स्थायी स्तंभ
- 4 अप्रैल : रानी लक्ष्मी बाई को अंग्रेजों से लोहा लेने के बाद मुश्किल हालात में झांसी छोड़नी पड़ी
- नयी दिल्ली, 4 अप्रैल। इतिहास में चार अप्रैल का दिन युद्ध की दो बड़ी घटनाओं के साथ जुड़ा है। 1858 में चार अप्रैल के दिन अंग्रेजी सेना के खिलाफ भीषण संघर्ष के बाद झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को झांसी को छोड़ना पड़ा था। अंग्रेजों से डटकर लोहा लेने वाली लक्ष्मीबाई झांसी से निकलकर काल्पी पहुंचीं और फिर वहां से ग्वालियर रवाना हुईं।
- दूसरे विश्च युद्ध का निर्णायक मोड़ कहा जाने वाला ‘द बैटल ऑफ कोहिमा’ 1944 को आज ही के दिन शुरू हुआ था, जिसने एशिया की तरफ बढ़ते जापान के कदमों को रोक दिया था।
- देश-दुनिया के इतिहास में 4 अप्रैल की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1768 : फिलिप एस्ले ने माडर्न सर्कस का पहला शो पेश किया।
- 1769 : हैदर अली ने पहले एंग्लो:मैसूर युद्ध में शांति की शर्तें तय कीं।
- 1818 : अमेरिकी कांग्रेस ने अमेरिका के झंडे को मंजूरी दी।
- 1858 : हुग रोस की अगुवाई वाली ब्रिटिश सेना के खिलाफ भीषण युद्ध के बाद रानी लक्ष्मीबाई को झांसी को छोड़ना पड़ा। वह पहले काल्पी और फिर ग्वालियर गईं।
- 1904 : हिंदी सिनेमा के हरदिल अजीज गायक और कलाकार कुंदन लाल सहगल का जन्म।
- 1905 : भारत की कांगड़ा घाटी में भूकंप से 20,000 लोगों की मौत।
- 1910 : श्री अरबिंदो पुडुचेरी पहुंचे जो बाद में उनके ध्यान और अध्यात्म का केन्द्र बना।
- 1944 : द्वितीय विश्व युद्ध में एंग्लो अमेरिकी सेना की बुखारेस्ट में तेलशोधन संयंत्रों पर पहली बमबारी, तीन हजार नागरिकों की मौत।
- 1968 : मार्टिन लूथर किंग की टेनेसी के मेमफिस में एक मोटेल में हत्या
- 1968 : नासा ने अपोलो 6 का प्रक्षेपण किया।
- 1975 : बिल गेट्स और पॉल एलेन के बीच भागीदारी से न्यू मैक्सिको के अल्बकर्क में माइक्रोसाफ्ट की स्थापना।
- 1979 : पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को मौत की सजा।
- 1983 : अंतरिक्ष शटल चैलेंजर ने अपनी पहली उड़ान भरी।
- 2020 : दुनियाभर में कोराना वायरस से 59 हजार से अधिक लोगों की मौत, संक्रमण के मामले 11 लाख के पार। भारत में कुल मामलों की संख्या 3619, मरने वालों का आंकड़ा सौ के करीब। (भाषा)
कुलपति की रूचि
कुलाधिपति और शासन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा व्यवस्था पर जोर देने कह रहे हैं। इसके लिए नवाचार अपनाने कहा गया है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी यही कहती है। इसके लिए कुलपतियों को विश्वविद्यालयों में पूंजीगत व्यय यानी निर्माण कार्यों से दूर रहने कहा गया है क्योंकि यह अनुभव रहा है कि बीते वर्षों में कुलपतियों ने निर्माणी ठेकों पर ज्यादा रूचि दिखाया न कि बच्चों के भविष्य निर्माण पर। इसके बावजूद यह बदस्तूर जारी है।
राजधानी से सवा सौ किमी दूरस्थ इस विश्वविद्यालय की कुलपति की बात कर रहे हैं। मैडम ने बिना वर्क आर्डर के शासन से डेढ़ करोड़ से अधिक रुपए हासिल कर लिए। इस रकम से न तो क्लास रूम बनना है, न तबला,ढोलक, मृदंग वायलिन बांसुरी खरीदना है। जो इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के लिए ज्यादा जरूरी है। लेकिन इस पैसे से विश्वविद्यालय में फाइव स्टार डुप्लेक्स रेस्ट हाउस बनाना हैं। सही है जब मेहमान आएंगे तो उन्हें बेहतरीन लॉजिंग बोर्डिंग तो देनी होगी न। अब देखना यह है कि कुलपति शिलान्यास से लोकार्पण तक बनी रहती हैं या भूमिपूजन के बाद बदलाव होता है। वैसे भी कांग्रेस शासन काल में नियुक्त मैडम अपनी कुर्सी को लेकर नियम अधिनियम में उलझीं हुई हैं। वैसे भी कार्यकाल अगले वर्ष खत्म होने को है। उसके बाद इनकी कुर्सी पर एक पूर्व कुलपति की दूर लखनऊ से नजऱ है।
विपक्ष को नक्सली समर्थन?
हाल ही में नक्सलियों ने एक प्रेस नोट जारी कर केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का विरोध किया। उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की भर्त्सना की। कहा कि ईडी और एनआईए जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। साथ ही, राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हिंदू वोटों को लूटने के लिए तथा महतारी वंदन योजना महिला वोटरों को लुभाने के लिए लाया गया है। चुनाव के ठीक पहले सीएए लागू किया गया है ताकि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। इन सब कारणों का जिक्र करते हुए नक्सलियों ने लोगों से चुनाव बहिष्कार की अपील की है। उनका दावा है कि इस साल दुनिया के 70 देशों में विपक्ष ने चुनावों का बहिष्कार किया है।
माओवादियों को चुनाव की प्रक्रिया में विश्वास नहीं है। इसके बावजूद इसी प्रक्रिया से चुनी गई सरकारों के फैसले का वे विरोध कर रहे हैं। ऐसे में इस पर्चे के कई मायने हो सकते हैं। नक्सली हर चुनाव में चुनाव बहिष्कार का आह्वान करते हैं। पर किसी भी चुनाव में इस अपील ने व्यापक असर नहीं डाला। बल्कि बस्तर में तो हर चुनाव के बाद मतदान का प्रतिशत बढ़ते जाने का आंकड़ा सामने आ रहा है। ऐसे में उन मुद्दों का नाम लेकर जिनका संबंध केंद्र और राज्य की वर्तमान सरकारों से है, बहिष्कार की अपील का मतलब? बीते एक डेढ़ साल के भीतर करीब एक दर्जन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नक्सलियों ने मार डाला। इनमें ज्यादातर भाजपा से जुड़े जनप्रतिनिधि थे। पर इनमें प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के भी लोग रहे हैं। झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस नेतृत्व की एक पूरी पीढ़ी को खत्म कर दिया था। तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। नक्सली संगठन हर बार सत्ता के खिलाफ असंतोष को उभारकर मतदाताओं को चुनाव बहिष्कार की ओर मोडऩा चाहते हैं। ताजा प्रेस रिलीज की वजह भी यही दिख रही है।
क्योंकि चुनाव चल रहा है..
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई विभागों में अफसरों की मौज हो जाती है। वे हर काम को चुनाव का बहाना बताकर टालने लगते हैं। यहां तक जनप्रतिनिधि फोन करें तो कहते हैं चुनाव ड्यूटी में लगे हुए हैं। यह तस्वीर ग्वालियर की है, जहां पार्षद देवेंद्र राठौर को गटर में उतरना पड़ा है। पिछले 20 दिन से वे नगर-निगम के अधिकारियों को बताकर थक गए थे कि सीवर जाम होने के कारण पानी सडक़ पर आ रहा है। लोग बदबू और कीचड़ से परेशान हैं, बीमारी फैल रही है। पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का पार्षद होने के बावजूद उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। वे खुद ही सफाई में लग गए। उनका कहना है कि वार्ड के लोगों ने मुझे चुना है, उनकी समस्याओं को दूर करना मेरी जिम्मेदारी है। क्या हमें अपने आसपास ऐसे समर्पित पार्षद दिखते हैं?
