रायगढ़

रायगढ़ में बीजेपी की जीत का सेहरा जशपुर के परिणामों से, वहीं कांगे्रस की उथल-पुथल थमी नहीं
30-Mar-2024 2:26 PM
रायगढ़ में बीजेपी की जीत का सेहरा जशपुर के परिणामों  से, वहीं कांगे्रस की उथल-पुथल थमी नहीं

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायगढ़, 30 मार्च।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रायगढ़ लोकसभा के लिये आखिरकार दोनों प्रमुख पार्टियों के टिकट वितरण हो ही गए। आजादी के बाद से कांगे्रस ने राठिया और गोंड आदिवासियों को लोकसभा प्रत्याशी निश्चित करने का दायरा बनाया है। जिसमें रजनीगंधा, उमेद सिंह राठिया, रामपुकार सिंह, हृदयराम, आरपी सिंह, लालजीत राठिया और अब मेनका देवी को इस बार प्रत्याशी बनाया गया है। वैसे ही बीजेपी में नरहरि साय, नंदकुमार साय, विष्णुदेव साय, गोमती साय के बाद अब पहली बार राठिया समाज से राधेश्याम राठिया को प्रत्याशी घोषित किया गया है।

लोकसभा चुनाव का एक अपना दायरा, विषय और वजूद होता है जिसको लेकर के रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र के मतदाता खुले तौर पर यह कहते नजर आते हैं कि दोनों पार्टियों के सांसद पद के प्रत्याशी केवल संसदीय क्षेत्र की राजनीति करते नजर आये। जिसको यह कह लीजिये कि केन्द्र सरकार से जुड़ी योजनाओं व उनसे की गई मांगो का लाभ रायगढ़ संसदीय क्षेत्र की जनता को मिले, जिससे की जनता द्वारा दिये गए अपने सांसद को वोट का हक और परिणाम जनता के पक्ष में जनता के पक्ष की सुविधाओं का लाभ उनको मिल सके। अगर पिछले लोकसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो बहुत कम वोटों से हारने वाले संसद प्रत्याशियों में पुष्पा देवी सिंह का नाम आता है। तीन बार वे हारीं जरूर लेकिन कांगे्रस विरोधी लहर में बहुत कम वोटों से हारी जिसका लाभ इस बार के टिकट वितरण में डॉ. मेनका देवी सिंह को मिला। सारंगढ़ राज घराने का एक अपना आभा मंडल रायगढ़ लोकसभा में है उधर भाजपा में ओपी चौधरी रायगढ़ जिले से एक अकेले जीते हुए विधायक रहे। जिनके वोटों के जीतने का अंतर इतना वृहद है कि जशपुर जिले के तीनों भाजपा विधायकों का वोटों का कुल जोड़ें तो ओपी के जीत के सामने यह जीत समा जाती है। इसलिये कहा जा रहा है। 

भाजपा के सूत्रों के अनुसार लगभग एक माह पहले ओपी के अनुशंसा पे राधेश्याम राठिया का प्रत्याशी बनना लगभग तय हो गया था। सनद रहे कि यह राधेश्याम राठिया वही है, जो खरसिया विधानसभा जिसमें आदिवासियों में सबसे ज्यादा राठिया वोट हैं, यहां ओपी के लिये राधेश्याम व उमा राठिया की जोड़ी ने पिछले विधानसभा चुनाव में बहुत गंभीर रूप से सेंध लगाकर ओपी को वोट दिलाया था। इसलिये ओपी की पहली पसंद राधेश्याम राठिया ही इस बार लोकसभा के प्रत्याशी बन सके। 

हम पिछले चुनाव में भी एक नजर डाल दें कि ओपी चौधरी ने पिछले लोकसभा चुनाव में जोबी बर्रा की तेज तर्रार उमा राठिया को भाजपा प्रत्याशी बनाने के लिये दिल्ली तक पहुंचा दिया था, जिसको लेकर जूदेव हाउस के युद्धवीर सिंह जूदेव ने आरएसएस व बनवासी कल्याण आश्रम के माध्यम से दांव खेला और गोमती साय को प्रत्याशी बनाने के लिये चौसर बिछाई और इसमें वे सफल भी हुए। 

ज्ञात रहे कि रायगढ़ लोकसभा में बीजेपी की जीत का सेहरा जशपुर जिले के परिणामों से ही आता है। पर इस बार बीजेपी का प्रत्याशी रायगढ़ जिले का है। देखना यह है कि जशपुर जिले से विधायक के बाद मुख्यमंत्री बने विष्णुदेव साय का इस लोकसभा चुनाव में क्या परिणाम सामने लाता है।

इधर, कांगे्रस की उथल-पुथल अभी रूकी नहीं है। इस पर रायगढ़ संसदीय क्षेत्र का अवलोकन करें तो युवा एवं तेज तर्रार विधायक उमेश पटेल के नेतृत्व रायगढ़ लोकसभा चुनाव लड़ा जाएगा और कांग्रेस संगठन की स्थिति वर्तमान में बड़ी चिंताजनक है। पिछले दो साल से रायगढ़ जिला कांगे्रस कमेटी ग्रामीण का अध्यक्ष नियुक्त नही कर पाई है जिसको लेकर के तीन नामों की चर्चा है, जिनमें विकास शर्मा, ओमसागर पटेल व नगेन्द्र नेगी का नाम चर्चा में है। साथ ही साथ कांगे्रस के बाजारी सूत्रों के अनुसार रायगढ़ शहर जिला कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष पद पर, 2003 से 2018 तक बीजेपी के शासन काल के दौरान विलुप्त प्राय रहे गुप्ता परिवार के अरूण गुप्ता जिनका चेहरा 2022-23 में अचानक सामने आया।

डॉ.चरण दास महंत, दीपक बैज व सारंगढ़ राज घराने की अनुशंसा पर अध्यक्ष बनने के लिये दिल्ली दरबार में लगभग सफलता पा ली है। मगर सूत्र बताते हैं कि कांगे्रस का एक बड़ा समूह पिछले दिनों इनके अध्यक्ष बनने को लेकर अपनी लिखित आपत्ति सचिन पायलट, डॉ.चरण दास महंत व दीपक बैज को रायपुर व जांजगीर चांपा में कडी आपत्ति जता चुका है।

बहरहाल प्रदेश में भाजपा की सत्ता है और मुख्यमंत्री जशपुर जिले से हैं, तो भाजपा की लीड पिछली बार से डबल भी हो सकती है। वहीं कांगे्रस में उमेश पटेल के नेतृत्व में यह चुनाव लड़े जाने पर कार्यकर्ताओं में कुछ आशाएं जरूर जागेंगी। नही तो यदि कांगे्रस संगठन में ऐसे ही नियुक्ति हुई तो पिछले रायगढ़ विधानसभा चुनाव परिणाम से भी ज्यादा खराब परिणाम कांगे्रस के सामने आ सकती है। ऐसे में अब तो यही कहा जा सकता है कि किसी रहमानी नुस्खे से ही कांगे्रस को जीतने की उम्मीद हो सकती है। 
 

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