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मौतें-20, एक्टिव-1084, डिस्चार्ज-3275
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 15 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज 44 सौ के आसपास पहुंच गए हैं। बीती रात रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा समेत प्रदेश के 17 जिलों में मिले 105 नए पॉजिटिव के साथ इनकी संख्या बढक़र 43 सौ 79 हो गई है। इसमें 20 की मौत हो चुकी है। एक हजार 84 एक्टिव हैं और इन सभी का एम्स व अन्य कोरोना अस्पतालों में इलाज जारी है। 32 सौ 75 मरीज ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं।
रायपुर समेत प्रदेश में कोरोना मरीजों के आंकड़े हर रोज बढ़ते जा रहे हैं। जारी बुलेटिन के मुताबिक बीती रात बिलासपुर, सुकमा व नारायणपुर से 18-18 नए पॉजिटिव पाए गए। सरगुजा से 12, रायपुर से 9, बलरामपुर से 8, नांदगांव से 7, कोंडागांव से 3 एवं रायगढ़, कोरबा, कांकेर से 2-2 मरीज मिले। इसके अलावा दुर्ग, गरियाबांद, सूरजपुर, जशपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा से 1-1 मरीज शामिल हैं। ये सभी मरीज आसपास के कोरोना अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं।
दूसरी तरफ अंबेडकर अस्पताल में कल एक की मौत दर्ज की गई है। बताया गया है कि रायपुर निवासी एक व्यक्ति एक्यूट कोरोनरी सिन्ड्रोम निमोनिया, एक्यूट रीनल, इन्जूरी व सेप्टिक शॉक से पीडि़त था। उसे किसी निजी अस्पताल से यहां रेफर किया गया । कुछ दिन के इलाज के बाद 13 जुलाई को यहां उसकी मौत हो गई। इस दौरान जांच में वह कोरोना पॉजिटिव भी पाया गया। इस मरीज को मिलाकर प्रदेश में कोरोना व कोरोना के साथ अन्य बीमारियों से 20 की मौत हो चुकी है।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि प्रदेश में जांच का दायरा बढ़ाने के साथ कहीं-कहीं पर भीड़ वाली जगहों से रेडंम जांच भी किए जा रहे हैं। इसके अलावा पॉजिटिव मरीजों के आसपास और संपर्क में आने वालों की जांच चल रही है। जांच में पुलिस, डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ, छात्र के साथ अन्य लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं। निगम के फील्ड में रहने वाले वर्कर भी अब संक्रमित मिल रहे हैं। सभी नए पॉजिटिव आसपास के अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। सैंपलों की जांच जारी है।
छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की राज्यसभा सदस्य, और प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम अपने खेत में काम करते हुए। कांग्रेस ने इस पर लिखा है कि हम खून-पसीने और मेहनत से मजबूती देते हैं, फिर चाहे वे फसल हो, या संगठन।
छत्तीसगढ़ के बस्तर की फूलोदेवी नेताम लंबे समय से कांग्रेस में सक्रिय हैं।
नई दिल्ली, 15 जुलाई । भारत और एशिया के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी दुनिया के टॉप 5 अमीरों में शामिल होने की दहलीज पर हैं। देश की सबसे मूल्यवान कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के चेयरमैन मुकेश अंबानी ब्लूमबर्ग के बिलिनेयर इंडेक्स में अभी छठे नंबर पर है। अंबानी की नेटवर्थ हाल के दिनों में बहुत तेजी से बढ़ी है। 9 जुलाई को उनकी नेटवर्थ 67.4 अरब डॉलर थी और वह जाने माने अमेरिकी निवेशक वारेन बफे से एक स्थान नीचे नौवें स्थान पर थे।
लेकिन मंगलवार को उनकी नेटवर्थ 72.4 अरब डॉलर पहुंच गई। यानी इस दौरान अंबानी की दौलत प्रति सेकंड 8.74 लाख रुपये की रफ्तार से बढ़ी। इसकी वजह आरआईएल के शेयरों में उछाल रही। पिछले 5 दिनों में कंपनी के शेयर में 5 फीसदी तेजी आई है। इससे कंपनी का बाजार पूंजीकरण 12 लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया। आरआईएल यह उपलब्धि हासिल करने वाली देश की पहली कंपनी है।
मुकेश अंबानी को रिलायंस के शेयरों में बढ़त का फायदा तो मिला ही, अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट का भी फायदा उन्हें मिला। इस गिरावट के चलते गूगल के को-फाउंडर लैरी पैज की दौलत 71.6 अरब डॉलर पर आ गई। वहीं गूगल की स्थापना करने वाले सर्गेई ब्रिन की दौलत 69.4 अरब डॉलर पर पहुंच गई। टेस्ला के एलन मस्क भी मुकेश अंबानी के मुकाबले पीछे रह गए हैं। इतना ही नहीं, पिछले ही सप्ताह मुकेश अंबानी ने बर्कशायर हैथवे के सीईओ और दुनिया के दिग्गज निवेशक वॉरेन बफे को भी पछाडक़र लिस्ट में सातवां स्थान हासिल किया था।
इस साल के शुरुआती महीनों में कारोबार में कमजोरी के बाद मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने लगातार ग्रोथ की है। रिलायंस इंडस्ट्रीज की कंपनी जियो प्लेटफॉर्म्स में एक के बाद एक 13 निवेशक पैसे लगा चुके हैं, जिसमें फेसबुक भी शामिल है। इन निवेशों से अंबानी को 1,18,000 करोड़ रुपये की रकम हासिल हो चुकी है। सोमवार की तेजी की वजह भी यह निवेश ही था, क्योंकि रविवार को ही 13वें निवेशक क्तह्वड्डद्यष्शद्वद्व ङ्कद्गठ्ठह्लह्वह्म्द्गह्य ने जियो प्लेटफॉम्र्स की 0.15 फीसदी हिस्सेदारी खरीदते हुए 730 करोड़ रुपये के निवेश का ऐलान किया था। (navbharattimes.indiatimes.com)
छत्तीसगढ़ संवाददाता
रायपुर, 15 जुलाई। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बुधवार को देर शाम यहां पहुंच रहे हैं। वे सीएम हाऊस में पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं से मेल मुलाकात करेंगे। इसके बाद गुरूवार की सुबह दिल्ली रवाना हो जाएंगे।
सूत्रों के मुताबिक सीएम हाऊस में होने वाली बैठक में दिग्विजय सिंह, सीएम भूपेश बघेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और एक-दो अन्य नेता मौजूद रह सकते हैं। दिग्विजय के अचानक रायपुर आने को कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है। खास बात यह है कि सीएम भूपेश बघेल और अन्य सभी बड़े नेता दिग्विजय सिंह के ही करीबी हैं।
जयपुर, 15 जुलाई। कांग्रेस ने राजस्थान में सचिन पायलट और उनके बागी साथियों को अयोग्य घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. खबरों के मुताबिक पार्टी की शिकायत के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने इन सभी 19 असंतुष्ट विधायकों को नोटिस जारी कर शुक्रवार तक जवाब मांगा है. नोटिस में पूछा गया है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों और कांग्रेस विधायक दल की दो बैठकों में शामिल नहीं होने पर उन्हें अयोग्य क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए? कल हुई विधायक दल की दूसरी बैठक में सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष पद और राज्य के उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था. उनके समर्थक दो मंत्री भी हटा दिए गए हैं. चर्चा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज नए सिरे से कैबिनेट के गठन पर काम शुरू कर सकते हैं.
माना जा रहा है कि सचिन पायलट और बागी विधायकों के बर्खास्त होने से अशोक गहलोत को फायदा होगा क्योंकि इससे राजस्थान विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी 101 सदस्यों का आंकड़ा नीचे आ जाएगा. इस बीच, सचिन पायलट ने एक बार फिर कहा है कि वे भाजपा में शामिल नहीं हो रहे हैं. खबरों के मुताबिक उनका कहना था, ‘अभी भी मैं कांग्रेस का मेंबर हूं. कुछ लोग मेरा नाम भाजपा से जोड़ रहे हैं. मेरी इमेज खराब करने की कोशिश की जा रही है.’ उन्होंने बगावत क्यों की, इस सवाल पर उनका कहना था कि वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से इतना ही चाहते थे कि वे जनता से किए गए वादे पूरे करें. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी के अंदर चर्चा का कोई मंच बचा ही नहीं था.(satyagrah)
प्रजनन दर कमी और वृद्ध आबादी को देखते नया अनुमान
ब्रिटेन के प्रसिद्ध साइंस जर्नल लैंसेट में छपी इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने अपने आकलन में गिरते प्रजनन दर और वृद्ध आबादी को ध्यान में जरूर रखा था लेकिन नीतियों से जुड़े कुछ अन्य पैमानों को नजरंअदाज कर दिया था. रिसर्चरों के अनुसार एक बार अगर आबादी गिरने लगे तो उसे रोकना नामुमकिन हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप दुनिया में सत्ता के लिहाज से बड़े बदलाव भी देखे जाएंगे. जिन 23 देशों की जनसंख्या आधी हो जाने की बात कही गई है, उनमें जापान, स्पेन, इटली, थाईलैंड, पुर्तगाल, दक्षिण कोरिया और पोलैंड शामिल हैं.
फिलहाल दुनिया की आबादी 7.8 अरब है. एक अनुमान के अनुसार 2064 तक यह बढ़ कर रिकॉर्ड 9.7 अरब हो जाएगी लेकिन इसके बाद यह कम होने लगेगी और साल 2100 तक यह गिर कर 8.8 अरब हो जाएगी. 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने जो रिपोर्ट प्रकाशित की थी उसके अनुसार साल 2100 तक आबादी के 10.9 अरब पहुंच जाने का अनुमान था. यानी यह मौजूदा अनुमान से दो अरब ज्यादा था. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की इस नई रिपोर्ट में रिसर्चरों ने संयुक्त राष्ट्र के अनुमान को गलत बताया है. रिसर्चरों के अनुसार साल 2100 तक 195 में से 183 देशों की जनसंख्या में कमी आएगी. 23 देशों की आबादी तो आधी हो जाएगी और 34 अन्य देशों की जनसंख्या में 25 से 50 फीसदी की कमी आएगी.
2035 तक सुपरपावर बनेगा चीन?
रिपोर्ट के अनुसार 2035 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन जाएगा और वह अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा. लेकिन चीन की जनसंख्या में गिरावट के बाद अमेरिका फिर से अपनी जगह हासिल करने में कामयाब रहेगा. फिलहाल चीन की जनसंख्या 1.4 अरब है. अगले अस्सी सालों में यह 73 करोड़ ही रह जाएगी. इसी दौरान अफ्रीकी देशों में जनसंख्या वृद्धि देखी जाएगी. उप सहारा अफ्रीका में आबादी तीन गुना बढ़ कर तीन अरब हो सकती है. अकेले नाइजीरिया की ही आबादी 80 करोड़ हो जाएगी.
जीडीपी के लिहाज से भारत तीसरे पायदान पर
अगर ऐसा हुआ तो साल 2100 तक वह भारत के बाद जनसंख्या के लिहाज से दूसरे स्थान पर होगा. अर्थव्यवस्था और सत्ता के लिहाज से अमेरिका, चीन, नाइजीरिया और भारत दुनिया के चार अहम देश होंगे. अनुमान के अनुसार भारत की जनसंख्या में बहुत बड़े बदलाव नहीं देखे जाएंगे. और जीडीपी के लिहाज से भारत तीसरे पायदान पर होगा. जापान, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन दुनिया की दस महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में बने रहेंगे.
इस रिसर्च के मुख्य लेखक क्रिस्टोफर मुरे ने इस बारे में कहा, "ये पूर्वानुमान पर्यावरण के लिए अच्छी खबर हैं. खाद्य उत्पादन प्रणालियों पर दबाव कम होगा, कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा और उप सहारा अफ्रीका के हिस्सों में अहम आर्थिक मौके पैदा होंगे. हालांकि अफ्रीका के बाहर ज्यादातर देशों में आबादी घटेगी, वर्कफोर्स कम हो जाएगी और अर्थव्यवस्था पर इसका काफी बुरा असर होगा."
मुरे का कहना है कि अगर उच्च आय वाले देश चाहते हैं कि ऐसा ना हो, तो जनसंख्या स्तर को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि वे प्रवासियों को ले कर बेहतर नीतियां बनाएं और ऐसे परिवारों को आर्थिक सहयोग दें जो बच्चे चाहते हैं. लेकिन उन्हें डर है कि मौजूदा दौर में कई देश इसके ठीक विपरीत नीतियां बना रहे हैं, जिनके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. (डीपीए, एएफपी)
जयपुर, 15 जुलाई। कांग्रेस के बाग़ी नेता सचिन पायलट ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा है कि वो बीजेपी में नहीं जाएंगे.
