राष्ट्रीय
गया, 4 सितम्बर | बिहार के गया जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र में पुलिस ने घर से एक महिला और उसकी छह महीने की बेटी का शव बरामद किया है। महिला का शव फंदे से लटका था, जबकि छह महीने की बच्ची का शव बिछावन पर पड़ा था। पुलिस अब पूरे मामले की छानबीन कर रही है।
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि सूचना के आधार पर लक्खीबाग के एक घर से एक महिला और उसकी 6 महीने की बेटी की शव बरामद किया गया है।
इधर, मृतक महिला के पति ने आरोप लगाया है कि उसका ससुर ही उसकी पत्नी यानी अपनी बेटी के साथ दुष्कर्म करता था। इसे लेकर पत्नी ने एक सप्ताह पहले पुलिस से संपर्क किया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
उन्होंने आरोप लगाया कि पिता की जबरदस्ती से तंग आकर उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने कहा कि पत्नी ने पहले बच्ची की गला दबा कर हत्या की और फिर गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।
इधर, पुलिस उपाधीक्षक घूरन मंडल ने बताया कि पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मौत के कारणों का पता चल सकेगा। मंडल ने कहा कि पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है। जांच के बाद ही घटना की सही जानकारी मिल पाएगी।
उन्होंने कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने की प्रक्रिया चल रही है।(आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 4 सितम्बर | ओडिशा पुलिस ने शनिवार को खुर्दा जिले में छापेमारी के दौरान एक ग्रेजुएट इंजीनियर के पास से एक करोड़ रुपये की ब्राउन शुगर जब्त की है। पुलिस ने एक बयान में कहा कि खुफिया इनपुट के आधार पर, ओडिशा पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) की एक टीम ने कुमाबस्ता पेट्रोल पंप, खोरधा के पास छापा मारा और 1,034 ग्राम वजन की ब्राउन शुगर जब्त की।
आरोपी की पहचान खोरधा जिले के मनोरंजन दास के रूप में हुई है। पुलिस ने कहा कि आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, खोरधा की अदालत में भेज दिया जाएगा।
2020 से, एसटीएफ ने 39 किलोग्राम से अधिक ब्राउन शुगर/ हेरोइन और 86 क्विंटल से अधिक 81 किलोग्राम (86.81) गांजा/ मारिजुआना जब्त किया है और 100 से अधिक ड्रग डीलरों/ पेडलर्स को गिरफ्तार किया है।(आईएएनएस)
कभी उग्रवाद के लिए लगातार सुर्खियों में रहने वाला पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा अब खेती-किसानी में कामयाबी की नई इबारत लिख रहा है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
त्रिपुरा के किसानों की मेहनत और विभिन्न संगठनों के प्रयास से यहां पैदा होने वाले फलों और खाने-पीने की दूसरी चीजों का मध्यपूर्व, इंग्लैंड और जर्मनी तक निर्यात किया जा रहा है. त्रिपुरा देश में कटहल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है. यहां जून से अगस्त के बीच इसकी बेहतरीन किस्म पैदा होती है.
त्रिपुरा में इन फलों की खेती की खास बात यह है कि किसान किसी भी किस्म के रसायनों का इस्तेमाल नहीं करते. हाल में एक टन रानी कटहल जर्मनी भेजे गए हैं. पहली बार राज्य से किसी फल का निर्यात जर्मनी को किया गया है. रेल मंत्रालय की ओर से चलाई गई किसान रेल ने उनको अपना माल दूसरी जगह भेजने का रास्ता आसान कर दिया है.
यूरोपीयदेशोंकोनिर्यात
त्रिपुरा ने तीन साल पहले मध्यपूर्व के देशों को कटहल और नींबू का निर्यात किया था. उसके बाद उसने कटहल की एक बड़ी खेप इंग्लैंड भेजी. इंग्लैंड के बाद हाल में राज्य के कटहल को हवाई मार्ग से जर्मनी भी भेजा गया है. त्रिपुरा सरकार ने अगर के पेड़ों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से अगले तीन वर्षों में इस क्षेत्र में दो हजार करोड़ रुपए के टर्नओवर का लक्ष्य तय किया है.
फलों के निर्यात में राज्य सरकार और किसानों की सहायता करने वाले एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपेडा) के एक अधिकारी बताते हैं, "त्रिपुरा में कटहल एक व्यावसायिक फल है. इसकी स्थानीय तौर पर भी भारी मांग है. इस फल में कार्बोहाइड्रेट्स के अलावा कैल्शियम, पोटैशियम और विटामिन ए भरपूर मात्रा में पाया जाता है. एपेडा पूर्वोत्तर में पैदा होने वाली खाद्य सामग्री को देश के निर्यात नक्शे में शामिल करने का लगातार प्रयास कर रहा है.”
हॉर्टिकल्चर निदेशक डॉ. फणि भूषण जमातिया बताते हैं, "इंग्लैंड भेजी गई कटहल की पहली खेप में 350 फल थे. इनको पहले ट्रेन से दिल्ली भेजा गया और फिर वहां से हवाई मार्ग से इंग्लैंड. उन कटहलों का वजन तीन से चार किलो के बीच था और किसानों को एक कटहल की कीमत के तौर पर 30 रुपए मिले थे जो स्थानीय बाजारों में मिलने वाली कीमत से तीन गुनी ज्यादा है.” जमातिया का कहना है कि त्रिपुरा के कटहलों का स्वाद उनको खास बनाता है. इसलिए विदेशों में इसे काफी पसंद किया जा रहा है.
हाल में पहली खेप में एक टन रानी कटहल जर्मनी भेजे गए हैं. जमातिया के मुताबिक, कटहलों के साथ परीक्षण के तौर पर एक हजार सुगंधित नींबू भी जर्मनी भेजे गए हैं. विभिन्न संगठनों की सहायता से पहली बार राज्य से किसी फल का निर्यात जर्मनी को किया गया है.
खासहैरानीअनानास
इससे पहले वर्ष 2019 की शुरुआत में राज्य से दुबई और मध्यपूर्व के दूसरे देशों को अनानास का निर्यात किया गया था. राज्य में अनानास की तीन किस्में पैदा होती है. लेकिन उनमें से रानी अनानास बेहद खास है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीन साल पहले इसे त्रिपुरा का राजकीय फल घोषित किया था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, त्रिपुरा में 8,800 हेक्टेयर जमीन पर कटहल की खेती होती है और चार हजार किसान प्रत्यक्ष तौर पर इस काम से जुड़े हैं.
कटहल के विपणन से जुड़ी संस्था बासिक्स कृषि समृद्धि लिमिटेड के सदस्य बिप्लब मजुमदार बताते हैं, "इस साल कटहलों की दो खेप लंदन और एक खेप दुबई भेजी गई है. उसके बाद चौथी खेप जर्मनी भेजी गई है.”
किसानरेलसेसहूलियत
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिपल्ब कुमार देब ने हाल में राजधानी अगरतला से पहली किसान रेल को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. वह बताते हैं, "किसान रेल की वजह से परिवहन लागत काफी कम हो जाएगी. पहले हवाई मार्ग से भेजने पर प्रति किलो 20 से 50 रुपए तक की लागत आती थी. लेकिन अब दिल्ली के लिए यह प्रति किलो 2.25 रुपए और गुवाहाटी के लिए 88 पैसे हो गई है.”
मुख्यमंत्री के मुताबिक, कोरोना की वजह से फिलहाल कटहल और अनानास का ही निर्यात किया जा रहा है. लेकिन राज्य में धान, नींबू, काजू और कश्मीरी सेब की भी पैदावार होती है. सरकार इनका निर्यात बढ़ा कर किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है.
रेलवे ने फलों और खाद्यान्नों की ढुलाई के लिए देश के कुछ मार्गों पर किसान रेल का संचालन शुरू किया है. इस रेलगाड़ी में किसानों की फल और सब्जी एक जगह से दूसरी जगह भेजी जाती है. त्रिपुरा के अनानास किसानों के लिए जनरल डिब्बे की रेलगाड़ी को ही किसान रेल बनाया गया है. त्रिपुरा से करीब 12 टन रानी अनानास लेकर पहली किसान रेल दिल्ली के आदर्शनगर स्टेशन पहुंची थी.
अगरकीखेतीकोबढ़ावा
त्रिपुरा सरकार ने अगर पेड़ों की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से अगले तीन वर्षों में इस क्षेत्र में दो हजार करोड़ रुपए के टर्नओवर का लक्ष्य रखा है. राज्य सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 में 75 हजार किलो अगर चिप्स और 1500 किलो अगर तेल निर्यात करने की भी योजना बनाई है. फिलहाल राज्य में अगर के 50 लाख पेड़ हैं. सरकारी अदिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार ने 2025 तक इन पेड़ों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है.
वर्ष 1991 में अगर की लकड़ी के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई थी. मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने त्रिपुरा में अगरवुड, 2021 नीति के एलान के बाद इस सिलसिले में प्रधानमंत्री से बात की है. अगर की लकड़ी को ‘वुड्स ऑफ द गॉड' भी कहते हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इस लकड़ी की कीमत एक लाख डॉलर प्रति किलो तक है. यह पेड़ दक्षिण-पूर्व एशिया के वर्षा वनों में पाया जाता है. दुनिया भर में अभी अगर की लकड़ी का कारोबार लगभग 32 अरब डॉलर का है.(dw.com)
अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने हिंदुस्तान के उन मुसलमानों पर निशाना साधा है जो अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी का जश्न मना रहे हैं. उन्होंने हिंदुस्तानी इस्लाम को दुनिया में माने जाने वाले इस्लाम से अलग बताया है.
डॉयचे वेले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही दुनियाभर से मुसलमानों ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दीं. अधिकतर मुसलमानों ने तालिबान का विरोध ही किया. लेकिन कुछ लोगों ने तालिबान के समर्थन में बयान दिए और अफगानिस्तान में उसकी वापसी का स्वागत भी किया. भारत में भी कुछ मुसलमानों ने तालिबान के समर्थन में बयान दिया था. अब मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने ऐसे ही लोगों से बहुत सख्त सवाल किया है और एक वीडियो जारी कर उन्हें कड़ा संदेश दिया है.
नसीरुद्दीन ने अफगानिस्तान में तालिबानी राज लौटने पर खुशी मनाने वालों को अपने वीडियो में संदेश दिया. उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा, "हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान का दोबारा हुकूमत पा लेना दुनिया भर के लिए फिक्र की बात है, इससे कम खतरनाक नहीं है कि हिंदुस्तानी मुसलमानों के कुछ तबकों का उन वहशियों की वापसी पर जश्न मनाना. आज हर हिंदुस्तानी मुसलमान को अपने आप से ये सवाल पूछना चाहिए कि उसे अपने मजहब में सुधार और आधुनिकता चाहिए या वो पिछली सदियों के वहशीपन के साथ रहना चाहते हैं."
नसीरुद्दीन के इस बयान का सोशल मीडिया पर लोग समर्थन कर रहे हैं और तालिबान को वहशी बता रहे हैं.
नसीरुद्दीन ने अपने वीडियो में "हिंदुस्तानी इस्लाम" और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में माने जाने वाले इस्लाम का अंतर भी बताया. उन्होंने कहा, "मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं और जैसा कि मिर्जा गालिब फरमा गए हैं, मेरा रिश्ता अल्लाह मियां से बेहद बेतकल्लुफ है. मुझे सियासी मजहब की कोई जरूरत नहीं है. हिंदुस्तानी इस्लाम हमेशा दुनिया भर के इस्लाम से अलग रहा है और खुदा वो वक्त न लाए कि वो इतना बदल जाए कि हम उसे पहचान भी न सकें."
नसीरुद्दीन के इस वीडियो को लोगों ने सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किया और उनके इस बयान का स्वागत किया.
अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद भारत में कुछ मुस्लिम नेता और संगठन से जुड़े लोगों ने पक्ष में बयान दिया था.
