अंतरराष्ट्रीय
म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ देश में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षाबलों की हिंसात्मक कार्रवाई जारी है. बुधवार को सुरक्षाबलों की फायरिंग में कम से कम 38 लोगों की मौत हो गई.
म्यांमार में 1 फरवरी से ही राजनीतिक उथल-पुथल जारी है और जब से लोग लोकतंत्र की बहाली की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे हैं, सेना और पुलिस उनकी आवाज दबाने के लिए बल का प्रयोग कर रही है. म्यांमार की सेना तख्तापलट की अंतरराष्ट्रीय निंदा के बावजूद विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिए हिंसा का सहारा ले रही है.
म्यांमार पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष दूत क्रिस्टीन एस बर्गनर ने बुधवार को कहा, "सिर्फ आज 38 लोग मारे गए." साथ ही उन्होंने बताया कि सेना के तख्तापलट के बाद से अब तक 50 लोगों की जान जा चुकी है और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं. म्यांमार में हर रोज सेना के तख्तापलट के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं और इसकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.
इस बीच म्यांमार की सेना पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा है. पश्चिमी देश म्यांमार के जनरलों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं, ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक शुक्रवार को बुलाई है. बुधवार को हुई मौतों के बाद अमेरिका ने कहा है कि वह आगे की कार्रवाई पर विचार कर रहा है. लेकिन जुंटा ने अब तक वैश्विक निंदा को नजरअंदाज कर दिया है. बर्गनर ने कहा, "तख्तापलट के बाद से आज सबसे खूनी भरा दिन था." उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से जनरलों के खिलाफ "बहुत कठोर उपाय" अपनाने का आग्रह किया, उन्होंने बताया कि उनकी साथ बातचीत में जनरलों ने प्रतिबंधों के खतरे को खारिज कर दिया था.
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा, "हम सभी देशों से बर्मा की सेना द्वारा अपने ही लोगों के खिलाफ क्रूर हिंसा की निंदा करने के लिए एक स्वर से आवाज उठाने का आग्रह करते हैं." म्यांमार में लोकतंत्र बहाली की मांग कर रहे लोगों, छात्रों और शिक्षकों को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया जा चुका है.
पत्रकारों की गिरफ्तारी
एसोसिएटेड प्रेस समाचार एजेंसी ने बुधवार को एक वीडियो जारी किया जिसमें म्यांमार के सुरक्षा बलों को एक एपी के पत्रकार को पकड़े और हथकड़ी पहने दिखाया गया. म्यांमार की सेना ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया एजेंसी के एक पत्रकार समेत मीडिया से जुड़े पांच अन्य लोगों के खिलाफ कानून के उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. आरोप साबित होने पर उन्हें तीन साल तक की जेल हो सकती है.
एपी के पत्रकार थाइन जॉ की रिहाई की मांग करते हुए है, एपी के अंतरराष्ट्रीय न्यूज उपाध्यक्ष इयान फिलिप्स ने कहा, "स्वतंत्र पत्रकारों को बदले की कार्रवाई के डर के बिना समाचार को स्वतंत्र और सुरक्षित रूप से रिपोर्ट करने की अनुमति दी जानी चाहिए." फुटेज में दिखाया गया जॉ म्यांमार के सबसे बड़े शहर यंगून में प्रदर्शनों को कवर कर रहे थे, उस दौरान सुरक्षाबल प्रदर्शनकारियों की तरफ दौड़ रहे थे. उसी दौरान जॉ को पकड़ लिया गया और हथकड़ी लगा दी गई और उसके बाद पुलिस उन्हें अपने साथ लेकर चली गई. एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान संसद में विश्वासमत हासिल करेंगे. पाकिस्तान की सत्ताधारी यानी इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) ने सीनेट की सबसे चर्चित इस्लामाबाद सीट हारने के बाद यह घोषणा की है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि संसद में यह स्पष्ट करने की ज़रूरत है कि कौन इमरान ख़ान के साथ है और किसे पाकिस्तान पीपल्स पार्टी या पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) पसंद है.
इस्लामाबाद सीट से पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी ने इमरान ख़ान की सरकार में वित्त मंत्री अब्दुल हाफ़ीज़ शेख को हरा दिया है. यूसुफ़ रज़ा गिलानी संयुक्त विपक्ष पीडीएम यानी पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट के उम्मीदवार थे. वैसे गिलानी बिलावल भुट्टो ज़रदारी की पार्टी पीपीपी से हैं.
इस्लामाबाद सीट से इमरान ख़ान के वित्त मंत्री की हार को बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. इस चुनाव में इमरान ख़ान ने निजी तौर पर अपने कैबिनेट साथी के लिए कैंपेन किया था.
The PM had promised to dissolve the assembly if he lost the Islamabad Senate seat. He lost. We won. Now what’s stopping him? Is Kaptaaan scared of elections?
— BilawalBhuttoZardari (@BBhuttoZardari) March 3, 2021
पीटीआई का कहना था कि उसके पास कुल 182 वोट हैं जबकि जीत के लिए 172 वोटों की ही ज़रूरत थी. यूसुफ़ रज़ा गिलानी को 169 वोट मिले हैं और अब्दुल हाफ़ीज़ शेख को 164 वोट. कुल 340 वोट डाले गए थे. पीडीएम में कुल 11 विपक्षी पार्टियाँ हैं, जिनमें नवाज़ शरीफ़ की पीएमएल (एन) और बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी भी हैं.
बहुप्रतीक्षित सीनेट चुनाव संपन्न हो गया है और इमरान ख़ान की पार्टी को कुल 18 सीटों पर जीत मिली है. पीपीपी को आठ और पीएमएल (एन) के खाते में पाँच सीटें गई हैं.
इस्लामाबाद में अब्दुल हाफ़ीज़ शेख की हार और अपने उम्मीदवार की जीत पर बिलावल भुट्टो ने ट्वीट कर कहा है, ''प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस्लामाबाद सीनेट सीट अगर हार जाएंगे तो असेंबली भंग कर देंगे. इस्लामाबाद हार गए हैं. अब उन्हें कौन रोक रहा है? क्या कप्तान को चुनाव से डर है?''
PAKPMO
विश्वासमत का सामना
शाह महमूद क़रैशी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग पर भी सवाल खड़े किए. क़ुरैशी ने कहा कि मतदान में पारदर्शिता के लिए ही उनकी सरकार ने ओपन बैलेट से वोट कराने की बात कही थी लेकिन विपक्षी पार्टियों को यह रास नहीं आया.
इस हार के बाद विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से इस्तीफ़ा मांगा है. पीपीपी प्रमुख बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि यह जीत पाकिस्तान की लोकतांत्रिक ताक़तों की है. बिलावल ने कहा कि प्रधानमंत्री को अब इस्तीफ़ा दे देना चाहिए क्योंकि यह माँग केवल विपक्ष की नहीं है बल्कि उसकी सरकार के सदस्यों की भी है.
दिलचस्प है कि अब्दुल हाफ़ीज़ शेख पूर्व प्रधानमंत्री गिलानी के 2008 से 2012 के कार्यकाल में भी मंत्री थे. पाकिस्तान की सरकार के प्रवक्ता शहबाज़ गिल ने कहा कि विपक्ष को पाँच वोटों के अंतर से जीत मिली है जबकि सात वोट रद्द किए गए. उन्होंने कहा इस नतीजे को चुनौती देंगे.
लेकिन कुछ इसी तरह के नतीजे में पीटीआई की उम्मीदवार फ़ौज़िया अरशद को जीत मिली है. फ़ौज़िया अरशद को 174 वोट मिले और पीडीएम समर्थित फ़रज़ाना कौसर को 161 वोट मिले. पाँच वोट यहाँ भी रद्द किए गए. इस्लामाबाद में सीनेट की दो सीटों के लिए मतदान हुए और फ़ौज़िया अरशद यहाँ की दूसरी सीट से जीती हैं.
भारत की राज्यसभा की तरह पाकिस्तान की सीनेट
पाकिस्तान में सीनेट भारत के ऊपरी सदन राज्यसभा की तरह है. यहाँ सदस्य छह सालों के लिए चुने जाते हैं. 104 सदस्यों वाली सीनेट से कुल 52 सीनेटर्स 11 मार्च को अपना छह साल का कार्यकाल पूरा कर रिटायर हो रहे हैं.
इनमें से चार सदस्य संघीय प्रशासित क़बाइली इलाक़े से हैं. इन्हें फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया यानी फाटा कहा जाता है. ख़ैबर पख़्तुनख़्वा प्रांत में फाटा के वियल के बाद से ये चार सदस्य फिर से नहीं चुने जा सकेंगे.
यानी सीनेट में सदस्यों की संख्या अभी 100 हो गई है. 23-23 सदस्य पाकिस्तान के चारों प्रांत से हैं जबकि चार सदस्य इस्लामाबाद से चुने जाते हैं. बाक़ी के चार सदस्य फाटा से हैं और ये 2024 में रिटायर होंगे. मतलब 2024 के बाद सीनेट में सदस्यों की कुल संख्या 96 रह जाएगी.
52 में से 37 सीटों पर मतदान हुए हैं और बाक़ी निर्विरोध चुन लिए गए हैं. पंजाब के सभी 11 सीनेटर्स निर्विरोध चुने गए हैं. पाकिस्तान में सीनेटर्स के चुनाव में भारत में राज्यसभा चुनाव की तरह राज्यों के विधानसभा के विधायक वोट करते है.
چیئرمین پاکستان پیپلز پارٹی بلاول بھٹو زرداری کی عوام کو جمہوریت کی فتح پر مبارک باد
— PPP (@MediaCellPPP) March 3, 2021
“آج ہم نے پوری دنیا کو دیکھا دیا ہے کہ کتنا بھی ظلم و جبر ہو جائے، پاکستان پیپلز پارٹی کا ایک ہی موقف ہے، “جمہوریت بہترین انتقام ہے۔”@BBhuttoZardari#UnitedForDemocracy
1/3 pic.twitter.com/lA4Rw1O3gD
बुधवार को पाकिस्तान में बलूचिस्तान, ख़ैबर पख़्तुनख़्वा और सिंध असेंबली के विधायाकों ने वोट किया. चूँकि पंजाब में सभी निर्विरोध चुन लिए गए थे इसलिए वहाँ वोटिंग नहीं हुई. इस्लामाबाद से दो सीनेटर्स के लिए वोट डाले गए. इस्लामाबाद पाकिस्तान की फेडरल राजधानी है और यहाँ सीनेटर्स के चुनाव में नेशवन असेंबली के सांसद वोट करते हैं.
