अंतरराष्ट्रीय
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का मानना है कि यूक्रेन युद्ध के लिए रूस को ज़िम्मेदार ठहराना सही नहीं है. उन्होंने कहा कि दोनों देश "त्रासदी का हिस्सा हैं"
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के साथ टीवी पर बोलते हुए रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि वो यूक्रेन को "भाई जैसा" समझते हैं.
उन्होंने कहा कि विवाद "तीसरे देशों की नीतियों" कारण हुआ है, रूस की नीति के कारण नहीं.
पुतिन ने दावा किया कि सोवियट विघटन के बाद पश्चिम ने टूट कर बने देशों का "ब्रेनवॉश" किया है, और इसकी शुरुआत यूक्रेन से हुई.
उन्होंने कहा, "सालों तक हम यूक्रेन के साथ पड़ोसी के तौर पर बेहतर रिश्ते बनाने की कोशिश करते रहे, उन्हें लोन दिया, सस्ती ऊर्जा दी, लेकिन ये काम नहीं आया."
उन्होंने कहा, "हमें दोष देना ठीक नहीं है. हमने हमेशा यूक्रेन को अच्छे पड़ोसी और भाई की तरह देखा है और मैं अभी भी ऐसा ही सोचता हूं."
"जो अभी हो रहा है वो एक त्रासदी है, लेकिन हमारी ग़लती नहीं है."
साथ में मौजूद सैन्य अधिकारी ने कहा कि वो तथाकथित "स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन" 2023 में जारी रखेंगे.
पुतिन ने कहा कि रूस पैसा ख़र्च करने को तैयार है, और इसकी कोई लिमिट नहीं है. (bbc.com/hindi)
काबुल, 21 दिसंबर। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बुधवार को तालिबान सुरक्षा बलों ने विश्वविद्यालयों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाकर उनके लिए उच्च शिक्षा के द्वार बंद कर दिये है।
इस फैसले के बाद मिले एक वीडियो में महिलाएं एक (विश्वविद्यालय) परिसर के बाहर रोती-बिलखती और एक-दूसरे को सात्वंना देती नजर आ रही हैं।
एक दिन पहले ही देश के तालिबान शासकों ने आदेश जारी कर देशभर में महिलाओं के निजी एवं सरकारी विश्वविद्यालयों में पढ़ने पर तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक रोक लगा दी। तालिबान प्रशासन ने इसका कोई कारण नहीं बताया और न ही उसने इसकी कड़ी वैश्विक निंदा पर प्रतिक्रिया दी है।
इस बीच पाकिस्तान ने तालिबान से अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है।
बुधवार को काबुल में विश्वविद्यालयों के बाहर तालिबान सुरक्षाकर्मी नजर आये जिन्होंने कुछ महिलाओं को अंदर जाने से रोका जबकि कुछ अन्य को अंदर जाकर अपना काम पूरा करने की अनुमति दी। उन्होंने किसी भी प्रकार की फोटोग्राफी, शूटिंग या विरोध प्रदर्शन को रोकने की कोशिश की।
काबुल विश्वविद्यालय के प्रवक्ता रहीमुल्ला नदीम ने इस बात की पुष्टि की कि महिलाओं के लिए कक्षाएं बंद कर दी गयी है। उन्होंने कहा कि कुछ महिलाओं को कागजी कार्रवाई एवं प्रशासनिक कारणों से अंदर जाने दिया गया।
एक कार्यकर्ता संगठन ‘यूनिटी एंड सोलिडरिटी ऑफ अफगानिस्तान वूमेन’ की कार्यकर्ता बुधवार सुबह यहां एक निजी विश्वविद्यालय के बाहर इकट्ठा हुईं और उन्होंने नारेबाजी की।
उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा को राजनीतिक रूप मत दीजिए। एक बार फिर महिलाओं के लिए विश्वविद्यालय बंद कर दिया गया है, हम नहीं चाहते हैं कि हमें (शिक्षा से) बाहर रखा जाए।’’
प्रारंभ में महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान करने तथा और अधिक उदार शासन का वादा करने के बावजूद तालिबान ने व्यापक रूप से इस्लामिक कानून या शरिया को कड़ाई से लागू किया है। उसने अगस्त, 2021 में सत्ता पर कब्जा कर लिया था।
उच्च शिक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता जियाउल्लाह हाशमी द्वारा मंगलवार को साझा किये गये पत्र में कहा गया है कि सभी निजी एवं सरकारी विश्वविद्यालय (महिलाओं के प्रवेश पर) इस पाबंदी को लागू करें और पाबंदी लगाने की सूचना मंत्रालय को दें।
इस्लामाबाद से प्राप्त समाचार के अनुसार पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘‘ पाकिस्तान अफगानिस्तान में छात्राओं के लिए विश्वविद्यालय एवं उच्च शिक्षा पर लगाई गई रोक से निराश है।’’
विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान का रूख स्पष्ट है। उसने कहा, ‘‘हमारा दृढ़ रूप से मानना है कि हर पुरुष एवं महिला को इस्लाम के अनुसार शिक्षा का जन्मजात अधिकार प्राप्त है।’’ (एपी)
जर्मनी के विदेश मंत्री अन्नावेना बेयरबॉक ने 19वीं शताब्दी में नाइजीरिया से लूटी गई कलाकृतियों को नाइजीरिया को एक समारोह में वापस कर दिया.
'बेनिन ब्रॉन्ज़ेस' के इस सेट को इस साल की शुरुआत में हुए एक डील के तहत लौटाया गया है. डील एक हज़ार से ज़्यादा कीमती चीज़ों को लौटाने की हुई थी.
जुलाई में नाईजीरिया ने कहा था कि पहली बार किसी यूरोपीय देश ने ऐसा एग्रीमेंट किया है.
बेयरबॉक ने कहा कि ये "काले औपनिवेशिक इतिहास" को मिटाने के प्रयासों का हिस्सा था.
अंबुजा में मंगलवार को उन्होंने कहा कि ये मौका इतिहास की गलतियों को सही करने का है.
उन्होंने कहा, "मेरे देश के अधिकारी एक बार ब्रॉन्ज़ लेकर आए थे, ये जानते हुए कि उन्हें चुराया गया है."
बेयरबॉक ने जर्मनी के ब्रॉडकास्टर डीडब्ल्यू से कहा, "हम ने कई बार इन्हें नाईजीरिया को लौटा दिए जाने की अपील की थी. उन्हें लाना एक ग़लती थी और रखना भी ग़लत था."
लौटाई गई वस्तुओं में कुछ प्रसिद्ध सिर की कलाकृतियां, एक हाथी दांत की नक्काशी, साथ ही एक सजी हुई पट्टिका शामिल है. (bbc.com/hindi)
ब्रिटेन, 21 दिसंबर । 21 साल पहले अपने तीन बच्चों के सामने उनकी मां की हत्या करने के बाद ब्रिटेन से पाकिस्तान भागे एक शख्स को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई है.
62 वर्ष के ज़फर इकबाल ने पिछले महीने अपना गुनाह कबूल किया. ज़फर इकबाल को कम से कम 19 साल सलाखों के पीछे बिताने होंगे.
लंदन के ओल्ड बेली में जस्टिस मुनरो केसी ने सोमवार, 19 दिसंबर को ज़फर इकबाल को यह कहते हुए फैसला सुनाया कि '21 साल पहले आपने तलाक के परिणामों का सामना करने के बजाय अपनी 38 वर्षीय पत्नी को मारने का फ़ैसला किया. जिसकी वजह से आपके उन बच्चों को पीड़ा हुई है, जिनसे आप प्यार और रक्षा करने वाले थे."
ज़फर इकबाल और उनकी मृतक पत्नी नज़ियात जफर के दोनों बच्चों ने अदालत में दिए बयान में कहा था कि ''... हम अपनी मां का नाम इज्ज़त के नाम पर मारी जाने वाली महिलाओं की गिनती में नहीं शामिल होने देंगे. हमारी माँ की कहानी हमारे साथ है. वो महिलाओं की आवाज़ के दमन के ख़िलाफ़ हमेशा अभियान चलाएंगे.
ज़फर इकबाल के दो बच्चों ने कहा कि वे 21 साल से इस दिन का इंतज़ार कर रहे थे और उस दौरान उन्हें 'बेहद मुश्किलों' का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने 'कभी उम्मीद नहीं छोड़ी'.
इस बयान में अपने पिता को संबोधित करते हुए बच्चों ने कहा कि 'हमें छोड़कर जाते समय आपने यह भी नहीं सोचा था कि हमारा क्या होगा, आपने जो किया वह वास्तव में अक्षम्य है.'
"हमारी माँ वास्तव में एक महान महिला थीं, एक प्यार भरे दिल के साथ, उन्होंने हमारे लिए सब कुछ किया और हम इसे कभी नहीं भूलेंगे."
जब ज़फर इकबाल ने अपनी पत्नी की हत्या की तो उनके चार बच्चे 15, 10, 10 और 3 साल के थे. अदालत को बताया गया कि ज़फर इकबाल और उनकी पत्नी के बीच तलाक की कार्यवाही चल रही थी.
ज़फर इकबल के ब्रिटेन से भाग जाने के बाद उनके ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय गिरफ़्तारी वारंट जारी किया गया था और पाकिस्तानी अधिकारियों से एक औपचारिक प्रत्यर्पण अनुरोध किया गया था.
फिर 16 साल बाद दिसंबर 2017 में, अधिकारी ज़फर इकबाल का पता लगाने में कामयाब रहे और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया गया.
गिरफ़्तारी के बाद ज़फर इकबाल को सितंबर 2021 में ब्रिटेन को सौंप दिया गया था.
नज़ियात ज़फर का जन्म इंग्लैंड में हुआ था और उनकी शादी 1985 में पाकिस्तान में ज़फर इकबाल से हुई थी. (bbc.com/hindi)
-इक़बाल अहमद
यह तस्वीर 2003 की है. बेनज़ीर भुट्टो भारत के तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के नई दिल्ली स्थित आवास पर मिलने गई थीं
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो का एक बयान इन दिनों सुर्ख़ियों में है.
उन्होंने 15 दिसंबर, 2022 (गुरुवार) को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक बैठक के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'गुजरात का क़साई' कहा था.
इससे पहले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पाकिस्तान को 'आतंकवाद का केंद्र' क़रार दिया था. जयशंकर के बयान के जवाब में बिलावल ने मोदी के ख़िलाफ़ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया था.
भारत ने बिलावाल भुट्टो के बयान पर कड़ा एतराज़ जताया था और इसे असभ्य क़रार दिया था.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से सोमवार (19 दिसंबर) को बिलावल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि पाकिस्तान ने जो कहा, उससे यही उम्मीद की जा सकती है.
बिलावल भुट्टो की मां बेनज़ीर भुट्टो पाकिस्तान की दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं. उनके नाना ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो भी पाकिस्तान के विदेश मंत्री, राष्ट्रपति (1971-73) और प्रधानमंत्री (1974-1977) रह चुके हैं.
लेकिन यह भी सच है कि उनके भारत से बहुत अच्छे संबंध भी रहे हैं और चाहे ज़ुल्फ़िक़ार भुट्टो हों या बेनज़ीर भुट्टो उनके कई क़रीबी और पारिवारिक मित्र भारतीय रहे हैं.
इसका एक कारण यह हो सकता है कि पाकिस्तान की सत्ता पर बैठकर वो भारत के ख़िलाफ़ चाहे जो भी नीति अपनाते थे, लेकिन इस सच्चाई को भी नकारा नहीं जा सकता था कि भुट्टो परिवार का भारत से संबंध चार पुश्त पुराना है.
शाहनवाज़ भुट्टो लड़काना (सिंध) के बड़े ज़मींदार थे और कहा जाता है कि उनके पास क़रीब ढाई लाख एकड़ ज़मीन थी.
सिंध उस समय बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा था, इसलिए शाहनवाज़ भुट्टो का रिश्ता मौजूदा भारत से भी ख़ूब रहा है.
शाहनवाज़ भुट्टो ने एक हिंदू राजपूत महिला लाखी बाई से शादी की थी जिन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था और उन्हें ख़ुर्शीद बेगम कहा जाने लगा. शाहनवाज़ और ख़ुर्शीद बेगम के चार बेटे ओर एक बेटी थीं.
ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो शाहनवाज़ और ख़ुर्शीद बेगम के तीसरे बेटे थे.
शाहनवाज़ भुट्टो की ढेर सारी जायदाद बॉम्बे में भी थी, इसीलिए उन्होंने ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो को शुरुआती पढ़ाई के लिए बॉम्बे के कैथेडरल स्कूल भेजा था.
भारत की आज़ादी के समय शाहनवाज़ भुट्टो भारत की जूनागढ़ रियासत के दीवान (प्रधानमंत्री) थे. 15 अगस्त, 1947 को भारत आज़ाद हुआ और इसके साथ ही पाकिस्तान का जन्म हुआ तो जूनागढ़ रियासत के आख़िरी नवाब मोहम्मद महाबत ख़ान तृतीय ने पाकिस्तान में विलय का फ़ैसला कर लिया.
