अंतरराष्ट्रीय
संयुक्त अरब अमीरात की एक राजकुमारी ने अपने पिता की कैद से आजाद होने के लिए दुनिया से गुहार लगाई है. यह वही राजकुमारी है जिसे 2018 में समुद्र के रास्ते देश छोड़कर भागने के बाद भारत के सुरक्षाबलों ने पकड़ लिया था.
संयुक्त अरब अमीरात की प्रिंसेस लतीफा के समर्थकों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से गुहार लगाई है कि वे शासन पर उनकी रिहाई के लिए दबाव बनाएं. प्रिंसेस लतीफा ने एक लीक हुए वीडियो के जरिए बताया है कि उन्हें बंधक बना कर रखा गया है. 35 साल की प्रिंसेस लतीफा संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम की बेटी हैं. लतीफा का कहना है कि 2018 में देश छोड़ कर भागने की कोशिश करने के बाद उनके पिता ने उन्हें एक विला में कैद कर रखा है.
जो बाइडेन से उम्मीद
लतीफा के समर्थक मानते हैं कि लतीफा की उम्मीद अब सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति हैं. लतीफा के सहयोगी और सामाजिक कार्यकर्ता डेविड हाय का कहना है कि सिर्फ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन में ही यह सामर्थ्य है कि वे प्रिंसेस लतीफा को छुड़ा सकें. हाल ही में सऊदी अरब की महिला अधिकार कार्यकर्ता लुजैन अल हथलौल की रिहाई के बाद लतीफा के समर्थकों का उत्साह बढ़ा है. माना जाता है कि बाइडेन प्रशासन के सऊदी अरब को हथियारों की बिक्री रोकने के कारण हथलौल की रिहाई संभव हुई है.
डेविड हाय ने समाचार एजेंसी एपी से कहा है, "लतीफा के पिता पर उनकी जेल खोलने के लिए प्रभावी दबाव बनाने के लिए जो बाइडेन के स्तर के लोग ही कुछ कर सकते हैं और बाइडेन ने सऊदी के साथ यह कर के दिखाया है.” लंदन की एसओएएस यूनिवर्सिटी में मध्यपूर्व मामलों के विशेषज्ञ डेविड वियरिंग का कहना है कि बाइडेन प्रशासन प्रिंसेस के मामले में बेहतर नतीजे ला सकता है. उनका यह भी कहना है कि यूएई के लिए अमेरिका के साथ रिश्ते बेहतर करने के दबाव में आ सकता है.
जो बाइडेन का खाड़ी देशों पर कठोर रुख
राष्ट्रपति जो बाइडे ने वादा किया है कि वे अपनी मध्यपूर्व की नीति में मानवाधिकारों को प्रमुखता देंगे और इसके लिए उन्होंने खाड़ी के देशों के प्रति कठोर रवैया अपनाने का खाका तैयारा किया है. बाइडेन से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे डॉनल्ड ट्रंप ने वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले में सऊदी को माफी दे दी और यमन में सैन्य हस्तक्षेप का समर्थन किया था.
नए राष्ट्रपति ने यमन पर हमले का समर्थन बंद कर दिया है. साथ ही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से ट्रंप की तुलना में अलग व्यवहार शुरू किया है. ट्रंप ने संयुक्त अरब अमीरात को एफ-35 लड़ाकू विमान बेचने के करार को रोक दिया है. यह करार ट्रंप के दौर में हुए बड़े करारों में से एक था.
"यूएई में न्याय पर भरोसा नहीं”
संयुक्त अरब अमीरात की कैद में रहे एक शख्स का कहना है कि प्रधानमंत्री अल मकतूम को भरोसा है कि वे अपनी बेटी के साथ बुरा सलूक करके भी सजा से बच सकते हैं. ब्रिटेन की दुरहम यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड इंटरनेशनल अफेयर्स के डॉ. मैथ्यू हेजेस को 2018 में छह महीने के लिए यूएई में कैद कर रखा गया था. उन पर जासूसी के आरोप लगे थे. हेजेस का कहना है कि यूएई को मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए पश्चिमी देश उत्तरदायी नहीं ठहराएंगे.
प्रिंसेस लतीफा के साथ किए जा रहे व्यवहार के मामले में हेजेस मानते हैं कि अल मकतूम "को लगता है कि वे आसानी से बच कर निकल सकते हैं. उन्हें घरेलू या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव में नहीं लिया जा सकता.” हेजेसे ने कहा कि कई देश जिनमें मेरा देश भी शामिल है, वे यूएई के साथ कारोबार जारी रखे हुए हैं.
न्याय के लिए किसी रूप में जिम्मेदार ठहराने का कोई तरीका नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि उनका देश ब्रिटेन भी यूएई के साथ कारोबारी रिश्ते खत्म करने को तैयार नहीं होगा. हालांकि ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमिनिक राब ने लतीफा की स्थिति पर चिंता जताई है. डोमिनिक राब का कहना है, "वीडियो देखने के बाद लतीफा की स्थिति को लेकर ब्रिटेन बहुत चिंतित है लेकिन मुझे नहीं लगता कि हम बहुत कुछ करने की स्थिति में हैं क्योंकि लतीफा ब्रिटेन की नागरिक नहीं हैं.”
किस हाल में हैं प्रिंसेस लतीफा
लतीफा का जो वीडियो सामने आया है उसमें वे अपने "विला जेल” के बाथरूम में नजर आ रही हैं, जहां उन्होंने अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है, "हर रोज मुझे अपनी सुरक्षा और जिंदगी की चिंता होती है, मुझे नहीं पता कि मैं इस स्थिति में बच पाउंगी या नहीं.”
अल मकतूम की पूर्व पत्नी प्रिंसेस हया बिंत हुसैन ने अल मकतूम पर अपनी पिछली शादी से हुई दो बेटियों शम्सा और लतीफा के अपहरण का आरोप लगाया है. दूसरी तरफ अल मकतमू और दुबई के हाईकोर्ट ने दलील दी है कि लतीफा की जिंदगी सुरक्षित है और उनका परिवार उनकी देखभाल कर रहा है.
भारत का कनेक्शन
2018 में समाचार एजेंसी एपी ने खबर दी थी कि एक दोस्त और एक पूर्व फ्रांसीसी जासूस की मदद से लतीफा बोट में सवार हो कर देश से भाग निकलीं. हालांकि उन्हें भारत के तटरक्षक बलों ने पकड़ लिया. बाद में उन्हें यूएई के हवाले कर दिया गया. प्रिंसेस के नाटकीय रूप से भागने और फिर उसके बाद की घटनाओं के बीच उनके पिता अल मकतूम ने बड़ी सावधानी से अपनी छवि बचाए रखी और उनके पद या सम्मान पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम
अल मकतूम दुबई के शासक हैं और संयुक्त अरब अमीरात के प्रधानमंत्री होने के साथ ही उप राष्ट्रपति भी. उनकी कई पत्नियों से कई दर्जन बच्चे हैं. उनके कुछ बेटे और बेटियां स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया में प्रमुखता से नजर आते हैं. हालांकि बाकी बच्चों के बारे में सार्वजनिक तौर पर ज्यादा जानकारी नहीं है. शेख लतीफा को 2018 के पहले उनके स्काइडाइविंग के शौक के लिए खूब जाना जाता था.
2020 में अल मकतूम की निजी जिंदगी सार्वजनिक हो गई, जब एक ब्रिटिश जज ने कहा कि उन्होंने अपनी एक पूर्व पत्नी के खिलाफ भय और दमन का कुचक्र चला रखा है और लतीफा समेत अपनी दो बेटियों को अगवा किया है. जज का यह फैसला अल मकतूम और उनकी पूर्व पत्नी हया के बीच कस्टडी को लेकर चल रहे विवाद की सुनवाई के दौरान आया. हया जॉर्डन के स्वर्गवासी किंग हुसैन की बेटी हैं.
अल मकतूम गोडोल्फिन हॉर्स रेसिंग के संस्थापक हैं और उनके ब्रिटेन की महारानी के साथ दोस्ताना संबंध हैं. 2019 में उन्हें महारानी ने ट्रॉफी भी दी जब उनके एक घोड़े ने रॉयल एस्कट में रेस जीती.
संयुक्त राष्ट्र सवाल उठाएगा
इस बीच संयुक्त राष्ट्र ने संयुक्त अरब अमीरात के सामने लतीफा का सवाल उठाने का वादा किया है. बुधवार को संयुकात राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त के दफ्तर के प्रवक्ता रुपर्ट कोलविले ने इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र की दूसरी एजेंसियां भी इस मामले में दखल दे सकती हैं.
कुल मिला कर यह मामला कहां जाएगा अभी कहना कुछ मुश्किल है. जो बाइडेन का दखल निश्चित रूप से लतीफा की जिंदगी आसान कर सकता है लेकिन अब तक अमेरिकी सरकार या बाइडेन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
एनआर/आईबी (एपी)
बगदाद, 18 फरवरी | इराक में आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) समूह के आतंकवादियों के हमले में तीन अर्धसैनिक हाशद शाबी के सदस्य मारे गए और पांच अन्य घायल हो गए। एक सुरक्षा सूत्र ने गुरुवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने प्रांतीय पुलिस अल शादी के हवाले से बताया कि बुधवार देर रात उस समय हिंसा हुई, जब आईएस के आतंकवादियों ने इराक की राजधानी बगदाद से लगभग 165 किलोमीटर दूर खानकीन के पास हाशाद शबी की 28 वीं ब्रिगेड की चौकियों पर हमला किया।
अल-सादी ने कहा कि हमले से दोनों पक्षों के बीच भयंकर टकराव हुआ और हमलावरों के हताहत होने की तत्काल कोई रिपोर्ट नहीं है।
अल-सादी ने कहा कि गुरुवार तड़के इराकी सेना, पुलिस और हाशद शाबी के एक संयुक्त दल ने हमलावरों को पकड़ने के लिए एक तलाशी अभियान चलाया, जिसके बाद हमलावर पास के बीहड़ क्षेत्र में भाग गए। (आईएएनएस)
त्बिलिसी, 18 फरवरी | जॉर्जिया के प्रधानमंत्री जियॉर्जी गखारिया ने गुरुवार को इस्तीफे की घोषणा की। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, गखरिया ने एक बयान में कहा कि उन्होंने पद छोड़ने का फैसला किया है, क्योंकि वह संसद सदस्य और विपक्षी पार्टी युनाइटेड नेशनल मूवमेंट के प्रमुख नीका मेलिया के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर सत्तारूढ़ पार्टी के साथ समझौते तक नहीं पहुंच सके।
उनका मानना है कि जब देश में राजनीतिक तनाव का खतरा है तब मेलिया को गिरफ्तार किया जाना गलत था।
गखारिया ने एक ब्रीफिंग में कहा, "मेरा अपना दृढ़ रुख यह है कि एक व्यक्ति के खिलाफ जस्टिस एंफोर्समेंट अगर हमारे नागरिकों को खतरे में डालता है और अगर यह राजनीतिक तनाव का मौका बनाता है, तो अस्वीकार्य है।"
त्बिलिसी सिटी कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि मेलिया को देश के अभियोजक कार्यालय के अनुरोध के अनुसार, हिरासत में भेज दिया जाएगा।
जॉर्जिया की संसद ने मंगलवार को मेलिया का सांसद का दर्जा रद्द कर दिया। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की आधी आबादी पर बड़े और पुराने होते बांधों से तबाही का खतरा मंडरा रहा है. दुनिया में करीब 59 हजार बड़े बांध हैं और सबसे ज्यादा बांध चीन, अमेरिका और भारत में हैं.
डॉयचे वैले पर शिवप्रसाद जोशी का लिखा-
भारत सहित अन्य देशों में बड़े और बुढ़ाते बांध अपनी उम्र पूरी होते ही क्या एक बड़ा खतरा बन सकते हैं? इसे लेकर चिंताएं तो लंबे समय से जताई जा रही हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन ने इस मुद्दे को फिर से बहस में ला दिया है. दुनिया के तमाम बड़े बांध 1930 से 1970 के बीच बनाए गए थे जो अपनी 50 से 100 साल की निर्धारित उम्र पूरी कर रहे हैं. या अगले कुछ साल में कर लेंगे और तब ये अपने ढांचे में कमजोर पड़ जाएंगें, उनके विशाल जलाशयों में जमा पानी का आकार सात हजार से आठ हजार घन किलोमीटर हो चुका है, जलाशयों में गाद और मलबा बहुत ज्यादा भर जाएगा, उनकी मोटरें, गेट, स्पिलवे और अन्य मशीनें भी कमजोर या पुरानी पड़ चुकी होंगी, इसीलिए संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में समय रहते आवश्यक कदम उठा लेने की ताकीद की गई है.
