स्थायी स्तंभ
लीड कम, जवाबदेही अधिक
भाजपा विधायक संपत अग्रवाल को लोकसभा चुनाव में अपनी सीट बसना से बढ़त को लेकर बढ़ चढक़र दावा करना भारी पड़ रहा है। सुनते हैं कि बसना विधायक संपत अग्रवाल ने पार्टी के रणनीतिकारों को भरोसा दिलाया था कि बसना से भाजपा प्रत्याशी रूपकुमारी चौधरी को 50 हजार वोटों की बढ़त मिलेगी। संपत अग्रवाल यह भी कह गए थे कि यदि बढ़त कम हुई, तो पार्टी दफ्तर नहीं आएंगे।
अग्रवाल गलत साबित हुए, और बसना विधानसभा सीट से सबसे कम 18 सौ वोटों की बढ़त मिल पाई। खास बात यह है कि खुद संपत अग्रवाल करीब 38 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। संपत की तरह कई और विधायकों ने अपने क्षेत्र से बढ़त को लेकर काफी दावे किए थे, लेकिन वैसा परफार्मेंस नहीं दिखा पाए।
संपत अग्रवाल के लिए संतोष जनक बात यह है कि रूपकुमारी चौधरी खुद बसना की रहने वाली है, और विधायक भी रही हैं। ऐसे में कम लीड के लिए रूपकुमारी को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ये अलग बात है कि रूपकुमारी अब तक महासमुंद सीट से सबसे ज्यादा वोटों से जीत हासिल की है। फिर भी बसना में कम लीड के लिए जवाब देना पड़ रहा है।
निशाने पर अफसर
मुख्य सचिव कार्यालय के सूत्रों की मानें तो पीएमओ केंद्रीय विभागों और राज्यों में कार्यरत अखिल भारतीय सेवा के अफसरों पर निकट से कड़ी निगाह रखे हुए है। मोदी 3.0 में ऐसे अफसरों पर गाज गिर सकती है जिन पर भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूत आन पेपर है। पीएमओ ने डीओपीटी के जरिए आईएएस, आईपीएस, आईएफएस,आईआरएस आईटीएस और अन्य सेवा के अफसरों के पेपर्स बुलवाए हैं जिनके मामले कैट, चीफ विजिलेंस कमिश्नर और राज्यों के लोकायोग में अंतिम निर्णय की स्थिति में है।
पीएमओ, मनमोहन सरकार की प्रशासनिक सुधार प्रक्रिया को तेजी देना चाहती है। इसमें भ्रष्टाचार में लिप्त अफसर जिनकी आयु 50 वर्ष और सेवावधि 20 वर्ष हो चुकी है उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। इसके तहत छत्तीसगढ़ में भी पूर्व के वर्षों में एकाधिक आईएएस,आईपीएस (देवांगन) अफसर बर्खास्त किए जा चुके हैं। इस क्राइटीरिया में पिछले दो वर्ष में निलंबित किए गए समीर विश्नोई, रानू साहू, एपी त्रिपाठी, मनोज सोनी भी आ रहे हैं। मनोज सोनी दूर संचार सेवा के अफसर हैं, और उन्हें रिलीव भी किया जा चुका है। सूत्रों का कहना है कि इन सभी की फाइलें भी मंगाई गई हैं। साथ ही महादेव सट्टे के लाभार्थी आईएएस और आईपीएस भी पीएमओ की स्कैनिंग में टॉप पर हैं। संसद का प्रथम सत्र निपटते ही आगे की कार्रवाई हो सकती है।
वापिसी की हसरत और अड़ंगा
नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के कई बागी नेता वापसी की कोशिश में लगे हैं। इन्हीं में से रायपुर की एक विधानसभा सीट से बगावत कर चुनाव लडऩे वाले नेता ने अपना निष्कासन खत्म करने के लिए आवेदन दिया है। कांग्रेस रायपुर की चारों सीट हार गई। अब बागी नेता की पार्टी में वापसी पर पराजित प्रत्याशी ने फिलहाल ब्रेक लगा दिया है। फिर भी बागी नेता, प्रदेश प्रभारी, और प्रदेश अध्यक्ष से मिलकर वापसी की कोशिश में लगे हैं। देखना है आगे क्या होता है।
जशपुर में रेल अब दौड़ेगी?
जशपुर में रेल लाइन की लंबे समय से मांग हो रही है। दो साल पहले ईस्ट कॉरिडोर परियोजना में इसे शामिल करते हुए धर्मजयगढ़ से लोहरदगा के लिए सर्वे का टेंडर जारी कर दिया गया था, जो अब पूरा हो चुका है। इस परियोजना के मूर्त रूप लेने पर पत्थलगांव, कुनकुरी, जशपुर नगर आदि बड़े कस्बे रेल मार्ग से जुड़ जाएंगे।
पूर्व के दशकों में यहां रेल लाइन का इसलिये विरोध हो रहा था क्योंकि स्थानीय लोग यहां के खनिज संपदा और पर्यावरण के दोहन को लेकर चिंतित थे। मगर अब लोग खुद आंदोलन कर रहे हैं। रेल नहीं होना उन्हें जशपुर के पिछड़ेपन का एक कारण लगता है। सांसद रहते गोमती साय, जो अब विधायक हैं-ने दो तीन बार इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया था और रेल मंत्री से मुलाकात की थी। अब संसद सत्र शुरू होने के बाद वर्तमान सांसद राधेश्याम राठिया ने भी रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात कर सर्वे के मुताबिक शीघ्र बजट स्वीकृत कर काम शुरू करने की मांग की है। इस बार प्रयास रंग ला सकता है और आने वाले वर्षों में यहां रेल की पटरियों को बिछते हुए देखा जा सकता है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के इसी इलाके से आने के कारण जिले की स्थिति विशिष्ट हो चुकी है। केंद्रीय रेल मंत्रालय आगामी बजट में इसके लिए प्रस्ताव रख सकता है।
इधर सरगुजा सांसद चिंतामणि महाराज भी रेल मंत्री से मिले। उन्होंने अंबिकापुर से बरवाडीह और रेणुकूट के लिए प्रस्तावित नई रेल लाइन को मंजूरी देने की मांग की है।
छत्तीसगढिय़ा ईरानी
कभी, 4-6 पीढिय़ों या उससे भी पहले घोड़े के कुछ बड़े सौदागर ईरान से चले थे। उनके साथ साथ उनके सेवक या सहयोगी भी थे।
आज उन लोगों की बस्तियां हैं यहां छत्तीसगढ़ के कुछ स्थानों में। बिलासपुर में भी अरपा नदी के उस किनारे पर पूरे का पूरा एक ईरानी मोहल्ला है। बेतरतीब बसाहट वाला मोहल्ला। इनके रोजगार धंधे भी ऐसे ही बे तरतीब से। कभी चश्मा बेचते हुए तो कभी रंगीन पत्थरों और कांच के मनका माला बेचते हुए। इतनी पीढिय़ों से यहां बसे हुए इनके नाक नक्श तक अब छत्तीसगढ़ के हो गए। इनकी दप-दप चमकती गुलाबी गोरी रंगत भी अब धूमिल पडऩे लगी। बस इनका पहनावा-ओढऩा और इनके घर बोली जाने वाली इनकी मातृभाषा ही इनके पास सुरक्षित बची है।
इतनी पीढिय़ों की बसाहट के बाद भी इनके ठौर ठिकाने खानाबदोशी से अलग नहीं हो पाए।
इन दिनों नगर-निगम 1000 से अधिक मकानों पर बुलडोजर चलाने के अभियान में लगा है। इन ईरानियों पर एक नया कहर बरप रहा है। (सतीश जायसवाल की फेसबुक पोस्ट) ([email protected])
20 साल बाद खुला स्कूल
पीएससी परीक्षा का सेंटर बनाए जाने की वजह से रायपुर सहित कई शहरों के स्कूल बंद रहे, और प्रवेशोत्सव नहीं मना। रायपुर के तीन स्कूलों को पीएससी परीक्षा का सेंटर बनाया गया था। मगर धुर नक्सल जिला बीजापुर के दूर-दूर के कई स्कूल खुल गए। ये स्कूल करीब 20-22 साल बाद खुले हैं, और वहां बकायदा प्रवेशोत्सव भी मना।
बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय, और पुलिस अमला मुख्यालय से करीब 33 किमी दूर उसरनार गांव के स्कूल पहुंचे। यह स्कूल एक तरह से टेंट में संचालित हो रहा है। प्रधान पाठक के अलावा यहां अस्थाई शिक्षक ही हैं। लेकिन बच्चों की संख्या भी अच्छी खासी रही। बच्चों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया गया। उनकी खुशी देखने लायक थी। वहां सेल्फी जोन बनाया गया था, जिसमें बच्चों की सेल्फी ली गई।
उसरनार सहित दूर दराज के कई गांव हैं जहां भले ही स्कूल की छत नहीं है। टेंट में स्कूल शुरू हो गए हैं। इन स्कूलों के निर्माण के लिए प्रशासन ने पहल की है। मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है। कुल मिलाकर धुर नक्सल इलाके में शिक्षा का सूरज दिखाई दे रहा है।
लता की वाहवाही
ओडिशा में पहली बार भाजपा की सरकार बनने पर भाजपा के रणनीतिकार खुश हैं। पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, और ओडिशा की प्रभारी पूर्व मंत्री लता उसेंडी को वाहवाही मिल रही है। यह देखने में आया है कि सीमावर्ती इलाकों के नेता अपने पड़ोस के राज्यों की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति से वाकिफ होने की वजह से सफलता दिलाने में कामयाब रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका ओडिशा से सटा हुआ है। यही वजह है कि कोंडागांव की विधायक लता उसेंडी को ओडिशा में संगठन की जिम्मेदारी दी गई थी, और उन्होंने बेहतर ढंग से निभाया भी। इससे परे कांग्रेस में भी 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद ओडिशा के नेता भक्तचरण दास को कांग्रेस ने प्रदेश संगठन का प्रभारी सचिव बनाया था। दास ज्यादातर समय बस्तर में काम करते रहे। भक्तचरण दास की सिफारिश पर कांग्रेस ने बस्तर की सीटों पर प्रत्याशी तय किए थे। और 2013 में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली। ये अलग बात है कि मैदानी इलाकों में पिछडऩे की वजह से कांग्रेस, प्रदेश में उस वक्त सरकार बनाने से रह गई। बस्तर के प्रदर्शन को कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में भी दोहराया। कांग्रेस ने दंतेवाड़ा को छोडक़र सभी सीटों पर कब्जा जमाया। और सरकार बनाने में कामयाब रही।
दूसरी तरफ, भाजपा ने छत्तीसगढ़ के 67 नेताओं को वहां प्रचार के लिए भेजा था। लता प्रभारी थीं इसलिए सबकी ड्यूटी व्यवस्थित तरीके से स्थानीय समीकरण को ध्यान में रखकर लगाई गई। इसका फायदा भी मिला। चूंकि ओडिशा में भाजपा का बेहतर प्रदर्शन रहा है ऐसे में स्वाभाविक तौर पर लता की पूछ परख बढ़ गई है।
लाल बत्ती जल्द संभव
लोकसभा चुनाव के बाद सबसे ज्यादा चर्चा मंत्रिमंडल के दो सदस्यों की नियुक्ति को लेकर है, लेकिन नेता-कार्यकर्ताओं की इसमें रुचि कम है। उनकी रुचि निगम, मंडल और आयोगों में होने वाली नियुक्तियों पर है। बीच बीच में ऐसा हवा उड़ जाती है कि निगम मंडल में नियुक्तियां होने वाली हैं, लेकिन पुराने नेता जानते हैं कि ज्यादातर नियुक्तियां नगर निगम और पंचायत चुनाव के बाद ही होती हैं। इस साल के अंत तक निगम चुनाव होंगे। इसके बाद 6 महीने में पंचायत के चुनाव होंगे। तब जाकर नियुक्तियां शुरू होंगी। इससे पहले चर्चाओं में ही लॉलीपॉप थमाया जाएगा। वैसे यह भी पुख्ता खबर है कि सरकार और संगठन ने मिलकर पहली सूची तैयार कर ली है। देखना है कि यह कब जारी होती है ।
कांग्रेस संगठन कोरबा सरगुजा से चलेगा
कांग्रेस संगठन में भी आने वाले समय में बदलाव होना है। पिछले कार्यकाल में जिस गुट को ज्यादा भाव मिला था, इस बार उनके बजाय कुछ नए चेहरे जुड़ सकते हैं। कुछ स्थानीय नेताओं को राष्ट्रीय टीम में भी जिम्मेदारी मिल सकती है। काफी कुछ बदलाव की चर्चा है। इसके लिए पुराने कुछ साथियों के एक होने की बात सामने आ रही है, जो सरकार होने के बाद भी खुद को कमजोर और ठगा सा महसूस कर रहे थे। इस बार कोरबा और सरगुजा के दिग्गजों की तूती बोलने वाली है। लोकसभा चुनाव परिणाम का भी असर बदलाव में दिखाई दे सकता है।
बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला
जो अपनी आलोचना खुद करे, उससे बड़ा साहसी कोई हो नहीं सकता । ट्रकों के पीछे हमें कई दार्शनिक संदेश लिखे मिल जाते हैं। इस दिलेर ट्रक ड्राइवर ने लिखकर बताया है कि ट्रक चलाने वालों से शादी क्यों नहीं करनी चाहिए। हालांकि कोई-कोई ही ट्रक चालक होगा, जो उसकी बात से सहमत होगा। ट्रक चालकों का परिवार भी खुशहाल ही होगा। पर इसने आगाह कर दिया है। कुछ बुरा अनुभव रहा होगा उसका। लगे हाथ कुछ और स्लोगन याद दिला दें- बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला और देखे मगर प्यार से, तो सदाबहार और सुपरहिट हैं। 30 का फूल 80 की माला, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। जलो मत, बराबरी करो। और ये देखिये- नीयत तेरी अच्छी है तो किस्मत तेरी दासी है। कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है। यह भी बढिय़ा है- फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमां क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे। मार्मिक संदेश भी मिलेंगे- रात होगी, अंधेरा होगा और नदी का किनारा होगा, हाथ में स्टेयरिंग होगा, बस मां का सहारा होगा। यह भी मार्मिक है- हमें जमाने से क्या लेना-देना, हमारी गाड़ी ही हमारा वतन होगा- दम तोड़ देंगे स्टेयरिंग पर, तिरपाल ही हमारा कफन होगा।
सुनने में बुरा लगे तो लगे लेकिन बात व्यावहारिक है- दोस्ती पक्की, खर्चा अपना-अपना। और, मांगना है तो खुदा से मांग बंदे से नहीं- दोस्ती हमसे करो, धंधे से नहीं। और यह भी- नेकी कर जूते खा, मैंने खाए तू भी खा। मतलब की है दुनिया, कहां किसी से प्यार होता है- धोखा वही देते हैं, जिन पर ऐतबार होता है।
गाड़ी चलाने वालों को हिदायत भी दी जाती है- पीकर जो चलाएगा-परलोक चला जाएगा। चलाएगा होश में तो जिंदगी भर साथ दूंगी-पीकर चलाएगा तो परलोक पहुंचा दूंगी। बच्चे इंतजार में हैं, पापा वापस जरूर आना- दूर के मुसाफिर, नशे में गाड़ी मत चलाना। सूची लंबी है, पर फिर कभी।
कांग्रेस नेताओं को फैक्ट पता नहीं?
