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अयोध्या: करोड़ों की लागत का ‘विकास’ बारिश के दबाव में क्यों?
29-Jun-2024 9:20 AM
अयोध्या: करोड़ों की लागत का ‘विकास’ बारिश के दबाव में क्यों?

GAURAV GULMOHAR/ BBC

-गौरव गुलमोहर

सुबह के सात बजे हैं, आसमान में थोड़े बादल हैं और हल्की बूंदाबांदी हो रही है. चंद महीने पहले बन कर तैयार हुई चौड़ी काली डामर वाली रामपथ सड़क खाली सी है.

इक्का-दुक्का दर्शनार्थी नज़र आते जा रहे हैं. शहर के लोकप्रिय सिविल लाइंस बस अड्डे पर ई-रिक्शा चालक सुबह की चाय पी रहे हैं और चर्चा अयोध्या में धंसती हुई सड़कों पर हो रही है.

हमारी मुलाकात ई-रिक्शा चालक बबलू से हुई. उन्होंने 13 किलोमीटर लंबे रामपथ की ओर इशारा करते हुए कहा, "साहब यह सड़क है ही नहीं. यहां जो गड्ढे हो रहे हैं यह सब उद्घाटनबाज़ी का परिणाम है."

वे कहते हैं, "22 जनवरी के राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा वाले भव्य आयोजन के लिए जल्दी-जल्दी में निर्माण कार्य हुआ था. क्या और कितना मटेरियल लगा ये किसे पता?"

उन्होंने बताया, "इसी सड़क को बनाने के लिए हम लोगों का घर तोड़ दिया गया और पूरा मुआवज़ा भी नहीं मिला. यही कारण रहा कि भाजपा यहां से हार गई."

22 जून को हुई बारिश के बाद सहादतगंज से नया घाट, अयोध्या तक जाने वाली रामपथ सड़क 10 से ज़्यादा जगहों पर धंस गई जिसके बाद सड़क के बीच कई गहरे और सुरंगनुमा गड्ढे हो गए.

रामपथ कॉरिडोर का निर्माण इसी साल 22 जनवरी को राम मंदिर उद्घाटन से ठीक पहले हुआ था.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़, इस सड़क को बनाने में लगभग 624 करोड़ रुपये की लागत आई थी.

उद्घाटन से पहले हजारों करोड़ रुपए खर्च करके अयोध्या के विकास के दावे किए गए थे लेकिन जलभराव और धंसती सड़कों ने सभी पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

कई स्थानीय लोगों का कहना है कि राममंदिर उद्घाटन के लिए जल्दबाज़ी में विकास कार्य पूरा कराने की वजह से सड़कों का निर्माण मानकों के आधार पर नहीं हुआ है.

अहम सवाल यह है कि केंद्र सरकार की स्वदेश दर्शन योजना के तहत अयोध्या के सौंदर्यीकरण और भव्य-दिव्य विकास को क्या विकास का दीर्घकालिक और टिकाऊ मॉडल कहा जा सकता है?

अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन से पहले जहां पूरे शहर में ड्रिल मशीनों और बुलडोज़र की आवाज़ें गूंज रही थी, वहीं राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली बारिश में अयोध्या में चारों तरफ घरों में जमा पानी निकालने के लिए सड़कों के किनारे लगे पम्पिंग सेट नज़र आ रहे हैं.

23 से 28 जून को हुई बारिश के बाद अयोध्या में राम मंदिर के मुख्य द्वार पर जलभराव देखा गया.

इसके अलावा जलवानपुर, औद्योगिक क्षेत्र गद्दोपुर, कारसेवकपुरम और सिविल लाइंस में भी जगह-जगह पानी भर गया. लोगों के घरों के अलावा, कई सरकारी कार्यालयों में भी पानी भर गया.

हालांकि स्थानीय लोगों के अनुसार, सरयू के किनारे बसे इलाकों को छोड़ दिया जाए तो अयोध्या और फैजाबाद दोनों शहरों में बारिश के पानी का जमाव पहले कभी इतने बड़े पैमाने पर नहीं होता था.

ख़बरें आईं थीं कि 22 जून, 2024 की सामान्य बारिश के बाद ही राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने मंदिर के गर्भगृह की छत से पानी टपकने की बात कही.

हमने सत्येंद्र दास से उनके गोकुल मंदिर आवास पर मुलाकात की तो उन्होंने कहा, “मैं बोलने के लिए उपयुक्त आदमी नहीं हूं. अभी यहां बोलने लायक माहौल नहीं है. विकास के बारे में क्या बोलें? पहली बारिश में ही रोड धंस गई."

हालांकि राम मंदिर निर्माण कार्य की देखरेख करने वाली ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने सोशल मीडिया पर राम मंदिर गर्भगृह में पानी के लीक वाले दावे को ग़लत ठहराया है.

उन्होंने लिखा, "गर्भगृह में जहाँ भगवान रामलला विराजमान है, वहाँ एक भी बूंद पानी छत से नहीं टपका है, और न ही कही से पानी गर्भगृह में प्रवेश हुआ है".

