अंतरराष्ट्रीय
ढाका, 19 दिसंबर| बांग्लादेश के जॉयपुरहाट जिले में एक रेलवे क्रॉसिंग पर शनिवार सुबह एक बस ट्रेन की चपेट में आ गई और कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एकेएम आलमगीर ने संवाददाताओं को बताया कि सुबह करीब 7 बजे हुई दुर्घटना में छह लोग घायल हो गए।
उन्होंने कहा कि राजशाही शहर जाने वाली ट्रेन क्रॉसिंग पर ये दर्दनाक हादसा हुआ।
अधिकारी के अनुसार, घटनास्थल से 10 शव बरामद किए गए।
जहां ने कहा कि आठ घायलों को स्थानीय अस्पतालों में ले जाया गया, जिनमें से दो ने दम तोड़ दिया।
जॉयपुरहाट जिला प्रशासन प्रमुख शरीफुल इस्लाम ने कहा कि यह दुर्घटना गेटमैन की सरासर लापरवाही के कारण हुई।
उन्होंने कहा, "हमें पता चला है कि गेटमैन दुर्घटना के समय सो रहा था।" (आईएएनएस)
मॉस्को, 19 दिसंबर| रूस ने अपने सोयूज-2.1 बी कैरियर रॉकेट को सफलतापूर्वक लॉन्च कर लिया है, जिससे ब्रिटेन स्थित वनवेब कंपनी के 36 उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंच गए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, रूसी स्पेस कॉर्पोरेशन रोस्कोस्मोस ने बताया कि रॉकेट ने देश के सुदूर पूर्व में वोस्टोचनी कोस्मोड्रोम से अपराह्न् 3.26 बजे उड़ान भरी।
रोस्कोस्मोस ने कहा, "आज के लॉन्च को वोस्टोचनी कॉस्मोड्रोम से प्रक्षेपित पहले पूर्ण वाणिज्यिक लॉन्च के रूप में चिह्न्ति किया जाएगा।"
समाचार एजेंसी तास के अनुसार, वोस्टोचनी स्पेसपोर्ट से वनवेब उपग्रहों का यह पहला प्रक्षेपण था और इस अंतरिक्ष केंद्र से पहला वाणिज्यिक प्रक्षेपण था।
28 फरवरी, 2019 को फ्रेंच गुयाना के कौरू अंतरिक्ष केंद्र से एक सोयूज-एसटी कैरियर रॉकेट द्वारा पहले छह वनवेब उपग्रह लॉन्च किए गए थे और उसी दिन कक्षा में रखे गए थे।
इस वर्ष बैकोनूर अंतरिक्ष केंद्र से दो और प्रक्षेपण किए गए।
कंपनी की लगभग 600 उपग्रह तैनात करने की योजना है। (आईएएनएस)
जिनेवा, 19 दिसंबर| इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) ने कहा है कि दुनियाभर के प्रवासी मार्गो पर 2019 में हुईं 5,327 मौतों की तुलना में इस साल 3,174 मौतें हुईं हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, आईओएम ने शुक्रवार को जारी किए गए एक बयान में कहा कि कोरोनोवायरस महामारी और उसके कारण लगे यात्रा प्रतिबंधों के बावजूद हजारों लोगों ने अपने घरों को छोड़कर रेगिस्तान और समुद्र के जरिए खतरनाक यात्राएं कीं।
आईओएम ने कहा कि 2020 में भले ही मरने वाले लोगों की की कुल संख्या पिछले वर्षो की तुलना में कम थी, लेकिन कुछ रास्तों में मरने वालों की संख्या में वृद्धि हुई। जैसे स्पेन के कैनरी द्वीप समूह में 2019 में 210 और 2018 में 45 की तुलना में इस साल कम से कम 593 लोगों की मौत हुई।
आईओएम के प्रवक्ता पॉल डिलन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "2020 में प्रवासियों की मौतों की दर्ज हुई संख्या में कमी का मतलब यह नहीं है कि मौतों में कमी आई है, बल्कि ऐसा कोविड-19 के कारण इन मामलों की निगरानी में आई कमी के चलते हुआ है।"
संयुक्त राष्ट्र के नए आंकड़ों के अनुसार, विश्व स्तर पर 2019 में प्रवासियों की अनुमानित संख्या 27.2 करोड़ थी, जो 2010 की तुलना में 5.1 करोड़ अधिक है। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 19 दिसंबर | अमेरिकी राष्ट्रपति चुने गए जो बाइडेन की ट्रांजिशन टीम ने भारतीय-अमेरिकी वेदांत पटेल को असिस्टेंट प्रेसिडेंट सेक्रेटरी नियुक्त किया है। शुक्रवार को बाइडेन-हैरिस की ट्रांजिशन टीम ने इसकी घोषणा की। टीम की वेबसाइट पर की गई एक पोस्ट के अनुसार, पटेल पहले बाइडेन-हैरिस कैंपेन के रिजनल कम्युनिकेशंस डायरेक्टर रह चुके हैं।
बाइडेन के शुरूआती कैंपेन के दौरान पटेल ने नेवादा और पश्चिम में कम्युनिकेशंस डायरेक्टर के तौर पर काम किया। इसके अलावा भी कई अहम पदों पर रह चुके हैं।
भारत में जन्मे और पटेल कैलिफोर्निया-रिवरसाइड यूनिवर्सिटी और फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हैं।
नियुक्ति के बाद पटेल ने शुक्रवार को ट्वीट किया, "मैं जो बाइडेन के साथ काम करने को लेकर उत्साहित हूं। मैं देश के लिए उनकी सोच पर भरोसा करता हूं। बाइडेन और हैरिस उस सोच को वास्तविकता में बदलने के लिए काम कर रहे हैं इसलिए इस टीम का हिस्सा बनने पर गर्व महसूस कर रहा हूं।"
बाइडेन-हैरिस प्रशासन का हिस्सा बने भारतीय-अमेरिकियों की सूची में पटेल भी शामिल हो गए हैं। इससे पहले भारतीय-अमेरिकी विवेक मूर्ति को अमेरिका का सर्जन जनरल बनाया गया है। वहीं ऐसे अहम पद पाने वालों की सूची में मीजू वर्गीस, नीरा टंडन आदि के नाम भी शामिल हैं। 2 अन्य भारतीय-अमेरिकियों को नए प्रशासन में ट्रांजिशन के लिए अरुण मजूमदार और किरण आहूजा को भी अहम पद दिए गए हैं।
इसके अलावा 19 भारतीय-अमेरिकियों को विभिन्न ट्रांजिशन टीमों में और 2 अन्य भारतीय-अमेरिकियों अतुल गवांडे और सलीन गाउंडर को कोविड -19 टास्क फोर्स में नियुक्त किया गया है।(आईएएनएस)
काबुल, 19 दिसम्बर | अफगानिस्तान के परवान प्रांत के एक प्रमुख अमेरिकी एयरबेस बगराम एयरफील्ड में शनिवार को कई रॉकेट दागे गए। हालांकि, कोई नुकसान या किसी के हताहत होने की फिलहाल कोई खबर नहीं है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने एक प्रांतीय प्रवक्ता के हवाले से बताया, "कलंदर खिल इलाके में लावारिस पड़े ट्रक से सुबह लगभग 5.50 बजे बगराम एयरफील्ड पर पांच राउंड रॉकेट दागे गए।"
उन्होंने कहा कि सात रॉकेट नाकाम रहे और अफगान सुरक्षा बलों ने उन्हें निष्क्रिय कर दिया।
अफगान राजधानी काबुल से करीब 50 किलोमीटर दूर उत्तर में बगराम एयरफील्ड, पिछले 19 वर्षों में अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो सैन्यअड्डे के रूप में संचालित होता रहा है।
अभी तक किसी समूह ने हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
अफगानिस्तान में हाल के हफ्तों में कई रॉकेट हमले हुए हैं।
12 दिसंबर को, काबुल शहर के विभिन्न हिस्सों में 10 रॉकेट दागे जाने के बाद कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गई और दो अन्य घायल हो गए थे।
वहीं, 21 नवंबर को, शहर के विभिन्न हिस्सों में कम से कम 23 रॉकेट दागे गए, जिसमें आठ नागरिकों की मौत हो गई ती। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 19 दिसंबर | गूगल ने अमेरिका में 90,000 कर्मचारियों को मुफ्त साप्ताहिक कोविड-19 टेस्ट की सुविधा प्रदान की है।
वाल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, गूगल (और उसकी सहायक कंपनियां, जिनमें यूट्यूब भी शामिल है) में प्रत्येक अमेरिकी कर्मचारी घर पर निशुल्क टेस्ट के लिए साइन अप करने के लिए पात्र होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, इसके लिए गूगल अपने पार्टनर बायोआईक्यू को प्रति टेस्ट 50 डॉलर का भुगतान कर रहा है।
यदि 90,000 कर्मचारियों के मद्देनजर देखा जाए तो यह लागत प्रति सप्ताह 45 लाख डॉलर(यदि सभी कर्मचारी इसका प्रयोग करते हैं तो) तक आएगा।
कंपनी के एक प्रवक्ता ने द वर्ज को बताया कि इंटर्न भी कार्यक्रम के लिए पात्र होंगे, और वह 2021 में अंतर्राष्ट्रीय कर्मचारियों के लिए इसका विस्तार करेंगे।
एमेजॉन वर्तमान में उन कर्मचारियों को कोविड टेस्ट सुविधा प्रदान करता है, जिन्हें खुदरा स्थान या गोदाम की तरह भौतिक स्थान पर काम करना पड़ता है।
सर्च-इंजन की दिग्गज कंपनी ने अपने वर्क फ्रॉम होम नीति को सितंबर 2021 तक बढ़ाने की घोषणा की है।
गूगल और अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई ने कर्मचारियों को एक ईमेल भेजा, जिसमें उन्होंने बताया कि कंपनी पूरी तरह से हाइब्रिड वर्कफोर्स मॉडल का उपयोग कर रही है।
गूगल के अनुसार, जब ऑफिसर फिर से खुलेंगे तो उसके कर्मचारी सप्ताह में तीन दिन के लिए कार्यस्थल पर आ सकते हैं और बाकी के दिनों में घर से काम कर सकते हैं।
गूगल द्वारा वर्क फ्रॉम होम नीति का विस्तार करने की हालिया घोषणा विश्व स्तर पर उसके सभी 200,000 कर्मचारियों पर लागू होगी।
गूगल ने यह भी कहा कि वह अपने कर्मचारियों को 2021 के मध्य से कोविड -19 वैक्सीन उपलब्ध कराने में मदद करने के लिए अवसरों की तलाश कर रहा है, लेकिन तब जब वैश्विक स्तर पर अधिक जोखिम वाले और अधिक प्राथमिकता वाले लोगों को वैक्सीन मिल जाएगी, उसके बाद। (आईएएनएस)
चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों पर दमन और बंधुआ मजदूरी के आरोपों के चलते अमेरिका ने चीन के शिनजियांग प्रांत से आयात किए जा रहे कपास या उसके कपास से बने कपड़ों का देश में इस्तेमाल बंद करने का निर्णय लिया है.
डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा-
जुलाई 2020 में भी शिनजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी पर ग्लोबल मैगनित्सकी प्रतिबंध लगाए गए थे और उस समय भी यह बातें उठाई गई थीं. जुलाई के बाद सितंबर 2020 में भी अमेरिका के निचले सदन ने उइगुर फोर्स्ड लेबर प्रिवेन्शन एक्ट भारी बहुमत से पास किया था. हालांकि सीनेट को इस पर अभी फैसला लेना बाकी है लेकिन इस एक्ट के बनने के बाद चीन पर काफी दबाव बनेगा. दिसम्बर के शुरू में उठाए गए नए कदम के दूरगामी परिणाम होंगे. अमेरिकी सरकार पूरे शिनजियांग से आने वाले कपास पर प्रतिबंध लगाने की सोच रही है तो वहीं चीन भी इस पर चुप नहीं बैठेगा. मामला लाखों डॉलर के कारोबार का है.
