अंतरराष्ट्रीय
लंदन, 26 फरवरी | ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने पुष्टि की है कि कोविड-19 अनुसंधान में शामिल उसकी एक प्रयोगशाला में साइबर हमला हुआ है। फोर्ब्स की जांच में यह बात सामने आई कि हैकरों ने प्रयोगशाला के कई सिस्टमों में सेंधमारी की। यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को कहा कि किसी भी नैदानिक अनुसंधान पर "कोई प्रभाव नहीं" पड़ा है। माना जा रहा है कि इस महीने के मध्य में हैकिंग हुई थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि हमले के पीछे कौन लोग हैं।
बहरहाल, जिस लैब में हैकरों ने सेंधमारी की वह स्ट्रक्चरल बायोलॉजी विभाग है जिसे "स्ट्रबी" के नाम से जाना जाता है। यह लैब प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के विकास में शामिल नहीं है।
प्रयोगशाला में वैज्ञानिक कोविड-19 कोशिकाओं के कार्य तंत्र के बारे में अध्ययन करने और उन्हें नुकसान पहुंचाने से रोकने के तरीके में शामिल रहे हैं।
फोर्ब्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि साइबर हमले में प्रभावित प्रणालियों में जैव रासायनिक नमूने तैयार करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें शामिल थीं।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रवक्ता के हवाले से बताया गया है, "हमने समस्या की पहचान कर ली है और अब आगे की जांच कर रहे हैं।"
साइबर हमले की जांच के लिए यूनिवर्सिटी ब्रिटेन में अधिकारियों के साथ काम कर रहा है।
ब्रिटिश खुफिया एजेंसी (जीसीएचक्यू) की एक शाखा नेशनल साइबर सिक्योरिटी सेंटर (एनसीएससी) अब इस हमले की जांच करेगा।
एक प्रवक्ता के अनुसार, यूनिवर्सिटी ने ब्रिटेन के सूचना आयुक्त कार्यालय को इस घटना से अवगत करा दिया है। यह साइबर अटैक ऐसे समय में हुआ है जब स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में साइबर हमले में वृद्धि हुई है।
अमेरिका, ब्रिटिश और कनाडाई सुरक्षा सेवाओं ने पिछले साल आरोप लगाया था कि संभ्वत: रूसी खुफिया सेवाओं के हिस्से के रूप में काम कर रहे एक हैकिंग समूह कोविड-19 वैक्सीन के विकास में शामिल संगठनों को निशाना बना रहा है।
ब्रिटेन में रूस के राजदूत ने तब इन दावों को खारिज कर दिया था कि उनके देश की खुफिया सेवा ने कोविड-19 वैक्सीन के बारे में जानकारी चुराने का प्रयास किया था। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 26 फरवरी | चीनी शार्ट-वीडियो मेकिंग ऐप टिकटॉक ने अमेरिका में निजता के उल्लंघन पर दायर एक मुकदमे का निपटारा करने के लिए 9.2 करोड़ डॉलर का भुगतान करने पर अपनी सहमति व्यक्त की है। द वर्ज में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुकदमे में इस बात का दावा किया गया है कि टिकटॉक द्वारा यूजर्स को ट्रैक करने के लिए 'बेहद संवेदनशील व्यक्तिगत डेटाओं' का संग्रह किया जाता है और इनका उपयोग उनके काम में आने वाले या उपयोगी विज्ञापनों के प्रसारण पर किया जाता है।
टिकटॉक के एक प्रवक्ता के हवाले से गुरुवार को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया, "हमारे ऊपर जिस तरह के आरोप लगे हैं, उनसे हम सहमत तो नहीं हैं, लेकिन हम एक लंबी कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेने के बजाय टिकटॉक कम्युनिटी को एक सुरक्षित और खुशनुमा अनुभव दिलाने के अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।"
साल 2019 में टिकटॉक ने कथित बच्चों की गोपनीयता का उल्लंघन के एक मामले का 11 लाख डॉलर का भुगतान कर निपटारा किया था। (आईएएनएस)
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 26 फरवरी | ऐसे समय में जब आतंकवाद-वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मुद्दों से निपटने के लिए पाकिस्तान की प्रगति पर वैश्विक निगरानी वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की प्लेनरी मीटिंग में जांच की जा रही है, एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि पाकिस्तान को 2008 से तीन बार एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में आने के कारण अरबों रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है।
तबादलाब नाम के एक स्वतंत्र थिंक टैंक द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में निष्कर्षों को साझा किया गया, जिसका शीर्षक था, "वैश्विक राजनीति की कीमत चुकाना - पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग का प्रभाव।"
शोध पत्र में पता चला है कि ग्रे लिस्टिंग 2008 से 2019 अवधि के दौरान, जिससे शायद जीडीपी में गिरावट देखने को मिली, देश को 38 अरब डॉलर का नुकसान हुआ।
शोध पत्र के लेखक ने तर्क दिया, "डेटा ने सुझाव दिया कि एफएटीएफ की ग्रे सूची से पाकिस्तान को हटाने के बाद कई बार अर्थव्यवस्था उभरी है, जैसा कि 2017 और 2018 में जीडीपी के स्तर में वृद्धि से स्पष्ट है।"
रिपोर्ट में कहा गया, "38 अरब डॉलर के घाटे के एक बड़े हिस्से को घरेलू और सरकारी खपत खर्च में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि एफएटीएफ ग्रे-लिस्टिंग से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर आशंकाओं के बीच स्थानीय निवेश, निर्यात और विदेशी निवेश में गिरावट होगी।
रिपोर्ट के निष्कर्ष ऐसे समय में आए हैं जब मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक के वित्तपोषण को रोकने के लिए एफएटीएफ के वैश्विक मानकों का पालन करने के लिए की गई कार्रवाइयों पर पाकिस्तान की प्रगति की पेरिस में एफएटीएफ की प्लेनरी मीटिंग में समीक्षा की जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रे सूची से पाकिस्तान के बाहर निकलने की संभावना कम है क्योंकि देश में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक के वित्तपोषण कानून पूरी तरह से वैश्विक मानकों के अनुरूप नहीं हैं। (आईएएनएस)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सऊदी अरब के किंग सलमान से बात की है. हालांकि इस बातचीत में अमेरिका की उस संवदेनशील रिपोर्ट का जिक्र नहीं किया गया है जो जमाल खशोगी की हत्या को लेकर जारी होने वाली है.
(dw.com)
राष्ट्रपति बाइडेन और किंग सलमान के बीच हुई बातचीत में व्हाइट हाउस ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी की उस रिपोर्ट के बारे में जिक्र नहीं किया जो जमाल खशोगी की हत्या से जुड़ी है. खशोगी की हत्या 2 अक्टूबर 2018 को हुई थी जिसके पीछे सऊदी अरब का हाथ माना जाता है. अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने इस हत्या की जांच की है और यह अब तक गोपनीय है. रिपोर्ट का सार्वजनिक होना वॉशिंगटन और रियाद के बीच सामान्य रूप से घनिष्ठ संबंधों के लिए एक परीक्षा का पल साबित हो सकता है.
रिपोर्ट से क्या पता चल सकता है?
जमाल खशोगी की हत्या पर अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट एक गोपनीय दस्तावेज है. माना जा रहा है कि इसे जल्द ही डीक्लासिफाइ किया जाएगा और यह खुफिया रिपोर्ट हत्या के लिए 85 वर्षीय सलमान के बेटे मोहम्मद बिन सलमान को दोषी ठहराएगी. वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार खशोगी सऊदी अरब की राजशाही के आलोचक थे. उनकी हत्या इस्तांबुल में सऊदी काउंसुलेट में की गई थी. सऊदी अरब की अदालत ने हत्या के पांच दोषियों को 20-20 साल की सजा दी थी.
मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि 2018 में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा एक जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया था कि प्रिंस सलमान ने शायद हत्या का आदेश दिया था. हालांकि रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई और इसे अभी जारी किया जा रहा है.
व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा कि बाइडेन और किंग सलमान ने लंबे समय से चली आ रही "साझेदारी" पर चर्चा की. व्हाइट हाउस के बयान में कहा गया है कि बाइडेन ने राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के लिए सऊदी अरब के हालिया फैसले का स्वागत किया, जिसमें महिला अधिकार कार्यकर्ता लुजैन अल हथलौल की रिहाई भी शामिल है. इसी के साथ दोनों ने मध्य पूर्व में ईरान की गतिविधियों पर भी चर्चा की, जिसमें "चरमपंथी समूहों को अस्थिर करना" शामिल था.
जमाल खशोगी की हत्या में प्रिंस सलमान की भूमिका को स्वीकार करना अमेरिका और अरब दुनिया में सबसे अहम साझेदार सऊदी अरब के बीच रिश्तों में काले बादल ला सकता है. ट्रंप प्रशासन के दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी सुधार हुआ क्योंकि ट्रंप ने मानवाधिकारों के हनन पर सऊदी अरब की आलोचना करने से परहेज किया था.
प्रिंस सलमान के आलोचक और कुछ मानवाधिकार समूहों ने अमेरिकी प्रशासन से मानवाधिकारों के हनन के लिए सऊदी अरब को जिम्मेदार ठहराने के लिए सख्त रुख अपनाने का आग्रह किया है. वे चाहते हैं कि अमेरिका प्रिंस सलमान को अलग-थलग करने के लिए कुछ उपाय या प्रतिबंध अपनाए.
एए/सीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
पेंटागन का कहना है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में अमेरिकी सेना और राजनयिकों के ठिकानों पर रॉकेट हमलों के जवाब में हवाई कार्रवाई का आदेश दिया. हमले में 17 ईरानी समर्थक आतंकवादी मारे गए.
(dw.com)
गुरुवार को अमेरिका ने इराक से सटी सीमा पर ईरान समर्थित मिलिशिया पर हवाई हमले किए. पेंटागन ने कहा है कि यह हवाई हमले इस महीने की शुरूआत में हुए रॉकेट हमले का बदला है. रॉकेट हमले में एक ठेकेदार की मौत हो गई थी, एक अमेरिकी सैनिक और गठबंधन सेना के अन्य जवान घायल हुए थे. पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी का कहना है कि हवाई हमले "राष्ट्रपति बाइडेन के आदेश पर किए गए" और इराक में अमेरिकी सैनिकों और सहयोगियों पर हाल में हुए रॉकेट हमलों की प्रतिक्रिया थी.
अमेरिका ने अभी तक हवाई हमले में मौतों पर टिप्पणी नहीं की है, लेकिन सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने दावा किया है कि इस हमले में 17 ईरानी समर्थित आतंकवादी मारे गए. किर्बी ने अपने बयान में कहा, "राष्ट्रपति जो बाइडेन के आदेश पर अमेरिकी सेना ने पूर्वी सीरिया में ईरानी समर्थित लड़ाकों द्वारा इस्तेमाल किए गए बुनियादी ढांचे पर हवाई हमले किए." किर्बी ने बताया कि यह हमले अमेरिका और सहयोगी देशों के लोगों पर इराक में हाल ही में किए गए हमलों के बदले के रूप में किए गए. उन्होंने कहा कि हमलों में ईरानी समर्थित सशस्त्र समूहों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सीमा नियंत्रण बिंदु को निशाना बनाया गया, जिसपर हिजबुल्लाह और सैय्यद अल-शुहादा का नियंत्रण है.
