अंतरराष्ट्रीय
वॉशिंगटन, 14 दिसंबर| अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि देश में व्हाइट हाउस के कर्मियों का टीकाकरण पहले नहीं किया जाएगा। ज्ञात हो कि वायरस से सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में अमेरिका पहले पायदान पर है, जिन्हें अब कोरोना की वैक्सीन मुहैया कराई जाएगी। रविवार को ट्विटर पर राष्ट्रपति ने लिखा, "अगर बहुत जरूरी न हो, तो व्हाइट हाउस में काम करने वाले कर्मियों को बाद में ही वैक्सीन दी जानी चाहिए। मैं इस पर अपनी बात रखी है कि ऐसी व्यवस्था की जाएगी। फिलहाल के लिए तो मेरा वैक्सीन लेना तय नहीं है, लेकिन सही वक्त आएगा, तो ऐसा करवाऊंगा।"
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन यूलिएट के हवाले से रविवार को द हिल न्यूज की वेबसाइट पर कहा गया, "तीन सरकारी विभागों के सभी वरिष्ठ अधिकारियों का सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों के तहत टीकाकरण किया जाएगा। अमेरिका के लोगों में इस बात का यकीन होना चाहिए कि वे सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों और राष्ट्रीय सुरक्षा नेतृत्व की सलाह पर अमेरिकी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के समान सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन प्राप्त करेंगे।" (आईएएनएस)
काराकास, 14 दिसंबर | प्रवासियों को ले जा रही एक नाव के पलटने से वेनेजुएला में 14 लोगों की मौत हो गई है। अधिकारियों ने कहा कि त्रिनिदाद और टोबैगो की नाव में सवार लोगों में से 14 के शव उन्हें मिल गए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, वेनेजुएला सरकार ने रविवार को कहा कि कोस्ट गार्ड की गश्ती बोट को तलाशी के दौरान 11 शव मिले थे और बाद में 3 और मौतों की खबर आई।
सरकार ने कहा है कि सुरक्षा बल घटना की जांच कर रहे हैं। साथ ही सरकार ने क्षेत्र में आपराधिक गिरोहों के साथ इस घटना के संबंध से इनकार नहीं किया है।
त्रिनिदाद और टोबैगो कोस्ट गार्ड ने सोशल मीडिया पर कहा कि प्रारंभिक जानकारी में कहा गया है कि जब 6 दिसंबर को जहाज यात्रा पर निकला था, तब उसमें 20 से अधिक लोग सवार थे। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 14 दिसंबर | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी, 2021 को अपने उत्तराधिकारी जो बाइडेन के शपथ कार्यक्रम में शामिल होंगे या नहीं, ये सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है। यहां की मीडिया ने यह जानकारी दी। गौरतलब है कि ट्रंप अभी भी 3 नवंबर के चुनाव नतीजों को मानने से इनकार कर रहे हैं।
रविवार को फॉक्स न्यूज के एक साक्षात्कार के दौरान यह पूछे जाने पर कि क्या वह शपथ कार्यक्रम में शामिल होंगे, राष्ट्रपति ने कहा, "मैं इस बारे मे बात नहीं करना चाहता।"
चुनाव परिणामों पर निराधार धोखाधड़ी का दावा दोहराते हुए उन्होंने कहा, "मैं इस बारे में बात करना चाहता हूं। हमने बहुत अच्छा काम किया है। मुझे अपने देश के इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति से अधिक वोट मिले हैं।"
उन्होंने कहा, "और वे लोग कहते हैं कि हम चुनाव हार गए। हम नहीं हारे।"
ट्रंप ने आगे कहा कि बाइडेन एक अवैध राष्ट्रपति होंगे।
उन्होंने कहा, "मुझे देश को अवैध राष्ट्रपति मिलने की चिंता है। यही मेरी चिंता है।"
ट्रंप ने कहा, "एक राष्ट्रपति जो हार गया और बुरी तरह हार गया। यह एक करीबी चुनाव की तरह नहीं था। आप जॉर्जिया को देखते हैं। हमने जॉर्जिया में बड़ी जीत दर्ज की। हमने पेंसिल्वेनिया, विस्कॉन्सिन में बड़ी जीत दर्ज की। हम बड़े पैमाने पर जीते।"
चुनाव नतीजों में ट्रंप के 232 इलेक्टोरल वोटों के मुकाबले बाइडेन को 306 इलेक्टोरल वोट मिलना दर्शाया गया है। (आईएएनएस)
लाहौर, 14 दिसंबर| पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने लाहौर में विपक्षी गठबंधन पीडीएम के आखिरी शक्ति प्रदर्शन को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने पाक के प्रधानमंत्री इमरान खान को देश के मौजूदा संकट का आरोपी ठहराया। पाकिस्तानी सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी के कारण सार्वजनिक रैलियों पर रोक लगाए जाने के बाद भी पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट ने पावर शो का आयोजन किया। एक्सप्रेस ट्रियून की रिपोर्ट के मुताबिक शहर के मीनार-ए-पाकिस्तान में आयोजित इस कार्यक्रम को 'पहला चरण' करार दिया गया।
पिछले साल से इलाज के लिए लंदन में रह रहे शरीफ ने वहीं से वीडियो-लिंक के जरिए इस रैली को संबोधित किया। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) सुप्रीमो ने अपने भाषण में कहा कि न केवल खान देश की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है, बल्कि वे भी हैं जो उन्हें सत्ता में लेकर आए।
साथ ही कहा, "उन्होंने देश को अभूतपूर्व मुद्रास्फीति और बेरोजगारी की ओर धकेल दिया है। ऐसे ही रहा तो यह हालात देश की सुरक्षा को खतरे में डाल देंगे।"
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, शरीफ ने कहा, "इस चुने गए सेट-अप से आजादी पाने का समय आ गया है।"
रैली को अन्य विपक्षी नेताओं पीडीएम के संयोजक और जमीयत उलेमा इस्लाम-फजल (जेयूआई-एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान, पीएमएल-एन की उपाध्यक्ष मरियम नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने भी संबोधित किया।
8 दिसंबर को पीडीएम द्वारा इसके घटक दलों से संबंधित सभी सांसदों के 31 दिसंबर को राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं से अपने इस्तीफे देने की घोषणा के 5 दिन बाद यह रैली हुई है। इस्तीफों की यह घोषणा इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अंतिम प्रयास के रूप में की गई है।
पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ईसीपी) ने यह भी घोषणा की है कि यदि नेशनल असेंबली के स्पीकर ने संसद के निचले सदन से विपक्षी सांसदों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए तो उपचुनाव होंगे।
बता दें कि पीडीएम कोविड-19 के दौरान जिला अधिकारियों की अनुमति के बिना पूरे पाकिस्तान में सार्वजनिक रैलियां कर रहा है। इससे पहले पीडीएम की 5 रैलियां- 16 अक्टूबर को गुजरांवाला में, 19 अक्टूबर को कराची में, 25 अक्टूबर को क्वेटा में, 22 नवंबर को पेशावर में और 30 नवंबर को मुल्तान में आयोजित की गईं थीं। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 14 दिसंबर| 1971 में हुए लिबरेशन वॉर के 49 साल बाद बांग्लादेश सरकार ने देश के लिए बलिदान देने वाले 1,222 शहीद बुद्धिजीवियों की प्राथमिक सूची को मंजूरी दे दी है।
रविवार को लिबरेशन वॉर अफेयर्स मिनिस्टर एकेएम मोजम्मल हकने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि इस महीने औपचारिक रूप से यह सूची जारी कर दी जाएगी। हक ने ये घोषणा सोमवार को शहीद बौद्धिक दिवस से एक दिन पहले की है।
रविवार को राष्ट्रपति एम. अब्दुल हामिद और प्रधानमंत्री शेख हसीना ने शहीद बुद्धिजीवियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
हक ने कहा कि सूची को संकलित करने के लिए गठित की गई समिति की पहली बैठक में सूची को अप्रूव कर दिया गया था। मंत्री ने कहा, "1972 में 1,070 शहीद बुद्धिजीवियों की सूची प्रकाशित की गई थी। बाद में डाक विभाग ने 152 शहीदों के डाक टिकट जारी किए। इसलिए हमें शहीद हुए 1,222 बुद्धिजीवियों की सूची मिली है जिसे हमने मंजूरी दे दी है।"
ढाका के मीरपुर क्षेत्र में शहीद बुद्धिजीवियों की याद में बनाए गए स्मारक पर नेता और अन्य लोग अपनी श्रद्धांजलि देंगे। बता दें कि जमात-ए-इस्लाम से संबंधित पाकिस्तानी सेना और उनके बंगाली भाषी सहयोगियों ने 25 मार्च, 1971 से शुरू हुए 9 महीने के लिबरेशन युद्ध के दौरान कई बुद्धिजीवियों को मार डाला था।
बांग्लादेश की स्वतंत्रता से पहले 14 दिसंबर, 1971 को अल-बद्र और अल-शम्स बलों जैसे कुख्यात नाजी पार्टी के प्रमुखों ने राष्ट्र को बुद्धिहीनता की स्थिति में लाने के लिए डॉक्टरों, इंजीनियरों और पत्रकारों जैसे सबसे प्रख्यात शिक्षाविदों और पेशेवरों को मारने के लिए एक अभियान चलाया था। बांग्लादेश सरकार और विजयी स्वतंत्रता सेनानियों को उनके अंतिम क्रूर नरसंहार के बारे में तभी पता चला जब पाकिस्तानी सेना ने 16 दिसंबर, 1971 को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