ऐसी उम्मीद की जाती है कि पार्टी लाइन का पालन करते हुए वोटिंग होगी लेकिन सत्ता और विपक्ष दोनों एक दूसरे पर वोट ख़रीदने के आरोप लगा रहे हैं.
मंगलवार को एक वीडियो सामने आया था जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी के बेटे अली हैदर गिलानी दो सांसदों दो बता रहे हैं मतदान के दौरान अपने वोट को कैसे अमान्य करा सकते हैं.
آج سینیٹ میں شکست کے بعد کوئی اخلاقی جواز نہیں بنتا کہ عمران خان وزارت عظمیٰ کی کرسی پر براجمان رہیں
— Zubair awan (Mux) (@Zubair_Arif_) March 3, 2021
(میاں نواز شریف) pic.twitter.com/IuJzSwiht2
पीटीआई ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट किया, ''यूसुफ़ रज़ा गिलानी के बेटे सीनेटे के लिए वोट ख़रीदते पकड़े गए हैं. पीडीएम के उम्मीदवारों का यही आचरण है.''
वोट को लेकर सिंध की असेंबली में भी विधायक आपस में भिड़ गए. इमरान ख़ान चाहते थे कि चुनाव ओपन बैलेट के ज़रिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संविधान का हवाला देते हुए गोपनीय बैलेट के ज़रिए ही चुनाव कराने का आदेश दिया था. (bbc.com)
म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट के एक महीने बाद भी बेतहाशा हिंसा जारी है. बुधवार को कम से कम 38 लोगों की मौत हुई है.
संयुक्त राष्ट्र ने इसे 'ख़ूनी बुधवार' कहा है. म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की राजदूत क्रिस्टिन श्रेनर ने कहा है कि देश भर से दिल दहलाने वाले फुटेज सामने आ रहे हैं. क्रिस्टिन ने ये भी कहा, ''ऐसा लगता है कि सुरक्षा बल गोलीबारी में लाइव बुलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं.''
पूरे म्यांमार में एक फ़रवरी को हुए सैन्य तख़्तापलट के ख़िलाफ़ व्यापक विरोध-प्रदर्शन हो रहा है. प्रदर्शनकारियों की मांग कर रहे हैं कि आंग सान सू ची समेत चुने हुए सरकारी नेताओं को रिहा किया जाए.
इन नेताओं को सेना ने सत्ता से बेदखल कर जेल में बंद कर दिया है. प्रदर्शनकारी सैन्य तख्तापलट को भी ख़त्म करने की मांग कर रहे हैं. हालिया हिंसा तब सामने आई है जब पड़ोसी देश सेना से संयम बरतने का आग्रह कर रहे हैं.
photo credit Fronties Myanmar
आकर सीधे गोली मारने लगे
क्रिस्टिन श्रेनर का कहना है कि तख्तापलट के बाद से अब तक 50 लोगों की जान जा चुकी है और बड़ी संख्या में लोग ज़ख़्मी भी हुए हैं. क्रिस्टिन ने कहा, ''एक वीडियो में दिख रहा है कि पुलिस मेडकल दल के निहत्थे लोगों को पीट रही है. एक फुटेज में दिख रहा है कि प्रदर्शनकारी को गोली मार दी गई और ऐसा लगता है कि यह सड़क पर हुआ है.''
क्रिस्टिन ने कहा, ''मैंने कुछ हथियार विशेषज्ञों से कहा है कि वे हथियारों की पहचान करें. स्पष्ट नहीं है लेकिन ऐसा लगा रहा है कि पुलिस के पास जो हथियार हैं वे 9एमएम सबमशीन गन्स हैं और ये लाइव बुलेट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं.''
सेव द चिल्ड्रेन का कहना है कि जिन लोगों को बुधवार को मारा गया है उनमें 14 और 17 साल के दो लड़के हैं. इनमें एक 19 साल की लड़की भी है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के एक स्थानीय पत्रकार ने कहा कि मध्य म्यांमार के मोन्यवा में प्रदर्शन के दौरान छह लोगों के मारे जाने की ख़बर है और 30 लोग ज़ख़्मी हुए हैं.
photo credit Myanmar Now
समाचार एजेंसी एएफ़पी से एक मेडिकल स्वयंसेवी ने कहा कि मयींग्यान में कम से कम 10 लोगो ज़ख़्मी हुए हैं. इनका कहना है कि सेना आँसू गैस के गोले, रबर बुलेट और लाइव बुलेट का इस्तेमाल कर रही है. इसी शहर के एक प्रदर्शनकारी ने रॉटयर्स से कहा, ''ये हमें पानी की बौछारों से तितर-बितर नहीं कर रहे और न ही चेतावनी दे रहे. ये सीधे गोली दाग रहे हैं.''
मंडालय में एक प्रदर्शनकारी छात्र ने बीबीसी से कहा कि उसके के पास प्रशर्नकारियों को मारा गया है. उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि क़रीब 10 या 10.30 का वक़्त रहा होगा तभी सेना और पुलिस के जवान आए और हिंसक तरीक़े से लोगों पर गोलियाँ दागना शुरू कर दिया.'' इन मौत की रिपोर्ट पर सेना की तरफ़ से कोई बयान नहीं आया है.
photo credit Myanmar Now
दबाव के बावजूद सेना का रुख़ स्पष्ट
क्रिस्टिन श्रेनर ने कहा है कि यूएन म्यांमार के सैन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई कड़ा फ़ैसला ले. पोप फ्रांसीस ने उत्पीड़न के बदले संवाद करने की आग्रह किया है. म्यांमार को लेकर पड़ोसी दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के विदेश मंत्रियों ने विशेष बैठक की है.
हालांकि सबने संयम बरतने की सलाह दी है. कुछ ही मंत्रियों ने सैन्य शासकों से कहा कि आंग सान सू ची को रिहा कर दो. 75 साल की सू ची नज़रबंदी के बाद से पहली बार इस हफ़्ते की शुरुआत में कोर्ट में वीडियो लिंक के ज़रिए हाज़िर हई थीं.
सेना का कहना है कि तख़्तापलट नवंबर के आम चुनाव में धोखाधड़ी हुई थी और सू ची की नेशनल लीग फोर डेमोक्रेसी यानी एनएलडी को भारी बहुमत मिला था. लेकिन सेना इसके समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं दिया है. (bbc.com)
बीजिंग, 3 मार्च| चीनी राष्ट्रीय ग्रामीण पुनरुत्थान ब्यूरो (पहले राज्य परिषद का गरीबी उन्मूलन कार्यालय) के उप प्रधान होंग थ्येनयुन ने 2 मार्च को राज्य परिषद के प्रेस कार्यालय द्वारा आयोजित न्यूज ब्रीफिंग में कहा कि चीन ने मानव के इतिहास में सबसे बड़े पैमाने वाला गरीबी उन्मूलन कार्य किया। मौजूदा मापदंडों के तले 9 करोड़ 89 लाख 90 हजार गरीब आबादी गरीबी के पंजे से मुक्त हो गयी। गरीबी उन्मूलन में प्राप्त उपलब्धियों को मजबूत करने के लिये वर्ष 2020 में ग्रामीण पुनरुत्थान ब्यूरो ने कुल 60 से अधिक संबंधित सुझावों व प्रस्तावों का निपटारा किया है। एनपीसी व सीपीपीसीसी के प्रतिनिधियों व सदस्यों ने गहन रूप से गरीबी उन्मूलन में प्राप्त उपलब्धियों को मजबूत करने और गरीबी में फिर वापस लौटने की रोकथाम करने में मौजूद दबाव का विश्लेषण किया। साथ ही उन्होंने बहुत अच्छे सुझाव व राय भी पेश कीं। होंग थ्येनयुन ने कहा कि पहला, ग्रामीण क्षेत्रों में सहायता देने की नीति में कमी नहीं होगी। दूसरा, व्यवसाय में रोजगार के समर्थन को मजबूत किया जाएगा। तीसरा, गरीबी उन्मूलन में स्थानांतरित लोगों की निरंतर सहायता जारी रहेगी। चौथा, व्यापक रूप से सुनिश्चित नीति को लागू किया जाएगा। और पांचवां, कम आय वाली आबादी के लिये सहायता प्रणाली में सुधार किया जाएगा। उक्त पक्षों में बहुत सुझाव व राय पेश की गयी हैं, जो हमारे कार्य के लिये बहुत लाभदायक हैं।
(साभार-चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग) (आईएएनएस)
अफगानिस्तान के जलालाबाद में तीन महिला मीडिया कर्मियों की गोली मार कर हत्या कर दी गई है. अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति पर बातचीत शुरू होने के बाद इस तरह की हत्याओं की संख्या बढ़ गई है.
तीनों महिलाओं की हत्या दो अलग अलग हमलों में हुई. तीनों महिलाएं एनिकास टीवी के लिए काम करती थीं. चैनल के निदेशक जलमई लतीफी ने एएफपी को बताया कि तीनों चैनल के डबिंग विभाग में काम करती थीं और "जिस समय उन्हें गोली मारी गई उस समय वे दफ्तर से अपने घर पैदल जा रही थीं."
नांगरहार प्रांत के अस्पताल के एक प्रवक्ता जहीर आदेल ने भी हत्याओं की पुष्टि की. तालिबान के एक प्रवक्ता ने संगठन के इन हत्याओं में शामिल होने से इनकार किया है. इस्लामिक स्टेट के स्थानीय सहयोगी संगठन ने इन हत्याओं की जिम्मेदारी ली है और कहा है कि मारे गए पत्रकार एक ऐसे मीडिया संगठन के लिए काम करते थे जो "धर्मभ्रष्ट अफगान सरकार के प्रति वफादार है."
अफगानिस्तान में पत्रकारों, धार्मिक विद्वानों, ऐक्टिविस्टों और जजों की हत्याएं बढ़ गई हैं, जिसकी वजह से कई तो छिपने पर मजबूर हो गए हैं. कई लोग देश छोड़ कर भी चले गए हैं. अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता शुरू होने ने उम्मीद थी कि हिंसा में कमी आएगी, लेकिन बातचीत करने के बाद भी हत्याओं में बढ़ोतरी ही हुई है.
अफगान और अमेरिकी अधिकारियों ने इस हिंसा के लिए तालिबान को जिम्मेदार ठहराया है, लेकिन तालिबान ने इन आरोपों से इनकार किया है. अफगानिस्तान में अमेरिका के विशेष राजदूत जलमे खलीलजाद इसी हफ्ते अफगान नेताओं के साथ बैठक करने के लिए काबुल वापस लौटे हैं. देश से अमेरिकी सेना के पूरी तरह से हट जाने का समय करीब आ रहा है और ऐसे में पूरी कोशिश की जा रही है कि शांति वार्ता को फिर से पटरी पर लाया जाए.
अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कार्यभार संभालने के बाद खलीलजाद को अपने पद पर बने रहने के लिए कहा. उसके बाद यह उनकी पहली अफगान यात्रा है. उनके द्वारा कराई गई संधि के अनुसार अमेरिकी सैनिकों को मई तक अफगानिस्तान छोड़ देना है. संधि के अनुसार तालिबान को भी आतंकवादियों को किसी भी इलाके का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देनी है.
लेकिन बाइडेन प्रशासन की देख रेख में इस संधि का भविष्य साफ नहीं दिख रहा है. व्हाइट हाउस कह चुका है की संधि पर पुनर्विचार किया जाएगा. कुछ जानकार कह चुके हैं कि अगर अमेरिका अफगानिस्तान से जल्दबाजी में निकला तो इससे देश में पहले से भी ज्यादा अशांति फैल सकती है.
सीके/एए (एएफपी)
फैशन कंपनी के मालिक युसाकु मीजावा को 2018 में स्पेसएक्स द्वारा विकसित किए जा रहे अंतरिक्ष यान में एक स्लॉट बुक करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में घोषित किया गया था.
जापानी अरबपति युसाकु मीजावा ने चांद के चक्कर लगाने के इच्छुक लोगों को एक तरह का पहला मौका दिया है. दुनिया के चुनिंदा आठ लोगों को मीजावा ने चांद के सफर के लिए यान में सीट देने की पेशकश की है. महंगी कलाकृतियां और महंगी स्पोर्ट्स कारों के शौकीन मीजावा 2023 में चंद्रमा की यात्रा पर जाने वाले हैं.
शुरू में उन्होंने कहा था कि उन्होंने अपने साथ छह से आठ कलाकारों को चंद्रमा की यात्रा में शामिल करने के लिए आमंत्रित करने की योजना बनाई है. लेकिन बुधवार को उन्होंने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया और एक व्यापक आवेदन प्रक्रिया का खुलासा किया. उन्होंने कहा, "मैं आपको इस मिशन में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहा हूं. दुनिया भर से आप में से आठ लोग. मैंने सभी सीटें खरीदी हैं, इसलिए यह एक निजी यात्रा होगी."
45 साल के मीजावा ने कहा कि कलाकारों को आमंत्रित करने की उनकी प्रारंभिक योजना इस तरह से "विकसित हुई" क्योंकि उन्हें विश्वास है कि "हर एक व्यक्ति जो कुछ रचनात्मक कर रहा है उसे कलाकार कहा जा सकता है."
जापानी अरबपति का कहना है कि आवेदकों को केवल दो मानदंडों को पूरा करने की आवश्यकता होगी- रचनात्मक रूप से "आवेदन करने के लिए" तैयार होना और अन्य क्रू सदस्यों को भी ऐसा करने में मदद करने के लिए तैयार होना. उन्होंने कहा कि लगभग 10 से 12 लोग अंतरिक्ष यान पर सवार होंगे, जिसकी चंद्रमा के चारों चक्कर लगाने की उम्मीद है.
अंतरिक्ष यात्रा के इच्छुक लोगों को आवेदन के लिए 14 मार्च तक प्री-रजिस्टर करना होगा, यात्रा के लिए आरंभिक स्क्रीनिंग 21 मार्च से शुरू होगी. अगले चरणों के लिए कोई समय-सीमा नहीं दी गई है. लेकिन मीजावा की वेबसाइट के मुताबिक अंतिम इंटरव्यू और मेडिकल जांच वर्तमान में मई 2021 के अंत में निर्धारित किए गए हैं.
एए/सीके (एएफपी)
मेड्रिड, 2 मार्च | एफसी बार्सिलोना के पूर्व अध्यक्ष जोसेप मारिया बारतोमेउ क्लब के महासचिव ऑस्कर ग्रे और पूर्व निदेशक जैमी मासफेरेर को भ्रष्टाचार स्कैंडल के एक मामले में गिरफ्तार किया गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, कैटालन क्षेत्रीय पुलिस ने बार्कागेट के मामले में नोउ स्टेडियम में स्थित दफ्तर में छापे के दौरान सोमवार को इन लोगों को गिरफ्तार किया।
बार्कागेट का मामला फरवरी में सामने आया था जब केडेना सेर रेडियो नेटवर्क ने खुलासा किया था कि क्लब 13 वेंचर्स नामक बाहर की कंपनी के साथ मिलकर सोशल मीडिया के जरिए क्लब के खिलाड़ियों और बोर्ड निदेशकों के प्रतिद्वंद्वियों की आलोचना करवा रही थी।
3 वेंचर्स को भुगतान सामान्य बाजार मूल्य का छह गुना होने का अनुमान है। सोशल मीडिया पर आलोचना बारतोमेउ और लियोनल मेसी के रिश्तों के बीच टकराव का एक कारण था।
बार्सिलोना ने एक आधिकारिक विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि उन्होंने पुलिस अधिकारियों को अपना पूरा सहयोग देने की पेशकश की है ताकि स्पष्ट तथ्य सामने आने में मदद मिल सके। (आईएएनएस)
बीते सप्ताह नाइजीरिया के ज़ाम्फ्रा में अग़वा स्कूली छात्राओं को रिहा करा लिया गया है.
सुरक्षा और आंतरिक मामलों के स्टेट कमिशनर अबुबकर मोहम्मद दुरान ने बीबीसी को बताया है कि कुल 279 बच्चों को रिहा कर दिया गया है जो फिलहाल राज्य की राजधानी गौसू में हैं.
शुक्रवार को नाइजीरिया के उत्तर पश्चिम के शहर ज़ाम्फ्रा के जेंगेबे में बंदूकधारियों ने एक बोर्डिंग स्कूल पर हमला कर 300 से अधिक छात्राओं को बंदूक का नोक पर अगवा कर लिया था.
इससे पहले अबुबकर मोहम्मद दुरान ने कहा था कि अगवा की गई 317 छात्रों के बारे में पता लगा लिया गया है. लेकिन अब तक जो जानकारी मिली है उसके अनुसार कोई और छात्रा अब हमलावरों के कब्ज़े में नहीं है.
हालांकि अब तक ये पता नहीं चला है कि लड़कियों को छुड़ाने के लिए कोई फिरौती दी गई है या नहीं. (bbc.com)
अमेरिका के एक वरिष्ठ सांसद फ्रैंक पालोन ने बाइडन प्रशासन से अपील की है कि भारत के पावर ग्रिड पर चीनी साइबर हमले के मामले में वो भारत का पक्ष लें.
सोमवार को एक ट्वीट में फ्रैंक पलोन ने लिखा, “अमेरिका को अपने रणनीतिक साझेदार का साथ देना चाहिए और भारत के पावर ग्रिड पर चीन के ख़तरनाक हमले का विरोध करना चाहिए. इस हमले के महामारी के दौरान कारण अस्पतालों में बिजली कट गई और उन्हें जेनेरेटरों का सहारा लेना पड़ा.”
उन्होंने लिखा, “हम चीन को ताकत और धमकी के बल पर इलाक़े में प्रभुत्व कायम नहीं करने दे सकते.”
भारत ने क्या कहा
इधर अमेरिकी कंपनी के शोध पर सोमवार को भारत के विद्युत मंत्रालय ने साइबर हमले में बारे में कहा था कि हमले का कोई असर नहीं पड़ा है. मंत्रालय ने न तो चीन साइबर हमले का ज़िक्र किया और न ही मुबंई पावर ग्रिड का.
मंत्रालय ने कहा, “जिस ख़तरे की बात रिपोर्ट में की गई है उसके बारे में पावर सिस्टम ऑपरेशन कोऑपरेशन क केम पर कोई असर नहीं पड़ा है. इस तरह की घटना से न तो कोई डेटा लॉस हुआ है, न ही डेटा चुराया गया है.”
अमेरिकी सरकार ने क्या कहा
अमेरिकी गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि उन्हें बारे में जानकारी है. प्रवक्ता ने कहा, “अधिक जानकारी के लिए हम आपको उस कंपनी के बारे में बता सकते हैं जिसने ये स्टडी की है. लेकिन साइबरस्पेस में ख़तरे के इस तरह के मामलों में गृह मंत्रालय अपने सहयोगियों के साथ मिल कर काम करता है.”
प्रवक्ता ने कहा, “साइबरस्पेस में किसी एक देश के ख़तरनाक कदम पर हम गंभीरता से विचार करते हैं और हम एक बार ये दोहराना चाहते हैं कि साइबर सुरक्षा, क्रिटिकल इंफ्रांस्ट्रक्चर और सप्लाई चेक की सुरक्षा को लेकर हम सहयोगियों के साथ मिल कर काम करते हैं.”
इससे पहले विभिन्न देशों के इंटरनेट के इस्तेमाल का अध्ययन करने वाली अमेरिका की मैसाचुसेट्स स्थित साइबर सिक्योरिटी कंपनी रिकॉर्डेड फ्यूचर ने अपनी हाल के एक रिपोर्ट में बताया था कि चीनी सरकार से जुड़े एक समूह के हैकर्स ने मैलवेयर के ज़रिए भारत के महत्वपूर्ण पावर ग्रिड को निशाना बनाया था.
रिपोर्ट के अनुसार रेडएको नामक एक समूह ने भारतीय पावर सेक्टर को अपना निशाना बनाया है. इस गतिविधि की बड़े पैमाने पर ऑटोमेटेड नेटवर्क ट्रैफिक एनालिटिक्स और विश्लेषणों का मिलान कर पहचान की गई है. साइबर हमले की पहचान करने के लिए रिकॉर्डेड फ्यूचर प्लेटफॉर्म, सिक्योरिटी ट्रेल्स, स्पर, फारसाइट, आम ओपन सोर्स टूल्स और तकनीक के डेटा का इस्तेमाल किया गया.
सोमवार को महाराष्ट्र के ऊर्जा मंत्री नितिन राउत ने इस बारे में अपने एक बयान में कहा कि 12 अक्तूबर 2020 को मुंबई में कई घंटों के पावर कट में साइबर घुसपैठ की संभावना के बारे में बिजली विभाग की शिकायत के आधार पर राज्य साइबर पुलिस विभाग ने जांच की है और इसकी रिपोर्ट मुझे और गृह मंत्री अनिल देशमुख को सौंप दी गई है. मैं इस पर विधानसभा में जानकारी दूंगा.
12 अक्तूबर 2020 को मुंबई के एक बड़े हिस्से में ग्रिड फेल होने के कारण बिजली चली गई थी. इससे मुंबई और आस-पास के महानगर क्षेत्र में जनजीवन पर गंभीर असर पड़ा था.