हाल के दिनों में इराक में अमेरिका और सहयोगी देशों के ठिकानों पर तीन रॉकेट हमले हुए. इरबिल में एक सैन्य परिसर को भी निशाना बनाया गया था, जिसमें गठबंधन बलों के साथ काम करने वाले एक नागरिक और एक विदेशी ठेकेदार की मौत हो गई थी.
अमेरिका-ईरान में बढ़ता तनाव
इराक में हमलों के पीछे ईरानी समर्थित आतंकवादी समूहों का हाथ बताया जाता है. इन हमलों ने बाइडेन प्रशासन के लिए नई चुनौती पेश किए, अमेरिका परमाणु कार्यक्रम पर तेहरान के साथ वार्ता फिर से शुरू करना चाहता है. बाइडेन प्रशासन का कहना है कि वह 2015 के परमाणु समझौते को बहाल करना चाहता है, जिससे पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका को बाहर कर लिया था. बाइडेन प्रशासन भी तेहरान को मध्य पूर्व की सुरक्षा के लिए एक सतत खतरे के रूप में देखता है.
अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा, "हम जानते हैं कि हम क्या लक्ष्य कर रहे हैं. हम आश्वस्त हैं कि इन हमलों ने कुछ शिया उग्रवादी समूहों द्वारा इस्तेमाल किए गए ठिकानों को निशाना बनाया."
वहीं किर्बी ने कहा कि अमेरिका ने अपने सहयोगियों से सलाह के बाद हमलों को अंजाम दिया. उन्होंने कहा, "हमलों से स्पष्ट संदेश जाएगा कि राष्ट्रपति बाइडेन अमेरिका और उसके सहयोगियों की सुरक्षा करेंगे." एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
-गगन सभरवाल
लंदन से, 25 फरवरी। यूके की एक अदालत ने भगोड़े हीरा व्यापारी नीरव मोदी के भारत प्रत्यर्पण को मंज़ूरी दे दी है.
गुरुवार को इस मामले में कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया और कहा कि मुंबई की आर्थर रोड जेल उनके लिए ठीक रहेगी. तब तक नीरव मोदी को कस्टडी में रखा जाएगा. कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका भी खारिज कर दी है.
कोरोना लॉकडाउन के कारण नीरव मोदी वीडियो लिंक के ज़रिए कोर्ट में उपस्थित हुए थे. नीरव मोदी काला जैकेट पहने हुए थे और उनकी दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी. वो बेहद गंभीरता के साथ जज के सामने फ़ैसला सुनते दिखे.
जस्टिस सैमुअल गूज़ी ने कहा कि नीरव मोदी पर जो आरोप हैं उसके जवाब उन्हें भारत में देने चाहिए.
जज ने कहा, "प्रथमदृष्टया ये मामला पैसों की धोखाधड़ी से जुड़ा हुआ है." कोर्ट ने भारतीय पक्ष की दलील को माना और कहा कि इस मामले में गवाहों को बहकाया गया है और सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई है.
जज ने कहा, "ऐसा नहीं लगता कि नीरव मोदी आत्महत्या करेंगे. कोर्ट को यकीन है कि अगर उन्हें भारत प्रत्यर्पित किया जाता है तो भी वो अपना पक्ष रख सकेंगे. ऐसा नहीं लगता कि उन्हें भारत प्रत्यर्पित किया जाए तो उन्हें न्याय नहीं मिलेगा."
भारत सरकार की दलील को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि जेल में उनकी सुरक्षा को लेकर कोर्ट आश्वस्त है.
कोर्ट ने कहा, "मुंबई के आर्थर रोड जेल का कमरा 12 (बैरक नंबर 12) उनके लिए ठीक है. ये एक बड़ा कमरा है जिसमें उन्हें एक बिस्तर, एक बाथरूम मिलेगा, कमरे में रोशनी भी आती है."
"जेलों में अधिक संख्या में कैदियों के होने की बात कही जाती है लेकिन आर्थर रोड जेल का बैरक नंबर 12 बीस फीट लंबा और 15 फीट चौड़ा है, इसमें पंखा लगा है और ट्यूबलाइटें भी हैं. यहां मच्छर न हों उसलिए सप्ताह में एक बार यहां दवा भी छिड़की जाती है."
जज ने कहा, "अगस्त 2020 में जेल के जो वीडियो कोर्ट में पेश किए गए थे उनमें देखा जा सकता है कि वहां सफाई की और शौच की अच्छी व्यवस्था है."
जज ने नीरव मोदी के मानसिक स्वास्थ्य की दलील को खारिज करते हुए कहा कि उनकी स्थिति में किसी भी व्यक्ति की मानसिक हालत ऐसी हो सकती है.
हालांकि कोर्ट ने कहा है कि इस आदेश के बाद भी नीरव मोदी चाहें तो यूके की कोर्ट में फिर से अपील कर सकते हैं. कोर्ट का कहना है कि उन पर लगे आरोपों की सुनवाई भारत में होनी चाहिए.
भारत सरकार के वकील क्राउन प्रोज़िक्यूशन सर्विस ने कहा, "नीरव मोदी के ख़िलाफ़ मामला ये बताता है कि ब्रितानी अधिकारियों और भारतीय अधिकारियों के बीच बढ़िया सहयोग है और दोनों पक्ष चाहते हैं कि दूसरे किसी देश भाग कर आरोपी न्याय से बच नहीं सकता."
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने आज एक प्रेस वार्ता में कहा भारत सरकार ब्रितानी अधिकारियों से चर्चा करेगी ताकि नीरव मोदी को जल्द भारत लाया जा सके.
उन्होंने कहा, यूके की वेस्टमिनस्टर कोर्ट ने कहा है कि नीरव मोदी को भारत प्रत्यर्पित किया जाए ताकि उन पर यहां मुकदमा चलाया जा सके. उन्होंने कहा, "कोर्ट ने नीरव मोदी की मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने की दलील को खारिज किया और ये भी माना कि वो सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं और सबूत नष्ट कर सकते हैं."
क्या है मामला?
नीरव मोदी के प्रत्यर्पण को लेकर लंदन की अदालत में साल 2019 से मामला चल रहा है.
बैंक धोखाधड़ी के मामले में नीरव के चाचा मेहुल चौकसी पर भी आरोप लगाए गए हैं. पीएनबी बैंक घोटाले के सामने आने से पहले दोनों ही जनवरी में देश छोड़कर भाग गए थे. मेहुल चौकसी एंटीगुआ और बारबाडोस की नागरिकता ले चुके हैं.
नीरव मोदी और मेहुल चौकसी खुद पर लगे आरोपों से इनकार करते हैं.
पंजाब नेशनल बैंक से 14000 करोड़ रुपये के ग़बन के संबंध में सीबीआई और ईडी ने अलग-अलग मामले दर्ज किए हैं. सीबीआई ने नीरव मोदी के ख़िलाफ़ जो दो मामले दर्ज किए हैं उनमें नीरव मोदी की बहन पूर्वी मेहता और उनके पति मयंक मेहता को अभियुक्त नहीं बनाया गया है.
लेकिन प्रवर्तन निदेशालय ने दोनों को अभियुक्त बनाया है क्योंकि आरोप है कि इन दोनों के ज़रिये ही नीरव मोदी ने 12000 करोड़ रुपये तक की रक़म को ठिकाने लगाने में कामयाबी हासिल की है. मामले के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय ने जो आरोप पत्र दायर किया उसमें मयंक मेहता को भी अभियुक्त बनाया गया है.
इससे पहले लंदन की वेंडज़वर्थ जेल में नीरव मोदी की बहन और बहनोई की ओर से सरकारी गवाह बनने की इच्छा ज़ाहिर की थी. पूर्वी मेहता, हीरा कारोबारी नीरव मोदी की छोटी बहन हैं और वो बेल्जियम की नागरिक हैं जबकि उनके पति मयंक के पास ब्रितानी नागरिकता है.
पूर्वी और मयंक के वकील अमित देसाई के अनुसार दंपत्ति ने ख़ुद को नीरव मोदी की करतूतों से अलग कर लिया है. उनकी दलील है कि दोनों की निजी ज़िंदगी पर नीरव मोदी की करतूतों की वजह से बुरा असर पड़ा है. (bbc.com/hindi)
उमर दराज़ नंगियाना
लाहौर, 25 फरवरी। पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी 'पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़' (पीटीआई) के नेशनल असेंबली के सदस्य और प्रसिद्ध टीवी एंकर आमिर लियाक़त ने अपने ट्विटर अकाउंट से एक हिंदू देवी की तस्वीर पोस्ट की थी. इस ट्वीट को उन्होंने हिंदू समुदाय से माफ़ी मांगते हुए डिलीट कर दिया है.
आमिर लियाक़त हुसैन ने इस तस्वीर का इस्तेमाल मरियम नवाज़ की आलोचना करने के लिए किया था.
आमिर लियाक़त ने, ज़ाहिरी तौर पर हिंदू देवी 'काली' की तस्वीर 'पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़)' की उपाध्यक्ष मरियम नवाज़ के टीवी में चल रहे बयान के फोटो के साथ, हैशटैग 'दूसरा रूप' लिख कर ट्विटर पर पोस्ट की थी.
मरियम नवाज़ ने बयान में लिखा था कि "ये अब मेरा दूसरा रूप देखेंगे."
बाद में आमिर लियाक़त ने ट्वीट को डिलीट करते हुए कहा है, "मैं हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत करने के लिए माफ़ी चाहता हूँ. मेरा उद्देश्य बिल्कुल भी ऐसा नहीं था. ट्वीट को हटा दिया गया है. मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ. यही मेरे धर्म की शिक्षा है. एक बार फिर माफ़ी चाहता हूँ."
आमिर लियाक़त के ट्वीट की आलोचना
आमिर लियाक़त के इस ट्वीट की सोशल मीडिया पर आलोचना की गई, जहाँ अधिकांश यूज़र्स ने कहा कि उन्होंने हिंदू समुदाय के लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है. कुछ यूज़र्स ने पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ (पीटीआई) और प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से इस मामले में संज्ञान लेने का अनुरोध भी किया.
जबकि कुछ लोगों ने ख़ुद आमिर लियाक़त से, इस ट्वीट को हटाने के लिए कहा था. कई यूज़र्स ने यह भी सवाल उठाया, कि क्या पाकिस्तान का ईशनिंदा क़ानून इस पर लागू नहीं होता है?
बीबीसी ने इस बारे में आमिर लियाक़त हुसैन से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका.
आमिर लियाक़त धार्मिक विद्वान के तौर पर कई स्थानीय टीवी चैनलों पर प्रोग्राम भी करते रहते हैं.
