धमतरी
सिहावा क्षेत्र की देवजात्रा जहां भादो में खुर्सीघाट में लगती है देव अदालत और न्यायाधीश होती हैं भंगाराव देवी
किशन मगेन्द्र
नगरी, 10 सितंबर(‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता) धमतरी जिले की सिहावा क्षेत्र की वनांचल और आदिवासी बाहुल्य समुदाय की ऐसा क्षेत्र, जहां कभी बस्तर राजघराने की सीमा हुआ करती थी, पर परिवर्तन की दौर में वर्तमान में, यह क्षेत्र बस्तर से अलग हो चुका है। बहरहाल इस इलाके के आदिवासी समुदाय, आज भी बस्तर राज परिवार की देव परंपरा प्रतिवर्ष निभाते आ रहे हैं। जिस तरह से इंसान अगर असंवैधानिक कार्य करते हैं और उनका परिणाम उन्हें न्यायिक हिरासत से गुजरना पड़ता है उसी प्रकार,ऐसा पारंपारिक देव अदालत, जहां इष्ट देवी देवताओं के ग़लत की सज़ा देवी-देवताओं के न्यायाधीश जिन्हें भंगाराव माई के नाम से लोग मानते हैं, उनकी न्यायालय में खड़ा होना पड़ता है।
भंगाराव देवी के प्रमुख गायता घुटकले निवासी प्रफुल्ल सामरथ और स्थानीय देव गायता चैतराम मरकाम लिखमा निवासी ने बताया आदिवासी समाज की रुढिज़न्य देवप्रथा परंपरा अनुसार कुलदेवी-देवताओं को, भी अपने आप को साबित करना पड़ता है वो भी बाकायदा अदालत लगाकर। ये अनोखी अदालत ‘भंगाराव माई के दरबार’ में लगती है
भंगाराव माई का दरबार धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई मार्ग में भादो के शुरुआती महीने में लगते हैं।बस्तर राजघराने से चली आ रहा सदियों पुराने,इस दरबार को देवी-देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भंगाराव की मान्यता के बिना देव सीमा में स्थापित कोई भी देवी-देवता कार्य नहीं कर सकते।
हर साल भादों के महीने में आदिवासी देवी-देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई का जात्रा होता है.इस वर्ष भी बड़े ही धूमधाम से बाजागाजा के साथ लिखमा घुटकल से विधि विधान से कुल देवता की सेवा अर्जी उपरांत देवी देवताओं का आगमन भंगाराव देव ठाना जात्रा में सम्मिलित हुए। जहां दर्शन और मनोकामनाएं को लेकर कई हजारों की संख्या में धमतरी,उड़ीसा और बस्तर के श्रद्धालु जात्रा में पहुंचे।
चर्चा के दौरान देव परिवार के प्रमुख महरू राम मरकाम, पुनाराम सामरथ, दुलार सामरथ, आरके सामरथ, गंगाराम सामरथ, उदेराम सामरथ, मंगऊ राम सामरथ, बीजूराम मरकाम,फूलसिंग साक्षी,राम सामरथ,जगत सामरथ,मिश्रीलाल नेताम,ईश्वर नेताम,मनोज साक्षी जिनकी अगुवाई में जात्रा की विधि विधान पुर्वक सेवा अर्जी से देव कार्य का,परंपरा अनुसार शुभारंभ हुई।जात्रा के दौरान सोलह परगना सिहावा,बीस कोस बस्तर और सात पाली ओडिशा के देवी-देवता जात्रा में सम्मिलित हुए। वहीं इस देवजात्रा में महिलाओं का शामिल होना परंपरा अनुसार वर्जित है।
आदिवासी समाज की पुरातन मान्यता है उनकी अपनी देव पद्धति है अपनी देवी-देवताओं की सेवा अर्जी परंपरा अनुसार करते हैं अपनी हर समस्याओं को उनके सामने रखते हैं,ताकि उन पर किसी तरह की विपत्ती न आए मगर जब देवी-देवता उनकी समस्याओं पर खरा नहीं उतरते, यूं कहें कि अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर पाते या असफ़ल हो जाते हैं तो गायता पुजारी व ग्रामीण जनों की शिकायत के आधार पर भंगाराव माई के अदालत में देव को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। जहां इनकी सुनवाई होती है, अगर आरोप लगते हैं या दोषी पाए जाते हैं तो अराध्य देवी देवताओं को भी सज़ा मिलती है. आदिवासी समाज की परेशानियां दूर नहीं कर पाते तो उन्हें दोषी माना जाता है। भंगाराव की उपस्थिति में कई गांवों से आए,देवी-देवताओं की एक-एक कर देव प्रथा अनुसार देव प्रथा अनुसार शिनाख्त किया जाता है।
फिर देव परिसर में ही अदालत लगती है. देवी-देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है। आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी,गायता,माझी, पटेल आदि ग्राम के प्रमुख भी उपस्थित होते है। दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर तत्काल फ़ैसला भी सुनाया जाता है,देव परिसर के कुछ दूरी पर एक नाला है.इसे आम भाषा में कारागार भी कह सकते है।
दोष साबित होने पर देवी-देवताओं के लाट,बैरंग,आंगा,डोली आदि को इसी नाले में रवानगी कर दिया जाता है इस तरह से देवी-देवताओं को सजा दी जाती है और इस जात्रा के पश्चात ही आदिवासी समाज की प्रमुख पर्व नवाखाई मनाने का दिन तिथि देव आदेशानुसार निर्धारित होती है।
जात्रा को लेकर क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य मनोज साक्षी कहते हैं कि आदिवासी समुदाय वास्तव में प्रकृति और पुरखा पेन शक्ति के पूजक हैं और भंगाराव देवी की जात्रा को अनादिकाल से यह देव परंपरा को सिहावा परगना, ओडिशा और बस्तर के आदिवासी समुदाय निभाते आ रहे हैं।