रायपुर

रेडियो, 123 साल से सब तक पहुंचा रहा सबकी बात
13-Feb-2022 5:56 PM
रेडियो, 123 साल से सब तक पहुंचा रहा सबकी बात

डिजिटल मीडिया की भीड़ में एक विश्वसनीय आवाज आकाशवाणी

आज विश्व रेडियो दिवस है। यूं तो भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने भारत में और गुल्येल्मो मार्कोनी ने इंग्लैंड से अमरीका संदेश भेजकर 1900 में रेडियो की शुरुआत कर दी थी, लेकिन इसे मनोरंजक बनाने में 24 दिसंबर 1906 का दिन यादगार रहा। जब शाम को वैज्ञानिक रेगिनॉल्ड फेसेंडेन ने अपना वायलिन बजाया और अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना। ये दुनिया में रेडियो प्रसारण की बड़ी शुरुआत थी।

संदीप सिन्हा

रायपुर, 13 फरवरी। समय बदला, समय के साथ कई चीजें बदल गईं, सिर्फ नहीं बदली तो लोगों की रेडियो सुनने की दीवानगी। अब भी कई ऐसे श्रोता हैं जो पूरी शिद्दत से रेडियो सुनते हैं। यही वजह है कि हाईटेक होते इंटरटेनमेंट की दुनिया में लगातार रेडियो श्रोताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। आलम यह है कि आज भी लोग हजारों की संख्या में पत्र भेजकर अपनी पसंद के फरमाइशी कार्यक्रम सुनते हैं।

यह हाल है आकाशवाणी सहित तमाम रेडियो चैनलों में, जो अब एफएम के नाम से जाने जाते हैं। शहर सहित गांवों में कई ऐसे रेडियो श्रोता हैं, जिनके साथ रेडियो हमराह की तरह है। कुछ ऐसे हैं जिनके पास रेडियो का बेहतरीन कलेक्शन है। दौर आज ई-मेल और एसएमएस का है, लेकिन ििचयों की अहमियत आकाशवाणी जैसी संस्था में अब भी बनी हुई है। इसमें प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों के लिए सैकड़ों चिट्ठियां आज भी आती हैं।

रेडियो की पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सरकार की उपलब्धि सहित जनकल्याणकारी योजना को बतलाने के लिए मन की बात का प्रसारण किया जाता है वहीं छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के द्वारा रमने के गोठ सहित भूपेश बघेल द्वारा लोकवाणी का प्रसारण किया जा रहा है।

‘लता’ को रेडियो से ही जाना

व्यंग्यकार रामेश्वर वैष्णव का कहना है कि रेडियो सर्वव्यापक माध्यम है, जितनी पहुंच रेडियो की है, उसकी किसी की नहीं है और सही में आम आदमी तक पहुंचने सबसे अच्छा माध्यम है। बचपन से गाने का शौक और सुनने का शौक था। सबसे बड़ी बात यह है कि लता मंगेशकर को हम सबने रेडियो से ही जाना है। रेडियो से ही लता, मोहम्मद रफी, मन्नाडे, मुकेश, महेंद्र कपुर आवाज जानते है। रेडियो से ही आवाज जानने की क्षमता डेवलप हुई है, वह रेडियो के कारण से हुआ है।

आकाशवाणी रायपुर का चौपाल कार्यक्रम पुरे छत्तीसगढ़ में सुना जाता था, और बहुत पसंद किया जाता था, चुंकि वे छत्तीसगढ़ी में होती थी, इसलिए लोग ज्यादा सझमते थे, और जुड़ाव महसूस करते थे।

विश्वसनीयता बनी हुई है

इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय के सहायक प्रध्यापक डा मंगलानंद झा कहते है कि 80  के दशक में आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित कार्यक्रम युगवाणी कार्यक्रम अत्यन्त लोकप्रिय था और उस समय मैं इसका श्रोता था। आकाशवाणी रायपुर के लोकप्रिय उदघोषक स्व.  लाल रामकुमार सिंह खैरागढ़ निवासी थे। रेडियो आज तक लोगों के बीच में विश्वनियता के साथ मंनोरजन का प्रमुख साधन है। शहरी इलाके से लेकर ग्रामीण तपके के लोग अपने काम और फुर्सत के क्षण में रेडियो का सहारा लेते है। टीवी, वीसीआर जैसे साधनों को एक स्थान से दूसरे स्थान नहीं ले जा सकते है, लेकिन रेडियो को काम करते हुए भी सुन सकते है।

रेडियो ने अपना स्तर नहीं गिराया  

शासकीय महाविद्यालय महासमुंद हिंदी अध्ययन एवं शोध केंद्र के प्राध्यापक डॉ. अनुसुइया अग्रवाल का कहना है कि रेडियो ने हमेशा इंटरटेनमेंट दिया। मसलन जो बातें आप घर पर करते हैं, वहीं आप रेडियो पर सुन पाएंगे। रेडियो ने सदा अपना स्तर बरकरार रखा है। आजकल सोसल मिडिया आ गया है, जिसमें विश्वनियता को बरकार रखना संभव नहीं हो पा रहा है, लेकिन रेडियो ने आज भी विश्वनियता को बनाए रखा है।  रेडियो को जनसंपर्क का ब्लाइंड मीडियम कहा जाता है। ऐसा मीडियम जिसमें सुनने वाला और सुनाने वाला आमने-सामने नहीं होता। लेकिन भावनाएं प्रकट करने के लिए यह आज भी उत्तम साधन है।

ग्रामीण अंचलों में अखबार नहीं पहुंचता हैटीवी के कार्यक्रम बिजली पर निर्भर करता है, लेकिन रेडियों को कभी भी सुन सकते है।    

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