बयान पर ऐतराज
नसीरुद्दीन के बयान पर कुछ लोगों ने ऐतराज जताया है और कहा है कि इस्लाम इस्लाम है. पत्रकार रिफत जावेद लिखते हैं, "भारतीय, पाकिस्तानी या तालिबानी इस्लाम नाम की कोई चीज नहीं है. इस्लाम क्षेत्र या उसके अनुयायियों के अनुसार नहीं बदलता है."
ट्विटर पर पत्रकार सबा नकवी सवाल करती हैं, "इतने सारे भारतीय मुसलमानों से क्यों तालिबान की निंदा करने के लिए कहा जा रहा है? क्या उन्होंने तालिबान को चुना, चुनाव किया या आमंत्रित किया? सिनेमा जगत के प्रतिभाशाली लोग इस पर बोलने के चक्कर में क्यों पड़ रहे हैं? यह एक जाल है."
नसीरुद्दीन के बयान के बाद सोशल मीडिया पर नई बहस छिड़ गई है. जहां एक तबका नसीरुद्दीन के बयान का समर्थन कर रहा है तो वहीं दूसरा उनके बयान का विरोध.
तालिबान पर खुशी किस बात की
तालिबान ने 1996 से 2001 से अफगानिस्ता पर राज किया था. उस दौरान देश में शरिया यानी इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया था और महिलाओं के काम करने, लड़कियों के पढ़ने और बिना किसी पुरुष के अकेले घर से बाहर जाने जैसी पाबंदियां लगा दी गई थीं. तालिबान के दोबारा सत्ता में आने पर बहुत से लोगों को वैसे ही कानून दोबारा लागू होने का भय है.
तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे. उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया और काम नहीं करने दिया जाता था. महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं.
जो मुसलमान भारत में तालिबान की वापसी पर खुशी मना रहे हैं उन्हें देश में हर तरह की आजादी मिली हुई है, चाहे कपड़े पहनने की हो या फिर दाढ़ी नहीं रखने की. तालिबान अपने राज में उन मुसलमानों को भी सजा देता था जो दाढ़ी नहीं रखते थे और पारंपरिक परिधान सलवार कमीज नहीं पहनते थे. (dw.com)
कोलकाता, 3 सितंबर | केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने कोलकाता में दक्षिण पूर्व रेलवे के वित्तीय सलाहकार और मुख्य लेखा अधिकारी की ओर से कथित तौर पर एक व्यक्ति से 8 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में एक रेलवे कर्मचारी को गिरफ्तार किया है। रिश्वत देने वाले को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि सीबीआई ने वित्तीय सलाहकार और मुख्य लेखा अधिकारी बिनीता मित्रा, 1986 बैच की आईआरएएस अधिकारी के खिलाफ धनबाद स्थित फर्म यूनिफाइड इलेक्ट्रिकल्स से रेलवे के इलेक्ट्रिक वर्क टेंडर के लिए कथित तौर पर रिश्वत मांगने के आरोप में मामला दर्ज किया था।
बैठक की संभावित जगह की जानकारी मिलने पर जहां कंपनी का कर्मचारी मित्रा के तहत एक रेलवे कर्मचारी को रिश्वत की राशि सौंपने जा रहा था, सीबीआई की टीम ने मौके पर छापा मारा और दोनों को पकड़ लिया।
उन्होंने बताया कि सीबीआई ने मित्रा और अन्य ठिकानों पर छापेमारी की। पश्चिम बंगाल और झारखंड में विभिन्न स्थानों पर तलाशी ली जा रही है, जिसमें आरोपी के परिसर से आपत्तिजनक सामग्री, दस्तावेज और डिजिटल उपकरण बरामद हुए हैं।
बालासोर से आरसी और पीएसआई कार्य सहित 25 केवी ओएचई की आपूर्ति, निर्माण, परीक्षण और कमीशनिंग के विद्युत कार्यों से संबंधित रानीताल (ओडिशा), खड़गपुर मंडल में नारायणगढ़ और भद्रक के बीच तीसरी लाइन के कार्य के संबंध में (चरण 3) के लिए निविदा से संबंधित रिश्वत के आरोप में मित्रा और धनबाद स्थित निजी फर्म के एक ठेकेदार सहित अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
ठेकेदार ने कथित तौर पर अपने कार्यालय के कर्मचारियों को हावड़ा रेलवे स्टेशन पर रेलवे अधिकारी को रिश्वत देने का निर्देश दिया था। (आईएएनएस)
सैयद अली शाह गिलानी ने करीब तीन दशकों तक कश्मीर में अलगाववादी मुहिम का नेतृत्व किया था. उनके निधन के बाद घाटी में एहतियातन सुरक्षा बढ़ा दी गई और इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है.
डॉयचे वेले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
प्रमुख अलगाववादी नेता और हुर्रियत के चेयरमैन रहे सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार रात श्रीनगर स्थित घर पर निधन हो गया. वह 92 साल के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उन्होंने पिछले साल राजनीति और हुर्रियत से इस्तीफा दे दिया था. गुरुवार सुबह उन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गिलानी को सुबह 5 बजे हैदरपोरा में सुपुर्द-ए-खाक किया गया, जबकि परिवार उनका अंतिम संस्कार सुबह 10 बजे करना चाहता था. मीडिया में बताया जा रहा है कि परिवार चाहता था कि अंतिम संस्कार में रिश्तेदार भी शामिल हो और इसलिए देर से उन्हें दफनाया जाए.
मार्च 2018 में उन्हें मामूली दिल का दौरा पड़ा था और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बुधवार देर रात उनके निधन के बाद कश्मीर घाटी में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है और इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई. गिलानी कट्टर पाकिस्तानी समर्थक माने जाते थे और वे कश्मीर में अलगाववाद के प्रमुख चेहरों में से एक थे. प्रशासन को ऐसी आशंका थी कि उनके अंतिम संस्कार में भारी भीड़ उमड़ सकती है और इसी वजह से उसने कुछ पाबंदियां लगाई हैं.
हुर्रियत के कट्टर नेता
गिलानी एक कट्टर नेता माने जाते थे और वह कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं मानते थे. पिछले एक दशक से ज्यादा समय से घर पर नजरबंद थे. उनकी मृत्यु ऐसे समय में हुई जब हुर्रियत के दोनों धड़े कट्टर और उदारवादी गुट राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा की गई कार्रवाई, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद से परेशान हैं.
गिलानी को उन कट्टरपंथी नेताओं के साथ जोड़कर देखा जाएगा जो संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में कश्मीर विवाद के समाधान की मांग करते आए थे.
गिलानी का राजनीतिक सफर
गिलानी का जन्म 29 सितंबर 1929 को बांदीपोरा जिले में हुआ था. वह स्कूल टीचर थे और बाद में कश्मीर में अलगाववादी मुहिम का प्रमुख चेहरा बने. गिलानी तीन बार विधानसभा का चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 1972, 1977 और 1987 में वह सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए चुने गए थे.
1990 में कश्मीर में आतंकवाद भड़कने के बाद गिलानी चुनावी विरोधी बन गए. वह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. लेकिन कश्मीर के मुद्दे पर उदारवादी रुख रखने वाले नेताओं के साथ उनकी नहीं बनी और उन्होंने 2004 में एक अलग धड़े तहरीक-ए-हुर्रियत का गठन किया.
शोक संदेश
कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने गिलानी के निधन पर शोक जाहिर किया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा, "हम ज्यादातर चीजों पर सहमत नहीं थे. लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और उनके विश्वासों पर कायम रहने के लिए उनका सम्मान करती हूं."
दूसरी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने गिलानी के निधन पर ट्वीट कर कहा कि पाकिस्तान में झंडा आधा झुका दिया जाएगा और एक दिन का शोक मनाया जाएगा. उन्होंने कहा, "गिलानी जीवनभर अपने लोगों और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए संघर्ष करते रहे."
गिलानी के निधन पर भारत की केंद्र सरकार की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है. (dw.com)
असम में बाढ़ की हालत बिगड़ गई है. राज्य में अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है और 5.74 लाख लोग इसकी चपेट में हैं. राज्य के 22 जिले बाढ़ की चपेट में हैं, 1,278 गांव डूब गए हैं और खेतों में लगी फसलों को नुकसान पहुंचा है.
डॉयचे वेले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि मोरीगांव जिले में एक व्यक्ति के बाढ़ में बह जाने की वजह से मरने वालों की तादाद बढ़ कर तीन हो गई है. बाढ़ का सबसे ज्यादा असर नलबाड़ी जिले में है जहां 1.11 लाख लोग इसकी चपेट में हैं. अब तक विभिन्न जिलों में 40 हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाके में लगी फसलें नष्ट हो गई हैं.
प्राधिकरण के एक अधिकारी बताते हैं, "एक सींग वाले गैंडों के लिए दुनिया भर में मशहूर काजीरंगा नेशनल पार्क का 70 फीसदी इलाका पानी में डूब गया है. यह पार्क गोलाघाट, नगांव, शोणितपुर, विश्वनाथ औऱ कार्बी आंग्लांग जिलों में फैला है." पार्क के एक अधिकारी ने बताया कि अब तक पार्क के नौ हिरणों की मौत हो गई है.
राज्य सरकार ने 14 जिलों में 105 राहत शिविरों की स्थापना की है जहां चार हजार से ज्यादा लोगों ने शरण ली है. हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है. ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और उसकी सहायक नदियां भी उफन रही हैं. ज्यादातर नदियां तिब्बत से निकलती हैं और अरुणाचल होकर असम पहुंचती हैं. बीते कुछ दिनों से लगातार भारी बारिश के कारण अरुणाचल के कई हिस्से भी बाढ़ की चपेट में है. वहां होने वाली बारिश और बाढ़ ने असम में स्थिति को गंभीर बना दिया है.
नियति बनती बाढ़
हर साल कई दौर में आने वाली भयावह बाढ़ असम की नियति बनती जा रही है. देश में असम में ही सबसे पहले बाढ़ आती है. कोसी नदी को जिस तरह बिहार का शोक कहा जाता है उसी तरह ब्रह्मपुत्र को असम का शोक या अभिशाप कहा जा सकता है. वैसे, यह प्राकृतिक आपदा असम के लिए नई नहीं है. इतिहासकारों ने अहोम साम्राज्य के शासनकाल के दौरान भी हर साल आने वाली बाढ़ का जिक्र किया है. पहले के लोगों ने इससे बचने के लिए प्राकृतिक तरीके अपनाए थे. इसलिए बाढ़ की हालत में जान-माल का नुकसान कम से कम होता था.
भारत, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश यानी चार देशों से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी असम को दो हिस्सों में बांटती है. इसकी दर्जनों सहायक नदियां भी हैं. तिब्बत से निकलने वाली यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लेकर आती है. वह गाद धीरे-धीरे असम के मैदानी इलाकों में जमा होती रहती है. इससे नदी की गहराई कम होती है. इससे पानी बढ़ने पर बाढ़ और तटकटाव की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से राज्य में बाढ़ की स्थिति के संबंध में जानकारी ली. उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से हर संभव सहायता का भरोसा दिया है. बाढ़ से काजीरंगा समेत कई राष्ट्रीय उद्यानों में भी पानी भर गया है. इससे कई जानवरों की मौत की भी सूचना है.
इंसानी गतिविधियां
विशेषज्ञों का कहना है कि इंसानी गतिविधियों ने भी परिस्थिति को और जटिल बना दिया है. बीते करीब छह दशकों के दौरान असम सरकार ने ब्रह्मपुत्र के किनारे तटबंध बनाने पर तीस हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं. एक गैर-सरकारी संगठन आरण्यक के पार्थ जे. दास कहते हैं, "इन तटबंधों को कम समय के लिए अंतिम उपाय के तौर पर बनाया जाना था. नदी के कैचमेंट इलाके में इंसानी बस्तियों के बसने, जंगलों के तेजी से कटने और आबादी बढ़ने की वजह से समस्या की गंभीरता बढ़ गई है."
