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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरकार के एक सबसे बड़े औजार को उसके अमले ने बना लिया जुर्म का हथियार!
31-Aug-2024 6:16 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सरकार के एक सबसे बड़े औजार को उसके अमले ने बना लिया जुर्म का हथियार!

यूपीए सरकार ने देश में जब आधार कार्ड शुरू किया, तो विपक्ष ने उसका जमकर विरोध किया था। लेकिन जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने, और उन्होंने आधार कार्ड के फायदों को सरकार में बैठकर देखा, तो हाल यह हो गया कि मोदी सरकार ने हर किस्म के सार्वजनिक और सरकारी काम में आधार कार्ड को अनिवार्य करने का ऐसा विस्तार किया कि सुप्रीम कोर्ट को दखल देकर उसे बहुत से दायरों में रोकना पड़ा। अदालत ने कई ऐसे काम गिनाए जहां आधार कार्ड की अनिवार्यता की जरूरत नहीं थी, और सरकार उसके बावजूद लोगों को प्रोत्साहित करती रही, और ऐसा माहौल बनाती रही कि आधार कार्ड अनिवार्य है। इस बीच बैंक खातों को लेकर, किसी भी तरह के सरकारी कामकाज को लेकर कहीं आधार कार्ड, कहीं आयकर विभाग का जारी किया गया पैनकार्ड, और कहीं इन दोनों को एक-दूसरे से जोडऩा जरूरी किया जाता रहा, और अब हाल यह है कि इनके बिना मोबाइल का सिमकार्ड खरीदना भी मुमकिन नहीं है, या ट्रेन-प्लेन के रिजर्वेशन में भी जो जरूरी दस्तावेज लगते हैं, वे एक-दूसरे से इस तरह जोड़ दिए गए हैं कि सरकार पल भर में पांच-दस किसी भी तरह के पहचान पत्र में से किसी एक से भी किसी नागरिक के बाकी पहचान पत्र निकाल सकती है, और एक किस्म से पूरा देश सरकार की स्थाई निगरानी में आ चुका है। हम इसे फिलहाल सरकार द्वारा खुफिया निगरानी न मानकर इन पहचान पत्रों के इस्तेमाल से होने वाले फायदों को देख रहे हैं। इनकी वजह से यह जरूर है कि लोगों की नीजता खत्म होती है, लेकिन अगर लोग किसी जुर्म में शामिल नहीं हैं तो 99 फीसदी लोगों के लिए निजी कामकाज का इन दस्तावेजों से उजागर होना नुकसानदेह नहीं होता।

अब आज एक रिपोर्ट है कि किस तरह राजस्थान के एक जिले की 15 ग्राम पंचायतों के 6-7 सौ लोग अपने आधार कार्ड में फर्जीवाड़ा करके जवानी में ही उम्र को बुजुर्ग जितना दर्ज करवा चुके हैं, और हर महीने वृद्धावस्था पेंशन ले रहे हैं। कुल 15 ग्राम पंचायतों में पांच साल में करीब साढ़े 4 करोड़ की बुजुर्ग पेंशन इन नौजवानों ने पाई है। और शुरूआती जांच में यह पता लगा है कि जवानी में बूढ़े बनकर पेंशन पाने की यह जालसाजी राजस्थान में 15 साल से चल रही है। इसमें नीचे से ऊपर तक के अफसर-कर्मचारी शामिल हैं। हर पांच बरस में सत्ता पलटने वाले राजस्थान के इन 15 बरसों को देखें तो यह बात साफ है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों की सरकारें इस दौरान रही हैं, और ऐसा लगता है कि मंत्री-मुख्यमंत्री के आने-जाने से भ्रष्ट सरकारी मशीनरी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा, और इस तरह के हरामखोर नौजवान जनता के खजाने का पैसा धोखाधड़ी और जालसाजी से खाते रहे। जिस आधार कार्ड में उम्र की छेडख़ानी करके यह गबन किया गया, उसी आधार कार्ड की जांच से यह बड़ा व्यापक जुर्म पकड़ाया भी है। इसलिए ऐसा लगता है कि भारत में जहां पर सरकार को धोखा देना, नाजायज फायदे उठाना आम राष्ट्रीय संस्कृति है, वहां पर सभी तरह के दस्तावेजों की जांच से जुर्म पकड़े जाने चाहिए।