दुनिया के 55 प्रतिशत बांध सिर्फ चार एशियाई देशों- भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया में हैं. बेशक बांध जलापूर्ति, ऊर्जा उत्पादन, बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के अलावा प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार और अर्थव्यवस्था की वृद्धि में बड़ी उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं लेकिन जलाशय वाले अधिकतर बांध पुराने पड़ रहे हैं. अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि दुनिया को इस बारे में बताने का यह सही समय है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 4,407 बड़े बांध हैं जो 2050 तक 50 साल की उम्र पार कर लेंगे. इनमें से 64 तो 100 साल पुराने बांध हैं. और एक हजार से अधिक बांध 50 साल या उससे पुराने हो चुके हैं. वैसे भारत के केंद्रीय जल आयोग के 2019 के आंकड़ों में बड़े बांधों की संख्या 5,334 बताई गई है लेकिन इस अध्ययन में बड़े बांध की गिनती परिभाषा के अंतरराष्ट्रीय मानकों के लिहाज से की गई है.
भारत के लिए 2025 यानी आज से चार साल बाद का समय बांधों के लिहाज से अहम और ध्यान देने योग्य माना गया है क्योंकि तब एक हजार से अधिक बांध 50 साल या उससे पुराने हो चुके होंगे. निर्माण और देखरेख पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है, लिहाजा ठोस ढंग से निर्मित बांध 100 साल की उम्र तक काम कर लेते हैं. लेकिन विशेषज्ञ आमतौर पर 50 साल को बांध की क्षमता में गिरावट का एक मोटा सा पैमाना मानकर चलते हैं. कई बार बांध के गेट और मोटर भी बदलने पड़ते हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि बड़े बांध न सिर्फ सुरक्षा के लिहाज से जोखिम भरे होते हैं बल्कि उनकी देखरेख में भी बहुत पैसा खर्च हो जाता है.
जलवायु परिवर्तन भी बांधों की उम्र को कम करने वाला एक प्रमुख फैक्टर बन गया है. बारिशों का बदलता पैटर्न, बांधों की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है. जानकारों का कहना है कि भारत को अपने बांधों को लेकर एक दूरगामी लाभहानि की नीति बनानी चाहिए और सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा का काम बढ़ा देना चाहिए. विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े डैमों की क्षमता का आकलन करते हुए उन्हें डीकमीशन करने यानी उन्हें हटाने या काम रोक देने के लिए चिन्हित करते रहना चाहिए. कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि यह विषय सिर्फ पर्यावरणवादियों और एक्टिविस्टों की चिंता का नहीं है और ना ही एक झटके में बड़े बांधों की उपयोगिता और सरवाइवल क्षमता को खारिज किया जा सकता है, यह सही है कि प्राथमिकता और अन्य आकलनों के आधार पर प्रत्येक बांध की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए अंतिम नतीजे पर पहुंचने की जरूरत है. यानी आपाधापी और अतिसक्रियता दिखाने की बजाय एक सुचिंतित, व्यवहारिक, सामूहिक और ठोस निर्णय करना होगा.
बिहार
बिहार के उत्तरी हिस्से में लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है. इसकी मुख्य वजह नेपाल से आने वाली नदियां हैं. नेपाल में भारी बारिश के बाद वहां का पानी बिहार आ जाता है. कोसी, सीमांचल सहित मुजफ्फरपुर, शिवहर, पूर्वी चंपारण बाढ़ की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण की व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाए जाने की जरूरत भी है. यह भी देखना चाहिए कि बांध के उम्रदराज होने के साथ साथ और भी कौनसे संभावित खतरे हो सकते हैं. मिसाल के लिए बांध वाले इलाकों में अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम अनियमित अनापशनाप विकास से बचना चाहिए. जोखिम का खतरा कम से कम रखना ही श्रेयस्कर होगा. रिपोर्ट में केरल के मुलापेरियार डैम का उदाहरण भी दिया गया है जो करीब 150 साल पुराना हो रहा है.
एक ओर बड़े बांधों का प्रश्न है, तो दूसरी ओर बहुत छोटी संकरी नदी घाटियों में बांधों की अधिक संख्या भी कम चिंताजनक नहीं. पारिस्थितिकी, जैव-विविधता, स्थानीय सांस्कृतिक-सामाजिक तानेबाने और पर्यावरण की तबाही के दो बड़े मंजर बहुत कम अंतराल में उत्तराखंड देख चुका है लेकिन पर्यावरणविद और पर्यावरणवादी चिंतित हैं कि सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद सरकारों और निजी कंपनियों के जलबिजली परियोजनाओं पर काम और प्रस्ताव जारी हैं और यहां मामला बड़े बांध का नहीं, बहुत सारी छोटी छोटी परियोजनाओं का भी है क्योंकि वे अगर तीव्र ढाल वाले नदी नालों में बनने लगेंगी तो स्थानीय पर्यावरण का हश्र क्या होगा, यह किसी से कहां छिपा है.
2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ और 2021 में धौली गंगा की त्रासदियों समेत पर्यावरणीय क्षति की अन्य बड़ी घटनाओं को सिर्फ बरबादी के विचलित कर देने वाले आंकड़ों और दृश्यों के रूप में नहीं बल्कि एक स्थायी सबक की तरह याद रखा जाना चाहिए. इसी तरह बड़े विशालकाय बांधों को सिर्फ अपार लाभ और अपार मुनाफे के विशाल ढांचों के रूप में ही नहीं, ऐसे भी देखना चाहिए कि वे ढांचें हैं तो आखिरकार मानव-निर्मित ही. और बात सिर्फ भारत की नहीं है. यह स्थिति दुनिया में कमोबेश सभी जगह आ चुकी है. जलवायु परिवर्तन इन परिघटनाओं को और तीव्र और सघन बना रहा है. दुनिया में किसी एक जगह गंभीर पर्यावरणीय नुकसान होता है तो उसका असर दुनिया के दूसरे हिस्सों पर भी किसी न किसी रूप में पड़ता है.
गंभीर प्रदूषण के कारण पिछले साल दुनिया के पांच सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में करीब 1,60,000 लोगों की मौत समय से पहले हुई. हालांकि लॉकडाउन के कारण हवा की गुणवत्ता में सुधार भी हुआ.
ग्रीनपीस दक्षिणपू्र्व एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे बुरी तरह से प्रभावित दिल्ली थी, जिसे धरती की सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी पाया गया. यहां खतरनाक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के कारण लगभग 54,000 मौतें होने का अनुमान है. जापान की राजधानी टोक्यो में वायु प्रदूषण के कारण 40,000 मौतें हुईं. रिपोर्टे के मुताबिक बाकी मौत शंघाई, साओ पाउलो और मेक्सिको सिटी में दर्ज हुई. रिपोर्ट में जीवाश्म ईंधन के जलने से पैदा होने वाले सूक्ष्म पीएम 2.5 के प्रभाव का अध्ययन किया गया है.
ग्रीनपीस इंडिया में जलवायु अभियान चलाने वाले अविनाश चंचल के मुताबिक, "जब सरकार स्वच्छ ऊर्जा के बदले कोयला, तेल और गैस का विकल्प चुनती है तो हमारा स्वास्थ्य है जो कीमत चुकाता है." जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाले वायु प्रदूषण की वैश्विक कीमत आठ अरब डॉलर प्रति दिन है. ये विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 3.3 प्रतिशत है. पीएम 2.5 के कण स्वास्थ्य के लिए सबसे हानिकारक माने जाते हैं. ये कण हृदय और फेफड़ों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं और गंभीर अस्थमा अटैक का खतरा भी रहता है. कुछ शोधों में कोविड-19 से होने वाली मौतों के उच्च जोखिम के लिए पीएम 2.5 को जोड़ा गया. रिपोर्ट में एक ऑनलाइन टूल का इस्तेमाल किया गया है, जो निगरानी साइट आईक्यूएयर से हवा की गुणवत्ता के डाटा को लेने और उसे वैज्ञानिक जोखिम मॉडल के साथ-साथ जनसंख्या और स्वास्थ्य डाटा से जोड़कर पीएम 2.5 के प्रभावों का अनुमान लगाया गया.
पिछले साल मौत की उच्च संख्या के बावजूद, दुनिया भर में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन के तहत सड़कों पर गाड़ियां नहीं चलीं, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग बंद किए गए जिससे बड़े शहरों के आसमान अस्थायी रूप से साफ रहे. उदाहरण के लिए लॉकडाउन के दौरान दिल्ली की हवा की गुणवत्ता बेहतर हुई और आसमान भी चमकदार हो गया था.
वैज्ञानिकों का कहना है कि लॉकडाउन के कारण कुछ प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों में भारी गिरावट से मौत कम हुई है. फिर भी ग्रीनपीस ने सरकारों से नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करने का आग्रह किया है.
