अंतरराष्ट्रीय
सुमी खान
ढाका, 13 मार्च | बांग्लादेश की आजादी के स्वर्ण जयंती समारोह और राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी समारोह में भाग ले रहे भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित दुनिया के कई नेताओं का स्वागत करने के लिए बांग्लादेश पूरी तरह से तैयार है।
17 से 27 मार्च तक होने वाले इस समारोह में मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलीह, नेपाल के राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी और श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे भी शामिल होंगे।
नरेंद्र मोदी, सोलीह और राजपक्षे बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना एवं भंडारी से मुलाकात करेंगे, जबकि हसीना के समकक्ष मो. अब्दुल हमीद द्विपक्षीय वार्ता करेंगे।
बांग्लादेश सरकार ने राजधानी ढाका के राष्ट्रीय परेड स्क्वॉयर में आयोजित होने वाले व्यापक कार्यक्रम तैयार किए हैं। सभी चार नेता राष्ट्रीय परेड ग्राउंड से भाषण देंगे, जिसकी लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी।
गृह मंत्री असदुज्जमां कमाल खान ने शनिवार सुबह आईएएनएस को बताया कि वे कोविड-19 महामारी को देखते हुए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक समारोहों से परहेज करेंगे। उन्होंने कहा कि कार्यक्रमों के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम होंगे।
व्यक्तिगत रूप से कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए आमंत्रित अतिथियों को कोविड-19 का टेस्ट कराना होगा और निगेटिव रिपोर्ट आने पर ही इसमें शामिल होने की अनुमति होगी। कोविड टेस्ट रिपोर्ट 48 घंटे तक के लिए वैध रहेगा।
देश-विदेश के लगभग 500 मेहमानों को राष्ट्रीय परेड ग्राउंड कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाएगा। आमंत्रित व्यक्ति चार दिनों के लिए कार्यक्रम में उपस्थित होंगे, जबकि अन्य छह दिनों की घटनाओं का लाइव प्रसारण किया जाएगा।
समारोहों में भाग लेने वाले राष्ट्र प्रमुखों एवं राष्ट्राध्यक्षों के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी।
कार्यक्रम के अनुसार, सोलीह 17-18 मार्च तक बांग्लादेश में रहेंगे, राजपक्षे 19-20 मार्च तक, भंडारी 22-23 मार्च तक और मोदी 26-27 मार्च को बांग्लादेश में रहेंगे।
प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय के उच्च अधिकारियों ने कहा कि बांग्लादेश विभिन्न मुद्दों पर करार के लिए चार देशों की सरकारों के साथ निकट संपर्क में है।
उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका, कनाडा, चीन, फ्रांस के नेता और कई अन्य उच्च-प्रतिष्ठित व्यक्ति इस अवसर पर वीडियो संदेश भेजेंगे।
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि भूटान के प्रधानमंत्री ने भी समारोह में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है। चीन एक शीर्ष रैंकिंग नेता को भेजना चाहता है, जो इस अवसर पर राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संदेश को ले जाएगा। कनाडा के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति भी संदेश देंगे।
इस बीच, ढाका अर्ल मिलर स्थित अमेरिकी राजदूत ने विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमन के साथ एक बैठक के दौरान कहा कि वर्षभर चलने वाले इस उत्सव में शामिल होने के लिए अमेरिकी सरकार का एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल जल्द ही बांग्लादेश का दौरा करेगा। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 13 मार्च | अमेरिकी शहर मिनियापोलिस, जहां अफ्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पिछले साल पुलिस हिरासत में निर्मम हत्या कर दी गई थी, पीड़ित परिवार के साथ मुकदमा निपटाने के लिए 27 मिलियन डॉलर देने को तैयार हो गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार दोपहर को लगभग 40 मिनट की बैठक के बाद मिनियापोलिस सिटी काउंसिल के सदस्यों ने एकमत से अनुमोदन करने के लिए मतदान किया, और मेयर जैकब फ्रे के कार्यालय ने कहा कि वह इसे मंजूरी भी देंगे।
काउंसिल के उपाध्यक्ष एंड्रिया जेनकिंस ने वोट के बाद कहा, "यह एक गहरी दर्दनाक घटना है जो दुर्भाग्य से बहुत सारे अश्वेत परिवारों की वास्तविकताओं का एक हिस्सा है।"
उन्होंने कहा, "वैसे तो कोई भी धन राशि पर्याप्त नहीं है जो एक भाई, एक बेटे, एक भतीजे, एक पिता, एक प्रियजन की जगह ले सके। लेकिन, हम जो कर सकते हैं वह यह है कि मिनियापोलिस शहर में न्याय और समानता के लिए काम करना जारी रखा जाए और ऐसा करने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूं।"
सिटी काउंसिल के अनुसार, 27 मिलियन डॉलर में से 500,000 डॉलर का उपयोग "समुदाय के कल्याण के लिए" उस स्थान के पास किया जाएगा जहां फ्लॉयड की मृत्यु 25 मई, 2020 को हुई थी।
फ्लॉयड परिवार के वकील बेन क्रम्प ने कहा, "एक अश्वेत व्यक्ति की 'गलत तरीके से' मौत मामले में सुनवाई पूरी होने से पहले निपटारे से एक शक्तिशाली संदेश जाएगा कि अश्वेतों की जिंदगी भी मायने रखती है और रंग के आधार पर अश्वेत लोगों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता समाप्त होनी चाहिए।"
पिछले वर्ष जुलाई पीड़ित परिवार ने चौविन और उनके तीन सहयोगियों पर मुकदमा दायर किया था जो घटनास्थल पर मौजूद थे और फ्लॉयड को निष्प्राण करने में श्वेत पुलिस अधिकारी की मदद कर रहे थे।
गौरतलब है कि फ्लॉयड की मौत के बाद पिछले साल अमेरिका के कई शहरों में नस्लीय असमानता और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। साथ ही 'ब्लैक लाइफ मैटर्स' का आंदोलन व्यापक स्तर पर चलाया गया। (आईएएनएस)
महाशक्ति बनने का सपना देखने वाले चीन ने अपने रक्षा बजट को बढ़ाकर 209 अरब डॉलर कर दिया है. चीन अपनी सैन्य क्षमता को लगातार धारदार बनाने में जुटा है. लेकिन इससे भारत और जापान जैसे चीन के पड़ोसियों की चिंता बढ़ सकती है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र की रिपोर्ट
किसी भी देश का रक्षा बजट उसकी सेनाओं और सुरक्षा एजेंसियों के लिए बहुत मायने रखता है. इससे ना सिर्फ सेनाओं के रख-रखाव की नीतियों और हथियारों की खरीद के मसूबों का संकेत मिलता है बल्कि इससे देशों की सुरक्षा चिंताओं और भविष्य में लिए जाने वाले सामरिक निर्णयों की भनक भी लगती है. यही वजह है कि देशों के रक्षा बजट पर हर किसी की पैनी नजर होती है.
इस सिलसिले में चीन का हाल ही में सार्वजनिक किया गया 2021 रक्षा बजट महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पिछले कई वर्षों से चीन के रक्षा बजट में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. और इस साल भी इसमें इजाफा ही हुआ है. 5 मार्च को चीन की नेशनल पीपल्स कांग्रेस की सालाना बैठक में रक्षा बजट के मसौदे पर चर्चा हुई और ऐलान किया गया कि इस साल रक्षा क्षेत्र में 209 अरब डालर खर्च किए जाएंगे. यह राशि पिछले साल के 196 अरब डालर से लगभग 7 फीसदी ज्यादा है. आंकड़ों के मायाजाल से परे हट कर अगर इसे देखा जाय तो साफ है कि बजट में 13 अरब डालर की बढ़ोत्तरी हुई है.
चीन की प्राथमिकता
जाहिर है, चीन के इस कदम से पड़ोसी देशों में हलचल मच गई है. इसमें खास तौर पर जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, भारत और ताइवान जैसे देश आते हैं जिनके साथ चीन की सीमा विवाद और अन्य मुद्दों को लेकर अनबन है. चीन का कुल रक्षा बजट इन तमाम देशों के कुल जमा बजट से भी ज्यादा है.
चीन के भारत समेत लगातार एक के बाद एक कई देश के साथ बढ़ते तनाव के बीच यह तय ही था कि चीन अपने रक्षा बजट को और बढ़ाएगा. जानकारों के बीच अटकलें सिर्फ इस बात को लेकर थीं कि यह राशि कितनी होगी. दूसरे देशों के मुकाबले कोविड महमारी के कठिन समय में भी चीन की अर्थव्यवस्था में बढ़ोत्तरी हुई है. इसका फायदा भी चीन को उठाना लाजमी ही था.
आम तौर पर चीन अपने रक्षा बजट का एक तिहाई से ज्यादा हिस्सा सिर्फ हथियारों की खरीद और उन्हें अपग्रेड करने पर लगाता है. शायद इस बार उस पर और अधिक खर्च की भी योजना हो लेकिन फिलहाल इन विवरणों को चीन ने सार्वजनिक नहीं किया है. दुनिया के तमाम देशों के विपरीत, चीन ना अपने बजट के एक-एक पैसे का हिसाब सार्वजनिक करता है और न ही सुरक्षा से जुड़ी हर चीनी एजेंसी रक्षा बजट के अंदर आती है. इसलिए चीन से पारदर्शिता की उम्मीद करना बेमानी है.
चीन ने अपनी 14वीं पंचवर्षीय योजना में नई तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमी कंडक्टर चिपों, गहन समुद्र, गहन आकाश और पोलर एक्सप्लोरेशन पर खास ध्यान देने की योजना बनाई है. 2021 से 2025 तक चले वाली इस पंचवर्षीय योजना का भी रक्षा बजट पर व्यापक असर होने की संभावना है.
तकनीक का सहारा
वैसे पिछले कई वर्षों से चीन अपनी सेनाओं को क्षमतावान और टेक्नोलोजी से लैस लेकिन हल्की-फुल्की बनाने में लगा है लेकिन अब उसने अत्याधुनिक उन्नत तकनीकों पर खास जोर देना शुरू कर दिया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक पर चीन ने पिछले कुछ समय में खास पकड़ बनाई है और दक्षिण चीन सागर में स्वार्म और ड्रोन तकनीक का प्रभावशाली इस्तेमाल भी बढ़ाया है.
चीन इस सदी के मध्य तक पीपल्स लिबरेशन आर्मी को दुनिया की सर्वोत्कृष्ट और अत्याधुनिक सेना बनाने के प्रयास में लगा हुआ है. लेकिन साथ ही उसकी यह भी कोशिश रही है कि दुनिया को इस बात की भनक भी न लगे कि इन प्रयासों में वह कितना पैसा, समय और ऊर्जा लगा रहा है. लेकिन जहां आग है वहां कभी ना कभी धुआं तो उठेगा ही. ऐसा ही हो रहा है दक्षिण चीन और पूर्वी सागर में.
पिछले कुछ सालों में चीन ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीपों के निर्माण और उन द्वीपों पर सैन्य साजोसामान तैनात करने में काफी तकनीक और पैसा लगाया है. इस सबके पीछे उसका सबसे बड़ा उद्देश रहा है कि वह ऐसी क्षमता विकसित कर सके जिसके तहत वह अपने प्रतिद्वंदद्वी को जब चाहे किसी खास क्षेत्र में प्रवेश या कुछ खास गतिविधियां करने से रोक सके.
टकराव के आसार
एंटी एक्सेस/एंटी डिनायल (ए.2/एडी) जैसी क्षमता विकसित करने की चाह के पीछे सबसे बड़ा कारण है अमेरिका के साथ चीन की बढ़ती अनबन. चीन अमेरिका की किसी भी सैन्य गतिविधि को अपने खिलाफ उठाया गया अमेरिकी कदम समझता है. हालांकि अमेरिका की दक्षिणपूर्व और पूर्व एशिया में उपस्थिति कोई नई बात नहीं है है लेकिन अपनी ताकत और रुतबा बढ़ने के साथ ही चीन अब अमेरिका को रास्ते का रोड़ा समझने लगा है. यह वही चीन है जिसने अपने निहित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अमेरिका से शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के खिलाफ हाथ मिला लिए थे.
उधर चीन की बढ़ती सैन्य ताकत और आक्रामक रवैया जापान और भारत जैसे इसके कई पड़ोसियों के गले की फांस बन गया है. इस समस्या से कूटनीतिक ढंग से निपटने और अगर जरूरत पड़े तो सैन्य सहयोग से पीछे ना हटने के उद्देश्य से ही भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया से बीच पहला शिखर सम्मेलन हो रहा है. वैसे तो चीन पर शायद सार्वजनिक स्तर पर बयानबाजी के आसार कम हैं लेकिन यह सब को मालूम है कि इन चारों देशों के साझा प्रयास- क्वाड के पीछे चीन सबसे बड़ी और मुखर वजह चीन ही है.
