अंतरराष्ट्रीय
-राजीव रंजन
नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग लेकइलाके में डिसएंगेजनेंट की प्रक्रिया जारी है. सेना की ओर से जारी वीडियो में साफ दिख रहा है कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवान ना केवल अपने टैंट उखाड़ रहे हैं बल्कि अपने टैंक भी पीछे लेकर जा रहे हैं. यही नहीं, फिंगर 8 से आगे बढ़कर चीनी सेना ने जो अस्थाई निर्माण कर लिया था, उसे भी वे गिरा रहे हैं. गौरतलब है कि पिछले हफ्ते रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा था कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सेना के बीच डिसएंगेजनेंट को लेकर समझौता हुआ है.
इस समझौते के मुताबिक चीन की सेना पेंगोंग लेक के फिंगर 8 के पीछे अपनी पुरानी जगह पर लौट जाएगी और भारत की सेना भी फिंगर 3 के पास अपनी धन सिंह पोस्ट पर लौट जाएगी. यह डिसएंगेजनेंट की प्रक्रिया पूरी होने के बाद दोनो सेनाओं के बीच गोगरा, हॉट स्प्रिंग, गलवान और देपसांग को लेकर बात होगी.
Videos of #disengagement on #indo #China border. pic.twitter.com/ErsrxxAdWv
— Rajeev Ranjan (@Rajeevranjantv) February 16, 2021
k6laele8पैंगोंग झील क्षेत्र से सामान ले जाते हुए चीन के सैनिक
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर चीन ने दिया यह समाधान...
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया था कि पैंगोंग झील क्षेत्र में चीन के साथ सेनाओं को पीछे हटाने का जो समझौता हुआ है उसके अनुसार दोनों पक्ष अग्रिम तैनाती चरणबद्ध, समन्वय और सत्यापन के तरीके से हटाएंगे. राज्यसभा में दिए एक बयान में रक्षा मंत्री ने यह आश्वासन भी दिया कि इस प्रक्रिया के दौरान भारत ने ‘‘कुछ भी खोया नहीं है'. उन्होंने कहा कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के अन्य क्षेत्रों में तैनाती और निगरानी के बारे में ‘‘कुछ लंबित मुद्दे'' बचे हैं.
यरुशलम, 16 फरवरी (आईएएनएस)| पहले से ही कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों पर फाइजर वैक्सीन की एक खुराक का काफी प्रभावशाली असर देखने को मिला है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि वैक्सीन असरदार पाई गई है, भले ही लोग पहले से संक्रमित थे या नहीं या फिर उन्होंने टीका प्राप्त करने से पहले कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित किए हैं या नहीं।
हालिया शोध में पाया गया कि स्वस्थ लोगों के साथ ही पहले से कोरोना संक्रमित लोगों में फाइजर वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद कोविड-19 के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को लेकर भी काफी असरदार प्रभाव देखने को मिला है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, पहले से संक्रमित लोगों में वैक्सीन की एक खुराक के बाद मजबूत प्रतिक्रिया एक अच्छी खबर है।
बार-इलन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता माइकल एडेलस्टीन ने कहा, "यह खोज वैक्सीन नीति के बारे में विभिन्न देशों को निर्णय लेने में मदद कर सकती है। उदाहरण के लिए, क्या पहले संक्रमित लोगों को प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाया जाना चाहिए और अगर ऐसा है तो उन्हें कितनी खुराक देनी चाहिए।"
अध्ययन के लिए जर्नल यूरोसर्विलांस में प्रकाशित शोध टीम में 514 प्रतिभागी शामिल थे। वैक्सीन की पहली खुराक प्राप्त करने से पहले एक से दस महीने के बीच उनमें से 17 लोग कोविड-19 से संक्रमित थे।
शोध में शामिल लोगों पर एंटीबॉडी के स्तर की भी जांच की गई। उनमें टीकाकरण से पहले और उसके बाद वैक्सीन की प्रतिक्रिया पर नजर रखी गई।
शोध में निकले निष्कर्षो का अध्ययन करने के बाद टीम का कहना है कि पहले से संक्रमित लोगों के बीच प्रतिक्रिया इतनी प्रभावी रही कि इससे यह बहस फिर से शुरू हो गई है कि क्या टीके की एक ही खुराक पर्याप्त हो सकती है।
हालांकि, शोधकर्ता इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले पुष्टि एक बड़े स्तर पर की जानी चाहिए।
जिनेवा, 16 फरवरी | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एस्ट्रोजेनेका/ऑक्सफोर्ड के कोविड-19 वैक्सीन के 2 वर्जन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी है। इसमें से एक का प्रोडक्शन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने किया है। वहीं दूसरे वर्जन का प्रोडक्शन एस्ट्राजेनेका-एसकेबीओ (कोरिया गणराज्य) ने किया है। वैक्सीन को यह अप्रूवल मिलने का मतलब है कि अब कोवैक्स अभियान के तहत इसका इस्तेमाल पूरी दुनिया में किया जा सकेगा। साथ ही यह विभिन्न देशों को अपने देश में इस वैक्सीन के उपयोग की मंजूरी देने की प्रक्रिया में तेजी लाने में मददगार साबित होगा।
डब्ल्यूएचओ की असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल मारियांगेला सिमाओ ने अपने बयान में कहा, "ऐसे देश जिन्हें अब तक वैक्सीन नहीं मिले हैं, वे समान वैक्सीन वितरण के लिए शुरू की गई पहल कोवैक्स के तहत अपने स्वास्थ्य कर्मचारियों और आबादी के लिए टीकाकरण शुरू कर सकेंगे। फिर भी हमें कोशिश करनी चाहिए कि हर जगह प्राथमिकता वाली आबादी को आसानी से वैक्सीन उपलब्ध हो। इसके लिए हमें मैन्यूफेक्च रिंग क्षमता को बढ़ाने और वैक्सीन बनाने वालों को उनके वैक्सीन जल्द डब्ल्यूएचओ को सबमिट करने की जरूरत है ताकि उनका जल्द रिव्यू हो सके।"
एस्ट्राजेनेका/ऑक्सफोर्ड के दोनों वैक्सीन के मामले में उनके लिए कोल्ड चेन की जरूरत, गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता का डेटा, रिस्क मैनेजमेंट जैसे तमाम पहलुओं का आंकलन किया है। इस पूरी प्रक्रिया में उसे 4 हफ्ते का समय लगा।
इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दी थी। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
संयुक्त राष्ट्र, 16 फरवरी | भारतीय मूल की एक 34 वर्षीय कनाडाई महिला ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के फिर से चुनाव लड़ने के बीच उनके खिलाफ खड़ा होने की घोषणा की है। उनका कहना है कि उनका एजेंडा बदलाव का है, लेकिन बिना किसी देश के समर्थन के उन्होंने गुटेरेस को चुनौती देने की ठानी है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए काम करने वाली अरोड़ा आकांक्षा ने पिछले सप्ताह अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने 21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र को प्रासंगिक बनाने के लिए खुद को उम्मीदवार के रूप में पेश किया।
सोमवार तक उन्होंने अपना नामांकन दाखिल नहीं किया था।
असेंबली प्रेसीडेंट के प्रवक्ता ब्रेंडन वर्मा ने कहा कि अब तक एकमात्र उम्मीदवार गुटेरेस हैं।
यदि वह एक उम्मीदवार के रूप में स्वीकार की जाती हैं तो उन्हें सुरक्षा परिषद की जररूत होगी और सुरक्षा परिषद के वीटो अधिकार प्राप्त सदस्यों का समर्थन प्राप्त करना होगा।
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त रह चुके गुटेरेस पर तंज कसते हुए, आकांक्षा ने ट्वीट में कहा कि वह शरणार्थियों के परिवार से आती हैं और बढ़ते शरणार्थी संकट को संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बताया, जिससे निपटने की जरूरत है।
उन्होंने ट्वीट किया, "मैं एक शरणार्थी परिवार से आती हूं। मेरे चारों ग्रैंडबपैरेट्स पाकिस्तान में रहते थे और विभाजन के बाद भारत में स्थानांतरित होने के लिए मजबूर हो गए।"
वह भारत में पैदा हुई और सऊदी अरब में पली-बढ़ी और कनाडा में अपनी स्नातक की पढ़ाई की।
उन्होंने पिछले साल न्यूयॉर्क में कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया।
संयुक्त राष्ट्र की मॉनिटरिंग करने वाला एक पब्लिकेशन पास ब्लू के अनुसार, वह कनाडा की नागरिक हैं और भारत की ओवरसीज सिटिजनशिप रखती है।
कोई भी उन्हें नामित करता नहीं प्रतीत हो रहा है।
अपने एजेंडे के बारे में, उन्होंने ट्वीट किया, "मेरा विजन एक ऐसा यूएन है जो काम करता हो और 21 वीं शताब्दी में प्रासंगिक हो। हमें बढ़ते शरणार्थी संकट को प्राथमिकता देना और इससे निपटना है, मानवीय संकटों से निपटने और सभी देशों तक इंटरनेट की पहुंच हो इसके लिए निवेश सुनिश्चित किया जाना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "ये विचार असंभव नहीं हैं और इसे पूरा करने के लिए और 75 साल की आवश्यकता नहीं है।"
चुनाव प्रक्रिया अस्पष्ट है कि क्या कोई उम्मीदवार खुद को नामित कर सकता है या किसी के द्वारा या किसी भी संगठन द्वारा नामित किया जा सकता है।
2015 के महासभा के प्रस्ताव ने चुनाव के लिए रूपरेखा तैयार की, जिसमें परिषद और असेंबली के अध्यक्षों को उम्मीदवारों के लिए सदस्यों को लिख कर अनुग्रह करने की आवश्यकता होती है।
इसके लिए स्पष्ट रूप से उम्मीदवार को एक सदस्य देश द्वारा नामित करने की आवश्यकता नहीं होती है।
लेकिन वर्मा ने कहा, "उम्मीदवार पारंपरिक रूप से सदस्य देशों द्वारा पेश किए जाते हैं। यह मिसाल है।"
अगर आकांक्षा का नामांकन हो जाता है, तो उन्हें गुटेरेस और अन्य संभावित उम्मीदवारों के साथ एक मंच में आने का मौका मिलेगा।
अंतिम बार जब एक भारतीय को पद के लिए एक गंभीर उम्मीदवार माना गया था वो साल 2006 था, जब शशि थरूर ने भारत सरकार के समर्थन के साथ चुनाव लड़ा था। लेकिन वह बान की मून से हार गए क्योंकि परिषद के स्थायी सदस्यों का सर्वसम्मति से समर्थन नहीं मिल सका और कथित तौर पर अमेरिका ने उनका विरोध किया था।
जब उन्होंने चुनाव लड़ा था तब वह संयुक्त राष्ट्र के एक अंडर सेक्रेटरी-जनरल थे। वह बाद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में राज्य मंत्री बने और कांग्रेस पार्टी के संसद सदस्य बने रहे हैं। (आईएएनएस)
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मार्स रोवर परसिवरेंस 18 फरवरी को लाल ग्रह पर उतरने वाला है. पहली बार नासा का हेलीकॉप्टर इस ग्रह की कई चुनौतियों का सामना भी करेगा.
