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दिल्ली,26 अक्टूबर | रविवार 25 अक्टूबर को दशहरा के अवसर पर दिल्ली में रावण के पुतले और पटाखे जलाने से राजधानी की पहले से खराब वायु गुणवत्ता (एक्यूआई) और भी बदतर हो गई. सोमवार सुबह शहर के कई इलाकों में स्मॉग की एक मोटी परत देखी गई और वायु गुणवत्ता का स्तर गिर कर कहीं 'बहुत खराब' तो कहीं 'खतरनाक' हो गया.
यह नजारा अमेरिकी चुनावों में हुई उस आखिरी बहस के बस कुछ ही दिनों बाद देखने को मिला, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत की हवा को "गंदी" बताया था. उनकी टिप्पणी के खिलाफ भारत में सोशल मीडिया पर काफी आक्रोश देखने को मिला था, लेकिन भारत के प्रदूषण नियामक ने ताजा आंकड़ों के साथ वास्तविक स्थिति पूरी तरह से साफ कर दी.
केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के एयर क्वॉलिटी इंडेक्स के अनुसार सोमवार सुबह दिल्ली की वायु गुणवत्ता 347 थी. सोनिया विहार जैसे कुछ इलाकों में तो एक्यूआई 439 थी. सूचकांक 500 तक जाता है और बोर्ड के मानकों के अनुसार एक्यूआई 100 पार करते ही स्वास्थ्य के लिए और ज्यादा हानिकारक होती चली जाती है.
पर्यावरणविद कह रहे हैं कि अगर दशहरा में यह हाल हुआ है तो दीवाली में हालात और बदतर हो जाएंगे, क्योंकि दीवाली में लोग और ज्यादा पटाखे जलाते हैं.
शहर में पहले ही सांस लेने से संबंधित शिकायतों में उछाल देखी जा रही थी. इस महीने दिल्ली में औसत एक्यूआई 227 दर्ज की गई है, जिसका मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा खेतों की पराली के जलाने को माना जा रहा है. लेकिन दशहरा के बाद के हालात ने दिखा दिया कि शहर की अपनी ही समस्याएं कम नहीं हैं.
पर्यावरणविद कह रहे हैं कि अगर दशहरा में यह हाल हुआ है तो दीवाली में हालात और बदतर हो जाएंगे, क्योंकि दीवाली में लोग और ज्यादा पटाखे जलाते हैं. दीवाली अगले महीने है और उस समय किसानों द्बारा पराली जलाना भी जारी रहने की आशंका है. इसके अलावा हवा के नीचे बहने की वजह से भी स्मॉग शहर के ऊपर ही ठहर जाएगा.
दिल्ली में प्रदूषण के खिलाफ नया कानून
इसी बीच, केंद्र सरकार ने कहा है कि वो दिल्ली में वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए एक नया कानून लाएगी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वी अगले तीन-चार दिनों में एक नया कानून ला कर एक स्थायी संस्था की स्थापना करेगी जो पराली जलाने को रोकने और दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण रोकने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी उद्देश्य के लिए कुछ ही दिन पहले सेवानिवृत्त जज जस्टिस मदन लोकुर की अध्यक्षता में एक एक-सदस्यीय समिति की स्थापना की थी. केंद्र के इस आश्वासन के बाद अदालत ने लोकुर समिति को रोक दिया है. हालांकि अभी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुआ है कि यह समिति क्या करेगी. इस उद्देश्य के लिए ईपीसीए नामक एक उच्च स्तरीय समिति पहले से मौजूद है, जिसको सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में गठित किया था.(DW.COM)