एए/सीके (एएफपी)
काठमांडू, 18 फरवरी | नेपाल सरकार ने बुधवार को साइनोफार्म के तहत चीन में बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स कंपनी लिमिटेड (बीआईबीपी) द्वारा विकसित एक कोविड-19 वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दे दी। नेपाल 15 जनवरी को एस्ट्राजेनेका के कोविशिल्ड वैक्सीन को पहले ही मंजूरी दे चुका है।
नेपाल के ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने बुधवार को वैक्सीन के लिए आपातकालीन उपयोग ऑथराइजेशन के लिए एक सशर्त अनुमति जारी करने का फैसला किया। एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से जारी प्रेस बयान में यह जानकारी दी गई।
आपातकालीन उपयोग ऑथराइजेशन प्रदान करके, विभाग नेपाल में साइनोफार्म के वैक्सीन को लाने का मार्ग प्रशस्त करता है। चीन ने अनुदान सहायता के तहत, वैक्सीन की 5 लाख खुराक देने का फैसला किया है।
हालांकि, नेपाल को जनवरी के तीसरे सप्ताह में भारत से कोविड वैक्सीन की 10 लाख खुराक मिली है, जबकि भारत के सीरम इंस्टीट्यूट से सब्सिडी दर पर 20 लाख और वैक्सीन खरीदने का फैसला किया गया है।
साइनोफार्म ने विभाग में 13 जनवरी को अपने टीके के लिए आपातकालीन उपयोग ऑथराइजेशन के लिए आवेदन किया था। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 18 फरवरी | गूगल ने नीतियों का उल्लंघन करने के चलते पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कैम्पेन ऐप (2020) को अपने प्ले स्टोर से हटा दिया है। एंड्रॉयड पुलिस ने सबसे पहले इस बात की जानकारी दी है कि इस ऐप में कोई भी कंटेंट लोड नहीं हो पा रहा है और लगता है कि इसे हटा दिया गया है।
नवंबर, 2020 में चुनाव के बाद से ही ऐप के एंड्रॉयड और आईओएस दोनों ही वर्जन ऑनलाइन एक्टिव नहीं है और हाल के दिनों में इनमें कोई अपडेट होता नजर भी नहीं आया है।
प्ले स्टोर वर्जन को 30 अक्टूबर के बाद से ही अपडेट नहीं किया गया है।
बुधवार को गूगल के एक प्रवक्ता के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, "ट्रंप 2020 कैम्पेन ऐप ने हाल ही में काम करना बंद कर दिया है और इस पर बात करने के लिए हमने कई बार डेपलपर संग संपर्क करने की कोशिश की है।"
प्रवक्ता ने टेकक्रंच को बताया, "लोगों को उम्मीद है कि गूगल प्ले से ऐप को डाउनलोड करने के बाद इसमें कुछ न कुछ गतिविधियां तो जरूर होंगी और हमारी पॉलिसी यह है कि अगर किसी ऐप को ठीक नहीं किया गया है कि तो हम उसे स्टोर से हटा देते हैं।"
ऐप को पहली बार साल 2016 में पूर्व राष्ट्रपति के पहले चुनाव अभियान के दौरान लॉन्च किया गया था।
ऐप के आईओएस वर्जन को अभी भी लोड किया जा सकता है, यानि कि एप्पल ने इसे अभी तक रद्द नहीं किया है। (आईएएनएस)
कंपाला, 18 फरवरी | उत्तर पश्चिमी युगांडाई जिला अदजुमानी में स्थित शरणार्थी शिविर माजी द्वितीय में मंगलवार को हुए एक ग्रेनेड धमाके में चार बच्चों की मौत हो गई है और पांच अन्य घायल हो गए हैं। पुलिस ने इसकी जानकारी दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां की स्थानीय पुलिस ने अपने एक बयान में कहा कि बच्चों को झाड़ियों में से यह विस्फोटक मिला, जिसे ये अपने साथ घर ले गए, जहां दूसरे बच्चों की भी इस पर नजर पड़ी।
बयान में कहा गया, "धमाका उस वक्त हुआ जब ये बच्चे 'पंगा' (एक लंबी छूरी) से ग्रेनेड को काटने का प्रयास कर रहे थे। धमाके में तीन बच्चों की मौके पर ही मौत हो गई और छह अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।"
इन्हें जल्दी ही पास के एक हेल्थ सेंटर में ले जाया गया, जहां एक बच्चे की तभी मौत हो गई और पांच अन्यों को आगे के उपचार के लिए अदजुमानी हॉस्पिटल में ट्रांसफर कर दिया गया।
यूनाइटेड नेशंस रिफ्यूजी एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक, माजी द्वितीय शरणार्थी शिविर में पड़ोसी क्षेत्र दक्षिणी सूडान से 17,000 से भी अधिक शरणार्थी रहते हैं। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
lसंयुक्त राष्ट्र, 18 फरवरी | संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इंवेस्टमेंट पेशेवर ऊषा राव-मोनारी को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) का अवर महासचिव और सहयोगी प्रशासक के रूप में नियुक्त किया है।
बुधवार को जारी घोषणा में कहा गया है कि मोनारी के पास बुनियादी ढांचे में निवेश का 30 से अधिक वर्षों का अनुभव है और वह निवेश कंपनी ब्लैकस्टोन इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रुप की वरिष्ठ सलाहकार हैं।
यूएनडीपी संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय विकास के एजेंडे को बढ़ावा देने वाला मुख्य संगठन है। लगभग 3 अरब डॉलर के बजट के साथ, यह लगभग 170 देशों और क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन और असमानताओं को कम करने पर काम करता है।
जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई से मास्टर डिग्री के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक राव-मोनारी ग्लोबल वाटर डेवलपमेंट पार्टनर्स की सीईओ रही हैं।
वह विश्व बैंक के अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम में स्थायी व्यवसाय सलाहकार समूह की निदेशक भी रह चुकी हैं।
उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय मामलों और फाइनेंस में मास्टर डिग्री भी प्राप्त की है।
मोनारी संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष क्षेत्रों में काम करने वाले कई भारतीयों की फेहरिस्त में शामिल हो गई हैं। इनमें ऑपरेशनल सपोर्ट के अवर महासचिव अतुल खरे और सहायक महासचिव चंद्रमौली रामनाथन, जो नियंत्रक भी हैं, अनीता भाटिया, जो संयुक्त राष्ट्र-महिला की उप कार्यकारी निदेशक भी हैं, और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के न्यूयॉर्क कार्यालय के प्रमुख सत्य एस. त्रिपाठी शामिल हैं। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 18 फरवरी | अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत को 'एक अहम साझीदार' माना है और इसके साथ संबंधों को प्राथमिकता दिया है। पेंटागन के प्रवक्ता जॉन कर्बी ने यह जानकारी दी।
कर्बी ने बुधवार को वाशिंगटन में एक न्यूज ब्रीफिंग के दौरान कहा, "रक्षा मंत्री इस संबंध को प्राथमिकता दे रहे हैं, इसे और नजबूत होता देखना चाहते हैं।"
कर्बी ने भारत के साथ संबंधों पर एक रिपोर्टर द्वारा ऑस्टिन के विचारों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा, "वह ऐसा करने की पहल पर काम करने के लिए बहुत उत्सुक हैं।"
उन्होंने कहा, "ऑस्टिन भारत को एक अहम साझीदार मानते हैं, खासकर जब आप हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सभी चुनौतियों पर विचार करते हैं।"
पेंटागन ने कहा कि ऑस्टिन ने पिछले महीने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से बात की थी और भारत-अमेरिका के बीच बड़ी रक्षा साझेदारी के लिए विभाग की प्रतिबद्धता पर जोर दिया था।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले स्पताह पेंटागन के दौरे के दौरान नई रणनीति टास्क फोर्स के गठन की घोषणा की, ताकि हम चीन से संबंधित मामलों पर मजबूती से आगे बढ़ सकें।
उन्होंने कहा कि हमें शांति बनाए रखने के लिए चीन की ओर से बढ़ रही चुनौतियों से निपटने और हिंद-प्रशांत और विश्व स्तर पर हमारे हितों की रक्षा करने की जरूरत है। (आईएएनएस)
इस दौरान वो श्रीलंका की संसद को भी संबोधित करने वाले थे लेकिन अब इसे रद्द कर दिया गया है. इस दौरे में इमरान ख़ान श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के साथ बैठक करेंगे. इसके अलावा निवेशकों के एक सम्मेलन में भी शरीक होंगे.
पाकिस्तानी अख़बार डॉन ने लिखा है, ''कहा जा रहा था कि संसद में इमरान ख़ान का भाषण पाकिस्तान की सरकार के अनुरोध पर उनके दौरे में शामिल किया गया था. अब श्रीलंका के मीडिया का कहना है कि भाषण को रद्द कर दिया गया है.''
श्रीलंकाई मीडिया में इमरान ख़ान के भाषण को रद्द किए जाने का अलग कारण बताया जा रहा है.
श्रीलंकाई अख़बार डेली एक्सप्रेस ने वहाँ के विदेश सचिव जयंत कोलोम्बागे ने संसद के स्पीकर महिंदा यापा के हवाले से बताया है कि ऐसा कोविड-19 के कारण किया गया है. लेकिन पाकिस्तानी अख़बार डॉन ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि श्रीलंका नहीं चाहता है कि इमरान ख़ान के संसद में कुछ कहने से भारत और श्रीलंका के संबंध और ख़राब हों.
डॉन ने लिखा है कि कोलंबो पोर्ट में ईस्ट कॉन्टेनर टर्मिनल डील रद्द होने से भारत और श्रीलंका के रिश्ते में पहले से ही तनाव है.
कहा जा रहा है कि इमरान ख़ान श्रीलंका की संसद में कश्मीर का मुद्दा उठा सकते थे और यह दिल्ली को नाराज़ करने के लिए काफ़ी होता. साथ में ये भी कहा जाता कि श्रीलंका ने इमरान ख़ान को पीएम मोदी की तरह बराबर की तवज्जो दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2015 में श्रीलंका की संसद को संबोधित किया था.
डॉन के अनुसार इमरान ख़ान के भाषण रद्द होने की एक वजह यह भी बताई जा रही है कि वो श्रीलंका की संसद में वहाँ के मुसलमानों के अधिकारों को लेकर कुछ बोल सकते थे. अख़बार ने लिखा है कि बौद्ध बहुल देश श्रीलंका में मुसलमानों से भेदभाव के मामले बढ़े हैं और सरकार की नीतियाँ भी वैसी ही हैं.
श्रीलंका की सरकार कोविड से मरने वाले मुसलमानों को शव दफ़्न करने की अनुमति नहीं दे रही थी. मुसलमानों को भी शव जलाने पड़ रहे थे जो कि उनके इस्लामिक रिवाज के ख़िलाफ़ है. हालाँकि दुनिया भर में इसे लेकर उठी आवाज़ के बाद इसी महीने श्रीलंका की सरकार ने मुसलमानों को शव अपने रीति रिवाज के हिसाब से अंत्येष्टि की अनुमति दे दी थी. पाकिस्तानी पीएम ने श्रीलंका के इस फ़ैसले का स्वागत किया था.
अरब न्यूज़ से श्रीलंका की संसद के कम्युनिकेशन प्रमुख शान विजेतुंगे ने कहा कि संसद में भाषण इसलिए रद्द किया गया क्योंकि टाइम कम था और कई कार्यक्रमों में शरीक होना था. अगर इमरान ख़ान संसद को संबोधित करते तो वे पाकिस्तान के तीसरे राष्ट्र प्रमुख होते जिन्हें यह मौक़ा मिलता. इससे पहले मोहम्मद अयूब और प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़ीकार अली भुट्टो ने श्रीलंका की संसद को संबोधित किया था.
श्रीलंका के अख़बार डेली एक्सप्रेस ने लिखा है, ''विदेश मंत्री दिनेश गुनावरदेना के अनुसार श्रीलंका की सरकार ने पाकिस्तान के उस अनुरोध को स्वीकार कर लिया था कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान श्रीलंका की संसद को संबोधित करना चाहते हैं. इसके लिए 24 फ़रवरी की तारीख़ भी तय हो गई थी. बाद में श्रीलंका की सरकार को लगा कि इमरान ख़ान के संसद में संबोधन से भारत से रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं. सूत्रों का मानना है कि भारत को आशंका थी कि इमरान ख़ान संसद में कश्मीर का भी मुद्दा उठा सकते हैं. पारंपरिक रूप से श्रीलंका की सरकार कश्मीर मुद्दे पर चुप ही रहती है. लेकिन पाकिस्तान के लिए कश्मीर एक अहम मसला है. अगर इमरान ख़ान श्रीलंका की संसद में कश्मीर की बात करते तो पाकिस्तान में उनकी वाहवाही होती.''
डेली एक्सप्रेस ने लिखा है कि इमरान ख़ान श्रीलंका से संबंध इसलिए मज़बूत करना चाहते हैं क्योंकि दोनों मुल्कों के संबंध हमेशा से अच्छे रहे हैं. दोनों मुल्कों में आज़ादी के बाद से ही अच्छे रिश्ते रहे हैं. द ऑल सीलोन मुस्लिम लीग (एसीएमएल) का नेतृत्व जाने-माने मुस्लिम नेता टीबी जया ने किया था. एसीएमएल ने 1940 के दशक में पाकिस्तान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था.
1950 के दशक में पाकिस्तान और श्रीलंका दोनों अमेरिका के नेतृत्व वाले कम्युनिस्ट विरोधी खेमे में थे. जब श्रीलंका ने प्रधानमंत्री श्रीमाओ भंडारनायके के काल में सोवियत संघ और चीन के पक्ष में राजनीतिक रंग बदला तब भी दोनों देश क़रीब रहे. यहाँ तक कि श्रीमाओ भंडारनायके ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी एयरक्राफ़्ट को कोलंबो में 174 बार ईंधन भरने की अनुमति दी थी जबकि भारत ने पाकिस्तानी विमानों को अपने हवाई क्षेत्र में उड़ान भरने पर पाबंदी लगा रखी थी. श्रीलंका ने भारत की आपत्ति को भी अनसुना कर दिया था.
इसके बाद 1990 के दशक में जब पश्चिम के देश और भारत ने तमिल विद्रोहियों से लड़ाई में हथियार की आपूर्ति रोकी तो पाकिस्तान सामने आया और उसने हथियार भेजे. तमिलों के ख़िलाफ़ युद्ध में पाकिस्तान की सरकार ने श्रीलंका की खुलकर मदद की थी. डेली स्टार के अनुसार पाकिस्तानी पायलटों ने श्रीलंका की वायुसेना को ट्रेनिंग भी दी थी. तमिलों के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध को लेकर भी पाकिस्तान ने हमेशा श्रीलंका की मदद की.
इमरान ख़ान के दौरे को लेकर श्रीलंका के विदेश सचिव जयंत कोलोम्बागे ने कहा है कि पाकिस्तान के साथ किसी भी रक्षा सौदे पर हस्ताक्षर नहीं होने जा रहा है.
कोलोम्बागे ने कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक और अन्य मामलों पर समझौते होंगे लेकिन कोई रक्षा समझौता नहीं होगा. इससे पहले श्रीलंका की मीडिया में ये बात कही जा रही थी कि दोनों देश रक्षा सहयोग पर भी समझौता कर सकते हैं.
