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हिंसा का लहू जिन जुबानों पर लगता है, वे फिर हिंसा करते हैं
01-Sep-2024 2:58 PM
हिंसा का लहू जिन जुबानों पर लगता है, वे फिर हिंसा करते हैं

दो अलग-अलग खबरें बहुत विचलित करती हैं। एक खबर चर्चा में अधिक आ चुकी है, खबरों से परे पुलिस की प्रारंभिक जांच में सुबूत अच्छी तरह दर्ज हो चुके हैं, और कुछ लोग हिरासत में भी लिए जा चुके हैं। इसी से बात शुरू करते हैं। महाराष्ट्र में एक ट्रेन में 72 बरस का एक मुस्लिम बुजुर्ग अपनी बेटी के घर जा रहा था, और साथ बैठे दूसरे मुसाफिरों ने उसकी इस शक में पिटाई की कि वह गोमांस ले जा रहा है। पुलिस की जांच में मिला कि वह भैंस का मांस लेकर सफर कर रहा था जो कि महाराष्ट्र में गैरकानूनी नहीं है। इस पिटाई का वीडियो जब सामने आया तो लोग हक्का-बक्का रह गए। एक दर्जन लोग गालियां बकते हुए एक बूढ़े पर हमला कर रहे थे, उसे पीट रहे थे, और बाकी मुसाफिर इसका वीडियो बना रहे थे। जाहिर है कि देश में आज जो जहरीली हवा फैली हुई है, उसके असर में किसी मुस्लिम पर हमला देश के बाकी गैरमुस्लिम नागरिकों का हक सा मान लिया गया है। लोगों को याद होगा कि देश में जगह-जगह कुछ मुस्लिमों को मार भी डाला गया, क्योंकि उन पर यह शक था कि वे गोमांस ले जा रहे हैं, या गायों को ले जा रहे हैं। ऐसी ही भैंसों से लदी हुई एक ट्रक को कुछ हफ्ते पहले छत्तीसगढ़ में शायद 63 किलोमीटर तक पीछा करके, उसे पंक्चर करके, उसमें तोडफ़ोड़ करके उसके लोगों को पीटा गया, और या तो उन्हें पुल से फेंककर मार डाला गया, या फिर पुल से कूदने को मजबूर किया गया जैसी कि कहानी पुलिस ने बहुत अनमने और अनचाहे ढंग से मान ली है।

एक दूसरी घटना को भी देखना जरूरी है। यह घटना लखनऊ में कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों उद्घाटन हो चुकी बहुचर्चित वंदे भारत ट्रेन की है जिसमें एक महिला और उसके भाई को ट्रेन के एक डिब्बे से होकर खाना लेने जाते हुए डिब्बे के भाजपाई लोगों ने रोका, और वहां से आगे जाने पर आपत्ति की। खाना लेकर लौटते में फिर इन लोगों को रोका गया, और अपने आपको भाजपा के कार्यकर्ता बताते हुए, डिब्बे को भाजपा का बताते हुए उनके साथ धक्का-मुक्की की गई। जिनके साथ यह बदसलूकी हुई, वे लोग सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर थे, जिन्हें इस ट्रेन के उद्घाटन में बुलाया गया था, और उनके साथ ऐसा बर्ताव किया गया।

हर कुछ दिनों में ट्रेन की कोई न कोई ऐसी घटना आ रही है जिसमें हिंसा हो रही है, हेटस्पीच या हेटहरकत सामने आ रही है। एक वक्त था जब हिन्दुस्तानी ट्रेनें देश में धर्मनिरपेक्षता की एक बड़ी जगह रहती थीं। रेलवे प्लेटफॉर्म से लेकर ट्रेन के डिब्बे के भीतर तक सभी धर्मों और जातियों के लोग सफर करते थे, और लोगों का दूसरों के प्रति बर्दाश्त भी ऐसे माहौल में बढ़ते चलता था। लेकिन आज सडक़ें हो या ट्रेन, ये बहुसंख्यक वर्ग की हिंसा की जगहें हो गई हैं, और दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, इनके हक दूसरे दर्जे के नागरिकों की तरह हो गए हैं।

अभी कुछ दिन पहले ही ट्रेन के एक डिब्बे का वीडियो आया था जिसमें डिब्बे का रेल अधिकारी चीख-चीखकर मुस्लिम नमाजियों को कॉरीडोर में प्लास्टिक की चादर बिछाकर नमाज पढऩे से रोक रहा था, उनके बारे में भारी गुस्से से आपत्तिजनक जुबान में बातें कह रहा था, और उसने रास्ते पर नमाज पढऩे से लोगों को रोककर ही दम लिया। इस डिब्बे का जो वीडियो दिख रहा था उसमें अधिकतर मुस्लिम मुसाफिर दिख रहे थे, और नमाज तो कुछ मिनटों की होती है, लेकिन एक अकेले रेल अफसर ने इसे रोकने के लिए क्या-क्या नहीं कहा। दूसरी तरफ हमें याद पड़ता है कि जाने दस-बीस बरस कितने पहले से मुम्बई की लोकल ट्रेन में गणेश स्थापना की जाती है, कुछ सीटों पर गणेश प्रतिमा बिठाई जाती है, उसे मंदिर की तरह सजाया जाता है, वहां पर कीर्तन चलता है, और यह दस दिन लगातार चलता है। उसी देश की एक दूसरी ट्रेन में कुछ मिनटों के लिए भी नमाज की तैयारी को ही रोक दिया जाता है।