पर्यावरण विज्ञानियों के मुताबिक, गर्मी में तिब्बत के ग्लेशियरों के पिघलने और उसके तुरंत बाद मानसून सीजन शुरू होने की वजह से ब्रह्मपुत्र और दूसरी नदियों का पानी काफी तेज गति से असम के मैदानी इलाकों में पहुंचता है. पर्यावरणविद् अरूप कुमार दत्त ने अपनी पुस्तक द ब्रह्मपुत्र में लिखा है कि पहाड़ियों से आने वाला पानी ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ा देता है. यही वजह है कि राज्य में बाढ़ की समस्या साल-दर-साल गंभीर हो रही है. इसके अलावा भौगोलिक रूप से असम ऐसे जोन में है जहां मानसून के दौरान तो देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले ज्यादा बारिश होती है. विशेषज्ञों का कहना है कि असम की बाढ़ पर अंकुश लगाने और जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए बहुआयामी उपाय जरूरी है. (dw.com)
बिहार में सरकारी अफसरों के घरों पर छापों में बेहिसाब धन-दौलत निकल रही है. लोगों का कहना है कि भ्रष्टाचार सरेआम हो चुका है और सीएम-पीएम तक का डर नहीं है.
डॉयचे वेले पर मनीष कुमार की रिपोर्ट
क्राइम, करप्शन व कम्युनलिज्म से किसी भी सूरत में समझौता नहीं करने का ऐलान करने वाले जदयू-बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार में भ्रष्टाचार पर लगाम लगती नहीं दिख रही है. एक मामले की चर्चा थमती नहीं है कि दूसरा भ्रष्टाचारी सामने आ जाता है.
इंडियन करप्शन सर्वे-2019 की रिपोर्ट में बिहार का स्थान दूसरा था. यहां 75 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया था कि उन्हें अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी थी. इनमें भी 50 फीसद लोगों ने तो यहां तक कहा कि उन्हें काम करवाने के एवज में अधिकारियों को कई बार रिश्वत देनी पड़ी.
पुल निर्माण निगम लिमिटेड के एक इंजीनियर रवींद्र कुमार के ठिकानों से एक करोड़ 43 लाख की नकदी व अन्य संपत्तियों की बरामदगी की चर्चा अभी चल ही रही थी कि दरभंगा में तैनात ग्रामीण विकास विभाग के इंजीनियर से 67 लाख रुपये नकद बरामद किए गए. विजिलेंस की कार्रवाई की जद में आए रवींद्र कुमार बिहार के एक पूर्व मंत्री के रिश्ते में दामाद लगते हैं.
बताया जाता है कि नकदी के संबंध में पूछताछ के दौरान अभियंता ने कहा, "वर्तमान में जो माहौल है, उसमें मजबूरन रुपये लेने पड़ते हैं. प्रखंड स्तर पर तैनात इंजीनियर से लेकर पटना तक कौन है जो रुपया नहीं ले रहा. और जो रुपया नहीं ले रहा, क्या वह चैन से नौकरी कर पा रहा है. मुंह अगर खोल दिया तो पटना तक विस्फोट हो जाएगा."
इसके पहले मुजफ्फरपुर के जिला परिवहन पदाधिकारी (डीटीओ) रजनीश लाल के यहां से नकदी व आभूषणों की बरामदगी काफी चर्चा में रही थी. विजिलेंस ने लाल के यहां बीते 23-24 जून को छापेमारी की थी. डीटीओ की एक करोड़ 24 लाख की संपत्ति अवैध घोषित की गई थी. उनकी सास सरस्वती देवी के लॉकर की तलाशी लेने पर भी 20 लाख के गहने मिले थे. भागलपुर जिला पुलिस में तैनात एक सिपाही शशि भूषण कुमार और उनकी पत्नी नुनू देवी डेढ़ करोड़ रुपये की संपत्ति की मालिक बताई गई.
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो (विजिलेंस) की वेबसाइट देखें तो उस पर लगभग सभी विभागों के आला अधिकारियों से लेकर निचले स्तर तक के अधिकारियों-कर्मचारियों पर चल रही कार्रवाई का ब्योरा मिल जाएगा. इनमें कार्यपालक अभियंता, मेडिकल ऑफिसर, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, भू अर्जन पदाधिकारी, शिक्षा पदाधिकारी, प्रखंड व अंचल स्तर के पदाधिकारी, दारोगा-सिपाही, लिपिक, नाजिर व राजस्व कर्मचारी से लेकर कम्प्यूटर डाटा ऑपरेटर तक शामिल हैं. ये सभी ऐसे अधिकारी या कर्मचारी हैं जो सरकार के निर्णयों को जमीनी स्तर पर अमली जामा पहनाते हैं.
'खुली धमकी देते हैं अफसर'
मुख्यमंत्री के जनता दरबार में भी सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार की पोल खुलती रही है. मुख्यमंत्री को मुख्य सचिव को बुलाकर कहना पड़ा, "देखिए, क्या हो रहा है. प्रखंड-अंचल स्तर के अधिकारियों की लापरवाही के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. लोग शिकायत कर रहे हैं."
मुजफ्फरपुर के एक युवक ने तो सीएम से शिकायत की थी कि रजिस्ट्रार कार्यालय में भू-अभिलेखों की सर्टिफाइड कॉपी उपलब्ध कराने के लिए दस हजार रुपये की मांग की जाती है. युवक ने कहा, "जब मैंने कर्मचारियों से मुख्यमंत्री से शिकायत करने की बात कही तो उन्होंने कहा कि सीएम-पीएम, जिसके पास जाना चाहो, जाओ. हमारा कुछ नहीं बिगड़ने वाला."
पत्रकार राजेश रौशन कहते हैं, "वाकई, यह बिहार के हर दफ्तर की स्थिति है. अधिकारी-कर्मचारी डंके की चोट पर पैसे लेते हैं. हो सकता है, पैसा दिए बिना आपका कुछ काम हो भी जाए लेकिन, वह कब होगा यह कहना मुश्किल है. पैसे दे दीजिए, फिर चाल देखिए."
बिहार सरकार के भूमि व राजस्व विभाग के मंत्री रामसूरत राय तो पहले ही कह चुके हैं कि उन्हें यह कहने में गुरेज नहीं है कि राज्य में भ्रष्टाचार व्याप्त है और उसकी नींव बहुत गहरी है. जिन लोगों की वास्तव में समस्या होती है, उनका काम नहीं हो पाता है.
आखिर क्या कर रही है सरकार
ऐसा नहीं है कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. सरकार ने आइएएस व आइपीएस अधिकारियों तक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच के लिए स्पेशल विजिलेंस यूनिट (एसवीयू) का गठन किया हुआ है.
इसी यूनिट ने 2007 में पहला मामला राज्य के पुलिस महानिदेशक रहे नारायण मिश्रा के खिलाफ दर्ज किया था. 2012 में इनके पटना स्थित आलीशान मकान को जब्त कर दिव्यांग बच्चों के स्कूल में तब्दील कर दिया गया था.
2011 में नीतीश सरकार ने आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) का गठन किया. यह इकाई आय से अधिक संपत्ति के मामलों के अलावा नॉन-बैंकिंग कंपनियों के मामले, नारकोटिक्स, साइबर क्राइम तथा शराब माफिया के खिलाफ दर्ज केस को देखती है.
हाल में ही यह आदेश जारी किया गया है कि जो अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं, उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने के साथ-साथ एफआईआर दर्ज की जाएगी. भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई एवं निगरानी अन्वेषण ब्यूरो तक आम लोगों की पहुंच आसान बनाने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया गया है. कोई भी व्यक्ति उस नंबर शिकायत दर्ज करा सकता है और उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी.
केस दर्ज करने की रफ्तार में कमी
निगरानी अन्वेषण ब्यूरो में मामले दर्ज करने में उत्तरोत्तर कमी आई है. आंकड़ों के अनुसार 2017 में 83, साल 2018 में 45 व साल 2019 में 36 शिकायतें विजिलेंस में दर्ज की गईं. 2020 में कोरोना काल में शिकायतों में काफी कमी आई.
निगरानी ब्यूरो के एक अधिकारी नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहते हैं, "शिकायतों में कमी की वजह से भ्रष्टाचार से लड़ाई अवश्य ही कमजोर हुई है. हमें सब पता है, किंतु हम काम से लदे हैं. यहां मानव बल की घोर कमी है." यही हाल एसवीयू का भी है. यही वजह है कि भ्रष्टाचार से लड़ाई में यह विंग कोई उल्लेखनीय मुकाम हासिल नहीं कर पाया है.
'सीना तान पैसे ले रहे अफसर'
विपक्ष भी इस मुद्दे पर लगातार हमलावर रहा है. बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर आरोप लगाया कि बिहार में अधिकारी बेलगाम हो गए हैं, सीना तान सरकारी काम में लापरवाही कर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को बढ़ावा दे रहे हैं. उन्होंने लिखा, "पर सरकार और मंत्रियों को इससे क्या! उन्हें तो बंदरबांट में अपने हिस्से से मतलब है."
हालांकि जदयू नेता व विधान पार्षद संजय सिंह हमेशा की तरह कहते हैं, "हमारी सरकार न तो किसी को फंसाती है और न ही किसी को बचाती है. कानून अपना काम करता है, कोई उसके लंबे हाथों से बच नहीं सकता है."
लोजपा नेता व सांसद चिराग पासवान भी विधानसभा चुनाव के समय से ही नीतीश सरकार पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाते रहे हैं. उनका कहना है, "भ्रष्टाचार को लेकर बिहार पहले पायदान पर पहुंच चुका है, तभी तो विकास रुक गया है." (dw.com)
तालिबान सदस्य अनस हक्कानी ने कहा है कि उनका संगठन कश्मीर के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा. इसे भारत के लिए राहत भरी घोषणा के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन तालिबान इस नीति पर कायम रहेगा या नहीं यह देखना होगा.
डॉयचे वेले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
अनस हक्कानी "हक्कानी नेटवर्क" संगठन के मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी का भाई है. मूल रूप से "हक्कानी नेटवर्क" तालिबान से भी पुराना संगठन है. 1995 में इसने तालिबान के प्रति निष्ठा व्यक्त कर दी थी और तबसे यह एक तरह से तालिबान का हिस्सा ही बन गया है. सिराजुद्दीन हक्कानी को तालिबान के चोटी के नेताओं में गिना जाता है.
अमेरिका के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के पूर्व अध्यक्ष माइक मलन ने "हक्कानी नेटवर्क" को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का एक अंग बताया था. संगठन को 2008 और 2009 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हुए बम धमाकों का जिम्मेदार माना जाता है, जिनमें करीब 70 लोग मारे गए थे.
भारत और हक्कानी नेटवर्क का इतिहास
संयुक्त राष्ट्र ने 2012 में "हक्कानी नेटवर्क" को बाकायदा एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था. उस समय सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भारत के पास थी और माना जाता है कि भारत ने "हक्कानी नेटवर्क" के खिलाफ प्रतिबंधों को पारित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
अनस हक्कानी उसी संगठन की अगली पीढ़ी के नेता हैं और उनके बयान ने अफगान मामलों के कई जानकारों को चौंका दिया है. संगठन के आईएसआई से संबंधों की वजह से माना जा रहा था कि तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद, पाकिस्तान उसके जरिए कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ाने की कोशिश करेगा.
लेकिन अनस हक्कानी ने कहा है कि कश्मीर तालिबान के "अधिकार क्षेत्र" से बाहर है और इसलिए वहां किसी भी तरह का हस्तक्षेप तालिबान की घोषित नीति का उल्लंघन होगा. अनस कतर की राजधानी दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का हिस्सा हैं और उनके इस बयान को कार्यालय के मुखिया शेर मोहम्मद स्तानिकजई के हाल के बयान से जोड़ कर देखा जा रहा है.
