रायपुर
![भ्रूण में फ्लूइड एकत्रित होने पर उचित चिकित्सकीय प्रबंधन-उपचार की जरूरत भ्रूण में फ्लूइड एकत्रित होने पर उचित चिकित्सकीय प्रबंधन-उपचार की जरूरत](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1636462214-02.gif)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 9 नवम्बर। गर्भस्थ शिशु के पेट में फ्लूइड एकत्रित होने से उत्पन्न होने वाली चिकित्सकीय चुनौतियों का समाधान साझा करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के तत्वावधान में सीएमई आयोजित की गई। इसमें विभिन्न चिकित्सा विभागों की सहायता से समय पर डायग्नोसिस करने और सही प्रबंधन और उपचार पर जोर दिया गया जिससे भ्रूण की जीवनरक्षा संभव हो सके।
स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के तत्वावधान में आयोजित सीएमई में एसीएमएस, दिल्ली के प्रो. कर्नल मधुसूदन डे ने भ्रूण में एनिमिया और ह्दयघात जैसी परिस्थितियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उनका कहना था कि यदि भ्रूण में फ्लूइड एकत्रित होने यानि फीटल हाइड्राप्स के बारे में समय पर जांच कर ली जाए तो गर्भस्थ शिशु को कम खतरा हो सकता है। वर्तमान में इस बीमारी के चिकित्सकीय प्रबंध के विषय में पर्याप्त जानकारियां उपलब्ध हैं जिसका अनुप्रयोग कर चिकित्सक शिशुओं को नया जीवन प्रदान कर सकते हैं।
निदेशक प्रो. (डॉ.) नितिन एम. नागरकर का कहना था कि सीएमई के माध्यम से चिकित्सकों को फीटल हाइड्राप्स के बारे में विस्तार से समझने का मौका मिलेगा।
नवजात शिशु विभाग के डॉ. फाल्गुनी पाढ़ी का कहना था कि फीटल हाइड्राप्स के मामलों में विभिन्न चिकित्सा विभागों जिसमें स्त्री रोग, बाल रोग और नवजात रोग विभाग शामिल हैं, मिलकर रोगियों का चिकित्सकीय प्रबंधन करना आवश्यक होता है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के नवजात शिशुओं की डिलीवरी के लिए पूर्व में सभी प्रकार का प्रबंध करना आवश्यक होता है जिसमें आईसीवीएस और अनुभवी चिकित्सा टीम शामिल है।
प्रो. (डॉ.) अनिल के. गोयल, डॉ. मनोज चेल्लानी और डॉ. गुरप्रीत ने अपने अनुभव अन्य चिकित्सकों के साथ साझा किए। इस अवसर पर पैनल डिस्कशन में प्रो. ज्योति जायसवाल, डॉ. नीलज कुमार बागड़े, कर्नल डॉ. विनोद नायर, डॉ. स्वाति कुमारी ने फीटल हाइड्राप्स के सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी।