अंतरराष्ट्रीय
होनोलूलू, 28 नवंबर। हवाई के मौनालाओ में स्थित ज्वालामुखी में विस्फोट होना शुरू हो गया है जिसकी वजह से राख और मलबा आसपास के इलाकों में गिरने लगा है।
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे ने सोमवार को बताया कि विस्फोट रविवार देर रात बिग द्वीप पर ज्वालामुखी के शिखर काल्डेरा में शुरू हुआ।
उसने कहा कि सोमवार तड़के लावा शिखर तक ही सीमित था और इससे आसपास रहने वाले लोगों को खतरा नहीं है।
एजेंसी ने चेताया कि मौनालोआ के लोगों को लावा के प्रवाह से खतरा है। ज्वालामुखी के शिखर पर हाल में बार-बार भूकंप आने के बाद से वैज्ञानिक सतर्क हैं। ज्वालामुखी में पिछली बार 1984 में विस्फोट हुआ था।
मौनालोआ समुद्र की सतह से 13,679 फुट ऊपर है। (एपी)
पाकिस्तान, 28 नवंबर । पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने कहा है कि सेना को ग़ैर-सियासी रखने के उनके बयान को कुछ लोग नकारात्मक तरीक़े से देख रहे हैं.
उन्होंने कहा कि उनपर निजी हमले किए जा रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि यह फ़ैसला पाकिस्तान में लोकतंत्र को मज़बूत करने में एक अहम रोल अदा करेगा.
जनरल बाजवा ने कहा कि ऐसा करने से देश की संस्थाओं को अपना काम प्रभावी तरीक़े से करने में मदद मिलेगी.
गल्फ़ न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू
में उन्होंने यह बातें कहीं.
जनरल बाजवा 29 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं और उनकी जगह पर जनरल आसिम मुनीर सेना प्रमुख होंगे.
पिछले सप्ताह एक कार्यक्रम में उन्होंने इस बात को स्वीकार किया था कि सेना राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करती है लेकिन साथ ही उन्होंने विश्वास दिलाया था कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा.
गल्फ़ न्यूज़ से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना हमेशा से ही राष्ट्र के नीतिगत फ़ैसलों में निर्णायक भूमिका निभाती रही है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सियासत में सेना की पिछली भूमिका के कारण सेना को जनता और राजनीतिज्ञ दोनों की तीव्र आलोचना का सामना करना पड़ा है.
उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का पूरा यक़ीन है कि सेना को राजनीति से दूर रखना लंबे समय में पाकिस्तान के लिए नेक शगुन साबित होगा.
उनके अनुसार इससे राजनीतिक स्थिरता भी क़ायम होगी और सेना एंव जनता के बीच रिश्ते भी मज़बूत होंगे. (bbc.com/hindi)
(के जे एम वर्मा)
बीजिंग, 28 नवंबर। कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लागू किए गए कड़े प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शन राजधानी बीजिंग तक फैल गए है। इस बीच, चीन में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और रविवार को करीब 40,000 नए मामले सामने आए।
लगातार पांचवें दिन बीजिंग में कोरोना वायरस के करीब 4,000 मामले सामने आए।
चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने कहा कि सोमवार को संक्रमण के 39,452 नए मामले आए, जिनमें 36,304 स्थानीय मामलों में मरीजों में बीमारी के लक्षण नहीं देखे गए।
इस बीच, सप्ताहांत के दौरान पूर्वी महानगर शंघाई में शुरू हुए प्रदर्शन बीजिंग तक फैल गए जहां मध्य शहर में लियांगमाहे नदी के समीप रविवार शाम को सैकड़ों लोग एकत्रित हो गए।
शंघाई के उरुमकी में बृहस्पतिवार को लॉकडाउन के दौरान एक अपार्टमेंट में आग लग जाने की घटना में मारे गए लोगों की याद में मोमबत्तियां लिए हुए लोगों ने सरकार द्वारा मनमाने लॉकडाउन के खिलाफ और शंघाई में प्रदर्शनों के प्रति एकजुटता जताते हुए नारे लगाए।
कई राजनयिकों और विदेशियों ने प्रदर्शन देखा क्योंकि ये प्रदर्शन बीजिंग में राजनयिक आवासीय परिसर के समीप हुए।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि प्रदर्शन कई घंटे तक हुए और पुलिस ने कई लोगों को हिरासत में लिया।
शंघाई में शनिवार और रविवार को प्रदर्शनकारियों ने सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) तथा देश के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से इस्तीफा देने की मांग की।
बीजिंग में प्रतिष्ठित सिंगहुआ विश्वविद्यालय और नानजिंग में कम्यूनिकेशन यूनिवर्सिटी में भी छात्रों ने प्रदर्शन किया।
ऑनलाइन अपलोड की गयी तस्वीरों और वीडियो में छात्र उरुमकी हादसे के पीड़ितों के लिए मार्च करते हुए और विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन करते हुए दिखायी दिए।
सिंगहुआ विश्वविद्यालय ने एक नए नोटिस में छात्रों से कहा कि अगर वे जनवरी की छुट्टियों के मद्देनजर घर जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं। (भाषा)
क्विटो, 28 नवंबर (आईएएनएस)| इक्वाडोर के कोटोपेक्सी ज्वालामुखी में गैस, जलवाष्प उत्सर्जन और राख निकलने और भूकंपीय गतिविधि में वृद्धि दर्ज की गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इक्वाडोरन जियोफिजिकल इंस्टीट्यूट ने कहा कि, रविवार सुबह 5.40 बजे, ज्वालामुखी के पास निगरानी कैमरों ने क्रेटर के ऊपर 1.8 किमी तक एक कॉलम देखा।
इसने कहा कि राख गिरने से राजधानी क्विटो के दक्षिण और आसपास की घाटियां प्रभावित हुईं।
संस्थान ने कहा, "उचित उपाय करने और आधिकारिक स्रोतों से मिली जानकारी का पालन करने की सिफारिश की जाती है।"
23 अक्टूबर को येलो अलर्ट जारी किया गया जिसका मतलब है मध्यम जोखिम। यह अलर्ट ज्वालामुखी के पास के क्षेत्रों में लागू है, जो सक्रिय है लेकिन फटा नहीं है।
ज्वालामुखी, समुद्र तल से 5,897 मीटर ऊपर, देश में दूसरा सबसे ऊंचा है।
ज्वालामुखी का अंतिम बड़ा विस्फोट 26 जून, 1877 को हुआ था।
2015 में, ज्वालामुखी ने नई गतिविधि देखी लेकिन फटा नहीं।
सैन फ्रांसिस्को, 28 नवंबर | ट्विटर के सीईओ एलन मस्क ने सोमवार को दावा किया कि कुछ उपयोगकर्ताओं द्वारा खातों को ब्लॉक करने में सक्षम नहीं होने की रिपोर्ट के बाद माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म पर सेवा में थोड़ी गिरावट एक पुराने थर्ड पार्टी उपकरण के कारण हुई थी जो अब ठीक कर दिया गया है। मस्क ने ट्वीट किया, "ट्विटर ने आज एक पुराने थर्ड पार्टी टूल से सेवा में मामूली गिरावट का अनुभव किया, जिसका उपयोग उन खातों को ब्लॉक करने के लिए किया जाता था जिनकी कोई दर सीमा नहीं थी, अब इसे ठीक कर लिया गया है।"
मस्क के पोस्ट पर कई यूजर्स ने अपने विचार व्यक्त किए।
एक उपयोगकर्ता ने कहा, "उम्मीद है कि मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैं बहुत से लोगों को ब्लॉक कर रहा हूं।"
इस पर मस्क ने जवाब दिया, "आप शायद प्रति सेकंड 4,000 खातों को ब्लॉक नहीं कर रहे थे।"
एक अन्य उपयोगकर्ता ने कहा, "आपकी पारदर्शिता के लिए धन्यवाद!"