चुनाव तक बुलडोजर शांत
राजधानी रायपुर सहित कोरबा, बिलासपुर, भिलाई-दुर्ग, जगदलपुर में प्रदेश में सरकार बदलने के बाद अतिक्रमण के खिलाफ अभियान तेजी से चला। यह केवल सडक़, फुटपाथ और झोपडिय़ों पर ही नहीं, बल्कि अवैध रूप से प्लाटिंग कर जमीन, मकान बनाने बेचने वालों पर भी चला। आचार संहिता लागू होने के बाद यह कार्रवाई चलती रही। होली के पहले इन शहरों में कई कब्जे हटाये गए। यदि किसी ने गैरकानून तरीके से प्लाटिंग की है, मकान, दुकान बना लिए या बेचने में लगा हो तो उस पर आचार संहिता का रोड़ा तो है नहीं, फिर भी अब अचानक यह कार्रवाई रुक सी गई है। ऐसा लगता है कि अतिक्रमण करने वालों को अब जून महीने तक मोहलत दे दी गई है। देखना यह है कि अफसरों की व्यस्तता का फायदा उठाकर लोग नई प्लाटिंग न करने लगें।
बाजार की भाषा
बाजार किस तरह लोगों के सामने गलत जानकारी रखकर सामान बेचता है इसकी एक मिसााल चमड़े के बैग बेचने वाली एक कंपनी की वेबसाईट है। इस पर चमड़े के एक बैग को प्री-हिस्टॉरिक यानी प्रागैतिहासिक बताया गया है। प्रागैतिहासिक का मतलब ईसा के 12सौ बरस से पहले से लेकर ढाई लाख बरस पहले तक का वक्त माना जाता है, जो कि कहीं इतिहास में दर्ज नहीं है। अब बढिय़ा बक्कल लगा हुआ यह बैग प्रागैतिहासिक बताकर बेचा जा रहा है।
- 3 अप्रैल : मार्टिन कूपर ने पहली बार हैंड हेल्ड मोबाइल फोन से बेल लैब्स के जोएल एस एंजेल से बात की
- नयी दिल्ली, 3 अप्रैल। मोबाइल और कंप्यूटर के बिना आज की दुनिया की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इन दो अविष्कारों ने जैसे दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी की सूरत ही बदलकर रख दी। मजे की बात है कि इन दोनों ही महान अविष्कारों का तीन अप्रैल के दिन से खास ताल्लुक रहा है।
- 1973 में तीन अप्रैल ही के दिन मार्टिन कूपर ने हैंड हेल्ड मोबाइल फोन से बेल लैब्स के जोएल एस एंजेल को पहला फोन किया था। कूपर को आज के मोबाइल फोन का जनक कहा जाता है। उस समय कूपर मोटरोला कंपनी के लिए काम करते थे।
- अमेरिका में कार फोन का इस्तेमाल तो 1930 से हो रहा था, लेकिन हैंडहेल्ड फोन का इस्तेमाल तीन अप्रैल को पहली बार कूपर ने किया। यह भी एक इत्तेफाक ही है कि 1981 में तीन अप्रैल के ही दिन सैन फ्रांसिस्को के ब्रुक्स हाल में ओसबोर्न कंप्यूटर कॉरपोरेशन के एडम ओसबोर्न द्वारा तैयार पहले पोर्टेबल कंप्यूटर का नमूना पेश किया गया। इसका वजन करीब 24 पाउंड था।
- भारत के लिए भी इस दिन का खास महत्व है। भारतीय सेना के सबसे चर्चित और महानतम सैन्य अधिकारियों में शुमार एस एच एफ जे मानेकशॉ का जन्म 1914 में आज ही के दिन हुआ था। भारतीय सेना में वह पहले अधिकारी थे, जिन्हें फील्ड मार्शल का ओहदा दिया गया। चार दशक के अपने सैन्य करियर में उन्होंने पांच लड़ाइयां लड़ीं। दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अपनी सेवाएं देने वाले मानेकशॉ ने 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में भारत की जीत सुनिश्चित की।
- देश दुनिया के इतिहास में तीन अप्रैल की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1680 : पश्चिम भारत में मराठा सम्राज्य की नींव रखने वाले छत्रपति शिवाजी की रायगढ़ में मृत्यु।
- 1903 : समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी कमला देवी चट्टोपाध्याय का जन्म।
- 1914 : भारत के पहले फील्ड मार्शल एस.एच.एफ.जे. मानेकशॉ का जन्म।
- 1929 : मशहूर हिन्दी साहित्यकार निर्मल वर्मा का जन्म
- 1942 : जापान ने द्वितीय विश्वयुद्ध में अमरीका पर आखिरी दौर की सैन्य कार्यवाई शुरू की।
- 1973 : मार्टिन कूपर ने पहली बार हैंड हेल्ड मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हुए बेल लैब्स के जोएल एस एंजेल को फोन किया। कूपर को आज के मोबाइल फोन का जनक कहा जाता है।
- 1981 : एडम ओसबोर्न द्वारा तैयार पहले पोर्टेबल कंप्यूटर का नमूना पेश किया गया।
- 1984 : भारत के स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा को सोवियत यान में अंतरिक्ष यात्रा पर जाने के लिए चुना गया। यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह पहले भारतीय बने।
- 1999 : भारत ने अपना पहला वैश्विक संचार उपग्रह इन्सैट 1ई अंतरिक्ष में भेजा।
- 2010 : ऐपल का पहला आईपैड मार्केट में आया।
- 2012 : रूस की राजधानी मास्को में भीषण आग में 17 प्रवासी श्रमिकों की मौत।
- 2013 : अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स प्रांत के उत्तरपूर्वी हिस्से में अचानक आई बाढ़ के कारण कम से कम 100 लोगों की मौत।
- 2021 : प्रसिद्ध पत्रकार एवं साहित्यकार राधेश्याम खेमका का निधन। (भाषा)
400 नामांकन दाखिल होंगे तब..?
लोकसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ी टक्कर देने के इरादे से कांग्रेस ने कई कद्दावर नेताओं को उनकी अनिच्छा जाहिर करने के बावजूद मैदान में उतार दिया है। इनमें छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह शामिल हैं। दिग्विजय सिंह पिछली बार भोपाल से लड़े थे और साध्वी प्रज्ञा से बड़े अंतर से हार गए थे। इस बार अपने इलाके राजगढ़ से खड़े हैं, जिस पर अभी भाजपा का कब्जा है।
बघेल, दिग्विजय सिंह सहित पूरी कांग्रेस ईवीएम से चुनाव कराने के खिलाफ है। राहुल गांधी इन दिनों कह रहे हैं कि राजा की आत्मा ईवीएम में कैद है। दूसरी ओर, भाजपा ईवीएम के पक्ष में डटकर खड़ी है। वह कहती है कि जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव जीत जाती है, वहां पर वह सवाल नहीं उठाती। सुप्रीम कोर्ट ने अभी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। याचिका में मांग की है कि वीवी पैट से निकलने वाली सभी पर्चियों का ईवीएम की गिनती से मिलान किया जाए। अदालत क्या फैसला देगी, कब देगी, यह अभी नहीं मालूम। आसार तो यही दिख रहे हैं कि इस लोकसभा चुनाव के बीच में कोई प्रक्रिया बदली गई तो व्यवधान खड़ा होगा। नए सिरे से कोई तैयारी की गई तो चुनाव की तारीखों को भी आगे बढ़ाना पड़ सकता है। चुनाव आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति के मामले में शीर्ष कोर्ट ने इसी वजह से तत्काल कोई फैसला देने से इंकार कर दिया था।
विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में बहुमत सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भाजपा ने कई केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और बड़े कद के दूसरे नेताओं को विधानसभा में उतारा था। इन्होंने भाजपा का मकसद पूरा करने में बड़ी मदद की। अब कांग्रेस से उतारे गए बघेल और दिग्विजय सिंह तरह के नेताओं के सामने भी खुद को साबित करने की चुनौती है। इसके लिए उन्हें रास्ता दिखाई दे रहा है कि चुनाव बैलेट पेपर से हो जाए। पिछले सप्ताह पाटन की सभा में बघेल ने कहा कि इस बार हम लोकसभा चुनाव ईवीएम से नहीं होने देना चाहते, इसे हैक किया जा सकता है। बैलेट पेपर से चुनाव हुए तो भाजपा की असलियत सामने आ जाएगी। उन्होंने आह्वान किया कि कार्यकर्ता सभी लोकसभा सीटों से 375 से अधिक नामांकन दाखिल करें और नाम वापस भी न लें। ऐसा किया तो चुनाव आयोग बैलेट पेपर से चुनाव कराने को मजबूर हो जाएगा और कांग्रेस सभी जगहों से जीत दर्ज करेगी।