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कपिल देव ने लिखा, कि "यह मौजूदा नेशनल असेंबली के एक सदस्य और पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ के सदस्य हैं, जो एक हिंदू देवी की तस्वीर को मुस्लिम लीग नवाज़ की नेता मरियम नवाज़ के ख़िलाफ़ सिर्फ़ राजनीतिक छींटाकशी के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं."
कपिल देव ने लिखा कि, "इस तरह से, ये दूसरे धर्म और अपने ही देश के 50 लाख हिंदू नागरिकों का सम्मान करते हैं. जिनमें उनकी पार्टी के हिंदू सदस्य और मतदाता भी शामिल हैं."
नीरज सुनील नाम के एक अन्य यूज़र ने लिखा है, "ये ईशनिंदा नहीं है, क्योंकि आप विशेषाधिकार प्राप्त हैं. यह एक प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान की तरफ़ से आ रहा है, जिन्हें धर्मों के बीच सहिष्णुता की बात करनी चाहिए."
आरती कुमारी, नाम की एक यूज़र ने लिखा है, "ऐसे कोई क़ानून नहीं होते हैं, जब बात हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की होती है. हम चाहते हैं कि यह (ट्वीट) तुरंत हटा दिया जाए और आमिर लियाक़त के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए."
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली वकील और क़ानूनी विशेषज्ञ राबिया बाजवा ने बीबीसी को बताया कि पाकिस्तान में लागू ईशनिंदा क़ानून में सभी धर्मों के लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए सज़ा शामिल हैं.
वो कहती हैं, "पाकिस्तान की दंड संहिता, 295A के अनुसार, अगर किसी भी धर्म से संबंधित व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत किया जाता है या उसकी धार्मिक मान्यताओं का उपहास किया जाता है, तो उस पर ईशनिंदा क़ानून के तहत क़ानूनी कार्रवाई की जा सकती है."
उन्होंने कहा कि इस तरह के आरोपों के मामले में मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज करानी पड़ती है, जिसके बाद क़ानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है.
हालाँकि, उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में अमली तौर पर ईशनिंदा क़ानून को सख़्ती से लागू किया जाना दो मामलों में देखा जा सकता है. वो कहती हैं, "अगर आरोप पैग़ंबर या क़ुरान की निंदा के बारे में है, तो उन्हें अधिक गंभीरता से लिया जाता है."
विरोध की चेतावनी
एक यूज़र, विनोद माहेश्वरी ने पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ के ट्विटर अकाउंट को टैग करते हुए चेतावनी दी कि ट्वीट को तुरंत हटा दिया जाए, "अन्यथा विरोध के लिए तैयार रहें."
ट्विटर पर आमिर लियाक़त के ट्वीट के बाद, इस पर की जाने वाली चर्चा में ज़्यादातर लोगों की राय थी कि उन्हें "किसी के धर्म का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए."
शुमाइला इस्माइल नाम की एक ट्विटर यूज़र ने आमिर लियाक़त के ट्वीट के नीचे लिखा, "किसी के ख़ुदा को बुरा मत कहो, कोई तुम्हारे ख़ुदा को बुरा नहीं कहेगा. आप ख़ुद को धार्मिक विद्वान कहते हैं, किसी के धर्म का मज़ाक उड़ाना कहाँ लिखा है?"
शहज़ाद अहमद नामक एक और यूज़र ने लिखा है, "सर, यह आपकी तरफ़ से बहुत ही शर्मनाक बयान है. हम अपने हिंदू भाइयों और बहनों के साथ एकजुटता में खड़े हैं, जिन्हें आपने बदनाम करने की कोशिश की है."
उन्होंने आगे लिखा है, "उम्मीद है, कि आप इसे जल्द ही हटा देंगे और उन लोगों से माफ़ी माँगेंगे, जिनका आपने मज़ाक उड़ाया है." (bbc.com/hindi)
ओक्लाहोमा, 25 फरवरी | अमेरिका के ओक्लाहोमा में एक व्यक्ति ने अपनी पड़ोसी महिला की हत्या कर दी। इतना ही नहीं उसने महिला का दिल काटकर निकाल लिया ताकि वह उसे आलू के साथ पका कर खा सके। ओक्लाहोमा स्टेट ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन के एक एजेंट ने जज को बताया कि लॉरेंस पॉल एंडरसन ने ओक्लाहोमा सिटी के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 40 मील की दूरी पर चिकशा में अपनी पड़ोसी एंड्रिया लिन ब्लैंकेनशिप की उसके ही घर में हत्या कर दी। इसके बाद उसने उसका दिल काटकर निकाल लिया, ताकि उसे आलू के साथ पकाकर अपने परिवार को खिलाकर राक्षसों को बाहर निकाल सके।
एंडरसन पर उसके अंकल लियोन पे और उनकी 4 साल की पोती कैओस येट्स की हत्या का भी आरोप है। उसने अपनी आंटी डेलसी पे को भी चाकू मारा था, लेकिन वह बच गई थीं।
घटनास्थल से अधिकारियों ने जब एंडरसन को पकड़ा, तब वह तकिए पर उलटी कर रहा था। बाद में उसने अधिकारियों को ब्लैंकेनशिप के बारे में बताया। उसे 20 साल की सजा मिल चुकी है, जो कम की गई और वह जनवरी में ही रिहा हुआ था। (आईएएनएस)
अक्सर लोग जब झुंझला जाते हैं तो उन्हें अपना गुस्सा निकालने के लिए किसी चीज का सहारा लेना पड़ता है. कभी वे दूसरों पर चिल्लाते हैं या फिर घर के सामान को तोड़ते हैं. ऐसे लोगों के लिए अब बाकायदा एक कमरा खुल गया है.
ब्राजील के लोगों के पास निराशा और तनाव से बाहर आने के लिए एक अनोखा कमरा मिल गया है. इस कमरे का नाम "रेज रूम" है. लोग इस कमरे में अपना गुस्सा और रोष निकालने के लिए आ सकते हैं. साओ पाउलो के पास इस गोदाम में रखे पुराने टीवी, कंप्यूटर और प्रिंटर पर हथौड़े चलाकर लोग अपनी भड़ास निकाल सकते हैं. मशीनों को तोड़कर और शीशों को चकनाचूर कर वे अपना तनाव कम कर सकते हैं.
42 साल के वांडरलेई रोड्रिग्स ने इस "क्रोध कमरे" को सिडाडे तिरादेंतेस इलाके में खोला है. वे बताते हैं कि उनके पास उचित संख्या में ग्राहक आते हैं, खासकर महामारी के दौरान अपना गुस्सा निकालने के लिए ग्राहक यहां आ रहे हैं. रोड्रिग्स के मुताबिक,"मुझे लगता है कि इसे इस इलाके में खोलने के लिए यह सबसे अच्छा मौका था. क्योंकि लोग बहुत तनाव और चिंता से गुजर रहे हैं."
"रेज रूम" में अगर कोई अपना गुस्सा निकालना चाहता है तो उसे करीब साढ़े चार डॉलर खर्च करने होंगे. कमरे में जाने के पहले व्यक्ति को सुरक्षात्मक सूट और हेलमेट पहनने पड़ते हैं. वे उन मुद्दों को दीवारों पर लिखते हैं जो उन्हें परेशान कर रहे हैं. उदाहरण के लिए "पूर्व प्रेमिका", "पूर्व पति", "भ्रष्टाचार" और "काम", ये शब्द उनके गुस्से का निशाना बनते हैं.
40 साल के एलेक्जेंडर डे कार्वाल्हो विज्ञापन के क्षेत्र में काम करते हैं और काम के लिए हर दिन घर से दो घंटे की ड्राइव करते हैं. वे कहते हैं महामारी के कारण वे स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं. वे बताते हैं, "यहां आकर अपना गुस्सा और कैद की हुई भावनाओं को बाहर निकाल देना अच्छा लगता है."
दो बेटियों की मां और बेरोजगार लुसियाना होलांडा कहती हैं कि वे अपनी निराशा "रेज रूम" में निकालना पसंद करती हैं. होलांडा कहती हैं, "तनाव से भरा होना, एक मां होने के साथ काम नहीं होना यह कुछ हद तक गुस्सा जाहिर करने का अच्छा तरीका है. मैं अपनी बेटियों या अन्य किसी व्यक्ति पर गुस्सा नहीं निकाल सकती. इसलिए मैं चीजें तोड़ना पसंद करती हूं."
एए/सीके (रॉयटर्स)
एक जर्मन अदालत ने अबु वला नाम के व्यक्ति को दस साल जेल की सजा सुनाई है. वला को जर्मनी में इस्लामिक स्टेट का नेता बताया जाता है, जो यहां से लोगों को आईएस के लिए भर्ती करने का काम करता था.
सरकारी वकीलों ने वला के लिए 11.5 साल के जेल की सजा मांगी थी, लेकिन अदालत ने उसे 10.5 साल कैद की सजा दी है. वला के अलावा इस्लामिक स्टेट के तीन और सदस्यों को भी सजा सुनाई गई है. अपना फैसला सुनाते हुए अदालत ने माना कि अबु वला आतंकी संगठन का सदस्य है और उसने आतंकवाद फैलाने में संगठन की मदद की है.
अदालत के कहा कि वला ने अपने साथियों के साथ मिल कर एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया था जिसके जरिए वे युवा लोगों को आतंकवादी बनने के लिए बढ़ावा देते थे. इनकी ज्यादातर गतिविधियां जर्मनी के लोवर सैक्सनी राज्य के रूर इलाके में होती थीं, यहां वे युवाओं को टारगेट करते, उनका ब्रेनवॉश कर के उन्हें इस्लामिक स्टेट की ट्रेनिंग वाले इलाकों में भेजते. वला के तीन दूसरे साथियों को चार से आठ साल की सजा मिली है.
गुरुद्वारे पर हमले कराने वाला अबु वला कौन है?
37 साल के अबु वला का जन्म इराक में हुआ. 2001 में वह जर्मनी आया और लोवर सैक्सनी के शहर हिल्डेसहाइम की एक मस्जिद में बतौर मौलवी काम करने लगा. धीरे धीरे यह मस्जिद इस्लामी कट्टरपंथियों को आकर्षित करने लगी. 2017 में जर्मन सरकार ने इस मस्जिद को बंद करवा दिया. कट्टरपंथ फैलाने के लिए वला ने कई वीडियो भी बनाए जिनमें उसका चेहरा नहीं दिखता था. इन वीडियो में वह हमेशा कैमरे की ओर पीठ किए दिखता था.
मस्जिद पर लंबी जांच के बाद 2016 में वला और चार दूसरे लोगों को गिरफ्तार किया गया. 2017 में मुकदमा शुरू हुआ, जिसका फैसला अब आया है. वला पर इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने और आतंकी संगठन का सदस्य होने का आरोप लगा. जांच के दौरान पता चला कि उसने जर्मनी से आठ लोगों को आतंकी बना कर सीरिया और इराक में लड़ने के लिए तैयार किया.
