष को आर्थिक रूप से कमजोर दक्षिणी पड़ोसी देश में आर्थिक सुधार में तेजी लाने के लिए निवेश प्रवाह बढ़ाने की भारत की प्रतिबद्धता के बारे में बताया। गुरुवार शाम श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी के साथ अपनी बैठक के बाद भारतीय विदेश मंत्री ने ट्वीट किया, श्रीलंका में निवेश प्रवाह बढ़ाने की हमारी प्रतिबद्धता से अवगत कराया, ताकि आर्थिक सुधार में तेजी लाई जा सके। कल सुबह नेतृत्व के साथ चर्चा के लिए तत्पर हैं।
जयशंकर ने कहा, आज शाम कोलंबो में विदेश मंत्री अली साबरी और अन्य मंत्रिस्तरीय सहयोगियों के साथ एक अच्छी बैठक हुई। बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी, ऊर्जा, उद्योग और स्वास्थ्य में भारत-श्रीलंका सहयोग पर चर्चा हुई।
श्रीलंका के विदेश मंत्री ने भी ट्वीट किया, कोलंबो में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिलकर खुशी हुई। हमारे राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने, लोगों से लोगों के संपर्क, व्यापार और निवेश संबंधों पर चर्चा की और श्रीलंका के लिए सहायताभारत के ²ढ़ संकल्प की सराहना की।
जयशंकर की संकटग्रस्त पड़ोसी की यात्रा श्रीलंका के ऋणों के पुनर्गठन का समर्थन करने के लिए आईएमएफ को दिए गए भारत के आश्वासन के बाद हुई।
इस सप्ताह की शुरुआत में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने संसद को सूचित किया कि भारत और चीन के साथ ऋण पुनर्गठन वार्ता सफल रही।
मंत्रालय के एक हाई प्रोफाइल प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत के विदेश मंत्री 19 और 20 जनवरी को श्रीलंका की दो दिवसीय यात्रा पर हैं। (आईएएनएस)|
लंदन, 20 जनवरी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड में वाहन चलाते समय एक वीडियो बनाने के लिए अपनी ‘सीट बेल्ट’ हटाने को लेकर माफी मांगी है।
सुनक के ‘डाउनिंग स्ट्रीट’ (प्रधानमंत्री कार्यालय) के प्रवक्ता ने बृहस्पतिवार को कहा कि उन्होंने केवल थोड़ी देर के लिए अपनी सीट बेल्ट हटाई थी और वह स्वीकार करते हैं कि उनसे गलती हुई है।
ब्रिटेन में कार में ‘सीट बेल्ट’ न लगाने पर 100 पाउंड का तत्काल जुर्माना है। अगर मामला अदालत में जाता है तो यह जुर्माना बढ़कर 500 पाउंड हो जाता है। वैध चिकित्सा कारणों के चलते ‘सीट बेल्ट’ लगाने में कई बार छूट दी जाती है।
सुनक के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ यह उनके निर्णय लेने में एक मामूली चूक थी। प्रधानमंत्री ने एक छोटा वीडियो बनाने के लिए अपनी सीट बेल्ट हटाई थी। वह पूरी तरह से अपनी गलती स्वीकार करते हैं और माफी मांगते हैं।’’
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री का मानना है कि सभी को सीट बेल्ट लगानी चाहिए।’’
सुनक ने देश भर में 100 से अधिक परियोजनाओं को कोष मुहैया कराने के लिए ‘लेवलिंग अप फंड’ की घोषणाएं करने के लिए यह वीडियो बनाया था। वीडियो में उनकी कार के आसपास मोटरसाइकिल पर सवाल पुलिस कर्मी नजर आ रहे हैं।
विपक्षी दल ‘लेबर पार्टी’ के एक प्रवक्ता ने सुनक पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘ ऋषि सुनक इस देश में सीट बेल्ट लगाना, डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करना, ट्रेन सेवा, अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करना नहीं जानते। हर दिन यह सूची लंबी होती जा रही है और इसे देखना काफी दुखद है।’’
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सामने आए एक वीडियो में सुनक अपने कार्ड से संपर्क रहित (कॉन्टैक्टलेस) भुगतान करने में संघर्ष करते दिखे थे। (भाषा)
अमेरिका और यूरोपीय देशों ने कहा है कि वे यूक्रेन को और हथियारों की सप्लाई करेंगे. इस सप्लाई गोला-बारूद के अलावा युद्ध में काम आने वाली बख़्तरबंद गाड़ियां भी होंगी.
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध के अगले चरण में कीएव के समर्थन के लिए हुई एक अहम बैठक में ये फै़सला लिया गया.
इसी सिलसिले में अमेरिका ने यूक्रेन की मदद के लिए 2.5 बिलियन डॉलर की सप्लाई भेजने का एलान किया है. ब्रिटेन ने कहा है कि वो यूक्रेन को 600 ब्रिम्स्टोन मिसाइल देगा.
डेनमार्क ने कहा है कि वो यूक्रेन को फ्रांस निर्मित 19 सीज़र होवित्ज़र और स्वीडन ने आर्चर आर्टिलरी सिस्टम देने का वादा किया है. जर्मनी के रामस्टेन में 50 देशों की बैठक के बाद ये फ़ैसला हुआ है.
इस बैठक में नेटो के भी 30 सदस्य देशों ने हिस्सा लिया. रामस्टेन में हुई बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन को और कैसे मदद दी जा सकती है.
जर्मनी में हुई बातचीत को लेकर यूक्रेन के राष्ट्रपति जे़लेंस्की ने कहा था कि कीएव को 'मजबूत फ़ैसलों' और 'ताक़तवर मिलिट्री सपोर्ट' की उम्मीद है
लेकिन अमेरिका और जर्मनी ने यूक्रेन की ओर से अत्याधुनिक टैंक की मांग पर कोई फ़ैसला नहीं किया है.
इसे लेकर रूस ने चेतावनी दी है कि अगर पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को ये मदद दी तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.
यूक्रेन को भारी हथियारों की मदद देने के मामले में जर्मनी एहतियात बरत रहा है. लेकिन जर्मन चांसलर पर यूक्रेन को लेपर्ड टैंक देने के लिए दबाव बढ़ रहा है. (bbc.com/hindi)
लंदन, 20 जनवरी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने बृहस्पतिवार को उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड में गाड़ी चलाते समय सोशल मीडिया के लिए वीडियो बनाने के दौरान अपनी सीट बेल्ट हटाने में “निर्णय की संक्षिप्त त्रुटि” के लिए माफी मांगी।
सुनुक के डाउनिंग स्ट्रीट के प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने केवल थोड़ी देर के लिए अपनी सीट बेल्ट हटाई थी और स्वीकार करते हैं कि उन्होंने गलती की है।
ब्रिटेन में कार में सीट बेल्ट न लगाने पर 100 पाउंड का “ऑन-द-स्पॉट” जुर्माना दिया जा सकता है, अगर मामला अदालत में जाता है तो यह बढ़कर 500 पाउंड हो जाता है। (भाषा)
सियोल, 20 जनवरी। दक्षिण कोरिया की राजधानी के निकट एक गांव में शुक्रवार सुबह अस्थाई मकानों में आग लग गई जिससे कम से कम 60 मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और करीब 500 स्थानीय लोगों को वहां से निकाला गया।
अधिकारियों ने बताया कि दमकलकर्मी सियोल के गुरयोंग गांव में लगी आग पर काबू पाने की कोशिश रहे हैं। किसी के हताहत होने की तत्काल कोई खबर नहीं है।
सियोल के गंगनम जिले के दमकल विभाग के अधिकारी शिन योंग-हो ने बताया कि बचावकर्मी आग से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की तलाश कर रहे हैं, हालांकि माना जा रहा है कि सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है।
आग सुबह करीब साढ़े छह बजे लगी थी। आग पर काबू पाने के लिए और लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए 800 से अधिक दमकल कर्मियों, पुलिस अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को तैनात किया गया।
घटनास्थल की तस्वीरों में दमकलकर्मी घने सफेद धुएं से ढके गांव में आग की लपटों को बुझाने की कोशिश करते और हेलीकॉप्टर ऊपर से पानी का छिड़काव करते दिख रहे हैं।
शिन योंग-हो ने बताया कि ऐसा अनुमान है कि गांव में ‘प्लास्टिक शीट’ और लकड़ी (प्लाईवुड) से बने एक घर में आग लग गई थी, जो बाद में बाकी मकानों में फैल गई।
उन्होंने बताया कि आग लगने की उचित वजह का पता लगाया जा रहा है।
गंगनम जिला कार्यालय के अधिकारी किम अह-रेम ने बताया कि करीब 500 लोगों को नजदीक स्थित जिम और एक स्कूल में ठहराया गया है। अधिकारियों की योजना उन्हें बाद में होटलों में ठहराने की है।
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल के प्रवक्ता किम उन-हे ने बताया कि राष्ट्रपति ने अधिकारियों से घटना से जानमाल के नुकसान को कम से कम करने के लिए सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करने को कहा है। (एपी)
भारत के हैदराबाद शहर में जन्मी अरुणा मिलर को अमेरिकी राज्य मैरीलैंड की लेफ्टिनेन्ट गवर्नर चुना गया है. वो इस पद पर चुने जाने वाली पहली भारतीय-अमरीकी राजनेता बन गई हैं.
बुधवार को अरुणा ने राज्य के दसवें लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के रूप में शपथ ली. इस बारे में उन्होंने ट्वीट कर कहा "हमने इतिहास रच दिया है. लेकिन ताकत इतिहास के बनने में नहीं है बल्कि ताकत लोगों के हाथों में है. ये बस एक सफर की शुरुआत है."
58 साल की मिलर का परिवार सालों पहले अमेरिका में बस गया था. उनके पिता 1960 में एक मेकैनिकल इंजीनियर के तौर पर अमेरिका पहुंचे थे. बाद में वो अपने पूरे परिवार को भी साथ लेकर गए. उस वक्त अरुणा सात साल की थीं.
अरुणा ने मिसोरी यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की जिसके बाद उन्होंने मॉन्टेगोमेरी काउंटी में यातायात विभाग में 25 साल काम किया. (bbc.com/hindi)
नयी दिल्ली, 19 जनवरी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के द्विपक्षीय बतचीत की पेशकश करने के कुछ ही दिन बाद भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसियों जैसे संबंध चाहता है, लेकिन इसके लिए आतंकवाद और हिंसा से मुक्त वातावरण होना चाहिए।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस वार्ता में यह टिप्पणी उस वक्त की जब उनसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा पिछले सप्ताह कश्मीर सहित विभिन्न ज्वलंत मुद्दों के समाधान के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत की पेशकश के बारे में पूछा गया था।
बागची ने कहा, ‘‘हमने यह (पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की) टिप्पणी देखी है, लेकिन इसके बाद वहां के पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) ने कुछ और कहा। इसके कुछ दिनों पहले वहां के कुछ नेताओं ने भी टिप्पणी की थी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसियों जैसे संबंध चाहते हैं, लेकिन इसके लिए उपयुक्त माहौल होना चाहिए, जो आतंकवाद, शत्रुता और हिंसा से मुक्त हो।’’ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सोमवार को दुबई स्थित अल अरबिया समाचार चैनल के साथ एक साक्षात्कार के दौरान कश्मीर सहित विभिन्न 'ज्वलंत' मुद्दों के समाधान के लिए अपने भारतीय समकक्ष नरेन्द्र मोदी के साथ 'गंभीर' बातचीत की पेशकश की थी।
शरीफ ने कहा था, ‘‘भारतीय नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मेरा संदेश है कि आइए, हम बातचीत की मेज पर बैठें और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों के हल के लिए गंभीरता से बातचीत करें।’’
उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान और भारत पड़ोसी देश हैं और उन्हें ‘‘एक दूसरे के साथ ही रहना है।’’
हालांकि, इसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा था कि कश्मीर पर 2019 में उठाये गए कदम को वापस लिए बिना भारत के साथ बातचीत संभव नहीं है।
गौरतलब है कि भारत लगातार कहता रहा है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते और पाकिस्तान को बातचीत की बहाली के लिए अनुकूल माहौल मुहैया कराना चाहिए।
भारत द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और पांच अगस्त, 2019 को राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और खराब हो गए थे। (भाषा)
-शुमाएला जाफ़री
अभी कुछ हफ़्ते पहले की ही बात है, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच तीख़ी ज़ुबानी जंग हुई थी.
