रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 10 फरवरी। आदिवासी किसान छोटे लाल, तुलसी दास और रमाशंकर अपने जीवन में एक चमत्कार देख रहे हैं। कोरिया जिला मुख्यालय से 105 किलोमीटर दूर देवगढ़ गाँव में अभी जब वे अपने खेतों की ओर देखते हैं, तो वहां लहलहाती गेहूं की फसल उनकी आंखों में खुशी के आंसू ला देती है। बस, कुछ समय का इंतजार है और वे पहली बार अपने ही खेत में उपजाए गेहूं के आटे से बनी रोटी खा सकेंगे, और फसल बेचकर अतिरिक्त कमाई कर सकेंगे। ये वही जमीनें हैं जिन्हें कई वर्षों से वे खरीफ की फसल के बाद उसके हाल पर ही छोड़ देते थे, क्योंकि पानी के बिना इनमें एक अंकुर भी नहीं फूटता था। इन किसानों ने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि उनकी जमीन पर कभी रबी की फसलें भी लहलहाएंगी।
कोरिया जिले के वनांचल भरतपुर विकासखण्ड के बैगा आदिवासी बाहुल्य देवगढ़ में केवल ये तीन किसान ही नहीं हैं, जिनके खेतों में अभी हरियाली नजर आ रही है। पचनी नाला पर मनरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम) से बने स्टॉपडेम से नाला के दोनों पार के गांवों देवगढ़ और जनुआ के दस किसानों की 34 एकड़ भूमि पर सिंचाई हो रही है। इस स्टॉपडेम से जनुआ के सात किसानों दिनेश सिंह, बलीचरण सिंह, रामदास सिंह, प्रफुल्ल सिंह, भगवान दास, बुद्धु सिंह एवं श्रीमती खेलमती की कुल 15 एकड़ तथा देवगढ़ के तीन किसानों छोटे लाल, तुलसी दास व रमाशंकर के कुल 19 एकड़ रकबे को रबी के मौसम में सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है।
खरीफ मौसम में धान की फसल के बाद खाली पड़े रहने वाले खेतों में दूसरी फसल के लिए सिंचाई की व्यवस्था की कवायद करीब चार साल पहले शुरू हुई थी। देवगढ़ के बाहरी छोर से होकर बहने वाले पचनी नाले में बरसात के बाद पानी का बहाव कम होने लगता था।
गर्मियों में तो काफी कम हो जाता था। ऐसे में आसपास के खेत असिंचित होकर अनुपयोगी रह जाते थे। किसानों को रबी फसलों के लिए भी पानी देने के लिए ग्राम पंचायत ने पचनी नाला पर स्टॉपडेम बनाने का निर्णय लिया। स्टॉपडेम के लिए ऐसे स्थान का चयन किया गया जिससे देवगढ़ के साथ ही जनुआ के किसानों को भी पानी मिल सके।