क्या हैं तालिबान के इरादे
भारत की इंडियन मिलिट्री अकैडमी से सैन्य प्रशिक्षण पा चुके स्तानिकजई ने हाल ही में कहा था कि भारत उनके संगठन के लिए एक "महत्वपूर्ण देश" है जिसके साथ वो अच्छे राजनयिक और आर्थिक रिश्ते चाहते हैं. इस बयान के बाद ही भारत सरकार ने जानकारी दी थी कि कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान नेताओं से मिल कर औपचारिक रूप से बातचीत की है.
तालिबान नेताओं के इन बयानों में कितनी सच्चाई है यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा. तालिबान को काबुल पर कब्जा जमाए 18 दिन बीत चुके हैं लेकिन संगठन अभी तक देश में अपनी सरकार नहीं बना पाया है. ऐसे में उसकी सरकार की आधिकारिक नीति क्या होगी यह अभी से कहा नहीं जा सकता.
इसके अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सक्रिय दूसरे आतंकवादी संगठनों की भूमिका को भी देखना होगा. एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अल कायदा ने तालिबान की जीत की सराहना करते हुए कहा है कि अब लक्ष्य दुनिया भर के दूसरे मुस्लिम इलाकों को आजाद करवाना होना चाहिए. संगठन की घोषणा में इन इलाकों में कश्मीर भी शामिल है. (dw.com)
इलाहादबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि गाय को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया जाना चाहिए और इसकी सुरक्षा को हिंदुओं के मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाना चहिए.
डॉयचे वेले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
एक मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बुधवार को कहा कि गाय को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया जाना चाहिए. जज ने कहा कि गाय की भारतीय संस्कृति में अहम भूमिका है और पूरे देश में इसे मां का दर्जा दिया जाता है.
यह मामला 59 वर्षीय एक व्यक्ति पर मुकदमे से जुड़ा है, जिसे इसी साल मार्च में गोकशी के आरोप में उत्तर प्रदेश के संभल जिले से गिरफ्तार किया गया था. आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा कि गाय की रक्षा को हिंदुओं को मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए.
क्या कहा हाई कोर्ट ने
अपने 12 पेज के फैसले में जस्टिस यादव ने कहा, "वेद और महाभारत जैसे भारत के प्राचीन ग्रंथों में गाय को महत्वपूर्ण रूप में दिखाया गया है. यही भारत की उस संस्कृति के प्रतीक हैं, जिसके लिए भारत जाना जाता है.”
उन्होंने कहा, "हालात को देखते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर देना चाहिए और गाय की सुरक्षा को हिंदू समाज का मूलभूत अधिकार बना देना चाहिए क्योंकि हम जानते हैं कि जब एक देश की संस्कृति और विश्वास को ठेस पहुंचती है तो देश कमजोर होता है.”
जस्टिस यादव ने आरोपी की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि वह पहले भी गोकशी में सम्मिलित रहा है, जिसे सामाजिक सद्भाव को नुकसान होता है. उन्होंने कहा कि अगर आरोपी को रिहा किया गया तो वह फिर से वही अपराध करेगा.
जस्टिस यादव ने कहा, "मूलभूत अधिकार सिर्फ गोमांस खाने वालों के ही नहीं होते बल्कि उनके भी होते हैं जो गायों की पूजा करते हैं और आर्थिक रूप से उन पर निर्भर हैं.”
जज ने देश में गोशालाओं की हालत पर भी टिप्पणी की और ऐसे लोगों पर भी गुस्सा जाहिर किया जो गोरक्षा की बात तो करते हैं लेकिन उसके दुश्मन बन जाते हैं. उन्होंने अपने आदेश में कहा, "सरकार गोशालाएं बनवा देती है लेकिन वहां जो लोग काम करते हैं वे गायों की देखभाल नहीं करते. इसी तरह निजी गोशालाएं आजकल बस दिखावे के लिए बनवाई जाती हैं.”
टिप्पणी पर प्रतिक्रिया
हाई कोर्ट की टिप्पणी पर लोगों ने अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया की है. ‘लाइव लॉ' वेबसाइट के मैनेजिंग एडिटर मनु सेबास्टियान ने एक ट्वीट में कहा, "तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मॉब लिंचिंग के खिलाफ संसद में एक कानून लाने को कहा था. अब तक नहीं हुआ है. अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने और गोकशी को और सख्त अपराध बनाने को कहा है. देखते हैं कि यह होता है या नहीं.”
भारतीय जनता पार्टी के राज्य प्रवक्ता गौरव गोयल ने एक ट्वीट में कहा, "गाय बहुत ही ज्यादा पवित्र है और पवित्रता और करुणा की प्रतीक है.”
उधर कांग्रेस के राष्ट्रीय सह संयोजक मनोज मेहता ने ट्विटर पर कहा, "अगर हिंदुत्व के स्वयंभू ठेकेदारों में जरा भी शर्म है तो उन्हें गाय के नाम पर राजनीतिक हिंसा बंद करनी चाहिए.”
संवेदनशील मुद्दा
गाय भारत में एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. पिछले सालों में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जब कथित-गोरक्षकों ने गोकशी का आरोप लगाते हुए लोगों को पकड़ा और पीट-पीटकर मार डाला. मरने वालों में ज्यादातर गैर-हिंदू थे.
इस बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी कानून की मांग कर चुके हैं. 2017 में एक कार्यक्रम में उन्होंने गोरक्षकों की हिंसा की निंदा की थी. उन्होंने कहा था कि हिंसा की वजह से मुद्दा बदनाम हो रहा है.
भागवत ने कहा था, 'गायों की रक्षा करते हुए ऐसा कुछ नहीं करना है जो दूसरों के विश्वास को ठेस पहुंचाए. कुछ भी हिंसक नहीं करना है. यह केवल गोरक्षकों की प्रयास को बदनाम करता है. गायों को बचाने का काम कानून और संविधान का पालन करते हुए हों.' (dw.com)
सरकारी आंकड़े दावा कर रहे हैं कि भारत की जीडीपी की विकास दर में 20 प्रतिशत का उछाल आया है. उछाल आया तो है, लेकिन अभी भी स्थिति चिंताजनक ही बनी हुई है. आइए जानते हैं कैसे.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
सरकारी आंकड़े मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून तक के हैं. ये आंकड़े दिखा रहे हैं कि इस दौरान भारत के सकल घरेलु उत्पाद में पिछले साल इसी अवधि के आंकड़ों के मुकाबले 20.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
अपने आप में यह चौंकाने वाला तथ्य लगता है क्योंकि कहा तो यह जा रहा है कि अर्थव्यवस्था में मंदी फैली हुई है. अगर जीडीपी 20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है तो कहां है मंदी? सवाल और भी महत्वपूर्ण बन जाता है जब आप याद करते हैं कि पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में जीडीपी में 24.4 प्रतिशत की गिरावट आई थी.
असली तस्वीर
तो असलियत क्या है और सही मायनों में क्या हो रहा है? क्या जीडीपी वाकई तेजी से बढ़ रही है? अधिकतर अर्थशास्त्री आंकड़ों के इस खेल को एक भ्रम बता रहे हैं. आइए जानते हैं कि वो ऐसा क्यों कह रहे हैं.
दरअसल पिछले साल महामारी से लड़ने के लिए पूरे देश में जो तालाबंदी लगाई गई थे, उससे देश में आर्थिक गतिविधि लगभग पूरी तरह से रुक गई थी. इस वजह से जीडीपी का बेस यानी आधार ही बहुत नीचे चला गया, जिसे करीब 24 प्रतिशत की गिरावट के तौर पर नापा गया.
जब बेस बहुत नीचे चला जाता है तो हलकी सी उछाल भी बड़े सुधार का भ्रम पैदा कर देती है, जब की असल में हालात में उतना सुधार नहीं आया होता है. आप खुद सोच सकते हैं कि अगर जीडीपी पिछले साल 24 प्रतिशत गिर गई थी और इस साल उसी अवधि में 20 प्रतिशत ऊपर आई है तो क्या ये वाकई बहुत बड़ी खुशखबरी है?
महामारी के पहले का स्तर
इसे ऐसे भी समझा जा सकता है. मान लीजिये पिछले साल देश की जीडीपी 100 रुपए थी. 24 प्रतिशत की गिरावट आने के बाद वो 76 रुपयों पर पहुंच गई. अब अगर उसमें 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, तो वो ऊपर तो बढ़ी है लेकिन बस 91 रुपयों तक पहुंच पाई है.यानी 100 रुपयों से आगे बढ़ना तो दूर, वो वापस 100 रुपयों तक भी नहीं पहुंच पाई है. बल्कि अगर ताजा आंकड़ों को इसके ठीक पहले की तिमाही यानी जनवरी 2121 से मार्च 2021 के आंकड़ों से तुलना करें तो आप पाएंगे की जीडीपी में करीब 17 प्रतिशत की गिरावट आई है.
कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अगर देश की अर्थव्यवस्था के मौजूदा स्वास्थ्य का सही अंदाजा लगाना है तो उसकी तुलना महामारी के पहले के हालात यानी वित्त वर्ष 2019-20 के आंकड़ों से करनी चाहिए.
रुकी हुई खपत
भारत सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने एक ट्वीट में बताया कि अप्रैल-जून 2019 के मुकाबले जीडीपी की ताजा विकास दर माइनस 9.2 है, यानी उसमें 9.2 की गिरावट आई है.जानकारों का कहना है कि इतना ही नहीं, चिंता का असली विषय आंकड़ों के और अंदर छिपा हुआ है. जीडीपी का करीब 55 प्रतिशत अर्थव्यवस्था में खपत के स्तर से बनता है और इसे आर्थिक प्रगति का एक बड़ा सूचक माना जाता है.
खपत पिछली कई तिमाही से गिरी ही हुई है और ताजा आंकड़ों में तो नजर आ रहा है कि यह गिर कर 2017-18 के स्तर के आस पास पहुंच चुकी है. यानी आम लोग अपनी खपत या खर्च बढ़ा नहीं रहे हैं.