जमात-ए-इस्लामी और उसके छात्र विंग इस्लाम छत्र संगठन से संबंधित पाकिस्तानी सेना के शीर्ष साथी छुप गए थे। 14 दिसंबर, 1971 को मारे गए लोगों में नेत्र विशेषज्ञ अलीम चौधरी और फजले रब्बी, पत्रकार शाहिदुल्लाह कैसर, सिराजुद्दीन हुसैन, सेलिना परवीन और साहित्यकार मोनियर चौधरी शामिल थे।
ज्यादातर पीड़ितों को ढाका में उनके घरों से उठाकर 10-14 दिसंबर, 1971 के बीच आंखों पर पट्टी बांधकर मार डाला गया था। 2009 में राज्य की सत्ता संभालने के बाद सत्तारूढ़ अवामी लीग ने बुद्धिजीवियों की हत्या और 1971 के युद्ध अपराधियों को न्याय के दायरे में ला दिया है।
जमात प्रमुख (आमिर) मतीउर्रहमान निजामी और महासचिव अली अहसन मोहम्मद मुजाहिद और अन्य सहायक सचिव जनरलों अब्दुल कादर मोल्ला और मोहम्मद कमरुजमैन पर पहले ही युद्ध अपराधों के आरोप साबित हो चुके हैं।
वहीं प्रधानमंत्री ने कहा है, "जो लोग सीधे नरसंहार में शामिल थे उन पर ट्रायल चलते रहेंगे। उन्हें कोई छूट नहीं मिलेगी। पूरी दुनिया में इतनी बेरहमी के साथ कोई नरसंहार कहीं नहीं हुआ होगा, जहां इतने कम समय में इतने सारे लोगों को मार दिया गया हो। दुनिया का कोई भी ऐसा अखबार नहीं है जिसने इस नरसंहार की खबर न छापी हो।"
बता दें कि 2017 से 25 मार्च को बांग्लादेश में नरसंहार दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं इस साल 14 दिसंबर के शहीद बौद्धिक दिवस के कार्यक्रम महामारी के कारण लागू दिशानिर्देशों के अनुसार किए जाएंगे। (आईएएनएस)
ढाका, 14 दिसंबर | बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ. ए.के. अब्दुल मोमन ने रविवार को कहा कि 'जीत का महीना' आगामी भारत-बांग्लादेश प्रधानमंत्रियों के समिट में बड़े पैमाने पर छाया रहेगा। यह भारत के लिए भी एक जीत है क्योंकि उन्होंने 1971 में जीत हासिल करने में बांग्लादेश की मदद की थी और हमें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के योगदान को जरूर स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश 17 दिसंबर को प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनके भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी के बीच वर्चुअल मीटिंग के दौरान पानी और सीमा सहित सभी प्रमुख मुद्दों को उठाएगा।
विदेश मंत्री ने अपने कार्यालय में पत्रकारों से कहा, "हम अपने प्रमुख मुद्दों को उठाएंगे, जो हम आमतौर पर उठाते हैं।" उन्हंोने कहा कि कई त्वरित-प्रभाव वाली परियोजनाओं का उद्घाटन किया जाएगा।
अब्दुल मोमन ने पाकिस्तान की जेल में बंद बांग्लादेश के जनक बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को 1972 में सकुशल वापस लाने के लिए भारत और ब्रिटेन की तत्कालीन सरकारों के योगदान को याद करते हुए कहा, "हमें इनके योगदान को जरूर स्वीकारना चाहिए।"
उन्होंने कहा कि बांग्लादेश और भारत के संबंध ऐतिहासिक और खून के हैं और "भारत बांग्लादेश का समय पर परखा गया मित्र है, इसलिए, भारत के पास हमारी जीत पर गर्व करने का कारण है।"
अब्दुल मोमन ने इस बात का भी जिक्र किया कि बांग्लादेश और भारत अपने संबंधों में एक स्वर्णिम अध्याय देख रहे हैं। उन्होंने कहा, "दोनों देशों ने बातचीत और चर्चाओं के माध्यम से एलबीए और समुद्री सीमाओं जैसे मुद्दों को हल करके एक उदाहरण पेश किया है।"
उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि दोनों देश वार्ता के माध्यम से सभी मुद्दों को हल कर सकते हैं। विदेश मंत्री ने कहा, "प्रधान मंत्री शेख हसीना ने समस्याओं को हल करने में नेतृत्व की परिपक्वता दिखाई है।"
प्रधानमंत्री शेख हसीना और मोदी के बीच समिट के दौरान कुछ अन्य परियोजनाओं के साथ-साथ चिलाहाटी-हल्दीबाड़ी रेल लिंक का उद्घाटन किया जाएगा।
एक सवाल के जवाब में, अब्दुल मोमन ने कहा कि 'स्वाधीनता सड़क' (मेमोरी ऑफ इंडिपेंडेंस) नाम की एक सड़क अगले साल 26 मार्च को बांग्लादेश की आजादी के 50 साल पूरे होने के अवसर पर खोली जाएगी। उन्होंने कहा कि यह सड़क भारत की तरफ से फंक्शनल बनी हुई है, जबकि यह मेहरपुर जिले के मुजीबनगर से जुड़ेगी।
विदेश मंत्री ने कहा, "यह दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने में मदद करेगा।"
बांग्लादेश ने मोदी को 26 मार्च को संयुक्त रूप से स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए आमंत्रित किया है, और भारत सरकार ने सैद्धांतिक रूप से निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। (आईएएनएस)
बगदाद, 14 दिसंबर| इराकी काउंटर-टेररिज्म सर्विस (सीटीएस) ने नीनवे प्रांत में एक ऑपरेशन के दौरान इस्लामिक स्टेट (आईएस) के 42 आतंकवादियों को मार गिराया। इसकी पुष्टि देश की सेना ने की है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने रविवार को एक बयान में सेना के हवाले से बताया, खुफिया सूचना पर कार्रवाई करते हुए इराकी और अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन विमानों द्वारा समर्थित सीटीएस बल ने आईएस के पुराने गढ़ मोसुल की प्रांतीय राजधानी के दक्षिण में अइन अल-जहश क्षेत्र में बमबारी की।
इराकी बलों के कमांडर-इन-चीफ के प्रवक्ता याहिया रसूल ने बयान में कहा, "सीटीएस बल लगातार दो दिनों से क्षेत्र में आईएस आतंकवादियों के साथ संघर्ष कर रहा था।"
उन्होंने आगे कहा, "सैनिकों ने आईएस के आतंकवादियों को सुरंगों और गुफाओं में अपने ठिकानों से बाहर आने के लिए मजबूर किया और सीटीएस सैनिकों ने कई ठिकानों पर हाथों से भी ग्रैनेड फेंके।"
रसूल के अनुसार, ऑपरेशन में 42 आईएस आतंकवादी मारे गए, जिसमें उनके पांच स्थानीय नेता भी शामिल थे और उनके ठिकानों से कई हथियार और गोला बारूद भी जब्त किए गए हैं। (आईएएनएस)
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की राजनीतिक मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं. विपक्षी दलों ने इमरान को सत्ता से हटाने के लिए अगले महीने राजधानी इस्लामाबाद तक लंबे मार्च की घोषणा की है.
डायचेवेले पर चारु कार्तिकेय का लिखा-
रविवार 13 दिसंबर को लाहौर में हुई इमरान खान के खिलाफ रैली में 10 हजार से अधिक लोग शामिल हुए. विपक्षी दलों का विरोध प्रदर्शन इमरान खान के खिलाफ जोर पकड़ता जा रहा है, इसी क्रम में रविवार को विपक्षी दलों के गठबंधन ने एक रैली का आयोजन किया और इमरान को सत्ता से बेदखल करने के लिए राजधानी में अगले महीने लंबे मार्च का ऐलान किया है. विपक्ष दलों का आरोप है कि 2018 में इमरान खान की जीत सेना के दखल से हुई.
11 विपक्षी दलों का गठबंधन (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट) सितंबर महीने से इमरान को सत्ता से हटाने के लिए बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन करता आ रहा है, साथ ही वह दबाव बना रहा है कि सेना का राजनीति में दखल बंद हो जाए. पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के बेटे और विपक्षी नेता बिलावल भुट्टो के मुताबिक, "बातचीत का समय निकल चुका है. अब एक मार्च का आयोजन होगा."
नए चुनावों की घोषणा जब तक नहीं हो जाती तब तक उन्होंने इमरान या सेना के साथ किसी भी बातचीत की संभावना से इनकार किया है. इमरान कहते आए हैं विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य उन्हें ब्लैकमेल करना है ताकि विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच रोकी जा सके. इमरान खान ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान रैली के आयोजन की भी निंदा की है.
ताजा चुनावों की मांग
विपक्ष जिसने हाल के महीनों में छह विशाल रैलियां की हैं, उसका कहना है कि वह सरकार पर ताजा चुनाव कराने का दबाव बना रहा है. पाकिस्तान में अगला आम चुनाव 2023 में होना है. पाकिस्तान में पिछले 24 घंटे 72 लोगों की जान कोरोना वायरस से गई है और 3,369 नए मामले दर्ज किए गए हैं. यह जून से अब तक का उच्चतम आंकड़ा है. विपक्षी दलों का प्रदर्शन ऐसे समय में हो रहा है जब देश की अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है और महंगई दर रिकॉर्ड ऊंचाई पर है यही नहीं विकास दर नेगेटिव हो गई है.
लंदन से वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए रैली को संबोधित करते हुए नवाज शरीफ ने सवाल किया, "हम और किसे जिम्मेदार ठहराएं." पिछले साल मेडिकल बेल लेने के बाद से ही नवाज शरीफ लंदन में रह रहे हैं. 2018 में नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के आरोप में सजा हुई थी.
एए/सीके (रॉयटर्स)
तीन साल तक चले एक अभियान के बाद ऑस्ट्रेलिया के एक वीगर व्यक्ति आख़िरकार अपनी पत्नी और बच्चे से मिल पाए हैं. उन्हें चीन के शिनज़ियांग से छुड़ाया गया है.
