राजपथ - जनपथ
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20 साल बाद खुला स्कूल
पीएससी परीक्षा का सेंटर बनाए जाने की वजह से रायपुर सहित कई शहरों के स्कूल बंद रहे, और प्रवेशोत्सव नहीं मना। रायपुर के तीन स्कूलों को पीएससी परीक्षा का सेंटर बनाया गया था। मगर धुर नक्सल जिला बीजापुर के दूर-दूर के कई स्कूल खुल गए। ये स्कूल करीब 20-22 साल बाद खुले हैं, और वहां बकायदा प्रवेशोत्सव भी मना।
बीजापुर कलेक्टर अनुराग पाण्डेय, और पुलिस अमला मुख्यालय से करीब 33 किमी दूर उसरनार गांव के स्कूल पहुंचे। यह स्कूल एक तरह से टेंट में संचालित हो रहा है। प्रधान पाठक के अलावा यहां अस्थाई शिक्षक ही हैं। लेकिन बच्चों की संख्या भी अच्छी खासी रही। बच्चों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया गया। उनकी खुशी देखने लायक थी। वहां सेल्फी जोन बनाया गया था, जिसमें बच्चों की सेल्फी ली गई।
उसरनार सहित दूर दराज के कई गांव हैं जहां भले ही स्कूल की छत नहीं है। टेंट में स्कूल शुरू हो गए हैं। इन स्कूलों के निर्माण के लिए प्रशासन ने पहल की है। मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है। कुल मिलाकर धुर नक्सल इलाके में शिक्षा का सूरज दिखाई दे रहा है।
लता की वाहवाही
ओडिशा में पहली बार भाजपा की सरकार बनने पर भाजपा के रणनीतिकार खुश हैं। पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, और ओडिशा की प्रभारी पूर्व मंत्री लता उसेंडी को वाहवाही मिल रही है। यह देखने में आया है कि सीमावर्ती इलाकों के नेता अपने पड़ोस के राज्यों की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति से वाकिफ होने की वजह से सफलता दिलाने में कामयाब रहे हैं।
छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका ओडिशा से सटा हुआ है। यही वजह है कि कोंडागांव की विधायक लता उसेंडी को ओडिशा में संगठन की जिम्मेदारी दी गई थी, और उन्होंने बेहतर ढंग से निभाया भी। इससे परे कांग्रेस में भी 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद ओडिशा के नेता भक्तचरण दास को कांग्रेस ने प्रदेश संगठन का प्रभारी सचिव बनाया था। दास ज्यादातर समय बस्तर में काम करते रहे। भक्तचरण दास की सिफारिश पर कांग्रेस ने बस्तर की सीटों पर प्रत्याशी तय किए थे। और 2013 में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली। ये अलग बात है कि मैदानी इलाकों में पिछडऩे की वजह से कांग्रेस, प्रदेश में उस वक्त सरकार बनाने से रह गई। बस्तर के प्रदर्शन को कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में भी दोहराया। कांग्रेस ने दंतेवाड़ा को छोडक़र सभी सीटों पर कब्जा जमाया। और सरकार बनाने में कामयाब रही।
दूसरी तरफ, भाजपा ने छत्तीसगढ़ के 67 नेताओं को वहां प्रचार के लिए भेजा था। लता प्रभारी थीं इसलिए सबकी ड्यूटी व्यवस्थित तरीके से स्थानीय समीकरण को ध्यान में रखकर लगाई गई। इसका फायदा भी मिला। चूंकि ओडिशा में भाजपा का बेहतर प्रदर्शन रहा है ऐसे में स्वाभाविक तौर पर लता की पूछ परख बढ़ गई है।
लाल बत्ती जल्द संभव
लोकसभा चुनाव के बाद सबसे ज्यादा चर्चा मंत्रिमंडल के दो सदस्यों की नियुक्ति को लेकर है, लेकिन नेता-कार्यकर्ताओं की इसमें रुचि कम है। उनकी रुचि निगम, मंडल और आयोगों में होने वाली नियुक्तियों पर है। बीच बीच में ऐसा हवा उड़ जाती है कि निगम मंडल में नियुक्तियां होने वाली हैं, लेकिन पुराने नेता जानते हैं कि ज्यादातर नियुक्तियां नगर निगम और पंचायत चुनाव के बाद ही होती हैं। इस साल के अंत तक निगम चुनाव होंगे। इसके बाद 6 महीने में पंचायत के चुनाव होंगे। तब जाकर नियुक्तियां शुरू होंगी। इससे पहले चर्चाओं में ही लॉलीपॉप थमाया जाएगा। वैसे यह भी पुख्ता खबर है कि सरकार और संगठन ने मिलकर पहली सूची तैयार कर ली है। देखना है कि यह कब जारी होती है ।
कांग्रेस संगठन कोरबा सरगुजा से चलेगा