इसकी वजह से लोकल ट्रेनें अपने सफ़र के बीच में ही रुक गई थीं और कोरोना महामारी के बीच हो रही छात्रों की ऑनलाइन कक्षाएँ भी बाधित हुई थीं.
बिजली गुल होने से उस दौरान मुंबई सेंट्रल, थाणे, जोगेश्वरी, वडाला, चेंबूर, बोरीवली, दादर, कांदीवली और मीरा रोड जैसे इलाक़े बुरी तरह प्रभावित हुए थे.
2020 की शुरुआत से ही रिकॉर्डेड फ्यूचर्स इनसिक्ट ग्रुप को चीन के इस प्रोयोजित समूह की ओर से भारतीय प्रतिष्ठानों पर बड़े पैमाने पर लक्षित घुसपैठ की गतिविधि देखने को मिली है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में छपी इस ख़बर के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या मुंबई में 12 अक्तूबर को हुआ पावर कट चीन की तरफ से भारत को एक सख्त चेतावनी तो नहीं थी.
दूसरी तरफ चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिंग ने सोमवार को इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए इसे बिना सबूत 'गैरज़िम्मेदाराना और ग़लत इरादों' से लगाया गया आरोप बताया है. (bbc.com)
अमेरिकी सरकार ने देश में काम करने वाली कंपनियों को चेतावनी दी है कि वो ये सुनिश्चित करने की अधिक कोशिश करें कि चीन के साथ व्यापार के दौरान वो फोर्स्ड लेबर यानी ‘जबरन मज़दूरी‘ का लाभ नहीं ले रही हैं.
इस संबंध में अमेरिकी ट्रेड रिप्रेज़ेन्टेटिव कार्यालय ने कांग्रेस को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें सख्त तौर पर कहा है कि उत्पादन की प्रक्रिया में जबरन मज़दूरी करवाना मानवाधिकारों का उल्लंघन है और कंपनियों को इसके लिए ज़िम्मेदारी लेते हुए ये सुनिश्चित करना होगा कि उनके उत्पाद इस तरह न बनाए गए हों.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि ग़लत तरीके से व्यापार करने की चीन की उन कोशिशों को रोकने की वो ‘हरसंभव कोशिश करगें’ जिनसे अमेरिका के मज़दूरों और व्यापार को नुक़सान हो सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश-विदेश के उपभोक्ताओं को ऐसे उत्पाद नहीं चाहिए जिनके उत्पादन में लोगों से ‘जबरन मज़दूरी‘ करवाई गई हो, और साथ ही व्यवस्थित तरीके से दमन करने वाले शासन के साथ कंपीटिशन करना मज़दूरों के हक में नहीं होगा.
रिपोर्ट में चीन में वीगर मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे को सरकार की ‘प्राथमिकताओं में से एक’ कहा गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की नीति अब इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगी कि चीनी सरकार द्वारा कथित तौर पर शिनजियांग प्रांत में वीगर और दूसरे अल्पसंख्यकों से करवाई जाने वाली जबरन मज़दूरी का लाभ अमेरिकी कंपनियां नहीं ले रही हैं.
चीन खुद पर लगे इस तरह के आरोपों से इनकार करता रहा है.
इसके साथ ही अब इस बात की संभावनाएं बढ़ गई हैं कि बाइडन प्रशासन इससे संबंधित नया क़ानून ला सकता है.
बीबीसी बिज़नेस रिपोर्टर जोनाथन जोसेफ़ कहते हैं बीते महीने बाइडन ने शिनजियांग प्रांत में व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन का मुद्दे पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फ़ोन पर बात की थी.
चीन इस तरह के आरोपों से इनकार करता रहा है, लेकिन इसके बावजूद पश्चिमी देशों की कंपनियों के लिए ये एक बड़ा मुद्दा है.
बाइडन प्रशासन का कहना है कि नए क़ानून के अनुसार अब कंपनियों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिन उत्पादों को वो बेच रही हैं वो उनको बनाने में मानवाधिकारों का उल्लंघन न हुआ हो.
इससे पहले मार्च 2020 में ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट नाम की एक थिंकटैंक ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा था कि दुनिया के बड़े ब्रांड के लिए उत्पाद बनाने वाली चीन की फैक्ट्रियों में वीगर मुसलमानों समेत हज़ारों अल्पसंख्यकों को मुश्कित हालातों में मज़दूरों के तौर पर काम करवाया जा रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया था कि एक आकलन के अनुसार साल 2017 से 2019 के बीच 80,000 से अधिक वीगरों को पश्चिमी शिनजियांग के स्वायत्त प्रांत में फैक्टियों में काम करने के लिए ले जाया गया है. रिपोर्ट के अनुसार कइयों को सीधे डिटेन्शन सेंटर से वहां ले जाया गया है.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन में 83 बड़े ब्रांड के लिए उत्पादन करने वाली ऐसी फैक्ट्रियां हैं जहां जबरन मज़दूरी करवाई जाती है. इनमें एपल, नाइके और डेल जैसी कंपनियां शामिल हैं. (bbc.com)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 2 मार्च | अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारतीय-अमेरिकी माजू वर्गीज को व्हाइट हाउस के सैन्य कार्यालय के उप सहायक और निदेशक के रूप में नियुक्त किया है। माजू वर्गीज बाइडेन कैम्पेन के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर थे।
बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के चुनाव अभियान के लिए लॉजिस्टिक का प्रबंधन करने के बाद, वर्गीज उनके शपथ ग्रहण समारोह के कार्यकारी निदेशक बनाए गए थे।
व्हाइट हाउस सैन्य कार्यालय के निदेशक के रूप में, वह सैन्य सहायता मामलों को देखेंगे, जिसमें चिकित्सा सहायता, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं और प्रेसीडेंशियल परिवहन प्रदान करना और आधिकारिक समारोहों और कार्यों का आयोजन शामिल है।
व्हाइट हाउस में यह उनका दूसरा कार्यकाल होगा।
वह पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के विशेष सहायक रह चुके हैं और ओबामा के लिए देश और विदेश में यात्रा का आयोजन करने का काम देखते थे।
उनमें से एक कार्य गणतंत्र दिवस समारोह के लिए भारत में ओबामा की 2015 की ऐतिहासिक यात्रा का आयोजन था।
बाद में वर्गीज ओबामा प्रशासन में व्हाइट हाउस कॉम्प्लेक्स की देखरेख करने वाले प्रशासन और प्रबंधन के अध्यक्ष बने।
सैन्य कार्यालय निदेशक के रूप में उनकी नियुक्ति सोमवार को पोलिटिको द्वारा रिपोर्ट की गई थी और वर्गीज ने इसे लिंक्डइन पर पोस्ट किया है।
वर्गीज के माता-पिता केरल के तिरुवल्ला से अमेरिका आ गए थे, जहां उनका जन्म हुआ था और वे पेशे से वकील हैं।
वह बाइडेन प्रशासन में वरिष्ठ पदों पर नियुक्त 20 से अधिक भारतीय-अमेरिकियों में से एक हैं। (आईएएनएस)
सीरिया पर संयुक्त राष्ट्र के जांच आयोग ने कहा है कि सीरिया में अब भी लाखों लोग मनमाने ढंग से हिरासत में रखे गए हैं. आयोग ने सोमवार को कहा है कि सीरिया संघर्ष के 10 साल बाद भी इन लोगों का भविष्य अनिश्चित है.
संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं ने सोमवार को कहा कि सीरिया में "जेलों या बंदीगृहों में कई लोगों की मृत्यु हो गई है या उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है जबकि कुछ लोग अमानवीय स्थितियों में रखे गए हैं." 2,500 से ज्यादा इंटरव्यू के बाद यूएन जांच आयोग ने इस रिपोर्ट को जारी किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जेलों में हजारों अन्य लोगों को प्रताड़ित किया गया, उनके साथ यौन हिंसा की गई है या हिरासत में ही मौत के मुंह में धकेल दिया गया है.
आयोग ने कहा है कि सीरियाई सरकार युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ जुर्म की दोषी है. यही नहीं सीरियाई डेमोक्रैटिक फोर्सेज यानी एसडीएफ ने युद्ध अपराध को अंजाम दिया है. हालांकि, उसने इस्लामिक स्टेट के आतंकियों से लड़ने में अहम भूमिका निभाई है. इसी रिपोर्ट में इस्लामिक स्टेट पर नरसंहार का भी आरोप लगाया गया है.
लाखों लोग अब भी विस्थापित
मार्च 2011 में सरकार के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शनों को क्रूरता से दबाने के साथ शुरू हुई जंग में अब तक लाखों लोगों की जान गई. दस लाख से ज्यादा लोग इस संकट के कारण विस्थापित हुए. सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद पर संकट को और बढ़ाने का भी आरोप लगता आया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सीरिया में किसी भी पक्ष ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों के अनुरूप अधिकार नहीं दिया.
आयुक्त कैरेन कोनिंग अबूजायद ने कहा, "पर्याप्त मात्रा में स्पष्ट सबूत होने के बावजूद, संघर्ष के तमाम पक्ष, अपने बलों पर लगे आरोपों की जांच कराने में नाकाम रहे हैं. बंदीगृहों में किए गए अपराधों की जांच कराने के बजाय, ज्यादा जोर उन्हें छिपान पर नजर आया है." ये जांच निष्कर्ष और रिपोर्ट अगले सप्ताह जेनेवा में यूएन मानवाधिकार परिषद को सौंपी जाएंगी. इस रिपोर्ट में 100 से भी ज्यादा बंदीगृहों की परिस्थितियों के जांच निष्कर्ष शामिल हैं.
सीरिया में असद को सत्ता से हटाने के लिए विरोध प्रदर्शन ने कई तरह के संकट का रूप लिया और लाखों लोग इस संकट के कारण मारे गए और इतने ही लोग विस्थापित हो गए. असद को रूस, ईरान और लेबनान की सेना का समर्थन हासिल है.
एए/सीके (डीपीए, रॉयटर्स)
पेरिस की एक अदालत ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोला सारकोजी को भ्रष्टाचार का दोषी पाया है और तीन साल कैद की सजा सुनाई है. इनमें से दो साल की सजा निलंबित होगी.
(dw.com)
आधुनिक फ्रांस में किसी पूर्व राष्ट्रपति को भ्रष्टाचार के लिए कैद की सजा का यह पहला मामला है. अदालत ने कहा है कि सारकोजी घर पर हिरासत में रखे जाने का आग्रह कर सकते हैं. उन्हें इस दौरान इलेक्ट्रॉनिक ब्रेसलेट पहनना होगा. इस मुकदमे में सारकोजी के सह-अभियुक्त, उनके वकील और लंबे समय के साथी 65 वर्षीय थियेरी हैर्त्सोग और रिटायर्ड मजिस्ट्रेट 74 वर्षीय गिल्बेयर अजीबैर्ट को भी दोषी पाया गया और सारकोजी जितनी ही सजा दी गई.