सचिन ने कहा कि 'उन्होंने कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए कड़ी मेहनत की थी.'
कांग्रेस के इस युवा बाग़ी नेता ने कहा कि 'राजस्थान में कुछ नेता उनके बीजेपी में शामिल होने की अफ़वाह उड़ा रहे हैं लेकिन वो ऐसा नहीं करने जा रहे.'
दूसरी तरफ़ राजस्थान विधानसभा के स्पीकर ने सचिन पायलट समेत 19 विधायकों को नोटिस भेजा है और 17 जुलाई तक जवाब मांगा है.
सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक सीएलपी की बैठक में नहीं आए थे और इसे लेकर राजस्थान सरकार के व्हिप चीफ़ महेश जोशी ने स्पीकर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी.
सचिन पायलट ने पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में कहा है कि वो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज़ नहीं हैं.
सचिन ने इस इंटरव्यू में कहा, ''मैं उनसे नाराज़ नहीं हूं. मैं कोई विषेशाधिकार भी नहीं मांग रहा. हम सभी चाहते हैं कि कांग्रेस ने राजस्थान के चुनाव में जो वादा किया था उसे पूरा करे. हमने वसुंधरा राजे सरकार के ख़िलाफ़ अवैध खनन का मुद्दा उठाया था. सत्ता में आने के बाद गहलोत जी ने इस मामले में कुछ नहीं किया. बल्कि वो वसुंधरा के रास्ते पर ही बढ़ रहे हैं.''
सचिन पायलट ने इस इंटरव्यू में कहा है, ''पिछले साल राजस्थान हाई कोर्ट ने 2017 के वसुंधरा सरकार के उस संशोधन को ख़ारिज कर दिया था जिसमें उन्हें जयपुर में सरकारी बंगला हमेशा के लिए मिल गया था. गहलोत सरकार को बंगला उनसे ख़ाली करवाना चाहिए था लेकिन उन्होंने हाई कोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.''
सचिन ने कहा, ''गहलोत बीजेपी की राह पर ही चल रहे हैं और उन्हें मदद कर रहे हैं. वो मुझे और मेरे समर्थकों को राजस्थान के विकास के लिए काम नहीं करने दे रहे हैं. नौकरशाहों से कह दिया गया है वो मेरे निर्देशों का पालन नहीं करें. फाइलें मेरे पास नहीं आती हैं. महीनों से कैबिनेट और सीएलपी की बैठक नहीं हुई है. उस पद का क्या मतलब है जिस पर रहकर मैं लोगों से किए वादों को ही पूरा नहीं कर सकता?''
सचिन ने इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में कहा है, ''मैंने पूरे मामले को कई बार उठाया. मैंने राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे जी से कहा. सीनियर नेताओं से भी कहा. मैंने गहलोत जी से भी बात की. लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ क्योंकि मंत्रियों और विधायकों की शायद ही कोई बैठक होती थी. मेरे आत्मसम्मान को चोट पहुंची है. प्रदेश की पुलिस ने सेडिशन के एक मामले में मुझे नोटिस भेजा है.''
''आप याद कीजिए कि कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में सेडिशन का क़ानून हटाने का वादा किया था और यहां कांग्रेस की सरकार अपने ही मंत्री के ख़िलाफ़ इस क़ानून का इस्तेमाल कर रही है. मेरा यह क़दम अन्याय के ख़िलाफ़ है. पार्टी का व्हिप तब वैध होता है जब विधानसभा चल रही होती है. मुख्यमंत्री ने विधायक दल की बैठक अपने घर पर बुलाई. कम से कम यह बैठक पार्टी मुख्यालय में ही बुला लेते.''(bbc)
नई दिल्ली, 15 जुलाई (वार्ता)। देश में कोरोना संक्रमण के दिनों दिन बढ़ते प्रकोप के बीच पिछले 24 घंटों के दौरान अब तक के सर्वाधिक 29 हजार से अधिक नए मामले सामने आए हैं जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 9.36 लाख के पार पहुंच गया है हालांकि राहत की बात यह है कि इस दौरान इससे 20 हजार से अधिक रोगी स्वस्थ भी हुए हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से बुधवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 29,429 नये मामले सामने आये हैं जिससे संक्रमितों की संख्या 9,36,181 हो गयी है। इससे पहले तीन दिन तक लगातार 28 हजार से अधिक मामले सामने आए थे। पिछले 24 घंटों के दौरान 582 लोगों की मौत होने से मृतकों की संख्या 24,309 हो गई है।
संक्रमण के तेजी से बढ़ रहे मामलों के बीच राहत की बात यह है कि इससे स्वस्थ होने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है और पिछले 24 घंटों के दौरान 20,572 से अधिक रोगी स्वस्थ हुए हैं जिन्हें मिलाकर अब तक कुल 5,92,032 रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना संक्रमण के 3,19,840 सक्रिय मामले हैं।
कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में संंक्रमण के 6,741 नये मामले सामने आये जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 2,67,665 पर पहुंच गया है। इसी अवधि में 213 लोगों की मौत हुई है जिसके कारण मृतकों की संख्या 10,695 हो गयी है। वहीं 1,49,007 लोग संक्रमण मुक्त हुए हैं।
संक्रमण के मामले में दूसरे स्थान पर पहुंचे तमिलनाडु में पिछले 24 घंटों के दौरान संक्रमण के मामले 4,526 बढक़र 1,47,324 पर पहुंच गये हैं और इसी अवधि में 76 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 2,099 हो गयी है। राज्य में 97,310 लोगों को उपचार के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना महामारी की स्थिति अब कुछ नियंत्रण में है और यहां संक्रमण के मामलों में वृद्धि की रफ्तार थोड़ी कम हुई है। राजधानी में अब तक 1,15,343 लोग कोरोना की चपेट में आये हैं तथा इसके कारण मरने वालों की संख्या 3446 हो गयी है। यहां 93,236 मरीज रोगमुक्त हुए हैं।
दक्षिण का राज्य कर्नाटक संक्रमितों की संख्या के मामले में गुजरात को पीछे छोडक़र चौथे स्थान पर पहुंच गया है। राज्य में 44,077 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 842 लोगों की इससे मौत हुई है। राज्य में 17,390 लोग स्वस्थ भी हुए हैं।
देश का पश्चिमी राज्य गुजरात संक्रमण के मामले में पांचवें स्थान पर आ गया है, लेकिन मृतकों की संख्या के मामले में यह महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर है। गुजरात में 43,637 लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 2,069 लोगों की मौत हुई है। राज्य में 30,503 लोग इस बीमारी से स्वस्थ भी हुए हैं।
आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के अब तक 39,724 मामले सामने आए हैं तथा इस महामारी से 983 लोगों की मौत हुई है जबकि 24,983 मरीज ठीक हुए हैं।
दक्षिण के एक और राज्य तेलंगाना में भी कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। तेलंगाना में कोरोना संक्रमितों की संख्या 37,745 हो गयी है और 375 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 24,840 लोग अब तक इस महामारी से ठीक हो चुके है।
आंध्र प्रदेश में संक्रमितों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने के कारण यह सर्वाधिक प्रभावित राज्यों की सूची में पश्चिम बंगाल से ऊपर आ गया है। राज्य में 33,019 लोग संक्रमित हुए हैं तथा मरने वालों की संख्या 408 हो गयी है जबकि 17,467 लोग स्वस्थ हो चुके हैं।
पश्चिम बंगाल में 32,838 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 980 लोगों की मौत हुई है और अब तक 19,931 लोग स्वस्थ हुए हैं। राजस्थान में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या 25,571 हो गयी है और अब तक 525 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 19,161 लोग पूरी तरह ठीक हुए हैं। हरियाणा में 22,628 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 312 लोगों की मौत हुई है।
इस महामारी से मध्य प्रदेश में 673, पंजाब में 213, जम्मू-कश्मीर में 195, बिहार में 174, ओडिशा में 74, उत्तराखंड में 50, असम में 36, झारखंड में 36, केरल में 34, छत्तीसगढ़ में 20, पुड्डुचेरी और गोवा में 18, हिमाचल प्रदेश में 11, चंडीगढ़ में 10, अरुणाचल प्रदेश में तीन, मेघालय और त्रिपुरा में दो तथा लद्दाख में एक व्यक्ति की मौत हुई है।
-ईशान कुकरेटी
वनवासियों पर एक बार फिर बेदखली की तलवार लटक रही है। इस साल 24 फरवरी तक 14 राज्यों ने कुल 5,43,432 वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) 2006 के तहत किए गए दावों को स्वत: संज्ञान समीक्षा के बाद खारिज कर दिया। ये राज्य हैं- आंध्र प्रदेश (2,355), बिहार (1,481) छत्तीसगढ़ (39,4851), हिमाचल प्रदेश (47), कर्नाटक (58,002), केरल (801), महाराष्ट्र (9,213), ओडिशा (73737), राजस्थान (5,906), तेलंगाना (5,312), तमिलनाडु (214), उत्तराखंड (16), त्रिपुरा (4), पश्चिम बंगाल (54,993)। पश्चिम बंगाल ने कुल 92 प्रतिशत दावों को खारिज कर दिया। राज्य में कुल 59,524 दावों की समीक्षा की गई थी।
यह जानकारी राज्यों ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय को 24 फरवरी के दिन हुई एक बैठक में दी है। मंत्रालय ने इस बैठक के मिनट्स को अपनी वेबसाइट पर 2 जुलाई को अपलोड किया।
गौरतलब है कि 13 फरवरी, 2019 को एफआरए मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को उन दावेदारों को बेदखल करने को कहा था जिनका दवा खारिज हो चुका था। हालांकि कोर्ट ने सरकार के दखल के बाद 28 फरवरी को आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने सभी राज्यों के साथ एक बैठक आयोजित की थी।
6 मार्च और 18 जून को दो बैठकों में राज्यों ने मंत्रालय को बताया था कि उन्होंने दावों को खारिज करने में एफआरए के कई प्रावधानों का पालन नहीं किया था। मंत्रालय ने तब राज्यों को सभी खारिज किए गए दावों की स्वत: समीक्षा की सलाह दी थी।
24 फरवरी की बैठक के मिनट्स के अनुसार, 14,19,259 में से 1,72,439 दावों की समीक्षा की गई। समीक्षा किए गए दावों की संख्या की तुलना में अधिक दावों को खारिज किया जाना डेटा में विसंगति की वजह से है। कुछ राज्यों ने कुल की गई समीक्षाओं के डेटा को साझा नहीं किया है और कुछ ने यह नहीं बताया है कि कुल कितने दावों की समीक्षा होनी है।
मध्य प्रदेश के प्रतिनिधि ने मंत्रालय को बताया कि इस प्रकिया में कम से कम 12 महीने का समय लगेगा। तब तक कोई दावेदार बेदखल नहीं किया जाएगा। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार खारिज दावों की समीक्षा और दावेदार की पहचान के लिए मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (एमआईएस) का सहारा ले रही है। राज्य सरकार ने फील्ड स्टाफ और अधिकारियों को एमआईएस और मोबाइल एप्लीकेशन का प्रशिक्षण देने के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम किए हैं।
जरूरी नहीं है कि समीक्षा में खारिज सभी दावे बेदखल होंगे क्योंकि बहुत सारे दावे डुप्लीकेशन की वजह से भी खारिज कुए हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान ने मंत्रालय को बताया कि 18,446 खारिज किए गए दावे कब्जे नहीं होने, दोहरे दावे, अन्य राजस्व भूमि पर कब्जे, दावेदार की मृत्यु, गलत प्रविष्टि, प्रवास आदि के कारण गैर बेदखली दावे हैं।
दावेदारों की बेदखली के क्या परिणाम होंगे, यह जानने के लिए राज्य खारिज किए गए दावों का समुचित वर्गीकरण करेंगे और बताएंगे कि किस आधार पर यह बेदखली हुई है। एफआरए बेदखली के बारे में कुछ नहीं कहता है, इसलिए बैठक में यह निर्णय लिया गया कि एक विस्तृत वर्गीकरण किया जाएगा जो बेदखली की प्रकृति का चित्रण करेगा।(downtoearth)
-ललित मौर्या
चमगादड़ों में कोरोनावायरस के साथ-साथ न जाने कितने वायरस होते हैं। इसके बावजूद इन वायरसों का असर उसके शरीर पर नहीं पड़ता। आखिर ऐसा क्या होता है इन चमगादड़ों के शरीर में, जिनसे वो बीमार नहीं पड़ते। आइये जानते हैं चमगादड़ों की इस ‘सुपर इम्युनिटी’ का राज। और क्या मनुष्य भी इस ‘सुपर इम्युनिटी’ को समझकर इन हानिकारक वायरसों से बच सकते हैं। मनुष्यों में कई बीमारियां चमगादड़ों से ही फैली हैं। इनमें इबोला, रेबीज, सार्स और कोविड-19 भी शामिल है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर इंसानों को बीमार करने वाले इन वायरसों का असर चमगादड़ों पर क्यों नहीं पड़ता। और क्यों उनमें यह बीमारियां नहीं होती हैं। इसका कारण चमगादड़ों की सुपर इम्युनिटी है जो इन्हें इन बीमारियों को सहन करने के लायक बनाती हैं। जबकि यदि सामान आकर के स्तनधारियों से चमगादड़ों की तुलना करें तो वो उनसे अधिक समय तक जीवित रहते हैं। अनुमान है कि चमगादड़ 30 से 40 साल तक जीवित रह सकते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर के शोधकर्ताओं के अनुसार, चमगादड़ की लंबी उम्र और वायरस को सहन करने की क्षमता का मुख्य कारण उसके इन्फ्लेमेशन (सूजन) को नियंत्रित करने की क्षमता से है। जब भी शरीर में कोई विकार आता है या फिर चोट लगती है तो शरीर में मौजूद श्वेत रक्त कोशिकाएं शरीर को बाहरी आक्रमणों (जैसे वायरस और बैक्टीरिया) से बचाने के लिए सक्रिय हो जाती हैं। यदि इस प्रक्रिया को नियंत्रित कर लिया जाये तो यह शरीर में बीमारी को फैलने से रोक सकती हैं। वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह शोध जर्नल सेल मेटाबॉलिज्म में प्रकाशित हुआ है। इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर वेरा गोरबुनोवा और आंद्रेई सेलुआनोव ने चमगादड़ों के शरीर में यह प्रक्रिया कैसे काम करती है उसकी पूरी रुपरेखा तैयार की है। साथ ही इस बात का भी पता लगाया है कि यह तंत्र किस तरह से बीमारियों के लिए नए उपचार खोजने में मदद कर सकता है।
वायरसों को कैसे सह लेता है चमगादड़ का शरीर?
इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने चमगादड़ों की लम्बी उम्र के रहस्य और उनके वायरसों के खिलाफ सुपर इम्युनिटी को साथ-साथ समझने का प्रयास किया है। बढ़ती उम्र और उम्र से जुडी बीमारियों दोनों में ही इन्फ्लेमेशन (सूजन) का बहुत बड़ा हाथ होता है। कई बड़ी बीमारियां जैसे कैंसर, अल्जाइमर और हृदय रोग सहित उम्र से जुड़े विकारों में इन्फ्लेमेशन का बहुत बड़ा हाथ होता है। कोरोनावायरस भी शरीर में सूजन को सक्रिय कर देता है।
गोरबुनोवा के अनुसार कोरोनावायरस के मामले में जब वायरस को रोकने के लिए शरीर का इम्यून सिस्टम काम करता है, तो इन्फ्लेमेशन अनियंत्रित हो जाती है। जिसके कारण वो वायरस को खत्म करने की जगह मरीज को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। उनके अनुसार हमारा इम्यून सिस्टम इस तरह काम करता है कि जैसे ही हम संक्रमित होते हैं तो हमारे शरीर में अपने आप ही एक प्रतिरक्षा प्रणाली काम करने लगती है। संक्रमण को रोकने के लिए शरीर में बुखार और सूजन होने लगती है, जिसका मकसद वायरस को खत्म करना और संक्रमण को रोकना होता है। पर कभी-कभी यह प्रतिक्रिया अनियंत्रित हो जाती है जिसकी वजह से यह रोगी पर ही असर डालना शुरू कर देती है।
जबकि चमगादड़ों के साथ ऐसा नहीं होता। मनुष्यों के विपरीत उन्होंने इससे निपटने के लिए विशिष्ट तंत्र विकसित कर लिया है। जो वायरस के फैलने की गति को काम कर सकता है। इसके साथ ही वो अपने इम्यून की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नियंत्रित कर लेते हैं। जिस वजह से जो संतुलन बनता है वो उनके शरीर में वायरस के असर को खत्म कर देता है। और उन्हें लम्बे समय तक जीने में मददगार होता है।
क्यों बन गए हैं चमगादड़ बीमारियों को सहने के काबिल?
शोधकर्ताओं के अनुसार, ऐसे कई कारक हैं जो इनके वायरस से लड़ने और लंबे जीवन के लिए मददगार होते हैं। एक कारक उनकी उड़ने की क्षमता में छिपा है। चमगादड़ अकेले ऐसे स्तनधारी हैं जो उड़ सकते हैं। जिसके लिए उसे अपने शरीर के तापमान में तेजी से वृद्धि और कमी को नियंत्रित करना होगा है। साथ ही अपने मेटाबोलिज्म में होने वाली एकाएक वृद्धि को भी नियंत्रित करना पड़ता है। साथ ही उन्हें अपने मॉलिक्यूलर को होने वाली क्षति को भी नियंत्रित करने में वर्षों लगे हैं। उनका यह अनुकूलन रोगों से लड़ने में भी मदद करता है।
दूसरा कारण इनका वातावरण है। इनकी कई प्रजातियां बहुत तंग जगह और घुप्प अंधेरे वाली गुफाओं में रहते हैं। जहां इनकी एक बड़ी आबादी साथ-साथ होती है। यह दशा वायरस को फैलने के लिए आदर्श स्थिति प्रदान करती है। यह लगातार वायरस के संपर्क में रहते हैं। जब वो बहार से गुफाओं में आते हैं तो अपने साथ वायरस भी लाते हैं जो बड़ी आसानी से दूसरों में भी फ़ैल जाता है। लगातार लम्बे समय से इन वायरसों के संपर्क में रहने के कारण इनका इम्यून सिस्टम इन वायरसों से लड़ने के काबिल बन गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार चमगादड़ों का विकास इन वायरसों के साथ लड़ते-लड़ते ही हुआ है जिसने इसे इनसे निपटने के काबिल बना दिया है। साथ ही यह इनके दीर्घायु होने में भी मददगार रहा है।
क्या इंसानों में भी विकसित हो सकती है इसी तरह की रोगप्रतिरोधक क्षमता?
विकास कुछ महीनों में नहीं होता यह साल दर साल विकसित होने की प्रक्रिया है। चमगादड़ों में यह क्षमता हजारों सालों में विकसित हुई है। इंसान अपनी सुख-सुविधाओं के बीच शहरों में रहने लगा है। साथ ही तकनीकों के बल पर एक जगह से दूसरी जगह जा सकता है। हमारी कुछ सामाजिक आदतें भले ही चमगादड़ों की तरह हैं। पर हमारा विकास उनकी तरह नहीं हुआ है। इंसानों के शरीर में अभी तक चमगादड़ों की तरह परिष्कृत तंत्र विकसित नहीं हुआ है। क्योंकि उनका शरीर वायरस का मुकाबला करता है उसके साथ-साथ और तेजी से विकसित होता जाता है।
गोरबुनोवा के अनुसार यह हमारे शरीर में अधिक इन्फ्लेमेशन के कारण हो सकता है। शोधकर्ताओं का यह भी मत है कि अधिक उम्र के लोगों पर यह वायरस ज्यादा बुरा असर करता है। यह उम्रदराज लोगों में अलग तरह से असर डालता है। वैसे भी जीवन और मृत्यु के लिए उम्र बहुत मायने रखती है। उम्र पर काबू पाने के लिए हमें इसकी पूरी प्रक्रिया पर नियंत्रण पाना होगा, न कि केवल उसके एक कारक पर काम करके उसे नियंत्रित किया जा सकता है।
हालांकि इसके बावजूद शोधकर्ताओं का मानना है कि चमगादड़ों के इम्यून सिस्टम का अध्ययन चिकित्सा जगत के लिए मददगार हो सकता है। इसकी मदद से रोगों और बुढ़ापे से लड़ने में मदद मिल सकती है। चमगादड़ों ने इन्फ्लेमेशन से निपटने के लिए अपनी कई जीनों में बदलाव और कई को पूरी तरह समाप्त कर दिया है। मनुष्य इन जीनों में बदलाव करने के लिए नई दवाओं का विकास कर सकता है। पर शोधकर्ताओं ने यह भी माना है कि इससे सभी वायरसों से लड़ने में मदद मिलेगी यह मुमकिन नहीं है, पर हम इसकी मदद से अपने इम्यून सिस्टम को चमगादड़ कि तरह बेहतर बना सकते हैं, यह मुमकिन है। (downtoearth)
जयपुर, 15 जुलाई। राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर जो अदावत अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच बीते डेढ़ साल से चली आ रही थी वो अपने चरम पर पहुंच चुकी है. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब प्रदेश का मुखिया बनने की चाह में राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के बीच बड़ी खींचतान देखने को मिली है. असल में राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद की लड़ाई उतनी ही पुरानी है जितना कि इस राज्य का राजनीतिक इतिहास.
30 मार्च 1949 का दिन था. वृहद राजस्थान के उद्घाटन समारोह की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं और कुछ ही देर में कांग्रेस के नेता हीरालाल शास्त्री यहां का पहला मुख्यमंत्री (इस पद को तब प्रधानमंत्री कहा जाता था) बनने के लिए शपथ लेने वाले थे. तभी सूचना मिली कि लोकनायक कहे जाने वाले जयनारायण व्यास और माणिक्यलाल वर्मा जैसे दिग्गज नेता समारोह का बहिष्कार कर चले गए. उन्हें शिकायत थी कि समारोह में उनके बैठने के लिए सम्मानजनक व्यवस्था नहीं की गई थी. लेकिन सूबे के पुराने राजनीतिकारों का कहना है कि इस नाराज़गी की असल वजह समारोह नहीं बल्कि मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से जुड़ी थी.
दरअसल, कांग्रेस नेता होने के बावजूद हीरालाल शास्त्री ने कथित निजी हितों के लिए ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो’ जैसे आंदोलनों को जयपुर में व्यापक नहीं होने दिया था. बताया जाता है कि इस वजह से वे तत्कालीन जयपुर महाराज सवाई मानसिंह और प्रख्यात व्यवसायी घनश्याम दास बिड़ला को भा गए थे. आजाद हिंदुस्तान की राजनीति को करीब से देखने वाले अमेरिकी लेखक रिचर्ड सिसन अपनी किताब ‘कांग्रेस पार्टी इन राजस्थान : पॉलिटिकल इंटिग्रेशन एंड इंस्टिट्युशन बिल्डिंग इन एन इंडियन स्टेट’ में ज़िक्र करते हैं कि जयपुर महाराज ने रियासती विभाग के सर्वेसर्वा और गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल से आश्वासन ले लिया था कि राजस्थान का पहला मुख्यमंत्री उन्हीं की पसंद का होगा.
दूसरी तरफ जयनारायण व्यास और माणिक्यलाल वर्मा, गोकुलभाई भट्ट को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे. लेकिन शास्त्री को सरदार पटेल का वरदहस्त होने की वजह से एकबारगी मामला शांत हो गया. पर यह सब्र ज्यादा दिन नहीं चला. तीन महीने भी नहीं गुज़रे कि शास्त्री के विरुद्ध प्रदेश कांग्रेस समिति ने भारी बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दिया. हालांकि पटेल ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था. लेकिन कांग्रेस में हमेशा के लिए रार पड़ गई. अपने अपमान का बदला लेने के लिए शास्त्री ने जयनारायण व्यास समेत उनके दो सहयोगियों पर विशेष न्यायालय में भ्रष्टाचार का मुकदमा चला दिया. हालांकि भारतीय संविधान के लागू हो जाने के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे रोक दिया.
इसी बीच सरदार पटेल का निधन हो जाने से शास्त्री के पैर डिगने लगे थे. नतीजतन उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अप्रैल, 1951 में यह जिम्मेदारी जयनारायण व्यास के कंधे पर आ गई. लेकिन फरवरी, 1952 के पहले आम चुनाव में व्यास दो क्षेत्रों से चुनाव हार गए. बताया जाता है कि व्यास के समर्थकों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने और उपचुनाव लड़वाने की पुरजोर पैरवी की थी. लेकिन विरोधियों के आगे उनकी एक न चली. और, राजस्थान को टीकाराम पालीवाल की शक्ल में कांग्रेस की तरफ से तीसरे मुख्यमंत्री मिले.
