सारंगढ़-बिलाईगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सरसींवा, 29 अक्टूबर। अंचल में सुआ नृत्य की धूम मची हुई है। प्रदेश की पहचान छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व सांस्कृतिक सुआ नृत्य-गीत है। गांव व शहर में सुआ नर्तक दलों की मौजूदगी से ही दीपावली का उत्साह शुरू हो जाता है। सप्ताह भर पहले ही सुआ नर्तक दल नृत्य और मनमोहक गीत से आशीर्वाद देने पहुंचते हैं।
सुआ छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख नृत्य है, जो कि समूह में किया जाता है। स्त्री मन की भावना, उनके सुख-दुख की अभिव्यक्ति और उनके अंगों का लावण्य ‘सुवा नृत्य’ या ‘सुवना’ में देखने को मिलता है। ‘सुआ नृत्य’ का आरंभ दीपावली के दिन से ही हो जाता है। इसके बाद यह नृत्य अगहन मास तक चलता है।
यहाँ प्रतिवर्ष 10 किमी दूर ग्राम गाताडीह से सुवा नृत्य की टीम पहुंचती हैं, जो कि सरसींवा में घर घर जाकर एवं दुकानों में जाकर सुवा नृत्य करती हैंएवं प्रसाद के तौर पर उपहार पैसे प्राप्त करती हैं। यह दीपावली के दिन से शुरू हो जाता है, जो कि एक माह तक चलता है। तोता पक्षी के पुतला बनाकर उसे एक टुकनी में रखकर घर-घर घूमते हैं, फिर टुकनी को बीच में रखकर महिलाओं की टीम उसके चारों ओर छत्तीसगढ़ी में सुवा गीत गाकर गोल घूमकर नृत्य करती हैं। गाताडीह से पहुँची सुवा नृत्य की टीम में क्रमश: दिलकुवर,कचरा बाई, तुलसी बाई, संतोषी, सावनी, दुर्गा, आरती, एवं निर्मला प्रमुख हैं ।