अमेरिकी कस्टम और सीमा सुरक्षा एजेंसी के प्रतिनिधि ने कहा है कि उसने "विदहोल्ड रिलीज ऑर्डर” के तहत शिनजियांग से बनकर आने वाले कपास और इससे जुड़े उत्पादों पर रोक लगा दी है. शिनजियांग से आने वाला ज्यादातर कपास और कपड़े शिनजियांग प्रोडक्शन एंड कंस्ट्रक्शन कम्पनी से ही बन कर आते हैं. चीन के कुल कपास और वस्त्र निर्यात में भी इसका एक तिहाई हिस्सा है. इस कंपनी पर आरोप है कि उसने शिनजियांग के री-एजुकेशन कैंपों में जबरन बंदी बना कर रखे गए 10 लाख से अधिक उइगुर लोगों को गुलाम बना कर उसे बंधुआ मजदूरी कराई है.
अंतरराष्ट्रीय कंपनियां और चीनी कपास
यह कंपनी सिर्फ अमेरिका को ही आपूर्ति नहीं करती. जापान की एक बड़ी कपड़ा कंपनी मूजी और यूनिक्लो भी शिनजियांग कपास का इस्तेमाल अपने कपड़ों में करती है. मूजी की दुनिया में 650 से ज्यादा रिटेल एजेंसियां हैं. मूजी की तरह की ही ना जाने कितनी कंपनियां दुनिया में हैं जो बुद्धिजीवी वर्ग की पसंदीदा हैं. लेकिन इन खबरों के आने के बाद यह सोचना लाजमी है कि सतत विकास और नो ब्रांड पॉलिसी के नाम पर लाखों लोगों की गुलामी कहां तक जायज है.
इस खबर के आते ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति के तमाम टिप्पणीकारों ने अमेरिकी सरकार के इस निर्णय को राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की चीन से तकरार से जोड़ कर अपना पल्ला झाड़ लिया. जाहिर तौर पर यही बात चीनी सरकार को भी कहना था. चीनी सरकार ने कहा कि शिनजियांग के लोग अपनी स्वेच्छा से अपने रोजगार चुनते हैं और री-एजुकेशन कैम्प में "स्वेच्छा” से "पुनर्शिक्षित” हो रहे उइगुर लोग इस तरह के किसी काम में नहीं लगे हैं.
यह बात अमेरिका और चीन की आपसी खींचतान और आरोप प्रत्यारोपों तक ही सीमित नहीं है. संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा है कि इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि चीन ने 10 लाख से अधिक उइगुर मुसलमानों को वोकेशनल ट्रेनिंग और री-एजुकेशन के नाम पर बंदी बना रखा है. इस आरोप पर भी चीन का कहना है कि ना तो इतने ज्यादा लोग कैंपों में हैं, ना ही उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, और ना ही उनसे बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है. संयुक्त राष्ट्र संघ के पास चीन के खिलाफ बातें कहने की कोई खास वजह नहीं दिखती और सैटेलाइट से ली गयी तस्वीरों और जमीन पर बनी इमारतों और उनमें रह रहे लोगों की मैपिंग से इस बात की पुष्टि हो चुकी है.
सप्लाई चेन में चीनी कपास की शिनाख्त
अमेरिका के प्रतिबंध लगाने के बाद शायद दूसरे देश भी इस तरफ कदम बढ़ाएं लेकिन यह काम इतना सीधा नहीं, जितना लग रहा है. जब तक चीन की सरकार खुद नहीं बताती, तब तक अमेरिका या किसी भी सरकार के लिए यह पकड़ना मुश्किल होगा कि चीनी कपास शिनजियांग का है या नहीं. सप्लाई चेन में चीन से जुड़े बड़े-बड़े ब्रांड्स जैसे मूजी, ऊनिक्लो, जारा, हूगो बॉस, ब्रुक्स ब्रदर्स और एसपिरिट के लिए यह पकड़ना मुश्किल होगा कि कपड़ों के लिए कच्चा माल कहां से आया. ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों की कई कंपनियों के कपड़े बांग्लादेश और वियतनाम में बनते हैं. अमेरिकी प्रतिबंध के बाद भी शिनजियांग के कपास को इन देशों में निर्यात किया जा सकता है और लगता यही है कि यह आपूर्ति बेरोकटोक जारी रहेगी.
पिछले कुछ दशकों में तियानमेन स्क्वैयर की घटना और सैकड़ों तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं के स्वायत्तता और मानवाधिकारों के लिए आत्मदाह चीनी जनवादी गणतंत्र पर सवालिया निशान लगाते रहे हैं. लेकिन पिछले दो-तीन साल में मानवाधिकारों को लेकर चीनी सरकार के रवैये में बहुत परिवर्तन आया है. मानवाधिकार और नस्लवादी हिंसा के मामलों ने चीन की साख को भी गिराया है. इस कड़ी में सबसे ताजा और शायद तिब्बत के बाद अब तक का सबसे भयानक उदाहरण है शिनजियांग में उइगुर लोगों पर हो रहा दमन.
पहले से बहुत मजबूत है साम्यवादी चीन
1989 की तियानमेन स्क्वैयर की घटना या 2008 के चीनी ओलंपिक के दौरान तिब्बती बौद्ध भिक्षुओं के आत्मदाह के समय भी चीन उतना मजबूत नहीं था जितना आज है. खास तौर पर 1990 के दशक में चीन को मानवाधिकार के मामले पर तमाम कड़ी आलोचनाएं सहनी पड़ीं थी. लेकिन आज ऐसा नहीं है. आज पूरी दुनिया और मानवाधिकारों के वकील, और तो और मुसलमानों के तरफदार चीन के मुस्लिम बहुल प्रांत शिनजियांग में उइगुर लोगों पर हो रहे अत्याचारों पर उफ तक करने से डर रहे हैं. जब चीन में दमनकारी ताकतों के खिलाफ समाजवादी क्रांति शुरू हुई थी, तब से लेकर 1949 में चीनी जनवादी गणतंत्र की स्थापना तक पूरी दुनिया का मानना था कि चीन सोवियत संघ या वैसा ही एक अवामी गणराज्य बनेगा. चीन में क्रांति के अगुआ और बहुसंख्य लोग ग्रामीण और मजदूर किसान ही थे.
लेकिन पिछले 70 वर्षों के चीनी इतिहास से साफ है कि चीन सोवियत संघ के रास्ते पर चलने, फिसलने और फिर उठने की कवायद से बहुत दूर निकल चुका है. इतना दूर कि जनवाद और साम्यवाद को परिभाषित करने में भी इसे अपने पैमाने ईजाद करने पड़े हैं. नतीजतन, आज हमें बौद्धिक बहस में ‘चीनी तरीके का साम्यवाद' और ‘चीनी शैली का जनवाद' जैसे जुमले देखने-सुनने को मिलते हैं. शिनजियांग के उइगुरों पर हो रहे जुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां फिलहाल तो रुई की तरह उड़ते नहीं दिखते, लेकिन विडंबना यह है कि रुई ही उन पर सालों से होने वाले जुल्म का जरिया बन गयी लगती है.
आदमी, औरत और बच्चे, सारे लोग एक समान रूप से कोरोना वायरस की चपेट में आए. हालांकि पुरुषों में यह संक्रमण ज्यादा गंभीर हुआ और मरने वालों की संख्या भी ज्यादा रही. डीडब्ल्यू ने इसकी वजहें ढूंढने की कोशिश की है.
डॉयचे वैले पर अलेक्जांडर फ्रॉएंड का लिखा-
महामारी की शुरूआत से ही इस बात के कई संभावित कारण बताए गए कि क्यों संक्रमित होने के बाद पुरुष इस बीमारी से ज्यादा परेशान हो रहे हैं. पुरुषों का अपनी सेहत पर ज्यादा ध्यान ना देना, ज्यादा सिगरेट पीना या फिर पोषण से भरपूर खाना नहीं खाना, इन सिद्धांतों के मुताबिक खासतौर से बुजुर्गों की जीवनशैली ज्यादा नुकसानदेह बताई गई. इसके साथ ही पुरुष डॉक्टर को दिखाने के लिए ज्यादा लंबा इंतजार करते हैं.
9 दिसंबर को नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में छपी एक नई स्टडी में पहले हुई इन खोजों की पुष्टि हुई है. इससे पहले जून में ग्लोबल हेल्थ 50/50 नाम की एक रिसर्च के तहत 20 देशों से जुटाए गए आंकड़े जून में ही यह साबित कर चुके हैं कि वायरस पुरुष और महिलाओं को एक समान रूप से संक्रमित करता है. हालांकि पुरुषों में इसके गंभीर होने और संक्रमण से मौत होने के ज्यादा आसार हैं. लैंगिक आधार पर देखें तो यह अनुपात दो तिहाई और एक तिहाई का है. यानी हर तीन मौतों में दो पुरुष और एक महिला है. इसमें एक कारण तो निश्चित रूप से पुरुषों की पहले से मौजूद बीमारी की स्थिति है. उदाहरण के लिए पुरुष हृदय रोगों की चपेट में ज्यादा आते हैं और ऐसी बीमारियों से उनकी मौत भी महिलाओं की तुलना में ज्यादा होती है.
इसके अलावा एक दूसरा निर्णायक कारण है उम्र की संरचना. जर्मनी के रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट आरकेआई के मुताबिक 70-79 साल की उम्र तक के सभी उम्र के समूहों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की मौत दोगुनी ज्यादा हुई. यहां तक कि आरकेआई भी इस लैंगिक अंतर की वजह बता पाने में नाकाम रहा.
एसीई2 रिसेप्टर
एसीई2 रिसेप्टर शायद इसमें अहम भूमिका निभा रहा है क्योंकि यह कोविड-19, सार्स और एमईआरएस सबके लिए एक तरह से रास्ते का काम करता है. ये सारी बीमारियां कोरोना वायरस के कारण होती हैं. म्यूनिख की एलएमयू मेडिकल कॉलेज में एनेस्थीसिया विभाग के निदेशक बैर्नहार्ड स्विसलर ने इस साल जून में कहा था कि एमईआरएस की चपेट में भी पुरुष ही ज्यादा आए. यूनिवर्सिटी मेडकल सेंटर ग्रोनिंगन की एक स्टडी के मुताबिक एसीई2 रिसेप्टर की पुरुषों में ज्यादा मात्रा होती है.
रिसर्चरों ने एसीई2 रिसेप्टर और हार्ट फेल होने के बीच संभावित संबंध ढूंढने की प्रक्रिया में इस लैंगिक अंतर का पता लगाया. स्विसलर के मुताबिक रिसर्चर फिलहाल इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या एसीई को नियंत्रित करने वाली एंटीहाइपरटेंसिव दवा जैसी चीजों से कोशिकाओं में एसीई2 रिसेप्टर का बनना बढ़ जाता है और लोग संक्रमित हो जाते हैं. स्विसलर का कहना है कि निश्चित रूप से यह बात सोची जा सकती है लेकिन अब तक कुछ भी साबित नहीं हुआ है.
एसीई2 रिसेप्टर वो कोशिकाएं हैं जो कोरोना वायरस या फिर सार्स और दूसरे कुछ वायरसों के लिए मेजबान का काम करती हैं. वायरस इन्हीं कोशिकाओं के रास्ते शरीर में प्रवेश करते हैं.
एस्ट्रोजेन और मजबूत इम्यून सिस्टम
महिलाओं का प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम भी पुरुषों की तुलना में ज्यादा सहनशील होता है. इसकी मुख्य वजह है मादा सेक्स हार्मोन एस्ट्रोजेन. यह इम्यून सिस्टम को उत्प्रेरित करता है ताकि यह तेजी से काम करे और पैथोजेन के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रवैया अपनाए. दूसरी तरफ नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन शरीर के अपने सुरक्षा तंत्र की राह में बाधा खड़ी करता है.
वायरोलॉजिस्टों का कहना है कि औरतों के इम्यून सिस्टम का वायरस के संक्रमण के खिलाफ मजबूती से मुकबला करना आमतौर पर दूसरे वायरसों के मामले में भी नजर आता है. इनमें इनफ्लुएंजा या सामान्य सर्दी खांसी भी शामिल है. दूसरी महिलाएं अकसर अपने इम्यून सिस्टम के ज्यादा सक्रिय होने की वजह से भी बीमार होती हैं. इन मामलों में इम्यून सिस्टम अपनी ही कोशिकाओं पर हमला कर देता है. यह कोविड -19 के लिए भी चीजों को मुश्किल बनाती है.