2015 में उसने दो जुड़वा भाइयों को इराक भेजा जहां उन्होंने आत्मघाती हमला किया. इसके अलावा वला को उस युवा को भी आतंकवादी बनाने के लिए जिम्मेदार बताया जाता है, जिसने 2019 में जर्मनी में एक गुरुद्वारे पर हमला किया था. इस गुरुद्वारे पर कुल तीन लोगों ने हमला किया था. इतना ही नहीं, 2016 में बर्लिन के क्रिसमस बाजार में जो आतंकी हमला हुआ था, उसके तार भी वला से जुड़े हैं. इस बाजार में जो व्यक्ति ट्रक ले कर घुसा, वह भी वला के संपर्क में था. इस हमले में 12 लोगों की जान गई थी.
आईबी/एनआर (डीपीए, एएफपी)
सैन फ्रांसिस्को, 24 फरवरी | ट्विटर के सीईओ जैक डोरसे की क्रेडिट और पेमेंट्स फर्म स्क्वायर ने बिटकॉइन में 170 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। यह क्रिप्टोकरंसी में इसके पिछले निवेश से 3 गुना ज्यादा है। मंगलवार को कंपनी ने अपनी तिमाही आय की रिपोर्ट में बताया कि उसने 51,236 की औसत कीमत पर लगभग 3,318 बिटकॉइन खरीदे हैं। कंपनी ने कहा, "बिटकॉइन में स्कवायर की 50 मिलियन डॉलर की खरीद को जोड़ें तो यह 31 दिसंबर, 2020 तक के स्क्वायर फर्म के कुल कैश का 5 फीसदी है।" कंपनी ने यह घोषणा ऐसे समय में की है, जब पिछले कुछ महीनों से बिटकॉइन की कीमतें रिकॉर्ड तेजी से बढ़ी हैं। अभी एक बिटकॉइन की कीमत 50,000 डॉलर से कुछ ही कम है।
कंपनी ने आगे कहा, "कंपनी के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए स्क्वायर का मानना है कि क्रिप्टोकरंसी आर्थिक सशक्तिकरण का एक साधन है, जो लोगों को वैश्विक मौद्रिक प्रणाली में भाग लेने और उन्हें अपनी वित्तीय भविष्य सुरक्षित करने का मौका देता है।"
बता दें कि इस महीने की शुरूआत में ही डोरसे और रैपर जे-जेड ने भारत और अफ्रीका में बिटकॉइन डेवलपमेंट के लिए 500 बिटकॉइन (लगभग 174 करोड़ रुपये) का निवेश करने की घोषणा की थी। (आईएएनएस)
फेसबुक ने पिछले दिनों ऑस्ट्रेलिया के सभी न्यूज पेजों को बंद कर दिया था. अब ऑस्ट्रेलिया की सरकार के साथ नया करार होने के बाद उसने इन पेजों को रिस्टोर करने का वादा किया है.
ऑस्ट्रेलिया सरकार और सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक के बीच चल रही रस्साकशी का हल निकल आया है. देश में संचार मंत्री पॉल फ्लेचर ने ऑस्ट्रेलिया के न्यूज चैनल एबीसी न्यूज से कहा, "सरकार को फेसबुक ने बताया है कि वह ऑस्ट्रेलिया के (डिलीट किए हुए) न्यूज पेजों को आने वाले दिनों में बहाल करेगा."
ऑस्ट्रेलिया में लाए जा रहे नए मीडिया कानून के तहत टेक कंपनियों को न्यूज कॉन्टेंट का इस्तेमाल करने के लिए मीडिया कंपनियों को रकम चुकानी पड़ती. इस कानून से नाराज फेसबुक ने अपनी वेबसाइट से न्यूज के पेज ही हटा दिए. देश में इस पर बवाल उठने के बाद सरकार और फेसबुक के बीच अब नया करार हुआ है. सरकार ने कानून को वापस लेने की फेसबुक की मांग मान ली है.
सरकार के साथ समझौता
फेसबुक ऑस्ट्रेलिया के एमडी विल ईस्टन ने इस बारे में कहा, "सरकार ने जो बदलाव किए हैं उनके बाद हम लोगों के हितों में पत्रकारिता में फिर से निवेश कर सकते हैं और आने वाले दिनों में ऑस्ट्रेलिया में न्यूज वाले पेजों को बहाल कर सकते हैं." फेसबुक के 'ग्लोबल न्यूज पार्टनरशिप्स' के वीपी कैम्पबैल ब्राउन ने एक ब्लॉग पोस्ट में इस बात की पुष्टि की. उन्होंने लिखा, "सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है कि यह बात हम ही तय करेंगे कि फेसबुक पर न्यूज चलेगी या नहीं ताकि हमें जबरन कोई भुगतान ना करना पड़े."
सरकार ने जो कानून बनाया था अगर वह अमल में आता तो फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों के लिए मीडिया कंपनियों के साथ बातचीत करना अनिवार्य हो जाता. इस वक्त फेसबुक और गूगल अपने एल्गोरिदम से तय करते हैं कि किस यूजर को कौन सी खबर दिखाई जाएगी. यह कानून उनके एकाधिकार को खत्म करता. लेकिन एक हफ्ते तक चली बहस के बाद सरकार को इन बड़ी कंपनियों के आगे घुटने टेकने पड़े है.
सोशल मीडिया की ताकत
इस कानून को दिसंबर में ही संसद से मंजूरी मिल गई थी. फरवरी में जैसे ही इसे अमल में लाया गया, फेसबुक ने तीखी प्रतिक्रिया दी. जिस तरह से फेसबुक ने न्यूज को ब्लैकआउट किया, उसके कारण ऑस्ट्रेलिया के बाहर से भी लोग ऑस्ट्रेलिया से जुड़ी कोई खबर ना देख सकते थे, ना ही शेयर कर सकते थे.
साथ ही अब न्यूज पेजों को बंद करने के लिए भी फेसबुक या गूगल पर कोई जुर्माना नहीं लग सकेगा. विल ईस्टन ने कहा, "हमें इस बात की खुशी है कि हम सरकार के साथ एक समझौते पर पहुंच सके हैं और सरकार ने हमारे साथ जो विचार विमर्श किया, उसकी हम सराहना करते हैं."
आईबी/एमजे (एएफपी, डीपीए)
अहमद आर्बरी की पिछले साल उस वक्त गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह जॉगिंग कर रहे थे. अब उनकी मां ने मुकदमा दायर किया है, जिसमें पुलिस अफसरों और अभियोजकों के नाम भी शामिल हैं.
अहमद आर्बरी की बरसी के मौके पर उनकी मां वांडा कूपर ने मंगलवार को संघीय नागरिक अधिकार मुकदमा दायर किया. आर्बरी अफ्रीकी अमेरिकी थे, जिनकी हत्या दौड़ते वक्त गोली मारकर की गई थी. वांडा कूपर अपने मुकदमे में दस लाख अमेरिकी डॉलर मुआवजे की मांग कर रही हैं. हत्या का आरोप तीन गोरे लोगों पर है. इस मुकदमे में उन पुलिस अफसर और अन्य अधिकारियों के भी नाम हैं जिनपर कूपर ने हत्या को छिपाने की कोशिश का आरोप लगाया है. आर्बरी की मौत से अमेरिका स्तब्ध हो गया था और ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन को बल मिला था. मुकदमे में आरोप लगाया गया कि हत्या नस्लीय रूप से प्रेरित थी और आरोपियों ने आर्बरी को कानून और उसके अधिकारों से वंचित किया.
मामले में क्या हुआ?
23 फरवरी 2020 को 25 साल के आर्बरी जॉर्जिया के ब्रूंसविक में जॉगिंग करने के लिए निकले थे, उसी दौरान एक पिता और पुत्र ने उनका पीछा किया और गोली मार दी. आर्बरी उस वक्त निहत्थे थे. स्थानीय पुलिस ने उनकी हत्या के लगभग दो महीने तक कोई गिरफ्तारी नहीं की. इस घटना का वीडियो आने के बाद इस मामले पर देशभर में आक्रोश पैदा हुआ था. इसके बाद जांच बैठाई गई यह जानने के लिए कि आखिर क्या हुआ था. जिस व्यक्ति ने वीडियो बनाया था उसे भी बाद में गिरफ्तार कर लिया गया और केस में उसका भी नाम शामिल कर लिया गया. आरोपियों पर हत्या का आरोप लगाया गया था और सभी आरोपी फिलहाल मुकदमे की सुनवाई के इंतजार में हैं.
आर्बरी की मां द्वारा दायर नए मुकदमे में कहा गया है कि आरोपियों ने उनके बेटे की हत्या इसलिए कर दी क्योंकि उन्हें लगता था कि इलाके में पहले हुई चोरी के लिए अहमद जिम्मेदार है. मुकदमे में आरोप लगाया कि आरोपियों ने आर्बरी को करीब से शॉटगन से गोली मारी और उसकी हत्या की. मंगलवार को आर्बरी की बरसी के मौके पर लोगों ने मोमबत्ती जलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी आर्बरी को याद किया और देश में नस्लवाद के मुद्दे को संबोधित करने की कसम खाई. उन्होंने कहा, "एक अश्वेत को अपने जीवन के लिए बिना डरे जॉगिंग करने के लिए सक्षम होना चाहिए. आज हम अहमद आर्बरी के जीवन को याद करते हैं और इस देश को हर रंग के लोगों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए खुद को समर्पित करते हैं."