पिछले साल नासा ने अपने रोवर के साथ छोटा इंजीन्यूटी हेलीकॉप्टर मंगल ग्रह के लिए भेजा था. इस हेलीकॉप्टर के सामने कई चुनौतियां होंगी जिससे उसे पार पाना होगा. सबसे बड़ी चुनौती वहां का दुर्लभ वातावरण जो कि जो पृथ्वी के घनत्व का सिर्फ एक प्रतिशत है. हालांकि इसे हेलीकॉप्टर कहा जा सकता है लेकिन दिखने में यह मिनी ड्रोन की तरह है. जिसका वजन सिर्फ 1.8 किलोग्राम है, इसके ब्लेड पांच गुणा अधिक तेज रफ्तार से घूमते हैं. इंजीन्यूटी के चार पैर हैं, बक्सानुमा बॉडी है और चार कार्बन फाइबर ब्लेड्स दो विपरीत दिशाओं में घूमते रोटरों में लगे हैं.
इंजीन्यूटी में दो कैमरे, कंप्यूटर और नेविगेशन सेंसर्स लगे हैं. इसमें अपनी बैटरी को रिचार्ज करने के लिए सौर सेल लगे हैं, ताकि मंगल की ठंडी रातों में यह अपने आपको गर्म रख सके, अधिकतर ऊर्जा का इस्तेमाल रात को इसे गर्म रखने के लिए होगा जहां तापमान माइनस 90 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है.
परसिवरेंस रोवर के साथ यह हेलीकॉप्टर जा रहा है. रोवर हेलीकॉप्टर को मंगल की सतह पर गिराएगा और फिर आगे बढ़ जाएगा. मिशन के पहले कुछ महीनों में क्रमिक कठिनाइ की पांच उड़ानों की योजना बनाई गई है. इंजीन्यूटी 10-15 फीट की ऊंचाई पर उड़ेगा और शुरूआती बिंदु से लेकर वापसी तक 160 फीट की दूरी तय करेगा. हर उड़ान डेढ़ मिनट की अवधि की होगी. इंजीन्यूटी को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह खुद से ही उड़ान भर सके क्योंकि उसे धरती से कंट्रोल कर पाना नामुमिकन है.
रोवर और हेलीकॉप्टर मंगल ग्रह के मौसम का अध्ययन करेंगे. इससे पहले संयुक्त अरब अमीरात की स्पेस एजेंसी ने 12 को अपने मिशन होप को मंगल की कक्षा में सफलता के साथ पहुंचा दिया था.
एए/सीके (एएफपी)
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने संसद भवन में महिला कर्मचारी के साथ बलात्कार के कथित आरोप पर माफी मांगी है. महिला ने एक अनाम शख्स पर यह कथित आरोप लगाया है. मॉरिसन ने जांच का वादा किया है.
प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने संसद भवन में बलात्कार के मामले की गहन जांच का वादा किया है. महिला ने आरोप लगाया है कि उसके साथ साल 2019 में रक्षा मंत्री लिंडे रेनॉल्ड्स के कार्यालय में बलात्कार हुआ था और इस अपराध को अंजाम मॉरिसन की लिबरल पार्टी के कार्यकर्ता ने दिया था. महिला ने मीडिया को बताया कि उसने उसी साल अप्रैल की शुरुआत में पुलिस को इस बारे में जानकारी दी थी, लेकिन उसने अपने करियर को देखते हुए औपचारिक शिकायत ना करने का फैसला किया था.
महिला ने बताया कि उसने रेनॉल्ड्स के दफ्तर के वरिष्ठ कर्मचारी को इस कथित घटना के बारे में बताया. महिला का कहना है कि उसे उसी दफ्तर में बैठक में हिस्सा लेने को कहा गया जहां उसके साथ दुष्कर्म हुआ था. सोमवार को रेनॉल्ड्स ने इस बात की पुष्टि की कि उन्हें पिछले साल इस घटना के बारे में बताया गया था, हालांकि उन्होंने इस बात से इनकार किया कि महिला पर पुलिस से शिकायत नहीं करने का दबाव बनाया गया. मंगलवार को मॉरिसन ने महिला से माफी मांगी और जांच का वादा किया.
कैनबरा में उन्होंने पत्रकारों से कहा, "ऐसा नहीं होना चाहिए था और मैं माफी मांगता हूं. मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि इस स्थान पर काम करने वाली महिलाएं जितना संभव हो सके सुरक्षित रहें." मॉरिसन ने कहा है कि उन्होंने कैबिनेट अधिकारी स्टेफनी फॉस्टर को कार्यस्थल की शिकायतों की समीक्षा करने के लिए नियुक्त किया है, जबकि कुछ सांसद कार्यस्थल की संस्कृति की जांच करेंगे.
महिला के आरोप के बाद मॉरिसन पर दबाव बढ़ गया था और लिबरल पार्टी के भीतर महिलाओं के प्रति अनुचित व्यवहार के आरोपों की श्रृंखला बढ़ती जा रही थी. 2019 में कुछ महिला सांसदों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने उस वक्त के प्रधानमंत्री मैलकम टर्नबुल को पद से हटाने का समर्थन किया था तो उन्हें परेशान किया गया. एए/सीके (रॉयटर्स)
म्यांमार की फ़ौज ने तख़्तापलट का विरोध करने वालों को चेतावनी दी है कि अगर वो फ़ौज के काम में बाधा डालते हैं तो उन्हें 20 साल तक की कैद की सज़ा हो सकती है.
फ़ौज ने कहा है कि तख़्तापलट करने वाले नेताओं के ख़िलाफ़ नफरत फैलाने और उनका अवमानना करने वालों को लंबी सज़ा होगी और उन पर जुर्माना लगाया जाएगा. क़ानूनों में इन बदलावों की घोषणा कई शहरों की सड़कों पर बख़्तरबंद वाहनों के दिखने के बाद की गई है.
हाल के दिनों में कई हज़ार लोगों ने म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया है. प्रदर्शनकारी आंग सान सू ची समेत कई निर्वाचित नेताओं को हिरासत से छोड़ने की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा वे देश में फिर से लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं.
सोमवार को आंग सान सू ची के वकील खिन माउंग जॉ ने बताया कि उनकी हिरासत दो दिनों के लिए और बढ़ा दी गई है. वो अब नेपिडॉ की एक अदालत में होने वाली सुनवाई में वीडियो लिंक के माध्यम से शामिल होंगी.
आंग सान सू ची को सरकार के दूसरे अहम सदस्यों के साथ 1 फरवरी को हिरासत में ले लिया गया था. समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक उनकी हिरासत 15 फरवरी को ख़त्म होने वाली थी.
उनके ख़िलाफ़ जो मामले दर्ज किए गए हैं उनमें ग़ैर-क़ानूनी तरीके से संचार के उपकरण रखने के आरोप हैं. यह वॉक-टॉकी उनके सुरक्षाकर्मियों के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है.
पिछले नवंबर में उनकी पार्टी को चुनाव में शानदार जीत हासिल हुई थी लेकिन फ़ौज ने बिना किसी प्रमाण के चुनाव में धांधली के आरोप लगाए थे.
कार्रवाई के संकेत
फ़ौज की बढ़ती मौजूदगी इस बात के संकेत दे रहे हैं कि तख्तापलट का विरोध कर रहे लोगों पर कार्रवाई हो सकती है. क़ानून में भी कई तरह के बदलावों की घोषणा की गई है.
इसमें फ़ौज के ख़िलाफ़ जाने वालों को लंबी सज़ा और जुर्माने की बात कही गई है. यह कार्रवाई उन लोगों पर करने की बात कही गई है जो फ़ौज के ख़िलाफ़ किसी भी तरह से फिर चाहे बोल या लिखकर या संकेत या फिर वीडियो के माध्यम से विद्रोह करते हैं.
सोमवार को फ़ौज की वेबसाइट पर डाले गए एक बयान में कहा गया है कि सुरक्ष बलों को उनके ड्यूटी के दौरान किसी भी तरह की बाधा पहुँचाने के लिए सात साल की सज़ा हो सकती है. जो लोग सार्वजनिक तौर पर डर या अशांति फैलाते हुए पाए जाएँगे उन्हें तीन साल की सज़ा हो सकती है.
रविवार को देश भर में हज़ारों प्रदर्शनकारी नौवें दिन लगातार फ़ौज के ख़िलाफ़ लामबंद होकर निकले. काइचिन राज्य के मायित्सकीना शहर में प्रदर्शनकारियों और फ़ौज के बीच झड़प के दौरान गोली चलने की आवाज़ सुनाई दी.
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि रबड़ की गोलियाँ चलाई थी या सच में असल गोलियाँ चलाई गई हैं. पांच पत्रकारों को भी गिरफ़्तार किया गया लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया.
यांगून (रंगून) शहर में सड़कों पर तख्तापलट के बाद पहली बार बख्तरबंद गाड़ियाँ गश्त करती हुई दिखीं.