हालाँकि पाकिस्तान और श्रीलंका के बीच रक्षा सहयोग पहले से ही हैं. 2000 से 2009 के बीच पाकिस्तान और श्रीलंका काफ़ी क़रीब रहे. तब श्रीलंका में तमिल विद्रोहियों और श्रीलंका की सेना के बीच युद्ध चल रहा था.
2000 में जाफना में जब श्रीलंका के सैनिक फँसे थे तो पाकिस्तान ने उन्हें एयरलिफ़्ट किया था. 2006 में एलटीटीई ने कोलंबो में पाकिस्तानी उच्चायुक्त बशीर वली मोहम्मद पर हमला भी किया था. कहा जाता है कि वली ही श्रीलंका में एलटीटीई के ख़िलाफ़ पाकिस्तान को आगे करने में लगे थे. (bbc.com)
इस्लामाबाद, 18 फरवरी| पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की आगामी श्रीलंका यात्रा के दौरान श्रीलंकाई संसद में उनके द्वारा दिए जाने वाले संबोधन को रद्द कर दिया गया है। डॉन न्यूज के मुताबिक, खान 22 फरवरी से कोलंबो की दो दिवसीय यात्रा पर होंगे।
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के साथ मुलाकात और एक निवेशक सम्मेलन में भाग लेने के अलावा, उन्हें 24 फरवरी को श्रीलंका की संसद को संबोधित करना था।
ऐसा कहा जाता है कि संसद का भाषण पाकिस्तान सरकार के अनुरोध पर खान की यात्रा में शामिल था। श्रीलंकाई मीडिया के अनुसार, हालांकि, बाद में इसे रद्द कर दिया गया। श्रीलंका की मीडिया रिपोर्टों में खान का भाषण रद्द किए जाने के पीछे की अलग-अलग वजहें बताई गई है।
श्रीलंका के डेली एक्सप्रेस ने विदेश सचिव जयनाथ कोलमबेज के हवाले से कहा कि स्पीकर महिंदा यापा अबेवर्देना ने कोविड-19 के मद्देनजर संबोधन रद्द करने का अनुरोध किया था।
हालांकि, इसी अखबार ने अज्ञात सूत्रों का हवाला देते हुए कहा कि श्रीलंकाई सरकार के भीतर ऐसे तत्व थे, जो चाहते थे कि इमरान का भाषण नहीं हो क्योंकि उन्हें डर था कि ऐसा करने से भारत के साथ संबंध और भी खराब हो सकते हैं, क्योंकि कोलंबो बंदरगाह में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल पर एक सौदा रद्द होने से पहले से ही संबंधों में कड़वाहट है।
ऐसी अटकलें थीं कि खान अपने भाषण के दौरान कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे, जिससे भारत नाराज हो सकता है।
लेकिन, एक और कयास यह है कि श्रीलंका में सरकार इस बात को लेकर चिंतित थी कि खान मुसलमानों के अधिकारों के बारे में बोल सकते हैं जिन्होंने बौद्ध बहुमत, मुस्लिम विरोधी भावनाओं और बढ़ती सरकारी कार्रवाइयों के हाथों दुर्व्यवहार का सामना किया है।
इसके अलावा, श्रीलंका सरकार ने देश में कोविड-19 से मरने वाले मुसलमानों के लिए दाह संस्कार अनिवार्य कर दिया हालांकि, सरकार ने इस महीने की शुरुआत में मुस्लिमों को दाह-संस्कार से मुक्त कर दिया और उन्हें इस मुद्दे पर वैश्विक स्तर पर विरोध के बाद अपने मृतकों को दफनाने की अनुमति दी।
खान ने श्रीलंकाई सरकार के फैसले का स्वागत किया था। (आईएएनएस)
फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में सभी समाचार वेबसाइटों पर खबरें पोस्ट करने पर बैन कर दिया है. ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने खबरों के सोशल मीडिया मंच पर दिखाने के बदले भुगतान को लेकर मसौदा तैयार किया है.
बुधवार को फेसबुक ने अपने प्लेटफार्म पर न्यूज साझा करने पर बैन लगा दिया. इसकी चपेट में मौसम विभाग, आपातकालीन विभाग, विपक्षी नेता और स्वास्थ्य विभाग के पेज भी आ गए. गुरुवार की सुबह से ही ऑस्ट्रेलियाई समाचार लेखों की लिंक पोस्ट करने या दुनिया में कहीं से भी समाचार कंपनियों के फेसबुक खातों को लोग देख नहीं पाए. दरअसल फेसबुक ने यह कदम सरकार के उस मसौदे के बदले उठाया है जिसमें समाचारों के प्रकाशन के बदले में गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों को मीडिया कंपनियों को पैसे देने होंगे. आस्ट्रेलिया में ऑनलाइन विज्ञापन में 81 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले गूगल और फेसबुक ने इस प्रस्तावित कानून की निंदा की है.
देश भर में दमकल, स्वास्थ्य और मौसम संबंधी सेवाओं को कई गंभीर सार्वजनिक आपात स्थितियों के दौरान अपने फेसबुक पेजों के साथ समस्याओं का सामना करना पड़ा. लोगों ने कंपनी से इस मुद्दे को जल्द सुलझा लेने का आग्रह किया है. फेसबुक के एक प्रवक्ता ने कहा कि सरकारी पेज "आज की घोषणा से प्रभावित नहीं होने चाहिए" और कंपनी "अनजाने में प्रभावित होने वाले किसी भी पेज को बहाल कर देगी." ऑस्ट्रेलियाई पर्यावरण मंत्री सुसैन ले ने फेसबुक पर समाचार सामग्री के अचानक बंद होने की पुष्टि की है. उन्होंने लोगों से सरकारी विभाग की वेबसाइट पर जाने का आग्रह किया है. कम से कम तीन ऑस्ट्रेलियाई राज्य फेसबुक के माध्यम से कोरोना वायरस पर अपडेट पोस्ट कर रहे थे, जो प्रतिबंध से प्रभावित हुए हैं. राजधानी कैनबरा में कई सरकारी पेज भी प्रभावित हुए हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच ऑस्ट्रेलिया के निदेशक एलेन पियर्सन ने बैन को "चिंताजनक और खतरनाक" कदम बताया है. फेसबुक के कदम के तहत चैरिटी, जातीय समुदाय से जुड़े पेज और यहां तक कि फेसबुक ने अपने भी पेज को भी ब्लॉक कर दिया. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लिए फेसबुक के मैनेजर विलियम इस्टन ने ब्लॉग पोस्ट में लिखा कंपनी "ऑस्ट्रेलियाई और अंतरराष्ट्रीय समाचार सामग्री को साझा करने या देखने पर ऑस्ट्रेलिया में प्रकाशकों और लोगों को प्रतिबंधित कर देगी. क्योंकि प्रस्तावित कानून मौलिक रूप से हमारे मंच और इसका इस्तेमाल करने वाले प्रकाशकों के बीच संबंधों को गलत समझता है."
विवाद का कारण
ऑस्ट्रेलिया के न्यूज मीडिया बारगेनिंग कोड के तहत फेसबुक और गूगल को समाचार सामग्री के लिए मीडिया आउटलेट्स को भुगतान के लिए सौदा तय करना होगा नहीं तो कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा. यह नियम पिछले साल दिसंबर में ऑस्ट्रेलिया की संसद में पेश हुआ था. सरकार संसद का मौजूदा सत्र 25 फरवरी को समाप्त होने से पहले न्यूज मीडिया बारगेनिंग कोड को लागू करने की उम्मीद कर रही है. संसद में प्रस्तावित कानून पेश किए जाने पर गूगल ने ऑस्ट्रेलिया में अपने सर्च इंजन को बंद करने की धमकी भी दी थी.
कुछ रिपोर्टों के मुताबिक फेसबुक और गूगल ने 2018-19 में भारत से ऑनलाइन विज्ञापन रेवन्यू के जरिए 11,500 करोड़ रुपये कमाए थे. अनुमान है कि आने वाले साल में यह बाजार और बढ़ेगा.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
वाशिंगटन, 18 फरवरी| वैश्विक कोरोनोवायरस मामलों की कुल संख्या 10.98 करोड़ के पार पहुंच गई है जबकि 24.2 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने गुरुवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, खुलासा किया कि कोरोना के वैश्विक मामलों की संख्या और मृत्यु का आंकड़ा क्रमश: 109,885,555 और 2,429,669 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक 27,824,650 मामलों और 490,447 मौतों के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
वहीं, कोरोना के 10,937,320 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों ने दर्शाया कि कोरोना के 10 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (9,978,747), ब्रिटेन (4,083,092), रूस (4,066,164), फ्रांस (3,573,638), स्पेन (3,107,172), इटली (2,751,657), तुर्की (2,609,359), जर्मनी (2,362,364), कोलंबिया (2,207,701), अर्जेटीना (2,039,124), मेक्सिको (2,013,563), पोलैंड (1,605,372), ईरान (1,542,076), दक्षिण अफ्रीका (1,496,439), यूक्रेन (1,326,891), पेरू (1,244,729), इंडोनेशिया (1,243,646), चेक रिपब्लिक (1,112,322) और नीदरलैंड (1,052,544) हैं।
वर्तमान में 242,090 मौतों के साथ मौतों के मामले में ब्राजील दूसरे स्थान पर है, इसके बाद तीसरे स्थान पर मेक्सिको (177,061) और चौथे पर भारत (155,913) है।
इस बीच, 20,000 से ज्यादा मौतों वाले देश ब्रिटेन (119,159), इटली (94,540), फ्रांस (83,271), रूस (80,118), जर्मनी (66,427), स्पेन (66,316), ईरान (59,184), कोलंबिया (58,134), अर्जेंटीना (50,616), दक्षिण अफ्रीका (48,478), पेरू (44,056), पोलैंड (41,308), इंडोनेशिया (33,788), तुर्की (27,738), यूक्रेन (26,017), बेल्जियम (21,793) और कनाडा (21,439) हैं। (आईएएनएस)
शाकाहारी डायनासोर उत्तरी गोलार्ध में अपने मांसाहारी रिश्तेदारों के आने के लाखों साल बाद उत्तरी गोलार्ध में आए. इस देरी के पीछे जलवायु परिवर्तन को कारण बताया जा रहा है.
जीवाश्मों की आयु का पता लगाने की एक तकनीक आने के बाद कुछ नई जानकारियां सामने आई हैं. ग्रीनलैंड में मिले साउरोपोडोमॉर्फ यानी शाकाहारी डायनासोर के जीवाश्म करीब 21.5 करोड़ साल पुराने हैं. पहले इन जीवाश्मों को 22.8 करोड़ साल पुराना माना गया था. इस बारे में 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' में रिसर्च रिपोर्ट छपी है.
नई जानकारी के आने के बाद से डायनासोर के प्रवास के बारे में वैज्ञानिकों की सोच बदल गई है. अब सबसे पहले जो डायनासोर विकसित हुए वो अमेरिका में 23 करोड़ साल या उससे भी पहले आए थे. इसके बाद वो पृथ्वी के उत्तरी और दूसरे इलाकों में गए. नई स्टडी से पता चला है कि सारे डायनासोर एक ही समय में दक्षिण से उतर की ओर प्रवास पर नहीं गए.
वैज्ञानिकों को उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायनासोर परिवार का अब तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिला है जो 21.5 करोड़ साल से पुराना हो. इनका सबसे अच्छा उदाहरण है दो पैरो वाला 23 फुट लंबा शाकाहारी प्लेटियोसॉरस, जिसका वजन 4000 किलोग्राम था. हालांकि वैज्ञानिक मांसाहारी डायनासोर के जीवाश्म पहले ही दुनिया के कई हिस्सों में देख चुके हैं जो कम से कम 22 करोड़ साल पहले रहते थे. रिसर्च का नेतृत्व कर रहे कोलंबिया यूनवर्सिटी के डेनीस केंट का कहना है कि उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायनासोर बाद में आए. तो फिर इस देरी की क्या वजह थी? केंट ने उस समय के वातावरण और जलवायु में हुए परिवर्तनों पर ध्यान दिया है. करीब 23 करोड़ साल पहले ट्रियासिक युग के वातावरण में अब की तुलना में कार्बन डाइ ऑक्साइड 10 गुना ज्यादा थी. तब धरती गर्म थी और तब ध्रुवों पर कहीं कोई बर्फ की पट्टी नहीं थी. इतना ही नहीं भूमध्य रेखा के उत्तर और दक्षिण की ओर दो रेगिस्तानी इलाके थे. तब धरती बिल्कुल सूखी थी और वहां पर्याप्त मात्रा में पेड़ पौधे नहीं होने के कारण शाकाहारी डायनासोर प्रवासपर नहीं जा सकते थे. हालांकि उस वक्त भी पर्याप्त मात्रा में कीड़े मकोड़े मौजूद थे इसलिए मांसाहारी डायनासोर के लिए दिक्कत नहीं थी.