महिलाओं के पक्ष में कुछ "जेनेटिक कारण" भी हैं. मॉल्यूक्यूलर वायरोलॉजिस्ट थॉमस पीचमन ने डीडब्ल्यू को बताया, "पैथोजेन की पहचान के लिए जिम्मेदार जीन जैसे इम्यून से जुड़े कुछ जीन एक्स क्रोमोसोम के कोड में होते हैं. महिलाओं में दो एक्स क्रोमोसोम होते हैं जबकि पुरुषों में सिर्फ एक, इसलिए भी औरतों को यहां फायदा होता है.
आश्चर्यजनक रूप से भारत में की गई रिसर्च दिखाती है कि यहां कोविड-19 के कारण पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मौत का ज्यादा खतरा है. रिसर्च ने दिखाया है कि संक्रमित लोगों में महिलाओं के लिए मौत की दर 3.3 फीसदी है जबकि पुरुषों के लिए 2.9 फीसदी. 40 से 49 आयु समूह के लोगों में 3.2 फीसदी संक्रमित औरतों की मौत हुई और 2.1 फीसदी पुरुषों की. इसी तरह 5-19 साल के आयु समूह में तो केवल लड़कियों और औरतों की ही मौत हुई.
भारत इस मामले में क्यों अपवाद है इसकी बारीकी से छानबीन की जा रही है. अनुमान है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत में पुरुषों की तुलना में बुजुर्ग महिलाओं की संख्या ज्यादा है. रिसर्च से यह भी पता चला है कि भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य पर पुरुषों की तुलना में कम ध्यान दिया जाता है. महिलाएं डॉक्टरों के पास कम जाती हैं और अकसर खुद से ही दवा लेकर काम चलाती हैं. तुलनात्मक रूप से उनका टेस्ट या इलाज देर से शुरू होता है.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्रोफेसर एसवी सुब्रह्मण्यम ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "इसमें कितने हिस्से की जिम्मेदारी जैविक कारणों को है और कितने हिस्से की सामाजिक कारणों को यह अभी साफ नहीं है. भारत के लिए लैंगिक कारण एक अहम कारक हो सकता है." 1918 में जब स्पैनिश फ्लू का प्रकोप हुआ तब भी भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की ज्यादा मौत हुई. औरतों में संक्रमण इसलिए ज्यादा हुआ क्योंकि वो कुपोषित थीं, उनमें से ज्यादातर गंदे और बंद घरों में रहती थी. ऐसे में पुरुषों की तुलना में उनके बीमार होने की आशंका ज्यादा थी.
बच्चों को कम खतरा
कोरोना वायरस के मामले में बच्चे समाज में सबसे कमजोर नहीं हैं. ज्यादातर बच्चों में इसकी वजह से मामूली परेशानी हई और अकसर बच्चों के संक्रमित होने पर भी उनमें कोई लक्षण नजर नहीं आए. जर्मनी में महामारी शुरू होने के बाद से इसकी चपेट मेंआ कर 9000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है लेकिन इसमें महज तीन लोग है जिनकी उम्र 18 साल से कम है.
इसका कारण भी अब तक पूरी तरह साफ नहीं है. डॉक्टरों का अनुमान है कि छोटे बच्चों में स्वाभाविक रूप से मां वाला इम्यून सिस्टम प्रभावी रहता है. पहले पैथोजेन्स से सुरक्षा के तौर पर मां अपना खास सुरक्षा तंत्र भ्रूण को देती है और फिर छोटे बच्चों को अपने दूध के जरिए.
यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि बच्चे के भीतर अपना प्रतिरक्षा तंत्र ना खड़ा हो जाए. यह काम बच्चों में 10 साल की उम्र तक पहुंचने तक होता है. उसके बाद भी उनका सुरक्षा तंत्र पूरी जिंदगी सीखने की प्रक्रिया के लिए तैयार रहता है खासतौर से नए पैथोजेन के आने पर.
बच्चों में नहीं फैल रहा है कोरोना
कोरोना इस मामले में दूसरी संक्रामक बीमारियों से अलग है कि यह बच्चों के जरिए उतनी तेजी से नहीं फैल रहा. आमतौर पर बच्चों के कारण संक्रामक बीमारियां बड़ी तेजी से पूरी आबादी में फैल जाती हैं. जर्मन राज्य बाडेन वुर्टेमबर्ग की ओर से कराए गए एक रिसर्च के मुताबिक कोरोना वायरस इस मामले में बिल्कुल अलग है. यह रिसर्च जर्मनी के डे केयर सेंटरों और स्कूलों में सामान्य स्थिति की तेजी से बहाली के लिए बड़ा आधार बना, हालांकि सुरक्षा के उपाय और सामाजिक दूरी के नियमों को भी जारी रखा गया.
यह अब भी साफ नहीं है कि क्या संक्रमित बच्चे भी संक्रमित वयस्कों की तरह ही नुकसानदेह हो सकते हैं. बर्लिन के एक अस्पताल की रिसर्च ने बताया कि बच्चों के गले में भी उतने ही वायरस थे जितने कि बड़ों के. दूसरी कई रिसर्चों का भी लगभग यही नतीजा था.
हालांकि श्वसन अंगों में वायरस की मजबूत मौजूदगी का यह मतलब नहीं है कि ये वायरस उसी तरह से फैलेंगे भी. बच्चों में लक्षण थोड़े कम दिख रहे हैं, जैसे कि खांसी. तो यह मुमकिन है कि वो खुद तो संक्रमित होंगे लेकिन दूसरों को उतना संक्रमित नहीं करेंगे.
तेहरान, 19 दिसंबर| ईरान और पाकिस्तान व्यापारिक आदान-प्रदान व गतिविधियां बढ़ाने के लिए शनिवार को सीमा पर एक नई क्रॉसिंग पॉइंट खोलने जा रहे हैं। यह जानकारी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद खतीबजादेह ने दी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने खतीबजादेह के शुक्रवार के ब्रीफिंग के हवाले से जानकारी दी कि, सीमा क्रॉसिंग पॉइंट ईरान के दक्षिणपूर्वी सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत और पाकिस्तान के गाब्द के बीच है।
प्रवक्ता के अनुसार, पिछले महीने ईरानी विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ की पाकिस्तान यात्रा के दौरान तेहरान और इस्लामाबाद ने रिमदान-गाब्द सीमा-पार प्रवेश द्वार खोलने पर सहमति व्यक्त की।
प्रेस टीवी ने खतीबजादेह के हवाले से कहा, दो मैत्रीपूर्ण और पड़ोसी राज्यों के बीच इस सीमा प्रवेश द्वार का निर्माण और हाल ही में खाफ-हेरात रेलवे परियोजना के उद्घाटन से पता चलता है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान अपने पड़ोसियों के साथ बातचीत और सहयोग को विशेष प्राथमिकता देता है।
गौरतलब है कि पूर्वी ईरान को पश्चिमी अफगानिस्तान से जोड़ने वाली एक संयुक्त रेलवे परियोजना का उद्घाटन 10 दिसंबर को किया गया था। (आईएएनएस)
मेक्सिको सिटी, 19 दिसंबर | कोरोनावायरस के मामलों और अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की बढ़ती संख्या को देखकर मेक्सिको की राजधानी मेक्सिको सिटी में शनिवार को फिर से लॉकडाउन लगेगा। इसकी घोषणा मैक्सिकन अधिकारियों ने कर दी है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की समाचार एजेंसी ने शुक्रवार को बताया कि जून की तरह अस्पताल अपनी 75 प्रतिशत के करीब अस्पताल क्षमता तक भर गए हैं। नए उपाय अस्पताल में मरीजों के भर्ती होने की संख्या को कम करने और वायरस को फैलने से नियंत्रित करने में मदद करेंगे।
उप स्वास्थ्य मंत्री ह्यूगो लोपेज-गैटल ने संवाददाताओं को बताया है कि नए उपाय 10 जनवरी तक लागू रहेंगे। इसके तहत गैर-जरूरी बिजनेस मैक्सिको शहर में बंद रहेंगे। उन्होंने कहा, "संक्रमण, अस्पताल में भर्ती होने वाले रोगियों और मौतों को कम करने के लिए अगले तीन हफ्तों तक असाधारण उपाय करने की जरूरत है।"
देश में महामारी के केंद्र मेक्सिको सिटी में अब तक 2,77,733 मामले और 15,083 मौतें दर्ज की हैं। वहीं शनिवार तक देश में कुल 12,89,298 मामले और 1,16,487 मौतें दर्ज हो चुकी हैं।
अमेरिका, ब्राजील और भारत के बाद मौतों के मामले में मेक्सिको दुनिया में चौथे स्थान पर है।(आईएएनएस)
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यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने जानवरों को 'कोशर' (यहूदी तरीक़े से मारना) या 'हलाल' (इस्लामी तरीक़े से मारना) करने से पहले उन्हें बेहोश करने के बेल्जियम के फ़ैसले का समर्थन किया है.
पहले कई धार्मिक संगठनों ने इसका विरोध किया था.
यूरोपीय संघ की शीर्ष अदालत ने जानवरों के अधिकारों के आधार पर माना है कि जानवरों को मारने से पहले उन्हें बेहोश करने का बेल्जियम का फ़ैसला सही है.
अदालत ने कहा है कि जानवरों को होश की हालत में नहीं मारा जा सकता है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, बेल्जियम में इसराइल के राजदूत ने इस पर विरोध जताते हुए कहा है कि 'यह हानिकारक फ़ैसला है और यूरोप में यहूदियों की ज़िंदगी के लिए एक धक्का है.'
वहीं, यूरोप में रब्बियों की कॉन्फ़्रेंस के प्रमुख ने भी इस फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह यूरोप में यहूदियों पर असर डालेगा.
दूसरी ओर कई मुसलमान समूह इस क़ानून के मंज़ूर होने से लेकर जनवरी 2019 में इसे अमल में लाने तक इसे कई बार कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं.
रॉयटर्स के मुताबिक़, यूरोपीय अदालत के इस फ़ैसले ने अन्य यूरोपीय देशों के लिए भी इस तरह के प्रतिबंध लगाने की राह खोल दी है.
इस्लामी और यहूदी तरीक़ों में जानवरों की गले की ख़ून की नस को तेज़ धार के चाक़ू से काटा जाता है और इसमें जानवर का होश में रहना ज़रूरी होता है.
यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के क़ानून के मुताबिक़, अगर उस जानवर का मांस मुसलमानों और यहूदियों के लिए नहीं है तो उसको मारने से पहले बेहोश करना ज़रूरी है.
उत्तरी बेल्जियम की फ़्लैंडर्स सरकार ने गुरुवार को आए इस फ़ैसले का स्वागत किया है.
राष्ट्रवादी पशु कल्याण मंत्री बेन वेस्ट्स ने इस फ़ैसले के बारे में कहा, ''हम आज इतिहास लिख रहे हैं.''
जानवरों के कल्याण के लिए काम करने वाली बेल्जियम की संस्था ग्लोबल एक्शन ने कहा कि ये एक ख़ास दिन है और 25 साल के संघर्ष का नतीजा है.
इस फ़ैसले पर इसलिए भी हैरत ज़ाहिर की जा रही है क्योंकि सितंबर में कोर्ट के एडवोकेट जनरल ने 'फ़्लेमिश क़ानून' को ख़त्म करने का समर्थन किया था. उनका कहना था कि कड़े पशु कल्याण नियम तभी लागू किए जा सकते हैं जब तक 'मूल धार्मिक परंपराओं' का अतिक्रमण न हो.
अदालत ने क्या कहा?
यूरोपीय अदालत ने कहा कि तमाम सदस्य राष्ट्रों को पशु कल्याण और धर्म की स्वतंत्रता दोनों में सामंजस्य स्थापित करने की ज़रूरत है और यूरोपीय संघ सदस्य देशों को जानवरों को बेहोश करने से नहीं रोकता जब तक कि वह बुनियादी अधिकारों का समर्थन करते हैं.
हालाँकि, कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि इस तरह की पाबंदियों से मुसलमानों और यहूदियों के अधिकार सीमित होते हैं इसलिए पारंपरिक तरीक़े से जानवरों के मारने पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है.
कोर्ट ने कहा कि बेल्जियम का क़ानून 'धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों में हस्तक्षेप ज़रूर है' लेकिन इसका उद्देश्य यूरोपीय संघ के सामान्य हित में पशु कल्याण को बढ़ावा देना है.