लेकिन व्यास और उनके समर्थकों ने जब हीरालाल शास्त्री को ही नहीं टिकने दिया तो अपेक्षाकृत कमजोर पालीवाल की दाल भला कैसे गलती! आठ महीने की अंदरूनी रस्साकशी के बाद नवंबर, 1952 में यह पद एक बार फिर व्यास के पास आ गया. लेकिन तब तक कांग्रेस में एक नया धड़ा अपनी जगह तलाश चुका था.
अपनी किताब ‘राजस्थान की राजनीति : सामंतवाद से जातिवाद की ओर’ में वरिष्ठ पत्रकार विजय भंडारी लिखते हैं, ‘कुंभाराम आर्य और मथुरादास माथुर जैसे प्रमुख नेताओं ने व्यास की जगह मोहनलाल सुखाड़िया को मुख्यमंत्री बनाने की योजना तैयार कर ली.’ इन तमाम नेताओं ने व्यास पर शक्ति परिक्षण का दबाव बनाया. न-न करते भी व्यास को नवंबर, 1954 में यह परीक्षण करवाना ही पड़ा. इसमें 110 विधायकों में से 51 ने व्यास का पक्ष लिया तो 59 के समर्थन से सुखाड़िया पांच साल में राजस्थान के पांचवें मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए. इसके बाद सत्रह साल तक सुखाड़िया इस पद पर बने रहे. हालांकि इस दौरान कुंभाराम आर्य, नाथूराम मिर्धा और माथुरदास माथुर जैसे नेताओं ने सुखाड़िया को भी कमजोर करने की कई बार कोशिश की. लेकिन नाकाम रहे.
1969 के राष्ट्रपति चुनाव में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विधायकों से ‘अंतरात्मा की आवाज पर’ मत देने की अपील की थी, तब मोहनलाल सुखाड़िया ने इंदिरा गांधी की पसंद वीवी गिरि के बजाय नीलम संजीव रेड्डी पर गलत दांव खेला और इसका खामियाजा उठाया. इसके चलते सुखाड़िया को पद से इस्तीफा देना पड़ा और राजस्थान को 1971 में पहला पैराशूट और अल्पसंख्यक मुख्यमंत्री यानी बरकतुल्लाह ख़ान का नेतृत्व मिला. 1973 में ख़ान के असामयिक निधन के बाद पार्टी के अनुशासित सिपाही हरिदेव जोशी ने यह बागडोर संभाली. इस बात पर आज भी सवाल खड़े किए जाते हैं पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के नाम पर कौन-सी प्रक्रिया अपनाई गई थी कि तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री रामनिवास मिर्धा को परास्त कर जोशी राजस्थान के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए?
जोशी के कार्यकाल के दौरान ही देश में आपातकाल लगा था और अप्रैल, 1977 में राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. जनवरी, 1978 में कांग्रेस के दो फाड़ हो गए. राजस्थान के संदर्भ में इस घटना का ज़िक्र इसलिए आवश्यक है कि तब अशोक गहलोत ने रेड्डी कांग्रेस को चुना था. यदि समझाइश के बाद गहलोत कांग्रेस (आई) में शामिल न होते तो शायद राजस्थान का राजनैतिक इतिहास कुछ और ही होता.
सातवीं विधानसभा (1980-1985) में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में रही लेकिन इस दौरान भी पार्टी ने तीन मुख्यमंत्री बदले. 1980 में संजय गांधी के करीबी जगन्नाथ पहाड़िया को मुख्यमंत्री चुना गया. लेकिन तमाम कारणों के चलते राज्य की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई और संगठन के प्रमुख नेता शिवचरण माथुर ने अपने समर्थकों के साथ जाकर इंदिरा गांधी से इस बात की शिकायत की. नतीजतन पहाड़िया से इस्तीफा लेकर जुलाई, 1981 में शिवचरण माथुर को सूबे का मुख्यमंत्री चुना गया. लेकिन 1985 में डीग-कुम्हेर (भरतपुर) के निर्दलीय प्रत्याशी और पूर्व जाट राजघराने से ताल्लुक रखने वाले मानसिंह की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गई. मानसिंह पर शिवचरण माथुर की अनुपस्थिति में उनका हेलीकॉप्टर और उनकी सभा का मंच तोड़ देने का आरोप था. मामले की गंभीरता को देखते हुए माथुर से आधी रात को ही इस्तीफा ले लिया गया और हीरालाल देवपुरा को मुख्यमंत्री बनाया गया.
1985 के विधानसभा चुनाव के बाद हीरालाल देवपुरा के ही मुख्यमंत्री बने रहने की पूरी संभावना थी. लेकिन हरिदेव जोशी पार्टी आलाकमान को लुभाने में सफल रहे और बाजी मार ले गए. लेकिन सितंबर, 1987 को सीकर के दिवराला सती कांड को लेकर मंत्री नरेंद्र सिंह भाटी ने विधानसभा में अपनी ही सरकार की जमकर आलोचना की. बताया जाता है कि भाटी ने इस घटना को रोक पाने में असफल रहे जोशी के विरुद्ध तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कान भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. 1986 में जब राजीव गांधी रणथंभौर अभ्यारण्य में भ्रमण के लिए आए तो भाटी की सलाह पर जोशी ने सादगी से उनका स्वागत किया, जो गांधी को अखर गया. हालांकि इस मामले मे जोशी अपना पक्ष मजबूती से रख पाए और भाटी को शक्ति केंद्र बनने से पहले ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
लेकिन अगले ही साल जब राजीव गांधी सरिस्का अभ्यारण्य गए तो जोशी के हिस्से में एक बार फिर नाराज़गी ही आई. दरअसल, इस बार राजीव ने बेहद साधारण तरीके से स्वागत करने के निर्देश दिए थे. लेकिन जोशी को पिछला सबक याद था. उन्होंने नेताओं के साथ तमाम तामझाम इकठ्ठा तो कर लिया था, किंतु उचित मौका मिलने तक उन्हें अभ्यारण्य से दूर रखा था. प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जोशी विरोधियों ने सड़क पर लगे दिशानिर्देशों को उस तरफ मोड़ दिया जहां सैंकड़ो गाड़ियां खड़ी थीं. अपनी कार खुद चला रहे राजीव निर्देशों के सहारे वहां पहुंच गए और उस लवाजमे को देखकर भौचक्के रह गए. इसके बाद उन्होंने जोशी को जमकर लताड़ लगाई. वहीं पार्टी के वरिष्ठ नेता से ऐसा व्यवहार करने पर राष्ट्रीय मीडिया ने राजीव गांधी को जमकर आड़े हाथों लिया और आखिर में उनकी खीज उतरी जोशी पर. 1988 में जोशी से उनका पद छीन लिया गया और शिवचरण माथुर को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया.
1989 के लोकसभा चुनावों में बोफोर्स कांड के काले साये में घिरी कांग्रेस के हाथों से राजस्थान की सभी पच्चीस सीटें फिसल गईं जो उसे 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद मिली थीं. केंद्र में राजीव कमजोर हो चुके थे. मौका भांपकर राजस्थान में माथुर के विरोधियों ने उन्हें पद से हटाने में देर नहीं लगाई और असम के राज्यपाल बना दिए गए हरिदेव जोशी एक बार फिर मुख्यमंत्री बनकर राजस्थान आए. हालांकि अगले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी.
इसके बाद दिसंबर, 1998 में कांग्रेस 153 विधायकों के साथ रिकॉर्ड बहुमत हासिल करने में सफल रही. उस समय अशोक गहलोत पार्टी प्रदेशाध्यक्ष हुआ करते थे और हाईकमान का कथित इशारा मिलने के बाद परसराम मदेरणा मुख्यमंत्री बनने के लिए आश्वस्त थे. वहीं मदेरणा के बाद लाइन में लगे नवलकिशोर शर्मा और शिवचरण माथुर को भी यह पद मिलने की उम्मीद थी. लेकिन सेहरा बंधा अशोक गहलोत के सर पर. बड़ी गहमागहमी हुई. कहा जाता है कि इस घटना के बाद प्रदेश में सबसे ज्यादा आबादी वाला जाट समुदाय गहलोत और कांग्रेस से बिदक गया. हालांकि गहलोत ने सर्वाधिक जाट मंत्रियों को चुनकर इस नुकसान की भरपाई की कोशिश की लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं माने गए. मदेरणा को भी मंत्रिमंडल में शामिल होने का आमंत्रण दिया गया लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार करने से इन्कार कर दिया.
फ़िर 2008 के चुनाव आए जिनमें मुख्यमंत्री पद और अशोक गहलोत के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी को बड़ा रोड़ा माना जा रहा था. लेकिन जोशी एक वोट से अपना चुनाव हार गए. मजेदार बात है कि इस चुनाव में उनकी पत्नी ने वोट नहीं डाला था. आखिरकार गहलोत तकरीबन एकतरफा मुख्यमंत्री चुन लिए गए. प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में यह शायद पहला और अब तक का आख़िरी मौका था जब इस पद को लेकर कुछ खास गहमागहमी देखने को नहीं मिली थी.
इसके बाद जब 2018 के विधानसभा चुनाव हुए तब राजस्थान में एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी अपना परचम फहराने में सफल रही. तब कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते पायलट अपनी अगुवाई में मिली इस जीत के इनाम के तौर पर मुख्यमंत्री पद चाहते थे. लेकिन राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत ऐन मौके पर बाजी मार ले गए. इसके बाद से दोनों के बीच में राजनीतिक शह-मात का खेल लगातार चलता ही रहा है.(satyagrah)
Jai Jagannath
Jai Jagannath.......???? pic.twitter.com/prZfDfshA3
— Sudarsan Pattnaik (@sudarsansand) July 15, 2020
27 जुलाई से तीस हज़ार लोगों पर परीक्षण
अमरीका में टेस्ट की गई पहली कोविड-19 वैक्सीन से लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली को वैसा ही फ़ायदा पहुंचा है जैसी उम्मीद वैज्ञानिकों ने की थी.
अब इस वैक्सीन का अहम ट्रायल किया जाना है.अमरीका के शीर्ष विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फाउची ने समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस से कहा,'’आप इसे कितना भी काट-छांट कर देखो तब भी ये एक अच्छी ख़बर है.' इस ख़बर को न्यू यॉर्क टाइम्स ने भी प्रकाशित किया है.
नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ और मोडेरना इंक में डॉ. फाउची के सहकर्मियों ने इस वैक्सीन को विकसित किया है.
अब 27 जुलाई से इस वैक्सीन का सबसे अहम पड़ाव शुरू होगा. तीस हज़ार लोगों पर इसका परीक्षण किया जाएगा और पता किया जाएगा कि क्या ये वैक्सीन वाक़ई कोविड-19 से मानव शरीर को बचा सकती है.
मंगलवार को शोधकर्ताओं ने 45 लोगों पर किए गए टेस्ट के नतीजे जारी किए. इनका बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा था.
इन वॉलंटियर्स के शरीर में न्यूट्रालाइज़िंग एंटी बॉडी विकसित हुई हैं. ये एंटीबॉडी इंफ़ेक्शन को रोकने के लिए अहम होते हैं.
रिसर्च टीम ने न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन में लिखा है कि वैक्सीन लेने वाले वॉलंटियर के रक्त में उतने ही एंटीबॉडी मिले हैं जितने कोविड-19 से ठीक हुए मरीज़ों के शरीर में मिलते हैं.
शोध का नेतृत्व करने वाली सिएटल के केसर परमानेंट वॉशिंगटन रिसर्च इंस्टिट्यूट से जुड़ीं डॉ. लीसा जैकसन कहती हैं, परीक्षण में आगे बढ़ने और ये पता करने के लिए कि क्या ये वैक्सीन वाक़ई में इंफ़ेक्शन से बचा सकती है, ये ज़रूरी बिल्डिंग ब्लॉक है.
अभी कोई गारंटी नहीं है कि अंतिम नतीजे कब मिलेंगे लेकिन सरकार को उम्मीद है कि साल के अंत तक ट्रायल पूरा कर लिया जाएगा. वैक्सीन विकसित करने के लिए लिहाज से देखा जाए तो ये रिकॉर्ड स्पीड है.
इस वैक्सीन के दो टीके दिए जाएंगे जिनके बीच एक महीने का फासला होगा.इस वैक्सीन को कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं है.