इसके बाद करीब 21.5 करोड़ साल पहले कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्तर गिर कर आधार रह गया और रेगिस्तान में थोड़े ज्यादा पेड़ पौधे पनपने लगे और तब शाकाहारी डायनासोर ने अपनी यात्रा शुरू की.
केंट और दूसरे वैज्ञानिकों का कहना है कि ट्रियासिक युग में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर ज्वालामुखी और दूसरी प्राकृतिक वजहों से बदला. यही काम आज कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसों को जलाने की वजह से हो रहा है. केंट ने मिट्टी के चुम्बकत्व में होने वाले बदलाव का इस्तेमाल कर ग्रीनलैंड के जीवाश्मों की सही आयु का पता लगाया है. इसके जरिए डायनासोर के प्रवासमें समय के अंतर को देखा जा सकता है.
ज्यादातर वैज्ञानिक इस स्टडी से सहमत हैं, हालांकि एक बड़ा सवाल शिकागो यूनिवर्सिटी के जीवाश्म विज्ञानी पॉल सेरेनो ने उठाया है. उनका कहना है, "सिर्फ इस वजह से कि हमारे पास 21.5 करोड़ साल से ज्यादा पुराना किसी शाकाहारी डायनासोर का जीवाश्म नहीं है, यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तरी गोलार्ध में शाकाहारी डायानासोर तब नहीं थे. मुमकिन है कि डायनासोर रहे हों लेकिन उनके जीवाश्म नहीं बचे."
एनआर/एके (एपी)
फ्रांस की संसद के निचले सदन ने देश को कट्टरपंथ से बचाने और फ्रांसीसी मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भारी बहुमत से एक नया बिल पास कर दिया है. बीते कुछ सालों में कट्टरपंथ फ्रांस के लिए एक बड़ी समस्या बन के उभरी है.
इस नए बिल के कानून बन जाने के बाद फ्रांस में मस्जिदों, मदरसों और स्पोर्ट्स क्लबों की निगरानी बढ़ जाएगी.फ्रांस की सरकार इसी कट्टरपंथ से मुकाबले के लिए एक नया बिल लेकर आई है. दो हफ्ते तक व्यापक रूप से बहस करने के बाद सरकार ने यह बिल 151 के मुकाबले 347 मतों से पास किया. 65 सांसद इस दौरान गैरहाजिर रहे. लंबे समय से इस बिल को लेकर देश में चर्चा चल रही है और अब इसने कानून बनने की राह में पहली बाधा पार कर ली है.
फ्रांस में चरमपंथी हमले और सैकड़ों लोगों के सीरिया के युद्ध में शामिल होने के लिए जाने के साथ ही माली में चरमपंथियों से लड़ते हजारों सैनिकों को देखने के बाद इस बात में कोई संदेह नहीं कि कट्टरपंथ देश के लिए कितना बड़ा खतरा बन रहा है. हालांकि आलोचक इसे राष्ट्रपति माक्रों की मध्यमार्गी पार्टी के लिए राजनीतिक कदम मान रहे हैं. फ्रांस में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं.
"सपोर्टिंग रेसपेक्ट फॉर द प्रिंसिपल्स ऑफ द रिपब्लिक" यानी गणराज्य के सिद्धांतों के सम्मान को समर्थन नाम के इस बिल में फ्रांसीसी जीवन के ज्यादातर पहलुओं को शामिल किया गया है. मुसलमान, कुछ सांसद और कुछ दूसरे लोग हालांकि इसका विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि इस बिल के जरिए सरकार लोगों की आजादी में दखल दे रही है और इस्लाम पर उंगली उठा रही है जो फ्रांस का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है. इस कानून ने संसद के निचले सदन की बाधा तो पार कर ली है जहां माक्रों की पार्टी बहुमत में है लेकिन इसे अभी रूढ़िवादी पार्टी के बहुमत वाली सीनेट से गुजरना है. वहां का रास्ता इतना आसान नहीं होगा. सीनेट में यह बिल 30 मार्च के बाद ही आएगा.
बीते साल अक्टूबर में पेरिस में एक टीचर की हत्या और फिर नीस के चर्च पर हुए हमले में तीन लोगों की मौत के बाद इस कानून को सरकार जरूरी बताने लगी. इस कानून की एक धारा जान बूझ कर किसी के बारे में निजी जानकारी दे कर उसकी जान को खतरे में डालने को आपराधिक बना देगी. इसे "पैटी लॉ" कहा जा रहा है जो स्कूल टीचर सैमुअल पैटी के नाम पर है. सैमुअल पैटी के बारे में एक वीडियो में जानकारी दी गई थी. उन्होंने स्कूल में बच्चों को पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाया था. इसके बाद उनका सिर काट कर उनकी हत्या कर दी गई.
सरकार का मानना है कि इस बिल के कानून बनने के बाद फ्रांस में चरमपंथ से लड़ने की सरकार की कोशिशें मजबूत होंगी. हालांकि विरोध करने वाले कह रहे हैं कि जिन उपायों की बात हो रही है वो मौजूदा कानूनों में शामिल हैं. कुछ लोगों का मानना है कि इस बिल के पीछे राजनीतिक मंशा छुपी हुई है. मंगलवार को वोटिंग से कुछ दिन पहले गृहमंत्री गेराल्ड डारमानी ने टीवी पर हुई बहस के दौरान धुर दक्षिणपंथी नेता मारीन ले पेन पर कट्टरपंथी इस्लाम के प्रति "नरम" रहने का आरोप लगाया. डारमानी ने यह भी कहा कि ले पेन को विटामिन लेने की जरूरत है. इस बयान का मकसद यह बताना था कि मौजूदा सरकार धुर दक्षिणपंथियों के मुकाबले इस्लामी कट्टरपंथियों से निपटने में ज्यादा सख्ती दिखा रही है. हालांकि ली पेन ने बिल को बहुत कमजोर बताया और इसके बदले अपनी तरफ से नया बिल लाने की बात कही. ली पेन ने 2022 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी पेश की है. 2017 में वह माक्रों से हार गई थीं.
ली पेन की नेशनल रैली पार्टी के उपाध्यक्ष ने बीएपएम टीवी से कहा कि बिल, "अपने लक्ष्य से चूक गया" क्योंकि यह कट्टरपंथी इस्लाम की सोच पर हमला नहीं करता है. बिल में मुसमान या इस्लाम का नाम नहीं लिया गया है. इसके समर्थकों का कहना है कि सरकार इसे कट्टरपंथ के खिलाफ लेकर आई है जो फ्रांसीसी मूल्यों को खत्म कर रहा है, खासतौर से धर्मनिरपेक्षता और लैंगिक समानता को, जो देश की बुनियादी उसूल हैं. राष्ट्रपति माक्रों का मानना है कि कट्टरपंथी फ्रांस में एक "विपरीत समाज" बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
बिल का ड्राफ्ट तैयार करने से पहले सभी धर्मों के प्रतिनिधियों से विचार विमर्श किया गया. फ्रांस में मुसलमानों के संगठन फ्रेंच काउंसिल फॉर मुस्लिम फेथ ने भी इसे समर्थन दिया है.
यह बिल वर्जिनिटी सर्टिफिकेट यानी कुआंरेपन के प्रमाणपत्र पर भी रोक लगाएगा ताकि बहुविवाह और जबरन विवाह जैसी कुरीतियां किसी खास धर्म से जुड़ी ना रहें. इसके साथ ही बिल में यह भी प्रावधान है कि बच्चे तीन साल की उम्र में नियमित स्कूल शुरू कर दें. सरकार मानती है कि होम स्कूल के माध्यम से बच्चों को धार्मिक विचारों की शिक्षा दी जाती है और जिसे रोकने की मंशा है. किसी सरकारी कर्मचारी को धमकी देने वाले को जेल की सजा हो सकती है. इसे भी सैमुअल पैटी से जोड़ कर देखा जा रहा है. अगर किसी कर्मचारी को धमकी मिली है तो उसके बॉस को तुरंत इस पर कार्रवाई करनी होगी बशर्ते कर्मचारी इसके लिए सहमत हो.
मुस्लिम संस्थाओं पर नजर
बिल में एक प्रावधान मस्जिदों और उन्हें चलाने वाली संस्थाओं के लिए यह सुनिश्चित करने का भी है कि उन्हें किसी विदेशी हितों या फिर घरेलू सलाफियों के इस्लाम की कठोर व्याख्या के तहत नहीं चलाया जा रहा है. संस्थाओं को इसके लिए करार पर दस्तखत करने होंगे कि वो फ्रांसीसी मूल्यों का सम्मान करेंगे और अगर कहीं इसका उल्लंघन हुआ तो सरकारी धन वापस करेंगे. बिल में बताए बदलावों को शामिल करने के लिए फ्रांस को 1905 में बने एक कानून में थोड़ा सुधार करना होगा जो चर्च और सरकार के बीच अंतर सुनिश्चित करता है.
कुछ मुसलमानों का कहना है कि उन्हें संदेह के वातावरण की गंध आ रही है. पेरिस की ग्रैंड मॉस्क में शुक्रवार की नमाज के लिए आए टैक्सी ड्राइवर बाहरी अयारी का कहना है, "थोड़ा संदेह है, एक मुसलमान, मुसलमान होता है बस. हम कट्टरपंथियों की बात करते हैं जिन्हें मैं नहीं जानता. एक ग्रंथ है, एक पैगंबर हैं और पैगंबर ने हमें सिखाया है." जिन कट्टरपंथियों को सजा हुई उनके बारे में वह कहते हैं, उनका अपराध है, "इस्लाम को पीछे छोड़ना, वो मुसलमान नहीं हैं."
एनआर/एके (एपी)
2016 से 2019 के आंकड़ों से तुलना करें तो पिछला साल यूरोप के लिए काफी बुरा रहा. कोरोना महामारी ने यहां लाखों लोगों की जान ली. पूर्वी यूरोप पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ी.
यह आंकड़ा यूरोस्टैट एजेंसी ने मुहैया कराया है. इसमें सिर्फ कोरोना से मरने वालों की नहीं, बल्कि यूरोप में कुल मौतों का ब्योरा दिया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है, "इस विश्लेषण में दिया गया डाटा उन सभी मौतों की जानकारी देता है जो (यूरोप में) जनवरी से नवंबर 2020 के बीच हुई." इस रिपोर्ट के लिए यूरोस्टैट ने सभी देशों से आधिकारिक आंकड़े मंगवाए. आयरलैंड इससे बाहर रहा. उसने आंकड़े देने से मना कर दिया.
एजेंसी ने बताया, "कोविड-19 की शुरुआत में अप्रैल 2020 में ही यूरोपीय संघ में मृत्यु दर पहली बार सबसे ऊंची दर तक पहुंच गया था. 2016 से 2019 की तुलना में मौत का आंकड़ा 25 फीसदी अधिक था." इस दौरान अकेले स्पेन में ही मृत्यु दर 80 फीसदी ज्यादा रिकॉर्ड की गई थी. हालांकि स्पेन और इटली पर दुनिया भर की नजरें टिकी थीं लेकिन बेल्जियम के बारे में कोई खास बात नहीं हुई. बेल्जियम में मृत्यु दर अप्रैल में 74 प्रतिशत अधिक थी.
इसके बाद मई से ले कर जुलाई तक स्थिति कुछ बेहतर हुई. लेकिन अगस्त-सितंबर से एक बार फिर बड़ी संख्या में मौतों का सिलसिला शुरू हुआ. रिपोर्ट में कहा गया है, "ईयू में मृत्यु दर सितंबर में आठ फीसदी ज्यादा थी, अक्टूबर में यह 17 फीसदी हुई और नवंबर में 40 फीसदी. ईयू के सभी सदस्य देशों में आंकड़ा बढ़ता दिखा."
नवंबर में सबसे बुरा हाल हुआ पोलैंड, स्लोवेनिया और बुल्गारिया का जहां इस एक महीने में ही पिछले सालों की तुलना में मृत्यु दर 90 फीसदी अधिक दर्ज की गई. इसी दौरान बेल्जियम में 60 फीसदी की वृद्धि और इटली और ऑस्ट्रिया में 50 फीसदी की वृद्धि देखी गई.
