राष्ट्रीय
केर्न ऊर्जा कंपनी ने कहा है कि उसे एक फ्रांसीसी अदालत से पेरिस में भारत सरकार की संपत्ति जब्त करने की अनुमति मिल गई है. केर्न और भारत सरकार के बीच करोड़ों का टैक्स विवाद चल रहा है और कंपनी हर्जाना वसूलना चाह रही है.
लंदन में शेयर बाजार में सूचीबद्ध केर्न में एक बयान में बताया कि फ्रांस के एक ट्रिब्यूनल ने इस मामले में पेरिस में स्थित भारत सरकार की करीब 20 संपत्तियों को फ्रीज करने का आदेश दिया है. इन संपत्तियों का कुल मूल्य दो करोड़ यूरो से भी ज्यादा है. कंपनी का कहना है, "ये इन संपत्तियों का मालिकाना हक लेने की तैयारी में एक आवश्यक कदम है. यह कदम यह भी सुनिश्चित करता है कि अगर इन संपत्तियों को बेचा जाता है तो उससे होने वाली कमाई केर्न को ही मिलेगी." कंपनी ने यह भी बताया कि उसने भारत सरकार के खिलाफ इस तरह के और मामले अमेरिका, ब्रिटेन, नेदरलैंड्स, सिंगापुर और क्यूबेक में भी दर्ज कराए हुए हैं.
भारत सरकार ने एक बयान जारी कर कहा है कि उसे इस मामले पर किसी भी फ्रांसीसी अदालत से कोई भी सन्देश नहीं मिला है और जब मिलेगा तब वो "उचित कानूनी कदम" उठाएगी. भारत में तेल और गैस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी केर्न को दिसंबर में द हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने इस मामले में 1.2 अरब डॉलर से भी ज्यादा के हर्जाने का हकदार घोषित किया था. ये कंपनी और भारत सरकार के बीच बीती तारीख से लगाए गए कुछ टैक्स दावों पर चली एक लंबी लड़ाई का नतीजा था. कंपनी का कहना है कि अब सरकार का उस पर कुल 1.7 अरब डॉलर बकाया है.
समझौते की संभावना
द हेग अदालत के आदेश के खिलाफ भारत ने अपील दायर की है, लेकिन इस बीच केर्न ने इस राशि को हासिल करने के लिए विदेशों में भारत सरकार की कई संपत्तियों को जब्त करने की अनुमति मांगी है. इनमें एयर इंडिया की संपत्ति भी शामिल है. कंपनी का कहना है कि अगर सरकार समझौता नहीं करती है तो वो इन संपत्तियों को जब्त कर सकती है. लेकिन कंपनी ने यह भी कहा है, "हम अभी भी चाहते यह हैं कि हमारा भारत सरकार के साथ एक मैत्रीपूर्ण समझौता हो जाए और इस मामले को खत्म किया जाए." भारत सरकार ने अपने ताजा बयान में कहा है कि वो "अपने केस को जोरों के साथ लड़ेगी."
यह विवाद 2012 में शुरू हुआ था जब तत्कालीन यूपीए सरकार ने कुछ कंपनियों पर बीती तारीख से पूंजीगत लाभ टैक्स लगाने का फैसला किया था. इनमें केर्न के अलावा टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन भी शामिल थी. वोडाफोन भी आर्बिट्रेशन कोर्ट में मामले को ले गई थी और जीत गई थी. इन मामलों से विदेशी निवेशक डर गए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को भी धक्का लगा था. उनके बाद सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कहा है कि वो भविष्य में बीती तारीख से टैक्स नहीं लगाएगी, लेकिन मौजूदा मामलों में लड़ रही है. (dw.com)
रॉयटर्स (सीके/एए)
नई दिल्ली, 8 जुलाई | नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से दो बार की सांसद मीनाक्षी लेखी ने गुरुवार को विदेश राज्य मंत्री और संस्कृति राज्य मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। लेखी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जेपी नड्डा और पूरी टीम का आभार व्यक्त करते हुए कहा, "उन्होंने योग्यता और कड़ी मेहनत को प्राथमिकता दी और सभी को जगह दिया।"
लेखी ने अपने कैबिनेट 2.0 में महिला नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा, "लोग महिला सशक्तिकरण की बात करते थे, लेकिन पीएम मोदी ने इसे संभव बनाया कि देश में सशक्त महिलाओं का नेतृत्व हो। यह प्रशंसनीय है।"
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विदेश मंत्रालय की टीम में लेखी और राजकुमार सिंह का स्वागत किया।
जयशंकर ने अपने ट्विटर पर शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा, "मिनाक्षी लेखी, राजकुमार रंजन और विदेश मंत्री की टीम का स्वागत करते हुए खुशी हो रही है। विश्वास है कि एक साथ, हम विदेशों में भारत के हित को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देंगे। मेरे सभी नए मंत्री सहयोगियों को बधाई और उनके साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 जुलाई | ओडिशा से राज्यसभा सदस्य अश्विनी वैष्णव ने इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी और रेलवे मंत्रालय का कार्यभार संभाला है। उन्होंने संचार मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला है।
वैष्णव ने दोनों मंत्रालयों में रविशंकर प्रसाद का स्थान लिया। प्रसाद 2019 से संचार विभाग संभालने के अलावा 2016 से आईटी मंत्रालय संभाल रहे थे।
1994 बैच के एक पूर्व आईएएस अधिकारी, वैष्णव ने पिछले 15 वर्षों में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को संभाला है और विशेष रूप से पीपीपी ढांचे में उनके योगदान के लिए जाने जाते थे।
उनके पास व्हार्टन स्कूल, पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से एमबीए की डिग्री और आईआईटी कानपुर से एमटेक की डिग्री है।
वैष्णव ने जनरल इलेक्ट्रिक और सीमेंस जैसी प्रमुख वैश्विक कंपनियों में नेतृत्व की भूमिका निभाई है।
आईटी मंत्रालय नए आईटी दिशानिर्देशों पर ट्विटर के साथ विवाद में रहा है, जबकि संचार के मोर्चे पर, भारत 5 जी के रोलआउट का इंतजार कर रहा है जो पहले से ही समय से पीछे चल रहा है।
इसके अलावा, दूरसंचार क्षेत्र में वित्तीय तनाव और एजीआर बकाया नए मंत्री के सामने अन्य प्रमुख मुद्दे होंगे।
हालांकि अन्य प्रमुख सोशल मीडिया कंपनियों ने नए आईटी नियमों का अनुपालन किया है, लेकिन इन दिशानिर्देशों का निरंतर और सख्त कार्यान्वयन वैष्णव के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य रहेगा।
वैष्णव ने बुधवार को ट्वीट किया, "पीएम नरेंद्र मोदी जी के आशीर्वाद से मैं कल कार्यभार संभालूंगा और उनके विजन को साकार करने के लिए अथक प्रयास करूंगा। "
उद्योग जगत ने भी 50 वर्षीय मंत्री से काफी उम्मीदें जताई हैं।
आईसीईए के अध्यक्ष पंकज मोहिंद्रू ने कहा, "हम चाहते हैं कि नया पदाधिकारी अब तक अर्जित लाभ को समेकित करे - विशेष रूप से मोबाइल फोन निर्माण में।"
महिंद्रू ने कहा, "इलेक्ट्रॉनिक्स 2 लाख करोड़ डॉलर के साथ दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक वस्तु है। यह हमारी और वैश्विक अर्थव्यवस्था में हर कार्यक्षेत्र में व्याप्त है। नया नेतृत्व भारत को सामान्य रूप से विनिर्माण और विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के आधार पर एक अग्रणी अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ा सकता है।"