सारा दारोमदार इस बात पर है कि क्वाड के देश चीन की तेजी से आधुनिक बन रही पीपल्स लिबरेशन आर्मी से निपटने पर भी कोई साझा कदम उठाने की योजना बनाते हैं या हर बार की तरह अमेरिका पर ही यह जिम्मेदारी टाल दी जाती है. (dw.com)
चीन पूरी दुनिया पर छा जाने के लिए बेकरार है. इसके लिए चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी में नई जान फूंकी जा रही है. जानकार कहते हैं कि चीन की बढ़ती ताकत विश्व स्तर पर टकरावों को जन्म दे सकती है.
पिछले दिनों चीन की सर्वोच्च विधायी संस्था, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की सालाना बैठक में हुए प्रमख भाषणों का सबसे ज्यादा जोर कायाकल्प पर रहा. तीन हजार सदस्यों वाली कांग्रेस की यह बैठक साल का सबसे बड़ा राजनीतिक आयोजन है. इसमें सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का अति उत्साही दूरगामी उद्देश्य निहित थाः सही मायनों में वैश्विक शक्ति के रूप में चीन का राष्ट्र निर्माण! ऐसी शक्ति जिसे बाकी दुनिया झुक कर सलाम करे!
इस लक्ष्य के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता में बने रहने का लक्ष्य भी गुंथा हुआ है. डिजिटल स्पेस की सेंसरिंग, समाचार मीडिया पर नियंत्रण और सरकार या पार्टी की सार्वजनिक आलोचना करने वालों को जेल. इस तरह पार्टी अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखती है. लेकिन वह जनता को खुश रखने की कोशिश भी करती है. दुनिया में अपने बढ़ते दबदबे की झलक दिखाकर राष्ट्रीय गौरव को उभारती है. इसके जरिए वह 70 साल से भी ज्यादा वक्त से जारी अपनी हुकूमत की वैधता को भी साबित करने की कोशिश करती है.
मौकों की तलाश
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में नंबर तीन की हैसियत रखने वाले पदाधिकारी ली चांगशू ने एनपीसी के सदस्यों से कहा, "चीनी राष्ट्र को कायाकल्प की तरफ एक और विशाल कदम बढ़ाने के लिए अग्रसर करते हुए सेंट्रल कमेटी ने आकर्षक नतीजे हासिल किए हैं. इससे हमारे लोग खुश हैं और यह बात इतिहास में दर्ज होगी.”
कायाकल्प की बात मंत्र की तरह दोहराई जाती है. चीनी कलेंडर में बैल का वर्ष मनाते हुए राष्ट्रीय कला संग्रहालय में चहुं दिशा यही मंत्र अभिव्यक्त किया गया था. प्रदर्शनी के परिचय में एक परिश्रमी बैल को दिखाते हुए पार्टी नेता और राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग को "चीनी राष्ट्र के महान प्रयास की समझ” को गहरा बनाने का श्रेय दिया गया था. ये नजरिया हलचल भरा है. अमेरिका और अन्य देशों की सरकारें चीन के उदय और उसकी वजह से होने वाले वैश्विक बदलावों के बीच क्या रास्ता निकाला जाए, इस पर मंथन करने लगी हैं.
चीनी नेता अमेरिकी सीमा-शुल्कों और प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए एक ज्यादा व्यवस्थित अर्थव्यवस्था और एक ज्यादा शक्तिशाली सेना बनाने के अलावा घरेलू बाजार की वृद्धि और हाईटेक क्षमताओं को और तेज करने में जुटे हैं. वे विश्व नेतृत्व का प्रदर्शन करते हुए अवसरों की तलाश कर रहे हैं, कोविड-19 की वैश्विक महामारी से लेकर जलवायु परिवर्तन तक. लेकिन मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर दूसरों की मांगें मानने के झंझट से खुद को मुक्त रखते हैं.
चुनौतियां
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए इसमें बहुत सी चुनौतियां बनती हैं. जलवायु परिवर्तन पर सहयोग के लिए तो जगह है. व्यापार और प्रौद्योगिकी पर कुछ मतभेद सुलझाए जाने हैं. पश्चिमी प्रशांत महासागर पर कब्जे के लिए दोनों देशों की नौ सेनाओं में होड़ लगी है. ताइवान, हांगकांग और चीन के मुस्लिम बहुल शिनचियांग क्षेत्र पर गहरे विभाजन बने हुए हैं जहां दोनों पक्ष अपने अपने दावों पर अड़े हैं.
कम्युनिस्ट पार्टी ने इस वर्ष के लिए लक्ष्य रखा गया है "सामान्यतः समृद्ध समाज" का निर्माण. देश की प्रति व्यक्ति जीडीपी दस हजार डॉलर से ऊपर हो गई है. जिसके चलते चीन उच्च मध्यवर्गीय आय वाले देशों की रैंक में अपनी जगह पुख्ता कर चुका है. हालांकि शहरी अमीरों और ग्रामीण गरीबों की संपत्ति में अंतर की चौड़ी खाई है.
अंतरिम लक्ष्य के रूप में शी जिनपिंग ने कहा है कि 2035 में अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना हो जाएगा. और प्रति व्यक्ति जीडीपी करीब 20 हजार डॉलर हो जाएगी. लेकिन इस रास्ते में कुछ बाधाएं हैं. अर्थव्यवस्था के पूरी तरह विकसित होने से पहले ही चीनी आबादी बूढ़ी हो रही है. ये चीन में दशकों तक लागू रही एक-संतान कड़ी नीति का नतीजा है. ये साफ नहीं है कि पार्टी का कठोर सिस्टम तेजी से जटिल होते समाज और वृद्धि की केंद्रीय योजना के बजाय रचनात्मकता पर तेजी से निर्भर होती जा रही अर्थव्यवस्था को मैनेज भी कर पाएगा या नहीं.
राख से उठा चीन
कायाकल्प की शब्दावली चीन के साम्राजी दौर के चर्मोत्कर्ष की याद दिलाती है जब वो एशिया में प्रौद्योगिकी और संस्कृति का सरताज था. चिंग वंश उत्तरोतर 19वीं सदी में कमजोर पड़ गया और उस दौरान सैन्य लिहाज से ज्यादा ताकतवर हो चुके पश्चिमी देशों ने उसे बहुत सी क्षेत्रीय और व्यापार रियायतें देने पर विवश कर दिया.
कायाकल्प का विचार सिर्फ कम्युनिस्टों की अपीलों को ही नहीं बल्कि शुरुआती 20वीं सदी के अन्य क्रांतिकारियों और सुधारकों की अपीलों को भी एक आधार देता है. लेकिन जब विभिन्न शक्तियां सत्ता के लिए आपस में झपट रही थीं और चीन अराजकता में घिरा हुआ था, जापान ने दूसरा विश्व युद्ध खत्म होते होते चीन के अधिकांश हिस्से पर हमला कर कब्जा कर लिया.
चीन को फिर से मजबूत बनाने के अपने आह्वान में कम्युनिस्ट पार्टी अक्सर "सदी के अपमान” का मुद्दा उठा देती है. तेज आर्थिक वृद्धि के दशकों के बाद, पार्टी अपना अंतिम लक्ष्य पाने में पहले की अपेक्षा और नजदीक आ चुकी है.
2017 की पार्टी कांग्रेस में शी जिनपिंग ने कहा था, "आधुनिक समयों के आरंभ से ही इतना सब कुछ इतने लंबे समय तक सहने वाले चीनी राष्ट्र का एक जबर्दस्त रूपांतरण हुआ हैः वह उठ खड़ा हुआ, समृद्ध बना, और ताकतवर बन रहा है, वह कायाकल्प की अद्भुत संभावनाओं को अपने भीतर संजोए हुए है.”
दुनिया पर असर
सवाल ये है कि शेष दुनिया के लिए चीन के कायाकल्प का क्या अर्थ होगा. क्या वो वैश्विक आर्थिक वृद्धि को संचालित करेगा, दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार और दूसरे देशों के लिए निवेश का स्रोत बनेगा? या उसे एक सैन्य और औद्योगिक भय की तरह देखा जाएगा जो छोटे पड़ोसियों को तंग करेगा और टेक्नोलोजी चुराएगा? क्या उसकी कामयाबी कुछ अन्य देशों को अपने यहां सर्वसत्तावादी अधिनायकवादी सत्ताओं के निर्माण के लिए उकसाएंगी और वे देश अमेरिका के अपनाए लोकतंत्र से मुंह मोड़ लेंगे?
सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में चाइना पावर प्रोजेक्ट के निदेशक बोनी ग्लेसर कहते हैं, "चीन हवा में सवार होकर ज्यादा ताकत वाली निर्णायक पोजीशन का रुख कर रहा है जो उसके मुताबिक सत्ता के वैश्विक संतुलन का उत्कर्ष है. और बाइडेन सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है.”
बाइडेन और उनके सहयोगियों ने चीन पर कड़ा रुख अपनाने का संकेत दिया है. विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने हाल के एक भाषण में चीन को "आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और प्रौद्योगिकीय शक्ति वाला एक ऐसा इकलौता देश” करार दिया था "जो स्थिर और खुली अंतरराष्ट्रीय प्रणाली को, दुनिया को बेहतर ढंग से चलाने वाले तमाम नियमों, मूल्यों और सबंधों को गंभीर चुनौती देता है.”
ये सार्वजनिक रुख कूटनीति के लिए रास्ता बना सकता है लेकिन चीन के अंतिम लक्ष्य अटल हैं, चाहे वो टेक्नोलोजी का लीडर बनने का लक्ष्य हो या दक्षिणी चीन सागर में अपनी नेवी की पहुंच बढ़ाने का लक्ष्य. एक ओर अमेरिका आर्थिक मंदी और महामारी से जूझ रहा है, वहीं चीन और उसके नेता अपने कायाकल्प को लेकर और बेधड़क, और आश्वस्त हो चले हैं.
एसएस/एके (एपी)
दुनिया में जुड़वां बच्चों की संख्या बीते सालों में काफी ज्यादा बढ़ गई है. एक तरफ यह चलन बेहतर होती कुछ चीजों की तरफ इशारा कर रहा है तो दूसरी तरफ इसे लेकर चिंताएं भी बहुत हैं.
संसार में लगभग हर 40 में एक बच्चा जुड़वां बच्चे के रूप में पैदा हो रहा है. पहले के मुकाबले यह संख्या बहुत ज्यादा है. डॉक्टरों की मदद से होने वाली बच्चों की पैदाइश को इसके लिए सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है. साइंस जर्नल ह्यूमन रिप्रोडक्शन में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर साल 16 लाख जुड़वां बच्चे पैदा हो रहे हैं.
रिसर्च में शामिल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिश्टियान मोंडेन का कहना है, "जुड़वां बच्चों की तुलनात्मक और विशुद्ध संख्या दुनिया में बीसवीं सदी के मध्य के बाद अब सबसे ज्यादा है और यह सर्वकालिक रूप से सबसे ज्यादा रहने की उम्मीद है."
विकसित देशों में 1970 के दशक से प्रजनन में मदद करने वाली तकनीक यानी एआरटी का उदय हुआ. इसके बाद से इसने जुड़वां बच्चों के जन्म के मामलों में बड़ा योगदान दिया है. अब बहुत सी महिलाएं ज्यादा उम्र में मां बन रही हैं और फिर उनके जुड़वां बच्चे होने के आसार बढ़ जाते हैं. गर्भनिरोधक का इस्तेमाल बढ़ गया है, महिलाएं अपना परिवार ज्यादा उम्र में अकेले रहने के बाद शुरू कर रही हैं और इसके साथ ही कुल मिला फर्टिलिटी रेट में आई गिरावट को भी इसके लिए जिम्मेदार बताया गया है.
अफ्रीका अव्वल
रिसर्चरों ने इसके लिए 135 देशों से साल 2010-2015 के बीच के आंकड़े जुटाए. जुड़वां बच्चों के पैदा होने की दर सबसे ज्यादा अफ्रीका में है. हालांकि रिसर्चरों ने इसके लिए अफ्रीका महाद्वीप और बाकी दुनिया के बीच जेनेटिक फर्क को इसके लिए जिम्मेदार माना है. एक रिसर्चर ने बताया कि संसार के गरीब देशों में जुड़वां बच्चों की संख्या बढ़ने से चिंता भी है.
मोंडेन का कहना है, "जुड़वां बच्चों की पैदाइश के साथ शिशुओं और बच्चों की मौत की उच्च दर भी जुड़ी है साथ ही महिलाओं और बच्चों में गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद ज्यादा जटिलता भी होती है." रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक जरोएन स्मिट्स का कहना है, "कम और मध्यम आय वाले देशों में जुड़वां बच्चों पर और ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है. सब सहारा अफ्रीका में तो खासतौर से बहुत सारे बच्चे अपने जुड़वां को जीवन के पहले साल में ही खो देते हैं, हमारी रिसर्च के मुताबिक यह संख्या हर साल 2-3 लाख तक है."
रिसर्चरों का कहना है कि जुड़वां बच्चों की संख्या में इजाफा मुख्य रूप से "फ्रैटर्नल ट्विंस" यानी उन बच्चों में हो रही है जो दो अलग निषेचित अंडाणुओं से पैदा होते हैं. आडेंटिकल ट्विंस जिन्हें मोनोजाइगट भी कहा जाता है उनकी संख्या लगभग वही है यानी एक हजार बच्चों में एक.