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
वाशिंगटन, 23 फरवरी | अमेरिका में कोविड-19 से मरे लोगों की संख्या 500,000 के पार पहुंचने के बाद मृतकों के प्रति सम्मान दर्शाते हुए इनकी याद में व्हाइट हाउस साउथ पोर्टिको में मोमबत्तियां जलाई गइ। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि "इस वायरस से पृथ्वी पर किसी अन्य देश की तुलना में अधिक लोगों की जान गई है।" उन्होंने अपनी पत्नी जिल बाइडेन, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और हैरिस के पति डगलस एमहॉफ के साथ कुछ क्षण के लिए मौन रखा।
राष्ट्रपति ने कहा, "लेकिन जैसा कि हम अमेरिका में इस बड़े पैमाने पर हुई मौतों को स्वीकार करते हैं, हम प्रत्येक व्यक्ति और उनके द्वारा जिए गए जीवन को याद करते हैं।"
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों ने दर्शाया कि कोविड-19 से अब तक 500,176 अमेरिकी जान गंवा चुके हैं।
बाइडेन ने मौन रखने से पहले कहा, "हम हर उस व्यक्ति को याद करेंगे, जिसे हमने खोया है, उन प्रियजनों को जिन्हें वे अपने पीछे छोड़ गए हैं, हम इससे उबर जाएंगे, मैं वादा करता हूं।" (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 23 फरवरी | पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अमेरिका और तालिबान फरवरी 2020 में दोनों (अमेरिका और तालिबान) के बीच हुए दोहा समझौते का पालन करते रहेंगे। पाकिस्तान की न्यूज एजेंसी डॉन के मुताबिक, कुरैशी ने कहा कि उन्हें यह भी उम्मीद है कि अफगानिस्तान संघर्ष के राजनीतिक समाधान को प्राप्त करने के लिए अमेरिका -तालिबान समझौते के कार्यान्वयन में प्रगति बनी हुई है।
टोलो न्यूज के अनुसार, उन्होंने कहा कि वह इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति और स्थिरता हासिल करने के लिए सामूहिक प्रयास फलीभूत होंगे।
दोहा समझौता के तहत 1 मई तक अफगानिस्तान से सभी अंतर्राष्ट्रीय बलों की वापसी के लिए कहा गया है। इस बीच, इसने तालिबान से अल-कायदा और अन्य आतंकवादी समूहों के साथ अपने संबंधों को खत्म करने के लिए कहा है।
यह सोमवार को दोहा में अफगान रिपब्लिक और तालिबान के शांति वातार्कारों के बीच एक बैठक आयोजित होने के बाद आया है।
तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने एक ट्वीट में कहा कि दोनों पक्षों ने वार्ता के एजेंडे पर अपनी बैठकों को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
अफगान और अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि तालिबान को हिंसा को कम करना चाहिए और वार्ता की मेज पर लौटना चाहिए। (आईएएनएस)
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हार, हार की हताशा में व्हाइट हाउस शांतिपूर्ण ढंग से न छोड़ना, जाते जाते कैपिटल हिल हिंसा के आरोप और दूसरा महाभियोग... पिछले करीब तीन महीनों में डोनाल्ड ट्रंप की इमेज को न सिर्फ अमेरिका बल्कि दुनिया भर में काफी झटका लगा है. इन तमाम निगेटिव खबरों के बीच राहत की बात यही रही कि सीनेट ने उनके खिलाफ आरोप को तवज्जो नहीं दी और महाभियोग नाकाम हो गया. ऐसे माहौल में ट्रंप इस हफ्ते कंज़र्वेटिव पॉलिटिकल एक्शन कॉन्फ्रेंस में स्पीच देने वाले हैं, तो सबकी नज़रें उन पर हैं.
खबरों की मानें तो ट्रंप के उपराष्ट्रपति रहे माइक पेंस ने इस कार्यक्रम में भाषण देने से मना कर दिया है. वहीं, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में सूत्रों के हवाले से ये खबरें आ रही हैं कि ट्रंप अपने स्पीच में क्या कहने की मंशा रखेंगे. खुद को 2024 के लिए रिपब्लिक पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने के अलावा ट्रंप पार्टी के भविष्य को लेकर भी कुछ अहम बातें कर सकते हैं, ऐसा माना जा रहा है. यह इसलिए भी अहम इवेंट होगा क्योंकि पिछले दिनों ट्रंप अपनी ही पार्टी के कुछ विरोधी नेताओं पर नाराज़गी का इज़हार कर चुके हैं.
लेकिन इन अटकलों से अलग ट्रंप के प्रवक्ता जैसन मिलर के हवाले से खबरें कह रही हैं कि ये सब मनगढ़ंत बातें हैं, उनका मकसद सबसे पहले 2022 में सीनेट और प्रतिनिधि सभा में जीत हासिल करने की तरफ है. कहा गया है कि अमेरिका फर्स्ट पॉलिसी के चक्कर में दुनिया के कुछ देशों और महत्वपूर्ण संस्थाओं से अमेरिका को अलग कर देने वाले ट्रंप अपने मेक अमेरिका ग्रेट अगेन एजेंडे को लेकर नए सिरे से आक्रामक तेवर दिखा सकते हैं.
एक्सिओज़ ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि ट्रंप अपने स्पीच में स्पष्ट रूप से तेवर दिखा सकते हैं कि भले ही मेरे पास ट्विटर या व्हाइट हाउस न हो, लेकिन अब भी मैं ही शहंशाह हूं. इसी रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप के सलाहकार उनके लिए आगे की रणनीति तैयार कर रहे हैं और 2022 मिडटर्म की तैयारी ज़ोरों पर है. यह भी कहा गया है कि ट्रंप अपने समर्थक कैंडिडेटों के लिए अच्छा खासा पैसा लुटाने का भरोसा भी देने के मूड में हैं.
ट्रंप के करीबियों के हवाले से कहा गया है कि इस स्पीच में साफ तौर पर शक्ति प्रदर्शन होगा और यह बताया जाएगा कि रिपब्लिकन पार्टी का मतलब ट्रंप पार्टी ही है. इससे पहले कुछ खबरों में कहा गया था कि ट्रंप को सलाह दी गई है कि पार्टी के वोटर पार्टी के भीतर खुले झगड़े की अपेक्षा नहीं कर रहे हैं. इसलिए सलाहकारों ने कहा है कि ट्रंप इस मंच से मौजूदा राष्ट्रपति बाइडेन और अन्य डेमोक्रेट नेताओं पर हमला बोलें, न कि अपनी ही पार्टी के नामों को उछालें.
यह भी खास बात है कि महाभियोग से बचे ट्रंप के खिलाफ सिविल और क्रिमिनल आरोपों की जांच चल रही है और पद जाने के बाद उनकी इससे बचना मुश्किल कहा जा रहा है. ऐसे में, ट्रंप के तेवर क्या रंग लाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन यहां एक सवाल यह भी है कि रिपब्लिकन पार्टी के वोटरों के बीच अन्य नेताओ की तुलना में ट्रंप अब भी लोकप्रिय हैं? देखिए इस सवाल का जवाब कैसे तय करता है कि ट्रंप के स्पीच की अहमियत क्या है.
ट्रंप की पकड़ को लेकर रिपब्लिकन समर्थकों के बीच एक सर्वे यूएसए टुडे ने बीते रविवार को प्रकाशित किया, जिसके मुताबिक ट्रंप के 46% वोटरों ने माना कि ट्रंप नई पार्टी बनाएं तो वो उनके साथ होंगे, जबकि 42% ने कहा कि महाभियोग के बाद वो ट्रंप के और भी मज़बूत समर्थक हुए. इस सर्वे के मुताबिक ट्रंप के 58% समर्थक यही विश्वास करते हैं कि कैपिटल हिल हिंसा के लिए ट्रंप कतई ज़िम्मेदार नहीं थे, यह उनके खिलाफ एक साज़िश थी. साफ है कि रिपब्लिकन पार्टी के लिए ट्रंप का पहला पोस्ट व्हाइट हाउस भाषण कितना अहम होगा.
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था ने अंडमान के समुद्र में एक नाव में फंसे हुए भूखे-प्यासे रोहिंग्या शरणार्थियों को तुरंत बचाने के लिए कहा है. आशंका जताई जा रही है कि नाव पर सवार लोगों में से कुछ की मौत भी हो चुकी है.
यूएनएचसीआर का कहना है कि नाव दक्षिणी बांग्लादेश से लगभग 10 दिनों पहले निकली थी लेकिन रास्ते में उसका इंजन खराब हो गया. भारतीय कोस्ट गार्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि नाव का अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास एक इलाके में पता लगा लिया गया है. नाव में कुल कितने लोग हैं इसके बारे में आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इसमें कम से कम 90 लोग हैं.
यूएनएचसीआर ने एक बयान में कहा, "उन लोगों की जान बचाने और त्रासदी को और बढ़ने से रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने की जरूरत है." संस्था ने कहा है कि जो भी देश इन फंसे हुए शरणार्थियों को बचाने में मदद करेगा संस्था उसे समर्थन देगी. रोहिंग्या संकट की जानकारी रखने वाले समूह 'द अराकान प्रोजेक्ट' के निदेशक क्रिस लेवा के मुताबिक नाव पर कम से कम आठ लोगों की मौत हो चुकी है.
लेवा का कहना है कि नाव के पास स्थित भारतीय नौसेना के जहाजों ने नाव में फंसे शरणार्थियों को थोड़ा खानी और पानी दिया था, लेकिन इसके आगे उनका क्या होगा यह कहा नहीं जा सकता. रोहिंग्याओं से ही जुड़ी एक और संस्था 'रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव' का कहना है कि नाव पर सवार लोगों में 65 महिलाएं और लड़कियां, 20 पुरुष और दो साल से कम उम्र के पांच बच्चे हैं.
एक बार फिर संकट में रोहिंग्या शरणार्थी
भारतीय नौसेना के एक प्रवक्ता ने स्थिति के बारे में जानकारी नहीं दी लेकिन कहा कि बाद में एक बयान जारी किया जाएगा. यूएनएचसीआर के मुताबिक नाव बांग्लादेश के तटीय जिले कॉक्स बाजार से निकली थी जहां म्यांमार से अपनी जान बचा कार भागे करीब 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में बुरे हालात में रह रहे हैं. बांग्लादेश में अधिकारियों का कहना है कि उन्हें शिविरों से किसी भी नाव के निकलने की जानकारी नहीं है.
कॉक्स बाजार के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रफीकुल इस्लाम ने बताया, "अगर हमारे पास इसकी जानकारी होती तो हमने उन्हें रोक लिया होता." अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ऐमनेस्टी ने एक बयान में कहा कि सरकारों द्वारा समुद्र में फंसे रोहिंग्या लोगों की मदद करने से मना कर देने की वजह से पहले ही कई जानें जा चुकी हैं. ऐमनेस्टी के दक्षिण एशिया कैम्पेनर साद हम्मादी ने कहा, "उन शर्मनाक घटनाओं को दोहराया नहीं जाना चाहिए. बांग्लादेश में सालों लंबी अनिश्चय की स्थिति और अब म्यांमार में हाल ही में हुए तख्तापलट की वजह से रोहिंग्या लोगों को लगता है कि उनके पास इस तरह की जोखिम भरी यात्राएं करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है."
सीके/एए (रॉयटर्स)
कनाडा के सांसदों ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुस्लिमों के साथ बीजिंग के रवैये को नरसंहार के रूप में चिह्नित करने के लिए सोमवार को एक प्रस्ताव पर मतदान किया. जिसे चीन ने "दुर्भावनापूर्ण उकसावा" बताया है.
चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों को जबरन कैंपों में रखने का आरोप लगता आया है और उसके "सुधार केंद्रों" की दुनिया भर में आलोचना होती रही है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन कैंपों में उइगुरों और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों के दस लाख से अधिक सदस्यों को जबरन रखा गया है. शिनजियांग में मुस्लिम आबादी को चीनी अधिकारियों के हाथों लंबे समय से प्रताड़ित किया जाता रहा है. सोमवार को कनाडा की संसद में उइगुर मुसलमानों के साथ चीन के बर्ताव को लेकर एक प्रस्ताव पेश किया गया. इस प्रस्ताव का नाम चीन में उइगुरों का नरसंहार दिया गया था, जिसे हाउस ऑफ कॉमन्स में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया.