लेकिन शोध में शामिल आधे से ज़्यादा लोगों ने फ्लू जैसा रिएक्शन दर्ज किया है. ऐसा दूसरी वैक्सीन के साथ होना असामान्य बात नहीं है.
टीकाकरण के बाद सिर दर्द, ठंडा महसूस करना,बुख़ार आना या टीके की जगह दर्द होना आम बात है. जिन तीन प्रतिभागियों को अधिक मात्रा में डोज़ दी गई थी उनमें ये रिएक्शन अधिक गंभीर थे. अब उस मात्रा का परीक्षण नहीं किया जा रहा है.
कुछ रिएक्शन कोरोना वायरस संक्रमण के लक्षण जैसे ही हैं, लेकिन वो अस्थायी हैं. ये एक दिन तक रहते हैं और टीका लगाए जाने के तुरंत बाद दिखने शुरू हो जाते हैं.
वांडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर से जुड़े शोधकर्ता डॉ. विलियम शाफ़नर कहते हैं कि ये कोरोना जैसी महामारी से सुरक्षा की छोटी सी क़ीमत है. डॉ. शाफ़नर इस शोध से जुड़े हुए नहीं है.
उन्होंने वैक्सीन के शुरुआती नतीजों को अच्छा क़दम बताया है. उन्हें उम्मीद है कि दवा के अंतिम ट्रायल से पता चल सकेगा कि ये सुरक्षित और प्रभावी है या नहीं. ये नतीजे अगले साल की शुरुआत तक मिल जाएंगे.
शाफनर कहते हैं कि ये शानदार होगा, बशर्ते सब कुछ अपने समय पर हो.मंगलवार को शुरुआती नतीजे आने के बाद अमरीकी शेयर बाज़ार में मोडेरना इंक के शेयरों के दाम पंद्रह प्रतिशत तक बढ़ गए.
अमरीका के मैसाचुसेट्स के कैंब्रिज स्थित इस कंपनी के शेयर इस साल चार गुणा तक बढ़ गए हैं. मंगलवार को जो शोध नतीजे जारी किए गए हैं उसमें सिर्फ़ युवा शामिल थे. आगे होने जा रहे टेस्ट में बुज़़ुर्गों को भी शामिल किया जा रहा है. कोविड-19 महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित बुज़ुर्ग ही हुए हैं.
समाचार एजेंसी एसोसिएडेट प्रेस के मुताबिक शोध के नतीजे अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं और नियामक उनका विश्लेषण कर रहे हैं.
फाउची का कहना है कि अंतिम दौर के परीक्षणों में बुज़़ुर्गों को भी शामिल किया जाएगा. इसके अलावा गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों पर भी परीक्षण किया जाएगा. इस वायरस का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर ही हुआ है जो पहले से किसी ना किसी बीमारी से पीड़ित थे.
यही नहीं अमरीका में काले और लातिन मूल के लोग भी इस संक्रमण से ज़्यादा प्रभावित हुए हैं.दुनिया भर में क़रीब दो दर्जन वैक्सीन अपने ट्रायल के अंतिम चरण में हैं. चीन और ब्रिटेन की ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन भी जल्द ही परीक्षणों के अंतिम चरण में आ रही हैं.
तीस हज़ार लोगों पर होने जा रहा इस वैक्सीन का शोध अब तक कोरोना की संभावित वैक्सीन का सबसे बड़ा शोध होगा.
हालांकि ये वैक्सीन अकेली ऐसी वैक्सीन नहीं है जिसका इस बड़े पैमाने पर परीक्षण होगा. सरकार ऑक्सफ़र्ड की वैक्सीन और जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन पर भी बड़ा शोध करने की तैयारी कर रही है. इसके अलावा फ़ाइज़र कंपनी की वैक्सीन का भी बड़े पैमाने पर अध्ययन होगा.
लोग इन शोध के लिए स्वयंसेवक के तौर पर अपना पंजीकरण करा सकते हैं. डॉ.फाउची कहते हैं कि लोगों को लगता है कि इस दौड़ में कोई एक वैक्सीन जीतेगी लेकिन मैं सबका हौसला बढ़ा रहा हूं.वो कहते हैं, हमें कई वैक्सीन चाहिए, हमें पूरी दुनिया के लिए वैक्सीन चाहिए, न कि किसी एक ही देश के लिए.
दुनिया भर में सरकारें वैक्सीनों में निवेश कर रही हैं, ताकि किसी वैक्सीन के प्रभावी सिद्ध होने पर समय पर टीकाकरण किया जा सके. (बीबीसी)
नई दिल्ली/दिसपुर ,15 जुलाई। असम में मगलवार को बाढ़ की वजह से पांच जिलों में कम से कम 9 और लोगों की मौत हो गई, जिससे यहां बाढ़ में जान गंवाने वालों की संख्या बढ़कर 59 हो गई है। राज्य के 33 में से 28 जिले बुरी तरह बाढ़ से बेहाल हैं, जिससे 33 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं।
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) के अधिकारियों ने कहा कि बीते चार हफ्तों में बिश्वनाथ, तिनसुकिया, लखीमपुर, बनगाइगांव, कामरूप, गोलाघाट, शिवसागर, मोरीगांव, धुबरु, नगांव, नलबारी, बारपेटा, धेमाजी, उदलगुड़ी, गोलपारा और डिब्रूगढ़ जिलों में बाढ़ की वजह से 59 लोगों की मौत हो गई है। वहीं 22 मई से अब तक विभिन्न भूस्खलन की घटनाओं में 26 लोग मारे गए हैं।
अधिकारियों ने कहा कि सोमवार को धुबरी और मोरीगांव में दो लोगों की डूबने से मौत हो गई, लेकिन इन मौतों का बाढ़ से कोई संबंध नहीं है। अधिकारियों ने बताया कि राज्य के 12 जिलों में ब्रह्मपुत्र समेत आठ नदियों में पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है। एएसडीएमए के अधिकारियों ने रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि इन जिलों के 3,371 गावों के 33 लाख लोग प्रभावित हैं और 28 जिलों की 128,495 हेक्टेयर कृषि भूमि भी इसकी चपेट में है।
गौरतलब है कि असम में इन दिनों कोरोना का कहर अपने चरम पर है। हर दिन के साथ राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। राज्य में अब तक कुल 17,807 लोग करोना पॉजिटिव पाए गए हैं। राज्य में अब तक कोरोना से 46 लोगों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा रोज बढ़ता जा रहा है। इस बीच बाढ़ ने अलग तबाही मचा रखी है। बाढ़ के कारण राज्य के एक बड़े भाग में कोरोना से बचाव के उपाय प्रभावित हुए हैं और बीजेपी सरकार असहाय नजर आ रही है।(navjivan)
नई दिल्ली,15 जुलाई। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने मंगलवार को कहा कि अगले छह महीने में बैंकों के फंसे कर्ज यानी एनपीए में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि समस्या को जितनी जल्दी पहचान लिया जाए, उतना अच्छा होगा.
कोविड-19 और उसकी रोकथाम के लिये ‘लॉकडाउन’ से कंपनियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और उनमें से कई कर्ज की किस्त लौटाने में कठिनाइयों का सामना कर रही हैं.
राजन ने ‘नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लायड एकोनॉमिक रिसर्च’ (एनसीएईआर) द्वारा आयोजित ‘इंडिया पॉलिसी फोरम’ 2020 के एक सत्र में कहा, ‘अगर हम वाकई में एनपीए के वास्तविक स्तर को पहचाने तो अगले छह महीने में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) का स्तर काफी अप्रत्याशित होने जा रहा है…हम समस्या में हैं और जितनी जल्दी इसे स्वीकार करेंगे, उतना बेहतर होगा. क्योंकि हमें वाकई में इस समस्या से निपटने की जरूरत है.’
मंगलवार को प्रकाशित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में आर्थिक सुधारों पर एक लेख का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें जनधन खातों की सफलता की बात कही गयी है लेकिन कुछ अर्थशास्त्रियों की राय इससे अलग हैं.
राजन ने कहा, ‘हमें अभी भी लक्षित लोगों को लाभ अंतरण करने में कठिनाई हो रही है. लोग अभी भी सार्वभौमिकरण की बात कर रहे हैं क्योंकि हम लक्ष्य नहीं कर सकते. (जैसा कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के विजय जोशी ने रेखांकित किया है). जनधन ने उस रूप से काम नहीं किया जैसा कि इसका प्रचार-प्रसार किया गया.’
हालांकि उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की एक सकारात्मक चीज कृषि क्षेत्र है जो वास्तव में अच्छा कर रहा है.
राजन ने कहा, ‘निश्चित रूप से सरकार ने सुधारों को आगे बढ़ाया है. इन सुधारों की लंबे समय से बात हो रही थी. उसके सही तरीके से क्रियान्वयन होने से अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को लाभ होगा.’(theprint)
नई दिल्ली,15 जुलाई। WhatsApp यूजर्स के ऊपर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। यूजर्स को वॉट्सऐप के फेक वर्जन के बारे में अलर्ट किया जा रहा है। वॉट्सऐप से जुड़ी खबरों और अपडेट को ट्रैक करने वाली वेबसाइट WABetaInfo ने वॉट्सऐप के मॉडिफाइड वर्जन के बारे में एक चेतावनी जारी की है। WAbetaInfo ने अपने ट्वीट में लिखा कि बेहतर प्रिवेसी और सिक्यॉरिटी के लिए वॉट्सऐप के मॉडिफाइड वर्जन को बेहतर विकल्प नहीं कहा जा सकता।
इस ट्वीट में यह समझाने की कोशिश की गई है कि वॉट्सऐप के मॉडिफाइड वर्जन आकर्षक तो लग सकते हैं, लेकिन यह इतने भी अच्छे नहीं कि इनके लिए किसी तरह का रिस्क उठाया जाए।
मैन-इन-द-मिडिल अटैक का खेल
मॉडिफाइड वॉट्सऐप के जरिए हैकर्स आसानी से यूजर्स को अपना शिकार बना सकते हैं। ये फेक वॉट्सऐप डिवेलपर्स मैन-इन-द-मिडिल (MITM) अटैक से हैकर्स के डेटा की चोरी कर सकते हैं। इसी अटैक की मदद से हैकर सॉफ्टवेयर को एडिट करके चैटिंग को ऐक्सेस कर सकते हैं और मेसेज को पढ़ने के साथ ही उन्हें एडिट भी कर सकते हैं।
अकाउंट बैन होने का खतरा
जारी की कई वॉर्निंग में यह भी बताया गया वॉट्सऐप के मॉडिफाइड वर्जन को कंपनी ने वेरिफाइ नहीं किया है। साथ ही अगर कोई यूजर इनका इस्तेमाल करता है, तो उसके वॉट्सऐप अकाउंट को बैन किया जा सकता है। कई बार यूजर्स कुछ अधिक फीचर्स की लालच में ऑरिजिनल की बजाय फेक वर्जन को इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। यह सिक्यॉरिटी और प्रिवेसी के लिए सही नहीं है।
बीटा वर्जन में सबसे पहले मिलेंगे नए फीचर
वॉट्सऐप के ऑफिशल वर्जन को आप ऐपल ऐप स्टोर या गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं। साथ ही अगर आप वॉट्सऐप के किसी फीचर को दूसरे यूजर्स के मुकाबले पहले यूज करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको वॉट्सऐप के बीटा वर्जन को इस्तेमाल करना होगा।(navbharat)
Unbelievable Guitarist SHOCKS Judges on America's Got Talent 2019 | Kids Got Talent
Kids Got Talent(youtube channel )
लखनऊ, 15 जुलाई। भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर सोमवार को आरोप लगाया कि उसके इशारे पर मुकदमा चलाया गया और राजनीतिक विद्वेष के चलते उन्हें गलत फंसाया गया.
बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की सुनवाई कर रही सीबीआई की विशेष अदालत के समक्ष पेश होने के बाद अदालत परिसर से निकलते हुए कल्याण सिंह ने संवाददाताआअें से कहा, ‘उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी इसलिए राजनीतिक विद्वेष के कारण मेरे ऊपर निराधार और गलत आरोप लगाकर केंद्र सरकार के इशारे पर मुकदमा चलाया गया.’
उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री होने के नाते मैंने और मेरी सरकार ने अयोध्या स्थित विवादित ढांचे की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए थे तथा उक्त ढांचे की सुदृढ़ सुरक्षा की दृष्टि से त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई थी.’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके 88 वर्षीय कल्याण सिंह ने कहा कि समय-समय पर संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को विवादित ढांचे की सुरक्षा हेतु स्थिति के अनुसार सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए थे.