एनएएसएससीओएम के अध्यक्ष, देबजानी घोष ने ट्वीट किया, "अश्विनी वैष्णव को बधाई। भारत के तकनीकी क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व और प्रभाव बढ़ने के अवसरों की पहले कमी थी। इस दशक को भारत का 'हैशटैग टेक्ड' बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपके साथ काम करने के लिए हम तत्पर हैं।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 जुलाई | भाजपा के वरिष्ठ नेता मनसुख मंडाविया ने मौजूदा कोविड महामारी के बीच गुरुवार को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कार्यभार संभाला। मंडाविया पहले मोदी सरकार में बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री थे।
वह जल्द ही रसायन और उर्वरक मंत्रालय का कार्यभार भी संभालेंगे।
बुधवार को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहले कैबिनेट फेरबदल के बाद मंडाविया को नई जिम्मेदारी दी गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय हर्षवर्धन के पास था, जो फेरबदल में हटाए जाने वाले शीर्ष मंत्रियों में से एक हैं। रसायन और उर्वरक मंत्रालय डी.वी. सदानंद गौड़ा भी कैबिनेट से बाहर हैं।
एक बड़े बदलाव में, प्रधानमंत्री मोदी बुधवार को अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल में 36 नए चेहरे लाए और सात मौजूदा मंत्रियों को पदोन्नत किया। इस बीच, हर्षवर्धन, रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर सहित 12 शीर्ष मंत्रियों को कैबिनेट से हटा दिया गया है। (आईएएनएस)
कानपुर (उत्तर प्रदेश), 8 जुलाई । कानपुर के घाटमपुर के एक गांव में दो भाइयों ने एक नाबालिग लड़की के साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया, उसका वीडियो बनाया और बाद में उसे को गर्भपात की गोलियां दीं। पुलिस ने गुरुवार को यह जानकारी दी। घटना का पता तब चला जब बुधवार को बच्ची की हालत बिगड़ने लगी। वह वर्तमान में एक चिकित्सा सुविधा में इलाज करा रही है।
पुलिस को दिए अपने बयान में उसने आरोप लगाया कि रूप सिंह और गुलबदन सिंह ने कई मौकों पर उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। और फिर उसे कुछ गोलियां खाने के लिए मजबूर किया।
दोनों आरोपी अब फरार हैं।
पुलिस प्रवक्ता ने कहा कि आरोपियों ने लड़की को जाल में फंसाया और जब उन्होंने पहली बार उसके साथ दुष्कर्म किया था, तभी उन्होंने घटना का वीडियो बनाया।
उसी वीडियो के आधार पर लड़की को ब्लैकमेल किया गया और फिर से सामूहिक दुष्कर्म किया गया। (आईएएनएस)
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले कैबिनेट विस्तार में 2022 के विधानसभा चुनाव की झलक साफ तौर पर देखी जा सकती है. उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा के चुनाव होने हैं और यह चुनाव बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण है इसीलिए जो मंत्रिमंडल विस्तार किया जा रहा है उसमें यूपी को सबसे ज्यादा तवज्जो दी गई है. उत्तर प्रदेश के 7 सांसदों को नए मंत्रिमंडल में जगह दी जा रही है. इनमें 6 लोकसभा के सदस्य हैं तो वहीं एक राज्यसभा के भी सदस्य शामिल हैं.
जिन सात नए चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह मिल रही है उनमें आगरा से सांसद एसपी सिंह बघेल, लखीमपुर खीरी से सांसद अजय मिश्र टेनी, राज्यसभा सांसद बीएल वर्मा, मोहनलालगंज से सांसद कौशल किशोर, जालौन से सांसद भानु प्रताप सिंह वर्मा, बीजेपी की सहयोगी अपना दल की मिर्जापुर की सांसद अनुप्रिया पटेल, महाराजगंज से छठी बार सांसद बने पंकज चौधरी का भी नाम शामिल है. जाहिर सी बात है कि इस विस्तार में चुनाव से पहले ना केवल जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की गई बल्कि क्षेत्रीय समीकरणों को भी साधने की कोशिश बीजेपी ने की है.
एसपी सिंह बघेल को मुलायम सिंह यादव राजनीति में लाए थे
मोदी मंत्रिमंडल में जगह पाने में कामयाब होने वाले अगर प्रो. एसपी सिंह बघेल की बात करें तो वह चौथी बार लोकसभा के सदस्य 2019 में चुने गए थे, और एक बार राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं. 2017 में टूंडला सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बने और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे, लेकिन 2019 में बीजेपी ने उन पर भरोसा जताते हुए आगरा से लोकसभा का टिकट दिया और वह चुनाव जीतकर सांसद बने. एसपी सिंह बघेल समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी से होते हुए बीजेपी में पहुंचे थे. बीजेपी ने उन्हें पिछड़ा वर्ग मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था. एसपी सिंह बघेल को राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को जाता है.
दरअसल, एसपी सिंह बघेल यूपी पुलिस में सब इंस्पेक्टर नियुक्त हुए थे और मुलायम सिंह यादव की सुरक्षा में तैनात हुए. उनके राजनीतिक कौशल को मुलायम सिंह यादव ने भांप लिया था और समाजवादी पार्टी ने उन्हें सबसे पहले 1998 में जलेसर सीट से लोकसभा का टिकट दिया. एसपी सिंह बघेल चुनाव जीते और सांसद बने. फिर 1999 और 2004 में भी यही सिलसिला जारी रहा. हालांकि फिर नाराजगी के चलते एसपी सिंह बघेल ने सपा छोड़ दी और बसपा में चले गए. बसपा ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया. नौकरी को छोड़कर एसपी सिंह बघेल कुछ समय तक आगरा कॉलेज में प्रोफेसर भी रहे थे.
अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की बेटी हैं अनुप्रिया पटेल
अपना दल की मिर्जापुर से सांसद अनुप्रिया पटेल की बात करें तो वह अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की बेटी हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में राज्य मंत्री भी रह चुकी हैं. हालांकि 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह माना जा रहा था कि अनुप्रिया पटेल को मोदी कैबिनेट में दोबारा जगह मिलेगी, लेकिन उस वक्त उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया और कुछ दिन पहले जब उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की उसके बाद से यह कहा जा रहा था कि जब भी केंद्र में विस्तार होगा तो उन्हें जगह जरूर मिलेगी.
बी एल वर्मा बीजेपी के बहुत पुराने कार्यकर्ता हैं
वहीं अगर बात करें बी एल वर्मा की तो वो बीजेपी के बहुत पुराने कार्यकर्ता हैं और संगठन के माहिर माने जाते हैं. 2017 में जब बीजेपी सत्ता में आई तो उसके बाद उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाते हुए बीएल वर्मा को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया. फिर बीते साल हुए राज्य सभा के चुनाव में बीजेपी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया और वह निर्विरोध राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित हुए. हाल ही में बीजेपी ने उन्हें ओबीसी मोर्चा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है.