पाकिस्तान ने सितंबर में इसे स्वीकार भी कर लिया लेकिन जूनागढ़ की हिंदू बहुल जनता ने इसका विरोध किया और फिर जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया.
इसके बाद जूनागढ़ के नवाब और शाहनवाज़ भुट्टो दोनों पाकिस्तान चले गए.
ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो पाकिस्तान के विदेश मंत्री बन गए और 1963 में तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह से बातचीत की थी.
इस बातचीत का कोई आधिकारिक ब्यौरा नहीं है लेकिन अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक मेमो (27 जनवरी, 1964) से पता चलता है कि भुट्टो भारत प्रशासित कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग को वापस लेने के लिए तैयार हो गए थे और जनमंत संग्रह के बजाय कोई और रास्ता अपनाने के लिए तैयार थे.
दूसरी तरफ़ भारत भी इस बात को स्वीकार करने को तैयार था कि कश्मीर का मुद्दा विवादित है.
लेकिन यह बातचीत नाकाम हो गई और फिर पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर का मुद्दा उठाया.
इसी दौरान भुट्टो पर ऑपरेशन जिबरॉल्टर चलाने का आरोप लगा, जिसका मक़सद भारत प्रशासित कश्मीर में प्रशिक्षित लड़ाकों को भेजना था.
1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ और फिर संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में सीज़फ़ायर हुई.
1966 में भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब ख़ान के बीच ताशकंद में समझौता हुआ.
भुट्टो ने विदेश मंत्री रहते हुए इस समझौते का विरोध किया था.
भुट्टो परिवार को बहुत क़रीब से जानने वाले और ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की बायोग्राफ़ी (मेरा लहू) लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक फ़र्रुख़ सुहैल गोइंदी कहते हैं कि भुट्टो की लोकप्रिय राजनीति की शुरुआत ही ताशकंद समझौते के विरोध से होती है.
इसी दौरान भुट्टो का एक बयान बहुत ही मशहूर हुआ था, जब उन्होंने 1967 में एक राजनीतिक रैली में कहा था कि हम भारत से एक हज़ार साल तक जंग लड़ेंगे.
फ़र्रुख़ सुहैल गोइंदी के अनुसार 60 के दशक में पाकिस्तान में भारत विरोधी राजनीतिक लहर थी और भुट्टो ने अपनी सियासत को आगे बढ़ाने के लिए इसका पूरा फ़ायदा उठाया.
15 दिसंबर, 1971 में जिस दिन ढाका (पूर्वी पाकिस्तान की राजधानी, जो बाद में बांग्लादेश की राजधानी बनी) पर भारतीय सेना ने जीत हासिल की थी उस दिन भुट्टो अमेरिका में थे.
उन्होंने समझौते का संयुक्त राष्ट्र में विरोध किया और उस समझौते के काग़ज़ात को फाड़कर फेंक दिया था और संयुक्त राष्ट्र की बैठक से बाहर निकल आए थे.
लेकिन फिर वही भुट्टो 1972 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ शिमला समझौता करते हैं, जिसमें पाकिस्तान ने पहली बार इस बात को स्वीकार किया कि कश्मीर का मसला दोनों देश (भारत और पाकिस्तान) आपस में बातचीत के ज़रिए हल करेंगे और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई ज़रूरत नहीं.
शिमला समझौते के बाद फ़्रांस के एक अख़बार को उन्होंने इंटरव्यू दिया था. पत्रकार ने जब उनसे एक हज़ार साल तक युद्ध की बात और फिर शिमला समझौता की बात की तो भुट्टो ने अपने बयान से पलटते हुए कह दिया कि भारतीय उप-महाद्वीप में मुसलमानों का इतिहास एक हज़ार साल पुराना है और वो दरअसल इसके बारे में बयान दिया था ना कि भारत से एक हज़ार साल तक लड़ने की बात की थी.
लेकिन सिर्फ़ दो साल के बाद 1974 में भारत ने जब पहला परमाणु परीक्षण किया तो भुट्टो (उस समय प्रधानमंत्री बन गए थे) ने फ़ौरन एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और कहा कि भारतीय उप-महाद्वीप अब असुरक्षित हो गया है और इसलिए अब पाकिस्तान भी परमाणु शक्ति बनेगा.
उनका एक और बयान बहुत मशहूर हुआ जब उन्होंने कहा था कि हम घास खा लेंगे लेकिन परमाणु बम ज़रूर बनाएंगे.
फ़र्रुख़ सुहैल गोइंदी के अनुसार, भुट्टो की इस बदलती विचारधारा का मुख्य कारण पाकिस्तान की अंदुरूनी सियासत थी.
उनके अनुसार पाकिस्तान का पंजाब प्रांत भारत के क़रीब होने के कारण भारत की राजनीति से प्रभावित होता है और पाकिस्तान का कोई नेता जब तक पंजाब में लोकप्रिय नहीं होता है उसे पूरे पाकिस्तान का नेता नहीं माना जाता है.
पीपीपी चूंकि सिंध की पार्टी मानी जाती है, इसलिए पंजाब में लोकप्रिय होने के लिए किसी भी राजनेता को भारत विरोधी स्टैंड लेना ज़रूरी है.
लाहौर स्थित पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद मुमताज़ अहमद कहते हैं कि ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने ताशकंद समझौते का इस्तेमाल करके अय्यूब ख़ान के ख़िलाफ़ एक आंदोलन की शुरुआत की और पाकिस्तान की जनता के सामने ख़ुद को कश्मीर के हीरो के तौर पर पेश किया.
लेकिन पहले ताशकंद, फिर यूएन में भारत-पाकिस्तान सीज़फ़ायर (1971) के काग़ज़ात फाड़ना और फिर शिमला समझौता, भुट्टो की राजनीतिक सोच में इस बदलाव का क्या कारण था?
फ़र्रुख़ सुहैल गोइंदी कहते हैं कि पंजाबी इस्टैबलिशमेंट को वो पैग़ाम देना चाहते थे कि वो पाकिस्तान विरोधी नहीं हैं.
उनके अनुसार, पाकिस्तानी सत्ता, दक्षिणपंथी धार्मिक गुट और ख़ासकर सेना में भुट्टो परिवार को शक की निगाह से देखा जाता है, कम से कम उस तरह से नहीं देखा जाता है जिस तरह से मुस्लिम लीग को देखा जाता है.
लेकिन भुट्टो को शक की निगाह से क्यों देखा जाता था इसकी एक वजह फ़र्रुख़ गोइंदी कहते हैं कि भुट्टो ने 1967 में जो आंदोलन चलाया था वो बहुत ही क्रांतिकारी आंदोलन था जो पूरी तरह से वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थी और जो धार्मिक समूहों और सेना के विरोध में थी. उनके अनुसार इस आंदोलन में सबसे ज़्यादा आम नौजवान और कामगार शामिल थे.
हालांकि मुमताज़ अहमद कहते हैं कि 1971 की जंग में भारत से हार के बाद पाकिस्तानी सेना कमज़ोर हो गई थी, इसलिए भुट्टो पर वो ज़्यादा दबाव नहीं डाल सकती थी.
उनके अनुसार इसीलिए भुट्टो ने भारत के साथ शिमला समझौता किया और सेना ने कुछ नहीं किया, लेकिन यह भी सच है कि शिमला से लाहौर पहुंचने के बाद भुट्टो ने सबसे पहले यही बयान दिया कि कश्मीर के मामले में पाकिस्तान ने अपनी नीति में कोई बदलाव या समझौता नहीं किया है.
भुट्टो ने अपनी मां के लिए खुलेआम गाली दी
ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की मां एक हिंदू राजपूत महिला थीं, जिन्होंने बाद में इस्लाम धर्म अपनाया था. क्या इसके कारण भुट्टो किसी दबाव में रहते थे और ख़ुद को ज़्यादा भारत विरोधी दिखाना चाहते थे?
फ़र्रुख़ गोइंदी के अनुसार भुट्टो को हमेशा इस बात का एहसास था कि उनकी मां एक साधारण परिवार से आती थीं और वो कहते थे कि मैं एक ग़रीब मां का बेटा हूं और मैंने देखा है कि ग़रीबों के साथ समाज कैसा सलूक करता है.
लाहौर स्थित पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद मुमताज़ अहमद कहते हैं कि जमात-ए-इस्लामी पार्टी के लोग और उनके अख़बार भुट्टो की हिंदू मां के कारण उनको हमेशा निशाना बनाते थे.
वो एक वाक़्या सुनाते हुए कहते हैं कि 1977 के चुनाव प्रचार के दौरान भुट्टो ने एक रैली में कहा कि मेरे राजनीतिक विरोधी मेरी मां को रोज़ाना गाली देते रहते हैं इसलिए मेरा भी आज उनलोगों को गाली देने का दिल कर रहा है.
मुमताज़ अहमद के अनुसार, उन्होंने रैली में मौजूद महिलाओं से कहा कि अब शाम हो चुकी है इसलिए आप घर चली जाएं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि आपलोग गाली सुनें.
वो कहते हैं कि भुट्टो ने सचमुच में उस रैली के दौरान अपने राजनीतिक विरोधियों को एक पंजाबी गाली दी. हालांकि दोनों ही राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भुट्टो के राजनीतिक फ़ैसले में उनकी मां के हिंदू होने का कोई दख़ल नहीं था.
बेनज़ीर भुट्टो
बेनज़ीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं. पहली बार 1988 से 1990 तक और फिर 1993 से 1996 तक. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय टेलीविज़न पर कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए आज़ादी, आज़ादी, आज़ादी का नारा लगाया. लेकिन फिर उनकी सोच में भी बदलाव आया.
बेनज़ीर हमेशा कहती थीं कि उनके तीन रोल मॉडल हैं, उनके पिता ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो, जोन ऑफ़ आर्क और इंदिरा गांधी.
राजनीति में आने से पहले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान में विदेश सेवा के अधिकारी के तौर पर 1978-82 के बीच काम कर चुके हैं.
अय्यर कहते हैं कि 1971 के पहले पाकिस्तान जैसे सोचता था, वो बांग्लादेश बन जाने के बाद बिल्कुल बदल गया था.
अय्यर कहते हैं, "1971 के पहले पाकिस्तान सोचता था कि एक मुसलमान (कभी चार, चालीस, कभी 400 कहते थे), हिंदुओं का मुक़ाबला कर सकता है. कल शाम तक लाल क़िले पर इस्लाम का झंडा लहराएगा."
मणिशंकर अय्यर कहते हैं कि जब वो पाकिस्तान में थे तो पाकिस्तान में फिर कोई वैसी बात नहीं करता था और जनरल ज़िया-उल-हक़ भी चाहते थे कि भारत से संबंध बेहतर हो.
राजीव गांधी ने दिसंबर, 1988 और फिर जुलाई 1989 में पाकिस्तान का दौरा किया था तब बेनज़ीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री थीं.
इससे पहले 1960 में जवाहरलाल नेहरू ने पाकिस्तान का दौरा किया था.
अय्यर कहते हैं कि पहली बार तो राजीव गांधी सार्क सम्मेलन में शामिल होने के लिए गए थे लेकिन जुलाई 1989 में राजीव गांधी, बेनज़ीर भुट्टो की गुज़ारिश पर गए थे.
सार्क सम्मेलन के दौरान बेनज़ीर ने राजीव गांधी और सोनिया गांधी को अपने आवास पर रात के खाने पर बुलाया था.
इंग्लैंड में यूनिवर्सिटी के दिनों में बेनज़ीर भुट्टो के क़रीबी दोस्त रहे भारत के जाने माने पत्रकार करण थापर उस डिनर का ज़िक्र करते हैं.
बेनज़ीर की मौत के बाद अंग्रेज़ी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स में छपे एक लेख में थापर लिखते हैं, "उस ज़माने में एक मज़ाक़ चलता था कि राजीव गांधी और बेनज़ीर को शादी कर लेनी चाहिए और दोनों देशों की समस्या का समाधान कर लेना चाहिए. बेनज़ीर ने मुझे बाद में बताया कि डिनर के दौरान इस बात को लेकर हम लोग बहुत हँसे. बेनज़ीर ने मुझसे कहा कि राजीव (गांधी) कितने हैंडसम हैं लेकिन उतने ही टफ़ भी हैं."
करण थापर के अनुसार, बेनज़ीर भुट्टो ने लालकृष्ण आडवाणी के परिवार से भी अच्छी दोस्ती कर ली थी. थापर के अनुसार एक बार साल 2002 में उनकी मुलाक़ात अमेरिका में बेनज़ीर से हुई और उन्होंने उनके हाथों आडवाणी के लिए एक किताब (अमेरिकी लेखक रॉबर्ट कपलान की किताब) तोहफ़े में भेजी. थापर के अनुसार, बेनज़ीर ने बाद में भी आडवाणी के लिए उनके हाथों कई तोहफ़े भेजे.
करण थापर ने साल 2018 में लिखी अपनी किताब में पूरा एक चैप्टर बेनज़ीर भुट्टो पर लिखा है.
