रायपुर

आबादी के अनुपात में हो आरक्षण, सीपीएम ने की मांग
28-Dec-2022 6:23 PM
 आबादी के अनुपात में हो आरक्षण, सीपीएम ने की मांग

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

रायपुर, 28 दिसंबर। सीपीएम ने आबादी के अनुसार आरक्षण जारी रखने की मांग की है। सीपीएम नेता धर्मराज महापात्र ने सदियों से शोषण और सामाजिक भेदभाव के शिकार आदिवासी एवं अनुसूचित जाति तबके के लोगों को आबादी के अनुसार  आरक्षण को जारी रखना चाहिए । उनकी तुलना किसी भी अन्य समुदाय से नहीं की जा सकती है।

महापात्र ने कहा कि आज के दौर में अगर आरक्षण पर आप ईमानदार हैं तो  निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने प्रदेश सरकार को पहल करनी चाहिए थी लेकिन कांग्रेस ने विधानसभा सत्र में पेश किए प्रावधान में यह पहल न कर यह अवसर खो दिया । 

उन्होंने कहा कि आदिवासी एवं अनुसूचित जाति समुदाय के आरक्षण के प्रावधान की तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती.  क्योंकि आज के मौजूदा नव उदारवाद के दौर में जब बड़े पैमाने पर शिक्षा का निजीकरण हो रहा है, सरकारी भर्ती में पाबन्दिया हैं, सार्वजानिक क्षेत्र में भी निजीकरण से अवसर बंद किये जा रहे हैं, स्थायी काम के जगह ठेकाकरण और संविदाकरण हो रहा है तब इन नीतियों को बदले बिना और निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू किये बिना इसका वंचित तबके को लाभ नहीं मिल सकता.  भाजपा का तो इस मामले में रुख किसी से छिपा नहीं है वह तो मूल रूप से आरक्षण की ही विरोधी है, इसलिए लम्बे समय से निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग को वह केंद में सरकार में होते हुए भी अनसुना कर रही है ।  प्रदेश की कांग्रेस सरकार यदि सच में आरक्षण पर गंभीर है तो उसे निजी क्षेत्र में आरक्षण के प्रावधान का कानून बनाने की पहल करनी चाहिए।

महापात्र ने आगे कहा कि अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण में भी सही मायने में इस तबके के कमजोर और पिछड़ों को लाभ के लिए क्रीमी लेयर बनाये जाने तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के आरक्षण में सही मायने में कमजोर लोगों को लाभ दिलाने आय सीमा को घटाने की पहल की जानी चाहिए। विदित हो कि केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के आरक्षण के लिए जो 8 लाख रूपये वार्षिक की आय निर्धारित की है उससे सही मायने में जो सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से  कमजोर लोग हैं उन्हें इसका लाभ ही नहीं मिल पायेगा. अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में भी एक याचिका दायर हुई है जिसमे कहा गया है कि दो लाख से ऊपर की आय पर जब आयकर देना होता है तो 8 लाख की वार्षिक आय आर्थिक रूप से कमजोर कैसे होंगे ।

जहां तक राज्यपाल का सवाल है तो यह बिल्कुल गलत है कि राज्यपाल विधानसभा में पारित प्रस्ताव को अस्वीकार करें । राज्यपाल का तो कांग्रेस भी उपयोग करती रही है किंतु भाजपा ने तो खुले तौर पर विरोधी राजनीतिक दल जहां भी शासन में हैं उसका चुनी हुई सरकार की नीतियों को प्रभावित करने उपयोग कर रही है । केरल हो या दिल्ली या फिर सुबह 4 बजे देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र में शपथ दिलाना या फिर विधानसभा के सत्र तक के लिए कैबिनेट के निर्णय के बावजूद अधिसूचित न किया जाना इसके उदाहरण हैं ।

छत्तीसगढ़ में भी आरक्षण विधेयक को लेकर राज्यपाल द्वारा यह कहना कि इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है या नही इसलिए परीक्षण कर रहीं हूं गलत है क्योंकि यह विमर्श राज्यपाल का अधिकार क्षेत्र नही है उसके लिए विधायिका है । राज्य सरकार और राज्यपाल के अधिकार परिभाषित हैं लेकिन भाजपा जिस तरह उनका उपयोग कर रही है वह लंबी अवधि में लोकतंत्र और हमारे संघीय ढांचे के लिए अस्वस्थ परंपरा को विकसित कर रही है जो नुकसानदायक है ।

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