छत्तीसगढ़ में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार का कारण तलाशने के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में एक टीम पूरे पांच दिन दौरा कर संभागीय मुख्यालयों में कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करने जा रही है। पहली बार ऐसा हुआ है कि इसे फैक्ट फाइंडिंग टीम बताया गया है। लोकसभा चुनाव में संसद में विपक्ष के रूप में कांग्रेस मजबूत होकर पहुंची, लेकिन छत्तीसगढ़ में उसे केवल एक सीट कोरबा की मिल पाई। कांकेर सीट जीतने के कगार पर थी, पर किस्मत ने साथ नहीं दिया। कांग्रेस यदि पिछले कुछ महीनों की मीडिया रिपोर्ट्स की ही छानबीन कर ले तो बहुत से कारण सामने आ जाएंगे। कैसे विधानसभा में जीतने के बाद भाजपा ने महतारी वंदन और धान बोनस को जमीन पर लागू किया। राम मंदिर बाहर से आने वाले प्रत्येक स्टार प्रचारक के भाषण के केंद्र में रहा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने जिलों का दौरा करना जरूरी नहीं समझा और खुद चुनाव लडक़र एक बड़ी महत्वाकांक्षा पूरी करने के फेर में पड़ गए। राजनांदगांव में मंच पर अपने सीएम और अफसरों पर गुस्सा उतारने वाले कार्यकर्ता को पार्टी से बाहर कर दिया गया। बिरनपुर मसले पर उनके मंत्रियों का कैसा शुतुरमुर्ग जैसा रवैया रहा। सीएम की कुर्सी पकडऩे और खिसकाने की ढाई साल तक कसरत होती रही। ऐसी ही दर्जनों और बातें मीडिया पर आती रही है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस की जो टीम आ रही है, उसे पता तो सब होगा पर उन्हें लगता है कि बात करने से कार्यकर्ताओं का गुबार बाहर निकलेगा। कुछ उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले नगरीय चुनावों में साख बचाने में इससे मदद मिल जाएगी। ([email protected])
- 27 जून : तीन मूर्ति भवन को नेहरू संग्रहालय बनाने का निर्णय लिया गया
- नयी दिल्ली, 27 जून। इतिहास में 27 जून का विशेष महत्व है। 1964 में इसी दिन यह निर्णय लिया गया था कि दिल्ली में स्थित तीन मूर्ति भवन में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संग्रहालय बनाया जाएगा। उनके निधन के बाद उनकी स्मृति में इसे संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया। सीढ़ीनुमा गुलाब उद्यान और एक दूरबीन यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। इसी गुलाब उद्यान से नेहरु जी अपनी शेरवानी पर लगाने के लिए गुलाब का फूल चुना करते थे।
- देश और दुनिया के इतिहास में 27 जून की तारीख पर दर्ज अन्य प्रमुख घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1693 : लंदन में महिलाओं की पहली पत्रिका ‘लेडीज मरकरी’ का प्रकाशन शुरू।
- 1838 : राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम’ के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का जन्म।
- 1839 : पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह का निधन। महाराजा रणजीत एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं फटकने दिया।
- 1940 : सोवियत संघ की सेना ने रोमानिया पर हमला किया।
- 1957 : ब्रिटेन की मेडिकल रिसर्च काउंसिल की एक रिपोर्ट में बताया गया कि धूम्रपान की वजह से फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।
- 1967 : लंदन के एनफील्ड में विश्व का पहला एटीएम स्थापित किया गया।
- 1967 : भारत में निर्मित पहले यात्री विमान एचएस 748 को इंडियन एयरलाइंस को सौंपा गया।
- 1991 : युगोस्लाविया की सेना ने स्लोवेनिया के स्वतंत्र होने के 48 घंटे के भीतर ही इस छोटे से देश पर हमला कर दिया।
- 2002 : जी-8 देश परमाणु हथियार नष्ट करने की रूसी योजना पर सहमत हुए।
- 2003 : अमेरिका में समलैंगिकता पर प्रतिबंध रद्द।
- 2005 : ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की वीटो रहित स्थायी सदस्यता का समर्थन किया।
- 2008 : माइक्रोसॉफ्ट कारपोरेशन के चेयरमैन बिल गेट्स ने अपने पद से इस्तीफा दिया।
- 2008 : भारत और पाकिस्तान ने ईरानी गैस पाइप लाइन परियोजना को शुरू करने में आ रही बाधाओें को दूर किया।
- 2008 : 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के खिलाफ भारत के विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पूर्व थल सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ का निधन।
- 2021: जम्मू में वायुसेना के अड्डे पर आतंकवादियों ने ड्रोन के जरिए विस्फोटक गिराए। (भाषा)
बलौदाबाजार के बाद दलित राजनीति की दिशा
बलौदाबाजार हिंसा को लेकर बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती का बयान घटना के 15 दिन बीत जाने के बाद आया है। बलौदाबाजार और उससे आगे जाने पर मिलने वाले कसडोल, चंद्रपुर, पामगढ़, जैजैपुर, अकलतरा, जांजगीर, वे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां बहुजन समाज पार्टी का खासा असर है। ये ही वे इलाके हैं, जिनमें से उनके विधायक चुनकर आते हैं। इस बार जरूर कोई जीत नहीं सका लेकिन कांग्रेस या भाजपा प्रत्याशियों की हार-जीत में उनके उम्मीदवारों की मौजूदगी एक कारक रही।
इसके विपरीत घटना के एक सप्ताह बाद भीम आर्मी के प्रमुख, सांसद चंद्रशेखर आजाद का बयान आ गया था, जो यूपी में मायावती के प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभर रहे हैं। छत्तीसगढ़ पर उनका बयान इस लिहाज से भी जरूरी था क्योंकि पुलिस ने बलौदाबाजार हिंसा में उनके संगठन से जुड़े कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है।
