रायपुर

भूपेश सरकार के 72 फीसदी आरक्षण को भी लग सकता है झटका
19-Sep-2022 3:25 PM
भूपेश सरकार के 72 फीसदी आरक्षण को भी लग सकता है झटका

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 19 सितंबर।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2012 में रमन सरकार द्वारा आरक्षण सीमा 58 फीसदी करने के आदेश को असंवैधानिक घोषित किया है। इस फैसले का असर 2019 में भूपेश सरकार द्वारा किए गए 72 फीसदी आरक्षण को भी असर करेगा। इस संबंध में विधि के जानकारों ने बताया कि भूपेश सरकार ने 15 अगस्त 2019 को एक आदेश जारी कर आरक्षण को 58 फीसदी से बढ़ाकर 72 कर दिया था।

इसमें अनुसूचित जाति के आरक्षण को 12 से बढ़ाकर 13 फीसदी और ओबीसी का आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। इसके साथ ही सरकार ने घोषणा की थी कि छत्तीसगढ़ पूरे देश में सर्वाधिक आरक्षण देने वाला राज्य बन गया है। हालांकि भूपेश सरकार के इस फैसले में अनुसूचित जाति के 16 फीसदी आरक्षण को घटाकर 12 फीसदी किए जाने से इन वर्गों में काफी नाराजगी थी। अनुसूचित जनजाति को 2012 से पहले 20 फीसदी आरक्षण मिलता था। जिसे रमन सरकार ने 32 किया था।
इस फैसले के खिलाफ दायर याचिका कीसुनवाई में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। कांग्रेस सरकार के इस फैसले को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है जिसकी अभी सुनवाई शुरू नहीं हुई है।


रमन बोले- सरकार ने अपना पक्ष
मज़बूती से नहीं रखा,
आरक्षण मामले में हाईकोर्ट के फ़ैसले पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने कहा कि आरक्षण पर बीजेपी की स्पष्ट सोच और मान्यता रही है।आरक्षण पर बीजेपी की स्पष्ट सोच और मान्यता रही है। जब तक हमारी सरकार रही हम अपने फ़ैसले पर क़ायम रहे। वहीं इसे कांग्रेस ने रमन सरकार की लापरवाही का नतीजा बताया है।
रमन सिंह ने कहा कि वर्तमान सरकार ने इस पर अपना पक्ष मज़बूती से नहीं रखा। सरकार की कमजोरी दिख रही है. कोर्ट का फ़ैसला आ चुका है। राज्य सरकार को फ़ैसला लेना है कि इस लड़ाई को कैसे लड़े।


कांग्रेस बोली- ये रमन सरकार की लापरवाही का नतीजा
कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि पूर्ववर्ती रमन सरकार की लापरवाही के कारण हाईकोर्ट में 58 फीसद आरक्षण का फैसला रद्द हुआ। यह केस 2012 से चल रहा था 2011 में जब आरक्षण 50 फीसदी से बढ़ाया गया तो उस विशेष परिस्थिति को सिध्द करने की जबाबदारी रमन सरकार की थी। शुक्ला ने कहा कि र मन सरकार ने उस दायित्व का निर्वहन नहीं किया।
प्रवक्ता आरपी सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट का आज का निर्णय तत्कालीन राज्य सरकार की तरफ से प्रस्तुत किये गये तथ्यों दस्तावेजों, शपथ पत्रों के आधार पर तय हुआ था। जिसमें मौजूदा राज्य सरकार का किसी भी तरह का हस्तक्षेप ना था और ना हो सकता था।

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