नई दिल्ली, 7 जुलाई | मोदी सरकार का मेकओवर होने के साथ ही नए मंत्रिमंडल को अनुभव और योग्यता के आधार पर आकार दिया जा रहा है। नए मंत्रिमंडल में चार पूर्व मुख्यमंत्री, 18 पूर्व राज्य मंत्री, 39 पूर्व विधायक और 23 सांसद हैं, जो तीन या अधिक कार्यकाल के लिए चुने गए हैं।
यह नए मंत्रिमंडल में अनुभव की मजबूती को प्रदर्शित करता है, क्योंकि सरकार की आलोचना बेंच स्ट्रेंथ की कमी और प्रशासनिक अनुभव में पर्याप्त नहीं होने के लिए की गई है।
नए मंत्रिमंडल में 13 वकीलों, छह डॉक्टरों, पांच इंजीनियरों, सात पूर्व सिविल सेवकों और केंद्र सरकार में अनुभव वाले 46 मंत्रियों सहित विशिष्ट योग्यताओं का एक उदार मिश्रण है।
यह एक युवा दिखने वाला मंत्रिमंडल भी है जिसकी औसत आयु 58 वर्ष है, जिसमें 14 मंत्री 50 वर्ष से कम आयु के हैं।
लिंग के मामले में, 11 महिलाएं मंत्रिमंडल का हिस्सा होंगी, जिनमें दो कैबिनेट रैंक वाली होंगी।
पांच मंत्री अल्पसंख्यक होंगे, जिनमें एक मुस्लिम, एक सिख, दो बौद्ध और एक ईसाई शामिल हैं। इसके अलावा, 27 ओबीसी मंत्रियों के साथ एक मजबूत ओबीसी प्रतिनिधित्व है, जिसमें पांच कैबिनेट रैंक के मंत्री शामिल हैं। इसके अलावा आठ एसटी मंत्री हैं, जिनमें तीन कैबिनेट रैंक के साथ हैं, जबकि 12 एससी मंत्री हैं, जिनमें कैबिनेट रैंक के साथ दो मंत्रियों का नाम शामिल है।
नए चेहरों को शामिल करने से पहले 11 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 जुलाई | नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में बुधवार की शाम होने वाले फेरबदल से पहले स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के इस्तीफे के बाद कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि इससे यह पता चलता है कि सरकार कोविड महामारी को प्रबंधित करने में विफल रही है।
उन्होंने एक बयान में कहा, '' केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य राज्य मंत्री का इस्तीफा एक स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि मोदी सरकार महामारी के प्रबंधन में पूरी तरह विफल रही है।''
उन्होंने कहा, '' इन इस्तीफों में मंत्रियों के लिए एक सबक है। अगर चीजें सही होती हैं, तो इसका श्रेय पीएम को जाएगा और अगर चीजें गलत होती हैं तो मंत्री पतनशील व्यक्ति होंगे। उन्होंने कहा कि सरकार की नाकामी की कीमत मंत्रियों को चुकानी पड़ी है।''
बुधवार की शाम मोदी सरकार में बड़े फेरबदल के तहत मंत्रियों ने शपथ लेनी शुरू कर दी है।
हर्षवर्धन को कोविड-19 की स्थिति के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय इसके प्रबंधन और वैक्सीन प्रशासन के लिए नोडल मंत्रालय है।
अन्य वरिष्ठ मंत्रियों में शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, रसायन एवं उर्वरक मंत्री डी. वी. सदानंद गौड़ा और श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने भी इस्तीफा दे दिया है, जबकि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री को कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 जुलाई | सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा 25 जुलाई, 2018 को दिए गए फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने में गुजरात सरकार द्वारा 865 दिनों की देरी करने पर नाराजगी व्यक्त की है। शीर्ष अदालत ने 25,000 रुपये की लागत लगाने के साथ याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और एम.आर. शाह ने कहा, "जिस तरह से पुलिस उपायुक्त, यातायात शाखा, अहमदाबाद और गुजरात राज्य के गृह विभाग द्वारा वर्तमान विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है, हम उस तरीके को अस्वीकार करते हैं।"
उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने फरवरी 2017 में संबंधित प्राधिकरण को पुलिस हेड कांस्टेबल को अनुकंपा पेंशन देने का निर्देश दिया था, जो 21 मार्च, 2002 से अनुशासनात्मक जांच के बाद अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त हुए थे और एक महीने की अवधि के भीतर बकाया का भुगतान करते थे। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रतिवादी का एक बच्चा मानसिक रूप से विकलांग है और दूसरा पोलियो प्रभावित है। उन्हें गुजरात सिविल सेवा (पेंशन) नियम 2002 के नियम 78 और 79 के तहत अनुकंपा पेंशन के लिए निर्देश जारी किया गया था।
पीठ ने अपने 5 जुलाई के आदेश में कहा था, "मामले में शामिल कठिनाई से संबंधित इन तथ्यों के बावजूद, राज्य ने खंडपीठ के समक्ष 200 दिनों की देरी से मामले को मुकदमा चलाने का विकल्प चुना और अब संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत एक विशेष अनुमति याचिका जो हमारे सामने है, इसे 856 दिन देरी से दाखिल किया गया।"
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष एक पत्र पेटेंट अपील दायर करने में 200 दिनों की देरी के अलावा, उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ एसएलपी दाखिल करने में 856 दिनों की अतिरिक्त देरी है। "हम देरी को माफ करने से इनकार करते हैं।"
पीठ ने कहा, "हम तदनुसार उस तरीके को अस्वीकार करते हैं जिस तरह से गुजरात राज्य ने इस न्यायालय को घोर और अस्पष्टीकृत देरी के साथ स्थानांतरित किया है और, विशेष अनुमति याचिका को लागत के साथ देरी के आधार पर खारिज करते हैं। याचिकाकर्ता चार सप्ताह के भीतर उच्चतम न्यायालय की कानूनी सेवा समिति के समक्ष 25,000 रुपये की लागत जमा करेंगे।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 जुलाई | दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को बॉलीवुड अभिनेत्री जूही चावला और दो अन्य के आचरण पर हैरानी व्यक्त की, जिन्होंने 5जी वायरलेस नेटवर्क प्रौद्योगिकी को चुनौती देने वाली याचिका के लिए उन पर लगाए गए 20 लाख रुपये की जुर्माना राशि अभी तक जमा नहीं की है। न्यायमूर्ति जे. आर. मिढ्ढा ने कहा, अदालत वादी के आचरण से हैरान है, जो कि जुर्माने की राशि जमा करने को तैयार नहीं है।
मिढ्ढा ने कहा कि अदालत वादियों के आचरण को लेकर स्तब्ध है। उन्होंने कहा कि चावला और अन्य सम्मानपूर्वक धनराशि जमा कराने के इच्छुक तक नहीं हैं।
अदालत अभिनेत्री द्वारा दाखिल किए गए तीन आवेदनों पर सुनवाई कर रही थी। इनमें अदालती फीस की वापसी, जुर्माने में छूट और फैसले में खारिज शब्द को अस्वीकार करने की अपील की गई है।
चावला की ओर से पेश वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मीत मल्होत्रा ने जुर्माना भरने के लिये एक सप्ताह का समय मांगा, जिस पर सहमति जताते हुए अदालत ने सुनवाई 12 जुलाई तक स्थगित कर दी।
अदालत ने वकील से कहा कि उसने याचिकाकर्ताओं पर 20 लाख रुपये का जुमार्ना लगाते हुए नरम रुख अपनाया और अवमानना की कार्यवाही शुरू नहीं की।
न्यायमूर्ति मिढ्ढा ने कहा, मैं स्तब्ध रह गया हूं। इस अदालत ने नरम रुख अपनाया है। अदालत ने अवमानना पर जोर देते हुए और अर्जी पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि निश्चित रूप से उनके पास इसका अधिकार है।
चावला के वकील ने स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि लागत का भुगतान नहीं किया जाएगा। वकील ने कहा कि किसी ने नहीं कहा कि वे ऐसा नहीं करेंगे। मैंने देखा कि क्या हुआ (फैसले में)। मैं पूरी तरह से समझता हूं।
इसके साथ ही मल्होत्रा ने कोर्ट फीस वापसी की अर्जी भी वापस ले ली।