लेकिन बात अगर कई जगह नई बनी सड़क धंसने की हो तो अयोध्या ज़िले का स्थानीय प्रशासन भी मानता है कि सड़कों पर गड्ढे हो गए जो नहीं होने चाहिए थे.

प्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए शहर के महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी ने बीबीसी से कहा, "रामपथ निःसन्देह अयोध्या में एक उपलब्धि है. इस सड़क में इंजीनियरिंग की कुछ समस्याएं थीं इसलिए कुछ गड्ढे आए लेकिन मुझे लगता है वह भी नहीं आने चाहिए थे. निर्माण में कुछ तकनीकी कमियां रह गई होंगी जिसके कारण कुछ गड्ढे हो गए."

उन्होंने आगे कहा, "22 जनवरी वाले आयोजन के मद्देनज़र पूरी दुनिया से श्रद्धालुओं के यहां आने की उम्मीद थी. सारे संसार की निगाहें अयोध्या की तरफ थीं. एक स्टेट ऑफ द आर्ट सड़क की आवश्यकता थी."

"हो सकता है कि जल्दी बनाने के चक्कर में तकनीकी कमी रह गई हो उसके कारण शुरुआती बारिश में वो गड्ढे दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन हमें यह भरोसा है योगी सरकार में हम उन कमियों को दूर कर लेंगे. आने वाले दिनों में गंभीर बारिश से निपटने के लिए अयोध्या नगर निगम तैयार है."

पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (पीडब्ल्यूडी) में एडीशनल इंजीनियर ओम प्रकाश वर्मा ने मीडिया से कहा कि, "राम पथ डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड में है. इस अवधि में कोई भी समस्या आने पर निर्माण कार्य एजेंसी के द्वारा ही कराया जाएगा. आगामी मानसून के दौरान पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों, कर्मचारियों तथा संबंधित निर्माण एजेंसी की ओर से सतत निगरानी रखी जाएगी."

अयोध्या धाम स्टेशन रोड पर ऑनलाइन बैंकिंग का काम करने वाले रजनीश कुमार के घर के सामने निर्माणाधीन नाले को महीने भर से अधूरा छोड़ दिया गया है. बारिश का पानी इकट्ठा होने से रजनीश के घर और दुकान में दरारें आ गई हैं.

पम्पिंग सेट से पानी निकालते हुए वे ख़ासे निराश नज़र आ रहे थे.

ज़ाहिर है, अभी तो मॉनसून की पूरी शुरुआत भी नहीं हुई है और इसी वजह से उनका परिवार डरा-सहमा हुआ है.

रजनीश कुमार ने बताया, "आधा घर अधिग्रहण में टूट गया. जो बचा है वो धंसता जा रहा है. हमारा पांच लोगों का परिवार इसी घर में रहता है. ठेकेदार आधा-अधूरा नाला छोड़कर चला गया और ये भी नहीं देखा कि यहां किसी का घर है, बैठ सकता है. तोड़ने के लिए सब आ जाते हैं लेकिन बनाने के लिए कोई क्यों नहीं आता."

अयोध्या की स्टेशन रोड पर ही बिल्डिंग मैटीरियल की दुकान चलाने वाले बृजकिशोर कहते हैं, "महीने भर तक यहां नाला खोदा गया और अधूरा छोड़ दिया गया. दुकान के सामने पानी भरता है और दुकान की मिट्टी कट-कट कर पानी में जा रही है."

"दुकान कभी भी धंस सकती है. मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत करने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है. यहां पहले कभी पानी का जमाव नहीं होता था लेकिन दो घंटे की बारिश में हाल बेहाल है."

शहर के सामाजिक कार्यकर्ता गुफ़रान सिद्दीकी कहते हैं, "फैज़ाबाद शहर कभी अवध की राजधानी थी जहां पुराने स्थापत्य और पारंपरिक विकास का मॉडल आज भी आपको नज़र आ सकता है."

"मेरी स्मृति में यह पहली बार है जब अयोध्या और फैज़ाबाद शहर में सामान्य बारिश में जलभराव का इतना संकट देखने को मिल रहा है. यह सब मीडिया में चमक-दमक और भव्यता दिखाने का परिणाम है. वरना तीन महीने पहले जो काम पूरा हुआ है उसमें हर एक किलोमीटर में पांच-पांच गड्ढे कैसे हो सकते हैं?"

सड़कों पर गहरे गड्ढों के अलावा राम मंदिर परिसर के मुख्य द्वार पर जलभराव देखा गया. वहीं मंदिर के बगल में ही नगर निगम के अयोध्या कार्यालय, आस-पास की दुकानों और घरों में भी जलभराव से जूझते लोग नज़र आए.

अयोध्या नगर निगम कर्मचारी कमलेश कुमार कार्यालय में पम्पिंग सेट से पानी निकलवा रहे थे. उनके मुताबिक़, "बारिश में कभी भी निगम कार्यालय में जलभराव नहीं होता था."