कांग्रेस संगठन में भी आने वाले समय में बदलाव होना है। पिछले कार्यकाल में जिस गुट को ज्यादा भाव मिला था, इस बार उनके बजाय कुछ नए चेहरे जुड़ सकते हैं। कुछ स्थानीय नेताओं को राष्ट्रीय टीम में भी जिम्मेदारी मिल सकती है। काफी कुछ बदलाव की चर्चा है। इसके लिए पुराने कुछ साथियों के एक होने की बात सामने आ रही है, जो सरकार होने के बाद भी खुद को कमजोर और ठगा सा महसूस कर रहे थे। इस बार कोरबा और सरगुजा के दिग्गजों की तूती बोलने वाली है। लोकसभा चुनाव परिणाम का भी असर बदलाव में दिखाई दे सकता है।
बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला
जो अपनी आलोचना खुद करे, उससे बड़ा साहसी कोई हो नहीं सकता । ट्रकों के पीछे हमें कई दार्शनिक संदेश लिखे मिल जाते हैं। इस दिलेर ट्रक ड्राइवर ने लिखकर बताया है कि ट्रक चलाने वालों से शादी क्यों नहीं करनी चाहिए। हालांकि कोई-कोई ही ट्रक चालक होगा, जो उसकी बात से सहमत होगा। ट्रक चालकों का परिवार भी खुशहाल ही होगा। पर इसने आगाह कर दिया है। कुछ बुरा अनुभव रहा होगा उसका। लगे हाथ कुछ और स्लोगन याद दिला दें- बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला और देखे मगर प्यार से, तो सदाबहार और सुपरहिट हैं। 30 का फूल 80 की माला, बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। जलो मत, बराबरी करो। और ये देखिये- नीयत तेरी अच्छी है तो किस्मत तेरी दासी है। कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है। यह भी बढिय़ा है- फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमां क्या बुझे जिसे रोशन खुदा करे। मार्मिक संदेश भी मिलेंगे- रात होगी, अंधेरा होगा और नदी का किनारा होगा, हाथ में स्टेयरिंग होगा, बस मां का सहारा होगा। यह भी मार्मिक है- हमें जमाने से क्या लेना-देना, हमारी गाड़ी ही हमारा वतन होगा- दम तोड़ देंगे स्टेयरिंग पर, तिरपाल ही हमारा कफन होगा।
सुनने में बुरा लगे तो लगे लेकिन बात व्यावहारिक है- दोस्ती पक्की, खर्चा अपना-अपना। और, मांगना है तो खुदा से मांग बंदे से नहीं- दोस्ती हमसे करो, धंधे से नहीं। और यह भी- नेकी कर जूते खा, मैंने खाए तू भी खा। मतलब की है दुनिया, कहां किसी से प्यार होता है- धोखा वही देते हैं, जिन पर ऐतबार होता है।
गाड़ी चलाने वालों को हिदायत भी दी जाती है- पीकर जो चलाएगा-परलोक चला जाएगा। चलाएगा होश में तो जिंदगी भर साथ दूंगी-पीकर चलाएगा तो परलोक पहुंचा दूंगी। बच्चे इंतजार में हैं, पापा वापस जरूर आना- दूर के मुसाफिर, नशे में गाड़ी मत चलाना। सूची लंबी है, पर फिर कभी।
कांग्रेस नेताओं को फैक्ट पता नहीं?
छत्तीसगढ़ में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार का कारण तलाशने के लिए वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में एक टीम पूरे पांच दिन दौरा कर संभागीय मुख्यालयों में कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करने जा रही है। पहली बार ऐसा हुआ है कि इसे फैक्ट फाइंडिंग टीम बताया गया है। लोकसभा चुनाव में संसद में विपक्ष के रूप में कांग्रेस मजबूत होकर पहुंची, लेकिन छत्तीसगढ़ में उसे केवल एक सीट कोरबा की मिल पाई। कांकेर सीट जीतने के कगार पर थी, पर किस्मत ने साथ नहीं दिया। कांग्रेस यदि पिछले कुछ महीनों की मीडिया रिपोर्ट्स की ही छानबीन कर ले तो बहुत से कारण सामने आ जाएंगे। कैसे विधानसभा में जीतने के बाद भाजपा ने महतारी वंदन और धान बोनस को जमीन पर लागू किया। राम मंदिर बाहर से आने वाले प्रत्येक स्टार प्रचारक के भाषण के केंद्र में रहा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने जिलों का दौरा करना जरूरी नहीं समझा और खुद चुनाव लडक़र एक बड़ी महत्वाकांक्षा पूरी करने के फेर में पड़ गए। राजनांदगांव में मंच पर अपने सीएम और अफसरों पर गुस्सा उतारने वाले कार्यकर्ता को पार्टी से बाहर कर दिया गया। बिरनपुर मसले पर उनके मंत्रियों का कैसा शुतुरमुर्ग जैसा रवैया रहा। सीएम की कुर्सी पकडऩे और खिसकाने की ढाई साल तक कसरत होती रही। ऐसी ही दर्जनों और बातें मीडिया पर आती रही है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस की जो टीम आ रही है, उसे पता तो सब होगा पर उन्हें लगता है कि बात करने से कार्यकर्ताओं का गुबार बाहर निकलेगा। कुछ उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले नगरीय चुनावों में साख बचाने में इससे मदद मिल जाएगी। ([email protected])