गुरुवार का दिन ऑस्ट्रेलियाई नागरिक सद्दाम अबूदुसालामू के लिए बेहद ख़ास था. तीन साल बाद वो अपनी पत्नी नादिला वुमाएर और तीन साल के बच्चे लुत्फ़ी से सिडनी में मिले.
कूटनीतिक समझौते के बाद सद्दाम के परिवार को चीन छोड़ने की अनुमति दे दी गई. वुमाएर भी चीन के अल्पसंख्यक 'वीगर-मुसलमान' समुदाय से हैं. उन्होंने बताया कि इससे पहले वो घर में ही नज़रबंद थीं.
शुक्रवार को सिडनी एयरपोर्ट पर जब परिवार तीन साल बाद दोबारा एक हुआ तो सभी के लिए एक बेहद भावुक क्षण था.
उन्होंने इन पलों को कैमरे में क़ैद किया और इस सुनहरी याद को हमेशा के लिए संजोकर रख लिया. यह पहला मौक़ा था जब सद्दाम ने अपने बेटे को देखा. उनके बेटे का जन्म साल 2017 में हुआ था.
सद्दाम ने अपनी खुशी का इज़हार करते हुए ट्वीट किया और सभी को धन्यवाद कहा. उन्होंने लिखा, "शुक्रिया ऑस्ट्रेलिया. सभी का शुक्रिया."
तीन साल की जुदाई की कहानी
सद्दाम बीते एक दशक से ऑस्ट्रेलिया में रह रहे थे. साल 2016 में अपनी की प्रेमिका वुमाएर से शादी करने के लिए वो चीन गए थे. इसके बाद साल 2017 में काम के लिए वापस ऑस्ट्रेलिया लौट आए, जबकि उनकी पत्नी अपने वीज़ा (स्पाउस वीज़ा) के लिए वहीं चीन में ही रुक गईं.
उसी साल उनके बेटे का जन्म हुआ लेकिन चीन की सरकार ने सद्दाम के वीज़ा के लिए अनुमति नहीं दी.
बेटे के जन्म के कुछ समय बाद ही वुमाएर को हिरासत में ले लिया गया. दो सप्ताह बाद उन्हें रिहा तो किया गया लेकिन उनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया गया और उन्हें घर में ही नज़रबंद कर दिया गया.
उन्हें घर छोड़ने की अनुमति नहीं थी. पिछले दो साल में ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने चीन की सरकार से सद्दाम की पत्नी और उनके बेटे को रिहा करने के लिए कई बार अनुरोध भी किया लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला.
हालांकि एक ओर जहां सद्दाम ऑस्ट्रेलियाई नागरिक हैं वहीं उनकी पत्नी को ऑस्ट्रेलियाई नागरिकता प्राप्त नहीं है. लेकिन सद्दाम की अपील के बाद उनके बेटे को ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता दे दी गई.
चीन के अधिकारियों ने इस साल फ़रवरी में कहा था कि सद्दाम और वुमाएर की शादी चीन के क़ानून के हिसाब से मान्य नहीं है और वुमाएर ने चीन में रहने की इच्छा जताई है.
लेकिन चीन के एक अधिकारी ने जैसे ही ये बात एक ऑस्ट्रेलियाई टीवी प्रोग्राम में कही, सद्दाम ने अपनी पत्नी और बच्चे की तस्वीर को ट्ववीट किया जिसमें वुमाएर के हाथ में दिख रहे कागज पर लिखा था, ''मैं जाना चाहती हूं और अपने पति के साथ रहना चाहती हूं.''
लेकिन इसके बाद भी इस जोड़े को छह महीने और इंतज़ार करना पड़ा. उनके वकील माइकल ब्रेडली ने बीबीसी को बताया, ''दो-तीन महीने पहले हमें पता चला कि वो चीन छोड़ सकेंगे.''
शुक्रवार को शंघाई, हांगकांग, ब्रिस्बेन होते हुए 48 घंटे के सफ़र के बाद सिडनी पहुंचने पर सद्दाम ने ऑस्ट्रेलिया के विदेश विभाग को धन्यवाद कहा और अपने वकीले के साथ-साथ मीडिया के प्रति अपना आभार जताया.
उन्होंने कहा, ''मैंने कभी नहीं सोचा था कि ये दिन आएगा और हम फिर से एक हो जाएंगे. मेरा सपना है कि हर वीगर अपने परिवार से मिल सके.''
चीन पर आरोप
मानवाधिकार समूहों का आरोप है कि चीन ने लगभग दस लाख वीगर और अन्य मुसलमानों को बंदीगृहों में क़ैद करके रखा है. हालांकि चीन इन आरोपों सें इंकार करता है और कहता रहा है कि 'वो इन शिविरों में उन्हें दोबारा-शिक्षित करके चरमपंथ और धार्मिक कट्टरता से लड़ रहा है.'
इसी साल अक्तूबर में ऑस्ट्रेलिया, अमरीका और कई यूरोपीय देशों समेत 39 देशों के समूह ने संयुक्त राष्ट्र में एक बयान के ज़रिए चीन के शिनज़ियांग में मानवाधिकारों के प्रति गंभीर चिंता जताई थी.
बयान में इस बात पर भी चिंता जताई गई थी कि चीन ने शिनज़ियांग में वीगर मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी, उनकी आवाजाही और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति पर कड़ी पाबंदियां लगाई हैं. (bbc)
न्यूयॉर्क, 14 दिसंबर | जब अमेरिका कोविड महामारी से लड़ने के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण के लिए तैयार है, विशेषज्ञों ने संघीय सरकार और देशवासियों को टीकाकरण के खिलाफ चल रहे अफवाहों और गलत सूचनाओं से बचने की सलाह दी है। हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैलुएशन इंस्टीट्यूट के अली मोक्कड, बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के पीटर होट्ज और ह्यूस्टन में वैक्सीन डेवलपमेंट के लिए टेक्सस चिल्ड्रन सेंटर, और एमोरी यूनिवर्सिटी के वाल्टर ऑरेनस्टीन जैसे विशेषज्ञों ने इस मामले में राष्ट्रीय रणनीति बनाने का आह्वान किया है, ताकि भ्रामक सूचनाओं से मुकाबला किया जा सके।
विशेषज्ञों ने "संघीय एजेंसियों और अमेरिकी लोगों के बीच एक अभूतपूर्व स्तर के संवाद" की मांग की है। विशेषज्ञों ने द लैंसेट के ऑनलाइन प्रकाशित एक पत्रिका ईक्लीनिकलमेडिसिन में ये बातें कही हैं।
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने शुक्रवार को फाइजर और उसके जर्मन साझेदार बायोएनटेक को देश में पहले कोविड-19 वैक्सीन को हरी झंडी दे दी है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन की पहली खेप सोमवार से अमेरिकी राज्यों में पहुंचनी शुरू हो जाएगी।
विशेषज्ञों ने कहा, "हमें इंटरनेट पर एंटी-वैक्सीन संदेशों के व्यापक पहलुओं को पहचानना होगा, जिसमें सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं।"
"टीका विरोधी अफवाहें, गलत सूचना और षड्यंत्र मीडिया में घूम रहे हैं, उनकी उत्पत्ति अलग-अलग तरह से हो रही हैं और इसमें टीका-विरोधी संगठन और राजनीतिक चरमपंथी समूह भी शामिल हैं।"
उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि टीके की सुरक्षा और प्रभावकारिता 'सर्वोपरि' होनी चाहिए।
टीकाकरण के संभावित दुष्प्रभावों या प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं को पहचानने और उस पर नजर रखने की जरूरत है।
ओरेनस्टीन ने टिप्पणी की कि टीका इस वायरस से सुरक्षा का सबसे प्रभावी उपाय है। उन्होंने कहा, "टीका जिदगी नहीं बचाता है, लेकिन टीकाकरण जरूर जिदगी बचाता है।"
"शीशी में रहने वाली वैक्सीन का कोई मतलब नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नैदानिक परीक्षणों के क्या परिणाम आए।"
--आईएएनएस
न्यूयॉर्क, 13 दिसंबर | जब अमेरिका कोविड महामारी से लड़ने के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण के लिए तैयार है, विशेषज्ञों ने संघीय सरकार और देशवासियों को टीकाकरण के खिलाफ चल रहे अफवाहों और गलत सूचनाओं से बचने की सलाह दी है। हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैलुएशन इंस्टीट्यूट के अली मोक्कड, बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के पीटर होट्ज और ह्यूस्टन में वैक्सीन डेवलपमेंट के लिए टेक्सस चिल्ड्रन सेंटर, और एमोरी यूनिवर्सिटी के वाल्टर ऑरेनस्टीन जैसे विशेषज्ञों ने इस मामले में राष्ट्रीय रणनीति बनाने का आह्वान किया है, ताकि भ्रामक सूचनाओं से मुकाबला किया जा सके।
विशेषज्ञों ने "संघीय एजेंसियों और अमेरिकी लोगों के बीच एक अभूतपूर्व स्तर के संवाद" की मांग की है। विशेषज्ञों ने द लैंसेट के ऑनलाइन प्रकाशित एक पत्रिका ईक्लीनिकलमेडिसिन में ये बातें कही हैं।
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने शुक्रवार को फाइजर और उसके जर्मन साझेदार बायोएनटेक को देश में पहले कोविड-19 वैक्सीन को हरी झंडी दे दी है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन की पहली खेप सोमवार से अमेरिकी राज्यों में पहुंचनी शुरू हो जाएगी।
विशेषज्ञों ने कहा, "हमें इंटरनेट पर एंटी-वैक्सीन संदेशों के व्यापक पहलुओं को पहचानना होगा, जिसमें सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं।"
"टीका विरोधी अफवाहें, गलत सूचना और षड्यंत्र मीडिया में घूम रहे हैं, उनकी उत्पत्ति अलग-अलग तरह से हो रही हैं और इसमें टीका-विरोधी संगठन और राजनीतिक चरमपंथी समूह भी शामिल हैं।"
उन्होंने यह भी जोर देकर कहा कि टीके की सुरक्षा और प्रभावकारिता 'सर्वोपरि' होनी चाहिए।