बौध भिक्षु और इंजीनियर्स यहाँ प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे. नेपिडॉ की सड़कों पर मोटरसाइकिल सवारों ने रैली निकाली हुई थी.
नेपिडॉ के एक अस्पताल के डॉक्टर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि सुरक्षा बल रात में घरों में छापे मार रही है.
उन्होंने सुरक्षा के लिहाज से नाम नहीं बताते हुए कहा, "मैं अब भी चिंतित हूँ क्योंकि उन्होंने 10 बजे रात से लेकर 4 बजे सुबह तक कर्फ्यू की घोषणा की है. लेकिन इस दौरान पुलिस और फ़ौज हमारे जैसे लोगों को गिरफ़्तार कर रही है."
यांगून में मौजूद अमेरिकी दूतावास ने अमेरिकी नागरिकों को चेतावनी दी है कि वो कर्फ्यू के दौरान अंदर ही रहे.
शनिवार को फ़ौज ने कहा था कि प्रदर्शनकारियों के सात प्रमुख नेताओं के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी का वारंट जारी हुआ है. इसमें आम लोगों को चेतावनी दी गई थी कि वो इन कार्यकर्ताओं को भागने में या पनाह देने में मदद ना करें.
फ़ौज ने शनिवार को उन क़ानूनों को भी निरस्त कर दिया है जिसके तहत लोगों को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखने के लिए कोर्ट के आदेश की जरूरत पड़ती थी. इसके अलावा अब फ़ौज बिना कोर्ट के आदेश के निजी संपत्ति की भी जांच कर सकती है.
बाकी दुनिया की प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि वो फ़ौज की ओर से अत्यधिक बल प्रयोग और 'प्रमुख शहरों में अतिरिक्त बख्तरबंद गाड़ियों की तैनाती संबंधी' रिपोर्ट्स देखकर 'बहुत चिंतित' हैं.
उनके दफ्तर से जारी एक बयान के मुताबिक उन्होंने म्यांमार के फ़ौजी नेताओं ने अपील की है कि वो शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार का पूरा सम्मान करें और प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई ना की जाए.
म्यांमार के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत टॉम एंड्रुज ने फ़ौज पर आरोप लगाया कि उसने जनता के खिलाफ़ 'युद्ध की घोषणा' कर दी है और फ़ौज के जनरल 'हताशा के संकेतच दे रहे हैं.
पश्चिमी देशों के दूतावासों ने फ़ौज से संयम बरतने का आग्रह किया है.
यूरोपिय यूनियन, अमेरिका और ब्रिटेन के हस्ताक्षर वाले एक बयान में कहा गया है, "हम सुरक्षा बलों से प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ हिंसा से परहेज करनी की अपील करते हैं. ये प्रदर्शनकारी वैधानिक तरीके से चुनी अपनी सरकार को फेंके जाने के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं." (bbc.com)
रूस में बीते कुछ समय से विरोध प्रदर्शन खूब हो रहे हैं. नावाल्नी तो इन प्रदर्शनों का चेहरा और एक वजह हैं लेकिन देश में बढ़ती गरीबी और आय का संकट भी लोगों को इसके लिए मजबूर कर रही है.
कोरोना वायरस की महामारी शुरू होने के बाद से ही मॉस्को के मार्था एंड मैरी कॉन्वेंट में लोगों की भीड़ बढ़ गई है. सफेद दीवारों वाली इस मोनेस्ट्री में कई समाजसेवी संस्थाओं के केंद्र हैं. ये संस्थाएं दूसरे कार्यक्रमों के अलावा यहां लोगों को मुफ्त में खाने के पैकेट बांटती हैं.
मिलोसेर्डी नाम की संस्था में समाज सेवा करने वाली येलेना तिमोश्चुक बताती हैं, "महामारी से पहले हमारे यहां हर रोज 30-40 लोग आते थे. अब 50-60 लोग आने लगे हैं, काम बहुत ज्यादा बढ़ गया है." तिमोश्चुक की टेबल पर सूरजमुखी के तेल के ढेर सारे पैकेट रखे हैं.
कतार में खड़े हो कर कूटू, चीनी, चाय और दूसरी चीजें लेने आने वाले लोगों में ज्यादातर रिटायर लोग हैं. हालांकि इनके साथ ही उनमें ऐसे भी लोग शामिल हो रहे हैं जिनकी या तो नौकरी चली गई है या फिर जिनका वेतन काटा गया है.
कोरोना वायरस की महामारी ने रूस की खराब अर्थव्यवस्था का और बुरा हाल कर दिया है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंध, तेल की घटती कीमतें और कमजोर कारोबारी निवेश के चलते हालात और बिगड़ते जा रहे हैं. विशेलेषकों का कहना है कि बढ़ती गरीबी, घटती कमाई और महामारी के दौर में पर्याप्त सरकारी सहयोग के अभाव में राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के लिए समर्थन घट रहा है. प्रचंड बहुमत के साथ दो दशकों से रूस की सत्ता पर पुतिन काबिज हैं लेकिन अब उनके विरोधी मजबूत हो रहे हैं.
जेल में बंद पुतिन के प्रमुख विरोध की एक पुकार पर बीते कुछ हफ्तों हजारों की संख्या में लोग रूस में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. सितंबर में होने वाले संसदीय चुनाव से पहले नावाल्नी की टीम और ज्यादा प्रदर्शनों की योजना बना रही है.
रूस में लोगों के पास मौजूद मुद्रा बीते करीब आधे दशक में 3.5 फीसदी सिकुड़ चुकी है. इसी बीच खाने पीने की चीजों के दाम बहुत बढ़ गए हैं. गिरते जीवन स्तर से लोगों के बढ़ते गुस्से को भांप कर बीते दिसंबर में राष्ट्रपति पुतिन ने मंत्रियों को कीमतों की वृद्धि रोकने के लिए आपातकालीन उपाय करने के आदेश दिए. इसके बावजूद जनवरी में चीनी की कीमत एक साल पहले की तुलना में करीब 64 फीसदी ज्यादा थी. 66 साल की सांड्रा ने बताया कि उन्होंने सुपरमार्केट जाना छोड़ दिया है और इसकी बजाय मुफ्त में बंटने वाला खाना लेने समाजसेवी संगठनों के पास जा रही हैं. पेंशन पर गुजारा करने वाली सांड्रा का कहना है, "आप कुछ नहीं खरीद सकते. पहले तो मैं चिड़ियों को भी दाना डाल देती थी लेकिन अब तो अनाज खरीदना भी मुश्किल हो गया है."
एफबीके ग्रांट थॉर्नटन में स्ट्रैटजिक एनालिसिस के प्रमुख इगोर निकोलायेव कहते हैं, "राजनीतिक नतीजों के लिहाज से मौजूदा स्थिति अच्छी नहीं लग रही है. अधिकारियों के लिए जोखिम बढ़ गया है." निकोलायेव का कहना है कि बुजुर्ग रूसी खास तौर से बढ़ती कीमतों को लेकर बहुत "संवेदनशील" हैं. इन लोगों ने महंगाई का वो दौर देखा है जिसके बाद 1991 में सोवियत संघ का विघटना हुआ. निकोलायेव मानते हैं कि लोगों की नाराजगी को देखते हुए रूसी सरकार संसदीय चुनावों से पहले कोई नया आर्थिक पैकेज ले कर आ सकती है.
हाल ही में एक स्वतंत्र एजेंसी लेवाडा सेंटर के कराए सर्वे में 43 फीसदी रूसियों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि मौजूदा विरोध प्रदर्शनों को आर्थिक मांगों की वजह से प्रेरणा मिल रही है. इससे पहले यह स्तर 1998 में दिखा था. सर्वे में यह भी पता चला कि जवाब देने वालों में 17 फीसदी लोग खुद प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए तैयार थे.
लेवाडा के उपनिदेशक डेनिस वोल्कोव का कहना है कि हाल में हुए प्रदर्शन ये दिखाते हैं कि अधिकारियों के प्रति लोगों में गुस्सा केवल हाशिए पर खड़े विपक्षियों में ही नहीं बल्कि बहुत सारे प्रदर्शनकारी आर्थिक मुश्किलों की वजह से बाहर आ रहे हैं.
फोर्ब्स पत्रिका के रूसी संस्करण में वोल्कोव ने लिखा है, "अधिकारियों के पास उन लोगों को देने के लिए कुछ नहीं है जो नीतियों से नाखुश हैं." इसके साथ ही उन्होंने रूसी रईसों की बढ़ती संपत्ति और समाज में बढ़ते विभाजन की ओर भी इशारा किया है.
नावाल्नी के समर्थन में होने वाली व्लादीवोस्तोक के पैसिफिक पोर्ट की रैली में शामिल येकातेरिना निकिफोरोवा ने कहा कि देश ठहरा हुआ है. राजनीति शास्त्र की इस छात्रा ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा कि उन्हें किसी तरह के आर्थिक मौके या राजनीतिक विकास नजर नहीं आता. 22 साल के आर्सेनी दमित्रियेव सेंट पीटर्सबर्ग की रैली में शामिल हुए और उनकी भी यही राय है. समाज शास्त्र के इस छात्र ने कहा, "आंकड़ों को देख कर मैं समझ गया हूं कि हाथ में आने वाला आय घटती जा रही है और जीवन के स्तर में सुधार नहीं हो रहा है."
एनआर/आईबी (एएफपी)
इस्राएल के पर्यावरणवादियों ने चेतावनी दी है कि इस्राएल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हुए तेल पाइपलाइन के करार से लाल सागर के कोरल रीफ खतरे में पड़ जाएंगे. इस मुद्दे पर इस्राएल में विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे "इकोलॉजी के लिए एक बड़ी आपदा आ सकती है." संयुक्त अरब अमीरात से कच्चे तेल को लाल सागर में इलात पोर्ट तक टैंकरों के जरिए पहुंचाने की योजना है. दोनों पक्षों के बीच रिश्ते सामान्य होने के कुछ ही महीनों के भीतर इसे लेकर करार भी हो चुका है जिस पर इसी साल अमल भी शुरू हो जाएगा.
जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि पुराने इलात से तेल रिसाव की आशंका है. इसे लेकर इस्राएल के पर्यावरण सुरक्षा मंत्रालय ने करार पर तुरंत "जरूरी" बातचीत करने की मांग की है. बीते हफ्ते सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे पर लामबंद हो गए. कार्यकर्ताओं ने इलात के तेल सेतु के सामने की पार्किंग लॉट में प्रदर्शन भी किया. इस दौरान लगाए गए नारों में कहा गया कि कोरल के नुकसान की कीमत पर मुनाफा कामाने की कोशिश की जा रही है. सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ द रेड सी एनवायरनमेंट के संस्थापक सदस्य शमुलिक टागर का कहना है, "जहां तेल को उतारा जाएगा कोरल रीफ वहां से महज 200 मीटर की दूरी पर हैं. वे कहते हैं कि टैंकर आधुनिक हैं और कोई समस्या नहीं होगी "हालांकि ऐसा कोई तरीका नहीं जिसमें गड़बड़ ना हो."
शमुलिक टागर ने अनुमान लगाया है कि हर हफ्ते दो से तीन टैंकर आएंगे और इससे इकोलॉजिकल टूरिज्म को बढ़ावा दे रहे शहर की सुंदरता पर भी असर पड़ेगा. उनका कहना है, "जब डॉक पर टैंकर खड़े हों तो आप ग्रीन टूरिज्म का धोखा नहीं दे सकते."
अमेरिका की मध्यस्थता पर संयुक्त अरब अमीरात और इस्राएल ने पिछले साल राजनयिक रिश्ते बहाल किए. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते में इस्राएल की सरकारी यूरोप एशिया पाइपलाइन कंपनी, ईएपीसीऔर एक नई कंपनी मेड रेड लैंड ब्रिज लिमिटेड का आबू धाबी की नेशनल होल्डिंग कंपनी और इस्राएल की कई फर्मों के बीच करार हुआ है.
अक्टूबर में ईएपीसी ने घोषणा की कि वह संयुक्त अरब अमीरात से कच्चा तेल लाने के लिए मेडरेड के साथ करार कर रहा है. इस तेल को पहले यूएई से इलियत लाया जाएग और फिर पाइपलाइनों के जरिए इस्राएल के एशकेलॉन शहर लाया जाएगा जहां से इसका यूरोप में निर्यात होगा.
सामाजिक कार्यकर्ताओं की दलील है कि करार के नियमों के आधार पर कड़ी समीक्षा नहीं की गई है. इसकी वजह है ईपीएसी को ऐसी सरकारी एजेंसी का दर्जा मिला हुआ है, जो संवेदनशील ऊर्जा सेक्टर में काम करती है.
दुनिया भर में कोरल की आबादी को जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाली ब्लीच का खतरा झेलना पड़ रहा है. इलात के रीफ अपने अनोखे उष्मा प्रतिरोध के कारण स्थिर बने हुए हैं. इनका विस्तार शहर के तट से करीब 1.2 किलोमीटर के इलाके में है जिसमें कई प्रकार के जलीय जीवों का भी बसेरा है.
हालांकि ईएपीसी पोर्ट के करीब होने की वजह से अब उन पर खतरा मंडरा रहा है. इलात इंटरयूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर मरीन साइंस में मरीन बायोलॉजी एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख नादव शशार का कहना है कि बुनियादी ढांचा ऐसा नहीं बनाया गया है जो हादसों को रोक सके, "केवल प्रदूषण के पानी में पहुंच जाने के बाद उसे छानने की व्यवस्था है."
शशास उन 230 विशेषज्ञों में एक हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू से इस करार के विरोध में अपील की है. उनकी दलील है कि ढुलाई बढ़ने का नतीजा, "तेल के निरंतर रिसाव के रूप में सामने आएगा."
ईएपीसी का कहना है कि इलात से लाखों टन तेल की ढुलाई होगी. कंपनी ने इस मुद्दे पर चर्चा करने से मना कर दिया लेकिन उसका कहना है कि उसके उपकरण आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि उनका लक्ष्य ईपीएसी को बंद कराना नहीं है. वे तो बस उसकी क्षमता को सीमित करना चाहते हैं.
एनआर/आईबी (एएफपी)
अफगानिस्तान में स्थित संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन के मुताबिक पिछले तीन साल में कम से कम 65 मीडियाकर्मियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की टारगेट किलिंग में मौत हुई है. कई पत्रकार अब इस पेशे से हट रहे हैं.
यूएनएएमए ने 1 जनवरी 2018 से लेकर 21 जनवरी 2021 की अवधि के बीच जानकारी इकट्ठा की है. उसके मुताबिक इस अवधि में मानवाधिकार के 32 रक्षकों और 33 मीडियाकर्मियों की टारगेट किलिंग में मौत हुई. रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि अंतर-अफगान वार्ता जिसकी शुरुआत पिछले 12 सितंबर को हुई थी, के शुरू होने से लेकर जनवरी 2021 तक 11 मीडियाकर्मियों और अधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या हुई. अंतर-अफगान वार्ता का मकसद युद्ध समाप्ति करने का राजनीतिक समाधान ढूंढना है. इन हत्याओं के कारण मीडिया से जुड़े कई लोगों ने पेशा छोड़ दिया, खुद को सेंसर किया या फिर खुद की और परिवार की सुरक्षा की खातिर देश ही छोड़ दिया.
अफगानिस्तान में यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि डेबराह लियोन्स के मुताबिक, "ऐसे समय में जब बातचीत और वार्ता के जरिए संघर्ष समाप्ति का अंत होना चाहिए और राजनीतिक समझौतों पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए. मानवाधिकार और मीडिया की आवाज पहले से कहीं अधिक सुनी जानी चाहिए, इसके बजाय उन्हें चुप कराया जा रहा है."
इस रिपोर्ट में विशेष तौर पर तालिबान को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा रहा है. अफगानिस्तान की सरकार हमेशा से नागरिक समाज की आवाज दबाने के लिए तालिबान पर आरोप लगाती रही है. रिपोर्ट में अफगान सरकार से नागरिक कार्यकर्ताओं की सुरक्षा के लिए एक प्रभावी राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र की शुरूआत करने को कहा गया है.
अफगानिस्तान में जारी रहेगा नाटो का मिशन
समाचार एजेंसी डीपीए को सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि नाटो फिलहाल अपना मिशन अफगानिस्तान में जारी रखेगा. जर्मनी और अन्य सहयोगी इस बात पर सहमत हुए हैं कि अफगानिस्तान में तैनात 10 हजार सैनिकों की वापसी पर वे फैसला नहीं करेंगे. इस हफ्ते बुधवार और गुरुवार को रक्षा मंत्रियों की इसी मुद्दे पर बैठक होने वाली है. मंत्रियों की बैठक में तालिबान से हिंसा कम करने और सरकार के साथ धीमी शांति वार्ता को गति देने के लिए आग्रह किया जाएगा. गठबंधन सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान के हमले शांति प्रक्रिया को कमजोर कर रहे हैं और देश में हिंसा खत्म होनी चाहिए.
राजनयिक चिंता जता रहे हैं कि तालिबान द्वारा हिंसा खास तौर से सफल शांति वार्ता के लिए जरूरी विश्वास को कम कर रही है. कई महीनों की देरी के बाद पिछले साल सितंबर में दोहा में शांति वार्ता की शुरूआत हुई थी. अमेरिका भी देश से धीरे-धीरे अपने सैनिकों की संख्या कम कर रहा है और मई तक पूरी तरह से देश से सैनिकों को वापस बुला लेगा.
एए/आईबी (डीपीए)
म्यांमार में सैन्य प्रशासन जुंटा ने और ज्यादा सैनिकों को सड़कों पर उतार दिया है. प्रदर्शन कर रहे लोग भी मानने को तैयार नहीं और विरोध जता रहे हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि पहली बार प्रदर्शनों में गोली चलाई गई है.
म्यांमार में यंगून की सड़कों पर बख्तरबंद गाड़ियां और सैनिकों के दस्ते गश्त कर रहे हैं. देश के बाकी हिस्से में भी सेना की तैनाती बढ़ा दी गई है. सोमवार को कई घंटे तक इंटरनेट बंद रहा और फिर बाद में बहाल किया गया. हालांकि ज्यादातर लोगों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करने दिया जा रहा है. सैन्य प्रशासन की इन सारी कवायदों के बावजूद प्रदर्शन करने वाले लोग डटे हुए हैं.
इस बात की आशंका मजबूत हो रही है कि सेना विरोध करने वालों पर ज्यादा सख्त कार्रवाई कर सकती है. उत्तरी शहर मितकिना में सैनिकों ने रविवार की रात पहले आंसू गैस के गोले दागे और फिर गोलियां चलाई. मौके पर मौजूद एक पत्रकार ने यह जानकारी दी हालांकि यह पता नहीं चल सका है कि वो असली गोलियां थीं या फिर रबर बुलेट.
दो हफ्ते पहले यहां की सेना ने सरकार का तख्तापलट कर कामकाज अपने हाथ में ले लिया और एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया. इसके साथ ही राजनीतिक नेता आंग सान सूची को उनकी पार्टी के सैकड़ों लोगों के साथ हिरासत में ले लिया गया. इसमें लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के सदस्य भी शामिल हैं. सोमवार को अदालत में सूची के मामले में सुनवाई होनी थी लेकिन उसे बुधवार तक के लिए टाल दिया गया.
