जशपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जशपुरनगर, 9 मई। आईएएस आनंद मसीह के जाति प्रमाण पत्र निरस्त मामले को लेकर प्रदेश में एक बड़ी बहस छिड़ गई है। इस मामले में प्रेस विज्ञप्ति जारी कर ईसाई आदिवासी महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अनिल किस्पोट्टा ने कहा कि अखिल भारतीय जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक के द्वारा डी-लिस्ंिटग आंदोलन का नतीजा है बताया जाना सरासर गलत है। यह झूठा बयान आदिवासियों को भ्रमित करने वाला है।
इस वजह से हुआ निरस्त
आईएएस आनंद कुमार मसीह का जाति प्रमाण पत्र धर्म के आधार पर निरस्त नहीं हुआ है किन्तु वह आदिवासी होने का पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाये, अपने दास्तावेज के आधार पर स्वयं को उरांव आदिवासी जाति का सिद्ध नहीं कर पाने के कारण आईएएस आनंद कुमार मसीह का जाति प्रमाण पत्र निरस्त किया गया है।
धर्म मानने के लिए स्वतंत्र हैं
यदि कोई उरांव जनजाति या अन्य जनजाति का सदस्य है तो उसे धर्म के आधार पर उसका अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र निरस्त नहीं हो सकता है। संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश 1950 में धर्म का उल्लेख नहीं है। अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति किसी भी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है।
जशपुर को लेकर भी कहा
जशपुर जिले के कुछ ग्रामों के कुछ आदिवासी ग्रामीणों का पहले के राजस्व अभिलेखों में मिसल बंदोबस्त में संवसार व खिस्तान दर्ज हो गया है किन्तु बाद के राजस्व अभिलेखों में उनकी जाति उरांव दर्ज है और उनको सन् 1950 से वर्तमान तक के रिकार्ड के आधार पर उरांव अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र शासन द्वारा जारी किया जाता है।
भारत सरकार के एक परिपत्र के अनुसार बंदोबस्त कर्मचारियों के द्वारा हुए त्रुटि के आधार पर किसी को जाति प्रमाण पत्र से वंचित नहीं किया जा सकता है। यदि वह वास्तव में अनुसूचित जनजाति का सदस्य है। छत्तीसगढ़ में फर्जी जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने के लिए अनेक आदिवासी संगठन कई बार शासन से मांग करते आ रहे हैं।
झूठा प्रचार न करने का आग्रह
सर्व आदिवासी समाज, अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक संघ व अजाक्स जैसे संगठन लगातार फर्जी जाति प्रमाण पत्र निरस्त किये जाने की मांग करते आ रहे है। ताकि आपात्र लोग अनुसूचित जनजाति का गलत फायदा न उठा सके।
फर्जी जाति प्रमाण पत्र निरस्त मामले को डी-लिस्ंिटग आंदोलन का नतीजा बताकर आदिवासियों को मूर्ख बनाने का प्रयास न करें। गणेश राम भगत के द्वारा लोगों को गुमराह करने और आपस में वैमनस्यता फैलाने के लिए इस प्रकार का झूठा प्रचार-प्रसार नहीं किया जाना चाहिये।
गणेश राम ने कहा यही है डी-लिस्टिंग
प्रदेश में इस प्रकार का यह पहला मामला नहीं है, बल्कि जशपुर जिले के अधिकांश गांव के राजस्व अभिलेखों में जाति को लेकर उस प्रकार की विसंगति है जहां मिशल बंदोबस्त 1925 में जाति के कालम में क्रिस्तान लिखा है तो उसी व्यक्ति के वर्ष 1949 के अधिकार अभिलेख में जाति उरांव दर्शित है।
अखिल भारतीय जनजाति सुरक्षा मंच अपने आंदोलन में पिछले 15 वर्षों से यह मुद्दा उठाती रही है कि आखिर एक व्यक्ति के राजस्व अभिलेखों में दो जातियों का उल्लेख है तो किस आधार में उस व्यक्ति के जाति का निर्धारण अनुसूचित जनजाति के रूप में किया जा रहा है। इस संबंध में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी इक_ा कर मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने कांवर में भरकर दस्तावेज जशपुर और सरगुजा कलेक्टर को सौंपा गया था।
इस संबंध में श्री भगत का कहना है कि धर्मांतरित लोगों की अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर करने की हमारी मांग वर्षों से चली आ रही है और वास्तव में ऐसे लोगों को आरक्षण का लाभ देना असंवैधानिक है। हमारे आंदोलन का प्रभाव है कि श्री मसीह की जाति की जांच इस एंगल से की गई और उसे प्रमाणित माना है, साथ ही उन्होंने कहा कि यह तो शुरुआत है अभी देखते जाइये कई रसूखदार लोग अभी इस जांच के दायरे में आएंगे , और यही कारण है कि हमारे डिलिस्टिंग आंदोलन से मिशन भयभीत है क्योंकि उन्हें मालूम है कि इस प्रकार के जांच से उनकी दुकानदारी ठप हो जाएगी और वास्तव में यही तो डीलिस्टिंग है ।