खपत नहीं बढ़ेगी तो अर्थव्यवस्था में निवेश भी नहीं होगा. इसलिए जानकार आगाह कर रहे हैं कि अगर इन आंकड़ों को ठीक से नहीं देखा गया तो अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर का गलत अंदाजा लग सकता है.(dw.com)
नई दिल्ली, 1 सितंबर| पश्चिमी मीडिया ने इस बात पर चर्चा की कि क्या गुरुवार को काबुल हवाई अड्डे पर घातक आत्मघाती बम विस्फोट को टाला जा सकता था, अगर पेंटागन के शीर्ष कमांडरों ने गुरुवार दोपहर को अभय गेट को खुला रखने की बजाए बंद करने के निर्णय का सख्ती से पालन किया होता, तो इसे टाला जा सकता था। अभय गेट को अधिक समय तक खुला रखने का निर्णय एक फील्ड कमांडर द्वारा लिए जाने की सूचना है।
पेंटागन से लीक हुए नोटों के आधार पर सोमवार को अमेरिकी समाचार वेबसाइट पोलिटिको द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेंटागन के शीर्ष कमांडरों ने गुरुवार दोपहर अफगानिस्तान समय तक काबुल हवाई अड्डे पर एबी गेट को बंद करने की योजना को आगे बढ़ाया। लेकिन अमेरिकियों ने अपने ब्रिटिश सहयोगियों को अनुमति देने के लिए गेट को अधिक समय तक खुला रखने का फैसला किया, जिन्होंने पास के बैरन होटल में स्थित अपने कर्मियों को निकालने के लिए अपनी वापसी अभियान को तेज कर दिया था।
नतीजतन, अमेरिकी सैनिक अभी भी लगभग 6 बजे एबी गेट पर हवाई अड्डे पर प्रवेश करने वालों को संसाधित कर रहे थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि गुरुवार को काबुल में एक आत्मघाती हमलावर ने अपनी विस्फोटक बनियान में विस्फोट कर दिया, जिसमें 13 अमेरिकी सैनिकों सहित लगभग 200 लोग मारे गए।
हालांकि, ब्रिटिश विदेश सचिव डॉमिनिक रैब ने मंगलवार को कहा कि ब्रिटेन ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ तालमेल किया और काबुल हवाई अड्डे पर गेट खुला रखने के लिए दवाब नहीं डाला।
राब ने ब्रिटिश टीवी समाचार चैनल स्काई न्यूज को बताया, "हमने अपने नागरिक कर्मचारियोंको एबी गेट द्वारा प्रोसेसिंग केंद्र से बाहर कर दिया, लेकिन यह सुझाव देना सही नहीं है कि हवाईअड्डे के अंदर हमारे नागरिक कर्मचारियों को सुरक्षित रखने के अलावा, हम गेट को खुला छोड़ने के लिए दबाव डाल रहे थे।"
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन ने लोगों को हवाई अड्डे पर नहीं आने की चेतावनी देने सहित उचित कार्रवाई की है।
राब ने बीबीसी समाचार पर कहा, "हमने बैरन होटल में मौजूद नागरिक को भी हवाईअड्डे पर भेज दिया, क्योंकि जहां से आतंकवादी हमला हुआ था, वहां से थोड़ी दूरी पर होने के कारण, यह स्पष्ट रूप से सुरक्षित नहीं था, लेकिन इनमें से किसी को भी एबी गेट को खुला छोड़ देने की आवश्यकता नहीं थी।"
पोलिटिको ने कहा कि हवाई अड्डे पर गुरुवार के हमले के बाद के घंटों में पेंटागन के शीर्ष नेताओं के बीच आंतरिक बातचीत का लेखा-जोखा पोलिटिको को प्रदान की गई तीन अलग-अलग कॉलों से वर्गीकृत नोटों और कॉल के प्रत्यक्ष ज्ञान वाले दो रक्षा अधिकारियों के साक्षात्कार पर आधारित है। पोलिटिको ने कहा कि वह पेंटागन के उन सूचनाओं को रोक रहा है जो काबुल हवाई अड्डे पर चल रहे सैन्य अभियानों को प्रभावित कर सकते हैं।
हालांकि, पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने एक बयान जारी कर कहा, "यह कहानी वर्गीकृत सूचनाओं के गैरकानूनी प्रकटीकरण और एक संवेदनशील प्रकृति के आंतरिक विचार-विमर्श पर आधारित है। जैसे ही हमें रिपोर्टर को दी गई कंटेंट के बारे में पता चला, हमने पोलिटिको को हाई लेवल पर सूचना के प्रकाशन को रोकने के लिए लगाया, जो हमारे सैनिकों और हमारे संचालन को हवाई अड्डे पर अधिक जोखिम में डाल देगा।
उन्होंने कहा, "हम वर्गीकृत जानकारी के गैरकानूनी प्रकटीकरण की निंदा करते हैं और एक खतरनाक ऑपरेशन जारी होने पर इसके आधार पर एक कहानी के प्रकाशन का विरोध करते हैं।" (आईएएनएस)
चेन्नई, 1 सितंबर| मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को एलजीबीटीक्यूआईए प्लस (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, इंटरसेक्स, एसेक्सुअल) समुदाय के लोगों को परेशान करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नियमों में संशोधन करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने एलजीबीटीक्यूआईए प्लस सदस्यों और साथ ही उनका समर्थन करने वाले गैर सरकारी संगठनों को परेशान करने वाली पुलिस की शिकायतों पर निराशा व्यक्त करने के बाद बुधवार को यह निर्देश जारी किया।
वेंकटेश ने कहा कि उन्होंने 7 जून को राज्य सरकार सहित विभिन्न हितधारकों को एलजीबीटीक्यूआईए प्लस समुदाय के सदस्यों को परामर्श, मौद्रिक सहायता, कानूनी सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए व्यापक निर्देश जारी किए थे, जो समाज में गंभीर भेदभाव का सामना करते हैं।
वेंकटेश ने कहा कि इस तरह के निर्देश जारी होने के बावजूद कोई खास बदलाव नहीं हुआ है।
उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर पुलिस कर्मियों के लिए एक संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करने के उनके 7 जून के आदेश का पालन नहीं किया गया।
वेंकटेश ने कहा कि संवेदीकरण कार्यक्रम एलजीबीटीक्यूआईए प्लस समुदाय या एनजीओ सदस्यों से संबंधित व्यक्तियों द्वारा आयोजित किया जाना चाहिए जो ऐसे लोगों के कल्याण की रक्षा और देखभाल में शामिल हैं।
न्यायाधीश ने महाधिवक्ता आर. षणमुगसुंदरम से कहा कि वे संबंधित अधिकारियों को इस मुद्दे पर अधिक सक्रिय होने का निर्देश दें।
उन्होंने यह भी कहा कि तमिलनाडु ने कई प्रगतिशील सुधार किए हैं, लेकिन वह समझ नहीं पा रहे हैं कि पुलिसकर्मी अभी भी एलजीबीटीक्यूआईए प्लस समुदाय के सदस्यों को परेशान क्यों कर रहे हैं।
वेंकटेश ने एलजीबीटीक्यूआईए प्लस समुदाय के सदस्यों के बारे में 'असंवेदनशील' रिपोर्टिग के लिए मीडिया की आलोचना करते हुए कहा, "समकालीन स्थानीय मीडिया द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान के सबसे अंतरंग और व्यक्तिगत पहलुओं की रिपोर्ट बहुत ही समस्याग्रस्त है।"
उन्होंने कहा, "यह न केवल समाज के पहले से मौजूद हानिकारक कलंक को दर्शाता है, बल्कि इसे बनाए रखता है। गलत और स्वाभाविक रूप से अवैज्ञानिक शब्दों को कलंकित करना जैसे 'एक पुरुष एक महिला में बदल गया' या 'एक महिला एक पुरुष में बदल गई' क्वीरफोबिया पर आधारित हैं और नहीं कर सकते आगे भी सहन किया जाए या उनका मनोरंजन किया जाए। अब समय आ गया है कि पत्रकार लैंगिक स्पेक्ट्रम पर संवेदनशील और समावेशी शर्तो पर टिके रहें।"
हालांकि, अदालत ने कहा कि वह प्रेस में विश्वास रखती है और ऐसे मामलों की रिपोर्ट करते समय अधिक संवेदनशीलता दिखाने का आग्रह करती है।
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि वह यह जानकर चौंक गए कि एक मनोचिकित्सक ने एक समलैंगिक व्यक्ति को एक नुस्खे दिए बिना यह महसूस किया कि लिंग पहचान का कोई इलाज नहीं है।
उन्होंने यह भी बताया कि मनोचिकित्सक ने समलैंगिक व्यक्ति को संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी के लिए एक मनोचिकित्सक के पास भेजा था।
अदालत ने कहा, "ये तरीके और साधन हैं जो पेशेवरों द्वारा रूपांतरण चिकित्सा की आड़ में अपनाए गए हैं।" (आईएएनएस)
मुंबई, 1 सितम्बर: मानसून के समय समुद्र में मछली पकड़ने पर रोक लगी होती है.समुद्र में मछली पकड़ने पर मानसून की वजह से लगी रोक हटने पर चंद्रकांत पहली बार 28 अगस्त की रात अरब सागर में मछली पकड़ने गया था. कुदरत का करिश्मा देखिए उसकी जाल में एक-दो नहीं बल्कि कुल 157 घोल मछली फंस गई. इन मछलियों को चंद्रकांत और उनके बेटे सोमनाथ तरे ने कुल 1.33 करोड़ में बेचा. यानी उसे एक मछली की कीमत करीब 85 हजार रुपये मिली. घोल मछली की कीमत बाजार में बहुत कीमती होती है. इस मछली के मेडिकल इलाज में फायदेमंद होती है.
चंद्रकांत तरे के बेटे सोमनाथ ने बताया कि चंद्रकांत तरे सहित 8 लोगों के साथ हारबा देवी नाम के नाव से मछली पकड़ने गए थे. सभी मछुआरे समुद्र किनारे से 20 से 25 नॉटिकल माइल अंदर वाधवान की ओर गए. मछुआरों को 157 घोल मछली मिली जिसे सी गोल्ड भी कहते है क्योंकि इन मछलियों की कीमत सोने से कम नहीं.
क्या है घोल मछली
घोल मछली यानी जिसे सी गोल्ड भी कहते है. इसका 'Protonibea Diacanthus' नाम भी हैं. इस मछली को सोने की दिल वाली मछली भी कहते है. घोल मछली का मेडिकल इलाज, दवाइयों, कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल होता है. इन घोल मछलियों का थाईलैंड, इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर जैसे देशों में बहुत मांग रहती है. सर्जरी के लिए इस्तेमाल होने वाले धागे जो अपने आप गल जाते है वो भी इसी मछली से बनाए जाते है.
इन मछलियों को यूपी और बिहार से आए व्यापारी ने खरीदा है. मछलियों का ऑक्शन पालघर के मुर्बे में हुआ. समुद्र में प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाने से यह मछलियां किनारे नही मिलती है. इन मछलियों के लिए मछुआरों को समुद्र के बेहद अंदर तक जाना होता है.
उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में एक रहस्यमयी बीमारी ने पिछले 10 दिनों में कम से कम 32 बच्चों की जान ले ली है. प्रशासन अभी भी इस बीमारी की पहचान करने में जूझ रहा है. ऐसे में राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं.
डॉयचे वेले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट
आगरा से करीब 35 किलोमीटर दूर बसे फिरोजाबाद में इस बीमारी से मरने वाले बच्चों और वयस्कों की अलग अलग मीडिया रिपोर्टों में अलग अलग संख्या दी गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार मरने वालों की कुल संख्या 53 हो गई है, जिनमें कम से कम 45 बच्चे हैं. प्रशासन को शक है कि यह डेंगू का असर है, लेकिन इसकी अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है.
प्रकोप इतना बुरा है कि शहर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में इस समय कम से कम 185 बच्चे भर्ती हैं. बताया जा रहा है कि शहर के लगभग सभी सरकारी और निजी अस्पताल मरीजों से भर गए हैं.
फिरोजाबाद में बुरा हाल
आगरा डिवीजनल कमिश्नर अमित गुप्ता ने मीडिया को बताया कि फिरोजाबाद में बीते एक हफ्ते में करीब 40 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जिसका प्राथमिक कारण डेंगू लग रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि दूसरे कारणों का भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है.
पूरे राज्य के स्कूलों में एक सितंबर से कक्षा एक से पांचवीं तक को खोलने की योजना थी, लेकिन फिरोजाबाद में बीमारी के प्रकोप की वजह से जिला प्रशासन ने स्कूलों को बंद ही रखने का आदेश दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 30 अगस्त को फिरोजाबाद दौरे पर गए थे और स्थिति से निपटने की तैयारी का जायजा लिया था.
स्थानीय डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में लक्षणों की शुरुआत बुखार, दस्त और उल्टियों से होती है. बच्चों की कोविड जांच भी की जा रही है लेकिन अभी तक इनमें कोविड का कोई मामला सामने नहीं आया है.