करण थापर का मानना है कि साल 2001 के बाद से ही फ़्री ट्रेड, सॉफ़्ट बॉर्डर और कश्मीर के दोनों हिस्सों के लिए एक संयुक्त संसद की बात करने लगीं थीं.
फ़र्रुख़ सुहैल गोइंदी भी कहते हैं कि बेनज़ीर चाहती थीं कि भारत और पाकिस्तान यूरोपीय यूनियन की तरह हो सकते हैं.
मणिशंकर अय्यर कहते हैं कि राजीव गांधी की मौत के बाद वो एक बार पाकिस्तान गए थे. उनके जाने का मुख्य उद्देश्य राजीव गांधी फ़ाउंडेशन के एक कार्यक्रम में बेनज़ीर भुट्टो को दावत देनी थी.
अय्यर कहते हैं कि उन्होंने दावत तो स्वीकार कर ली थी लेकिन किसी कारण भारत नहीं आ सकीं थीं.
अय्यर के मुताबिक़ इसी दौरान बेनज़ीर ने उनसे कहा था, "मैं समझती हूँ कि मैंने जो सबसे बड़ी ग़लती की थी वो कश्मीर के बारे में मैंने जो बयान दिया था."
तो क्या भुट्टो परिवार को भारत विरोधी कहा जा सकता है ?
भारत की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और योजना आयोग की सदस्य रह चुकी और ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो पर किताब लिख चुकी सैय्यदा सैय्यदैन हमीद कहती हैं कि ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को अगर भारत से नफ़रत नहीं थी तो इस बात के भी सबूत नहीं हैं कि उन्हें भारत से प्यार या कोई ख़ास लगाव था.
वो कहती हैं कि कैसे उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण के दौरान अपने 11 साले के बेटे मुर्तुज़ा भुट्टो का नाम लेकर कहा कि उसने उन्हें कहा है कि वो भारत-पाकिस्तान सीज़फ़ायर (सरेंडर डॉकूमेंट) काग़ज़ात को लेकर पाकिस्तान वापस नहीं आएं.
सैय्यदा हमीद कहती हैं कि भुट्टो ने फांसी से पहले जो आख़िरी बयान दिया उसमें भी भारत का कहीं कोई ज़िक्र नहीं था.
लेकिन मुमताज़ अहमद कहते हैं कि भुट्टो जवाहरलाल नेहरू को बहुत पंसद करते थे और एक तरह से यह कहना ग़लत नहीं होगा कि वो नेहरू को अपना आइडियल राजनेता मानते थे.
जब भुट्टो को जनरल ज़िया ने फांसी देने का फ़ैसला किया तो इंदिरा गांधी ने भी एक बयान देकर उसका विरोध किया. इंदिरा गांधी उस समय विपक्ष में थीं लेकिन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जनरल ज़िया का साथ देते हुए भुट्टो की फांसी के ख़िलाफ़ कोई बयान नहीं दिया था.
भारतीय राजनेता पीलू मोदी ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के बचपन के दोस्त थे और एक तरह से कहा जाए तो वो बॉम्बे में उनको शहरी तौर-तरीक़ा सिखाने वाले उनके उस्ताद थे.
उनकी दोस्ती बरसों बरस रही और पीलू मोदी ने एक किताब भी लिखी, 'ज़ुल्फ़ी, माई फ़्रेंड.' सिर्फ़ पीलू मोदी ही ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो को ज़ुल्फ़ी बुला सकते थे.
फ़र्रुख़ गोइंदी कहते हैं कि पीलू मोदी का उन्होंने उनकी मौत से एक दिन पहले इंटरव्यू किया था. इस दौरान पीलू मोदी ने उन्हें बताया कि भुट्टो जवानी के दिनों में बॉम्बे में कपड़े की दुकान खोलना चाहते थे.
फ़र्रुख़ गोइंदी कहते हैं, "मुमकिन है अगर ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ज़्यादा पढ़े नहीं होते तो आज बॉम्बे में उनका परिवार होता और कपड़े की उनकी दुकान होती."
बिलावल का हालिया बयान
बिलावल भुट्टो के हालिया बयान के बारे में मुमताज़ अहमद कहते हैं कि भारत के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान के बारे में जो बयान दिया था उसके बाद बिलावल के पास कोई गुंजाइश नहीं थी, उसका जवाब ऐसा ही कुछ होना था.
वो कहते हैं, "बिलावल भुट्टो को मौक़ा मिला है कि वो ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो की 1965 की विरासत को दोबारा ज़िंदा कर सकें. भारत में बिलावल के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होंगे तो उसका राजनीतिक करियर बढ़ेगा."
मणिशंकर अय्यर भी कहते हैं, "भारत को समझना चाहिए था कि अगर हम कठोर शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो पाकिस्तान की तरफ़ से भी कड़ा जवाब मिलेगा."
आगे का रास्ता
मणिशंकर कहते हैं कि उन्हें डर है कि पाकिस्तान फिर कहीं 1971 से पहले वाली सोच की तरफ़ ना लौट जाए और इसका एक ही इलाज है कि भारत और पाकिस्तान की बातचीत दोबारा शुरू की जाए.
वो कहते हैं कि हमें निजी व्यक्ति के बयान और उसकी सोच के बजाए इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि भारत के हित में क्या है.
पाकिस्तान के पत्रकार सैय्यद मुमताज़ अहमद भी कहते हैं कि पाकिस्तान का हर राजनेता भारत से अच्छे रिश्ते चाहता है लेकिन वहां की इस्टैबलिश्मेंट यानी सेना ऐसा नहीं चाहती और जब तक उसकी सोच में बदलाव नहीं होगा, भारत-पाकिस्तान के रिश्ते नहीं सुधर सकते हैं. (bbc.com/hindi)
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय एलियंस और उड़नतश्तरियों की तफ्तीश को खासी तवज्जो दे रहा है. पिछले करीब दो साल से इस संबंध में गहन जांच चल रही है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा है कि ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं कि कोई एलियंस पृथ्वी पर आए हैं या उनका विमान क्रैश हुआ है. मीडिया से बातचीत में अमेरिकी उप रक्षा मंत्री रोनाल्ड मौल्ट्री ने कहा कि एलियंस के अस्तित्व का अब तक कोई सबूत नहीं है.
मौल्ट्री ने कहा, "अब तक जो हमारे पास है, उसमें मुझे ऐसा कुछ नहीं दिखा है कि धरती पर एलियन आए हों या कोई एलियन-क्रैश हुआ हो.”
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने एक नया विभाग बनाया है जिसे ऑल-डोमेन एनोमली रेजॉल्यूशन ऑफिस (एएआरओ) नाम दिया गया है. बाह्य अंतरिक्ष में जीवन की खोजके लिए बनाए गए इस विभाग के निदेशक शॉन कर्कपैट्रिक हैं जो कहते हैं कि इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता कि ब्रह्मांड में कहीं और जीवन नहीं है लेकिन वह इस खोज में वैज्ञानिक नजरिये से काम कर रहे हैं.
जुलाई में एएआरओ के गठन के बाद पहली बार मीडिया से बातचीत में कर्कपैट्रिक ने कहा, "मैं बस इतना कहूंगा कि हम अपने विश्लेषण की पूरे विस्तार और गहनता के साथ संरचना तैयार कर रहे हैं. फिर हम उसका पूरा अध्ययन करेंगे.”
उन्होंने कहा कि वह आंकड़ों के आधार पर ही बात करना चाहते हैं. उन्होंने कहा, "एक भौतिकविज्ञानी के तौर पर मैं वैज्ञानिक तरीकों पर ही काम करूंगा और जहां भी हो विज्ञान और आंकड़ों को ही मानूंगा.”
एएआरओ का मिशन सैन्य अधिष्ठानों, प्रतिबंधित वायु सीमा क्षेत्रों और ‘हित से जुड़े अन्य इलाकों' में ऐसी गतिविधियों की जांच करना है, जिनकी कोई व्याख्या उपलब्ध नहीं है. इस अभियान के जरिये अमेरिकी अधिकारी अपने देश और सेना के अभियानों की सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते हैं.
सैकड़ों घटनाएं दर्ज
पिछले साल सरकार ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें 2004 से अब की 140 ऐसी घटनाओं का जिक्र है जिन्हें अमेरिकी सेना ‘अनआइडेंटिफाइड एरियल फिनोमिना' (यूएपी) कहते हैं. यानी ये ऐसी घटनाएं हैं जिनकी कोई दुनियाबी व्याख्या नहीं की जा सकी है.
रिपोर्ट कहती है कि इन 140 में से एक ही मामला है जिसमें गर्म हवा के गुब्बारे को देखा गया और उड़नतश्तरी समझ लिया गया. बाकी किसी मामले की व्याख्या नहीं की जा सकी है और इसका और अध्ययन किए जाने की जरूरत है.
रिपोर्ट में यह भी पता चला कि इन 139 मामलों से इतर 143 मामले ऐसे हैं जिनके बारे में बहुत काम जानकारी उपलब्ध है. इसलिए यह समझना ही मुश्किल है कि ये घटनाएं कैसी थीं. साथ ही यह कहना भी मुश्किल है कि ये घटनाएं किसी बाहरी दुनिया की ताकत के कारण हुईं या फिर रूस या चीन जैसी किसी महाशक्ति द्वारा अंजाम दी गईं.
2021 में आई इस रिपोर्ट में ऐसी कई घटनाएं शामिल हैं जिनमें कुछ उड़ती हुई चीजों को इतनी तेज रफ्तार के साथ आते जाते या उतरते देखा गया, जितनी रफ्तार अब तक ज्ञात तकनीक के हिसाब से संभव नहीं है.
कर्कपैट्रिक ने कहा कि तब और कई सौ घटनाएं दर्ज की जा चुकी हैं और सटीक आंकड़ा जल्द ही जारी किया जाएगा. हालांकि मई में एक वरिष्ठ अमेरिकी नौसैनिक अधिकारी ने कहा था कि रिपोर्ट में 400 से ज्यादा घटनाओं को दर्ज किया गया है.
ऐतिहासिक घटनाओं की जांच
अमेरिकी संसद के सदन कांग्रेस ने इसी हफ्ते अपना सालाना रक्षा नीति अधिनियम पारित किया है. इस बिल में रक्षा मंत्रालय की एलियंस को खोजने की कोशिश को विशेष स्थान दिया गया है. बिल पर अभी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अभी दस्तखत नहीं किए हैं. इसमें 1945 से अब तक यूएफओ नजर आने की तमाम घटनाओं के विश्लेषण की बात कही गई है.
कर्कपैट्रिक ने बताया, "यह अच्छा खासा शोध प्रोजेक्ट बन जाएगा.” अमेरिकी वायु सेना ने 1969 में ऐसा एक शोध प्रोजेक्ट चलाया था जिसे प्रोजेक्ट ब्लू बुक नाम दिया गया था. उस प्रोजेक्ट के तहत यूएफओ नजर आने की 12,618 घटनाएं सूचीबद्ध की गई थीं. उनमें से 716 यूएफओ आज भी आधिकारिक तौर पर ऐसे हैं जिनके बारे में कोई व्याख्या या जानकारी उपलब्ध नहीं है.
1994 में एयर फोर्स ने कहा कि उसने 1947 के चर्चित ‘रोजवेल इंसिडेंट' से जुड़ा एक अध्ययन पूरा कर लिया है. न्यू मेक्सिको में हुई इस घटना को अधिकारियों ने गर्म हवा के गुब्बारे का क्रैश होना बताया और कहा कि एलियंस के किसी तरह के शरीर बरामद नहीं हुए.
वीके/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)
चीन, 21 दिसंबर । चीन में अब तक की सबसे बड़ी कोविड-19 की लहर आई है. वहाँ कोरोना संक्रमण अब तक की सबसे तेज़ रफ़्तार से बढ़ रहा है.
चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि देश में आने वाले कुछ महीनों में कोविड 19 से 80 करोड़ लोग संक्रमित हो सकते है.
एनपीआर की रिपोर्ट कहती है कि चीन में कोरोना से मरने वालों की संख्या 5 लाख हो सकती है, लेकिन चीन का मौजूदा आधिकारिक आँकड़ा इस संख्या से बेहद कम है.
चीन से भारत की उड़ाने बंद करने की मांग की जा रही है. भारत सरकार ने राज्यों के लिए दिशा निर्देश जारी किया है और आज स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोविड को लेकर एक बैठक बुलाई है. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन, 21 दिसंबर । यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की बुधवार को अमेरिकी दौरे पर आ सकते हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ वो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाक़ात कर सकते हैं.
फ़रवरी में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से ये वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की का पहला विदेश दौरा है.
अमेरिकी मीडिया को पहचान छुपाने की शर्त पर अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की इस दौरान कांग्रेस को संबोधित भी करेंगे. हालांकि, इस दौरे की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
उनकी इस यात्रा के साथ सुरक्षा चिंताएं भी जुड़ी हैं. आख़िरी समय पर भी योजना में बदलाव आ सकता है.
मंगलाव को एक पत्र में डेमोक्रेटिक हाउस स्पीकर नेंसी पेलोसी ने कांग्रेस सदस्यों से बुधवार को सदन में उपस्थित रहने के लिए कहा था.