मंत्रियों ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से आधिकारिक तौर पर उसे यह घोषित करने की मांग की. साथ ही प्रस्ताव में कहा गया कि अगर "नरसंहार" जारी रहता है तो 2022 बीजिंग विंटर ओलंपिक का आयोजन कहीं और कराया जाए.
चीन का पलटवार
पिछले साल अमेरिका ने उइगुर मानवाधिकर कानून बनाया था. इस कानून के मुताबिक अमेरिकी प्रशासन को उन चीनी अधिकारियों पर "कार्रवाई" का प्रावधान है जो उइगरों और अन्य अल्पसंख्यकों की "मनमानी हिरासत, यातना और उत्पीड़न" के लिए जिम्मेदार हैं. शुक्रवार को ही ट्रूडो ने कहा था शिनजियांग से उत्पीड़न की महत्वपूर्ण रिपोर्टें बाहर आ रही हैं. मंगलवार को बीजिंग ने पलटवार करते हुए कनाडा की संसद में पारित प्रस्ताव को "शर्मनाक कृत्य" बताया है. ओटावा में चीनी दूतावास ने एक बयान में कहा, "शिनजियांग से जुड़ा प्रस्ताव पारित कर चीन के विकास को रोकने की कनाडा की कोशिश सफल नहीं होगी." दूतावास ने "शिनजियांग पर राजनीत" करने का आरोप कनाडा के सांसदों पर लगाया है और उन्हें "पाखंडी और बेशर्म" बताया है.
कई उइगुर मुसलमान चीन से भाग कर विदेशों में जाकर बस चुके हैं. कैंप में रखे जाने वाले लोगों का कहना है कि वहां विचारों को बदलने के लिए कठिन प्रशिक्षण दिया जाता है, साथ ही मंदारिन भाषा के कोर्स कराए जाते हैं. अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन भी पिछले दिनों कह चुके हैं कि चीन में अल्पसंख्यकों के साथ किस तरह का बर्ताव किया जा रहा है, यह सभी जानते हैं. साथ ही उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वह मानवाधिकारों का उल्लंघन बंद नहीं करता है तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
वॉशिंगटन, 23 फरवरी| दुनियाभर में कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 11.17 करोड़ के पार पहुंच चुकी है, जबकि 24.7 लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी दी है। यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने मंगलवार को अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विकमामलों और मौतों का आंकड़ा क्रमश: 111,705,909 और 2,473,742 है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक 28,188,296 मामलों और 500,236 मौतों के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है। वहीं, कोरोना के 11,005,850 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है।
सीएसएसई के आंकड़ों ने दर्शाया कि कोरोना के 10 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (10,195,160), ब्रिटेन (4,138,233), रूस (4,130,447), फ्रांस (3,669,354), स्पेन (3,153,971), इटली (2,818,863), तुर्की (2,646,526), जर्मनी (2,399,499), कोलंबिया (2,229,663), अर्जेटीना (2,069,751), मेक्सिको (2,043,632), पोलैंड (1,642,658), ईरान (1,582,275), दक्षिण अफ्रीका (1,504,588), यूक्रेन (1,354,545), इंडोनेशिया (1,288,833), पेरू (1,283,309), चेक रिपब्लिक (1,157,180) और नीदरलैंड (1,075,425) हैं।
वर्तमान में 247,143 मौतों के साथ मौतों के मामले में ब्राजील दूसरे स्थान पर है, इसके बाद तीसरे स्थान पर मेक्सिको (180,536) और चौथे पर भारत (156,385) है।
इस बीच, 20,000 से ज्यादा मौतों वाले देश ब्रिटेन (120,988), इटली (95,992), फ्रांस (84,764), रूस (82,255), जर्मनी (68,079), स्पेन (67,636), ईरान (59,572), कोलंबिया (58,974), अर्जेंटीना (51,359), दक्षिण अफ्रीका (49,150), पेरू (45,097), पोलैंड (42,188), इंडोनेशिया (34,691), तुर्की (28,138), यूक्रेन (26,531), बेल्जियम (21,923) और कनाडा (21,720) हैं। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 23 फरवरी| राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा कैबिनेट के शीर्ष पद के लिए नीरा टंडन को नामित करते ही उनके समर्थन और विरोध में लोग लामबंद होने लगे हैं। बाइडेन के लिए प्रचार अभियान में सक्रिय रहे साउथ एशियंस फॉर बाइडेन ग्रुप ने तो सोमवार को समुदाय के सदस्यों से कहा कि वे प्रमुख सीनेटरों से संपर्क करें, ताकि इस पद के लिए टंडन के नाम की पुष्टि की जा सके। संगठन की राष्ट्रीय निदेशक नेहा दीवान ने कहा कि पूरा समुदाय टंडन के लिए खड़ा है।
टंडन का नाम ऑफिस ऑफ मैनेजमेंट एंड बजट (ओएमबी) के डायरेक्टर पद के लिए नामित किया गया है। यदि सीनेट नीरा के नाम की पुष्टि करती है, तो वह अमेरिकी कैबिनेट में शामिल होने वाली दूसरी भारतीय अमेरिकी होंगी। इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन में निक्की हेली को संयुक्त राष्ट्र के लिए कैबिनेट रैंक वाला यूएस परमानेंट रिप्रजेंटेटिव का पद दिया गया था।
ओएमबी की डायरेक्टर का पद बहुत शक्तिशाली कैबिनेट पद होता है जो 5 ट्रिलियन डॉलर के अमेरिकी बजट का विभिन्न विभागों के लिए आवंटन का निर्णय करता है।
नीरा टंडन का नाम सामने आने के बाद डेमोक्रेट सीनेटर जो मैन्चिन ने कहा कि वह टंडन को वोट नहीं देंगे। मैन्चिन रिपब्लिकन राज्य वेस्ट वर्जीनिया से चुने गए हैं और वह टीवी पर एक इंटरव्यू में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से ही भिड़ गए थे। 50-50 से विभाजित सीनेट टंडन के नाम की पुष्टि को लेकर एक वोट का नुकसान उठाने की भी स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में डेमोक्रेटिव नेतृत्व को महाभियोग ट्रायल में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप को दोषी ठहराने वाले 7 रिपब्लिकन से उम्मीद है।
ऐसे में साउथ एशियंस फॉर बाइडेन ग्रुप ने अपने समुदाय के लोगों से आग्रह किया है कि वे रिपब्लिकन सीनेटर्स से आग्रह करें कि वे टंडन को वोट दें। हालांकि बाइडेन के प्रवक्ता जेन साकी ने सोमवार को कहा कि, "हम उनके नामांकन को लेकर ज्यादा से ज्यादा समर्थन पाने के लिए काम करेंगे।"
हालांकि टंडन के लिए समर्थन जुटाने की इस कवायद के उलट डेमोक्रेटिक पार्टी की लेफ्ट विंग रूट्स एक्शन ने टंडन को नियो-लिबरल स्टैबलिशमेंट की प्रमुख अप्रगतिशील आवाज बताते हुए उनके खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उनके खिलाफ ढेरों ट्वीट्स किए जा रहे हैं।
दरअसल 2016 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनावी मैदान में उतरी हिलेरी क्लिंटन से टंडन के करीबी संबंध रहे हैं, वो उनके कैंपेन की सलाहकार भी थीं। तब उन्होंने वामपंथी सीनेटर बर्नी सैंडर्स के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी कर दी थी। ऐसे में इस मुश्किल वक्त में बर्नी उनका कितना साथ देते हैं, यह देखने वाली बात होगी। (आईएएनएस)
अमेरिका में कोविड-19 से मौतों का आंकड़ा पांच लाख पार होने पर राष्ट्रपति जो बाइडन ने देश को संबोधित किया. दुनिया में कोरोना से सबसे ज़्यादा मौतें अमेरिका में ही हुई हैं.
राष्ट्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति बाइडन ने कहा, “एक देश के रूप में हम ऐसे क्रूर भाग्य को स्वीकार नहीं कर सकते. हमें दुख की भावना को सुन्न नहीं होने देना है.”
व्हाइट हाउस के बाहर मोमबत्तियां जलाकर मृत लोगों को श्रद्धांजलि दी गई, साथ ही राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति ने अपने-अपने जीवन साथियों के साथ कुछ देर का मौन रखा.
अब तक 28.1 मीलियन से ज़्यादा अमेरिकी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं, जो एक और वैश्विक रिकॉर्ड है.
राष्ट्रपति बाइडन ने अमेरिकियों से कोविड के ख़िलाफ़ लड़ने का आह्वान किया, “आज मैं सभी अमेरिकियों से कहता हूं कि वो याद करें. जिन्हें हमने खोया उन्हें याद करें और उन्हें याद करें जिन्हें हमने पीछे छोड़ दिया.”
राष्ट्रपति ने अगले पांच दिन के लिए सरकारी इमारतों पर सभी राष्ट्रीय ध्वज आधे झुकाने का आदेश दिया.
व्हाइट हाउस में अपने भाषण की शुरुआत में उन्होंने कहा कि विश्व युद्ध एक, विश्व युद्ध दो और वियतनाम युद्ध में मिलाकर अमेरिकियों की इतनी मौतें नहीं हुई जितनी कोविड की वजह से हुई हैं.
उन्होंने कहा, "आज हम वास्तव में 500,071 मौतों के एक मनहूस और दिल तोड़ने वाले माइलस्टोन पर पहुंचे हैं.”
“हमने अक्सर सुना है लोगों को आम अमेरिकी कहा जाता है. ऐसा कुछ नहीं है, उनमें कुछ भी आम नहीं है. जिन्हें हमने खोया वो असाधारण थे. वो अमेरिका में जन्मे थे या अपना देश छोड़कर अमेरिका आए थे.”
उन्होंने कहा, “उनमें से कइयों ने अमेरिका में अकेले अंतिम सांस ली.”
उन्होंने अपने ख़ुद के दुख के पलों को याद किया – 1972 में उनकी पत्नी और बेटी की एक कार हादसे में जान चली गई थी और उनके एक बेटे की 2015 में ब्रेन कैंसर से मौत हो गई थी.
उन्होंने कहा, “मेरे लिए, ग़म और शोक का मेरा सफर एक उद्देश्य की खोज है.”
महमारी को लेकर राष्ट्रपति बाइडन की अप्रोच पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अलग है, जिन्होंने जानलेवा वायरस के असर पर संदेह किया और उन्हें मास्क पहनने और वायरस के फैलाव को रोकने के लिए अन्य कदमों का राजनीतिकरण करते हुए देखा गया. (bbc.com)
कांगो में इटली के राजदूत एक हमले में मारे गए हैं. सोमवार को लुका अतानासियो की मौत अस्पताल में हो गई. लुका पूर्वी कांगो में संयुक्त राष्ट्र के एक दल में शामिल थे, जिस पर हमला हुआ.
कहा जा रहा है कि यूएन का यह दल वर्ल्ड फूड प्रोग्राम से जुड़ा था. इस दल के साथ इटली के एक पुलिस अधिकारी भी थे. उनकी भी हमले में मौत हो गई है. इसके अलावा एक और व्यक्ति की मौत की भी ख़बर है.