यूरोस्टैट ने साफ किया है कि उसने अभी तक मौत के कारणों और लिंग के अनुसार मौत की दर का विश्लेषण नहीं किया है. यानी रिपोर्ट में जिन मौतों का जिक्र है, उन सभी के लिए कोरोना महामारी जिम्मेदार नहीं है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना की इन मौतों में एक बड़ी भूमिका है.
आईबी/एनआर (डीपीए)
काबुल, 17 फरवरी | अफगानिस्तान में पिछले 24 घंटों में हुई 2 सुरक्षा संबंधी घटनाओं में 3 लोगों की मौत हो गई है और 2 लोग घायल हो गए हैं। इनमें से एक घटना काबुल के बागरामी जिले में हुई, जहां हथियारबंद लुटेरों और बस के यात्रियों के बीच हुई झड़प में एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए। सूत्रों ने बताया कि लुटेरों ने बंदूक की नोक पर यात्रियों को लूटने की कोशिश की थी। टोलो न्यूज के मुताबिक, बुधवार की सुबह काबुल के बागरामी जिले में हुसैनखेल क्षेत्र में अज्ञात बंदूकधारियों ने एक व्यक्ति और उसके बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी।
सूत्रों ने बताया, "पीड़ित पिता राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के लिए काम करते थे, वहीं बेटा रक्षा मंत्रालय में अधिकारी था।" इन घटनाओं पर पुलिस ने कोई टिप्पणी नहीं की है।
टोलो न्यूज के मुताबिक फरवरी की शुरुआत से लेकर अब तक में आईईडी ब्लास्ट, सड़क किनारे हुए बम धमाकों और निशाना बनाकर की गई हत्याओं में मरने वालों और घायल होने वालों की संख्या 340 हो गई है। (आईएएनएस)
जकार्ता, 17 फरवरी | इंडोनेशिया के पूर्वी जावा प्रांत में हुए भूस्खलन के कारण मरने वालों की संख्या बढ़कर 12 हो गई है। वहीं आपदा के बाद लापता हुए 7 लोगों की तलाश की जा रही है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि इस प्राकृतिक आपदा में 20 से ज्यादा लोग घायल भी हुए हैं, उनका अभी इलाज चल रहा है। वहीं राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी की प्रवक्ता रादित्य जाति ने एक बयान में कहा, "7 ग्रामीण मंगलवार की रात से लापता हैं। भूस्खलन के कारण मलबे में फंसे लोगों को निकालने के लिए बचाव अभियान जारी है।"
अधिकारियों का मानना है कि पूर्वी जावा के नगंजुक जिले के नगेटोस में भारी बारिश के कारण भूस्खलन हुआ। इस आपदा के कारण 180 से ज्यादा ग्रामीण प्रभावित हुए हैं। 100 से ज्यादा लोगों को मजबूरी में अपने घर छोड़कर आश्रय घरों में रहना पड़ रहा है। बता दें कि इंडोनेशिया में बारिश के मौसम में अक्सर भूस्खलन होते हैं और बाढ़ आती है। (आईएएनएस)
उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग-उन की पत्नी रि सोल-जू को लगभग साल भर बाद देखा गया है.
वे मंगलवार को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में अपने पति के साथ शामिल हुईं.
उत्तर कोरिया के सरकारी न्यूज़ चैनल के अनुसार उन्होंने किम के पिता और पूर्व उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-इल की जयंती के मौके पर आयोजित एक समारोह में हिस्सा लिया.
इससे पहले रि सोल-जू महत्वपूर्ण अवसरों पर किम जोंग-उन के साथ नज़र आई हैं. लेकिन पिछले साल जनवरी महीने से वह उनके साथ नज़र नहीं आ रही थीं.
इसकी वजह से रि सोल-जू के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं जताई जा रही थीं और उनके गर्भवती होने से जुड़े कयास भी लगाए जा रहे थे.
दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय खुफिया सेवा ने संसद सदस्यों को कथित रूप से बताया है कि रि सोल-जू कोविड 19 से जुड़ी चिंताओं और अपने बच्चों के साथ समय बिताने की वजह से बाहर जाने से बच रही थीं.
उत्तर कोरिया ने आधिकारिक रूप से अपने यहां किसी भी व्यक्ति के कोविड - 19 से संक्रमित होने की पुष्टि नहीं की है. लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसा होना संभव नहीं है.
उत्तर कोरियाई अख़बार रोडोंग सिनमन के मुताबिक़ किम जोंग-उन और रि सोल-जू ने मनसुडे आर्ट थिएटर में जब प्रवेश किया तो लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका स्वागत किया.
इस मौके पर खींची गई तस्वीरों में दोनों लोग हंसते हुए नज़र आ रहे हैं. इसके साथ ही लोग मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करते दिख रहे हैं.
एक विश्लेषक चेंओंग – सेओंग- चैंग के मुताबिक़, रि एक उच्च वर्गीय परिवार से आती हैं. उनके पिता प्रोफेसर और माँ डॉक्टर हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कथित रूप से 31 वर्षीय रि सोल-जू इससे पहले एक अभिजात संगीतकारों के उनहासू ऑर्केस्ट्रा में गायिका थीं. इसके सदस्यों को सरकार द्वारा विशेष प्रक्रिया के द्वारा चुना जाता है.
चेओंग मानते हैं कि ये शादी 2009 में हुई होगी और किम जोंग-इल द्वारा जल्दबाजी में आयोजित की गई होगी क्योंकि उन्हें 2008 में स्ट्रोक हुआ था.
हालांकि, रि सोल-जू को किम जोंग-उन की पत्नी के रूप में साल 2021 में पहचान मिली जब स्टेट मीडिया ने आधिकारिक रूप से इसकी सूचना दी.
दक्षिण कोरियाई खुफिया एजेंसियों के मुताबिक़, इस जोड़े के तीन बच्चे हैं.
पूर्व अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी डेनिस रॉडमैन ने पहले बताया था कि इस जोड़े की एक बेटी है जिसका नाम जू-एई है और किम एक अच्छे पिता हैं.
किम इससे पहले ‘डे ऑफ़ द शाइनिंग स्टार’ के मौके पर कुमुसन पैलेस ऑफ़ द सन पहुंचे, जहां उनके पिता और दादा का अंतिम संस्कार हुआ था, और अपने पिता और दादा को श्रद्धांजलि दी.
उत्तर कोरिया की सरकारी न्यूज़ एजेंसी ने किम जोंग-उन को अध्यक्ष बताया है जो कि उनके सामान्य आधिकारिक पद चेयरमैन से हटकर है. किम जोंग उन को सबसे पहले उत्तर कोरिया की सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी द्वारा अध्यक्ष बताया गया था.
सामान्य रूप से उत्तर कोरिया में अध्यक्ष पद को किम-इल-संग के लिए आरक्षित रखा जाता है जो कि उत्तर कोरिया के संस्थापक और किम के बाबा हैं.
-रजनीश कुमार
रविवार को अगरतला में बिप्लब कुमाब देब ने पार्टी के एक कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह का हवाला देते हुए कहा था कि बीजेपी न केवल भारत के सभी राज्यों में, बल्कि नेपाल और श्रीलंका में भी सरकार बनाना चाहती है.
नेपाल के लोग पाकिस्तान के बारे में क्या सोचते हैं?
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बिप्लब कुमार देब ने कहा था कि तब अमित शाह पार्टी प्रमुख थे और उसी दौरान उन्होंने अपनी योजना के बारे में बताया था कि पार्टी विदेशों में भी अपना विस्तार करेगी.
उन्होंने कहा था, ''गृह मंत्री जी तब राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. मैंने एक बैठक में कहा कि अध्यक्ष जी बहुत स्टेट हमलोग के पास हो गया है. अब तो अच्छा हो गया है. इस पर अध्यक्ष जी ने कहा- अरे काहे अच्छा हो गया है. अभी तो श्रीलंका बाक़ी है. नेपाल बाक़ी है. मतलब उस आदमी को...बोलता है कि देश का तो कर ही लेंगे...श्रीलंका है...नेपाल है...वहाँ भी तो पार्टी को लेकर जाना है. वहाँ भी जीतना है.''
औपचारिक आपत्ति
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली ने कहा है कि इस मामले में नेपाल ने भारत सरकार के समक्ष औपचारिक आपत्ति दर्ज करा दी है.
नेपाली मीडिया के अनुसार भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य ने सरकार के समक्ष औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है. नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञवाली के प्रेस सलाहकार सुदन ज्ञवाली ने बीबीसी से कहा कि दिल्ली के नेपाली दूतावास ने भारत सरकार के सामने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है.
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (प्रचंड गुट) के केंद्रीय और नेपाली प्रवास समन्वय समिति के अध्यक्ष युवराज चौंलगाईं ने बीबीसी से कहा कि बिप्लब देब की यह टिप्पणी नेपाल की संप्रभुता का अपमान है.
युवराज कहते हैं, ''भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी से पता चलता है कि भारत का शासक वर्ग नेपाल को लेकर क्या सोच रखता है. आप ये कैसे कह सकते हैं? नेपाल एक संप्रभु देश है और उसके बारे में उसी सम्मान के साथ कोई टिप्पणी होनी चाहिए.''
युवराज कहते हैं, ''नेपाल को लेकर बीजेपी में इतना आत्मविश्वास कहाँ से आता है, ये सोचने की बात है. इन्हें लगता है कि नेपाल में हिंदू आबादी बहुसंख्यक है, तो कुछ भी बोल दो. हमारी आबादी में भले बहुसंख्यक हिंदू हैं, लेकिन इससे हमारी संप्रभुता का सम्मान कम नहीं हो जाता है. दुनिया में कई मुस्लिम बहुल देश हैं, लेकिन वहाँ तो कोई बड़ा मुस्लिम बहुल देश छोटे मु्स्लिम बहुल देश की संप्रभुता का अपमान नहीं करता. मेरा मानना है कि नेपाल की सरकार को और कड़ी आपत्ति दर्ज करानी चाहिए थी.''
नेपाली मीडिया में भी चर्चा
बिप्लब देब का यह बयान नेपाली मीडिया में छाया रहा. नेपाली अख़बार नया पत्रिका ने 15 फ़रवरी को अपनी रिपोर्ट में लिखा, ''क्या भाजपा की यह गोपनीय योजना बाहर आ गई है? नेपाल में आरएसएस अपना विस्तार पहले से ही कर रहा है. ऐसे में बीजेपी के मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी सुनियोजित है या संयोग? वीरगंज में आरएसएस का एक सम्मेलन हुआ था. इस सम्मेलन का उद्घाटन आरसएस के राष्ट्रीय संह-संचालक कल्याण तिमिल्सिनाले ने किया था. इसमें धर्मांतरण को लेकर चिंता जताई गई थी और वीरगंज बाज़ार से आरएसएस के स्वयंसेवकों ने एक मार्च भी निकाला था.''
बिप्लब देव की टिप्पणी पर रूस में नेपाल के राजदूत रहे हिरण्य लाल श्रेष्ठ कहते हैं कि यह आरएसएस और बीजेपी की मौलिक सोच है. वे कहते हैं, ''सरदार पटेल की तरह ये भी भारत का विस्तार चाहते हैं. ये पूरे साउथ एशिया में हिंदू धर्म का प्रभाव चाहते हैं. लेकिन इन्हें पता होना चाहिए कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है ना कि स्टेट का. किसी की संप्रभुता छोटी या बड़ी नहीं होती है. सबकी संप्रभुता का सम्मान उसी रूप में होना चाहिए.''
श्रेष्ठ कहते हैं, ''आरएसएस का प्लान है कि वो नेपाल में भी अपना प्रभाव भारत की तरह ही बनाए. तराई के इलाक़े में ऐसी कोशिश की भी जा रही है. हम भारत और नेपाल में आम लोगों के बीच मज़बूत संबंध चाहते हैं, लेकिन शासक वर्ग की अधिनायकवादी सोच से परे. आरएसएस वाले भारत का विस्तार पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश तक करना चाहते हैं, लेकिन इन्हें सपने से बाहर निकलना चाहिए.''