अब लगभग यही बात दिग्विजय सिंह ने राजगढ़ में वहां के कार्यकर्ताओं के बीच कही है। उन्होंने कहा कि हम प्रयास कर रहे हैं कि राजगढ़ से 400 लोग नामांकन दाखिल करें और सभी लड़ें ताकि चुनाव बैलेट पेपर से ही हो।
जानकारों के मुताबिक एक मतदान केंद्र में अधिकतम 24 ईवीएम मशीनें एक दूसरे से जोड़ी जा सकती हैं। ईवीएम की एक यूनिट में नोटा सहित 16 नाम दर्ज किये जा सकते हैं। इस तरह 383 उम्मीदवार और एक नोटा। लेकिन अंदाजा लगाएं कि एक साथ किसी सीट पर 400 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर दिया तो उनकी जांच में ही कितने लोग और कितना वक्त लग जाएगा। कितनी मशीनें लगेंगी, उनका परिवहन कैसे होगा, बूथ में जगह कितनी लगेगी? कितने कर्मचारियों की जरूरत और पानी, बिजली, आवास की जरूरत पड़ेगी। एक मतदाता को अपनी पसंद के उम्मीदवार का नाम, चिन्ह, ढूंढने में कितना वक्त लगेगा? स्ट्रांग रूम के लिए कितने बड़े जगह की जरूरत होगी, गिनती में कितने लोग लगेंगे? चुनाव शायद 7 की जगह 70 चरणों में हो, और महीनों चले। इन सब की कल्पना भयावह है।
ईवीएम के खिलाफ शिकायतों और आंदोलनों के बाद कांग्रेस ने जो यह रणनीति अपनाई है, उसे अलोकतांत्रिक तो कह नहीं सकते। किसी को चुनाव लडऩे से नहीं रोका जा सकता। बस, प्रस्ताव समर्थक चाहिए और 20 हजार रुपये नामांकन पत्र खरीदने के लिए।
मगर, पहले चरण में नामांकन के दौरान बस्तर में आह्वान का असर देखा नहीं गया। दूसरे चरण में राजनांदगांव के लिए नामांकन होने जा रहा है। राजगढ़ में तीसरे चरण में नामांकन होगा। शायद आह्वान इस बार धरातल पर न उतरे। इस लोकसभा चुनाव के नतीजे यदि अप्रत्याशित आ जाएंगे तो जरूर संभावना बनती है कि या तो ईवीएम में सबके लिए स्वीकार्य फीचर जोड़ें, या फिर बैलेट पेपर की ओर ही लौटें।
भैंसालोटन होली
होली का समापन रंग पंचमी के दिन हो जाता है। तब तक यदि रंग गुलाल खत्म हो जाए तो? फिर ऐसे खेली जाती है। इसे हम छत्तीसगढिय़ा लोग भैंसालोटन होली कहते हैं। कोरबा जिले के सुदूर गढक़टरा गांव में स्कूल के बच्चों ने रविवार को मिट्टी में लोट-लोट कर होली खेली।
भय हुआ तो प्रीत भी हो गई
कहावत है कि भय बिन होत न प्रीत...। एक कॉलेज प्रोफेसर अपने मेडिकल बिल के भुगतान के लिए काफी परेशान थे। संचालनालय में फाईल धूल खाते पड़ी रही और जब प्रोफेसर ने धूल को झाडऩे की कोशिशें की, तो एक के बाद एक आपत्ति लगना शुरू हो गया।
प्रोफेसर भी नियम कानून के जानकार हैं। इन पर कई किताबें लिख चुके हैं। उन्होंने विभाग के उच्चाधिकारी का काला चि_ा निकाला और लोक आयोग में शिकायत के लिए अनुमति मांगी। प्रोफेसर का पत्र संचालनालय पहुंचा तो अफसरों में खलबली मच गई। फिर क्या था आनन-फानन में प्रोफेसर का मेडिकल बिल क्लीयर कर मामले को रफा-दफा किया गया।
विश्वविद्यालय परमात्मानंद
विश्वविद्यालयों में परीक्षा का सीजन चल रहा है। सरकार ने कुशाभाऊ ठाकरे और बिलासपुर विश्वविद्यालय में कुलसचिव की नियुक्ति की प्रक्रिया चुनाव आचार संहिता की वजह से अटक गई है। विभागीय मंत्री ने नाम प्रस्तावित कर आदेश जारी करने के लिए भेज भी दिया था।
चर्चा है कि विभाग के कुछ अफसर दोनों नाम को लेकर सहमत नहीं थे इस वजह से प्रक्रिया में विलंब हो गया और फिर आचार संहिता लग गई। मंत्री जी खुद चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए फाइलों पर ज्यादा ध्यान नहीं है। हाल यह है कि दोनों जगह प्रभारी के भरोसे विश्वविद्यालय का प्रशासन चल रहा है।
- 2 अप्रैल : उड़ान के दौरान बम विस्फोट से विमान में हुआ सुराख, हवा के दबाव से चार यात्री गिरे
- नयी दिल्ली, 2 अप्रैल। दो अप्रैल : उड़ान के दौरान बम विस्फोट से विमान में हुआ सुराख, हवा के दबाव से चार यात्री गिरे
- दो अप्रैल का दिन दुनिया के विमानन इतिहास में एक अनोखी घटना के साथ दर्ज है। 2 अप्रैल 1986 को अमेरिका की प्रमुख विमानन कंपनी टीडब्ल्यूए के यात्री जेट विमान बोइंग 727 की एक सीट के नीचे रखा बम फटने से रोम से काहिरा जा रहे विमान में 11,000 फुट की ऊंचाई पर एक बड़ा सा सुराख हो गया और उस जगह पर बैठे चार लोग हवा के दबाव से विमान से बाहर गिर गए। इनमें आठ माह की एक बच्ची भी शामिल थी। विमान चालक ने बड़ी सावधानी से विमान को एथेंस में उतारकर बाकी यात्रियों की जान बचा ली। अरब रेवोल्यूशनरी सेल्स की एजेदीन कासम यूनिट ने इस हमले की जिम्मेदारी ली और इसे लीबिया के खिलाफ अमेरिकी बमबारी का बदला बताया।
- भारत के लिहाज से यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2011 में आज ही के दिन भारत ने दूसरी बार क्रिकेट विश्व कप पर कब्जा करके 1983 की विश्व कप जीत की स्मृतियों को ताजा कर दिया।
- देश दुनिया के इतिहास में दो अप्रैल की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1679 : मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपनी सल्तनत के हिंदुओं पर फिर से जजिया कर लगाया। इस कर को अकबर ने समाप्त किया था।
- 1902 : लॉसएंजिलिस में पहला मोशन पिक्चर थियेटर खुला।
- 1902 : हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के फनकार बड़े गुलाम अली खां का जन्म।
- 1933: भारतीय क्रिकेट के जनक माने जाने वाले रणजीत सिंह का निधन।
- 1912 : टाइटैनिक का सामुद्रिक परीक्षण शुरू।
- 1970 : 'असम पुनर्गठन अधिनियम' के तहत भारत के उत्तर-पूर्व में मेघालय को स्वायत्तशासी राज्य का दर्जा हासिल हुआ। इस राज्य का गठन असम के दो जिलों संयुक्त गारो और जयन्तिया और खासी हिल्स को मिलाकर किया गया।
- 1982 : अर्जेंटीना ने दक्षिणी अटलांटिक महासागर में स्थित फॉकलैंड द्वीप समूह पर हमला किया।
- 1986 : अमेरिकी विमानन कंपनी के बोइंग विमान में बीच हवा में बम फटने से सुराख हुआ। चार यात्री हवा के दबाव से विमान से गिरे। पायलट ने विमान को सुरक्षित उतारा।
- 1997 : सुमिता सिन्हा ने एक रिकार्ड बनाया, जब 3200 किलोग्राम वजन का एक ट्रक उनके ऊपर से गुजरा।
- 2005 : वैटिकन का सर्वोच्च पद संभालने वालों में से एक पोप जॉन पॉल द्वितीय का निधन ।
- 2011 : भारत ने 1983 में विश्व कप की शानदार जीत को दोहराते हुए दूसरी बार विश्व कप जीता।
- 2020 : दुनिया भर में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों की संख्या दस लाख के करीब पहुंची। (भाषा)
जेल से बाहर क्या निकलेगा?