अदालत ने मुकदमे के बाद "गंभीर सबूतों" के आधार पर पाया कि सारकोजी और उनके सह अभियुक्तों ने भ्रष्टाचार के लिए समझौता किया. अदालत ने अपराध को गंभीर बताते हुए कहा कि वे एक पूर्व राष्ट्रपति द्वारा किए गए, जिन्होंने अपनी हैसियत का इस्तेमाल एक मजिस्ट्रेट को बचाने के लिए किया जिसने उनके निजी हितों को फायदा पहुंचाया था. अदालत ने कहा कि वकील होने के नाते उन्हें अच्छी तरह पता था कि वे अवैध काम कर रहे हैं.
निकोला सारकोजी ने पिछले साल दस दिनों तक चले मुकदमे के दौरान सारे आरोपों से इंकार किया. भ्रष्टाचार का यह मुकदमा फरवरी 2014 में एक टेलिफोन बातचीत पर केंद्रित था. उस समय जांच कर रहे जज ने 2007 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के लिए पैसा इकट्ठा करने पर जांच शुरू की थी. जांच के दौरान अप्रत्याशित रूप से पता चला कि सारकोजी और हैर्त्सोग एक दूसरे से एक गोपनीय टेलिफोन के जरिए बात कर रहे हैं जो पॉल बिस्मुथ नाम के एक शख्स के नाम पर रजिस्टर्ड थी.
इस टेलिफोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग से जांचकर्ताओं को संदेह हुआ कि सारकोजी और हैर्त्सोग मजिस्ट्रेट अजीबैर्ट को फ्रांस की सबसे धनी महिला लिलियाने बेटेनकोर्ट के मुकदमे की जानकारी देने के बदले मोनाको में नौकरी की पेशकश कर रहे थे. फोन पर बातचीत में सारकोजी ने हेर्त्सेग से अजीबैर्ट के बारे में कहा था, "मैं उन्हें आगे बढ़ाउंगा, मैं उनकी मदद करूंगा." ऐसी ही एक और बातचीत में हैर्त्सोग ने सारकोजी को याद दिलाया कि वे मोनाको दौरे पर अजीबैर्ट के समर्थन में कुछ शब्द कहें.
उच्च राजनीतिक पद पर भ्रष्टाचार के दोषी
मेकअप का सामान बनाने वाली कंपनी लोरियाल की माल्किन बेटेनकोर्ट के मामले में सारोकोजी के खिलाफ न्यायिक कार्रवाई रोक दी गई थी. अजीबैर्ट को मोनाको वाली नौकरी नहीं मिली. हालांकि अभियोजन पक्ष के वकीलों का मानना था कि साफ तौर पर किया गया वादा भी फ्रांसीसी कानून के तहत भ्रष्टाचार है, भले ही वादे को पूरा ना किया गया हो. सारकोजी ने किसी गलत इरादे से इंकार किया और अदालत में कहा कि उनका पूरा राजनीतिक जीवन लोगों की थोड़ी मदद करने पर आधारित है, बस इतना ही, थोड़ी सी मदद.
वकील और उसके क्लाइंट के बीच बातचीत की गोपनीयता इस मुकदमे में बहस का बड़ा मुद्दा था. सारकोजी ने मुकदमे के दौरान कहा था, "आपके सामने वह इंसान खड़ा है जिसके 3700 निजी फोनकॉल रिकॉर्ड किए गए हैं, मैंने इसके लिए क्या किया था?" सारकोजी के वकील जैकलीन लाफों की दलील थी कि पूरा मुकदमा एक वकील और उसके क्लाइंट के बीच हुई गपशप पर आधारित है. अदालत ने कहा कि बातचीत की टैपिंग कानूनी है, यदि वह भ्रष्टाचार से संबंधित मामले में सबूत पाने में मदद करे.
निकोला सारकोजी ने 2017 के राष्ट्रपति चुनावों में कंजरवेटिव पार्टी की उम्मीदवारी नहीं मिलने के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था. उस चुनाव में इमानुएल माक्रों राष्ट्रपति चुने गए थे. सारकोजी अभी भी दक्षिणपंथी मतदाताओं में बहुत लोकप्रिय हैं और पर्दे के पीछे राजनीति में अहम भूमिका निभाते हैं. उनके राष्ट्रपति माक्रों के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं और कहा जाता है कि कुछ मुद्दों पर वे उन्हें सलाह भी देते हैं.
इसी महीने सारकोजी के खिलाफ के खिलाफ एक और मुकदमा चलेगा. यह मुकदमा 2012 के राष्ट्रपति चुनावों में अवैध चंदों के सिलसिले में हैं और इसमें सारकोजी के साथ 13 और लोग अभियुक्त हैं.
एमजे/एनआर (एपी)
ज़्यादातर लोगों के लिए स्नोमैन बनाना ही मुश्किल होता है, लेकिन अमेरिका के कोलोरैडो प्रदेश में एक परिवार ने बर्फ़ का एक बड़ा सा सांप बना डाला जिससे अब लोगों की नज़रें नहीं हट रही हैं.
मॉन मूज़ली और उनके पांच भाई-बहनों ने 10 घंटे लगाकर ये विशालकाय बर्फ़ का सांप बनाया है.
इससे पहले 2019 में भी इस परिवार का स्नो आर्ट मशहूर हुआ था. तब इस परिवार ने बर्फ़ से एक शानदार बाघ बनाया था, जिसे स्थानीय मीडिया में ख़ूब दिखाया गया था.
उन्होंने इस बार जो सांप बनाया है उसकी लंबाई क़रीब 77 फीट (23 मीटर) है और मूज़ली ने इसे अपनी मां के घर के बगीचे के सामने बनाया है.
बर्फ का सांप
MORN MOSLEY III
सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया जा रहा है, जिसमें दिख रहा है कि मॉन मूज़ली के ग्रुप ने ये सांप बनाने के लिए कितनी मेहनत की है.
ग्रुप ने पहले सांप का आकार बनाया और फिर उसमें स्प्रे पेंट से रंग भरे और शेडिंग की.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "जब हम छोटे थे तो मेरे पिता हमारे साथ ये बनाया करते थे. हम बस मज़े के लिए ऐसी चीज़ें बनाते रहते हैं."
आस-पास से गुज़रने वाले और पड़ोसी इस बर्फ़ के बड़े-से सांप को देखते नहीं थक रहे हैं.
मूज़ली कहते हैं, "वो तस्वीरें लेने के लिए रुक जाते हैं."
उनके फ़ेसबुक पेज पर कई लोगों ने कहा कि उन्होंने उनका बनाया बर्फ़ का सांप देखा है और उन्होंने परिवार के बेहतरीन काम की तारीफ़ की.
एक शख़्स ने कमेंट किया, "मुझसे ये देखने के लिए अगले साल का इंतज़ार नहीं हो रहा है कि आप लोग तब क्या बनाने वाले हो."
2019 में मॉन मूज़ली के परिवार ने बर्फ़ से बाघ बनाया था, जिसके लिए उन्हें ख़ूब तारीफ़ मिली थी और इसकी तस्वीरें स्थानीय मीडिया में छाई रही थीं.
म्यांमार में तख्तापलट के बाद से लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे लोगों का प्रदर्शन लगातार जारी है. रविवार को पुलिस की गोलीबारी में कम से कम 18 लोगों की मौत हो गई. यूएन मानवाधिकार आयोग ने हिंसा की निंदा की है.
संयुक्त राष्ट्र ने रविवार को म्यांमार में प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई की निंदा की और देश के सैन्य शासकों से बलपूर्वक कार्रवाई रोकने का आग्रह किया है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने इसे सैन्य तख्तापलट के विरोध में किए जा रहे प्रदर्शनों का सबसे घातक दिन बताया. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शामदासानी ने एक बयान में कहा, "हम म्यांमार में विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की कड़ी निंदा करते हैं और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल के इस्तेमाल को तुरंत रोकने के लिए सेना से आग्रह करते हैं."
सबसे अधिक कार्रवाई म्यांमार के तीन शहरों यंगून, दवेई और मंडाले में हुई. इन शहरों में पुलिस ने नागरिक आंदोलन को खत्म करने के लिए बल का इस्तेमाल किया और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे लोगों को निशाना बनाया. शामदासानी ने आगे कहा, "म्यांमार के लोगों को शांति के साथ इकट्ठा होने और लोकतंत्र की बहाली की मांग करने का अधिकार है." उन्होंने कहा, "इन मौलिक अधिकारों का सम्मान सेना और पुलिस द्वारा किया जाना चाहिए, न कि हिंसा और और खूनी दमन किया जाना चाहिए."
सैन्य शासन की कार्रवाई की निंदा
1 फरवरी को देश की सेना ने विद्रोह किया और चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदखल कर डाला था. सेना का कहना है कि पिछले साल नवंबर में आम चुनाव में धांधली हुई थी. सैन्य तख्तापलट को लोगों ने पसंद नहीं किया था लेकिन शुरूआती कुछ दिनों में विरोध प्रदर्शन शुरू नहीं हुआ था. फिर, कुछ दिनों बाद सेना के खिलाफ लोगों के विरोध प्रदर्शन ने गति पकड़ना शुरू किया और अब ये लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन पूरे देश में फैल गए हैं. शुरू में सुरक्षा बल थोड़ी सावधानी के साथ काम कर रहे थे, लेकिन जैसे-जैसे जनता का विरोध फैलता गया, पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई में तेजी आई.
बड़ी संख्या में गिरफ्तारी
म्यांमार की सेना ने कई दशकों तक देश पर राज किया, जबकि ताजा सैन्य तख्तापलट के विरोध में लाखों नागरिक अब हर दिन सड़कों पर उतर रहे हैं, लेकिन इस देश में सत्ता के सैन्य अधिग्रहण ने एक बार फिर दुनिया को चिंता में डाल दिया है. इस बीच अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने सुरक्षाबलों की कार्रवाई की निंदा की है. उन्होंने ट्वीट किया, "हम बर्मा के साहसी लोगों के साथ दृढ़ता के साथ खड़े हैं और सभी देशों को उनकी इच्छा के समर्थन में एक स्वर से बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं."
यंगून में रविवार को भारी संख्या में छात्रों और शिक्षकों को हिरासत में लिया गया. कई जख्मी लोगों की मदद करने की तस्वीर भी इस शहर से सामने आई हैं. एक टीचर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "पुलिस ट्रक से उतरी और उसके बाद बिना किसी चेतावनी के स्टेन ग्रेनेड फेंकना शुरू कर दिया."
