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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धर्म और राजनीति के घालमेल से पाकिस्तान की बदहाली का सबक
31-Jul-2023 3:00 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  धर्म और राजनीति के  घालमेल से पाकिस्तान की बदहाली का सबक

पाकिस्तान में कल एक बड़ी आतंकी हिंसा हुई, और जेयूआईएफ नाम के राजनीतिक संगठन की रैली में एक धमाका हुआ जिसमें 44 मौतें हो चुकी हैं, और सौ से अधिक लोग जख्मी हैं। पुलिस का कहना है कि इसमें किसी आत्मघाती हमलावर होने का संकेत मिल रहा है। यह धमाका पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रदेश में हुआ जिसकी सरहद अफगानिस्तान से लगती है। जमीयत उलेमा ए इस्लाम फज्ल (जेयूआई-एफ) नाम का यह संगठन सुन्नी मुस्लिमों का है, और बड़ी संख्या में मदरसे और मस्जिद चलाता है। यह चुनाव भी लड़ता है, और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल है। हाल के चुनावों में उसने खासी सीटें भी जीती हुई हैं, और अपने किस्म के एक दूसरे संगठन के साथ उसकी तनातनी चलती रहती है। दोनों ही संगठन अपने अधिक इस्लामी होने का दावा करते रहते हैं, और यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि वे इस्लाम के तहत शरीयत को अधिक कड़ाई से लागू करते हैं। ऐसे में अभी यह साफ नहीं है कि इस हमले के पीछे कौन लोग हो सकते हैं। पाकिस्तान की सरकार में जेयूआई-एफ सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल है, और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस हमले पर कहा है कि पाकिस्तान विरोधी तत्व देश के भीतर अराजकता फैलाना चाहते हैं। आतंकवादियों ने उन लोगों को निशाना बनाया है जो धर्म और देश के बारे में बात करते हैं। पुलिस ने भी यह कहा है कि इस पार्टी के नेताओं को निशाना बनाने के लिए यह विस्फोट किया गया था। एक दूसरी खबर बताती है कि 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता पर वापिसी की बात से पाकिस्तान में आतंकी हमले बढ़े हैं। जनवरी में एक आत्मघाती हमलावर ने नमाज के दौरान मस्जिद में खुद को विस्फोट से उड़ा दिया था जिसमें 101 मौतें हुई थीं। फरवरी में करांची पुलिस प्रमुख के दफ्तर पर आतंकी हमला हुआ था, और कई लोग मारे गए थे। 

अब पाकिस्तान एक इस्लामिक देश है, इसलिए जाहिर है कि वहां धर्म के आधार पर चलने वाली पार्टियों का बोलबाला हो सकता है, और बाकी पार्टियां भी धर्म को अहमियत दिए बिना नहीं चल सकतीं। कुल मिलाकर नतीजा यह है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र और संविधान पर मजहब हावी है, और लगे हुए अफगानिस्तान में सबसे कट्टर तालिबानो की सत्ता पर वापिसी से पाकिस्तानी जमीन पर भी पाकिस्तानी-तालिबानियों को नई ताकत मिली है, और अफगान-तालिबान पाकिस्तान के घरेलू मामलों में एक किस्म की दखल रखने लगे हैं। पड़ोसी दखल के बिना भी पाकिस्तान धर्म से इतना लदा हुआ देश है कि जब वहां की धर्मान्ध भीड़ किसी भी बेकसूर को ईशनिंदा की तोहमत के साथ पुलिस के कब्जे से छुड़ाकर मार डालती है, तो भी वहां का कानून कुछ नहीं कर सकता। लोगों को याद होगा कि किस तरह आज से बारह बरस पहले वहां के पहले ईसाई केन्द्रीय मंत्री शहबाज भट्टी को ईसाई होने की वजह से कट्टरपंथियों ने ईशनिंदा की तोहमत लगाते हुए मार डाला था। पाकिस्तानी तालिबानियों ने भट्टी को इसलिए मार डाला कि वे पाकिस्तान के ईशनिंदा-कानूनों के विरोधी थे। धर्म से लदे हुए इस देश में धर्म अपनी सबसे हिंसक शक्ल दिखाता है, और इसने न सिर्फ जम्हूरियत (लोकतंत्र) को कुचलकर रख दिया है, बल्कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को भी चौपट कर दिया है। पाकिस्तान की आज की बदहाली में उसके धार्मिक बोझ का बड़ा हाथ है। 