शराब, कोयला और महादेव सट्टा एप में करोड़ों की रिश्वत, मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला कारोबार पर एसीबी ने जांच आगे बढ़ा दी है। केंद्रीय जेल रायपुर में बंद आरोपियों से वह लगातार पूछताछ कर रही है। इस बीच अधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है कि पूछताछ में आरोपी क्या उगल रहे हैं। पर न्यूज पोर्टल और सोशल मीडिया पर एक से एक खुलासे रोजाना हो रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने सब कुछ उगल दिया है। कुछ सरकारी गवाह बनना चाहते हैं। पोर्टल की खबरों के अनुसार कुछ जानकारी तो जांच अधिकारियों ने ऐसी भी जुटा ली है, जो अत्यंत निजी तथा संवेदनशील किस्म के हैं। ऐसा दावा करने वाली खबरों में यह भी नहीं बताया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने या सूत्र ने उनको सूचना मुहैया कराई है। खबरें पुष्ट बिल्कुल नहीं है, मगर इन न्यूज पोर्टल्स की पहुंच वाट्स एप के जरिये लाखों लोगों तक है। इन खबरों में यह भी दावा किया गया है कि जैसे ईडी ने मतदान के एक दो दिन पहले एक सनसनीखेज विज्ञप्ति जारी की थी, इस बार भी वैसा कुछ हो सकता है।
महाराज की चिंता बढ़ी
चर्चा है कि सरगुजा में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। टिकट के दावेदार पूर्व सांसद कमलभान सिंह, विजयनाथ सिंह, और अन्य नेता पूरी तरह सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।
सरगुजा की पूर्व सांसद रेणुका सिंह ज्यादा समय अपने विधानसभा क्षेत्र भरतपुर-सोनहत में दे रही हैं, जो कि कोरबा संसदीय क्षेत्र में आता है। रेणुका सिंह, दो बार प्रेमनगर से विधायक रही हैं। उनका प्रेम नगर और आसपास के इलाके में अच्छा प्रभाव है। मगर चिंतामणि महाराज के साथ अब तक उनकी रूबरू मुलाकात नहीं हो पाई है। हालांकि तमाम अंतर विरोधों के बावजूद चिंतामणि महाराज मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। वजह यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के लिए पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव अभी तक जुट नहीं पाए हैं।
सिंहदेव के 7 तारीख को अंबिकापुर पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके बाद ही प्रचार की रणनीति बनेगी। जिले के एक और बड़े नेता पूर्व मंत्री अमरजीत भगत भी ज्यादा सक्रिय नहीं है। वो ईडी-आईटी की जांच के घेरे में हैं, और इस वजह से अपना दमखम नहीं दिखा पा रहे हैं।
किसानों को अब फायदा कैसे?
लोकसभा चुनाव के दरमियान भाजपा सरकार ने मतदाताओं को नाखुश करने की आशंका वाले दो साहसिक फैसले लिए हैं। एक तो शराब की कीमत 10 रुपये से लेकर 300 रुपये तक बढ़ा दी गई है, दूसरा जमीन के भाव में मिल रही 30 प्रतिशत की छूट समाप्त हो गई है। महंगी शराब पर दाम 100 बढ़े या 500 रुपये, खरीदने वालों पर इसका फर्क नहीं पड़ता। पर जो लोग ज्यादा खर्च नहीं कर पाते उन लोगों का देशी पौव्वा भी महंगा कर दिया गया है, उन पर असर पड़ेगा।
मगर, यहां दूसरा मुद्दा कलेक्टर गाइडलाइन की दरों में रजिस्ट्री के वक्त मिलने वाली 30 प्रतिशत को छूट को समाप्त करने का है। 31 मार्च तक जो छूट थी, उसमें जमीन की कीमत में कोई बदलाव नहीं था। छूट की गणना स्टाम्प खरीदते समय की जाती थी। यदि किसी किसान जमीन की कीमत कलेक्टर गाइडलाइन में 10 लाख रुपये थी तो कीमत तो वही दर्ज होती थी, 30 प्रतिशत की छूट स्टाम्प पेपर की खरीदी के दौरान मिल रही थी। यानि 30 प्रतिशत कम का खर्च रजिस्ट्री में आ रहा था। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने छूट समाप्त करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि किसानों को नुकसान हो रहा था। उन्हें जमीन का दाम अब ठीक मिलेगा।
इस बयान को समझने में दिक्कत हो सकती है, क्योंकि इस फैसले किसानों के जमीन की कीमत नहीं बढ़ रही है, बढ़ा है तो रजिस्ट्री का खर्च। 10 लाख की जमीन तो अब भी वही है, 13 लाख नहीं। यह जरूर है कि रियल एस्टेट सेक्टर वाले 30 प्रतिशत छूट का कुछ फायदा ग्राहकों को भी दे देते थे। अब गुंजाइश कम है। मकान, फ्लैट आदि खरीदने पर खर्च बढ़ जाएगा। वैसे इस बार जमीन की दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं कर सरकार ने राहत दी है। पहले की भाजपा सरकार के दौरान प्राय: हर साल नए दर घोषित हो जाते थे। इस बार भी बढऩे का अंदाजा लगा रहे लोगों की रजिस्ट्री ऑफिस में मार्च के आखिरी सप्ताह में भीड़ उमड़ी ही थी।
एटीआर की जर्जर सडक़
अचानकमार अभ्यारण की कोटा से केंवची को जोडऩे वाली सडक़ आम लोगों के लिए कई सालों से बंद है। पहले वन विभाग के बैरियर में कुछ शर्तों के साथ शुल्क देकर डेढ़ घंटे के भीतर जंगल को पार करने की छूट थी। इस सडक़ की मरम्मत यह नहीं कराई जाती थी, यह कहकर कि इससे लोगों का आना-जाना, शुल्क रखने के बावजूद बढ़ जाएगा। मगर पिछले दो साल से यह नियम भी समाप्त कर दिया गया है। शुल्क देकर भी लोग भीतर नहीं जा सकते। मगर, बुकिंग कर पहुंचने वाले पर्यटकों और भीतर बसे गांवों के आदिवासियों को इस सडक़ में सफर का बुरा अनुभव झेलना पड़ रहा है, जो छत्तीसगढ़ के शायद किसी दूसरे अभयारण्य में नहीं है। अच्छी सडक़ पर चलना वन विभाग की बदौलत उनकी किस्मत में भी नहीं है। ([email protected])
बृजमोहन के लिए मेहनत का राज
रायपुर लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल ने अच्छी मार्जिन से जीत के लिए अलग ही रणनीति बनाई है। उन्होंने सबसे ज्यादा बढ़त दिलाने वाले मंडल, और बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत करने का ऐलान किया है। उन्होंने ईनाम के लिए बेस्ट मंडल, और बेस्ट बूथ जैसी कैटेगरी बनाई है।
सुनते हैं कि बेस्ट मंडल, और बेस्ट बूथ के पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं को टूर पर भेजा जा सकता है। उन्हें टूर पर कहां भेजा जाएगा, यह साफ नहीं है, लेकिन बृजमोहन उदार नेता हैं। उनसे जुड़े लोग मानते हैं कि बेहतर काम करने वाले, और अच्छी मार्जिन के लिए मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं को विदेश प्रवास पर भी भेजा जा सकता है।
दूसरी तरफ, रायपुर दक्षिण में सबसे ज्यादा मेहनत हो रही है। यहां उपचुनाव की संभावनाओं को देखते हुए कई दावेदार अभी से सक्रिय हैं, और बृजमोहन को भारी बढ़त दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। मौजूदा सांसद सुनील सोनी भी रायपुर दक्षिण में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। इसके अलावा सुभाष तिवारी, मीनल चौबे, केदार गुप्ता, मोहन एंटी, मृत्युंजय दुबे, और पार्षद मनोज वर्मा सहित कई विधानसभा टिकट के दावेदार बृजमोहन के लिए पसीना बहाते दिख रहे हैं।
बस्तर पर खास मेहनत
बस्तर की दोनों सीटों पर भाजपा ने अपनी ताकत झोंक दी है। यहां संगठन के दो प्रमुख नेता अजय जामवाल, और पवन साय खुद ही प्रचार की रणनीति देख रहे हैं। बस्तर में नया प्रत्याशी होने की वजह से कई बड़े नेताओं का अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि आरएसएस से जुड़े 32 संगठनों के पदाधिकारियों को प्रचार में झोंक दिया गया है।
इससे परे कांकेर में कांग्रेस से पिछले प्रत्याशी को रिपीट करने से इस बार मुकाबला कांटे का हो सकता है। इससे निपटने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों ने विधानसभा वार रणनीति बनाई है। सीएम विष्णुदेव साय यहां कई सम्मेलनों में शिरकत कर चुके हैं। पार्टी का सभी 11 सीटों को जीतने का लक्ष्य है। राज्य बनने के बाद लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बहुत बढिय़ा रहा है। लेकिन अधिकतम 10 सीट ही जीत पाई है। वर्ष 2019 के चुनाव में 9 सीट ही जीत पाई थी। मगर इस बार पार्टी सभी सीट जीतने के लिए भरपूर दम खम लगा रही है। वाकई ऐसा होगा, यह तो चार जून को चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
सुरक्षा की मांग कौन पूरी करेगा?