ईयू ने प्रतिबंधों की पुष्टि की
यूरोपीय संघ के शीर्ष विदेश नीति प्रमुख जोसेफ बोरेल ने भी हिंसा की निंदा की, उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि ईयू तख्तापलट के विरोध में प्रतिबंध लगाएगा. बोरेल ने एक बयान में कहा, "हिंसा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को अवैध रूप से उखाड़ फेंकने को वैधता नहीं देगी. निहत्थे नागरिकों के खिलाफ गोलीबारी में, सुरक्षा बलों ने अंतरराष्ट्रीय कानून की सख्त अवहेलना दिखाई है और इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए." ईयू आने वाले दिनों में प्रतिबंधों पर अंतिम निर्णय लेगा.
एए/सीके (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)
तेहरान ने 2015 के परमाणु समझौते पर अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के साथ अनौपचारिक वार्ता करने से इनकार कर दिया है. उसका कहना है कि पहले अमेरिका को प्रतिबंधों को हटाना चाहिए.
वॉशिंगटन ने रविवार को कहा कि वह "निराश" है कि ईरान ने 2015 के परमाणु समझौते में शामिल अमेरिका और अन्य देशों के साथ अनौपचारिक वार्ता करने से इनकार कर दिया है. तेहरान का कहना है कि वह संयुक्त व्यापक कार्य योजना (जेसीपीओए) या ईरान परमाणु समझौते पर चर्चा के लिए बैठक में शामिल नहीं होगा जब तक कि उस पर से प्रतिबंध हटा नहीं दिया जाता. ईरानी समाचार एजेंसी आईएसएनए ने ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबजादा के हवाले से कहा, "सबसे पहले अमेरिका को परमाणु समझौते पर लौटना चाहिए और ईरान पर लगे अवैध प्रतिबंधों को उठाना चाहिए. जैसे ही प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे, हम अपने वादों पर लौट आएंगे."
उन्होंने कहा कि ईरान ऐसे "संकेतों" का जवाब नहीं देगा और अमेरिका और यूरोप के दबाव के आगे नहीं झुकेगा. हालांकि उन्होंने कहा कि ईरान यूरोपीय संघ के शीर्ष विदेश नीति प्रमुख जोसेफ बोरेल के साथ ही फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, चीन और रूस के साथ सहयोग करना जारी रखेगा. तेहरान ने हाल ही में वॉशिंगटन से प्रतिबंधों को हटाने का आग्रह किया था, प्रतिबंधों के कारण देश इतिहास में सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है. ईरान और अमेरिका के बीच हाल के दिनों में परमाणु समझौते को लेकर तनाव में तेज वृद्धि हुई है.
अमेरिका बातचीत के लिए तैयार
ईरान के बयानों के जवाब में वॉशिंगटन का कहना है कि अमेरिका निराश है लेकिन फिर भी कूटनीति को दोबारा से शुरू करने के लिए तैयार है. व्हाइट हाउस की एक प्रवक्ता ने कहा, "जबकि हम ईरान की प्रतिक्रिया से निराश हैं, हम अभी भी जेसीपीओए के तहत किए गए वादों को पूरा करने के लिए एक सार्थक कूटनीति को फिर से शुरू करने के लिए तैयार हैं."
2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका को परमाणु समझौते से अलग कर लिया था. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने समझौते को बहाल करने के लिए ईरान समेत छह देशों के समूह के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का ऐलान किया है.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
म्यामांर में सैन्य तख़्ता पलट के विरोध में प्रदर्शन तेज़ हो गए हैं, जिन्हें बड़े हिंसक तरीके से दबाया जा रहा है.
रविवार को यंगून, मांडले और अन्य शहरों में सुरक्षाबलों के सख़्त रवैये के बावजूद ज़ोरदार प्रदर्शन हुए हैं. प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए सुरक्षाबलों ने रबर की बुलेट और टियर गैस के साथ असली गोलियां चलाने की भी ख़बरें हैं.
ख़बरें मिल रही हैं कि कई प्रदर्शनकारी गोलियों का निशाना बने हैं. हालांकि हताहतों के बारे में पुख़्ता तौर पर पता करना मुश्किल है.
म्यांमार में बीती एक फरवरी को हुए सैन्य तख़्तापलट के बाद से मुख्य शहरों और कस्बों में सैन्य शासन के ख़िलाफ़ जारी विरोध प्रदर्शन अब धीरे-धीरे हिंसक रूप लेते दिख रहे हैं.
प्रदर्शनकारियों में लगभग हर समाज, वर्ग और उम्र के लोग नज़र आ रहे हैं जो कि सैन्य शासन से म्यांमार की सर्वोच्च नेता रहीं आंग सान सू ची को रिहा करने की माँग कर रहे हैं.
एक फरवरी को सेना ने तख़्ता पलट करके आंग सान सू ची समेत सरकार में शामिल शीर्ष नेताओं को अपदस्थ कर दिया था.
वहीं, सेना की ओर से लगातार इन विरोध प्रदर्शनों को कुचलने की कोशिश की जा रही हैं. यंगून शहर में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाबलों ने आँसू गैस के गोले और स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया है. सुरक्षाबल रबर की गोलियों का भी इतेमाल कर रहे हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, रविवार को विरोध प्रदर्शन की जगहों से गोलियां चलने की आवाज़ और ग्रेनेड का धुआं देखा गया है.
कम से कम दो समाचार एजेंसियों ने इस बात की पुष्टि की है कि रविवार को म्यांमार पुलिस की ओर से प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गई हैं.
रॉयटर्स ने बताया है कि जब स्टन ग्रेनेड और टियर गैस से भीड़ तितर बितर नहीं हुई तो पुलिस ने यंगून शहर के अलग–अलग हिस्से में गोलियां चलाई हैं.
बीबीसी बर्मा सेवा के मुताबिक़, दवेई कस्बे में चार लोगों की मौत गोली लगने से हुई है और कई लोग घायल हुए हैं.
एक चैरिटी संस्था ने बीबीसी को बताया है, “कुल चार लोगों की मौत हुई है जो कि दवेई, येब्यू, लॉन्गलॉन के रहने वाले थे. और कई लोग जख़्मी हुए हैं.” इस मामले में कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार भी किया गया है.
एक डॉक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर रॉयटर्स से कहा है कि एक व्यक्ति को सीने में गोली के घाव के साथ अस्पताल लाया गया था जिसकी मौत हो गई.
इसके साथ ही राजनेता क्याव मिन तिके ने रॉयटर्स को बताया है कि पुलिस ने दवेई कस्बे में भी गोलियां चलाई है जिसमें तीन लोगों की मौत हुई है. इसके साथ ही इस गोलीबारी में कई लोग घायल हुए हैं.
रॉयटर्स के मुताबिक़, शिक्षकों की ओर से किए जा रहे विरोध प्रदर्शन को ख़त्म करने के लिए स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया जिसमें एक महिला शिक्षक की मौत हो गई है.
बौद्ध बहुसंख्यक आबादी वाले देश के पहले कैथोलिक कार्डिनल चार्ल्स मॉन्ग बो ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, “म्यांमार एक युद्धस्थल जैसा हो गया है.”
रविवार को हुए विरोध प्रदर्शनों के वीडियो सोशल मीडिया पर नज़र आए हैं जिनमें साफ़ दिख रहा है कि सुरक्षाकर्मी प्रदर्शनकारियों को खदेड़ रहे हैं और कई लोग लहूलुहान हुए हैं.
उन्होंने कहा ,"उन्होंने हम पर कल, और उससे पहले भी गोलियां चलाई थीं. लेकिन मैं इसकी परवाह नहीं करती. विरोध प्रदर्शन के लिए घर छोड़ने से पहले ही मैंने अपने परिवार को गुडबाय कह दिया है, क्योंकि हो सकता है कि मैं कभी घर वापस ही ना लौटूं. सेना पहले ही नाकाम हो चुकी है. हम सेना को ये बताना चाहते हैं कि हमें ख़ौफ़ नहीं है और हम पीछे नहीं हटने वाले." (bbc.com)
ने पी ता, 28 फरवरी | म्यांमार के सैन्य शासकों ने कहा है कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में देश के राजदूत को निकाल दिया है। एक दिन पहले ही राजदूत ने सेना को सत्ता से हटाने के लिए मदद मांगी थी। एक भावनात्मक भाषण में, क्यो मो तुन ने कहा कि किसी भी देश को भी सैन्य शासन के साथ सहयोग नहीं करना चाहिए, जब तक कि वह लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को वापस सत्ता सौंप न दे।
इधर म्यामांर में सुरक्षा बलों ने शनिवार को तख्तापलट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी।
स्थानीय मीडिया का कहना है कि दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया गया है और मोनव्या शहर में एक महिला को गोली मार दी गई है। उसकी हालत के बारे में पता नहीं चल पाया है।
1 फरवरी को सेना के सत्ता में आने के बाद आंग सान सू ची सहित शीर्ष नेताओं को सत्ता से हटा दिया गया था जिसके बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन होने लगे।
शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में बोलते हुए, क्यॉ मो तुन ने 'लोकतंत्र को बहाल करने' में मदद करने के लिए सैन्य सरकार के खिलाफ 'कार्रवाई करने के लिए आवश्यक किसी भी साधन' का उपयोग करने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया था। उन्होंने कहा कि वो सू ची की अपदस्थ सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "हमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सैन्य तख्तापलट को तुरंत समाप्त करने, निर्दोष लोगों पर अत्याचार रोकने, लोगों को राज्य की सत्ता वापस करने और लोकतंत्र को बहाल करने के लिए कार्रवाई की जरूरत है।"
उनके भाषण के बाद तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा। अमेरिकी दूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने भाषण को 'साहसी' कहा।
म्यांमार के राज्य टेलीविजन ने शनिवार को यह कहते हुए उन्हें हटाने की घोषणा की कि उन्होंने "देश के साथ विश्वासघात किया है और एक अनौपचारिक संगठन के लिए बात की है जो देश का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। उन्होंने एक राजदूत की शक्ति और जिम्मेदारियों का दुरुपयोग किया है"। (आईएएनएस)