फ़ैसले में यह भी कहा गया है कि फ़्लेमिश संसद इस वैज्ञानिक सबूत पर भरोसा करती है कि जानवरों को मारने से पहले उन्हें बेहोश करना उनकी पीड़ा को कम करने का सबसे बेहतर तरीक़ा है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून ने पशु कल्याण और धर्म की स्वतंत्रता के बीच 'निष्पक्ष संतुलन बनाए रखने' की अनुमति दी है. (bbc.com)
वाशिंगटन, 19 दिसंबर | अमेरिकी कांग्रेस ने सरकार के शटडाउन को रोकने के लिए और बहुप्रतीक्षित कोरोनावायरस राहत पैकेज पर बातचीत करने के लिए अधिक समय देने को लेकर 2 दिन का स्टॉपगैप फंडिंग बिल पास किया है। क्योंकि ज्यादातर अमेरिकियों को साल के अंत तक महामारी से राहत पाने के लिए मिल रही मदद बंद हो जाएगी।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को डेमोक्रेटिक की अगुवाई वाले हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव ने 320-60 के मत से यह कानून पारित किया। रिपब्लिकन-बहुमत सीनेट ने भी 18 दिसंबर से 20 दिसंबर के लिए सरकारी धन की समय सीमा बढ़ाने के लिए ध्वनि मत से उपाय को पारित किया।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 18 दिसंबर को संघीय सरकार को खुला रखने के लिए एक सप्ताह के स्टॉपगैप फंडिंग बिल पर हस्ताक्षर करने के बाद शुक्रवार को यह पारित हुआ है। हालांकि दोनों पक्षों के वातार्कार अभी भी एक व्यापक समझौता करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें 2021 के 12 वित्तीय बिल और 1 अक्टूबर, 2021 तक के लिए सरकार को पैसा दिया जाएगा।
हिल न्यूज वेबसाइट ने मतदान के बाद हाउस माइनॉरिटी लीडर केविन मैकार्थी के हवाले से लिखा, "मुझे लगता है कि हम एक समझौते पर पहुंचने के बहुत करीब हैं। मुझे लगता है कि यह काम पूरा होने में दो दिन और दिन बाकी हैं।"
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अनुसार, शनिवार सुबह तक अमेरिका में 1,74,42,180 अमेरिकियों को अपनी चपेट में ले चुका था और 3,13,246 अमेरिकियों को मौत की नींद सुला चुका था। दुनिया में इन दोनों ही मामलों में महामारी का सबसे बुरा प्रकोप झेलने में अमेरिका शीर्ष पर है। (आईएएनएस)
अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी प्रांत ग़ज़नी में हुए एक धमाके में कम से कम 15 बच्चों की मौत हो गई है और 20 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं.
ग़ज़नी के गिलान ज़िले में हुए धमाके के कारण के बारे में आधिकारिक रूप से पता नहीं है लेकिन अधिकारियों का कहना है कि एक रिक्शे के पीछे बम विस्फोट हुआ.
कुछ स्थानीय लोगों का कहना है कि जब कुछ बच्चों ने एक विस्फोटक सामग्री को एक स्थानीय दुकानदार को बेचने की कोशिश की तो उसमें धमाका हो गया.
तालिबान का भी कहना है कि यह धमाका महज़ एक दुर्घटना है.
यह धमाका स्थानीय समयानुसार दोपहर दो बजे उस वक़्त हुआ जब पास के ही एक घर में कुछ बच्चे मुसलमानों की पवित्र किताब क़ुरान शरीफ़ पढ़ रहे थे.
लेकिन ग़ज़नी के गवर्नर के प्रवक्ता वहीदुल्लाह जुमाज़ादा ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि जब एक व्यक्ति मोटरचालित रिक्शे को गांव के अंदर ले जा रहा था और वो बच्चों से घिरा हुआ था तभी एक ज़ोरदार धमाका हुआ.
उनके अनुसार मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के अनुसार पुलिस प्रवक्ता अहमद ख़ान ने धमाके के लिए तालिबान को ज़िम्मेदार ठहराया है.
अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच शांतिवार्ता शुरू हो जाने के बाद भी अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक वारदातों में कोई कमी नहीं हो रही है. (बीबीसी)
अमेरिकी सरकार ने मॉडर्ना की कोविड-19 वैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है.
अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने फ़ाइजर/बायोएनटेक की वैक्सीन को मंज़ूरी देने के एक सप्ताह बाद इस वैक्सीन को मंज़ूरी दी है.
अमेरिका ने मॉडर्ना की वैक्सीन की 20 करोड़ खेप की ख़रीदारी की है, इसमें साठ लाख वैक्सीन की खेप आपूर्ति के लिए तैयार है.
अमेरिका में कोविड संक्रमण का सबसे ज़्यादा असर देखा गया है.
अब तक देश में कोविड से तीन लाख 11 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि एक करोड़ 72 लाख से ज़्यादा इससे संक्रमित हो चुके हैं.
टेनेसी मेहरी मेडिकल कॉलेज के सीईओ डॉक्टर जेम्स हिलड्रेथ ने कहा, ''जनवरी में कोरोना वायरस के मामले आने के बाद से दिसंबर में दो वैक्सीन का उपलब्ध होना एक असाधारण उपलब्धि है.''
एफडीए के एडवाइज़री पैनल में गुरुवार को 18 साल और उससे ज़्यादा उम्र के लोगों को मॉडर्ना वैक्सीन लगाने के जोखिम कम और फायदे ज़्यादा होने को लेकर वोटिंग हुई थी जिसमें पैनल ने एक अनुपस्थिति के साथ 20-0 से वोट किया. इसके बाद शुक्रवार को इसे मंज़ूरी दे दी गई.
इस हफ़्ते की शुरुआत में नियामकों ने बताया था कि मॉडर्ना वैक्सीन सुरक्षित है और 94 प्रतिशत प्रभावी है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वैक्सीन की मंज़ूरी की आधिकारिक घोषणा से घंटों पहले ही इसकी जानकारी दे दी थी.
उन्होंने ट्वीट किया था, ''बधाई, मॉडर्ना वैक्सीन अब उपलब्ध है.''
मॉडर्ना वैक्सीन फ़ाइज़र से कैसे अलग है
मॉडर्ना वैक्सीन को एक से दूसरी जगह ले जाने के दौरान लगभग 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखने की ज़रूरत होती है. ये एक सामान्य फ्रीज़र की तरह है.
वहीं फ़ाइज़र/ बायोएनटेक की वैक्सीन को लगभग 75 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखा जाता है. इसके चलते इसका परिवहन मुश्किल हो जाता है.
फ़ाइज़र की तरह ही मॉडर्ना वैक्सीन के भी दो शॉट्स देने की ज़रूरत होगी. मॉडर्ना का दूसरा इंजेक्शन पहले इंजेक्शन के 28 दिनों बाद लगाया जाएगा. वहीं, फ़ाइज़र का में दोनों वैक्सीन के बीच 21 दिनों का अंतर होता है.
मॉडर्ना का अधिकतर उत्पादन कैम्ब्रजि और मैसाचुसेट्स में हो रहा है जबकि फ़ाइज़र/ बायोएनटेक कई देशों में बनाई जा रही है जिसमें जर्मनी और बेल्जियम भी शामिल हैं.
पहले से ही कई देशों ने मॉडर्ना वैक्सीन की करोड़ों डोज़ के लिए ऑर्डर दे दिया है.
ड्यूक यूनिवर्सिटी ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर के मुताबिक कनाडा पहले ही वैक्सीन की पांच करोड़ 60 लाख डोज़ मंगा चुका है.
ब्रिटेन 70 लाख डोज़ खरीदने वाला है. यूरोपीय संघ ने पिछले महीने वैक्सीन की आठ करोड़ डोज़ खरीदने के अनुबंध की घोषणा की थी. इस अनुबंध में ये भी शामिल है कि वैक्सीन के सुरक्षित और प्रभावी होने पर इसकी आठ करोड़ डोज़ और खरीदी जाएंगी.
जापान पांच करोड़, दक्षिण कोरिया दो करोड़ और स्विट्ज़रलैंड सात करोड़ 50 लाख वैक्सीन खरीदने के लिए अनुबंध कर चुका है.
अमेरिका में टीकाकरण अभियान शुरू हो चुका है. अमेरिका में सोमवार (14 दिसंबर) को कोविड-19 का पहला टीका लगाया गया. ये पहला टीका न्यूयॉर्क के लॉन्ग आईलैंड के एक अस्पताल की नर्स सांद्रा लिंडसी को लगाया गया था. (bbc)
आज कल अरब जगत के सोशल मीडिया पर एक लेबनान लड़के ने हंगामा मचा रखा है।
लेबनान के 9 वर्षीय हुसैन शरतूनी उस वक्त अरब जगत में मशहूर हो गये जब उन्होंने सीमा पार करने वाली अपनी मुर्गी को इस्राईली सैनिकों से मांगा।
दर अस्ल हुसैनी शलतूनी की एक मुर्गी भाग कर इस्राईली सीमा में घुस गयी जिसके बाद वह भी उसके पीछे दौड़े मगर इस्राईली सैनिक सीमा की तरफ आता देख कर हवाई फायरिंग करने लगे मगर हुसैन रुके नहीं और निकट जाकर इस्राईली सैनिकों से अपनी मुर्गी मांगने लगे।
हुसैन शलतूनी का एक वीडिया वायरल हो रहा है जिसमें वह पूरा क़िस्सा इस तरह से बताते हैः
" मेरे पिता ने मुर्गियां खरीदीं, दो मेरी और दो मेरे भाई की, सुबह जब हमने दरबा खोला तो मेरी मुर्गी यहूदियों के पास भाग गयी, मैं भी उसके पीछे दौड़ा लेकिन सैनिकों ने हवाई फायरिंग शुरु कर दी, लेकिन मैं डरा नहीं, उन्होंने मेरी मुर्गी ले ली और अभी तक वापस नहीं की, मेरी मुर्गी वापस दो। "
" मेरी मुर्गी वापस करो" हैश टैक लेबनान और फिर पूरे अरब जगत में ट्रेंड करने लगा और लोग इस्राईली सैनिकों के सामने लेबनानी बच्चे की साहस की जम कर प्रशंसा कर रहे हैं जिसे इस्राईली सैनिक फायरिंग करके डरा नहीं पाए।
हुसैन का एक फोटो भी सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है जिसमें वह एक मुर्गी लिए खड़े हैं, लोग लिख रहे हैं कि यह यह, इस्राईली सैनिकों के क़ब्ज़े में कैद मुर्गी की बहन है।
सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि हुसैन और उसकी मुर्गी की कहानी वास्तव में अपनी ज़मीन और इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने वाले इस्राईल के प्रति एक अरब की भावना का प्रदर्शन है और लेबनानी जनता में इस्राईल के सामने संर्घष की भावना का प्रतीक है।
एक ने इस घटना पर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए लिखा है कि वह लेबनान के हिज़्बुल्लाह से उसका हथियार छीनना चाहते हैं और हसन अपनी मुर्गी भी छोड़ने पर तैयार नहीं है।
एक अन्य ने लिखा हैः जब तक हमारे यहां इस तरह के बच्चे पैदा होते रहेंगे जो अपने अधिकार को वापस लेने के लिए किसी चीज़ नहीं डरते होंगे तब तक हमारा देश और हमारी धरती सुरक्षित रहेगी।
सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने इस्राईली सेना से मांग की है कि वह हुसैन की मुर्गी वापस करे।
अरब जगत में हुसैन के साथ होने वाली इस घटना का खूब चर्चा है क्योंकि इस घटना से यह पता चलता है कि भले ही कुछ अरब देश इस्राईल के साथ मित्रता कर रहे हैं मगर आम अरब आज भी अपने सम्मान और अपने हक़ के लिए निडर होकर इस्राईल के सामने खड़े होने का हौसला रखता है।
अरब विश्लेषकों के अनुसार हुसैन और उसकी मुर्गी की घटना में एक और बहुत बड़ी सच्चाई छुपी है और वह यह कि लेबनान की सीमा पर रहने वाले, हिज़्बुल्लाह और उसकी शक्ति पर इतना भरोसा करते हैं कि उन्हें इस्राईल और उसके सैनिकों से तनिक भी डर नहीं लगता। (parstoday)
अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने बताया है कि उस पर साइबर हमला हुआ है और ये अमेरिकी सरकार के किसी भी विभाग पर हुआ अब तक का सबसे बड़ा हमला है.