कई जगह से मौतों की खबर
बताया जा रहा है कि पास ही में स्थित मथुरा से भी कुछ लोगों की मौत की खबर आई थी लेकिन इनके लिए स्क्रब टाइफस नाम की बीमारी को जिम्मेदार पाया गया. यह भी डेंगू की ही तरह एक वेक्टर जनित बीमारी होती है लेकिन यह वायरस की जगह बैक्टीरिया की वजह से होती है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गोरखपुर इलाका जापानी इंसेफेलाइटिस बीमारी के प्रकोप की वजह से सालों से बदनाम है. वहां हर साल कई बच्चों की इस बीमारी के कारण मौत हो जाती है, लेकिन फिरोजाबाद के लिए मौजूदा संकट एक नई समस्या है. स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तरह की स्थिति यहां पहले कभी नहीं देखी गई. (dw.com)
दिल्ली में सितंबर की पहली तारीख को स्कूल खुल गए, बुधवार सुबह से ही दिल्ली में बारिश हो रही है और बच्चे बरसाती और छाता लेकर पुराने अंदाज में स्कूल पहुंचे. कई और राज्यों में भी आज से स्कूल खुल गए हैं.
डॉयचे वेले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट
कोरोना महामारी के कारण पिछले कई महीनों से बंद स्कूल एक सितंबर से खोल दिए गए. स्कूल खोलने के लिए राज्य सरकारों ने सख्त कोरोना प्रोटोकॉल तैयार किया है. दिल्ली, मध्य प्रदेश, यूपी, तमिलनाडु, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना, असम और पुद्दुचेरी समेत कई राज्यों में 50 फीसदी क्षमता के साथ स्कूल खुल गए हैं.
महीनों तक बच्चों ने पढ़ाई ऑनलाइन की और अब वे स्कूल जाने को लेकर काफी उत्साहित दिख रहे हैं. दिल्ली में बुधवार को सुबह से ही तेज बारिश हो रही है लेकिन बच्चों का स्कूल जाने का जोश बारिश की बूंदें कम नहीं कर पाई. बच्चे छाता और बरसाती के सहारे बारिश से बचते हुए स्कूल पहुंचे.
दिल्ली में स्कूल खोलने को लेकर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मीडिया से कहा, "सावधानी के साथ खुलने में दिक्कत नहीं है. स्कूल-कॉलेज का कोई विकल्प नहीं हो सकता है. ऑनलाइन पढ़ाई स्कूल का कारगर विकल्प नहीं है." उन्होंने कहा कि स्कूल खुलने से बच्चे उत्साह में हैं.
दिल्ली में बुधवार से 9वीं से 12वीं तक स्कूल खुले तो शिक्षकों ने बच्चों को कोरोना प्रोटोकॉल के बारे में सबसे पहले समझाया और उन्हें बताया गया कि स्कूल के दौरान उन्हें किस तरह से दिश-निर्देशों का पालन करना है.
और कहां-कहां खुले स्कूल
उत्तर प्रदेश में भी सख्त कोरोना दिशा-निर्देशों के साथ स्कूल खोल दिए गए हैं. उत्तर प्रदेश में कक्षा एक से पांचवीं तक के स्कूल खुल गए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्कूलों में कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन कराने के निर्देश दिए हैं. स्कूल खोलने से एक दिन पहले इस संदर्भ में बैठक भी की थी. योगी ने स्कूलों में स्वच्छता, सैनिटाइजेशन का काम हर दिन करने के निर्देश दिए हैं. यूपी में कक्षा 9वीं से 12वीं तक के बच्चों के लिए स्कूल 16 अगस्त को ही खोल दिए गए थे.
मध्य प्रदेश में छठी से 12वीं तक के स्कूल 50 फीसदी क्षमता के साथ खुल गए हैं. राजस्थान की बात की जाए तो वहां भी आज से ही 9वीं से 12वीं की कक्षा खोल दी गई हैं. वहीं हरियाणा में चौथी और पांचवीं कक्षा को दोबारा खोलने का फैसला किया गया है. छात्रों को माता-पिता की इजाजत के साथ स्कूल आने की इजाजत होगी
दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में भी आज से 9वीं से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं खोलने का फैसला किया गया है. पुद्दुचेरी में भी कक्षा 9 से 12 तक 50 फीसदी क्षमता के साथ फिर से शुरू हो गईं.
कई विशेषज्ञ स्कूल खोलने को लेकर अलग-अलग राय दे रहे हैं. कुछ का कहना है कि इस समय स्कूल खोलना सही नहीं होगा तो वहीं कुछ विशेषज्ञ बच्चों के विकास के लिए स्कूल खोलना जरूरी बता रहे हैं. एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया का कहना है कि बच्चों के विकास के लिए स्कूलों का खुलना जरूरी है.
इस बीच देश में बीते 24 घंटे में कोरोना वायरस के 41,965 नए मामले सामने आए हैं और 460 मरीजों की मौत इस वायरस के कारण हुई है. वहीं मंगलवार को देश में रिकॉर्ड 1.25 करोड़ लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी गई. (dw.com)
भारत में अब तक ज्वेलर्स को यह छूट होती थी कि वे चाहें तो सोने के गहने की हॉलमार्किंग कराएं और चाहें तो बिना हॉलमार्किंग के ही बेचें. लेकिन जून में नई योजना की घोषणा कर सरकार ने गहनों की हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है.
डॉयचे वेले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट
भारत सरकार ने सोने की ट्रैंकिंग का एक नया प्लान पेश किया है. जिसके तहत भारत में अब सोने के हर गहने की हॉलमार्किंग की जानी है. इसके अलावा हर गहने पर छह अंकों का एक यूनीक कोड भी डाला जाएगा. जिसके चलते इस योजना को 'सोने का आधार' भी कहा जा रहा है. लेकिन इससे भारत में कई ज्वेलर्स परेशान भी हैं.
परेशानियों पर बात से पहले हॉलमार्किंग को समझ लेते हैं. गहने की हॉलमार्किंग उसकी शुद्धता का सर्टिफिकेट होता है. अब तक ज्वेलर्स को यह छूट होती थी कि वे चाहें तो सोने के गहने की हॉलमार्किंग कराएं और चाहें तो बिना हॉलमार्किंग के ही बेचें. लेकिन जून में योजना की घोषणा कर सरकार ने गहनों की हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी है.
एक आईडी में सबकुछ
इसका मतलब कि अब ज्वेलर्स को सोने के गहने ग्राहकों को बेचने से पहले उन्हें हॉलमार्किंग सेंटर भेजकर शुद्धता प्रमाणित कराना अनिवार्य होगा. हालांकि सरकार ने कई तरह की स्वर्ण कलाकृतियों को इस प्रक्रिया से छूट दी है लेकिन यह तय है कि अब ज्यादातर सोने के गहने हॉलमार्क ही होंगे. लेकिन हॉलमार्किंग वो अकेली चीज नहीं है, जो अब से अनिवार्य होगी. सरकार देश में बिकने वाली सोने की हर ज्वेलरी की पहचान और उसकी ट्रैकिंग भी करना चाहती है.
इसी उद्देश्य के लिए शुद्धता के निशान के साथ ही एक हॉलमार्किंग यूनीक आईडी भी ज्वेलरी पर अंकित की जाएगी. नए नियम के मुताबिक हर ज्वेलरी पर एक छह डिजिट का अक्षरों और अंकों का मिलाजुला कोड डाला जाएगा. यह विशेष कोड गहना बनाने वाले ज्वेलर, इसे बेचने वाली दुकान, इसे खरीदने वाले ग्राहक, इसे हॉलमार्क करने के स्थान और इस पूरी प्रक्रिया में शामिल रहे सभी लोगों के पते और मोबाइल नंबर की जानकारी दे सकने के लिए पर्याप्त होगा. इतना सब सिर्फ एक डेटाबेस में.
वैल्यू चेन होगी मजबूत
यही वजह है कि कई जानकारों को यह योजना आधार कार्ड जैसी लग रही है. अगर कोई ज्वेलर पुराने गहने पिघलाकर नए बना रहा है तो भी उसे हर बार ऐसा करते हुए इन नियमों के मुताबिक बदला हुआ यूनिक कोड लगवाना होगा. दरअसल हॉलमार्किंग के बावजूद कई ज्वेलर्स खराब उत्पाद बेच रहे थे. ऐसा वे इसलिए कर पा रहे थे क्योंकि यह पता लगाना मुश्किल था कि उन्हें कहां से बेचा जा रहा है.
एचयूआईडी लग जाने के बाद उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाएगी. ऐसे में ज्यादातर ज्वेलर्स सहित बहुत से लोग मानते हैं कि यह कदम गहनों की पूरी वैल्यू चेन को मजबूत करने का काम करेगा. कानपुर के रिंकू ज्वेलर्स के रिंकू सोनी कहते हैं, "इससे छोटे ज्वेलर्स के लिए यह अच्छा होगा कि चोरी-डकैती का सामान उन्हें नहीं बेचा जा सकेगा और वे कानूनी पचड़ों से बच जाएंगे."
असमंजस में ज्वेलर्स
फिर भी ज्वेलर्स इस कदम से पूरी तरह खुश नहीं है. उनमें से कुछ का कहना है कि हम कई सालों से पूरी ज्वेलरी हॉलमार्क ही बेचते आ रहे हैं लेकिन हर ज्वेलरी पर एचयूआईडी लगवाना लालफीताशाही की हद होगी.
उत्तर प्रदेश के प्रमुख ज्वेलर्स आर लाला जुगल किशोर के मालिक रुचिर रस्तोगी कहते हैं, "योजना का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है. यह कदम क्वालिटी कंट्रोल के लिए उठाया गया है या काले धन पर रोक लगाने के लिए, हमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है. फिर भी हमने इस प्रक्रिया को शुरू कर दिया है." रिंकू सोनी भी कहते हैं कि हमें इसके बारे में पूरी तरह जानकारी नहीं दी गई है.
बढ़ सकते हैं दाम
वैसे अगर आप एक साधारण ग्राहक हैं, जिसके पास सोने के बिना हॉलमार्किंग वाले जेवर हैं तो फिलहाल आपके लिए चिंता की बात नहीं है क्योंकि अब भी आप इसे किसी ज्वेलर को बेच सकते हैं. लेकिन वह ज्वेलर उस गहने को तब तक अगले ग्राहक को नहीं बेच सकेगा, जब तक वह उसकी हॉलमार्किंग नहीं करा लेता. हालांकि अब से आपको नए सोने के गहनों के लिए ज्यादा दाम देने पड़ सकते हैं.
दरअसल हॉलमार्किंग आज भी एक मैनुअल प्रक्रिया है. छोटे खुदरा ज्वेलर्स एक-एक कर हर ज्वेलरी की जानकारी ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) की वेबसाइट पर भरते हैं और फिर इसे हॉलमार्किंग के लिए भेजा जाता है. नए नियमों से इस प्रक्रिया में काम और बढ़ जाएगा. यह ज्वेलर्स के लिए एक अलग बोझ होगा. इसके अलावा प्रॉसेसिंग सेंटर पर भी दबाव बढ़ेगा. रुचिर रस्तोगी कहते हैं, "इसके लिए अलग से लोगों को काम पर लगाना पड़ता है और ज्वेलरी का दाम भी बढ़ जाता है. इस बढ़े दाम को अंतत: ग्राहक ही चुकाएंगे."
ज्वेलर्स को नुकसान
ज्वेलर्स जल्द से जल्द हॉलमार्किंग चाहते हैं लेकिन कई बार पिछले दिनों का काम पूरा न होने के चलते उन्हें इसके लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है. ज्वेलर्स के लिए इंतजार का मतलब है घाटा उठाना और यह भी उनकी असंतुष्टि की वजह है.
रिंकू सोनी बताते हैं, "हॉलमार्क लगवाते हुए दुकानों में ज्वेलरी की कमी हो जाती है. अभी इस प्रक्रिया में 4-5 दिन लग जाते हैं, यह इंतजार और बढ़ सकता है. ऐसे में छोटे व्यापारी तो किसी तरह काम चला लेंगे लेकिन इतना इंतजार बड़े व्यापारियों के लिए लाखों-करोड़ों का घाटा बन जाएगा."
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 10 से 12 करोड़ ज्वेलरी का उत्पादन होता है. इसके अलावा पहले से मौजूद 6-7 करोड़ ज्वेलरी हॉलमार्क होनी बाकी है. ऐसे में इस साल कुल हॉलमार्क होने वाली ज्वेलरी की संख्या 16 से 18 करोड़ तक रहने की संभावना है.