एनआर/एके(एएफपी)
जर्मनी की सत्ताधारी सीडीयू पार्टी के युवा सांसद मार्क हाउप्टमन ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद इस्तीफा दे दिया है. एक हफ्ते में वो सत्ताधारी गठबंधन के तीसरे सांसद हैं जिन्हें इस तरह के आरोपों में इस्तीफा देना पड़ा.
जर्मनी के दो प्रमुख राज्यों में प्रांतीय चुनावों से ठीक पहले चांसलर अंगेला मैर्कल की पार्टी सीडीयू के एक और सांसद को इस्तीफा देना पड़ा है. युवा सांसद मार्क हाउप्टमन ने लॉबिइंग के आरोपों में दबाव बढ़ने के बाद गुरुवार को इस्तीफा दे दिया. इससे पहले उन्हीं की पार्टी के निकोलास लोएबल और बावेरियाई सहयोगी पार्टी सीएसयू के गेयॉर्ग नुइसलाइन को महामारी के दौर में मास्क से जुड़े कारोबारी सौदों के चलते इस्तीफा देना पड़ा.
हाउप्टमान की विदाई एक स्थानीय अखबार में अजरबाइजानी, ताइवानी और वियतनामी पर्यटन के बारे में छपे विज्ञापन की वजह से हुई है. जुडथुरिंगर कूरियर नाम का यह अखबार खुद सांसद हाउप्टमान चलवाते हैं. जर्मन समाचार पत्रिका श्पीगेल ने एक रिपोर्ट छापी है कि उन पर इन विज्ञापनों के बदले विदेशी एजेंसियों से रिश्वत लेने के आरोप हैं. हाउप्टमान ने डी वेल्ट अखबार से बातचीत में कहा है कि वह संदेह को कड़ाई से खारिज करते हैं और रिपोर्ट में बातों को "गलत तरीके से दिखाया" गया है. हाउप्टमान का कहना है, "मैंने किसी भी वक्त इन विज्ञापनों के प्रभाव में आ कर राजनीतिक फैसले नहीं लिए. मैं इन्हें काफी महत्व देता हूं. मैंने कोई पैसा नहीं लिया और मेरे राजनीतिक फैसलों पर किसी का असर नहीं है." उन्होंने इस पूरे मामले पर हैरानी जताते हुए कहा, "मेरे प्रति निजी शत्रुता अपने चरम पर पहुंच गई है."
लोकप्रिय युवा चेहरा
अपनी वेबसाइट पर हाउप्टमान ने बताया है कि उन्होंने थुरिंगिया की येना यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान और इंटरकल्चरल कम्युनिकेशन की पढ़ाई की है. इसके बाद उन्होंने सीडीयू के स्टाइपेंड पर जापान की ओसाका और अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी में भी कुछ पढ़ाई की है. उन्होंने यूरोपीय संसद, बीजिंग में सीडीयू के कोनराड आडेनावर फाउंडेशन के अलावा थुरिंगिया के परिवहन मंत्रालय में काम किया है और साथ ही वह जर्मन संसद में सीडीयू-सीएसयू के सांसदों के एक समूह के चेयरमैन भी रहे हैं.
37 साल के हाउप्टमान ने राजनीति की सीढ़ी तेजी से चढ़ी है और वो ऑस्ट्रिया के युवा चांसलर सेबास्टियन कुर्त्स के भी बड़े समर्थक माने जाते हैं. मार्क हाउप्टमन के अखबार ने जानकारी दी है कि अपने संसदीय कामों की वजह से विदेश यात्राओं के जरिए उन्होंने अच्छे संपर्क बनाए हैं जिसका फायदा थुरिंगिया की मध्यम आकार वाले उद्योगों को खूब मिला है. हाउप्टमान भारत के साथ ही इसी तरह के संबंध विकसित करने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने भारत के उद्योग जगत के साथ मिल कर कई कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाई है. इसमें इंडोजर्मन बिजनेस डायलॉग सबसे प्रमुख है.
सत्ताधारी पार्टी की मुश्किल
इसी हफ्ते सत्ताधारी गठबंधन के दो और सांसदों को महामारी के दौरान मास्क की खरीदारी से जुड़े विवाद के सामने आने के बाद इस्तीफा देना पड़ा. इनमें एक हैं निकोलास लोएबल. आरोप है कि उनकी कंपनी ने मास्क की खरीदारी का सौदा कराने के बदले ढाई लाख यूरोप का कमीशन हासिल किया. इसी तरह सीएसयू के सांसद गेयॉर्ग नुइसलाइन पर भी मास्क सप्लायर के लिए लॉबिइंग करने के बदले 660,000 यूरोप की रकम कमाने का आरोप है.
एक हफ्ते में तीन लोगों के इस्तीफे से जर्मनी की सत्ता के गलियारे में हलचल तेज हो गई है. शुक्रवार की शाम तक सीडीयू-सीएसयू ने संसद के 245 सदस्यों को यह लिख कर देने के लिए कहा था कि महामारी के दौर में किसी तरह के कारोबार से उन लोगों ने कोई फायदा नहीं उठाया. हालांकि हाउप्टमान मास्क की खरीदारी को लेकर चल रहे स्कैंडल में तो शामिल नहीं हैं लेकिन मैर्कल की पार्टी पर लॉबिइंग के संपर्कों को लेकर दबाव बढ़ गया है. सत्ताधारी गठबंधन में शामिल एसपीडी के उपाध्यक्ष राल्फ स्टेगनर ने राजनेताओं के लिए स्पष्ट आचार संहिता की अपनी मांग दोहराई है. उनका कहना है कि जर्मनी को केंद्रीय और प्रांतीय स्तर पर पैसे देकर की जाने वाली लॉबिइंग पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए.
मंगलवार को डीडब्ल्यू के साथ एक इंटरव्यू में सीएसयू के सांसद मिषाएल फ्रीजर ने कहा कि वो नुइसलाइन और लोएबेल के आगे इस मामले के बढ़ने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं. फ्रीजर ने कहा, "मैं जर्मनी को तो कोई नुकसान नहीं देख रहा हूं लेकिन राजनीति का नुकसान बहुत बड़ा है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि संसद को इस तरह के मामलों के लिए अपने नियमों को बेहतर बनाने की जरूरत है.
एनआर/एमजे (डीपीए, एएफपी)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पहले 100 दिनों के कार्यकाल के लिए एक महत्वाकांक्षी एजेंडा तैयार किया था. इसमें जलवायु परिवर्तन से लेकर इमिग्रेशन में सुधार और कोरोनो वायरस महामारी तक हर चीज पर तुरंत कार्रवाई का वादा था.
अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर 10 मार्च को जो बाइडेन का 50 दिनों का कार्यकाल पूरा हो गया. बाइडेन प्रशासन ने अपने कार्यकाल के 50वें दिन एक मील का पत्थर तय किया और वह था उनके 1900 अरब डॉलर कोरोना वायरस सहायता पैकेज का अमेरिकी संसद कांग्रेस में पास होना. इस बिल का नाम 'अमेरिकन रेस्क्यू प्लान एक्ट 2021' है. इसके तहत, जरूरतमंद अमेरिकियों के खाते में 1400 डॉलर की सीधी आर्थिक मदद दी जाएगी.
बिल के बजट में से 350 अरब डॉलर का बड़ा हिस्सा प्रांतीय और लोकल गवर्नमेंट के लिए रखा गया है. महामारी से निपटने के लिए भी अलग से फंड रखा गया है. इस बिल से बाइडेन को कई चुनावी वादे पूरी करने में मदद मिलेगी. इनमें स्कूलों को खोलना और ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी नागरिकों को टीका लगाना जैसे बड़े वादे भी शामिल हैं. सत्ता संभालते ही बाइडेन ने कई चुनावी वादे पूरे किए, लेकिन कई वादे अब भी अधूरे हैं. जानते हैं कि वे अपने प्रमुख वादों को कहां तक पूरा कर पाए हैं.
वे वादे जो पूरे हुए
जो बाइडेन ने अपने कार्यकाल के पहले हफ्तों के दौरान कोरोना महामारी को प्राथमिकता दी थी जिसका असर दिख रहा है. उनका लक्ष्य 100 दिनों में 10 करोड़ लोगों को टीका लगाने का था. वह अगले सप्ताह के अंत तक 10 करोड़ लोगों को टीका लगाने के अपने लक्ष्य तक पहुंचने वाले हैं. हर दिन 20 लाख लोगों को कोराना वैक्सीन का टीका लगाया जा रहा है. अब तक 7.5 करोड़ से अधिक लोगों को टीका लग चुका है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने जलवायु नीति पर अपने वादों को पूरा करने के लिए कई कदम उठाए. उन्होंने शपथ के दिन ही एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करके किस्टोन एक्सएल तेल पाइपलाइन के लिए परमिट को रद्द कर दिया और आर्कटिक नेशनल वाइल्ड लाइफ रिफ्यूज में चल रहे विकास से जुड़े काम को रोकने का आदेश दिए. साथ ही, पर्यावरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और विज्ञान पर ट्रंप के कार्यकाल में लागू किए गए नियमों की समीक्षा करने का आदेश दिया. 27 जनवरी को जारी एक कार्यकारी आदेश से संघीय भूमि और खुले समुद्र में नए तेल और गैस पट्टी पर रोक लगा दी गई.
बाइडेन ने चुनाव अभियान के दौरान किए गए कई वादों को भी आसानी से पूरा किया. इसमें ट्रंप प्रशासन के जलवायु परिवर्तन से लेकर आव्रजन नीतियों तक को रद्द करना शामिल है. शुरूआत में, बाइडेन प्रशासन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन और पेरिस जलवायु समझौते को फिर से बहाल कर दिया, सीमा पर बन रही दीवार के काम को रोक दिया, और विभिन्न मुस्लिम-बहुल देशों के लोगों पर यात्रा प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया. साथ ही, अमेरिका-मेक्सिको की सीमाओं पर अलग हुए परिवारों को फिर से मिलाने के लिए एक टास्क फोर्स बनाया है.
बाइडेन ने अपने पहले 100 दिनों के भीतर अमेरिकी संसद में इमिग्रेशन पर एक व्यापक सुधार बिल लाने का वादा किया था. जिसे पिछले महीने पूरा कर दिया गया. बाइडेन ने एक कार्यकारी आदेश भी जारी किया. इसके तहत उन प्रवासी बच्चों को "संरक्षण देने और सशक्त बनाने” का निर्देश दिया गया जो अपने माता-पिता के साथ यहां आए हैं. बाइडेन ने प्रशासन में नैतिक सुधार के किए गए वादों को पूरा करने की कोशिश भी की है. 20 जनवरी को एक कार्यकारी आदेश जारी किया गया. इस आदेश में गुटबाजी करने और उपहार लेने जैसी गतिविधियों पर रोक लगाना और न्यायिक विभाग में राजनीतिक हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करना शामिल है.
वे वादे जो पूरे होने हैं
अभी भी बाइडेन के कई वादे पूरे नहीं हुए है और उन पर काम करना बाकी है. बाइडेन की राष्ट्रीय कोविड-19 रणनीति के तहत फरवरी के अंत तक देश भर में 100 नए सरकारी टीकाकरण केंद्र स्थापित करने लक्ष्य था. अब तक, प्रशासन लगभग 20 जगहों पर बड़े पैमाने पर टीकाकरण का काम कर रहा है जहां रक्षा मंत्रालय पेंटागन की तरफ से सैनिकों को ड्यूटी पर तैनात किया गया है. कुल मिलाकर, प्रशासन का कहना है कि सरकार कम से कम 441 टीकाकरण केंद्र चला रही है. हालांकि, उनमें से ज्यादातर नई नहीं हैं, लेकिन सरकारी संसाधनों की मदद से सभी की क्षमता बढ़ायी गई है.
अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में बाइडेन ने अमेरिकी शरणार्थी सिस्टम में सुधार करने के लिए ‘सार्वजनिक शुल्क' नियम को हटाने का वादा किया था. यह नियम ट्रंप प्रशासन ने सार्वजनिक लाभ लेने से प्रवासियों को वंचित करने के लिए लगाया था. फरवरी की शुरुआत में बाइडेन ने इस नियम को हटाने के लिए संबंधित एजेंसियों को उन नीतियों की समीक्षा करने और 60 दिनों के भीतर बदलाव की सिफारिश करने का निर्देश दिया है.
प्रशासन ने शरणार्थी सिस्टम में सुधार करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं. इसमें बाइडेन के अपने कार्यकाल के पहले दिन उठाया गया एक कदम शामिल है. ट्रंप कार्यकाल के एक नियम को होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने स्थगित कर दिया है. इस नियम के तहत, शरण मांगने वालों को मेक्सिको में तब तक इंतजार करना होता था, जब तक उनके दावों की समीक्षा होती थी.