पाकिस्तान ने भारत के सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के प्रस्ताव में अड़ंगा लगा दिया था. लेकिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अमन का हाथ बढ़ाया और प्रधानमंत्री मोदी को 'गंभीर और ईमानदार' बातचीत करने का न्यौता दे डाला.
हालांकि, शहबाज़ शरीफ़ के बयान के कुछ घंटों के भीतर ही पाकिस्तान इससे पलट भी गया.
शहबाज़ शरीफ़ के दफ़्तर की तरफ़ की तरफ़ से सफ़ाई देते हुए कहा गया कि भारत से बातचीत तभी हो सकती है, जब भारत कश्मीर से धारा 370 हटाने के अपने 'अवैध फ़ैसले' को पलटे और वहां दोबारा पुराने प्रावधान लागू करे.
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा क्या था?
संयुक्त अरब अमीरात स्थित न्यूज़ चैनल अल-अरबिया को दिए गए एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा था, "भारत के नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरा संदेश यही है कि आइए बातचीत की मेज़ पर बैठें और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर और ईमानदार बातचीत करें."
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि, "कश्मीर में रोज़ाना मानव अधिकारों का भयंकर उल्लंघन हो रहा है. हिंसा हो रही है और भारत ने अपने संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म करके कश्मीरियों को दी गई नाममात्र की स्वायत्तता भी छीन ली है."
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि 'पाकिस्तान ने भारत से तीन जंगें लड़कर अपने सबक़' सीख लिए हैं.
उन्होंने कहा, "अब ये हमारे ऊपर निर्भर है कि हम शांति से रहें और तरक़्क़ी करें या आपस में लड़ते रहें और अपने वक़्त और संसाधन को बर्बाद करते रहें. हमने भारत से तीन जंगें लड़ीं और इससे अवाम के लिए मुश्किलें, ग़रीबी और बेरोज़गारी ही बढ़ी है. हमने अपने सबक़ सीख लिए हैं और हम अब शांति से रहना चाहते हैं. शर्त बस ये है कि हम अपने असल मसले हल करने में क़ामयाब हो जाएं."
अपने इंटरव्यू में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ये इशारा भी किया कि भारत और पाकिस्तान को साथ लाने में संयुक्त अरब अमीरात का नेतृत्व भी अहम भूमिका अदा कर सकता है.
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा, "मैंने मोहम्मद बिन ज़ायद से गुज़ारिश की है कि वो पाकिस्तान के बिरादर हैं, संयुक्त अरब अमीरात हमारे लिए भाई जैसा मुल्क है. उनके भारत से भी अच्छे ताल्लुक़ात हैं. इसलिए वो दोनों देशों को बातचीत की मेज़ पर ला सकते हैं, और मैं क़सम खाकर कहता हूं कि हम भारतीय नेतृत्व के साथ पूरी ईमानदारी और मक़सद से बातचीत करेंगे."
जैसे ही इस इंटरव्यू का प्रसारण हुआ, पाकिस्तान में हंगामा बरपा हो गया.
इमरान ख़ान की पार्टी, तहरीक-ए-इंसाफ ने शहबाज़ शरीफ़ के बयान की आलोचना की और कहा कि शहबाज़ शरीफ़ तो पाकिस्तान के रवायती रुख़ से पलट गए हैं. जबकि पाकिस्तान ने हमेशा यही कहा है कि भारत से बातचीत तभी मुमकिन है, जब भारत अपने नियंत्रण वाले कश्मीर में 5 अगस्त 2019 को उठाए गए क़दम वापस ले.
इस सियासी नुक़सान को कम से कमतर रखने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने तुरंत क़दम उठाया और ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री लगातार ये कहते आए हैं कि भारत और पाकिस्तान को अपने आपसी मसले और ख़ास तौर से कश्मीर का मसला बातचीत और शांतिपूर्ण तरीक़ों से हल करना चाहिए.
पीएमओ ने ये सफ़ाई भी दी कि उन्होंने बार-बार ये कहा है कि भारत से बातचीत तभी हो सकती है, जब वो कश्मीर घाटी का विशेष दर्जा दोबारा बहाल करे.
बातचीत के प्रस्ताव से पीछे क्यों हटा पाकिस्तान?
पाकिस्तान में भारतीय मामलों के जानकार डॉक्टर अरशद अली का मानना है कि नेताओं की पहल महत्वपूर्ण ज़रूर है, मगर ये तब तक असरदार नहीं हो सकती, जब तक इस पहल को सभी भागीदारों का समर्थन हासिल न हो.
अरशद कहते हैं, "ये बात तो केवल विदेश मंत्रालय बता सकता है कि जब प्रधानमंत्री ने अल-अरबिया को दिए इंटरव्यू में भारत से बातचीत की पेशकश की, तो क्या उन्होंने विदेश मंत्रालय को भरोसे में ले लिया था."
हालांकि, हक़ीक़त यही है कि 2019 के बाद से भारत से बातचीत को लेकर पाकिस्तान का आधिकारिक रुख़ एक जैसा ही रहा है कि किसी भी तरह के संवाद के लिए भारत को कश्मीर में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए क़दम वापस लेने होंगे.
इसके अलावा अरशद अली ये भी मानते हैं कि भारत ने पाकिस्तान को लेकर बेहद सख़्त रुख़ अपनाया हुआ है. उसकी तरफ़ से बातचीत की न तो कोई ख़्वाहिश जताई गई है और न ही गंभीर बातचीत के लिए किसी क़िस्म का लचीला रुख़ अपनाने का इशारा किया गया है.
वो कहते हैं, "इसका मतलब ये है कि शहबाज़ शरीफ़ का ये बयान एक दोस्ताना इशारे से ज़्यादा कुछ भी नहीं था. अगर दोनों देशों के बीच वाक़ई किसी भी तरह की गंभीर बातचीत की सहमति बनती है, तो उसके लिए पहले ज़मीनी स्तर पर तैयारी करनी होगी और नेताओं की मुलाक़ात से पहले उसकी रूपरेखा तय करनी होगी. कोई एक देश इस मामले में इकतरफ़ा फ़ैसला नहीं ले सकता."
विश्लेषक घीना मेहर के मुताबिक़, पाकिस्तान के लिए न तो बातचीत की ये पेशकश करने का सही मौक़ा था और न ही उसका सही मंच था.
घीना मेहर का मानना है, "हो सकता है कि शहबाज़ शरीफ़ ने ये दांव बढ़ती घरेलू आर्थिक चुनौतियों और सियासी संकट से अवाम का ध्यान बंटाने के लिए चला हो. या फिर शहबाज़ शरीफ़ का मक़सद ये भी हो सकता है कि वो अपने मुल्क के कट्टर दुश्मन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर ख़ुद को विश्व मंच पर एक कद्दावर नेता के तौर पर पेश कर सकें."
"ये प्रस्ताव सुनने में तो नेकनीयत लग रहा था. लेकिन, ये भी ज़ाहिर है कि बातचीत की पेशकश के लिए जो अल्फ़ाज़ चुने गए, उनके बारे में गंभीरता से नहीं सोचा गया. यही वजह है कि बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय को ट्वीट करके इस पर सफ़ाई देनी पड़ी."
कूटनीति बनाम घरेलू सियासत
राजनीति वैज्ञानिक डॉक्टर हसन अस्करी रिज़वी भी घीना मेहर की बात से सहमत हैं.
उनका मानना है कि आज जब भारत और पाकिस्तान दोनों ने एक दूसरे को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया हुआ है, तो कोई ये उम्मीद कैसे लगा सकता है कि इस तरह की अधकचरी पेशकश का कोई अच्छा नतीजा निकलेगा.
हसन अस्करी रिज़वी का आकलन है कि इस वक़्त भारत में पाकिस्तान के साथ किसी उपयोगी बातचीत को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं है.
वो कहते हैं, "इस वक़्त भारत अपनी कट्टर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी देश की नई छवि गढ़ने में जुटा है. जब राष्ट्रवाद उफ़ान पर हो, तो एक ऐसे देश के साथ बातचीत अलोकप्रिय कदम हो सकती है, जिसे सत्ताधारी पार्टी दुश्मन के तौर पर पेश करती रही है. ऐसा कोई भी कदम प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के लिए सियासी तौर पर नुक़सानदेह हो सकता है. इसी तरह, पाकिस्तान में भी कूटनीतिक मसलों पर सियासी खींचतान होती आई है."
इस पेशकश पर शहबाज़ शरीफ़ के सबसे बड़े सियासी दुश्मन इमरान ख़ान की पार्टी ने जैसी प्रतिक्रिया दी, उससे डॉक्टर अस्करी का तर्क वाज़िब लगता है.
पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ की वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शीरीन मज़ारी अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ पर तीखा हमला बोला.
मज़ारी ने लिखा कि, "एक आयातित प्रधानमंत्री के तौर पर जो मसखरा बैठा है, उसे ऐसे मसलों पर अपनी ज़ुबान बंद रखनी चाहिए, जिनकी उसे समझ नहीं है क्योंकि इससे बस पाकिस्तान को नुक़सान ही होता है. वो ये कहते हुए भारत से बातचीत की भीख मांग रहा है कि पाकिस्तान ने 'अपना सबक़ सीख लिया है'. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे शख़्स का ऐसा बयान बेहद वाहियात है."
पाकिस्तान का यू टर्न?
डॉक्टर हसन अस्करी की राय में शहबाज़ शरीफ़ की सरकार इतनी कमज़ोर है कि नीयत नेक होने के बावजूद उसकी सियासी हैसियत ऐसी नहीं है कि वो ऐसी गंभीर पेशकश कर सके.
वो कहते हैं, "हमारे सियासतदान कूटनीति को भी घरेलू राजनीति की तरह देखते हैं; अंतरराष्ट्रीय मामलों पर बोलते वक़्त उन्हें ज़्यादा सावधानी और चतुराई से काम लेना चाहिए. हमे नेताओं को ख़याल रखना चाहिए कि ऐसे बयानों के नतीजे गंभीर होते हैं."