अभी मोदी सरकार देश भर में हर जमीन या संपत्ति का भी एक आधार कार्ड या ऐसा कोई परिचय पत्र बनाने की तरफ बढ़ रही है। आज भी जमीन-जायदाद की खरीदी-बिक्री में, कई दूसरे किस्म के सरकारी कामकाज में आधार कार्ड को शिनाख्त का मुखिया जरिया बनाया गया है, और इसकी वजह से कई किस्म की परंपरागत जालसाजी रूकी है, और लोगों ने जालसाजी की नई किस्मों को ढूंढा है। ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय स्तर पर आधार कार्ड, पैनकार्ड, ड्राइविंग लाईसेंस, मतदाता कार्ड, राशन कार्ड, क्रेडिट और डेबिट कार्ड, मोबाइल और इंटरनेट कनेक्शन इन सबको जोडऩे से सरकार किसी के बारे में कोई भी जानकारी पल भर में निकाल सकेगी। किस व्यक्ति ने किस जगह, किस होटल में ठहरकर, वहां के वाई-फाई का इस्तेमाल करते हुए, किस शॉपिंग वेबसाइट से, कौन से सामान खरीदे, और किस खाते से उनका भुगतान किया, ऐसी बहुत सी बातें चुटकी बजाते ही सरकारी एजेंसियों को मिल सकती हैं। हमारा ख्याल है कि लोगों के गैरसरकारी कामकाज की जानकारी निकालना सरकारी एजेंसियों के हाथ में तभी होना चाहिए, जब लोग किसी जुर्म में शामिल हों। आम लोगों की आम जिंदगी की जानकारी निकालने के खिलाफ सरकार को कड़े नियम बनाने चाहिए। देश में वैसे तो डाटा-सुरक्षा कानून बड़ा कड़ा बनाया गया है, लेकिन उसमें लोगों की निजी जिंदगी से संबंधित जानकारी को आपराधिक जांच के अलावा सुरक्षित रखने के स्पष्ट प्रावधान रहने चाहिए। आज लोगों की सेहत, उनके इलाज, उनकी खरीददारी, उनके किसी भी किस्म के भुगतान, या लेन-देन की जानकारी, इतनी सारी जगहों पर दर्ज होती है कि उनका बेजा इस्तेमाल करके न सिर्फ सरकार, बल्कि साइबर-घुसपैठिए भी लोगों को लूट सकते हैं, या ब्लैकमेल कर सकते हैं। अभी आए दिन अखबारों में रहता है कि किस तरह लोगों की बहुत सारी निजी जानकारी, जिनमें उनके आधार-पैनकार्ड के नंबर भी रहते हैं, उन्हें जुटाकर लोगों को किस तरह डिजिटल-बंधक बना दिया जा रहा है, और धोखा देकर लूटा जा रहा है। राजस्थान का यह मामला इससे ठीक उल्टा है जहां आम ग्रामीण नौजवानों ने एक ही मुजरिम-तरीका इस्तेमाल करके सरकार को लूटा है।

यह पूरी नौबत बताती है कि न सिर्फ आम जनता, बल्कि सरकार भी किस तरह डिजिटल-नाजुक बन चुकी हैं, और इससे पैदा होने वाले नुकसान के खतरों को भांपना सरकार के खुफिया और निगरानी तंत्र की एक बड़ी चुनौती है। सरकार को मुजरिमों के नजरिए से देखकर यह समझना होगा कि वे सरकारी इंतजाम को धोखा देकर किस तरह जनता को जुर्म का शिकार बना सकते हैं। राजस्थान की इस ताजा धोखेबाजी में शामिल सरकारी अमले को बड़ी कड़ी सजा देनी चाहिए, और यह मामला सरकार को इतने संगठित तरीके से धोखा देने का है, आम जनता को मुजरिम बना देने का है कि इसके लिए सरकारी अमले पर तो कम से कम उम्रकैद जैसा प्रावधान करना चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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