राष्ट्रपति ने महामारी से संबंधित अधिकारों को अपने पास रखा है जो उनके प्रशासन को लोगों को शरण लेने का अवसर दिए बिना सीमा से तुरंत हटाने की अनुमति देता है. बाइडेन के सहयोगियों ने कहा है कि उनके इस अधिकार को तत्काल समाप्त करने की कोई योजना नहीं है. इस नियम को पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने 1944 के एक अस्पष्ट स्वास्थ्य कानून का इस्तेमाल करके एक साल पहले पेश किया था.
बाइडेन ने प्रवासी परिवारों के लंबे समय तक हिरासत में रखने के नियम को समाप्त करने का भी वादा किया था. आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन ने पिछले हफ्ते एक ऐसे ही हिरासत केंद्र का इस्तेमाल बंद करने का संकेत दिया. हालांकि, आईसीई, टेक्सास में दो अन्य हिरासत केंद्रों में आप्रवासी परिवारों को तीन दिन या उससे कम समय के लिए हिरासत में रखना जारी रखेगा. बाइडेन प्रशासन कई लंबे समय तक हिरासत में रखने वाले जगहों की क्षमता का विस्तार कर रहा है जिसमें आप्रवासी बच्चों को रखा जा सके, ताकि सीमा पर बिना कारण के नाबालिगों की लगातार बढ़ती संख्या को रोका जा सके.
जलवायु परिवर्तन पर, बाइडेन ने अपने पहले 100 दिनों के कार्यकाल के अंदर वैश्विक शिपिंग और विमानन के क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए विश्व शिखर सम्मेलन आयोजित करने का वादा किया था. अमेरिका 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस पर ऐसा ही सम्मेलन आयोजित करेगा.
अमेरिका में स्कूलों को फिर से खोलना बाइडेन के प्रमुख अभियान वादों में से एक है, जिसे लागू करवाना कठिन रहा है. वजह ये है कि स्कूल में बच्चों को पढ़ने के लिए बुलाने का निर्णय स्थानीय अधिकारियों और शिक्षक संगठनों पर छोड़ दिया गया है. इस महीने उन्होंने राज्यों को शिक्षकों के टीकाकरण को प्राथमिकता देने का निर्देश दिया और घोषणा की कि वह मार्च में शिक्षकों के टीकाकरण के लिए देश के संसाधनों के इस्तेमाल का निर्देश रहे हैं. बाइडेन प्रशासन को उम्मीद है कि कोरोनो राहत बिल के पारित होने और सुरक्षा उपाय बेहतर होने पर, शिक्षक पढ़ाने के लिए वापस लौटने में अधिक सहज महसूस करेंगे.
कार्रवाई का इंतजार करते वादे
बाइडेन प्रशासन ने निजी जेल अनुबंधों को समाप्त करने वाले एक कार्यकारी आदेश के अलावा अभी तक आपराधिक न्याय सुधार पर कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया है. बाइडेन ने अपने पहले 100 दिनों के भीतर पुलिस ओवरसाइट बोर्ड स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन अब तक उस दिशा में कोई स्पष्ट पहल नहीं हुई है. 100 दिनों के अंदर पूरे किए जाने वाले कई अन्य वादों पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है. इनमें केंद्रीय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कैबिनेट स्तरीय एक कमिटी का गठन करना और बंदूक की खरीद के लिए पृष्ठभूमि की जांच के मुद्दों की एफबीआई समीक्षा का आदेश देना शामिल है.
कुछ वादों को पूरा करने के लिए, बाइडेन को सीनेट की मंजूरी लेनी होगी, जैसे कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा अधिनियम को दोबारा बहाल करना और निगमों पर करों में वृद्धि करने का उनका वादा. बाइडेन ने अपने कार्यकाल के पहले 100 दिनों में समानता अधिनियम के पारित होने का भी वादा किया था. यह लिंग, किसी खास जेंडर के प्रति यौन आकर्षण और जेंडर के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है. ये विधेयक संसद के निचले सदन ने पास कर दिया है लेकिन सीनेट में पास होना बाकी है.
उनके कुछ वादे सीनेट से मंजूरी मिलने के बाद, बाइडेन के कैबिनेट मंत्रियों की मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं. बंदूक नियंत्रण पर, बाइडेन ने कहा है कि वह अपने अटॉर्नी जनरल को निर्देश देंगे कि वे देश के बंदूक कानूनों को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए प्रमुख न्याय विभाग एजेंसियों के पुनर्गठन की सिफारिशें दें. उन्होंने सभी अमेरिकियों को घर का अधिकार देने के लिए भी वादा किया था. इसके लिए उन्होंने अपने आवास और शहरी विकास मंत्री को एक टास्क फोर्स के गठन के लिए सिफारिशें तैयार करने को कहा था.
आरआर/एमजे (एपी)
वाशिंगटन, 13 मार्च| दुनियाभर में कोरोनावायरस के कुल मामलों की 11.9 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जबकि जबकि 26.3 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी।
शनिवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान कोरोना मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 119,023,857 और 2,638,887 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा 29,343,530 मामलों और 532,400 मौतों के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
वहीं, 11,363,380 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, कोरोनावायरस के 10 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (11,308,846), रूस (4,321,588), ब्रिटेन (4,261,398), फ्रांस (4,075,735), स्पेन (3,183,704), इटली (3,175,807), तुर्की (2,850,930), जर्मनी (2,559,296), कोलंबिया (2,294,617), अर्जेंटीना (2,185,747), मेक्सिको (2,157,771), पोलैंड (1,868,297), ईरान (1,731,558), दक्षिण अफ्रीका (1,526,873), यूक्रेन (1,487,497), इंडोनेशिया (1,487,497), इंडोनेशिया (1,410,134), पेरू (1,394,571), चेक रिपब्लिक (1,376,998) और नीदरलैंड्स (1,160,380) हैं।
वर्तमान में कोरोना से मौतों के मामले में ब्राजील 275,105 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है, उसके बाद तीसरे स्थान पर मेक्सिको (193,851) और चौथे पर भारत (158,306) है।
इस बीच, 50,000 से ज्यादा मौतों वाले देश ब्रिटेन (125,579), इटली (101,564), फ्रांस (90,207), रूस (89,701), जर्मनी (73,204), स्पेन (72,258), ईरान (61,069), कोलंबिया (60,950), अर्जेंटीना (53,578) और दक्षिण अफ्रीका (51,179) हैं। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 13 मार्च| अमेरिका में शुक्रवार तक कोविड-19 वैक्सीन की 10 करोड़ से ज्यादा खुराकें दी जा चुकी हैं। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने ताजा आंकड़ों में यह खुलासा किया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, शुक्रवार तक 13.3 करोड़ वैक्सीन खुराक देश भर में वितरित की जा चुकी थी।
सीडीसी के अनुसार, वर्तमान में, अमेरिका में लगभग 3.5 करोड़ लोग पूरी तरह से डोज ले चुके हैं जबकि लगभग 6.6 करोड़ ने कम से कम एक खुराक ली है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गुरुवार को घोषित किया कि वह सभी राज्यों, ट्राइब, और क्षेत्रों को निर्देश देंगे कि ये 1 मई तक सभी व्यस्क अमेरिकियों को कोविड वैक्सीन लेने को लेकर एलिजबल बनाना सुनिश्चित करें। (आईएएनएस)
जोहान्सबर्ग, 12 मार्च| दक्षिण अफ्रीकी पुलिस ने हाल के वर्षो में देश के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले के मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है। दरअसल यह गिरफ्तारी वीबीएस म्यूचुअल बैंक के कॉलेप्स होने के संबंध में हुई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने कहा कि संदिग्धों को गुरुवार सुबह गौतेंग और लिम्पोपो प्रांतों में विभिन्न स्थानों पर छापेमारी के दौरान गिरफ्तार किया गया।
गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों के खिलाफ चोरी, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और धमकी देने के आरोप समेत कई मामले दर्ज किए गए हैं।
प्राथमिकता अपराध जांच निदेशालय (हॉक्स)ने कहा, "अब एक संदिग्ध संगठित आपराधिक समूह की उपस्थिति अदालत में सुरक्षित है, उन लोगों पर ध्यान देने की जरूरत है, जिन्होंने विभिन्न नगर पालिकाओं से लूटपाट में योगदान दिया है और साथ ही अनुचित लाभार्थियों को लाभ पहुंचाया है।"
वीबीएस संस्थान 2018 में कॉलेप्स कर गया था, क्योंकि इसके भंडार को भ्रष्ट अधिकारियों ने लूट लिए थे, जिससे हजारों ग्राहक वित्तीय परेशानियों में पड़ गए थे। (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 12 मार्च | अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 21 मार्च को धरती के पास से एक बड़े उल्कापिंड के गुजरने की जानकारी दी है। हालांकि पृथ्वी से इसके टकराने का कोई खतरा नहीं है। नासा ने गुरुवार को अपने दिए एक बयान में कहा एफओ32 नाम का यह उल्कापिंड 21 मार्च को पृथ्वी के कुछ 20 लाख किलोमीटर की दूरी पर से गुजरेगा।
लाइव साइंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह उल्कापिंड लगभग 0.8 से 1.7 किलोमीटर व्यास का है।
दक्षिणी कैलिफोर्निया में स्थित नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी द्वारा प्रबंधित सेंटर फॉर नियर अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडीज (सीएनईओएस) के निदेशक पॉल चाडोस ने कहा, "हम सूर्य के चारों ओर 2001 एफओ32 के कक्षीय मार्ग को जानते हैं। इसकी खेज 20 साल पहले की गई थी और तभी इसके कक्षीय मार्ग के बारे में पता लगा लिया गया था। हालांकि ऐसा कोई मौका नहीं है कि यह पृथ्वी के 12.5 करोड़ मील से अधिक नजदीक आ पाएगा।"
बहरहाल खगोलीय दृष्टिकोण से यह दूरी काफी नजदीक है इसलिए 2001 एफओ32 को 'संभावित रूप से खतरनाक' माना गया है। यह लगभग 124,000 प्रति घंटे की रफ्तार से गुजरेगा। इसकी गति उससे कहीं ज्यादा है जिस गति से आने वाले क्षुद्रग्रह अकसर टकराते हैं। (आईएएनएस)
पेशावर, 12 मार्च | पेशावर से ताल्लुक रखने वाले एक पाकिस्तानी टिकटॉक स्टार ने खुदकुशी कर ली है। उनका नाम शहजाद अहमद है। वह 20 साल के थे। शहजाद ने अपने किसी महिला प्रशंसक को शादी के लिए प्रस्ताव भेजा था, जिसे ठुकरा दिए जाने के चलते उन्होंने यह कदम उठाया। मीडिया रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने गुरुवार को बताया, टिकटॉक पर शहजाद के फॉलोअर्स की संख्या दस लाख से भी अधिक थी। वह पहले भी अपनी जान लेने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उन्हें बचा लिया गया था।
शहजाद के भाई सज्जात ने अपनी दर्ज शिकायत में कहा, "शहजाद को एक लड़की से प्यार था, लेकिन उसके पिता ने बार-बार भेजे गए शादी के प्रस्ताव ठुकरा दिया, जिसके चलते शहजाद काफी परेशान हो गया था और आखिर उसने खुदकुशी कर ली।"
शहजाद के एक दोस्त ने द एक्सप्रेस ट्रिब्यून को बताया, "दो साल पहले एक लड़की ने खुद को शहजाद का फैन बताते हुए उससे संपर्क किया था। धीरे-धीरे दोस्ती का यह रिश्ता प्यार में बदल गया। लेकिन लड़की महज 16 साल की है और स्कूल में पढ़ती है। शहजाद ने लड़की को प्रपोज भी किया था, लेकिन लड़की की उम्र कम होने के चलते उसे मना कर दिया गया।" (आईएएनएस)
लोकप्रिय शॉर्ट वीडियो ऐप टिक टॉक पर पाकिस्तान ने बैन लगा दिया है. पेशावर के हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी कि टिक टॉक के जरिए अश्लील सामग्री फैलाई जा रही है.
टिक टॉक पर अश्लील सामग्री फैलाने का आरोप लगाते हुए पेशावर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. जिसके बाद अदालत ने पाकिस्तान दूरसंचार प्राधिकरण (पीटीए) को देश में टिक टॉक तक पहुंच को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया था. गुरुवार को दूरसंचार प्राधिकरण ने इंटरनेट सर्विस कंपनियों को तत्काल रूप से टिक टॉक को देश में ब्लॉक करने को कहा.
बाइटडांस के स्वामित्व वाले इस प्लेटफॉर्म पर देश में सबसे पहले अक्टूबर, 2020 में प्रतिबंध लगाया गया था. उस वक्त टिक टॉक पर "अनैतिक' और "असभ्य" वीडियो को दिखाए जाने का आरोप लगा था. हालांकि सरकार ने महज दस दिनों के भीतर ही इस बैन को हटा लिया था. उस वक्त कंपनी ने "अश्लील और अनैतिक साम्री फैलाने" वाले खातों पर कार्रवाई का भरोसा दिया था.