टीकाकरण के संभावित दुष्प्रभावों या प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं को पहचानने और उस पर नजर रखने की जरूरत है।
ओरेनस्टीन ने टिप्पणी की कि टीका इस वायरस से सुरक्षा का सबसे प्रभावी उपाय है। उन्होंने कहा, "टीका जिदगी नहीं बचाता है, लेकिन टीकाकरण जरूर जिदगी बचाता है।"
"शीशी में रहने वाली वैक्सीन का कोई मतलब नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नैदानिक परीक्षणों के क्या परिणाम आए।" (आईएएनएस)
मॉस्को, 13 दिसंबर | गामालेया नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के डायरेक्टर और स्पुतनिक-5 वैक्सीन के प्रमुख विकासकर्ता अलेक्जेंडर गेन्सबर्ग ने दावा किया है कि वैक्सीन द्वारा कोविड-19 के खिलाफ दो साल तक सुरक्षा प्रदान किए जाने की संभावना है। यूट्यूब पर सोलोविएव लाइव चैनल पर उनके दिए बयान के हवाले से तास समाचार एजेंसी ने शनिवार को कहा है, "अभी तो मैं केवल सुझाव ही दे सकता हूं क्योंकि और अधिक प्रयोगात्मक आंकड़ों की आवश्यकता है। हमारी वैक्सीन ईबोला वैक्सीन की तर्ज पर बनाई जा रही है।"
उन्होंने आगे कहा, "अभी तक जितने भी प्रयोग हुए हैं, उनसे प्राप्त आंकड़ों से यही पता चलता है कि यह वैक्सीन दो साल या उससे अधिक समय तक के लिए सुरक्षा प्रदान करेगी।"
इस रूसी वैज्ञानिक के मुताबिक, स्पुतनिक-5 96 फीसदी मामलों में प्रभावी रहा है। बाकी बचे चार प्रतिशत टीकाकृत व्यक्तियों में बहती नाक, खांसी और हल्के बुखार की शिकायत रहेगी, लेकिन फेफड़ा प्रभावित नहीं होगा। (आईएएनएस)
काबुल, 13 दिसंबर | ऑस्ट्रेलिया स्थित इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (आईईपी) ने अपने वार्षिक वल्र्ड टेररिज्म इंडेक्स में अफगानिस्तान को धरती पर सबसे अधिक आतंक से प्रभावित देश के रूप में शीर्ष पर रखा है। वहीं देश की अर्थव्यवस्था को भी बहुत नुकसान पहुंचा है। यह जानकारी मीडिया को रविवार को दी गई। खामा प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को रिलीज रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि साल 2019 में आतंकवाद से होने वाली मौतों में लगातार पांचवीं बार गिरावट आई है, वहीं यह 2014 में शीर्ष पर था।
रिपोर्ट में कहा गया, "मरने वालों की कुल संख्या 15.5 प्रतिशत घटकर 13,826 रह गई।"
रिपोर्ट में आगे कहा गया, "अफगानिस्तान सबसे अधिक आर्थिक प्रभाव वाला देश था, जो अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 16.7 प्रतिशत के बराबर था।"
वहीं 2019 में दुनिया भर में 20 घातक आतंकवादी हमलों में से कम से कम छह अफगानिस्तान में दर्ज किए गए थे।
रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान में सुरक्षा अधिक खतरे में है। आईईपी ने तालिबान को पृथ्वी पर सबसे घातक समूहों में से एक के रूप में वर्णित किया।
रिपोर्ट में कहा गया, "वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से होने वाली मौतों में 41 फीसदी मौतें अफगानिस्तान में हुईं, इन मौतों का 87 प्रतिशत जिम्मेदार तालिबान रहा। साल 2019 से तालिबान दुनिया का सबसे घातक आतंकवादी समूह बना रहा है। हालांकि, संगठन के लिए जिम्मेदार आतंकवादी मौतों में 18 प्रतिशत की गिरावट आई और यह 4,990 है।"
रिपोर्ट में आगे कहा गया, "अफगानिस्तान में शांति वार्ता का आतंकवादी गतिविधि पर पर्याप्त प्रभाव देखा जा सकता है।" (आईएएनएस)
अनिल आजाद पांडेय
बीजिंग, 13 दिसंबर | शांगहाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के सदस्य देश विभिन्न माध्यमों से संगठन की वैश्विक भूमिका को मजबूत बनाने में जुटे हैं। इसी क्रम में चीन की राजधानी बीजिंग में भारतीय फिल्म सीरीज की शुरूआत की गयी है। शनिवार देर शाम भारतीय दूतावास में एससीओ के महासचिव व्लादिमिर नोरोव व चीन स्थित भारत के राजदूत विक्रम मिस्री ने सिनेमास्कोप नामक फिल्म श्रृंखला का रिबन काटकर संयुक्त रूप से उद्घाटन किया। इस दौरान चीन सहित दुनिया के कई देशों में बेहद पसंद की गयी साल 2009 की फिल्म 'थ्री ईडियट्स' प्रदर्शित की गयी। दूतावास के ऑडिटोरियम में उपस्थित प्रतिनिधियों की जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट बता रही थी कि हिंदी फिल्में विदेशी दर्शकों को कितना प्रभावित करती हैं।
वहीं इसी क्रम को जारी रखते हुए अगले साल 'बर्फी', 'तारे जमीन पर', 'रॉकस्टार,' 'ब्लैक' व 'माई नेम इज खान' जैसी सुपरहिट हिंदी फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी।
दूतावास रूसी भाषा में डब की गई दो दर्जन से अधिक भारतीय फिल्मों की स्क्रीनिंग करेगा, जो लगभग हर महीने प्रदर्शित होंगी। फिल्में दिखाने का यह सिलसिला साल 2023 में भारत के एससीओ परिषद का प्रमुख बनने तक जारी रहेगा।
इस मौके पर एससीओ महासचिव व्लादिमिर नोरोव ने कहा कि सिनेमास्कोप का आयोजन 2021 में मनाए जाने वाले एससीओ संस्कृति वर्ष से मेल खाएगा, क्योंकि अगले साल एससीओ के गठन के 20 साल पूरे हो रहे हैं। बकौल नोरोव भारतीय फिल्मों विशेषकर बॉलीवुड का वैश्विक प्रभाव बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही 2013 में भारतीय सिनेमा के सौ साल पूरे होने का जश्न मनाया गया। पिछले सौ वर्षों में, भारतीय सिनेमा एक ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म से जीवंत, गीत-और-नृत्य से भरपूर फिल्म उद्योग में विकसित हुआ है, जो समाज को मजबूत संदेश देता है। इस दौरान भारतीय सिनेमा ने सीमाओं को पार कर लिया है और अब ये फिल्में न केवल मनोरंजन के रूप में देखी जाती हैं, बल्कि लोगों को जोड़ने का एक शक्तिशाली माध्यम भी बन चुकी हैं।
एससीओ महासचिव ने आगे कहा कि रूसी भाषा में डब की गयी भारतीय फिल्मों ने सोवियत फिल्म प्रेमियों पर काफी सकारात्मक प्रभाव छोड़ा है। हम में से कई लोग सोवियत संघ में प्रदर्शित पहली बॉलीवुड फिल्मों में से एक 'आवारा' को देखते हुए बड़े हुए हैं। राज कपूर, मिथुन चक्रवर्ती से लेकर अमिताभ बच्चन तक कई भारतीय अभिनेता और अभिनेत्रियों को रूस और मध्य एशिया के घरों में आशावाद का प्रतीक माना जाता है।
वहीं राजदूत मिस्री ने कहा कि एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तावित फिल्म फेस्टिवल के आयोजन को लेकर एससीओ सदस्य देश विचार कर रहे हैं, वहीं दूतावास ने सिनेमा के माध्यम से उक्त देशों के बीच बेहतर संबंध कायम करने के लिए एक छोटी सी शुरूआत की है। यह कार्यक्रम गत 30 नवंबर को एससीओ परिषद के प्रमुखों की बैठक के सफल आयोजन का जश्न मनाने और एससीओ परिवार को साथ लाने का एक नया ट्रैक शुरू करने का एक तरीका है।
यहां बता दें कि चीन, रूस, भारत व पाकिस्तान सहित 8 देश एससीओ के सदस्य हैं। जबकि कई पर्यवक्षेक देश भी एससीओ की बैठकों में भाग लेते रहे हैं। इस संगठन का मुख्यालय चीन के शांगहाई में मौजूद हैं, इसकी स्थापना साल 2001 में हुई थी।
(साभार-चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग) (आईएएनएस)
-नियाज़ फ़ारूक़ी
भारत और पाकिस्तान में दशकों से तनाव के बीच शायद ही कोई ऐसी ख़बर आती है कि दोनों देशों ने एक दूसरे को समर्थन किया हो. लेकिन कोरोना वायरस की महामारी ने पारपंरिक रूप से दोनों प्रतिद्वंद्वी मुल्कों को एक मुद्दे पर साथ ला दिया है.
भारत और पाकिस्तान में कोरोना वायरस से एक करोड़ से ज़्यादा लोग संक्रमित हुए हैं. केवल भारत में क़रीब एक लाख 43 हज़ार लोगों की मौत हुई है और पाकिस्तान में भी हज़ारों की जान गई है. अब दोनों देश यूरोप और अमेरिका में बनी वैक्सीन को पाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि लोगों की जान बचाई जा सके.
भारत ने दक्षिण अफ़्रीका के साथ वैक्सीन के पेटेंट को लेकर अस्थायी बदलावों के लिए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में एक प्रस्ताव दिया है. अगर ये प्रस्ताव स्वीकार होता है तो इससे वैक्सीन की क़ीमत में कमी आ सकती है. पाकिस्तान ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि महामारी की शुरुआत से ही पाकिस्तान ज़ोर दे रहा है कि कोरोना वैक्सीन तैयार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधनों को एक साथ लाने की ज़रूरत है.
विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ विश्व स्वास्थ्य संगठन में कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर किए गए अनुरोध का मक़सद फार्मास्यूटिकल कंपनियों को वैक्सीन के आधारभूत फॉर्म्युले के आधार पर सस्ती वैक्सीन बनाने की अनुमित दिलाना है.
विदेश मंत्रालय ने बताया कि ये मामला विचाराधीन है और अगले साल की शुरुआत में इस पर कोई फ़ैसला होने की उम्मीद है.
डब्ल्यूटीओ की इजाज़त क्यों है ज़रूरी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य साल 1995 से अंतरराष्ट्रीय व्यापार के समान सिद्धांत का पालन कर रहे हैं.
इन सदस्यों ने एक व्यापार संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर किए हुए हैं जिसे 'बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलू' या टीआरआईपीएस कहते हैं. इस समझौते का मक़सद कंपनियों की बौद्धिक संपदा के अधिकार को सुनिश्चित करना है ताकि बिना अनुमति के उसका इस्तेमाल ना हो सके.
मौजूदा स्थिति में इसका मतलब ये है कि एक देश में विकसित की गई कोविड-19 वैक्सीन को किसी दूसरे देश में स्थानीय स्तर पर उत्पादित नहीं किया जाएगा. ऐसा तभी संभव होगा जब दोनों देश इस पर सहमत हों या विश्व व्यापार संगठन इसकी अनुमति दे.
वहीं, कई देश संसाधनों की कमी या अन्य कारणों से द्विपक्षीय समझौते या डब्ल्यूटीओ की अनुमति के बावजूद भी अपने देश में ये वैक्सीन नहीं बना पाएंगे.
ऐसे में उन्हें दूसरे देशों से ये वैक्सीन ऊंची क़ीमतों पर ख़रीदनी पड़ेगी.
इससे पहले भी इन्हीं कारणों के चलते कई देश 'जेनेरिक फॉर्म्युले' से स्थानीय स्तर पर दवाइयां बना चुके हैं जो सस्ती होती है.
प्रस्ताव में क्या है
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान में कहा था, ''वैश्विक आपातकाल की स्थिति को देखते हुए ये महत्वपूर्ण है कि डब्ल्यूटीओ के सदस्य ये सुनिश्चित करने के लिए साथ काम करें कि वैक्सीन और दवाइयों का अनुसंधान, विकास और उत्पादन किया जाए. बीमारी से लड़ाई में आवश्यक दवाइयों की आपूर्ति में दख़लअंदाज़ी ना करें.''
वहीं, इस प्रस्ताव में कहा गया है कि कोरोना वायरस को जल्द से जल्द ख़त्म करने के लिए वैश्विक एकजुटता की ज़रूरत है. इसके लिए संयुक्त तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधनों की आवश्यकता है.
ये प्रस्ताव सबसे पहले दो अक्टूबर को पेश किया गया था. अब डब्ल्यूटीओ के सदस्य इस पर फिर से बातचीत करेंगे.
भारत और पाकिस्तान के अलावा बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मिस्र और इंडोनेशिया ने भी इस अनुरोध का समर्थन किया है. यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील वैक्सीन पर डब्ल्यूटीओ का पेटेंट चाहते हैं.
चीन ने इस अनुरोध का समर्थन किया है लेकिन इस पर विचार करने के लिए समय मांगा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक डब्ल्यूटीओ के 164 में से 100 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.
अमीर देश ख़रीद रहे वैक्सीन
अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर अर्जुन जयदेव कहते हैं, ''अभी महामारी के कारण आपातकालीन स्थिति है और ऐसे में पेटेंट के नियमों में ढील देने की ज़रूरत है. आपातकालीन स्थिति में विश्व व्यापार संगठन को चाहिए कि वो दूसरे देशों को जेनरिक दवाई बनाने की अनुमति दे ताकि वैक्सीन सस्ती हो सके. ऐसी स्थिति में आप पेटेंट के सख़्त नियमों को किनारे रख सकते हैं.''
''हालांकि इन तर्कों के जवाब में कहा जाता है कि दवाई कंपनी को वैक्सीन बनाने में भारी संसाधन खर्च करना पड़ा है और ऐसे में फ़ायदा कमाना उसका हक़ बनता है.''
पेटेंट को लेकर अभी तक नियमों में कोई ढील देने की बात नहीं कही गई है. ऐसे में ज़्यादातर ग़रीब देशों के लिए वैक्सीन हासिल करना आसान नहीं है. दूसरी तरफ़ अमीर देशों ने वैक्सीन लेना शुरू कर दिया है.
नेचर पत्रिका के एक अनुमान के मुताबिक यूरोपीय संघ के 27 देशों और पाँच अन्य अमीर देशों ने पहले से ही आधी वैक्सीन ख़रीद ली है जो कि दुनिया की पूरी आबादी का सिर्फ़ 13 प्रतिशत है.
एक नागरिक अधिकार समूह ने भी इस प्रस्ताव के समर्थन में विश्व स्वास्थ्य संगठन को एक पत्र लिखा है. इसमें कोरोना वैक्सीन को वैश्विक स्तर पर उपलब्ध कराने और सभी तक पहुंच बनाने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया गया है.(https://www.bbc.com/hindi)
इस्लामाबाद, 13 दिसंबर | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि 2030 तक देश में उत्पादित सभी ऊर्जा का 60 प्रतिशत या तो स्वच्छ हो जाएगा या तो इसे नवीकरणीय ऊर्जा में तब्दील कर दिया जाएगा। वहीं 30 प्रतिशत सभी वाहनों को इलेक्ट्रिसिटीवाहनों में में तब्दील कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि देश कार्बन उत्सर्जन को सीमित करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, ऐतिहासिक पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर की पांचवीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित क्लाइमेट एंबिशन समिट 2020 में शनिवार को वीडियो-लिंक के माध्यम से बोलते हुए, उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने पहले ही दो कोयला बिजली आधारित परियोजनाओं को समाप्त कर दिया है, जो 2,600 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन करने वाले थे। उसे अब पनबिजली परियोजना से बदल दिया गया है।
उन्होंने कहा, "जहां तक, हमारे यहां के कोयले की बात है, हमने कोयले का इस्तेमाल या तो तरल रूप में या गैस के रूप में करने का फैसला किया है, इसलिए हमें ऊर्जा पैदा करने के लिए कोयले को जलाने की जरूरत नहीं है।"
खान ने कहा कि पाकिस्तान एक ऐसा देश है, जिसका वैश्विक उत्सर्जन में योगदान एक प्रतिशत से भी कम है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण यह पांचवां सबसे प्रभावित देश है।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए प्रकृति आधारित समाधान का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने अगले तीन वर्षों में 10 अरब पेड़ लगाने की योजना बनाई है।
--आईएएनएस
ईरान के सरकारी मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लैवरोव ने कहा है कि रूस ईरानी परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या के मामले में ईरान के साथ खड़ा है.
उन्होंने कहा कि रूस इस बात को लेकर सहमत है कि उनकी हत्या क्षेत्र में अशांति पैदा करने के मकसद से की गई है.
सर्गेई लैवरोव ने ईरान और रूस को 'दुनिया के न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले "दो अहम देश" बताया है.
ईरान के सरकारी टीवी नेटवर्क वन (आईआरटीवी 1) ने लैवरोव की रूसी भाषा में कही बात को फारसी में अनुवाद कर कहा है कि उन्होंने कहा, "हम वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या की निंदा करते हैं. हम इसे एक उकसाने वाली आतंकवादी हरकत और क्षेत्र में अशांति फैलाने की कोशिश के तौर पर देखते हैं. ये विदेशी सरकारों की दखल का भी मुद्दा है."
उन्होंने 3 जनवरी को हुई लेफ्टिनेंट जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का भी जिक्र किया और कहा कि, "ये किसी भी देश के लिए अस्वीकार्य है."
कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या इराक़ में अमेरिकी ड्रोन हमले में हुई थी. अमरीका ने उन्हें और उनकी क़ुद्स फ़ोर्स को सैकड़ों अमरीकी नागरिकों की मौत का ज़िम्मेदार क़रार देते हुए 'आतंकवादी' घोषित कर रखा था.
इंटरव्यू में एक जगह पर वो ईरान और रूस के बीच सहयोग की बात पर ज़ोर देते हैं. वो कहते हैं, "ईरान के साथ हमारा आपसी सहयोग जिस स्तर पर है वैसा किसी भी देश के साथ नहीं है. कोरोना महामारी के वक्त भी हमारा आपसी व्यापार बढ़ा है, कम नहीं हुआ है."
उन्होंने यह भी बताया कि ईरान के साथ 2019 में 20 फ़ीसद व्यापार बढ़ा तो महामारी के दौरान इसमें और आठ फ़ीसद की बढ़ोत्तरी हुई है.
उन्होंने ज़ोर दे कर कहा कि ईरान और यूरेशिया के बीच 2019 में हुए व्यापार समझौतों ने ईरान को बड़े बाज़ार के लिए अवसर मुहैया कराए.
सर्गेई लैवरोव ने 2015 में परमाणु समझौते से हटने के लिए अमेरिका की आलोचना की, साथ ही मुक्त व्यापार में डॉलर को हटाने की अहमियत पर भी ज़ोर दिया है.
ईरान की बैंकिंग सेक्टर पर पाबंदियाँ लगी हुई हैं और इसकी वजह से वो विदेशों के साथ व्यापार में डॉलर का इस्तेमाल नहीं कर सकता है.