लोगों के लाइसेंसी हथियार गन, बंदूक, रिवाल्वर आदि चुनाव के समय थानों में जमा करा लिए जाते हैं। इधर, मुख्यमंत्री निवास के करीब रहने वाले कांग्रेस नेता रामकुमार शुक्ला ने इस आधार पर अपनी रिवाल्वर वापस मांगी है कि उनके ऊपर हमला हो सकता है। हमला इसलिये, क्योंकि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ बयान दिए थे। बघेल पर मंच से तीखा हमला करने वाले राजनांदगांव के कांग्रेस नेता ने सुरेंद्र वैष्णव ने इसी आधार पर पुलिस सुरक्षा मांगी है। वहीं बघेल के करीबी विनोद वर्मा व पार्टी कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल पर 5 करोड़ 90 लाख रुपये की गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले एआईसीसी सदस्य अरुण सिसोदिया ने भी पुलिस सुरक्षा मांगी है। दो दिन पहले उन्होंने पीसीसी चीफ दीपक बैज को चि_ी लिखकर स्लीपर सेल वाले बयान पर बघेल के खिलाफ फिर कार्रवाई की मांग की है। यह देखना होगा कि चुनाव आचार संहिता लागू है तो पुलिस खुद रिवाल्वर लौटाने या किसी को सुरक्षा देने का फैसला क्या कर सकेगी। यह तो कम से कम जिला दंडाधिकारी या उसके ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं। बयान देने वाले नेताओं को सचमुच सुरक्षा की जरूरत है या नहीं इसका आकलन भी निर्वाचन के अधिकारी ही करेंगे। मगर, पुलिस सुरक्षा की मांग कांग्रेस के भीतर व्याप्त भारी अंतर्कलह को उजागर कर रहा है, जिसमें जुबानी राजनीतिक हमले की प्रतिक्रिया में शारीरिक हमले की आशंका जताई जा रही है। भाजपा ने भी मौका नहीं छोड़ा। सीनियर विधायक अजय चंद्राकर तो यहां तक कह गए कि यदि बघेल के मुताबिक कांग्रेस के भीतर कुछ लोग स्लीपर सेल की तरह काम कर रहे हैं तो इसका मतलब तो यह हुआ कि यह आतंकी संगठन है। सुरक्षा मांगना जायज है।
साहब के तेवर !!
पीएम और रेल मंत्री,सुविधाएं बढ़ाकर रेलवे की छवि सुधारने में जुटे हुए हैं लेकिन उनके अपने अफसर उस पर बट्टा लगाने से पीछे नहीं हट रहे। टैक्स पेयर के पैसे से मिलने वाले वेतन और मुफ्त की सुविधाओं के भोगी ये अफसर उसी यात्री से दुर्व्यवहार करने लगे हैं । 15 लाख की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले आधा दर्जन संगठनों के पदाधिकारियों ने पिछले दिनों बड़े साहब से मुलाकात की। वे लोग एक वंदे भारत ट्रेन की मांग करने गए थे। यह ट्रेन छत्तीसगढ़ को मिलने के बाद भुवनेश्वर को दे दी गई। ये जन प्रतिनिधियों न धरना दे रहे थे, न नारेबाजी कर रहे थे ।
केवल ज्ञापन देकर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरा करना चाहते थे। साहब ने पहले घंटों इंतजार कराया और मिले तो पेशानी पर गुस्से के बल थे। उस पर कहने लगे आप लोगों को कोई काम नहीं है क्या? क्यों आए हैं? अब क्या कहे, आप अपना काम नहीं कर पाए इसलिए तो याद दिलाने गए थे। रायपुर की ट्रेन छीन ली गई, और आपने अपना काम नहीं किया। रेलवे बोर्ड ने इंटरनल सूचना भेज वंदेभारत के लिए टीटीई,गार्ड ड्राइवर रिजर्व करने कह दिया था। टाइम टेबल भी जारी कर दिया गया। उसके बाद ट्रेन को भुवनेश्वर में हरी झंडी दिखाई गई। शायद अपनी इस ट्रेन को हासिल करना आपका काम था। आपने नहीं किया। क्योंकि आपके पास कोई काम न था। अब आपके काम को याद दिलाने इन संगठनों ने पीएमओ और एमओआर को पत्र मेल किया। कुछ हो न हो, पीएमओ तो जवाब मांगता है। जवाब देना तो आपका काम है न साहब।
संघ सदैव की तरह साथ !
आरएसएस खुद को गैर राजनीतिक एक सांस्कृतिक संगठन बताता है लेकिन भाजपा का सहयोग करती है। भाजपा की हर जीत में संघ की खास भूमिका होती है। भाजपा का जनसंपर्क दिखाई देता है, पर संघ का प्रचार आम तौर पर नहीं। संघ की खामोशी से कई बार चर्चा निकल जाती है कि भाजपा सरकार और उसके शीर्ष नेताओं से उसकी नाराजगी चल रही है, या उनमें दूरी बढ़ गई है। हाल ही में तो और गजब हो गया। महाराष्ट्र में जनार्दन मून नाम के किसी व्यक्ति ने कई जगहों पर प्रेस कांफ्रेंस लेकर बयान दिया कि आरएसएस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन कर रहा है। सामान्य जानकारी है कि आरएसएस पंजीकृत संगठन नहीं है। इस व्यक्ति ने आरएसएस नाम की एक सोसाइटी का पंजीयन कराने की भी कोशिश कथित रूप से की थी, पर वे सफल नहीं हुए। अब नागपुर में आरएसएस ने मून के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है कि वे भ्रामक खबर फैला रहे हैं। निर्वाचन आयोग को भी पत्र लिखा गया है कि वह वैमनस्यता और भ्रम फैलाने वाले इस व्यक्ति पर कार्रवाई करे। मून की प्रेस कांफ्रेंस यू ट्यूब पर भी अपलोड है। निर्वाचन आयोग से उसे भी हटाने की मांग की गई है। तो ऐसे माहौल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत छत्तीसगढ़ के अल्प प्रवास पर आए। प्रचारकों और स्वयंसेवकों से अपने बिलासपुर कार्यालय में मिले। भाजपा के कुछ विधायक-नेता भी खबर मिलने पर वहां पहुंचे। हमेशा की तरह मीडिया से उनकी दूरी बनी रही। अधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है कि वे यहां क्या मंत्र अपनी टीम को देकर गए, पर यह साफ है कि संघ हमेशा की तरह भाजपा के साथ है।
बार में टाइगर..
बार नवापारा के सिरपुर की ओर वाली गेट के पास कुछ पर्यटकों को बीते 29 मार्च को टाइगर नजर आया। इस अभयारण्य में तेंदुआ व दूसरे वन्य जीव बड़ी संख्या में हैं, पर तीन दशकों में पहला मौका है, जब टाइगर दिखा। यह बाघ किसी दूसरे जंगल से भटककर आया होगा। वन विभाग इसके बारे में जानकारी जुटा रहा है। इसकी मौजूदगी से पार्क की रौनक और बढ़ गई है। आने वाले दिनों में यहां आने वाले सैलानियों की संख्या और बढ़ सकती है।
कांग्रेस में संयोग या प्रयोग
छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से चार में दुर्ग जिले के उम्मीदवार खड़े हैं। यह एक संयोग है। कांग्रेस के नेता इसे प्रयोग के रूप में भी देख रहे हैं। पूर्व सीएम भूपेश बघेल की उम्मीदवारी से राजनांदगांव में तो ताम्रध्वज साहू की उम्मीदवारी से महासमुंद में मुकाबला रोचक होने जा रहा है। बिलासपुर में भी देवेंद्र यादव के आने से भाजपा की मेहनत बढ़ जाएगी, क्योंकि स्थानीय नेता भले भीड़ बढ़ाने के काम आएं, लेकिन काम करने के लिए देवेंद्र ने अपनी टीम उतार दी है। वैसे, यह भी एक संयोग है कि कई नेताजी को इस बात से सुकून मिला है कि उन्हें चुनाव नहीं लडऩा पड़ा, इसलिए बाहर से प्रत्याशी उतारने पर भी कोई विरोध में आगे नहीं आ रहा।
मिशन नांदगांव
भाजपा की सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही आरएसएस में अंदरखाने थोड़ी नाराजगी है। आरएसएस की ओर से जो सिफारिशें की गईं, उनमें बड़ी संख्या में नहीं मानी गईं। ज्यादातर नियुक्तियों के संबंध में थी। आरएसएस ने बाद में खामोशी ओढ़ ली। अब लेकिन फिर से आरएसएस के लोग सक्रिय हो गए हैं। बताया जा रहा है कि राजनांदगांव को मिशन के तौर पर लिया जा रहा है। यहां संघ और संगठन के करीबी संतोष पांडेय के खिलाफ भूपेश बघेल कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। अपनी सरकार में भूपेश आरएसएस के खिलाफ बयानबाजी का कोई मौका नहीं छोड़ते थे, इसलिए आरएसएस ने भी कमर कस ली है।
ओएसडी ही भगवान
भाजपा की 15 साल की सरकार जब गई तब मंत्रियों के हार के कारणों में ओएसडी नामक शब्द काफी चर्चा में रहा। इनमें कई ओएसडी तो बाद में कांग्रेस की सरकार में भी हाई प्रोफाइल हो गए। अभी फिर से ओएसडी बन गए हैं। नियुक्तियों के समय ही आपत्ति आई, लेकिन मंत्रियों ने जैसे जैसे संगठन को मैनेज कर लिया, लेकिन कई ओएसडी के भगवान बनने की चर्चा फिर शुरू हो गई है। एक ओएसडी को तो मंत्री ने बाहर कर दिया है। बाकी मंत्री संभलकर रहें। नहीं तो पिछले परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं।