डॉक्टर अस्करी ये मानते हैं कि इस वक़्त जो माहौल पूरे दक्षिणी एशिया का है, उसमें भारत और पाकिस्तान के संबंध सामान्य बनाने की दिशा में कोई ख़ास क़ामयाबी नहीं मिल सकती है. दोनों ही देशों में ये रिश्ते एक तरह से घरेलू सियासत की क़ैद में हैं.
अस्करी का मानना है, "पाकिस्तान को लेकर कट्टर नीति अपनाने से प्रधानमंत्री मोदी को ख़ूब चुनावी फ़ायदा हुआ है, और आज जब वो अगले आम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं, तो वो अपनी चुनावी फ़ायदा देने वाली नीति में भला क्यों बदलाव करेंगे?"
विश्लेषकों का ये भी मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ ने भारत से बातचीत की पेशकश करने से पहले मुल्क के अन्य भागीदारों, जैसे कि विपक्षी दलों, सुरक्षा तंत्र और संसद को भरोसे में नहीं लिया था. ये पाकिस्तान की रवायती नीति से यू-टर्न लेने जैसा था. यही वजह है कि पाकिस्तान में शरीफ़ की पेशकश को हाथों-हाथ नहीं लिया गया.
भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं. दोनों देशों के संबंध 2019 में उस वक्त से बेहद ख़राब चल रहे हैं, जब भारत ने कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुए आतंकी हमलों के बाद, पाकिस्तान के भीतर हवाई हमले किए थे.
बाद में मोदी की अगुवाई वाली भारत सरकार ने जब कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया और उसकी स्थिति को बदला तो तनाव और बढ़ गया.
देश की आज़ादी और बंटवारे के बाद से भारत और पाकिस्तान ने तीन बड़ी जंगें लड़ी हैं. इसके अलावा दोनों देशों के बीच छोटी-मोटी कई झड़पें भी हुई हैं. इंटरव्यू में शहबाज़ शरीफ़ ने इन्हीं जंगों के हवाले से कहा था कि उनके देश ने अपने सबक़ सीख लिए हैं.
क्या था मक़सद?
कई जानकारों के मुताबिक़, शहबाज़ शरीफ़ ने भारत से बातचीत की पेशकश के लिए जो वक़्त चुना, वो भी बहुत अहम है.
उनका मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर गए थे और उन्होंने तभी अल-अरबिया को इंटरव्यू दिया था. हो सकता है कि उन्होंने कुछ ख़ास लोगों को प्रभावित करने के लिए ये पेशकश की हो.
संभावना इस बात की भी है कि जिस तरह दुनियाभर के नेता भारत और पाकिस्तान से आपस में बातचीत करने की गुज़ारिश करते रहे हैं.
वैसे में ये भी हो सकता है कि संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं ने भी पाकिस्तान को यही सुझाव दिया हो और शायद शहबाज़ शरीफ़ इसी मशविरे से संतुलन बिठाने की कोशिश कर रहे थे.
हालांकि, वो ये पेशकश करने से पहले ये अंदाज़ा ठीक-ठीक नहीं लगा सके कि इस पर घरेलू मोर्चे से क्या प्रतिक्रिया आएगी. हालांकि, अगर ऐसा हुआ भी है, तो अब तक किसी आधिकारिक स्रोत से इसकी पुष्टि नहीं हुई है.
भारत का जवाब
हाल के बरसों में पाकिस्तान से रिश्तों में जमी बर्फ़ पिघलाने के किसी भी प्रस्ताव पर बेहद ठंडा रवैया अपनाया है. फिर चाहे ये क्रिकेट हो, कला हो या फिर आम जनता के बीच संपर्क. भारत, पाकिस्तान से न्यूनतम संभव संवाद की नीति पर चल रहा है.
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच कूटनीतिक जंग ने दोनों देशों को एकदूसरे से और दूर कर दिया है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने भारत प्रशासित कश्मीर में मानव अधिकारों के हालात पर ध्यान खींचा था. वहीं भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दुनिया को याद दिलाया था कि ओसामा बिन लादेन, पाकिस्तान में ही छुपा हुआ था.
बिलावल भुट्टो ने तो भारत के प्रधानमंत्री को 'गुजरात का क़साई' तक कह डाला था और उनके इस बयान को पाकिस्तान के अवाम और मुख्यधारा के मीडिया ने जिस तरह से हाथों हाथ लिया था, वो देखना वाक़ई दिलचस्प था.
क्या रिश्तों की बर्फ़ पिघलेगी?
घीना मेहर कहती हैं कि घरेलू समर्थक बेहद अहम हैं और बड़े अफ़सोस की बात है कि आज दक्षिण एशिया में कूटनीति, कट्टर राष्ट्रवाद और लोकलुभावन सियासत की शिकार हो गई है. ऐसे माहौल में दोनों देशों के रिश्तों की बर्फ़ पिघलने की उम्मीद लगाना बेमानी है.
भारतीय मामलों के जानकार अरशद अली कहते हैं कि ऐसे माहौल में छोटे छोटे क़दम ज़्यादा उपयोगी हो सकते हैं.
वो कहते हैं कि, "भारत पाकिस्तान के बीच ट्रैक टू के संपर्क अभी भी बने हुए हैं. दोनों देश बड़े गुपचुप तरीक़े से एक दूसरे से सीमित स्तर पर संपर्क रखते हैं. जलवायु परिवर्तन और आम जनता के बीच संपर्क जैसे क्षेत्र हैं, जहां अभी भारत और पाकिस्तान मिलकर काम कर सकते हैं."
अरशद अली कहते हैं कि, "रिश्तों में तल्ख़ी के बाद भी भारत और पाकिस्तान ने ऐतिहासिक रूप से ये साबित किया है कि वो एक दूसरे से रिश्ते रख सकते हैं. दोनों देशों ने 80, 90 और 2000 के दशक में ये काम करके दिखाया भी है और वो अभी भी ऐसा कर सकते हैं. लेकिन, इसके लिए हमें सही समय का इंतज़ार करना ही होगा." (bbc.com/hindi)
बगदाद, 19 जनवरी। इराक में एक फुटबॉल स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ में दो लोगों की मौत हो गयी और दर्जनों घायल हो गये।
इराकी न्यूज एजेंसी की खबर के अनुसार दक्षिणी इराक में स्थित स्टेडियम में लोग टूर्नामेंट का फाइनल मैच देखने के लिये इकट्ठा हुए तब यह भगदड़ मची। यह देश में चार दशक में पहला अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट है।
इराकी न्यूज एजेंसी ने कहा कि बसरा अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के बाहर हुई इस घटना में करीब 60 लोग घायल हुए जिसमें से कुछ की हालत गंभीर है।
बसरा अस्पताल के एक डाक्टर ने एसोसिएटिड प्रेस से कहा कि भगदड़ में दो लोगों की मौत हो गयी और 38 घायल हैं तथा कुछेक को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है।
आठ देशों के अरब गल्फ कप का फाइनल मैच गुरूवार को इराक और ओमान के बीच खेला जायेगा।
इराक 1979 के बाद पहली बार टूर्नामेंट की मेजबानी कर रहा है। (एपी)
किंशासा (कांगो), 19 जनवरी मध्य अफ्रीकी देश कांगो में सप्ताहांत में हुए सिलसिलेवार हमलों के बाद 49 नागरिकों के शवों वाली सामूहिक कब्रें मिली हैं। संयुक्त राष्ट्र ने यह जानकारी दी।
इन हमलों के लिए स्थानीय मिलिशिया को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता फरहान हक ने बुधवार को न्यूयॉर्क में पत्रकारों को बताया कि इटुरी प्रांत के दो गांवों में यह कब्रें मिली हैं। इटुरी प्रांत बूनिया शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर है।
फरहान हक के मुताबिक न्याम्बा गांव में एक सामूहिक कब्र में छह बच्चों सहित कुल 42 लोगों के शव मिले हैं जबकि सात अन्य पुरुषों के शव मबोगी नामक एक अन्य गांव में पाए गए थे।
संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता ने न्यूयॉर्क में कहा, ‘‘सप्ताहांत में कोडेको मिलिशिया द्वारा नागरिकों पर किए गए हमलों की रिपोर्ट मिलने के तुरंत बाद शांति सैनिकों ने क्षेत्र में गश्त शुरू कर दी। यह हमले तब हुए हैं जब बड़े पैमाने पर कब्रें मिली हैं। ’’ (एपी)
येरेवान (आर्मीनिया) 19 जनवरी आर्मीनिया के एक सैन्य अड्डे पर बृहस्पतिवार तड़के आग लगने से कम से कम 15 सैनिकों की मौत हो गई।
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि पूर्वी आर्मीनिया के गेघारकुनिक प्रांत के अज़त गांव में स्थित एक बैरक में आग लगी।
मंत्रालय के मुताबिक, आग लगने की घटना में तीन सैनिक जख्मी हुए हैं और उनकी हालत गंभीर है। हालांकि मंत्रालय ने आग लगने के कारण के बारे में जानकारी नहीं दी है।
गेघारकुनिक क्षेत्र की सीमा अजरबैजान से लगती है। अजरबैजान और आर्मीनिया का नगोनो-काराबख को लेकर दशकों से विवाद है। नगोनो-काराबख अजरबैजान में है लेकिन इस पर नियंत्रण जातीय आर्मीनियाई बलों का है जिन्हें आर्मीनिया का समर्थन प्राप्त है।
सितंबर 2020 में छह हफ्ते तक चली जंग में अजरबैजान की सेना नगोनो-काराबख में काफी अंदर तक आ गई और उसने आर्मीनिया के बलों को खदेड़ दिया। इसके बाद उस साल नवंबर में आर्मीनिया को रूस की मध्यस्थता वाले शांति समझौते को स्वीकार करना पड़ा। (एपी)
न्यूज़ीलैंड, 19 जनवरी । न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने कहा है कि अगले महीने वो प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफ़ा देंगी.
ये घोषणा करते हुए उनका गला भर आया कि छह साल तक इस 'चुनौतीपूर्ण' पद को संभालने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है. उन्होंने कहा कि इसके बाद अब अगले चार साल में उनके पास योगदान देने के लिए कुछ ख़ास नहीं बचा है. इसलिए अब वो अगला चुनाव नहीं लड़ेंगी.
उन्होंने कहा कि सात फ़रवरी तक वो लेबर पार्टी की नेता के पद से इस्तीफ़ा दे देंगी जिसके बाद आने वाले दिनों में उनके उत्तराधिकारी को चुनने के लिए वोटिंग होगी.
न्यूज़ीलैंड में इस साल 14 अक्टूबर को आम चुनाव होने हैं.
42 साल की जेसिंडा ने कहा कि गर्मी की छुट्टियों के दौरान उन्होंने अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में सोच-विचार किया.
उन्होंने कहा, "मैंने उम्मीद की थी कि मुझे अपना बचा हुआ कार्यकाल पूरा करने की कोई वजह मिलेगी, लेकिन दुख की बात है कि ऐसा नहीं हुआ. अगर मैं अब भी अपने पद पर बनी रहती हूं तो इससे न्यूज़ीलैंड का नुक़सान होगा."
दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला राष्ट्र प्रमुख बनी थीं
टीनेजर रहते हुए अर्डर्न देश की लेफ़्ट पार्टियों से जुड़ी थीं. वो देश की अंतिम वामपंथी प्रधानमंत्री हेलेन क्लार्क के कार्यालय में काम करती थीं. इसके अलावा वो ब्रिटेन में टोनी ब्लेयर की सलाहकार भी रही थीं.
वो अपने चुनाव अभियानों में समाज में फैली असामनताओं की बात किया करती थीं. राजनीति में उन्हें क्या खींचता है, इस पर बात करते हुए कभी अर्डर्न ने कहा था कि "भूख से संघर्ष करते बच्चे और बिना जूते के उनके पांव ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया."
लेबर पार्टी के टिकट पर साल 2008 में संसद पहुंचीं अर्डर्न अगस्त 2017 में लेबर पार्टी की नेता चुनी गईं. हैमिल्टन में 1980 में जन्मी अर्डर्न साल 2017 में गठबंधन सरकार में न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री बनीं.
साल 2017 में 37 साल की उम्र में पीएम चुनी जाने वाली जेसिंडा अर्डर्न उस समय दुनिया में सबसे कम उम्र की महिला राष्ट्र प्रमुख बनी थीं. वो साल 1856 के बाद न्यूज़ीलैंड की सबसे युवा प्रधानमंत्री बनी थीं.
इसके एक साल बाद जून 2018 में वो दुनिया की दूसरी ऐसी राष्ट्राध्यक्ष बनीं जिन्होंने पद पर रहते हुए बच्चे को जन्म दिया.
उस वक्त एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "मैं काम करने वाली और मां बनने वाली पहली महिला नहीं हूं. कई महिलाओं ने पहले भी ऐसा किया है."
उनसे पहले 1990 में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने प्रधानमंत्री रहते हुए बेटी को जन्म दिया था. वह पद पर रहते हुए मां बनने वाली दुनिया की पहली नेता थीं.
2018 में उन्हें टाइम्स पत्रिका ने दुनिया के सबसे ताकतवर सौ नेताओं की लिस्ट में शामिल किया था.
अप्रैल 2019 में अर्डर्न ने अपने मंगेतर और लिव-इन पार्टनर क्लार्क गेफ़ोर्ड से शादी कर ली. क्लार्क पेशे से टीवी प्रेज़ेंटर हैं. दोनों लंबे वक़्त से रिश्ते में थे.
अक्तूबर 2020 में हुए चुनावों में उनकी पार्टी ने बहुमत हासिल किया जिसके बाद उनकी पार्टी ने 2020 में सरकार बनाई और अर्डर्न एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं.
चुनौती भरा कार्यकाल
अर्डर्न ने दुनिया भर की कामकाजी महिलाओं को यह संदेश दिया था कि नौकरी और ज़िम्मेदार पद पर रहते हुए भी एक महिला एक मां होने की ज़िम्मेदारी संभाल सकती है.
जुलाई 2017 में अर्डर्न का विपक्षी नेता के रूप में जब पहला दिन था तब वे एक टीवी शो में गई थीं. उस शो की होस्ट ने अर्डर्न से पूछा था कि वे करियर और बच्चे में से पहले क्या चुनेंगीं?
उस समय अर्डर्न ने कहा था, "यह एक महिला पर निर्भर करता है कि वह कब बच्चा चाहती है. यह तय नहीं करना चाहिए कि अगर वह नौकरी कर रही है तो उसे प्रेग्नेंट होने का अवसर नहीं मिलेगा."
अपने कार्यकाल में जेसिंडा ने कोरोना महामारी और इसके कारण आने वाली मंदी, क्राइस्टचर्च मस्जिद में हुई गोलीबारी और व्हाइट आइलैंड में ज्वालामुखी विस्फोट जैसी कई चुनौतियां देखीं.
उन्होंने कहा, "शांति के दौर में देश का नेतृत्व करना एक बात है, लेकिन संकट के दौर में ऐसा करना बड़ी चुनौती है. ये घटनाएं... मेरी परेशानी की वजह हैं क्योंकि ये बड़ी घटनाएं थीं, बेहद बड़ी घटनाएं और एक के बाद एक आती गईं. इस दौरान कोई वक्त ऐसा नहीं रहा जब मुझे लगा हो कि हम शासन का काम देख रहे हैं."
ओपिनियन पोल्स के अनुसार, साल 2020 में जेसिंडा अर्डर्न के नेतृत्व में लेबर पार्टी को भारी बहुमत से जीत मिली, लेकिन हाल के महीनों में देश के भीतर उनकी लोकप्रियता घटी है.
हालांकि इस पर अर्डर्न ने कहा कि लेबर पार्टी चुनाव नहीं जीतती इसलिए वो इस्तीफ़ा दे रही हैं ऐसा नहीं है, बल्कि इसलिए दे रही हैं ताकि पार्टी ज़रूर जीते. उन्होंने कहा, "हमें नया नेतृत्व चाहिए जो चुनौती ले सके."
भविष्य के लिए उम्मीदों वाला संदेश
पार्टी के डिप्टी अध्यक्ष ग्रांट रॉबर्टसन ने कहा है कि सोमवार को पार्टी नेतृत्व के लिए जो चुनाव होने वाला है उसमें वो उम्मीदवार के तौर पर उतरेंगे. चुनावों में अगर किसी एक उम्मीदवार को दो तिहाई सदस्यों का समर्थन नहीं मिल पाता, तो ऐसे में लेबर पार्टी का नेतृत्व ले मेम्बर के पास चला जाएगा. ले मेम्बर पार्टी की समिति में शामिल वो सदस्य होते हैं जो विधायक नहीं होते और सुचारू रूप के काम चलाए रखने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं.
अर्डर्न के इस्तीफ़े की घोषणा के बाद ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंटोनी अल्बनीज़ ने उनके नेतृत्व की तारीफ़ की और उन्हें एक समझदार, मज़बूत और दरियादिल नेता बताया.
ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "जेसिंडा न्यूज़ीलैंड के लिए एक मज़बूत आवाज रही हैं, वो मेरे लिए एक बढ़िया मित्र और कई लोगों के लिए प्रेरणा रही हैं."
संवाददाताओं से बात करते हुए अर्डर्न ने जलवायु परिवर्तन, सोशल हाउसिंग और बच्चों में ग़रीबी कम करने की अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनवाईं. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि देश के नागरिक उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर याद रखेंगे जिसने दयालु बने रहने की कोशिश की.
उन्होंने कहा, "मैं इस उम्मीद और विश्वास के साथ देश का नेतृत्व छोड़ रही हूं कि देश का नेता ऐसा हो जो नेकदिल होने के साथ मज़बूत हो, संवेदनशील होने के साथ फ़ैसले लेनेवाला हो, आशावादी हो और देश का काम एकाग्रता से करे और अपनी शख़्सियत की छाप छोड़े - और जिसे ये पता हो कि कब नेतृत्व छोड़ देना है." (bbc.com/hindi)
लंदन, 19 जनवरी ब्रिटिश-भारतीय उद्यमी एवं जातीय अल्पसंख्यक केंद्रित विपणन एजेंसी के संस्थापक मनीष तिवारी को ‘फ्रीडम ऑफ द सिटी ऑफ लंदन’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
इस मौके पर ‘हियर एंड नाउ 365’ नामक एजेंसी के संस्थापक तिवारी ने ‘डिक्लरेशन ऑफ ए फ्रीमैन’ का वाचन किया और ‘फ्रीमैन डिक्लेरेशन बुक’ पर हस्ताक्षर किया।
तिवारी ने कहा, ‘‘ बहु सांस्कृतिक विरासत की मजबूती के बल पर लंदन शहर आगे बढ़ रहा है और समृद्ध हो रहा है। यह वैश्विक अर्थ व्यवस्था में आगे है और बदलाव को अंगीकार कर रही है, मैं इस विरासत का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रहा हूं....।’’
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, दक्षिण अफ्रीका के नेता नेल्सन मंडेला और माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स को भी पूर्व में यह पुरस्कार प्रदान किया जा चुका है। (भाषा)
भारत में चल रहे हॉकी विश्व कप के दौरान जर्मन टीम ने एलजीबीटीक्यू+ के साथ एकजुटता दिखाई. जर्मन टीम के माट्स ग्रामबुश इंद्रधनुषी पट्टी लगाकर खेल रहे हैं, ताकि वे एक खुले और सहिष्णु समाज के लिए जागरूकता पैदा कर सकें.
डॉयचे वैले पर मनीरा चौधरी, यॉर्ग श्ट्रोशाइन की रिपोर्ट-
कतर में हुए फुटबॉल विश्वकप के विपरीत भारत में चल रहे हॉकी विश्व कप के दौरान कोई हंगामा नहीं हुआ, कोई विरोध नहीं. जर्मन टीम के कैप्टन माट्स ग्रामबुश ने जापान के खिलाफ अपने पहले मैच में कप्तान की पट्टी लगाने के बदले इंद्रधनुषी पट्टी लगाकर मैच खेला, तो भुवनेश्वर के कलिंग हॉकी स्टेडियम में कोई हंगामा नहीं हुआ. एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय के इस रंग-बिरंगे वैश्विक प्रतीक को बिना किसी विरोध के स्वीकार किया गया.
अब वे चाहे स्टेडियम में आए दर्शक रहे हों या अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन के पदाधिकारी, जर्मन हॉकी संघ ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी संघ के अधिकारियों को मैच के पहले ही ये बता दिया था. ग्रामबुश ने डॉयचे वेले से कहा, "मैं सचमुच मानता हूं कि खेल के माध्यम से समाज के मूल्यों को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. हमने ये तब भी किया होता यदि विश्वकप नीदरलैंड, जर्मनी या कतर में हुआ होता." वे अपने अभियान को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि कहते हैं, "हम इन मूल्यों का समर्थन करते हैं और इसे विश्व कप के दौरान भी दिखाना चाहते हैं. "
उम्मीद और एकजुटता का प्रतीक
दिसंबर में कतर में हुए फुटबॉल विश्व कप के दौरान समस्या ये थी कि अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ फीफा ने खेल के दौरान वन लव वाली पट्टी को बांधे जाने पर सख्त रोक लगा दी थी. इसकी वजह ये भी थी कि मेजबान कतर को इससे अनुचित व्यवहार की शिकायत थी. लेकिन हॉकी विश्व कप के दौरान ऐसी कोई दिक्कत सामने नहीं आई है. इसके विपरीत स्थानीय समुदाय में जर्मन हॉकी फेडरेशन के इस कदम पर सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई है. एलजीबीटीक्यू प्लस एक्टिविस्ट अनीश गवांडे ने डॉयचे वेले को बताया, "खुले प्रदर्शन में बड़ी शक्ति है, खासकर तब जब एक प्रमुख खिलाड़ी एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय के समेकन का खुला समर्थन करता है." उनका कहना है कि सहिष्णुता के ऐसे प्रदर्शन को रैडिकल कदम नहीं समझा जाना चाहिए.
अनीश गवांडे जर्मन हॉकी फेडरेशन के कदम को खेल जगत में क्वियर और ट्रांस सेक्सुअल लोगों की व्यापक स्वीकृति का प्रतीक मानते हैं. एक्टिविस्ट हरीश अय्यर ने डॉयचे वेले को बताया, "हर किसी को खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने का अधिकार है. इंद्रधनुषी रंग एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय के लिए उम्मीद और एकजुटता का प्रतीक है." वे कहते हैं कि सवाल ये नहीं होना चाहिए कि तुम ये पट्टी क्यों बांधे हो, बल्कि ये कि क्यों नहीं?