उन्होंने कहा, ‘इस प्रकरण में तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार के इशारे पर राजनीतिक विद्वेष से मेरे उपर झूठे और निराधार आरोप लगाकर मुझे गलत फंसाया गया है. मैं निर्दोष हूं.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सीबीआई की विशेष अदालत कुल 354 अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच के बाद सीआरपीसी की धारा 313 के तहत सभी 32 अभियुक्तों के बयान दर्ज कर रही है. मामले में दर्ज कुल 49 आरोपियों में से अब तक 17 की मौत हो चुकी है.
इस मामले के आरोपियों में पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी शामिल हैं, जिनका बयान अभी तक दर्ज नहीं हुआ है.
इन दोनों नेताओं के वकीलों ने विशेष अदालत से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बयान दर्ज कराने का अनुरोध किया है. इस मामले के एक अन्य अभियुक्त राम चंद्र खत्री अभी एक अन्य मामले में हरियाणा की सोनीपत जेल में हैं.
अदालत ने अपने कार्यालय को आदेश दिया है कि एनआईसी को पत्र भेजा जाए कि इन अभियुक्तों के बयान वीडियो कांफ्रेसिंग से दर्ज करने की व्यवस्था करे.
एक अन्य अभियुक्त ओम प्रकाश पांडेय के खिलाफ अदालत ने पूर्व में एनबीडब्ल्यू जारी रख रखा है. उसके अनुपालन में सीबीआई की ओर से रिपेार्ट दी गई कि उक्त अभियुक्त के भाई महेंद्र पांडे ने बताया कि ओम प्रकाश काफी पहले साधु हो चुके हैं और वह घर नहीं आते.
उन्होंने हालांकि एक हफ्ते में उनका पता करने की बात कही, इस पर अदालत ने सीबीआई को महेंद्र पांडे के संपर्क में रहने का आदेश दिया था.
दिसंबर 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद कारसेवकों द्वारा ढहाई गई थी. उनका दावा था कि इस स्थान पर भगवान राम का मंदिर था.
सीबीआई की विशेष अदालत उच्च्तम न्यायालय के आदेश पर इस मामले की सुनवाई रोजाना कर रही है और इसे 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी करनी है.
बीते दो जुलाई को वरिष्ठ भाजपा नेता उमा भारती भी अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई अदालत में पेश हुईं थी.
उन्होंने विशेष सीबीआई अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा था कि 1992 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक बदले की भावना से उन पर बाबरी विध्वंस का आरोप मढ़ा था. वह बिल्कुल निर्दोष हैं.
उन्होंने कहा था कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने बाबरी विध्वंस मामले में अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए उनके तथा अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. सभी को राजनीतिक दबाव में गलत तरीके से फंसाया गया.
हालांकि अदालत के बाहर आकर उन्होंने संवाददाताओं से कहा था कि राम मंदिर अभियान से जुड़कर वह खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं.
उन्होंने कहा था, ‘मैं तो राम भक्त हूं और राम भक्ति के भाव की वजह से मैंने इस पूर्ण अभियान में भाग लिया. इसके लिए मैं हमेशा खुद को गौरवशाली मानती हूं.’
मालूम हो कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 40 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद नौ नवंबर को बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि जमीन विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा ख़ारिज करते हुए हिंदू पक्ष को जमीन देने को कहा था.(thewire)
ट्रम्प के ख़िलाफ़ एमआईटी, हार्वर्ड अदालत चले गए थे
वॉशिंगटन, 15 जुलाई। अमरीका ने उन छात्रों को वापस भेजने का फ़ैसला टाल दिया है जिनकी क्लास पूरी तरह से ऑनलाइन संचालित हो रही हैं.
बीते सप्ताह ट्रंप प्रशासन ने घोषणा की थी कि उन सभी छात्रों को अमरीका से वापस भेजा जाएगा जिनके सिलेबस की सभी क्लास ऑनलाइन संचालित हो रही हैं.
अब ट्रंप प्रशासन अपने इस फ़ैसले से पलट गया है. सरकार की इस योजना के ख़िलाफ़ मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अदालत चले गए थे.
मैसाचुसेट्स के डिस्ट्रिक्ट जज एलिसन बरो का कहना है कि अब सभी पक्षों में समझौता हो गया है.
न्यू यॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ समझौते के तहत मार्च में लागू की गई नीति को फिर से लागू कर दिया गया है. इसके तहत अंतरराष्ट्रीय छात्र ऑनलाइन क्लास लेते हुए भी वैधानिक तौर पर छात्र वीज़ा पर अमरीका में रह सकते हैं.
हर साल लाखों विदेशी छात्र अमरीकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते हैं और अमरीका में कमाई का ये बड़ा ज़रिया हैं.
हार्वर्ड ने हाल ही में घोषणा की थी कि कोरोना संक्रमण की चिंताओं के चलते क्लास ऑनलाइन ही संचालित की जाएंगी. अमरीका के कई और संस्थानों की तरह ही एमआईटी ने भी कहा है कि वर्चुअल क्लासेज ही चलेंगी.
क्या थी ट्रंप प्रशासन की घोषणा?
बीते सप्ताह विदेशी छात्रों से कहा गया था कि वो अमरीका में तब ही रह सकते हैं जब वो क्लास यूनिवर्सिटी जाकर लेंगे.
मार्च में जब कोरोना संक्रमण गहराया था तो बहुत से छात्र अपने देश लौट गए थे. इन छात्रों से कहा गया था उन्हें वापस आने की अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि उनकी क्लास अब ऑनलाइन चल रहीं हैं.
अमरीका के प्रवासी और कस्टम निदेशालय (आईसीई) ने कहा था कि ये नियम न मानने पर लोगों को वापस उनके देश भेजा जा सकता है.
ट्रंप सरकार के फैसले से परेशान हैं भारतीय छात्र
आईसीई स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विज़िटर प्रोग्राम संचालित करता है. आईसीई ने छात्रों को अमरीका में रहकर सिलेबस पूरे करने की अनुमति दी थी.
लेकिन बाद में ट्रंप प्रशासन ने कहा था कि जो छात्र सिर्फ़ ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें जाना होगा.
संस्थानों की क्या प्रतिक्रिया थी?
सरकार के फ़ैसले के दो दिन बाद ही हार्वर्ड और एमआईटी ने इस आदेश के ख़िलाफ़ कई मुक़दमे दायर कर दिए थे. संस्थानों ने इसे एकतरफ़ा और सत्ता का दुरुपयोग कहा था. दर्जनों और संस्थानों ने अदालती कार्रवाई का समर्थन किया था.
राष्ट्रपति ट्रंप चाहते हैं कि नए शिक्षा सत्र में स्कूल और कॉलेज खुलें. वो इसे अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने के तौर पर देखते हैं. कोरोना वायरस ने अमरीका की अर्थव्यवस्था और राष्ट्रपति ट्रंप की आगामी चुनावों में दावेदारी को बुरी तरह प्रभावित किया है.
ट्रंप को लगता है कि यदि अर्थव्यवस्था पटरी पर आती है तो उनके दोबारा चुने जाने की संभावना मज़बूत होगी.
इस आदेश से एफ-1 और एम-1 वीज़ा धारक छात्र प्रभावित हुए थे जो अकादमिक या प्रशिक्षण क्लासेज लेने के लिए अमरीका आते हैं. अमरीका के गृह विभाग ने साल 2019 में 388839 एफ़ वीज़ा और 9518 एम वीज़ा जारी किए थे.
अमरीका के वाणिज्य विभाग के मुताबिक साल 2018 में विदेशी छात्रों से अमरीकी अर्थव्यवस्था को 45 अरब डॉलर का फ़ायदा हुआ था.(bbc)
सुंदर पिचाई क्यों भेज रहे अरबों डॉलर
नई दिल्ली,15 जुलाई। विश्वविख्यात टेक कंपनी गूगल ने भारत के लिए एक स्पेशल फ़ंड बनाया है- गूगल फोर इंडिया डिजिटाइज़ेशन फ़ंड. वो अगले पाँच से सात साल में भारत में 10 अरब डॉलर यानी लगभग 750 अरब रुपए का भारी निवेश करेगा.
गूगल कंपनियों में पैसा लगाएगी, या साझीदारी करेगी? इस बारे में कंपनी के सीईओ सुंदर पिचाई ने अख़बार इकोनॉमिक्स टाइम्स से कहा - "हम निश्चित तौर पर दोनों तरह की संभावनाओं को देखेंगे, हम दूसरी कंपनियों में पैसा लगाएँगे, जो हम पहले से ही अपनी ईकाई गूगल वेंचर्स के ज़रिए कर रहे हैं, मगर निश्चित तौर पर ये फ़ंड जितना बड़ा है, उसमें ये भी संभावना है कि हम दूसरी बड़ी कंपनियों में भी निवेश करेंगे. हम डेटा सेंटर जैसे बड़े इंफ़्रास्ट्रक्चर से जुड़े निवेश भी करेंगे. हमारे फ़ंड का बहुत बड़ा हिस्सा भारतीय कंपनियों में निवेश होगा."
तो सुंदर पिचाई ने अभी पूरे पत्ते नहीं खोले हैं, कि वो क्या करेंगे. ऐसे में ये कुछ बुनियादी सवाल हैं जो तैर रहे हैं -
कहाँ पैसा लगाने जा रहा है गूगल?
निवेश है, तो इसका रिटर्न भी आएगा. किसकी जेब से मोटी होगी गूगल की तिजोरी?
इसका आम लोगों पर भी कोई असर होगा, या ये सिर्फ़ तकनीकी कंपनियों के काम की ख़बर है?
क्या इसमें कुछ ऐसा है जिससे लोगों को सतर्क होना चाहिए?
ये कुछ ज़रूरी सवाल हैं जिन्हें समझने से पहले ये समझ लेना ज़रूरी है कि हाल के समय में गूगल भारत में पैसा लगाने का एलान करने वाली अकेली दिग्गज कंपनी नहीं है.
गूगल से पहले इसी साल अमेज़ॉन ने भारत में एक अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की थी. उसने इससे पहले भी पाँच अरब डॉलर के निवेश का एलान किया था.
इसके बाद फ़ेसबुक ने रिलायंस के जियो में 5.7 अरब डॉलर लगाने का एलान किया.
और पिछले महीने माइक्रोसॉफ़्ट की निवेश इकाई एमवनटू ने कहा कि वो भारत में निवेश की संभावनाओं के लिए अपना एक दफ़्तर खोलेगी जिसमें मुख्यतः बिज़नेस-टू-बिज़नेस सॉफ़्टवेयर स्टार्टअप कंपनियों पर ध्यान दिया जाएगा.
इसका सीधा जवाब है- बाज़ार. मगर बाज़ार तो भारत पहले से भी था, फिर अचानक से इस वक़्त ये बड़ी कंपनियाँ यहाँ पैसा क्यों ठेल रही हैं?
जानकार बताते हैं कि भारत में ये बाज़ार अब बदल रहा है. ख़ास तौर से डिज़िटल क्रांति और स्मार्ट फ़ोन क्रांति आने के बाद.
अख़बार फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस के एग्ज़ेक्यूटिव एडिटर और तकनीकी मामलों के जानकार ऋषि राज कहते हैं कि पिछले कुछ समय में ये दिखने लगा है कि इन कंपनियों के काम में एक कन्वर्जेंस की स्थिति आती जा रही है.
ऋषि राज कहते हैं, "अब एक ही कंपनी टेलिकॉम सेवा देती है, वही एंटरटेनमेंट भी उपलब्ध कराती है, ई-कॉमर्स भी करती है, वही ई-पेमेंट का ज़रिया है, वो सर्च इंजिन का भी काम करती है, नेविगेशन का भी काम करती हैं. पहले भी कन्वर्जेंस की बात होती थी, पर पहले वो बहुत मोटे तौर पर होती थी, कि टीवी-मोबाइल का कन्वर्जेंस होगा, अब उसका दायरा बहुत बढ़ गया है."
टेक्नोलॉजी और इससे जुड़े बिज़नेस मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार माधवन नारायण कहते हैं कि इंटरनेट सुपरमार्केट बन चुका है जहाँ सॉफ़्टवेयर भी बिकता है, कॉन्टेन्ट भी. वो कहते हैं जैसे अमेज़ॉन अब प्रोड्यूसर बन गया है, फ़िल्में रिलीज़ हो रही हैं वहाँ, फ़ेसबुक की तो बात ही अलग है, दोस्ती से लेकर कारोबार तक हो रहा है.