राशन कटौती का जोखिम चुनाव में?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने सोशल मीडिया और बयानों में आरोप लगाया कि प्रदेश के 13 हजार 771 दुकानों में से 7985 दुकानों को भाजपा सरकार ने नॉन एक्टिव खाते में डाल दिया है। बिना भौतिक सत्यापन के ही ऐसा किया गया। जनवरी में राशन का आवंटन 37 प्रतिशत तथा फरवरी में 44 प्रतिशत कम कर दिया गया। प्रति यूनिट कांग्रेस सरकार ने 7 किलो राशन वितरित कर रही थी जिसे भाजपा सरकार ने घटाकर 5 किलो प्रति यूनिट कर दिया है। इसका जवाब देते हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सोशल मीडिया पर ही आवंटन के डिटेल निकालकर पोस्ट डाली है, जिसमें उन्होंने कहा कि कुछ लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं कि पीडीएस संबंधित पिछली सरकार की योजनाओं को सरकार ने बंद कर दिया है। पिछली सरकार ने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की जन हितैषी योजनाओं का नाम बदलकर ही आगे बढ़ाया था। पीडीएस से संबंधित सभी लाभ यथावत जारी है। भाजपा के मंत्रियों और अन्य नेताओं ने भी इस मामले में स्पष्टीकरण दिया है।
मालूम हो कि पिछली सरकार में राशन दुकानों में बिना स्टाक को अपडेट किए ही करोड़ों रुपये के अतिरिक्त चावल की आपूर्ति की इस समय जांच होनी है। स्टाक की जांच की प्रक्रिया हाल-फिलहाल की जानकारी के मुताबिक अब तक अपडेट नहीं है। इसलिए कांग्रेस का आरोप एकबारगी सही लग सकता था। पर चुनावी माहौल में भाजपा सरकार ने राशन में कटौती जैसा कोई जोखिम नहीं उठाया है। अनुमान यही है कि जिन राशन दुकानों पर गड़बड़ी का आरोप है और उसमें अधिकारियों की मिलीभगत मिली है, उनके खिलाफ चुनाव के बाद ही कार्रवाई होगी। यह जरूर हुआ है कि डोंगरगांव में भाजपा के कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने थाने में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर शिकायती पत्र सौंपा है। बघेल ने भी छत्तीसगढ़ कांग्रेस के ट्विटर हैंडल की पोस्ट को साझा किया था। इसमें उन्होंने बेरोजगारी भत्ता बंद कर देने और भविष्य में महतारी वंदन योजना में राशि की कटौती किए जाने की आशंका भी व्यक्त की है। थाने में दर्ज शिकायत में कहा गया है कि आचार संहिता के दौरान भ्रामक प्रचार करने को लेकर बघेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए। हालांकि थानेदार ने कह दिया है कि शिकायत की जांच करेंगे, तब कोई कार्रवाई होगी। वैसे भी इस मामले में ज्यादा भूमिका निर्वाचन अधिकारियों की हो जाती है।
आपदा में अवसर...
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत नहीं मिली और कथित शराब घोटाले में अभी जेल में हैं। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल कल सामने आईं और उन्होंने दो वाट्सएप नंबर जारी कर दिल्ली और देश की जनता से केजरीवाल के लिए शुभकामनाएं और दुआएं लिख भेजने की अपील की। मगर, केजरीवाल के खिलाफ डट कर मुहिम चला रही सोशल मीडिया टीम के लोग कहीं आगे निकल गए। वाट्सएप पर उन्हें शुभकामनाएं और आशीर्वाद हजारों लोगों ने दिए होंगे, पर उनके विरोधियों ने इसका खूब इस्तेमाल किया। ट्विटर पर वाट्सएप नंबर पर भेजे जाने वाले ऐसे संदेशों के स्क्रीन शॉट छा गए, जिनमें उनको तमाम अपशब्द कहे जा रहे हैं। जबकि सुनीता केजरीवाल का आटो रिप्लाई आ रहा है, जिसमें सभी का आभार व्यक्त किया जा रहा है। इनमें अनेक पोस्ट ऐसे हैं जिनमें नाम के साथ मोदी का परिवार भी लिखा हुआ है, यानि वे भाजपा कार्यकर्ता या फिर उसके समर्थक हैं। केजरीवाल सोशल मीडिया कैंपेन में कभी आगे रहे होंगे। उन्होंने वाट्सएप से ही सुझाव मांग कर पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान को चुना था। पर आज इस मीडिया का भाजपा से बेहतर इस्तेमाल और कौन कर पा रहा है? शाम तक यह जानकारी दी गई कि जो दो वाट्सएप नंबर जारी किए गए थे, उन्हें बंद कर दिया गया। केजरीवाल से सहानुभूति रखने वालों की जगह इन नंबरों पर उनके विरोधियों ने कब्जा कर लिया था।
- 30 मार्च : सत्यजीत रे को मिला ‘ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट ऑनरेरी अवार्ड’
- नयी दिल्ली, 30 मार्च। 30 मार्च का दिन भारतीय सिनेमा के इतिहास में किसी मील के पत्थर से कम नहीं है, जब आस्कर में एक भारतीय फिल्मकार का नाम एक प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए पुकारा गया।
- वह 30 मार्च 1992 का दिन था, जब भारतीय सिनेमा के युगपुरूष सत्यजीत रे को ‘ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट’ मानद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- देश के सिनेमा के इतिहास में सत्यजीत रे का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। उन्हें 1992 में कला के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1984 में उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया। कुल 37 फिल्में बनाने वाले सत्यजीत रे की यादगार फिल्मों में पाथेर पांचाली, अपराजितो, अपूर संसार और चारूलता आदि का नाम लिया जा सकता है।
- इस बात में दो राय नहीं कि ऑस्कर एक ऐसा अवार्ड है, जिसे जीतना फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों के लिए किसी ख्वाब से कम नहीं। अमेरिकन अकादमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेस द्वारा सिनेमा की विविध विधाओं में उत्कृष्ठ प्रदर्शन के लिए दिए जाने वाले ऑस्कर अवार्ड की स्थापना 1929 में की गई थी। 1957 में फिल्म ‘मदर इंडिया’ पहली भारतीय फिल्म थी, जिसे ऑस्कर की विदेशी भाषा की फिल्म की श्रेणी में नामित किया गया था।
- देश-दुनिया के इतिहास में 30 मार्च की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:- 1919 : महात्मा गांधी ने ‘रॉलेक्ट एक्ट’ का विरोध करने की घोषणा की।
- 1949 : राजस्थान राज्य की स्थापना। जयपुर को राजधानी बनाया गया। आजादी के पहले राजस्थान को राजपूताना के नाम से जाना जाता था।
- 1981 : अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन पर एक बंदूकधारी ने वॉशिंगटन में गोली चलाई। घटना में 70 वर्षीय रीगन गंभीर रूप से घायल हुए।
- 1992 : फिल्मकार सत्यजीत रे को ‘ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट ऑनरेरी’ से नवाज़ा गया।
- 1997 : कांग्रेस ने 10 महीने पुरानी एचडी देवेगौड़ा सरकार से कमज़ोर नेतृत्व का हवाला देते हुए समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद एक साल में तीसरी बार सरकार बदली।
- 2003 : लंदन में श्री गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा, संगत के लिए खोला गया। समारोह में हजारों लोगों ने शिरकत की। इसे भारत से बाहर दुनिया का सबसे बड़ा गुरुद्वारा बताया गया।
- 2010 : पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में सह आरोपी आतंकवादी परमजीत सिंह भौंरा को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। (भाषा)
एक के बाद एक फूटता असंतोष