ईरान की राजधानी तेहरान से सटे शहर अबसार्ड में बंदूकधारियों ने घात लगाकर हमला कर देश के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की हत्या कर दी गई थी. ईरान के नेताओं ने इस हत्या के लिए इसराइल को दोषी ठहराया है और कहा कि इसका बदला लिया जाएगा.(https://www.bbc.com/hindi)
काबुल, 13 दिसंबर | काबुल में रविवार को एक अफगान सांसद के वाहन को निशाना बनाकर किए गए बम विस्फोट में कम से कम 2 लोगों की मौत हो गई है और 2 लोग घायल हो गए हैं। घटना सुबह करीब 7.50 बजे की है। पुलिस जिले 15 में होटल-ए-परवान के पास लैंड क्रूजर गाड़ी में स्टिकी बम लगाकर इस विस्फोट को अंजाम दिया गया था।
काबुल पुलिस के प्रवक्ता फर्डवास फरामज ने सिन्हुआ एजेंसी को बताया, "विस्फोट में 2 लोग मारे गए हैं और 2 अन्य घायल हो गए हैं।" एक रक्षा सूत्र ने कहा कि सांसद मोहम्मद तौफीक वाहदत के वाहन में विस्फोट के बाद आग लग गई थी।
हमले का सांसद पर कोई प्रभाव हुआ या नहीं इसकी तत्काल जानकारी नहीं मिली थी। किसी भी समूह ने अब तक हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है।
इससे एक दिन पहले ही काबुल शहर के अलग-अलग हिस्सों में 10 रॉकेट दागे गए थे, जिसमें 1 व्यक्ति की मौत हो गई थी और 2 लोग घायल हो गए थे। पिछले एक महीने में काबुल में यह दूसरा रॉकेट हमला था। इससे पहले 21 नवंबर को हुए रॉकेट हमले में 8 नागरिकों की मौत हो गई थी। (आईएएनएस)
सुमी खान
ढाका, 13 दिसंबर | कुश्तिया में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की निमार्णाधीन मूर्ति को तोड़ने के विरोध में बांग्लादेश सिविल सेवा (बीसीएस) कैडर के अधिकारियों ने देशव्यापी रैली निकाली। वे 'जातिर पित्तर सम्मान, राखबो मोरा ओमलान' (हम राष्ट्रपिता की गरिमा को बनाए रखेंगे) के नारे के साथ अपना विरोध जता रहे थे। शनिवार को निकाली गई इन रैलियों में गैर-कैडर सेवाओं के अधिकारी भी शामिल हुए।
इस दौरान सरकारी अधिकारियों ने राष्ट्रपिता की गरिमा को बनाए रखने की कसम खाते हुए कहा कि वे किसी को भी स्वतंत्र बांग्लादेश के वास्तुकार को बदनाम करने की अनुमति नहीं देंगे। यह रैली 'गवर्नमेंट ऑफिसर्स फोरम' के बैनर तले ढाका में आयोजित की गई थी।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव अहमद कैकौस ने रैली की अध्यक्षता करते हुए कहा, "हम प्रतिज्ञा करते हैं कि हम किसी को भी राष्ट्रपिता को अपमानित करने की अनुमति नहीं देंगे। हम बंगबंधु की गरिमा को बनाए रखने के लिए ²ढ़ हैं। देश के विकास और प्रगति के खिलाफ किसी भी बुरे प्रयास का हम एकजुट होकर विरोध करेंगे।"
स्थानीय सरकार प्रभाग (एलजीडी) के वरिष्ठ सचिव और बांग्लादेश प्रशासनिक सेवा संघ के अध्यक्ष हेलाल उद्दीन अहमद ने कहा कि देश की स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ के मौके पर भी मुक्ति-विरोधी ताकतें देश के खिलाफ साजिश रच रहीं है। लेकिन हमारी भावनाएं बंगबंधु के नाम के साथ जुड़ी हुई हैं। बंगबंधु हमारी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक हैं।
हेलाल उद्दीन ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन मुक्ति-विरोधी ताकतें देश के विकास को स्वीकार नहीं कर पा रहीं हैं।
बांग्लादेश पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) बेनजीर अहमद ने कहा, "देश के खिलाफ किसी भी तरह के हमले को कानून के मुताबिक सख्ती से निपटा जाएगा। हम रात के अंधेरे में बंगबंधु की मूर्ति पर हमले के जघन्य कृत्य को लेकर नि:शब्द हो गए हैं।"
उन्होंने कहा कि बंगबंधु की मूर्ति पर हमला देश के संविधान पर हमला और राज्य पर हमला है। (आईएएनएस)
कोलंबो, 13 दिसंबर | दुनिया में सबसे ज्यादा हाथियों की मौतें श्रीलंका में दर्ज हुईं हैं, वहीं इंसान और हाथियों के बीच हुए संघर्ष के दौरान हुई लोगों की दूसरी सबसे ज्यादा मौतें भी श्रीलंका में ही हुईं हैं। इस द्वीपीय देश की कमेटी ऑन पब्लिक अकाउंट्स (सीओपीए) ने अपनी रिपोर्ट में यह आंकड़े बताए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि हाल ही में सीओपीए द्वारा की गई चर्चाओं में यह बात सामने आई थी कि दुनिया में मानव-हाथी संघर्ष के कारण सबसे अधिक मानव मृत्यु की रिपोर्ट करने में श्रीलंका दूसरे स्थान पर और भारत पहले नंबर पर है।
सीओपीए के अध्यक्ष तिस्सा विथारना ने कहा कि भले ही श्रीलंका में मानव-हाथी संघर्ष के कारण हाथी की मौत की औसत संख्या 272 प्रति वर्ष है, लेकिन पिछले साल 407 हाथियों की मौत हुई। वहीं मानव-हाथी संघर्ष के कारण मानव मृत्यु की औसत संख्या 85 प्रति वर्ष है, लेकिन पिछले वर्ष 122 लोगों की मौत हुई।
विथारना और सीओपीए के अन्य सदस्यों ने इस मामले को सुलझाने के लिए अधिक कुशलता के साथ वन्यजीव विभाग और अन्य संबंधित एजेंसियों को मिलकर काम करने की जरूरत जताई। उन्होंने कहा कि मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के 60 सालों के प्रयासों के बावजूद अब तक कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है। ऐसे में इस समस्या को हल करने के लिए नए तरीके से सोचने की जरूरत है।
समिति ने कहा कि ऐसे संघर्षों को रोकने के लिए द्वीपीय देश में 2016 तक 4,211 किलोमीटर की बाड़ बनाई गई थी लेकिन ठीक से रखरखाव न होने के कारण उसका फायदा नहीं मिला।
श्रीलंका में जंगली हाथियों को मारना अपराध है लेकिन गुस्साए ग्रामीणों द्वारा उनको जहर देने या गोली मारने की खबरें नियमित तौर पर आती रहती हैं। आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि श्रीलंका में जंगली हाथियों की आबादी 7,500 है। (आईएएनएस)
जर्मनी की शीर्ष पत्रिका ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को ‘लूज़र ऑफ द ईयर’ का खिताब दिया है। वहीं पत्रिका ने निर्वाचित राष्ट्रपति जो बिडेन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस को ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ घोषित किया है।
जर्मनी की शीर्ष पत्रिका ‘देर स्पीगल’ जिसका अंग्रेजी में अर्थ होता है द मिरर, ने इस साल के अपने वर्षांत अंक में अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को ‘द फेलिए दिस यारस’ यानी लूज़र ऑफ द ईयर का खिताब दिया है। पत्रिका के वाशिंगटन ब्यूरो चीफ रोलां नेलेस और बर्लिन में संवाददाता राल्फ न्यूकिर्क ने ट्रंप के बारे में लिखा है कि वे एक ऐसे, 'व्यक्ति हैं जो कभी भी किसी आम भलाई के बारे में नहीं सोचते हैं, वे सिर्फ अपने ही बारे में सोचते हैं...'
पत्रिका ने अपने लेख में लिखा है कि, 'ट्रंप प्रशासन में कुछ भी सामान्य नहीं रहा। उन्होंने न सिर्फ अपनी हार को स्वीकारने से इनकार किया बल्कि एक बड़े चुनाव घोटाले का आरोप भी लगाया, जबकि इस बात का कोई सबूत नहीं है।' पत्रिका आगे लिखती है कि, 'इसमें कुछ भी हैरान करने वाला नहीं था क्योंकि ट्रंप का राष्ट्रपति काल वैसे ही समाप्त हो रहा है, जैसे कि यह शुरु हुआ था। न उनके राष्ट्रपति बनने में सौम्यता थी और न ही जाने में गरिमा...'