पत्र में ज़्यादा जानकारी दिए बिना लिखा था, ''लोकतंत्र पर विशेष ध्यान देने के लिए कृपया उपस्थित रहें.''
पश्चिमी देशों के प्रमुख यूक्रेन का दौरा करते रहे हैं. वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से उनकी मुलाक़ात हुई है. ज़ेलेंस्की ने वर्चुअल तरीक़े से यूएन में संबोधित भी किया है.
वो वीडियो या टेलिफ़ोन पर वैश्विक नेताओं से बात भी करते रहे हैं. लेकिन, देश से बाहर राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का पहला दौरान अमेरिका में होना अहम है.
इससे दोनों देशों के रिश्तों के महत्व का पता चलता है. रूस के साथ संघर्ष शुरू होने के बाद से अमेरिका सैन्य सहयोग पर सीधे तौर पर 18.5 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता जता चुका है. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की बुधवार को अमेरिकी दौरे पर आ सकते हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ वो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाक़ात कर सकते हैं.
फ़रवरी में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से ये वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की का पहला विदेश दौरा है.
अमेरिकी मीडिया को पहचान छुपाने की शर्त पर अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की इस दौरान कांग्रेस को संबोधित भी करेंगे. हालांकि, इस दौरे की अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
उनकी इस यात्रा के साथ सुरक्षा चिंताएं भी जुड़ी हैं. आख़िरी समय पर भी योजना में बदलाव आ सकता है.
मंगलाव को एक पत्र में डेमोक्रेटिक हाउस स्पीकर नेंसी पेलोसी ने कांग्रेस सदस्यों से बुधवार को सदन में उपस्थित रहने के लिए कहा था.
पत्र में ज़्यादा जानकारी दिए बिना लिखा था, ''लोकतंत्र पर विशेष ध्यान देने के लिए कृपया उपस्थित रहें.''
पश्चिमी देशों के प्रमुख यूक्रेन का दौरा करते रहे हैं. वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से उनकी मुलाक़ात हुई है. ज़ेलेंस्की ने वर्चुअल तरीक़े से यूएन में संबोधित भी किया है.
वो वीडियो या टेलिफ़ोन पर वैश्विक नेताओं से बात भी करते रहे हैं. लेकिन, देश से बाहर राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का पहला दौरान अमेरिका में होना अहम है.
इससे दोनों देशों के रिश्तों के महत्व का पता चलता है. रूस के साथ संघर्ष शुरू होने के बाद से अमेरिका सैन्य सहयोग पर सीधे तौर पर 18.5 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता जता चुका है. (bbc.com/hindi)
रियो डेल (अमेरिका), 21 दिसंबर। उत्तरी कैलिफोर्निया तट पर मंगलवार को एक शक्तिशाली भूकंप आया, जिससे कम से कम 12 लोग घायल हो गए।
भूकंप इतना जोरदार था कि मकानों की खिड़कियों के शीशें टूट गए, मकानों की नींव हिल गयी और ग्रामीण इलाके में करीब 60,000 मकान और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की बत्ती गुल हो गयी।
भूकंप की तीव्रता 6.4 मापी गयी और यह सैन फ्रांसिस्को से करीब 345 किलोमीटर उत्तरपश्चिम में स्थित एक छोटे से समुदाय फर्नडेल के समीप देर रात करीब दो बजकर 34 मिनट पर आया। भूकंप का केंद्र जमीन से 16 किलोमीटर की गहरायी में स्थित था। इसके बाद भूकंप के कई झटके महसूस किए गए।
इलाके में रहने वाले अरासेली ह्युर्ता ने कहा, ‘‘आप फर्श और दीवारों को हिलते हुए देख सकते थे।’’
कैलिफोर्निया के गर्वनर के आपात सेवा कार्यालय के प्रवक्ता ब्रायन फर्ग्युसन ने बताया कि इमारतों को हुए नुकसान का अभी आकलन किया जा रहा है।
हमबोल्ट काउंटी शेरिफ के कार्यालय ने बताया कि करीब 12 लोगों को चोटें आने की जानकारी मिली है। भूकंप के बाद समय से ‘‘चिकित्सीय सुविधा’’ न मिलने के कारण दो लोगों की मौत हो गयी जिनकी उम्र 83 और 72 वर्ष थी। (एपी)
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में नया सियासी ड्रामा शुरू हो गया है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान 23 दिसंबर को विधानसभा भंग करने का ऐलान कर चुके हैं जबकि इमरान ख़ान से असेंबली भंग करने का वादा कर चुके पंजाब के मुख्यमंत्री परवेज़ इलाही की स्थिति अब स्पष्ट नहीं है.
इमरान ख़ान ने घोषणा की है कि पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की असेंबली शुक्रवार यानी 23 दिसंबर को भंग कर दी जाएंगी. इसका मतलब ये होगा कि फिर यहां नए चुनाव कराने होंगे. अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद इमरान ख़ान को दस अप्रैल 2022 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. तब से ही इमरान ख़ान नए चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं और देशभर में रैलियां करके अपने लिए जनसमर्थन बढ़ा रहे हैं.
अब केंद्र सरकार पर चुनाव कराने के लिए दबाव बनाने के लिए इमरान ख़ान ने नया दांव खेला है. उन्होंने ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और पंजाब की विधानसभाओं को 23 दिसंबर को भंग करने का ऐलान कर दिया है.
अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए इमरान ख़ान से केंद्रीय सत्ता हथिया चुके पीडीएम गठबंधन (पीपुल्स पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग और जमात-इस्लामी समेत एक दर्जन से अधिक पार्टियों का गठबंधन) ने पंजाब में विधानसभा को भंग होने से बचाने के लिए अपना नया दांव चल दिया है.
पीडीएम पंजाब में अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है ताकि असेंबली के भंग होने की प्रक्रिया को कुछ समय के लिए टाला जा सके और इस दौरान बीच का कोई रास्ता निकाला जा सके.
पाकिस्तान की 66 फ़ीसदी आबादी पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में रहती है. इमरान ख़ान इन प्रांतों में चुनाव के ज़रिए ये भी बताना चाहते हैं कि देश में जनसमर्थन उनके साथ है. पाकिस्तान में चल रहे इस सियासी ड्रामें में घटनाक्रम तेज़ी से बदल रहा है.
पाकिस्तान के पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सैयद अतहर अब्बास कहते हैं, "ये एक लगातार बदल रहा सियासी ड्रामा है, कई राजनीतिक फ़िल्में एक साथ चल रही हैं और हालात बदल रहे हैं. इमरान ख़ान चाहते हैं कि पंजाब विधानसभा भंग हो. इमरान ख़ान को लगता है कि ऐसा होने से उन्हें राजनीतिक राहत मिल सकती है. जिस दिन से इमरान ख़ान ने असेंबली भंग करने का ऐलान किया है, तब से केंद्रीय सत्ताधारी गठबंधन पंजाब विधानसभा को बचाने की हर संभव कोशिश कर रहा है कि असेंबली को बचाया जाए."
पंजाब पाकिस्तान की राजनीति के लिए सबसे अहम प्रांत है क्योंकि ये पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. ये कहा जाता है कि जो पंजाब की पर शासन करता है वही पाकिस्तान पर शासन करता है.
पंजाब ही वो प्रांत है जहां पर पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (नवाज़ शरीफ़ की पार्टी) और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (इमरान ख़ान की पार्टी) में टकराव होता रहा है. ये दोनों इस समय पाकिस्तान के दो सबसे बड़े राजनीतिक दल भी हैं.
इमरान ख़ान ने पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की असेंबली भंग करने का ऐलान किया है. ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में इमरान की पार्टी के पास बहुमत है और उनके कहते ही ऐसा हो जाएगा. लेकिन पंजाब में राजनीतिक समीकरण अलग हैं.
पंजाब में इमरान ख़ान की पार्टी गठबंधन की सरकार में हैं. पंजाब में पीटीआई पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क़ायद ए आज़म) के साथ मिलकर सरकार चला रही है और पीएमएल (क्यू) के नेता परवेज़ इलाही मुख़्यमंत्री हैं.
पीएमल (क्यू) के पास सिर्फ़ दस सीटें हैं लेकिन वो प्रांत में किंगमेकर हैं और मुख्यमंत्री हैं. उनकी सरकार पीटीआई के दम पर खड़ी है.
पीडीएम इस समय पाकिस्तान का सत्ताधारी गठबंधन है जिसकी केंद्र में सरकार है. इसमें पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और जमात-ए-इस्लामी (एफ़) समते एक दर्जन से अधिक दल इसमें हैं.
पीडीएम गठबंधन पंजाब की असेंबली को भंग होने से रोकना चाहता है.
यही वजह है कि पंजाब की राजधानी लाहौर राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनी हुई है. पीडीएम गठबंधन पंजाब असेंबली को भंग होने से बचाने के अपने विकल्पों पर काम शुरू कर चुका है.
इस्लामाबाद में बीबीसी संवाददाता शुमायला जाफ़री के मुताबिक, "पीडीएम ने परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने के लिए विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव जमा कर दिया है. अविश्वास प्रस्ताव आने से अब असेंबली भंग होने का मामला कम से कम एक सप्ताह खिंच जाएगा. यानी पंजाब की असेंबली 23 दिसंबर को भंग नहीं हो पाएगी. पीडीएम यही चाहता है. एमडीएम ने एक पत्ता और खेला है कि गवर्नर के ज़रिए मुख्यमंत्री विश्वासमत हासिल करें. हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि पीडीएम को इससे कोई बड़ा फ़ायदा नहीं होगा. इस क़दम से पीडीएम विधानसभा के भंग होने में थोड़ा देरी तो कर सकते हैं लेकिन इमरान ख़ान इस स्थिति में है कि असेंबली को भंग करा सकते हैं."
पंजाब इस समय सियासी अखाड़ा बना हुआ है और परवेज़ इलाही को प्रभावित करने की कोशिशें की जा रही हैं. इलाही पहले ही इमरान ख़ान से वादा कर चुके हैं कि जब भी वो कहेंगे, असेंबली को भंग कर दिया जाएगा.
यहां प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी और पूर्व प्रीमियर चौधरी सुजात हुसैन ने राजनीतिक गतिरोध का हल निकालने के लिए अलग-अलग मुलाक़ाते की हैं.
रिपोर्टों के मुताबिक प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने पीएमएल (क्यू) के नेता सुजात हुसैन से मुलाक़ात की और उनसे परवेज़ इलाही को अपनी तरफ़ खींचने के प्रयास फिर से शुरू करने के लिए कहा. आसिफ़ ज़रदारी ने भी सुजात हुसैन से मुलाक़ात की है.
पीडीएम गठबंधन चाहता है कि परवेज़ इलाही इमरान ख़ान की पार्टी का साथ छोड़कर इस गठबंधन में आ जाएं और मुख्यमंत्री बनें रहें.
शुमायला जाफ़री कहती हैं, "पीडीएम कोशिश कर रही है कि परवेज़ इलाही के साथ कोई सौदा हो जाए और वो इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठा ले. हालांकि ऐसा होना आसान नहीं है क्योंकि परवेज़ इलाही को भी लग रहा होगा कि ऐसा करना कहीं राजनीतिक आत्महत्या ना हो क्योंकि इस समय जनसमर्थन इमरान ख़ान के साथ है. लेकिन पाकिस्तान की सियासत में किसी भी स्थिति को नकारा नहीं जा सकता है. बैठकें होती रहेंगी, अफ़वाहें उड़ती रहेंगी, लेकिन देखना यही होगा कि आगे क्या होता है."
पंजाब विधानसभा
सैयद अतहर अब्बास की राय भी यही है कि परवेज़ इलाही के लिए इमरान ख़ान को छोड़कर जाना आसान नहीं होगा. वो कहते हैं, "परवेज़ इलाही भी नहीं चाहते हैं कि असेंबली भंग हो. बीती रात परवेज़ इलाही के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया. रात में ही असेंबली खोलकर इसे स्वीकार किया गया. परवेज़ इलाही भी चाहते हैं कि किसी तरह से असेंबली बच जाए. लेकिन वो जानते हैं कि इमरान ख़ान की लोकप्रियता इतनी ज़्यादा है कि इस मौक़े पर अगर मैं दूसरी तरफ़ गया तो मेरी सियासत ही ख़तरे में पड़ जाएगी."
अगर असेंबली भंग हो गईं तो पाकिस्तान में बड़ा राजनीतिक संकट पैदा हो जाएगा, क्योंकि 66 प्रतिशत सीटें फिर खाली हो जाएंगी. फिर संघीय सरकार अनिश्चितकाल तक चुनाव नहीं टाल सकती है. पंजाब के गवर्नर ने अब 21 दिसंबर यानी बुधवार को असेंबली का सत्र बुलाया है. हालांकि पंजाब असेंबली के स्पीकर ने गवर्नर के इस आदेश को ग़ैर क़ानूनी क़रार दे दिया है.