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद कांग्रेस को चुनाव प्रचार में पूरी तरह जुट जाना था लेकिन एक के बाद कई सीटों से फूट रहे असंतोष ने उसकी लड़ाई और कठिन कर दी है। राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ मंच से बयानबाजी करने वाले सुरेंद्र दाऊ के मामले का पटाक्षेप उनको पार्टी से निष्कासित कर देने के बाद भी नहीं हुआ है, बल्कि उनके तेवर और तीखे हो गए हैं। बिलासपुर में बोदरी नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष जगदीश कौशिक तीन दिन से कांग्रेस भवन के सामने अनशन पर हैं। वरिष्ठ नेताओं के समझाने के बाद भी उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला है। वे देवेंद्र यादव को बिलासपुर से बाहर का बताते हुए खुद के लिए कांग्रेस टिकट मांग रहे हैं। यहां से हाल ही में जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण चौहान कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जगदलपुर की पार्षद शफीरा साहू का 5 पार्षदों के साथ कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल होना और उसके बाद उनका प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के खिलाफ आरोपों की बौछार करना भी पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर रहा है।
विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के कई बड़े नेता सदमे में थे। ऐसी हार की उम्मीद शायद उनको नहीं थी। इस दौरान उन्होंने यह ध्यान नहीं रखा कि विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। इसमें पार्टी को फिर एक बार मजबूत स्थिति में लेकर आने का मौका है। मगर, विधानसभा चुनाव के हार की वजह जानने के लिए नेताओं ने कार्यकर्ताओं के साथ कोई सम्मेलन शायद ही किसी जिले में किया हो। शायद ही कहीं उन्होंने समीक्षा की हो कि आखिर कौन सी नाराजगी उन्हें ले डूबी। विधानसभा चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं के साथ खुला संवाद कर लिया गया होता तो शायद आज अप्रत्याशित रूप से पार्टी छोडऩे की घटनाओं को थोड़ा नियंत्रित किया जा सकता था।
ईडी की पूछताछ में तेजी
खबर है कि एसीबी के अधिकारी आज से अगले पांच दिन शराब और कोयला घोटाले में बंद आरोपियों के खिलाफ लगातार पूछताछ शुरू करने वाले हैं। इनमें कुछ आईएएस व कुछ राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारी हैं तो कुछ कारोबारी। ठीक चुनाव अभियान के दौरान पूछताछ की आंच यदि कांग्रेस प्रत्याशियों तक भी पहुंची तो इसका राजनीतिक असर देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने जिन 11 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है उनमें भूपेश बघेल, कवासी लखमा, देवेंद्र यादव कै खिलाफ पहले से एफआईआर दर्ज है। दिल्ली और झारखंड में मुख्यमंत्रियों की जिस तरह गिरफ्तारी की गई है, उससे साफ है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद वह रुकने वाली है। यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा कि ईडी किसे-किसे हिरासत में लेना और पूछताछ करना चाहती है।
राहगीरों की आंखों को गर्मी में सुकून
यह बोगनवेलिया या पेपर फ्लावर है, जिसकी देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। फूल मनमोहक होते हैं। रतनपुर के पास नेशनल हाईवे पर यह पेड़ उद्यानिकी विभाग के आम के बगीचे के किनारे लगा हुआ है।
अपने मालिक से बात कराओ
दिसंबर से राजनेताओं में काम करने की होड़ है। उत्साह भी है। नए नवेले नेताजी अपनी जगह भी सुरक्षित रखना चाहते हैं और संगठन के सामने अपना काम भी साबित करना चाहते हैं। इसी उत्साह में एक नेताजी ने पहले एक बड़े उद्योग समूह के स्थानीय प्रतिनिधि को बुलाया, फिर कह दिया कि अपने मालिक से बात कराओ। स्थानीय प्रतिनिधि की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह सीधे मालिक को फोन करता। उसने ऊपर संदेश पहुंचाया। यह संदेश फॉरवर्ड होकर दिल्ली तक पहुंच गया। बस फिर क्या था। नेताजी को बता दिया गया कि इतने ऊपर नहीं जाना है। जो बात छनकर आई है, उसमें नेताजी के ओएसडी को चाबी भरने वाला बताया जा रहा है।
ईडी का क्या होगा रुख
महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव) के एक प्रत्याशी के ऐलान के बाद ईडी की नोटिस का मामला तूल पकड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में ईडी की राडार में कांग्रेस के दो प्रत्याशी हैं। बिलासपुर के कांग्रेस प्रत्याशी तो सीधे तौर पर आरोपी हैं। लोगों के बीच इस बात की चर्चा है कि क्या चुनाव के पूर्व ईडी कुछ कार्रवाई कर सकती है।
- 29 मार्च : मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की
- नयी दिल्ली, 29 मार्च। देश के स्वतंत्रता संग्राम में 29 मार्च के दिन की खास अहमियत है। दरअसल 1857 में 29 मार्च को मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की मशाल को चिंगारी दिखा दी, जो देखते ही देखते पूरे देश में आजादी की ज्वाला में बदल गई। अंग्रेज हुक्मरान ने इस क्रांति को दबाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था।
- बंगाल की बैरकपुर छावनी में 34 वीं बंगाल नेटिव इंफेन्टरी के मंगल पांडे ने परेड ग्राउंड में दो अंग्रेज अफसरों पर हमला किया और फिर खुद को गोली मारकर घायल कर लिया। उन्हें सात अप्रैल, 1857 को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी की सजा दे दी।
- स्थानीय जल्लादों ने जब मंगल पांडेय को फांसी देने से मना कर दिया तो कोलकाता से चार जल्लादों को बुलाकर देश के इस जांबाज सिपाही को फांसी दी गई ।
- देश दुनिया के इतिहास में 29 मार्च की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है।
- 1807 : जर्मनी के खगोलविद् विल्हेम ओल्बर्स ने एक छोटा सा ग्रह वेस्ता खोजा। इसे आसमान का सबसे चमकदार छोटा तारा कहा गया।
- 1849 : महाराजा दलीप सिंह ने अपने दिवंगत पिता रणजीत सिंह का सिंहासन छोड़ दिया और पंजाब पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया।
- 1857 कलकत्ता के निकट बैरकपुर में मंगल पांडे ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका।
- 1859 : बहादुर शाह जफर द्वितीय को 1857 की क्रांति में भागीदारी का दोषी पाया गया और अंग्रेज सरकार ने उन्हें देश निकाला देकर रंगून (अब यांगून) भेज दिया।
- 1954 : राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (नेशनल गैलरी आफ मॉडर्न आर्ट) का दिल्ली में शुभारंभ।
- 1999 : उत्तर प्रदेश के कुमायूं और चमोली (अब उत्तराखंड) में आधी रात के ठीक बाद आए 6.8 की तीव्रता के भूकंप में 100 से ज्यादा लोगों की मौत।
- 2002 : दिल्ली और बीजिंग के बीच सीधी वाणिज्यिक उड़ान सेवा फिर से शुरू।
- 2020 : देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1000 के पार। (भाषा)
पत्रकारों की बारी
सरकारी संस्थानों में पद पाने के लिए दिग्गजों में होड़ मची है। इसमें मीडियाकर्मी भी पीछे नहीं है। करीब दर्जनभर से अधिक पत्रकारों ने सूचना आयुक्त के लिए आवेदन किए हैं। भूपेश सरकार ने मीडिया के दो लोगों को सूचना आयुक्त बनाया भी था। मगर साय सरकार ने फिलहाल दो अफसरों को सूचना आयुक्त बनाया है। बाकी खाली दो पद के लिए नियुक्ति आचार संहिता निपटने के बाद हो सकती है। ऐसे में दावेदार पत्रकार उम्मीद से हैं।
इसी तरह कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के कार्यपरिषद सदस्य के लिए भी आधा दर्जन से अधिक पत्रकारों के आवेदन आए हैं। इनमें से तीन पत्रकार एक ही संस्थान से जुड़े रहे हैं। हालांकि कार्यपरिषद सदस्य को कोई सुविधाएं नहीं मिलती। हर तीन महीने में होने वाली कार्यपरिषद की बैठक के लिए 15 सौ रुपए भत्ता मिलता है। मगर कार्यपरिषद के सदस्य का पद प्रतिष्ठा पूर्ण माना जाता है। और व्यक्तिगत प्रोफाइल में जुड़ जाता है। यही वजह है कि कार्यपरिषद में जगह पाने के लिए दिग्गज मेहनत कर रहे हैं।
संगठन प्रभारी से राज्यपाल?