ग्रामबुश चाहते हैं कि सामान्य हो सेक्सुअल पहचान
भारत में एलजीबीटीक्यू प्लस समुदाय को सामाजिक मान्यता, सामाजिक प्रक्रिया के दौर से गुजर रही है. सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद समलैंगिकता अपराध नहीं है. इसके बावजूद इस समुदाय के लोग अभी खुलकर सामने आने की हिम्मत नहीं कर पाते, क्योंकि परिवार और समाज अभी तक इसे पूरी तरह स्वीकार नहीं कर रहा. अय्यर का कहना है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वयस्क लोगों के बीच सहमति से यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा लिया है और ऐसे लोगों को मान्यता दी है, जो खुद को ट्रांसजेंडर समझते हैं. वे कहते हैं कि अभी इस दिशा में और भी कदम उठाए जाने की जरूरत है , लेकिन सेक्शन 377 को खत्म कर इस दिशा में पहला कदम उठाया गया है.
जर्मन हॉकी टीम के कप्तान माट्स ग्रामबुश इस तथ्य से वाकिफ हैं कि होमोफोबियाका मामला सिर्फ भारत की समस्या नहीं है. वे कहते हैं, "इस मुद्दे को विभिन्न समाजों में बहस का विषय बनना चाहिए. यह बात सामान्य होनी चाहिए कि लोगों की विभिन्न सेक्शुअलिटी होती है, और इस पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए." माट्स ग्रामबुश पूरी दुनिया में स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में अपनी बांह पर इंद्रधनुषी पट्टी बांधकर खेल रहे हैं. (dw.com)
स्विट्जरलैंड में एक प्रयोग करके वैज्ञानिकों ने गिरती बिजली का रास्ता मोड़ दिया. यह तकनीक इमारतों को बिजली गिरने से होने वाले नुकसान से बचाने में मददगार हो सकती है.
1750 में बेंजामिन फ्रैंकलिन ने जब पतंग वाला अपना मशहूर प्रयोग किया था तो पहली लाइटनिंग रॉड यानी बिजली गिरने से बचाने वाली छड़ बनाई थी. तब उन्होंने एक पंतग को चाबी बांधकर तूफान में उड़ाया था. उस वक्त शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि आने वाली कई सदियों तक यही सबसे अच्छा तरीका बना रहेगा.
वैज्ञानिकों ने उस खोज को बेहतर बनाने की दिशा में अब जाकर कुछ ठोस कदम बढ़ाए हैं. लेजर की मदद से वैज्ञानिकों ने गिरती बिजली का रास्ता मोड़ने में कामयाबी हासिल की है. 16 जनवरी को उन्होंने इसका ऐलान किया. उन्होंने बताया कि उत्तर-पूर्वी स्विट्जरलैंड में माउंट सांतिस की चोटी से उन्होंने आसमान की ओर लेजर फेंकी और गिरती बिजली को मोड़ दिया.
वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस तकनीक में और ज्यादा सुधार के बाद इसे अहम इमारतों की सुरक्षा में लगाया जा सकता है और बिजली गिरने से स्टेशनों, हवाई अड्डों, विंड फार्मों और ऐसी ही जरूरी इमारतों को नुकसान से बचाया जा सकता है. इसका फायदा ना सिर्फ भवनों को होगा बल्कि संचार साधनों और बिजली की लाइनों जैसी अहम सुविधाओं की सुरक्षा के साथ-साथ हर साल हजारों लोगों की जान भी बचाई जा सकेगी.
कैसे हुआ प्रयोग?
यह प्रयोग माउंट सांतिस पर एक टेलिकॉम टावर पर किया गया, जो यूरोप में बिजली गिरने से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. 124 मीटर ऊंचा यह टावर स्विसकॉम कंपनी ने उपलब्ध कराया था. 2,500 मीटर ऊंची चोटी पर कुछ मशीनों को गोंदोला के जरिए पहुंचाया गया तो कुछ के लिए हेलीकॉप्टर की मदद ली गई.
2021 में दो महीने तक चले इस प्रयोग के दौरान बेहद तीक्ष्ण लेजर किरणों को 1,000 बार प्रति सेंकड की दर से आसमान की ओर फेंका गया. इस लेजर का निशाना कड़कती हुई बिजली थी. जब सिस्टम चालू था तब चार बार बिजली कड़की और उस पर सटीक निशाना लगाया गया.
पहली बार में तो शोधकर्ताओं ने दो तेज रफ्तार कैमरों की मदद से बिजली के रास्ते का मुड़ना रिकॉर्ड भी कर लिया. बिजली अपने रास्ते से 160 फुट यानी करीब 50 मीटर तक भटक गई थी. हालांकि हर बार भटकाव का रास्ता अलग रहा.
कैसे काम करती है तकनीक?
फ्रांस के ईकोल पॉलिटेक्नीक की लैबोरेट्री ऑफ अप्लाइड ऑप्टिक्स ने इस प्रयोग को को-ऑर्डिनेट किया था. लेजर लाइटनिंग रॉड प्रोजेक्ट नाम से इस शोध की रिपोर्ट 'नेचर फोटोनिक्स' पत्रिका में छपी है. इस शोध के मुख्य लेखक भौतिकविज्ञानी ऑरेलिएं ऊआर कहते हैं, "हमने पहली बार यह दिखाया है कि कुदरती बिजली का रास्ता बदलने के लिए लेजर का प्रयोग किया जा सकता है.”
कुदरती बिजली एक बहुत अधिक वोल्टेज वाला इलेक्ट्रिक करंट होता है जो बादल और धरती के बीच बहता है. ऊआर कहते हैं, "बेहद तीक्ष्ण लेजर इसके रास्ते में प्लाज्मा के लंबे कॉलम बना सकती है जो इलेक्ट्रॉन, आयन और गर्म हवा के अणुओं से बनते हैं.”
ऊआर बताते हैं कि ये प्लाज्मा कॉलम बिजली को दूसरी दिशाओं में निर्देशित कर सकते हैं. वह कहते हैं, "यह अहम है क्योंकि गिरती बिजली से सुरक्षा की दिशा में एक लेजर आधारित प्रक्रिया का यह पहला कदम है. (यह ऐसी प्रक्रिया है) जो समुचित लेजर ऊर्जा उपलब्ध हो तो असलियत में करीब एक किलोमीटर ऊंचाई तक जा सकती है.”
कब बनेगी मशीन?
लेजर फेंकने के लिए जिस मशीन का इस्तेमाल किया गया वह एक बड़ी कार जितनी बड़ी है और उसका वजन लगभग तीन टन है. इस मशीन को जर्मन कंपनी ट्रंफ ने बनाया है. इस प्रयोग में जेनेवा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की भी अहम भूमिका रही. इस पूरे प्रयोग में एयरोस्पेस कंपनी आरियाने ग्रूप ने भी सहयोग किया.
इस प्रयोग की अवधारणा 1970 के दशक में तैयार हो गई थी लेकिन अब तक इसे प्रयोगशालाओं में ही दोहराया जाता रहा. पहली बार इसे जमीन पर आजमाया गया. ऊआर का मानना है कि अभी इस पूरी तकनीक को मशीन के रूप में तैयार होकर बाजार में आने में 10-15 साल का वक्त लग सकता है.
गिरती बिजली से बचने के लिए अब तक जिस लाइटनिंग रॉड का इस्तेमाल होता रहा है, उसकी खोज फ्रैंकलिन ने 18वीं सदी में की थी. यह युक्ति असल में धातु की एक रॉड होती है जिसे एक तार के जरिए जमीन से जोड़ा जाता है. बिजली जब गिरती है तो इमारत से ऊपर होने के कारण सबसे पहले रॉड के संपर्क में आती है और तार के जरिए पूरा करंट जमीन में चला जाता है. इस मशीन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह एक छोटे से इलाके की ही सुरक्षा कर सकती है.
वीके/आरएस (रॉयटर्स)
क्या संकटग्रस्त जीवों को बचाने के लिए उन्हें किसी सुरक्षित जगह पर ले जाना सही होगा? ऐसी नई जगह, जहां वो कुदरती तौर पर न पाए जाते हों? हालांकि यूरोप में कई जगहों पर पुरानी स्थानीय प्रजातियां वापस लाई जा रही हैं.
संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने के इस तरीके पर लंबे समय से विचार हो रहा है. पहले यह कभी काफी विवादित और वर्जित माना जाता था. लेकिन जलवायु परिवर्तन के तेजी से बढ़ते असर के बीच कई प्रजातियों के कुदरती आवासों पर खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में जीवों को बचाने के लिए उन्हें किसी और जगह पर ले जाने का समाधान तेजी पकड़ रहा है.
ऐसी एक कोशिश हवाई में हो रही है. यहां समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण सीबर्ड प्रजातियों का वजूद खतरे में है. इन्हें बचाने के लिए वैज्ञानिक इन प्रजातियों को सैकड़ों मील दूर एक नए द्वीप पर ले जा रहे हैं. फिलहाल यह प्रयोग उत्तर-पूर्वी हवाई के टेर्न द्वीप पर ट्रीस्ट्रम्स स्टॉर्म पेट्रल को बचाने पर केंद्रित है. यह सीबर्ड की एक प्रजाति है. यह द्वीप समुद्रस्तर से बस छह फुट ही ऊपर है.
खतरे में पड़े जीवों को बचाने की कोशिश
करीब 40 चूजों को 805 किलोमीटर दूर हवाई के ही ओवाहो में शिफ्ट किया गया है. इनके लिए वहां कृत्रिम गड्ढे खोदे गए हैं. कई अन्य पक्षियों, छिपकलियों, तितलियों और यहां तक कि फूलों को बचाने के लिए भी इसी तरह के रीलोकेशन अभियानों का सुझाव दिया जा रहा है. ऐसे में ट्रीस्ट्रम्स स्टॉर्म पेट्रल से जुड़े अभियान की कामयाबी से भविष्य में ऐसी कोशिशों के लिए नई राह खुल सकती है.
एरिक वेंडरवैर्फ, गैर-सरकारी संगठन "पैसिफिक रिम कंजर्वेशन" में बायोलॉजिस्ट हैं. इस अभियान पर बात करते हुए वह बताते हैं, "टेर्न द्वीप बह रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण किसी प्रजाति को उसके पारंपरिक क्षेत्रीय दायरे से बाहर ले जाने जैसे तरीकों की जरूरत बढ़ रही है."
इस तरह से तापमान में बदलाव आने की प्रक्रिया पहले भी हुई है, लेकिन तब ऐसा परिवर्तन सदियों के दौरान धीरे-धीरे आता था. मौजूदा समय में कुछ ही दशकों के भीतर हम बड़े बदलाव देख रहे हैं. तस्वीर में: घाना में गल्फ ऑफ गिनी में गायब हो रहे समुद्रतट. क्लाइमेट चेंज के कारण कई जगहों पर समुद्र के बढ़ते जलस्तर से इलाकों का अस्तित्व भी संकट में है.