बिप्लब देब की इस टिप्पणी को भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी बकवास बताया है. कांग्रेस ने ट्वीट कर कहा, ''इन जैसे लोगों के बेवकूफ़ी भरे बयानों की वजह से आज भारत के पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते सबसे ख़राब दौर में पहुँच चुके हैं. आपलोग इन बेवकूफ़ी भरे बयानों से लोगों को सिर्फ़ मूर्ख बना सकते हैं.''
सीपीआईएम नेता और पूर्व सांसद जितेंद्र चौधरी ने कहा है कि मुख्यमंत्री को लोकतंत्र और संविधान की समझ नहीं है. उन्होंने कहा है कि इस तरह की टिप्पणी किसी दूसरे देश के हस्तक्षेप की तरह देखी जाएगी.
बाबूराम भट्टराई की जनता समाजवादी पार्टी के नेता राजकिशोर यादव कहते हैं कि बिप्लब देब की टिप्पणी से कोई भी नेपाली ख़ुश नहीं हुआ होगा. वे कहते हैं, ''इस तरह की टिप्पणी से भारत नेपाल संबंध ख़राब ही होंगे. ये फालतू की टिप्पणी करते रहे हैं और कहते हैं कि नेपाल में भारत विरोधी भावना बढ़ रही है.''
नेपाल में कई लोग मानते हैं कि नरेंद्र मोदी जब 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो वे नेपाल में भी काफ़ी लोकप्रिय थे लेकिन 2015 में नाकेबंदी के बाद से भारत और बीजेपी दोनों की छवि नेपाल में ख़राब हुई है.
एक नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि अच्छा हुआ कि 2015 में नाकेबंदी भारत ने लगा दी नहीं दी, नहीं तो मोदी नेपाल में भी बड़े नेता बन जाते.
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नेपाल पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से हिंदू राष्ट्र बनाए रखने को लेकर भी दवाब रहा है.
26 मई 2006 को बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था, ''नेपाल की मौलिक पहचान एक हिंदू राष्ट्र की है और इस पहचान को मिटने नहीं देना चाहिए. बीजेपी इस बात से ख़ुश नहीं होगी कि नेपाल अपनी मौलिक पहचान माओवादियों के दबाव में खो दे.'' (bbc.com)
दुबई, 17 फरवरी | दुबई के वेयरहाउस में आग लगने के हादसे में अपने कीमती सामान गंवाने वाले भारतीय प्रवासियों ने केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इन्होंने मांग की है उन्हें अपना बकाया पैसा लेने के लिए कानूनी सहायता दी जाए। गल्फ न्यूज के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि यूएई की इस कार्गो फर्म को उन्होंने हजारों दिरहम के कीमती सामान केरल भेजने के लिए दिए थे, जो कि आग लगने से नष्ट हो गए। इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कोविड महामारी के दौरान अपनी नौकरी खो दी थी और उन्हें अपने परिवारों को वापस घर भेजना पड़ा।
केरल हाई कोर्ट के वकील जोस अब्राहम ने गल्फ न्यूज को बताया, "यह याचिका केरल हाई कोर्ट में इसलिए दायर की गई है क्योंकि ज्यादातर पीड़ित केरल के हैं। वे यूएई जाकर अपना केस लड़ने की स्थिति में नहीं हैं।"
इस मामले में केरल हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर यूएई में भारत के दूतावास को निर्देश देने के लिए कहा है कि वे वहां पर पीड़ितों को मदद करे ताकि वे अपना मुआवजा प्राप्त कर सकें। ये नोटिस जस्टिस पी.वी. आशा की अध्यक्षता वाली पीठ ने जारी किया है। इसमें संबंधित अधिकारियों से याचिकाकर्ताओं की शिकायतों पर विचार करने और मुआवजे के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए मुफ्त कानूनी सहायता देने के लिए कहा गया है।
याचिका के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि महामारी के कारण उन्होंने अपनी नौकरी खो दी थी और फिर अपना सामान घर भेजने के लिए उन्होंने कार्गो कंपनी को हजारों दिरहम का भुगतान किया लेकिन उनके घर पहुंचने के बाद भी उनका सामान नहीं पहुंचा। यह कीमती सामान उन्होंने कई सालों की कड़ी मेहनत से इकट्ठा किया था। याचिकाकर्ताओं ने अपनी बात को एनओआरकेए (गैर-निवासी केरलवासियों के मामलों की देखरेख करने वाली संस्था) के प्रमुख सचिव तक पहुंचाया, जिन्होंने इसे अबु धाबी में भारतीय दूतावास तक पहुंचाया।
पिछले साल मार्च में अपनी नौकरी खोने वाले जॉर्ज जोसेफ ने अपना सामान भेजने के लिए कंपनी को 5,700 दिरहम का भुगतान किया था। वहीं दुबई में बतौर टेकि्न कल इंजीनियर काम करने वाले रामदास परुवायाकोड ने अपने परिवार के लिए हजारों दिरहम खर्च कर नया फ्रिज, वॉशिंग मशीन और कई चीजें भेजी थीं, जो कि गोदाम में जल गए। इसके अलावा कंपनी को भी उन्होंने शिपिंग के लिए हजारों दिरहम भी चुकाए थे।
आग में ढेर सारा कीमती फर्नीचर और म्यूजिक सिस्टम गंवाने वाली 43 वर्षीय रोजी कुरियन कहती हैं, "हमें हजारों दिरहम का नुकसान हुआ है, हमें मुआवजा मिलना ही चाहिए।" वहीं पिछले 22 वर्षों से दुबई में फ्रीलांस आईटी कंसल्टेंट्स के तौर पर काम करने वाले मंगेश प्रसाद चाफोलकर कहते हैं, "मैंने टीवी कैबिनेट, बेड, किचन का ढेर सारा सामान, मेरे बच्चों के सर्टिफिकेट्स, ट्राफियां भेजी थीं। इतना ही नहीं इसमें हमारी फैमिली की तस्वीरें, वीडियो और कई एंटीक्स भी शामिल थे। सामान जलने से हमारी जिंदगी उलट-पलट हो गई है। मुझे कुछ अच्छा होने की उम्मीद है। " (आईएएनएस)
दुबई के शासक की बेटी प्रिंसेज़ लतीफ़ा अल मकतूम ने 2018 में देश से भागने की कोशिश की थी और उन्हें बाद में पकड़ लिया गया था.
उन्होंने इसके बाद एक वीडियो संदेश अपने दोस्तों को भेजा था जिसमें वो अपने पिता पर उन्हें 'बंधक' बनाने का आरोप लगा रही हैं और कह रही हैं कि उनकी जान ख़तरे में है.
प्रिंसेज़ लतीफ़ा का यह वीडियो फ़ुटेज बीबीसी पैनोरमा को मिला है जिसमें वो कह रही हैं कि नाव से भागने के दौरान कमांडो ने उन्हें पकड़ लिया था और वे उन्हें हिरासत केंद्र में ले आए हैं.
उनके यह ख़ुफ़िया संदेश आने बंद हो चुके हैं और दोस्तों ने संयुक्त राष्ट्र से अपील की है कि वह इसमें दख़ल दे.
दुबई और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) पहले कह चुका है कि प्रिंसेज़ लतीफ़ा परिवार की देखभाल में सुरक्षित हैं.
संयुक्त राष्ट्र की पूर्व मानवाधिकार दूत मैरी रॉबिनसन ने 2018 में लतीफ़ा से मुलाक़ात के बाद उन्हें 'परेशान युवा महिला' कहा था लेकिन अब उन्होंने कहा है कि राजकुमारी के परिवार ने उन्हें 'बुरी तरह से धोखा' दिया है.
संयुक्त राष्ट्र की पूर्व मानवाधिकार उच्चायुक्त और आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति रॉबिनसन ने अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की मांग करते हुए लतीफ़ा की वर्तमान स्थिति पता लगाने की मांग की है.
उनका कहना है, "मुझे लगातार लतीफ़ा की चिंता है. चीज़ें काफ़ी बदल गई हैं और अब मुझे लगता है कि इसकी जांच होनी चाहिए."
लतीफ़ा के पिता शेख़ मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम दुनिया के अमीर राष्ट्राध्यक्षों में से एक हैं. वो दुबई के शासक और यूएई के उप-राष्ट्रपति हैं.
लतीफ़ा को पकड़ने के बाद उन्हें दुबई ले जाया गया था जिसके बाद उन्होंने गुपचुप तरीक़े से कई महीनों तक ये वीडियो बनाए. इनको उन्होंने अपने बाथरूम में बनाया और यही इकलौता दरवाज़ा था जिसे वो बंद कर सकती थीं.
टीना जोहाएनन, लतीफ़ा की फ़िटनेस इंस्ट्रक्टर रही हैं और उन्होंने उनकी भागने में मदद की थी
लतीफ़ा के पकड़े जाने और उन्हें हिरासत में रखने के बारे में पैनोरमा को उनकी दोस्त टीना जोहाएनन, ममेरे भाई मार्कस एसाबरी और कैंपेनर डेविड हाए ने बताया है. ये सभी लोग फ़्री लतीफ़ा कैंपेन भी चला रहे हैं.
उनका कहना है कि वे लतीफ़ा की सुरक्षा को देखते हुए उनके संदेश सार्वजनिक करने का कठिन फ़ैसला कर रहे हैं.
ये वही लोग हैं जिन्होंने दुबई के एक घर में रहने के दौरान लतीफ़ा के साथ संपर्क स्थापित किया था.
लतीफ़ा को कहां रखा गया था पैनोरमा ने स्वतंत्र रूप से इसकी जांच की है.
कौन हैं दुबई के शासक
शेख़ मोहम्मद ने एक बहुत ही कामयाब शहर का निर्माण किया है लेकिन मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि वहां पर असहमति की कोई जगह नहीं है और न्यायिक प्रणाली महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण है.
शेख़ मोहम्मद के पास घुड़दौड़ का एक विशाल उद्यम है और वो रॉयल एस्कॉट समेत बड़े समारोहों में शामिल होते रहे हैं जहां पर उनकी महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के साथ भी तस्वीर है.
लेकिन प्रिंसेज़ लतीफ़ा और उनकी सौतेली मां को लेकर वो आलोचनाओं का सामना करते रहे हैं. उनकी पत्नी प्रिंसेज़ हया बिंत अल हुसैन साल 2019 में अपने दो बच्चों के साथ लंदन भाग गई थीं.
नाव के ज़रिए भागना
लतीफ़ा (तक़रीबन 35 वर्ष आयु) ने पहली बार 16 साल की उम्र में भागने की कोशिश की थी. आख़िरी बार उन्होंने अपनी फ़िटनेस इंस्ट्रक्टर जोहाएनन की मदद से भागने की कोशिश की.
24 फ़रवरी 2018 को लतीफ़ा और जोहाएनन एक नाव और जेट स्की लेकर अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में गए जहां पर एक फ़्रेंच बिज़नेसमैन हर्व जॉबर्ट एक अमेरिकी झंडे लगे यॉट में उनका इंतज़ार कर रहे थे.
आठ दिनों के सफ़र के बाद भारत के नज़दीक कमांडो दस्ते ने नाव को पकड़ लिया था. जोहाएनन ने कहा कि आंसू गैस के गोलों के कारण लतीफ़ा बाथरूम में जहां छिपी थीं वहां से वो निकलकर बाहर आ गईं और उन्हें बंदूक़ की नोक के दम पर पकड़ लिया गया.
लतीफ़ा दुबई लौटीं और उसके बाद से उनका कोई अता-पता नहीं है.
दुबई में दो सप्ताह तक हिरासत में रखे जाने के बाद जोहाएनन और बाक़ी के क्रू को रिहा कर दिया गया. भारत सरकार ने इस पूरी घटना में अपनी भूमिका होने या न होने पर कभी कोई टिप्पणी नहीं की.
2018 में उनके भागने की कोशिश से पहले लतीफ़ा ने एक वीडियो रिकॉर्ड किया था जिसको उनके पकड़े जाने के बाद यूट्यूब पर अपलोड किया गया था. इसमें वो कह रही हैं, "अगर आप यह वीडियो देख रहे हैं तो इसका मतलब है कि यह अच्छा नहीं है क्योंकि या तो मैं मर चुकी हूं या मैं बहुत, बहुत, बहुत बुरी स्थिति में हूं."