प्रदेश भाजपा संगठन की कमान अब पूरी तरह नितिन नबीन को सौंप दी गई है। पार्टी ने उन्हें चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है। जबकि विधानसभा चुनाव में ओम माथुर को प्रभारी बनाया गया था। नितिन नबीन सह प्रभारी थे। हाल ही में बिहार सरकार में मंत्री पद का दायित्व मिलने के बाद भी नितिन नबीन को संगठन की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया गया, बल्कि उन्हें और मजबूत किया गया है। ओम माथुर एक तरह से छत्तीसगढ़ के दायित्व से मुक्त हो गए हैं। चर्चा है कि लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें राज्यपाल बनाया जा
सकता है।
बीमारी से उबर जाना बेहतर
आयोग मतदान की जागरूकता के लिए कई उपाय करते रहा है लेकिन इस तकलीफ का कोई उपाय अब तक नहीं कर सका। इसलिए चुनाव ड्यूटी से बचने के लिए अधिकारी कर्मचारी, खासकर कर्मचारी क्या क्या यत्न नहीं करते। कई अलग अलग कारण बताकर ड्यूटी निरस्तीकरण का आवेदन देते हैं। वे इसलिए बचना चाहते हैं कि मतदान सामग्री वितरण और मतदान उपरांत जमा करने में लगने वाले समय और कष्ट असहनीय होता है। जो मतदान से ज्यादा कठिन होता है । इस बार भी अब तक 279 ने ड्यूटी निरस्त करने कलेक्टर को आवेदन दिया है। इनमें से 110 ने स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या और अन्य विभिन्न कारणों से छुट्टी मांगी है। स्वास्थ्य संबंधी कारणों के लिए कलेक्टोरेट में ही जिला मेडिकल बोर्ड बिठा दिया गया है। जहां तुरंत फैसला होगा। इसलिए ध्यान रखिए, समस्या फेक निकली तो कहीं आवेदन ही आत्मघाती न हो जाए। पांच वर्ष पूर्व दो व्याख्याता, एक प्रधान पाठक ने कई गंभीर कारण लिखकर चुनाव ड्यूटी करने में असमर्थता जताई थी। तत्कालीन कलेक्टर ने इतनी गंभीर बीमारियों से ग्रसित इन चारों को शासकीय सेवा यानी नौकरी करने में असमर्थ पाते हुए डीईओ को जीएडी के नियमानुसार अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे, अवगत कराने की सिफारिश कर दी। इस आदेश के पालन को लेकर हमने पड़ताल की लेकिन इन पांच छह वर्ष में कई डीईओ बदले गए, सो पता नही चला। लेकिन नि:संदेह इस पत्र के बाद तो सभी चंगे हो गए होंगे।
इसलिए चुनाव ड्यूटी कटवाने के लिए ऐसा कोई भी कारण लिखित में न दें जो आपकी सेवा के लिए आत्मघाती हो जाए ...यह आदेश पुराना है पर हर समय प्रभावी है।
भरोसा कायम नहीं रह पाया
अपनी दूसरी पारी के लिए भाजपा के एक नेताजी बड़े ही आश्वस्त थे। इसलिए पूरी बिंदासी से काम करते रहे। राजनीतिक पंडित पूछते तो यही कहते अपनी टिकट को कोई दिक्कत नहीं है। इसलिए टिकट घोषणा के दिन तक सरकारी बैठकें कर आगामी प्लानिंग करते रहे। बैठक खत्म होने के बाद उम्मीदें,दावे सब कुछ काफुर हो गए। वे यह भूल गए कि यह भाजपा है। 11 के 11 बदल देती है। फिर क्या इनकी भी कट गई। अब पूछने पर कहते हैं कि मेरे से विकल्प पूछा गया था। सो मेरे कारण ही मिली है। वैसे नेताजी ने, एक महामहिम की तरह, पांच वर्ष न काहू से दोस्ती ..न बैर की नीति पर कार्य किया । नहीं किया तो किसी का भी काम। हां एक ही काम किया वह कारोबारियों के लिए। इसके अलावा वे पांच साल तक संसदीय कार्य में व्यस्त रहे। संसद की समितियों की हर बैठक, दौरे में गए। पांच-पांच समिति में सदस्य जो रहे।
साहबों की छोड़ी गंदगी
गांव-शहर, प्रदेश की आबोहवा को शुद्ध रखने बाग बगीचे को साफ सुथरा रखने के लिए एक बड़ा अमला है। जिसमें सौ से अधिक अभा स्तर और राज्य कैडर के हजारों अधिकारी कर्मचारियों का लाव-लश्कर है। ये हर खासो आम को बगीचे,जंगल सरकारी रिजॉर्ट मोटल को साफ सुथरा रखने की ट्रेनिंग भी देते है। लोग गंदगी न फैलाएं इसलिए सरकारी स्मृति वन किसी निजी और सार्वजनिक कार्यक्रम के लिए नहीं दिए जाते। यहां तक कि लाफ्टर क्लब, मॉर्निंग वॉकर और भजन या स्मृति पूर्ण आयोजन के लिए भी इसके गेट नहीं खोले जाते। मगर कल होली मिलन के नाम पर साहबों ने जो गंदगी फैलाई वह देखते ही बनती है। सफाई प्रेमी अफसरों की इस पार्टी का वीडियो जमकर वायरल है। बिसलेरी से लेकर वाइन की बोतलें पूरे स्मृति वन में बिखरी पड़ी है। इसके अलावा स्नैक्स के टुकड़े प्लेट,टिशु पेपर आदि आदि। यह सब देखकर कुत्तों का भी जमावड़ा लगना स्वाभाविक है।
फ्लॉप हुई द नक्सल स्टोरी
लोकसभा चुनाव के पहले कई ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं, जिसका भाजपा के पक्ष में मतदाताओं पर प्रभाव पड़ता है। इनमें आर्टिकल 370, मैं अटल हूं, जेएनयू-जहांगीर नेशनल यूनिवर्सिटी, गोधरा-एक्सीडेंट या कंस्परेन्सी, साबरमती रिपोर्ट, जैसी फिल्में शामिल हैं। इमरजेंसी नाम की एक फिल्म जल्द रिलीज होने वाली है। छत्तीसगढ़ से संबंधित एक फिल्म बस्तर- द नक्सल स्टोरी भी देश भर में हाल ही में रिलीज हुई। फिल्म का जोर-शोर से प्रचार किया गया था। आकर्षण यह था कि इस फिल्म की हीरोइन अदा शर्मा की द केरला स्टोरी जबरदस्त हिट हुई थी। उस फिल्म ने करीब 200 करोड़ रुपए का बिजनेस किया था। मगर 15 मार्च को रिलीज हुई बस्तर-द नक्सली स्टोरी मल्टीप्लेक्स से बहुत जल्दी उतर गई। कोरबा, चांपा आदि शहरों में अभी यह चल रही है।
अनेक रिपोर्ट्स बता रहे हैं कि यह फिल्म लागत भी नहीं निकाल पा रही है। वीकेंड्स में भी यह दर्शक जुटाने में सफल नहीं रही। नक्सल हिंसा देश का बड़ा संकट है ही, छत्तीसगढ़ के लोगों का तो इस मानवीय त्रासदी से गहरा सरोकार है। फिल्म के गुण दोष पर जाना ठीक नहीं है। हालांकि द केरला स्टोरी के कथानक को लेकर बहुत विवाद हुआ था। बस्तर स्टोरी में भी एक जगह पर संवाद है कि जब 75 जवान मारे गए थे, तब जेएनयू दिल्ली में जश्न मनाया गया था। इस बात में कितना दम है, नहीं कहा जा सकता। मगर शायद यह फिल्म इसलिए फ्लॉप हुई है, क्योंकि एक ही तरह की स्टोरी के कई फिल्म लगातार देखकर दर्शक ऊब गए होंगे।
कांग्रेस का जातीय जागरण
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ऊंची जाति के 15 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिन में से 13 हार गए। राघवेंद्र सिंह और अटल श्रीवास्तव ही चुनाव जीतने में कामयाब रहे। दोनों के सामने भाजपा ने भी सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को उतारा था। दिग्गज टीएस सिंहदेव, रविंद्र चौबे, जय सिंह अग्रवाल, अमितेश शुक्ल और अरुण वोरा आदि अपनी सीट नहीं निकाल पाए। हालांकि हारने वालों में ओबीसी ताम्रध्वज साहू और अनुसूचित जाति के डॉक्टर शिवकुमार डहरिया भी शामिल थे, जो लोकसभा भी लड़ रहे हैं।
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस बात का ध्यान रखा है कि उसके ओबीसी प्रेम में भाजपा के मुकाबले कोई कमी नजर नहीं आनी चाहिए। बिलासपुर लोकसभा सीट से जाति समीकरण की परवाह किए बगैर पिछली बार अटल श्रीवास्तव को टिकट दे दी गई थी। इसके पहले भाजपा के ओबीसी उम्मीदवार के सामने करुणा शुक्ला को उतारा गया था। दोनों बार कांग्रेस को करारी हार मिली। इस बार भाजपा ने लगातार तीसरी बार साहू उम्मीदवार दिया। लखन लाल साहू और अरुण साव के बाद तोखन साहू को। कांग्रेस ने शायद यह तय कर लिया था कि इस बार सामान्य वर्ग से प्रत्याशी खड़ा करना पराजय के सिलसिले को जारी रखना होगा। इसलिए उसने भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को बिलासपुर से उतार दिया है। बस, लोग यह कह रहे हैं कि क्या बिलासपुर लोकसभा सीट से कोई स्थानीय ओबीसी कांग्रेस को नहीं मिला?