दुर्ग
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 5 जुलाई। राष्ट्र संत ललितप्रभ सागर ने कहा कि किसी भी घर की ताकत दौलत और शौहरत नहीं, प्रेम और मोहब्बत हुआ करती है। प्रेम के बिना धन और यश व्यर्थ है। जिस घर में प्रेम है वहां धन और यश अपने आप आ जाता है। उन्होंने कहा कि जहां सास-बहू प्रेम से रहते हैं, भाई-भाई सुबह उठकर आपस में गले लगते हैं और बेटे बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं। वह घर धरती का जीता-जागता स्वर्ग होता है। उन्होंने कहा कि अगर भाई-भाई साथ है तो इससे बढक़र मां-बाप का कोई पुण्य नहीं है और मां-बाप के जीते जी अगर भाई-भाई अलग हो गए तो इससे बढक़र उस घर का कोई दोष नहीं है।
संतप्रवर सोमवार को सकल जैन समाज द्वारा जिला कचहरी के पीछे स्थित ऋषभ नगर मैदान में आयोजित चार दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला के तीसरे दिन हजारों सत्संग प्रेमी भाई बहनों को घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर आप संत नहीं बन सकते तो सद्गृहस्थ बनिए और घर को पहले स्वर्ग बनाइए। जो अपने घर-परिवार में प्रेम नहीं घोल पाया वह भला समाज में क्या प्रेम रस घोल पाएगा? जो अपने सगे भाई को सहारा बनकर ऊपर उठा न पाया, वह समाज को क्या ऊपर उठा पाएगा? मकान, घर और परिवार की नई व्या या देते हुए संतश्री ने कहा कि ईंट, चूने, पत्थर से मकान का निर्माण होता है, घर का नहीं। जहां केवल बीबी-बच्चे रहते हैं वह मकान घर है, पर जहां माता-पिता और भाई-बहिन भी प्रेम और आदरभाव के साथ रहते हैं, वहीं घर परिवार कहलाता है। चुटकी लेते हुए संतश्री ने कहा कि लोग सातों वारों को धन्य करने के लिए व्रत करते हैं, अच्छा होगा वे आठवां वार परिवार को धन्य करे, सातों वार अपने आप सार्थक हो जाएंगे।
राष्ट्र संत ने कहा कि हम केवल मकान की इंटिरियर डेकोरेशन पर ही ध्यान न दें, अपितु मकान में रहने वाले लोगों के बोलचाल और बर्ताव सब कुछ सुन्दर हो। उन्होंने माता-पिता को बुढ़ापे में स हालने की सीख देते हुए कहा कि जीवन भर वे हमारा पालन पोषण करते हैं, हममें ही अपना भविष्य देखते हैं अपनी सारी शक्ति और औकात हमारे लिए लगाते हैं, अगर वे सरकारी कर्मचारी हैं, तो रिटायर्ड होने पर आने वाली एक मुश्त राशि भी हम पर खर्च करते हैं और मरने के बाद भी अपना सारा धन और जमीन जायजाद बच्चों के नाम करके जाते हैं और स्वर्ग चले जाएं, तो भी वहां से आशीर्वाद का अमृत अपने बच्चों पर बरसाते हैं।
राष्ट्र संत ने हर श्रद्धालु को पारिवारिक प्रेम के प्रति मॉटिवेट करते हुए कहा- अकेले हम बूंद हैं, मिल जाएं तो सागर हैं। अकेले हम धागा हैं, मिल जाएं तो चादर हैं। अकेले हम कागज हैं, मिल जाएं तो किताब हैं। अकेले हम अल्फाज हैं, मिल जाएं तो जवाब हैं। अकेले हम पत्थर हैं, मिल जाएं तो इमारत हैं। अकेले हम हाथ हैं, मिल जाएं तो इबादत हैं।
प्रवचन से प्रभावित होकर जब अनेक सगे भाइयों और देवरानी जेठानी आने एक दूसरे को आपस में गले लगाया तो माहौल भावपूर्ण हो गया। इस दौरान संत प्रवर ने आओ कुछ ऐसे काम करें जो घर को स्वर्ग बनाएं, जो टूट गए हमसे रिश्ते उनमें हम सांध लगाएं,भजन गुनगुनाया तो श्रद्धालु आनंद विभोर हो गए।
इस दौरान डॉ। मुनि शांतिप्रिय सागर महाराज ने कहा कि अगर हम संयमित सात्विक शुद्ध और ताजा भोजन लेंगे तो कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। 50 प्रतिशत बीमारियां भोजन की गड़बड़ी के कारण ही होती है। आगम और आयुर्वेद के अनुसार भोजन में तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए। मंच संचालन और संतों का स्वागत आभार अध्यक्ष महेंद्र दुग्गड़ ने किया। कैसे बनाएं जीवन को मालामाल पर मंगलवार को सुबह 9 बजे ऋषभ नगर मैदान में होंगे।