ये विभाग अमेरिका के परमाणु हथियारों की देखरेख के लिए ज़िम्मेदार है. हालाँकि विभाग ने साफ़ किया है कि हथियारों के भंडार की सुरक्षा पर इस हैकिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.
टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने भी गुरुवार को बताया है कि उसे अपने सिस्टम में ख़तरनाक सॉफ्टवेयर मिला है.
आशंका जताई जा रही है कि ये साइबर हमला रूस ने किया है लेकिन रूस ने इससे साफ़ इनकार किया है.
बीते रविवार को अमेरिका के ख़ज़ाना एवं वाणिज्य विभाग पर साइबर हमले की जानकारी सामने आई थी. अधिकारियों का कहना था कि लगभग एक महीने से ये साइबर हमला जारी था जिसका पता रविवार को लग सका.
इस साइबर हमले पर अब तक राष्ट्रपति ट्रंप की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
मार्च 2020 में शुरू हुआ साइबर अटैक
वहीं, नवनिवार्चित राष्ट्रपति जो बाइडन ने साइबर सुरक्षा को अपने प्रशासन की सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया है.
बाइडन ने कहा, ‘’सबसे पहले हमें अपने विरोधियों को साइबर हमले से रोकना होगा. हम ये करेंगे और ये हमारी प्राथमिकता होगी, इस तरह के हमले करने वालों को भारी भुगतान करना होगा और इसे हम अपने सहयोगी और साथी देशों से गठजोड़ करके भी लागू करेंगे.‘’
अमेरिका की सबसे बड़ी साइबर एजेंसी साइबरसिक्योरिटी इंफ़्रास्ट्रक्चर एजेंसी (सीसा) ने गुरुवार को कहा कि इस साइबर हमले से निपटना ‘ बेहद जटिल और चुनौतीपूर्ण होगा.’
सीसा के मुताबिक़ इस हमले से "महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा" क्षतिग्रस्त हो गया था, फ़ेडरल एजेंसियों और निजी क्षेत्र की कंपनियों की सुरक्षा को नुक़सान पहुंचा है और इस नुक़सान ने "गंभीर ख़तरा" पैदा कर दिया.
सीसा ने कहा है कि ये हैकिंग मार्च 2020 से ही शुरू की गई. और इसके पीछे जो लोग हैं उन्होंने "धैर्य, परिचालन सुरक्षा और जटिल ट्रेडक्राफ्ट’ के साथ इसे अंजाम दिया है.
एजेंसी अब तक ये पता नहीं लगा पाई है कि इस हमले में कौन सी सूचनाएं चुराई गई हैं.
ऊर्जा विभाग पर हमले को संबोधित करते हुए, प्रवक्ता शायलिन हाइन्स ने कहा कि "मैलवेयर ने केवल बिज़नेस नेटवर्क को नुक़सान पहुंचाया है.
उन्होंने बताया कि परमाणु हथियारों की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार नेशनल न्यूक्लियर सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन यानि एनएनएसए के सुरक्षा ऑपरेशन को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा है.
बीबीसी के सिक्योरिटी संवाददाता गोर्डन कोरेरा के मुताबिक़:
‘’ये साइबर हमला किन-किन पर हुआ है इसकी सूची काफ़ी लंबी है और ये बढ़ती ही जा रही है. कई सरकारी विभाग से लेकर निजी कंपनियां, संस्थाएं सभी इसी की जांच कर रहे हैं कि कहीं उनके सिस्टम पर तो हमला नहीं हुआ है और क्या जानकारियां चोरी हुई हैं? इस जांच में कुछ महीने लग सकते हैं.’’
‘’इस हमले का दायरा काफ़ी बड़ा हो सकता है लेकिन अभी किसी को ये पक्का नहीं पता कि इस हैकिंग का असर क्या होने वाला है. ये एक क्लासिक जासूसी का मामला लग रहा है जिसमें जानकारियों को टारगेट कर चुराया गया हो. क्योंकि अब तक ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता कि हैकर ने ये हमला सिस्टम को तबाह करने के लिए किया था. हालांकि आगे की जांच ही इस सवाल का सही जवाब दे पाएगी.’’
‘’अमेरिका के सामने इस बार परिस्थिति थोड़ी जटिल इसलिए भी है क्योंकि जासूसी ऐसी चीज़ है जिसे नियमित रूप से वह भी करता है लेकिन इस बार अमेरिका का बचाव बेहतर नहीं था जिससे वह ना तो हैकर्स का पता लगा सका और ना ही उन्हें रोकने में कामयाब रहा.’’
हैकिंग के बारे में क्या कुछ पता है?
जो बाइडन के कहा है कि कई सारी बातें हमें अब तक नहीं पता है लेकिन हमें जो भी पता है वह काफ़ी परेशान करने वाली जानकारी है.
सीसा का कहना है कि हैकर्स ने टेक्सस की एक आईटी कंपनी सोलरविंड के नेटवर्क मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके कंप्यूटर नेटवर्क को ब्रीच किया है.
10 हज़ार सोलरविंड के उपभोक्ताओं ने उस अपडेट को डाउनलोड किया जिसमें हैकर्स ने ख़तरनाक सॉफ्टवेयर डाला था.
इस हफ्ते की शुरूआत में ही अमरीका की एजेंसियों को कहा गया था कि वे सोलरविंड को अपने सर्वर से अनइंस्टॉल कर दें.
गुरुवार को सीसा ने बताया है कि वह इस बात की जांच कर रही है कि सोलरविंड के अलावा किन-किन तरीक़ों से हैकर्स ने सेंध लगाई.
माइक्रोसॉफ्ट ने बताया है कि उसके 40 उपभोक्ताओं पर साइबर हमला हुआ है. इसमें सरकारी एजेंसी, थिंक टैंक, ग़ैर-सरकारी संस्थाएं, आईटी कंपनियां शामिल हैं. इसमें से 80 फ़ीसदी उपभोक्ता अमेरिका के ही हैं, वहीं अन्य उपभोक्ता कनाडा, मैक्सिको, स्पेन, यूके, इज़राइल और बेल्जियम के हैं.
माइक्रोसॉफ्ट के अध्यक्ष ब्रैड स्मिथ ने कहा है कि ये हमला ‘इसके दायरे और प्रभाव के लिहाज़ से उल्लेखनीय’ है. ये साधारण जासूसी का मामला नहीं है. बल्कि इसने अमेरिका और दुनिया के लिए गंभीर तकनीकी कमियों की स्थिति पैदा कर दी है.
एफ़बीआई और सीसा ने सार्वजनिक तौर ये नहीं बताया है कि हमले के पीछे वह किसका हाथ मान रही हैं. अमेरिकी मीडिया में कुछ अधिकारियों के हवाले से रूस को हमले के पीछे बताया जा रहा है.
अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने रूस के हैकिंग ग्रुप कोज़ी बियर या APT 29 के होने का शक ज़ाहिर किया है. अख़बार के मुताबिक़ इसी हैकिंग ग्रुप ने बराक ओबामा के कार्यकाल में राज्य विभाग और व्हाइट हाउस के इमेल को हैक किया था.
सोमवार को रूस के अमेरिका स्थित उच्चायोग ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बयान जारी करते हुए इस तरह के आरोपों के ख़ारिज किया है. (bbc)
लॉस एंजिलिस, 18 दिसम्बर | गायक-अभिनेत्री जेनिफर लोपेज बेस्टसेलिंग किताब 'द सिफर' के फिल्म रूपांतरण में अभिनय करेंगी। लोपेज इसाबेला माल्डेनैडो द्वारा लिखी गई किताब पर आधारित फिल्म का निर्माण और अभिनय करेंगी। वेराइटी डॉट कॉम के रिपोर्ट अनुसार, अभिनेत्री फिल्म में एफबीआई एजेंट के किरदार में नजर आएंगी, फिल्म में अभिनेत्री का नाम नीना गुरेरा है।
फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम करेगी। (आईएएनएस)
वालिंगटन, 18 दिसम्बर | न्यूजीलैंड सरकार ने स्वास्थ्य प्रणाली के कोरोनावायरस प्रतिक्रिया का समर्थन करने और जून 2022 तक क्वारंटीन सुविधाओं को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त धनराशि निर्धारित की है। इसकी जानकारी कोविड-19 रिस्पांस क्रिस हिपकिन्स के मंत्री ने शुक्रवार को दी। सिन्हुआ समाचार एजेंसी ने हिपकिन्स के बयान का हवाला देते हुए कहा, "हम कोरोनावायरस को आगे जारी रहने के मद्देनजर उसके खिलाफ लड़ाई की तैयारी करने और उस पर रोक लगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जरुरत पड़ने पर 18 महीनों की अतिरिक्त धनराशि निर्धारित करने की आवश्यकता है।"
उन्होंने आगे कहा, "जैसे ही हम 2021 में प्रवेश कर रहे हैं, और मार्च तक वैक्सीन की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन हमें संपर्क ट्रेसिंग और परीक्षण के प्रभावी स्तरों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त क्षमता की आवश्यता है।"
न्यूजीलैंड में शुक्रवार तक कोरोनावायरस मामलों की संख्या बढ़कर 2,110 हो गई है, जबकि इस वायरस से अबतक 25 लोगों की मौत हो गई है। (आईएएनएस)
जोहानसबर्ग, 18 दिसम्बर | बेसिक शिक्षा मंत्री एंजी मोत्सहेगा ने कहा कि कोरोनोवायरस महामारी ने दक्षिण अफ्रीका की शिक्षा प्रणाली पर भारी असर डाला है, क्योंकि इस वर्ष 1,493 शिक्षकों की इस बीमारी के कारण मौत हो गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार को एक घोषणा में मंत्री ने कहा कि महामारी के कारण हुए व्यवधान के कारण 2020 का शैक्षणिक वर्ष सबसे चुनौतीपूर्ण रहा।
उन्होंने कहा, "इस बिंदु पर, मैं इस तथ्य को भी स्वीकार करना चाहती हूं कि इस कठिन समय के दौरान हमने लगभग 1,493 शिक्षकों को खो दिया है। हमने अपने कई कार्यकर्ताओं को खो दिया है। हमने कई जिला अधिकारियों को खो दिया है।"
इसके बावजूद 2021 शैक्षणिक वर्ष 25 जनवरी को शुरू होगा और 27 जनवरी से कक्षाएं शुरू की जाएंगी।
दक्षिण अफ्रिका में शुक्रवार तक कोरोनावायरस जांच रिपोर्ट में 892,813 मामले पाए गए हैं, जबकि इस अब तक इस वायरस से 24,011 लोगों की मौत हो गई है। (आईएएनएस)
काबुल, 18 दिसम्बर | अफगानिस्तान के गजनी प्रांत में शुक्रवार को तालिबान लड़ाकों को निशाना बनाकर किए गए हवाई हमले में कम से कम 30 आतंकवादी मारे गए। एक सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी। प्रांतीय सरकार के प्रवक्ता वाहिदुल्ला जुमजादा ने सिन्हुआ को बताया, "तालिबान विद्रोहियों का एक समूह सुरक्षा चौकियों को नुकसान पहुंचाने के लिए काराबाग जिले के करसी इलाके में इकट्ठा हुआ था, लेकिन सुरक्षाबलों के विमानों ने शुक्रवार की तड़के हमला कर दिया और 30 आतंकवादी मारे गए।"
अधिकारी ने कहा कि छापे में दस और आतंकी घायल हुए हैं।
जुमजादा ने कहा कि हमले में किसी भी सुरक्षाकर्मी या नागरिक को नुकसान नहीं पहुंचा।
तालिबान आतंकवादियों द्वारा अब तक कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
--आईएएनएस
काबुल, 18 दिसंबर | अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने युद्धग्रस्त देश में शांति लाने के मकसद से चर्चा करने के लिए तालिबान को कंधार प्रांत में आमंत्रित किया है। मीडिया ने यह जानकारी दी। टोलो न्यूज के मुताबिक, राष्ट्रपति ने गुरुवार को प्रांत में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अगर तालिबान शांति लाने के लिए तैयार है, तो वे अफगानिस्तान सरकार की वार्ता टीम के साथ बातचीत करने के लिए कंधार आ सकते हैं।