पीटीए ने गुरुवार को देर रात अपने एक ट्वीट में कहा, "पेशावर हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए पीटीए ने सर्विस प्रोवाइडर्स को निर्देश दिया है कि वे जल्द से जल्द टिक टॉक तक पहुंच को ब्लॉक कर दें." समाचार एजेंसी रॉयटर्स को पीटीए के प्रवक्ता खुर्रम मेहरान ने बताया, "अदालत ने पीटीए से टिक टॉक तक पहुंच को ब्लॉक करने को कहा है." उन्होंने कहा कि प्राधिकरण इस आदेश का पालन करेगा.
टिक टॉक का कहना है वह ऐप में सुरक्षित और सकारात्मक माहौल बनाए हुए है. कंपनी ने इस आदेश के बाद जारी बयान में कहा, "हम सामग्री का पता लगाने और समीक्षा करने के लिए प्रौद्योगिकियों और मॉडरेशन रणनीतियों को मिलाकर इस्तेमाल करते हैं, जो हमारी सेवा की शर्तों और सामुदायिक दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं हम उन वीडियो को हटाते हैं और अकाउंट को बैन करते हैं."
दुनिया के कई देशों में टिक टॉक काफी लोकप्रिय है, खासकर युवाओं के बीच. मंच का इस्तेमाल वीडियो और संगीत मिलाकर युवा अपनी प्रतिभा को दुनिया के सामने रखते हैं. लेकिन यह ऐप कई देशों में विवादों में भी घिरा रहता है, चीनी कंपनी होने के कारण सुरक्षा से जुड़े मुद्दे को लेकर अधिकारी सवाल करते हैं और डाटा की गोपनीयता को लेकर भी चिंता बनी रहती है. पिछले साल चीन के साथ तनाव के बाद भारत ने भी कई चीनी ऐप को बैन कर दिया था जिसमें टिक टॉक भी शामिल था.
एए/सीके (रॉयटर्स)
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ का एक वीडियो ख़ूब वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और सेना प्रमुख क़मर बाजवा को घेरा है. इस वीडियो में उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी मरियम नवाज़ को धमकियाँ दी जा रही हैं.
नवाज़ शरीफ़ ने अपने वीडियो में कहा है कि इमरान ख़ान इस हद तक गिर चुके हैं कि उन्होंने कराची में रात के समय मरियम नवाज़ के होटल का दरवाजा तोड़वाया और अब मरियम को धमकी दी जा रही है कि अगर वो बाज़ नहीं आई, तो उन्हें स्मैश (तबाह) कर दिया जाएगा.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इस समय लंदन में हैं, जहाँ वो इलाज के लिए गए हैं. नवाज़ शरीफ़ ने अपने वीडियो बयान में मरियम नवाज़ की ख़ूब तारीफ़ की और कहा कि वे लोगों के लिए काम कर रही हैं और उनकी सुरक्षा अल्लाह करेंगे.
उन्होंने कहा कि अगर मरियम नवाज़ के साथ कुछ हुआ, तो उसके ज़िम्मेदार इमरान ख़ान के अलावा जनरल क़मर जावेद बाजवा, जनरल फ़ैज़ हमीद और जनरल इरफ़ान मलिक होंगे. नवाज़ शरीफ़ ने कहा कि जो भी आप कर रहे हैं वो संगीन जुर्म है, जिसका हिसाब जल्द ही आपको देना होगा.
पाकिस्तान के पीएम इमरान ख़ान क्या मौजूदा संकट से उबर पाएंगे?
मरियम नवाज़ ने न सिर्फ़ अपने पिता के वीडियो वाले ट्वीट को री-ट्वीट किया है, बल्कि ये भी लिखा है न सिर्फ़ उन्हें धमकियाँ दी जा रही हैं, बल्कि प्रताड़ित भी किया जा रहा है.
नवाज़ शरीफ़ ने अपने बयान में इमरान ख़ान पर विश्वास मत में धांधली का आरोप भी लगाया. हाल ही में हुए सीनेट के चुनाव में वित्त मंत्री अब्दुल हफ़ीज़ शेख़ एक क़रीबी मुक़ाबले में हार गए थे. इसके बाद पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों ने इमरान ख़ान से इस्तीफ़े की मांग की थी.
लेकिन इमरान ने संसद में विश्वास प्रस्ताव रखा, जिस पर हुई वोटिंग में उन्हें बहुमत हासिल हुआ. विपक्षी पार्टियों ने इस वोटिंग का बहिष्कार किया था. पाकिस्तान की सरकार ने विश्वास मत में धांधली के आरोपों का खंडन किया है और विपक्ष पर धन बल से जीत का आरोप लगाया है.
पाकिस्तान में सेना के प्रवक्ता ने भी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के इन आरोपों से इनकार किया है कि सेना राजनीति में दखल दे रही है. पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि उसे राजनीति में न धकेला जाए.
पिछले साल अक्तूबर में इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ विपक्षी गठबंधन पीडीएम (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट) ने कराची के जिन्ना बाग़ में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था. इस प्रदर्शन में मरियम नवाज़ के अलावा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बिलावल भुट्टो भी शामिल हुए थे.
इससे पहले जिन्ना की मज़ार पर भी मरियम नवाज़ और उनके पति कैप्टन मोहम्मद सफ़दर गए थे. आरोप ये है कि वहाँ कैप्टन मोहम्मद सफ़दर ने राजनीतिक नारेबाज़ी की.
बाद में पुलिस ने कराची के होटल से कैप्टन सफ़दर को गिरफ़्तार कर लिया. उस समय मरियम नवाज़ ने आरोप लगाया था कि कराची के जिस होटल में वो और उनके पति ठहरे थे, वहाँ पुलिस उनके कमरे की कुंडी तोड़ भीतर चली आई और तब वो लोग सो रहे थे.
मरियम नवाज़ ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था, "हम सो रहे थे जब बहुत सुबह मुझे लगा कि कोई किसी का दरवाज़ा पीट रहा है, मैंने अपने पति को उठाया और कहा कि ये आवाज़ हमारे ही दरवाज़े से आ रही है. सफ़दर ने दरवाज़ा खोला तो वहाँ पुलिसवाले थे जिन्होंने कहा कि वो उन्हें गिरफ़्तार करने आए हैं. सफ़दर ने कहा कि वो कपड़े बदलकर और अपनी दवा लेकर आ रहे हैं, लेकिन वो नहीं माने और दरवाज़ा तोड़ भीतर चले आए."
नवाज़ शरीफ़ ने अपने वीडियो में इसी बात का ज़िक्र किया है. उस दौरान कैप्टन सफ़दर की गिरफ़्तारी को लेकर भी विवाद हो गया था, जब ऐसा आरोप लगा कि कैप्टन सफ़दर की गिरफ़्तारी को लेकर पुलिस के एक बड़े अफ़सर को ही 'अग़वा' कर लिया गया और उनसे ज़बरदस्ती गिरफ़्तार करवाने के लिए दस्तख़त करवाए गए.
पाकिस्तान में सीनेट चुनाव से पहले इमरान ख़ान के फ़ैसले से विवाद
पाकिस्तानः इमरान-विपक्ष की लड़ाई और सिंध में 'पुलिस अफ़सरों के बाग़ी तेवर'
पुलिस वालों ने इसे अपनी इज़्ज़त का मामला बना लिया और फिर अफ़सर और उनके एक दर्जन से ज़्यादा दूसरे अफ़सरों ने दो महीने के लिए छुट्टी पर जाने की दरख़्वास्त डाल दी. फिर मामले में सेना ने दख़ल दिया और सेना प्रमुख ने मामले की फ़ौरन जाँच कराने का आदेश जारी किया. हालाँकि बाद में कैप्टन सफ़दर को ज़मानत मिल गई और उन्हें छोड़ दिया गया.
नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ और अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस गिरफ़्तारी को राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया था और उनका दावा किया था कि गिरफ़्तारी भले पुलिस ने की, लेकिन इसमें पाकिस्तानी अर्धसैनिक बल रेंजर्स का हाथ था.
क्या है विपक्ष का आंदोलन
पाकिस्तान में पिछले कुछ महीनों से विपक्ष ने इमरान ख़ान की सरकार पर महँगाई, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों को लेकर कई रैलियाँ की है, जिनमें हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया है. विपक्षी दलों ने इमरान ख़ान सरकार के ख़िलाफ़ एक गठबंधन भी बनाया है, जिसे पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) का नाम दिया गया है.
इस गठबंधन में चार बड़ी पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (फ़ज़लुर) और पख़्तूनख़्वाह मिल्ली अवामी पार्टी के अलावा बलोच नेशनल पार्टी और पख़्तून तहफ़्फ़ुज़ मूवमेंट जैसी छोटी पार्टियाँ भी शामिल हैं.
इस गठबंधन ने पिछले साल देश के कई हिस्सों में रैलियाँ की, जिसमें बड़ी संख्या में लोग जुटे. पाकिस्तान की इमरान ख़ान सरकार ने भी विपक्ष के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला. ख़ुद इमरान ख़ान ने विपक्षी गठबंधन पर कई आरोप लगाए और नवाज़ शरीफ़ के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामलों की चर्चा की.
NAWAZ SHARIF TWITTER
नवाज़ शरीफ़ ने भी जवाब में पाकिस्तान की सेना पर आरोप लगाए. कई रैलियों को उन्होंने लंदन से वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए संबोधित किया.
इमरान ख़ान ने भी नवाज़ शरीफ़ पर भारत के साथ मिलकर काम का आरोप लगाया और उन्हें गीदड़ तक कह दिया.
इमरान ख़ान का कहना था कि नवाज़ शरीफ़ ने अपनी सेहत का बहाना बनाकर सरकार से विदेश जाने की इजाज़त ले ली और वो लंदन में बैठकर वहाँ से सरकार और सेना पर हमले कर रहे हैं जबकि उनकी तबीयत बिल्कुल ठीक है. इमरान ख़ान का कहना था कि वो नवाज़ शरीफ़ को लंदन से वापस पाकिस्तान लाएँगे.
पिछले कुछ समय से धीमा पड़ा विपक्ष सीनेट के चुनाव के बाद एकाएक फिर आक्रामक हो गया है. (bbc.com)
ह्यूस्टन, 12 मार्च | अमेरिकी राज्य टेक्सास में एक अपार्टमेंट परिसर में तीन लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को एक बयान में ह्यूस्टन पुलिस विभाग ने कहा कि यह घटना शहर में बुधवार देर रात हुई।
विभाग के अनुसार, यह घटना उस समय शुरू हुई जब कॉम्प्लेक्स की पाकिर्ंग में पांच लोगों का एक ग्रुप दो अन्य लोगों के साथ किसी बात पर भिड़ गया।
पुलिस ने कहा कि उन्होंने इस ग्रुप पर कई राउंड फायरिंग की। पीड़ितों में दो 18-वर्षीय किशोर शामिल थे।
ह्यूस्टन पुलिस विभाग ने एक बयान में कहा कि एक अन्य घायल महिला को अस्पताल ले जाया गया है और उसके बचने की उम्मीद है।
पुलिस ने कहा कि शूटर घटनास्थल से भाग गए। पुलिस के पास उनका कोई विवरण मौजूद नहीं है। इस घटना को एक 'मास शूटिंग' (सामूहिक फायरिंग) माना जाता है, जो तब होता है जब तीन या अधिक पीड़ित होते हैं। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 12 मार्च | अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की प्रवक्ता जेन साकी ने उनके उस दावे का बचाव किया है कि जिसमें उन्होंने कहा था कि 'भारतीय-अमेरिकी, अमेरिका पर अपना दबदबा जमा रहे हैं'। इस बयान को लेकर कुछ लोगों ने बाइडेन की आलोचना की है।
जेन साकी ने गुरुवार को कहा, "राष्ट्रपति सिर्फ भारतीय-अमेरिकियों के विज्ञान के क्षेत्र में दिए गए अविश्वसनीय योगदान को स्वीकृति और सम्मान दे रहे थे।"
प्रेस ब्रीफिंग में एक पत्रकार द्वारा इस बयान को लेकर की जा रही आलोचना के बारे में सवाल पूछे जाने पर साकी ने कहा, "यह उनके उस विश्वास का एक प्रतिबिंब था कि भारतीय-अमेरिकियों ने अमेरिकी समाज के निर्माण में महान योगदान दिया है, फिर चाहे वह विज्ञान का क्षेत्र हो शिक्षा का हो या सरकार में हो।"
दरअसल, नासा की इंजीनियर और मंगल पर रोवर पर्सिवरेंस की लैंडिंग को गाइड कराने वाली स्वाति मोहन से एक वर्चुअल मीटिंग में बाइडेन ने कहा था कि "यह आश्चर्यजनक है कि अमेरिकी में भारतीय मूल के लोग छाए हुए हैं। मेरी उप-राष्ट्रपति, मेरे भाषणों के लेखक, ये सब भारतीय-अमेरिकी हैं। मैं आप सबको धन्यवाद देना चाहता हूं, आप लोग अतुलनीय हैं।"
जहां बाइडेन के इस बयान को भारत की प्रशंसा के रूप में लिया गया, वहीं अमेरिका में रह रहे कुछ भारतीयों को लगता है कि इसके बाद उन्हें अमेरिकियों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, यहूदियों के बारे में अच्छे इरादे से दिए गए बयान भी यहूदियों के विरोध में गए और इसके कारण पूरे यूरोप में उन पर हमले भी हुए। यहां तक कि अमेरिका में भी यहूदियों पर हमले हुए।
बाइडेन के इस बयान की आलोचना करते हुए दक्षिणपंथी प्रकाशन रेडस्टेट ने कहा है कि यदि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसा बयान दिया होता तो उन्हें नस्लवादी कहा जाता। रेडस्टेट ने आगे कहा, "मुझे एक समझदार व्यक्ति दिखाइए जो यह मानता हो कि भारतीय-अमेरिकियों का एक अज्ञात समूह तुरंत संघीय सरकार का नियंत्रण संभालने जा रहा है। इस पर तो विश्वास करना भी बेवकूफी है कि अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी बहुमत में हैं।" (आईएएनएस)
पहली नजर में भले ही यह असली स्कार्फ की तरह ना दिखे लेकिन सुंदर है. फिरोजी, नीली और नारंगी धारियों के साथ उभरी बुनावट आंखों को भाती हैं. देखने भर से यकीन करना मुश्किल है कि यह बात करने में मदद कर सकता है.