उन्होंने बीबीसी से कहा, "जो आरएनसी कंपनी सड़क बना रही थी उसने पुराने नाले को मिट्टी से बंद कर दिया. नए रामपथ सड़क के बीचों बीच से नाला गया है लेकिन उससे कार्यालय के नाले को जोड़ा नहीं गया. इस कारण ज़रा सी बारिश में भी जलभराव हो गया."

"हम लोग कहते रहे कि मुख्य नाले से कार्यालय की नाली को जोड़ दिया जाए लेकिन उन्होंने किसी की सलाह नहीं मानी, मनमाने तरीके से अपना काम करके निकल गए."

राम मंदिर से सौ मीटर दूर जलवानपुर इलाका पहले भी बारिश में मुश्किल समय का सामना करता रहा है लेकिन पहली बारिश में ही लोगों के सामने जलभराव के संकट पैदा हो जाएंगे ऐसा किसी ने सोचा नहीं था.

किरण, जलवानपुर में किराए के मकान में दुकान चलाती हैं. इनकी दुकान तक में पानी भर चुका है.

उन्होंने बताया कि पहले उनकी चाय-नाश्ते की दुकान राम मंदिर के बगल में राम पथ पर थी लेकिन सड़क चौड़ीकरण में 60 फीट लंबी और 13 फीट चौड़ी दुकान को तोड़ दिया गया.

किरण बताती हैं, "पूरा मोहल्ला पानी से लबालब हो गया है. मेरी दुकान में एक फुट तक पानी भर गया है. कैसे हम खाना बनाएं, कैसे सामान लेने जाएं? कोई रास्ता नहीं बचा है. प्रशासन की ओर से कोई सुनने वाला नहीं है."

जलवानपुर की दूसरी गली में पद्मावती अपने तीन मंज़िला मकान में धर्मशाला चलाती हैं. पद्मावती दरवाज़े पर खड़ी यात्रियों की राह देख रही हैं.

दूर से गंदे काले पानी से भरी गली में मुझे आते देख पद्मावती ने सोचा शायद मैं कोई तीर्थयात्री हूँ और किराए का कमरा तलाश रहा हूँ.

लेकिन जब उन्हें पता चला मैं तीर्थयात्री नहीं हूं तो वो निराश हो गईं.

पद्मावती ने कहा, "इस वर्ष दो बार बारिश हुई. दोनों बार घरों में पानी भर गया. जो यात्री धर्मशाला में आए थे वो छोड़कर चले गए. उसके बाद और कोई यात्री आया नहीं. हमारी पूरी धर्मशाला खाली है."

वे कहती हैं, "गंदे पानी के जमाव के कारण घरों में सीलन, मच्छर और बीमारियां फैल रही हैं. हमारे यहां राम मंदिर के विकास के नाम पर पानी का विकास हुआ है. हम लोगों को शहर में हर जगह पानी ही पानी मिल रहा है.”

राम मंदिर बनने से खुशी के सवाल पर पद्मावती कहती हैं, "राम मंदिर आस्था का केंद्र है. मंदिर के नाम पर सब खुश हैं लेकिन हम लोगों को क्या चाहिए? यही न कि हम लोगों की नाली बन जाए और पानी निकल जाए."

मौजूदा समय में अयोध्या के सम्पूर्ण विकास में कहीं भारी तकनीकी चूक है या सिर्फ बारिश का प्रभाव है इसपर कुछ भी कह पाना किसी के लिए आसान नहीं है.

जहां सत्ता पक्ष बारिश के बाद पैदा हुई अव्यवस्था को क्षणिक मान रहा है वहीं विपक्ष इसे भारी चूक बता रहा है.

समाजवादी पार्टी के ज़िलाध्यक्ष पारसनाथ यादव ने बीबीसी से कहा, "हिंदू धर्म में लिखा है कि किसी भी अधूरे मंदिर में ईश्वर की मूर्ति का प्रतिष्ठान नहीं होना चाहिए लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक लाभ लेने के लिए प्रतिष्ठान करके उद्घाटन कराया गया."

वे कहते हैं, "सारी चीजें नम्बर दो करके सामान लगाया. सड़कें फट रही हैं, सीवर टूट रहे हैं, बाउंड्री गिर रही है. यह सब उसी का परिणाम है."

अयोध्या में रहने वाले प्रोफ़ेसर अनिल कुमार सिंह सड़कों के धंसने और जलभराव का प्रमुख कारण जल्दबादी और अकुशल इंजीनियरिंग को मानते हैं.

प्रोफ़ेसर अनिल कुमार सिंह कहते हैं, "यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि इसके लिए किसी विशेषज्ञ से मदद नहीं ली गई है और बहुत जल्दबाजी में काम किया गया है. चूंकि 22 जनवरी को मंदिर का उद्घाटन होना था इसलिए बहुत सारे काम चलताऊ हुए हैं."

नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की पिछले साल मॉनसून सत्र में लोकसभा में पेश की गई रिपोर्ट में भी अयोध्या में शुरू की गई कई परियोजनाओं पर सवाल खड़े किए गए थे. (bbc.com/hindi)

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