सैयद अतहर अब्बास कहते हैं, "अगर असेंबली टूटेगी तो चुनाव होंगे और केंद्र सरकार नहीं चाहती है कि चुनाव हों. पाकिस्तान में चुनाव भारत से अलग होते हैं, यहां केंद्र और राज्यों के लिए चुनाव एक साथ होते हैं. अब अगर असेंबलू टूटने के बाद चुनाव हो गए तो केंद्रीय सत्ता चला रहे गठबंधन को दिक्कत हो सकती है.
इमरान ख़ान और उनके गठबंधन सहयोगी पंजाब के मुख्यमंत्री परवेज़ इलाही के बीच दूरी आने के संकेत भी मिल रहे हैं.
इमरान ख़ान ने जब असेंबली भंग करने की घोषणा की थी तब इलाही उनके बगल में बैठे थे.
इमरान ख़ान की 23 दिसंबर को असेंबली भंग करने की घोषणा की बैठक के बाद जब परवेज़ इलाही बाहर जा रहे थे तब पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा था, "हम सभी बातों से सहमत हैं और आज भी पीटीआई के गठबंधन सहयोगी हैं."
इलाही ने पत्रकारों के एक सवाल पर कहा था कि अगले चुनाव में सीटों के बंटवारे के लोकर भी उनकी पीटीआई से बात शुरू हो चुकी है.
लेकिन अब इलाही के मीडिया में आ रहे बयानों से संकेत मिल रहा है कि उनके और इमरान ख़ान के बीच कुछ ना कुछ कड़वाहट है.
लेकिन अब एक टीवी इंटरव्यू में परवेज़ इलाही ने पूर्व सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा पर निशाना साधने को लेकर इमरान ख़ान और पीटीआई की आलोचना की है.
इंटरव्यू में इलाही ने कहा है, "उस वक़्त बहुत पुरा लगा जब इमरान ख़ान ने नाइंसाफ़ी की कि हमें साथ बिठाकर और मेरे सामने क़मर बाजवा साहब की आलोचना की."
इलाही ने कहा कि क़मर जावेद बाजवा के उन पर, इमरान ख़ान पर और पीटीआई पर बहुत अहसान हैं.
उन्होंने कहा, "बाजवा साहन ने पीटीआई को उस वक़्त उठाया जब ये कुछ भी नहीं थी और बाद में उनकी सरकार की भी मदद की."
वहीं लाहौर में विदेशी पत्रकारों से बात करते हुए इमरान ख़ान ने परवाज़ इलाही की इस टिप्पणी को उनकी निजी राय बताया.
इमरान ख़ान ने भी कहा कि "परवेज़ इलाही ने पूर्व सेना प्रमुख से कोई फ़ायदा उठाया होगा जो उनकी सोच में ज़ाहिर हो रहा है."
इमरान ख़ान ने ये भी कहा कि परवेज़ इलाही और उनकी पार्टी की अपनी विचारधारा है उनसे अलग भी हो सकीत है.
वहीं पंजबा असेंबली को भंग करने के बारे में इमरान ख़ान का कहना था कि चौधरी परवेज़ इलाही लिखकर दे चुके हैं कि उनके कहने पर वो असेंबली तोड़ने की समरी भिजवा देंगे.
इसकी वजह समझाते हुए सैयद अतहरअब्बास कहते हैं, "इमरान ख़ान राज्यों में चुनाव कराकर केंद्र सरकार पर चुनाव कराने का दबाव बना सकते हैं. इमरान ख़ान के लिए ये व्यक्तिगत तौर पर भी इसलिए बहुत मायने रखता है कि उनके ख़िलाफ़ कई मुक़दमे चल रहे हैं. इसमें आतंकवाद, मानहानि और अलग-अलग तरह के मामले हैं. इमरान ख़ान ये जानते हैं कि उन्हें राजनीतिक रूप से अयोग्य करार देने की पूरी तैयारी कर ली गई है. ऐसा होने से पहले अगर वो असेंबली को तोड़ने और चुनाव कराने में कामयाब हो जाते हैं तो उन्हें राहत मिलेगी."
लेकिन अगर पंजाब असेंबली भंग नहीं हुई तो क्या होगा? राजनीतिक विश्लेषक सैयद अतहर अब्बास कहते हैं कि ऐसी स्थिति में इमरान ख़ान गठबंधन सहयोगियों से अलग हो जाएंगे और फिर अकेले ही चुनावी मैदान में जाएंगे.
वो कहते हैं, "अगर पंजाब असेंबली नहीं भी टूटती है तब भी इमरान ख़ान के लिए कुछ राहत ये हो सकती है कि फिर उन्हें चुनाव में अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ नहीं जाना पड़ेगा. असेंबली टूटने की स्थिति में उन्हें गठबंधन सहयोगी के साथ सीटों को लेकर समझौता करना होगा." (bbc.com/hindi)
अफ़ग़ानिस्तान में स्कूली शिक्षा के बाद अब लड़कियों के लिए उच्च शिक्षा पर भी रोक लगा दी गई है.
अफ़ग़ानिस्तान में उच्च शिक्षा मंत्री के एक पत्र के मुताबिक़ तालिबान ने देश के विश्वविद्यालयों में लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है.
उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि अगली सूचना तक ये आदेश लागू रहेगा. इसे जल्द से जल्द लागू किया जाएगा.
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं पर पहले ही स्कूली शिक्षा पर रोक लगाई गई थी. अब उच्च शिक्षा तक भी उनकी पहुँच को बाधित कर दिया गया है.
काबुल विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने बताया कि वो ये ख़बर सुनने के बाद से लगातार रो रही हैं.
तीन महीनों पहले अफ़गानिस्तान में लड़कियों और महिलाओं ने विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा दी थी.
लेकिन, लड़कियां जिन विषयों को पढ़ती थीं उन पर व्यापक प्रतिबंध लगाए गए थे. पशु चिकित्सा विज्ञान, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र और पत्रकारिता जैसे विषयों पर तो कड़े प्रतिबंध लगे थे.
पिछले साल अफ़गानिस्तान में तालिबान के शासन के बाद विश्वविद्यालयों में छात्र और छात्राओं के आने के लिए अलग-अलग प्रवेश और पढ़ने के लिए अलग-अलग कमरों की व्यवस्था लाई गई थी.
छात्राओं को सिर्फ़ महिला या बुज़़ुर्ग प्रोफ़ेसर ही पढ़ा सकते थे.
इस प्रतिबंध को लेकर विश्वविद्यालय की एक छात्रा ने बीबीसी से कहा कि उन्हें लगता है कि तालिबान महिलाओं और उनकी ताक़त से डरता है.
छात्रा ने कहा, ''उन्होंने मुझे भविष्य से जोड़ने वाले एकमात्र रास्ते को ख़त्म कर दिया है.''
तालिबान के इस आदेश का अमेरिका ने विरोध किया है. अफ़गानिस्तान में विशेष अमेरिकी राजदूत रीना अमीरी ने ट्वीट किया, ''तालिबान का लड़कियों और महिलाओं को स्कूली और विश्वविद्यालय की शिक्षा से वंचित करना और उन्हें लक्ष्य बनाकर जारी किए गए 16+ आदेशों के बाद कोई संदेह नहीं है कि तालिबान 90 के दशक की अतिवादी नीतियों पर वापस लौट रहे हैं. वो 50 प्रतिशत आबादी और स्थायित्व के लिए अफ़ग़ानिस्तान के उम्मीदों को ख़त्म कर रहे हैं.'' (bbc.com/hindi)
ट्विटर के नए सीईओ एलन मस्क ने कहा है कि वो ट्विटर के चीफ़ एग्ज़िक्यूटिव ऑफ़िसर (सीईओ) का पद छोड़ने वाले हैं.
उन्होंने ट्वीट किया, ''इस काम के लिए जैसे ही मुझे कोई बेवकूफ मिल जाएगा मैं सीईओ के पद से इस्तीफ़ा दे दूंगा. इसके बाद मैं सिर्फ़ सॉफ़्टवेयर और सर्वर टीम के साथ काम करूंगा.''
इससे पहले एलन मस्क ने ट्विटर पर एक पोल किया था कि उन्हें ट्विटर का सीईओ पद छोड़ देना चाहिए या नहीं. उन्होंने ये भी लिखा था कि जो भी नतीजे आएंगे वो उसे मानेंगे.
इस पोल पर पद छोड़ने के समर्थन में 57.5 प्रतिशत और विरोध में 42.5 प्रतिशत नतीजे आए.
एलन मस्क के ट्विटर को ख़रीदने के बाद से उनके लाए बदलावों की आलोचना हो रही है.
वो अक्सर कुछ मामलों पर पोल डालकर लोगों से प्रतिक्रिया मांगते हैं और फिर फ़ैसले की घोषणा करते हैं.
एलन मस्क टेस्ला और स्पेस एक्स के भी मालिक हैं. (bbc.com/hindi)
फर्नडेल (अमेरिका), 20 दिसंबर। उत्तरी कैलिफोर्निया के कुछ हिस्सों में सोमवार देर रात 6.4 तीव्रता का भूकंप आया। अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण ने यह जानकारी दी।
भूकंप के कारण कई जगह बिजली आपूर्ति बाधित हो गई।
सैन फ्रांसिस्को के उत्तर-पश्चिम में लगभग 343 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटे से समुदाय फर्नडेल के पास देर रात दो बजकर 34 मिनट पर भूकंप आया। भूकंप से किसी के हताहत होने की फिलहाल कोई सूचना नहीं है।
देश में बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर नजर रखने वाले ‘पावरआउटेज डॉट कॉम’ ने बताया कि भूकंप के बाद 55,000 से अधिक उपभोक्ताओं ने बिजली आपूर्ति बाधित होने की शिकायत की।
उल्लेखनीय है कि शनिवार तड़के तीन बजकर 39 मिनट पर सैन फ्रांसिस्को बे एरिया में 3.6 तीव्रता का भूकंप आया था। (एपी)
पाकिस्तान के सरहदी प्रांत ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में तालिबान लड़ाकों और सरकार के बीच रविवार को बंधक बनाए गए लोगों को छुड़ाने के लिए हुई बातचीत बेनतीजा ख़त्म हो गई है.
तालिबान के कुछ लड़ाकों ने बन्नू कैंट में एक काउंटर-टेररिज़्म सेंटर को कब्ज़े में ले लिया है. उन्होंने तक़रीबन दो दर्जन लोगों को वहां बंधक बनाकर रखा है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने तीन सूत्रों के हवाले से बताया है कि पाकिस्तान के सुरक्षाबलों ने बंधकों को छुड़ाने के लिए अभियान चलाया है. हालांकि सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की है. कहा जा रहा है कि इस घटना में कई लोगों की मौत हुई है.
एजेंसी ने बताया है कि सुरक्षाबलों का अभियान चल रहा है और कंपाउंड को अभी भी चरमपंथियों से मुक्त कराना बाकी है.
दरअसल इस काउंटर-टेररिज़्म डिपार्टमेंट के पुलिस स्टेशन में एक गिरफ़्तार किए गए तालिबान मिलिटेंट को रखा गया था.
रविवार को इस मिलिटेंट ने पुलिस से एके-47 असॉल्ट राइफ़ल छीनी और अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं.
उसके बाद मिलिटेंट ने थाने में बंद कुछ अन्य चरमपंथियों को रिहा कर दिया. सब रिहा हुए चरमपंथियों ने मिलकर सारे कंपाउंड को अपने कब्ज़े में ले लिया.
चरमपंथियों ने कई पुलिसकर्मियों को भी बंधक बनाया है.
अब तक कितनों की हुई मौत
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, अभी तक गोलीबारी में दो पुलिसकर्मी मारे गए हैं. पुलिसवालों की मौत के बाद पाकिस्तान आर्मी की स्पेशल फ़ोर्सेज़ अलर्ट पर हैं.
बन्नू कैंट में चल रहे इस बंधक संकट में इस वक्त हालात काफ़ी तनावपूर्ण बताए जा रहे हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों ने सारे कंपाउंड की घेराबंदी कर दी है. इलाक़े में रह रहे लोगों को घर से बाहर न निकलने की सख़्त हिदायत दी गई है.
आज इस बंधक संकट का तीसरा दिन है. गतिरोध बरकरार रहने की वजह से बन्नू ज़िले के सारे स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं. कैंट जाने और आने वाले रास्ते अभी भी सील हैं. मेडिकल टीचिंग इंस्टीट्यूट बन्नू और इसके संस्थानों में मेडिकल इमर्जेंसी लागू कर दी गई है.
अधिकारियों का कहना है कि बन्नू कैंट और आस-पास के इलाक़ों में मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गई हैं.
सरकारी खजाने में आए हर तोहफ़े का हिसाब दो- पाकिस्तान की अदालत
पाकिस्तान सरकार पर इमरान ख़ान का बाउंसर फुस्स हो जाएगा या हिल जाएगी सत्ता?
स्थानीय लोगों ने बताया है कि कल रात से अधिकतर इलाक़ों में बिजली नहीं थी और इंटरनेट सर्विस बंद है.