गौरतलब है कि इस साल नवंबर में हुए चुनाव में सभी समाचार प्रतिष्ठानों ने जो बिडेन को विजेता घोषित किया है, लेकिन तब से लगातार ट्रंप हार मानने को तैयार नहीं है, और बार-बार बिना किसी सबूत के दावे कर रहे हैं कि चुनावों में धांधली हुई है। पत्रिका कहती है कि इस तरह ट्रंप लोकतंत्र को हड़पने की कोशिश कर रहे हैं।
चुनाव के बाद से ही ट्रंप की लीगल टीम ने कई राज्यों में चुनावों को चुनौती देते हुए मुकदमे किए है। इनमें से कई मुकदमों को अदालतों ने सबूतों के अभाव में खारिज भी कर दिया है।
जर्मनी की पत्रिका का लेख ऐसे समय में आया है जब टाइम मैगजीन ने भी जो बिडेन और कमला हैरिस को शीर्ष पर्सन ऑफ द ईयर घोषित किया है। टाइम ने अपने लेख में कहा है कि बिडेन और हैरिस के सामने कोरोना महामारी से निपटने का भारी भरकम काम है, साथ ही पत्रिका ने कमला हैरिस की जीत को ऐतिहासिक करार दिया है।
ध्यान रहे कि जर्मनी के लोग लगातार ट्रंप की खिल्ली उड़ाते रहे हैं और उनकी नजरों में ट्रंप भरोसे लायक नहीं है। पीयू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में साफ सामने आया था कि हर चार में से तीन जर्मन नागरिकों को ट्रंप पर भरोसा नहीं है। ऐसी ही स्थिति स्वीडन, फ्रांस, स्पेन और नीदरलैंड में भी सामने आई थी। (navjivanindia.com)
रामल्लाह, 13 दिसंबर। फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) ने इजरायल पर वेस्ट बैंक में नई सड़कें बनाकर बस्तियों का विस्तार करने का आरोप लगाया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने शनिवार को एक आधिकारिक रिपोर्ट में कहा, नई सड़कों का निर्माण एक स्पष्ट संकेत है कि इजरायल ने पश्चिमी बैंक के बड़े हिस्से को हड़पने की योजना बनाई है।
पश्चिमी बैंक और पूर्वी यरुशलम में इजराइली समझौते का विस्तार फिलिस्तीनी-इजरायल संघर्ष के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण है और यही 2014 में दोनों पक्षों के बीच अंतिम शांति वार्ता के टूटने का एक मुख्य कारण है।
पीएलओ की रिपोर्ट में कहा गया है, इजरायली परियोजनाओं में एक मास्टर प्लान के जरिए बस्तियों के बीच दर्जनों सड़कें बनाना, बस्तियों में परिवहन नेटवर्क स्थापित करना पिछले कई सालों की ऐसी पहली योजना है।
इजराइली मीडिया ने पिछले सप्ताह बताया था कि नई सड़कों के निर्माण का लक्ष्य वेस्ट बैंक में बसने वालों की संख्या को 10 लाख तक ले जाने का है। पीएलओ के अनुसार, 1990 के दशक से अब तक वेस्ट बैंक में लगभग 124 इजरायली बस्ती चौकी बिना आधिकारिक इजरायली स्वीकृति के बनाई गई हैं।
फिलिस्तीनी अधिकार समूहों ने कहा कि 1967 से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में लगभग 7 लाख लोग बसे हुए हैं। जबकि फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर बनी इजरायल की बस्तियों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा अवैध माना जाता है।
हालांकि, 2019 में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने घोषणा की थी कि वॉशिंगटन अब अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत इजरायल की बस्तियों को अवैध नहीं मानता है।
(आईएएनएस)
वाशिंगटन, 13 दिसंबर। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि फाइजर-बायोएनटेक कोविड-19 वैक्सीन की पहली खेप सोमवार से अमेरिकी राज्यों में पहुंचना शुरू हो जाएगी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, वार्प स्पीड के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर गुस्ताव पेरना ने शनिवार को कहा कि शिपिंग कंपनियां यूपीएस और फेडएक्स अमेरिकी राज्यों के लगभग 150 स्थानों पर वैक्सीन पहुंचाएंगी।
पेरना ने कहा कि टीका सोमवार सुबह पहुंचेगा ताकि स्वास्थ्यकर्मी वैक्सीन डोज प्राप्त करने के लिए उपलब्ध रहें।
यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने शुक्रवार को जर्मन कंपनी बायोएनटेक के साथ साझेदारी में अमेरिकी दवा निर्माता फाइजर के कोविड-19 वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग के लिए हरी झंडी दे दी, जो देश में बीमारी के खिलाफ पहला टीका है।
आपातकालीन उपयोग आथराइजेशन देश में वैक्सीन को वितरित करने की अनुमति देता है।
एफडीए ने कहा कि उपलब्ध आंकड़ों की समग्रता इस बात के स्पष्ट प्रमाण प्रदान करती है कि फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन वायरस को रोकने में कारगर हो सकती है।
शनिवार को अपने नवीनतम अपडेट में, यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने 244,011 नए मामलों के सामने आने और 3,013 मौतें होने की जानकारी दी, जिससे कुल संक्रमण की संख्या 16,045,596 हो गई और अब तक 297,789 लोगों की मौत हो चुकी है।
(आईएएनएस)
पाकिस्तान से छपने वाले उर्दू अख़बारों में इस हफ़्ते विपक्ष की लाहौर रैली, कैबिनेट में फेरबदल, भारत और पाकिस्तान से जुड़ी एक रिपोर्ट सुर्ख़ियों में रहीं.
सबसे पहले बात विपक्ष के लाहौर रैली की. विपक्षी महागठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रैटिक मूवमेंट (पीडीएम) ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ रविवार 13 दिसंबर को लाहौर में होने वाले जलसे की पूरी तैयारी कर ली है.
लाहौर के ऐतिहासिक मीनार-ए-पाकिस्तान के सामने स्थित इक़बाल पार्क में होने वाली रैली के लिए प्रशासन ने इजाज़त तो नहीं दी है, लेकिन रैली की तैयारी के दौरान प्रशासन की तरफ़ से किसी भी तरह की रुकावट पैदा करने की भी कोशिश नहीं की गई.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने एक निजी न्यूज़ चैनल से बातचीत के दौरान कुछ दिनों पहले कहा था कि उनकी सरकार लाहौर में रैली की इजाज़त नहीं देगी, लेकिन प्रशासन जलसे की राह में किसी क़िस्म की रुकावट भी नहीं डालेगा.
इससे पहले विपक्षी महागठबंधन सरकार के ख़िलाफ़ अब तक गुजरांवाला, कराची, क्वेटा, पेशावर और मुल्तान में बड़ी रैलियां कर चुका है जिनमें हज़ारों लोग शरीक हुए थे.
लाहौर की रैली से पहले पीडीएम के संयोजक और जमीयत-उलेमा-इस्लाम के अध्यक्ष मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने कहा कि विपक्षी दल पूरी तरह संवैधानिक रास्ता अपना रहे हैं.
अख़बार जंग के अनुसार मौलाना फ़ज़लुर्रहमान ने कहा, "हम पूरी तरह संवैधानिक रास्ता अपना रहे हैं, हम बंदूक़ तो नहीं उठा रहे हैं. हम जनता के बीच जा रहे हैं."
रैली से पहले उसकी तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़ गुट) की उपाध्यक्ष मरियम नवाज़ भी इक़बाल पार्क पहुँचीं.
मरियम नवाज़ ने कहा कि वो और पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो एक साथ जलसे में पहुँचेंगे. बिलावल भुट्टो के लिए ख़ास तरह का ट्रक तैयार किया गया है.
'इमरान ख़ान की सरकार को एक आख़िरी धक्का दें'
मरियम नवाज़ ने लोगों से अपील की कि वो हर हालत में मीनार-ए-पाकिस्तान पहुँचकर इमरान ख़ान की सरकार को एक आख़िरी धक्का दें. उन्होंने कहा कि '13 दिसंबर जलसे का नहीं, फ़ैसले का दिन है.'
उन्होंने अपने समर्थकों से कहा, "जिस जगह (मीनार-ए-पाकिस्तान) पर सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले लोगों ने खड़े होकर पाकिस्तान का प्रस्ताव पास किया था, उसी जगह पर सच्चाई के साथ खड़े होकर आप एक नया इतिहास लिखेंगे. एक आज़ाद सुबह होने को है."
मरियम नवाज़ ने कहा कि इमरान ख़ान के मंत्री उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं. बिलावल भुट्टो ने कहा कि अब बातचीत का वक़्त गुज़र चुका है. उन्होंने कहा कि इमरान ख़ान ख़ुद हालात का जायज़ा लें और इस्तीफ़ा दे दें.
हालांकि पीडीएम के संयोजक फ़ज़लुर्रहमान ने कहा कि उनसे किसी ने संपर्क नहीं किया है. उन्होंने कहा कि अगर किसी और से किसी ने संपर्क किया है तो उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है.
उन्होंने आगे कहा, "बातचीत के लिए भरोसा किस पर किया जाए. जिसको आप सरकार कहते हैं हम उसे हुकूमत नहीं समझते हैं."
लेकिन केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री शिब्ली फ़राज़ ने कहा कि सरकार का कोई मंत्री विपक्ष से संपर्क नहीं कर रहा और अगर ऐसा है तो विपक्ष बताए कि किस मंत्री ने संपर्क किया है.
उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष इस्तीफ़ा देना चाहता है तो शौक़ से दे, वहां उप-चुनाव करवा दिए जाएंगे. उन्होंने विपक्ष पर हमला करते हुए कहा, "नवाज़ शरीफ़, ज़रदारी और फ़ज़लुर्रहमान भ्रष्टाचार के सुल्तान हैं."
कैबिनेट में फेरबदल
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपने मंत्रिमंडल में अहम बदलाव किए हैं. रेल मंत्री शेख़ रशीद को गृह मंत्री बनाया गया है.
अख़बार जंग ने लिखा है, "पीडीएम से निपटने के लिए गृहमंत्री बदले गए."
जंग के अनुसार मुस्लिम लीग के सांसद मियाँ जावेद लतीफ़ ने कहा है कि शेख़ रशीद को गृह मंत्री इसलिए बनाया गया है कि पीडीएम के लोगों पर लाठीचार्ज हो. उन्होंने कहा कि सरकार शेख़ रशीद जैसे व्यक्ति से विपक्ष को नियंत्रित करना चाहती है जो आग से खेलने जैसा है.
शेख़ रशीद ने गृह मंत्रालय संभालने के बाद कहा कि उन्हें कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं लेकिन उन्हें पता है कि उन्हें क्या करना है.
अख़बार दुनिया के अनुसार शेख़ रशीद ने कहा कि विपक्ष का यही हाल रहा तो इमरान ख़ान अगला चुनाव भी जीतेंगे.
उनका कहना था, "देश में अराजकता फैलाने के लिए फंडिंग हो रही है. देश को बाहर से नहीं, अंदर से ख़तरा है. विपक्षी दल शौक़ से जलसा करें, जलसों और रैलियों से इमरान ख़ान नहीं जाएंगे."