अमल में लाना आसान नहीं
वर्तमान गति और क्षमता से हॉलमार्किंग सेंटर हर दिन करीब 2 लाख ज्वेलरी की हॉलमार्किंग करते हैं. यानी इस साल जितनी ज्वेलरी हॉलमार्क होने के लिए हैं, उन्हें हॉलमार्क कराने में 800-900 दिन या सीधे कहें तो 3 से 4 साल का समय लगना है.
इसलिए भले ही भारत सरकार पूरी प्रक्रिया में और ज्यादा जवाबदेही लाने के प्रयास में हो लेकिन जब तक उसकी ओर से इसके लिए पर्याप्त प्रबंध नहीं किए जाते इसे प्रभावी रूप से लागू करना आसान नहीं होगा. (dw.com)
नई दिल्ली, 31 अगस्त | एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में, एक अफगान टीवी समाचार प्रस्तोता ने तालिबान के सशस्त्र सदस्यों के समक्ष सुर्खियों को पढ़ा। डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, इस क्लिप को टीवी स्टूडियो द्वारा ऑनलाइन साझा किया गया था, जब आतंकवादियों ने इमारत पर धावा बोल दिया और समाचार एंकर से तालिबान की प्रशंसा करने की मांग की।
42 सेकंड की क्लिप में, जिसे तब से 10 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है, समाचार एंकर आठ हथियारबंद लोगों से घिरे हुए हैं जो पढ़ते समय उनकी रक्षा करते हुए दिखाई देते हैं।
यह बताया गया है कि उन्होंने रविवार को इमारत पर धावा बोल दिया और प्रस्तुतकर्ता से उनके साथ बात करने की मांग की।
वाईओ न्यूज के मुताबिक, न्यूज एंकर ने ऑन एयर रहते हुए आतंकियों से डिबेट की।
समाचार आउटलेट की रिपोर्ट है कि प्रस्तुतकर्ता ने अफगानिस्तान में सरकार के पतन के बारे में बात की और अफगान लोगों से नहीं डरने का आग्रह किया।
'परदाज' नाम के शो के दौरान, एंकर ने कथित तौर पर लोगों से समूह के साथ सहयोग करने के लिए भी कहा।
न्यूज रूम के अंदर से फुटेज साझा करते हुए, एतिलाट्रोज और काबुल नाउ के प्रकाशक जकी दरियाबी ने ट्विटर पर कहा, "यह वही है जो 'एट द रेट ऑफ इटिलाट्रोज' को स्वीकार नहीं कर सकता। यदि ऐसा है, तो हम अपना काम बंद कर देंगे।"
ईरानी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने वीडियो को रीट्वीट किया और लिखा, "यह असली है। तालिबान आतंकवादी बंदूकों के साथ इस भयानक टीवी होस्ट के पीछे खड़े हो रहे हैं और उससे कह रहे हैं कि अफगानिस्तान के लोगों को इस्लामी अमीरात से डरना नहीं चाहिए।"
उन्होंने कहा, "तालिबान अपने आप में लाखों लोगों के मन में डर का पर्याय है। यह सिर्फ एक और सबूत है।"(आईएएनएस)
महुआ वेंकटेश
नई दिल्ली, 31 अगस्त | जैसे ही तालिबान अफगानिस्तान में सरकार बनाने के करीब पहुंच रहा है, एक महत्वपूर्ण सवाल सामने आया है कि नवगठित सरकार को देश चलाने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन कैसे मिलेंगे।
तालिबान के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक अर्थव्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करना और अफगानी (देश की मुद्रा) के मूल्यह्रास को रोकना होगा। इसके लिए तालिबान 2.0 को वैश्विक मंच पर कुछ मान्यता और स्वीकार्यता की आवश्यकता होगी, लेकिन इसे हासिल करना आसान नहीं होगा।
विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली (आरआईएस) के वरिष्ठ सहायक फेलो सुभोमॉय भट्टाचार्जी ने कहा, "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तालिबान को आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार स्पष्ट रूप से किसी अन्य सरकार के समान नहीं है और यह बदलने वाली नहीं है। उन्हें विदेशी सहायता की आवश्यकता होगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सकता है। हमें इंतजार करना और देखना होगा।"
तालिबान के आने से सहायता और निजी धन का प्रवाह रुक गया है।
पिछले कुछ वर्षों से, अफगानिस्तान में सार्वजनिक खर्च का लगभग 75 प्रतिशत अनुदान द्वारा वित्तपोषित किया गया था।
विश्व बैंक ने कहा कि 2002 से सहायता की आमद के साथ, अफगानिस्तान ने एक दशक से अधिक समय तक महत्वपूर्ण सामाजिक संकेतकों के खिलाफ तेजी से आर्थिक विकास और सुधार जारी रखा है। 2003 और 2012 के बीच वार्षिक वृद्धि औसतन 9.4 प्रतिशत रही, जो तेजी से बढ़ते सहायता-संचालित सेवा क्षेत्र और मजबूत कृषि विकास द्वारा संचालित है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ईरान ने युद्धग्रस्त देश को तेल की आपूर्ति फिर से शुरू कर दी है और अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच व्यापार भी एक बार फिर तेज हो गया है।
व्यापार में तेजी - बल्कि आयात - का मतलब होगा कि सीमा शुल्क से उत्पन्न राजस्व किसी तरह बरकरार रहेगा।
अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी रिसर्च एंड इंटरनेशनल स्टडीज के मानद निदेशक शक्ति सिन्हा ने बताया कि तालिबान के तहत नई 'सरकार' सीमा शुल्क और आयात शुल्क से 'कुछ पैसा' प्राप्त करने में सक्षम होगी, जो कि पर्याप्त होगा सरकारी अधिकारियों को भुगतान करें।
हालांकि, यह तालिबान को मुश्किल से बचा पाएगा, जो 360 डिग्री विदेशी सहमति के बिना खुद को बनाए रखने में सक्षम नहीं होगा।
तालिबान को उम्मीद है कि विदेशी सहायता की आमद जल्द से जल्द फिर से शुरू हो जाएगी। इसके अलावा, वे अफगानिस्तान के विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बैंकों में 9.5 अरब डॉलर के अंतर्राष्ट्रीय भंडार तक तत्काल पहुंच चाहते हैं।
जबकि जूरी तालिबान 2.0 शासन पर बाहर है, कई विदेश नीति पंडितों ने कहा है कि अस्तित्व के स्तर पर उनकी आर्थिक भेद्यता को देखते हुए, तालिबान को 'अधिक उदार चेहरा' लगाने के लिए मजबूर किया जाएगा ताकि वैश्विक समुदाय से कुछ वैधता और मान्यता प्राप्त हो सके।
सिन्हा ने इंडिया राइट्स नेटवर्क द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, अफगानिस्तान में 1996 में सत्ता में आए कठोर, आधुनिक-विरोधी तालिबान शासन के विपरीत, तालिबान 2.0 ने आधुनिकतावाद को खारिज नहीं किया है और बाहरी दुनिया से जुड़ने के महत्व को महसूस किया है। इसकी जड़ें कार्यालय और कॉलेज जाने वालों, कस्बों और गांवों में पाई जाती हैं, जो भ्रष्टाचार से थक चुके हैं और पश्चिमी उदारवादी दुनिया के लोकाचार से थक चुके हैं।"
सिन्हा ने इंडिया नैरेटिव से बात करते हुए कहा, "उनके पास सुरक्षा या अन्य विकास कार्यों के लिए कोई पैसा नहीं बचा होगा। तालिबान को फिर से शुरू करने के लिए विदेशी सहायता की आवश्यकता होगी। इस स्थिति को देखते हुए, तालिबान शासन से बहुत अलग होने की उम्मीद है। जो हमने पहले देखा था।"
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थिति दोनों अमेरिका और तालिबान के लिए अजीब है। "प्रत्येक पक्ष अफगानिस्तान को इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के लिए वैश्विक आतंकवादी हमलों की साजिश रचने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में बदलने से रोकना चाहता है, लेकिन वे इसे राजनीतिक रूप से अप्रिय भी पाते हैं।"
इससे पहले, एक प्रेस ब्रीफिंग में, जब यूएस-तालिबान सहयोग के बारे में पूछा गया और क्या यह निकासी अभ्यास से आगे भी जारी रहेगा, व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा, "हम जहां हैं वहां से आगे नहीं बढ़ना चाहते हैं।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 अगस्त | तालिबान ने ऐसे लोगों के घरों के दरवाजों पर नाइट लेटर्स (धमकी भरी चिट्ठियां) चिपकाने शुरू कर दिए हैं, जिन्होंने कभी किसी भी रूप में अमेरिकी सेना की मदद की थी। दरवाजों पर चिपकाए गए इन नाइट लेटर्स कहा गया है कि अगर वो सरेंडर नहीं करते हैं तो फिर उन्हें मौत की सजा दी जाएगी।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, धमकी भरी चिट्ठियों में तालिबान द्वारा उन्हें अदालत में उपस्थित होने का फरमान सुनाया गया हैं। यही नहीं, इनमें यह चेतावनी भी दी गई है कि ऐसा करने में विफलता के परिणामस्वरूप मौत की सजा होगी।
पत्र डराने-धमकाने का एक पारंपरिक अफगान तरीका है। बता दें कि चिट्ठी भेजकर कोर्ट में बुलाना और फिर कत्ल कर देना, ये तालिबान का पारंपरिक तरीका रहा है और पिछले शासनकाल के दौरान भी तालिबान ने भी यही किया था। जब अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का कब्जा था, उस वक्त भी मुजाहिदीन चिट्ठियों का ही इस्तेमाल किया करते थे।
अक्सर ग्रामीण समुदायों में इसका उपयोग किया जाता रहा है, मगर अब इस तरीके को शहरों में भी व्यापक रूप से परिचालित किया जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी ही एक धमकी भरी चिट्ठी 34 साल के अफगानी नागरिक नाज को मिली है, जिन्होंने ब्रिटिश निर्माण कंपनी और ब्रिटिश सेना को हेलमंड में सड़कों और कैंप के बैशन में रनवे बनाने में मदद की थी। उन्होंने अफगान पुनर्वास कार्यक्रम के तहत ब्रिटेन में शरण लेने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया और अब उन्हें तालिबान ने कोर्ट में हाजिर होने या फिर मरने के लिए तैयार होने के लिए कहा है।
नाज ने कहा कि उनके घर के दरवाजे पर तालिबान ने चिट्ठी चिपकाई है और वो चिट्ठी तालिबान की तरफ से भेजा गया एक तरह का आधिकारिक पत्र है, जिस पर तालिबान की मुहर भी लगी हुई है।
नाज ने कहा, "पत्र आधिकारिक था और तालिबान द्वारा मुहर लगाई गई थी। यह स्पष्ट संदेश है कि वे मुझे मारना चाहते हैं। अगर मैं अदालत में जाता हूं, तो मुझे मौत की सजा दी जाएगी।"
तालिबान से भयभीत नाज ने मदद की अपील करते हुए कहा, "मैं अदालत जाऊं या नहीं जाऊं, वो मुझे मारेंगे ही, इसीलिए मैं बचने का कोई रास्ता खोज रहा हूं। मैं छिपने के लिए रास्ता खोज रहा हूं, मुझे मदद चाहिए।"