यह गौर करने की बात है कि मायावती की प्रतिक्रिया बहुत संयमित है, जबकि आजाद ने अपने समर्थकों की गिरफ्तारी पर रोष अधिक दिखाया था। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि लोग मानकर चलते हैं कि भाजपा के प्रति मायावती उदार रहती हैं। मायावती ने बलौदाबाजार की कंपोजिट बिल्डिंग में हुई हिंसा की निंदा करते हुए जिम्मेदार असामाजिक तत्वों पर कार्रवाई की बात भी कही है। भीम आर्मी प्रमुख आजाद ने इसकी चर्चा भी अपने बयान में नहीं की। मायावती और आजाद दोनों ने ही बेकसूर लोगों को प्रताडि़त करने का सवाल उठाया है।
मायावती ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ में केवल अनुसूचित जाति पर व्यूह केंद्रित नहीं किया। ओबीसी को भी उन्होंने टिकट दी। इस बार चंद्रपुर सीट से हार गए पूर्व विधायक केशव चंद्रा ओबीसी से आते हैं। मगर, आजाद ने अपनी राजनीतिक गतिविधि सिर्फ अनुसूचित जाति पर केंद्रित रखी है। बसपा ने भी पहले ऐसा ही किया था, वह बाद में उदार हुई।
यह कहा जा रहा है कि भाजपा की ओर रुझान के चलते छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति के पारंपरिक मतदाता बसपा से विमुख हुए हैं। इसका असर 2023 के विधानसभा चुनाव में दिखा, जब उसे एक भी सीट नहीं मिली। बसपा ओबीसी मतदाताओं में पैठ रखने के बावजूद अपने प्रभाव वाली सीटों पर नाकाम रही। दूसरी ओर भीम आर्मी की, बलौदाबाजार घटना के बहाने दस्तक हो गई है, जिसका फोकस सिर्फ अनुसूचित जाति के मतदाताओं पर है। आने वाले दिनों में अनुसूचित जाति पर राजनीति करने वाले दलों की भूमिका बदलनी तय दिखाई दे रही है। यह अधिक बिखराब के रूप में भी हो सकता है और एकजुटता के रूप में भी।
पूर्व सीएस अजय सिंह चर्चा में आए
मुंगेली जिले के एक छोटे से गांव पथरिया, जो अब नगर पंचायत है, के धोती-कुर्ता धारी एक वकील फतेह सिंह चंदेल ने तय किया कि वे अपना सारा परिश्रम बच्चों को ऊंचे मुकाम पर पहुंचाने में लगाएंगे। वे परिवार सहित बिलासपुर शिफ्ट हो गए। यहीं वकालत करने लग गए और बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। उनके बेटे अजय सिंह पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के दौर में मुख्य सचिव हुआ करते थे। छत्तीसगढिय़ावाद को बहुत आगे बढ़ाने का दावा करने वाले भूपेश बघेल को ये छत्तीसढिय़ा जमे नहीं। दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के 15 दिन बाद वे प्रमुख सचिव पद से हटा दिए गए। खैर, हर सीएम को अधिकार है कि वे अपनी पसंद का सीएस रखें। इस बीच अजय सिंह राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे, फिर 2020 में रिटायर हो गए। इसके बाद वे क्या कर रहे थे, इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। सरकार के ताजा आदेश के मुताबिक अब वे राज्य निर्वाचन आयुक्त की जिम्मेदारी संभालेंगे। इनका पहला काम नगरीय निकायों का चुनाव कराना होगा, जो इस साल के नवंबर में होने जा रहा है। उसके बाद पंचायतों की बारी भी आएगी।
अजय सिंह की पत्नी आभा एक काबिल चिकित्सक हैं। उनके एक भाई भी डॉक्टर हैं और एक भाई अरविंद सिंह चंदेल हाईकोर्ट में जज हैं।
मंत्री-विधायकों के परफॉर्मेंस की जांच
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने भले ही 10 सीटें जीती हैं, लेकिन सभी मंत्री-विधायकों के परफॉर्मेंस से भाजपा खुश नहीं है। पिछले दिनों हुई एक वर्चुअल बैठक में प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय ने विधानसभावार खराब परफॉर्मेंस की रिपोर्ट बनाने के लिए कहा है। इसमें यह देखा जाएगा कि जहां-जहां भाजपा के विधायक हैं, उन सीटों पर लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा प्रत्याशी को कितने वोट मिले हैं। यदि कम मिले हैं तो क्या कारण हैं?
दरअसल, 10 सीटें जीतकर भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा भले ही वापस पा ली, लेकिन परफॉर्मेंस के हिसाब से देखें तो कुछ महीने पहले जीती हुई 11 विधानसभा सीटों पर लोकसभा चुनाव में भाजपा पीछे रही। कोरबा सीट भाजपा के हाथ से निकल गई, जबकि यहां संगठन ने पूरी ताकत लगाई थी। स्थानीय स्तर पर कुछ नेताओं द्वारा भितरघात करने की बातें आ रही हैं। पूरी रिपोर्ट बनने के बाद संभवत: जिम्मेदारों से जवाब-तलब किया जा सकता है। आने वाली नियुक्तियों में भी इसका असर पड़ सकता है।
पुराने मंत्रियों के साथ क्या होगा?
मंत्रिमंडल की दो खाली सीट पर किसे नियुक्ति दी जाएगी, किसे नहीं, इससे ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि जो पुराने नेता हैं, उनका क्या होगा? दरअसल, पिछले बजट सत्र में सब लोगों ने देखा कि धरमलाल कौशिक और अजय चंद्राकर समेत कई पुराने नेताओं ने किस तरह विधानसभा में अपनी ही सरकार के सामने असहज स्थिति पैदा कर दी थी।
सवाल तो पुरानी सरकार के कामकाज पर पूछे गए थे, लेकिन नए नवेले मंत्रियों के लिए जवाब देना आसान नहीं था। कुल मिलाकर संदेश यह गया कि विधायकों ने अपनी ही सरकार को घेरा। मंत्रिमंडल के दो पदों पर इतने सारे पुराने नेताओं को तो एडजस्ट नहीं किया जा सकता। यदि ये नेता विधानसभा में सवाल पूछने लगे तो भी सरकार के लिए असहज होने की स्थिति बनती रहेगी। ([email protected])
मंत्रालय में ऐसा दूसरी बार
छत्तीसगढ़ में बदलती सरकारों के साथ प्रशासन में भी बदलाव होते रहे हैं । यह सरकार नहीं करती, सरकार के करीबी रहे अफसर ही करवाते रहे। सीएस के समकक्ष को राजस्व मंडल, प्रशासन अकादमी भेजना तो परंपरा बन चुकी है। वहीं एमडी मार्कफेड, एमडी शराब निगम जैसे आईएएस के कैडर पदों पर आईपीएस या राप्रसे तो दूर अन्य कैडर के अफसरों को बिठाने की व्यवस्था छत्तीसगढ़ में ही शुरू हुई। इसे लेकर कई बार आईएएस एसोसिएशन सरकार से मिलकर असहमति जता चुका है। इस बार तो एक नई परंपरा शुरू की गई है।
वह यह कि अवर सचिव का पद ज्वाइंट कलेक्टर के समकक्ष है, और यहां आईएएस वासु जैन पदस्थ किए गए । ऐसा 24 वर्ष में दूसरी बार हुआ, जब आईएएस की पोस्टिंग हुई है। इससे पहले स्कूल शिक्षा विभाग में अपर सचिव के पद पर रणवीर शर्मा की पोस्टिंग हुई थी। वैसे अब तक अधिकतम राप्रसे अफसर बनाए जाते रहे हैं।