उच्च न्यायालय ने दलील सुनने के बाद चावला और दो अन्य को 20 लाख रुपये लागत जमा करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने आदेश दिया कि वादी को खारिज करने की मांग करने वाली तीसरी याचिका अदालत की फीस जमा होने के बाद न्यायमूर्ति संजीव नरूला के समक्ष रखी जाएगी और मामले की अगली सुनवाई 12 जुलाई को निर्धारित कर दी गई।
उच्च न्यायालय ने जून में चावला और अन्य लोगों द्वारा देश में 5जी वायरलेस नेटवर्क स्थापित करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें प्रौद्योगिकी के कारण स्वास्थ्य संबंधी खतरों का हवाला दिया गया था। अदालत ने याचिकाकर्ताओं पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। न्यायमूर्ति मिधा ने याचिका को दोषपूर्ण, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग के रूप में वर्णित किया था और इसे महज प्रचार प्राप्त करने के लिए दायर किया गया बताया था।(आईएएनएस)
गुवाहाटी, 7 जुलाई | पश्चिमी असम, पड़ोसी राज्य मेघालय और उत्तरी बंगाल में बुधवार को रिक्टर पैमाने पर 5.2 तीव्रता का भूकंप आया। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (एनसीएस) के अनुसार, पश्चिमी असम के गोलपारा में सुबह 8.46 बजे भूकंप के झटके महसूस किए गए, वे सतह से 14 किमी की गहराई पर आए और पड़ोसी बांग्लादेश में भी महसूस किए गए।
गुवाहाटी में आपदा प्रबंधन अधिकारियों के अनुसार, अभी तक किसी के हताहत होने या संपत्तियों और अन्य संपत्तियों के नुकसान की कोई खबर नहीं है।
पूर्वोत्तर मेघालय के गोलपाड़ा और गारो हिल्स जिलों में लोग दहशत में अपने घरों से बाहर निकल आए।
पर्वतीय पूर्वोत्तर राज्यों, विशेष रूप से असम, मिजोरम और मणिपुर में लगातार भूकंप ने अधिकारियों को चिंतित कर दिया है।
28 अप्रैल को असम और उससे सटे पूर्वोत्तर राज्यों और भूटान के कई जिलों में 6.4 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया था, जिससे कई इमारतों, सड़कों और अन्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचा था।
भूकंपविज्ञानी पर्वतीय पूर्वोत्तर क्षेत्र को दुनिया का छठा सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्र मानते हैं। 1950 में, रिक्टर पैमाने पर 8.7 तीव्रता के भूकंप ने शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र नदी के मार्ग को बदल दिया था, जो गुवाहाटी शहर से होकर गुजरती है। (आईएएनएस)
कोच्चि, 7 जुलाई | केरल सरकार ने बुधवार को उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के समक्ष एक अपील दायर कर इस साल अप्रैल में सिंगल पीठ के आदेश को रद्द करने की मांग की, जिसमें राज्य अपराध शाखा द्वारा प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था। सरकार का तर्क था कि सिंगल पीठ के लिए ऐसा करना सही नहीं था, क्योंकि यह कानून के खिलाफ था।
अपराध शाखा ने केरल के सोने की तस्करी मामले की जांच कर रहे ईडी अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी कि मामले में मुख्य आरोपी स्वप्ना सुरेश को झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया गया था और मामले में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को फंसाया गया था।
प्राथमिकी क्राइम ब्रांच टीम की एक रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई थी, जिन्होंने एक ऑडियो क्लिप के लीक होने की जांच की थी, जो कथित तौर पर स्वप्ना सुरेश की थी।
प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, ईडी ने केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की और सिंगल पीठ ने भी ऐसा ही किया।
अदालत ने हालांकि अपराध शाखा को मामले से संबंधित सभी दस्तावेज निचली अदालत को सौंपने का निर्देश दिया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 जुलाई | कांग्रेस ने कैबिनेट फेरबदल को निरर्थक बताते हुए आरोप लगाया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) देश पर ठीक से शासन करने में विफल रही है और इसके लिए उसे अपने विजन में फेरबदल की जरूरत है। एक बयान में, कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने कहा, '' कैबिनेट में फेरबदल व्यर्थ है, क्योंकि जब अर्थव्यवस्था, रोजगार, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, राष्ट्रीय सुरक्षा की बात आती है तो भाजपा सरकार पूरी तरह से असफल है। भाजपा सरकार को पोर्टफोलियो फेरबदल के बजाय विजन, शासन को रीसेट करने की आवश्यकता है।''
उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में 2022 के चुनाव से पहले मोदी 2.0 का पहला बड़ा फेरबदल बुधवार शाम को होने वाला है।
फेरबदल में बिहार का दबदबा रहने की संभावना है, क्योंकि जनता दल यूनाइटेड ने वापसी की है।
प्रमुख नामों में ज्योतिरादित्य सिंधिया, सबार्नंद सोनोवाल, नारायण राणे शामिल हैं, जो केंद्रीय मंत्रिमंडल के बड़े पैमाने पर फेरबदल का हिस्सा हो सकते हैं। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 7 जुलाई | श्रीनगर शहर के कोकर बाजार बाजार में एक पुरानी जर्जर इमारत के बाहर लटका एक पुराना साइन बोर्ड एक प्रसिद्ध कश्मीरी परिवार और एक प्यार करने वाले पिता की यादें ताजा कर गया है, जिन्हें अपनी बेटियों पर गर्व था। 'जावेद शेख और बेटियां, कोकर बाजार, मैसूमा, श्रीनगर'। यह साइनबोर्ड हाल ही में वायरल हुआ है क्योंकि यह साबित करता है कि कम से कम 51 साल पहले कश्मीर में लैंगिक पूर्वाग्रह की उलटी गिनती शुरू हो गई है।
जावेद शेख कश्मीर के सबसे सम्मानित और प्रसिद्ध व्यापारियों में से एक शेख मोहम्मद अमीन के बेटे थे।
परिवार का कश्मीर में लकड़ी का साम्राज्य था और जावेद इसका एकमात्र मालिक थे। परिवार के जम्मू शहर और श्रीनगर में आलीशान घर थे।
परिवार की संपत्ति की एक झलक उनके जम्मू घर में इतालवी संगमरमर के भव्य उपयोग में निहित है, जिसे स्वतंत्रता से बहुत पहले बनाया गया था।
जावेद शेख की शादी 1969 में दिलशाद बेगम शेख से हुई थी। वह बॉलीवुड अभिनेता फिरोज खान की सबसे छोटी बहन हैं। उनके अन्य दो भाई, अभिनेता/निमार्ता, संजय खान और अकबर खान हैं।
दिलशाद बेगम कश्मीर और दिल्ली में एक जानी मानी सोशलाइट हैं। उसने 'चुना हुआ कुछ' नाम से अपनी खुद की कपड़ों की लाइन शुरू की।
फिरोज खान के बेटे फरदीन खान के अनुसार, उन्होंने नाम क्यों चुना, इसका कारण यह है कि वह इस बारे में बहुत चयनात्मक है कि वह अपने कपड़े किसको बेचती है।
1980 के दशक के मध्य में जावेद की मृत्यु हो गई। दंपति की तीन बेटियां हैं, शाहला, सबा और शेबा।
ग्रीष्मकाल में शहाला अपनी मां के साथ श्रीनगर के राजबाग के घर में रहती है और दोनों सर्दियों में दिल्ली और मुंबई चली जाती हैं।
शहला मशहूर फर्नीचर कंपनी 'वुडफोर्ट' की मालकिन हैं। वह एक इंटीरियर डेकोरेटर भी है और उच्च गुणवत्ता वाले अखरोट के फर्नीचर का काम करती है।
सबा 'इलुमिनाती' नाम की एक मोमबत्ती कंपनी की उद्यमी हैं, जबकि शीबा एक गृहिणी और दो बच्चों की मां हैं। (आईएएनएस)
लखनऊ, 7 जुलाई | एक मुस्लिम महिला ने अपने पति पर लव जिहाद अभियान चलाने, अवैध हथियारों का व्यापार करने, विदेशी नागरिकों को पनाह देने और दहेज के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है। मंगलवार को यहां इंदिरा नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई गई और महिला ने अपनी सास को सह आरोपी बताया है।