गनी ने कहा कि अफगान लोग आगे और तालिबान कैदियों की रिहाई की अनुमति नहीं देंगे, क्योंकि समूह ने हिंसा को कम नहीं किया है।
राष्ट्रपति ने कहा, "अब जब वे (तालिबान) और 2,000 (कैदियों) की रिहाई के लिए कह रहे हैं, तो क्या आप (लोग) उनकी रिहाई की अनुमति देंगे? नहीं। हमने देखा कि खूनखराबा बंद नहीं हुआ। उन्हें खूनखराबा रोकना चाहिए ताकि हम बात कर सकें।"
कांधार के विभिन्न हिस्सों में तालिबान द्वारा हाल के हमलों का उल्लेख करते हुए, गनी ने वादा किया कि अफगान सुरक्षा बल प्रांत में लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखेंगे।
अफगान नेता के अनुसार, पिछले साल आतंकवादी समूह ने जारी संघर्ष में राष्ट्र के धन का 16 प्रतिशत नष्ट कर दिया।
टोलो न्यूज के अनुसार, राष्ट्रपति की टिप्पणी अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुलह उच्च परिषद के चेयरमैन अब्दुल्ला अब्दुल्ला के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें कहा गया है कि शांति वार्ता के अगले दौर के स्थान को तय करने के लिए एक महत्वपूर्ण वार्ता में देरी नहीं करनी चाहिए।
--आईएएनएस
ब्राजील की एक नदी में इन दिनों कछुओं की संख्या काफी बढ़ गई है। प्यूर्स नदी के किनारे हजारों की संख्या में साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स की प्रजाति के कछुओं के बच्चों की फौज दिखाई दी है। दरअसल, ये कछुए सुनामी में नदी के अंदर से लहर की तरह निकल रहे थे। बता दें कि अमेजन नदी की सहायक प्यूर्स नदी के किनारे एक संरक्षित क्षेत्र में इन कछुओंं को इकट्ठा किया गया है।
ब्राजील के वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी ने इन हजारों कछुओं की तस्वीरें और वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल के माध्यम से साझा की हैं। बताया जा रहा है कि ये कछुए अभी बच्चे हैं, जो कुछ समय पहले ही अंडों से निकले थे। कछुओं की ये प्रजाति दक्षिणी अमेरिका में मीठे पानी के सबसे विशालकाए कछुए में से एक है।
वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के मुताबिक, ब्राजील के इस इलाके में साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स हर साल प्रजनन के लिए आते हैं। इन कछुओं के बच्चों को अंडों से बाहर निकलने में महीनों दिन का समय लग जाता है। रेतीले बालू के किनारे से निकलकर कछुओं के ये बच्चे नदी की तरफ बढ़ते हैं। वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी ने बताया कि हर दिन हजारों की संख्या में कछुए अपने अंडों से निकलकर ऐसे ही झुंडों में दिखाई देते हैं और यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहता है।
बता दें कि कछुओं की ये प्रजाति लुप्त होने के कगार पर है। ऐसे में इनके प्रबंधन और संरक्षण को बेहतर बनाने के लिए हमेशा रिसर्च चलता रहता है। वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी के सदस्य संरक्षित इलाके में मादा वयस्क कछुओं की देखभाल करते हैं। कछुओं की ये प्रजाति मांस और अंडे की तस्करी के वजह से काफी प्रभावित हुई हैं।
वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी की एक्वाटिक टर्टल स्पेशलिस्ट कैमिला फेरारा के मुताबिक, विशालकाय साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स का जन्म इसी तरह से होता है। लेकिन इनके जीवन का यह क्षण बहुत ही नाजुक होता है। अपनी जीवन की यात्रा शुरू करने के दौरान, तो ये कछुए एक साथ दिखाई देते हैं, लेकिन बाद में अलग हो जाते हैं।
अमेजन के जंगलों में कछुओं की ये प्रजाति बीजों को फैलाकर पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाती है, जिससे जंगल को पनपने में सहायता मिलती है। वयस्क साउथ अमेरिकन रिवर टर्टल्स का वजन 90 किलो और लंबाई साढ़े तीन फीट से भी अधिक हो सकता है।
लू-हाई लियांग
मैं, मई 2008 में चीन के एक छोटे से कस्बे येंगशुओ में एक प्राइवेट अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ाता था.
कोर्स ख़त्म होने के बाद मेरे एक छात्र ने मुझसे क्यूक्यू (QQ) ऐप डाउनलोड करने के लिए कहा ताकि हम लोग एक-दूसरे के संपर्क में रह सकें. ये ऐप एमएसएन मैसेंजर की तरह ही डेस्कटॉप पर काम करता था.
मैंने उनसे फ़ेसबुक पर मुझे फ्रेंडलिस्ट में ऐड करने के लिए कहा और उनका ई-मेल एड्रेस मांगा. तब चीन में फ़ेसबुक ब्लॉक नहीं था.
कुछ छात्रों ने तो ईमेल एड्रेस दिया लेकिन उन्हें याद रखना बड़ा मुश्किल था क्योंकि वे कुछ इस तरह थे- zwpzjg59826@126 डॉट कॉम.
मुझे ये ईमेल एड्रेस थोड़े अजीब लगे लेकिन उन दिनों इस तरह के ईमेल पते बनाना असामान्य नहीं था, ब्रिटेन में भी नहीं.
कुछ सालों बाद, मैं चीन की राजधानी बीजिंग में एक स्वतंत्र पत्रकार और कॉपीराइटर के तौर पर काम करने लगा. मैं शायद ही किसी चीनी के साथ ईमेल के ज़रिए काम करता था.
अक्सर मुझे स्मार्टफ़ोन पर ही चीन की मैसेजिंग ऐप वीचैट के ज़रिए कॉपीराइटिंग का काम आ जाता था.
काम पूरा होने के बाद इसी ऐप से मैं काम भेज देता था और उसी पर मुझे मेहनताना मिल जाता था.
ये पूरी प्रक्रिया इसकी तेज़ी और मोबाइल एफिशियेंसी की वजह से बड़ी जादूभरी लगती थी.
कई पश्चिमी देशों में ईमेल को ही प्राथमिकता दी जाती है, ख़ासकर कामकाज के क्षेत्र में.
अमरीका और ब्रिटेन दोनों जगह ईमेल ही लोकप्रिय है. अमरीका में 90.9 फ़ीसदी यूज़र हैं और ब्रिटेन में 86 फ़ीसदी.
इन देशों में दूसरी ऑनलाइन गतिविधियों जैसे ब्राउज़िंग, इंटरनेट बैंकिंग, वीडियो देखना या सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से ज़्यादा ईमेल का इस्तेमाल ही प्रमुख है.
डेलॉयट कंपनी के 2018 के चीन मोबाइल कंज्यूमर सर्वे से पता चलता है कि चीन के लोग दुनिया के दूसरे यूज़र्स की अपेक्षा अपनी ईमेल 22 फीसदी कम चेक करते हैं.
वहीं 79 फीसदी की क़रीब चीन के स्मार्टफ़ोन यूज़र्स वीचैट का नियमित इस्तेमाल करते हैं और 84.5 फ़ीसदी मैसेजिंग ऐप यूज़र्स वीचैट का इस्तेमाल करते हैं.
वीचैट को बनाने वाली कंपनी टेनसेंट की रिसर्च टीम पैंगुइन इंटेलिजेंस की रिपोर्ट कहती है कि 20 हज़ार लोगों पर किए गए सर्वे में 88 फीसदी लोगों ने बताया कि वे रोज़ के कामकाज के लिए वीचैट का इस्तेमाल करते हैं.
वहीं, फ़ोन, एसएमएस और फैक्स का इस्तेमाल करने वाले 59.5 फ़ीसदी लोग हैं. इन सबके बाद ईमेल का नंबर आता है जिसे 22.6 फ़ीसदी लोग ही इस्तेमाल करते हैं.
इवा सू एक ताइवानी हैं जो डिजिटल ब्रैंडिग कंपनी चलाती हैं और उन्होंने काफ़ी वक़्त अमरीका में रह कर गुज़ारा है. अब वे छह साल से शंघाई में काम कर रही हैं.
वह बताती हैं कि उनके विदेशी ग्राहक संपर्क के लिए वे ईमेल और लिंक्डइन का इस्तेमाल करती हैं लेकिन चीनी ग्राहकों के लिए अलग बात है.
"चीनी ग्राहक वीचैट इस्तेमाल करते हैं और वहीं सब फाइलें भेजते हैं."
साइबर कैफ़े
चीन में वीचैट एक तरह से सर्वव्यापी है जिसके 1 अरब से ज़्यादा यूज़र्स हैं.
लेकिन वीचैट के इतने इस्तेमाल की वजहें कई साल पहले पैदा हुई.
साल 1999 में चीन की कंपनी टेनसेंट ने क्यूक्यू नाम का प्रोडक्ट लॉन्च किया जो कि डेस्कटॉप के लिए इंस्टेंट मैसेजिंग प्रोग्राम आईसीक्यू पर आधारित था.
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक़ उस वक़्त चीन में प्रत्येक 100 लोगों में से 1.2 लोगों के पास ही कंप्यूटर होता था. लेकिन अमरीका में तब हर दो व्यक्तियों में से एक के पास कंप्यूटर होता था.
लेकिन जैसे-जैसे 21वीं सदी आगे बढ़ी, चीन में इंटरनेट कैफ़े बढ़ने लगे और युवा लोग उनका इस्तेमाल करने लगे.
इन कैफ़े की लोकप्रियता की एक वजह क्यूक्यू ऐप भी थी क्योंकि इसमें मनोरंजन के लिए गेम्स, म्यूज़िक और शुरूआती चीनी सोशल मीडिया नेटवर्क की सुविधा थी जहां लोग माइक्रो-ब्लॉगिंग करते थे.
ईमेल की तुलना में क्यूक्यू में संवाद के ज़्यादा विकल्प थे जैसे अवतार और इंस्टेंट मैसेजिंग.
एकदम ड्राइविंग लाइसेंस के जैसा ज़रूरी
लेखक जेम्स युआन और जेसन इंच ने अपनी 2008 में आई किताब 'सुपरट्रेंड्स ऑफ फ्यूचर चाइना' में लिखा है कि चीनी लोगों के लिए क्यूक्यू या एमएसएन अकाउंट के बिना काम नहीं चलता था.
वे लिखते हैं, "ये वैसा ही है जैसा पश्चिमी देशों के लोग किसी बिना लाइसेंस वाले व्यक्ति के बारे में सोचते हैं."
कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी अपने बिज़नेस कार्ड पर अपना क्यूक्यू नंबर लिखते थे और कई बिज़नेस के अपने क्यूक्यू अकाउंट होते थे.
मा हुआटेंड टेनसेंट कंपनी के संस्थापक है
साल 2012 तक चीन में क्यूक्यू के 798 मिलियन प्रति माह एक्टिव यूज़र्स हो गए थे और ये आंकड़ा तब चीन की आधी जनसंख्या से भी ज़्यादा था.
लेकिन टेनसेंट ने 2011 में वीचैट शुरू किया और देखते ही देखते वीचैट देश का संवाद का सबसे लोकप्रिय ज़रिया बन गया जैसे कि डेस्कटॉप कंप्यूटर की जगह स्मार्टफ़ोन्स ने ले ली.
ब्रिटेन के मैथ्यू ब्रेनन साल 2004 से चीन में काम कर रहे हैं और चीन के डिजिटल इनोवेशन के लिए कंसलटेंट का काम करते है. उनका कहना है कि कई देशों में ईमेल एड्रेस का होना लोगों की पहचान का हिस्सा होता है क्योंकि कई ऑनलाइन सर्विस में रजिस्टर करने के लिए ईमेल की ज़रूरत पड़ती है.
लेकिन चीन में मोबाइल ऐप्स पर ही काम चलता है और इनके ज़रिए जैसे अलीपे ऐप या वीचैट से सब तरह के ऑनलाइन लेन-देन हो जाते हैं.