आम स्कार्फ की तरह इसे पहना, मोड़ा और धोया जा सकता है. इसके बावजूद इसमें एक डिस्प्ले भी मौजूद है जिस पर संदेश पढ़े जा सकते हैं, तस्वीरें देखी जा सकती हैं या फिर जिन्हें कीबोर्ड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. इस खास फैब्रिक को शंघाई के फुडान यूनिवर्सिटी में मैक्रोमॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर हुइशेंग पेंग के नेतृत्व वाली टीम ने तैयार किया है. इसके बारे में साइंस जर्नल नेचर ने रिपोर्ट छापी है. प्रोफेसर हुइशेंग पेंग मानते हैं कि इससे संचार की दुनिया में एक नई क्रांति आएगी. उनका मानना है, "जिन लोगों को आवाज, बोली या फिर भाषा की दिक्कत है उन्हें यह औरों के सामने अपनी बात रखने में मदद करेगा." प्रोफेसर पेंग ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमें उम्मीद है कि बुने रेशों वाला यह मैटीरियल जिस तरह हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बात करते हैं उसे बदल कर अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक्स को आकार देगा."
वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स का बढ़ता चलन
पहने जाने वाले उपकरण यानी वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स में पिछले कुछ सालों में भारी तरक्की हुई है. अब इलेक्ट्रॉनिक फंक्शन वाले कपड़े और बेहद पतले डिस्प्ले बाजार में आ चुके हैं. इसी हफ्ते एक और स्टडी की रिपोर्ट छपी है जिसमें पहने जाने वाले माइक्रोग्रिड का जिक्र है. इस ग्रिड को शरीर से निकलने वाले पसीने से ऊर्जा मिलती है. हालांकि इस तरह की जितनी चीजें आईं हैं उनकी कुछ सीमाएं हैं. अकसर इन बेहद पतले एलईडी को कपड़ों के साथ बुन कर तैयार किया जाता है. इसके नतीजे में जो मैटीरियल तैयार होता है उसके पार हवा नहीं जा सकती और ना ही ये बहुत लचीले होते हैं. अकसर ये बहुत नाजुक होते हैं जिनके नुकसान का डर होता है. इसके साथ ही इनके डिस्प्ले में पहले से तय पैटर्न ही दिखाई देते हैं.
पेंग और उनकी टीम ने मौजूदा तकनीक को बेहतर बनाने पर पर करीब दशक भर मेहनत की और अलग अलग मैटीरियल के साथ प्रयोग करते रहे. एक बार उनका प्रयोग इसलिए नाकाम हो गया क्योंकि डिस्प्ले अंधरे में काम नहीं कर रहा था तो दूसरी बार उन्होंने रेशे तो बना लिए लेकिन बुनाई के बाद उन्होंने अच्छा काम नहीं किया. बड़ी कामयाबी तब मिली जब उन्होंने कपड़े के रेशों का अध्ययन किया और देखा कि वो कैसे एक दूसरे से आपस में गुंथ कर कपड़े का टुकड़ा बनाते हैं. टीम ने तय किया कि वो कपड़े के रेशों के मिलने वाली जगह पर रोशनी का सूक्ष्म बिंदु बनाने की कोशिश करेंगे. इन छोटे छोटे रोशनी के बिंदुओं को बनाने के लिए उन्हें एक प्रदीप्त आधार और संवाहक कपड़े की जरूरत थी जिन्हें सूती या इसी तरह के किसी धागे के साथ बुना जा सके.
ऐसे तैयार किया गया नया फैब्रिक
कई तरह की चीजों को परखने के बाद आखिरकार उन्हें चांदी की परत वाले रेशे से उम्मीद जगी जिस पर प्रदीप्त योगिक का लेप लगा हुआ था और संवाहक कपड़े को उन्होंने एक जेल जैसी चीज के साथ बुना. इन दोनों को साथ मिला कर सूती धागे के सहारे उन्होंने छः मीटर लंबा और 25 सेंटीमीटर चौड़ा फैब्रिक तैयार कर लिया. जब इसे बिजली के करंट से जोड़ा गया तो चांदी की परत वाले रेशे उस जगह पर रोशन हो गए जहां वो संवाहक जेल के साथ संपर्क में थे. इस डिस्प्ले मैटीरियल को रोशन करने के लिए बहुत कम बिजली की जरूरत होती है और यह ज्यादा गर्म नहीं होता. इस फैब्रिक में तनाव झेलने की खूब क्षमता है. इस फैब्रिक को करीब एक महीने तक खुली हवा में रखा गया, 100 बार धोया और सुखाया गया और 10 हजार बार मोड़ा गया. इसकी चमक में कोई कमी नहीं आई.
स्टडी बताती है कि इसे बैट्री से ऊर्जा दी जा सकती है या फिर सौर ऊर्जा का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. तो आखिर फैब्रिक का इस्तेमाल कहां होगा? पेंग इसके कई विकल्प देखते हैं जिनमें डायनैमिक स्लीव डिस्प्ले भी एक है. ड्राइवर को जीपीएस मैप घूमते वक्त उसके हाथों पर ही दिख जाएगा. हालांकि उन्हें उम्मीद है कि यह मैटीरियल उन लोगों की ज्यादा मदद करेगा जो शारीरिक या फिर भाषाई दिक्कतों के कारण संवाद नहीं कर पाते. पेंग का कहना है कि उनकी टीम इसे बेहतर बनाने के लिए कई और प्रयोग कर रही है. इनमें डिस्प्ले को और ज्यादा चमकदार और रिजॉल्यूशन को बेहतर बनाना भी शामिल है.
एनआर/एमजे (एएफपी)
मुख्य विपक्षी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अब्बासी ने कहा गत तीन मार्च को सीनेट के लिए हुए चुनाव में मुहम्मद अब्दुल कादिर निर्दलीय उम्मीदवार थे। वह सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) और दूसरी पार्टियों से वोट पाने में सफल रहे।
लाहौर, प्रेट्र। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्ठ विपक्षी नेता शाहिद खाकन अब्बासी ने प्रधानमंत्री इमरान खान पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया कि इमरान खान ने संसद के ऊपरी सदन सीनेट की एक सीट बेच दी। उन्होंने इस सीट के लिए बलूचिस्तान के एक बड़े कारोबारी से 70 करोड़ पाकिस्तानी रुपये लिए। मुख्य विपक्षी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अब्बासी ने कहा, 'गत तीन मार्च को सीनेट के लिए हुए चुनाव में मुहम्मद अब्दुल कादिर निर्दलीय उम्मीदवार थे। वह सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) और दूसरी पार्टियों से वोट पाने में सफल रहे।
पीटीआइ सांसदों ने इमरान के निर्देश पर कादिर के लिए मतदान किया। इमरान को कादिर से 70 करोड़ मिले थे।' उन्होंने कहा कि सीनेट सीट बेचने के लिए इमरान को जवाबदेह बनाया जाएगा। खुद इमरान की पार्टी पीटीआइ के कई सदस्य कह रहे हैं कि इस व्यक्ति ने सीनेटर बनने के लिए प्रधानमंत्री को पैसे दिए हैं। अब्बासी ने चुनाव आयोग से सीनेट सीट बेचने के मामले का संज्ञान लेने की अपील की है।
सीनेट के चुनाव में मंत्री की हार पर इमरान को हासिल करना पड़ा विश्वास मत
ज्ञात हो कि पूर्व पीएम युसूफ रजा गिलानी को सीनेट के चेयरमैन पद के लिए 11 विपक्षी दलों के गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के उम्मीदवार बनाया था। गिलानी ने ही सीनेट सदस्य के चुनाव में इमरान के विश्वस्त वित्त मंत्री अब्दुल हफीज शेख को हराकर सरकार को चारों खाने चित्त कर दिया था। सरकार की साख बचाने के लिए प्रधानमंत्री इमरान खान को फिर से विश्वास मत हासिल करना पड़ा।
पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (पीएमएल-एन) की उपाध्यक्ष और पूर्व पीएम नवाज शरीफ की बेटी मरयम नवाज ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने विश्वास मत हासिल करने के लिए खुफिया विभाग की मदद से अपने दो मंत्रियों को चार घंटे तक कंटेनर में बंद करा दिया था। उन्होंने आरोप लगाया कि अपने सांसदों को घेरने के लिए इमरान खान ने पूरी सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। मरयम ने कहा कि सत्तारूढ़ दल के सांसद उनके दल के संपर्क में हैं। विश्वास मत हासिल करने के दौरान सरकारी एजेंसियों ने प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए उन्हीं के सांसदों को गायब करने का काम किया। पीएमएल-एन की नेता ने कहा कि इमरान खान के विश्वास मत प्राप्त करने को किसी भी रूप में वैध, संवैधानिक, राजनीतिक और नैतिक रूप से सही नहीं कहा जा सकता। (jagran.com)
ब्रितानी शाही परिवार के प्रिंस हैरी ने ओप्रा विन्फ़े को दिए इंटरव्यू में कहा था कि जब उन्होंने और मेगन ने वरिष्ठ शाही का पद छोड़ा और कौलिफ़ोर्निया आ गए तो उनके परिवार से मिलने वाली आर्थिक मदद रोक दी गई.
जनवरी 2020 में ड्यूक और डचेज़ ऑफ ससेक्स ने ऐलान किया कि वह सीनियर रॉयल को तौर पर काम करना बंद कर रहे हैं और वे अब ख़ुद को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने की दिशा में करेंगे.
माना जा रहा था कि नए क़रार के तहत शाही जोड़े को अपने पिता प्रिंस चार्ल्स से कुछ वक़्त तक आर्थिक सहयोग मिलेगा. हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि यह सहयोग डची कॉर्नवाल से दिया जाएगा या किसी अन्य तरीक़े से. डची कॉर्नवाल संपत्ति और वित्तीय निवेश का एक बड़ा पोर्टफ़ोलियो जिसे एडवर्ड तृतीय ने स्थापित किया था ताकि ड्यूक ऑफ़ कॉर्नवाल अपने और अपने बच्चों की आर्थिक देखरेख कर सकें.
प्रिंस चार्ल्स के अकाउंट की डिटेल के मुताबिक़ मार्च 2020 तक ड्यूक-डचेज़ ऑफ़ ससेक्स और ड्यूक-डचेज़ ऑफ़ कैम्ब्रिज यानी विलियम और केट की गतिविधियों पर 56 लाख पाउंड ख़र्च किया गया है.
लेकिन प्रिंस हैरी ने ओप्रा विन्फ्रे को बताया कि शाही परिवार ने मेरी 'आर्थिक मदद रोक दी है.'
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वह उस पैसे का ज़िक्र कर रहे थे जो पहले प्रिंस चार्ल्स की आय डची ऑफ़ कॉर्नवाल से उन्हें मिल रहा था.
मार्च 2020 के बाद के प्रिंस चार्ल्स के अकाउंट की जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है. साथ ही क्लेयरेंस हाउस ने इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है.
क्या ड्यूक एंड डचेज़ ऑफ़ ससेक्स अमीर हैं?
ड्यूक और डचेज़ ऑफ़ ससेक्स के पास व्यक्तिगत संपत्ति है.
जब प्रिंसेस प्रिंस विलियम और हैरी मां प्रिंसेस डायना की मौत हुई थी तो वह अपने बच्चों के लिए एक करोड़ तीस लाख पाउंड छोड़ गई थीं.
ओप्रा के इंटरव्यू में हैरी ने कहा, ''मुझे वो मिला जो मेरी मां मेरे लिए छोड़ कर गई थीं, अगर वो ना होता तो हम ब्रिटेन छोड़ कर कैलिफ़ोर्निया नहीं आ पाते. ''
बीबीसी के रॉयल संवाददाता निक विचहेल बताते हैं कि माना जा रहा है कि हैरी के लिए कई लाख पाउंड छोड़ गई उनकी पर-दादी यानी महारानी की मां की रक़म को भी छोड़ दिया है.