लंदन, 27 फरवरी | स्मार्टफोन को अकसर आंखों की तमाम समस्याओं के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन अब ये आपके लिए मददगार भी साबित हो सकते हैं। शोधकर्ताओं ने इजात किया है कि इन डिवाइसों की मदद से आंखों में ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षणों को पहले भांप लिया जा सकता है, जिससे कि अंधेपन और आंखों की अन्य गंभीर समस्याओं को होने से रोकने में मदद मिल सकती है। ग्लूकोमा ऑप्टिक तंत्र की एक बीमारी है, जिससे कि दुनियाभर में 7.96 करोड़ लोग प्रभावित हैं। अगर सही से इसका इलाज न करवाया जाए, तो इसके और भी कई गंभीर नुकसान हैं।
ग्लूकोमा के अधिकतर मामलों में सही इलाज व नियंत्रण से अंधेपन को रोका जा सकता है।
ग्लूकोमा इंट्राओकुलर प्रेशर (आईओपी) के उच्च स्तर से संबंधित है। ऐसे में अगर एक लंबे समय तक की अवधि में किसी इंसान की आईओपी पर सटीकता से गौर फरमाया जाए, तो काफी हद तक उनके देखने की शक्ति को बरकरार रखने में मदद मिल सकती है।
मोबाइल मेजरमेंट मेथड के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले साउंडवेव्स आईओपी की बढ़ती मात्रा का पता लगाने में मददगार है, जिससे रोग के होने का पता जल्दी लग जाएगा और इस हिसाब से इसका उपचार भी जल्दी शुरू होगा।
इंजीनियरिंग रिपोर्ट्स में प्रकाशित इस अध्ययन में दिखाया गया है कि ब्रिटेन के बर्मिघम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने साउंडवेव्स और एक आई मॉडल का इस्तेमाल कर अपने प्रयोग को सफलतापूर्वक अंजाम दिया।
विश्वविद्यालय में एडवांस्ड मैन्युफैक्च रिंग ग्रुप के निदेशक खामिस एससा ने कहा, "हमने किसी वस्तु के आंतरिक दबाव और उसके ध्वनिक प्रतिबिंब गुणांक के बीच संबंध की खोज की। आंखों की बनावट और साउंडवेव्स के प्रति इनकी प्रतिक्रिया का अधिक अध्ययन करने पर हमने पाया कि घर में बैठे आईओपी का निर्धारण करने के लिए संभावित रूप से स्मार्टफोन का इस्तेमाल किया जा सकता है।" (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 27 फरवरी | कई देशों में कोविड-19 की वैक्सीन विकसित होने के बावजूद इस महामारी का खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। इस महामारी की जटिल नस्लीय और सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए गूगल ने भी अपने प्रयासों को दोगुना कर दिया है। इसने कोविड टीकाकरण में असमानताओं को दूर करने के लिए 50 लाख डॉलर के आर्थिक अनुदान का संकल्प व्यक्त किया है। गूगल डॉट ओआरजी के अध्यक्ष जैक्वेलिन फुलर के अनुसार, कंपनी कोविड-19 टीकाकरण में नस्लीय और भौगोलिक असमानताओं को संबोधित करने वाले संगठनों को 50 लाख डॉलर का अनुदान दे रही है।
फुलर ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि 48 प्रतिशत श्वेत अमेरिकियों की तुलना में अश्वेत अमेरिकियों में से लगभग 71 प्रतिशत और हिस्पैनिक अमेरिकियों में से 61 प्रतिशत किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो वायरस से मर चुके हैं या अस्पताल में भर्ती हैं।
डेटा से यह भी पता चलता है कि अश्वेत अमेरिकियों को अपने साथियों की तुलना में कम दरों पर टीका लगाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि गूगल डॉट ओआरजी पर हमारा लक्ष्य है कि अनारक्षित समुदायों का समर्थन करने के लिए गूगल का सबसे अच्छा उपयोग करें।
गूगल ने कोविड-19 राहत का समर्थन करने के लिए पहले ही 10 करोड़ डॉलर की प्रतिबद्धता दोहराई हैं। रिपोटरें से पता चला है कि 41 प्रतिशत अश्वेत अमेरिकियों के स्वामित्व वाले लगभग 440,000 व्यवसाय कोविड-19 के कारण बंद हो गए हैं, जबकि श्वेत अमेरिकियों के स्वामित्व वाले केवल 17 प्रतिशत व्यवसाय ही बंद हुए।
फुलर ने कहा कि महामारी के दौरान अल्पसंख्यक व्यापार मालिकों का समर्थन करने के लिए हमने कॉमन फ्यूचर को यूएस में 2,000 महिलाओं और अल्पसंख्यक लघु-व्यवसाय उद्यमियों को पूंजी और तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए अनुदान व धन से समर्थन दिया है।
(आईएएनएस)
यांगून. म्यांमार में सैन्य तख्तापलट का दुनियाभर में विरोध हो रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वहां तख्तापलट का विरोध करने वालों को सेना लगातार डरा-धमका रही है. सेना ने ऐलान किया है कि वो एक साल के लिए आपातकाल की स्थिति के तहत सत्ता चलायेगी, और फिर चुनाव होगा. इस बीच संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के स्थायी प्रतिनिधि क्याव मो तुन ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट और वहां लोगों पर हो रहे अत्याचार के मुद्दे को उठाया है. इसी दौरान देश के हालात को बंया करते-करते वो रो पड़े. आखिर में उन्होंने तीन अंगूलियों से चेयर को सैल्यूट किया.
क्याव मो तुन ने सबसे पहले म्यांमार में हो रहे अत्याचार की बात अंग्रेजी में कही, इसके बाद उन्होंने कहा को वो कुछ शब्द अपने स्थानी भाषा मे कहना चाहते हैं. इसी दौरान बोलते-बोलते वो बेहद भुवक हो गए. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि लोकतंत्र के समर्थन में वो म्यांमार के साथ खड़े रहें.
थ्री फिंगर सैल्यूट की चर्चा
क्याव मो तुन के थ्री फिंगर सैल्यूट की चर्चा हर तरफ हो रही है. बता दें कि तीन उंगलियों वाला ये सैल्यूट वहां प्रतिरोध का एक प्रतीक बन चुका है. अक्टूबर 2020 में थाईलैंड में राजतंत्र व्यवस्था के खिलाफ जो प्रदर्शन हुए थे, वहां भी इस प्रतीक को देखा गया था. म्यांमार में सबसे पहले इस तरह का सैल्यूट तख्तापलट का विरोध करने के लिए मेडिकल कार्यकर्ताओं ने इस्तेमाल किया था.
म्यांमार में तख्तापलट
म्यांमार में चुनी हुई आंग सान सू ची की सरकार को 1 फरवरी को गिराकर सेना ने ख्तापलट किया, तबसे ही पूरे देश में नागरिक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. लोकतंत्र की बहाली की मांग को लेकर लगातार प्रदर्शन किए जा रहे हैं.
फ्रैंक गार्डनर
सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या से जुड़ी अमेरिकी इंटेलिजेंस रिपोर्ट का जारी होना मध्य-पूर्व के सबसे ताक़तवर लोगों में शुमार सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की ताक़त, प्रतिष्ठा और अंतरराष्ट्रीय हैसियत के लिए एक झटके जैसा है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि ख़ाशोज्जी की हत्या के लिए मोहम्मद बिन सलमान ने स्वयं मंज़ूरी दी थी.
इस घटना का असर आने वाले कई दशकों तक पश्चिमी देशों और सऊदी अरब के आपसी रिश्तों पर देखा जा सकता है.
इस हत्या में मोहम्मद बिन सलमान उर्फ़ एमबीएस की संलिप्तता होने पर ज़ोर दिये जाने से पश्चिमी देशों के नेताओं के लिए सार्वजनिक तौर पर उनके साथ निजी रिश्ते रख पाना मुश्किल हो जाएगा.
लेकिन इसके बावजूद ऐसा दिखाई देता है कि मोहम्मद बिन सलमान लंबे वक़्त तक सऊदी सत्ता पर काबिज रहने वाले हैं.
वे अभी महज़ 35 साल के हैं और सऊदी अरब के युवाओं में उनकी लोकप्रियता काफ़ी ज़्यादा है. इसकी एक वजह देशभक्ति है और दूसरी वजह बड़े पैमाने पर नागरिकों की आज़ादी पर लगाई गई पाबंदियों से मुक्ति भी हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ये संकेत दे चुके हैं कि वे एमबीएस की बजाय सऊदी किंग सलमान के साथ रिश्ते रखना चाहते हैं.
लेकिन, किंग सलमान और एमबीएस के बीच काफ़ी नजदीकी ताल्लुकात हैं और दोनों के बीच फ़र्क़ करना मोटे तौर पर बेमानी बात होगी.
85 साल के किंग सलमान की सेहत ठीक नहीं है. वह पहले ही अपनी ज़्यादातर शक्तियां एमबीएस को दे चुके हैं.
ख़ाशोज्जी की हत्या का सनसनीख़ेज टेप
पश्चिमी देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों को ये बात लंबे समय से पता थी कि क्राउन प्रिंस के तार ख़ाशोज्जी हत्याकांड से जुड़े हैं. बस इस बात को सार्वजनिक नहीं किया गया था.
अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी सीआईए की निदेशक रहीं गिना हैस्पेल ने तुर्की की राजधानी अंकारा पहुंचकर ये टेप सुना.
हैस्पेल जब अंकारा पहुंचीं तो तुर्की के ख़ुफ़िया अधिकारियों ने ख़ाशोज्जी के आख़िरी पलों का बेहद सनसनीख़ेज ऑडियो टेप सुनाया.
इस टेप में ख़ाशोज्जी को तुर्की में स्थित सऊदी दूतावास के भीतर सऊदी अरब के भेजे गए एजेंट्स द्वारा दबोचे जाने और गला दबाए जाने के दौरान संघर्ष करते सुना जा सकता है.
सऊदी दूतावास के भीतर तुर्की का ख़ुफ़िया रिकॉर्डिंग करना कूटनीतिक तौर पर ग़लत व्यवहार का उदाहरण है.
हालांकि, ख़ाशोज्जी की घृणित हत्या को देखते हुए इसे बड़े तौर पर उपेक्षित कर दिया गया. इस रिकॉर्डिंग को पश्चिमी देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों के साथ भी साझा किया गया था.
अमेरिकी अधिकारियों ने निष्कर्ष निकाला कि “मध्यम से लेकर उच्चतम स्तर तक निश्चितता” है कि एमबीएस इसमें संलिप्त थे.
ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए इस ख़ुफ़िया रिपोर्ट को बाहर नहीं आने दिया गया ताकि अमेरिका के निकट सहयोगी सऊदी अरब को बदनामी से बचाया जा सके. हालांकि, अब वह सुरक्षा कवच हट गया है.
अमेरिका की पसंद नहीं हैं एमबीएस
सऊदी अरब के किंग बनने के लिए एमबीएस अमेरिका की पहली पसंद नहीं थे. अमेरिका चाहता था कि प्रिंस मोहम्मद बिन नायेफ को अगला किंग बनाया जाए.
नायेफ ही सत्ता पाने की क़तार में सबसे आगे थे. हालांकि, एमबीएस ने उन्हें 2017 में हटा दिया.