इस महीने की शुरूआत में, माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म को कुछ भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए एक संक्षिप्त आउटेज का सामना करना पड़ा।
मोबाइल पर ट्विटर ठीक काम कर रहा था लेकिन डेस्कटॉप वर्जन पर यूजर्स को प्लेटफॉर्म पर लॉग इन करने में थोड़ी परेशानी हुई। (आईएएनएस)|
गैथर्सबर्ग (अमेरिका), 28 नवंबर। अमेरिका के मेरीलैंड काउंटी में रविवार शाम एक छोटा विमान बिजली के तारों में फंस गया। हालांकि हादसे में विमान में सवार दो यात्रियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
अधिकारियों द्वारा विमान को निकालने के दौरान आसपास के इलाकों में बिजली कटौती करनी पड़ी।
फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (एफएए) ने एक बयान में कहा कि एक इंजन वाला विमान, जो व्हाइट प्लेन्स, एन.वाई. से रवाना हुआ था, रविवार शाम करीब पांच बजकर 40 मिनट पर गैथर्सबर्ग में मोंटगोमरी काउंटी एयरपार्क के पास बिजली के तारों में फंसकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। एफएए ने कहा कि विमान में दो लोग सवार थे।
पीट पिरिंगर, मोंटगोमरी काउंटी फायर एंड के मुख्य प्रवक्ता, रेस्क्यू सर्विस ने ट्विटर पर कहा कि विमान में सवार लोग सुरक्षित हैं और बचावकर्ता उनके संपर्क में थे। उन्होंने एक वीडियो संदेश में कहा था कि विमान में तीन लोग थे लेकिन बाद में स्पष्ट किया कि दो लोग थे।
एफएए ने विमान की पहचान मूनी एम20जे के रूप में की है। (एपी)
ब्रसेल्स, 28 नवंबर। फुटबॉल विश्वकप में रविवार को बेल्जियम पर मोरक्को की 2-0 से जीत के बाद बेल्जियम और नीदरलैंड के कई शहरों में दंगे भड़क उठे।
ब्रसेल्स में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने पानी की बौछार छोड़ी और आंसू गैस के गोले दागे। पुलिस ने ब्रसेल्स में करीब एक दर्जन लोगों को हिरासत में लिया जबकि उत्तरी शहर एंटवर्प में भी आठ लोगों को पकड़ा गया।
ब्रसेल्स पुलिस की प्रवक्ता इल्से वैन डे कीरे ने कहा कि कई दंगाई सड़कों पर उतर आए और कारों, ई-स्कूटरों में आग लगा दी तथा गाड़ियों पर पथराव किया। घटना में एक व्यक्ति के घायल होने के बाद पुलिस ने कार्रवाई की।
ब्रसेल्स के महापौर फिलिप क्लोज ने लोगों से शहर के मध्य में जमा नहीं होने का अनुरोध किया और कहा कि अधिकारी सड़कों पर व्यवस्था बहाल करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। हालांकि पुलिस के आदेश के बाद ट्रेन और ट्राम यातायात बाधित हुआ है।
क्लोज ने कहा, ‘‘ये लोग खेल के प्रशंसक नहीं हैं बल्कि ये दंगाई हैं।’’ आंतरिक मंत्री एनेलीज वेरलिंडेन ने कहा, ‘‘यह देखना दुखद है कि किस तरह से मुट्ठी भर लोग स्थिति को खराब कर रहे हैं।’’
पड़ोसी देश नीदरलैंड में पुलिस ने कहा कि रॉटरडैम में हिंसा भड़क उठी और दंगा रोधी अधिकारियों ने करीब 500 लोगों के फुटबॉल समर्थक समूह को रोकने का प्रयास किया जिन्होंने पुलिस पर पथराव किया और आगजनी तथा तोड़फोड़ की। घटना में दो पुलिस अधिकारी घायल हुए हैं। रविवार देर शाम कई शहरों में अशांति की सूचना मिली। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक देश की राजधानी एम्सटर्डम और हेग में अशांति का माहौल है। (एपी)
याओंडे (कैमरून), 28 नवंबर। कैमरून की राजधानी में रविवार को एक शख्स के अंतिम संस्कार के दौरान हुए भूस्खलन से कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई। यह क्षेत्रीय गवर्नर ने यह जानकारी दी।
इस हादसे में दर्जनों अन्य लोग लापता हैं वहीं बचावकर्मी मलबे की खुदाई कर लोगों की तलाश कर रहे हैं।
सेंटर रीजनल गवर्नर नसेरी पॉल बी ने कैमरून के राष्ट्रीय प्रसारक सीआरटीवी को बताया कि रात में भी मलबे में दबे जीवित लोगों की तलाश का काम जारी था।
उन्होंने कहा, “घटनास्थल पर हमने 10 शव गिने थे, लेकिन हमारे पहुंचने से पहले ही चार शवों को ले जाया जा चुका था।”
उन्होंने कहा कि गंभीर हालत में करीब एक दर्जन लोगों को अस्पताल में पहुंचाया गया है।
याओंडे के पड़ोस में स्थित दमास में जिस जगह भूस्खलन हुआ उसे गवर्नर ने एक “बहुत खतरनाक स्थान” बताया और उन्होंने लोगों को इस स्थान को खाली करने को कहा। (एपी)
चीन में कोविड प्रतिबंधों को लेकर सरकार विरोधी प्रदर्शन का सिलसिला तेज़ हो गया है. प्रदर्शनकारी चीन के 'राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पद छोड़ने' की मांग कर रहे हैं.
चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और सरकार के ख़िलाफ़ गुस्से का इस तरह का इज़हार और विरोध प्रदर्शन अब के पहले शायद ही कभी देखने को मिला है.
चीन के शंघाई और दूसरे शहरों में हज़ारों लोगों ने सड़क पर उतरकर नाराज़गी जाहिर की. मौके पर मौजूद बीबीसी संवाददाता के मुताबिक कई प्रदर्शनकारियों को पुलिस के वाहन में डाल कर ले जाया गया.
बीजिंग और नानजिंग यूनिवर्सिटी के छात्रों ने भी कोविड पाबंदियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया.
चीन के उत्तर पश्चिम शहर उरुमची में भी प्रदर्शन देखने को मिले. यहां प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि लॉकडाउन के नियमों की वजह से एक टॉवर में लगी आग के दौरान 10 लोगों की मौत हो गई.
चीन के आधिकारी इस आरोप को ख़ारिज करते रहे हैं. उनका कहना है कि मौत की वजह कोविड पाबंदियां नहीं हैं. हालांकि उरुमची के अधिकारियों ने शुक्रवार रात को अप्रत्याशित माफ़ीनामा जारी किया. अधिकारियों ने कहा कि पाबंदियां हटाते हुए सुचारू 'व्यवस्था बहाल' की जाएगी.
राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
शंघाई चीन का सबसे बड़ा आर्थिक केंद्र है. यहां भी लोगों ने सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया. कई लोग 'शी जिनपिन, गद्दी छोड़ो' और 'कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता छोड़ो' के नारे लगा रहे थे.
यहां पीड़ितों की याद में कुछ लोगों ने हाथ में मोमबत्तियां थामी हुई थीं. कुछ लोगों ने फूल चढ़ाए.
चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और कम्युनिस्ट पार्टी के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी आम बात नहीं है. चीन में सरकार और राष्ट्रपति की सीधी आलोचना पर कड़ी कार्रवाई का ख़तरा रहता है.
एक प्रदर्शनकारी ने बीबीसी को बताया कि लोगों को सड़कों पर देखकर वो 'हैरान और उत्साहित' हैं. उन्होंने कहा कि चीन में पहली बार इस पैमाने पर लोगों की नाराज़गी देखने को मिल रही है.
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन ने उन्हें 'दुखी, नाराज़ और निराश' कर दिया है. उन्होंने बताया कि उनकी मां कैंसर से जूझ रही हैं और लॉकडाउन की वजह से वो उनका हालचाल लेने नहीं जा पा रहे हैं.
एक महिला प्रदर्शनकारी ने बीबीसी को बताया कि पुलिस अधिकारियों से जब ये पूछा गया कि वो प्रदर्शन को लेकर कैसा महसूस कर रहे हैं तो उनका जवाब था, 'वैसा ही जैसा आप महसूस कर रहे हैं.'
हालांकि, महिला प्रदर्शनकारी ने कहा, 'वो (पुलिसकर्मी) यूनिफॉर्म में हैं और उन्हें अपना काम करना है.'
एक प्रदर्शनकारी ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि मौके पर पुलिस ने उनके एक दोस्त की पिटाई की. जबकि दो अन्य लोगों पर मिर्ची का स्प्रे किया गया.
चीन के कई लोगों के लिए उरुमची की आग एक बुरे सपने की तरह थी. कुछ लोगों ने दावा किया है कि लोग एक अपार्टमेंट में बंद थे और उनके पास भागने का कोई रास्ता नहीं था. उरुमची के अधिकारियों ने इस दावे को ग़लत बताते हुए ख़ारिज किया है. प्रशासन की सफ़ाई के बाद भी लोगों का गुस्सा कम नहीं हुआ है. विरोध प्रदर्शन का सिलसिला लगातार आगे बढ़ रहा है.
चीन में हालिया कुछ महीनों के दौरान कोविड 19 को रोकने के लिए सख़्त पाबंदियां लागू की गई हैं.
लोगों के मन में घर कर गई निराशा और गुस्सा आग की घटना के बाद से बढ़ गया है. आवाजाही पर तीन साल से लगी पाबंदी से चीन के लाखों लोग उकता चुके हैं. रोज़ होने वाले कोविड टेस्ट ने भी उन्हें परेशान कर दिया है. चीन के हर हिस्से में गुस्से की लहर फैल गई लगती है.
इसका असर प्रमुख शहरों से लेकर शिन्जियान और तिब्बत जैसे दूरदराज के इलाकों तक में दिखता है. यूनिवर्सिटी के छात्रों, फैक्ट्री मज़दूरों से लेकर आम नागरिक तक कोविड नीति को लेकर नाराज़गी जाहिर कर रहे हैं.
लोगों का गुस्सा बढ़ने के साथ कोविड़ पाबंदियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों की संख्या भी बढ़ रही है. सप्ताह के आखिरी दिनों में लोगों ने जिस तरह सड़क पर उतरकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और सरकार की आलोचना की है, वैसा आमतौर पर नज़र नहीं आता है.
कुछ वक़्त पहले तक ऐसी कल्पना करना भी मुश्किल लगता था कि सैंकड़ों लोगों का इस तरह से सड़क पर उतरकर राष्ट्रपति 'शी जिनपिंग से गद्दी छोड़ने की मांग' कर सकते हैं. बीजिंग ब्रिज पर हाल में हुए नाटकीय प्रदर्शन ने कई लोगों को सन्न कर दिया. इससे खुलेआम और तीखी आलोचना की एक नई सीमा तय होती लगी.
प्रदर्शन में शामिल कुछ लोगों ने चीन के झंडे भी थामे हुए थे. वो राष्ट्रीय गान गा रहे थे. ये देशभक्ति का ऐसा प्रदर्शन है जहां लोग राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ज़ीरो कोविड नीति से बेहाल अपने साथी नागरिकों के साथ एकजुटता दिखा रहे हैं.
चीन की चुनौती
चीन सरकार की ज़ीरो कोविड नीति के ख़िलाफ़ प्रदर्शन का तरीक़ा ज़्यादा मुखर होता जा रहा है. दिनों दिन लोग सरकार और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ज़्यादा खुलकर आलोचना करने लगे हैं.
चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है. दूसरे किसी भी बड़े देश के मुक़ाबले कोविड को लेकर यहां ज़्यादा सख़्त पाबंदियां लागू हैं. चीन की ज़ीरो कोविड नीति जैसी पॉलिसी किसी और देश में लागू नहीं है. दरअसल, चीन में टीकाकरण की दर अपेक्षाकृत कम है और चीन की ये नीति बुज़ुर्ग लोगों को सुरक्षित रखने के इरादे से लागू की गई है.
बार बार लगाए जाने वाले लॉकडाउन लोगों की नाराज़गी बड़ी वजह हैं. कोविड पाबंदियों के ख़िलाफ़ झेंगझाऊ और ग्वांगझाऊ में हिंसक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले.
तमाम पाबंदियों के बाद भी चीन में इस हफ़्ते रिकॉर्ड संख्या में कोविड मामले सामने आए.(bbc.com/hindi)
चीन में कोविड पाबंदियों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों को कवर करने के दौरान गिरफ़्तार किए गए बीबीसी संवाददाता एड लॉरेंस को रिहा कर दिया गया है. लेकिन हिरासत में पुलिस ने उनके साथ बर्बर रवैया अपनाया.
बीबीसी की ओर से जारी बयान के अनुसार, शंघाई में विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ़्तार पत्रकार एड लॉरेंस को रिहा करने से पहले पुलिस ने उनके हाथ बांधे, पीटाऔर उन्हें लात तक मारी. ये तब हुआ जब वो एक मान्यता प्राप्त पत्रकार के तौर पर काम कर रहे थे.