आप एक ही ऐप से अपाइंटमेंट बुक कर सकते हैं, शॉपिंग कर सकते हैं और अपने दोस्तों को संदेश भेज सकते हैं.
इंस्टेंट मैसेजिंग
चेउंग कोंग बिज़नेस स्कूल में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर ज़ोंग लिंग का कहना है कि वीचैट चीन के वर्किंग कल्चर में फिट बैठता है.
वे कहती हैं, "वीचैट पर काम करने में ईमेल की तुलना में कम औपचारिक वक्त लगता है"
"इस अनौपचारिकता की वजह से लोग तुरंत जवाब देते हैं और ये तुरंत जवाब देने की ज़रूरत चीन के क्लचर और बिज़नेस परिवेश की वजह से है."
चीन में लोगों की वर्क लाइफ़ और निजी ज़िंदगी के बीच कोई मज़बूत सीमा रेखा नहीं होती है.
ज़ोंग का कहना है कि चीन में लोगों की वर्क लाइफ़ और निजी ज़िंदगी के बीच कोई मज़बूत सीमा रेखा नहीं होती है.
"नतीजा ये होता है कि मालिक और मैनेजर अक्सर सामान्य काम के घंटों के बाद भी काम पकड़ा देते हैं या कोई सवाल पूछ लेते हैं बजाय के अगले दिन जवाब का इंतज़ार करने के."
उनका कहना है कि किसी काम को लेकर बार-बार संवाद करने की ज़रूरत पड़ती है तो ऐसे में ईमेल की तुलना में वीचैट ज़्यादा तेज़ है.
हालांकि, इसका एक नुक़सान ये भी है कि कर्मचारी हर वक़्त जवाब देने के दबाव में रहते हैं.
तुरंत जवाब चाहिए
कोई प्लेटफॉर्म किस तरह से बनाया गया है, उसका असर हमारे संवाद करने के तरीके पर भी पड़ता है. ये जो असर है वो फेसबुक, व्हाट्सऐप या वीचैट पर दिखता भी है.
ब्रेनन का कहना है कि इंस्टेंट मैसेजिंग पर आपसे अपेक्षा होती है कि आप जल्दी जवाब दें.
ईमेल की तुलना में चैट ऐप के ज़रिए तेज़ी से संवाद होता है
"इसलिए चाहे आपके वीकेंड पर मैसेज मिले, आपको जवाब देना पड़ता है."
अंग्रेज़ी बोले जाने वाले देशों जैसे ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में आज भी ईमेल में लिखने की पुरानी तहज़ीब चलती है.
जैसे 'प्रिय एबीसी' जैसे संबोधन और अंत में औपचारिक "धन्यवाद" वगैरह आज भी इस्तेमाल किये जाते हैं.
लेकिन कई एशियाई देशों में इंस्टेंट और अनौपचारिक मैसेजिंग ऐप्स का चलन ज़्यादा हो गया है.
एलन केसी प्रोफेट नाम की कंसलटेंसी फर्म में काम करते हैं जिसके दफ़्तर एशिया में कई जगह हैं. उनका कहना है कि उन्हें और उनकी टीम को एशिया में ईमेल की तुलना में चैट ऐप ही प्रासंगिक लगते हैं.
केसी कहते हैं, "कई देश जैसे चीन और दक्षिण पूर्व एशिया कंप्यूटर युग की बजाय सीधा मोबाइल कनेक्टिविटी वाले युग में आए.
"इसकी वजह से सोशल प्लेटफॉर्म्स जैसे फ़ेसबुक, वीचैट, लाइन, ज़ालो वगैरह के यूज़र्स एकाएक बढ़ गए."
बिज़नेस
चीन में वीचैट के अलावा बड़ी कंपनियों का काम बिज़नेस ऐप्स के ज़रिए होता है.
जैसे अलीबाबा का डिंगटॉक और बाइटडांस का लार्क. साथ ही वीचैट का भी बिज़नेस वर्ज़न है- वीचैट वर्क जिसमें डॉक्यूमेंट शेयरिंग और ऑनलाइन एडिटिंग फ़ीचर हैं. पे-रोल सर्विस और प्राइवेसी का स्तर ज़्यादा है.
डिंगटॉक में सुविधा है कि यूज़र देख सकते हैं कि उनका मैसेज पढ़ा गया या नहीं और अगर नहीं तो वे एक पुश मैसेज भी भेज सकते हैं ताकि वे पढ़ लें.
पश्चिम में ऑनलाइन सर्विस बिखरी हुई हैं
30 साल की हैलन जिआ चीन की एक क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग कंपनी में पब्लिक रिलेशन मैनेजर है.
साल 2018 में वे बीजिंग से अपने पार्टनर के पास इंग्लैंड रहने आईं.
उनका कहना है कि इंग्लैंड में ऑनलाइन सर्विस काफ़ी बिखरी हुई हैं.
वे कहती हैं, "आप अमेज़न पर कुछ खरीदते हो, किसी और ऐप पर खाने-पीने का सामान खरीदते हो, वेबसाइट पर अपॉइंटमेंट बुक करते हो और इन सबके लिए ईमेल या फ़ेसबुक की ज़रूरत पड़ती है. जबकि चीन में ये सब वीचैट अकाउंट से ही हो जाता है."
अभी हैलन को अपना ईमेल चैक करते रहने की आदत नहीं हुई है.
चीन में बहुत लोगों के पास ईमेल एड्रेस है लेकिन अमरीकी और यूरोपीय लोगों की अपेक्षा वे कम ईमेल देखते हैं.
"मैं चीन में कभी ईमेल नहीं देखती, इसलिए मेरी कोई अपेक्षा भी नहीं है कि लोग ईमेल पर जवाब देंगे और ईमेल पर किसी मनोरंजन के लिए तो मैं हूं नहीं."
लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि चीनी लोग ईमेल का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते.
बहुत लोगों के पास ईमेल एड्रेस है लेकिन अमरीकी और यूरोपीय लोगों की अपेक्षा वे कम ईमेल देखते हैं.
ब्रेनन का कहना है कि बड़े शहरों जैसे बीजिंग और शंघाई में अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से काम होता है.
येंगशुओ में मेरी एक पुरानी छात्र लीली वांग उन लोगों में से एक थी जिन्होंने कोर्स ख़त्म होने के बाद मुझे अपना ईमेल एड्रेस दिया था.
ईमेल अतीत का एक अवशेष
हम कुछ वक़्त के लिए ईमेल के ज़रिए संपर्क में रहे. अब वह 30 बरस की हैं और चीन के गुआनडोंग में रहती हैं. वे एक लाइटिंग कंपनी में काम करती हैं.
कई साल पहले मुझे वह वीचैट पर मिली और अब उसी के ज़रिए हम बातचीत करते हैं.
क्या चीन में ईमेल अतीत के अवशेष के तौर पर रह गयी है?
मैंने उनसे पूछा कि क्या वह अब भी वो ईमेल इस्तेमाल करती हैं जिससे हम संपर्क किया करते थे.
उन्होंने हंसते हुए पूछा, "कौनसी वाली? मेरे पास तो बहुत थी- 163, 126 और एमएसएन."
अब वह शायद ही कभी अपनी ईमेल चैक करती हैं और उन्हें याद भी नहीं कि आख़िरी बार कब चैक की थी.
वह कहती हैं, "मैं ज़्यादातर वीचैट ही इस्तेमाल करती हूं, क्यूक्यू इतना इस्तेमाल नहीं करती लेकिन कभी-कभी वो भी कर लूंगी."
वांग जैसे कई चीनियों के लिए वीचैट रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है और ईमेल अतीत का कोई अवशेष है. (bbc.com)
-तनवीर मलिक
पाकिस्तान में कपड़ा उद्योग के केंद्र फ़ैसलाबाद के रहने वाले ख़ुर्रम मुख़्तार कपड़ा निर्यातक हैं. ख़ुर्रम मुख़्तार यूरोपीय और अमेरिकी बाज़ारों में कपड़ा उत्पादों का निर्यात करते हैं.
हाल के महीनों में, उनके व्यवसाय में तेज़ी देखी गई है. उन्हें विदेशों से पहले की तुलना में अधिक ऑर्डर मिल रहे हैं.
ख़ुर्रम मुख़्तार के अनुसार, उन्हें मिलने वाले अधिकांश ऑर्डर्स में, उत्पादों की प्रतिस्पर्धी क़ीमतों ने एक अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा कोरोना महामारी के कारण भारत में लगे लॉकडाउन की वजह से भी उन्हें लाभ हुआ है.
ख़ुर्रम का कहना है कि, भारत में लॉकडाउन के कारण निर्यात की सप्लाई चेन एक तरह से टूट गई थी. इसलिए उनके विदेशी ख़रीदारों ने पाकिस्तान का रुख़ किया. इसी वजह से उनकी कंपनी को भी पिछले कुछ महीनों में अधिक ऑर्डर मिले हैं.
उनके अनुसार, उनमें से ज़्यादातर होम टेक्सटाइल, डेनिम और अपीरल उत्पादों के ऑर्डर थे. ऑर्डर देने वालों में वो ख़रीदार भी शामिल थे, जो पहले भारत से इन उत्पादों को ख़रीद रहे थे.
अधिक ऑर्डर मिलने के कारण चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में पाकिस्तान का कपड़ा निर्यात 4.5 अरब डॉलर से अधिक हो गया. पिछले वित्त वर्ष के पहले चार महीनों की तुलना में कपड़ा उत्पादों के निर्यात में 4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
सरकार और कपड़ा उद्योग से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में यह क्षेत्र अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहा है, जो देश के निर्यात क्षेत्र के साथ-साथ रोज़गार सृजन के लिए भी अच्छा साबित होगा.
ग़ौरतलब है कि अक्तूबर के महीने में पाकिस्तान के कपड़ा निर्यात में 7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि पाकिस्तान के मुक़ाबले भारत में इस महीने कपड़ा उत्पादों में 5 प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी गई.
कपड़ा निर्यात में आई बढ़त से कुल निर्यात में भी वृद्धि हुई जिसने देश के व्यापार घाटे को कम करने में मदद की.
कपड़ा उद्योग के क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन में नरमी और औद्योगिक क्षेत्र के लिए सरकारी राहत देने से उत्पादों की मांग बढ़ी है. इसी कारण कपड़ा उद्योग की उत्पादन क्षमता और उसके उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हुई है.
कपड़ा उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद का 8 प्रतिशत से अधिक है. देश के कुल निर्यात क्षेत्र में लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा कपड़ा उत्पादों का है. यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा मैनुफ़ैक्चरिंग क्षेत्र है, जो औद्योगिक क्षेत्र में लगभग 40 प्रतिशत श्रम शक्ति को रोज़गार उपलब्ध कराता है.
बोर्ड ऑफ़ इनवेस्टमेंट की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक़, पाकिस्तान एशिया का आठवां सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक देश है. वर्तमान में, पाकिस्तान में चार सौ से अधिक कपड़ा फैक्ट्रियां चल रही हैं, जबकि इस क्षेत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण कच्चा माल यानी कपास देश में आसानी से उपलब्ध है.
कपड़ा क्षेत्र की वृद्धि के कारण क्या हैं?
फ़ैसलाबाद और कराची पाकिस्तान में कपड़ा क्षेत्र के दो प्रमुख केंद्र हैं. कपड़ा उद्योग से जुड़े लोगों के अनुसार, दोनों केंद्र वर्तमान में पूरी तरह से काम कर रहे हैं.
एक कपड़ा मिल मालिक आसिफ़ इनाम ने इस बारे में कहा कि, यह विभाग वर्तमान में अपनी पूर्ण उत्पादन क्षमता पर काम कर रहा है. इसकी एक बड़ी वजह इसे प्राप्त होने वाले ऑर्डर्स के साथ-साथ सरकार से मिलने वाली सब्सिडी भी है. सरकार से मिलने वाली सब्सिडी इसके उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, पिछली सरकार के अंत में, दुनिया भर में इसके निर्यात में पाकिस्तान के कपड़ा उत्पादों की हिस्सेदारी 1.8 प्रतिशत थी. लेकिन अब यह 2.2 प्रतिशत हो गई है. यह 4 प्रतिशत तक बढ़ गया है, जो इस क्षेत्र के प्रदर्शन का एक बड़ा सबूत है.