तीन दिन पहले वासु जैन के जारी इस आदेश पर महानदी भवन में चर्चाएँ चल पड़ी है। आईएएस कह रहे अक्षम्य नाराजगी जैसी बात है तो बिना विभाग के मंत्रालय में अटैच रख देते।यह परंपरा भी तो यहीं स्थापित हुई है। इस बार की पोस्टिंग ऑर्डर से लॉबी खुश नहीं है, जल्द ही सीएम के साथ डिनर होने वाला है। उसमें एसोसिएशन क्या करता है देखने वाली बात होगी। सदस्यों को बचाने की जिम्मेदारी उसकी ही है।
जल्द हो सकती है पारी खत्म
राज्य की पुलिसिंग में बड़े बदलाव के संकेत हैं। एक झटके में बलौदाबाजार एसपी को निलंबित कर सरकार ने तेवर दिखा दिए हैं। बड़े जिलों में भी बदलाव की तैयारी चल रही है। इसमें सबसे बड़ी वजह लॉ एंड आर्डर है। यह चुनाव में भी मुख्य मुद्दा था, जिसके दम पर भाजपा, कांग्रेस से सत्ता छीनने में कामयाब हो गए।
कानून व्यवस्था जहां ठीक है, वहां विधायक, स्थानीय नेता कप्तान से नाराज है कि उनकी बात नहीं सुनते। सरकार और संगठन से उनकी सुनने वाले कप्तान की पोस्टिंग की मांग हो रही है। एक आईजी के डेपुटेशन पर जाने को देखते कुछ रेंज के आईजी बदल सकते है। रायपुर में पूर्णकालीन आईजी की पोस्टिंग हो सकती है। क्योंकि रायपुर में मॉब लीचिंग, बलौदाबाजार हिंसा और थानों में ब्लेड चलना, सिपाहियों पर हमले जैसी बड़ी चूक मानी जा रही है। इसलिए नई पोस्टिंग हो सकती है। सरगुजा और दुर्ग आईजी भी बदल सकते हैं।
संस्कृत से लेकर बृजमोहन तक
छत्तीसगढ़ के नवनिर्वाचित सांसदों ने सोमवार को शपथ ली। सरगुजा के सांसद चिंतामणि महाराज को छोडक़र बाकियों ने हिन्दी में शपथ ली। चिंतामणि महाराज, उन तीन सांसदों में थे जिन्होंने संस्कृत में शपथ ली। चिंतामणि महाराज की तरह दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की बेटी दिल्ली की सांसद बांसुरी ने भी संस्कृत में शपथ ली।
पहली बार के सांसद चिंतामणि महाराज के संस्कृत में शपथ लेने पर नवनिर्वाचित सांसदों ने सबसे ज्यादा मेज थपथपाकर स्वागत किया। चिंतामणि महाराज के बादं बृजमोहन अग्रवाल के शपथ लेने पर सांसदों ने स्वागत किया। शपथ लेने के बाद केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने बृजमोहन को संसद भवन स्थित अपने कक्ष में नाश्ते पर आमंत्रित किया।
बृजमोहन ने ओडिशा के चार लोकसभा संबलपुर, सुंदरगढ़, बरगढ़, और भुवनेश्वर के प्रभारी थे। यहां पार्टी को जीत मिली है। भूपेन्द्र यादव ओडिशा के चुनाव प्रभारी थे। तब भी उस समय बृजमोहन की भूमिका की सराहना की थी। और अब जब बृजमोहन सांसद बनकर पहुंचे हैं, तो उनकी काफी पूछ परख होती दिख रही है।
जल जीवन मिशन के पाक-साफ अफसर
जल जीवन मिशन के काम को लेकर पिछली सरकार के कार्यकाल में बेतहाशा शिकायतें मिली थी। कई ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट किया गया, वसूली का आदेश निकला और अधिकारी सस्पेंड भी किए गए। इस गर्मी में प्रदेश के अनेक शहरों और गांवों से रिपोर्ट आती रही कि किस तरह पाइपलाइन आधी अधूरी बिछाई गई हैं। पानी टंकी तैयार है लेकिन सप्लाई नहीं हो रही है। जो काम हो रहे हैं उनमें गुणवत्ता का भारी अभाव है। कल ही भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अनुराग सिंहदेव ने डिप्टी सीएम अरुण साव को ज्ञापन सौंप कर कहा कि सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर जिले में जल जीवन मिशन के काम में भारी भ्रष्टाचार हुआ है, जांच कराएं।
मगर राजनांदगांव जिले में शिकायतों की जांच के बाद अफसरों को ठेकेदारों से ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिल गया है। बीते अप्रैल में राजनांदगांव कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन के लेटर हेड पर मिशन संचालक को शिकायत मिली थी कि वह अफसर की कमीशन खोरी से त्रस्त हैं। चंदे के नाम पर 10 प्रतिशत कमीशन मांगा जा रहा है और भुगतान नहीं करने पर बिलों में दस्तखत नहीं किए जा रहे हैं। शिकायत संगठन की तरफ से थी, इसलिए तुरंत दुर्ग के एक अधिकारी को जांच के लिए भेजा गया। जब अधिकारी पहुंचे तो कोई बयान देने के लिए पहुंचा ही नहीं। जब जांच अधिकारी के सामने कोई आया नहीं, तब उन्होंने मान लिया कि शिकायत फर्जी है। शिकायत करने वाले किसी अज्ञात कारण से पीछे हट गए। अब जांच अधिकारी ने मान लिया है कि शिकायत फर्जी है। सब ठीक चल रहा है। यह रिपोर्ट तैयार हो गई, पेश कर दी गई। अब जिनकी शिकायत हुई वे डंके की चोट पर कह सकते हैं कि हम कमीशन नहीं खाते।
अतिरिक्त समय ही दे देना था...
यूजी-नीट की परीक्षा में ग्रेस मार्क पाने वाले 1563 छात्रों को दोबारा टेस्ट देने का मौका मिला, जिनमें से सिर्फ 813 शामिल हुए। चंडीगढ़ के दो छात्रों को मौका था, पर दोनों शामिल नहीं हुए। इसके बाद छत्तीसगढ़ में मौजूदगी सबसे कम रही, यहां के बालोद केंद्र में 185 पात्र परीक्षार्थियों में से 115 ने भाग लिया और दंतेवाड़ा केंद्र में तो 417 में से 176 ने ही लिया। भाग नहीं लेने वाले परीक्षार्थियों का कहना है कि जून के पहले सप्ताह में रिजल्ट आने के बाद से इस पर देशभर में जो विवाद चल रहा है, उसके चलते वे तनाव में हैं। वे दोबारा खुद को परीक्षा देने के लिए तैयार नहीं कर पाए। हमने ग्रेस मार्क के लिए नहीं कहा था। हमें गलत पेपर बांट दिया गया था। सही पेपर देर से मिला। अतिरिक्त समय की मांग हमने उसी समय की थी।
शायद स्थानीय अफसर इस मांग पर फैसला इसलिये नहीं ले पाए क्योंकि उन्हें कोई अधिकार ही नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने नहीं दिया था। अब एजेंसी को विचार करना चाहिए कि देशभर में एग्जाम एक साथ होते हैं तो अलग-अलग अनचाही परिस्थितियां खड़ी हो सकती हैं। स्थानीय अधिकारियों को ऐसे में जरूरत के अनुसार फैसले लेने की छूट मिलनी चाहिए।
नांदघाट का फल बाजार..
