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एक माह पहले ही हो गई थी अमित के सर्टिफिकेट को रद्द करने की अनुशंसा, फैसला अब आया और हो गया काम
17-Oct-2020 9:11 PM
एक माह पहले ही हो गई थी अमित के सर्टिफिकेट को रद्द करने की अनुशंसा, फैसला अब आया और हो गया काम

राजेश अग्रवाल का एक विश्लेषण

बिलासपुर, 17 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। क्या यह मान लेना चाहिये कि 15 अक्टूबर को अमित जोगी का जाति प्रमाण पत्र निरस्त करना और ऋचा जोगी का निलम्बित किया जाना सिर्फ संयोग था? मगर यह समय ऐसा जरूर था कि किसी अदालत से फौरी राहत पा लेने का कोई मौका जोगी दम्पती को नहीं मिल पाया। अमित जोगी ने दावा किया था कि वे चक्रव्यूह तोडक़र बाहर निकलेंगे, पर फिलहाल वे उससे बुरी तरह घिरे हुए दिखाई दे रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) दोनों का आरोप है कि कांग्रेस की सरकार अमित जोगी या जोगी परिवार से किसी को भी चुनाव नहीं लडऩे देने पर आमादा है। कांग्रेस कहती रही इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं, जिसके पास वैध प्रमाण-पत्र होगा वह चुनाव लड़ लेगा। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी का जाति प्रमाण-पत्र निरस्त होने के बाद हाईकोर्ट से उन्हें सीधे कोई राहत नहीं मिली, बस यह राहत मिली थी उनके खिलाफ एफआईआर पर आगे की कार्रवाई न हो और प्रताडि़त करने वाली कोई कार्रवाई नहीं हो। 

इस आधार पर अमित जोगी का कंवर जाति प्रमाण-पत्र भी निरस्त होना चाहिये था, ऐसी मांग मरवाही में अमित जोगी के खिलाफ सन् 2013 में प्रत्याशी रहीं समीरा पैकरा और कांग्रेस से जुड़े संत कुमार नेताम की थी। उन्होंने गौरेला की जिला स्तरीय सत्यापन समिति और राज्य स्तरीय जाति प्रमाणीकरण समिति के समक्ष इसकी शिकायत की। शिकायत पर जांच शुरू हुई। 

अमित जोगी अलग-अलग कारणों से जिले की समिति और राज्य की समिति के सामने दो तीन तारीखों में उपस्थित नहीं हुए। समिति के पास अब जोगी के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करने का पर्याप्त आधार बन गया। राज्य स्तरीय समिति ने 15 अक्टूबर 2020 की अपनी बैठक की रिपोर्ट में जिला स्तरीय समिति की अनुशंसा का प्रमुखता से उल्लेख किया है जिसमें कहा गया है कि जाति प्रमाणपत्र जारी करने के लिये पिता, पूर्वज या सम्बन्धी को ही आधार माना जाता है, चूंकि अजीत प्रमोद कुमार जोगी के बारे में उच्च स्तरीय छानबीन समिति विपरीत फैसला दे चुकी है, अत: उक्त फैसले का सीधा असर प्रमाण पत्र धारक अमित जोगी पर पड़ता है और नि:संदेह अमित जोगी कंवर आदिवासी नहीं माने जा सकते।

15 अक्टूबर को उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने इसी रिपोर्ट के आधार पर निर्णय लिया। हो सकता है कि अमित जोगी को इस अनुशंसा के बारे में पता हो लेकिन उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया कि दोनों समितियां उनकी गैरहाजिरी को लेकर क्या कर रही हैं। रायपुर की समिति इस रिपोर्ट पर कोई निर्णय लेने वाली है इसके कोई संकेत चुनाव की घोषणा होने तक नहीं मिल रहे थे।

अमित जोगी और ऋचा जोगी पर फैसला आज से 15-20 दिन पहले आ गया होता तो क्या होता? शिकायतकर्ताओं की पैरवी करने वाले एक कांग्रेस नेता का कहना है कि वे किसी न किसी अदालत से स्थगन लेने में सफल हो जाते और उनको पुराने सर्टिफिकेट पर एक और चुनाव लडऩे का मौका मिल जाता। ऋचा जोगी के मामले में हाईकोर्ट में और अमित जोगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकायें दायर हैं। 

हाईकोर्ट में संत कुमार नेताम ने केवियेट दायर कर रखी है। सुप्रीम कोर्ट में भी रजिस्ट्रार के पास उनके वकीलों ने अमित जोगी की याचिका के खिलाफ अपनी आपत्ति रख दी है। दूसरी ओर नामांकन की तारीख आकर खिसक गई, स्क्रूटनी के दिन तक जोगी दम्पती को कोई राहत नहीं मिल पाई। अमित जोगी ने दोनों नामांकन निरस्त होने के बाद सदैव की तरह न्याय पर आस्था जताई है पर जो होना था हो चुका। 

अब मैदान से जोगी बाहर हैं। वे चुनाव रद्द करने की मांग लेकर अदालत जाने की बात कर रहे हैं पर जानकार बताते हैं कि एक बार लोकसभा या विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद रोकी नहीं जाती, जिन्हें शिकायत हो वे फैसले का इंतजार करें। चुनाव याचिकायें कितनी लम्बी खिंचती है यह बताने की जरूरत नहीं है। कई फैसले आये हैं जब विधायकों का कार्यकाल पूरा हो चुका तब पता चला कि उनका निर्वाचन अवैध था। फिलहाल, कांग्रेस की आधी जीत हो चुकी है और अमित जोगी को एक लम्बी लड़ाई पर निकलना है।

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