बीबीसी ने कहा है, "अपना काम करते हुए हमारे एक पत्रकार के साथ ऐसा हमला, चिंताजनक है. चीन की ओर से अभी तक औपचारिक तौर पर न तो सफ़ाई दी गई है और न ही माफ़ी मांगी गई है. कुछ अधिकारियों ने बाद में दावा किया कि पत्रकार को उनकी ही भलाई के लिए गिरफ़्तार किया गया ताकि, भीड़ से वो कोरोना संक्रमित न हो जाएं. बीबीसी इसे विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं मानता."
चीन में कोरोना की पाबंदियों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन जारी है. उरूमची में एक इमारत के अंदर आग लगने से 10 लोगों की मौत के बाद ये प्रदर्शन शुरू हुए थे. लोगों का मानना है कि सख़्त प्रतिबंध इन मौतों की असली वजह है. (bbc.com/hindi)
(शिरीष बी प्रधान)
काठमांडू, 27 नवंबर। नेपाल के संसदीय चुनाव में प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस अब तक सामने आए नतीजों में 53 सीट पर जीत दर्ज करके सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
देश की 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा की 165 सीट का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान से जबकि शेष 110 सीट का चुनाव आनुपातिक चुनाव प्रणाली के जरिये होता है। प्रतिनिधि सभा और सात प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव 20 नवंबर को हुए थे। मतों की गिनती सोमवार को शुरू हुई थी।
नेपाली कांग्रेस ने प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली के तहत अकेले 53 सीट जीती हैं जबकि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) ने 42 सीट पर जीत दर्ज की है। इसके अलावा, सीपीएन-माओवादी सेंटर 17 सीट जीतकर तीसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी है जबकि सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट ने 10 सीट जीती हैं।
नवगठित राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने सात-सात सीटों पर कब्जा जमाया है। निर्दलीय उम्मीदवारों एवं अन्य छोटे दलों के खाते में 21 सीट गई हैं। 165 सीट में से 21 के नतीजे आने बाकी हैं।
पांच दलों के सत्तारूढ़ गठबंधन ने 85 सीटों पर जीत हासिल की हैं जबकि सीपीएन-यूएमएल के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 55 सीट पर कब्जा जमाया है।
प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष देउबा के अलावा, तीन पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड, ओली और माधव नेपाल भी संसद के लिए चुने गए हैं। (भाषा)
इस्लामाबाद, 27 नवंबर। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की नीलम घाटी में रविवार को एक जीप के नाले में गिरने से छह महिलाओं की मौत हो गई और आठ अन्य लोग घायल हो गए।
‘डॉन’ समाचार पत्र ने जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी अख्तर अय्यूब के हवाले से बताया कि घटना दुधनियाल के छरी इलाके में अपराह्न करीब तीन बजे हुई जब जीप 300 फुट गहरे सूखे नाले में गिर गई।
उन्होंने बताया कि हादसे में छह महिलाओं की मौत हो गई और आठ अन्य लोग घायल हो गए। यात्री नीलम नदी के किनारे स्थित ठंडा पानी गांव के रहने वाले थे।
अय्यूब ने कहा कि वाहन में क्षमता से अधिक लोग सवार थे।
उन्होंने कहा कि घायलों को दुधनियाल में बुनियादी स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां से पांच लोगों को आगे के इलाज के लिए मुजफ्फराबाद स्थानांतरित कर दिया गया है। (भाषा)
(के जे एम वर्मा)
बीजिंग, 27 नवंबर। चीन में कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए लागू किए गए कड़े प्रतिबंधों के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन तेज हो गए हैं। इस बीच, देश में संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और रविवार को करीब 40,000 नए मामले सामने आए।
चीन में इस प्रकार के प्रदर्शन होना दुर्लभ बात है। चीनी सोशल मीडिया और ट्विटर पर उपलब्ध कई वीडियो में लोग शंघाई समेत कई स्थानों पर प्रदर्शन करते और सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) तथा देश के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के खिलाफ नारेबाजी करते नजर आए।
ऐसा बताया जा रहा है कि कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है। कई वीडियो में विभिन्न विश्वविद्यालय परिसरों में छात्र लॉकडाउन का विरोध करते दिखाई दिए।
इस बीच, सरकार ने शनिवार को शिनजियांग की राजधानी उरुमकी से लॉकडाउन हटाने के लिए कदम उठाए। उरुमकी में बृहस्पतिवार को लॉकडाउन के दौरान एक अपार्टमेंट में आग लग जाने से 10 लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद वहां सप्ताहांत में व्यापक स्तर पर प्रदर्शन हुए।
पुलिस ने आधी रात में ‘मिडल उरुमकी रोड’ पर एकत्र हुए करीब 300 प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल किया।
झाओ नाम के एक प्रदर्शनकारी ने बताया कि उसके एक मित्र को पुलिस ने पीटा और उसके दो मित्रों के खिलाफ मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल किया गया। प्रदर्शनकारी ने अपना उपनाम ही बताया।
उसने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने ‘शी चिनफिंग, इस्तीफा दो, कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता छोड़ो’, ‘शिनजियांग से प्रतिबंध हटाओ, चीन से प्रतिबंध हटाओ’, ‘हम पीसीआर (जांच) नहीं कराना चाहते, स्वतंत्रता चाहते हैं’ और ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ सहित कई नारे लगाए।
इससे पहले शनिवार को, शिनजियांग क्षेत्र के अधिकारियों ने उरुमकी में कुछ मोहल्लों से प्रतिबंध हटा दिया। उरुमकी के निवासियों द्वारा शहर में तीन महीने से अधिक समय से लागू ‘लॉकडाउन’ के खिलाफ देर रात असाधारण प्रदर्शन किए जाने के बाद अधिकारियों को प्रतिबंध हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कई लोगों का आरोप है कि वायरस संबंधी प्रतिबंधों के मद्देनजर लगाए गए अवरोधकों के कारण आग और भीषण हो गई तथा आपात कर्मियों को आग बुझाने में तीन घंटे का समय लगा, लेकिन अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि इमारत में कोई अवरोधक नहीं लगाए गए थे तथा निवासियों को वहां से जाने की अनुमति थी।
इस बीच, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने रविवार को बताया कि देश में शनिवार देर तक संक्रमण के 39,501 मामले सामने आए। देश में लगातार चौथे दिन संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। शंघाई जैसे प्रमुख शहरों में मामलों में अप्रैल में आई तेजी के बाद से यह संख्या सर्वाधिक है।(भाषा)
-मोहम्मद सोहेब और आज़म ख़ान
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी (पीटीआई) के चेयरमैन इमरान ख़ान ने जब से 26 नवंबर को इस्लामाबाद की बजाए रावलपिंडी में जलसा करने का फ़ैसला किया था तभी से इस बात की चर्चा होने लगी थी कि आख़िर इमरान ख़ान इस जलसे में अपने अगले क़दम के बारे में क्या बताएंगे.
इमरान ख़ान पिछले कुछ दिनों से लॉन्ग मार्च कर रहे हैं जिन्हें वो 'हक़ीक़ी आज़ादी' मार्च यानी वास्तविक आज़ादी मार्च कहते हैं.
जब उन्होंने इस मार्च की शुरुआत की थी तो शुरू में ऐसा लग रहा था कि वो और उनकी पार्टी राजधानी इस्लामाबाद पहुंचकर पड़ाव डाल लेंगे और फिर आम चुनाव की घोषणा होने तक वो वहीं डेरा डाले रहेंगे.
इमरान ख़ान की मांग है कि सरकार जल्द से जल्द आम चुनाव कराने की घोषणा करे.
साल 2014 में भी इमरान ख़ान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की सरकार के ख़िलाफ़ 126 दिनों तक धरना दिया था.
हक़ीक़ी आज़ादी मार्च' या लॉन्ग मार्च की शुरुआत से पहले इमरान ख़ान ने पाकिस्तान के कई शहरों में रैलियां की थीं और उस दौरान हुए उपचुनावों में उनकी पार्टी ने जीत भी हासिल की थी.
उन नतीजों के आधार पर इमरान ख़ान ने ख़ुद को पाकिस्तान का सबसे लोकप्रिय नेता क़रार दिया और शहबाज़ शरीफ़ सरकार पर दबाव बनाने लगे कि जल्द से जल्द चुनाव कराए जाएं.
लेकिन शनिवार को रावलपिंडी पहुंचकर इमरान ख़ान ने जो कहा वो शायद किसी राजनीतिक विशेषज्ञ ने सोचा भी नहीं होगा.
यह अलग बात है कि इस दौरान पीटीआई ने भी कई समझौते किए.
पहले तो पीटीआई राजधानी में दाख़िल होने की घोषणा से पीछे हटी. उसके बाद पीटीआई को रैली के लिए फ़ैज़ाबाद में भी जगह नहीं मिली और प्रशासन ने उन्हें कड़ी शर्तों के साथ रावलपिंडी में जलसा करने के लिए मजबूर किया.
रावलपिंडी में इमरान ख़ान ने कहा, "हमने फ़ैसला किया है कि हम सारी प्रांतीय सरकारों से निकल जाएंगे."
उन्होंने अपने भाषण में कहा, "हम अपने ही देश में तोड़-फोड़ करें और तबाही मचाएं, उससे बेहतर है कि हम इस भ्रष्ट व्यवस्था से बाहर निकलें और इस सिस्टम का हिस्सा ना बनें, जिधर यह चोर बैठकर हर दिन अपने अरबों रुपए के केस माफ़ करवा रहे हैं."
इमरान ख़ान ने कहा कि अब वो इस्लामाबाद का रुख़ नहीं करेंगे क्योंकि उनके मुताबिक़, "जब लाखों लोग इस्लामाबाद जाएंगे तो कोई नहीं रोक सकता लेकिन मुझे पता है कि इससे तबाही मचेगी."
बीबीसी ने इमरान ख़ान के इस फ़ैसले पर कई राजनीतिक विश्लेषकों से बात की.
'वापसी का कोई रास्ता नहीं था, यह उनका आख़िरी पत्ता था'
ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह की राजधानी पेशावर स्थित एक निजी टीवी चैनल आज न्यूज़ की ब्यूरो चीफ़ फ़रज़ाना अली ने बीबीसी से बातचीत के दौरान कहा, "इमरान के पास वापसी का कोई रास्ता नहीं था और यह घोषणा उनका आख़िरी पत्ता है जो उन्होंने खेल दिया है."