रायपुर-बिलासपुर हाईवे के बीच शिवनाथ नदी के पुल पर फलों का बाजार लगता है। बड़ी भीड़ होती है। यात्री यहां रुकते हैं और कुछ खरीद कर आगे बढ़ते हैं। छत्तीसगढ़ के दूसरे हाट-बाजारों की तरह यहां भी मौसमी फल मीठे जामुन बिकने के लिए आए हैं। सामरी की विधायक सिद्धेश्वरी पैकरा रायपुर से अंबिकापुर जाते हुए रुकीं और उन्होंने भी अपने लिए खरीद लिए। ([email protected])
- 1975 में आज ही के दिन की गई थी देश में आपातकाल की घोषणा
- नयी दिल्ली, 25 जून। इतिहास में 25 जून का दिन भारत के लिहाज से एक महत्वपूर्ण घटना का गवाह रहा है। देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की 21 महीने की अवधि के लिए आपातकाल लागू किया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी।
- देश और दुनिया के इतिहास में 25 जून की तारीख पर दर्ज कुछ अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1529 : मुगल शासक बाबर बंगाल पर विजय प्राप्त कर अपनी राजधानी आगरा लौटा।
- 1788 : वर्जीनिया अमेरिका का संविधान अपनाने वाला 10वां राज्य बना।
- 1941 : फिनलैंड ने सोवियत संघ पर हमले की घोषणा की।
- 1947 : एन फ्रैंक की ‘डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ आज ही के दिन प्रकाशित हुई थी। इसका 67 भाषाओं में अनुवाद किया गया।
- 1950 : उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच गृह युद्ध शुरू हो गया और बाद में इसने अंतरराष्ट्रीय शीत युद्ध का रूप ले लिया।
- 1974 : बॉलीवुड अभिनेत्री करिश्मा कपूर का जन्म।
- 1975 : इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की।
- 2005 : ईरान के राष्ट्रपति चुनावों में अति कट्टरपंथी माने जाने वाले महमूद अहमदीनेजाद की जीत की घोषणा।
- 2009 : पाश्चात्य संगीत और नृत्य की एक नई परिभाषा लिखने वाले अमेरिकी पॉप गायक माइकल जैक्सन की मृत्यु।
- 2023 : नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में 100 किलोग्राम के आभूषणों में से 10 किलोग्राम सोना गायब होने संबंधी रिपोर्ट की जांच के लिए भ्रष्टाचार रोधी निकाय ने मंदिर परिसर को अपने नियंत्रण में लिया । (भाषा)
संविदा नियुक्ति की चर्चा से हलचल
मंडी बोर्ड के प्रभारी एमडी महेन्द्र सिंह सवन्नी रिटायर हो रहे हैं। मंडी इंस्पेक्टर से प्रभारी एमडी तक सफर तय करने वाले सवन्नी को संविदा नियुक्ति मिलने की चर्चा मात्र से बोर्ड काफी हलचल है। कई अफसरों ने सवन्नी के खिलाफ पीएमओ तक शिकायत की है, और किसी भी दशा में उन्हें संविदा नियुक्ति नहीं देने की गुजारिश भी की है।
शिकायत में मंडी बोर्ड के कई घपले-घोटाले का भी जिक्र है, और इसमें सवन्नी की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं। सरकार चाहे कोई भी हो, सवन्नी का मंडी बोर्ड में दबदबा रहा है। जोगी सरकार में तत्कालीन कृषि मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम और राज्य मंत्री विधान मिश्रा के करीबी रहे हैं। भाजपा सरकार में उन्हें कोई दिक्कत थी ही नहीं, उनके सगे भाई भूपेन्द्र सिंह सवन्नी प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष हैं, और रमन सरकार में हाउसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं।
कांग्रेस सरकार के आने के बाद महेन्द्र सिंह सवन्नी का रुतबा कम नहीं हुआ, और वो कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे के करीबी हो गए। अब जब संविदा नियुक्ति की फाइल चली है, तो मंडी बोर्ड में सवन्नी विरोधी खेमे में नाराजगी देखी जा रही है। देखना है आगे क्या होता है।
तारीफ तो बनती है...
राज्य बनने के बाद दो लोकसभा सीट महासमुंद, और कांकेर में दो हजार से कम वोटों पर जीत हार का फैसला हुआ है। दोनों बार भाजपा को फतह हासिल हुई है। खास बात यह है कि दोनों सीटों पर भाजपा के चुनाव प्रभारी पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर थे।
कांकेर में भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग को मात्र 1884 वोटों से जीत हासिल हुई है। यह मुकाबला कांटे का था। भाजपा तो इस सीट को काफी कठिन मानकर चल रही थी। मगर अजय चंद्राकर अकेले थे, जो पार्टी के हर फोरम में कांकेर से जीत का दावा कर रहे थे।
कुछ इसी तरह का मुकाबला वर्ष-2014 में महासमुंद सीट पर हुआ। उस वक्त कांग्रेस से दिग्गज पूर्व सीएम अजीत जोगी मुकाबले में थे। भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू ने करीब 12 सौ वोटों से अजीत जोगी को मात दी थी। तब भी भाजपा के रणनीतिकारों में अकेले अजय चंद्राकर को छोडक़र कोई भी चंदूलाल साहू की जीत का भरोसा नहीं कर पा रहा था।
कांकेर में इस बार कड़े मुकाबले में भाजपा की जीत के लिए अजय चंद्राकर की भूमिका को सराहा जा रहा है। अजय बस्तर, कांकेर और महासमुंद क्लस्टर के प्रभारी थे। तीनों सीट पर भाजपा जीत हासिल की है।
राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में ट्रेनिंग के लिए गए बड़े पुलिस अफसरों में से बहुत से वहाँ टाई पहनने के नियम को अनदेखा करते हैं। इसलिए चेतावनी दी गई है कि जो लोग टाई नहीं पहने होंगे, उन्हें चाय के साथ समोसा नहीं दिया जाएगा।
दो आईपीएस की दिल्ली की राह
बस्तर आईजी सुंदरराज पी और पीएचक्यू में डीआईजी डी श्रवण, केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। सुंदरराज की पोस्टिंग हैदराबाद पुलिस अकादमी में हो सकती है। सुंदरराज करीब 7 साल से अधिक समय से बस्तर इलाके में पोस्टेड हैं। इससे पहले वो कांकेर में डीआईजी, और फिर बस्तर में आईजी बनाए गए।
सुंदरराज बस्तर में सबसे ज्यादा समय तक काम करने वाले अफसर हैं। उनके प्रयासों से बस्तर में नक्सल गतिविधियों में भारी कमी आई है। राज्य पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षाबलों के बीच तालमेल बेहतर हुआ। उनकी काबिलियत को देखकर ही चुनाव आयोग ने उन्हें वहां बनाए रखने पर सहमति दी थी। जबकि एक ही जगह पर 3 साल से अधिक समय से जमे अफसरों को हटाने का आदेश दिया गया था।
इसी तरह पीएचक्यू में पोस्टेड डीआईजी डी श्रवण की प्रतिनियुक्ति को राज्य सरकार ने मंजूर कर लिया है। आईपीएस के 2008 बैच के अफसर श्रवण की पोस्टिंग आईबी में हो सकती है। इन सब वजहों से आईजी और एसपी स्तर के कुछ अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है।
24 वर्ष में पांच अवर सचिव
छत्तीसगढ़ राज्य को बने 24 वर्ष हो गए। इस दौरान पांच मुख्य मंत्री, पांच गृह मंत्री, आधा दर्जन से अधिक मुख्य सचिव, एक दर्जन से अधिक एसीएस, पीएस गृह सचिव हुए, आधा दर्जन से अधिक डीजीपी बने। ये हम इसलिए गिना रहे कि सभी बड़े पदों पर बदलाव होता रहा। लेकिन नहीं बदले तो गृह विभाग में अवर सचिव। इन 24 वर्ष में मात्र पांच ही अवर सचिव हुए हैं। जो भी रहे अधिकांश रिटायर होकर ही निकले। यह कुर्सी का महत्तम है या बैठने वाले की सेटिंग। एक बार बैठ गए तो उठे नहीं। इनमें एक रिटायर होने के कुछ पहले ही हटाये गए। तो दूसरे का तबादला किया गया लेकिन जिन हाथों से हुआ उन्ही ने निरस्त भी किया। इन अवर सचिव ने बने रहने एड़ी चोटी लगा दी। सफल रहे और अब कम से कम बारह वर्ष बाद 30 जून को रिटायर होने जा रहे हैं। ग्रेड वन से एसओ और अवर सचिव तक गृह विभाग में ही जमे रहे।अब इस कुर्सी के लिए नए दावेदार जोर लगा रहे। इसके विपरीत जीएडी के आईएएस सेक्शन में अवर सचिव बदलते ही रहे।
नॉर्थ ब्लॉक की लॉबी और छोटे राज्य
सेंट्रल डेपुटेशन में नार्थ, साउथ ब्लाक, शास्त्री भवन में टिके रहना छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के अफसरों के लिए आसान नहीं। जो टिक गया वो दशक डेढ़ दशक रह जाता और नहीं तो वापसी की तैयारी करने लगता है। उत्तर और दक्षिण भारत के अफसरों की लॉबी, छोटे राज्यों के अफसरों की बड़ी पोस्टिंग पसंद नहीं करते। वे अड़ंगे लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। उन्हें तो, अपने मातहत, संयुक्त सचिव, डायरेक्टर जैसे पदों पर असिस्टेंट चाहिए होते हैं । इसी सोच की वजह से नीट का मामला उजागर हुआ। एनटीए के डीजी सुबोध सिंह की वापसी नहीं तो, वहां से कल देर रात हटा दिए गए।
उनकी सेवाएं डीओपीटी को लौटा दी गई है। इससे पहले निधि छिब्बर के साथ भी लॉबी ने किया। वार्षिक परीक्षाओं से ठीक पहले मैडम को सीबीएसई के चेयरमैन नीति आयोग में शिफ्ट कर दी गई। छिब्बर , पहले रक्षा विभाग फिर सीबीएसई चेयरमेन नियुक्त हुईं। चेयरमैन के पद पर तो सबसे कम अवधि रहीं।
जेसीसी में जान कौन फूंकेगा?