ईयू डिसइन्फ़ोलैब की रिपोर्ट ने पाकिस्तान के दावों को मज़बूत किया है: पाकिस्तानी विदेश मंत्री
पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि ईयू डिसइन्फ़ोलैब की ताज़ा रिपोर्ट ने पाकिस्तान के के दावों को मज़बूत किया है कि भारत एक लंबे अर्से से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने की कोशिश कर रहा है.
यूरोपीय यूनियन में फ़ेक न्यूज़ पर काम करने वाले एक संगठन 'ईयू डिसइन्फ़ोलैब' ने दावा किया है कि पिछले 15 सालों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नेटवर्क काम कर रहा है जिसका मक़सद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को बदनाम करना और भारत के हितों को फ़ायदा पहुँचाना है.
ईयू डिसइन्फ़ोलैब ने बुधवार को इंडिया क्रोनिकल्स नाम से एक रिपोर्ट को जारी किया था.
भारत के लिए प्रोपेगैंडा करने के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क में भारत की एक न्यूज़ एजेंसी का नाम आया
अपनी रिपोर्ट में ईयू डिसइन्फ़ोलैब ने कहा था कि इस काम के लिए कई निष्क्रिय संगठनों और 750 स्थानीय फ़र्ज़ी मीडिया संस्थानों का इस्तेमाल किया गया.
ईयू डिसइन्फ़ोलैब का कहना है कि "पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम" करने और संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार काउंसिल और यूरोपीय संसद में फ़ैसलों को प्रभावित करने के इरादे से इस नेटवर्क को बनाया गया था. इसमें दिल्ली स्थित एक समूह श्रीवास्तव ग्रुप और भारत की एक प्रमुख समाचार एजेंसी एएनआई का नाम भी आया था.
हालांकि इस रिपोर्ट ने साफ़ कहा है कि इस बात के अभी तक कोई सबूत नहीं हैं कि इस नेटवर्क के पीछे भारत सरकार का हाथ है.
लेकिन इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के सलाहकार मोईद यूसुफ़ ने संयुक्त प्रेसवार्ता की.
क़ुरैशी ने कहा कि ईयू डिसइन्फ़ोलैब की रिपोर्ट ने भारत के घिनौने इरादों की क़लई खोल दी है. उन्होंने कहा कि भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हाइब्रिड वॉर छेड़ रखा है.
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और उनकी एनजीओ कमेटी सरकारों की सरपरस्ती में चलने वाले फ़र्ज़ी एनजीओ की जाँच करे ताकि आगे कोई फ़र्ज़ी एनजीओ अपने प्रोपेगैंडा के लिए संयुक्त राष्ट्र का प्लेटफ़ॉर्म इस्तेमाल ना कर सके.
सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ़ ने भारत पर हमला करते हुए कहा, "इस वक़्त हम जिस दुश्मन से निपट रहे हैं, वो कोई देश नहीं रहा वो एक माफ़िया बन गया है."
भारत ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया है.
शुक्रवार को एक प्रेस कॉऩ्फ्रेंस को संबोधित करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने इस मामले पर भारत का पक्ष रखा.
उन्होंने रिपोर्ट को तो ख़ारिज किया ही, साथ ही पाकिस्तान का नाम लिए बग़ैर उस पर हमला भी किया.
अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ''ग़लत सूचनाएं वो लोग फैलाते हैं जिनका छुपाने का रिकॉर्ड रहा है जैसे ओसामा बिन लादेन सहित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ढूंढे जा रहे आंतकवादियों को पनाह देना और 26/11 के मुंबई हमले में अपनी भूमिका को छुपाने के असफल प्रयास करना.''
अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ''एक ज़िम्मेदार लोकतंत्र होने के नाते भारत ग़लत सूचनाएं फैलाने का अभियान नहीं चलाता है. बल्कि, अगर आप ग़लत सूचनाएं देखना चाहते हैं तो सबसे अच्छा उदाहरण है पड़ोसी जो काल्पनिक और मनगढ़ंत डोज़ियर देता रहा है और लगातार फ़ेक न्यूज़ फैलाता रहा है.'' (bbc)
16 साल की ग्रेटा थनबर्ग के रोषपूर्ण भाषण के बाद एक बार फिर से दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर चर्चा शुरू हो गई है। हालांकि इस पर बात दिसंबर 2015 से शुरू हो गई थी और दुनिया भर के देशों ने आपस में समझौता किया था। भारत ने भी इस पर हस्ताक्षर किए हैं। आइए, पेरिस समझौते से जुड़े दस प्रमुख सवालों के जवाब जानते हैं :
सीओपी क्या है?
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के ढांचे यानी यूएनएफसीसीसी में शामिल सदस्यों का सम्मेलन कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टिज (सीओपी) कहलाता है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को स्थिर करने और पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के खतरे बचने के लिए सन 1994 में यूएनएफसीसीसी का गठन हुआ था। वर्ष 1995 से सीओपी के सदस्य हर साल मिलते रहे हैं। साल 2015 तक यूएनएफसीसीसी में सदस्य देशों की संख्या 197 तक पहुंच गई।
सीओपी-21 समझौता क्या है?
दिसंबर 2015 में पेरिस में हुई सीओपी की 21वीं बैठक में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के जरिये वैश्विक तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस के अंदर सीमित रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस के आदर्श लक्ष्य को लेकर एक व्यापक सहमति बनी थी। इस बैठक के बाद सामने आए 18 पन्नों के दस्तावेज को सीओपी21 समझौता या पेरिस समझौता कहा जाता है। अक्तूबर, 2016 तक 191 सदस्य देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। यानी अधिकांश देश ग्लोबल वार्मिंग पर काबू पाने के लिए जरूरी तौर-तरीके अपनाने पर राजी हो गए। जो एक बड़ी उपलब्धि माना गया।
इस समझौते का क्या महत्व है?
पेरिस संधि पर शुरुआत में ही 177 सदस्यों ने हस्ताक्षर कर दिए थे। ऐसा पहली बार हुआ जब किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते के पहले ही दिन इतनी बड़ी संख्या में सदस्यों ने सहमति व्यक्त की। इसी तरह का एक समझौता 1997 का क्योटो प्रोटोकॉल है, जिसकी वैधता 2020 तक बढ़ाने के लिए 2012 में इसमें संशोधन किया गया था। लेकिन व्यापक सहमति के अभाव में ये संशोधन अभी तक लागू नहीं हो पाए हैं।
जलवायु परिवर्तन पर सहमति बनाने में इतना समय क्यों लगा?
पिछले 22 सालों से सीओपी बैठकों में विवाद का सबसे बड़ा बिंदु सदस्य देशों के बीच जलवायु परिवर्तन से निपटने की जिम्मेदारी और इसके बोझ के उचित बंटवारे का रहा है। विकसित देश भारत और चीन जैसे विकासशील देशों पर वैश्विक उत्सर्जन बढ़ाने का दोष लगाते हुए कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि की अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी से बचते रहे हैं, जबकि आज भी विकासशील और विकसित देशों के बीच प्रति व्यक्ति काबर्न उत्सर्जन में बड़ा अंतर है।
इस समझौते में सदस्य देशों की क्या भूमिका है?
कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग को काबू में रखने के लिए पेरिस सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों ने अपने-अपने योगदान को लेकर प्रतिबद्धता जताई थी। हरेक देश ने स्वेच्छा से कार्बन उत्सर्जन में कटौती के अपने लक्ष्य पेश किए थे। ये लक्ष्य न तो कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं और न ही इन्हें लागू कराने के लिए कोई व्यवस्था बनी है।
यह समझौता भारत को कैसे प्रभावित करेगा?
भारत जलवायु परिवर्तन के खतरों से प्रभावित होने वाले देशों में से है। साथ ही कार्बन उत्सर्जन में कटौती का असर भी भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं पर सबसे अधिक पड़ेगा। साल 2030 तक भारत ने अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33-35 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए कृषि, जल संसाधन, तटीय क्षेत्रों, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर भारी निवेश की जरूरत है। पेरिस समझौते में भारत विकासशील और विकसित देशों के बीच अंतर स्थापित करने में कामयाब रहा है। यह बड़ी सफलता है।
यह समझौता कब अस्तित्व में आया?
पेरिस समझौते के लागू होने के लिए 2020 को आधार वर्ष माना गया है। यूरोपीय संघ ने 5 अक्टूबर 2016 को पेरिस समझौते को मंजूरी दी। यह समझौता नवंबर, 2016 को औपचारिक रूप से अस्तित्व में आ गया।
क्या भारत ने समझौते की पुष्टि की है?
हां, भारत ने 2 अक्टूबर, 2016 को समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। अमेरिका और चीन ने पहले समझौते को स्वीकार नहीं किया था, लेकिन बाद में ये देश भी तैयार हो गए।
क्या यह समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम है?
पेरिस समझौता सही दिशा में एक बड़ी पहल है। हालांकि, यह समझौता बहुत सीमित और देरी से उठाया गया कदम है। कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पूर्व औद्योगिक स्तर की तुलना में 30 प्रतिशत बढ़ चुका है। इस समझौते की एक प्रमुख आलोचना है कि यह जलवायु परिवर्तन के पहले से दिखाई पड़ रहे प्रभावों को नजरअंदाज करते हुए अब भी इसे भविष्य के खतरे के तौर पर देखता है। आलोचकों ने इस मुद्दे को भी उठाया कि यह समझौता कार्बन उत्सर्जन रोकने के उपायों को पर तो जोर देता है लेकिन इन उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं करता।
सीओपी की बैठक में बातचीत का मुख्य मुद्दा क्या होता है?
सीओपी में जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे देशों के लिए वित्त जुटाने पर विचार-विमर्श होता है। जलवायु परिवर्तन के हिसाब से ढलने के लिए देशों के पास पर्याप्त फंड उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। (downtoearth)