कानून में बदलाव से आसान हो सकती है प्रक्रिया
बाइडेन प्रशासन द्वारा अमेरिका के एंडेंजर्ड स्पीशीज एक्ट में बदलाव किए जाने का प्रस्ताव है. इन बदलावों के लागू होने पर सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रही कुछ प्रजातियों को रीलोकेट कर पाना आसान हो जाएगा. हालांकि इससे जुड़ी एक बड़ी आशंका भी है. कई जानकार मानते हैं कि जिस तरह घुसपैठिये पौधे और जानवरों से स्थानीय ईको सिस्टम के लिए खतरा पैदा होता है, वैसा ही नुकसान इस अभियान से भी देखने को मिल सकता है.
अमेरिका के वाइल्डलाइफ अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि इस अभियान के तहत, जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व का संकट झेल रही प्रजातियों के एक छोटे हिस्से को ही रीलोकेट किया जाए. हालांकि पश्चिमी प्रांतों में रिपब्ल्किन पार्टी इस प्रस्ताव का विरोध कर रही है. उनकी दलील है कि "घुसपैठिया प्रजातियों" को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर ले जाना पारिस्थितिकीय संकट पैदा कर सकता है. एंडेंजर्ड स्पीशीज एक्ट में बदलाव का प्रस्ताव जून 2023 में पूरा हो जाने का अनुमान है.
जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित बदलाव
जैसन मक्लाक्लेन, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉट्रे डैम में बायोलॉजिस्ट हैं. वह कहते हैं, "यह प्रस्ताव प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के बारे में हमारे सोचने के तरीके में आ रहे बड़े बदलाव को दिखाता है." हालांकि यह मामला केवल संरक्षित प्रजातियों तक सीमित नहीं है. मक्लाक्लेन बताते हैं कि इससे यह सवाल भी उठता है कि किसे "स्थानीय प्रजाति" कहा जाना चाहिए. क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण कुछ प्रजातियां ऊंचाई वाले इलाकों या ध्रुव के नजदीकी हिस्सों में जाने के लिए मजबूर हो रही हैं.
इस तरह से तापमान में बदलाव आने की प्रक्रिया पहले भी हुई है, लेकिन तब ऐसा परिवर्तन सदियों के दौरान धीरे-धीरे आता था. मौजूदा समय में कुछ ही दशकों के भीतर हम बड़े बदलाव देख रहे हैं. इनसे ईको सिस्टम बेहद तेजी से प्रभावित हो रहा है. मक्लाक्लेन कहते हैं, "समय के साथ हमें इस बारे में ऐसे सोचना होगा, जिससे मुझ समेत बाकी लोग असहज हो सकते हैं. यह कहना कि ये प्रजाति ठीक है और ये प्रजातियां ठीक नहीं हैं, यह सही नहीं होगा."
खतरे में पड़े जीवों को बचाने का दबाव
स्टॉर्म पेट्रल के संरक्षण की कोशिशों पर बात करते हुए एरिक वेंडरवैर्फ बताते हैं, "इससे पहले कि उनकी आबादी बेहद कम हो जाए, वैज्ञानिकों को कदम उठाने होंगे. अगर हमने कुछ नहीं किया, तो 30 साल के भीतर ये पक्षी निश्चित तौर पर बेहद दुर्लभ हो जाएंगे."
पारंपरिक आवास के बाहर जीवों को रीलोकेट करना अब भी सामान्य प्रक्रिया नहीं है.
अमेरिकी वन्यजीव अधिकारियों ने कई प्रजातियों के जीवों और पौधों की पहचान की है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन से खतरा है. मगर फिलहाल इन्हें कहीं और बसाने का प्रस्ताव नहीं है. फिश एंड वाइल्डलाइफ सर्विस के प्रवक्ता कैरन आर्मस्ट्रॉन्ग बताते हैं, "जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में कुछ प्रजातियों के आवास का दायरा बदल सकता है. या हो सकता है कि उनके मौजूदा कुदरती ठिकाने घुसपैठिया प्रजातियों के विस्तार के कारण रहने के अनुकूल ना रहें. हमारा मानना है कि प्रयोग के तौर पर प्रजातियों को उनके पारंपरिक दायरे से बाहर बसाना संरक्षण का एक संभावित तरीका बन सकता है."
किंगफिशरों पर अहम प्रयोग
फिलहाल चल रही कोशिशों के अंतर्गत अमेरिकी वन्यजीव अधिकारी ऐसे ही एक और प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं. उनकी योजना गुआम में प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाले पक्षियों से जुड़ी है. 1950 में सेना के एक मालवाहक जहाज के रास्ते सांपों की एक घुसपैठिया प्रजाति गुआम पहुंची. ब्राउन ट्री स्नेक नाम की इस प्रजाति के सांप ऑस्ट्रेलिया के तटीय इलाकों, इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी जैसे इलाकों में पाए जाते हैं. मगर गुआम में इनका अस्तित्व नहीं था. बाद के सालों में इन सांपों के फैलने के कारण किंगफिशर पक्षियों की तादाद काफी घट गई.
उन्हें बचाने के लिए 1980 के दशक में गुआम के स्थानीय किंगफिशर पक्षियों में आखिरी 29 को पकड़ा गया. इसके बाद उन्हें सुरक्षित स्थान पर पालकर प्रजनन करवाया गया. एक प्रस्ताव के तहत अब 9 किंगफिशरों को करीब 6,000 किलोमीटर दूर पैलमायरा द्वीप पर छोड़ने की योजना है. अगर ये रीलोकेशन कामयाब रहा, तो ये किंगफिशर "वन्यजीवन में विलुप्त" हो चुकी श्रेणी से वापस "क्रिटिकली एंडेंजर्ड" में आने वाले बेहद चुनिंदा प्रजातियों में से एक होंगे.
एसएम/एमजे (एपी)
लंदन, 19 जनवरी | हॉकी स्टिक से आवासीय कॉलोनी की खिड़की व कई अन्य अपराधों के लिए 48 वर्षीय एक सिख पर जुर्माना लगाया गया और गाड़ी चलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। मारस्टन रोड, लीसेस्टर के जोतिंदर सिंह पर पिछले सप्ताह 480 पाउंड का जुर्माना, 192 पाउंड का पीड़ित अधिभार और 85 पाउंड का कोर्ट खर्च अदा करने का आदेश दिया गया।
लीसेस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा उसे 22 महीने के लिए गाड़ी चलाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
पिछले साल 7 सितंबर को सिंह ने लीसेस्टर सिटी सेंटर के डी मोंटफोर्ट हाउस में गलत जगह पर कार पार्क करन से रोकने पर हॉकी स्टिक से एक खिड़की तोड़ दी थी।
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल एक सिविल कोर्ट की सुनवाई के बाद हुई क्षति के लिए वह 2,000 पाउंड चुका रहा है।
सिंह को 2004, 2010 और 2011 में ड्रिंक-ड्राइविंग के लिए सजा सुनाई जा चुकी है।
2011 में उसे चार साल के लिए गाड़ी चलाने से प्रतिबंधित कर दिया गया था।
एक स्पीड कैमरे ने उसे 28 मई, 2022 को 66 मील प्रति घंटे और अगले दिन 52 मील प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी चलाते हुए पकड़ा।
पिछले महीने वह मैनर रोड, थुरमास्टोन में शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए पकड़ा गया था। (आईएएनएस)|
लॉस एंजिलिस, 19 जनवरी | रियलिटी टीवी स्टार किम कार्दशियां ने राजकुमारी डायना का एक नेकलेस करीब 200,000 डॉलर में खरीदा है। 42 वर्षीय रियलिटी सुपरस्टार ने कथित तौर पर सोथबी के वार्षिक रॉयल निकॉल नीलामी में 197,453 डॉलर में दिवंगत राजकुमारी द्वारा पहना गया हीरे से जड़ा नीलम अट्टाल्लाह क्रॉस नेकलेस खरीदा।
राजकुमारी डायना की मृत्यु 1997 में 36 वर्ष की आयु में एक कार दुर्घटना में हो गई थी।
एक बयान में, सोथबी लंदन के आभूषण प्रमुख, क्रिस्टियन स्पोफोर्थ ने कहा, "यह अपने आकार, रंग और शैली से गहनों का एक बोल्ड पीस है। चाहे वह विश्वास के लिए हो या फैशन के लिए - या वास्तव में दोनों। हमें खुशी है कि इसको विश्व स्तर पर प्रसिद्ध नाम के हाथों में जाने का मौका मिला है।" (आईएएनएस)|
-उस्मान ज़ाहिद
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा है कि उनका पाकिस्तान के नए सेना अध्यक्ष से कोई संबंध नहीं है. बीबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा कि शहबाज़ शरीफ़ की सरकार इसी साल अप्रैल में आम चुनाव कराने के लिए मजबूर हो जाएगी.
इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ़ ने कुछ दिनों पहले पंजाब और अब ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह विधानसभा को भंग कर दिया है. पार्टी के चेयरमैन इमरान ख़ान से बीबीसी संवाददाता ने पूछा कि क्या वो पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को सुधारने और देश की हालत ठीक करने के लिए शहबाज़ शरीफ़ सरकार से बातचीत करने के लिए तैयार हैं?
इमरान ख़ान का कहना था, "आज तक कौन सा ऐसा नेता आया है जो अपनी ही सरकार को गिरा देता है जो कि 70 फ़ीसद पाकिस्तान है. यह सरकार (शहबाज़ शरीफ़ सरकार) ऑक्शन के ज़रिए आई है, इलेक्शन के ज़रिए नहीं."
उन्होंने आरोप लगाया कि "शहबाज़ शरीफ़ की सरकार सांसदों की ख़रीद-फ़रोख़्त से आई है जिसने 20-25 करोड़ रुपए देकर लोगों को ख़रीदा है. जनरल बाजवा ने उनकी मदद की, उन्हें हमारे ऊपर बिठाने के लिए."
इमरान ख़ान शरीफ़ सरकार पर हमला करते हुए कहा, "उन्होंने 1100 अरब रुपए के भ्रष्टाचार के मामले ख़त्म कर दिए. हमारी अर्थव्यवस्था का बेड़ा ग़र्क़ करके रख दिया. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति कभी ऐसी नहीं थी, जो आज है."
उन्होंने कहा कि इससे निकलने का केवल एक ही हल है, "साफ़-सुथरा चुनाव. जब तक पाकिस्तान में चुनाव नहीं होते, ना तो देश के अंदर का कोई निवेशक या कारोबारी इस सरकार पर भरोसा करता है और ना ही बाहर का कोई निवेशक."
उन्होंने आगे कहा, "हमलोग एक दलदल में धंसते जा रहे हैं. श्रीलंका जैसी स्थिति से बचने के लिए एक ही रास्ता है, देश में साफ़-सुथरा चुनाव हो. इसी कारण हमनें दो-दो प्रांतों में अपनी सरकार गिरा दी."
पाकिस्तान के कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीटीआई अगस्त में आम चुनाव चाहती और सरकार के कई मंत्री बार-बार कह चुके हैं कि मौजूदा सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी और अक्टूबर में आम चुनाव होंगे.
इस पर इमरान ख़ान का कहना था, "मौजूदा सरकार ने क़ानून की धज्जियां उड़ा दी हैं. इस सरकार ने अपने आपको क़ानून के ऊपर कर दिया है. सारी चोरी माफ़ करवा दी है. यह वो केस थे जो उनके अपने दौर में बने हुए थे."
उन्होंने आगे कहा, "शहबाज़, नवाज़, ज़रदारी, मरियम यह सब बच गए हैं. उनपर सारे मुक़दमें ख़त्म हो गए हैं. इनका मक़सद अपने केस ख़त्म करना है."
उनका कहना था कि इस समय दो महीने भी बहुत दूर लग रहे हैं और अगस्त नहीं, वह (इमरान ख़ान) तो अभी की बात कर रहे हैं.
इमरान ख़ान का कहना था, "हमें तो लग रहा है कि इस सरकार के लिए दो महीने और गुज़ारना भी मुश्किल है. मेरी अपनी भविष्यवाणी है कि जो भी हो जाए, यह सरकार अप्रैल में चुनाव कराने पर मजबूर हो जाएगी."
अप्रैल 2023 में आम चुनाव होना इसलिए भी अहम होगा क्योंकि ठीक एक साल पहले इसी महीने में इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ संसद में अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ था और उनकी सरकार गिर गई थी और वो पिछले एक साल से पूरे पाकिस्तान में समय से पहले चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं.
उन्होंने दावा किया कि "इस्टैबलिश्मेंट (पाकिस्तानी सेना) ने परवेज़ इलाही पर पूरा ज़ोर लगाया कि वो नून लीग के मुख्यमंत्री बन जाएं या मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा नहीं दें. लेकिन हमने फ़ैसला किया था कि हम विधानसभा को भंग कर देंगे."
इमरान ख़ान ने आगे कहा, "मगर उन्होंने हमसे वफ़ादारी निभाई और हमें वफ़ादारी वापस देनी थी. उनकी (परवेज़ इलाही) पार्टी पीटीआई में विलय हो जाएगी और वो हमारी पार्टी का हिस्सा बन जाएंगे."
पाकिस्तान में एक आम राय यह है कि राजनीतिक अस्थिरता के कारण सरकार आर्थिक मोर्चे पर कोई कड़ा फ़ैसला नहीं ले पा रही है और कुछ विश्लेषकों का कहना है कि तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी की मुहिम इस अस्थिरता को और बढ़ा रही है.
इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "उनसे कोई यह सवाल पूछे कि उन्होंने साज़िश करके हमारी सरकार क्यों गिराई थी जबकि 17 साल में हमारी सबसे बेहतर आर्थिक स्थिति थी."
उन्होंने कहा, "हम कौन सी ग़लती कर रहे थे कि उन्होंने सेना प्रमुख के साथ मिलकर हमारी सरकार गिरा दी. उसके बाद उनसे संभाली नहीं गई. मैंने और शौकत तरीन (उस समय के वित्त मंत्री) ने मिलकर जनरल बाजवा को बताया था कि अगर आपने राजनीतिक अस्थिरता पैदा की तो अर्थव्यवस्था को कोई नहीं संभाल सकेगा. और वही हुआ."
जनरल बाजवा पर हमला करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "उन्हें (शहबाज़ शरीफ़ सरकार) आते के साथ ही अंदाज़ा हो गया था कि उनके पास तो कोई रोडमैप ही नहीं है. जनरल बाजवा ने उनके साथ मिलकर जो किया है, दुश्मन भी पाकिस्तान के साथ ना करता."
उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि उठा कर देख लें कि अप्रैल 2022 में पाकिस्तान कहां खड़ा था और आज कहा हैं. उनका कहना था, "मेरी सरकार के समय उन्होंने तीन लॉन्ग मार्च किए थे. हर वक़्त मेरी सरकार की आलोचना कर रहे थे, उसके बावजूद हम विकास कर रहे थे."
पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से रिश्ते के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में इमरान ख़ान ने कहा, "हमारा नए सेना प्रमुख से कोई संबंध नहीं है."
'दहशतगर्दी में अचानक तेज़ी नहीं आई'
इमरान ख़ान ने कहा कि उन्होंने कई मामलों में अपनी राय बदली है. तालिबान के साथ बातचीत के मामले में उनकी राय बिल्कुल साफ़ है कि उनसे शांति वार्ता दोबारा बहाल की जानी चाहिए.
लेकिन हाल में चरमपंथी गतिविधियों में बढ़ोत्तरी के बाद क्या उनकी राय में कोई बदलाव नहीं आया है,
यह पूछे जाने पर इमरान ख़ान का कहना था, "ऐसा नहीं हुआ है. जैसे ही अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता बदली, तो अफ़ग़ानिस्तान में बैठी टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) को अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान वापस जाने के लिए कहा. अशरफ़ ग़नी की सरकार उनकी हिम्मत बढ़ा रही थी और यह (टीटीपी) वहीं से पाकिस्तान पर हमले कर रहे थे."
इमरान ख़ान ने कहा कि टीटीपी के पाकिस्तान वापस आने के बाद पाकिस्तान के पास दो ही विकल्प थे.
उनका कहना था, या तो उन 40 हज़ार लोगों, लड़ाकों और उनके परिवार वालों को खड़ा करके गोली मार देते या फिर उनको दोबारा बसाने की कोशिश करते. सारी राजनीतिक पार्टियां इसके लिए तैयार थीं लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
इमरान ख़ान ने कहा कि पाकिस्तान में दहशतगर्दी अचानक नहीं बढ़ी है. उनका कहना था, "टीटीपी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. उनको दोबारा नहीं बसाया गया. उनके ऊपर कोई पैसा नहीं ख़र्च किया गया. हमें इस बात का डर था कि अगर इनपर ध्यान नहीं दिया गया तो जगह-जगह दहशतगर्दी होगी, जो हो रही है." (bbc.com/hindi)
-लॉरा गॉज़्ज़ी लंदन से और डेविड घिग्लियोन रोम से
इटली के मोस्ट वॉन्डेट माफ़िया बॉस को सिसली में एक निजी क्लिनिक के सामने पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.
एक व्यक्ति को कैफे की तरफ जाते देखकर एक पुलिसकर्मी ने उनसे उनका नाम पूछा. व्यक्ति ने झूठ कहने की कोशिश नहीं की बल्कि पुलिसकर्मी की तरफ देखकर कहा, "तुम्हें पता है मैं कौन हूँ. मैं माटेओ मेसीना डेनारो हूं."
इस वक्त तक पुलिस को इस बात का भरोसा नहीं था कि जिस व्यक्ति से नाम पूछा जा रहा है वो माफ़िया "बॉस के भी वो बॉस हैं" जिनकी तीन दशकों से पुलिस को तलाश थी.
क्लिनिक में इलाज के लिए माटेओ ने एन्ड्रिया बोनाफेड के नाम से अपॉइंटमेंट बुक कराई थी. लेकिन सालों की रिसर्च के बाद और केवल एक कंप्यूटराइज़्ड तस्वीर की मदद से माटेओ की जांच कर रही इटली की पुलिस को भरोसा था ये व्यक्ति वही हैं जिसकी उन्हें सालों से तलाश थी.
जिस वक्त माटेओ कोसा नॉस्ट्रा अपराधी गिरोह के प्रमुख हुआ करते थे उस वक्त इस गिरोह ने धोखाधड़ी, कूड़े को अवैध तरीके से डंप करने, पैसों का हेरफेर और नशे का व्यापार जैसे काम किए. साल 2002 में माटेओ को कई हत्याओं का दोषी पाया गया. अदालत ने जिस वक्त ये ये फ़ैसला दिया उस वक्त माटेओ अदालत में मौजूद नहीं थे.
कथित तौर पर वो टोटो रीना के क़रीबी माने जाते हैं जो कारलियोनी माफ़िया के प्रमुख रहे थे. पुलिस ने उन्हें 23 सालों की तलाश के बाद 1993 में गिरफ्तार किया था.
रेगियो डी कलाब्रिया में टोटो रीना को पुलिस अदालत में पेश करने के लिए ले जा रही है
1993 से ही माटेओ मेसीना डेनारो ग़ायब हो गए. तीस सालों तक जांचकर्ता उनकी तलाश करते रहे, लेकिन पहचान के लिए उनके पास केवल माटेओ के चेहरे का एक स्केच था और ऑडियो टेप में रिकॉर्ड उनके आवाज़ के कुछ सैंपल
बाद में उन्हें वेनेज़ुएला से लेकर नीदरलैंड्स में देखे जाने की ख़बरें आती रहीं. लेकिन आख़िर में उन्हें सिसली के केंद्र पालेरमो में गिरफ्तार किया गया.
इटली में वरिष्ठ पत्रकार एंड्रिया परगटोरी ने बीबीसी को बताया, "उन्हें पकड़ने में काफ़ी अधिक वक्त लगा. माफ़िया सरगनों की तरह उनके आसपास भी मददग़ारों का एक जटिल नेटवर्क था जिसकी जड़ें बेहद गहरी थीं."
कई लोगों का मानना है कि सोमवार को माटेओ की गिरफ्तारी इसलिए हो सकी क्योंकि असल में उन्हीं के एक सहयोगी ने ये ख़बर लीक की थी. शायद इस सहयोगी को लग रहा था कि माफ़िया सरगना अब बूढ़े हो चुके हैं और उनके लिए फायदेमंद नहीं रह गए हैं.
एंड्रिया परगटोरी कहते हैं कि, "एक ज़माना था जब इटली के मोस्ट वॉन्टेड माफ़िया सरगना पालेरमो की सड़कों पर खुलेआम बाहर निकलते थे. कोसा नॉस्ट्रा के लिए पालेरमो जैसी उसका प्रमुख अड्डा बन गया था."
आख़िर में इसी व्यस्त शहर के केंद्र में उन्हें एक सार्वजनिक जगह से माटेओ को पकड़ा गया. लेकिन 30 साल की तलाश के बाद आख़िर कैसे पुलिस ने उन्हें कैसे पकड़ा?
एक संवाददाता सम्मेलन में पुलिस ने इस कहानी को खारिज कर दिया कि उन्हें माटेओ के बारे में किसी ने कोई ख़ुफ़िया सूचना दी थी.
पुलिस का कहना था कि उन्होंने जांच के पुराने तरीके अपनाए और संदिग्ध को पकड़ने के लिए आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल किया था.
रोम के एलयूआईएसएस यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और वकील मित्या जालूज़ कहते हैं, "बीते सालों में माटेओ मेसीना डेनारो के इर्दगिर्द उनके वफ़ादारों और उनके नेटवर्क के लोगों की जैसे एक दीवार बना दी गई थी."
लगभग एक दशक तक पुलिस ने ऐसे कई लोगों को पकड़ा जिनपर माटेओ की मदद करने का शक़ था. इस दौरान सौ से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें उनके परिवार के लोग शामिल थे. साथ ही उनसे जुड़े 13 करोड़ डॉलर के बिज़नेस को भी ज़ब्त किया गया.
पत्रकार तियो लूज़ी कहते हैं, "धीरे-धीरे उनके आसपास का उनका नेटवर्क कमज़ोर होता गया... इस कारण वो वक्त के साथ और अकेले पड़ते गए."