दिन में मारेंगे, रात में चोरी करेंग, टीवी पर झूठ बोलेंगे
एक बैंक के सामने जमा हो कर प्रदर्शन कर रहे करीब एक हजार लोगों की भीड़ में शामिल 46 साल की नाइन मोइ ने कहा, "बख्तरबंद गाड़ियों में गश्त लगाने का मतलब है कि वो लोगों को धमका रहे हैं." यंगून में इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी के सैकड़ों छात्र भी प्रदर्शन करने सड़कों पर निकले. शहर के दक्षिणी हिस्से में भी सोमवार को एक रैली हुई जिसे फेसबुक पर लाइव स्ट्रीम के जरिए दिखाया गया. इस रैली में सैकड़ों लोग बैंड के साथ मार्च करते नजर आए. राजधानी नेप्यीदॉ और म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े शहर मांडले में बड़ी संख्या में लोग प्रदर्शन करने निकले हैं. यहां कुछ लोगों ने सेना के खिलाफ बैनर ले रखे थे जिन पर लिखा है, "वे दिन में मारेंगे, रात में चोरी करेंग, टीवी पर झूठ बोलेंगे."
अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के राजदूतों ने एक संयुक्त बयान जारी कर सैन्य बलों से अनुरोध किया है कि वे आम लोगों को नुकसान ना पहुंचाएं. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेस ने भी यही मांग रखी है. गुटेरेस ने प्रवक्ता के जरिए कहलवाया है कि सेना तुरंत स्विस राजदूत को म्यांमार आने की अनुमति दे ताकी वास्तविक स्थिति का पता लगाया जा सके. अमेरिका ने अपने नागरिकों को सुरक्षित रहने और रात के कर्फ्यू का उल्लंघन नहीं करने की सलाह दी है.
पुलिस अधिकारी भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हुए
एक फरवरी को आंग सान सूची को हिरासत में लेने के बाद से देश के ज्यादातर हिस्से में अशांति फैली हुई है. सूची को हिरासत में रखने की अवधि सोमवार को खत्म हो रही है लेकिन उनके वकील ने एक जज का हवाला दे कर बताया है कि वो 17 फरवरी तक हिरासत में रहेंगी. अब तक करीब 400 लोगों को हिरासत में लिया गया है. हालांकि इसके बाद भी बड़ी संख्या में लोग विरोध प्रदर्शन करने निकल रहे हैं. दावाइ में सात पुलिस अधिकारी भी प्रदर्शनकारियों में शामिल हो गए
देश के कई हिस्सों में लोगों ने पहरेदारी के लिए ब्रिगेड बना लिए हैं ताकी नागरिक अवज्ञा में शामिल हो रहे लोगों को गिरफ्तारी से बचाया जा सके. यंगून में सड़कों पर गश्त कर रहे इसी तरह के दल के एक सदस्य ने कहा, "हमें इस वक्त किसी पर भरोसा नहीं है, खासतौर से उन लोगों पर जो वर्दी में हैं."
सैन्य शासक हालांकि अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं से बेपरवाह हैं. जुंटा ने इस बात पर जोर दिया है कि उन्होंने कानूनी तौर पर शासन अपने हाथ में लिया है. उन्होंने पत्रकारों को भी निर्देश दिया है कि वो उन्हें ऐसी सरकार के रूप में पेश ना करें जिसने तख्तापलट से सत्ता हथियाई है.
एनआर/आईबी (एएफपी)
कोनाक्री. कोरोना महासंकट के बीच पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में 5 साल बाद जानलेवा इबोला वायरस फैल गया है. इससे 4 लोगों की मौत हो गई है और 4 लोग अभी संक्रमित हैं. इबोला के खतरे को देखते हुए गिनी की सरकार ने इबोला वायरस संक्रमण को महामारी घोषित कर दिया है. बताया जा रहा है कि गोउइके में एक अंतिम संस्कार कार्यक्रम में शामिल होने के बाद 7 लोगों ने डायरिया, उल्टी और खून आने की शिकायत की. गोउइके लाइबेरिया की सीमा पर है और सभी लोगों को अलग-थलग कर दिया गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि सभी संक्रमित लोगों का इलाज चल रहा है. मंत्रालय ने इबोला को महामारी घोषित करते हुए कहा कि वह इस संकट का अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य मानकों के हिसाब से सामना कर रही है. स्वास्थ्य मंत्री रेमी लामाह ने कहा कि अधिकारी इन मौतों को लेकर बहुत चिंतित हैं.
गिनी में वर्ष 2013-2016 में इबोला वायरस फैला था. इस महामारी से अब तक पश्चिमी अफ्रीका में 11300 लोगों की मौत हो चुकी है. ज्यादातर मौतें गिनी, लाइबेरिया और सियरा लिओन में हुई हैं. इन मरीजों की एक और जांच की गई है ताकि यह पुष्टि की जा सके उन्हें इबोला हुआ है या नहीं. स्वास्थ्य सेवा ने कहा कि संपर्क में आए लोगों को अलग थलग करने के लिए हेल्थ वर्कर लगे हुए हैं. उधर, एक अन्य अफ्रीकी देश डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में इबोला वायरस तेजी से फैल रहा. पिछले 7 दिनों में कांगो के नॉर्थ किवु प्रॉविंस में चार मरीजों में इबोला के संक्रमण की पुष्टि हुई है. प्रांतीय स्वास्थ्य मंत्री यूजीन नाजानू सलिता ने कहा कि प्रदेश में इबोला का पहला मामला 7 फरवरी को सामने आया था.
कांगो में इबोला से बिगड़े हालात
कांगों के इक्वाटोर प्रांत में वर्ष 2018 में इबोला का प्रकोप फैला था और 54 मामले सामने आए थे. इसमें 33 लोगों की मौत हो गई थी. कांगो अपने पूर्वी इलाके में फैले इबोला वायरस के दूसरे सबसे बड़े प्रकोप से जूझ रहा है. कांगो में दो नई वैक्सीन के इस्तेमाल के बाद भी अब तक 2260 लोगों की इबोला वायरस से मौत हो गई है.
तुर्की ने कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी पर अपहरण किए गए 13 नागरिकों पर उत्तरी इराक में हत्या का आरोप लगाया है. वहीं चरमपंथियों ने तुर्की के हवाई हमले को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है.
तुर्की में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) चरमपंथी संगठन घोषित है और वह प्रतिबंधित है. रविवार को तुर्की की सरकार ने आरोप लगाया कि इस संगठन के सदस्यों ने तुर्की के 13 नागरिकों की अपहरण के बाद हत्या कर दी. पीड़ितों की जान उत्तरी इराक में तुर्की की सेना द्वारा पीकेके के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान चली गई.
तुर्की के रक्षा मंत्री हुलुसी अकार ने कहा कि तुर्की के सैनिकों ने बुधवार को उत्तरी इराक के गारा इलाके में एक गुफा में विस्फोट किया और गुफा में दाखिल करने पर 13 शव मिले. अकार ने कहा कि बंधकों में से 12 को सिर में जबकि एक को कंधे पर गोली मारी गई. अमेरिका ने रविवार को हत्याओं की निंदा करते हुए कहा, "वह इराक के कुर्द क्षेत्र में तुर्की नागरिकों की हत्या की कड़ी करता है."
मृतकों में सैनिक शामिल
शवों को तुर्की के माल्तया प्रांत भेजा गया है. माल्तया के गवर्नर आयदीन बरुस ने कहा कि 2015 से 2016 के बीच अपहरण करने वालों में छह सैनिक और दो पुलिस अधिकारी शामिल थे. पीकेके ने तुर्की के आरोपों का खंडन किया है, जिसमें कहा गया है कि उसने बंधकों को नहीं मारा बल्कि तुर्की के हवाई हमलों में उनकी मौत हुई. तुर्की और पीकेके के बीच संघर्ष 1984 से चल रहा है. तुर्की सेना पिछले दो वर्षों से उत्तरी इराक में संगठन के खिलाफ सैन्य अभियान चला रही है. अकार ने कहा कि बुधवार को ऑपरेशन के दौरान 48 पीकेके सदस्य मारे गए, जबकि तीन तुर्की सैनिक भी मारे गए थे.
तुर्की, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने पीकेके को आतंकवादी संगठन घोषित किया है. 1980 के दशक में तुर्की और पीकेके के बीच संघर्ष में 40,000 से अधिक लोग मारे गए थे. पिछले साल तुर्की और इराक की सरकारें पीकेके जैसे आतंकवादी समूहों के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करने के लिए सहमत हुई. दिसंबर में अंकारा में तुर्की के राष्ट्रपति तुर्की में राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन और इराकी प्रधानमंत्री मुस्तफा अल कादहेमी ने कहा था कि उनका देश "तुर्की की सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाले किसी भी संगठन या संरचना को बर्दाश्त नहीं करेगा." इसके जवाब में एर्दोआन ने कहा था, "तुर्की, इराक या सीरिया में अलगाववादी आतंकवादियों का कोई भविष्य नहीं है."