उनके अनुसार उन्होंने ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के पूर्व मुख्यमंत्री परवेज़ ख़टक से भी यह पूछा कि अगर रावलपिंडी एक लाख लोग भी लेकर चले गए तो फिर क्या होगा. इसके जवाब में परवेज़ ख़टक ने कहा कि उन्हें भी पता नहीं है, वहां जाकर इमरान ख़ान जो फ़ैसला करेंगे, वही उनका फ़ैसला होगा.
फ़रज़ाना अली के अनुसार पीटीआई के लिए अपने अभियान को जारी रखना अब मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि इसके लिए ढेर सारे पैसों की ज़रूरत होती है और पीटीआई के कई नेता अब फ़ंड की कमी की शिकायत करते हुए नज़र आ रहे हैं.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सोहैल वडाएच का ख़्याल है कि इमरान ख़ान की तरफ़ से उठाया गया यह पहला गंभीर क़दम है.
उनके अनुसार इमरान ख़ान के पास यह विकल्प पहले ही दिन से मौजूद था लेकिन उन्होंने उसका इस्तेमाल नहीं किया.
सोहैल वडाएच का कहना है कि इस फ़ैसले से इमरान ख़ान यह बताना चाह रहे हैं कि उन्होंने सिस्टम के साथ समझौता करने से इनकार कर दिया है.
लेकिन राजनीतिक विश्लेषक आस्मा शीराज़ी इसे इमरान ख़ान के लिए 'फ़ेस सेविंग' (छवि बचाने) हथकंडा क़रार देती हैं.
आस्मा शीराज़ी कहती हैं कि अभी तो इमरान ख़ान ने सिर्फ़ घोषणा की है अभी उनके विधायकों ने इस्तीफ़ा नहीं दिया है.
रावलपींडि में इमरान ख़ान ने कहा था, "मैंने पंजाब और ख़ैबरपख़्तूनख़्वाह के मुख्यमंत्रियों से बात कर ली है. संसदीय बोर्ड से भी विचार विमर्श कर रहा हूं. आने वाले दिनों में घोषणा करूंगा कि हम किस दिन विधानसभा से इस्तीफ़ा देकर बाहर निकलेंगे."
आस्मा शीराज़ी के अनुसार इमरान ख़ान ने सोचा होगा कि एक इवेंट पैदा किया जाए ताकि मीडिया में इस पर बहस जारी रहे और इस तरह पीटीआई को 'फ़ेस सेविंग' का मौक़ा मिल जाए.
पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के सीएम क्या करेंगे
फ़रज़ाना अली के अनुसार ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के मुख्यमंत्री महमूद ख़ान पूरी तरह इमरान ख़ान के प्रति वफ़ादार हैं. लेकिन अगर मुख्यमंत्री के सलाहकारों ने उन्हें कोई और रास्ता सुझाया तो हो सकता है कि इमरान ख़ान की इच्छा पूरी ना हो सके.
ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में पिछले नौ बरस से पीटीआई की सरकार है और महमूद ख़ान 2018 में मुख्यमंत्री बने थे.
फ़रज़ाना अली का कहना है कि इमरान ख़ान के क़रीबी सलाहकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री फ़व्वाद चौधरी ने भी कहा है कि तीन दिन के बाद वो लोग इस पर विचार विमर्श करेंगे. इससे साफ़ ज़ाहिर है कि पीटीआई बहुत जल्दी में नहीं है और वो लोग इसे टालना चाहते हैं.
सोहैल वडाएच भी फ़रज़ाना अली की इस बात से सहमत हैं.
सोहैल वडाएच के अनुसार अभी यह सिर्फ़ एक धमकी है और पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में बहुत सारे ऐसे विधायक हैं जो विधानसभा में बने रहना चाहते हैं.
सोहैल वडाएच का कहना है कि पंजाब के मुख्यमंत्री परवेज़ इलाही ख़ुद तो नहीं चाहेंगे लेकिन इमरान ख़ान के कहने पर वो विधानसभा को भंग करने की सिफ़ारिश कर देंगे क्योंकि उनका राजनीतिक भविष्य इमरान ख़ान पर निर्भर है.
परवेज़ इलाही के बेटे मूनिस इलाही ने ट्वीट कर कहा, "जिस दिन इमरान ख़ान ने कहा उसी वक़्त पंजाब विधानसभा भंग कर दी जाएगी."
इमरान ख़ान की घोषणा के बाद मीडिया में इस बात पर बहस छिड़ गई है कि क्या परवेज़ इलाही विधानसभा भंग करने की सिफ़ारिश करेंगे.
पंजाब और ख़ैबरपख़्तूनख़्वाह के अलावा पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान में भी पीटीआई की सरकार है.
इमरान ख़ान के फ़ैसले का असर इनपर भी पड़ सकता है.
शहबाज़ शरीफ़ सरकार का रोल क्या होगा
शहबाज़ शरीफ़ सरकार के कई मंत्री कहते आएं हैं कि अगर इमरान ख़ान चुनाव चाहते हैं तो पहले उनकी पार्टी की सरकार पंजाब और ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह से इस्तीफ़ा दे.
लेकिन इस पर इमरान ख़ान और पीटीआई अब तक ख़ामोश ही रहे हैं.
राजनीतिक विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि इमरान ख़ान की यह अप्रत्याशित घोषणा उनका आख़िरी पत्ता था जिसे उन्होंने फेंक दिया है.
पीटीआई के फ़व्वाद चौधरी ने ट्वीट किया है, "इमरान ख़ान का जनता पर पूरा विश्वास है. वो विधानसभा भंग करके चुनाव में जा रहे हैं. घोड़ा भी है और मैदान भी. चुनाव के अलावा कोई और तरीक़ा पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता नहीं ला सकता, वे आएं और चुनाव की ओर बढ़ें."
शहबाज़ शरीफ़ गठबंधन सरकार में शामिल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के नेता क़मर ज़मान कायरा का कहना है कि इमरान ख़ान अपने फ़ैसले से पलट जाएंगे.
कायरा ने कहा कि इमरान ख़ान अगर अपने फ़ैसले पर क़ायम रहे और उनके विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया तो उनके (पीपीपी) पास भी बहुत से विकल्प हैं.
केंद्रीय गृहमंत्री राना सनाउल्लाह ने एक निजी चैनल जियो न्यूज़ से बातचीत में कहा, "यह इमरान ख़ान का वक़्ती फ़ैसला है. वो इस फ़ैसले पर शायद अमल ना करें और हो सकता है कि वो संसद में भी वापस आ जाएं."
गृहमंत्री के अनुसार इमरान ख़ान के लिए अब सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने का समय ख़त्म हो चुका है.
राना सनाउल्लाह ने ट्वीट किया, "प्रांतीय विधानसभाओं में समय नष्ट किए बग़ैर अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा. विधानसभा भंग नहीं होंगी. पंजाब में सरकार बनाने के लिए विपक्ष के पास पूरे नंबर हैं."
गृहमंत्री ने कहा कि इमरान ख़ान ने अपनी हार स्वीकार कर ली है.
उनका कहना था, "सात महीने पहले बनाए गए प्रोग्राम को दबाव और ब्लैकमेलिंग को बुरी तरह से नाकामी का सामना करना पड़ा. इमरान ख़ान का कहना कि पिंडी में समंदर लाऊंगा, उसकी हालत सबके सामने है."
ईरान, 27 नवंबर । ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने बासिज मिलिशिया की तारीफ़ की है. ख़ामनेई ने कहा है कि हाल के दंगों में मिलिशिया के लड़ाकों ने जान गंवाई हैं.
ख़ामेनेई देश में हिजाब के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों के दौरान लोगों को काबू करने की कोशिश में मिलिशिया के लोगों की मौतों का हवाला दे रहे थे.
ईरानी रेवोल्यूशनरी गार्ड से संबंधित बासिज सेना पिछले कुछ हफ्तों के दौरान हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शनकारियों को क़ाबू करने में आगे रही है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ ख़ामेनेई ने टीवी पर दिए गए एक भाषण में कहा, "उन्होंने (बासिज) दंगाइयों से लोगों को बचाने के लिए बलिदान दिया है. बासिज की मौजूदगी दिखाती है कि इस्लामी क्रांति जिंदा है."
ईरान में सितंबर में हिजाब न पहनने पर पुलिस की सख्ती से 22 वर्षीय ईरानी-कुर्दिश महिला महसा अमीन की मौत के बाद देश के कई शहरों में प्रदर्शन शुरू हो गए थे.
ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शनImage caption: ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ प्रदर्शन
हिरासत में महसा अमीनी की मौत के ख़िलाफ़ प्रदर्शनकारी गुस्से में हैं. कई शहरों में ख़ामेनेई को सत्ता से हटाने की मांग को लेकर भी प्रदर्शन हो रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों ने इस्लामी गणराज्य की वैधता के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान खामेनेई के पुतले भी जलाए थे.
हालांकि ईरान सरकार का कहना है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देश उसके यहां लोगों को भड़का रहे हैं.
शनिवार को सोशल मीडिया में पोस्ट किए जा रहे वीडियो में प्रदर्शनकारी तेहरान स्थित कई विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन करते और नारे लगाते दिखाई दे रहे हैं.
एक और शहर इस्फाहन में भी प्रदर्शन हो रहे हैं. हालांकि रॉयटर्स इन वीडियो की पुष्टि नहीं कर सकी है.
न्यूज़ वेबसाइट सोबहमा और सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्ट के मुताबिक़ ईरान में आंखों के 140 डॉक्टरों ने एक बयान जारी कर कहा है कि सुरक्षाबलों की ओर प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल की गई बर्डशॉट और पेंटबॉल गोलियों से लोगों की एक या दोनों आंखें खत्म हो गई हैं (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान में वही हो गया जो पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान कतई नहीं चाहते थे. आसिम मुनीर पाकिस्तानी सेना के प्रमुख बन गए. इस नियुक्ति से पाकिस्तान में एक नए सियासी टकराव का रास्ता तैयार हो सकता है.
डॉयचे वैले पर अशोक कुमार की रिपोर्ट-
जब से इमरान खान के हाथ से प्रधानमंत्री पद गया है, वह खुद को स्थापित करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. यह बात सही है कि वह इस वक्त पाकिस्तान में सबसे लोकप्रिय नेता हैं. लेकिन अनुभव बताता है कि पाकिस्तान में सत्ता हासिल करने के लिए सिर्फ जनता के बीच लोकप्रियता काफी नहीं होती.