हम अभी पूरे देश की हर घटना को इससे जोडक़र देखना नहीं चाहते, क्योंकि वह रायता बहुत अधिक फैलाना हो जाएगा, लेकिन इतनी चर्चा तो करनी ही पड़ेगी, कि रेल हो या रोड़ हो, ये किस हद तक धर्मान्ध और साम्प्रदायिक बन चुकी जगहें हैं! अपने धर्म के लिए धर्मान्ध, और दूसरे धर्मों के लिए साम्प्रदायिक।

अभी कल की ही खबर थी कि छत्तीसगढ़ से लगे हुए महाराष्ट्र के हिस्से में गोंदिया में कृष्ण जन्माष्टमी पर निकले दही हांडी जुलूस में डीजे का शोर इतना अधिक था कि रास्ते के एक घर में एक आदमी की तबियत बिगड़ गई, बुरी तरह घबराहट होने लगी, धडक़न तेज हो गई, और परिवार के लोगों ने हाथ जोडक़र लाउडस्पीकर बंद करने की अपील की, लेकिन बेहोश पड़े आदमी के बगल से गुजरता दही हांडी का जुलूस वैसा ही शोर करते रहा। घर के अकेले कमाने वाले, अखबार के एजेंट, सुमित पांडे की मौत हो गई। लोगों का कहना है कि दही हांडी के डीजे का शोर इतना अधिक था कि आसपास की इमारतें कांप रही थीं।

लोगों को याद होगा कि कुछ अरसा पहले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में, जहां पर कि हाईकोर्ट भी है, और वह हाईकोर्ट लगातार राज्य सरकार के पीछे लगा है कि सडक़ों पर अंधाधुंध लाउडस्पीकरों का शोर खत्म किया जाए, वहां पर किसी प्रतिमा विसर्जन के लाउडस्पीकरों के शोर से एक बच्चे की मौत हो गई थी। अभी छत्तीसगढ़ के तमाम शहरों में हर किस्म के त्यौहारों पर, प्रतिमा स्थापना से लेकर प्रतिमा विसर्जन तक, इतने भयानक ध्वनि प्रदूषण वाले जुलूस सडक़ों पर निकलते हैं कि उनका खास मकसद भक्ति नहीं रहता, हिंसा दिखता है। सडक़ की ट्रैफिक के साथ हिंसा, सडक़ किनारे के लोगों के साथ हिंसा।

हम छत्तीसगढ़ की राजधानी में, जहां बसे हुए मुख्य सचिव और डीजीपी हाईकोर्ट में हलफनामे देते ही रहते हैं, वहां पर आए दिन धार्मिक जुलूसों का इतना भयानक शोर देखते हैं कि उनके बगल से किसी तरह रेंगते हुए गाड़ी निकलने पर पूरी की पूरी गाड़ी हिलती रहती है, ऐसा लगता है कि कार के कांच टूट जाएंगे। इसके साथ-साथ अराजक धर्मान्धता सडक़ पर हिंसा का तांडव करते चलती है, और पुलिस इन पर कार्रवाई करने के बजाय इनकी सुरक्षा करते चलती है।

यह पूरा सिलसिला देश में बढ़ती हुई ऐसी धर्मान्धता, और साम्प्रदायिकता का नतीजा है, जो कि पूरी तरह बेकाबू है। जिन रेलगाडिय़ों को सबसे सुरक्षित माना जाता था, उन रेलगाडिय़ों से अब मुसाफिरों को पीट-पीटकर फेंक दिया जाता है, और जाहिर है कि ऐसी हिंसा पर कोई कारगर कार्रवाई नहीं होती, तभी मुजरिमों का इतना हौसला बनता है। यह तो चारों तरफ बिखरे हुए मोबाइल-कैमरों की मेहरबानी है कि हिंसा के सुबूत जुट ही जाते हैं, वरना कोई गिरफ्तारी भी नहीं हो पाती। लेकिन हमारा ऐसा अंदाज है कि आज देश जिस हद तक धर्मान्ध हो चुका है, साम्प्रदायिक हिंसा के मुजरिम पुलिस, जेल, और अदालत तक तरह-तरह का सम्मान ही पाते होंगे।

किसी देश या समाज में, या प्रदेश में ऐसी अराजक हिंसा को बढ़ावा देना तो आसान है, लेकिन इससे छुटकारा पाना कुछ वैसा ही मुश्किल होगा जैसा कि एक कहानी में अपने बनाए गए शेर में प्राण फूंकने के बाद उससे उतरना मुश्किल होता है, शेर खा जाता है। मुंह में खून लगने पर महज जानवर ही मानवभक्षी नहीं होते, इंसान भी एक बार हिंसा की ताकत का लहू चख लेते हैं, तो उन्हें फिर उस हिंसा का स्वाद बार-बार खींचता है, और अगली हिंसा करवाता है। किसी धर्म के ऐसे हिंसक लोग हर बार दूसरे धर्म के साथ ही हिंसा नहीं करते, जब ऐसे हिन्दू, हिन्दू बहुल आबादी में ऐसा भयानक शोर करते निकलते हैं, या किसी धार्मिक आयोजन में बेकाबू लाउडस्पीकर बजाते हैं, तो वे मोटेतौर पर हिन्दुओं का ही सुख-चैन छीनते हैं। सरकारों में ऐसी गुंडागर्दी के खिलाफ कार्रवाई के लिए बहुत बड़े हौसले की जरूरत नहीं है, जरूरत महज इतनी है कि निर्वाचित सत्तारूढ़ नेता अफसरों को कानून के हिसाब से काम करने दें।

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