अपने अभिनय करियर के दौरान, डचेस ऑफ़ ससेक्स मेगन मार्केल को लीगल ड्रामा सूट्स के लिए प्रति एपिसोड 50,000 डॉलर किया जाता था, इसके अलावा वो एक फ़ैशन ब्लॉग भी चलाती थीं और एक कनाडाई ब्रांड के लिए अपनी ख़ुद की फ़ैशन लाइन भी बनाई थी.
अतिरिक्त आमदनी का क्या है ज़रिया?
अब जबकि हैरी और मेगन वरिष्ठ शाही नहीं हैं तो वह अपनी आमदनी जुटाने के लिए स्वतंत्र हैं.
शाही जोड़े को ओप्रा विन्फ़्रे को दिए गए इंटरव्यू के बदले कोई भुगतान नहीं किया गया है. लेकिन अमेरिका में बसने के बाद ही उन्होंने नेटफ़्लिक्स और स्पॉटिफ़ाई के साथ डील साइन की. माना जाता है कि इस डील की क़ीमत लाखों में है.
उन्होंने आर्चीवेल नामक एक संगठन की स्थापना की है, जो एक ग़ैर-लाभकारी संस्था होने के साथ-साथ प्रोडक्शन की दुनिया में भी काम कर रही है.
ओप्रा के ये पूछे जाने पर कि दंपति "जल्दी-जल्दी पैसे- जुटाने" के आरोपों पर क्या कहेंगे?
इस पर प्रिंस हैरी ने कहा कि ''नेटफ्लिक्स और स्पॉटिफ़ाई के साथ सौदे "योजना का हिस्सा नहीं थे", लेकिन ये आवश्यक हो गए थे.''
''मेरे नज़रिए से मुझे सुरक्षा के लिए भुगतान करने, अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता थी.
वरिष्ठ शाही होने के दौरान कौन करता था फ़ंडिंग
जब ये जोड़ा बतौर वरिष्ठ शाही जोड़े के तौर पर काम करता था जो इनके 95 फ़ीसदी ख़र्चे प्रिंस चार्ल्स के डची ऑफ़ कॉर्नवाल से होने वाली आमदनी के ज़रिए उठाया जाता था.
साल 2018-2019 में डची ऑफ़ कॉर्नवाल से 50 लाख पाउंड का ख़र्चा ड्यूक और डचेज़ ऑफ़ ससेक्स और ड्यूक और डचेज़ ऑफ़ कैम्ब्रिज के सार्वजनिक दौरों पर ख़र्च किया गया. इसमें से कुछ रक़म उनके व्यक्तिगत ज़रूरतों पर भी ख़र्ची गईं.
पाँच फ़ीसद का ख़र्चा टैक्स देने वालों के पैसे से बने सॉवरेन ग्रांट से किया जाता था.
इस अनुदान का भुगतान सरकार से शाही परिवार को आधिकारिक कर्तव्यों के ख़र्च के लिए और शाही महलों की देखभाल के लिए किया जाता है.
इस वित्तीय साल में ये रक़म कुल आठ करोड़ 59 लाख पाउंड है. इसकी भरपाई राजपरिवार के स्वामित्व वाले कमर्शियल संपत्ति से की जाती है.
ड्यूक और डचेज़ ने सितंबर में घोषणा की कि उन्होंने अपने घर फ्रॉगमोर कॉटेज को पुनर्निर्मित करने की 24 लाख पाउंड की लागत वापस कर दी है.
क्राउन स्टेट क्या है?
क्राउन स्टेट एक स्वतंत्र व्यवसाय के लिए वाणिज्यिक संपत्ति है और यूके में सबसे बड़ी संपत्ति पोर्टफ़ोलियो में से एक है.
इसमें विंडसर ग्रेट पार्क और अस्कॉट रेसकोर्स शामिल हैं, लेकिन अधिकांशतः इसमें आवासीय और वाणिज्यिक संपत्ति है सॉवरिन अनुदान जो आधिकारिक शाही कर्तव्यों का पालन करने का ख़र्च उठाता है साथ ही शाही महलों की देख-रेख का ख़र्च देता है. (bbc.com)
-मनोज वर्मा
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में कारोबारी मुकेश अंबानी के आवास के पास एक एसयूवी में विस्फोटक रखने की जिम्मेदारी लेने का दावा करने वाले जैश-उल-हिंद संगठन का ‘टेलीग्राम’ चैनल दिल्ली के तिहाड़ इलाके में बनाया गया. मुंबई पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी जानकारी दी है.
सूत्रों के मुताबिक इजराइली एंबेसी के पास हुए ब्लास्ट और मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के पास कार से मिले विस्फोटक... दोनों मामलो में इसका केंद्र तिहाड़ जेल का इलाका रहा है. वहीं जैश-उल-हिंद के तार भी तिहाड़ जेल से जुड़े हैं.
दिल्ली पुलिस सूत्रों के मुताबिक इजराइली एंबेसी ब्लास्ट की जांच के दौरान पता चला था कि टेलीग्राम पर भेजे गए मैसेज के तार तिहाड़ जेल से जुड़े हुए थे. वहीं एंटीलिया के पास स्कॉर्पियो में जो 20 जिलेटिन की छड़ें बरामद हुई थी, इसके बाद इजराइली एंबेसी के पास हुए ब्लास्ट की तर्ज पर ही टेलीग्राम पर मैसेज भेजा गया, उसकी जांच के तार भी तिहाड़ जेल से जुड़े हैं.
तिहाड़ में रची साजिश
ऐसे में दोनों मामले इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि दोनों ही मामलों में साजिश तिहाड़ जेल से रची गई. हालांकि, अभी तक आरोपियों का कोई सुराग नहीं मिला है लेकिन दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की टीम तिहाड़ में दोनों ही मामलों में सुराग तलाशने में जुटी हुई है. इतना ही नहीं, जैश-उल-हिंद को लेकर भी अभी तक कोई पुख्ता सुराग जांच एजेंसियों के पास मौजूद नहीं है.
जांच एजेंसियों को शक है कि तिहाड़ जेल में बैठे कुछ अपराधियों ने ही दोनों वारदातों की साजिश रची. टेलीग्राम पर भी वहीं से दोनों मामलों में जैश-उल-हिंद के नाम से जिम्मेदारी संबंधित मैसेज सोशल मीडिया ऐप टेलीग्राम पर भेजी गई. हालांकि अब सवाल ये है कि तिहाड़ जेल में बैठे वो लोग कौन हैं, जो देश की तमाम जांच एजेंसियों को खुले आम चुनौती दे रहे हैं.
मुस्लिम बहुल देश मलेशिया की एक अदालत ने गैर-इस्लामी प्रकाशनों द्वारा ईश्वर को संबोधित करने के लिए "अल्लाह" शब्द पर दशकों से लगी रोक को हटा दिया है. इस ऐतिहासिक फैसले के बाद धार्मिक तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है.
क्वालालंपुर हाई कोर्ट के फैसले की पुष्टि मामले से जुड़े वकील ने की है और मीडिया द्वारा भी इस पर रिपोर्ट की गई. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बुधवार को इस मामले में फैसला आया है और गैर-इस्लामी प्रकाशनों में अल्लाह शब्द के इस्तेमाल पर लगी रोक को हटा दिया गया. जिल आयरलैंड नाम की ईसाई महिला ने मुकदमा किया था कि उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. ईश्वर के लिए अरबी शब्द लंबे समय से मलेशिया में विभाजनकारी है.
ईसाइयों ने इस्लामीकरण को उजागर करने के लिए इसका इस्तेमाल करने से रोकने की कोशिशों की शिकायत की थी, लेकिन कुछ मुसलमानों ने ईसाइयों पर सीमा को लांघने का आरोप लगाया था. 2008 में अधिकारियों ने क्वालालंपुर एयरपोर्ट से जिल आयरलैंड से मलय-भाषा की धार्मिक किताबें और सीडी जब्त की थी. यब जब्ती 1986 के गृह मंत्रालय के उस आदेश के तहत की गई थी जिसके मुताबिक ईसाई प्रकाशनों में अल्लाह शब्द का इस्तेमाल प्रतिबंधित था.
कई मलय-भाषी ईसाई कहते हैं कि इस शब्द का उपयोग देश में सदियों से किया जा रहा है, खासतौर पर मलेशिया के बोर्नियो द्वीप पर. आयरलैंड के वकील के मुताबिक अदालत ने बुधवार को फैसला दिया की कि संविधान ने आयरलैंड को समानता का अधिकार दिया है और वह शिक्षा और धर्म का पालन करने के लिए प्रकाशनों को आयात करने की हकदार थीं.
उन्होंने कहा, "कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि गृह मंत्रालय द्वारा 1986 का निर्देश...गैरकानूनी और असंवैधानिक था."हालांकि गृह मंत्रालय ने कोर्ट के इस फैसले पर तुरंत टिप्पणी नहीं दी. 2015 में मलेशिया के सर्वोच्च न्यायालय कैथोलिक चर्च द्वारा एक ईसाई प्रकाशन में "अल्लाह" शब्द का इस्तेमाल करने की अपील को खारिज कर दिया था, क्योंकि एक ट्रिब्यूनल ने कहा था कि यह शब्द बहुसंख्यक मलय मुस्लिमों द्वारा ही इस्तेमाल किया जा सकता है. 2010 की जनगणना के अनुसार ईसाई मलेशिया की आबादी का लगभग नौ फीसदी हिस्सा हैं.
एए/सीके (रॉयटर्स)
जकार्ता, 11 मार्च | इंडोनेशिया के पश्चिमी प्रांत पश्चिम जावा में बुधवार को एक बस के खाई में गिर जाने से 26 लोगों की मौत हो गई, जबकि दर्जनों अन्य घायल हो गए। बस में 62 लोग सवार थे। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने यह जानकारी दी। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 11 मार्च| अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि उनका प्रशासन जॉनसन एंड जॉनसन कोविड-19 वैक्सीन के 100 मिलियन (10 करोड़) डोज और ऑर्डर करेगा। इस योजना को अमलीजामा पहनाए जाने के बाद अमेरिका द्वारा ऑर्डर किए गए कोविड-19 वैक्सीन के कुल डोज की संख्या 800 मिलियन यानि कि 80 करोड़ पर पहुंच जाएगी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक बाइडेन ने कहा है, "शनिवार को हमने अमेरिका में एक दिन में 29 लाख टीकाकरण करके रिकॉर्ड बनाया है।"
साथ ही उन्होंने कहा कि मई के अंत तक संयुक्त राज्य अमेरिका के पास उसके हर वयस्क नागरिक के लिए कोविड-19 वैक्सीन डोज होंगे। यानि कि जुलाई के आखिर के लिए तय की गई समयसीमा से पहले ही हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे।
अमेरिका में अभी आपातकालीन उपयोग के लिए 3 कोविड-19 वैक्सीन को मंजूरी मिली है। अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अमेरिकी दवा निर्माता फाइजर और उसके जर्मन पार्टनर बायोएनटेक को और अमेरिकी दवा निर्माता मॉडर्ना को पिछले साल दिसंबर में मंजूरी दी थी। वहीं हाल ही में 27 फरवरी को जॉनसन एंड जॉनसन के कोविड वैक्सीन को मंजूरी दी गई। यह अमेरिका में एप्रूव हुआ पहला सिंगल डोज वैक्सीन है। यानि कि बाकी वैक्सीन की तरह इसके 2 डोज लेने की जरूरत नहीं होगी।
यूएस सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार बुधवार तक देश में 12.7 करोड़ वैक्सीन डोज वितरित हुए थे और 9.5 करोड़ डोज दिए जा चुके थे। (आईएएनएस)
रजनी वैद्यनाथन
म्यांमार के पुलिस अधिकारियों ने बीबीसी को बताया है कि मिलिट्री का हुक्म मानने से इनकार करने के बाद वे सरहद पारकर भारत चले आए. भारत भागकर आने वाले लोगों की संख्या एक दर्जन से ज़्यादा है.
इन लोगों ने बीबीसी को बताया कि वे डर गए थे, इस बात से कि उन्हें आम लोगों की जान लेने या उन्हें नुक़सान पहुँचाने के लिए मजबूर किया जा सकता है. इसलिए वे भाग गए. इन्हीं लोगों में एक नाइंग भी हैं. 27 साल के नाइंग जिनका नाम हमने उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बदल दिया है, पिछले नौ साल से म्यांमार की पुलिस में हैं.
लेकिन अब वे भारत के मिज़ोरम राज्य में छुप रहे हैं. मैं उन लोगों से मिली. वो पुलिसवालों और महिलाओं का एक ग्रुप था जिनकी उम्र 20 से 30 के बीच रही होगी.
एक अधिकारी ने बताया, "मैं डरा हुआ था कि मुझे मिलिट्री के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे मासूम लोगों को नुक़सान पहुँचाने या उन की जान लेने के लिए मजबूर किया जाएगा. हमें लगता है कि एक चुनी हुई सरकार का तख़्तापलट करके सेना ने ग़लती की थी."