जब 2018 में इमरान खान प्रधानमंत्री बने थे, तो उनके विरोधियों ने उन्हें 'सेलेक्टेड प्रधानमंत्री' कहा था. आरोप लगे कि सेना उन्हें सत्ता में लेकर आई है और इसे मुमकिन बनाने के लिए चुनाव में धांधली हुई. लेकिन चार साल के भीतर समीकरण पलट गए. सेना के लिए इमरान खान के साथ निभाना मुश्किल हो गया.
छत्तीस का आंकड़ा
अब इमरान खान के विरोधी सत्ता में हैं और वह सड़कों पर हैं. और आसिम मुनीर के सेना प्रमुख बनने के बाद यह बात लगभग तय मानिए कि वह आने वाले कुछ सालों तक सड़कों पर ही रहेंगे. नए सिरे से चुनाव कराने की मांग पर अड़े इमरान खान के अब सत्ता में लौटने के आसार कम ही दिखते हैं.
मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके सहयोगी जानते हैं कि लोकप्रियता के मामले में वे अभी इमरान खान का मुकाबला नहीं कर सकते. ऐसे में, जनरल मुनीर उनके लिए तुरुप का पत्ता थे. इसीलिए उन्हें आधिकारिक तौर पर रिटायर होने से कुछ दिन पहले ही सेना प्रमुख बना दिया गया.
इमरान खान जनता के बीच अपनी भ्रष्टाचार मुक्त छवि का खूब प्रचार करते हैं. लेकिन नए सेना प्रमुख की नजर में उनकी छवि अलग हैं. असल में, दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा भी भ्रष्टाचार के मुद्दे के कारण ही है. जब आसिम मुनीर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चीफ थे, तो उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान को बताया था कि कैसे पंजाब प्रांत में उनकी पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है और कैसे इमरान खान के कुछ रिश्तेदार गलत तरीके से पैसा बना रहे हैं.
इमरान खान ने उनकी बात सुनने की बजाय उन्हें पद से हटाने का हुकम दे दिया. इसीलिए जब नए सेना प्रमुख पद के दावेदारों में मुनीर का नाम आया तो इमरान खान और उनकी पार्टी ने इसका सबसे ज्यादा विरोध किया. जाहिर है, बाजी उनके हाथ में नहीं थी.
सेना का सब्र
मौजूदा सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने अपने विदाई भाषण में साफ कर दिया कि सेना को इमरान खान पर भरोसा नहीं है. उन्होंने इमरान खान के इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि उन्हें अमेरिकी साजिश के तहत सत्ता से हटाया गया है. बाजवा ने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि देश में कोई विदेशी साजिश रची जा रही हो और पाकिस्तानी सेना हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे. उन्होंने सेना की छवि पर कीचड़ उछालने वालों को भी हाड़े हाथ लिया. उन्होंने कहा कि सेना के सब्र को ना परखें. यह इमरान खान और उनके समर्थकों को लिए साफ संदेश है जो नए सेना प्रमुख और पाकिस्तानी सेना को निशाना बना रहे हैं.
दरअसल इमरान खान ने जिस दक्षिणपंथ को अपनी राजनीति और लोकप्रियता की धुरी बना रखा है, वह शायद पाकिस्तानी सेना के रणनीतिक हितों और देश की कूटनीति के साथ फिट नहीं बैठती. इमरान खान अमेरिका और पश्चिम का विरोध करके अपनी रैलियों में भारी भीड़ और तालियां तो बटोर सकते हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है.
पाकिस्तानी सेना को आर्थिक ही नहीं, बल्कि तकनीकी और रणनीतिक तौर पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के सहयोग की बहुत जरूरत है. और इमरान खान की राजनीति इन हितों को चोट पहुंचाती है. पाकिस्तान जिन मुश्किल आर्थिक और कूटनीतिक हालात में फंसा है, वहां उसे दुनिया से टकराव की नहीं, बल्कि सहयोग की जरूरत है.
हाल के दिनों में इमरान खान ने भी अमेरिका को लेकर अपना रुख नरम किया है. लेकिन वह अपने विरोधियों से अलग दिखना चाहते हैं. इसलिए तेवर उनके गर्म ही रहेंगे. इमरान खान बहुत जल्दी में दिखते हैं. वह सब कुछ बदल देना चाहते हैं. 'नए पाकिस्तान' का नारा वह आजकल नहीं लगा रहे हैं, लेकिन नया करना चाहते हैं. बदलाव अकसर आसान नहीं होते.
जनरल बाजवा ने अपने विदाई संदेश में कहा कि सेना ने अब राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करने का फैसला किया है. लेकिन इस बात में किसी को शक नहीं है कि पूरी व्यवस्था पर सेना का नियंत्रण बना रहेगा. होगा वही, जो पाकिस्तानी सेना चाहेगी. और कम से कम अभी तो इमरान खान नए सेना प्रमुख की गुड बुक में नहीं हो सकते. जनरल मुनीर अगर प्रतिशोध ना भी लेना चाहें, तो भी दोनों के बीच कम से कम सहजता तो नहीं होगी. कड़वे अनुभव किसी ना किसी रूप में आड़े आते ही हैं.
'देश के रक्षक'
इमरान खान निश्चित रूप से आने वाले चुनाव में पूरा जोर लगाएंगे. सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक उनके समर्थकों की कमी नहीं है. जो लोग देश के पुराने ढर्रे में बदलाव चाहते हैं, उनमें से बहुत सारे इमरान खान की पार्टी के झंडे तले खड़े हैं. वे मौजूदा गठबंधन सरकार में शामिल दोनों बड़ी पार्टियों पीएमएल (एन) और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) को बेईमान समझते हैं. उन्हें इमरान खान में उम्मीद नजर आती है. यही उम्मीद इमरान खान की सियासी पूंजी है. लेकिन उनके लिए सत्ता का रास्ता लगातार तंग होता जा रहा है. बतौर सेना प्रमुख आसिम मुनीर की नियुक्ति इसका एक और संकेत हो सकता है.
पाकिस्तान के लिए आने वाले महीने इम्तिहान से कम नहीं होंगे. इम्तिहान इमरान खान का भी है, और नए सेना प्रमुख आसिम मुनीर का भी. इमरान खान के लिए आखिरी उम्मीद देश की जनता है. और इसी जनता का समर्थन पाकिस्तानी सेना को भी चाहिए, अपनी साख और अपने दबदबे को बनाए रखने के लिए, हमेशा की तरह.
इमरान खान को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश एक बड़े तबके में असंतोष को जन्म दे सकती है. इससे नए टकराव का रास्ता खुल सकता है. लेकिन सेना स्थिति को कभी हाथ से नहीं निकलने देगी. हालात जो भी हों, पाकिस्तानी सेना 'देश के रक्षक' की अपनी भूमिका में हमेशा तैयार रहेगी. यही तो पाकिस्तानी व्यवस्था में दबदबा बनाए रखने का उसका मंत्र है. (dw.com)
सोशल मीडिया पर चीन में कोविड लॉकडाउन के कड़े नियमों के ख़िलाफ़ आम लोगों के विरोध प्रदर्शन के वीडियो सामने आ रहे हैं.
ये प्रदर्शन तब हो रहे हैं जब गुरूवार को एक अपार्टमेंट ब्लॉक में आग लगने से 10 लोगों की मौत हो गई. लोगों का आरोप है कि कोविड के कारण लगाए गए कड़े नियमों के कारण लोग आग से जान नहीं बचा सके.
चीन के उरूमची में लोग सुरक्षाबलों से भिड़ते नज़र आए. ये लोग नारेबाज़ी कर रहे थे- ‘कोविड लॉकडाउन ख़त्म करो.’
चीन में लागू कड़े ज़ीरो-कोविड पॉलिसी के बावजूद वहां कोरोना का संक्रमण एक बार फिर तेज़ी से फैल रहा है.
उरूमची प्रशसान ने कहा है कि वह अब पाबंदियों को धीरे-धीरे कम करेंगे. हालांकि प्रशासन ने लोगों के इस आरोप से इनकार किया है कि लॉकडउन के नियमों के कारण लोग आग से बचकर भाग नहीं पाए.
अगस्त की शुरुआत से पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र की राजधानी उरूमची में कोविड के कारण कड़ी पाबंदियां लगाई गई हैं.
गुरुवार को हुई दुर्घटना के बाद इमारत में रहने वाले एक निवासी ने बीबीसी से कहा था कि जिस कम्पाउंड में आग लगी थी लेकिन उसमें रहने वाले लोगों को लॉकडाउन के कड़े नियमों के कारण अपने घरों से निकलने से रोका गया.
इस दावे को चीन के सरकारी मीडिया ने खारिज किया है.