हालांकि जिन लोगों की पीकेके ने हत्या की है उनकी पहचान जाहिर नहीं की गई है. अकार ने बताया कि सुरक्षा कारणों से उनके अपहरण की सूचना पहले सार्वजनिक नहीं की गई थी.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)
टोक्यो, 15 फरवरी | जापान की सरकार ने अपने यहां की 12.6 करोड़ जनता के लिए कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण अभियान को शुरू करने के मद्देनजर पहली वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। जापान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जापान में सरकारी समिति से मंजूरी मिलने के दो दिन बाद स्वास्थ्य मंत्री नोरिहिसा तमुरा ने रविवार को फाइजर इंक की कोविड-19 एमआरएनए वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग के लिए मंजूरी दे दी है। अब देश में बुधवार से टीकाकरण अभियान की शुरुआत कर दी जाएगी।
वैक्सीन को मंजूरी दिलाने में कम से कम एक या दो साल लगते हैं, लेकिन संक्रमितों की बढ़ती सख्ंया को देखते हुए सरकार ने समीक्षा की समयावधि को घटाकर दो महीने से भी कम कर दिया है।
इस वैक्सीन को जिन सात देशों ने सहमति दी है, जापान उनमें सबसे आखिरी नंबर पर है क्योंकि यहां लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के मद्देनजर एक और नैदानिक परीक्षण को आयोजित कराए जाने की आवश्यकता थी।
अमेरिका में स्थित फार्मा कंपनी फाइजर इंक और जर्मन बायोटेक कंपनी बायोएनटेक द्वारा साथ में विकसित की गई फाइजर की खुराक को ब्रिटेन और अमेरिका ने दिसंबर में ही मंजूरी दे दी थी। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 14 फरवरी| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रविवार को कहा कि देश ने 3 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन खरीद लिए हैं और अन्य देशों ने भी उन्हें वैक्सीन देने में रुचि जताई है।
अपने आधिकारिक आवास गोनोभबन से नारायणगंज में कुमुदिनी इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड कैंसर रिसर्च (किम्स केयर) की आधारशिला रखने के दौरान प्रधानमंत्री हसीना ने यह बात कही।
हसीना ने कहा, "जब कोविड वैक्सीन खोजी जा रही थी और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अप्रूवल भी नहीं दिया था, तभी हमने उसके लिए एडवांस पेमेंट कर दिया था। ताकि हम देश को कोविड-19 महामारी से बचा सकें।"
बता दें कि देश में 7 फरवरी से देशव्यापी टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है और वैक्सीन डोज लेने वालों की संख्या रोजाना बढ़ती जा रही है।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, "पहले लोगों में वैक्सीन लेने को लेकर भ्रम और संदेह था लेकिन अब कोई समस्या नहीं है। लोग टीकाकरण केंद्रों पर बहुत रुचि और उत्साह के साथ आ रहे हैं। भारत सरकार ने भी हमें उपहार के रूप में 20 लाख डोज भेजे हैं। लेकिन टीकाकरण के बावजूद हमें मास्क पहनना है, हाथ धोना है और साफ रहना है।"
इस मौके पर हसीना ने यह भी कहा कि महामारी से निपटने के लिए उनकी सरकार सबसे अच्छा काम कर रही है।
हसीना ने कुमुदिनी वेलफेयर ट्रस्ट को अस्पताल स्थापित करने और साहा फैमिली को चिकित्सा क्षेत्र के विकास में योगदान देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि रिसर्च के लिए 1996 में उनकी सरकार ने बंगबंधु शेख मुजीब मेडिकल यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी।
कैंसर पर शोध की जरूरत जताते हुए हसीना ने कहा, "इस क्षेत्र में हमें तत्काल शोध करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों को बांग्लादेश की जलवायु और पर्यावरण को ध्यान में रखकर भी इस बीमारी पर शोध करना चाहिए। हमारा मकसद है कि हम रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए देश के हर डिवीजन में एक मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थापित करें।" (आईएएनएस)
-अनबरासन एथिराजन
कैप्टेन रॉबिन रोलैंड की रेजिमेंट को जब भारत के उत्तरपूर्वी शहर में कोहिमा में तैनात किया गया, उनकी उम्र केवल 22 साल थी.
ये मई 1944 की बात है. उस वक्त ब्रितानी-भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी जापानी सेना के एक पूरे डिविज़न के हमले का सामना कर रही थी.
अब 99 बसर के हो चुके कैप्टन रोलैंड को अभी भी वो वक्त याद है जब वो कोहिमा शहर में जंग के मैदान में फ्रंटलाइन की तरफ बढ़ रहे थे.
वो कहते हैं, "हमने देखा की सेना के ट्रेंच तबाह कर दिए गए हैं, गांव उजाड़ दिए गए हैं. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ रहे थे हमें चारों तरफ मौत की गंध मिल रही थी."
युवा कैप्टेन रोलैंड ब्रितानी-भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट का हिस्सा थे और वो बीते कई सप्ताह से अपने से दस गुना बड़ी जापानी फौज का मुक़ाबला कर रहे अपने 1500 साथी सैनिकों की मदद के लिए फ्रंटलाइन पर जा रहे थे.
मित्र देश की सेना तक रसद पहुंचाने के सभी रास्ते जापानी सेनिकों ने तबाह कर दिए थे और उन्हें रसद के लिए हवाई मार्ग का सहारा लेना पड़ रहा था. कइयों को लगने लगा था कि इस जगह पर लड़ाई जारी रखना अब आसान नहीं होगा.
भारत पर हमला करने के लिए जापानी सेना बर्मा (आज का म्यांमार) से होते हुए कोहिमा की तरफ आगे बढ़ रही थी.
कैप्टेन रॉबिन रोलैंड
ROBIN ROWLAND
साल 1945 में बैंकॉक में ली गई इस तस्वीर में कैप्टेन रॉबिन रोलैंड (नीचे की कतार में बीच में) पंजाब रेजिमेन्ट के दूसरे सैनिकों साथ हैं.
जापानी सेना बर्मा में ब्रितानी सेना को हरा कर आगे बढ़ने में सफल रही थी. लेकिन किसी ने इस बात की उम्मीद नहीं की थी कि जानवरों और मच्छरों से भरे जंगलों को पार करते हुए वो नगालैंड की राजधानी कोहिमा और मणिपुर की राजधानी इम्फाल के नज़दीक पहुंच जाएंगे.
लेकिन जब असल में जापानी सेना कोहिमा और इम्फाल तक पहुंची ब्रितानी-भारतीय सेना को ज़िम्मेदारी दी गई कि इन दोनों शहरों को 15,000 सैनिकों वाली इस सेना से बचाए.
रणनीतिक तौर पर अहम दीमापुर शहर पर जापान का कब्ज़ा न हो इसके लिए कई सप्ताह तक लड़ाई चलती रही. दीमापुर के रास्ते जापानी सेना आसानी से असम तक पहुंच सकती थी और कइयों को ये लग रहा था कि इन शहरों को बचाना मुश्किल होगा.
कैप्टन रोलैंड याद करते हैं, "रात को जापानी सैनिक लहरों की तरह आगे बढ़ रहे थे."
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीकी सेना को घातक क्यों बनाया गया?
जब अमरीकी सैनिकों ने 40 टन के टैंक हाथ से उठाए
मानचित्र
यहां भीषण जंग जारी थी और ब्रितानी-भारतीय सेना कोहिमा के नज़दीक गैरिसन हिल तक सीमित हो कर रह गई थी. एक वक्त ऐसा भी आया जब जंग के हाथापाई में बदलने की नौबत आ गई थी और दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच केवल एक टेनिस कोर्ट जितना फासला रह गया था.
लेकिन जब तक पीछे से मदद नहीं मिली तब तक ब्रितानी-भारतीय सेना ने किसी तरह मोर्चा संभाले रखा. तीन महीने के बाद जून 1944 में जापानी सेना के 7000 सैनिक घायल हो चुके थे और उनके पास रसद पूरी तरह ख़त्म हो चुका था. ऐसे में वरिष्ठ अधिकारियों के मोर्चा न छोड़ने के आदेश के बावजूद सेना पीछे बर्मा की तरफ लौटने लगी.
कैप्टन रोलैंड कहते हैं "1500 ब्रितानी-भारतीय सैनिकों के लिए ये एक भयंकर लड़ाई थी. अगर जापानी गैरिसन हिल पर कब्ज़ा कर लेते तो वो आसानी से दीमापुर तक पहुंच सकते थे."
गैरिसन हिल के पास बना टैनिस कोर्ट
ANBARASAN ETHIRAJAN/BBC
गैरिसन हिल के पास बना टैनिस कोर्ट जिसके दोनों तरफ दो देशों की सेनाएं खड़ी थीं.
ब्रितानी-भारतीय सैनिकों को आदेश दिया गया कि वो पीछे हट रहे जापानी सैनिकों के पीछे जाएं और कैप्टन रॉबिन रोलैंड इसी टुकड़ी का हिस्सा थे.
इस जंग में जापान के कई सैनिक कॉलेरा, डाइफ़ायड और मलेरिया के कारण मारे गए. हालांकि रसद ख़त्म होने के कारण बड़ी संख्या में सैनिकों ने भूख के कारण अपनी जान गंवाई.
सेना की जानकारी रखने वाले सैन्य इतिहासकार रॉबर्ट लायमैन कहते हैं कि "कोहिमा और इम्फाल की जंग ने एशिया में द्वितीय विश्व युद्ध की दिशा बदल दी."
वो कहते हैं, "पहली बार युद्ध में जापानियों की हार हुई और इस हार से वो कभी उबर नहीं पाए."
ये जंग द्वितीय विश्व युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ लेकिन जिस तरह लोग डी-डे, वॉटरलू की लड़ाई और यूरोप और उत्तरी अफ्रीका में हुई लड़ाइयों को याद करते हैं, इस जंग को नहीं करते. कई लोग तो इसे "भूली जा चुकी लड़ाई" भी कहते हैं.
यॉर्क शहर में कोहिमा म्यूज़ियम के प्रमुख बॉब कुक मानते हैं कि कोहिमा से दूर ब्रिटेन में लोग इस जंग के बारे में कम ही जानते हैं.
वो कहते हैं, "ब्रिटेन के समुद्रतट से जर्मनी 22 मील की दूरी पर है और यहां के लोगों को डर सता रहा था वो था जर्मनी के हमले का ख़तरा."
लेकिन यहां लोगों को कोहिमा और इम्फाल की जंग के बारे में जानकारी देने का काम शुरू किया गया है.
साल 2013 में लंदन के इम्पीरियल वॉर म्यूज़ियम में इस बात पर चर्चा हुई कि ब्रिटेन की सबसे बड़ी लड़ाई कौन सी थी.
इसमें वॉटरलू या डी-डे ने हो कर कोहिमा इम्फाल युद्ध को ब्रिटेन की सबसे बड़ी लड़ाई के तौर पर चुना गया.
कोहिमा की जंग के बारे में उस वक्त रॉबर्ट लायमैन ने कहा था, "ब्रिटेन अब तक के अपने सबसे मुश्किल दुश्मन का सामना कर रहा था और काफी कुछ दांव पर लगा था."
लेकिन एशिया में हुई इस जंग के महत्व को सामने लाने के लिए शायद ही कोई कोशिश की गई हो. इस युद्ध में भारत समेत राष्ट्रमंडल देशों के हजारों सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी.