कांगो की राजधानी गोमा में वहाँ के विदेश मंत्रालय ने इस मौत की पुष्टि की है और इसे बहुत दुखद बताया है. कहा जा रहा है कि यह हमला अपहरण की कोशिश में किया गया था.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक हमला स्थानीय समय के मुताबिक सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर उत्तरी गोमा हुआ.
विदेश मंत्री ल्यूदी दी मायो ने मौत पर "बहुत निराशा और दुख" व्यक्त किया है.
उन्होंने कहा, "ये कैसे हुआ, इस पर रोशनी डालने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी."
हमले के पीछा किसका हाथ है, ये अभी साफ़ नहीं है. विरुंगा नेशनल पार्क के आसपास रवांडा और यूगांडा की सीमा से लगे हथियारबंद समूह सक्रिय हैं. कांगो के पूर्वी हिस्से में विद्रोही गुट भी सक्रिय हैं और यूएन सुरक्षा बल शांति बहाली के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
अतानासियो 2017 से डीआर कांगो में इटली का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. वो 2003 में राजनयिक सेवा में शामिल हुए थे. वो मोरोक्को और नाइजीरिया में भी अपनी सेवा दे चुके थे.
डीआर कांगो कई सालों तक गृह युद्ध का केंद्र रहा है, जिसमें कई पड़ोसी देश भी शामिल हो गए थे. संघर्ष के कारण 1994 से 2003 के बीच करीब 50 लाख लोगों की जान चली गई. कुछ पर्यवेक्षक इसे अफ्रीका का महायुद्ध बताते हैं.
लेकिन संघर्ष के अंत के बाद भी हिंसा ख़त्म नहीं हुई. दर्जनों हथियारबंद समूह और विद्रोही गुट पूर्वी इलाकों में सक्रिय हैं.
1999 से संयुक्त राष्ट्र का पीस कीपिंग मिशन यहा काम कर रहा है. ये दुनिया के सबसे बड़े पीस कीपिंग फ़ोर्स में से एक है जिसमें 17000 लोग शामिल हैं. (bbc.com/hindi)
ईयू के विदेश मंत्रियों ने क्रेमलिन विरोधी अलेक्सी नावाल्नी के मामले में रूसी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. उन्होंने प्रतिबंधों पर सैद्धांतिक रुख भी तय किया ताकि मानवाधिकारों के हनन पर कार्रवाई की जा सके.
डॉयचे वैले पर महेश झा की रिपोर्ट-
रूस के साथ यूरोपीय संघ का शीतयुद्ध के खात्मे के बाद रुका प्रतिबंधों का खेल बहुत पहले ही दोबारा शुरू हो गया. खासकर यूक्रेन में रूसी दखल और क्रीमिया के अधिग्रहण के बाद प्रतिबंध लगाने के अलावा कोई चारा नहीं था. ये प्रतिबंध रूस और उसके राष्ट्रपति को झुकाने में नाकाम रहे हैं. एक ओर रूस ने प्रतिबंधों का दबाव मानने से इंकार कर दिया तो दूसरी ओर अपनी ओर से यूरोपीय संघ पर प्रतिबंध लगाकर अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों को कमजोर करने की कोशिश की है.
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्रतिबंधों की आंच अब सरकारों के बाद उन अधिकारियों तक पहुंचने लगी है जो विवादों से जुड़े होते हैं. नावाल्नी मामले में भी चार अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए जाएंगे जो नावाल्नी को कैद की सजा के लिए जिम्मेदार हैं. इन प्रतिबंधों में यूरोप में उनकी जायदाद को सील करना और उनकी यात्रा पर रोक शामिल होगा.
रूस और यूरोप के संबंध
यूरोपीय संघ पहली बार प्रतिबंधों के कानूनी अधिकार का इस्तेमाल मानवाधिकारों के हनन के मामले में करेगा. ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री अलेक्जांडर शालेनबर्ग ने पुलिस विभाग और अदालत के अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंधों की वकालत की थी. यूरोपीय संघ का यह फैसला रूस और दूसरे देशों के अधिकारियों में खलबली मचा सकता है. इसकी वजह यह है कि अक्सर गैरलोकतांत्रिक देशों के अधिकारी अपने यहां मनमानी करते हैं और मानवाधिकारों को रौंदते हैं, लेकिन छुट्टियां बिताने और जायदाद खरीदने यूरोपीय देशों का रुख करते हैं.
शीत युद्ध खत्म होने के बाद रूस और यूरोपीय संघ एक दूसरे के करीब आ गए थे. रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जब से सत्ता पर अपना शिकंजा कसना शुरू किया है, दोनों के संबंधों में लगातार गिरावट आ रही है. एक ओर पुतिन ने लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत सत्ता छोड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो दूसरी ओर विपक्ष को लगातार कमजोर करते गए हैं. विरोध करने वाले को जहर देकर मारने की कोशिश भी पुतिन समर्थकों का ही एक हथियार रहा है.
विपक्ष का दमन
अलेक्सी नावाल्नी हालांकि देश में उतनी बड़ी ताकत नहीं हैं, लेकिन उन्हें भी बार बार गिरफ्तार करके और कैद में रखकर विरोध की उस आवाज को दबाने की कोशिश हो रही है. पिछले साल उन्हें मारने की भी कोशिश हुई. जर्मनी में इलाज के बाद जब वो वापस लौटे तो उन्हें 2014 के एक मुकदमे में सजा के नियमों के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार कर फिर से जेल में डाल दिया गया है. जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा है कि ईयू ने नावाल्नी को जहर दिए जाने के समय ही कह दिया था कि वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन को सहने के लिए तैयार नहीं है.
यूरोपीय संघ के विदेश नैतिक आयुक्त जोसेप बोरेल का कहना है कि रूस यूरोप संघ के साथ टकराव चाहता है. नावाल्नी के मामले में उसने यूरोपीय अदालत के फैसले को मानने से इंकार कर दिया है. यूरोपीय मानवाधिकार अदालत ने नावाल्नी को जेल से फौरन रिहा किए जाने का आदेश दिया था. मॉस्को इसे अपने घरेलू मामले में हस्तक्षेप बताता है. नावाल्नी पर हमले के मामले में यूरोपीय संघ ने पिछले साल राष्ट्रपति पुतिन के नजदीकी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाया था. (dw.com)
-तनवीर मलिक
पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान ख़ान ने दावा किया है कि उनके ढाई साल के शासनकाल के दौरान, पाकिस्तान ने 20 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज़ अदा किया है, जो पाकिस्तान में अब तक विदेशी क़र्ज़ों की रिकॉर्ड अदायगी है.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) ने अपने ढाई साल के शासन के दौरान 20 अरब डॉलर विदेशी क़र्ज़ की अदायगी तो की है लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान देश का कुल विदेशी क़र्ज़ अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है.
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, सरकार ने क़र्ज़ तो चुकाया है, लेकिन इस विदेशी क़र्ज़ को अदा करने के लिए, नया क़र्ज़ लेकर देश पर क़र्ज़ का और बोझ डाल दिया है.
पाकिस्तान पर कुल क़र्ज़ कितना है?
इस समय पाकिस्तान पर बकाया कुल क़र्ज़ 115 अरब डॉलर से अधिक है. स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर, 2020 तक देश का कुल क़र्ज़ 115.756 अरब डॉलर था.
एक साल पहले, 31 दिसंबर, 2019 को यह 110.719 अरब डॉलर था, इसका मतलब है कि एक साल में पाकिस्तान के कुल कर्ज़ में 5 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है.
पाकिस्तान के वित्त विभाग में डेबिट कार्यालय के महानिदेशक अब्दुल रहमान वड़ाइच ने बीबीसी को बताया, कि स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान द्वारा जारी किए गए आँकड़ों में देश के कुल क़र्ज़ की बात की गई है.
इस क़र्ज़ में पाकिस्तान सरकार द्वारा लिए गए क़र्ज़ के साथ-साथ सरकारी स्वामित्व में चलने वाली संस्थाओं द्वारा लिया गया क़र्ज़ और देश के निजी क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों द्वारा विदेशों से लिए गए ऋण भी शामिल हैं. यह राशि न केवल सरकार पर बल्कि पूरे पाकिस्तान पर बकाया है.
विदेश से लिए गए सरकारी क़र्ज़ के बारे में बात करते हुए, अब्दुल रहमान वड़ाइच ने कहा कि यह क़र्ज़ 80 अरब डॉलर है. उन्होंने कहा, कि सरकार बाहरी और आंतरिक स्रोतों से कर्ज़ लेती है. यदि आप सरकारी क़र्ज़ों को देखें, तो इनमें से एक-तिहाई क़र्ज़ बाहरी स्रोतों से प्राप्त किए गए थे और दो-तिहाई क़र्ज़ आंतरिक स्रोतों, अर्थात स्थानीय बैंकों से लिया गया उधार है.
उन्होंने कहा कि देश की जीडीपी और क़र्ज़ के बीच के अनुपात पर बात की जाए तो यह लगभग 30 प्रतिशत है. पूर्व और वर्तमान समय में कितना विदेशी क़र्ज़ चुकाया गया है? प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के दावे के अनुसार, मौजूदा सरकार ने अपने ढाई साल के शासनकाल में 20 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज़ चुकाया है.
डारसन सिक्योरिटीज़ के शोध प्रमुख यूसुफ़ सईद ने कहा, कि प्रधानमंत्री की तरफ़ से विदेशी क़र्ज़ की अदायगी की पुष्टि आधिकारिक आँकड़ों से होती है. उन्होंने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान द्वारा जारी किए गए आँकड़ों की समीक्षा से पता चलता है कि वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद से 31 दिसंबर, 2020 तक, इस सरकार ने 20.454 अरब डॉलर का विदेशी क़र्ज़ वापस किए हैं.
उन्होंने कहा कि अगर हम 'पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़' के पहले ढाई साल के शासनकाल के दौरान विदेशी कर्ज़ की अदायगी को देखें, तो यह 9.953 अरब डॉलर था. उनके अनुसार, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने अपने शासनकाल के पहले ढाई साल में 6.454 अरब डॉलर विदेशी क़र्ज़ चुकाया था.
अब्दुल रहमान वड़ाइच से जब यह पूछा गया कि क्या वर्तमान सरकार ने विदेशी क़र्ज़ की अदायगी का रिकॉर्ड बनाया है? तो इसके जवाब में उन्होंने कहा, कि यदि आँकड़ों के लिहाज़ से देखा जाए तो निश्चित रूप से यह सबसे अधिक अदा किया जाने वाला क़र्ज़ है. लेकिन हमें इसे अर्थव्यवस्था के आकार के संदर्भ में भी देखना होगा क्योंकि अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि हुई है, इसलिए क़र्ज़ भी अधिक लिया गया है और इस हिसाब से इसकी वापसी भी अधिक हुई है.