हालांकि, उरूमची के अधिकारियों ने शुक्रवार देर रात एक माफ़ीनामा जारी किया और कहा कि, “जिसने भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन ठीक से नहीं किया उसे को भी दंडित किया जाएगा.” (bbc.com/hindi)
रावलपिंडी, 27 नवंबर। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने शनिवार को आरोप लगाया कि इस महीने की शुरुआत में उनकी हत्या के नाकाम प्रयास में शामिल ‘‘तीन अपराधी’’ उन्हें फिर से निशाना बनाने की ताक में हैं।
रावलपिंडी में अपनी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ की एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए खान ने कहा कि उनका मौत के साथ करीबी सामना हुआ था और उन्होंने अपने ऊपर हमले के दौरान गोलियों को सिर के ऊपर से गुजरते हुए देखा था।
रावलपिंडी में ही सेना का भी मुख्यालय है। हमले की घटना के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने पहले संबोधन में खान ने आरोप लगाया कि ‘‘तीन अपराधी’’ फिर से उन पर हमला करने की ताक में हैं।
खान (70) ने बार-बार आरोप लगाया है कि उन पर हमले के पीछे प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, गृह मंत्री राणा सनाउल्लाह और खुफिया एजेंसी आईएसआई के ‘काउंटर इंटेलिजेंस विंग’ के प्रमुख मेजर-जनरल फैसल नसीर थे।
खान ने अपने समर्थकों से आह्वान किया कि अगर वे आजादी से जीना चाहते हैं तो मौत के डर से बेखौफ हो जाएं। उन्होंने कर्बला की लड़ाई का जिक्र करते हुए कहा ‘‘डर पूरे देश को गुलाम बना देता है।’’ कर्बला में पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई थी क्योंकि उन्होंने अपने समय के अत्याचारी शासक के खिलाफ आवाज उठाई थी।
खान, शनिवार को रावलपिंडी में एक हेलीकॉप्टर से पहुंचे। उनके साथ डॉक्टरों की एक टीम भी थी। पूर्व प्रधानमंत्री खान ने कहा कि जब वह लाहौर से निकल रहे थे तो सभी ने उन्हें सलाह दी कि वह अभी घायल हैं इसलिए ना जाएं क्योंकि इससे खतरा हो सकता है।
खान ने कहा कि वह इसलिए आगे बढ़े क्योंकि उन्होंने मौत को करीब से देखा था। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप जीना चाहते हैं, तो मौत का खौफ छोड़ दें।’’ खान ने कहा कि राष्ट्र एक ‘‘निर्णायक बिंदु’’ और ‘‘चौराहे’’ पर खड़ा है, जिसके सामने दो रास्ते हैं- एक रास्ता दुआओं और महानता का है जबकि दूसरा रास्ता अपमान और विनाश का है। वह देश में जल्द आम चुनाव की मांग करते हुए ‘लॉन्ग मार्च’ का नेतृत्व कर रहे हैं। (भाषा)
ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने स्थानीय चुनावों में अपनी पार्टी डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी (डीपीपी) के ख़राब प्रदर्शन के बाद शनिवार को इसके अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दे दिया है.
इन चुनावों में विपक्षी पार्टी कुओमिन्तांग (केएमटी) ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है और राजधानी ताइपेई सहित कई मुख्य शहरों में जीत हासिल की है.
ताइवान में हो रहे इन चुनावों पर दुनियाभर की नज़र थी. ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका हालिया वक्त में आमने-सामने रहे हैं और ये द्वीप वैश्विक राजनीति में चर्चा का केंद्र रहा है.
चीन और ताइवान के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनज़र राष्ट्रपति साई इंग वेन ने इस चुनाव में ‘लोकतंत्र के लिए वोट’ का नारा दिया था.
शनिवार को नतीजे आने के बाद साई ने मीडिया से बात करते हुए कहा,“चुनावी परिणाम वैसे नहीं हैं जिसकी हमें उम्मीद थी. इस नतीजे की ज़िम्मेदारी मैं लेती हूं और तत्काल प्रभाव से डीपीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देती हूं.”
स्थानीय परिषदों और शहर के मेयर के चुनावों का केंद्र घरेलू मुद्दे थे, जिसमें अपराध, आवास और सामाजिक कल्याण जैसे मुद्दे को केंद्र में रखा गया था. इन चुनावों का सीधा संबंध किसी भी तरह से चीन या विदेशी नीतियों से नहीं था, लेकिन डीपीपी ने ने लोगों से वोटों की अपील करते हुए कहा था कि वो देश के लोकतंत्र के बारे में सोच कर वोट करें.
मैक्सिको की खाड़ी से गुज़र रहे एक क्रूज़ से लापता हुए एक व्यक्ति को 15 घंटे बाद कोस्टगार्ड्स ने समुद्र से जीवित बचा लिया है.
28 वर्षीय ये व्यक्ति बुधवार को कार्निवल वेलोर नामक जहाज़ के बार में आखिरी बार अपनी बहन के साथ देखे गए थे. इसके बाद वो टॉयलेट गए और फिर लौट कर वापस नहीं आए.
फिर बचाव दल के सदस्यों ने उन्हें ढूंढना शुरू किया और काफ़ी मशक्कत के बाद क़रीब 15 घंटे बाद वे गुरुवार की शाम लुइसियाना के समुद्र तट से क़रीब 30 किलोमीटर दूर मिले.
कोस्टगार्ड ने कहा कि मैक्सिको की खाड़ी में एक क्रूज़ शिप से लापता हुए व्यक्ति को 15 घंटे बाद समुद्र से बचाया गया है.
बचाए गए व्यक्ति की तबीयत स्थिर बताई गई है.
अमेरिकी कोस्ट गार्ड के लेफ़्टिनेंट सेथ ग्रॉस ने कहा कि व्यक्ति 15 घंटे से अधिक समय तक पानी में रहा हो सकता है, "मैंने इतने लंबे वक़्त तक किसी के पानी में रहने के बारे में नहीं सुना और ये धन्यवाद देने वाले चमत्कार के जैसा है."
सीएनएन से वे बोले कि अपने 17 साल के करियर के दौरान उन्होंने ऐसा मामला नहीं देखा है.
मैक्सिकों के कॉटमेल जा रहे इस जहाज से ये व्यक्ति पानी में कैसे गिरे अब तक ये स्पष्ट नहीं है.
2018 में 46 वर्षीय एक ब्रिटिश महिला को एड्रियाटिक सागर से गुज़र रहे एक क्रूज़ शिप से गिरने के 10 घंटे बाद बचाया गया था.
तब उन्होंने एक बचावकर्मी को बताया था कि उनको लगातार योग करते रहने का लाभ मिला और रात के वक़्त पानी में ठंड से बचने के लिए वो गाती रहीं. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के चेयरमैन इमरान ख़ान जलसे में शामिल होने के लिए रावलपिंडी पहुंच गए हैं.
पंजाब सरकार ने जलसे और ख़ास कर इमरान ख़ान की सुरक्षा के लिए सख़्त इंतज़ाम किए हैं.
बीबीसी संवाददाता शहज़ाद मलिक के अनुसार पंजाब के 10 हज़ार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है.
जलसे की जगह और स्टेज के आस-पास की ऊंची इमारतों पर तीन सौ स्नाइपरों को तैनात किया गया है.
प्रशासन ने जलसे की जगह पर जैमर भी लगा दिए हैं और राजधानी इस्लामाबाद को मिलाने वाली तमाम छोटी-बड़ी सड़कों को ट्रैफ़िक के लिए बंद कर दिया गया है.
पूरे पाकिस्तान से पीटीआई के समर्थक जलसे में शामिल होने के लिए रावलपिंडी पहुंच रहे हैं.
इमरान ख़ान ने इस लॉन्ग मार्च को हक़ीक़ी आज़ादी मार्च का नाम दिया है. उनके अनुसार वो पाकिस्तान को सचमुच में आज़ादी दिलाना चाहते हैं और इसी के लिए उन्होंने इस मार्च का आह्वान किया है.
तीन नवंबर को मार्च के दौरान उनके कंटेनर के पास गोली चली थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और इमरान ख़ान के पैरों में गोली लगी थी.
हमले के बाद मार्च को रोक दिया गया था.
लेकिन अस्पताल से डिस्चार्ज होने और पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद इमरान ख़ान ने एक बार फिर मार्च का आह्वान किया है.
शुक्रवार को केंद्रीय गृहमंत्री राना सनाउल्लाह ने कहा था कि इमरान ख़ान की जान को ख़तरा है. उन्होंने इमरान ख़ान से अनुरोध किया था कि वो जलसे को रद्द कर दें.
लेकिन इमरान ख़ान ने उनकी बात को मानने से इनकार कर दिया था.
रावलपिंडी प्रशासन ने उन्हें कई शर्तों के साथ जलसे की इजाज़त दे दी है.
इमरान ख़ान की सबसे अहम मांग है कि जल्द से जल्द चुनाव करवाएं जाएं लेकिन शहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व वाली सरकार जल्द चुनाव करवाने के लिए तैयार नहीं है. (bbc.com/hindi)
सिडनी के बॉन्डी बीच पर क़रीब ढाई हज़ार लोगों ने एक आर्टवर्क के लिए न्यूड पोज़ किया है.
ये आर्टवर्कत्वचा कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए किया गया है.
अमेरिकी फोटोग्राफ़र स्पेंसर ट्यूनिक बीच पर न्यूड लोगों की तस्वीरों के ज़रिए त्वचा कैंसर के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं.
इसका मक़सद ऑस्ट्रेलिया के लोगों को नियमित त्वचा टेस्ट कराने के लिए प्रेरित करना है.
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड के मुताबिक स्किन कैंसर के मामले में ऑस्ट्रेलिया दुनिया में सर्वाधिक प्रभावित देश है.
स्थानीय समयानुसार 3.30 बजे, स्वयंसेवक बीच पर इकट्ठा हुए और न्यूड पोज़ दिया.
इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले 77 वर्षीय ब्रूस फ़िशर ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा, “मुझे लगता है कि ये अच्छा विचार है.मुझे बॉन्डी बीच पर कपड़े उतारना वैसे भी पसंद है.”
फ़ोटोग्राफ़र ट्यूनिक दुनियाभर के प्रसिद्ध स्थानों पर न्यूड कलात्मक तस्वीरें लेने के लिए प्रसिद्ध हैं. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान में आईएसआई के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मुनीर को देश का नया सेना प्रमुख बनाया गया है. मुनीर को सेना प्रमुख बनाने के पीछे आखिर क्या रणनीति है?
पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना के प्रमुख के पद पर आसिम मुनीर की नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब सेना और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच तकरार चल रही है. खान ने सेना पर आरोप लगाया है कि कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री पद के उनके हाथ से चले जाने में सेना की भी भूमिका है.
खान तब से सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे हैं. उनका मुनीर के साथ भी एक खास रिश्ता है. आखिर कौन हैं आसिफ मुनीर और क्यों बनाया गया है उन्हें सेना प्रमुख?
सामरिक तैनाती का तजुर्बा
सेना के पूर्व अधिकारियों का कहना है कि मुनीर एक स्कूल शिक्षक के बेटे हैं और वो रावलपिंडी में बड़े हुए. एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उन्हें सेना की अकादमी में 'सोर्ड ऑफ ऑनर' अवाॉर्ड मिला था.
मुनीर की ऐसे इलाकों में भी तैनाती रही है जो चीन की सीमा के करीब हैं और जिन पर पाकिस्तान का भारत के साथ विवाद है. वो सऊदी अरब में भी काम कर चुके हैं, जो पाकिस्तान का एक प्रमुख वित्तीय समर्थक है.
बाद में उन्होंने पाकिस्तान की दो सबसे प्रभावशाली गुप्तचर एजेंसियों के मुखिया के रूप में काम किया. 2017 में वो मिलिटरी इंटेलिजेंस के प्रमुख रहे और फिर 2018 में वो आईएसआई के प्रमुख बने.