माधवन नारायण कहते हैं, "कॉन्टेन्ट, कॉमर्स, कनेक्टिविटी और कम्युनिटी- ये चारों सी इंटरनेट में उपलब्ध हैं. और ये फ़ैन्ग यानी फ़ेसबुक, अमेज़ॉन, नेटफ़्लिक्स और गूगल- इनमें ये चारों सी उपलब्ध हैं. नेटफ़्लिक्स को अगर थोड़ा अलग कर दें तो बाक़ी की तीनों कंपनियाँ छोटे व्यवसायियों के काम आ रही हैं, जहाँ आप ऐडवर्टाइज़ भी कर सकते हैं, उनके सॉफ़्टवेयर भी किराए पर ले सकते हैं, जैसे वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग आदि. ये तीनों कंपनियाँ कहीं ना कहीं छू जाती हैं सबको, चाहे यूट्यूब हो, ओला-उबर हो, डिज़िटल क्लास हों."
वो कहते हैं कि ऐसी स्थिति में जब भारत में इतनी भारी आबादी और बाज़ार का मिश्रण हो तो ज़ाहिर है कि बड़ी कंपनियाँ इनमें दिलचस्पी लेंगी.
इंटरनेट का फैलाव और बढ़ती कमाई
भारत की एक अरब 30 करोड़ की आबादी में मोबाइल फ़ोन लगभग एक अरब हाथों में पहुँच चुके हैं, लेकिन इनमें 40 से 50 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास साधारण फ़ीचर फ़ोन हैं जिनमें इंटरनेट नहीं है. लेकिन फ़ीचर फ़ोन और स्मार्टफ़ोन का अंतर लगातार घट रहा है.
माधवन नारायणन कहते हैं कि ये संख्या अगले चार-पाँच साल में आराम से दोगुनी हो जाएगी क्योंकि फ़ोन सस्ते हो रहे हैं और डेटा प्लान भी.
ऋषि राज कहते हैं कि ये जो 60 करोड़ इंटरनेट स्मार्टफ़ोन ग्राहक हैं, वो मोबाइल ऑपरेटर्स के पास है, और उनके माध्यम से ही वो अमेज़ॉन प्राइम, नेटफ़्लिक्स जैसी कंपनियों की सामग्रियाँ उपभोक्ताओं तक पहुँच रही हैं.
वो कहते हैं, "मेरे हिसाब से गूगल को ये आभास हो गया है कि यही समय है भारत में जब वो अपनी पहले से उपलब्ध सेवाओं को किसी भी कंपनी के साथ टाइ-अप कर ले, तो वो पैसा जो वो लगाएगी, वो किसी ना किसी तरह से उपभोक्ता तक पहुँचे ताकि वो किसी ना किसी तरह से उससे कमाई भी कर सकें, जो अभी तक नहीं हो पा रही था."
गूगल जैसी बड़ी अंतराष्ट्रीय कंपनियों के भारत की ओर रुख़ करने की एक और बड़ी वजह है डेटा जो भारत मे बड़े आराम से इकट्ठा किया जा सकता है.
ऋषि कहते हैं,"ये कंपनियाँ भारत इसलिए भी आती हैं क्योंकि इन्हें यहाँ डेटा मिल जाता है, और डेटा प्रोफ़ाइलिंग से कंपनियों के पास एक बहुत बड़ा भंडार बन जाता है जिससे वो उपभोक्ताओं की आदतों का पता लगा सकते हैं, मार्केट रिसर्च कर सकते हैं."
लेकिन इससे फिर चिंता भी पैदा होती है कि कहीं इस डेटा का ग़लत इस्तेमाल तो नहीं होने लगेगा?
ऋषि कहते हैं कि सबसे परेशानी की बात ये है कि जिस तेज़ी से ये काम बढ़ रहा है, उस हिसाब से डेटा की निगरानी के बारे में, उनको सुरक्षित रखने के बारे में, उनके एकाधिकार को नियंत्रित करने के बारे में कोई काम नहीं हुआ है.
वो कहते हैं,"उसका कोई ज़रिया या प्रक्रिया ही नहीं है तो मंज़ूरी या नामंज़ूरी कैसे देंगे? इस पर काम हो रहा है मगर धीमी गति से हो रहा है और पहले हमने देखा है कि प्लेयर अगर बहुत बड़ा हो जाए तो जो रेगुलेशन आता है, वो इससे कमज़ोर ही आता है."
माधवन भी कहते हैं, "डेटा को कहाँ और कैसे रखा जाए, इसे लेकर आने वाले दिनों में रिलायंस-जियो और गूगल-फ़ेसबुक-अमेज़ॉन जैसी कंपनियों के साथ एक टकराव हो सकता है."
हालाँकि माधवन कहते हैं कि निजता की रक्षा के नाम पर आने वाले दिनों में मार्केट में पाबंदियाँ ना लगें, शायद इसी को ध्यान में रखकर ये कंपनियाँ ये जताने की कोशिश कर रही हैं कि हम इस डेटा का इस्तेमाल केवल विज्ञापन के लिए करेंगे ना कि निजी जीवन में दखल देने के लिए.
छवि की चिन्ता
गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के भारत में जमकर निवेश करने की एक और वजह ये दिखाना भी है कि वो भारत को केवल बाज़ार भर नहीं मानतीं.
माधवन नारायणन कहते हैं, "ये कंपनियाँ चाहती हैं कि वो ये छवि ना हो कि वो भारत में केवल पैसा बनाने आए हैं, वो इस बात को सरकारों और लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं, कि वो हैं तो अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ हैं पर चाहती हैं कि भारत में पैसे लगाना चाहती हैं कि उनकी एक छवि अच्छी हो ताकि वो राष्ट्रवाद के पैरों तले ना कुचली जाएँ."
फिर ये कंपनियाँ ऐसा भी प्रयास करना चाहती हैं कि उनकी नज़र केवल उपभोक्ताओं पर ही नहीं है.
ऋषि राज कहते हैं, "इन कंपनियों के बहुत सारे प्रोजेक्ट ऐसे भी होते हैं जिनमें इन कंपनियों को सरकारों के साथ प्रोजेक्ट करना होता है, तो उनके लिए सरकार को ये दिखाना भी ज़रूरी हो जाता है कि एक कंपनी ने अगर निवेश किया तो मैं भी पीछे नहीं हूँ, क्योंकि ऐसा नहीं करने पर सरकारी प्रोजेक्टों के जो फ़ायदे होते हैं उनसे आप चूक सकते हैं."
टैक्स बचाने की कोशिश तो नहीं?
गूगल या डिज़िटल सर्विस देने वाली कंपनियों पर टैक्स लगाने की बात दुनिया भर में चल रही है क्योंकि ये कंपनियाँ सर्च और विज्ञापन से अच्छी ख़ासी कमाई करती हैं, तो जानकारों के अनुसार भारत जैसे देश में निवेश करने के पीछे एक सोच ये भी हो सकती है.
माधवन कहते हैं,"वो अगर भारत जैसे बढ़ते बाज़ार में आते हैं तो अपने मुनाफ़े का एक हिस्सा वो यहीं निवेश कर देना चाहेंगे जिससे कि उनका ख़र्चा ज़्यादा हो जाएगा, उनका काम भी फैल जाएगा और साथ ही टैक्स भी कम देना पड़ेगा."
तो इसमें कहीं कोई चिन्ता वाली बात तो नहीं?
माधवन कहते हैं कि ये इंडस्ट्री ऐसी है जिसमें जल्दबाज़ी में आरोप लगाना भी ठीक नहीं होगा, जल्दबाज़ी में उछलना-कूदना भी ठीक नहीं होगा.
वो कहते हैं,"चिन्ता की बात नहीं है पर चिन्तन ज़रूर होना चाहिए, गड़बड़ियाँ तो भारतीय कंपनियाँ भी करती हैं, कर्ज़ लेकर भाग जाते हैं लोग, टैक्स चोरी करते हैं, पर ये अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ वैसी नहीं होतीं, फिर भी वो समाज सेवा तो करने आए नहीं हैं, इसलिए हाथ मिलाना है, पर नज़र नहीं झुकाना है."
ऋषि कहते हैं कि ये कंपनियाँ भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश को लेकर काफ़ी सतर्क होंगी क्योंकि यहाँ अगर कुछ भी आप कामयाबी से लॉन्च कर देते हैं जिससे कि आप उपभोक्ताओं तक पहुँच सकते हैं, उससे पैसे बना सकते हैं, तो इस मॉडल को कंपनियाँ बाकी ऐसे ही देशों में भी जाकर दोहरा सकती हैं.
तो गूगल को भारत पर 10अरब डॉलर का प्यार क्यों आया, इसका जवाब माधवन नारायणन के इस कथन से मिल सकता है- "भारत के पक्ष में जो बातें जाती हैं, उन सब बातों को अगर आप ध्यान में रखें तो गूगल जो 10 अरब डॉलर का निवेश करेगा, वो राशि आपको कम लगेगी, वो इतनी बड़ी इकोनॉमी के साथ रोमांस कर रहे हैं तो कुछ पैसा तो फूलों और चॉकलेट पर ख़र्च करेंगे ही."(bbc)
-श्रवण गर्ग
राहुल गांधी केवल सवाल पूछते हैं ! प्रधानमंत्री से, भाजपा से ; पर अपनी ही पार्टी के लोगों के द्वारा खड़े किए जाने वाले प्रश्नों के जवाब नहीं देते।राहुल न तो कांग्रेस के अब अध्यक्ष हैं और न ही संसद में कांग्रेस दल के नेता।वे इसके बावजूद भी सवाल पूछते रहते हैं और प्रधानमंत्री से उत्तर की माँग भी करते रहते हैं।कई बार तो वे पार्टी में ही अपने स्वयं के द्वारा खड़े किए जाने वाले सवालों के जवाब भी नहीं देते और उन्हें अधर में ही लटकता हुआ छोड़ देते हैं।मसलन, लोक सभा चुनावों में पार्टी के सफ़ाये के लिए उन्होंने नाम लेकर जिन प्रमुख नेताओं के पुत्र-मोह को दोष दिया था उनमें एक राजस्थान के और दूसरे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे। क्या हुआ उसके बाद ? अशोक गेहलोत भी बने रहे और कमलनाथ भी।जो पहले चले गए वे ज्योतिरादित्य सिंधिया थे और अब जो लगभग जा ही चुके हैं वे सचिन पायलट हैं।
इसे अतिरंजित प्रचार माना जा सकता है कि सचिन की समस्या केवल गेहलोत को ही लेकर है।उनकी समस्या शायद राहुल गांधी को लेकर ज़्यादा बड़ी है। राहुल का कम्फ़र्ट लेवल या तो अपनी टीम के उन युवा साथियों के साथ है जिनकी कि कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ नहीं हैं या फिर उन सीनियर नेताओं से है जो कहीं और नहीं जा सकते। क्या ऐसे भी किसी ड्रामे की कल्पना की जा सकती थी जिसमें सचिन की छह महीने से चल रही कथित ‘साज़िश’ से नाराज़ होकर गेहलोत घोषणा करते कि वे अपने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ रहे हैं ? वैसी स्थिति में क्या भाजपा गेहलोत को अपने साथ लेने को तैयार हो जाती ? हक़ीक़त यह है कि जिन विधायकों का इस समय गेहलोत को समर्थन प्राप्त है उनमें अधिकांश कांग्रेस पार्टी के साथ हैं और जो छोड़ कर जा रहे हैं वे सचिन के विधायक हैं।यही स्थिति मध्य प्रदेश में भी थी।जो छोड़कर भाजपा में गए उनकी गिनती आज भी सिंधिया खेमे के लोगों के रूप में होती है, ख़ालिस भाजपा कार्यकर्ताओं की तरह नहीं।
सवाल यह भी है कि कांग्रेस पार्टी को अगर ऐसे ही चलना है तो फिर राहुल गांधी किसकी ताक़त के बल पर नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती देना चाह रहे हैं ? वे अगर भाजपा पर देश में प्रजातंत्र को ख़त्म करने का आरोप लगाते हैं तो उन्हें इस बात का दोष भी अपने सिर पर ढोना पड़ेगा कि अब जिन गिने-चुने राज्यों में कांग्रेस की जो सरकारें बची हैं वे उन्हें भी हाथों से फिसलने दे रहे हैं।नए लोग आ नहीं रहे हैं और जो जा रहे हैं उनके लिए शोक की कोई बैठकें नहीं आयोजित हो रही हैं।असंतुष्ट नेताओं में सचिन और सिंधिया के साथ-साथ मिलिंद देवड़ा ,जितिन प्रसाद ,प्रियंका चतुर्वेदी और संजय झा की भी गिनती की जा सकती है।
गोवा तब कैसे हाथ से निकल गया उसकी चर्चा न करें तो भी देखते ही देखते मध्य प्रदेश चला गया, अब राजस्थान संकट में है ।महाराष्ट्र को फ़िलहाल कोरोना बचाए हुए है ।छत्तीसगढ़ सरकार को गिराने का काम ज़ोरों पर है।संकट राजस्थान का हो या मध्य प्रदेश का ,यह सब बाहर से पारदर्शी दिखने वाली पर अंदर से पूरी तरह साउंड-प्रूफ़ उस दीवार की उपज है जो गांधी परिवार और असंतुष्ट युवा नेताओं के बीच तैनात है।इस राजनीतिक भूकम्प-रोधी दीवार को भेदकर पार्टी का कोई बड़ा से बड़ा संकट और ऊँची से ऊँची आवाज़ भी पार नहीं कर पाती है।
पिछले साल लोक सभा के चुनाव परिणाम आने के बाद कश्मीर में पीडीपी की नेता महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट करते हुए ‘शुभकामना’ संदेश तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा था पर ‘कामना’ संदेश कांग्रेस के लिए था कि उसके पास भी एक ‘अमित शाह’ होना चाहिए।सवाल यह है कि गांधी परिवार या कांग्रेस में किसी अमित शाह को बर्दाश्त करने की गुंजाइश अभी बची है क्या? और राहुल गांधी इसलिए मोदी नहीं बन सकते हैं कि वे अपने अतीत और परिवार को लेकर सार्वजनिक रूप से उस तरह से गर्व करने में संकोच कर जाते हैं जिसे वर्तमान प्रधानमंत्री न सिर्फ़ सहजता से कर लेते हैं बल्कि उसे अपनी विजय का हथियार भी बना लेते हैं।
अर्नब गोस्वामी द्वारा पिछले लोक सभा चुनावों के समय अपने चैनल के लिए लिया गया वह चर्चित इंटरव्यू याद किया जा सकता है जिसमें राहुल गांधी ने कहा था :’ मैंने अपना परिवार नहीं चुना।मैंने नहीं कहा कि मुझे इसी परिवार में पैदा होना है।अब दो ही विकल्प हैं :या तो मैं सब कुछ छोड़कर हट जाऊँ या फिर कुछ बदलने की कोशिश करूँ।’ राहुल गांधी दोनों विकल्पों में से किसी एक पर भी काम नहीं कर पाए।
कई लोग सवाल कर रहे हैं कि एक ऐसे समय जबकि कांग्रेस पार्टी चारों तरफ़ से घोर संकट में है ,क्या सचिन पायलट इस तरह से विद्रोह करके उसे और कमज़ोर नहीं कर रहे हैं ? इसका जवाब निश्चित ही एक बड़ी ‘हाँ’ में ही होना चाहिए पर साथ में यह जोड़ते हुए कि इस नए धक्के के बाद अगर पार्टी नेतृत्व जाग जाता है तो उसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए।हो सकता है इसके कारण वह भविष्य में हो सकने वाले दूसरे बहुत सारे नुक़सान से बच जाए।किसे पता सचिन यह विद्रोह वास्तव में कांग्रेस पार्टी को बचाने के लिए ही कर रहे हों !