उन्होंने इस बात पर ज़ोर देकर कहा, कि कर्ज़ और इसकी वापसी को अर्थव्यवस्था के आकार के हिसाब से देखना ही उचित होता है. अब्दुल रहमान वड़ाइच ने कहा कि वापस किए गए कर्ज़ में 90 प्रतिशत से अधिक रक़म तो मूल राशि है, ब्याज़ का भुगतान बहुत कम है.
उन्होंने कहा कि विदेशों से लिए गए क़र्ज़ पर ब्याज़ दर बहुत कम होती है. यह दो से तीन प्रतिशत तक होती है और इसका पुनर्भुगतान भी दीर्घकालिक होता है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के विदेशी क़र्ज़ अदायगी की मैच्योर अवधि औसतन सात वर्ष होती है और इसे बहुत अच्छी अवधि मानी जाती है. इसीलिए कर्ज़ देने वाली विदेशी एजेंसी भी पाकिस्तान पर विश्वास करती हैं कि यह देश उधार लेने और चुकाने की क्षमता रखता है.
उन्होंने कहा कि हर साल पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज़ में से आठ से दस अरब डॉलर अदायगी के लिए मैच्योर हो जाता है. उनके अनुसार, इसे चुकाने के लिए, नया क़र्ज़ लेना पड़ता है तो इसके साथ बजट ख़सारे के लिए और क़र्ज़ भी लेना पड़ता है, जो लगभग पाँच अरब डॉलर होता है.
अर्थशास्त्री क़ैसर बंगाली ने इस बारे में कहा कि प्रधानमंत्री की तरफ़ से 20 अरब डॉलर क़र्ज़ की अदायगी की पुष्टि अगर आधिकारिक आँकड़ों से हो गई है, तो इससे इनकार करने की कोई ज़रूरत नहीं है. हालांकि यह देखना होगा कि यह विदेशी क़र्ज़ पाकिस्तान ने अपने स्रोत पैदा करके अदा किया है, या फिर दूसरे देशों से नया क़र्ज़ लेकर पुराना कर्ज़ अदा किया है.
क़ैसर बंगाली ने कहा है कि अब तक यही होता आ रहा है और अब भी यही हुआ है कि विदेशी क़र्ज़ों को चुकाने के लिए एक नया कर्ज़ लिया गया है जो आधिकारिक आँकड़ों से पता चलता है कि विदेशों से लिए गए कर्ज़ का मूल्य लगातार बढ़ रहा है.
याद रहे, कि सरकार द्वारा 20 अरब डॉलर विदेशी कर्ज़ की अदायगी के बावजूद, 31 दिसंबर, 2019 से 31 दिसंबर, 2020 के बीच देश पर चढ़ रहे विदेशी कर्ज़ में 5 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है जो 110 अरब डॉलर से 115 अरब डॉलर हो गया.
क्या विदेशी क़र्ज़ लेना ज़रूरी है?
अब्दुल रहमान वड़ाइच ने कहा कि आंतरिक और बाहरी स्रोतों से उधार लेकर अपने बजट घाटे को कवर करना देश में सरकारों की नीति रही है. उन्होंने कहा कि इसमें अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ-साथ स्थानीय बैंकों से लिया गया उधार भी शामिल है. उन्होंने कहा कि इस रणनीति को विभिन्न सरकारों ने अपनाया है.
अब्दुल रहमान वड़ाइच ने कहा कि पाकिस्तान जैसे विकासशील देशों को क़र्ज़ लेना पड़ता है और क़र्ज़ लेना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन यह ज़रूरी है कि यह क़र्ज़ कैसे ख़र्च होता है.
"अगर यह क़र्ज़ उत्पादन क्षेत्र को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था के आकार को बढ़ाने पर ख़र्च किया जा रहा है, तो यह एक बहुत अच्छी नीति है." उन्होंने कहा, ऋण एक दुधारी तलवार है. इसे आप अपने फ़ायदे और नुक़सान दोनो के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. यह आप पर निर्भर है, कि आप इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं.
इस संबंध में क़ैसर बंगाली ने कहा कि अगर पाकिस्तान, विदेशों से क़र्ज़ लेकर अपनी आय बढ़ाता है और संपत्ति बनाता है, तो ऐसा क़र्ज़ लेने में कोई समस्या नहीं है. जैसा कि हमने पाकिस्तान में साठ और सत्तर के दशक में देखा था. तब कर्ज़ लेकर मेगा प्रोजेक्ट्स और डेम वगैरह बनाए गए थे.
"हालांकि, 1990 के दशक से जिस नीति के तहत क़र्ज़ लिया जा रहा है, वह 'लोन प्रोग्राम्स' होते हैं. जब बजट घाटे को कवर करने के लिए विदेश से क़र्ज़ लिया जाता है, तो इससे अर्थव्यवस्था और देश पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और देश क़र्ज़ों के चंगुल में फंसता चला जाता है."
कर्ज़ पर निर्भरता कैसे कम की जा सकती है?
देश पर चढ़े विदेशी क़र्ज़ से छुटकारा पाने के लिए क्या तरीक़ा इस्तेमाल किया जा सकता है, इस पर अब्दुल रहमान वड़ाइच ने कहा, कि इसके लिए देश की आय में वृद्धि करना सबसे महत्वपूर्ण है, जो कि ज़्यादा से ज़्यादा टैक्स प्राप्त कर के ही हो सकती है. उन्होंने कहा कि हमारी समस्याओं का कारण राजस्व में वृद्धि नहीं होना है.
"यदि देश में ज़्यादा टैक्स इकट्ठा होता है, तो सरकार को बजट घाटे को पूरा करने के लिए विदेशों से धन उधार नहीं लेना पड़ेगा." क़ैसर बंगाली ने इस संभावना को ख़ारिज कर दिया कि विदेशी ऋणों पर निर्भरता कम करने के लिए देश की वर्तमान आय में वृद्धि की जा सकती है. उनके अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है और इसमें इतनी जान नहीं है, कि वह ज़्यादा टैक्स अदा कर सके.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश को ऐसी नीति अपनानी होगी जिसमें ग़ैर-विकास ख़र्च को कम करना होगा. उन्होंने कहा कि इन ग़ैर-विकास ख़र्चों को नागरिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में कम करना होगा. उदाहरण के लिए, संघीय स्तर पर, 40 डिविजनों को घटा कर 20 तक लाना होगा, और 18 वें संशोधन के बाद, राज्यों को ट्रांसफर किए गए विभागों को एक नए नाम से संघीय स्तर पर बनाए रखने की प्रथा को समाप्त करना होगा.
वह कहते हैं, कि इसी तरह, रक्षा क्षेत्र में ग़ैर-लड़ाकू ख़र्चों को कम करने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा कि केवल ये दो काम करने से, देश को अपने वार्षिक ख़र्च में एक ख़रब रुपए की बचत होगी, जिससे देश की विदेशी क़र्ज़ों पर निर्भरता कम होगी. (bbc.com)
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए जरूरी सामान लिए जो रॉकेट अंतरिक्ष में पहुंचने वाला है उसका नाम उस महिला गणितज्ञ के नाम पार रखा गया है, जिनके लिखे गणित के फॉर्मूले अमेरिका के पहले अंतरिक्ष मिशन का आधार बने थे.
कैथरीन जॉनसन एक ब्लैक अमेरिकी महिला थीं और वो उन्हीं के दिए हुए आंकड़े थे जिनके आधार पर 20 फरवरी 1962 को जॉन ग्लेन पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले पहले अमेरिकी अंतरिक्षविज्ञानी बने. अब उसी ऐतिहासिक उड़ान की 59वीं वर्षगांठ पर नासा ने कैथरीन के नाम पर एसएस कैथरीन जॉनसन नाम का एक यान आईएसएस पर भेजा है. यान सोमवार 22 फरवरी को वहां पहुंच रहा है.
कैथरीन की उपलब्धियों पर "हिडेन फिगर्स" नाम की एक फिल्म भी बनी है. जिस कैप्सूल को उनका नाम दिया गया है उसे अमेरिकी कंपनी नॉर्थरॉप ग्रुम्मान ने बनाया है. अमेरिकी राज्य वर्जीनिया के पूर्वी तट से कैप्सूल की उड़ान के मौके पर कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट फ्रैंक डेमॉरो ने कहा, "मिसेज जॉनसन को उनके हाथ से लिखे हुए गणित के फॉर्मूलों के लिए चुना गया जिनकी मदद से अमेरिका के अंतरिक्ष मिशन ने पहली सीढ़ियां चढ़ी. एक ब्लैक महिला होने के नाते उन्होंने जिस तरह से बार बार बाधाओं को पार किया उन उपलब्धियों के लिए भी उन्हें याद रखा जाता है."
फ्रैंक ने यह भी कहा, "आप सब के लिए होमवर्क यह है कि आप सब वह फिल्म जरूर देखें." जॉनसन का पिछले साल लगभग इसी समय के आस-पास 101 साल की उम्र में निधन हो गया था. यह फिल्म 2016 में आई थी. इसमें विशेष रूप से जॉनसन और वर्जीनिया के हैंपटन में स्थित नासा के लैंगली रिसर्च सेंटर में काम करने वाली दूसरी ब्लैक महिलाओं को दिखाया गया है.
कैप्सूल का वजन चार टन है. यह एक सप्ताह के भीतर आईएसएस पहुंचने वाला दूसरा यान होगा. बुधवार को रूस का एक कैप्सूल सेब और संतरे जैसी चीजें लेकर आईएसएस पहुंचा. फल मिलने परे जापान के एस्ट्रोनॉट सोइची नोगुची ने ट्वीट किया, "हमें ताजे फल बहुत पसंद हैं!" उन्होंने यह भी बताया कि शनिवार को अमेरिकी कैप्सूल की उड़ान से बस 10 मिनट पहले ही आईएसएस वर्जिनिया के ऊपर से उड़ा था.
नोगुची और उनके साथी छह अमेरिकी और रूसी अंतरिक्ष यात्री यान के साथ कुछ और चीजें पाने की उम्मीद कर सकते हैं. अमेरिकी कैप्सूल में उनके लिए टमाटर, बादाम, स्मोक्ड सालमन, पामेजान और चेडार चीज, कैरामेल और नारियल के टुकड़े. कैप्सूल में 12.000 छोटे छोटे राउंडवर्म भी हैं जिनका एक प्रयोग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. इसके साथ ही कुछ कंप्यूटर उपकरण हैं जिनसे आईएसएस में डाटा प्रोसेसिंग की रफ्तार बढ़ाने की कोशिश की जाएगी.
इसके अलावा चांद पर एस्ट्रोनॉट भेजने के नासा के कार्यक्रम के लिए रेडिएशन डिटेक्टर और अंतरिक्षयात्रियों के पेशाब को पीने के पानी में बदलने के लिए एक नया सिस्टम भी भेजा गया है. नॉर्थरॉप ग्रुम्मान ने नासा के लिए 15वीं बार अंतरिक्ष में सामान भेजा है. स्पेसएक्स नासा के लिए यह काम करने वाली दूसरी कंपनी है.