पूर्व विधायक अमित जोगी और उनकी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की एक बार फिर चर्चा निकल पड़ी है। एक सोशल मीडिया पोस्ट में अमित जोगी ने कहा है कि लोग यह भ्रम न पालें कि जोगी परिवार भाजपा सरकार का कृपा पात्र होगा। रायपुर का सागौन बंगला और बिलासपुर का मरवाही सदन दोनों ही खाली कर दिए गए हैं।
जोगी के निधन के बाद हुए मरवाही उप चुनाव में परिस्थितियां ऐसी बनीं कि जेसीसी ने भाजपा प्रत्याशी को समर्थन दे दिया। वे नहीं जीत पाए लेकिन उसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में मरवाही में पार्टी की मौजूदगी का असर ऐसा रहा कि राज्य बनने के बाद पहली बार वहां से भाजपा के हाथ में सीट आ गई। लोकसभा चुनाव से पहले जब अमित जोगी केंद्रीय गृह मंत्री से ‘सौजन्य मुलाकात’ करके लौटे तब चर्चा थी कि भाजपा उनके जनाधार का कुछ फायदा उठाएगी, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस पोस्ट के बाद अब भाजपा से दूरी अधिक स्पष्ट हो गई है।
पोस्ट में कांग्रेस के प्रति थोड़ा झुकाव भी दिख रहा है। उन्होंने अपनी लड़ाई को कांग्रेस नहीं, इसे ‘प्राइवेट फर्म बनाने वाले नेता’ के खिलाफ बताया है। कहा है कि सांप्रदायिकता और खनिज संसाधनों को बेचने के विरोध में वे दोनों राष्ट्रीय दलों के खिलाफ 5 साल तक लड़ेंगे।
पार्टी के अधिकांश संस्थापक, सदस्य विधायक और पूर्व विधायक, स्व. जोगी के बाद एक-एक करके पार्टी छोड़ चुके हैं। इनमें से कुछ लोगों ने अमित जोगी के व्यवहार को पार्टी छोडऩे का कारण बताया। विधानसभा चुनाव से पहले एक चर्चा यह थी कांग्रेस और जोगी कांग्रेस के बीच कुछ मध्यस्थता कराई जा रही है। मगर, बात तब नहीं बनी, जब अमित जोगी को लेने पर कई लोगों ने ऐतराज जताया। बीते विधानसभा चुनाव में यह तय हो गया कि पार्टी का जनाधार तेजी से घट चुका है। पाटन सीट से अमित जोगी ने प्रत्याशी बदल दिया और खुद मैदान में उतरे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हराने के लिए, लेकिन अमित जोगी उम्मीद से काफी कम वोट ले पाए। सन् 2018 में बेहद कम मार्जिन से हारने वालीं ऋचा जोगी को भी 2023 में निराशा हाथ लगी।
ऐसी स्थिति में अमित जोगी ने घोषणा कर दी है कि वे पार्टी अध्यक्ष नहीं रहेंगे। जोगी परिवार से बाहर का कोई अध्यक्ष बनेगा। कई लोग इस कदम को जिम्मेदारी से बच निकलने का एक सुविधाजनक रास्ता मान सकते हैं, पर हो सकता है कि पार्टी फिर खड़ी हो जाए। तब उन्हें कांग्रेस और बीजेपी वाले एक दूसरे की ‘बी’ टीम बताना बंद कर देंगे।
फसल और मौसम का अनुमान
धान बोने की शुरुआत हो रही है। ऐसे में आप किसी-किसी आंगन में ऐसी तैयारी देख सकते हैं। किसान अच्छी फसल और मौसम का अनुमान लगाने के लिए तीन दिनों के लिए गोबर से पांच गोल कटोरे की आकृतियां बनाते हैं, जिसे ढाबा कहते हैं। इनमें से तीन को पानी और दो को बीज से भरा जाता है। पानी से भरे कटोरे आषाढ़, सावन, भादों के प्रतीक होते हैं। ताकि आने वाले तीन माह खेतों मे वर्षा अधिक हो और फसलों को पानी मिल सके। अगर इन तीनों कटोरे मे से किसी भी एक कटोरे मे इन तीन दिनों में पानी कम होता है तो यह माना जाता है के उस माह में पानी कम गिरेगा। बाकी दो कटोरे बीज से भरे होते हैं, जिन्हें कोठी का प्रतीक माना जाता है। कहीं-कहीं मिट्टी के नए घड़े में पानी भरकर उसे मिट्टी के ढेले पर भी रख दिया जाता है। ([email protected])
कांग्रेस अब तक उबरी नहीं
विधानसभा, और लोकसभा चुनाव में बुरी हार से कांग्रेस अब तक उबर नहीं पाई है। कई नेता तो लोकसभा चुनाव से पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं। कुछ बड़े नेताओं ने पार्टी की गतिविधियों में हिस्सा लेना बंद कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि शुक्रवार को नीट परीक्षा में धांधली के विरोध में प्रदेश स्तरीय धरना-प्रदर्शन में कुल सवा सौ लोग ही जुट पाए।
इन सबके बीच चर्चा यह है कि चुनाव के बीच में ही कांग्रेस के एक बड़े नेता ने पार्टी छोडऩे का मन बना लिया था। कहा जा रहा है कि वो भाजपा सरकार के मुखिया के संपर्क में भी थे। मगर भाजपा के रणनीतिकारों ने नफा-नुकसान का आंकलन कर आगे बात नहीं बढ़ाई और नेताजी का भाजपा प्रवेश रह गया। कुछ इसी तरह विधानसभा लड़ चुके एक व्यक्ति को भी भाजपा में लाने की तैयारी थी लेकिन भाजपा के अंदर खाने में इस पर सहमति नहीं बन पाई। हालांकि कुछ लोगों का अंदाज है कि नगरीय निकाय चुनाव के पहले कांग्रेस में तोडफ़ोड़ हो सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
दो कि़स्म के त्रिकोण
भाजपा के तीन नेताओं की दोस्ती और तीन अन्य के बीच मनमुटाव की चर्चाएं पार्टी हलकों में चटखारे के साथ होने लगी हैं। हैं भी मजेदार । पहले बात दोस्ती की कर लें।इन तीन में से एक नेता दक्षिणी छोर,दूसरे मध्य क्षेत्र और तीसरे मध्य उत्तर-इलाके से आते हैं। तीनों नेता जब राजधानी में होते हैं तो रोजाना रात, किसी न किसी के घर जुटते हैं। किसी के घर के लॉन में साफ्ट बॉल से तीनों क्रिकेट खेलते हैं। अगले दिन दूसरे के घर जाने पर हल्के से म्यूजिक के साथ सिर पर प्याला रख बैलेंसिंग डांस कॉम्पिटिशन करते हैं ।