बन्नू कैंट के स्थानीय लोग जो रविवार को घरों से बाहर शहर की ओर गए थे वो अब तक अपने घरों को वापस नहीं जा सके, उन्होंने दूसरी रात भी अपने घरों से बाहर गुज़ारी है.
इससे पहले मंगलवार की सुबह ख़ैबर पख़्तूनख़्वा सरकार के प्रवक्ता बैरिस्टर मोहम्मद अली सैफ़ ने कहा था कि बन्नू कैंट में चरमपंथियों के साथ बातचीत जारी है और सरकार की कोशिश है कि वो हथियार फैंककर अपने आप को सुरक्षाबलों के हवाले कर दें.
अमेरिका की भी घटना पर नज़र
वहीं इस घटना पर अंतरराष्ट्रीय नज़र भी बनी हुई है. अमेरिका ने कहा है कि वो बन्नू में जारी घटनाक्रम से अवगत हैं और इस पर नज़र रखे हुए हैं.
अपनी प्रेस ब्रीफ़िग में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि वो मांग करते हैं कि प्रशासन बंधक बनाए गए लोगों की तुरंत रिहाई पर ज़ोर दे.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार अफ़ग़ानिस्तान में और पाक-अफ़ग़ान सीमा पर मौजूद चरमपंथियों समेत ऐसी साझा चुनौतियों के लिए अमेरिका के साथ साझेदार है.
नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका ने इस चुनौती से निपटने में पाकिस्तानी सरकार की मदद की है और वो इस मौजूदा हालात से निपटने में मदद देने के लिए भी तैयार है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि इसके लिए पाकिस्तानी सरकार को निवेदन करना चाहिए.
पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) अपनी इस मांग पर अड़ी है कि जितने भी चरमपंथी अंदर हैं उन्हें चुपचाप वहां से जाने दिया जाए.
टीटीपी चाहता है कि उनके लोगों को दक्षिण या उत्तरी वज़ीरिस्तान के कबायली ज़िलों तक बिना किसी रोक-टोक के जाने दिया जाए.
ख़बरों के अनुसार सुरक्षाबल शुरू से ही इस मांग को ख़ारिज करते आए हैं. सुरक्षाबल चाहते हैं कि उन्हें बंधकों को छुड़ाने के लिए ऑपरेशन करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
टीटीपी ने क्या कहा
सोमवार को टीटीपी के प्रवक्ता मोहम्मद ख़ुरासानी ने कहा था कि पुलिस वाले इस थाने में बंद चरमपंथियों के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे थे.
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का गठन साल 2007 में हुआ था. ये पाकिस्तान के सरहदी प्रांत में एक्टिव कई चरमपंथी संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है. पिछले महीने इस संगठन ने पाकिस्तान के केंद्रीय सरकार के साथ चल रहे युद्धविराम को ख़त्म कर दिया था.
संगठन ने अपने चरमपंथियों से एक बार फिर से सक्रिय होने का आह्वान किया था.
उधर तड़के सुबह भी प्रांत के वाना इलाक़े के एक थाने में 50 चरमपंथी दाख़िल हुए और कुछ पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया. घटना सुबह एक बजे की है.
चरमपंथी थाने के सारे हथियार और गोला-बारूद लेकर चले गए. गोलीबारी में एक मिलिटेंट की भी मौत हुई है. बाक़ी चरमपंथी भागने में कामयाब रहे हैं.
पुलिस ने कहा है कि चरमपंथियों को पकड़ने के लिए इलाके में सघन तलाशी अभियान जारी है. (bbc.com/hindi)
थाईलैंड में जंगी जहाज़ के डूबने के बाद राहत और बचाव कार्य दूसरे दिन भी जारी है. 29 नाविक अभी भी लापता हैं.
एचटीएमएएस सुखोथाई जिसमें 105 क्रू के लोग थे, शनिवार को दक्षिण पूर्व तट के पास डूब गया. एक तूफान के कारण जहाज़ में पानी भर गया था और बिजली गुल हो गई थी.
सर्च टीमों ने अभी तक 76 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया है. इसमें एक व्यक्ति को मंगलवार को निकाला गया जो कि दो दिनों तक अशांत समुद्र में थे.
लेकिन एक तिहाई क्रू अभी भी लापता है. नौसेना ने अभी तक किसी के मौत की जानकारी नहीं दी है.
थाई नौसेना ने मंगलवार को चार जहाज़ों और कई हेलिकॉप्टरों के साथ 50 किलोमीटर के दायरे में खोज अभियान शुरू किया था.
पहले नेवी के कमांडर ने कहा था कि किसी को ज़िंदा बचाने के लिए उनके पास सिर्फ़ दो दिनों का समय बचा है. उन्होंने कहा था कि मंगलवार उनके लिए एक अहम दिन होगा.
कई नाविक जिन्हें खोजा गया है वो थके हुए थे या बेहोश थे.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के कैप्टन क्रैपिच कोरावी-पेपरविट ने कहा, "हम एक व्यक्ति मिला है, जीवन रक्षक पेटी को पकड़े हुए, वो दस घंटों से पानी पर तैर रहा था."(bbc.com/hindi)
नाज़ियों के यातना शिविर में एक कमांडर के लिए काम करने करने वालीं एक पूर्व सेक्रेटरी को 10,505 लोगों की हत्या में भागीदार पाया गया है.
97 साल की इर्मगार्ड फर्चनर ने किशोरावस्था में बतौर टाइपिस्ट स्टटहॉफ़ में 1943 से 1945 तक काम किया था.
फर्चनर, उन चंद महिलाओं में हैं, जिनका पिछले कुछ दशकों में नाज़ियों से जुड़े जुर्म के लिए ट्रायल किया गया.
वो एक आम नागरिक के तौर पर काम कर रही थीं, लेकिन जज ने माना कि उन्हें पूरी तरह से पता था कि कैंप में क्या चल रहा है.
अनुमान के मुकाबिक स्टटहॉफ़ में 65,000 लोगों की मौत वहां की दयनीय परिस्थितियों के कारण हो गई. इनमें यहूदी कैदी, पोलैंड के ग़ैर यहूदी और सोवियत के सैनिक शामिल थे. फ़र्चनर उस वक्त सिर्फ़ 18 या 19 साल की थीं और उनका ट्रायल जुविनायल कोर्ट में किया गया था.
2021 में जब ट्रायल शुरू हुआ था तब फर्चनर अपने रिटायरमेंट होम के भाग गई थीं, और बाद में पुलिस के हाथ आईं.
ट्रायल के दौरान 40 दिनों तक चुप रहने के बाद उन्होंने कोर्ट से कहा, "जो हुआ उनके लिए मैं माफ़ी मांगती हूं."
"मुझे अफ़सोस है कि मैं स्टटफोर्ट में उस दौरान थी - मैं बस यही कर सकती हूं." (bbc.com/hindi)
चीन समेत कई देशों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए केंद्रीय हेल्थ सेक्रेटरी ने जिनोम सिक्वेंसिंग को बढ़ाने के आदेश दिए हैं.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने राज्यों से कहा, "जापान, अमेरिका, कोरिया, ब्राज़ील और चीन में अचानक बढ़े मामलों को देखते हुए पॉज़िटिव मामलों की जिनोम सिक्वेंसिंग को बढ़ाना ज़रूरी हो गया है ताकि वेरिएंट को ट्रैक किया जा सके."
समाचार एजेंसी के मुताबिक हेल्थ सेक्रेटरी ने लिखा, "सभी राज्यों से अनुरोध है कि वो सुनिश्चित करें कि जहां तक मुमकिन हो सभी हर दिन सभी पॉज़िटिव केस के सैंपल को जीनोम सिक्वेंसिंग लैबों में भेजा जाए, जो अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हैं." (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान, 20 दिसंबर । पाकिस्तान के सरहदी प्रांत ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में तालिबान लड़ाकों और सरकार के बीच रविवार को बंधक बनाए गए लोगों को छुड़ाने के लिए हुई बातचीत बेनतीजा ख़त्म हो गई है.
तालिबान के कुछ लड़ाकों ने बन्नू कैंट में एक काउंटर-टेररिज़्म सेंटर को कब्ज़े में ले लिया है. उन्होंने तक़रीबन दो दर्जन लोगों को वहां बंधक बनाकर रखा है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने तीन सूत्रों के हवाले से बताया है कि पाकिस्तान के सुरक्षाबलों ने बंधकों को छुड़ाने के लिए अभियान चलाया है. हालांकि सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की है. कहा जा रहा है कि इस घटना में कई लोगों की मौत हुई है.
एजेंसी ने बताया है कि सुरक्षाबलों का अभियान चल रहा है और कंपाउंड को अभी भी चरमपंथियों से मुक्त कराना बाकी है.
दरअसल इस काउंटर-टेररिज़्म डिपार्टमेंट के पुलिस स्टेशन में एक गिरफ़्तार किए गए तालिबान मिलिटेंट को रखा गया था.
रविवार को इस मिलिटेंट ने पुलिस से एके-47 असॉल्ट राइफ़ल छीनी और अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं.
उसके बाद मिलिटेंट ने थाने में बंद कुछ अन्य चरमपंथियों को रिहा कर दिया. सब रिहा हुए चरमपंथियों ने मिलकर सारे कंपाउंड को अपने कब्ज़े में ले लिया.
चरमपंथियों ने कई पुलिसकर्मियों को भी बंधक बनाया है.
अब तक कितनों की हुई मौत
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, अभी तक गोलीबारी में दो पुलिसकर्मी मारे गए हैं. पुलिसवालों की मौत के बाद पाकिस्तान आर्मी की स्पेशल फ़ोर्सेज़ अलर्ट पर हैं.
बन्नू कैंट में चल रहे इस बंधक संकट में इस वक्त हालात काफ़ी तनावपूर्ण बताए जा रहे हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों ने सारे कंपाउंड की घेराबंदी कर दी है. इलाक़े में रह रहे लोगों को घर से बाहर न निकलने की सख़्त हिदायत दी गई है.
आज इस बंधक संकट का तीसरा दिन है. गतिरोध बरकरार रहने की वजह से बन्नू ज़िले के सारे स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं. कैंट जाने और आने वाले रास्ते अभी भी सील हैं. मेडिकल टीचिंग इंस्टीट्यूट बन्नू और इसके संस्थानों में मेडिकल इमर्जेंसी लागू कर दी गई है.
अधिकारियों का कहना है कि बन्नू कैंट और आस-पास के इलाक़ों में मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गई हैं.
स्थानीय लोगों ने बताया है कि कल रात से अधिकतर इलाक़ों में बिजली नहीं थी और इंटरनेट सर्विस बंद है.
बन्नू कैंट के स्थानीय लोग जो रविवार को घरों से बाहर शहर की ओर गए थे वो अब तक अपने घरों को वापस नहीं जा सके, उन्होंने दूसरी रात भी अपने घरों से बाहर गुज़ारी है.
इससे पहले मंगलवार की सुबह ख़ैबर पख़्तूनख़्वा सरकार के प्रवक्ता बैरिस्टर मोहम्मद अली सैफ़ ने कहा था कि बन्नू कैंट में चरमपंथियों के साथ बातचीत जारी है और सरकार की कोशिश है कि वो हथियार फैंककर अपने आप को सुरक्षाबलों के हवाले कर दें.
अमेरिका की भी घटना पर नज़र
वहीं इस घटना पर अंतरराष्ट्रीय नज़र भी बनी हुई है. अमेरिका ने कहा है कि वो बन्नू में जारी घटनाक्रम से अवगत हैं और इस पर नज़र रखे हुए हैं.
अपनी प्रेस ब्रीफ़िग में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि वो मांग करते हैं कि प्रशासन बंधक बनाए गए लोगों की तुरंत रिहाई पर ज़ोर दे.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सरकार अफ़ग़ानिस्तान में और पाक-अफ़ग़ान सीमा पर मौजूद चरमपंथियों समेत ऐसी साझा चुनौतियों के लिए अमेरिका के साथ साझेदार है.
नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका ने इस चुनौती से निपटने में पाकिस्तानी सरकार की मदद की है और वो इस मौजूदा हालात से निपटने में मदद देने के लिए भी तैयार है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि इसके लिए पाकिस्तानी सरकार को निवेदन करना चाहिए.
पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) अपनी इस मांग पर अड़ी है कि जितने भी चरमपंथी अंदर हैं उन्हें चुपचाप वहां से जाने दिया जाए.
टीटीपी चाहता है कि उनके लोगों को दक्षिण या उत्तरी वज़ीरिस्तान के कबायली ज़िलों तक बिना किसी रोक-टोक के जाने दिया जाए.
ख़बरों के अनुसार सुरक्षाबल शुरू से ही इस मांग को ख़ारिज करते आए हैं. सुरक्षाबल चाहते हैं कि उन्हें बंधकों को छुड़ाने के लिए ऑपरेशन करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
टीटीपी ने क्या कहा
सोमवार को टीटीपी के प्रवक्ता मोहम्मद ख़ुरासानी ने कहा था कि पुलिस वाले इस थाने में बंद चरमपंथियों के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे थे.