इस पद पर उन्हें बस आठ महीने ही हुए थे जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान के अनुरोध पर उन्हें हटा दिया गया. उन्हें हटाये जाने का कोई कारण भी नहीं दिया गया था. इस समय वो आर्मी के क्वार्टरमास्टर जनरल के पद पर सेवा दे रहे हैं और सेना की आपूर्ति के इनचार्ज हैं.
"स्पष्ट सोच" वाला जनरल
मुनीर बतौर सेना प्रमुख अपना कार्यकाल खत्म करने वाले जनरल कमर जावेद बाजवा के बाद सबसे वरिष्ठ रैंक वाले जनरल भी हैं. मुनीर का 3 साल का कार्यकाल 29 नवंबर को शुरू होगा. मुनीर के साथ काम कर चुके एक पूर्व जनरल ने उन्हें "स्पष्ट सोच" वाला बताया.
बाजवा ने सेना को राजनीति से अलग करने की शपथ ली थी और मुनीर के सामने इसे आगे बढ़ाने की चुनौती होगी. उनके अपने राजनीतिक संबंधों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन विश्लेषकों को सेना के एक गैरराजनीतिक संस्थान बनने पर संदेह है.
खान समेत कई सिविलयन नेता सेना पर उन्हें सत्ता से हटाने का आरोप लगा चुके हैं. सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ भी सेना पर यह इल्जाम लगा चुके हैं. खान को सत्ता से निकालने में सेना ने किसी भी भूमिका से इंकार किया है, लेकिन विश्लेषकों को लगता है कि खान को सत्ता से बाहर रखने की सेना की कोशिशें मुनीर जारी रखेंगे.
खत्म हो रहा है सेना का संयम?
विश्लेषक जाहिद हुसैन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "राजनीतिक प्रक्रिया बहुत कमजोर है और लोकतांत्रिक संस्थाएं लगभग ढह जाने के कगार पर हैं. ऐसी स्थिति में, सेना अपनेआप शक्ति की मध्यस्थ बन जाती है."
आने वाले दिनों में सेना का रुख आक्रामक होने के संकेत खुद बाजवा ने दिये हैं. बुधवार 23 नवंबर को उन्होंने फेयरवेल भाषण में कहा कि सेना और लोगों के बीच दरार पैदा करने वाले सफल नहीं होंगे. उन्होंने यह भी कहा, "सेना अभी तक संयम से पेश आ रही है लेकिन सबको यह मालूम होना चाहिए कि इस संयम की एक सीमा है."
सीके/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)
व्यापक लॉकडाउन के बावजूद चीन के शहरों में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. वहां के निराश नागरिक प्रतिबंधों के विरोध के लिए अब बड़े जोखिम भी उठा रहे हैं.
डॉयचे वैले पर विलियम यैंग की रिपोर्ट-
चीन के लोग पिछले करीब तीन साल से लगातार जारी लॉकडाउन यानी तालाबंदी और आर्थिक दिक्कतों से निराशा की हद तक परेशान हैं लेकिन चीन की जीरो-कोविड रणनीति का कोई अंत नहीं दिख रहा है.
वायरस को खत्म करने की अधिकारियों की तमाम कोशिशों के बावजूद हाल के हफ्तों में कोविड के नए मामलों में फिर उछाल दिखने लगा है. पिछले 24 घंटों में हर दिन कोविड के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई है.
गुरुवार को देश भर में कोविड के 31 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं जो कि इस महामारी के शुरू होनेसे लेकर अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. कई शहरों में लाखों लोग अपने घरों में कैद हैं.
व्यावसायिक लोगों को आदेश दिया गया है कि अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करने को कहें जबकि पार्क और संग्रहालय बंद कर दिए गए हैं.
बीजिंग में अधिकारियों का कहना है कि राजधानी के लोग इस समय कोविड के सबसे खतरनाक दौर का सामना कर रहे हैं. अधिकारियों के मुताबिक, अन्य देशों से चीन में आने वाले लोगों के लिए अपने घरों में रहने और तीन दिन तक कोविड टेस्ट अनिवार्य करने संबंधी नए नियम बनाए जाने की जरूरत है.
सोशल मीडिया से प्राप्त वीडियो और कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से पता चलता है कि बुधवार को दुनिया की सबसे बड़ी आईफोन बनाने वाली फैक्ट्री में कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शनों को हिंसक तरीके से दबा दिया गया. ये लोग कड़े नियमों के चलते मुश्किल होते जा रहे कामकाजी हालात के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे.
चीन में विरोध प्रदर्शन करना खतरनाक है
चीन के दक्षिणी इलाके में स्थित ग्वांगझू शहर में करीब दो करोड़ लोग रहते हैं. यह शहर इस वक्त कोरोनावायरस के प्रकोपसे सबसे ज्यादा प्रभावित है. छिटपुट विरोध प्रदर्शनों के बाद यहां लाखों लोग को घरों में कैद कर दिया गया है.
सोशल मीडिया में पोस्ट किए गए वीडियोज को देखकर लगता है कि यहां रहने वाले लोग कितने परेशान और निराश हैं. इन वीडियोज में हाइझू जिले की सड़कों पर लोगों को दौड़ते हुए, बैरियर्स को पार करते हुए और वर्दी पहने हुए स्वास्थ्यकर्मियों से उलझते-लड़ते हुए देखा जा सकता है.
ग्वांगझू शहर के एक निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया कि हालांकि पूरे शहर में लॉकडाउन नहीं लगाया गया है लेकिन टेस्टिंग के लिए लाइनों में लगने और सार्वजनिक जगहों पर जाने के लिए लागू तमाम पाबंदियों से लोग परेशान हो चुके हैं.
उनका कहना था, "कई बार टेस्ट की रिपोर्ट समय पर नहीं आती है और ऐसे में आप कुछ घंटों के लिए ग्रीन हेल्थ कोड से बाहर आ जाते हैं. निश्चित तौर पर इन सबसे लोग परेशान हैं.”
चीन के लोग यदि सार्वजनिक रूप से बाहर निकलकर प्रदर्शन कर रहे हैं, तो स्थिति की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है.
ह्यूमन राइट्स वॉच में चीन की वरिष्ठ शोधकर्ता याक्यू वांग ने डीडब्ल्यू को बताया कि ग्वांगझू में स्थानीय अधिकारियों और नागरिकों के बीच हुई झड़प, प्रतिरोध का एक ‘अंतिम उपाय' था.
वो कहती हैं, "चीन में प्रतिरोध की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है और ग्वांगझू में, तमाम निराश नागरिक प्रवासी श्रमिक हैं जिनका लॉकडाउन के चलते रहना दूभर हो गया है. मेरा मानना है कि चीन के लोग अंतिम विकल्प के रूप में ही प्रतिरोध का झंडा बुलंद करते हैं. वो जानते हैं कि प्रतिरोध करना उनके लिए कितना महंगा साबित हो सकता है.”
कोविड के मामले में चीन के पास कोई दूरगामी नीति नहीं है
इस महीने की शुरुआत में चीनी अधिकारियों ने महामारी नियंत्रण उपायों में थोड़ी ढील दे दी थी जिनमें बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए क्वारंटीन की अवधि को कम करना और कई शहरों में सामूहिक रूप से कोविड परीक्षण बंद करना शामिल थे. इस ढील के बावजूद कई शहरों में लॉकडाउन जारी था.
येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में हेल्थ पॉलिसी के प्रोफेसर शी चेन कहते हैं कि कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए अधिकारियों के लिए एक देशव्यापी समन्वय नीति बनाने में काफी परेशानी होगी.
वो कहते हैं, "कोविड की यह लहर जल्दी ही संक्रमण के उस स्तर को पार कर जाएगी जो इस साल की शुरुआत में शंघाई में लॉकडाउन के समय था. हालांकि तीन साल से चल रहे सामूहिक परीक्षण, क्वारंटीन और धीमी अर्थव्यवस्था के बाद स्थानीय स्तर पर वित्तीय स्थिति को काफी खराब कर दिया है जिसके चलते कोई समन्वित रणनीति बनाना और मुश्किल हो गया है.”
वो आगे कहते हैं, "आने वाले हफ्तों में, इस संकट से निबटने के लिए चीन कुछ कड़े कदम उठा सकता है.”
चेन कहते हैं कि चीनी अधिकारियों के पास कोरोनावायरस की समस्या से निबटने के लिए अभी भी कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं है और वायरस से लड़ने के लिए शुरुआती कोशिशों की सफलता के बावजूद इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
उनके मुताबिक, "कोविड नियंत्रण के अल्पकालिक उपायों पर दीर्घकालिक निर्भरता से इस खतरे से बाहर निकलने की रणनीति के फेल होने का खतरा है. पूरा ध्यान अभी इस बात पर है कि पीसीआर टेस्टिंग और क्वारंटीन जैसे उपायों से कैसे वायरस के संक्रमण को बढ़ने से रोका जाए.”
जबकि दीर्घकालिक उपायों के लिए ज्यादा प्रभावी वैक्सीन और एंटीवायरल ड्रग्स के निर्माण के साथ स्वास्थ्य तंत्र की तैयारी और जनता के साथ बेहतर तालमेल बनाना जरूरी है. चेन का कहना है कि लगातार देश भर में "कठोर कोविड नियंत्रण उपायों” को जारी रखने से समाज में बिखराव का भी खतरा है.
लॉकडाउन का मानवीय प्रभाव
दैनिक जीवन में व्यवधान के अलावा, इन लॉकडाउन्स का एक और खतरनाक असर चिकित्सा देखभाल पर भी पड़ा है.
पिछले हफ्ते जेंग्झू शहर में चार महीने के एक बच्चे की मौत ने सोशल मीडिया में हंगामा मचा दिया था. इस बच्ची को क्वारंटीन के दौरान सही इलाज नहीं मिल सका था जिसके चलते उसकी मौत हो गई.
हाल ही में ऐसी ही एक और घटना हुई जब लांझू शहर में तीन साल के एक बच्चे की मौत कार्बन मोनो ऑक्साइड से हो गई क्योंकि सरकारी प्रतिबंधों की वजह से उसे समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जा सका.
स्थानीय सरकार की रिपोर्ट्स के मुताबिक, बच्चे के पिता ने हॉटलाइन पर चार बार फोन करने की कोशिश की और जब आखिरकार उसकी बात हुई तो उसने जवाब दिया कि चूंकि परिवार ‘हाई रिस्क जोन' में रहता है इसलिए उन्हें सिर्फ ऑनलाइन चिकित्सा सहायता या परामर्श मिल सकता है.
