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दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' की स्क्रीनिंग के दौरान डॉक्यूमेंट्री देखने वाले छात्रों पर पथराव हुआ है.
पथराव के बाद डॉक्यूमेंट्री देख रहे छात्रों ने मार्च के तौर पर जेएनयू गेट तक प्रदर्शन किया. पथराव करने वाले छात्र कौन थे, इनके बारे में ज़्यादा पता नहीं चल पाया है, लेकिन इसमें कोई छात्र घायल नहीं हुआ है.
यह डॉक्यूमेंट्री नर्मदा हॉस्टल के पास जेएनयू छात्र संघ के ऑफ़िस में रात नौ बजे दिखाई जानी थी, जेएनयू छात्र संघ ने स्क्रीनिंग की घोषणा एक दिन पहले ही की थी.
स्क्रीनिंग से पहले पूरे कैंपस की बिजली 8.30 बजे गुल हो गई. मौजूद छात्रों का दावा है कि प्रशासन ने बिजली काट दी है, स्क्रीनिंग से ठीक पहले बिजली गुल होने की वजह पर जेएनयू प्रशासन की प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है.
इसके बाद छात्रों ने जेएनयू छात्र संघ ऑफ़िस के बाहर दरी बिछाकर क्यूआर कोड की मदद से अपने-अपने फोन पर डॉक्यूमेंट्री देखने की कोशिश की, लेकिन इंटरनेट स्पीड धीमी होने के चलते छात्रों को काफ़ी मुश्किल हुई.
इसके बाद कई छात्र-छात्राएं, अपने-अपने कमरों से लैपटॉप लेकर आए और छोटे छोटे समूह बनाकर डॉक्यूमेंट्री देखने लगे, हालांकि इंटरनेट की स्पीड के चलते डॉक्यूमेंट्री अटक-अटक कर ही चली.
मोटे अनुमान के मुताबिक़ छात्र संघ के दफ्तर के बाहर क़रीब 300 छात्र डॉक्यूमेंट्री देखने पहुंचे थे.
जेएनयू छात्र संघ की प्रेसीडेंट आइशी घोष ने बीबीसी से कहा, "मोदी सरकार पब्लिक स्क्रीनिंग रोक सकती है लेकिन पब्लिक व्यूइंग तो नहीं रोक सकती."
केंद्र सरकार ने यूट्यूब और ट्विटर को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया : द मोदी क्वेश्चन' शेयर करने वाले लिंक हटाने का निर्देश दिया था.
इसके बाद जेएनयू छात्रसंघ ने इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने का फ़ैसला लिया.
दो एपिसोड की डॉक्यूमेंट्री
बीबीसी ने दो एपिसोड की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है जिसका नाम है - इंडिया: द मोदी क्वेश्चन. इसका पहला एपिसोड 17 जनवरी को ब्रिटेन में प्रसारित हो चुका है. अगला एपिसोड 24 जनवरी को प्रसारित होने जा रहा है.
पहले एपिसोड में नरेंद्र मोदी के शुरुआती राजनीतिक करियर को दिखाया गया है जिसमें वे भारतीय जनता पार्टी में आगे बढ़ते हुए, गुजरात के मुख्यमंत्री के पद पर पहुँचते हैं.
ये डॉक्यूमेंट्री एक अप्रकाशित रिपोर्ट पर आधारित है जिसे बीबीसी ने ब्रिटिश फ़ॉरेन ऑफ़िस से हासिल किया है. इस डॉक्यूमेंट्री में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात में साल 2002 में हुई हिंसा में कम से कम 2000 लोगों की मौत पर सवाल उठाए गए हैं.
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ब्रिटिश विदेश विभाग की रिपोर्ट का दावा है कि मोदी साल 2002 में गुजरात में हिंसा का माहौल बनाने के लिए 'प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार' थे.
पीएम मोदी हमेशा हिंसा के लिए ज़िम्मेदार होने के आरोपों का खंडन करते रहे हैं. लेकिन जिस ब्रिटिश कूटनयिक ने ब्रिटिश विदेश मंत्रालय के लिए रिपोर्ट लिखी है उससे बीबीसी ने बात की है और वो अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष पर क़ायम हैं.
भारत का सुप्रीम कोर्ट पहले ही प्रधानमंत्री मोदी को गुजरात हिंसा में किसी भी तरह की संलिप्तता से बरी कर चुका है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने प्रेस कांफ्रेंस में इस डॉक्यूमेंट्री से जुड़े सवाल पर कहा, "मुझे ये साफ़ करने दीजिए कि हमारी राय में ये एक प्रौपेगैंडा पीस है. इसका मक़सद एक तरह के नैरेटिव को पेश करना है जिसे लोग पहले ही ख़ारिज कर चुके हैं."
इस डॉक्यूमेंट्री को सरकार से जुड़े कई लोगों ने दुष्प्रचार और औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित बताया है जबकि बीबीसी का कहना है कि यह गहन जाँच-परख के बाद बीबीसी के संपादकीय मानदंडों के अनुरूप तैयार की गई है.
इससे पहले हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी और केरल में कुछ कैम्पसों में छात्रों ने इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की है जबकि कई और विश्वविद्यालय परिसरों में छात्र संघ सामूहिक तौर पर वीडियो देखने का आयोजन करने की घोषणा कर चुके हैं. (bbc.com/hindi)