महिला ने अपनी शिकायत में बताया है कि उसका पति अशरफ कर्नाटक के बेंगलुरू में एक दरगाह खानकाह-ए-अशरफिया हुसैनिया कुतुबे का प्रमुख है।
अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (एडीसीपी), उत्तर, प्राची सिंह ने कहा कि इस संबंध में गैरकानूनी धार्मिक रूपांतरण अध्यादेश, 2020 के तहत निषेध और जबरन वसूली और दहेज उत्पीड़न के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई है।
प्राथमिकी में महिला ने दावा किया कि उसने 2019 में अशरफ से शादी की और उसके साथ बेंगलुरू चली गई।
शादी के तुरंत बाद, उसने गैर-मुस्लिम महिलाओं से दोस्ती करने और उन्हें घर लाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। महिला ने कहा कि उसने शुरू में अपने पति के फरमान का पालन किया, क्योंकि उसे अपने पति को उससे दूर हो जाने का डर था।
महिला ने बताया, बाद में, जब मैं गर्भवती हुई तो अशरफ ने मुझे लिंग निर्धारण परीक्षण कराने के लिए मजबूर किया। जब अशरफ और उसकी मां को पता चला कि अजन्मा बच्चा एक लड़की है, तो उन्होंने मुझे पीटा। उन्होंने मेरे भाई को फोन किया और मेरी जान बख्शने के लिए 25 लाख रुपये की मांग की। मेरे भाई ने उन्हें 7.5 लाख रुपये का भुगतान किया।
उसने दावा किया कि अशरफ और उसकी मां लव जिहाद अभियान चला रहे थे और अशरफ के कहने पर विदेशी मूल के कुछ कट्टरपंथियों ने भी उसे प्रताड़ित किया।
उसने उन पर अपने लव जिहाद अभियान को अंजाम देने के लिए तीर्थयात्रियों को लाने का भी आरोप लगाया।
महिला ने अपनी शिकायत में कहा, अशरफ ने तय समय में एक हिंदू लड़की से शादी कर ली और उसका नाम बदलकर मदीहा कर दिया। बाद में उसे उस दरगाह में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उसे हथियारों का प्रशिक्षण दिया गया।
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि अशरफ और उसकी मां ने उसे यह कहते हुए घर से बाहर कर दिया कि वे उसे तभी लौटने देंगे, जब वह उन्हें 17.5 लाख रुपये का भुगतान करेगी और चार गैर-मुस्लिम लड़कियों को धर्म परिवर्तन के लिए लाएगी।
महिला ने बताया, इसके बाद मैं लखनऊ वापस आई और अपनी बेटी को जन्म दिया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 जुलाई | नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) ने ओयो होटल्स एंड होम्स प्राइवेट लिमिटेड (ओएचएचपीएल) के खिलाफ दिवाला प्रकिया पर रोक लगा दी है, जो ओयो की सहायक कंपनी है। यह आदेश कंपनी के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को प्रभावी ढंग से समाप्त करता है।
ट्रिब्यूनल के आदेश ने एफएचआरएआई सहित बाहरी पक्षों के हस्तक्षेप को अस्वीकार कर दिया है।
ओयो ने अपने एक बयान में कहा है कि यह किसी भी लंबित दावे को खत्म करने के लिए अपने होटल पार्टनर्स के साथ मिलकर काम करना जारी रखेगा।
भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में ओयो के संचालन की देखरेख करने वाले सीईओ रोहित कपूर ने कहा, "हम एनसीएलएटी के फैसले का स्वागत करते हैं। आखिरकार इस मामले पर विराम लग गया है। हम पहले ही मूल दावेदार के साथ समझौता कर चुके थे, लेकिन बाद में निहित स्वार्थों वाले हस्तक्षेप करने वालों ने मामले को बंद करने में देरी कर दी थी।"
उन्होंने आगे कहा कि कंपनी अपने भागीदारों के लिए सबसे भरोसेमंद ब्रांड बनने और सभी मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है।
ओयो के खेतान एंड कंपनी के काउंसल ने कहा, "यह एक सीधा मामला था जहां शामिल दो पक्षों ने मामले को सुलझा लिया था और किसी भी हस्तक्षेप के लिए कोई जगह नहीं थी, जिसे अब ट्रिब्यूनल ने भी बरकरार रखा है।"
ओयो ने पहले ही गुरुग्राम के एक होटल व्यवसायी राकेश यादव के साथ 16 लाख रुपये का समझौता कर लिया था, जिन्होंने कंपनी के खिलाफ एनसीएलटी अहमदाबाद का रुख किया था। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र ने भारत की एक जेल में बंद सामाजिक कार्यकर्ता 84 वर्षीय स्टैन स्वामी की मृत्यु पर दुख जताया है और कहा है कि इस घटना से वह व्याकुल है.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट
भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए पादरी स्टैन स्वामी का सोमवार को हिरासत में निधन हो गया. 84 वर्ष के स्वामी भारत की जेल में बंद सबसे उम्रदराज व्यक्ति थे और अपनी जमानत याचिका पर सुनवाई का इंतजार कर रहे थे. एनआईए पर उन्हें अनुचित रूप से गिरफ्तार करने और जेल प्रशासन पर उनके स्वास्थ्य को नजरअंदाज करने के आरोप लगते आए हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त की प्रवक्ता लिज थ्रोसेल ने एक बयान जारी कहा, "एक मानवाधिकार कार्यकर्ता और पादरी स्टैन स्वामी की मुंबई में कल हुई मौत पर हम दुखी और व्याकुल हैं.”
थ्रोसेल ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार आयुक्त मिशेल बैचलेट और संयुक्त राष्ट्र के अन्य निष्पक्ष विशेषज्ञ फादर स्टैन और इससे संबंधित मामलों में गिरफ्तार 15 अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई का आग्रह भारत सरकार से बार-बार करते रहे हैं.
उन्होंने कहा, "हाई कमिश्नर ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस्तेमाल को लेकर भी चिंता जाहिर कर चुकी हैं.” फादर स्टैन को भारत की जांच एजेंसी एनआईए ने अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया था और उन पर यूएपीए लगाया गया था.
रांची के नामकुम स्थित अपने घर से गिरफ्तार किए जाने के वक्त भी फादर स्टैन पार्किंसंस और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे. उन्हें मुंबई के तलोजा केंद्रीय जेल में रखा गया जहां उन्होंने आठ महीने हिरासत में बिताए. इस दौरान उन्होंने और उनके समर्थकों ने कई बार उनके साथ अमानवीय किए जाने व्यवहार के आरोप लगाए.
अमानवीय व्यवहार के आरोप
गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों बाद स्वामी ने विशेष एनआईए अदालत से आग्रह किया था कि उन्हें पानी पीने के लिए एक सिपर और स्ट्रॉ दिलवा दिया जाए क्योंकि वह पार्किंसंस रोग से पीड़ित थे और गिलास उठाकर पानी नहीं पी पा रहे थे. इस आग्रह को मानने में अधिकारियों ने करीब दो महीने लगा दिए.
फादर स्टैन की ओर से दो बार जमानत की याचिका दर्ज की गई, जिन्हें खारिज कर दिया गया. पहली बार तो विशेष एनआईए अदालत ने उनकी जमानत की याचिका को खारिज करने के लिए भी तीन महीने का समय लिया. नवंबर 2020 में दी गई जमानत याचिका मार्च 2021 में खारिज की गई. इस दौरान उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा.
मई में उन्होंने एक बार फिर जमानत के लिए याचिका दी, और अदालत से कहा कि उनकी हालत इतनी खराब है कि उन्हें जेल से जल्द निकाला ना गया तो वह मर भी सकते हैं. उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई में अदालत को बताया कि जब उन्हें पहली बार जेल लाया गया था, तब कम से कम उनका शरीर मूल रूप से काम कर रहा था, लेकिन जेल में रहते हुए उनकी सुनने की शक्ति और कम हो गई है और वह मूलभूत काम करने में भी लाचार हैं.
मई 2021 में जेल में ही स्वामी कोविड-19 से संक्रमित हो गए, जिसके बाद 28 मई को बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया था. 4 जुलाई को अस्पताल में ही उनकी हालत और खराब हो गई और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था. 7 जुलाई को उनकी जमानत याचिका पर दोबारा सुनवाई होनी थी, लेकिन 5 जुलाई को ही उनका निधन हो गया.