ह्यूमन राइट्स वॉच से जुड़ी वांग कहती हैं, "कुछ लोगों की मौत तो इसी वजह से हो गई क्योंकि उनके पास इलाज की कोई व्यवस्था नहीं थी जबकि अन्य लोगों की मौत खाद्य सामग्री के अभाव में या अन्य जरूरी चीजों के अभाव में हो गई.”
वो कहती हैं कि मानवाधिकारों पर महामारी का दूरगामी प्रभाव पड़ा है. उनके मुताबिक, "हालांकि चीन के लोगों पर महामारी को रोकने के लिए सरकारी कोशिशों का दीर्घगामी प्रभाव पड़ेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अव्यवस्था के खिलाफ प्रतिरोध भी जारी रहेगा.
चीन की सरकार ने लोगों के इकट्ठे होने, संगठन बनाने जैसे तमाम सामाजिक आधारों को इस कदर खत्म कर दिया है कि उनके पास प्रतिरोध का कोई रास्ता ही नहीं बचा है. यहां तक कि सरकार के खिलाफ यदि बड़े पैमाने पर भी नाराजगी होती है, तो भी ये लोग विरोध के लिए एक साथ नहीं आ पाएंगे.” (dw.com)
जर्मनी ने एटमी ऊर्जा पर कभी हां कभी ना करते हुए 25 साल लगा दिए. यूक्रेन में युद्ध से पैदा हुए ऊर्जा संकट ने उसे फिर से इस पर सोचने को विवश कर दिया है.
डॉयचे वैले पर क्रिस्टी प्लेडसन और नाइल किंग की रिपोर्ट-
मीलों दूर से भाप की लकीर आसमान में लहराती देखी जा सकती है. लेकिन रिएक्टर को खोज पाना उतना आसान नहीं. पेड़ों के सघन डेरे और एक रसायन फैक्ट्री के बीच एम्सलांड न्यूक्लियर पावर स्टेशन मौजूद है. लोअर सेक्सोनी राज्य के एक छोटे से शहर लिंगेन से 10 किलोमीटर दूर दक्षिण में यहां चुपचाप एटमी ऊर्जा उत्पादन किया जा रहा है.
इलाके में पली बढ़ी 44 साल की क्रिस्टीन ने लिंगेन की लाल ईंट की सड़क पर डीडब्लू से बात करते हुए कहा, "ईमानदारी से कहूं तो आप इसके बारे में भूल जाते हैं. और आपको यकीन है और उम्मीद है कि सब कुछ अच्छा होगा."
एम्सलांड रिएक्टर जर्मनी के आखिरी तीन एटमी पावर स्टेशनों में से एक है. इस साल नये साल की पूर्व संध्या पर ये तीनों बंद किए जाने थे और इस तरह जर्मनी में एटमी ऊर्जा उत्पादन पूरी तरह से बंद हो जाता. लेकिन यूक्रेन पर रूस नेलड़ाई छेड़ दी.
क्रिस्टीन कहती हैं, "वाकई मैं खुद को एटमी ऊर्जा के खिलाफ पाती हूं. लेकिन मुझे ये स्वीकार करना पड़ेगा कि हालात अभी थोड़ा अलग हो गए हैं."
प्रमुख नीतिगत बदलाव
हाल तक, रूस जर्मनी का एक प्रमुख ऊर्जा सहयोगी रहा था. जर्मनी का अधिकांश तेल और प्राकृतिक गैस आयात रूस से ही होता था. लेकिन यूक्रेन में लड़ाई के तनावों के बीच ये साझेदारी भंग हो गई. जिसकी वजह से जर्मनी वैकल्पिक सप्लाई के लिए परेशान हो उठा क्योंकि यूरोप में सर्दियों की आमद होने लगी थी और ऊर्जा कीमते बुलंदी पर थीं.
अब जर्मनी अपनी एटमी ऊर्जा को फेजआउट करने की रणनीति पर पुनर्विचार कर रहा है. देश के तीनों एटमी रिएक्टर देश का करीब 6 फीसदी बिजली उत्पादन करते हैं. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. 1990 के दशक में, 19 एटमी ऊर्जा संयंत्र जर्मनी की एक तिहाई ऊर्जा का उत्पादन कर रहे थे.
फिर 1998 में, सोशल डेमोक्रेट्स और ग्रीन्स पार्टी वाली मध्य-वाम सरकार ने एटमी ऊर्जा से दूरी बनाने का फैसला किया. ग्रीन्स पार्टी की ये लंबे समय से मांग थी. 1980 के दशक में इसी मुद्दे पर पार्टी का रसूख बनने लगा था.
उसके नेता शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में एटमी हथियारों और एटमी ऊर्जा के खतरों के खिलाफ आंदोलन करने लगे थे. जर्मनी में नये एटमी संयंत्र का निर्माण2002 में खत्म हो गया.
'दिलचस्प' प्रौद्योगिकी
लेकिन एटमी ऊर्जा का जर्मनी के साथ नाटकीय रिश्ता पूरा होने का नाम ही नहीं लेता था. 2010 में कंजरवेटिव क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स और लिबरल फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में आई और एटमी ऊर्जा का इस्तेमाल 14 साल तक
बढ़ा दिया गया. लेकिन एक साल बाद ही, जापान के फुकुशिमा एटमी ऊर्जा संयंत्र में परमाणु विस्फोटों ने जर्मनी को अपनी नीति पर फिर से गौर करने पर मजबूर कर दिया. 2022 के आखिर तक एटमी ऊर्जा को हटाने की योजना पर जर्मन सरकार लौट आई.
अक्टूबर में जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्स ने देश के तीनों एटमी ऊर्जा स्टेशनों को 2023 में मध्य अप्रैल तक जारी रखने का आदेश दिया. उनकी योजनाबद्ध विदाई से तीन महीने से भी कम समय पहले ये आदेश आया था.
एटमी उद्योग से अपने रिटायरमेंट के समय डीडब्लू से बात करते हुए लिंगेन के स्थानीय निवासी और बिजलीकर्मी फ्रांत्स-योसेफ थीरिंग इस बात पर हैरान नहीं है कि जर्मनी एटमी ऊर्जा को छोड़ने को लेकर दुविधा में पड़ा है.
अपने घर पर कॉफी पीते हुए वो यूरेनियम के टुकड़े का मॉडल दिखाते हैं, जो उन्हें यूरेनियम ईंधन की छड़ बनाने वाली कंपनी ने उपहार में दिया था जिसमें वो काम करते थे. एक साफ प्लास्टिक में बंद, सबसे छोटी अंगुली के नाखून के आकार का एक पतला सा टुकड़ा था वो.
थीरिंग कहते हैं कि इस जैसे दो टुकड़े एक साल तक जर्मनी में एक औसत गृहस्थी को बिजली मुहैया करा सकते हैं. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "ये मुझे बड़ा दिलचस्प लगता है. ये भौतिकी है."
ऊर्जा की बढ़ती जरूरतें
थीरिंग की दलील है कि हरित ऊर्जा की ओर जाने की कोशिश में लगे जर्मनी में एटमी ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली की अहमियत को कमतर समझना मूर्खता होगी.
इलेक्ट्रिक कारों और हीट पंपों का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि "हमें भविष्य में और ज्यादा बिजली की जरूरत होगी. ये तथ्य है. और 6 फीसदी गंवाना भारी पड़ेगा जबकि उसकी जगह या उसके बदले कुछ भी नया नहीं है. हम 6 फीसदी गंवा रहे होंगे जबकि हमें वास्तव में ज्यादा की जरूरत है."
कई जर्मन इससे सहमत हैं. जर्मन प्रसारण कंपनी एआरडी के मुताबिक फुकुशिमा तबाही के बाद एटमी फेजआउट के पक्ष में जनता का बहुमत था. लेकिन इस साल अगस्त में 80 फीसदी लोग जर्मनी के मौजूदा एटमी रिएक्टरों की उम्र को बढ़ाने के पक्ष में थे.
तबाही का डर
एटमी तबाही का डर और रेडियो एक्टिव एटमी कचरे के निस्तारण का अनसुलझा सवाल फिर भी कई लोगों को ये मानने को मजबूर करता है कि एटमी रिएक्टरों को चलाए रखने का कदम गलत है. बर्लिन मे हर्टी स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एनर्जी इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर क्लाउडिया केमफेर्ट, एटमी ऊर्जा पर बहुत ज्यादा निर्भर, पड़ोसी देश फ्रांस का हवाला देती हैं.
उन्होंने डीडब्लू से कहा, "फ्रांस में आधे नये एटमी ऊर्जा प्लांट ऑफलाइन हैं क्योंकि उनमें सुरक्षा समस्याएं हैं. जर्मनी में हमारी भी वही समस्याएं हैं. सुरक्षा निरीक्षण हुए 15 साल से ज्यादा हो चुके हैं. और इस समय निरीक्षणों की तत्काल जरूरत है जिससे हमें पता चल सके कि फ्रांस जैसी समस्या यहां है या नहीं."
वो इस बात को भी रेखांकित करती है कि एटमी ऊर्जा प्राकृतिक गैस का एक कमजोर विकल्प है. जिसका इस्तेमाल बिजली पैदा करने के अलावा हीटिंग के लिए भी किया जा सकता है.
छोटा कार्बन फुटप्रिंट
फिर भी कई लोग एटमी ऊर्जा को कोयला जलाने से बेहतर विकल्प के रूप में देख रहे हैं. लेकिन इस ऊर्जा संकट के बीच जर्मनी कोयला ईंधन की ओर भी देख रहा है.
नीदरलैंड्स स्थित एटमी ऊर्जा विरोधी समूह वाइज के मुताबिक, एटमी संयंत्रो से 117 ग्राम सीओटू प्रति किलोवॉट घंटा निकलती है जबकि कोयले की एक किस्म लिग्नाइट को जलाने से प्रति किलोवॉट घंटा एक किलोग्राम सीओटू उत्सर्जन होता है.
बदलती परिस्थितियों के बावजूद, थीरिंग को नहीं लगता कि ये अस्थायी विस्तार, जर्मनी में मुकम्मल स्तर के एटमी पुनर्जागरण मे तब्दील हो पाएगा. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि ये सिर्फ थोड़े से वक़्त की बात है. एक पुल की तरह." (dw.com)