म्यांमार की सेना ने एक फ़रवरी को जब से सत्ता पर अपना नियंत्रण स्थापित किया है, हज़ारों लोकतंत्र समर्थक लोग सड़क पर उतर चुके हैं.
लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता
म्यांमार में सुरक्षा बलों पर ये आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने 50 से भी ज़्यादा लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं की हत्या की है.
नाइंग पुलिस में एक छोटे ओहदे के अधिकारी हैं. उनकी पोस्टिंग म्यांमार के पूर्वी इलाक़े के एक शहर में थी. नाइंग ने बताया कि उनके इलाक़े में फ़रवरी के आख़िर में विरोध प्रदर्शन भड़क गए थे.
उनका कहना है कि उन्हें दो बार प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के लिए कहा गया था. उन्होंने इससे इनकार कर दिया जिसके बाद वे भारत भाग आए.
"मैंने अपने बॉस से कहा कि मैं ये नहीं कर सकता हूं और मैं लोगों का साथ देने जा रहा हूं. सेना में एक तरह की बेचैनी है. वे लगातार बर्बर होते जा रहे हैं."
जब हम बात कर रहे थे तो नाइंग ने जेब से फ़ोन निकाला और पीछे छोड़ आए परिवार की तस्वीरें दिखाने लगे. पत्नी और दो बेटियां जो अभी महज़ पाँच और छह साल की हैं.
उन्होंने बताया, "मुझे डर है कि शायद उनसे मिलना फिर कभी मुमकिन न हो पाए."
म्यांमार में तख़्तापलट
मैं नाइंग और उनके ग्रुप के लोगों से एक अज्ञात ठिकाने पर मिली थी. वहां से मिज़ोरम के पहाड़ों की चोटियां और घाटियां दोनों ही दिखाई दे रही थीं. जिस जगह से हम बात कर रहे थे, वहां से नाइंग का मुल्क महज़ दस मील की दूरी पर था.
पुलिस के जिन अधिकारियों से हमारी बात हुई वे तख़्तापलट के बाद म्यांमार छोड़ने वाले शुरुआती लोगों में से थे. वे इस बात के गवाह थे कि उनके मुल्क में क्या हो रहा है जिसके बारे में उन्होंने हमें बताया भी.
उनका कहना था कि वे म्यांमार प्रशासन के उन अधिकारियों में से हैं जो देश के लोकतंत्र समर्थक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो रहे हैं. ऐसे लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. हालांकि म्यांमार छोड़कर भारत आए इन पुलिसवालों के दावों की स्वतंत्र सूत्रों से पुष्टि बीबीसी नहीं कर सकता था.
म्यांमार में तख़्तापलट का विरोध कर रहे आम लोगों पर की जा रही सख़्ती की संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और अन्य देशों ने आलोचना की है और मिलिट्री से संयम बरतने के लिए कहा है. म्यांमार की सेना इन आरोपों से इनकार करती है. स्थानीय अधिकारियों के अनुसार तख्तापलट के बाद से 100 से भी ज़्यादा लोग म्यांमार छोड़कर मिज़ोरम आ चुके हैं.
भारत और म्यांमार की सरहद
हतुत - ये उनका असली नाम नहीं है- उस रात को याद करते हैं जब म्यांमार की फ़ौज ने चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर दिया था. देश में इंटरनेट बंद कर दिया गया था. उनके पुलिस स्टेशन के पास सेना की की एक चौकी बना दी गई थी.
वे बताते हैं, "कुछ घंटों बाद हमें ये पता चला कि सेना ने तख्तापलट कर दिया है." 22 साल के हतुत ने बताया कि वे और अन्य पुलिस वाले मिलिट्री के साथ मिलकर सड़कों पर गश्त कर रहे थे. लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के समर्थन में बर्तन बजाकर शांतिपूर्ण तरीक़े से प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करने की धमकी देकर डराया गया.
हतुत म्यांमार के एक बड़े शहर से आते हैं. उन्होंने बताया कि प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का उन्हें हुक्म दिया गया जिसे मानने से उन्होंने इनकार कर दिया.
वे बताते हैं, "मिलिट्री का जो अफ़सर वहां पर कमान संभाले हुए था, उसने हमसे पाँच से ज़्यादा लोगों के समूह पर गोली चलाने का हुक्म दिया था. मैं जानता था कि लोगों को मारा-पीटा जा रहा है. मेरी रातों की नींद उड़ चुकी थी. जब मैंने देखा कि मासूम लोग ख़ून से लथपथ हैं, मेरे ज़मीर ने मुझे ऐसे गुनाह में शामिल होने की इजाज़त नहीं दी."
'सिस्टम बदल गया है'
हतुत ने बताया कि अपने पुलिस स्टेशन से भागने वाले वे अकेले थे. आगे का सफ़र उन्होंने मोटरसाइकिल से किया. वे बताते हैं कि भारत की सरहद तक पहुँचने के लिए उन्होंने गांवों से होकर गुज़रने वाला रास्ता चुना. वे बहुत डरे हुए थे.
जिन लोगों से हमारा बात हुई, वे तिआउ नदी पारकर भारत आए थे. 250 मील लंबी ये नदी भारत और म्यांमार की सरहद का कुछ हिस्सा तय करती है.
जिन लोगों से हमारी बात हुई, उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में और भी पुलिस वाले देश छोड़कर भारत आएंगे. हतुत और नाइंग के समूह में दो महिला पुलिसकर्मी भी हैं. उनमें एक का ग्रेस (बदला हुआ नाम) था. उन्होंने बताया कि मिलिट्री प्रदर्शनकारियों पर लाठी-डंडों के अलावा रबर बुलेट का इस्तेमाल कर रही है.
वे कहती हैं, "एक मौक़े पर मिलिट्री ने एक ग्रुप पर अश्रु गैस का भी इस्तेमाल किया जिसमें बच्चे भी थे. वे चाहते थे कि हम भीड़ को तितर-बितर करें, अपने दोस्तों को गिरफ़्तार करें. लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते थे. हमें पुलिस के काम से लगाव है. लेकिन अब . हम अपना काम नहीं जारी रख सकते हैं."
24 साल की ग्रेस का कहना है कि म्यांमार में उनकी मां हैं जिन्हें दिल की बीमारी है. वे बताती हैं, "मेरे मां-बाप बूढ़े हो गए हैं. वे बेहद डरे हुए भी हैं. लेकिन हमारे पास उन्हें अकेला छोड़ देने के अलावा कोई और रास्ता नहीं रह गया था."
म्यांमार की सरकार ने भारत से दोस्ताना संबंधों को बरक़रार रखने के लिए अपने पुलिसवालों को वापस करने के लिए कहा है.
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथंगा ने कहा है कि उनकी सरकार म्यांमार से आए लोगों को अस्थाई तौर पर पनाह देगी और केंद्र सरकार आगे के बारे में फ़ैसला लेगी.
स्थानीय लोगों ने बताया कि आने वाले दिनों में और भी लोग म्यांमार छोड़कर आएंगे. ऐसा नहीं है कि म्यांमार से केवल पुलिस वाले ही भागकर आ रहे हैं. हमारी मुलाक़ात एक दुकानदार से हुई जिसके ख़िलाफ़ म्यांमार प्रशासन ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलन में भाग लेने के कारण वॉरंट जारी किया था. (bbc.com)
मुट्ठी भर हैकरों के एक गुट ने हजारों सिक्योरिटी कैमरों के लाइव और अर्काइव फुटेज में सेंध लगाई है. ये कैमरे जेल जैसे सरकारी ठिकानों और टेस्ला जैसी सैकड़ों बड़ी कारोबारी कंपनियों के दफ्तरों और वर्कशॉप में लगे हैं.
हैकरों ने जेल, टेस्ला कंपनी, पुलिस की पूछताछ करने वाले कमरे, अस्पताल और यहां तक कि खुद कैमरा लगाने वाली कंपनी के दफ्तर तक में घुसपैठ कर ली है. कैमरा बनाने वाली कंपनी वर्काडा के एडमिनिस्ट्रेटिव एक्सेस में घुसपैठ कर बीते दो दिनों में उन्होंने इस काम को अंजाम दिया. कैमरा लगाने वाली कंपनी ने जांच शुरू कर दी है.इस घुसपैठ में शामिल एक शख्स ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को इसकी जानकारी दी. बताया जा रहा है कि करीब डेढ़ लाख कैमरों में सेंध लगाई गई है.
स्विस सॉफ्टवेयर डेवलपर टिली कोटमन ने मोबाइल ऐप और दूसरे सिस्टम की सुरक्षा में कमियों को सामने लाकर सुर्खियां बटोरी है. टिली ने रॉयटर्स को चीन में टेस्ला की एक फैक्टरी और कैलिफोर्निया के एक शोरूम की फुटेज दिखाई. इसके साथ ही उनके पास अलाबामा जेल, अस्पताल के कमरों, पुलिस की पूछताछ के कमरे और कम्युनिटी जिम का फुटेज भी मौजूद है. कोटमन ने गुट के दूसरे सदस्यों की पहचान बताने से इनकार कर दिया.
सुरक्षा पर सवाल
हैकर लोगों का ध्यान उनकी व्यापक निगरानी की तरफ दिलाना चाहते थे. उन्हें वर्काडा के एडमिनिस्ट्रेटिव टूल के लॉगिन की जानकारी इस हफ्ते ऑनलाइन हासिल हुई. वर्काडा ने इस घुसपैठ को माना है और उसका कहना है कि उसने सारे इंटरनल एडमिनिस्ट्रेटिव अकाउंट फिलहाल बंद कर दिए हैं ताकि अनाधिकृत लोगों को वहां तक पहुंचने से रोका जा सके. कंपनी का कहना है, "हमारी आंतरिक सुरक्षा टीम और बाहरी सुरक्षा एजेंसी इस मामले के स्तर और सीमा की छानबीन कर रहे हैं और हमने कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों को इसकी जानकारी दे दी है."
कोटमन का कहा है कि मंगलवार को जब ब्लूमबर्ग ने इस बारे में पहली रिपोर्ट दी उसके कई घंटे पहले ही वर्काडा ने हैकरों का एक्सेस बंद कर दिया था. कोटमन के मुताबिक हैकिंग करने वाले अगर चाहते तो टेस्ला, सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी क्लाउडफ्लेयर इंक और ओकटा इंक के दूसरे हिस्सों में लगे कैमरों तक भी जा सकते थे. क्लाउडफ्लेयर का कहना है कि उसके सुरक्षा उपायों को इस तरह तैयार किया गया है कि वह मामूली सी लीक को भी ब्लॉक कर सकता है और इस तरह से कैमरों में बड़ी सेंध नहीं लगाई जा सकती. उनका यह भी कहना है कि ग्राहकों के डाटा पर कोई असर नहीं पड़ा है. ओकटा का भी कहना है कि वह छानबीन कर रही है लेकिन उनके काम पर कोई असर नहीं पड़ा है. टेस्ला ने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
हजारों ग्राहक प्रभावित
वर्काडा के यूजर अकाउंट की जो लिस्ट हैकिंग ग्रुप ने दी है उसमें जिम चेन बे क्लब और वर्जिन हाइपरलूप जैसी हजारों कंपनियां शामिल हैं. अलबामा की मेडिसन काउंटी जेल, बे क्लब और वर्जिन हाइपरलूप ने इस मामले में अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. वर्काडा का कहना है कि उसकी वेबसाइट पर 5,200 ग्राहक हैं जिनमें शहर, कॉलेज और होटल भी शामिल हैं. उसके कैमरे मशहूर हैं क्योंकि वह ऐसे सॉफ्टवेयरों से जुड़े हैं जिनकी मदद से खास इंसान या किसी चीज की खोज की जा सकती है. यूजर उनकी फीड को क्लाउड के जरिए दूर रह कर भी देख सकते हैं.
2018 में रॉयटर्स से बातचीत में कंपनी के चीफ एग्जिक्यूटिव फिलिप कालिसजा ने कहा था कि वर्काडा ने जान बूझ कर इसे आसान बनाया है ताकि संस्थान लाइव वीडियो फीड को देख सकें और सुरक्षित तरीके से उसे दूसरों के साथ शेयर कर सके जैसे कि आपातस्थिति में काम करने वाले लोग. वर्काडा ने वेंचर कैपिटल में 13.9 करोड़ डॉलर की पूंजी जुटा ली है. एक साल पहले जो आंकड़े जारी हुए थे, उनके मुताबिक स्टार्टअप की कीमत करीब 1.6 अरब डॉलर है.
पिछले साल खबर आई थी कि वर्काडा कंपनी के कुछ कर्मचारियों ने कंपनी के कैमरों और उसकी फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक का इस्तेमाल कर कुछ महिला कर्मचारियों की तस्वीरें ली और शेयर की. बाद में तीन कर्मचारियों को इस सिलसिले में बर्खास्त किया गया.
एनआर/एके(रॉयटर्स)