बस्तर
प्रशासन पर लगाए गंभीर आरोप
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 4 जनवरी। मसीह समाज ने बस्तर प्रेस क्लब में नारायणपुर में चल रहे घटनाक्रम को लेकर प्रेसवार्ता का आयोजन किया, जहां उन्होंने ने प्रशासन और दूसरे पक्ष पर कई गंभीर आरोप लगाए ।
मसीह समाज के पदाधिकारियों ने मीडिया को संबोधित करते हुए बताया कि विगत 3 महीनों से मसीह समाज के लोग प्रताडि़त किए जा रहे हैं, इसकी सूचना मसीह समाज ने समय-समय पर स्थानीय प्रशासन और सरकार के जिम्मेदार अफसरों से भी की थी पर प्रशासन ने इस प्रताडऩा को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए, परिणामस्वरूप आज नारायणपुर में संघर्ष की स्थिति बन गई है ।
मसीह समाज के पदाधिकारी ने बताया कि 21 दिसंबर को नारायणपुर के 18 गांवों में मसीह समाज के लोगों पर बर्बरता पूर्वक हमले किए गए जिसकी वजह से वहां के लोगों को पलायन कर कोंडागांव स्थित चर्च में शरण लेनी पड़ी।
समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि उन्होंने पुलिस प्रशासन से सहायता मांगी पर, हमें प्रताडि़त करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसकी वजह से समाज के लोगों में गुस्सा भडक़ा और हिंसा हुई ।
मसीह समाज ने सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा कि उनके समाज की महिलाओं को नग्न करके मारपीट की गई जिसकी शिकायत उन्होंने पुलिस थाने समेत आईजी बस्तर और नारायणपुर कलेक्टर से की पर इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई ।
हालांकि इस संदर्भ में जब पत्रकारों ने ठोस प्रमाण की मांग की तो मसीह समाज के पदाधिकारी संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके।
आरोपों की श्रृंखला में मसीह समाज ने खुद को एक शांतिप्रिय और अहिंसक समाज बताते हुए किसी भी तरह की हिंसा से दूर रहने की बात कही, पर जब मीडियाकर्मियों ने नारायणपुर की घटना पर पहले हिंसा करने वालों में मसीह समाज के लोगों का नाम आने के सवाल पर चुप रहे।
वहीं धर्मांतरण पर जब एक पत्रकार ने प्रश्न उठाते हुए कहा कि धर्मांतरण के आरोप केवल मसीह समाज पर ही क्यों लगते हैं जैन, बौद्ध, सिख अथवा मुसलमानों पर क्यों नहीं ?, इसका जवाब देते हुए कहा कि हम बाइबिल में लिखे आदेश का पालन करते हुए लोगों को बताते हैं कि यीशु ही मुक्तिदाता है एक दिन पूरा विश्व यीशु की शरण में आएगा, परंतु इसका आशय ये नहीं है कि हम देश को मसीह देश बनाना चाहते हैं, हमारा उद्देश्य बाइबिल का प्रचार है।
इस प्रेस वार्ता के दौरान मसीह समाज के लोगों ने कोंडागांव के कुछ व्यक्तियों का परिचय कराते हुए बताया कि ये भी वो पीडि़त हैं, जिन्हें मत परिवर्तन करने प्रताडऩा का शिकार होना पड़ा था।3