अब बात मनमुटाव वाले नेताओं की । ये लोग एक दूसरे पर शक करते हुए एक दूसरे की पोल खोलने में लगे रहते हैं। इनमें एक राजधानी के, दो पड़ोसी जिले के रहवासी हैं। एक ने दूसरे के स्कार्पियो पर उंगली उठाई तो ये, पहले वाले के रेत से तेल निकालने के कारोबार को प्रचारित करने कोई कसर नहीं छोड़ रहे। छ माह के भीतर ही हो रहे ऐसे किस्सों से भाई साहब लोग हतप्रभ और परेशान हैं। देखना है कि क्या रास्ता निकालते हैं।
एसडीएम तक पहुंची एसीबी
एंटी करप्शन ब्यूरो ने सरगुजा जिले के उदयपुर में जिन चार लोगों को घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है, उनमें एसडीएम भागीरथी खांडे भी शामिल हैं। खांडे ने रिश्वत अपने हाथ में नहीं ली थी, एक को लेने कहा, जब उसने ले लिया तो दूसरे को रख लेने के लिए कहा। इस घटना ने 9 साल पुरानी एक घटना की याद दिला दी है। आईएएस रणबीर शर्मा को नौकरी में आए महज तीन साल हुए थे। उन्हें भानुप्रतापपुर में एसडीएम का पद सौंपा गया था। वहां उनके लिए स्टाफ ने 40 हजार रुपये रिश्वत ली। तब एसडीएम को सिर्फ तबादले की सजा मिली। एसीबी उनको कानूनी घेरे से बचा ले गई थी। वैसे ये अफसर तब भी बचा ले गए थे जब एसडीएम ही रहते मरवाही में भालू पर गोली चलवा दी थी और कोविड महामारी के दौरान सूरजपुर में कलेक्टर रहते एक बच्चे की बीच सडक़ में पिटाई कर दी थी।
बहरहाल, राजस्व, पुलिस और दूसरे विभागों में जो भी रिश्वत ली जाती है, उसमें लेने वाले बताते हैं कि अफसरों का भी इसमें हिस्सा जुड़ा हुआ है। पर, उन अधिकारियों तक एसीबी के हाथ नहीं पहुंचते। राजस्व विभाग में सिर्फ नीचे के कर्मचारियों पर कार्रवाई होने के कारण कार्यालय प्रमुख पाक-साफ नजर आते हैं। वे अपने हाथ में घूस की रकम सीधे नहीं लेते। एसीबी ने एसडीएम पर कार्रवाई कर बता दिया है कि हाथ रंगे न हों, मगर इस बात का सबूत मिलेगा कि उनका हिस्सा है तो अफसर के गिरेबान को भी पकड़ा जा सकता है। दो चार ऐसी और कार्रवाई रेवन्यू में फैले बेतहाशा भ्रष्टाचार को कम कर सकती है।
एक एसडीएम ने रेत बेच दी?
राजनांदगांव जिले में डोंगरगढ़ के एसडीएम भी दो दिन से चर्चा में हैं। इन पर जब्त रेत बेच देने का आरोप है। दरअसल, डोंगरगढ़ के मुड़पार इलाके में रेत का अवैध भंडार पकड़ा गया। करीब 800 हाईवा रेत एसडीएम उमेश पटेल ने जब्त कर ली। अब वह जब्त रेत गायब हो गई है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाली है। वे कह रहे हैं कि भाजपा के दो तीन ठेकेदारों को एसडीएम ने रेत बेच दी और रातों-रात रेत गायब हो गई। खनिज विभाग को पता ही नहीं रेत कहां चली गई। बहरहाल, कलेक्टर ने एक एडीएम को जांच की जिम्मेदारी दी है। शायद सच सामने आ जाए। पर, इस घटना से पता चल रहा है कि बारिश से पहले रेत की कितनी मारामारी हो रही है। जो लोग अपना मकान बना रहे हैं, उनकी क्या हालत हो रही होगी।
हर दिन मदर्स डे
पिछले महीने मई में मदर्स डे मनाया गया, फिर जून में फादर्स डे आया। इस बात का पता इस तस्वीर में दिखाई गई मां को पता होगा, न उसके बच्चे को। छोटा सा बालक अपनी मां को लगेज सहित घर से दूसरे गांव ले जाते हुए। साइकिल की सीट ऊंची है, इसलिये वह कैंची चला रहा है। जितनी खुशी बच्चे को हो रही है, उससे ज्यादा खुश मां दिखाई दे रही है। यह तस्वीर बस्तर जिले के कल्चा गांव की है। ([email protected])
- 22 जून : नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने की फारवर्ड ब्लाक की स्थापना
- नयी दिल्ली, 22 जून। इतिहास के पन्ने पलटते पलटते 22 जून को हम साल के 173वें दिन पर आ पहुंचे और अब साल के 192 दिन बाकी हैं। इतिहास में 22 जून के नाम जो घटनाएं दर्ज हैं उनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा फारवर्ड ब्लाक की स्थापना जैसी महत्वपूर्ण घटना भी है।
- साल 1939 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 22 जून के ही दिन ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन के बाद नेताजी ने 1939 में कांग्रेस को जनता की स्वतंत्र होने की इच्छा, लोकतंत्र और क्रांति का प्रतीक बनाने के लिए कांग्रेस के भीतर ही फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की थी।
- देश दुनिया के इतिहास में 22 जून की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1555 : मुगल सम्राट हुमायूं ने अपने पुत्र अकबर को अपना वारिस घोषित किया।
- 1897 : चापेकर भाइयों, दामोदर और बालकृष्ण ने पुणे में एक ब्रिटिश अधिकारी को गोली मार दी।
- 1906 : स्वीडन ने राष्ट्रीय ध्वज अपनाया।
- 1911 : किंग जॉर्ज पंचम इंग्लैंड के राजा बने।
- 1939 : नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना की।
- 1941 : द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी ने सोवियत रूस पर आक्रमण किया।
- 1944 : अमेरिका ने सेवानिवृत सैनिकों की मदद के लिए कानून बनाया।
- 1981 : अमेरिकी संगीतज्ञ जॉन लेनन के हत्यारे ने अपना अपराध कबूल किया।
- 1986 : अर्जेंटीना के फुटबाल खिलाड़ी दिएगो माराडोना ने यादगार ‘‘हैंड ऑफ गॉड’ गोल किया। इंग्लैंड के खिलाफ विश्व कप क्वार्टरफाइनल मुकाबले में गेंद माराडोना के हाथ से लगकर गोल में चली गई, जबकि रेफरी ने समझा कि गेंद उनके सिर से लगी है। लिहाजा उसने गोल दे दिया। इस मैच में जीत दर्ज करके अर्जेंटीना अंतत: टूर्नामेंट जीतने में कामयाब रहा।
- 2009 : 21वीं सदी का सबसे लंबा सूर्यग्रहण। भारत में लाखों लोगों ने इसे विभिन्न तरीकों से देखा। (भाषा)