नगालैंड के कोहिमा में रहने वाले इतिहासकार चार्ल्स चेसी कहते हैं, इसका एक कारण ये था कि इस युद्ध के तुरंत बाद देश के विभाजन की बातें होने लगी थीं और भारत जल्द ही दो टुकड़ों में भी बंट गया था.
वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि उस वक्त भारत के नेता विभाजन के कारण पैदा हुई मुश्किलों और सत्ता हस्तांतरण अच्छे तरीके से हो, इन कोशिशों में लगे हुए थे. चीज़ें और जटिल हो जाएं या हाथों से निकल जाएं उससे पहले ब्रितानियों ने जल्दी में देश छोड़ने का फ़ैसला किया था."
कोहिमा की जंग को अक्सर एक औपनिवेशिक युद्ध के तौर पर देखा जाता है जबकि युद्ध के बाद गंभीर चर्चा का विषय भारत की आज़ादी की लड़ाई के इर्दगिर्द ही रहा.
इस जंग में सामान्य ब्रितानी-भारतीय सेना के अलावा नगा जातीय समुदाय के लोगों ने भी ब्रिटेन की तरफ से जंग में हिस्सा लिया. वो सेना के लिए ज़रूरी ख़ुफ़िया जानकारियां पहुंचा रहे थे. इस पहाड़ी इलाक़े के बारे में उनकी जानकारी का ब्रितानी-भारतीय सेना से पूरा फायदा लिया.
कोहिमा की जंग में हिस्सा लेने वाले नगा लोगों में से कुछ आज भी जीवित हैं. 98 साल के सोसांगतेम्बा आओ उन्हीं में से एक हैं.
वो याद करते हैं, "जापानी बॉम्बर हवाई जहाज़ रोज़ आसमान से हम पर बम फेंकते थे. उन जहाज़ों की आवाज़ बहुत तेज़ थी और हर हमले के बाद धुएँ का गुबार आसमान में उठता दिखता था. वो दर्दनाक नज़ारा था."
एक रुपये प्रति दिन लेकर उन्होंने दो महीने तक ब्रितानी-भारतीय सेना के साथ काम किया. वो कहते हैं आज भी वो जापानी सेना के लड़ने के तरीकों की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकते.
वो कहते हैं, "जापानी सेना का मनोबल बेहद ऊंचा था. उनके सैनिक मौत से नहीं डरते थे. उनके लिए सम्राट के लिए लड़ना भगवान के लिए लड़ने जैसा था. जब उन्हें समर्पण के लिए कहा जाता था तो वो दुश्मन पर आत्मघाती हमला करते थे."
दूसरे विश्व युद्ध के सबसे बुजुर्ग योद्धा का निधन
सोसांगतेम्बा आओ
हाल में इस युद्ध से जुड़ी 'मेमोरीज़ ऑफ़ अ फ़ॉरगॉटेन वॉर' नाम की एक डॉक्युमेंट्री ऑनलाइन रिलीज़ की गई है. जिस वक्त ये डॉक्यूमेन्टरी रिलीज़ की गई वो जापानी सेना के समर्पण की 75वीं सालगिरह के आसपास का वक्त था.
डॉक्युमेंट्री के निर्माता सुबिमल भट्टाचार्य और दल ने कई साल पहले जापान का दौरा किया था और युद्ध की याद में हुए समारोह में शिरकत की थी.
वो कहते हैं, "युद्ध में शिरकत करने वाले जापान और ब्रिटेन के पूर्व सैनिकों की जब मुलाक़ात हुई तो वो एक दूसरे को गले लगाकर रो पड़े. वहां ऐसे सैनिक भी थे जिन्होंने एक दूसरे पर गोलियां चलाई थीं लेकिन उनके बीच में एक ख़ास नाता दिख रहा था. हमने इसकी उम्मीद नहीं की थी."
जापानी सेना के लिए हार अपमानजनक थी और जापान के पूर्व सैनिक कोहिमा युद्ध से जुड़े अपने अनुभव के बारे में कम ही बात करते हैं.
डॉक्युमेंट्री में वाजिमा कोचिरो का साक्षात्कार शामिल है. वो कहते हैं, "जापानी सैनिकों के पास खाना नहीं बचा था. हम ऐसी जंग लड़ रह थे जिसमें हार तय थी और इस कारण हमने कदम पीछे हटाना शुरू किया."
युद्ध में बड़ी संख्या में नगा जनजाति के लोग भी मारे गए और उन्हें भी इस दौरान काफी मुश्किलें झेलनी पड़े. उन्हें उम्मीद थी कि सत्ता हस्तांतरण के वक्त ब्रिटेन भारत से हट कर, एक अलग नगा देश के तौर पर उन्हें नई पहचान देगा.
इतिहासकार चार्ल्स चेसी कहते हैं कि उनकी ये "उम्मीद पूरी नहीं हो पाई थी" और इसके बाद के दौर में भारत सरकार और सेना के साथ हुए संघर्ष में मारे गए हज़ारों नगा लोगों के लिए कइयों ने उन्हें दोषी ठहराया.
भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट के निमंत्रण पर साल 2002 में कैप्टेन रोलैंड अपने बेटे के साथ कोहिमा गए थे. वो गैरिसन हिल के पास वहीं खड़े हुए जहां 58 साल पहले वो अपने साथी सैनिकों के साथ जापानी सेना को आगे बढ़ने से रोक रहे थे.
कैप्टेन रोलैंड अपने बेटे के साथ गैरिसन हिल के पास बने वॉर मेमोरियल पहुंचे और अपने साथी सैनिकों को याद किया.
पुरानी बातों को याद करते हुए कैप्टेन रोलैंड कहते हैं, "मेरी यादें इस जगह से जुड़ी हैं. वो असल में एक बड़ी सैन्य उपलब्धि थी." (bbc.com)
इस्लामाबाद, 14 फरवरी | पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित थारपारकर जिले में गरीबी और सामाजिक असमानता के कारण विगत 13 महीनों में कम से कम 125 महिलाओं ने आत्महत्या कर ली। मीडिया रिपोर्ट से रविवार को इस आशय की जानकारी मिली। जियो न्यूज की रिपोर्ट में कहा गया है कि मिथी में आयोजित एक कार्यशाला के दौरान यह आंकड़ा सामने आया। इस कार्यशाला में मनोवैज्ञानिकों, सिविल सोयायटी और गैर-सरकारी संगठनों ने उन कारणों एवं समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जिसके कारण महिलाएं आत्महत्या जैसे कदम उठाने को विवश होती हैं।
कार्यशाला के एक प्रतिभागी ने खुलासा किया कि पिछले एक साल में 100 से अधिक महिलाओं ने अपनी जान ले ली।
कार्यशाला में इस विषय पर भी चर्चा की गई कि कैसे एक तरफ थारपारकर के लोग, खासकर महिलाएं और बच्चे विभिन्न बीमारियों से अपनी जान गंवा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गरीबी और रीति-रिवाज भी युवा महिलाओं को अपना जीवन समाप्त करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
थारपारकर सिंध प्रांत का सबसे बड़ा जिला है और यह पाकिस्तान में सबसे बड़ी हिंदू आबादी वाला इलाका है। लेकिन प्रांत के सभी जिलों के मुकाबले यहां का ह्यूमन डेवेलपमेंट इंडेक्स सबसे कम है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, इस जिले की 87 प्रतिशत आबादी गरीबी में रहती है। (आईएएनएस)
ओटावा, 14 फरवरी | कनाडा के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने नौ प्रांतों में वायरस के नए वेरिएंट की सूचना दी है। विशेषज्ञों ने इसके साथ ही कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर की चेतावनी भी दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, 13 फरवरी तक, कनाडा में ब्रिटेन के बी.1.1.7 वेरिएंट के 429 मामले, दक्षिण अफ्रीकी बी.1.351 वेरिएंट के 28 मामले और ब्राजीलियाई स्ट्रेन पी.1 के एक मामले दर्ज किए गए।
कनाडा की मुख्य लोक स्वास्थ्य अधिकारी थेरेसा टैम ने शनिवार को एक बयान में कहा, "हालांकि यह वेरिएंट के रूप में उभरने के लिए सामान्य है क्योंकि वायरस लगातार विकसित होते हैं, लेकिन कुछ वेरिएंट को 'चिंता का विषय' माना जा रहा है क्योंकि वे अधिक आसानी से फैलते हैं, कुछ अधिक गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं, या वर्तमान टीके उनके खिलाफ कम प्रभावी हो सकते हैं।"
कनाडा में कोविड-19 के अब तक कुल 823,048 मामले सामने आ चुके हैं और 21,213 मौतें हुई हैं।
ओंटारियो ने शनिवार को 1,300 नए मामलों के साथ ही 19 और मौतों की पुष्टि की।
ओंटारियो में कुल 164,307 लोगों को कोविड-19 वैक्सीन की दोनों खुराकें मिली हैं।
इस बीच, क्यूबेक में शनिवार को 1,049 नए मामले सामने आए, जिससे कुल मामलों की संख्या 275,880 तक पहुंच गई। यहां 33 और मौतों की पुष्टि की गई है। क्यूबेक में अब तक कुल 10,201 लोगों की मौत हो चुकी है। 290,953 लोगों को वैक्सीन की खुराक दी गई है। (आईएएनएस)
काबुल, 14 फरवरी | अफगानिस्तान में इस्लाम काला ड्राई पार्ट के कस्टम्स ऑफिस में आग लगने से कम से कम 20 लोग घायल हो गए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार की दोपहर को हेरात प्रांत के इस्लाम काला पोर्ट पर आग लगने से तेल, गैस और कार्गो ले जाने वाले 1,000 से ज्यादा ट्रक जल गए हैं।
रिपोर्ट में स्थानीय अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि आग के कारण पोर्ट को 50 मिलियन डॉलर का सीधा आर्थिक नुकसान हुआ है। बता दें कि यह पोर्ट अफगानिस्तान को ईरान से जोड़ता है। ईरान ने अफगानिस्तान के अधिकारियों द्वारा अनुरोध करने पर मदद भी की है।
प्रांतीय सरकार के प्रवक्ता जिलानी फरहाद ने बताया कि शनिवार को इस्लाम काला में आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच एक सशस्त्र झड़प हुई। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि क्या ये घटना आतंकवादी हमला था। उन्होंने केवल यही कहा कि, "अभी मामले में जांच चल रही है।" (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 14 फरवरी| अमेरिकी सीनेट ने रविवार को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 6 जनवरी को कैपिटल हिल में हुई हिंसा की घटना को लेकर चलाए गए महाभियोग से बरी कर दिया है।