आसिफ़ ने कहा कि भारत में हुए कड़े लॉकडाउन के कारण भी पाकिस्तान के कपड़ा उद्योग को फ़ायदा हुआ. भारत से आर्डर के पूरा न होने की आशंका ने अंतरराष्ट्रीय ख़रीदारों को पाकिस्तान की ओर आकर्षित किया.
कराची चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ के पूर्व अध्यक्ष और एक कपड़ा मिलर ज़ुबैर मोतीवाला ने पाकिस्तान के कपड़ा क्षेत्र के प्रदर्शन को उत्साहजनक बताते हुए कहा कि, इसका मुख्य कारण यूरोपीय और अमेरिकी बाज़ारों में इन्वेंट्री गैप था. इस गैप को पाकिस्तान के कपड़ा उद्योग ने भरा है.
उन्होंने बताया कि यूरोप और अमेरिका में कोरोना वायरस के कारण लगने वाले लॉकडाउन ने विदेशों से उनके उत्पादों के आयात को बुरी तरह प्रभावित किया था. जब लॉकडाउन के दौरान पहले से जमा स्टॉक ख़त्म हो गया, तो लॉकडाउन में छूट के बाद, उन्हें तत्काल सामान की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने पाकिस्तान का रुख़ किया.
मोतीवाला ने कहा कि भारत में लॉकडाउन के कारण, वहां का कपड़ा उद्योग अमेरिका और यूरोप से आने वाले बड़े ऑर्डर्स को पूरा करने में असमर्थ था, जिससे पाकिस्तान को फ़ायदा हुआ.
क्या भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा?
इस क्षेत्र के भविष्य के प्रदर्शन के बारे में बात करते हुए, ज़ुबैर मोतीवाला ने कहा कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा ये उद्योग किस हद तक प्रतिस्पर्धी बना रहता है. और इसके उत्पादों को वैश्विक मंडियों की प्रतिस्पर्धा में बढ़त मिलती है या नहीं.
उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोप में कोरोना वायरस से जुड़े लॉकडाउन में थोड़ी नरमी आई तो इसने मांग को एक दम से बढ़ाया है. लेकिन निकट भविष्य में कोरोना वैक्सीन आ जाएगी और बाज़ार की स्थिति सामान्य हो जाएगी. इसके बाद पाकिस्तान के इस क्षेत्र का प्रदर्शन का पता चलेगा कि यह अन्य देशों के उत्पादों के साथ किस हद तक प्रतिस्पर्धा कर पाएगा.
वाणिज्य, उद्योग और उत्पादन की संसदीय सचिव, आलिया हमज़ा मलिक ने आगे भी अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद जताई है. उनके अनुसार कपड़ा उद्योग के अच्छे प्रदर्शन कि वजह सरकार की नीतियां हैं, जो कपड़ा उद्योग को हर तरह से सहायता उपलब्ध करा रही हैं.
उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में इस सेक्टर के प्रदर्शन में और तरक्की होगी. इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि न केवल कपड़ा क्षेत्र अपनी पूरी क्षमता से चल रहा है, बल्कि पॉवरलूम भी अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं.
आलिया मलिक ने कहा कि वर्तमान सरकार ने इस क्षेत्र के लिए ऐसी नीतियां बनाई हैं. जिनके माध्यम से इसकी पूरी तरह से मदद की जा सके. क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था और रोज़गार सृजन में इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है.
उन्होंने कहा कि कपड़ा उद्योग से जुड़े उद्योगपतियों के अनुसार, उनके पास न केवल दिसंबर महीने के लिए निर्यात ऑर्डर हैं, बल्कि कुछ ने जून महीने तक के निर्यात ऑर्डर प्राप्त होने की जानकारी भी हमारे साथ साझा की है.
क्या कपास की कमी समस्या पैदा कर सकती है?
ज़ुबैर मोतीवाला ने कहा कि इस साल कपास की फ़सल ख़राब होने के कारण उद्योग को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि इस क्षेत्र का सबसे बड़ा कच्चा माल कपास है.
उन्होंने कहा कि कपास की साढ़े छह से सात लाख गांठें उपलब्ध होंगी. जबकि पिछले साल साढ़े बारह लाख गांठ थीं.
ज़ुबैर ने कहा कि इस समस्या को दूर किया जा सकता है और इसका आसान उपाय यह है कि पाकिस्तान भारत से दवाई की तरह कपास आयात कर सकता है और यह कपास पाकिस्तान को बहुत सस्ती पड़ेगी.
उन्होंने कहा कि जब मानव जीवन को बचाने के लिए भारत से दवाओं का निर्यात किया जा सकता है, तो इस साल देश की अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से कपड़ा क्षेत्र की मदद के लिए वहां से कपास का आयात क्यों नहीं किया जा सकता है.
आलिया मलिक ने कहा कि सरकार इस बारे में पूरी तरह से अवगत है और कपास आयात पर नियामक शुल्क को कम करने के लिए काम कर रही है. उन्होंने कहा कि देश में कपास का उत्पादन कम होने की वजह कपास की खेती वाले क्षेत्रों के आसपास चीनी मिल लगाना है. जिसके कारण किसान कपास को छोड़ कर गन्ने की खेती कर रहे हैं. उन्होंने इसका आरोप पिछली सरकारों पर लगाया है.
कपड़ा उद्योग रोज़गार के अवसरों को कैसे बढ़ा रहा है?
आसिफ़ इनाम का कहना है कि अगर कपड़ा उद्योग और इससे संबंधित क्षेत्र पावरलूम्स के बारे में बात की जाए, तो रोज़गार के बहुत सारे अवसर पैदा हुए हैं.
उन्होंने कहा कि अगर हम केवल पॉवरलूम के बारे में बात करें, तो 10 से 20 लाख पॉवरलूम जो बंद पड़े थे, उन्हें फिर शुरू कर दिया गया है. एक अनुमान के अनुसार, एक लूम पर एक से दो लोग काम करते हैं. इस तरह केवल पॉवरलूम ही लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान कर रहा है.
आलिया मलिक ने कहा कि जब साल 2016 में देश में कपड़ा उद्योग बंद हो गया था और कपड़ा मिलें यहां से बांग्लादेश स्थानांतरित हो रही थीं. अंतरराष्ट्रीय मीडिया के अनुसार, उस समय इसकी वजह से लाखों लोग बेरोज़गार हो गए थे. अब जब देश में कपड़ा उद्योग एक बार फिर से पूरी तरह बहाल हो गए हैं. इसके अलावा बंद पड़े पॉवरलूम्स भी दोबारा चालू हो गए हैं, तो यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि, रोज़गार के और कितने अवसर पैदा हो गए हैं.
आलिया मलिक ने दावा किया कि अगर हम केवल फ़ैसलाबाद की बात करें, तो इस शहर में कपड़ा क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी है. उद्योगपतियों के अनुसार, उन्हें कुशल लोगों को खोजने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उनकी आवश्यकता बहुत अधिक है.
क्या कपड़ा उद्योग में बदलाव की आवश्यकता है?
कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए. इस पर राष्ट्रीय अंग्रेज़ी अख़बार में अर्थव्यवस्था के बारे में लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार मेहताब हैदर ने कहा कि, सबसे पहले इस क्षेत्र को सेठ संस्कृति से मुक्त कराकर कॉर्पोरेट संस्कृति में तब्दील किया जाना चाहिए. साथ ही हमें इस क्षेत्र के उत्पादों को नया बनाने और उनमें विविधता लाने की ज़रूरत है, ताकि हम विश्व बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकें.
आलिया मलिक ने कहा कि सरकार इस पर भी काम कर रही है और पाकिस्तान, जो परंपरागत रूप से धागे के निर्यात पर निर्भर था. अब बेड लिनन और अन्य मूल्य वर्धित उत्पादों का निर्यात कर सकता है.
उन्होंने कहा कि सरकार न केवल कपड़ा उद्योग में विविधता ला रही है. बल्कि यह पारंपरिक क्षेत्र जैसे कि सीमेंट और दवा निर्यात के अलावा अन्य उत्पादों के कुल निर्यात को बढ़ाने के लिए भी काम कर रही है. (bbc.com)
सुमी खान
ढाका, 18 दिसंबर | यह भारत-बांग्लादेश सीमा पर कई लोगों के लिए खुशी का दिन था, क्योंकि चिल्हाटी से भारत के हल्दीबाड़ी तक रेल लाइन फिर से शुरू हो गया। साल 1965 में इस रेल लाइन को बंद किए जाने के बाद 55 साल के इंतजार के बाद लोगों का इस ट्रैक पर रेलगाड़ी देखने का सपना पूरा हुआ।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को संयुक्त रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए रेल लिंक का उद्घाटन किया।
भारत के पश्चिम बंगाल में कूच बिहार के हल्दीबाड़ी से उत्तरी बांग्लादेश के चिल्हाटी तक रेल लाइन भारत और फिर पूर्वी पाकिस्तान के बीच साल 1965 में रेल संपर्क खत्म हो जाने के बाद से चालू नहीं हुआ था।
इस अवसर पर निलफामारी के चिल्हाटी रेलवे स्टेशन को अच्छे से सजाया गया था और ऐतिहासिक उत्सव मनाने के लिए हजारों लोग एकत्र हुए थे।
वहीं मोती मिया (75) ने समारोह का गवाह बनने के लिए 5 किलोमीटर पैदल चलकर अपने 'बचपन की सुनहरी यादों' को ताजा किया।
रेल लिंक का उद्घाटन सुबह लगभग 11.30 बजे बड़े पर्दे पर किया गया।
भारत के लिए बांग्लादेश से रवाना होने वाली एक मालगाड़ी को देखते हुए खुशी व्यक्त करते हुए उन्होंने आईएएनएस को बताया, "मैं बचपन में इस स्टेशन से भारत में अपने मामाघर के लिए यात्रा करता था। जब ट्रेन सेवाएं बंद हो गईं, तो मैं कूच बिहार नहीं जा सका। वहां मेरे चचेरे भाई और उनका परिवार रहता है।"
भावुक मिया ने कहा, "मैं अपने भतीजे और भतीजी को देखने की उम्मीद करता हूं .. और मेरे चचेरे भाई जो अभी भी जीवित हैं। यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा उपहार है जो मुझे अपनी प्रधानमंत्री शेख हसीना और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की ओर से मुझे मेरे मरने से पहले मिला।"
उन्होंने दोनों राज्य नेताओं से यात्री ट्रेन सेवाओं को तुरंत शुरू करने की भी अपील की।
डोमार उपजिला की 65 वर्षीय मोयना बेगम इस अवसर का गवाह बनने के लिए 4 किलोमीटर पैदल चलकर आईं।
उन्होंने कहा, "मैंने अपने माता-पिता के साथ इस मार्ग पर ट्रेन से असम में सिलचर की यात्रा की थी, तब मैं छोटी बच्ची थी .. लेकिन लंबे समय से हम वहां नहीं जा पाए हैं। मैं अपने बचपन की यादों को याद करने के लिए फिर से भारत आना चाहती हूं।"
आधिकारिक उद्घाटन के बाद कुल 32 वैगनों में माल ले जाने वाली एक मालगाड़ी दिन में 12.48 बजे चिल्हाटी रेलवे स्टेशन से भारत के लिए रवाना हुई।
बांग्लादेश के रेल मंत्री एमडी नुरुल इस्लाम सुजान ने औपचारिक रूप से सीटी बजाकर और हरी झंडी दिखाकर ट्रेन सेवा का उद्घाटन किया।
हल्दीबाड़ी रेलवे स्टेशन और अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बीच की दूरी 4.5 किलोमीटर है, जबकि चिल्हाटी से जीरो प्वॉइंट 7.5 किलोमीटर के आसपास है।
हल्दीबाड़ी और चिल्हाटी दोनों स्टेशन सिलीगुड़ी और कोलकाता के बीच पुराने ब्रॉड गेज रेलवे मार्ग पर थे।
करीब 55 सालों के लंबे अंतराल के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच परिवहन और कनेक्टिविटी को और बढ़ावा देने के उद्देश्य से बांग्लादेश के चिल्हाटी को हल्दीबाड़ी (पश्चिम बंगाल) भारत से जोड़ने वाली रेलवे लिंक को फिर से शुरू कर दिया गया है। (आईएएनएस)