इस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी चिंता व्यक्त की गई थी और उनको रिहा करने की मांग की गई थी. इसके बाद यूएई पर दबाव पड़ा तो उसने रॉबिनसन के साथ उनकी मुलाक़ात तय की.
रॉबिनसन की मुलाक़ात
प्रिंसेज़ हया के निवेदन पर वो दिसंबर 2018 में दुबई आईं जहां पर लंच के दौरान लतीफ़ा भी मौजूद थीं.
रॉबिनसन ने पैनोरमा को बताया कि प्रिंसेज़ हया ने लतीफ़ा के बायपोलर डिसॉर्डर के बारे में बताया था जो कि उनको नहीं रहा है.
उन्होंने बताया कि उन्होंने लतीफ़ा से उनकी स्थिति के बारे में नहीं पूछा था क्योंकि वो लतीफ़ा के 'सदमे को बढ़ाना' नहीं चाहती थीं.
इस घटना के नौ दिन के बाद यूएई के विदेश मंत्रालय ने रॉबिनसन के साथ लतीफ़ा की तस्वीर को सबूत की तरह प्रकाशित किया और कहा कि प्रिंसेज़ सुरक्षित और ठीक हैं.
रॉबिनसन ने कहा, "जब तस्वीर सार्वजनिक की गई तो मुझे लगा कि धोखा दिया गया है. यह पूरी तरह चौंकाने वाला था और मैं पूरी तरह अवाक थी."
2019 में दुबई के सत्तारूढ़ परिवार की एक और कलह इंग्लैंड के हाई कोर्ट के सामने पहुंच गई थी. शेख़ की एक पत्नी प्रिंसेज़ हया अपने दो बच्चों के साथ ब्रिटेन भाग आई थीं और उन्होंने शेख़ से सुरक्षा के लिए आवेदन किया था.
इमेज कैप्शन,
प्रिंसेज़ हया फ़रवरी 2020 में हाईकोर्ट जाते हुए
पिछले साल हाई कोर्ट ने एक फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि शेख़ मोहम्मद ने 2002 और 2018 में लतीफ़ा को जबरन लाने का आदेश दिया था और साल 2000 में ब्रिटेन में लतीफ़ा की छोटी बहन प्रिंसेज़ शमसा का अपहरण किया था, उन्होंने भी भागने की कोशिश की थी.
कोर्ट ने पाया कि शेख मोहम्मद ने 'लगातार ऐसा शासन बनाए रखा जहां पर दो युवा महिलाओं को उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया.'
इन वीडियो संदेशों को जारी करने पर जोहाएनन कहती हैं कि उनसे संपर्क हुए काफ़ी समय बीत चुका है और उन्होंने यह वीडियो संदेश जारी करने को लेकर बहुत सोचा था.
वो कहती हैं, "मुझे लगता है कि वो चाहती हैं कि हम उनके लिए लड़ें और यूं ही हिम्मत नहीं हारें."
लतीफ़ा की वर्तमान स्थिति के बारे में बीबीसी ने दुबई और यूएई की सरकारों से उनका पक्ष जानना चाहा लेकिन उन्होंने इस पर अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. (bbc.com)
किम जोंग उन की पत्नी नजर नहीं आ रही हैं.उत्तर कोरियाई शासन के वरिष्ठ सदस्य इस तरह से नजरों से ओझल रह कर दोबारा सामने आते रहे हैं लेकिन उत्तर कोरिया पर नजर रखने वाले विश्लेषक लेकर तरह तरह की संभावनाएं जता रहे हैं.
डॉयचे वैले पर यूलियन रयाल की रिपोर्ट-
री सोल जू को आखिरी बार सार्वजनिक रूप से 25 जनवरी 2020 को देखा गया था जब वे अपने पति के साथ सामिज्योन थिएटर में नए साल के मौके पर हुए एक कार्यक्रम में शामिल हुईं. सरकारी मीडिया की ओर से जारी तस्वीरों में उन्हें उत्तर कोरियाई नेता और अपनी आंटी किम क्योंग हुई के बीच में खड़े हो कर ताली बजाते देखा गया. उनके चारों तरफ वर्कर्स पार्टी के वफादार सदस्य मौजूद थे.
विश्लेषक री को उत्तर कोरिया के नेतृत्व में अंदर से एक बदलाव के प्रतीक की तरह देखते हैं. एक नई महिला का चेहरा जो देश के भीतर और बाहर शासन की छवि को थोड़ा नरम दिख सकता है. शादी के शुरुआती सालों में इसके कुछ मनचाहे नतीजे भी देखने को मिले. किम जोंग उन की पत्नी के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. माना जाता है कि उनका जन्म 1985 से 1989 के बीच कभी हुआ और उन्होंने किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की है जो उत्तर कोरियाई लोगों के लिए किसी बड़े सम्मान से कम नहीं है.
री और किम ने कथित रूप से 2009 में जल्दबाजी में शादी की. तब किम के पिता किम जोंग इल को स्ट्रोक हुआ था और परिवार चाहता था कि वंश आगे बढ़े. किम जोंग इल का दिसंबर 2011 में देहांत हुआ, तब तक री ने एक बेटे को जन्म दे दिया था. ऐसी खबरें हैं कि इसके बाद उनकी दो और संतान हुईं लेकिन इनकी स्वतंत्र रूप से कभी पुष्टि नहीं हो सकी.
प्रथम महिला का उत्तर कोरियाई संस्करण
किम के शासन के शुरुआती दिनों में उनकी पत्नी अकसर उनके साथ घरेलू कार्यक्रमों में नजर आती थीं. जुलाई 2021 में सरकारी मीडिया ने इस बात की पुष्टी की कि वह उनकी पत्नी हैं. दक्षिण कोरिया की मीडिया में आने वाली खबरों के मुताबिक उनकी शानदार पहनावे की शैली, बालों के डिजायन और हैंडबैग के डिजायनों को प्योंग्यांग के ऊंचे समाज में कॉपी किया जाता है. आम लोग उसके सपने देखते हैं क्योंकि उनके पास इस तरह की विलासिताओं को पूरा करने के लिए साधन नहीं है.
जब री अपने पति के साथ चीन के सरकारी दौरे पर मार्च 2018 में नजर आईं तो इस बात के सबूत और पक्के हो गए कि उन्हें देश की प्रथम महिला के रूप में तैयार किया जा रहा था. उन्होंने अप्रैल 2018 में अंतरकोरियाई सम्मेलन में भी हिस्सा लिया जहां उनकी मुलाकात दक्षिण कोरियाई प्रथम महिला से हुई. इसके अगले साल उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी पत्नी के कोरिया के सरकारी दौरे में बतौर मेजबान मदद की. इसके बाद से वे नजर नहीं आ रही हैं.
कहां हैं री?
तोशिमित्सु शिगेमुरा टोक्यो की वासेदा यूनिवर्सिटी में हैं और उन्होंने किम वंश पर कई किताबें लिखी हैं. उनका कहना है कि एक साल से री के नजर नहीं आने के बारे में कई तरह की बातें हो रही हैं. तोशिमित्सू शिकेमुरा ने डीडब्ल्यू से कहा, "मैंने सुना है कि उन्होंने एक और बच्चे को जन्म दिया है, जो उनका चौथा बच्चा होगा और वो कोरोना वायरस की महामारी के चलते सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आना चाहतीं. हालांकि सरकार अब भी इसी बात पर अड़ी हुई है कि उत्तर कोरिया में कोविड-19 से कोई बीमार नहीं है."
शिकेमुरा के मुताबिक, "कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि री और किम के रिश्ते खराब हो गए हैं और दोनों साथ वक्त नहीं बिता रहे हैं या फिर शायद किम को यह लग रहा है कि उनकी पत्नी अपने कपड़ों और बालों के स्टाइल की वजह से लोगों का ज्यादा ध्यान खींच रही हैं. पुरुष प्रधान कोरियाई समाज में एक तानाशाह के लिए यह सब ज्यादा काम नहीं आता."
ट्रॉय यूनिवर्सिटी के सियोल कैम्पस में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर डैनियल पिनक्स्टन इस बात से सहमत हैं कि री का इतने लंबे समय तक मीडिया कवरेज से बाहर रहना सामान्य बात नहीं है. उनका कहना है, "कुछ समय तक वो हर जगह अपने पति के साथ थीं, खेतों और फैक्ट्रियों तक में और अब वो कही नहीं हैं. जो कुछ हम उत्तर कोरिया की स्थिति के बारे में सुनते हैं उसमें वो कोरियाई नेता के साथ एक स्टायलिश और सम्मानित महिला के रूप में उभरी हैं. कोरिया पर नजर रखने वाले कुछ लोग उन्हें शासन के भीतर एक सुधारवादी और आधुनिक तौर तरीकों का प्रतीक मानते हैं, हालांकि फिलहाल तो यह साफ नहीं है कि इसका कितना विस्तार हुआ है."
इसकी बजाय हाल के वर्षों में उत्तर कोरिया में अगर कुछ हुआ है तो वह यही है कि किम फिर एक बार अपनी सेना पर ज्यादा भरोसा दिखा रहे हैं और देश से जुड़े रोजमर्रा के फैसलों की कमान उनके जनरलों के पास ही है. यहां तक कि अर्थव्यवस्था के बारे में भी उन्हीं की चल रही है. पदानुक्रम और किम परिवार में री की स्थिति को लेकर अटकलों का दौर चलता ही रहेगा, जबतक कि वो फिर से दिखाई नहीं दे जातीं या फिर सरकारी मीडिया उनके बारे में कोई जानकारी नहीं देता. (एनआर) (dw.com)
अगस्त 2019 में विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने के बाद विदेशी राजनयिकों का यह तीसरा आधिकारिक दौरा होगा. विपक्ष सवाल कर रहा है कि सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल क्यों नहीं ले जा रही है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए के हटने के बाद तीसरी बार विदेशी राजनयिक प्रदेश के दो दिवसीय दौरे पर जा रहे हैं. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक प्रतिनिधिमंडल 18 फरवरी को कश्मीर और 19 फरवरी को जम्मू के दौरे पर जा रहा है. इस प्रतिनिधिमंडल में 20 सदस्य शामिल होंगे और इसमें खाड़ी, अफ्रीकी और यूरोपीय देशों के राजनयिक होंगे. खबरों में बताया जा रहा है कि विदेशी राजनयिकों का दल सरकारी अफसरों, जिला स्तर पर डीडीसी चुनाव में सफलता हासिल करने वाले प्रतिनिधियों, व्यापार मंडल के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर सकता है.
करीब 18 महीने बाद बीते दिनों जम्मू-कश्मीर में 4 जी इंटरनेट सेवा बहाल हुई थी, जिसकी लंबे समय से नागरिक समाज के लोग, छात्र, व्यापारी और पत्रकार मांग करते आ रहे थे. सरकार ने 5 अगस्त 2019 को इंटरनेट सेवा बंद कर दी थी. इसी दिन केंद्र ने राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था. जम्मू कश्मीर के दो जिलों गांदरबल और उधमपुर को छोड़कर राज्य में मोबाइल इंटरनेट पर रोक लगी हुई थी. हालांकि पिछले साल की शुरुआत में 2 जी इंटरनेट सेवा बहाल कर दी थी.
इससे पहले अक्टूबर 2019 में यूरोपीय देशों के प्रतिनिधिमंडल ने घाटी का दौरा किया था और विपक्ष ने इसे ''गाइडेड टूर'' बताया था. सरकार की कोशिश है यह जताने की है कि कश्मीर घाटी में सामान्य हालात तेजी से पटरी पर लौट रहा है. हालांकि विपक्ष सरकार से सवाल कर रहा है कि वह कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण क्यों कर रही है और विदेशी राजनयिकों के दल को वहां क्यों ले जाना चाहती है. असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में पिछले दिनों सवाल किया कि सरकार सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल घाटी क्यों नहीं ले जाती.
पिछले साल 9 जनवरी को नई दिल्ली स्थित अमेरिकी राजदूत समेत 16 विदेशी राजनयिकों ने घाटी का दौरा किया था और इसके बाद 12 फरवरी 2020 को 25 विदेशी राजनयिकों का दूसरा प्रतिनिधिमंडल भी जम्मू-कश्मीर का दौरा कर चुका है. पहले के दोनों दौरे का आयोजन केंद्र सरकार ने किया था और इस तीसरे दौरे के बारे में केंद्र सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक कार्यक्रम की घोषणा नहीं की है.