ऐसे में दुनिया के जो देश अपने आपको कोई धर्मराष्ट्र बनाने की सोचते हैं, उनको सबक लेना चाहिए कि लोकतंत्र का धर्म क्या हाल कर सकता है। ऐसा नहीं कि हिन्दुस्तान में धर्म ने लोकतंत्र को अलग-अलग वक्त पर कुचलने की कोशिश न की हो, या कुचला न हो, लेकिन यह देश बहुत बड़ा है, इसमें विविधता है, अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं, और पूरे देश में एक साथ कोई एक धर्म उस तरह से हावी नहीं हो पाया कि वह लोकतंत्र का गला पूरी तरह घोंट डाले। लेकिन भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का फतवा देने वालों को पाकिस्तान का हाल देखना चाहिए, और यह समझना चाहिए कि वे हिन्दुस्तान को हिन्दू-पाकिस्तान बनाकर कहां पहुंचाएंगे। 

अभी कुछ ही समय पहले नेपाल के एक भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री का एक वीडियो इंटरव्यू सामने आया था जिसमें वे हिन्दुस्तान को हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिशों पर हैरानी और अफसोस दोनों जाहिर कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि नेपाल जो कि एक वक्त हिन्दू राष्ट्र था, उसने बड़ी मुश्किल से अपने आपको इस दर्जे से आजाद कराया, और अब वह किसी धर्म का राष्ट्र नहीं है। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान की सारी तरक्की उसकी विविधता पर टिकी हुई है, और जिस दिन यह खत्म हुई उस दिन इसकी आर्थिक तरक्की भी खत्म हो जाएगी। लोगों को यह भी याद रखना चाहिए कि अभी भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका जाने पर वहां के एक भूतपूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति को मोदी से बातचीत के मुद्दों को लेकर क्या सलाह दी थी। ओबामा ने कहा था कि जो बाइडन को मोदी से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के हाल पर जरूर बात करनी चाहिए। ओबामा की बात मोदी के लिए एक सीधी-सीधी नसीहत थी कि भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक आजादी बदहाली में है। इस बात को लेकर मोदी के साथियों ने भारत में ओबामा पर सार्वजनिक हमले किए, और ऐसा करते हुए वे इस बात को भूल गए कि मोदी ने ही ओबामा के राष्ट्रपति रहते हुए कहा था कि वे दोनों दोस्त हैं, और उनके बीच तू-तड़ाक से बातचीत के रिश्ते हैं। 

पूरी दुनिया इस बात की गवाह है कि आज की सबसे कामयाब और सबसे उदार शासन व्यवस्था, लोकतंत्र पर जिस देश में भी धर्म हावी होता है, वहां पर लोकतंत्र पर धर्म के सबसे बड़े मुजरिम हावी हो जाते हैं, और लोकतंत्र कुचलकर रह जाता है। भारत से लगा हुआ पाकिस्तान इसकी एक जलती-सुलगती मिसाल है, और भारत के दूसरे तरफ लगे हुए पड़ोसी देश, एक वक्त हिन्दू राष्ट्र रहे हुए, और आज उससे छुटकारा पा चुके नेपाल के एक भूतपूर्व मंत्री की ताजा सलाह भी सामने है। धर्म राजनीति का क्या हाल करता है, लोकतंत्र का क्या हाल करता है, इसे अगर बाकी दुनिया के लोग पाकिस्तान की बदहाली को देखकर भी नहीं समझ पा रहे हैं, तो वे खुद भी बदहाल होने के ही हकदार रह जाएंगे। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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