कांग्रेस नेताओं ने घर पहुंचकर दी बधाई
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 14 जुलाई। सीबीएसई 12वीं बोर्ड परीक्षा में 99.6 प्रतिशत अंकों के साथ शहर के शिखर अग्रवाल ने पूरे छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक अंक प्राप्त किया है। उन्हें लगातार बधाईयां मिल रही हैं।
तिफरा निवासी किराना व्यवसायी पवन अग्रवाल और गृहणी सरिता अग्रवाल के पुत्र शिखर ने 500 में से 496 अंक हासिल किये हैं। गणित, भौतिकी और हिन्दी में उन्हें 100 में 100 अंक मिले। हालांकि सीबीएसई ने इस बार कोरोना संकट के चलते कई परीक्षाओं के रद्द होने और औसत अंक देने का हवाला देते हुए प्रावीण्य सूची घोषित नहीं की है। सेंट जेवियर्स स्कूल के छात्र शिखर ने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता, शिक्षक और कोचिंग के शिक्षकों को दिया है। वे आईआईटी करने की चाह रखते हैं।
शिखर की इस सफलता पर उसके घर में बधाई देने वालों का तांता लगा है। महापौर रामशरण यादव, प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव, शहर कांग्रेस अध्यक्ष प्रमोद नायक, महामंत्री देवेन्द्र सिंह बाटू, राजेन्द्र शुक्ला, अरविन्द शुक्ला आदि ने आज उनके निवास पर पहुंचकर शिखर को शुभकामनाएं दीं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
लखनपुर में भी एक स्वास्थ्य कर्मी संक्रमित
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
अम्बिकापुर, 14 जुलाई। सरगुजा जिला के अंबिकापुर नगर में एक के बाद एक लगातार कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। आज अकेले अंबिकापुर नगर में एक दर्जन कोरोना पॉजिटिव मरीज मिले हैं जिनमें एक नगर निगम कर्मचारी वह एक पुलिसकर्मी भी शामिल है। इसके अलावा जिले के लखनपुर में 1 स्वास्थ्य कर्मी भी कोरोना से संक्रमित पाया गया है। सरगुजा में एक साथ संक्रमित मरीजों के मिलने से स्वास्थ अमला व नगरवासियों में दहशत है। स्वास्थ्य विभाग उक्त सभी लोगों को कोविड-19 अस्पताल अंबिकापुर में भर्ती कराने की कवायद में लगी हुई थी।
बताया जा रहा है कि अंबिकापुर नगर में मिले बौरीपारा का एक 50 वर्षीय व्यक्ति पूर्व में कोरोना संक्रमित नगर निगम कर्मी के संपर्क में आया था जिसके बाद इसकी रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई है। वहीं रसूलपुर मोहल्ले में दो, मायापुर ठनगनपारा में एक, गंगापुर क्वॉरंटीन सेंटर में 4 व कन्या परिसर क्वॉरंटीन सेंटर में तीन और अस्पताल के आइसोलेशन में भर्ती मरीज संक्रमित पाया गया है। लखनपुर में 1 स्वास्थ्य कर्मी के पॉजिटिव आने के बाद क्षेत्र में हडक़ंप मचा हुआ है।
अंबिकापुर नगर की बात करें तो पिछले 8 दिनों के अंदर यहां 40 कोरोनावायरस मरीज मिले हैं, जिससे शहरवासी काफी दहशत में हैं। लोग इसे कम्युनिटी स्प्रेड बता रहे हैं तो वहीं विभाग अभी इस पर कुछ भी बोलने से बच रहा है। अंबिकापुर नगर निगम के दूसरे कर्मचारी के पॉजिटिव पाए जाने के बाद निगम कर्मियों में भी दहशत का माहौल है हालांकि निगम के महापौर डॉ. अजय तिर्की सहित 90 कर्मचारियों की जांच हुई है जिनमें 40 लोगों की रिपोर्ट नेगेटिव आई है, 60 लोगों का रिपोर्ट आना अभी बाकी है।
स्वस्थ होकर 4 लौटे घर
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एवं अस्पताल अधीक्षक डॉ. पीएस सिसोदिया ने बताया है कि अम्बिकापुर के मिशन चौंक निवासी 22 वर्षीय पुरूष, सत्तीपारा निवासी 19 वर्षीय पुरूष, सीतापुर रजपुरी निवासी 21 वर्षीय पुरूष तथा सूरजपुर गंगोती निवासी 24 वर्षीय महिला को सैंपल लेने के 15 दिन पश्चात लक्षण रहित होने पर डिस्चार्ज कर दिया गया है।
नवापारा, महामाया रोड व कंपनी बाजार क्षेत्र कन्टेनमेंट जोन घोषित
कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी संजीव कुमार झा ने सरगुजा जिले के नगरपालिक निगम अम्बिकापुर के अंतर्गत आने वाले वार्ड क्रमांक 16 नवापारा, वार्ड क्रमांक 28 कम्पनी बाजार व वार्ड क्रमांक 38 महामाया रोड में 01-01 कोरोना पॉजिटिव केस की पुष्टि होने पर कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलाव की रोकथाम हेतु कन्टेनमेंट जोन घोषित किया गया है। कन्टेमेंट क्षेत्र में सभी दुकानों एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान आगामी आदेश तक पूर्णत: बंद रहेंगे। सभी प्रकार के वाहनों का आवागमन प्रतिबंधित रहेगा। मेडिकल इमरजेंसी को छोडक़र अन्य किन्हीं भी कारणों से घर से बाहर निकलना प्रतिबंधित रहेगा। कन्टेनमेंट जोन की निगरानी हेतु लगातार पुलिस पेट्रोलिंग की जाएगी। जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा संबंधित क्षेत्र में स्वास्थ्य की निगरानी एवं निर्देशानुसार सैंपल इत्यादि जांच हेतु लिया जाएगा।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 जुलाई। राज्य में आज 105 नए कोरोना मरीज मिले हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने जानकारी दी है कि आज कुल 105 नए कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान की गई। इसमें बिलासपुर, सुकमा और नारायणपुर 18-18, सरगुजा 12, रायपुर 9, बलरामपुर 8, राजनांदगांव 7, कोंडागांव 3, रायगढ़, कोरबा और कांकेर 2-2, दुर्ग, गरियाबंद, सूरजपुर, जशपुर, बस्तर और दंतेवाड़ा 1-1 मरीज मिले हैं।
राज्य में एक्टिव मरीजों की संख्या 1084 है।
लंदन, 14 जुलाई( एजेंसी). दुनिया भर के अस्सी से भी ज्यादा करोड़पतियों ने विश्व की सरकारों से कहा है कि उन्हें कोरोना वायरस महामारी के झटके से उबरने की कोशिशों में मदद के लिए अमीरों से और ज्यादा कर वसूलना चाहिए. खुद को "मिलियनेयर्स फॉर ह्यूमैनिटी" कहने वाले इस समूह ने एक खुले पत्र में कहा है कि सरकारों को उनसे "तुरंत, पहले से काफी अधिक और स्थायी रूप से" मौजूद दर से ऊंची दर पर कर वसूलना चाहिए.
पत्र में लिखा है, "कोविड-19 के दुनिया पर असर की वजह से हमारी दुनिया को फिर बेहतर बनाने के लिए हम जैसे करोड़पतियों को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है. हम इंटेंसिव केयर वार्डों में भर्ती बीमार लोगों का ख्याल नहीं रख रहे हैं. हम बीमारों को अस्पतालों तक पहुंचाने वाली एम्बुलेंस नहीं चला रहे हैं. हम ग्रोसरी की दुकानों में फिर से सामान नहीं भर रहे हैं और ना ही हम घर-घर जा कर खाना पहुंचा रहे हैं. लेकिन हमारे पास पैसा जरूर है, और बहुत सारा है. वह पैसा जिसकी अभी बहुत जरूरत है और जिसकी आने वाले वर्षों में भी बहुत जरूरत रहेगी, तब जब दुनिया इस संकट से उबरने की कोशिश कर रही होगी".
यह पत्र जी20 देशों के वित्त-मंत्रियों की होने वाली बैठक से पहले छपा है. जैसे जैसे देश वैश्विक महामारी के आर्थिक असर से निपटने की तैयारी कर रहे हैं, कुछ देशों ने अभी से कर की दरों को बढ़ाने का प्रस्ताव दे दिया है. ब्रिटेन में इंस्टीट्यूट ऑफ फिस्कल स्टडीज ने कहा है कि कर की दरों का बढ़ना सिर्फ अमीरों के लिए ही नहीं, बल्कि सब के लिए निश्चित है.
इसी महीने, स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज ने संकेत दिए थे कि उनकी सरकार करों की दरों को बढ़ा सकती है. रूस में भी ऊंची कमाई वालों को निशाना बनाने की संभावना है. सऊदी अरब ने महामारी के असर और तेल के दामों में गिरावट को देखते हुए सेल्स टैक्स की दर बढ़ा दी है.
"मिलियनेयर्स फॉर ह्यूमैनिटी" समूह का पत्र कई समूहों के बीच सहयोग का नतीजा था. इनमें ऑक्सफैम, टैक्स जस्टिस यूके और ऊंची नेट-वर्थ वाले अमेरिकी समूह पेट्रियोटिक मिलियनेयर्स शामिल हैं.