इस दौरान सीनेट में उन्हें इस घटना के लिए दोषी ठहराए जाने की प्रक्रिया को लेकर वोटिंग हुई, जिनमें से सात रिपब्लिकन सहित 57 सीनेटरों ने उन्हें दोषी ठहराया, जबकि उन्हें दोषी करार दिए जाने के लिए सीनेट के जरूरी दो तिहाई यानि कि 67 वोटों की जरूरत थी।
दरअसल, कैपिटल हिल में हिंसा की घटना में डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी ने अमेरिकी सीनेट में उनके खिलाफ दो महाभियोग प्रस्ताव पेश किए थे। 6 जनवरी को हुए इस हमले में दो पुलिस अधिकारियों सहित पांच लोगों की मौत हुई थी।
सीनेट में रिपब्लिकन नेता चक शूमर ने ट्रंप को बरी किए जाने के बाद कहा कि यह अमेरिका के इतिहास में एक कलंकित वोटिंग रहा।
6 जनवरी को जिस वक्त अमेरिकी कांग्रेस में यहां के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन को चुनाव में मिली जीत की पुष्टि के लिए सत्र चल रहा था, उसी वक्त ट्रंप के कुछ समर्थकों ने जाकर यहां हमला बोला और तोड़फोड़ की। इस पर सदन में ट्रंप पर दंगा भड़काने का आरोप लगाया गया, जिसके तहत उनके समर्थक न केवल सीनेट के कक्ष में घुस आए थे बल्कि स्पीकर नैंसी पेलोसी जैसे कई अधिकारियों के कार्यालयों में भी प्रवेश किया था। सीनेट सत्र की अध्यक्षता कर रहे पूर्व उप राष्ट्रपति माइक पेंस सहित अन्य लोगों को बड़ी मुश्किल से वहां से निकाला गया था।
यह दूसरी बार है जब ट्रंप को महाभियोग से बरी किया गया। (आईएएनएस)
टोक्यो, 14 फरवरी| जापान के फुकुशिमा प्रांत में रिक्टर पैमाने पर 7.3 तीव्रता के भूकंप के बाद कम से कम 30 लोग घायल हो गए। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी। जापान के मौसम विज्ञान एजेंसी (जेएमए) ने पहले शनिवार देर रात आई भूकंप की तीव्रता 7.1 बताई और बाद में इसे संशोधित कर 7.3 कर दिया गया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि मियागी और फुकुशिमा प्रांत में लोग भूकंप से घायल हुए हैं।
जेएमए के अनुसार, भूकंप के झटके रात 11.08 बजे आए।
अभी तक सुनामी की कोई चेतावनी जारी नहीं की गई है।
मुख्य कैबिनेट सचिव कात्सुनोबु कातो ने कहा कि शक्तिशाली भूकंप के बाद लगभग 950,000 घर अंधेरे में डूब गए।
कातो ने कहा कि बिजली गुल होने से टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी होल्डिंग्स इंक द्वारा कवर किए गए क्षेत्र के तहत 860,000 घर और टोहोकू इलेक्ट्रिक पावर कंपनी के तहत 90,000 घर प्रभावित हुए।
भूकंप के बाद, जापानी सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय में एक टास्क फोर्स का गठन किया।
प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने सरकार को निर्देश दिया कि वह भूकंप से होने वाली क्षति का जल्द से जल्द सर्वेक्षण करे, आवश्यक क्षेत्रों में बचाव के प्रयास करे और जनता तक जल्द से जल्द सूचना पहुंचाए।
भूकंप राजधानी टोक्यो में भी महसूस किया गया था जहां रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 4 रही।
टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी ने कहा कि भूकंप के बाद फुकुशिमा दाइची और दैनी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में रिएक्टरों के साथ कोई असामान्यता नहीं है। (आईएएनएस)
पेरिस, 14 फरवरी | फ्रांस में कोविड-19 के 21,231 मामले दर्ज किए गए हैं और इसके साथ ही यहां संक्रमितों की कुल संख्या 3,448,617 हो गई है, जो कि दुनिया का छठा सबसे प्रभावित देश बना है। पब्लिक हेल्थ एजेंसी की वेबसाइट पर प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, बीते दिन कोविड-19 से 199 लोगों की मौत हुई है, जो कि शुक्रवार से 320 कम है। फ्रांस में कोविड-19 से अब तक 81,647 लोग जान गंवा चुके है, जो ब्रिटेन और इटली के बाद यूरोप में तीसरे पायदान पर है और पूरी दुनिया में सातवें नंबर पर है।
पिछले सात दिनों में महामारी से 10,037 नए मरीज अस्पतालों में एडमिट हुए हैं, जिनमें से 1,795 मरीजों को गहन चिकित्सा विभाग में भर्ती कराया गया है।
यहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस बात की जानकारी दी है कि देश में अब तक 2,888,430 लोगों को कोरोना वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है, जबकि इनमें से 639,899 लोगों को इसके दो टीके लग चुके हैं।
फ्रांस का लक्ष्य मई के अंत तक अपने यहां के 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को कोरोना का टीका लगवाना है और सभी वयस्कों का टीकाकरण अगस्त के अंत तक किए जाने का लक्ष्य बनाया गया है। (आईएएनएस)
टोक्यो, 13 फरवरी| जापान मौसम विज्ञान एजेंसी (जेएमए) के अनुसार, शनिवार रात जापान के पूर्वोत्तर फुकुशिमा प्रान्त में रिक्टर स्केल पर 7.1 तीव्रता का भूकंप के झटके महसूस किए गए। सिन्हुआ ने बताया कि (स्थायी समय अनुसार) रात करीब 11:08 बजे टेम्पलबोर हुआ। इसका उपकेंद्र 37.7 डिग्री उत्तर में अक्षांश और 141.8 डिग्री पूर्वी देशांतर पर और 60 किमी की गहराई पर था।
भूकंप की तीव्रता के पैमाने 6 पर फुकुशिमा प्रान्त के कुछ हिस्सों में, जबकि चोटियों पर 7 मैग्नीट्यूड के रफ्तार से झटका महसूस किया गया।
टोक्यो की राजधानी में भी झटके महसूस किए गए। (आईएएनएस)
जापान में शनिवार को स्थानीय समयानुसार रात 11.08 बजे पूर्वी समुद्री तट पर 7.1 तीव्रता का भूकंप आया है और अभी तक सुनामी की कोई चेतावनी जारी नहीं की गई है.
एएफ़पी समाचार एजेंसी ने बताया है कि अमेरिका और जापानी प्रशासन ने सुनामी की चेतावनी नहीं जारी की है.
अमेरिकी एजेंसी यूएसजीएस के अनुसार, फ़ुकुशिमा के पास प्रशांत महासागर में 54 किलोमीटर की गहराई में इसका केंद्र था.
वहीं, समाचार एजेंसी एपी ने जापान के सरकारी टीवी प्रसारक एनएचके टीवी के हवाले से ख़बर दी है कि भूकंप की वजह से फ़ुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट को क्या किसी तरह का कोई नुक़सान हुआ है इसकी जांच की जा रही है और साथ ही यह भी कहा है कि देश के किसी अन्य न्यूक्लियर प्लांट में किसी और तरह की गड़बड़ी की कोई शिकायत अभी तक नहीं मिली है.
एनएचके टीवी के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.1 थी.
अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.1 थी और इसका केंद्र नामी शहर से 70 किलोमीटर दूर था. फ़ुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट नामी शहर में ही है.
जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार नामी में आए इस शक्तिशाली भूकंप के बाद शहर में और दो बार भूकंप के झटके आए हैं. जहां एक की तीव्रता 4.9 मापी गई है वहीं अन्य 5.3 की तीव्रता का भूकंप था.
भूकंप के झटके राजधानी टोक्यो से लेकर देश के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों तक महसूस किए गए. यह वही इलाक़ा है जहां मार्च 2011 में सुनामी और भूकंप की वजह से भयंकर तबाही हुई थी.
साल 2011 में फ़ुकुशिमा में आए भयंकर भूकंप के कारण सुनामी आई थी और इस घटना में 18,000 से अधिक लोग मारे गए थे.
जापान में भूकंप आने के बाद इसके वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे हैं. (bbc.com/hindi)
बीजिंग, 13 फरवरी | सभी देश सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को सख्ती से लागू कर रहे हैं। जिसकी वजह से दुनिया भर में कोरोना के नये पुष्ट मरीजों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। लेकिन लोगों को अभी भी सतर्क रहने की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस अधनोम घेब्रेयसस ने 12 फरवरी को संवाददाता सम्मेलन में यह बात कही। घेब्रेयसस ने अपील की कि सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को सख्ती से जारी रखने के अलावा इसके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय महामारी की रोकथाम और नियंत्रण के समय को सुनिश्चित कर सकेगा।
इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने एक परियोजना का प्रस्ताव रखा कि वर्ष 2021 के प्रथम सौ दिनों के भीतर सभी देशों के स्वास्थ्य-कर्मियों और बुजुर्गों को वैक्सीन लगायी जाए। अगले शुक्रवार को 50वां दिन होगा। उन्होंने महामारी-रोधी वैक्सीन के उत्पादन में तेजी लाने की अपील की। ताकि पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन का उचित वितरण हो सके।
घेब्रेयसस ने यह भी कहा कि कोरोना वायरस के स्रोत की खोज करने वाले डब्ल्यूएचओ के संयुक्त विशेषज्ञ दल ने चीन में सभी कार्य पूरे किए हैं। अगले कुछ हफ्तों में वे पूरी संबंधित रिपोर्ट जारी करेंगे। (आईएएनएस)
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)