सरकार की आलोचना
स्वामी के साथ कथित दुर्व्यवहार को लेकर भारत सरकार की आलोचना हो रही है. मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिवेदक मैरी लॉलर और यूएन कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजस फ्रीडम की अध्यक्ष नदीन माएन्जा ने कहा कि स्वामी को फर्जी आरोपों के तहत गिरफ्तार करके हिरासत में रखा गया.
यूरोपीय संघ की विशेष मानवाधिकार प्रतिनिधि एमॉन गिलमर ने भी स्वामी की मौत पर शोक जताया है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "भारतः मैं यह सुनकर बहुत दुखी हूं कि फादर स्टैन नहीं रहे. आदिवासियों के अधिकारों के रक्षक. वह नौ महीने से हिरासत में थे. यूरोपीय संघ बार-बार यह मामला उठाता रहा था.”
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार आयुक्त की प्रवक्त लिज थॉर्ले ने कहा, "हम एक बार फिर जोर देकर भारत सरकार से मांग करते हैं कि किसी को भी अभिव्यक्ति की आजादी और शांतिपूर्ण तरीके से जमा होने के मूलभूत अधिकारों के इस्तेमाल के लिए हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए.”
भारत में भी कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने स्वामी की मौत पर शोक और आक्रोश जारी किया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा कि स्टैन स्वामी न्याय और मानवीय व्यवहार के हकदार थे.
भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने इस आलोचना का जवाब देते हुए कहा है कि स्वामी को कानूनी प्रक्रिया के तहत ही हिरासत में रखा गया था और ‘उनके खिलाफ आरोपों की प्रकृति' के कारण ही उनकी जमानत याचिकाएं खारिज हुईं.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि "अधिकारी कानूनों के उल्लंघन के खिलाफ ही कार्रवाई करते हैं और किसी के कानून के तहत अपने अधिकारों के इस्तेमाल के लिए नहीं. और अधिकारियों की कार्रवाई पूरी तरह से कानून-सम्मत होती है.”
मंत्रालय ने कहा, "भारत एक लोकतांत्रिक और सैंवाधानिक देश है, जिसमें एक निष्पक्ष न्यायपालिका है, राज्यों और राष्ट्रीय स्तर की कई मानवाधिकार संस्थाएं हैं जो उल्लंघनों पर नजर रखती हैं, निष्पक्ष मीडिया है और एक सक्रिय व मुखरित नागरिक समाज भी है. भारत अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.” (dw.com)
सात सदस्यों वाले परिवार का पेट पालने वाली आशा देवी को अब यह भी याद नहीं कि उन्हें कितनी बार खाना छोड़ना पड़ा. कोरोना गांवों में कर्ज और ब्याज की पुरानी समस्या को और बढ़ा रहा है.
35 साल की आशा देवी को 20 हजार रुपये के कर्ज लिए अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी. कर्ज लिए हुए छह महीने बीत गए हैं और उन्होंने दूध खरीदना बंद कर दिया है, क्योंकि घर में पैसे नहीं है. खाना बनाने के लिए वह बहुत कम तेल का इस्तेमाल करती हैं और दस दिन में एक ही बार दाल खरीद पाती हैं.
निर्माण कार्य करने वाले उनके पति के पास काम नहीं और वह कर्ज में और डूबती जा रही हैं. उत्तर प्रदेश के एक गांव से आशा समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहती हैं, "मैं कभी भूखे पेट सो जाती हूं. पिछले हफ्ते मैं दो बार भूखे पेट सोई, अब मुझे याद नहीं है."
आशा अपनी कहानी बताते हुए रो पड़ती हैं. वह यूपी के एक गांव में कच्चे मकान में रहती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने गरीबों के लिए मुफ्त में राशन देने का ऐलान किया है. आशा कहती हैं कि राशन तो मिलता है लेकिन उतना नहीं होता है जो परिवार के लिए पर्याप्त हो. पिछले साल कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाया लॉकडाउन शहरों में काम करने वाले लाखों लोगों को बेरोजगार कर गया. वे अपने गांवों में वापस लौटने को मजबूर हुए और कर्ज के चक्कर में फंस गए.
गांव में काम नहीं, कर्ज लेने को मजबूर
भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के आठ गांवों के समूह में 75 परिवारों के साथ साक्षात्कार से पता चलता है कि घरेलू आय में औसतन 75 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई और लगभग दो तिहाई परिवारों ने कर्ज लिया है.
आशा का पति पंजाब में निर्माण मजदूर था लेकिन काम नहीं होने की वजह से उसे गांव लौटना पड़ा. अब वह गांव में काम की तलाश में जुटा है. इसी गांव के अन्य पुरुष भी बेरोजगार हो गए हैं और हर सुबह इस उम्मीद के साथ ईंट भट्टे के पास जमा होते हैं कि उन्हें काम मिलेगा.
ग्रामीण भारत में पैसों का संकट
देहात इलाकों में बड़ा कर्ज और कम आय आर्थिक सुधार को रोकेगी, जिसे सरकार पैदा करने की कोशिश कर रही है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे निजी बचत और निवेश भी प्रभावित होगा. अर्थशास्त्री और बेंगलुरु स्थित बीएएसई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति के मुताबिक, "इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा और यह रिकवरी को लंबा खींचेगा. निजी खपत और निवेश दोनों को नुकसान होगा. लोगों के हाथों में पैसे देने के तरीकों पर ध्यान देना होगा."
55 साल के कोमल प्रसाद कहते हैं, "गांव के करीब-करीब सभी लोग कर्ज में हैं...बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है." प्रसाद के छोटे से गौरिया गांव की आबादी करीब दो हजार है. 35 साल की जुग्गी लाल कहती हैं उन्हें अपने अपाहिज पति के लिए दवा खरीदने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. उनके पास काम नहीं है और उन्होंने 60 हजार रुपये का कर्ज ले रखा है.
जुग्गी लाल कहती हैं, "हर सुबह मैं यही सोचती हूं कि क्या काम मिलेगा, मेरा दिन कैसे पार होगा?" (dw.com)
एए/सीके (रॉयटर्स)
पिछले कई हफ्तों से केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल किए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है. अब आठ राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति किए जाने के बाद माना जा रहा है कि कैबिनेट में फेरबदल जल्द ही हो सकती है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
अगर ऐसा होता है तो ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में मंत्रिमंडल में फेरबदल का पहला मौका होगा. केंद्रीय मंत्रिमंडल में इस समय प्रधानमंत्री के अलावा 21 मंत्री, नौ स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 23 राज्य मंत्री हैं. संविधान के मुताबिक केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या लोक सभा के कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत, यानी 81, से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. यानी मोदी अगर चाहें तो मंत्रिमंडल में 27 और सदस्यों को शामिल कर सकते हैं.
हालांकि माना जा रहा है कि इस बार इस पूरी कवायद का उद्देश्य कई मंत्रियों के प्रभार को कम करना और कुछ मंत्रियों को हटा कर कुछ नए चेहरों को लाना है. प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय कैबिनेट में कम से कम 10 ऐसे मंत्री हैं, जिनके पास एक से ज्यादा मंत्रालयों का प्रभार है.
कई कार्यभार
जैसे नरेंद्र सिंह तोमर कृषि के अलावा ग्रामीण विकास, पंचायती राज और खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय भी देख रहे हैं; रवि शंकर प्रसाद कानून, संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालयों को देख रहे हैं; प्रकाश जावड़ेकर पर्यावरण, भारी उद्योग और सूचना और प्रसारण मंत्रालयों को देख रहे हैं; पियूष गोयल रेल, वाणिज्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों को देख रहे हैं; प्रल्हाद जोशी संसदीय मामले, कोयला और खनन मंत्रालयों को देख रहे हैं.
संभव है कि इनमें से कई मंत्रियों से उनके अतिरिक्त कार्यभार को लेकर दूसरों को दे दिया जाए. इसके अलावा कई राज्यों में चुनावी समीकरण भी बैठाने हैं और पहले मिले चुनावी लाभ का कुछ लोगों को इनाम भी देना है. छह जुलाई की ही सुबह थावर चंद गेहलोत को केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री के पद से हटा कर कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया. इससे मंत्रिमंडल में एक पद तुरंत खाली हो गया.