नायेफ को एमबीएन भी कहा जाता है. वे फ़िलहाल हिरासत में हैं. उन पर भ्रष्टाचार और युवराज के ख़िलाफ़ साज़िश करने के आरोप लगे हैं. हालांकि, उनका परिवार इन आरोपों से इनकार करता है.
वर्षों तक एमबीएन सऊदी शाही परिवार में अमेरिका के सबसे अहम सहयोगी रहे. बतौर आंतरिक मंत्री उन्होंने अल-क़ायदा के चरमपंथ को ख़त्म करने में सफलता पाई थी. अपने ख़ुफ़िया प्रमुख साद अल-जाबरी के साथ मिलकर नायेफ ने सीआईए के साथ नजदीकी रिश्ते स्थापित किए थे.
अल-जाबरी अब कनाडा में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं और उन्होंने अदालत में दावा किया था कि एमबीएस ने उन्हें मारने के लिए एक दस्ता भेजा था.
ऐसे में मौजूदा युवराज को लेकर सीआईए की असहजता स्पष्ट है.
सीआईए को अभी भी सऊदी शाही दरबार में एक अच्छे रिश्ते बनाने हैं. सीआईए के लिए यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आईएस और अल-क़ायदा के वैश्विक चरमपंथ के ख़तरे अभी ख़त्म नहीं हुए हैं.
हालांकि, सीआईए एमबीएन जैसे किसी धीर गंभीर और सुरक्षित शख़्स के साथ कामकाज़ करने को तरजीह दे रही है और वह एमबीएस जैसे अनपेक्षित रूप से कुछ भी करने वाले शख्स के साथ नहीं जाना चाहती है.
ईरान के लिए मौक़ा
सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों में पैदा होने वाली कोई भी खटास सऊदी अरब के क्षेत्रीय दुश्मन ईरान के लिए एक तोहफ़े जैसी है.
जानकार मानते हैं कि वर्षों से जारी पाबंदियों के साये में रहने के बावजूद ईरान ने मध्य पूर्व में एक ज्यादा पुख्ता मुकाम हासिल कर लिया है.
अपने छद्म लड़ाका संगठनों के जरिए लेबनॉन, सीरिया, इराक और यमन तक ईरान ने अपनी रणनीतिक पहुंच बना ली है. और इस तरह से सऊदी अरब एक तरह से घिर गया है.
जब राष्ट्रपति बाइडन ने यमन में लड़ाई के लिए सऊदी अरब को अमेरिकी हथियार देने पर रोक लगाने का ऐलान किया तो ईरान के समर्थन वाले हूती विद्रोहियों ने इसका तत्काल फायदा उठाया.
हूती विद्रोही तब से ही कई मोर्चों पर बढ़त हासिल कर चुके हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उनके दुश्मन के सामने हथियारों का संकट है.
लंबे वक्त के लिहाज से अगर देखा जाए तो यह सऊदी नेतृत्व को रक्षा और सुरक्षा भागीदारी में नए देशों को साथ जोड़ने के लिए मजबूर कर सकता है.
खासतौर पर सऊदी अरब रूस और चीन के साथ नजदीकी बढ़ा सकता है.
इसके अलावा, सऊदी अरब इसराइल के साथ भी नजदीकियां बढ़ा सकता है. ईरान को लेकर सऊदी अरब और इसराइल एक जैसे डर को महसूस करते हैं. (bbc.com)
अरुल लुईस
संयुक्त राष्ट्र, 27 फरवरी | संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के स्थायी प्रतिनिधि क्यॉ मो तुन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के समक्ष अपने देश के सैन्य शासन की निंदा की है और घोषणा किया कि वह लोकतंत्र के लिए लड़ेंगे। उन्होंने सैन्य शासन को धता बताते हुए देश में तख्तापलट की निंदा की।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में म्यांमार की वर्तमान स्थिति को लेकर एक सत्र के दौरान उन्होंने कहा कि हम एक ऐसी सरकार के लिए लड़ते रहेंगे, जो लोगों द्वारा, लोगों के लिए और लोगों की है।
महासभा में उपस्थित राजनयिकों ने उनके भाषण की सराहना की। गौरतलब है कि म्यांमार की सैन्य सरकार ने इस महीने स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची और अन्य नेताओं को जेल में डाल दिया था और नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसी द्वारा जीता गया चुनाव अवैध घोषित कर दिया।
बहरहाल, तुन ने महासभा के सत्र में कहा कि उनकी निष्ठा आंग सान सू ची की चुनी हुई सरकार के प्रति है और वह लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित संसद सदस्यों की ओर से बोल रहे हैं।
उन्होंने सैन्य तख्तापलट को तुरंत समाप्त करने, निर्दोष लोगों पर अत्याचार बंद करने, लोगों को राज्य की सत्ता वापस करने और लोकतंत्र को बहाल करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से सबसे सख्त संभव कार्रवाई करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि सेना के लिए यह तुरंत सत्ता छोड़ने और हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा करने का समय है।
उन्होंने अपनी तीन उंगलियां एक सलामी में उठाईं, जो म्यांमार के उन प्रदर्शनकारियों का प्रतीक बन गया है जो देश में लोकतंत्र की वापसी की मांग कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत क्रिस्टीन श्रानेर बर्गेनेर ने एक वीडियो लिंक के माध्यम से महासभा को बताया कि म्यांमार की स्थिति 'नाजुक' है और अभी तक यह स्थिर नहीं हो पाई है।
सेना का अधिग्रहण केवल एक 'तख्तापलट का प्रयास' रहा और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को 'इस शासन को वैधता या मान्यता नहीं देनी चाहिए', क्योंकि "यह लोगों द्वारा सिरे से खारिज कर दिया गया प्रतीत होगा"।
उन्होंने कहा कि लोगों को उनके मूल अधिकारों का प्रयोग करने के खिलाफ अगर सैन्य क्रूरता के संदर्भ में कोई वृद्धि हुई है, जैसा कि हमने म्यांमार में पहले देखा है, तो हमें तेजी से और सामूहिक रूप से कार्रवाई करने की जरूरत है।
भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने कहा कि म्यांमार की स्थिति को लेकर नई दिल्ली बेहद चिंतित है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहाल करना म्यांमार में सभी हितधारकों की प्राथमिकता होनी चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस महत्वपूर्ण मोड़ पर म्यांमार के लोगों को अपना रचनात्मक समर्थन देना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा कि किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। किसी को भी अपनी राय व्यक्त करने के लिए जेल में नहीं डाला जाना चाहिए.. परिवार को किसी अन्य सदस्य के कार्यों के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन अभी वहां ऐसा नहीं है और हम इस बारे में बहुत चिंतित हैं। (आईएएनएस)
काबुल, 26 फरवरी | अफगानिस्तान के घोर प्रांत में मारे जा चुके एक पत्रकार के घर पर अज्ञात बंदूकधारियों ने हमला कर दिया जिसमें कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गए। सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। टोलो न्यूज के मुताबिक, बंदूकधारियों ने एक पत्रकार, एक्टिविस्ट और रेडियो सदा-ए-घोर के पूर्व प्रमुख बिस्मिल्लाह आदिल के घर पर हमला किया, जो इस साल के पहले दिन बंदूकधारियों के हमले में मारे गए थे।
आदिल के रिश्तेदार लाला गुल ने कहा है कि उनके भाई, चचेरे भाई और उनके 13 वर्षीय भतीजे ने हमले में अपनी जान गंवाई है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, पांच अन्य लोग जो घायल हुए हैं, वे भी पत्रकार के परिवार के सदस्य हैं।
गुल ने दावा किया कि हमला तालिबान ने किया था।
हालांकि, तालिबान के एक प्रवक्ता ने इस घटना में आतंकी समूह का हाथ होने से इनकार कर दिया है।
घोर के अधिकारियों ने कहा कि घटना की जांच की जिम्मेदारी एक टीम को सौंपी गई है। इस बीच, घटना के बाद प्रांत में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। (आईएएनएस)
दुनिया भर में आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन एफएटीएफ ने पाकिस्तान को अपनी "ग्रे लिस्ट" से नहीं हटाने का फैसला लिया है. पाकिस्तान को अब तक इस कारण अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है.
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने गुरुवार को बताया कि पाकिस्तानी सरकार आतंकवाद के खिलाफ 27 सूत्रीय एजेंडे में से तीन को पूरा करने में विफल रही है. इसी वजह से टास्क फोर्स ने उसे ग्रे लिस्ट में बरकरार रखने का फैसला किया है. एफएटीएफ ने अपने बयान में कहा है कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित घोषित आतंकवादियों के खिलाफ कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया है. अंतरराष्ट्रीय निगरानी संस्था ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में जून 2018 से डाल रखा है और उसे आतंकी गुटों के खिलाफ कार्रवाई करने और उनके धन के स्रोतों को खत्म करने के लिए कहता आया है.
अरबों डॉलर का नुकसान
दूसरी ओर एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि पाकिस्तान को 2008 से तीन बार एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में आने के कारण अरबों रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है. पाकिस्तान स्थित तबादलाब नाम के एक स्वतंत्र थिंक टैंक द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में निष्कर्षों को साझा किया गया, जिसका शीर्षक है "वैश्विक राजनीति की कीमत चुकाना - पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग का प्रभाव." शोध में पता चला है कि 2008 से ले कर 2019 तक देश को 38 अरब डॉलर का नुकसान हुआ और इस से संभवतः जीडीपी में भी गिरावट देखने को मिली.
शोध के लेखक ने तर्क दिया, "डाटा से संकेत मिल रहे हैं कि एफएटीएफ की ग्रे सूची से पाकिस्तान को हटाने के बाद कई बार अर्थव्यवस्था उभरी है, जैसा कि 2017 और 2018 में जीडीपी के स्तर में वृद्धि से स्पष्ट है." रिपोर्ट में कहा गया, "38 अरब डॉलर के घाटे के एक बड़े हिस्से को घरेलू और सरकारी खपत खर्च में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है."
देश की अर्थव्यवस्था पर असर
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर आशंकाओं के बीच स्थानीय निवेश, निर्यात और विदेशी निवेश में गिरावट होगी. रिपोर्ट के निष्कर्ष ऐसे समय में आए हैं जब मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक के वित्तपोषण को रोकने के लिए एफएटीएफ के वैश्विक मानकों का पालन करने के लिए की गई कार्रवाइयों पर पाकिस्तान की प्रगति की पेरिस में एफएटीएफ की प्लेनरी मीटिंग में समीक्षा की गई.
जानकारों का मानना है कि ग्रे सूची से पाकिस्तान के बाहर निकलने की संभावना कम है क्योंकि देश में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक के वित्तपोषण कानून पूरी तरह से वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं हैं. एए/सीके (डीपीए, रॉयटर्स)