इस बीच माटेओ के परिजनों के फ़ोन की टैपिंग भी चलती रही. उन्हें भी इस बात का अंदाज़ा रहा होगा कि उनकी बातें सुनी जा रही हैं इसलिए वो लोग भी 'कैंसर पीड़ित लोग' और 'कैंसर सर्जरी' जैसे आम शब्दों का इस्तेमाल करते और संकेतों में बात करते.
लेकिन ये भी जांचकर्ताओं के लिए काफी था, ख़ासकर इसलिए कि इस तरह की अफ़वाहें हर तरफ थीं कि माटेओ मेसीना डेनारो बीमार हैं.
इस जानकारी के साथ-साथ जांचकर्ताओं को ये भी पता चला कि माटेओ के साथी इंटरनेट पर क्रॉन्स नाम की बीमारी (आतों में सूजन के कारण पेट में भीषण दर्द) और लीवर कैंसर के बारे में सर्च रहे थे.
इन सभी जानकारियों के आधार पर पुलिस ने अंदाज़ा लगाया कि माफ़िया सरगना मटेओ अपना इलाज करवाने के लिए क्लीनिक से संपर्क में हैं.
इसके बाद पुलिस ने उन सभी मरीज़ों के आंकड़े जुटाने शुरू किए जिनका जन्म साल 1962 में पश्चिमी सिसली के ट्रापनी में हुआ था. जांचकर्ताओं ने उन सभी मरीज़ों की ज़िदगी से जुड़े तथ्य जुटाना शुरू किया और अपनी खोज पहले दस तक और फिर पांच तक सीमित की.
इसमें से जो एक नाम जिसने पुलिस का ध्यान खींचा वो था एन्ड्रिया बोनाफेड. ये नाम असल में मॉफ़िया सरगना रहे लियोनार्डो बोनाफेट के एक रिश्तेदार का था.
पुलिस को पता चला कि बोनाफेड नाम के एक व्यक्ति ने पालेरमो में साल 2020 और 2021 में दो बार सर्जरी कराई थी. हालांकि जब बोनाफेड के फ़ोन की फ़ोन-मैपिंग की गई तो पता चला कि जिन दो दिनों में सर्जरी हुई थी उनमें से एक दिन असली बोनाफेड का फ़ोन सिसली की राजधानी से काफी दूर लोकेट किया गया.
जब एन्ड्रिया बोनाफेड के नाम से क्लिनिक में एक सेशन बुक किया गया तो पुलिस को केवल ये अंदाज़ा था कि ये व्यक्ति माटेओ हो सकते हैं.
सोमवार सुबह सिसली के ला मैडेलिना के क्लिनिक को सशस्त्र सेनाबल के सौ सैनिकों ने चारों तरफ से घेर लिया.
माटेओ जिस वक्त एक कैफ़े की तरफ जा रहे थे उन्होंने देखा कि उनके आसपास पुलिस की भारी तैनाती है. वो वापिस लौटने के लिए मुड़े लेकिन उन्होंने देखा कि सामने की सड़क पर कुछ पुलिसकर्मी हैं. वो भागे नहीं. शायद उन्हें भी ये अंदाज़ा था कि उनका पकड़ा जाना केवल वक्त की बात है.
एक पुलिस अधिकारी कर्नल लुसियो आर्चिडियाकोनो ने इटली के TGcom24 को बताया कि वो बीते आठ सालों से माटेओ की तलाश करने वाली टीम का हिस्सा थे.
कर्नल लुसियो माफ़िया बॉस को आंखों के सामने देखने के अनुभव पर कहते हैं, "वो व्यक्ति था जिसकी तस्वीरें मैंने कई बार देखी थीं, वो सशरीर मेरे सामने था."
माटेओ के बारे में कहा जाता है कि गिरफ्तार किए जाने से लेकर एयरपोर्ट तक ले जाते वक्त "विनम्र और मृदुभाषी" बने रहे. उन्हें रातोंरात नज़दीकी एयरपोर्ट से सेना के एक विमान में बैठाकर अब्रूज़ो के ला'क़िला में बनी कड़ी सुरक्षा वाली जेल में ले जाया गया.
गिरफ्तारी से पहले माटेओ किस तरह की ज़िंदगी जीते थे इसे लेकर थोड़ी-बहुत जानकारी अब सामने आने लगी है. वो पालेरमो से 116 किलोमीटर दूर कैम्पोबेलो डी माज़ारा में एक सामान्य घर में रहा करते थे. ये जगह उनके जन्मस्थान कास्टेलवेट्रानो से केवल आठ किलोमीटर दूर थी.
उनके एक पड़ोसी ने बताया कि कई बार उनकी मुलाक़ात माटेओ से हुई थी और आम तौर पर दोनों ही एक दूसरे का अभिवादन करते थे.
प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार माटेओ के घर पर पुलिस को कोई हथियार नहीं मिला. उनके घर से महंगे परफ्यूम, फर्नीचर और डिज़ाइनर कपड़े मिले हैं.
महंगी और लग्ज़री चीज़ों के लिए माटेओ का प्यार किसी से छिपा नहीं. जिस वक्त उन्हें गिरफ्तार किया गया उन्होंने लगभग 35 लाख रुपए की घड़ी पहनी हुई थी.
प्रोफ़ेसर मित्या जालूज़ कहते हैं कि अधिकारियों और पीड़ित परिवारों के लिए माटेओ परेशानी का सबब बने रहे लेकिन उन्हें पकड़ने में सालों की देरी के कारण उन्हें लेकर कई तरह की कहानियां बनने लगीं.
वो कहते हैं, "स्पष्ट बात है कि वो बेहत सतर्कता भरी ज़िंदगी जीते थे और उन्हें अपनी हर हरकत को लेकर सावधानी बरतनी होती थी."
लेकिन इसकी संभावना कम है कि डिटिजल फुटप्रिंट छोड़ने के जोखिम के कारण माटेओ ने ही ख़ुद तकनीक का इस्तेमाल किया होगा.
प्रोफ़ेसर मित्या जालूज़ समझाते हैं, "बिना किसी परेशानी के काम करते रहना जारी रखने के लिए माफ़िया सरगना को तकनीक से दूर रहना होता है और जीवन जीने के पुराने तरीके अपनाने होते हैं. उन्हें मौखिक बातचीत की तह तक जाकर ख़ुफ़िया कोड की समान्तर व्यवस्था बनानी होती है तकि वो अपने सहयोगियों से बातचीत करना जारी रख सकें."
माटेओ की गिरफ्तारी के बाद इटली में लोग चौंक गए हैं. प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी सैन्यबलों को मुबारकबाद देने के लिए विमान के ज़रिए सीधे सिसली पहुंचीं.
एंड्रिया परगटोरी कहते हैं, "माटेओ आख़िरी गॉडफ़ादर थे और वे सबसे निर्दयी माने जाते हैं."
'मैंने इतनों को मारा है कि पूरा कब्रिस्तान भर जाए'
माटेओ के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने एक बार कहा था कि उन्होंने जितने लोगों को मारा है उससे एक कब्रिस्तान पूरा भर सकता है.
एंड्रिया कहती हैं कि साल 1990 तक हर रोज़ मर्डर होना आम बात हुआ करती थी. एंड्रिया कहते हैं कि 2002 में अदालत ने उनकी ग़ैरमौजूदगी में उन्हें हत्याओं के आरोप में उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी.
माटेओ मेसीना डेनारो पर हत्या के आरोप
- 1992 में माफ़िया का विरोध करने वाले अभियोजन पक्ष के जियोवानी फैल्कोन और पाउलो बोर्सेलिनो की हत्या.
- अपने विरोधी माफ़िया के सरगना की गर्भवती गर्लफ्रेंड एन्टोनेला बोनानो की हत्या.
- मिलान, फ्लोरेंस और रोम में बम हमले, जिनमें 10 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
- जोसेप डी माटेओ के 11 साल के बेटे का अपहरण और उसकी हत्या.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एसेक्स में क्रिमिनोलॉजी के प्रोफ़ेसर ऐना सेर्गी ने बीबीसी को बताया कि इस बात में संदेह है कि माफ़िया की बदले रूप का प्रतीक बन चुके अपने बॉस के बिना कोसा नॉस्ट्रा अब आगे पनप पाएगी.
वो कहती हैं, "उनके बाद अब कौन माफ़िया का बॉस बनेगा या कोई बनेगा भी, अभी ये देखना बाक़ी है." (bbc.com/hindi)
अमेरिका ने कहा है कि उससे सैन्य साज़ो-सामान की मदद चाहने वाले देशों के लिए भारत एक ‘बढ़िया उदाहरण’ है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के प्रवक्ता पैट राइडर ने कहा कि अमेरिका समझता है कि कुछ देशों को रूसी या सोवियत युग के हथियारों के रखरखाव की ज़रूरत होती है.
उन्होंने कहा, “कई ऐसे देश हैं जिन्होंने रूस के साथ रक्षा संबंध बनाए हुए हैं. ये उनका अपना फ़ैसला और अधिकार है.”
उनसे पूछा गया था कि क्या इस बात की आशंका नहीं है कि अमेरिका जिन देशों को टेक्नोलॉजी देता है वो रूस के पास न पहुंच जाएं.
ग़ौरतलब है कि जब भारत ने रूस से एस-400 मिसाइल की ख़रीद की तो अमेरिका ने नाराज़गी ज़ाहिर की थी.
साल 1997 में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा व्यापार न के बराबर था, जो आज 20 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है.
अक्टूबर 2018 में भारत ने रूस के साथ पांच अरब डॉलर का एक रक्षा सौदा किया जिसके तहत रूस निर्मित एयर मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम एस-400 की पांच यूनिट भारत को मिलनी थीं.
इस सौदे को लेकर तत्कालीन ट्रंप प्रशासन ने प्रतिबंध लगाने की धमकी तक दी थी. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन की राजधानी कीएव में हुए हेलीकॉप्टर क्रैश के बाद राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि 'युद्ध काल में दुर्घटनाएं' नहीं घटतीं. इस क्रैश में 14 लोगों की मौत हो गई है.
यूक्रेन ने हालांकि अभी तक इस हादसे के पीछे रूस का हाथ होने का दावा नहीं किया है, लेकिन ज़ेलेंस्की ने दावोस में विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ़) पर कहा है कि ये हादसा युद्ध का नतीजा है.
इस हादसे में यूक्रेन के गृह मंत्री डेनिस मोनास्टीर्सकी की उनके कुछ सहयोगियों के साथ मौत हो गई.
वीडियो के ज़रिए अपने संबोधन में ज़ेलेंस्की ने अपने सहयोगी पश्चिमी देशों से जल्द से जल्द और हथियार भेजने की भी अपील की.
नेटो के प्रमुख ने इसी मंच पर अपने संबोधन में कहा कि यूक्रेन को जल्द ही नए, अधिक शक्तिशाली और आधुनिक हथियार मिलेंगे.
जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने ये भी कहा कि कीएव को कौन से हथियार भेजे जाएं, इस पर चर्चा के लिए नेटो के सदस्य शुक्रवार को मिलने वाले हैं.
बुधवार को हुए हेलीकॉप्टर क्रैश में मरने वाले 14 लोगों में एक बच्चा भी था.
42 वर्षीय गृहमंत्री डेनिस मोनास्टीर्सकी रूस के हमले के बाद यूक्रेन के सबसे बड़े अधिकारी हैं जिनकी मौत हुई है. (bbc.com/hindi)