मदद का इनाम
कर्नाटक के अलावा मिजोरम, गोवा, हरियाणा, त्रिपुरा, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश के राज्यपालों को भी बदल दिया गया. माना जा रहा है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान अलग अलग राज्यों में बीजेपी को चुनाव जीतने या सरकार बनाने में मदद करने वालों को भी मंत्रिपद देने की योजना है. इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम को लेकर सबसे ज्यादा अटकलें लग रही हैं.
सिंधिया मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़ कर कर भाजपा में शामिल हो गए थे, जिसके बाद मध्य प्रदेश में उनके खेमे के कई विधायक भी बीजेपी में आ गए. राज्य में कमल नाथ के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार गिर गई और एक बार फिर बीजेपी की सरकार बन गई. सिंधिया 2012 से 2014 तक यूपीए सरकार में बिजली मंत्रालय का स्वतंत्र कार्यभार संभाल रहे थे. बिहार में बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार चला रही जेडीयू भी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की उम्मीद लगाए बैठी है.
इसी साल असम में हुए चुनावों के बाद हेमंता बिस्वा शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिए जाने से पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल केंद्र सरकार में पद मिलने के इन्तजार में बताए जा रहे हैं. इसके अलावा फरवरी-मार्च 2022 में चुनावों का सामना करने वाले उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से भी कुछ नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है. महाराष्ट्र से पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को भी मंत्री बनाने की अटकलें लग रही हैं. (dw.com)
कोलकाता, 6 जुलाई : तृणमूल कांग्रेस नेता मुकुल रॉय की पत्नी कृष्णा रॉय का मंगलवार को निधन हो गया. कृष्णा पोस्ट कोविड परेशानियों से जूझ रही थीं. कृष्णा रॉय की हालत बिगड़ने के बाद कुछ दिनों पहले चेन्नई के एक हास्पिटल ले जाया गया था. खबरों के मुताबिक, चेन्नई के एक प्राइवेट हास्पिटल में मंगलवार को हार्ट अटैक आने के बाद कृष्णा का निधन हो गया. उनके पार्थिव शरीर को बुधवार को चेन्नई से कोलकाता लाया जाएगा. गौरतलब है कि मुकुल रॉय टीएमसी के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं, करीब चार साल बीजेपी में रहने के बाद वो पार्टी में वापस लौट आए हैं. मुकुल रॉय ने इस साल बीजेपी के टिकट पर कृष्णानगर उत्तर विधानसभा सीट से चुनाव जीता था.
फ्राइड पोटैटो यानी भुना हुआ आलू। असली नाम पोम फ्रिट्स या फ्रेंच फ्राइस। सिर्फ फ्रांस और बेल्जियन लोगों को ही यह पसंद नहीं है, फ्राइड पोटैटो के दीवाने पूरी दुनिया में हैं, लेकिन दोनों में विवाद है कि इसकी शुरुआत कहां हुई।
आलू के टुकड़ों को गर्म तेल में छान कर खाने की परंपरा भले ही भारत में भी रही हो, लेकिन दुनिया में लोकप्रिय यह भुज्जी नहीं, बल्कि फ्रेंच भाषा का शब्द पोम फ्रिट्स है। फ्रांस और बेल्जियम के लोग इस विवाद का हल नहीं ढूंढ पाए हैं कि उनमें से किसने आलू के टुकड़ों को तेल में तल कर बेचने की शुरुआत की। समाजशास्त्री भी इसकी खोज नहीं कर पाए हैं।
बेल्जियम में पोम फ्रिट्स वहां राष्ट्रीय आहार माना जाता है। बेल्जियम में आलू के टुकड़ों को पहले 140 डिग्री पर तलकर बाहर निकाल कर रख दिया जाता है। उसके बाद परोसने से पहले उसे 160 डिग्री पर फिर से तला जाता है। लक्ष्य होता है उसे बाहर से क्रिस्पी और अंदर से मुलायम रखना। फ्रेंच लोग अपने पोम फ्रिट्स को कांटों के चम्मच से खाते हैं जबकि बेल्जियम के लोग उसे अंगुलियों से एक एक उठाकर सॉस में लगाकर खाना पसंद करते हैं, वह भी दिन के किसी भी समय।
नई दिल्ली, 6 जुलाई : दक्षिणी दिल्ली के सैनिक फार्म इलाके में फार्महाउस में रविवार को पंजाब पुलिस की छापेमारी में मिलावटी हेरोइन बनाने की फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया गया था. यह फार्महाउस अफगानिस्तान से इलाज के लिए दिल्ली आने वाले मरीजों के लिए किराए पर लिया गया था. दिल्ली पुलिस ने फार्महाउस के मालिक प्रवेश कुमार उर्फ बॉबी के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है. आरोप है कि इसने स्थानीय पुलिस को विदेशियों को किरायेदार के रूप में रखने की जानकारी नहीं दी और उनका वेरिफिकेशन भी नहीं कराया. प्रवेश कुमार के खिलाफ नेब सराय पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया गया था, अभी उसकी गिरफ्तारी नहीं हुई है.
नई दिल्ली, 5 जुलाई | सड़क हादसों को कम करने के लिए अब सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य कर दिया है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सड़क निर्माण के सभी चरणों में दुर्घटनाओं को कम करने के लिए सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य कर दिया गया है। केंद्रीय मंत्री गडकरी ने वाहन टक्कर सुरक्षा पर आयोजित वर्चुअल परिसंवाद का उद्घाटन करते हुए बताया कि भारत और अन्य विकासशील देशों में सड़क दुर्घटनाओं की दर बहुत अधिक है और हर साल लगभग 1.5 लाख लोग मारे जाते हैं, जो कि कोविड मौतों से भी अधिक है। उन्होंने आगे कहा कि उनका ²ष्टिकोण 2030 तक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में 50 प्रतिशत की कमी और दुर्घटनाओं व मौतों को शून्य करना है।
गडकरी ने कहा कि लगभग 60 प्रतिशत मौतें दुपहिया सवारों की होती हैं। उन्होंने कहा कि मोटरसाइकिल यातायात की सुरक्षा इस समय की मांग है। गडकरी ने आगे बताया कि वैश्विक परि²श्य में वाहन इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी काफी हद तक परिपक्व हो गई है और सभी सड़क इंजीनियरिंग उपायों से कम से कम दुर्घटना की घटना के दौरान घातक वाहन टक्कर की आशंका में सुधार होगा। इसके अलावा मंत्री ने वाहन चालकों के प्रशिक्षण व उन्नत प्रशिक्षण संस्थानों और केंद्रों की स्थापना के महत्व पर जोर दिया।
गडकरी ने कहा कि अच्छी सड़कें बनाना और सड़क के बुनियादी ढांचे में सुधार करना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने आगे कहा कि जागरूकता पैदा करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों के बीच सहयोग, संचार और समन्वय जरूरी है। (आईएएनएस)
भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किए गए फादर स्टैन स्वामी का हिरासत में निधन हो गया. वो 84 वर्ष के थे. एनआईए पर उन्हें अनुचित रूप से गिरफ्तार करने और जेल प्रशासन पर उनके स्वास्थ्य को नजरअंदाज करने के आरोप लगते आए हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
अक्टूबर 2020 को कोरोना वायरस महामारी के बीच जब स्वामी को एनआईए ने रांची के नामकुम स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया था, वो उस समय में भी पार्किंसंस और अन्य स्वास्थ संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे. इसके बावजूद 83 वर्षीय स्वामी को मुंबई के तलोजा केंद्रीय कारागार में बंद कर दिया गया. जो आठ महीने उन्होंने हिरासत में बिताए, इस दौरान उन्होंने और उनके प्रतिनिधियों ने कई बार उनके साथ अमानवीय किए जाने व्यवहार के आरोप लगाए.