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का गठन साल 2007 में हुआ था. ये पाकिस्तान के सरहदी प्रांत में एक्टिव कई चरमपंथी संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है. पिछले महीने इस संगठन ने पाकिस्तान के केंद्रीय सरकार के साथ चल रहे युद्धविराम को ख़त्म कर दिया था.
संगठन ने अपने चरमपंथियों से एक बार फिर से सक्रिय होने का आह्वान किया था.
उधर तड़के सुबह भी प्रांत के वाना इलाक़े के एक थाने में 50 चरमपंथी दाख़िल हुए और कुछ पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया. घटना सुबह एक बजे की है.
चरमपंथी थाने के सारे हथियार और गोला-बारूद लेकर चले गए. गोलीबारी में एक मिलिटेंट की भी मौत हुई है. बाक़ी चरमपंथी भागने में कामयाब रहे हैं.
पुलिस ने कहा है कि चरमपंथियों को पकड़ने के लिए इलाके में सघन तलाशी अभियान जारी है. (bbc.com/hindi)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 20 दिसम्बर | पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल जरदारी-भुट्टो द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जबानी हमले पर टिप्पणी करते हुए अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि वाशिंगटन नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच 'वाकयुद्ध' नहीं, रचनात्मक संवाद चाहता है।
प्राइस ने सोमवार को वाशिंगटन में अपनी ब्रीफिंग में कहा, तथ्य यह है कि दोनों देशों के साथ हमारी साझेदारी है, निश्चित रूप से हम भारत और पाकिस्तान के बीच वाक युद्ध नहीं देखना चाहते।
हम भारत और पाकिस्तान के बीच रचनात्मक बातचीत देखना चाहते हैं (और) हमें लगता है कि यह पाकिस्तान व भारत दोनों देशों की बेहतरी के लिए है।
उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद को खत्म करने की आवश्यकता है और अमेरिका दोनों के लिए एक भागीदार के रूप में सहायता करने को तैयार है।
भारत ने यह कहते हुए कि दोनों पड़ोसियों के बीच के मुद्दे द्विपक्षीय मुद्दे हैं जिनमें तीसरे पक्ष की भागीदारी के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा मध्यस्थता के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
प्राइस ने यह बयान एक रिपोर्टर के सवाल के जवाब में दिया, जिसमें भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने और भुट्टो-जरदारी द्वारा मोदी पर कठोर व्यक्तिगत टिप्पणी का उल्लेख किया था।
गौरतलब है कि बिलावल भुट्टो-जरदारी वाशिंगटन में हैं और उनके अमेरिकी अधिकारियों और कांग्रेस के सदस्यों से मिलने की उम्मीद है।
लेकिन विदेश विभाग के मंगलवार के सार्वजनिक कार्यक्रम में उनके साथ किसी तरह के जुड़ाव की सूची नहीं है।
भारत और पाकिस्तान के साथ अमेरिकी संबंधों की प्रकृति के बारे में पूछे जाने पर प्राइस ने अपने पहले के तर्क को दोहराया कि वे अपने दम पर खड़े हैं।
उन्होंने कहा, भले ही हम भारत के साथ अपनी वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को गहरा करते हैं, हमारे बीच गहरा रिश्ता है, लेकिन हमारी असहमति भी है और उसे उसी प्रकार व्यक्त करते हैं, जैसे हम अपने पाकिस्तानी दोस्तों के साथ करते हैं।
उन्होंने कहा कि यह उल्लेखनीय है कि जी20 में सदस्य देशों का दृष्टिकोण बहुत हद तक समान था, यह एक आह्वान था जो इस देश में, दक्षिण एशिया में, यूरोप में और दुनिया भर में प्रतिध्वनित हुआ।
प्राइस ने कहा, अमेरिका निश्चित रूप से इसका स्वागत करता है।
उन्होंने कहा कि मोदी द्वारा रूसी राष्ट्रपति से यह कहना कि यह युद्ध का युग नहीं है, बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि भारत का रूस के साथ एक रिश्ता है जो अमेरिका के पास नहीं है।
भारत ने इस महीने प्रमुख औद्योगिक और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के जी20 समूह की अध्यक्षता संभाली।
प्राइस ने कहा बहुत कुछ अच्छा ह,ै जो हम एक साथ कर सकते हैं, न केवल हमारे दोनों देशों के लिए, बल्कि दुनिया भर में और मुझे लगता है कि आने वाले वर्ष में हम इसका एक अच्छा उदाहरण देखेंगे, जब भारत जी20 की मेजबानी करेगा।
उन्होंने कहा, मुझे पता है कि हमारे पास भारत की यात्रा करने का अवसर होगा, जी20 के संदर्भ में भारत के साथ निकट संपर्क में रहने का, और हम यह देखने में सक्षम होंगे कि दोनों देशों और देशों के व्यापक समूह के बीच क्या सहयोग प्रदान कर सकता है।
प्राइस ने नई दिल्ली व वाशिंगटन के बीच गहरे संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि भविष्य में दोनों देश एक-दूसरे के और निकट आएंगे। उन्होंने कहा कि रूस-भारत के संबंधों में भी बदलाव आया है। (आईएएनएस)|
नेपाल में चुनाव के बाद भी सरकार नहीं बन पाई है. किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है इसलिए सरकार बनने में देरी हो रही है.
राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नई सरकार के गठन के लिए सभी राजनीतिक दलों को एक हफ़्ते की मोहलत दी है.
2008 में राजशाही ख़त्म होने के बाद दस बार सरकारें बदल चुकी हैं और हालिया चुनाव में त्रिशंकु संसद होने के बाद अभी तक कोई भी गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर रहा है.
नेपाल को नया प्रधानमंत्री मिलने में हो रही देरी से देश में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा है.
नेपाली कांग्रेस नीत सत्तारूढ़ गठबंधन को इस चुनाव में 136 सीटें मिली हैं जबकि 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में बहुमत के लिए 138 सीटें चाहिए. यानी नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को बहुमत साबित करने के लिए दो सीटें और चाहिए.
पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की नेतृत्व वाली मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (यूएमएल) को 76 सीटें हासिल हुई हैं और उनके गठबंधन के पास कुल 104 सीटें हैं.
पुष्प कमल दहाल 'प्रचंड' की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल माओवादी केंद्र (सीपीएन- माओइस्ट सेंटर) को इस चुनाव में कुल 32 सीटें, 18 सीधे चुनाव में और 14 समानुपातिक प्रतिनिधित्व के ज़रिये हासिल हुई हैं.
काठमांडू स्थित वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमरे का कहना है कि प्रधानमंत्री पद की दावेदारी में कई नाम हैं. नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा वर्तमान में प्रधानमंत्री हैं. प्रचंड ने अपनी दावेदारी जताई है और केपी शर्मा ओली भी इस दौड़ में बने रहना चाहते हैं.
उनके मुताबिक़, 'पर्याप्त संख्या और उस आधार पर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर मामला उलझा हुआ है, इसलिए सरकार गठन में देरी हो रही है.'
प्रचंड की दावेदारी
प्रचंड ने कहा कहा है कि नई सरकार बनने में उनकी पार्टी की केंद्रीय भूमिका होगी. उन्होंने चुनावों में विदेशी ताक़तों के हस्तक्षेप का भी आरोप लगाया था.
रविवार को उन्होंने वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से मुलाक़ात की थी.
माना जा रहा है कि प्रचंड ने देउबा से मिलकर ख़ुद की दावेदारी के लिए समर्थन मांगा है.
नेपाली कांग्रेस के प्रवक्ता प्रकाश शरण का कहना है कि प्रचंड ने पीएम देउबा से पांच साला कार्यकाल के शुरुआती ढाई साल में प्रधानमंत्री बनने के लिए समर्थन मांगा है.
चुनाव से पहले भी दोनों पार्टियों में इस तरह का समझौता हुआ था लेकिन अब नेपाली कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई है, इसलिए वो ये पद गंवाना नहीं चाहेगी.
सरकार गठन में देरी के चलते राष्ट्रपति ने राजनीतिक दलों को नोटिस जारी किया है.
युवराज घिमरे का कहना, "संविधान के अनुच्छेद 76 के खंड (1) के मुताबिक़ पूर्ण बहुमत लाने वाले पक्ष को न्योता दिया जाता है. चूंकि ऐसी स्थिति नहीं है इसलिए अब अनुच्छेद 76 के खंड (2) के तहत ऐसे किसी पक्ष को राष्ट्रपति की तरफ़ से आमंत्रित किया जाएगा जिसके पास दो या अधिक पार्टियों का समर्थन हो."
इसका मतलब है कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी 25 दिसंबर के बाद किसी नेता को बुला सकती हैं जो दावा करता है कि उसके पास दो या दो से अधिक दलों का समर्थन प्राप्त है और वो बहुमत साबित कर सकता है. ये दावा 25 दिसंबर की शाम पांच बजे से पहले पहुँचना होगा.
घिमरे कहते हैं, "लेकिन नेपाल के राजनीतिक संकट का हल इतना आसान भी नहीं है. प्रचंड ने गठबंधन में शामिल होने के लिए ख़ुद को प्रधानमंत्री बनाए जाने की शर्त रख दी है. जैसे-जैसे 25 दिसंबर आएगा राजनीतिक सरगर्मी और बढ़ेगी."
उनके अनुसार, "प्रचंड की दावेदारी के बाद ये भी संभावना बनती है कि गठबंधन में टूट फूट हो और गठबंधन का कोई नया स्वरूप सामने आए."
क्या है पीएम नियुक्त करने की प्रक्रिया?
नेपाल में 2015 में स्वीकार किए गए नए संविधान में सीधे चुनाव और समानुपातिक प्रतिनिधित्व की मिलीजुली व्यवस्था है. इसके अनुसार, 60 प्रतिशत सीटें सीधे चुनाव से और 40 प्रतिशत सीटें वोट प्रतिशत के आधार पर तय की जाती हैं.
अगर किसी को स्पष्ट बहुमत मिल जाता है तो परिणाम घोषित होने के 30 दिन के अंदर प्रधानमंत्री को नियुक्त करना होता है.
नियुक्त प्रधानमंत्री को अगले एक महीने की तक मोहलत दी जाती है कि वो बहुमत साबित करे. अगर ऐसा नहीं होता है या त्रिशंकु संसद के हालात हैं तो राष्ट्रपति को अधिकार है कि वो सदन में सबसे बड़े दल के संसदीय नेता को पीएम नियुक्त कर सकता है और उसे भी एक महीने के भीतर बहुमत साबित करना पड़ेगा.
लेकिन इसके बावजूद बहुमत नहीं साबित होता है तो एक प्रावधान ये भी है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सिफ़ारिश पर प्रतिनिधिसभा को भंग कर करता है और छह माह के अंदर चुनाव की घोषणा कर सकता है.
घिमरे कहते हैं कि इतनी राजनीतिक अस्थिरता के बीच कोई भी नहीं चाहता कि ऐसी नौबत आए.
राजनीतिक दलों की गणित
ग़ौतलब है कि 275 सीटों में 165 सीटें सीधे चुनाव से और 110 सीटें समानुपातिक प्रतिनिधित्व से चुनी जाती हैं.
सीधे चुनाव में नेपाली कांग्रेस को 57, नेकपा एमाले को 44, नेकपा माओवादी केंद्र को 18 नेकपा एकीकृत समाजवादी को 7, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी को 7 राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को 7, जनता समाजवादी पार्टी को 7 और अन्य को 15 सीटें मिलीं हैं.
अगर समानुपातिक प्रतिनिधित्व की सीटें जोड़ लें तो नेपाली कांग्रेस को 89 और उसके अन्य सहयोगियों को 47 सीटें मिली हैं. पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (यूएमएल) को 76 सीटें, नेकपा माओवादी केंद्र को 32 सीटें मिली हैं. राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी को 20 सीटें मिली हैं. नेकपा एकीकृत समाजवादी को 10 सीटें मिली हैं.
राजनीतिक गलियारे में ये भी चर्चा है कि केपी शर्मा ओली भी प्रधानमंत्री की दावेदारी के लिए जोड़तोड़ कर रहे हैं.
नेपाली कांग्रेस के प्रमुख नेता और वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने पांच पार्टियों का गठबंधन बनाया है. अगर राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी ने इस गठबंधन को अपना समर्थन दिया तो नेपाली कांग्रेस नीत गठबंधन के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ हो सकता है.
युवराज घिमरे कहते हैं कि आने वाले दिनों में राजनीतिक सरगर्मी और तेज़ होने की संभावना है क्योंकि समय के साथ राष्ट्रपति को अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करना मजबूरी हो जाएगा.
राजनीतिक उतार चढ़ाव
नेपाल में साल 1990 में लोकतंत्र स्थापित हुआ था और साल 2008 में यहां राजशाही को ख़त्म कर दिया गया था.
लोकतंत्र स्थापित होने के 32 सालों में यहां 32 सरकारें रही हैं और 2008 के बाद से अब तक पिछले चौदह सालों में दस सरकारें आईं-गईं हैं.
