बस्तर
कई संगठनों ने वैधता पर उठाए सवाल
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 4 अप्रैल। छत्तीसगढ़ के नागरिक और सामाजिक संगठनों ने आदिवासी नेता और बस्तर जन संघर्ष समन्वय समिति के संरक्षक सुरजू टेकाम की गिरफ्तारी की निंदा की है और आम चुनाव के ठीक पहले की गई गिरफ्तारी पर भाजपा राज्य सरकार की मंशा पर प्रश्न खड़े करते हुए इसकी वैधता पर भी सवाल उठाए हैं।
इनमें छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज, बस्तर जन संघर्ष समन्वयन समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ किसान सभा, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति), जन मुक्ति मोर्चा छत्तीसगढ़, मूलवासी बचाओ मंच , नगरीय निकाय जनवादी सफ़ाई कामगार यूनियन, जिला किसान संघ राजनादगांव शामिल हैं।
एक साझा बयान में प्रदेश में आदिवासियों के बीच काम कर रहे अनेकों संगठनों ने भाजपा राज्य सरकार की इस हरकत की तीखी निंदा की है। उन्होंने चिंता व्यक्त की है कि भाजपा राज आने के बाद नक्सली गतिविधियों से निपटने के नाम पर बस्तर में जारी सशस्त्रीकरण की प्रक्रिया तेज हो गई है और कॉरपोरेट लूट के खिलाफ लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण और अहिंसक धरनों का नेतृत्व करने वाले कई स्थानीय आदिवासी नेताओं की कई गिरफ्तारियाँ हुई हैं। यह दमन फिर से उस दौर की याद दिला रहा है, जब पिछली भाजपा सरकार के राज में सलवा जुडूम अभियान प्रायोजित किया गया था और बड़े पैमाने पर आदिवासियों के नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों का हनन किया गया था। इस असंवैधानिक मुहिम पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही रोक लग पाई थी।
अपने बयान में इन संगठनों ने कहा है कि पिछले कुछ महीनों में बस्तर में कई स्थानों पर, जहां कई वर्षों से लोकप्रिय और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, धरनास्थलों को बिना किसी चेतावनी के और अलोकतांत्रिक ढंग से जबरन उखाड़ा गया है, उनके सामुदायिक बर्तनों और अनाज जब्त किया गया है और उनके नेताओं को पुलिस ने हिरासत में ले कर यातनाएं दी है। जानकारी अनुसार 15 अक्तूबर 23 को बेचलपाल धरना कांकेर से मुन्ना ओयाम और मंगेस ओयाम को गिरफ्तार किया गया। माढ़ बचायो मंच के अध्यक्ष, लखमा कोराम को 09 दिसंबर 2023 को नारायणुपर पुलिस ने गिरफ्तार किया । इसी तरह गोरना, सिलगेर, अंबेली बीजापुर, मढ़ोनार में चल रहे शांतिपूर्ण धरना स्थलों से विष्णु कुरसम, सुरेश अवलम, गुंडाम नैया, सुशील कुमार घोटा, शशि गोटा, सुकदेर कोर्राम और पंडरू पोयाम को गिरफ्तार किया गया।
इस बीच नक्सली-पुलिस मुठभेड़ की जितनी भी घटनाएं सामने आई है, पीडि़त परिवारों और ग्रामीणों ने सरकार और पुलिस के दावों पर प्रश्न खड़े किए है। इसलिए बस्तर में डेमोक्रेटिक स्पेस को खत्म करने के लिए सरकार खुद जिम्मेदार है। इससे स्पष्ट है कि भाजपा सरकार की बस्तर में अहिंसा और सहभागी लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
संगठनों ने राज्य सरकार से मांग की है कि बस्तर में माओवादियों के नाम पर निर्दोष आदिवासियों का दमन और फर्जी गिरफ्तारी पर तत्काल रोक लगाई जाए। सभी निर्दोष आदिवासियों की रिहाई की जाए। बस्तर में चल रहे सभी लोकतांत्रिक शांतिपूर्ण आंदोलनों के साथ संवाद स्थापित किया जाए ।