जेल जाने के कुछ ही दिनों बाद स्वामी ने विशेष एनआईए अदालत से गुजारिश की थी कि उन्हें पानी पीने के लिए एक सिप्पर और स्ट्रॉ दिलवा दिया दिया जाए क्योंकि पार्किंसंस बीमारी से पीड़ित होने की वजह से वो पानी का गिलास उठा नहीं पाते हैं. लेकिन उन्हें एक सिप्पर और स्ट्रॉ जैसी छोटी से मानवीय सहायता भी करीब 50 दिनों बाद दी गई. उन्होंने जमानत के लिए एक नहीं दो बार अदालत में याचिकाएं डालीं, लेकिन वो खारिज कर दी गईं.
जेल में स्वास्थ्य में गिरावट
पहली बार तो विशेष एनआईए अदालत ने उनकी जमानत की याचिका को खारिज करने के लिए भी तीन महीने का समय लिया. उन्होंने नवंबर 2020 में याचिका डाली थी जो मार्च 2021 में खारिज कर दी गई. मई में उन्होंने एक बार फिर जमानत याचिका डाली, और अदालत से कहा कि उनकी हालत बहुत खराब है और अगर उन्हें जेल से जल्द निकाला ना गया तो वो मर भी सकते हैं.
उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत को बताया कि जब उन्हें पहली बार जेल लाया गया था, तब कम से कम उनका शरीर मूल रूप से काम कर रहा था, लेकिन जेल में रहते रहते उनकी सुनने की शक्ति और कम हो गई और नहाना तो छोड़िए, वो खुद चलने और खाना खाना के भी काबिल नहीं रहे हैं. मई 2021 में जेल में ही वो कोविड-19 से संक्रमित हो गए, जिसके बाद 28 मई को बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने उन्हें जेल से निकाल कर हौली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया.
चार जून को अस्पताल में ही उनकी हालात और खराब हो गई और उन्हें वेंटीलेटर पर डाल दिया गया. उसी दिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उनकी अवस्था को संज्ञान में लेते हुए महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया और आदेश दिया कि उनके इलाज का हर संभव इंतजाम किया जाए. सात जून को जमानत की उनके याचिका पर दोबारा सुनवाई होनी थी, लेकिन उनका उसके पहले ही निधन हो गया.
आरोपों पर संदेह
एनआईए का आरोप है कि स्वामी प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य थे और 2018 में पुणे के पास भीमा-कोरेगांव में जातिगत हिंसा भड़काने की साजिश में शामिल थे. स्वामी ने इन आरोपों से इंकार किया था और कहा था कि उन्हें आदिवासियों और हाशिए पर सिमटे अन्य समुदायों की मदद करने और उनका नुक्सान करने वाली सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए निशाना बनाया जा रहा है.
अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार होने से दो दिन पहले ही उन्होंने एक वीडियो संदेश में अपनी गिरफ्तारी की आशंका जाहिर की थी. उन्होंने बताया था की एनआईए कम से कम दो बार कई घंटों तक उनसे पूछताछ कर चुकी है और उनके घर और सामान की तलाशी ले चुकी है. उन्होंने यह भी बताया था कि उनके कंप्यूटर से अभियोगात्मक सामग्री मिलने का उनका दावा झूठा है और यह सामग्री उनके कंप्यूटर से छेड़छाड़ करके उसके अंदर डाली गई है.
स्वामी के अलावा इस मामले में कम से कम 15 और मानवाधिकार कार्यकर्ता हिरासत में हैं. फरवरी 2021 में अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग ने दावा किया कि इनमें से एक आरोपी रोना विल्सन की गिरफ्तारी के करीब 22 महीनों पहले उनके कंप्यूटर में एक मैलवेयर भेज कर उसे हैक कर लिया गया था और फिर धीरे धीरे उनके कंप्यूटर में कम से कम 10 दस्तावेज "प्लांट" किए गए यानी उनकी जानकारी के बिना उनके कंप्यूटर में छिपा दिए गए. (dw.com)
चार लाख से ज्यादा लोगों की मौत के बाद भी भारत सरकार यह तय नहीं कर सकी है कि कोविड-19 की स्टैंडर्ड आरटीपीसीआर रिपोर्ट कैसी होनी चाहिए. फर्जी रिपोर्टें दिखा रही है कि प्रचार की दीवानी सरकारें कितनी लापरवाह हैं.
डॉयचे वैले पर ओंकार सिंह जनौटी की रिपोर्ट-
जुगाड़ लगाइए, अपनी डिटेल्स व्हाट्सऐप कीजिए और कुछ ही देर में आपको फर्जी आरटीपीसीआर रिपोर्ट मिल जाएगी. अगर आप तकनीकी रूप से स्मार्ट हैं तो लैपटॉप पर फोटोशॉप या एडोब जैसे सॉफ्टवेयरों से भी फेक रिपोर्ट खुद बना सकते हैं. फेक रिपोर्ट इंटरनेट से डाउनलोड भी की जा सकती है.
भारत कई राज्यों में फर्जी आरटीपीसीआर रिपोर्टें धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही हैं. जिन राज्यों की सीमा पर कोरोना संबंधी चेकिंग हो रही है, वहां ये रिपोर्टें दिखाई जा रही हैं. चेकिंग करने वाले पुलिसकर्मियों और सरकारी कर्मचारियों के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे वह इन रिपोर्टों की असलियत जान सकें. हर दिन हजारों लोगों से सवाल जबाव करना मुमकिन नहीं.
यही कारण है कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में ही फर्जी आरटीपीसीआर रिपोर्टों के डेढ़ लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. कमोबेश ऐसी ही स्थिति दूसरे राज्यों में भी है. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड में ऐसी लैबें भी सामने आ चुकी हैं जो बड़ी संख्या में फर्जी रिपोर्टें बेच चुकी हैं. टेस्ट के बाद मिली असली आरटीपीसीआर रिपोर्ट और मंगवाई गई फर्जी रिपोर्ट में कोई अंतर नजर नहीं आता है. इसकी बड़ी वजह है सरकार की नाकामी. महामारी के डेढ़ साल बाद भी सरकार और नौकरशाह तय नहीं कर पाए हैं कि आरटीपीसीआर रिपोर्ट का फॉरमेट कैसा होना चाहिए.
एयरपोर्टों पर बीते एक डेढ़ महीने से क्यूआर कोड वाले आरटीपीसीआर रिपोर्ट्स ही स्वीकार किए जा रहे हैं. लेकिन इस बात का पता एयरपोर्ट पर जाकर ही चलता है. अगर आपके पास ऐसी रिपोर्ट नहीं है तो एयरपोर्ट पर ही फौरन एंटीजन टेस्ट करवाइए या फ्लाइट मिस कीजिए. क्यूआर कोड वाली स्टैंडर्ड रिपोर्ट और स्मार्टफोन पर उस कोड की स्कैनिंग से इस फर्जीवाड़े पर काफी हद तक लगाम लग सकती है. इतनी सी बात समझने के लिए न जाने किस पल और किस नारे का इंतजार हो रहा है.
फर्जी आरटीपीसीआर रिपोर्टों की बाढ़ के बीच अब कई राज्यों में कुछ लैबों पर बैन लगा दिया गया है. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में कुछ गिरफ्तारियां भी हो रही हैं. राज्यों के स्वास्थ्य सचिव परेशान हो रहे हैं लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से कोई ठोस कदम अब भी नहीं उठाया जा रहा है.
हाल ही दिल्ली की एक अदालत ने फर्जी रिपोर्ट बनाने के एक आरोपी को 25 हजार रुपये की मुचलके पर जमानत भी दे दी. इससे क्या संदेश जाता है यह बताने की जरूरत नहीं. एक तरफ प्रचार और दूसरी तरफ भ्रष्टाचार, भारत कोरोना से इसी तरह लड़ रहा है.(dw.com)