काफ़ी राजनीतिक संघर्षों के बाद 2015 में नया संविधान स्वीकार किया गया, लेकिन राजनीतिक स्थिरता अभी भी दूर की कौड़ी दिखाई देती है. (bbc.com/hindi)
अक्तूबर तक चीन कोरोनो के खिलाफ अपनी जीरो कोविड पॉलिसी के दम पर युद्ध स्तर पर जूझ रहा था, लेकिन लॉकडाउन के खिलाफ शुरू हुए आंदोलनों ने उसे पाबंदियों में ढील देने को मजबूर कर दिया। इसके बाद से हालात तेजी से बिगड़ने लगे हैं।
अमरउजाला के वेबसाइट पर छपी एक खबर अनुसार चीन में जीरो कोविड पॉलिसी में ढील देते ही लाखों लोगों के कोरोना संक्रमित होने और लाखों की मौतें होने की आशंका है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लोगों को अस्पताल में भर्ती कराने और अंत्येष्टि के लिए इंतजार करना पड़ रहा है, क्योंकि मरीजों व मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अगले तीन माह में चीन में तीन कोरोना लहरों का खतरा है। 10 लाख से ज्यादा मौतों की आशंका जताई गई है। इससे दुनिया भर में चिंता जताई जाने लगी है।
अक्तूबर तक चीन कोरोनो के खिलाफ अपनी जीरो कोविड पॉलिसी के दम पर युद्ध स्तर पर जूझ रहा था, लेकिन लॉकडाउन के खिलाफ शुरू हुए आंदोलनों ने उसे पाबंदियों में ढील देने को मजबूर कर दिया। इसके बाद से हालात तेजी से बिगड़ने लगे हैं। तीन साल पहले दिसंबर में ही दुनिया का सबसे पहला केस चीन में मिला था। ड्रैगन उसके बाद से इससे जंग लड़ रहा है।
महामारी विशेषज्ञ एरिक फेगल-डिंग ने वीडियो साझा कर चेताया है कि चीन में कोरोना की स्थिति बिगड़ रही है। देश भर में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। डिंग अमेरिकी सार्वजनिक स्वास्थ्य वैज्ञानिक हैं। वे वर्तमान में न्यू इंग्लैंड कॉम्प्लेक्स सिस्टम्स इंस्टीट्यूट में कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख हैं।
मौतों के आंकड़े छिपाए जा रहे?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार चीन कोरोना के आंकड़ों को लगातार छिपा रहा है। नवंबर मध्य तक 11 मौतों की आधिकारिक सूचना दी गई है, जबकि रोज 10,000 से ज्यादा संक्रमित मिल रहे थे। उधर, अंत्येष्टि स्थलों crematoriums व अस्पतालों के वीडियो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। सोशल मीडिया में वायरल वीडियो में दावा किया गया है कि चीन के अस्पताल कोरोना मरीजों से भरे पड़े हैं और अंत्येष्टि के लिए कतारें लग रही हैं। अस्पतालों के शव घरों के कर्मचारियों की अतिरिक्त तैनाती कराना पड़ी है, क्योंकि कोविड से मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
मार्च तक आ सकती हैं तीन लहरें : डॉ. वू जुन्यो
चीन के शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. वू जुन्यो ने कहा है कि कोरोना संक्रमण अगले साल मार्च के मध्य तक तेजी से बढ़ेगा और इन तीन माह में तीन लहरों से पूरा देश प्रभावित होगा।
चीन के महामारी विशेषज्ञ डॉ. जुन्यो ने बताया कि फिलहाल देश कोरोना की पहली लहर से पीड़ित है और दूसरी लहर जनवरी के अंत में आने की आशंका है। इस वक्त 21 जनवरी से चीन में सप्ताह भर का चीनी नव वर्ष समारोह चलेगा और लोग छुट्टियां बिताने परिवार के साथ यात्रा करेंगे। तीसरी लहर फरवरी अंत से मार्च के मध्य तक आ सकती है क्योंकि छुट्टी बिताने के बाद लोग काम पर लौटेंगे। डॉ. वू जुन्यो का यह बयान अमेरिका के एक प्रतिष्ठित शोध संस्थान की इस सप्ताह आई एक रिपोर्ट के बाद आया है जिसमें दावा किया गया था कि 2023 में कोविड संक्रमण से चीन में 10 लाख लोगों की मौत की आशंका है।
इस बीच, चीन सरकार ने देश में चले विरोध प्रदर्शनों के दबाव में शून्य-कोविड नीति में छूट देने के बाद 7 दिसंबर से अब तक मौत का पहली बार विवरण जारी किया है। जबकि वास्तविकता यह है कि चीनी कब्रिस्तान में मृतक संख्या बढ़ती जा रही है। बता दें, स्वास्थ्य प्राधिकारी सिर्फ उन्हीं लोगों को कोविड-19 मृतक सूची में जोड़ते हैं जिनकी सीधे संक्रमण की वजह से मौत हुई और उन्हें मधुमेह व दिल की बीमारी नहीं थी।
90 फीसदी लोगों को टीके लगे, लेकिन ये कारगर नहीं
चीन ने बताया है कि उसकी 90 फीसदी से अधिक आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो गया है। हालांकि, 80 साल और उससे अधिक उम्र के आधे से कम ही लोगों को वैक्सीन की तीनों खुराक मिली है। जबकि बुजुर्गों को कोरोना के गंभीर लक्षणों से पीड़ित होने की आशंकाएं अधिक होती हैं। चीन ने कोविड के अपने टीके विकसित किए हैं। दावा है कि ये टीके दुनिया के बाकी देशों में उपयोग किए जाने वाले एमआरएनए टीकों की तुलना में कम प्रभावी हैं। ऐसे में फिलहाल बीजिंग और देश के अन्य शहरों के अस्पताल ताजा लहर से मुकाबला कर रहे हैं।
बुजुर्गों में संक्रमण बढ़ने का डर
शून्य-कोविड नीति छोड़ने के बाद से चीन में नए मामलों का विस्फोट हुआ है। कई शहरों में बड़ी संख्या में लोग अपने घरों में अलग-थलग रह रहे हैं। चिंता जताई जा रही है कि चीन के स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। खासकर बुजुर्गों के मामले में, जिनमें से कई लोगों का अभी तक पूर्ण टीकाकरण तक नहीं किया गया है।
शंघाई के स्कूलों को ऑनलाइन करने के निर्देश
चीन के व्यावसायिक शहर शंघाई में वहां के प्रशासन ने कोविड के बढ़ते मामलों के बीच अपने अधिकांश स्कूलों को ऑनलाइन कक्षाएं लेने का आदेश दिया है। शंघाई के शिक्षा ब्यूरो के अनुसार, नर्सरी और चाइल्डकेयर सेंटर भी सोमवार से बंद कर दिए गए हैं। ब्यूरो ने चीनी सोशल मीडिया वीचैट पर पोस्ट एक बयान में सोमवार से ऑनलाइन कक्षाएं दोबारा शुरू करने की पुष्टि की।
नए साल की छुट्टियों तक बंद रहेंगे स्कूल
ताजा फैसले का अर्थ है कि शंघाई में स्कूल 17 जनवरी से शुरू हो रही नए साल की छुट्टियों तक बंद रहेंगे। बता दें कि चीन में नया साल मनाने के लिए जनवरी-फरवरी के बीच स्कूलों में छुट्टी रहती है। (amarujala.com)
ईरानी मुद्रा रियाल में रिकॉर्ड गिरावट के लिए केंद्रीय बैंक के गवर्नर ने कुछ हद तक सरकार विरोधी प्रदर्शनों को ज़िम्मेदार बताया है.
ईरान की मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले सबसे निचले स्तर पर आ गई है. विदेशी मुद्रा साइट बोनबास्ट के मुताबिक़ बाज़ार में एक डॉलर 3 लाख 95 हजार रियाल तक में बिका है. इससे पहले पिछले शुक्रवार को यह एक डॉलर तीन लाख 86 हज़ार पर चल रहा था.
लोग अपनी बचत को सुरक्षित रखने के लिए डॉलर और सोना ख़रीदने की कोशिश कर रहे हैं.
केंद्रीय बैंक के गवर्नर अली सालेहाबादी ने माना है, “अमेरिकी प्रतिबंधों के साथ पिछले दो महीनों की घटनाओं ने ईरानी मुद्रा को कमज़ोर किया है. कमज़ोर रियाल को उठाने के लिए मार्केट में डॉलर लाया जा रहा है”
महसा अमीनी की मौत के बाद से शुरू हुए प्रदर्शनों के बाद से रियाल में क़रीब 20 प्रतिशत की गिरावट आई है.
मई 2018 में अमेरिका के परमाणु समझौते से बाहर आने और ईरान पर प्रतिबंधों को फिर से लागू करने से पहले देश की मुद्रा क़रीब 65 हजार प्रति डॉलर पर कारोबार कर रही थी.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ सरकार विरोधी प्रदर्शनों में 495 प्रदर्शनकारी मारे गए हैं, जिनमें 68 नाबालिग भी शामिल हैं.
इसके अलावा 62 सुरक्षाबलों की भी मौत हुई है, वहीं 18 हजार 450 लोगों को गिरफ्तार किए जाने का अनुमान है. (bbc.com/hindi)
अमेरिका में पिछले साल हुए कैपिटल दंगे की जांच कर कर रही कमिटी का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर विद्रोह समेत आपराधिक मामले चलाए जाने चाहिए.
डेमोक्रेटिक पार्टी की अगुवाई वाली कमिटी ने एकमत से ट्रंप के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाने के लिए न्याय विभाग से वकालत की है.
कमिटी ने डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व सहयोगी होप हिक्स का एक क्लिप भी सामने रखा है जिसमें चुनाव में हार को स्वीकार करने से इनकार करते हुए देखा सकता है.
6 जनवरी 2021 को अमेरिका की कैपिटल बिल्डिंग पर हमला करते हुए ट्रंप समर्थकों की तस्वीरें पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गई थी. ट्रंप समर्थक, राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडन का विरोध कर रहे थे.
वॉशिंगटन शहर में हुई इस हिंसा में एक पुलिस अधिकारी समेत पाँच लोगों की मौत हुई थी.
किसी भी ग़लत काम से इनकार करते हुए ट्रंप ने एक बयान जारी किया है जिसमें पैनल को उन्होंने ‘कंगारू कोर्ट’ कहा है.
प्रतिनिधि सभा की चयन कमिटी क़रीब 18 महीने से कैपिटल हिल दंगे की जांच में लगी है. सोमवार को अपनी आख़िरी बैठक में कमिटी ने सिफ़ारिश की है कि ट्रंप को चार आरोपों का सामना करना चाहिए.
- विद्रोह को उकसाना, ऐसा करने वालों की मदद करना और मदद का वादा करना
- आधिकारिक कार्यवाही में बाधा डालना
- अमेरिका के साथ धोखा करने की साज़िश
- ग़लत बयान देने की साज़िश (bbc.com/hindi)
ट्विटर यूजर्स ने इस बात के पक्ष में वोट दिया है कि एलन मस्क को कंपनी के चीफ़ एग़्जिक्यूटिव ऑफ़िसर के पद से हट जाना चाहिए. दिलचस्प बात ये है कि ट्विटर के सीईओ एलन मस्क ने खुद ही अपने हैंडल पर ये पोल शुरू किया था.
एलन मस्क ने इस पोल में अपने 12 करोड़ 20 लाख फॉलोअर्स के सामने ये सवाल रखा था, "क्या मुझे ट्विटर के प्रमुख के पद से हट जाना चाहिए?" 57.5 फ़ीसदी यूजर्स ने इस सवाल का जवाब 'हां' में दिया है.
44 बिलियन डॉलर में ट्विटर को खरीदने वाले एलन मस्क ने इस सवाल के साथ ये भी कहा था कि "मैं इस पोल के नतीजों को लेकर बाध्य रहूंगा."
टेक्नोलॉजी की दुनिया के बेताज़ बादशाह कहे जाने वाले एलन मस्क टेस्ला और स्पेस एक्स जैसी कंपनियों के भी मालिक हैं. ट्विटर की कमान संभालने के बाद से ही वे लगातार आलोचनाओं के केंद्र में रहे हैं.
हालांकि पोल ख़त्म होने के बाद से एलन मस्क ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. भले ही वे ट्विटर के सीईओ पद से इस्तीफ़ा दे दें लेकिन कंपनी की मिल्कियत उन्हीं के पास रहेगी. सोमवार को इस पोल में एक करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया.
अतीत में एलन मस्क ने ट्विटर पोल के नतीजों पर अमल किया है. वे अक्सर लातिन भाषा के उस मुहावरे का इस्तेमाल करते देखे गए हैं, जिसका मतलब 'लोगों की आवाज़, खुदा की आवाज़ होती है.'
वेडबुश सिक्योरिटीज़ के सीनियर इक्विटी एनालिस्ट डैन इवेस ने पोल ख़त्म होने से पहले बीबीसी को बताया कि उनकी राय में इसके साथ ही सीईओ के तौर पर एलन मस्क का कार्यकाल ख़त्म हो जाएगा. (bbc.com/hindi)