डेली मेल की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक और पीड़ित अफगान, जो ब्रिटिश सैनिकों के लिए अनुवादक का काम करता था, उसे तालिबान ने काफिरों का जासूस करार दिया और कहा है कि या तो वो खुद अपने लिए मौत चुन ले, या फिर अदालत में उसे मौत की सजा दी जाएगी।
रिपोर्ट के अनुसार, 47 वर्षीय शिर ने बताया कि उन्होंने हेलमंद प्रांत में ब्रिटिश सेना के साथ फ्रंटलाइन में काम किया था और उन्होंने अफगानिस्तान से बाहर निकलने के ब्रिटेन की तरफ से इजाजत भी मिल गई थी, लेकिन वो एक निकासी उड़ान में सवार होने के लिए हवाई अड्डे तक नहीं पहुंच सके।
जिसके बाद उनकी बेटी को दरवाजे पर कील लगा हुआ तालिबान का एक चिट्ठी मिला है, जिसमें शिर को इस्लामिक अमीरात ऑफ तालिबान के कोर्ट में पेश होने के लिए कहा गया है।
शिर ने कहा, "मेरी बेटी को हमारे दरवाजे पर एक कील के साथ लगा हुआ पत्र मिला। इसमें मुझे इस्लामिक अमीरात ऑफ तालिबान की अदालत के फैसले के लिए खुद को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है"
शिर ने आगे कहा कि तालिबान के लोग शिकारी कुत्तों की तरफ उन्हें खोज रहे हैं और वो छिपते फिर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर वो सरेंडर भी कर देते हैं, तब भी कोई फायदा नहीं होने वाला है, क्योंकि फिर भी उन्हें मार दिया जाएगा।
यह चिट्ठी मिलते ही अब शिर तालिबान के डर से छिप गए हैं।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 31 अगस्त | दिल्ली में एक तरफ कोरोना के मामले कम हुए तो बढ़ती बारिश के कारण मच्छरजनित बीमारियों का खतरा बड़ गया है। पिछले एक हफ्ते में मच्छरजनित बीमारियों के ही 27 मरीज सामने आए हैं। हालांकि इस साल डेंगू के कुल मरीजों का आंकड़ा 97 है, तो वहीं मलेरिया के 45 और चिकनगुनिया के 26 हो गए हैं। निगम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक हफ्ते में डेंगू के 15, मलेरिया के 9 तो चिकनगुनिया के 3 मरीज मामले सामने आए हैं।
रिपोट एक अनुसार, दक्षिणि निगम क्षेत्र में मच्छर जनित बीमारियों का सबसे ज्यादा फैलाव देखने को मिल रहा। डेंगू, मलेरिया और चिकगुनिया के कुल मरीजों में से अधिक्तर मरीज दक्षिणी निगम क्षेत्र से हैं।
डेंगू के कुल 97 मरीजों में दक्षिणी निगम क्षेत्र में 33 मरीज सामने आए हैं। जिसमें उत्तरी निगम क्षेत्र में 10 और पूर्वी निगम क्षेत्र में 12 मरीजों के मामले दर्ज किए गए हैं।
हालांकि नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) क्षेत्र में 5, दिल्ली कैंट में 1 मरीज तो वहीं 36 मरीजों के पते की पुष्टि नहीं हो सकी है।
साथ ही मलेरिया के कुल 45 मरीजों में से दक्षिणी निगम क्षेत्र में 13 मरीज हैं। पूर्वी निगम में उत्तरी निगम क्षेत्र में 8 मरीजों की पुष्टि हो चुकी है। जबकि 15 मरीजों के पते की पुष्टि नहीं हुई है।
इसके अलावा चिकगुनिया के कुल 26 मरीजों में से 8 मरीज दक्षिणी निगम क्षेत्र से हैं। उत्तरी निगम क्षेत्र से 3 और पूर्वी निगम 1 मरीज की पुष्टि हुई है। एनडीएमसी क्षेत्र से एक मरीज सामने आ चुके हैं। इसमें भी 13 मरीजों के पते की पुष्टि नहीं हुई है।
दरअसल इस बार दिल्ली में बारिश तेज होने के कारण दक्षिणि, उत्तरी और पूर्वी निगमों में मच्छरों की ब्रीडिंग मिलने पर चालान किया जा रहा है तो वहीं कई लोगों को लीगल नोटिस भी जारी किये जा चुके हैं।
यदि इसके बाद भी किसी घर में डेंगू या मलेरिया मच्छरों की ब्रीडिंग पाई जाती है, तो उसके खिलाफ निगम के अधिकारियों ने एफआईआर दर्ज कराने की चेतावनी दी हुई है।(आईएएनएस)
पटना, 31 अगस्त| बिहार में पिछले 24 घंटों में एक सब-इंस्पेक्टर के भाई समेत तीन लोगों की मौत हो गई। पहली घटना गया जिले में उस वक्त हुई, जब मंगलवार सुबह तेलबीघा मोहल्ले में आधा दर्जन हमलावरों ने एक युवक को पत्थर मारकर कुचल दिया।
मृतक की पहचान झीलगंज मोहल्ले के रहने वाले अरविंद चौधरी और पटना में तैनात बिहार एसटीएफ के सब इंस्पेक्टर के भाई के रूप में हुई है।
चौधरी मंगलवार सुबह किसी काम से तेलबीघा गए थे। आधा दर्जन अपराधियों ने उन्हें पकड़ लिया। अपाधियों को देखने के बाद उन्होंने भागने की कोशिश की लेकिन असफल रहे।
हमलावरों ने उसे घेर लिया और तब तक उसे पत्थरों से मारते रहे जब तक उसकी मौत नहीं हो गई। हमलावरों के पास हथियार होने के कारण इलाके के लोगों ने उसे बचाने की हिम्मत नहीं की।
पुलिस ने कहा कि मृतक का आपराधिक इतिहास भी था और यह संभवत: बदला लेने की हत्या थी।
दूसरी घटना सहरसा जिले में हुई जब जन्माष्टमी मेले से घर लौट रहे एक युवक की मंगलवार तड़के मौत हो गई।
मृतक की पहचान सोहा गांव निवासी प्रेमजीत सिंह उर्फ पुतपुत सिंह के रूप में हुई है। अज्ञात हमलावरों ने उसे रोका और उसका गला रेत कर फरार हो गए।
घर नहीं लौटने पर मृतक के परिजनों ने उसकी तलाश की। उसका शव सड़क किनारे मिला।
तीसरी घटना औरंगाबाद में हुई जब शहर थाना क्षेत्र के चित्रगुप्त नगर इलाके में एक सब्जी विक्रेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
एसडीपीओ मनीष कुमार ने बताया कि इलाके की एक महिला को सब्जी बेचते समय हमलावरों ने बाइक पर आकर उसकी हत्या कर दी।
कुमार ने कहा, "दो हमलावर बाइक पर आए और उनके सिर पर एक प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मार दी। उनकी मौके पर ही मौत हो गई। हत्या के कारण का अभी पता नहीं चल पाया है।" (आईएएनएस)
चंडीगढ़, 31 अगस्त | जेलों में बंद कुख्यात गैंगस्टरों द्वारा संचालित एक बड़े ड्रग सिंडिकेट का भंडाफोड़ करते हुए पंजाब पुलिस ने दो ड्रग डीलरों की गिरफ्तारी के साथ 100 करोड़ रुपये की 20 किलो हेरोइन जब्त की है। दो ड्रग सप्लायरों की पहचान गांव सारंगवाल होशियारपुर के बलविंदर सिंह और जालंधर के बस्ती दानिशमांडा इलाके के पीटर मसीह के रूप में हुई है। पीटर पहले से ही दो आपराधिक मामलों का सामना कर रहा है।
पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिनकर गुप्ता ने बताया कि सोमवार को जब पुलिस टीमों ने कपूरथला में हाई-टेक ढिलवां पुलिस चौकी पर एक ट्रक और एक हुंडई आई20 कार को रोककर वाहन की तलाशी में 20 किलो हेरोइन बरामद हुई।
उन्होंने कहा कि वाहनों के चालकों को रुकने का इशारा किया गया, लेकिन सवारों ने भागने की कोशिश की। हालांकि पुलिस ने काफी मशक्कत के बाद उन्हें दबोच लिया।
डीजीपी ने कहा कि पुलिस ने उनके शरीर की जांच के दौरान और दो वाहनों से उनके निजी कब्जे से 20 पैकेट हेरोइन (एक किलो प्रत्येक) बरामद किया।
एच.एस. कपूरथला के एसएसपी खाख ने कहा कि परिवहन के दौरान खेप को छिपाने के लिए दवा आपूर्तिकर्ताओं द्वारा ट्रक के चालक के केबिन की छत में दो विशेष छिद्र बनाए गए थे।
डीजीपी ने कहा कि प्रारंभिक जांच के दौरान, ड्रग डीलरों ने खुलासा किया कि श्रीनगर के पुरमारा मंडी से बलविंदर सिंह द्वारा एक ट्रक में हेरोइन की खेप की तस्करी की जा रही थी, जिसे पीटर ने जमा किया था।
उन्होंने कहा कि मामले में एक नार्को-गैंगस्टर एंगल का संदेह किया जा रहा है क्योंकि अब तक की गई जांच से संकेत मिलता है कि पीटर को कुख्यात गैंगस्टर रजनीश कुमार उर्फ प्रीत फगवाड़ा के भाई गगनदीप द्वारा खेप लेने के लिए भेजा गया था।(आईएएनएस)
चेन्नई, 31 अगस्त | तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक के समन्वयक ओ. पनीरसेल्वम और पार्टी के अन्य सांसदों को पुलिस ने मंगलवार को यहां सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। अन्नाद्रमुक के विधायक हाल ही में गठित डॉ. जे. जयललिता विश्वविद्यालय का अन्नामलाई विश्वविद्यालय में विलय करने के द्रमुक सरकार के फैसले का विरोध कर रहे थे।
सरकार द्वारा तमिलनाडु विश्वविद्यालय कानून (संशोधन और निरसन) विधेयक 2021 पेश करने के तुरंत बाद अन्नाद्रमुक सदस्यों ने विधानसभा से बहिष्कार किया, सड़कों पर धरना दिया और नारेबाजी की।
पुलिस अन्नाद्रमुक सांसदों को पास के एक हॉल में ले गई और उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
तत्कालीन अन्नाद्रमुक सरकार ने डॉ जे जयललिता विश्वविद्यालय और विल्लुपुरम, कल्लाकुरुची और कुड्डालोर में स्थित कॉलेजों को मान्यता देने के लिए एक कानून पारित किया था।
नए विश्वविद्यालय की स्थापना वेल्लोर स्थित तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय को विभाजित करके की गई थी।(आईएएनएस)
मैसूर (कर्नाटक), 31 अगस्त | कर्नाटक राज्य भाजपा प्रभारी अरुण सिंह ने कर्नाटक में आगामी स्थानीय निकाय, जिला पंचायत और तालुक पंचायत चुनावों के लिए जद (एस) के साथ गठबंधन से इनकार किया है। कर्नाटक के चार दिवसीय दौरे पर आए अरुण सिंह ने कहा कि भाजपा पुराने मैसूर क्षेत्र में पैठ बना रही है और आने वाले चुनाव में अपने दम पर सत्ता हासिल करेगी। उन्होंने कहा, "हम मैसूर क्षेत्र में अधिक संख्या में सीटें जीतेंगे।"
अरुण सिंह ने कहा कि बसवराज बोम्मई सरकार राज्य में अच्छा प्रशासन दे रही है।
उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा लंबे अनुभव वाले नेता हैं, उनके संगठनात्मक कौशल असाधारण हैं और पार्टी उनकी ताकत का उपयोग करेगी।
अरुण सिंह पार्टी को मजबूत करने के लिए मैसूर, मांड्या, हासन और चामराजनगर जिलों में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को सुनेंगे। इतने सालों में भाजपा वोक्कालिगा बहुल इलाके में अपनी पैठ बनाने में नाकाम रही है। जद (एस) और कांग्रेस को चुनावों में सीटों का बड़ा हिस्सा मिला था।
अरुण सिंह का ओल्ड मैसूर क्षेत्र का दौरा जिला पंचायत और तालुक पंचायत चुनावों के मद्देनजर आया है, जो लगभग 6 महीने में होने वाले हैं, इसके बाद राज्य में बीबीएमपी और एमएलसी चुनाव होंगे।(आईएएनएस)